07-12-2019, 07:29 PM
उस रात वह ऐसे सेक्स की रानी की तरह सज कर तैयार हुई जैसे मैंने उसे पहले कभी नहीं देखा। कई सालों के बाद पहली बार मेरी बीबी को उस ब्लाउज में देखा जो वह शर्म के मारे कभी न पहनती थी। वह डीप कट ब्लाउज था जिसमें मेरी रूढ़िवादी पत्नी के भरे और तने हुए मम्मों (स्तनों) का उभार काफी ज्यादा नजर आता था।
उसने स्लीवलेस ब्लाउज पहना था। उसका ब्लाउज चौड़ाई में छोटा था और जैसे वह उसके उरोज को बस ढके हुए था। दीपा के स्तन ब्लाउज में बड़ी कठिनाई से समाये हुए थे। उसने आपनी साड़ी भी अपनी कमर से काफी निचे तक बाँधी थी। ऐसा लगता था की कहीं वह पूरी निचे उतर न जाय और उसे नंगी न करदे। और साड़ी भी उसने ऐसी पहनी की थी की हाथ में पकड़ो तो फिसल जाए। एकदम हलकी पतली और पारदर्शी।
दीपा का ब्लाउज पीछे से एकदम खुला हुआ था। सिर्फ दो पतली डोर उसके ब्लाउज को पकड़ रखे हुए थे। दीपा की पीठ एकदम खुली थी और ब्रा की पट्टी उसमें दिख रही थी। ब्रा भी तो उसने जाली वाली पहनी थी। ब्लाउज खुलने पर उसके स्तन आधे तो वैसे ही दिखने लगेंगे यह मैं जानता था। दीपा की कमर में उसकी नाभि खूब सुन्दर लग रही थी।
रात दस बजे तरुण अपनी पुरानी अम्बेसडर कार में हमें लेने पहुंचा। जैसे उसने हॉर्न बजाया, दीपा सबसे पहले बाहर आयी। दीपा के घर से बाहर आने के बाद हमारे घर के आँगन में जो हुआ वह मुझे दीपा ने कुछ दिनों बाद सविस्तार बताया था। वह मैं आपसे शेयर कर रहा हूँ।
तरुण तो दीपा को देखते ही रह गया। दीपा की साडी का पल्लू उसके उरोजों को नहीं ढक पा रहा था । उसके रसीले होँठ लिपस्टिक से चमक रहे थे। उसके भरे भरे से गाल जैसे शाम के क्षितिज में चमकते गुलाबी रंग की तरह लालिमा बिखेर रहे थे। सबसे सुन्दर दीपा की आँखे थीँ। आँखों में दीपा ने काजल लगाया था वह एक कटार की तरह कोई भी मर्द के दिल को कई टुकड़ों में काट सकती थीँ। आँखे ऐसी नशीली की देखने वाला लड़खड़ा जाए। उसके बाल उसके कन्धों से टकराकर आगे उन्नत स्तनों पर होकर पीछे की तरफ लहरा रहे थे।
सबसे ज्यादा आकर्षक दीपा की गाँड़ का हिस्सा था जो की साडी के पल्लू में छिपा हुआ था, पर उसकी सुडौल गाँड़ के घुमाव को छिपाने में असमर्थ था। साडी में दीपा के कूल्हे इतने आकर्षक लग रहे थे की क्या बात!!!!
दीपा ने जैसे ही तरुण को देखा तो थोड़ी सहम गयी। उसे दोपहर की तरुण की शरारत याद आयी। तरुण के अलावा किसीने भी ऐसी हिमत नहीं दिखाई थी की दीपा की मर्जी के बगैर इसको छू भी सके। पर तरुण ने सहज में ही न सिर्फ कोने में दीवार से सटा कर उसे रंग लगाया, बल्कि उसने दीपा के ब्लाउज के ऊपर से अंदर हाथ डाल कर उसकी ब्रा के हूको को अपनी ताकत से तोड दिए और स्तनों को रंगों से भर दिए। और भी बहुत कुछ किया।
दीपा को देख कर तरुण तुरंत कार का दरवाजा खोल नीचे उतरा और फुर्ती से दीपा के पास आया। उस समय आँगन में सिर्फ वही दोनों थे। तरुण दीपा के सामने झुक और अपने गालों को आगे कर के बोला, "दीपा भाभी, मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ। आज मैंने बहुत घटिया हरकत की है। आप मुझे मेरे गाल पर एक थप्पड़ मारिये। मैं उसीके लायक हूँ। दीपा एकदम सहमा गयी और एक कदम पीछे हटी और बोली, "तरुण ये तुम क्या कर रहे हो?"
तरुण ने झुक कर अपने हाथ अपनी टांगों के अंदर से निकाल कर अपने कान पकडे और दीपा से कहा, "दीपा आप जबतक मुझे माफ़ नहीं करेंगे मैं यहां खुले आंगन में मुर्गा बना ही रहूँगा। मुझे प्लीज माफ़ कर दीजिये।"
दीपा यह सुनकर खुलकर हंस पड़ी और बोली, "अरे भाई, माफ़ कर दिया, पर यह मुरगापन से बाहर निकलो और गाडी में बैठो और ड्राइवर की ड्यूटी निभाओ।"
तरुण ने तब सीधे खड़े होकर दीपा को ऊपर से नीचे तक देखा और कहा, "दीपा भाभी, आप तो आज कातिलाना लग रही हैं। पता नहीं किसके ऊपर यह बिजली गिरेगी।"
दीपा हंस पड़ी और बोली, "तरुण कहीं आज तुम ज्यादा ही रोमांटिक नहीं हो रहे हो क्या? ख़ास कर के जब आज टीना भी नहीं हैं।"
तरुण तुरंत लपक कर बोला, "तो क्या हुआ? आप तो है न?"
तरुण की बात सुन कर दीपा कुछ सहम सी गयी। उसने तरुण की बात अनसुनी करते हुए कहा, "देखो तरुण, तुम है मुझे ज्यादा परेशान मत किया करो यार। मैंने तुम्हें माफ़ तो कर दिया पर वाकई में आज तो तुमने सारी हदें पर ही कर दी थीं। मैं अगर हमारे संबंधों का लिहाज ना करती और तुम्हारे भैया से सब कह देती ना तो आज पता नहीं क्या हो जाता। तुम्हारे भैया तुमसे लड़ ही पड़ते और...... ।"
तरुण ने अपने चेहरे पर एकदम दीपा की बात सुन कर डर गया हो ऐसे भाव ला कर फिर तरुण ने एक बार फिर झुक कर दीपा के पाँव पकडे और दीपा के पाँव को साडी के ऊपर से ही दबाने लगा। दीपा तरुण के इस वर्ताव से भड़क गयी और कुछ कदम पीछे हट कर बोली, "तरुण यह क्या कर रहे हो? मैंने कहा ना की तुम्हें माफ़ कर दिया? फिर यह क्या है?"
तरुण ने कहा, "आपने जो गलतियां मैंने की उसे माफ़ किया। पर भाभी आज होली की रात है। आज होली की मस्ती सबके दिमाग पर छायी हुई है। भाई भी आज मस्ती में हैं। आज आप ऐसी सूफ़ियानी बातें क्यों करते हो? साल में एक दिन तो दिल खोल कर मस्ती करो और करने दो ना भाभी? यह उम्मीद क्यों रखते हो की आज की रात और हरकतें नहीं होंगी? मैं अब आप से जो गलतियां आगे चलके कर सकता हूँ या करूंगा उसकी भी अभी माफ़ी मांग रहा हूँ। प्लीज गुस्सा मत करना। प्लीज आज की रात मस्ती मनाइये और मनाने दीजिये। प्लीज?"
दीपा पीछे हट कर बोली, "ठीक है भाई। माफ़ कर दिया,माफ़ कर दिया, माफ़ कर दिया। अब तो तीन बार बोल चुकी हूँ। बस?"
तरुण अचानक सीरियस हो कर बोला, "भाभी, यह सच है की मैं आपको देखता हूँ तो मेरे सारे गम, मेरे सारे दर्द भाग जाते हैं और मैं रोमांटिक महसूस करने लगता हूँ। भाभी आपको नहीं पता मैं अंदर से कितना दुखी हूँ। इसलिए प्लीज इस होली के त्यौहार में मैं कुछ ज्यादती करूँ तो मुझे माफ़ करना और मुझे फटकारना मत प्लीज? मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूँ। आपको देवी माँ सा समझता हूँ। मैं आपको दुखी नहीं देख सकता। मैं आपको खुश देखना चाहता हूँ।"
यह सुन कर दीपा बरबस खिलखिला कर हँस पड़ी। उसने तरुण का हाथ पकड़ कर उसे खड़ा किया और उसके करीब जाकर बोली, "तरुण यार तुम बड़े चालु हो। एक तरफ तुम मुझे देवी माँ का दर्जा देते हो और दूसरी तरफ मुझसे छेड़खानी करते रहते हो? स्त्रियों का दिल कैसे जितना यह तुम बखूबी तरह जानते हो। देखो आज तक मैंने अच्छे अच्छों को अपने करीब नहीं आने दिया। बहोत मर्दों ने मेरे करीब आने की कोशिश की। पर मैंने उन्हें ऐसे फटकार लगाई की वह मेरी तरफ का रास्ता ही भूल गए।
तुम्हें भी मैंने खूब हड़काया, फटकारा और लताड़ा। पर तुम तो बड़े ही ढीट निकले। तुम पर तो कोई भी असर ही नहीं होता। तुम तो बन्दर ही हो । इन्सान को कण्ट्रोल किया जा सकता है, पर बन्दर को कण्ट्रोल करना बहुत मुश्किल है। शायद इसी लिए भगवान ने भी बंदरों को ही सैनिक के रूप में पसंद किया था। पर तुम्हारी एक बात जो मुझे बहुत अच्छी लगी वह यह की तुमने मुझे कभी भी हलकी नजरों से नहीं देखा। मेरे साथ हर तरह की छेड़खानी करते हुए भी तुमने मुझे हमेशा सम्मान भरी नज़रों से देखा। तुमने मुझे हमेशा इज्जत बख्शी। तुमने मेरे पति से छुपाकर कोई हरकत नहीं की। मैं इसी लिए तुम्हारी इज्जत करती हूँ।"
दीपा ने अपनी बात चालु रखते हुए कहा, "तरुण, देखो मैं मर्द नहीं हूँ इसलिए हो सकता है, तुम्हारे दिलोदिमाग के सारे भावों को मैं समझ ना सकूँ। पर तुम्हारे भाई मुझे बार बार मर्दों की कमजोरियां बगैरह के बारे में बताते रहते हैं। वैसे ही देखो मैं भी एक औरत हूँ। मेरी अपनी भी कुछ कमियां और मजबूरियां हैं। तुम्हें भी उन्हें समझना पडेगा। आज तुम और तुम्हारे भाई पर होली का जूनून सवार है। आज छेड़ने के लिए तुम दोनों के बिच में मैं एक अकेली ही औरत हूँ। चलो ठीक है, आज की रात तुम्हारे सारे होने वाले गुनाह माफ़ बस? आज मैं तुम्हें नहीं फटकारूंगी, ना बुरा मानूंगी। अब तो खुश?"
मेरे घर के आंगन में हल्का सा अन्धेरा सा था। राहदारियों की कोई ख़ास आवाजाह नहीं थी। तरुण ने दीपा का हाथ अपने हाथोँ में रखते हुए दीपा के हाथों की हथेली दबाकर कहा, "भाभी, नहीं भाभी, मैं इतने से खुश नहीं हूँ। मुझे कुछ और भी कहना है। मैं आपसे एक गंभीर बात करना चाहता हूँ। आज ज्यादा समय नहीं है। पर फिर भी सुन लो। भाभी, मैं आज आपके सामने एक इकरार करना चाहता हूँ। अभी भैया नहीं है इसलिए मेरी हिम्मत हुई है। मैं उनके सामने बोल नहीं सकता। मैं मानता हूँ की जिसको दिलोजान से चाहते हैं उससे झूठ नहीं बोलते। इसीलिए मैंने तय किया था की मैं आज आपसे सच सच बोलूंगा चाहे आप मुझे इसके लिए बेशक थप्पड़ मारें या नफरत करने लगें।"
तरुण की बात सुनकर दीपा से रहा ना गया। उसने कहा, "तरुण, यूँ घुमा फिरा के मत बोलो। जो कहना है वह साफ़ साफ़ कहो।"
तरुण ने कहा, "बिलकुल भाभी जी। तो सच बात सुनिए। मुझे सब रोमियो के नाम से जानते हैं। बात भी सही है। मैंने अपने जीवन में कई शादीशुदा या कँवारी स्त्रियों को पटाया है और उनके साथ सेक्स किया है। मैंने भी एन्जॉय किया है और उनको भी एन्जॉय कराया है। भाभी गुस्सा होइए, चाहे मुझे डाँट दीजिये; पर यह सही है की आपके साथ भी शुरू शुरू में मेरे मन में सेक्स की ही बात थी। मैं आपके बदन को पाना चाहता था। मैं आपसे सेक्स करना चाहता था। आपके साथ सोना चाहता था।"
तरुण के मुंह से यह शब्द सुनकर दीपा चक्कर खा गयी। उसे यह सुन कर कुछ राहत हुई जब तरुण ने यह कहा की "मैं आपसे सेक्स करना चाहता था।" इसका मतलब तो यह हुआ की अब तरुण सेक्स करना चाहता नहीं है।
दीपा कुछ बोलना चाहती थी पर तरुण ने उसके होँठों पर अपनी उंगली रख दी और कहा, "भाभी, अभी कुछ भी मत बोलिये। मुझे बोलने दीजिये। पहले मेरी बात सुन लीजिये। मेरी और आपकी बात शुरू हुई थी दिल्लगी से। पर भाभीजी अब तो यह बात दिल्लगी नहीं रही। यह तो साली दिल की लगी बन गयी है। भाभी, मैं आपको चाहने लगा हूँ। मुझे गलत मत समझें। मैं आपको भाई से छीनना नहीं चाहता। मैं भाई को भी बहुत चाहता हूँ। पर आपकी सादगी, आपका भोलापन, आपकी मधुरता और आपका दिलसे प्यार मेरे जहन को छू गया है। मैं आपसे दिल्लगी नहीं करना चाहता हूँ। भाभी मैं आपको दिल से प्यार करना चाहता हूँ। मैं आप के साथ सिर्फ सेक्स करना ही नहीं चाहता हूँ, मैं सिर्फ आपके बदनको ही नहीं, आपके दिल को भी पाना चाहता हूँ।"
तरुण की बात सुन कर दीपा भौंचक्की सी रह गयी और तरुण को आश्चर्य भरी नज़रों से देखने लगी।
तरुण ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "भाभीजी, उस दिन सुबह जब मैं मैगी लेकर आया था, तब जब आप तौलिया पहने आधी नंगी बाहर आयी थीं और मैंने जब आपको मेरी बाहों में लिया था तब क्या हुआ था? अगर मैं चाहता तो आपका तौलिया एक ही पल में खिंच डालता और आपको नंगी कर देता। अगर मैं आपको नंगी देख लेता तो फिर मैं क्या मैं अपने आपको रोक पाता? क्या मैं आपको ऐसे ही, कुछ भी किये बगैर छोड़ पाता? भाभी, आप ने ही कहा है ना की साफ़ साफ़ बोलो? तो प्लीज बुरा मत मानिये, पर मैं आपको नंगी देख लेता तो फिर मैं कितनी कोशिश करने पर भी अपने आपको रोक नहीं पाता, और आपसे सेक्स किये बगैर आपको छोड़ता नहीं।
भाभी, मैं जानता हूँ की अगर आप नंगी हो जातीं और मैं अपने कपडे निकाल देता तो फिर मैं कैसे भी करके आपको वश में कर लेता। भाभी, औरतों के नंगे बदन को कहाँ छू कर उनको कैसे उकसाना और सेक्स के लिए कैसे तैयार करना वह मैं अच्छी तरह जानता हूँ। भाभी मैं आपके मन को भी अच्छी तरह जानता हूँ। मुझे कुछ जद्दो जहद जरूर करनी पड़ती पर मैं जानता हूँ की अगर मैं उस समय चाहता तो मैं आपको सेक्स के लिए तैयार कर ही लेता। आप तैयार हो जातीं और मेरी आपसे सेक्स करने की इच्छा पूरी हो ही जाती।
मैं आपका तौलिया खिंच कर आपको नंगी करने वाला ही था। पर उसी समय अचानक मेरे दिमाग में एक धमाका हुआ। मेरे दिमाग ने कहा, 'जिसको प्यार करते हैं उस पर जबरदस्ती नहीं करते'। जब मैंने देखा की आप शायद तब तक पुरे मन से मेरे साथ सेक्स करने के लिए तैयार नहीं थे तो मैं आपको जबरदस्ती सेक्स करने के लिए तैयार कर नहीं करना चाहता था। उस दिमागी धमाके से मैं लड़खड़ा गया। मैं आपके धक्के से नहीं लड़खड़ाया। आप का धक्का तो मेरे लिए हवा के भरे गुब्बारे के जैसा था। मैं मेरे दिमाग में जो धमाका हुआ था इसके कारण लड़खड़ाया था।"
दीपा के लिए तरुण की बात वैसे कोई नयी बात नहीं थी। दीपा अपने दिमाग में अच्छी तरह जानती थी की तरुण उसे शुरुआत से ही चोदना चाहता था। इसी लिए वह दीपा के पीछे हाथ धो के पड़ा हुआ था। उसमें मेरा भी हाथ था वह भी दीपा जानती थी। उस दिन तक किसी की दीपा को छेड़ने तक की हिम्मत नहीं हुई थी। पर तरुण ने दीपा को धड़ल्ले से यहां तक कह दिया की वह दीपा को चोदना चाहता था। दीपा बिना कुछ बोले हैरानगी से तरुण को बड़ी बड़ी खुली आँखों से देखती ही रही। पर तरुण अपनी बात को पूरी करना चाहता था।
तरुण ने दीपा का हाथ थामा और बोला, "भाभी जी मैं आप से सेक्स करना चाहता हूँ पर जबरदस्ती नहीं। मैं आपके मन को जित कर सेक्स करना चाहता हूँ। मैं आपको सेक्स करना नहीं, मैं आपको मुझसे सेक्स करवाना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ की आप खुद मुझसे सेक्स करवायें। भाभी जी आप ने जब बार बार पूछा की मेरे मन की बात क्या है? तो मैंने आप को बता दिया। क्या आपको मेरी बात का बुरा लगा? मैंने आपसे पहले ही माफ़ी मांग ली है। भाभी साफ़ साफ़ बताइये। इसमें कोई जबरदस्ती नहीं है। आप मुझे दुत्कार देंगे और मेरी शक्ल देखना नहीं चाहेंगे तो मैं आपको कभी नजर भी नहीं आऊंगा। मैं फिर जिऊँ या मरुँ उसकी चिंता आप को करने की जरुरत नहीं है। पर आपसे दूर रहकर भी मैं आपकी दिलो जान से पूजा करूंगा। मैं आपकी बहुत रेस्पेक्ट करता हूँ और हमेशा करता रहूंगा, चाहे आप मुझे अपनाओ या दुत्कारो। बोलिये भाभी जी प्लीज।"
तरुण ने दीपा को साफ़ साफ़ बता दिया की तरुण दीपा को सिर्फ चोदना ही नहीं चाहता था, वह दीपा को अपनी बना कर चोदना चाहता था। वह दीपा का मन जित कर चोदना चाहता था। मतलब तरुण चाहता था की दीपा उससे प्रेम से चुदवाये।
तरुण की बातें सुन कर दीपा का दिमाग चक्कर खा रहा था। दीपा को समझ नहीं आया की वह तरुण की ऐसी बकवास सुन क्यों रही थी? क्या वह तरुण को एक मिनट में ही "शट अप" नहीं कर सकती थी? दीपा यह सोचने के लिए मजबूर हो गयी की कहीं ऐसा तो नहीं की उसके पति के (मेरे) बार बार कहने से दीपा के मन में ही शायद तरुण से चुदवाने की चाहत जाग उठी थी? कहीं वह खुद ही तो तरुण से चुदवाना नहीं चाह रही थी? तभी तो वह तरुण को इतनी छूट दे रही थी? वरना तरुण की क्या हिम्मत की वह दीपा से इस तरह बात कर सके?
दीपा अपने ही इस प्रश्न का जवाब नहीं दे पायी। तरुण ने अब दीपा को साफ़ साफ़ कह दिया था की वह दीपा को चोदना चाहता था। अब इससे आगे क्या कहने की जरुरत थी? पर दीपाको तरुण को जवाब देना था। दीपा तरुण की बात सुनकर चुप तो नहीं रह सकती थी।
दीपा के पास तीन विकल्प थे। पहला यह की वह तरुण को एक जबरदस्त झटका देकर उसकी बात को एकदम खारिज कर उसकी ग़लतफ़हमी को दूर कर दे। दुसरा यह की वह तरुण की बात का समर्थन करे और उससे चुदवाने के लिए राजी हो जाए। और तीसरा यह की वह उसकी बात का कोई जवाब ना दे, तरुण की गलतफहमी को दूर भी ना करे और उसके सामने घुटने भी ना टेके। मतलब वह तरुण की बात को टाल दे। सब से आसान तरिका तो आखरी वाला ही था। कुछ सोचने के बाद दीपा ने यही बेहतर समझा की फिलहाल तरुण की बात को ज्यादा तूल ना दिया जाए और फिलहाल उसे गोल गोल जवाब दे कर टाल दिया जाए। पर अब लुकाछिपी का भी क्या फायदा जब तरुण ने ही कह दिया था की वह दीपा को चोदना चाहता था?
दीपा ने भी तरुण की हथेली अपने हाथोँ से दबाते हुए कहा, "तरुण, यह क्या दिल्लगी और दिल की लगी की बाल की खाल निकाल रहे हो? ठीक है बाबा तुम क्या चाहते हो यह तुमने कह दिया वह मैंने सूना भी और मैं समझ भी गयी। तुम भी ना सीरियस बातें छोडो यार। आज होली है। तुम ही कह रहे थे ना, की बुरा ना मानो होली है? तुम्हारे भाई मुझे कह रहे थे की आज की रात चलो एन्जॉय करें। तुम्हारे भाई कह रहे थे की वह और तुम आज सेक्स की बातें करना चाहते हो, और वह चाहते हैं की मैं उसमें रोड़ा ना अटकाऊँ। आप मर्दों को तो सेक्स की बातें किये बिना मजा ही नहीं आता। तो ठीक है भाई, चलो, आज की रात तुम दोनों भाई खूब करो सेक्स की बातें। मैं बुरा नहीं मानूंगी। मैं झेल लुंगी। मैं तुम लोगों को नहीं रोकूंगी। खुश? आज की रात कोई सीरियस बात नहीं। ओके?"
जब तरुण ने देखा की दीपा को तरुण की बात सुन कर भी कोई तगड़ा झटका नहीं लगा और उस बात को दीपा ने सुनी अनसुनी कर दी, तो उसका हौसला काफी बढ़ गया।
उसने स्लीवलेस ब्लाउज पहना था। उसका ब्लाउज चौड़ाई में छोटा था और जैसे वह उसके उरोज को बस ढके हुए था। दीपा के स्तन ब्लाउज में बड़ी कठिनाई से समाये हुए थे। उसने आपनी साड़ी भी अपनी कमर से काफी निचे तक बाँधी थी। ऐसा लगता था की कहीं वह पूरी निचे उतर न जाय और उसे नंगी न करदे। और साड़ी भी उसने ऐसी पहनी की थी की हाथ में पकड़ो तो फिसल जाए। एकदम हलकी पतली और पारदर्शी।
दीपा का ब्लाउज पीछे से एकदम खुला हुआ था। सिर्फ दो पतली डोर उसके ब्लाउज को पकड़ रखे हुए थे। दीपा की पीठ एकदम खुली थी और ब्रा की पट्टी उसमें दिख रही थी। ब्रा भी तो उसने जाली वाली पहनी थी। ब्लाउज खुलने पर उसके स्तन आधे तो वैसे ही दिखने लगेंगे यह मैं जानता था। दीपा की कमर में उसकी नाभि खूब सुन्दर लग रही थी।
रात दस बजे तरुण अपनी पुरानी अम्बेसडर कार में हमें लेने पहुंचा। जैसे उसने हॉर्न बजाया, दीपा सबसे पहले बाहर आयी। दीपा के घर से बाहर आने के बाद हमारे घर के आँगन में जो हुआ वह मुझे दीपा ने कुछ दिनों बाद सविस्तार बताया था। वह मैं आपसे शेयर कर रहा हूँ।
तरुण तो दीपा को देखते ही रह गया। दीपा की साडी का पल्लू उसके उरोजों को नहीं ढक पा रहा था । उसके रसीले होँठ लिपस्टिक से चमक रहे थे। उसके भरे भरे से गाल जैसे शाम के क्षितिज में चमकते गुलाबी रंग की तरह लालिमा बिखेर रहे थे। सबसे सुन्दर दीपा की आँखे थीँ। आँखों में दीपा ने काजल लगाया था वह एक कटार की तरह कोई भी मर्द के दिल को कई टुकड़ों में काट सकती थीँ। आँखे ऐसी नशीली की देखने वाला लड़खड़ा जाए। उसके बाल उसके कन्धों से टकराकर आगे उन्नत स्तनों पर होकर पीछे की तरफ लहरा रहे थे।
सबसे ज्यादा आकर्षक दीपा की गाँड़ का हिस्सा था जो की साडी के पल्लू में छिपा हुआ था, पर उसकी सुडौल गाँड़ के घुमाव को छिपाने में असमर्थ था। साडी में दीपा के कूल्हे इतने आकर्षक लग रहे थे की क्या बात!!!!
दीपा ने जैसे ही तरुण को देखा तो थोड़ी सहम गयी। उसे दोपहर की तरुण की शरारत याद आयी। तरुण के अलावा किसीने भी ऐसी हिमत नहीं दिखाई थी की दीपा की मर्जी के बगैर इसको छू भी सके। पर तरुण ने सहज में ही न सिर्फ कोने में दीवार से सटा कर उसे रंग लगाया, बल्कि उसने दीपा के ब्लाउज के ऊपर से अंदर हाथ डाल कर उसकी ब्रा के हूको को अपनी ताकत से तोड दिए और स्तनों को रंगों से भर दिए। और भी बहुत कुछ किया।
दीपा को देख कर तरुण तुरंत कार का दरवाजा खोल नीचे उतरा और फुर्ती से दीपा के पास आया। उस समय आँगन में सिर्फ वही दोनों थे। तरुण दीपा के सामने झुक और अपने गालों को आगे कर के बोला, "दीपा भाभी, मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ। आज मैंने बहुत घटिया हरकत की है। आप मुझे मेरे गाल पर एक थप्पड़ मारिये। मैं उसीके लायक हूँ। दीपा एकदम सहमा गयी और एक कदम पीछे हटी और बोली, "तरुण ये तुम क्या कर रहे हो?"
तरुण ने झुक कर अपने हाथ अपनी टांगों के अंदर से निकाल कर अपने कान पकडे और दीपा से कहा, "दीपा आप जबतक मुझे माफ़ नहीं करेंगे मैं यहां खुले आंगन में मुर्गा बना ही रहूँगा। मुझे प्लीज माफ़ कर दीजिये।"
दीपा यह सुनकर खुलकर हंस पड़ी और बोली, "अरे भाई, माफ़ कर दिया, पर यह मुरगापन से बाहर निकलो और गाडी में बैठो और ड्राइवर की ड्यूटी निभाओ।"
तरुण ने तब सीधे खड़े होकर दीपा को ऊपर से नीचे तक देखा और कहा, "दीपा भाभी, आप तो आज कातिलाना लग रही हैं। पता नहीं किसके ऊपर यह बिजली गिरेगी।"
दीपा हंस पड़ी और बोली, "तरुण कहीं आज तुम ज्यादा ही रोमांटिक नहीं हो रहे हो क्या? ख़ास कर के जब आज टीना भी नहीं हैं।"
तरुण तुरंत लपक कर बोला, "तो क्या हुआ? आप तो है न?"
तरुण की बात सुन कर दीपा कुछ सहम सी गयी। उसने तरुण की बात अनसुनी करते हुए कहा, "देखो तरुण, तुम है मुझे ज्यादा परेशान मत किया करो यार। मैंने तुम्हें माफ़ तो कर दिया पर वाकई में आज तो तुमने सारी हदें पर ही कर दी थीं। मैं अगर हमारे संबंधों का लिहाज ना करती और तुम्हारे भैया से सब कह देती ना तो आज पता नहीं क्या हो जाता। तुम्हारे भैया तुमसे लड़ ही पड़ते और...... ।"
तरुण ने अपने चेहरे पर एकदम दीपा की बात सुन कर डर गया हो ऐसे भाव ला कर फिर तरुण ने एक बार फिर झुक कर दीपा के पाँव पकडे और दीपा के पाँव को साडी के ऊपर से ही दबाने लगा। दीपा तरुण के इस वर्ताव से भड़क गयी और कुछ कदम पीछे हट कर बोली, "तरुण यह क्या कर रहे हो? मैंने कहा ना की तुम्हें माफ़ कर दिया? फिर यह क्या है?"
तरुण ने कहा, "आपने जो गलतियां मैंने की उसे माफ़ किया। पर भाभी आज होली की रात है। आज होली की मस्ती सबके दिमाग पर छायी हुई है। भाई भी आज मस्ती में हैं। आज आप ऐसी सूफ़ियानी बातें क्यों करते हो? साल में एक दिन तो दिल खोल कर मस्ती करो और करने दो ना भाभी? यह उम्मीद क्यों रखते हो की आज की रात और हरकतें नहीं होंगी? मैं अब आप से जो गलतियां आगे चलके कर सकता हूँ या करूंगा उसकी भी अभी माफ़ी मांग रहा हूँ। प्लीज गुस्सा मत करना। प्लीज आज की रात मस्ती मनाइये और मनाने दीजिये। प्लीज?"
दीपा पीछे हट कर बोली, "ठीक है भाई। माफ़ कर दिया,माफ़ कर दिया, माफ़ कर दिया। अब तो तीन बार बोल चुकी हूँ। बस?"
तरुण अचानक सीरियस हो कर बोला, "भाभी, यह सच है की मैं आपको देखता हूँ तो मेरे सारे गम, मेरे सारे दर्द भाग जाते हैं और मैं रोमांटिक महसूस करने लगता हूँ। भाभी आपको नहीं पता मैं अंदर से कितना दुखी हूँ। इसलिए प्लीज इस होली के त्यौहार में मैं कुछ ज्यादती करूँ तो मुझे माफ़ करना और मुझे फटकारना मत प्लीज? मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूँ। आपको देवी माँ सा समझता हूँ। मैं आपको दुखी नहीं देख सकता। मैं आपको खुश देखना चाहता हूँ।"
यह सुन कर दीपा बरबस खिलखिला कर हँस पड़ी। उसने तरुण का हाथ पकड़ कर उसे खड़ा किया और उसके करीब जाकर बोली, "तरुण यार तुम बड़े चालु हो। एक तरफ तुम मुझे देवी माँ का दर्जा देते हो और दूसरी तरफ मुझसे छेड़खानी करते रहते हो? स्त्रियों का दिल कैसे जितना यह तुम बखूबी तरह जानते हो। देखो आज तक मैंने अच्छे अच्छों को अपने करीब नहीं आने दिया। बहोत मर्दों ने मेरे करीब आने की कोशिश की। पर मैंने उन्हें ऐसे फटकार लगाई की वह मेरी तरफ का रास्ता ही भूल गए।
तुम्हें भी मैंने खूब हड़काया, फटकारा और लताड़ा। पर तुम तो बड़े ही ढीट निकले। तुम पर तो कोई भी असर ही नहीं होता। तुम तो बन्दर ही हो । इन्सान को कण्ट्रोल किया जा सकता है, पर बन्दर को कण्ट्रोल करना बहुत मुश्किल है। शायद इसी लिए भगवान ने भी बंदरों को ही सैनिक के रूप में पसंद किया था। पर तुम्हारी एक बात जो मुझे बहुत अच्छी लगी वह यह की तुमने मुझे कभी भी हलकी नजरों से नहीं देखा। मेरे साथ हर तरह की छेड़खानी करते हुए भी तुमने मुझे हमेशा सम्मान भरी नज़रों से देखा। तुमने मुझे हमेशा इज्जत बख्शी। तुमने मेरे पति से छुपाकर कोई हरकत नहीं की। मैं इसी लिए तुम्हारी इज्जत करती हूँ।"
दीपा ने अपनी बात चालु रखते हुए कहा, "तरुण, देखो मैं मर्द नहीं हूँ इसलिए हो सकता है, तुम्हारे दिलोदिमाग के सारे भावों को मैं समझ ना सकूँ। पर तुम्हारे भाई मुझे बार बार मर्दों की कमजोरियां बगैरह के बारे में बताते रहते हैं। वैसे ही देखो मैं भी एक औरत हूँ। मेरी अपनी भी कुछ कमियां और मजबूरियां हैं। तुम्हें भी उन्हें समझना पडेगा। आज तुम और तुम्हारे भाई पर होली का जूनून सवार है। आज छेड़ने के लिए तुम दोनों के बिच में मैं एक अकेली ही औरत हूँ। चलो ठीक है, आज की रात तुम्हारे सारे होने वाले गुनाह माफ़ बस? आज मैं तुम्हें नहीं फटकारूंगी, ना बुरा मानूंगी। अब तो खुश?"
मेरे घर के आंगन में हल्का सा अन्धेरा सा था। राहदारियों की कोई ख़ास आवाजाह नहीं थी। तरुण ने दीपा का हाथ अपने हाथोँ में रखते हुए दीपा के हाथों की हथेली दबाकर कहा, "भाभी, नहीं भाभी, मैं इतने से खुश नहीं हूँ। मुझे कुछ और भी कहना है। मैं आपसे एक गंभीर बात करना चाहता हूँ। आज ज्यादा समय नहीं है। पर फिर भी सुन लो। भाभी, मैं आज आपके सामने एक इकरार करना चाहता हूँ। अभी भैया नहीं है इसलिए मेरी हिम्मत हुई है। मैं उनके सामने बोल नहीं सकता। मैं मानता हूँ की जिसको दिलोजान से चाहते हैं उससे झूठ नहीं बोलते। इसीलिए मैंने तय किया था की मैं आज आपसे सच सच बोलूंगा चाहे आप मुझे इसके लिए बेशक थप्पड़ मारें या नफरत करने लगें।"
तरुण की बात सुनकर दीपा से रहा ना गया। उसने कहा, "तरुण, यूँ घुमा फिरा के मत बोलो। जो कहना है वह साफ़ साफ़ कहो।"
तरुण ने कहा, "बिलकुल भाभी जी। तो सच बात सुनिए। मुझे सब रोमियो के नाम से जानते हैं। बात भी सही है। मैंने अपने जीवन में कई शादीशुदा या कँवारी स्त्रियों को पटाया है और उनके साथ सेक्स किया है। मैंने भी एन्जॉय किया है और उनको भी एन्जॉय कराया है। भाभी गुस्सा होइए, चाहे मुझे डाँट दीजिये; पर यह सही है की आपके साथ भी शुरू शुरू में मेरे मन में सेक्स की ही बात थी। मैं आपके बदन को पाना चाहता था। मैं आपसे सेक्स करना चाहता था। आपके साथ सोना चाहता था।"
तरुण के मुंह से यह शब्द सुनकर दीपा चक्कर खा गयी। उसे यह सुन कर कुछ राहत हुई जब तरुण ने यह कहा की "मैं आपसे सेक्स करना चाहता था।" इसका मतलब तो यह हुआ की अब तरुण सेक्स करना चाहता नहीं है।
दीपा कुछ बोलना चाहती थी पर तरुण ने उसके होँठों पर अपनी उंगली रख दी और कहा, "भाभी, अभी कुछ भी मत बोलिये। मुझे बोलने दीजिये। पहले मेरी बात सुन लीजिये। मेरी और आपकी बात शुरू हुई थी दिल्लगी से। पर भाभीजी अब तो यह बात दिल्लगी नहीं रही। यह तो साली दिल की लगी बन गयी है। भाभी, मैं आपको चाहने लगा हूँ। मुझे गलत मत समझें। मैं आपको भाई से छीनना नहीं चाहता। मैं भाई को भी बहुत चाहता हूँ। पर आपकी सादगी, आपका भोलापन, आपकी मधुरता और आपका दिलसे प्यार मेरे जहन को छू गया है। मैं आपसे दिल्लगी नहीं करना चाहता हूँ। भाभी मैं आपको दिल से प्यार करना चाहता हूँ। मैं आप के साथ सिर्फ सेक्स करना ही नहीं चाहता हूँ, मैं सिर्फ आपके बदनको ही नहीं, आपके दिल को भी पाना चाहता हूँ।"
तरुण की बात सुन कर दीपा भौंचक्की सी रह गयी और तरुण को आश्चर्य भरी नज़रों से देखने लगी।
तरुण ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "भाभीजी, उस दिन सुबह जब मैं मैगी लेकर आया था, तब जब आप तौलिया पहने आधी नंगी बाहर आयी थीं और मैंने जब आपको मेरी बाहों में लिया था तब क्या हुआ था? अगर मैं चाहता तो आपका तौलिया एक ही पल में खिंच डालता और आपको नंगी कर देता। अगर मैं आपको नंगी देख लेता तो फिर मैं क्या मैं अपने आपको रोक पाता? क्या मैं आपको ऐसे ही, कुछ भी किये बगैर छोड़ पाता? भाभी, आप ने ही कहा है ना की साफ़ साफ़ बोलो? तो प्लीज बुरा मत मानिये, पर मैं आपको नंगी देख लेता तो फिर मैं कितनी कोशिश करने पर भी अपने आपको रोक नहीं पाता, और आपसे सेक्स किये बगैर आपको छोड़ता नहीं।
भाभी, मैं जानता हूँ की अगर आप नंगी हो जातीं और मैं अपने कपडे निकाल देता तो फिर मैं कैसे भी करके आपको वश में कर लेता। भाभी, औरतों के नंगे बदन को कहाँ छू कर उनको कैसे उकसाना और सेक्स के लिए कैसे तैयार करना वह मैं अच्छी तरह जानता हूँ। भाभी मैं आपके मन को भी अच्छी तरह जानता हूँ। मुझे कुछ जद्दो जहद जरूर करनी पड़ती पर मैं जानता हूँ की अगर मैं उस समय चाहता तो मैं आपको सेक्स के लिए तैयार कर ही लेता। आप तैयार हो जातीं और मेरी आपसे सेक्स करने की इच्छा पूरी हो ही जाती।
मैं आपका तौलिया खिंच कर आपको नंगी करने वाला ही था। पर उसी समय अचानक मेरे दिमाग में एक धमाका हुआ। मेरे दिमाग ने कहा, 'जिसको प्यार करते हैं उस पर जबरदस्ती नहीं करते'। जब मैंने देखा की आप शायद तब तक पुरे मन से मेरे साथ सेक्स करने के लिए तैयार नहीं थे तो मैं आपको जबरदस्ती सेक्स करने के लिए तैयार कर नहीं करना चाहता था। उस दिमागी धमाके से मैं लड़खड़ा गया। मैं आपके धक्के से नहीं लड़खड़ाया। आप का धक्का तो मेरे लिए हवा के भरे गुब्बारे के जैसा था। मैं मेरे दिमाग में जो धमाका हुआ था इसके कारण लड़खड़ाया था।"
दीपा के लिए तरुण की बात वैसे कोई नयी बात नहीं थी। दीपा अपने दिमाग में अच्छी तरह जानती थी की तरुण उसे शुरुआत से ही चोदना चाहता था। इसी लिए वह दीपा के पीछे हाथ धो के पड़ा हुआ था। उसमें मेरा भी हाथ था वह भी दीपा जानती थी। उस दिन तक किसी की दीपा को छेड़ने तक की हिम्मत नहीं हुई थी। पर तरुण ने दीपा को धड़ल्ले से यहां तक कह दिया की वह दीपा को चोदना चाहता था। दीपा बिना कुछ बोले हैरानगी से तरुण को बड़ी बड़ी खुली आँखों से देखती ही रही। पर तरुण अपनी बात को पूरी करना चाहता था।
तरुण ने दीपा का हाथ थामा और बोला, "भाभी जी मैं आप से सेक्स करना चाहता हूँ पर जबरदस्ती नहीं। मैं आपके मन को जित कर सेक्स करना चाहता हूँ। मैं आपको सेक्स करना नहीं, मैं आपको मुझसे सेक्स करवाना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ की आप खुद मुझसे सेक्स करवायें। भाभी जी आप ने जब बार बार पूछा की मेरे मन की बात क्या है? तो मैंने आप को बता दिया। क्या आपको मेरी बात का बुरा लगा? मैंने आपसे पहले ही माफ़ी मांग ली है। भाभी साफ़ साफ़ बताइये। इसमें कोई जबरदस्ती नहीं है। आप मुझे दुत्कार देंगे और मेरी शक्ल देखना नहीं चाहेंगे तो मैं आपको कभी नजर भी नहीं आऊंगा। मैं फिर जिऊँ या मरुँ उसकी चिंता आप को करने की जरुरत नहीं है। पर आपसे दूर रहकर भी मैं आपकी दिलो जान से पूजा करूंगा। मैं आपकी बहुत रेस्पेक्ट करता हूँ और हमेशा करता रहूंगा, चाहे आप मुझे अपनाओ या दुत्कारो। बोलिये भाभी जी प्लीज।"
तरुण ने दीपा को साफ़ साफ़ बता दिया की तरुण दीपा को सिर्फ चोदना ही नहीं चाहता था, वह दीपा को अपनी बना कर चोदना चाहता था। वह दीपा का मन जित कर चोदना चाहता था। मतलब तरुण चाहता था की दीपा उससे प्रेम से चुदवाये।
तरुण की बातें सुन कर दीपा का दिमाग चक्कर खा रहा था। दीपा को समझ नहीं आया की वह तरुण की ऐसी बकवास सुन क्यों रही थी? क्या वह तरुण को एक मिनट में ही "शट अप" नहीं कर सकती थी? दीपा यह सोचने के लिए मजबूर हो गयी की कहीं ऐसा तो नहीं की उसके पति के (मेरे) बार बार कहने से दीपा के मन में ही शायद तरुण से चुदवाने की चाहत जाग उठी थी? कहीं वह खुद ही तो तरुण से चुदवाना नहीं चाह रही थी? तभी तो वह तरुण को इतनी छूट दे रही थी? वरना तरुण की क्या हिम्मत की वह दीपा से इस तरह बात कर सके?
दीपा अपने ही इस प्रश्न का जवाब नहीं दे पायी। तरुण ने अब दीपा को साफ़ साफ़ कह दिया था की वह दीपा को चोदना चाहता था। अब इससे आगे क्या कहने की जरुरत थी? पर दीपाको तरुण को जवाब देना था। दीपा तरुण की बात सुनकर चुप तो नहीं रह सकती थी।
दीपा के पास तीन विकल्प थे। पहला यह की वह तरुण को एक जबरदस्त झटका देकर उसकी बात को एकदम खारिज कर उसकी ग़लतफ़हमी को दूर कर दे। दुसरा यह की वह तरुण की बात का समर्थन करे और उससे चुदवाने के लिए राजी हो जाए। और तीसरा यह की वह उसकी बात का कोई जवाब ना दे, तरुण की गलतफहमी को दूर भी ना करे और उसके सामने घुटने भी ना टेके। मतलब वह तरुण की बात को टाल दे। सब से आसान तरिका तो आखरी वाला ही था। कुछ सोचने के बाद दीपा ने यही बेहतर समझा की फिलहाल तरुण की बात को ज्यादा तूल ना दिया जाए और फिलहाल उसे गोल गोल जवाब दे कर टाल दिया जाए। पर अब लुकाछिपी का भी क्या फायदा जब तरुण ने ही कह दिया था की वह दीपा को चोदना चाहता था?
दीपा ने भी तरुण की हथेली अपने हाथोँ से दबाते हुए कहा, "तरुण, यह क्या दिल्लगी और दिल की लगी की बाल की खाल निकाल रहे हो? ठीक है बाबा तुम क्या चाहते हो यह तुमने कह दिया वह मैंने सूना भी और मैं समझ भी गयी। तुम भी ना सीरियस बातें छोडो यार। आज होली है। तुम ही कह रहे थे ना, की बुरा ना मानो होली है? तुम्हारे भाई मुझे कह रहे थे की आज की रात चलो एन्जॉय करें। तुम्हारे भाई कह रहे थे की वह और तुम आज सेक्स की बातें करना चाहते हो, और वह चाहते हैं की मैं उसमें रोड़ा ना अटकाऊँ। आप मर्दों को तो सेक्स की बातें किये बिना मजा ही नहीं आता। तो ठीक है भाई, चलो, आज की रात तुम दोनों भाई खूब करो सेक्स की बातें। मैं बुरा नहीं मानूंगी। मैं झेल लुंगी। मैं तुम लोगों को नहीं रोकूंगी। खुश? आज की रात कोई सीरियस बात नहीं। ओके?"
जब तरुण ने देखा की दीपा को तरुण की बात सुन कर भी कोई तगड़ा झटका नहीं लगा और उस बात को दीपा ने सुनी अनसुनी कर दी, तो उसका हौसला काफी बढ़ गया।