07-12-2019, 07:28 PM
दूसरे दिन मैंने जब तरुण को मेरी बीबी के साथ हुई बातचीत कह सुनाई तरुण मेरी बात सुनकर खुश हुआ। तरुण ने कहा, "भाभी को कहना की मेरा स्वभाव एक बन्दर जैसा है। भाभी को देख कर मैं एकदम अचानक ही चंचल हो जाता हूँ। मैं आया और मुझसे कहीं ऐसी वैसी हरकत हो गयी तो भाभी फिर मुझसे लड़ पड़ेगी और नाराज हो जायेगी। एक बात भाभी को आप बता देना की मैं मेरी भाभी को दुखी नहीं देख सकता।"
जब मैंने दीपा से यह कहा तो दीपा ने कहा, "तरुण से कहना, मुझे बन्दर पसंद है। अगर मुझे उसकी कोई हरकत पसंद नहीं आयी तो मैं उसे एक थप्पड़ भी रसीद कर सकती हूँ। पर इसका मतलब यह नहीं की वह आनाजाना बंद कर दे। और मैं उसकी हरकत से दुखी नहीं होउंगी बस?"
जब मैंने तरुण से यह कहा तो वह उछल पड़ा। तरुण ने कहा, "भाई, अब समझो हमारा काम हो गया। अब समझो की दीपा भाभी फिसल गयी।"
मैंने पूछा, "कैसे?"
तरुण ने कहा, "भाई देखते जाओ।"
मैंने कहा, "अरे परसों ही तो होली है। देख साले होली में तू कोई ऐसी वैसी हरकत मत करना।"
तरुण ने कहा, "भाई अब तो जब आपने मुझे चुनौती दे दी है तो होली में ही कुछ करते हैं। मैं होली के दिन ही आऊंगा। बोलिये आप तैयार हो?"
मैंने कहा, "क्या मैंने कभी तुम्हारे काम में रुकावट डाली है?"
हर साल हम होली के दिन एक दोस्त के वहां मिलते थे। उसका घर काफी बड़ा था और उसमें कई रूम और बरामदा बगैरह था जहां बैठकर हम मौज मस्ती करते थे। सारे दोस्त वहीं पहुँच कर एकदूसरे को और एक दूसरे की बीबियों को रंगते थे।
माहौल एकदम मस्ती का हुआ करता था। थोड़ी बहुत शराब भी चलती थी। दीपा और मैं करीब सुबह ग्यारह बजे उस दोस्त के घर पहुंचे तो देखा की तरुण भी वहां था। हमारे वहाँ पहुँचते ही कुछ महिलाएं होली खेलने के लिए दीपा को पकड़ कर घर में ले गयीं। तरुण और बाकी हम सबने एक दूसरे को अच्छी तरह से रंगा और फिर तरुण और मैं लॉन में बैठ कर गाने बजाने और कुछ पिने पाने के कार्यक्रम में जुड़ गए।
तब मैंने देखा की तरुण बिच में से ही उठकर घर में चला गया। मैंने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। ऐसे ही गाने बजाने में आधा घंटा बीत गया था। तब तरुण वापस आ गया। वह खुश नजर आरहा था। वह निकलने की जल्दी में था। उसने मुझे बाई बाई की और चल पड़ा। थोड़ी ही देर में दीपा और दूसरी औरतें आ गयीं। पहले तो मैं दीपा को पहचान ही नहीं सका। दूसरी औरतों के मुकाबले वह पूरी रंग से भरी हुई थी। खास तौर से छाती और मुंह पर इतना रंग मला हुआ था की वह एक भूतनी जैसी लग रही थी। उसके कपडे भी बेहाल थे।
औरतों के आने के बाद हम सब एक दूसरे की बीबियों के साथ फिरसे होली खेलने में जुट गए। पर दीपा कुछ अतड़ी अतड़ी सी नजर आ रही थी। मेरे मन में विचार भी आया की क्या हुआ की तरुण अचानक ही गायब हो गया। वैसे तो हर साल वह दीपा को रंगने के लिए बड़ा बेताब रहता था।
मैं जब दीपा को रंग लगाने के लिए गया तो उसे देख कर हंस पड़ा। मैंने पूछा, "लगता है मेरी खूबसूरत बीबी को सब लोगों ने इकठ्ठा होकर खूब रंगा है।"
तब दीपा ने झुंझलाहट भरी आवाज में पूछा, "टीना को नहीं देखा मैने। वह आयी नहीं थी क्या?"
मैंने कहा, "मैंने कहा नहीं था, वह मायके चली गयी है?"
तब दीपा एकदम धीरे से बड़बड़ाई, "हाँ सही बात है। तुम ने बताया था। तभी में सोचूं, की जनाब इतने फड़फड़ा क्यों रहे थे। "
मैंने पूछा, "किसके बारेमे कह रही हो?" मेरी पत्नी ने कोई उत्तर नहीं दिया। कुछ और देर में हम सब घर जाने के लिए तैयार हुए। मैं और दीपा मेरी बाइक पर सवार हो कर चल दिए।
घर पहुँच कर मैंने देखा तो दीपा कुछ हड़बड़ाई सी लग रही थी। मैंने जब पूछा तो मुझे लगा की दीपा अपने शब्दों को कुछ ज्यादा ही सावधानी से नापतोल कर बोली, "मुझे एक बात समझ नहीं आती। यह तुम्हारा दोस्त कैसा इंसान है? देखिये, ऐसी कोई ख़ास बात नहीं है। आप उस को कुछ कहियेगा नहीं। पर आपके दोस्त तरुण ने मरे साथ क्या किया मालुम है? तुम्हारे दोस्त के घर में तरुण मुझे कुछ बहाना बना कर पीछे के कमरे में ले गया। पहले तो उसने झुक कर मेरे पॉंव पकडे और खुले दिलसे माफ़ी मांगी। जब तक मैंने उसका हाथ पकड़ कर उठाया नहीं, तब तक वह मेरे पाँव में लेटा रहा। मैंने उसे कहा, "उठो यार। भूल जाओ वह सब पुरानी बातें। मैंने माफ़ कर दिया। अब क्या है? चलो होली खेलते हैं।
बस मेरा इतना कहना था की उसने मुझे अपनी बाँहों में जकड कर ऊपर उठा लिया। पहले तो उसने मुझ पर ऐसा रंग रगड़ा ऐसा रंग रगडा की मेरी साड़ी ब्लाउज यहां तक की ब्रा के अंदर भी रंग ही रंग कर दिया। होली के बहाने उसने मुझसे बड़ी बदतमीज़ी की। मैं आप को क्या बताऊँ उसने मेरे साथ क्या क्या किया। उसने मेरी ब्रैस्ट दबाई और उन पर रंग रगड़ता रहा।
मैंने उसे रोकना चाहा पर मेरी एक ना चली। दीपक, मैं चिल्लाती तो सब लोग इकठ्ठा हो जाते और तरुण की बदनामी होती। मैं धीरे से ही पर चिल्लाती रही पर वह कहाँ सुनने वाला था? मैंने उसे कहा तरुण ये क्या कर रहे हो? पर उसने मेरी एक न सुनी। फिर जब उसने मेरे ब्लाउज के निचे, मेरे पेट पर रंग लगाना शुरू किया और फिर वह झुक मेरे पैर पर रंग रगड़ता हुआ मेरे घाघरे को ऊपर कर मेरी जाँघों पर रंग रगड़ने लगा। जब मैंने उसे झटका दिया तो सॉरी सॉरी कहता हुआ खड़ा हुआ और वह मेरी नाभि और मेरे पिछवाड़े को रगड़ कर रंग लगा ने लगा। जब मैंने उसे रोकना चाहा तो रुकने के बजाय उसने मेरे घाघरे के नाड़े के अंदर हाथ डालना चाहा। तब मेरा दिमाग छटक गया और मैंने उसे ऐसा करारा झटका दिया की वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा। फिर वह वहाँ से चला गया। पता नहीं यह बन्दा कभी सुधरेगा की नहीं? आप उसे बताइये की यह उसने अच्छा नहीं किया। वह ऐसी हरकत करता रहेगा तो मुझे कुछ ना कुछ करना पडेगा।"
मैंने जैसे ही यह सूना तो मेरा तो लण्ड अपनी पतलून में फ़ुफ़कार ने लगा। मैंने मन ही मन में सोचा, "अरे वाह, मेरे शेर! तुम ने तो एक के बाद एक गोल गोल दागना शुरू कर दिया।"
दीपा को ढाढस देते हुए मैंने कहा, "देखो डार्लिंग यह होली का त्योहार है। एक दूसरे की बीबियों को छेड़ना उनपर रंग डालना, उनसे खेल खेला करना, मजाक करना और कभी कभी सेक्सी बातें करना होता है। तुमको मेरे और दोस्तों ने भी तो रंग लगाया था। मैंने भी तुम्हारी कई सहेलियों को रंग लगाया है। और ख़ास कर तुम्हारी वह सखी मोहिनी को तो मैंने अच्छी खासी तरह से रंगा था। हाँ, मैंने उसके ब्रा के अंदर हाथ नहीं ड़ाला पर बाकी काफी कुछ रंग दिया था। तुम भी तो वहीँ ही थी। इस पर बुरा नहीं मानना चाहिए। इसी लिए तो कहते हैं की "बुरा ना मानो होली है।
पर तुम तो काफी नाराज लग रही हो। आज तरुण ने कुछ ज्यादा ही कर दिया। यह बिलकुल ठीक नहीं है। मैं आज शाम को उसे महा मुर्ख सम्मलेन में हमारे साथ जाने के लिए आमंत्रित करने का सोच रहा था। अब तो मैं उसको डाँटूंगा तो वह वैसे भी नहीं आएगा। मैं उसको अभी फ़ोन कर डाँटता हूँ। पर एक बात मेरी समझ में नहीं आयी। जब मैं उसे मिला तब पता नहीं तरुण कुछ उखड़ा उखड़ा दुखी सा लग रहा था। मूड में नहीं लग रहा था। क्यूंकि शायद वह कुछ दिनों से घर में अकेला ही है। अनीता उसे छोड़ मायके चली गयी है।"
दीपा मेरी बात सुनकर सोच में पड़ गयी। उसने कहा, "ओह! हाँ तुमने बताया तो था। तो यह बात है! मियाँ अकेले हैं तो सोचा चलो टीना नहीं तो भाभी ही सही। भाभी पर ही हाथ साफ़ कर लेते हैं! पर तुमने यह तो बताया ही नहीं की अगर टीना नहीं है तो वह खाना कहाँ खाता है?"
मैंने कहा, "पता नहीं, मैंने नहीं पूछा।"
दीपा: "कमाल के दोस्त हो तुम! वह अकेला है तो बाहर होटल में ही खाना खाता होगा। तुम्हें हुआ नहीं की चलो उसे हमारे घर खाना खाने के लिए बुलाते हैं? और वह उल्लू का पट्ठा भी कह सकता था की भाभी मैं आपके यहां खाना खाऊंगा?"
दीपा की बात सुन कर मैं हैरान रह गया! अभी तो तरुण को डाँटने की बात थी और अचानक ही उसे खाना खिलाने की बात आ गयी!
मैंने कहा, "उसे छोडो और यह बताओ की मैं क्या करूँ? उसे डाँटू या फिर शाम को साथ में आने के लिए कहूं?" मैंने दीपा से ही उसके मन की बात जाननी चाही।
मेरी भोली भाली पत्नी एकदम सोच में पड़ गयी। वह थोड़ी घबरायी सी भी थी। थोड़ी देर बाद वह धीरे से बोली, "बाप रे, तरुण शाम को भी आएगा? वह भी अकेले? अम्मा, मेरी तो शामत ही आ जायेगी। हाय दैया, मैं अकेली क्या करुँगी?"
फिर दीपा एकदम चुप हो गयी। दीपा की सूरत कुछ गुस्सेसे, कुछ शर्म से और बाकी रंग से एकदम लाल हो रही थी। वह रोनी सी सूरत बना कर फिर दोबारा बोली, "अब मैं आपको क्या बताऊँ की उसको बुलाना चाहिए या नहीं? देखिये, मुझे आप को कहना था सो मैंने कह दिया। अब आगे आप जानो। मुझे आप दोनों की दोस्ती के बिच में मत डालिये। पर जहां तक मैं समझती हूँ, इस बात का बतंगड़ बनाने का कोई फायदा नहीं। मैं नहीं चाहती के इस बात पर आप दोनों घने दोस्तों में कुछ अनबन पैदा हो। बेहतर यही रहेगा की आप तरुण को कुछ भी मत कहिये। उसे डाँटना मत।"
मैं चुपचाप मेरी बीबी की बात सुन रहा था। वह फिर बोलने लगी, "एक तो होली के त्यौहार का जोश, ऊपर से मुझे लगता है की तरुण ने शराब कुछ ज्यादा ही पी ली थी शायद। उसके मुंह से शराब की बू भी आ रही थी। तो बहक गया होगा नशेमें। एक तो बन्दर और ऊपर से नीम चढ़ा। और फिर टीना भी तो नहीं है, उसको कण्ट्रोल करने के लिए। तो यह सब हुआ। मैंने कहीं पढ़ा था की कई वीर्यवान मर्द सेक्सुअली बहुत ज्यादा चंचल होते हैं। ऐसे मर्दों के अंडकोषमें हमेशा उनका वीर्य कूदता रहता है। सेक्सी औरत को देखकर वह सेक्स के मारे उत्तेजित हो जाते हैं और वह बड़े ही तिलमिलाने लगते हैं। मुझे लगता है शायद तरुण का किस्सा भी ऐसा ही है। तुम्ही ने तो कहा था ना की मुझे देखकर पता नहीं उसे क्या हो जाता है की वह मुझे छेड़े बगैर रह नहीं सकता?"
मैंने कहाँ, "हाँ वह तो हकीकत है। तरुण ने खुद मुझसे यह बात कई बार कबुली थी। उसने कहा था की उसे तुम्हें देख कर कुछ हो जाता है और वह तुम्हें छेड़ देता है अपने आप को रोक नहीं पाता। पर फिर बाद में वह बहुत पछताता भी है। तुम्ही तो कह रही थी की उसने तुमसे कई बार माफ़ी भी मांगी है।"
दीपा ने मेरी बात को सुनकर अपनी उंगली से चुटकी बजाते हुए बोली, "हाँ बिल्कुल। बस यही बात है।"
दीपा फिर एक गहरी साँस ले कर बोली, " शायद मेरी तक़दीर में तुम्हारे दोस्त को झेलना ही लिखा है। अब क्या करें? तरुण तो सुधरने से रहा। अगर आप उसे बुलाना चाहते हो तो जरूर बुलाओ। बस आप मेरे साथ रहना, ताकि वक्त आने पर हम उसे कण्ट्रोल कर सकें। जो हो गया सो हो गया। अब आगे ध्यान रखेंगे।"
फिर अचानक दीपा को कुछ याद आया तो मेरी बाँह पकड़ कर दीपा ने कहा, "और हाँ, एक बात और। इस बार मुझे भी तरुण में कुछ फर्क नजर आया। हालांकि उसने मुझे रंग बगैरह तो लगाया और जो करना था वह तो किया पर मुझे लगा की वह कुछ कुछ बुझा बुझा सा मायूस लग रहा था। वो कह रहा था की वह बहुत दुखी है पर जब वह मेरे साथ होता है तो वह दर्द भूल जाता है। मुझे लग रहा है वह टीना को लेकर कुछ अपसेट है। बात करने का मौक़ा नहीं था वरना मैं पूछ लेती। शाम को जब वह आये तो हम उसे उसके बारेमें जरूर पूछेंगे। शायद हम से बात करके उसका मन हल्का हो जाए। शायद हम उसकी कुछ मदद कर सकें।"
मेरी सीधी सादी पत्नी की बात सुनकर मैं मन में हंसने लगा। एक तरफ वह तरुण की शिकायत कर रही थी, उस का सामना करने से डर रही थी तो दूसरी और उसकी हरकतों के लिए कारण ढूंढ रही थी, उसे बुलाने के लिए कह रही थी। यही तो प्यार और गुस्से का अद्भुत संयोग था।
मैं मन ही मन हंसकर लेकिन बाहर से गम्भीरता दिखाते हुए बोला, "अगर तुम इतना कहती हो तो चलो मैं तरुण को नहीं डाँटूंगा और उसे बुला लूंगा। पर एक शर्त है। देखो तुम तरुण को तो जानती हो। वह रंगीली तबियत का है। तुमने ही तो अभी कहा की वह बन्दर के जैसा है। वह तुम्हारे जैसी खूबसूरत बंदरिया को देखते ही शायद उसका लण्ड खड़ा हो जाता है और वह अजीब हरकतें करने लगता है। उपरसे आज होली का त्यौहार है। आज तुम अकेली औरत हो। तो वह तुम्हें छेड़े बगैर तो रहेगा नहीं। जहां तक मेरी बात है, तो तुम तो जानती हो, आज होली है और मैं तुम्हें प्यार किये बगैर रह नहीं सकता। चूँकि उसके छेड़ने से तुम गुस्सा हो जाती हो इसलिए शायद बेहतर यही है की मैं उसको ना बुलाऊँ। इसका एक फायदा यह भी होगा की जब मेरा मन करेगा तो मैं तो मेरी बीबी को प्यार करूंगा और तुम मुझे यह कह कर रोकोगी नहीं की तरुण साथ में बैठा है। यार होली में तो मस्ती होनी चाहिए। ओके? अगर तुम्हें कोई प्रॉब्लम है तो मुझे अभी बता दो, तब फिर मैं तरुण को मना कर दूंगा और हम दोनों ही चलेंगे। मैं तुम्हें होली के मौके पर प्यार किये बिना नहीं रह सकता। तरुण आये तो भी ना ए तो भी। बोलो क्या मैं उसे बुलाऊँ?"
दीपा ने मेरी बात सुनकर बड़े ही असमंजस में कहा, "मैंने कहाँ तरुण को बुलाने से मना किया है? यह सारी बातें तो तुमने कहीं। मैंने तो ऐसा कुछ नहीं कहा। तुम बोलो ना क्या तुम तरुण को बुलाना चाहते हो या नहीं? मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता तरुण हो या ना हो।"
मैं कहा, "क्या तरुण होगा तो भी तुम मुझे प्यार करने दोगी की नहीं?"
दीपा ने शर्माते हुए कहा, "अगर मैं मना करुँगी तो क्या तुम मुझे प्यार किये बिना रुकोगे?"
मैंने कहा, "और अगर तुम्हें तरुण छेड़ेगा तो?"
दीपा ने कहा, 'यह क्या पहली बार है की तरुण मुझे छेड़ेगा? पता नहीं मैं तो गिनती भी भूल गयी हूँ जब तरुणे ने मुझे छेड़ा था। अब तो मुझे तरुण से छिड़ने की शायद आदत सी ही हो गयी है। अगर वह मुझे नहीं छेड़ेगा तो मैं कहीं सोचने ना लागूं की उस बंदर को हो क्या गया है?"
"तो फिर मैं तरुण को बुलाता हूँ। ओके?"
दीपा ने कहा, "तुम्हारा दोस्त है, भाई है। मुझे क्यों पूछ रहे हो? बुलाना है तो बुलाओ उसे। वह तो जो करना है वह करेगा ही। मेरे कहने से थोड़े ही रुकजाएगा वह?"
मैंने फिर पूछा, "तो उसके होते हुए भी तुम मुझे प्यार करने दोगी ना?"
दीपा ने मेरी और गुस्से से देखा और बोली, "ठीक है, तुमने एक बार बता दिया और मैंने सुन भी लिया ना? ठीक है बाबा मैं जानती हूँ, तुम मुझे प्यार किये बिना नहीं रह सकते, ख़ास कर होली के अवसर पर। मैं जानती नहीं हूँ क्या? ओके, बाबा प्यार करना तुम मुझे, मैं तुम्हें नहीं टोकूँगी बस? एक ही बात बार बार क्यों कह रहे हो?"
मैंने कहा, "ठीक है, सॉरी। पर एक बात और सुन लो। अगर तरुण आया तो तुम तो जानती ही हो, की वह बन्दर है। वह बाज नहीं आएगा। वह तो तुम्हें छेड़े बगैर रह नहीं सकता। तो देख लो। चिल्ला कर मूड मत खराब करना। और हाँ हम ने थोड़ा शराब का भी प्रोग्राम रखा है। तो प्लीज बुरा मत मानना और हंगामा मत करना। मैं चाहता हूँ की हम सब मिल कर खूब मौज करें और होली मनाएं। ठीक है ना? तुम गुस्सा तो नहीं करोगी ना?"
जब दीपा ने भांप लिया की मैं सुबह वाली बात को लेकर तरुण से ऐसी कोई लड़ाई झगड़ा नहीं करूँगा तो उसकी जान में जान आयी। तब वह होली के मूड में आ गयी। दीपा ने आँख नचाते हुए कहा, " एक ही बात कितनी बार कहोगे? मैंने कह दिया ना, की नहीं करुँगी तुम लोगों का मूड खराब। बस? मैं इतना गुस्सा करती हूँ पर क्या तुम्हारे ऊपर और तुम्हारे दोस्त के ऊपर कोई फर्क पड़ा है आज तक? मैंने गुस्सा किया भी तो तुम मेरी सुनोगे थोड़े ही? खैर चलो मैं तुम्हें वचन देती हूँ की मैं गुस्सा नहीं करुँगी बस?"
"और हर होली की तरह बादमें देर रात को फिर तुम मौज करवाओगी ना?" मैंने दीपा को आँख मारते हुए पूछा।
दीपा ने हंसकर आँख मटक कर कहा, "जरूर करवाउंगी। निश्चिंत रहो। अगर नहीं करवाई तो तुम मुझे छोड़ोगे क्या?" मुझे ऐसा लगा की मेरी रूढ़िवादी पत्नी को भी तब होली का थोड़ा रंग चढ़ चूका था। पर उसे क्या पता था की मैं किस मौज की बात कर रहा था और उस रात के लिए हमारे शातिर दिमाग में क्या प्लान पक रहा था?
जैसे की आप में से कई लोगों को पता होगा, जयपुर एक सांस्कृतिक शहर है और उसमे कई अच्छे सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहते हैं। होली के समय रामनिवास बाग़ में एक कार्यक्रम होता था जिसका नाम था "महां मुर्ख सम्मेलन" यह कार्यक्रम रात दस बजे शुरू होता था एवं पूरी रात चलता था और उसमे बड़े बड़े हास्य कवी पुरे हिंदुस्तान से आते थे। वह अपनी व्यंग भरी हास्य रस की कविताएं सुनाते थे और लोगों का खूब मनोरंजन करते थे। कार्यक्रम खुले मैदान में होता था और चारों तरफ बड़े बड़े लाउड स्पीकर होते थे। पूरा मैदान लोगों से भर जाता था।
मैं और मेरी पत्नी हर साल इस कार्यक्रम में जाते थे और करीब करीब पूरी रात हास्य कविताओं का आनंद उठाते थे। मेरी पत्नी दीपा बड़े चाव से यह कार्यक्रम सुनती और बहुत खुश होती थी। इस कार्यक्रम सुनने के बाद मुझे खास वीआईपी ट्रीटमेंट मिलती और उस रात हम खूब चुदाई करते।
दीपा की अनुमति मिलने पर मैंने तरुण को फ़ोन करके पूछा, "क्या तुम रात को दस बजे हमारे साथ महा मूर्ख सम्मलेन में चलोगे? पूरी रात का कार्यक्रम है।"
तरुण ने कहा, "यार नेकी और पूछ पूछ? मैं तो तुम्हारे इनविटेशन का इंतजार ही कर रहा था। मैं घर में अकेला हूँ। मैं अपनी एम्बेसडर कार लेकर जरूर आऊंगा। हम उसी मैं चलेंगे। पर क्या दीपा भाभी को पता है की तुम मुझे बुलाने वाले हो? क्या उन्हें पता है की आज मैं अकेला हूँ?" मैं समझ गया की दुपहर की शरारत का दीपा पर कैसा असर हुआ है वह जानने के लिए तरुण लालायित था।
मैंने कहा, "हाँ भाई। मैंने दीपा को बताया, और उसकी सम्मति से ही मैं तुमको आमंत्रित कर रहा हूँ।" मैं कल्पना कर रहा था की फ़ोन लाइन की दूसरे छौर पर यह सुनकर तरुण कितनी राहत का अनुभव कर रहा होगा।
मैंने तरुण को एक गहरी साँस लेते हुए सुना। फिर तरुण ने धीमी आवाज में बोला, "यार एक बात बुरा न मानो तो कहूँ। क्या आज रात हम दीपा भाभी के साथ कुछ हरकत कर सकते हैं? आज रात को थोड़ी सेक्स की बातें करके भाभी को गरम करने की कोशिश करते हैं।"
तब मैंने तरुण को कहा, "तुम कमाल हो यार। दुपहर को तुमने जब मेरी बीबी को इतना छेड़ा था तो क्या मुझसे पूछा था? और क्या मैंने तुम्हें कभी रोका है? आज होली है। आज तो तुम्हारे पास छेड़नेका, गरम करनेका पूरा लाइसेंस है। तुम दीपा को छेड़ो, गरम करो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। बल्कि मैं भी आज तुम्हारे साथ उसको जरूर छेडूंगा, गरम करूँगा और जीतनी हो सके उतनी तुम्हारी सहायता भी करूँगा। मैं भी देखना चाहता हूँ की तुम तुम्हारी बर्फीली भाभी को कितना गरम कर सकते हो?"
तरुण ने कहा, "भाई अगर आप कहो तो आज मैं भाभी को सिर्फ गरम ही नहीं करूंगा, आग ही लगा दूंगा। आप देखते जाओ। अब जब आपने मुझे चुनौतो दे ही दी है तो फिर देखो मेरा कमाल। आज ही भाभी को बिलकुल सेट करने की कोशिश करते हैं। वैसे भाई, मेरी भाभी बहुत अच्छी हैं। मैं वाकई में उनका मुरीद हूँ।"
मैंने कहा, "वह तो तुम हो ही और वह मुझसे और अच्छी तरह से कौन जानता है? पर तुम्हारी भाभी आज तुम्हारी दोपहर की हरकत से नाराज थी। खैर, मैंने उसे समझाया की होली में सब लोग एक दूसरे की बीबियोँ से थोड़ी सेक्सुअल छेड़छाड़ करते ही हैं। ऐसा करके वह अपने मन की छुपी हुई इच्छाओं का प्रदर्शन करके कुछ संतुष्टि लेते हैं।, ऐसा मौक़ा उन्हें कोई और दिन नहीं मिलता। पर अगर तुम्हारी छेड़छाड़ की वजह से उसका हैंडल छटक गया तो फिर उसको मैं कण्ट्रोल नहीं कर पाउँगा। वह फिर तुम सम्हालना। माहौल बनाने का काम तुम्हारा है।"
तरुण ने कहा, "वह तुम मेरे पर छोड़ दो। बस तुम मुझे सपोर्ट करते रहना बाकी मैं देख लूंगा।"
मैंने फ़ोन रखा और दीपा से कहा, "मैंने तरुण को आने के लिए कहा तो उसने मना कर दिया। वह टीना के मायके जाने से काफी मायूस है। तरुण अकेला है और कुछ दुखी भी है। पर मैंने जब बहुत फ़ोर्स किया तो आखिर में उसने आने के लिए हाँ कह दिया। मैंने उसे अपनी कार ले कर आने के लिए कहा है। हम तीनों साथ में चलेंगे। वह अपनी गाडी में रात दस बजे आएगा और हम उसकी गाडी में ही चलेंगे। हम फिर सुबह ही वापस आएंगे। और हाँ, मैं तरुण का मूड ठीक करने के लिए उस को कुछ सेक्सी बातें करने के लिए उकसाऊँगा। तुम उसे मत रोकना और उससे टीना के बारेमें मत पूछ बैठना। उसका मूड जब ठीक होगा तो आखिर में हम उस बारेमें बात करेंगे। ओके?"
दीपा मुंह बना कर बोली, "कमाल है, तुम मर्दों का मूड बस सेक्स की बातें करने से ही ठीक होता है क्या? ....क्या करें? यह तो साँप और छछूंदर वाली बात हो गयी। ना निगलते बनता है ना उगलते बनता है। मर्दों को झेलना भी मुश्किल है और उनके बिना जीना भी मुश्किल है। फिर गहरी साँस ले कर दीपा बोली, "चलो, यह भी झेल लेंगे।" दीपा ने अपने कंधे हिला कर सहमति दे दी।
मैंने दीपा से कहा, "डार्लिंग आज आप मेरे लिए कुछ ऐसे भड़कीले सेक्सी कपडे पहनो की होली का मझा आ जाए। सारे लोग देखते रह जाए की मेरी बीबी लाखों में एक है।"
मेरी बीबी ने पूछा, "क्यों, क्या बात है? सब लोगोंके सामने तुम मेरे बदन की नुमाईश करवाना चाहते हो क्या? या फिर अब तक तुमने तरुण के सामने मेरा अंग प्रदर्शन जितना करवाया है उससे खुश नहीं हो की और करवाना चाहते हो? क्या तुम तरुण ने मुझे जितना छेड़ा है उससे संतुष्ट नहीं हो की उस को मुझे और छेड़ने के लिए प्रोत्साहन देना चाहते हो?"
मैंने तपाक से जवाब देते हुए कहा, "तुम्हारी बात सच है। मैं सब लोगों के बिच में मेरी बीबी की नुमाइश करना चाहता हूँ। मैं सब को दिखाना चाहता हूँ की मेरी बीबी उन सब की बीबीयों से ना सिर्फ ज्यादा सुन्दर है, बल्कि उनकी बीबियों से कई गुना सेक्सी भी है। उतना ही नहीं, आज होली की शाम को मैं चाहता हूँ की मेरी बीबी ऐसी सेक्सी बन कर सजे की उस को देख कर बूढ़ों का भी लण्ड खड़ा हो जाये।
अब बात रही तरुण के छेड़ने की, तो तुम्हें उसके बारेमें तो चिंता ही नहीं करनी चाहिए। वह तुम्हारे मम्मों को पहले भी दो तीन बार तो सेहला ही चूका है। उसको तुम्हें जितना छेड़ना था उसने छेड़ लिया है। वह तुमको और क्या छेड़ेगा? उसने जो देखना था वह देख लिया है, जो कुछ करना था वह तो कर लिया है। उससे ज्यादा और वह क्या देख सकता है और क्या कर सकता है भला? वह क्या देख लेगा जो उसने पहले नहीं देखा? और हाँ। मैं तरुण को भी दिखाना चाहता हूँ की मेरी बीबी दीपा भी उसकी बीबी टीना से कम सुन्दर अथवा कम सेक्सी नहीं है। आज तो आरपार की लड़ाई है। वह क्या समझता है, मेरी बीबी उसकी बीबी से कम सेक्सी है?"
मैंने जब अपना पॉइंट बड़े ही भार पूर्वक रक्खा तो दीपा आश्चर्य से मेरी और देखने लगी। मैंने कहा, "तरुण उस दिन अपनी बीबी की स्विम सूट वाली आधी नंगी फोटो दिखा कर मुझे यह जता ने की कोशिश कर रहा था की उसकी बीबी टीना कितनी सेक्सी है? मैं तरुण को दिखाना चाहता हूँ यह तो मेरी बीबी दीपा की शालीनता है की वह कभी भड़कीले वेश नहीं पहनती वरना वह टीना से भी कहीं ज्यादा सेक्सी है और वह चाहे तो अच्छे अच्छों के बारह बजादे। डार्लिंग, बाकी सबकी बात छोडो। मैं तो तुम्हें अपने लिए तैयार होने को कह रहा हूँ। जानेमन आज ऐसी तैयार हो की मेरी आँखें तुम्हे ही देखते रहें। तुम्हारे अलावा किसी और औरत को ना देखें। मैं तुम्हें आज एकदम सेक्सी ड्रेस में देखना चाहता हूँ।"
इतना कहना ही मेरी पत्नी के लिए काफी था। मेरी बात सुनकर मेरी बीबी को कुछ संतुष्टि हुई। मेरी बात भी सही थी। मैं भी मेरी पत्नी के मन की बात को भली भाँती भांप ने लगा था। तरुण से हुई इतनी मुठभेड़ों के बाद उसे अब तरुण से ऐसा कोई भय नहीं लग रहा था। तरुण को दीपा भली भाँती जान गयी थी। पता नहीं, शायद वह सोच रही होगी की आखिर ज्यादा से ज्यादा क्या कर लेगा तरुण? ज्यादा से ज्यादा वह चोदने की कोशिश ही करेगा ना? अब वही तो बाकी रह गया था? और क्या करेगा?
पर अगर तरुण ने थोड़ी सी भी जबरदस्ती की तो दीपा ने तय किया था वह उसे नहीं छोड़ेगी। तरुण को यह तो मालुम ही था की दीपा इतनी आसानी से तो फँसने वाली नहीं है। फिर मैं दीपा के साथ ही था तो दीपा अकेली तो थी नहीं, की तरुण कोई जबरदस्ती कर सके।
यह सब सोच कर दीपा ने मेरी बात मान ली। शायद कुछ हद तक दीपा को भी अपनी सेक्सी फिगर तरुण को दिखाने का मन तो था ही। टीना और तरुण के हनीमून की सेक्सी फोटोएं देखने के बाद कहीं ना कहीं दीपा के मन में भी था की वह तरुण को एक बार तो दिखा ही दे की वह भी अगर भड़कीले कपडे पहने तो उस उम्र में भी मर्दों के लण्ड में आग लगा सकती है। दीपा यह भी दिखा देना चाहती थी की वह टीना से कम सुन्दर और कम सेक्सी नहीं थी।
जब मैंने दीपा से यह कहा तो दीपा ने कहा, "तरुण से कहना, मुझे बन्दर पसंद है। अगर मुझे उसकी कोई हरकत पसंद नहीं आयी तो मैं उसे एक थप्पड़ भी रसीद कर सकती हूँ। पर इसका मतलब यह नहीं की वह आनाजाना बंद कर दे। और मैं उसकी हरकत से दुखी नहीं होउंगी बस?"
जब मैंने तरुण से यह कहा तो वह उछल पड़ा। तरुण ने कहा, "भाई, अब समझो हमारा काम हो गया। अब समझो की दीपा भाभी फिसल गयी।"
मैंने पूछा, "कैसे?"
तरुण ने कहा, "भाई देखते जाओ।"
मैंने कहा, "अरे परसों ही तो होली है। देख साले होली में तू कोई ऐसी वैसी हरकत मत करना।"
तरुण ने कहा, "भाई अब तो जब आपने मुझे चुनौती दे दी है तो होली में ही कुछ करते हैं। मैं होली के दिन ही आऊंगा। बोलिये आप तैयार हो?"
मैंने कहा, "क्या मैंने कभी तुम्हारे काम में रुकावट डाली है?"
हर साल हम होली के दिन एक दोस्त के वहां मिलते थे। उसका घर काफी बड़ा था और उसमें कई रूम और बरामदा बगैरह था जहां बैठकर हम मौज मस्ती करते थे। सारे दोस्त वहीं पहुँच कर एकदूसरे को और एक दूसरे की बीबियों को रंगते थे।
माहौल एकदम मस्ती का हुआ करता था। थोड़ी बहुत शराब भी चलती थी। दीपा और मैं करीब सुबह ग्यारह बजे उस दोस्त के घर पहुंचे तो देखा की तरुण भी वहां था। हमारे वहाँ पहुँचते ही कुछ महिलाएं होली खेलने के लिए दीपा को पकड़ कर घर में ले गयीं। तरुण और बाकी हम सबने एक दूसरे को अच्छी तरह से रंगा और फिर तरुण और मैं लॉन में बैठ कर गाने बजाने और कुछ पिने पाने के कार्यक्रम में जुड़ गए।
तब मैंने देखा की तरुण बिच में से ही उठकर घर में चला गया। मैंने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। ऐसे ही गाने बजाने में आधा घंटा बीत गया था। तब तरुण वापस आ गया। वह खुश नजर आरहा था। वह निकलने की जल्दी में था। उसने मुझे बाई बाई की और चल पड़ा। थोड़ी ही देर में दीपा और दूसरी औरतें आ गयीं। पहले तो मैं दीपा को पहचान ही नहीं सका। दूसरी औरतों के मुकाबले वह पूरी रंग से भरी हुई थी। खास तौर से छाती और मुंह पर इतना रंग मला हुआ था की वह एक भूतनी जैसी लग रही थी। उसके कपडे भी बेहाल थे।
औरतों के आने के बाद हम सब एक दूसरे की बीबियों के साथ फिरसे होली खेलने में जुट गए। पर दीपा कुछ अतड़ी अतड़ी सी नजर आ रही थी। मेरे मन में विचार भी आया की क्या हुआ की तरुण अचानक ही गायब हो गया। वैसे तो हर साल वह दीपा को रंगने के लिए बड़ा बेताब रहता था।
मैं जब दीपा को रंग लगाने के लिए गया तो उसे देख कर हंस पड़ा। मैंने पूछा, "लगता है मेरी खूबसूरत बीबी को सब लोगों ने इकठ्ठा होकर खूब रंगा है।"
तब दीपा ने झुंझलाहट भरी आवाज में पूछा, "टीना को नहीं देखा मैने। वह आयी नहीं थी क्या?"
मैंने कहा, "मैंने कहा नहीं था, वह मायके चली गयी है?"
तब दीपा एकदम धीरे से बड़बड़ाई, "हाँ सही बात है। तुम ने बताया था। तभी में सोचूं, की जनाब इतने फड़फड़ा क्यों रहे थे। "
मैंने पूछा, "किसके बारेमे कह रही हो?" मेरी पत्नी ने कोई उत्तर नहीं दिया। कुछ और देर में हम सब घर जाने के लिए तैयार हुए। मैं और दीपा मेरी बाइक पर सवार हो कर चल दिए।
घर पहुँच कर मैंने देखा तो दीपा कुछ हड़बड़ाई सी लग रही थी। मैंने जब पूछा तो मुझे लगा की दीपा अपने शब्दों को कुछ ज्यादा ही सावधानी से नापतोल कर बोली, "मुझे एक बात समझ नहीं आती। यह तुम्हारा दोस्त कैसा इंसान है? देखिये, ऐसी कोई ख़ास बात नहीं है। आप उस को कुछ कहियेगा नहीं। पर आपके दोस्त तरुण ने मरे साथ क्या किया मालुम है? तुम्हारे दोस्त के घर में तरुण मुझे कुछ बहाना बना कर पीछे के कमरे में ले गया। पहले तो उसने झुक कर मेरे पॉंव पकडे और खुले दिलसे माफ़ी मांगी। जब तक मैंने उसका हाथ पकड़ कर उठाया नहीं, तब तक वह मेरे पाँव में लेटा रहा। मैंने उसे कहा, "उठो यार। भूल जाओ वह सब पुरानी बातें। मैंने माफ़ कर दिया। अब क्या है? चलो होली खेलते हैं।
बस मेरा इतना कहना था की उसने मुझे अपनी बाँहों में जकड कर ऊपर उठा लिया। पहले तो उसने मुझ पर ऐसा रंग रगड़ा ऐसा रंग रगडा की मेरी साड़ी ब्लाउज यहां तक की ब्रा के अंदर भी रंग ही रंग कर दिया। होली के बहाने उसने मुझसे बड़ी बदतमीज़ी की। मैं आप को क्या बताऊँ उसने मेरे साथ क्या क्या किया। उसने मेरी ब्रैस्ट दबाई और उन पर रंग रगड़ता रहा।
मैंने उसे रोकना चाहा पर मेरी एक ना चली। दीपक, मैं चिल्लाती तो सब लोग इकठ्ठा हो जाते और तरुण की बदनामी होती। मैं धीरे से ही पर चिल्लाती रही पर वह कहाँ सुनने वाला था? मैंने उसे कहा तरुण ये क्या कर रहे हो? पर उसने मेरी एक न सुनी। फिर जब उसने मेरे ब्लाउज के निचे, मेरे पेट पर रंग लगाना शुरू किया और फिर वह झुक मेरे पैर पर रंग रगड़ता हुआ मेरे घाघरे को ऊपर कर मेरी जाँघों पर रंग रगड़ने लगा। जब मैंने उसे झटका दिया तो सॉरी सॉरी कहता हुआ खड़ा हुआ और वह मेरी नाभि और मेरे पिछवाड़े को रगड़ कर रंग लगा ने लगा। जब मैंने उसे रोकना चाहा तो रुकने के बजाय उसने मेरे घाघरे के नाड़े के अंदर हाथ डालना चाहा। तब मेरा दिमाग छटक गया और मैंने उसे ऐसा करारा झटका दिया की वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा। फिर वह वहाँ से चला गया। पता नहीं यह बन्दा कभी सुधरेगा की नहीं? आप उसे बताइये की यह उसने अच्छा नहीं किया। वह ऐसी हरकत करता रहेगा तो मुझे कुछ ना कुछ करना पडेगा।"
मैंने जैसे ही यह सूना तो मेरा तो लण्ड अपनी पतलून में फ़ुफ़कार ने लगा। मैंने मन ही मन में सोचा, "अरे वाह, मेरे शेर! तुम ने तो एक के बाद एक गोल गोल दागना शुरू कर दिया।"
दीपा को ढाढस देते हुए मैंने कहा, "देखो डार्लिंग यह होली का त्योहार है। एक दूसरे की बीबियों को छेड़ना उनपर रंग डालना, उनसे खेल खेला करना, मजाक करना और कभी कभी सेक्सी बातें करना होता है। तुमको मेरे और दोस्तों ने भी तो रंग लगाया था। मैंने भी तुम्हारी कई सहेलियों को रंग लगाया है। और ख़ास कर तुम्हारी वह सखी मोहिनी को तो मैंने अच्छी खासी तरह से रंगा था। हाँ, मैंने उसके ब्रा के अंदर हाथ नहीं ड़ाला पर बाकी काफी कुछ रंग दिया था। तुम भी तो वहीँ ही थी। इस पर बुरा नहीं मानना चाहिए। इसी लिए तो कहते हैं की "बुरा ना मानो होली है।
पर तुम तो काफी नाराज लग रही हो। आज तरुण ने कुछ ज्यादा ही कर दिया। यह बिलकुल ठीक नहीं है। मैं आज शाम को उसे महा मुर्ख सम्मलेन में हमारे साथ जाने के लिए आमंत्रित करने का सोच रहा था। अब तो मैं उसको डाँटूंगा तो वह वैसे भी नहीं आएगा। मैं उसको अभी फ़ोन कर डाँटता हूँ। पर एक बात मेरी समझ में नहीं आयी। जब मैं उसे मिला तब पता नहीं तरुण कुछ उखड़ा उखड़ा दुखी सा लग रहा था। मूड में नहीं लग रहा था। क्यूंकि शायद वह कुछ दिनों से घर में अकेला ही है। अनीता उसे छोड़ मायके चली गयी है।"
दीपा मेरी बात सुनकर सोच में पड़ गयी। उसने कहा, "ओह! हाँ तुमने बताया तो था। तो यह बात है! मियाँ अकेले हैं तो सोचा चलो टीना नहीं तो भाभी ही सही। भाभी पर ही हाथ साफ़ कर लेते हैं! पर तुमने यह तो बताया ही नहीं की अगर टीना नहीं है तो वह खाना कहाँ खाता है?"
मैंने कहा, "पता नहीं, मैंने नहीं पूछा।"
दीपा: "कमाल के दोस्त हो तुम! वह अकेला है तो बाहर होटल में ही खाना खाता होगा। तुम्हें हुआ नहीं की चलो उसे हमारे घर खाना खाने के लिए बुलाते हैं? और वह उल्लू का पट्ठा भी कह सकता था की भाभी मैं आपके यहां खाना खाऊंगा?"
दीपा की बात सुन कर मैं हैरान रह गया! अभी तो तरुण को डाँटने की बात थी और अचानक ही उसे खाना खिलाने की बात आ गयी!
मैंने कहा, "उसे छोडो और यह बताओ की मैं क्या करूँ? उसे डाँटू या फिर शाम को साथ में आने के लिए कहूं?" मैंने दीपा से ही उसके मन की बात जाननी चाही।
मेरी भोली भाली पत्नी एकदम सोच में पड़ गयी। वह थोड़ी घबरायी सी भी थी। थोड़ी देर बाद वह धीरे से बोली, "बाप रे, तरुण शाम को भी आएगा? वह भी अकेले? अम्मा, मेरी तो शामत ही आ जायेगी। हाय दैया, मैं अकेली क्या करुँगी?"
फिर दीपा एकदम चुप हो गयी। दीपा की सूरत कुछ गुस्सेसे, कुछ शर्म से और बाकी रंग से एकदम लाल हो रही थी। वह रोनी सी सूरत बना कर फिर दोबारा बोली, "अब मैं आपको क्या बताऊँ की उसको बुलाना चाहिए या नहीं? देखिये, मुझे आप को कहना था सो मैंने कह दिया। अब आगे आप जानो। मुझे आप दोनों की दोस्ती के बिच में मत डालिये। पर जहां तक मैं समझती हूँ, इस बात का बतंगड़ बनाने का कोई फायदा नहीं। मैं नहीं चाहती के इस बात पर आप दोनों घने दोस्तों में कुछ अनबन पैदा हो। बेहतर यही रहेगा की आप तरुण को कुछ भी मत कहिये। उसे डाँटना मत।"
मैं चुपचाप मेरी बीबी की बात सुन रहा था। वह फिर बोलने लगी, "एक तो होली के त्यौहार का जोश, ऊपर से मुझे लगता है की तरुण ने शराब कुछ ज्यादा ही पी ली थी शायद। उसके मुंह से शराब की बू भी आ रही थी। तो बहक गया होगा नशेमें। एक तो बन्दर और ऊपर से नीम चढ़ा। और फिर टीना भी तो नहीं है, उसको कण्ट्रोल करने के लिए। तो यह सब हुआ। मैंने कहीं पढ़ा था की कई वीर्यवान मर्द सेक्सुअली बहुत ज्यादा चंचल होते हैं। ऐसे मर्दों के अंडकोषमें हमेशा उनका वीर्य कूदता रहता है। सेक्सी औरत को देखकर वह सेक्स के मारे उत्तेजित हो जाते हैं और वह बड़े ही तिलमिलाने लगते हैं। मुझे लगता है शायद तरुण का किस्सा भी ऐसा ही है। तुम्ही ने तो कहा था ना की मुझे देखकर पता नहीं उसे क्या हो जाता है की वह मुझे छेड़े बगैर रह नहीं सकता?"
मैंने कहाँ, "हाँ वह तो हकीकत है। तरुण ने खुद मुझसे यह बात कई बार कबुली थी। उसने कहा था की उसे तुम्हें देख कर कुछ हो जाता है और वह तुम्हें छेड़ देता है अपने आप को रोक नहीं पाता। पर फिर बाद में वह बहुत पछताता भी है। तुम्ही तो कह रही थी की उसने तुमसे कई बार माफ़ी भी मांगी है।"
दीपा ने मेरी बात को सुनकर अपनी उंगली से चुटकी बजाते हुए बोली, "हाँ बिल्कुल। बस यही बात है।"
दीपा फिर एक गहरी साँस ले कर बोली, " शायद मेरी तक़दीर में तुम्हारे दोस्त को झेलना ही लिखा है। अब क्या करें? तरुण तो सुधरने से रहा। अगर आप उसे बुलाना चाहते हो तो जरूर बुलाओ। बस आप मेरे साथ रहना, ताकि वक्त आने पर हम उसे कण्ट्रोल कर सकें। जो हो गया सो हो गया। अब आगे ध्यान रखेंगे।"
फिर अचानक दीपा को कुछ याद आया तो मेरी बाँह पकड़ कर दीपा ने कहा, "और हाँ, एक बात और। इस बार मुझे भी तरुण में कुछ फर्क नजर आया। हालांकि उसने मुझे रंग बगैरह तो लगाया और जो करना था वह तो किया पर मुझे लगा की वह कुछ कुछ बुझा बुझा सा मायूस लग रहा था। वो कह रहा था की वह बहुत दुखी है पर जब वह मेरे साथ होता है तो वह दर्द भूल जाता है। मुझे लग रहा है वह टीना को लेकर कुछ अपसेट है। बात करने का मौक़ा नहीं था वरना मैं पूछ लेती। शाम को जब वह आये तो हम उसे उसके बारेमें जरूर पूछेंगे। शायद हम से बात करके उसका मन हल्का हो जाए। शायद हम उसकी कुछ मदद कर सकें।"
मेरी सीधी सादी पत्नी की बात सुनकर मैं मन में हंसने लगा। एक तरफ वह तरुण की शिकायत कर रही थी, उस का सामना करने से डर रही थी तो दूसरी और उसकी हरकतों के लिए कारण ढूंढ रही थी, उसे बुलाने के लिए कह रही थी। यही तो प्यार और गुस्से का अद्भुत संयोग था।
मैं मन ही मन हंसकर लेकिन बाहर से गम्भीरता दिखाते हुए बोला, "अगर तुम इतना कहती हो तो चलो मैं तरुण को नहीं डाँटूंगा और उसे बुला लूंगा। पर एक शर्त है। देखो तुम तरुण को तो जानती हो। वह रंगीली तबियत का है। तुमने ही तो अभी कहा की वह बन्दर के जैसा है। वह तुम्हारे जैसी खूबसूरत बंदरिया को देखते ही शायद उसका लण्ड खड़ा हो जाता है और वह अजीब हरकतें करने लगता है। उपरसे आज होली का त्यौहार है। आज तुम अकेली औरत हो। तो वह तुम्हें छेड़े बगैर तो रहेगा नहीं। जहां तक मेरी बात है, तो तुम तो जानती हो, आज होली है और मैं तुम्हें प्यार किये बगैर रह नहीं सकता। चूँकि उसके छेड़ने से तुम गुस्सा हो जाती हो इसलिए शायद बेहतर यही है की मैं उसको ना बुलाऊँ। इसका एक फायदा यह भी होगा की जब मेरा मन करेगा तो मैं तो मेरी बीबी को प्यार करूंगा और तुम मुझे यह कह कर रोकोगी नहीं की तरुण साथ में बैठा है। यार होली में तो मस्ती होनी चाहिए। ओके? अगर तुम्हें कोई प्रॉब्लम है तो मुझे अभी बता दो, तब फिर मैं तरुण को मना कर दूंगा और हम दोनों ही चलेंगे। मैं तुम्हें होली के मौके पर प्यार किये बिना नहीं रह सकता। तरुण आये तो भी ना ए तो भी। बोलो क्या मैं उसे बुलाऊँ?"
दीपा ने मेरी बात सुनकर बड़े ही असमंजस में कहा, "मैंने कहाँ तरुण को बुलाने से मना किया है? यह सारी बातें तो तुमने कहीं। मैंने तो ऐसा कुछ नहीं कहा। तुम बोलो ना क्या तुम तरुण को बुलाना चाहते हो या नहीं? मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता तरुण हो या ना हो।"
मैं कहा, "क्या तरुण होगा तो भी तुम मुझे प्यार करने दोगी की नहीं?"
दीपा ने शर्माते हुए कहा, "अगर मैं मना करुँगी तो क्या तुम मुझे प्यार किये बिना रुकोगे?"
मैंने कहा, "और अगर तुम्हें तरुण छेड़ेगा तो?"
दीपा ने कहा, 'यह क्या पहली बार है की तरुण मुझे छेड़ेगा? पता नहीं मैं तो गिनती भी भूल गयी हूँ जब तरुणे ने मुझे छेड़ा था। अब तो मुझे तरुण से छिड़ने की शायद आदत सी ही हो गयी है। अगर वह मुझे नहीं छेड़ेगा तो मैं कहीं सोचने ना लागूं की उस बंदर को हो क्या गया है?"
"तो फिर मैं तरुण को बुलाता हूँ। ओके?"
दीपा ने कहा, "तुम्हारा दोस्त है, भाई है। मुझे क्यों पूछ रहे हो? बुलाना है तो बुलाओ उसे। वह तो जो करना है वह करेगा ही। मेरे कहने से थोड़े ही रुकजाएगा वह?"
मैंने फिर पूछा, "तो उसके होते हुए भी तुम मुझे प्यार करने दोगी ना?"
दीपा ने मेरी और गुस्से से देखा और बोली, "ठीक है, तुमने एक बार बता दिया और मैंने सुन भी लिया ना? ठीक है बाबा मैं जानती हूँ, तुम मुझे प्यार किये बिना नहीं रह सकते, ख़ास कर होली के अवसर पर। मैं जानती नहीं हूँ क्या? ओके, बाबा प्यार करना तुम मुझे, मैं तुम्हें नहीं टोकूँगी बस? एक ही बात बार बार क्यों कह रहे हो?"
मैंने कहा, "ठीक है, सॉरी। पर एक बात और सुन लो। अगर तरुण आया तो तुम तो जानती ही हो, की वह बन्दर है। वह बाज नहीं आएगा। वह तो तुम्हें छेड़े बगैर रह नहीं सकता। तो देख लो। चिल्ला कर मूड मत खराब करना। और हाँ हम ने थोड़ा शराब का भी प्रोग्राम रखा है। तो प्लीज बुरा मत मानना और हंगामा मत करना। मैं चाहता हूँ की हम सब मिल कर खूब मौज करें और होली मनाएं। ठीक है ना? तुम गुस्सा तो नहीं करोगी ना?"
जब दीपा ने भांप लिया की मैं सुबह वाली बात को लेकर तरुण से ऐसी कोई लड़ाई झगड़ा नहीं करूँगा तो उसकी जान में जान आयी। तब वह होली के मूड में आ गयी। दीपा ने आँख नचाते हुए कहा, " एक ही बात कितनी बार कहोगे? मैंने कह दिया ना, की नहीं करुँगी तुम लोगों का मूड खराब। बस? मैं इतना गुस्सा करती हूँ पर क्या तुम्हारे ऊपर और तुम्हारे दोस्त के ऊपर कोई फर्क पड़ा है आज तक? मैंने गुस्सा किया भी तो तुम मेरी सुनोगे थोड़े ही? खैर चलो मैं तुम्हें वचन देती हूँ की मैं गुस्सा नहीं करुँगी बस?"
"और हर होली की तरह बादमें देर रात को फिर तुम मौज करवाओगी ना?" मैंने दीपा को आँख मारते हुए पूछा।
दीपा ने हंसकर आँख मटक कर कहा, "जरूर करवाउंगी। निश्चिंत रहो। अगर नहीं करवाई तो तुम मुझे छोड़ोगे क्या?" मुझे ऐसा लगा की मेरी रूढ़िवादी पत्नी को भी तब होली का थोड़ा रंग चढ़ चूका था। पर उसे क्या पता था की मैं किस मौज की बात कर रहा था और उस रात के लिए हमारे शातिर दिमाग में क्या प्लान पक रहा था?
जैसे की आप में से कई लोगों को पता होगा, जयपुर एक सांस्कृतिक शहर है और उसमे कई अच्छे सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहते हैं। होली के समय रामनिवास बाग़ में एक कार्यक्रम होता था जिसका नाम था "महां मुर्ख सम्मेलन" यह कार्यक्रम रात दस बजे शुरू होता था एवं पूरी रात चलता था और उसमे बड़े बड़े हास्य कवी पुरे हिंदुस्तान से आते थे। वह अपनी व्यंग भरी हास्य रस की कविताएं सुनाते थे और लोगों का खूब मनोरंजन करते थे। कार्यक्रम खुले मैदान में होता था और चारों तरफ बड़े बड़े लाउड स्पीकर होते थे। पूरा मैदान लोगों से भर जाता था।
मैं और मेरी पत्नी हर साल इस कार्यक्रम में जाते थे और करीब करीब पूरी रात हास्य कविताओं का आनंद उठाते थे। मेरी पत्नी दीपा बड़े चाव से यह कार्यक्रम सुनती और बहुत खुश होती थी। इस कार्यक्रम सुनने के बाद मुझे खास वीआईपी ट्रीटमेंट मिलती और उस रात हम खूब चुदाई करते।
दीपा की अनुमति मिलने पर मैंने तरुण को फ़ोन करके पूछा, "क्या तुम रात को दस बजे हमारे साथ महा मूर्ख सम्मलेन में चलोगे? पूरी रात का कार्यक्रम है।"
तरुण ने कहा, "यार नेकी और पूछ पूछ? मैं तो तुम्हारे इनविटेशन का इंतजार ही कर रहा था। मैं घर में अकेला हूँ। मैं अपनी एम्बेसडर कार लेकर जरूर आऊंगा। हम उसी मैं चलेंगे। पर क्या दीपा भाभी को पता है की तुम मुझे बुलाने वाले हो? क्या उन्हें पता है की आज मैं अकेला हूँ?" मैं समझ गया की दुपहर की शरारत का दीपा पर कैसा असर हुआ है वह जानने के लिए तरुण लालायित था।
मैंने कहा, "हाँ भाई। मैंने दीपा को बताया, और उसकी सम्मति से ही मैं तुमको आमंत्रित कर रहा हूँ।" मैं कल्पना कर रहा था की फ़ोन लाइन की दूसरे छौर पर यह सुनकर तरुण कितनी राहत का अनुभव कर रहा होगा।
मैंने तरुण को एक गहरी साँस लेते हुए सुना। फिर तरुण ने धीमी आवाज में बोला, "यार एक बात बुरा न मानो तो कहूँ। क्या आज रात हम दीपा भाभी के साथ कुछ हरकत कर सकते हैं? आज रात को थोड़ी सेक्स की बातें करके भाभी को गरम करने की कोशिश करते हैं।"
तब मैंने तरुण को कहा, "तुम कमाल हो यार। दुपहर को तुमने जब मेरी बीबी को इतना छेड़ा था तो क्या मुझसे पूछा था? और क्या मैंने तुम्हें कभी रोका है? आज होली है। आज तो तुम्हारे पास छेड़नेका, गरम करनेका पूरा लाइसेंस है। तुम दीपा को छेड़ो, गरम करो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। बल्कि मैं भी आज तुम्हारे साथ उसको जरूर छेडूंगा, गरम करूँगा और जीतनी हो सके उतनी तुम्हारी सहायता भी करूँगा। मैं भी देखना चाहता हूँ की तुम तुम्हारी बर्फीली भाभी को कितना गरम कर सकते हो?"
तरुण ने कहा, "भाई अगर आप कहो तो आज मैं भाभी को सिर्फ गरम ही नहीं करूंगा, आग ही लगा दूंगा। आप देखते जाओ। अब जब आपने मुझे चुनौतो दे ही दी है तो फिर देखो मेरा कमाल। आज ही भाभी को बिलकुल सेट करने की कोशिश करते हैं। वैसे भाई, मेरी भाभी बहुत अच्छी हैं। मैं वाकई में उनका मुरीद हूँ।"
मैंने कहा, "वह तो तुम हो ही और वह मुझसे और अच्छी तरह से कौन जानता है? पर तुम्हारी भाभी आज तुम्हारी दोपहर की हरकत से नाराज थी। खैर, मैंने उसे समझाया की होली में सब लोग एक दूसरे की बीबियोँ से थोड़ी सेक्सुअल छेड़छाड़ करते ही हैं। ऐसा करके वह अपने मन की छुपी हुई इच्छाओं का प्रदर्शन करके कुछ संतुष्टि लेते हैं।, ऐसा मौक़ा उन्हें कोई और दिन नहीं मिलता। पर अगर तुम्हारी छेड़छाड़ की वजह से उसका हैंडल छटक गया तो फिर उसको मैं कण्ट्रोल नहीं कर पाउँगा। वह फिर तुम सम्हालना। माहौल बनाने का काम तुम्हारा है।"
तरुण ने कहा, "वह तुम मेरे पर छोड़ दो। बस तुम मुझे सपोर्ट करते रहना बाकी मैं देख लूंगा।"
मैंने फ़ोन रखा और दीपा से कहा, "मैंने तरुण को आने के लिए कहा तो उसने मना कर दिया। वह टीना के मायके जाने से काफी मायूस है। तरुण अकेला है और कुछ दुखी भी है। पर मैंने जब बहुत फ़ोर्स किया तो आखिर में उसने आने के लिए हाँ कह दिया। मैंने उसे अपनी कार ले कर आने के लिए कहा है। हम तीनों साथ में चलेंगे। वह अपनी गाडी में रात दस बजे आएगा और हम उसकी गाडी में ही चलेंगे। हम फिर सुबह ही वापस आएंगे। और हाँ, मैं तरुण का मूड ठीक करने के लिए उस को कुछ सेक्सी बातें करने के लिए उकसाऊँगा। तुम उसे मत रोकना और उससे टीना के बारेमें मत पूछ बैठना। उसका मूड जब ठीक होगा तो आखिर में हम उस बारेमें बात करेंगे। ओके?"
दीपा मुंह बना कर बोली, "कमाल है, तुम मर्दों का मूड बस सेक्स की बातें करने से ही ठीक होता है क्या? ....क्या करें? यह तो साँप और छछूंदर वाली बात हो गयी। ना निगलते बनता है ना उगलते बनता है। मर्दों को झेलना भी मुश्किल है और उनके बिना जीना भी मुश्किल है। फिर गहरी साँस ले कर दीपा बोली, "चलो, यह भी झेल लेंगे।" दीपा ने अपने कंधे हिला कर सहमति दे दी।
मैंने दीपा से कहा, "डार्लिंग आज आप मेरे लिए कुछ ऐसे भड़कीले सेक्सी कपडे पहनो की होली का मझा आ जाए। सारे लोग देखते रह जाए की मेरी बीबी लाखों में एक है।"
मेरी बीबी ने पूछा, "क्यों, क्या बात है? सब लोगोंके सामने तुम मेरे बदन की नुमाईश करवाना चाहते हो क्या? या फिर अब तक तुमने तरुण के सामने मेरा अंग प्रदर्शन जितना करवाया है उससे खुश नहीं हो की और करवाना चाहते हो? क्या तुम तरुण ने मुझे जितना छेड़ा है उससे संतुष्ट नहीं हो की उस को मुझे और छेड़ने के लिए प्रोत्साहन देना चाहते हो?"
मैंने तपाक से जवाब देते हुए कहा, "तुम्हारी बात सच है। मैं सब लोगों के बिच में मेरी बीबी की नुमाइश करना चाहता हूँ। मैं सब को दिखाना चाहता हूँ की मेरी बीबी उन सब की बीबीयों से ना सिर्फ ज्यादा सुन्दर है, बल्कि उनकी बीबियों से कई गुना सेक्सी भी है। उतना ही नहीं, आज होली की शाम को मैं चाहता हूँ की मेरी बीबी ऐसी सेक्सी बन कर सजे की उस को देख कर बूढ़ों का भी लण्ड खड़ा हो जाये।
अब बात रही तरुण के छेड़ने की, तो तुम्हें उसके बारेमें तो चिंता ही नहीं करनी चाहिए। वह तुम्हारे मम्मों को पहले भी दो तीन बार तो सेहला ही चूका है। उसको तुम्हें जितना छेड़ना था उसने छेड़ लिया है। वह तुमको और क्या छेड़ेगा? उसने जो देखना था वह देख लिया है, जो कुछ करना था वह तो कर लिया है। उससे ज्यादा और वह क्या देख सकता है और क्या कर सकता है भला? वह क्या देख लेगा जो उसने पहले नहीं देखा? और हाँ। मैं तरुण को भी दिखाना चाहता हूँ की मेरी बीबी दीपा भी उसकी बीबी टीना से कम सुन्दर अथवा कम सेक्सी नहीं है। आज तो आरपार की लड़ाई है। वह क्या समझता है, मेरी बीबी उसकी बीबी से कम सेक्सी है?"
मैंने जब अपना पॉइंट बड़े ही भार पूर्वक रक्खा तो दीपा आश्चर्य से मेरी और देखने लगी। मैंने कहा, "तरुण उस दिन अपनी बीबी की स्विम सूट वाली आधी नंगी फोटो दिखा कर मुझे यह जता ने की कोशिश कर रहा था की उसकी बीबी टीना कितनी सेक्सी है? मैं तरुण को दिखाना चाहता हूँ यह तो मेरी बीबी दीपा की शालीनता है की वह कभी भड़कीले वेश नहीं पहनती वरना वह टीना से भी कहीं ज्यादा सेक्सी है और वह चाहे तो अच्छे अच्छों के बारह बजादे। डार्लिंग, बाकी सबकी बात छोडो। मैं तो तुम्हें अपने लिए तैयार होने को कह रहा हूँ। जानेमन आज ऐसी तैयार हो की मेरी आँखें तुम्हे ही देखते रहें। तुम्हारे अलावा किसी और औरत को ना देखें। मैं तुम्हें आज एकदम सेक्सी ड्रेस में देखना चाहता हूँ।"
इतना कहना ही मेरी पत्नी के लिए काफी था। मेरी बात सुनकर मेरी बीबी को कुछ संतुष्टि हुई। मेरी बात भी सही थी। मैं भी मेरी पत्नी के मन की बात को भली भाँती भांप ने लगा था। तरुण से हुई इतनी मुठभेड़ों के बाद उसे अब तरुण से ऐसा कोई भय नहीं लग रहा था। तरुण को दीपा भली भाँती जान गयी थी। पता नहीं, शायद वह सोच रही होगी की आखिर ज्यादा से ज्यादा क्या कर लेगा तरुण? ज्यादा से ज्यादा वह चोदने की कोशिश ही करेगा ना? अब वही तो बाकी रह गया था? और क्या करेगा?
पर अगर तरुण ने थोड़ी सी भी जबरदस्ती की तो दीपा ने तय किया था वह उसे नहीं छोड़ेगी। तरुण को यह तो मालुम ही था की दीपा इतनी आसानी से तो फँसने वाली नहीं है। फिर मैं दीपा के साथ ही था तो दीपा अकेली तो थी नहीं, की तरुण कोई जबरदस्ती कर सके।
यह सब सोच कर दीपा ने मेरी बात मान ली। शायद कुछ हद तक दीपा को भी अपनी सेक्सी फिगर तरुण को दिखाने का मन तो था ही। टीना और तरुण के हनीमून की सेक्सी फोटोएं देखने के बाद कहीं ना कहीं दीपा के मन में भी था की वह तरुण को एक बार तो दिखा ही दे की वह भी अगर भड़कीले कपडे पहने तो उस उम्र में भी मर्दों के लण्ड में आग लगा सकती है। दीपा यह भी दिखा देना चाहती थी की वह टीना से कम सुन्दर और कम सेक्सी नहीं थी।