07-12-2019, 07:22 PM
सफाई खतम हुई की अचानक दीपा चौंक गयी जब तरुण ने एक झटके में अपनी पतलून की ज़िप खोल दी और अपना पतलून अपनी टांगों के निचे उतार दिया। तरुण ने पतलून के निचे सफ़ेद सूती की पतले कपडे वाली छोटी निक्कर पहन रखी थी। तरुण की निक्कर में तरुण का लण्ड एकदम खड़ा छड़ की तरह जैसे झंडा फहराता हो ऐसे खम्भे के समान खड़ा साफ़ साफ़ दिख रहा था। जहां तरुण के लण्ड ने तम्बू बना रखा था वहाँ काफी गीलापन था और तरुण के लण्ड से निकली हुई चिकनाहट साफ़ साफ़ दिख रही थी। तरुण का लण्ड काफी लंबा और मोटा और तगड़ा होना चाहिए क्यों की निक्कर के अंदर से वह कम से कम सात आठ इंच बाहर निकला हुआ था। दीपा को तरुण का लण्ड उसकी पतली गीली निक्कर के अंदर चिकनाहट में लोथपोथ होने के कारण साफ़ दिखाई दे रहा था।
तरुण का खड़ा इतना लंबा तगड़ा मोटा लण्ड अपने सामने पाकर मेरी बीबी का मुंह आश्चर्य और विस्मय से अनायास ही खुला का खुला रह गया। मैं मेरी बीबी के भाव देख कर दंग रह गया। तगड़ा मोटा लंबा खड़ा लण्ड जो की एक कमजोर पतली निक्कर में ढका हुआ था, उसे अपने मुंह के बराबर सामने देखकर मेरी सीधीसादी बीबी भौंचक्की सी अपने जबड़ों को खुला रखती हुई उसे देखने लगी। मैं पक्का तो नहीं कह सकता पर शायद दीपा का खुल्ला मुंह देख कर एकदम अचानक तरुण ने लड़खड़ाने का नाटक किया और अपने पेंडू को आगे की और एक धक्का दिया और मेरी बीबी के खुले हुए मुंह में अपना खड़े लण्ड वाला तम्बू घुसा दिया।
तरुण का खड़ा मोटा लण्ड जो की निक्कर में छिपा हुआ था वह सीधा अपने मुंह में पाकर दीपा काफी घबड़ायी। निक्कर में फैला हुआ तरुण का इतना मोटा लण्ड अपने थोड़े से खुले हुए मुंह में दीपा कैसे ले पाती? उसका गला रुंध गया और वह चाहते हुए भी खांस ना सकी। दीपा की आँखें यह अचानक हुई घटना से चौक गयीं। वह तरुण के लण्ड के मुंह में घुसने के कारण बोल नहीं पा रही थी। दीपा पर ऐसे धक्का लगने से पीछे की दिवार से सट गयी और पूरी तरह आवाज ना निकलने के कारण चौंकी बौखलाई हुई बड़ी बड़ी आँखों से तरुण को देखने लगी।
तरुण बार बार अपना पेंडू आगे पीछे करता हुआ जैसे मेरी बीबी के खुले मुंह को चोद रहा हो ऐसे करने लगा। दीपा तरुण की चाल समझ चुकी थी। उसने ने जोर लगाकर तरुण को एक धक्का मारा। तरुण पीछे खिसका और उस का लण्ड मुंह में से निकलते हुए ही दीपा हट कर खड़ी हो गयी और तरुण को डांटते हुए खांसते हुए पर बड़े धीमे आवाज में बोली (ताकि उसकी आवाज बाहर ना जा सके), "तरुण, तुमने तो हद करदी। यह क्या तमाशा है? सीधे खड़े रहो।"
तरुण ने एक बार फिर दिखाई ना देने का बहाना करते हुए कहा, "भाभी, सॉरी, मैं कुछ देख नहीं पा रहा हूँ और अचानक अपना संतुलन खो बैठा।" बाहर खड़ा हुआ मैं जानता था की कमीना तरुण अपना शारीरिक नहीं पर मानसिक संतुलन खो बैठा था और दीपा के करीब होने का पूरा फायदा उठा रहा था।
दीपा ने जब यह सूना तो एकदम बगैर कुछ सोचे समझे अनायास ही उसका हाथ तरुण के जांघिये के बेल्ट के ऊपर चला गया। एक पल के लिए मुझे लगा की कहीं मेरी बीबी तरुण के जांघिये के बेल्ट को खिंच कर जांघिए में देखने तो नहीं जा रही? फिर दीपा की समझ में तरुण की चाल आयी। दीपा ने अपना हाथ हटा दिया औरपीछे हट कर खड़ी हो गयी और बोली, "तरुण ज्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश मत करो। अब मेरा काम हो गया है। अब मैं चलती हूँ।"
तरुणने ऐसे नाटक किया जैसे उसके हाथ अब ठीक हो गए थे। अपने हाथ ऊपर उठाकर तरुण ने कहा, "भाभी, अब मेरे हाथ ठीक लग रहे हैं। अब मैं अपनी आँखें साफ़ कर देता हूँ।" यह कह कर तरुण वाश बेसिन की और मुड़ गया और पानी छिड़क कर उसने अपनी आँखें साफ़ की। बड़ी मुश्किल से खांसती हुई मेरी परेशान बीबी अपने आप को सम्हालते हुए ठीक सीधी खड़ी हुई।
तरुण ने आँखें खोल कर देखा की उसका मोटा लण्ड निक्कर के साथ अपने मुंह में लेनेके कारण दीपा का मुंह शर्म से लाल हो रहा था। दीपा समझ गयी की तरुण यह जान गया था की दीपा ने तरुण का लण्ड अपने हाथों में पकड़ा था, उसे सहलाया था और अपने मुंह में भी डाला था भले ही वह चंद पलों के लिए ही क्यों ना हो।
तरुण ने देखा की दीपा के चेहरे पर और उसकी साडी पर आटा बिखरा हुआ था। बिना कुछ पूर्व सूचना देते हुए, तरुण ने एकदम दीपा के हाथ में से कपड़ा छीन लिया और बोला, "भाभी आपके चेहरे ऊपर और आपकी साडी के ऊपर भी काफी आटा बिखरा हुआ है। अब आप मुझे भी सेवा का मौक़ा दीजिये।" यह कह कर तरुण उस कपडे से दीपा के चेहरे को साफ़ करने लग गया।
दीपा कुछ विरोध करे उसके पहले ही तरुण एक हाथ से तौलिया मेरी बीबी के चेहरे पर, गालों पर, गले पर और धीरे से ब्लाउज में उसके फुले हुए स्तनों पर रगड़ ने लगा और अपना दुसरा हाथ मेरी बीबी के स्तनों पर रख कर वह एक के बाद एक दीपा के फुले हुए अल्लड़ स्तनों को ब्लाउज के ऊपर से ही दबाने लगा। तरुण के उस उद्दंड और उच्छृंखल व्यवहार से दीपा कुछ देर तक बूत की तरह बिना हिले डुले भौंचक्की सी खड़ी रही और तरुण ने उन उद्दंड कारनामों को आश्चर्य से देखती ही रही। उसकी समझ में नहीं आ रहा था की वह इस आदमी का कैसे विरोध करे।
दीपा को आगे से साफ़ करने के बाद तरुण ने अचानक वह तौलिया एक तरफ फेंक दिया और दीपा को घुमा कर दीपा की कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर अपने आगे कर लिया और खुद मेरी बीबी के पीछे खड़े हो कर अपने फौलादी छड़ से खड़े हुए लण्ड के ऊपर मेरी बीबी दीपा की साड़ी में छिपी करारी गाँड़ को टिका दिया और पीछे से अपने पेंडू से अपने लण्ड को दीपा की गाँड़ में धकेलने लगा। हालांकि मेरी बीबी के स्तन बिलकुल साफ़ थे, तरुण दोनों हाथों को उसने दीपा के ब्लाउज और ब्रा के अंदर हाथ डाल कर उसकी चूँचियों को साफ़ करने का ढोंग करते हुए उद्दण्डता पूर्वक उन्हें दबाने और मसलते हुए बोलने लगा, "भाभी अब मुझे मौक़ा दो आपकी सफाई करने का।"
तरुण के ऐसे आवेग पूर्ण रवैये से दीपा की साँसें फूलने लगीं। दीपा की उभरी हुई छाती जोर से ऊपर निचे होने लगी। उसने सपने में भी नहीं सोचा था की तरुण उस हद तक जा सकता था। तरुण के ब्रा में हाथ डाल कर मसलने के कारण दीपा के उरोज ऊपर निचे हो रहे थे। पूरा दृश्य मेरे लण्ड को खड़ा कर देने वाला था। मेरी बीबी भयंकर असमंजस में थी। वह सोच रही थी की क्या वह चिल्लाये? क्या वह तरुण को एक जोरदार थप्पड़ मार कर उसकी उद्दण्डता का उसे एहसास दिलाये? वह चिल्लाना नहीं चाहती थी। कुछ ही समय पहले मैंने दीपा और तरुण को एकदूसरे पर चढ़ते हुए देख कर शरारत भरी टिपण्णी की थी। अगर वह चिल्लाई तो मैं भाग कर आऊंगा और फिर उन दोनों की हरकत को पकडूँगा। फिर क्या होगा यह वह सोच कर शायद दीपा घबड़ायी हुई थी।
दीपा तरुण की हरकतों से इतनी घबरा गयी थी की उसकी शक्ल रोने जैसी हो गयी। दीपा की समझ से बाहर था की वह तरुण को रोके तो रोके कैसे? अपनी शेरनी का रूप अगर वह दिखाए तो उसे दहाड़ना पडेगा। और वह चिल्लाई तो मैं वहाँ पहुंचूंगा और फिर दुबारा उन दोनों को उस हाल में देखा तो फिर तो मैं यह मान ही लूंगा की दीपा के उकसाने से ही तरुण ऐसी हरकतें कर रहा था, क्यूंकि दीपा ने तो तरुण को पहले से ही अच्छा कैरेक्टर सर्टिफिकेट दे दिया था। दीपा नहीं चाहती थी की मैं दुबारा उसको तरुण के साथ उस हाल में देखूं। वह मेरे मजाक का विषय नहीं बनना चाहती थी। वह शायद तरुण की ऐसी हरकतों के कारण हमारी दोस्ती को भी तुड़वाना नहीं चाहती थी।
दीपा को धीरे धीरे यह यकीन हो चुका था की उसके चिल्लाने से या दहाड़ने से तरुण उसका पीछा छोड़ने वाला नहीं था।
दीपा के दिमाग में इतनी उलझनें थी की जब दीपा को कुछ और रास्ता ना सुझा तो तंग आकार आखिर में स्त्रियों का एक कारगर ब्रह्मास्त्र जो उसके पास बचा था उसको मेरी प्यारी बीबी ने इस्तेमाल किया। दीपा रोने लग गयी। उसने अपने हाथ जोड़ कर तरुण से कहा, "तरुण, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ। तुम मुझे इतना तंग क्यों कर रहे हो? प्लीज तुम मुझे जाने दो। प्लीज अभी मुझे और परेशान मत करो। अगर दीपक ने हमें ऐसे देख लिया तो तुम्हें तो कुछ नहीं कहेंगे पर मेरी तो वह ऐसी की तैसी कर देंगे। वैसे ही मेरी बहुत बदनामी हो चुकी है।"
मेरी बीबी की आँखों से अश्रुधार बहने लगी, जिसे देख कर तरुण स्तब्ध सा हो गया। उसका हाथ जो दीपा की चूँचियों को सेहला रहा था और मेरी बीबी की निप्पलोँ को अपनी उँगलियों में पिचका रहा था, दीपा की ब्रा में ही स्थिर हो गया। उसे पता नहीं था की उसकी हरकतों से दीपा इतनी ज्यादा परेशान हो जायेगी। जब कुछ समय तक ऐसे ही अपने हाथ दीपा की ब्रा में ही रखे दीपा के बॉल को अपनी उँगलियों में जकड़े हुए तरुण खड़ा रहा तब मेरी बीबी ने सोचा की उसे तरुण को कुछ रियायत देनी पड़ेगी जिससे वह उसे जाने दे।
उस समय मेरी प्यारी पत्नी ने एक ऐसी गलती की जो उसे उस एक तरफी रास्ते पर ले गयी, जहां से शायद वापस आना उसके लिए बहुत मुश्किल था। दीपा ने कहा, "तरुण आखिर तुम्हें मुझसे क्या चाहिए? देखो, मैं अभी बहुत परेशान हूँ। अभी मुझे प्लीज जाने दो। बाद में तुम जो कहोगे मैं करुँगी, पर अभी मुझे और परेशान मत करो प्लीज!"
तरुण दीपा की बात सुनकर एकदम गंभीर हो गया। उसने दीपा के ब्लाउज में से अपने हाथ निकाल दिए। और दीपा की और देख कर बोला, "भाभी, क्या आप इतनी नासमझ हैं की आप नहीं जानती की मैं क्या चाहता हूँ? क्या मैं जो मागूंगा वह आप मुझे दोगी? आपने मुझे वचन दे दिया है भाभी। अब मुकरना मत।"
दीपा तरुण की और देखती ही रही। उसे समझ में नहीं आया की कैसे उसके मुंह से वह शब्द निकल गए और कैसे उसने तरुण को वचन दे दिया की बाद में वह जो तरुण चाहेगा वो करेगी? ऐसा करने से तो वह तरुण के चालाकी से बुनी हुई जाल में फँस गयी। अब वह क्या करे? दीपा परेशानी भरी नज़रों से तरुण को बिना कुछ बोले देखती ही रही। उसकी आँखों में एक असहायता का भाव था।
तरुण ने फिर एक और चाल चली और दीपा को रिलैक्स करने के लिए कहा, "अरे मेरी भोली भाभी! आप चिता मत करिये। अभी तो मैं आपसे सिर्फ दिल्लगी कर रहा था। मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए। आप जब मेरे पास होती है ना, तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता है। मेरा आपको दुःख पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है। आप हाथ मत जोड़िये। चाहो मुझे एक थप्पड़ मार लो पर रोओ मत। आप चाहो तो अभी जा सकती हो। मैं आपको और परेशान नहीं करूंगा। पर भाभी, जब कभी मौक़ा मिला और मैंने आपसे माँगा तो फिर आप अपने वचन से मुकर तो नहीं जाओगे ना?"
दीपा ने जब तरुण से यह सूना की तरुण अब दीपा को परेशान नहीं करेगा, तो दीपा की जान में जान आयी। दीपा ने अपना सर उठा कर कहा, "मैं कभी अपने वचन से मुकरती नहीं हूँ।"
तरुण ने कहा, "तो बस भाभी, आप जा सकती हो। मैं आपको और परेशान नहीं करूंगा। पर जाते जाते बस मेरी इस वक्त एक छोटी सी रिक्वेस्ट है।"
मेरी बीबी का दिमाग फिर घूमने लगा। दीपा ने पूछा, "तुम्हें वचन तो दे दिया अब और क्या रिक्वेस्ट है भाई?"
तरुण ने कहा, "भाभी मेरी एक छोटी सी इच्छा है। ऐसी कोई बड़ी या घबराने वाली बात नहीं है, बस एक छोटी सी इच्छा है। क्या आप पूरी करोगी?"
दीपा अकुलाते हुए सावधानी से बोली, "क्या बात है? और क्या चाहिए तुम्हें?"
तरुण ने कहा, "भाभी जी, गभराइये मत। मुझे और कुछ ज्यादा नहीं चाहिए। पर जब भी मैं आपके रसीले होँठ देखता हूँ तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता है? मैंने कई बार आपके सर को और आपके गालों को चूमा है। पर कभी आपके रसीले होंठो को नहीं चूमा। क्या मैं एक सेकंड के लिए ही बस एक ही बार आपके होँठों को चुम सकता हूँ? बस एक सेकंड के लिए ही? प्लीज? मैं फिर कभी दुबारा आपसे ऐसी मांग नहीं करूंगा। आई प्रॉमिस।" यह कह कर तरुण अपने दोनों कान अपने दोनों हाथों की उँगलियों से पकड़ कर बड़ी ही भोली सूरत बना कर खड़ा हो गया।
तरुण का ड्रामा देख कर दीपा बरबस ही हँस पड़ी। कहते हैं ना की हँसी तो फँसी। दीपा ने एक गहरी राहत भरी साँस ली। क्यूंकि दीपा ने तरुण को प्रॉमिस किया था की वह जो तरुण चाहेगा वह करेगी तो मेरी प्यारी दीपा को डर था की कहीं तरुण उसे यह ना कह दे की वह दीपा को चोदना चाहता है। तो चलो एक चुम्मा ही तो देना है, और वह भी कुछ सेकंड के लिए।
तरुण की बात सुनकर दीपा ने कहा, "तरुण बहुत हो गया। मुझे डर है की कहीं दीपक आ गये और हमें देख लिया तो तुम्हें तो कुछ नहीं कहेंगे, पर मेरी फजीहत हो जायेगी। अच्छा, ठीक है। सिर्फ एक सेकंड के लिए ही। ओ के? कोई जबरदस्ती नहीं। चलो जो करना है जल्दी करो और मेरा पीछा छोडो प्लीज!"
तरुण मुस्कराया। मैं वहा खड़ा सब सुन रहा था। बात सुनकर मेरा लण्ड पूर्व रस से रिसने लगा। मैं समझ गया की अगर उसने दीपा को होँठों पर चुम लिया तो समझो उसने बाजी मार ली। दीपा होँठों पर क़िस की मास्टर थी। किस मात्र से वह एकदम उत्तेजित हो जाती थी।
तरुण ने दीपा की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी और घुमा लिया जिससे मेरी बीबी का चेहरा उसके चेहरे के सामने हो गया और दोनों के होँठ एक दूसरे के आपने सामने हो गए। तरुण ने दीपा को अपने इतने करीब खींचा की तरुण और दीपा के बदन एकदम सट गए। मैं समझ गया की उस समय तरुण की पतली सी निकर में से बाहर निकला हुआ तरुण का मोटा, लंबा और फौलाद की तरह खड़ा लण्ड दीपा की चूत को सारे कपड़ों के होने के बावजूद भी तगड़ी टक्कर मार रहा होगा। मेरी बीबी अब अपने ही जाल में फँस चुकी थी। अब उसे तरुण को किस करने देना ही पड़ेगा।
तरुण दीपा की कमर के निचे दीपा के कूल्हों पर एक हाथ ले जा कर उनको दबाने लगा। इसके पहले की दीपा कुछ बोल पाती, तरुण ने दीपा के रसीले होँठों पर अपने होँठ कस कर भींच दिए। दीपा बौखलाई हुई थी। एक तरफ तरुण दीपा के कूल्हे के गाल दबा रहा था। तो दूसरी और तरुण का लण्ड दीपा की चूत को ताकत से कोंच रहा था। तरुण साड़ी के ऊपर से ही दीपा की गाँड़ के गालोँ बिच की दरार में अपनी उंगलियां घुसेड़कर उन्हें ऊपर निचे कर रहा था।
दीपा बोलने की स्थिति में तो थी नहीं। दीपा के होंठों का तो तरुण के होँठों ने कब्जा कर लिया था। दीपा तरुण की बाँहों में पूरी तरह उलटे खींचे हुए धनुष्य की तरह टेढ़ी खड़ी हुई थी। तरुण का पेंडू दीपा के पेंडू से कस के जुड़ा हुआ था। दीपा की चूत वाला हिस्सा तरुण के लण्ड से कस के भींचा हुआ था। तरुण ने अपने होँठों से दीपा के होँठ खोल दिए। फिर तरुण ने अपनी जीभ दीपा के मुंह में घुसेड़ दी। दीपा की छाती के मस्त दो गुम्बज तरुण की छाती में जुड़े हुए थे।
दीपा ने तरुण को चुम्बन करने की इजाजत तो दे ही दी थी ना? अब वह विरोध कैसे करती? अब उसे तरुण के साथ चुम्बन में तो हिस्सा लेना ही पडेगा। तरुण की जीभ को अपने मुंह में घुस ने की कोशिश करते हुए महसूस करते ही दीपा ने अनायास ही अपने होँठ खोल दिए और अपनी जीभ से उसे सहलाना शुरू किया।
तरुण के मुंह की लार दीपा के मुंह में बहने लगी। दीपा ने पहली बार किसी गैर मर्द को ऐसा चुम्बन किया था। दीपा चुम्बन करने में माहिर थी। उसे मुझसे चुम्बन करने में बड़ा ही आनंद आता था।
उसी दक्षता से दीपा तरुण के साथ चुम्बन में जुड़ गयी। तरुण के चुम्बन की उत्तेजना से दीपा का पूरा बदन रोमांच से भर गया। मैंने देखा की दीपा का अवरोध तरुण के होँठों से होँठों के मिलन से धीरे धीरे टूटने लगा। दीपा का पूरा ध्यान तरुण की जीभ में से बहते हुए रस पर केंद्रित था। दीपा तरुण की जीभ को चूसने लगी। तरुण भी दीपा के सकारात्मक रवैये से एकदम उत्तेजित हो गया। दीपा और तरुण काफी समय तक एक दूसरे के होँठ चूसते रहे और एक दूसरे की जीभ का रसास्वादन करते रहे।
दीपा तरुण के चुम्बन में इतनी खो गयी की उसे चुम्बन करते हुए समय का ध्यान ही नहीं रहा। तरुण ने अपनी जीभ से दीपा के मुंह को चोदना शुरू किया। बार बार अपनी जीभ दीपा के मुंह में घुसेड़ता और फिर बाहर निकालता। यह एक तरह से दीपा को चोदने का संकेत ही था। दीपा का अवरोध पता नहीं कहाँ गायब हो गया। दीपा के मुंह से हलकी सी कामुकता भरी सिसकियाँ और "उँह.... ममम..." की आवाजें निकलने लगी। अपनी मस्ती में शायद वह भूल गयी की उसको किस करने वाला मैं उसका पति नहीं, बल्कि तरुण था। वह तो तरुण को दीपक समझ कर अपना मुंह तरुण की जीभ से चुदवाती रही।
तरुण ने दीपा की गाँड़ को अपने हाथ से जोर से दबाया और दीपा के दोनों टांगों के बिच की चूत को अपने लण्ड की और कस के खींचा और जैसे दीपा को साड़ी पहने हुए ही चोद रहा हो ऐसी हरकत करने लगा। दीपा तरुण के बाहुपाश में और तरुण के होठों के रसास्वादन में ऐसी खोयी हुई थी की उसे समय का और तरुण के उसकी चूत को साडी को बिच में रखते चोदने की एक्टिंग कर रहा था उस का ध्यान ही नहीं था।
तब तरुण ने एक ऐसी हरकत की जिसकी वजह से दीपा एकदम जमीन पर वापस लौट आयी। तरुण ने उत्तेजना में दीपा के ब्लाउज में फिर से अपना एक हाथ डाल दिया और दीपा के उन्नत उरोजों को दबाने और मसलने लगा। तरुण का हाथ अपने ब्लाउज में डालने से ही मेरी बीबी भड़की और उसने तरुण को एक जोरदार धक्का देकर उसे अलग किया। दीपा का मुंह तरुण के चुम्बन से शर्म और उत्तेजना के मारे लाल हुआ था।
दीपा ने अपने आपको सम्हाला और एकदम झपट कर बाथरूम के दरवाजे की और मुडी और दरवाजा खोला। पीछे मुड़ कर दीपा ने तरुण की और देखा और बोली, "मैं तुम्हें दूसरे मर्दों से अलग समझती थी। आई थॉट यू आर नॉट लाइक अधर मैन। पर तुमने मेरी कमजोरी का फायदा उठाया। यह ठीक नहीं है। डु यू थिंक आई ऍम ए ब्लडी स्लट? क्या तुम मुझे कोई छिनाल या वेश्या समझ रहे हो? मैं तुम्हें एक शरीफ आदमी समझती थी जो कभी कभी उत्तेजना में बह कर जुछ अजीब सी हरकतें कर बैठता है। आई डोन्ट लाइक इट। नाउ गेट आउट। आई डोन्ट वोन्ट टू सी यू अगेन। मैं तुम्हें दुबारा मिलना नहीं चाहती।"
तरुण का खड़ा इतना लंबा तगड़ा मोटा लण्ड अपने सामने पाकर मेरी बीबी का मुंह आश्चर्य और विस्मय से अनायास ही खुला का खुला रह गया। मैं मेरी बीबी के भाव देख कर दंग रह गया। तगड़ा मोटा लंबा खड़ा लण्ड जो की एक कमजोर पतली निक्कर में ढका हुआ था, उसे अपने मुंह के बराबर सामने देखकर मेरी सीधीसादी बीबी भौंचक्की सी अपने जबड़ों को खुला रखती हुई उसे देखने लगी। मैं पक्का तो नहीं कह सकता पर शायद दीपा का खुल्ला मुंह देख कर एकदम अचानक तरुण ने लड़खड़ाने का नाटक किया और अपने पेंडू को आगे की और एक धक्का दिया और मेरी बीबी के खुले हुए मुंह में अपना खड़े लण्ड वाला तम्बू घुसा दिया।
तरुण का खड़ा मोटा लण्ड जो की निक्कर में छिपा हुआ था वह सीधा अपने मुंह में पाकर दीपा काफी घबड़ायी। निक्कर में फैला हुआ तरुण का इतना मोटा लण्ड अपने थोड़े से खुले हुए मुंह में दीपा कैसे ले पाती? उसका गला रुंध गया और वह चाहते हुए भी खांस ना सकी। दीपा की आँखें यह अचानक हुई घटना से चौक गयीं। वह तरुण के लण्ड के मुंह में घुसने के कारण बोल नहीं पा रही थी। दीपा पर ऐसे धक्का लगने से पीछे की दिवार से सट गयी और पूरी तरह आवाज ना निकलने के कारण चौंकी बौखलाई हुई बड़ी बड़ी आँखों से तरुण को देखने लगी।
तरुण बार बार अपना पेंडू आगे पीछे करता हुआ जैसे मेरी बीबी के खुले मुंह को चोद रहा हो ऐसे करने लगा। दीपा तरुण की चाल समझ चुकी थी। उसने ने जोर लगाकर तरुण को एक धक्का मारा। तरुण पीछे खिसका और उस का लण्ड मुंह में से निकलते हुए ही दीपा हट कर खड़ी हो गयी और तरुण को डांटते हुए खांसते हुए पर बड़े धीमे आवाज में बोली (ताकि उसकी आवाज बाहर ना जा सके), "तरुण, तुमने तो हद करदी। यह क्या तमाशा है? सीधे खड़े रहो।"
तरुण ने एक बार फिर दिखाई ना देने का बहाना करते हुए कहा, "भाभी, सॉरी, मैं कुछ देख नहीं पा रहा हूँ और अचानक अपना संतुलन खो बैठा।" बाहर खड़ा हुआ मैं जानता था की कमीना तरुण अपना शारीरिक नहीं पर मानसिक संतुलन खो बैठा था और दीपा के करीब होने का पूरा फायदा उठा रहा था।
दीपा ने जब यह सूना तो एकदम बगैर कुछ सोचे समझे अनायास ही उसका हाथ तरुण के जांघिये के बेल्ट के ऊपर चला गया। एक पल के लिए मुझे लगा की कहीं मेरी बीबी तरुण के जांघिये के बेल्ट को खिंच कर जांघिए में देखने तो नहीं जा रही? फिर दीपा की समझ में तरुण की चाल आयी। दीपा ने अपना हाथ हटा दिया औरपीछे हट कर खड़ी हो गयी और बोली, "तरुण ज्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश मत करो। अब मेरा काम हो गया है। अब मैं चलती हूँ।"
तरुणने ऐसे नाटक किया जैसे उसके हाथ अब ठीक हो गए थे। अपने हाथ ऊपर उठाकर तरुण ने कहा, "भाभी, अब मेरे हाथ ठीक लग रहे हैं। अब मैं अपनी आँखें साफ़ कर देता हूँ।" यह कह कर तरुण वाश बेसिन की और मुड़ गया और पानी छिड़क कर उसने अपनी आँखें साफ़ की। बड़ी मुश्किल से खांसती हुई मेरी परेशान बीबी अपने आप को सम्हालते हुए ठीक सीधी खड़ी हुई।
तरुण ने आँखें खोल कर देखा की उसका मोटा लण्ड निक्कर के साथ अपने मुंह में लेनेके कारण दीपा का मुंह शर्म से लाल हो रहा था। दीपा समझ गयी की तरुण यह जान गया था की दीपा ने तरुण का लण्ड अपने हाथों में पकड़ा था, उसे सहलाया था और अपने मुंह में भी डाला था भले ही वह चंद पलों के लिए ही क्यों ना हो।
तरुण ने देखा की दीपा के चेहरे पर और उसकी साडी पर आटा बिखरा हुआ था। बिना कुछ पूर्व सूचना देते हुए, तरुण ने एकदम दीपा के हाथ में से कपड़ा छीन लिया और बोला, "भाभी आपके चेहरे ऊपर और आपकी साडी के ऊपर भी काफी आटा बिखरा हुआ है। अब आप मुझे भी सेवा का मौक़ा दीजिये।" यह कह कर तरुण उस कपडे से दीपा के चेहरे को साफ़ करने लग गया।
दीपा कुछ विरोध करे उसके पहले ही तरुण एक हाथ से तौलिया मेरी बीबी के चेहरे पर, गालों पर, गले पर और धीरे से ब्लाउज में उसके फुले हुए स्तनों पर रगड़ ने लगा और अपना दुसरा हाथ मेरी बीबी के स्तनों पर रख कर वह एक के बाद एक दीपा के फुले हुए अल्लड़ स्तनों को ब्लाउज के ऊपर से ही दबाने लगा। तरुण के उस उद्दंड और उच्छृंखल व्यवहार से दीपा कुछ देर तक बूत की तरह बिना हिले डुले भौंचक्की सी खड़ी रही और तरुण ने उन उद्दंड कारनामों को आश्चर्य से देखती ही रही। उसकी समझ में नहीं आ रहा था की वह इस आदमी का कैसे विरोध करे।
दीपा को आगे से साफ़ करने के बाद तरुण ने अचानक वह तौलिया एक तरफ फेंक दिया और दीपा को घुमा कर दीपा की कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर अपने आगे कर लिया और खुद मेरी बीबी के पीछे खड़े हो कर अपने फौलादी छड़ से खड़े हुए लण्ड के ऊपर मेरी बीबी दीपा की साड़ी में छिपी करारी गाँड़ को टिका दिया और पीछे से अपने पेंडू से अपने लण्ड को दीपा की गाँड़ में धकेलने लगा। हालांकि मेरी बीबी के स्तन बिलकुल साफ़ थे, तरुण दोनों हाथों को उसने दीपा के ब्लाउज और ब्रा के अंदर हाथ डाल कर उसकी चूँचियों को साफ़ करने का ढोंग करते हुए उद्दण्डता पूर्वक उन्हें दबाने और मसलते हुए बोलने लगा, "भाभी अब मुझे मौक़ा दो आपकी सफाई करने का।"
तरुण के ऐसे आवेग पूर्ण रवैये से दीपा की साँसें फूलने लगीं। दीपा की उभरी हुई छाती जोर से ऊपर निचे होने लगी। उसने सपने में भी नहीं सोचा था की तरुण उस हद तक जा सकता था। तरुण के ब्रा में हाथ डाल कर मसलने के कारण दीपा के उरोज ऊपर निचे हो रहे थे। पूरा दृश्य मेरे लण्ड को खड़ा कर देने वाला था। मेरी बीबी भयंकर असमंजस में थी। वह सोच रही थी की क्या वह चिल्लाये? क्या वह तरुण को एक जोरदार थप्पड़ मार कर उसकी उद्दण्डता का उसे एहसास दिलाये? वह चिल्लाना नहीं चाहती थी। कुछ ही समय पहले मैंने दीपा और तरुण को एकदूसरे पर चढ़ते हुए देख कर शरारत भरी टिपण्णी की थी। अगर वह चिल्लाई तो मैं भाग कर आऊंगा और फिर उन दोनों की हरकत को पकडूँगा। फिर क्या होगा यह वह सोच कर शायद दीपा घबड़ायी हुई थी।
दीपा तरुण की हरकतों से इतनी घबरा गयी थी की उसकी शक्ल रोने जैसी हो गयी। दीपा की समझ से बाहर था की वह तरुण को रोके तो रोके कैसे? अपनी शेरनी का रूप अगर वह दिखाए तो उसे दहाड़ना पडेगा। और वह चिल्लाई तो मैं वहाँ पहुंचूंगा और फिर दुबारा उन दोनों को उस हाल में देखा तो फिर तो मैं यह मान ही लूंगा की दीपा के उकसाने से ही तरुण ऐसी हरकतें कर रहा था, क्यूंकि दीपा ने तो तरुण को पहले से ही अच्छा कैरेक्टर सर्टिफिकेट दे दिया था। दीपा नहीं चाहती थी की मैं दुबारा उसको तरुण के साथ उस हाल में देखूं। वह मेरे मजाक का विषय नहीं बनना चाहती थी। वह शायद तरुण की ऐसी हरकतों के कारण हमारी दोस्ती को भी तुड़वाना नहीं चाहती थी।
दीपा को धीरे धीरे यह यकीन हो चुका था की उसके चिल्लाने से या दहाड़ने से तरुण उसका पीछा छोड़ने वाला नहीं था।
दीपा के दिमाग में इतनी उलझनें थी की जब दीपा को कुछ और रास्ता ना सुझा तो तंग आकार आखिर में स्त्रियों का एक कारगर ब्रह्मास्त्र जो उसके पास बचा था उसको मेरी प्यारी बीबी ने इस्तेमाल किया। दीपा रोने लग गयी। उसने अपने हाथ जोड़ कर तरुण से कहा, "तरुण, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ। तुम मुझे इतना तंग क्यों कर रहे हो? प्लीज तुम मुझे जाने दो। प्लीज अभी मुझे और परेशान मत करो। अगर दीपक ने हमें ऐसे देख लिया तो तुम्हें तो कुछ नहीं कहेंगे पर मेरी तो वह ऐसी की तैसी कर देंगे। वैसे ही मेरी बहुत बदनामी हो चुकी है।"
मेरी बीबी की आँखों से अश्रुधार बहने लगी, जिसे देख कर तरुण स्तब्ध सा हो गया। उसका हाथ जो दीपा की चूँचियों को सेहला रहा था और मेरी बीबी की निप्पलोँ को अपनी उँगलियों में पिचका रहा था, दीपा की ब्रा में ही स्थिर हो गया। उसे पता नहीं था की उसकी हरकतों से दीपा इतनी ज्यादा परेशान हो जायेगी। जब कुछ समय तक ऐसे ही अपने हाथ दीपा की ब्रा में ही रखे दीपा के बॉल को अपनी उँगलियों में जकड़े हुए तरुण खड़ा रहा तब मेरी बीबी ने सोचा की उसे तरुण को कुछ रियायत देनी पड़ेगी जिससे वह उसे जाने दे।
उस समय मेरी प्यारी पत्नी ने एक ऐसी गलती की जो उसे उस एक तरफी रास्ते पर ले गयी, जहां से शायद वापस आना उसके लिए बहुत मुश्किल था। दीपा ने कहा, "तरुण आखिर तुम्हें मुझसे क्या चाहिए? देखो, मैं अभी बहुत परेशान हूँ। अभी मुझे प्लीज जाने दो। बाद में तुम जो कहोगे मैं करुँगी, पर अभी मुझे और परेशान मत करो प्लीज!"
तरुण दीपा की बात सुनकर एकदम गंभीर हो गया। उसने दीपा के ब्लाउज में से अपने हाथ निकाल दिए। और दीपा की और देख कर बोला, "भाभी, क्या आप इतनी नासमझ हैं की आप नहीं जानती की मैं क्या चाहता हूँ? क्या मैं जो मागूंगा वह आप मुझे दोगी? आपने मुझे वचन दे दिया है भाभी। अब मुकरना मत।"
दीपा तरुण की और देखती ही रही। उसे समझ में नहीं आया की कैसे उसके मुंह से वह शब्द निकल गए और कैसे उसने तरुण को वचन दे दिया की बाद में वह जो तरुण चाहेगा वो करेगी? ऐसा करने से तो वह तरुण के चालाकी से बुनी हुई जाल में फँस गयी। अब वह क्या करे? दीपा परेशानी भरी नज़रों से तरुण को बिना कुछ बोले देखती ही रही। उसकी आँखों में एक असहायता का भाव था।
तरुण ने फिर एक और चाल चली और दीपा को रिलैक्स करने के लिए कहा, "अरे मेरी भोली भाभी! आप चिता मत करिये। अभी तो मैं आपसे सिर्फ दिल्लगी कर रहा था। मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए। आप जब मेरे पास होती है ना, तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता है। मेरा आपको दुःख पहुंचाने का कोई इरादा नहीं है। आप हाथ मत जोड़िये। चाहो मुझे एक थप्पड़ मार लो पर रोओ मत। आप चाहो तो अभी जा सकती हो। मैं आपको और परेशान नहीं करूंगा। पर भाभी, जब कभी मौक़ा मिला और मैंने आपसे माँगा तो फिर आप अपने वचन से मुकर तो नहीं जाओगे ना?"
दीपा ने जब तरुण से यह सूना की तरुण अब दीपा को परेशान नहीं करेगा, तो दीपा की जान में जान आयी। दीपा ने अपना सर उठा कर कहा, "मैं कभी अपने वचन से मुकरती नहीं हूँ।"
तरुण ने कहा, "तो बस भाभी, आप जा सकती हो। मैं आपको और परेशान नहीं करूंगा। पर जाते जाते बस मेरी इस वक्त एक छोटी सी रिक्वेस्ट है।"
मेरी बीबी का दिमाग फिर घूमने लगा। दीपा ने पूछा, "तुम्हें वचन तो दे दिया अब और क्या रिक्वेस्ट है भाई?"
तरुण ने कहा, "भाभी मेरी एक छोटी सी इच्छा है। ऐसी कोई बड़ी या घबराने वाली बात नहीं है, बस एक छोटी सी इच्छा है। क्या आप पूरी करोगी?"
दीपा अकुलाते हुए सावधानी से बोली, "क्या बात है? और क्या चाहिए तुम्हें?"
तरुण ने कहा, "भाभी जी, गभराइये मत। मुझे और कुछ ज्यादा नहीं चाहिए। पर जब भी मैं आपके रसीले होँठ देखता हूँ तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता है? मैंने कई बार आपके सर को और आपके गालों को चूमा है। पर कभी आपके रसीले होंठो को नहीं चूमा। क्या मैं एक सेकंड के लिए ही बस एक ही बार आपके होँठों को चुम सकता हूँ? बस एक सेकंड के लिए ही? प्लीज? मैं फिर कभी दुबारा आपसे ऐसी मांग नहीं करूंगा। आई प्रॉमिस।" यह कह कर तरुण अपने दोनों कान अपने दोनों हाथों की उँगलियों से पकड़ कर बड़ी ही भोली सूरत बना कर खड़ा हो गया।
तरुण का ड्रामा देख कर दीपा बरबस ही हँस पड़ी। कहते हैं ना की हँसी तो फँसी। दीपा ने एक गहरी राहत भरी साँस ली। क्यूंकि दीपा ने तरुण को प्रॉमिस किया था की वह जो तरुण चाहेगा वह करेगी तो मेरी प्यारी दीपा को डर था की कहीं तरुण उसे यह ना कह दे की वह दीपा को चोदना चाहता है। तो चलो एक चुम्मा ही तो देना है, और वह भी कुछ सेकंड के लिए।
तरुण की बात सुनकर दीपा ने कहा, "तरुण बहुत हो गया। मुझे डर है की कहीं दीपक आ गये और हमें देख लिया तो तुम्हें तो कुछ नहीं कहेंगे, पर मेरी फजीहत हो जायेगी। अच्छा, ठीक है। सिर्फ एक सेकंड के लिए ही। ओ के? कोई जबरदस्ती नहीं। चलो जो करना है जल्दी करो और मेरा पीछा छोडो प्लीज!"
तरुण मुस्कराया। मैं वहा खड़ा सब सुन रहा था। बात सुनकर मेरा लण्ड पूर्व रस से रिसने लगा। मैं समझ गया की अगर उसने दीपा को होँठों पर चुम लिया तो समझो उसने बाजी मार ली। दीपा होँठों पर क़िस की मास्टर थी। किस मात्र से वह एकदम उत्तेजित हो जाती थी।
तरुण ने दीपा की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी और घुमा लिया जिससे मेरी बीबी का चेहरा उसके चेहरे के सामने हो गया और दोनों के होँठ एक दूसरे के आपने सामने हो गए। तरुण ने दीपा को अपने इतने करीब खींचा की तरुण और दीपा के बदन एकदम सट गए। मैं समझ गया की उस समय तरुण की पतली सी निकर में से बाहर निकला हुआ तरुण का मोटा, लंबा और फौलाद की तरह खड़ा लण्ड दीपा की चूत को सारे कपड़ों के होने के बावजूद भी तगड़ी टक्कर मार रहा होगा। मेरी बीबी अब अपने ही जाल में फँस चुकी थी। अब उसे तरुण को किस करने देना ही पड़ेगा।
तरुण दीपा की कमर के निचे दीपा के कूल्हों पर एक हाथ ले जा कर उनको दबाने लगा। इसके पहले की दीपा कुछ बोल पाती, तरुण ने दीपा के रसीले होँठों पर अपने होँठ कस कर भींच दिए। दीपा बौखलाई हुई थी। एक तरफ तरुण दीपा के कूल्हे के गाल दबा रहा था। तो दूसरी और तरुण का लण्ड दीपा की चूत को ताकत से कोंच रहा था। तरुण साड़ी के ऊपर से ही दीपा की गाँड़ के गालोँ बिच की दरार में अपनी उंगलियां घुसेड़कर उन्हें ऊपर निचे कर रहा था।
दीपा बोलने की स्थिति में तो थी नहीं। दीपा के होंठों का तो तरुण के होँठों ने कब्जा कर लिया था। दीपा तरुण की बाँहों में पूरी तरह उलटे खींचे हुए धनुष्य की तरह टेढ़ी खड़ी हुई थी। तरुण का पेंडू दीपा के पेंडू से कस के जुड़ा हुआ था। दीपा की चूत वाला हिस्सा तरुण के लण्ड से कस के भींचा हुआ था। तरुण ने अपने होँठों से दीपा के होँठ खोल दिए। फिर तरुण ने अपनी जीभ दीपा के मुंह में घुसेड़ दी। दीपा की छाती के मस्त दो गुम्बज तरुण की छाती में जुड़े हुए थे।
दीपा ने तरुण को चुम्बन करने की इजाजत तो दे ही दी थी ना? अब वह विरोध कैसे करती? अब उसे तरुण के साथ चुम्बन में तो हिस्सा लेना ही पडेगा। तरुण की जीभ को अपने मुंह में घुस ने की कोशिश करते हुए महसूस करते ही दीपा ने अनायास ही अपने होँठ खोल दिए और अपनी जीभ से उसे सहलाना शुरू किया।
तरुण के मुंह की लार दीपा के मुंह में बहने लगी। दीपा ने पहली बार किसी गैर मर्द को ऐसा चुम्बन किया था। दीपा चुम्बन करने में माहिर थी। उसे मुझसे चुम्बन करने में बड़ा ही आनंद आता था।
उसी दक्षता से दीपा तरुण के साथ चुम्बन में जुड़ गयी। तरुण के चुम्बन की उत्तेजना से दीपा का पूरा बदन रोमांच से भर गया। मैंने देखा की दीपा का अवरोध तरुण के होँठों से होँठों के मिलन से धीरे धीरे टूटने लगा। दीपा का पूरा ध्यान तरुण की जीभ में से बहते हुए रस पर केंद्रित था। दीपा तरुण की जीभ को चूसने लगी। तरुण भी दीपा के सकारात्मक रवैये से एकदम उत्तेजित हो गया। दीपा और तरुण काफी समय तक एक दूसरे के होँठ चूसते रहे और एक दूसरे की जीभ का रसास्वादन करते रहे।
दीपा तरुण के चुम्बन में इतनी खो गयी की उसे चुम्बन करते हुए समय का ध्यान ही नहीं रहा। तरुण ने अपनी जीभ से दीपा के मुंह को चोदना शुरू किया। बार बार अपनी जीभ दीपा के मुंह में घुसेड़ता और फिर बाहर निकालता। यह एक तरह से दीपा को चोदने का संकेत ही था। दीपा का अवरोध पता नहीं कहाँ गायब हो गया। दीपा के मुंह से हलकी सी कामुकता भरी सिसकियाँ और "उँह.... ममम..." की आवाजें निकलने लगी। अपनी मस्ती में शायद वह भूल गयी की उसको किस करने वाला मैं उसका पति नहीं, बल्कि तरुण था। वह तो तरुण को दीपक समझ कर अपना मुंह तरुण की जीभ से चुदवाती रही।
तरुण ने दीपा की गाँड़ को अपने हाथ से जोर से दबाया और दीपा के दोनों टांगों के बिच की चूत को अपने लण्ड की और कस के खींचा और जैसे दीपा को साड़ी पहने हुए ही चोद रहा हो ऐसी हरकत करने लगा। दीपा तरुण के बाहुपाश में और तरुण के होठों के रसास्वादन में ऐसी खोयी हुई थी की उसे समय का और तरुण के उसकी चूत को साडी को बिच में रखते चोदने की एक्टिंग कर रहा था उस का ध्यान ही नहीं था।
तब तरुण ने एक ऐसी हरकत की जिसकी वजह से दीपा एकदम जमीन पर वापस लौट आयी। तरुण ने उत्तेजना में दीपा के ब्लाउज में फिर से अपना एक हाथ डाल दिया और दीपा के उन्नत उरोजों को दबाने और मसलने लगा। तरुण का हाथ अपने ब्लाउज में डालने से ही मेरी बीबी भड़की और उसने तरुण को एक जोरदार धक्का देकर उसे अलग किया। दीपा का मुंह तरुण के चुम्बन से शर्म और उत्तेजना के मारे लाल हुआ था।
दीपा ने अपने आपको सम्हाला और एकदम झपट कर बाथरूम के दरवाजे की और मुडी और दरवाजा खोला। पीछे मुड़ कर दीपा ने तरुण की और देखा और बोली, "मैं तुम्हें दूसरे मर्दों से अलग समझती थी। आई थॉट यू आर नॉट लाइक अधर मैन। पर तुमने मेरी कमजोरी का फायदा उठाया। यह ठीक नहीं है। डु यू थिंक आई ऍम ए ब्लडी स्लट? क्या तुम मुझे कोई छिनाल या वेश्या समझ रहे हो? मैं तुम्हें एक शरीफ आदमी समझती थी जो कभी कभी उत्तेजना में बह कर जुछ अजीब सी हरकतें कर बैठता है। आई डोन्ट लाइक इट। नाउ गेट आउट। आई डोन्ट वोन्ट टू सी यू अगेन। मैं तुम्हें दुबारा मिलना नहीं चाहती।"
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