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Adultery चाहत... {completed}
#8
banana

पर मुझे कुछ ज्यादा करने की जरुरत नहीं पड़ी। बात अपने आप ही बनने लग रही थी। 

एक दिन तरुण घूमते घूमते मुझे मिलने आया। मैं उस दिन टीवी पर मेरा मन पसंद एक खास मैच देख रहा था। तब दीपा ने रसोई में से मुझे आवाज़ दी। वह मुझे ऊपर के शेल्फ से एक डिब्बा उतारने के लिए कह रही थी। मैंने तरुण से कहा की जाओ और दीपा की मदद करो, मैं टीवी देखने में व्यस्त था। यह सुनकर तरुण एकदम रसोई में पहुंचा तो देखा की दीपा को ऊपर के शेल्फ से एक आटे का भरा हुआ डिब्बा उतारना था।


तरुण ने दीपा से कहा, "भाभी आप हट जाओ। मैं दो मिनट में डिब्बा उतार दूंगा।"


दीपा ने जिद पर अड़े रहते हुए कहा, "क्यों? तुम क्यों उतारोगे? तुम्हारे भाई नहीं आ सकते क्या? यह उनका काम है।"


उसके बुलाने पर भी मैं रसोई में नहीं गया उस बात से दीपा चिढ़ी हुयी थी। उसके सर पर एक तरह का जूनून सवार था की या तो मैं जा कर उस डिब्बे को उतारूंगा या तो फिर वह स्वयं वह उतारेगी। किसी और (मतलब तरुण) की मदद नहीं लेगी। जब मैं नहीं पहुंचा तो तरुण ने देखा की दीपा खुद रसोई के प्लेटफार्म के ऊपर चढने की कोशिश करने लगी। प्लेटफार्म की ऊंचाई ज्यादा होने के कारण वह ऊपर चढ़ नहीं पा रही थी। दीपा ने अपना एक पॉंव ऊपर उठाया और प्लेटफार्म पर रखा तो उसकी साड़ी सरक कर कमर पर आ गयी और उसकी जांघें तरुण के सामने ही नंगी हो गईं।


तरुण की शक्ल उस समय देखने वाली थी। वह दीपा की खूबसूरत जाँघें देख भौंचक्का सा रह गया। उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी। जब दीपा ने तरुण के चेहरे के भाव देखे तो वह कुछ सकपका कर खड़ी हो गयी। उसने अपनी साडी ठीक की। तरुण ने अपने आप को सम्हाला और दुबारा दीपा को कहा, "भाभी, मुझे उतारने दो। मैं लम्बा हूँ और यह डिब्बा आसानी से उतार लूंगा।"


दीपा ने उसके जवाब में कहा, "देखो यह काम तुम्हारे भैया का है। या तो वही आकर उतारेंगे, या तो मैं खुद ऊपर चढ़ कर उसे उतारूंगी।"


तरुण ने कहा, "तो ठीक है भाभी आप ही डिब्बे को उतारिये। चलिए आप चढ़ जाइये प्लेटफार्म के ऊपर। मैं आपकी मदद करता हूँ।"


यह कह कर अचानक तरुण ने मौक़ा देख कर दीपा के जवाब का इंतजार किये बगैर दीपा के कन्धों को पकड़ कर दीपा को घुमा कर रसोई के प्लेटफार्म के सामने खड़ा किया, और खुद दीपा के पीछे हो गया। दीपा को उठाने के लिए तरुण ने काफी निचे झुक दीपा की साड़ी और घाघरा काफी ऊपर उठा कर दीपा की टाँगों के बिच अपने दोनों हाथ डाल दिए। मुझे पक्का यकीन था की उस समय दीपा की चूत को तरुण की बांहों ने जरूर छुआ होगा और रगड़ा भी होगा। फिर तरुण ने दीपा के कूल्हे में पीछे से अपना सर लगाया और दीपा को पीछे से बड़ी ताकत लगाकर ऊपर उठाया।


बाप रे, मुझे जब बाद में पता लगा तो मेरे लण्ड से जैसे पानी झरने लगा। पीछे जाते समय थोड़ी देर के लिए ही सही, पर उसने अपना लण्ड दीपा के कूल्हे में घुसेड़ कर उसे एकाध धक्का जरूर मारा होगा। एक बार अपना हाथ आगे कर दीपा के बूब्स उसने जरूर दबाये होंगे! दीपा की जाँघों को जकड़ कर अपने हाथ की उंगलियां जरूर दीपा की पैंटी के ऊपर से उसकी चूत में डाली होंगी। यह सब तरुण के लिए कितना रोमांचक होगा! उस समय तरुण का क्या हाल हुआ होगा यह समझना मुश्किल नहीं था। जरूर उसने काफी कुछ शरारत की होगी।


मैं आज भी उस दृश्य की कल्पना करता हूँ तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मेरी बीबी के पीछे उससे सटकर कैसे तरुण खड़ा होगा और उस समय उसका लण्ड कितना सख्त होगा और मेरी बीबी की खूबसूरत गाँड़ और चूत के नीचे कैसे उसने अपने दोनों हाथ डालें होंगें, पिछेसे कैसे धक्का दे रहा होगा यह तो मेरे लिए बड़ा उत्तेजना भरा सोचने का विषय था। वैसे भी इस बहाने उसने दीपा के स्तनों को तो जरूर दबाया होगा। तरुण दीपा के स्तनों पर फ़िदा था और जब भी उसे देखो तो उसकी नजर वहीं टिकी रहती थी।


दीपा तरुण की इस हरकत से भौंचक्की सी रह गयी और कुछ बोल नहीं पायी। वह प्लेटफार्म पर तो चढ़ गयी पर लड़खड़ाने लगी। डिब्बा भारी था। तरुण ने कस कर दीपा के पाँव पकडे और कहा, "दीपा भाभी संभल कर। गिरना मत।"


परन्तु दीपा डिब्बा निचे उतारते लड़खड़ाई और सीधी तरुण पर जा गिरी। तरुण और दीपा दोनों धड़ाम से निचे गिरे। निचे तरुण और उसके ऊपर दीपा। जब मैंने धमाके की आवाज़ सुनी तो भागता हुआ रसोई में गया और देखा की बड़ा रोमांटिक सीन चल रहा था। दीपा तरुण के उपर लेटी हुयी थी और तरुण दीपा को अपनी बाहों में लिए हुए दीपा के निचे दबा था।


आटे के डिब्बे का ढक्कन खुल गया था और दीपा और तरुण के पुरे बदन पर गेहूं का आटा फ़ैल गया था। डिब्बे के ढक्कन का एक कोना तरुण के कपाल पर लगा था और उसमें से खून रिस रहा था। दीपा के बदन को तरुण ने अपनी एक बाँह में घेर रखा था। दीपा की साडी और घाघरा दीपा की जाँघों के काफी ऊपर तक चढ़ा हुआ था और जाँघों को बिलकुल नंगी किये हुए था। ऐसा लग रहा था जैसे तरुण का लण्ड बिलकुल दीपा की चूत में घुसा हुआ था। तरुण दूसरे हाथ से मेरी बीबी के दोनों स्तनों को जकड़े हुए था और वह उन्हें धड़ल्ले से दबा रहा था। मैंने देखा की दीपा अपने आप को सम्हाल नहीं पा रही थी और तरुण को डर और हैरानगी से देख रही थी। दोनों के होठ एक दूसरे के इतने करीब थे की जैसे वह चुम्बन करने वाले थे। तरुण की आँख आटे से भरी हुई थी।


मेरी बीबी की प्यारी सुआकार गाँड़ तरुण के बिलकुल आधी नंगी दिख रही थी। दीपा की साड़ी और उस का घाघरा इतना उठा हुआ था की दीपा की सुडौल जाँघें यहां तक की उसकी पैंटी भी साफ़ साफ़ नजर आ रही थीं। तरुण के पुरे बदन पर आटा फैला हुआ था। दीपा भी आटे से पूरी तरह ढक चुकी थी।


न चाहते हुए भी मैं हंस पड़ा और ताली बजाते हुए बोला, "भाई वाह, क्या रोमांटिक सिन चल रहा है।"


तरुण और दीपा एकदम हड़बड़ाते हुए उठ खड़े हुए। दीपा ने अपनी साड़ी ठीक की और बोली, "मैंने तो तुम्हे बुलाया था। तुम्हे तुम्हारी मैच से फुर्सत कहाँ? तुमने अपने इस मित्र को भेज दिया और देखो क्या हुआ। देखो तुम्हारे दोस्त ने क्या किया? मेरी फजीहत हो गयी ना? और तुम हो की तालियां बजा रहे हो। मैं क्या करती?" दीपा के गाल शर्म के मारे लाल हो रहे थे। वह आगे कुछ बोल नहीं पायी।


तरुण अपनी आँखें मलते हुए बोला, "भाई, मुझे माफ़ कर दो। यह अचानक ही हो गया। मैंने दीपा भाभी को कहा की मैं डिब्बा उतार दूंगा। खैर मैं तो दीपा भाभी को बचाने की कोशिश कर रहा था। यह सब जान बुझ कर नहीं हुआ।"


मैंने मेरी बीबी का तरुण के प्रति कुछ और सहानुभूति बने इस इरादे से मैंने मेरी बीबी दीपा की और घूम कर उसे सख्त नज़रों से देख कर पूछा, "कमाल है! गलती तुम्हारी हुई और तुम दोष तरुण को दे रही हो? क्या यह सब उसने किया? क्या तरुण ने तुम्हें नहीं कहा की तुम ऊपर मत चढ़ो? क्या उसने वह डिब्बा खुद उतार देगा ऐसा तुम्हें नहीं कहा था?"


मेरी बेचारी बीबी मुझे दोषी सी खड़ी चुपचाप लाचार नज़रों से देखती रही। उसे शायद अपने कराये पर पछतावा हो रहा था। मैंने उसे और डाँटते हुए कहा, "तरुण ने बेचारे ने तो तुम्हें गिरने से बचाया। अगर तरुण तुम्हारे निचे ना होता तो तुम फर्श पर गिरती और तुम्हारी हड्डी भी टूट सकती थी। आज अगर तरुण ना होता तो मुझे अभी तुम को लेकर शायद हॉस्पिटल की और भागना पड़ता। देखो बेचारे को कितनी चोट आयी है? उसके सर से कितना खून बह रहा है? ऊपर से उसका सारा ड्रेस तुमने खराब कर दिया। अहसान मानने के बजाय तुम तरुण को दोषी करार दे रही हो?"


मुझे पता नहीं की मेरी बात सुनकर या वाकई में दर्द के कारण; अचानक तरुण ने एकदम कराहना चालू किया। मैंने देखा की तरुण का दाँया हाथ कोहनी के निचे से टेढ़ा हुआ दिख रहा था। तरुण उस हाथ को बाएं हाथ से पकड़ कर कराहने लगा। जब दीपा ने यह देखा तो एकदम डर गयी और तरुण के पास जाकर बोली, "तरुण क्या हुआ? तुम्हें ज्यादा चोट आयी है क्या? तुम ठीक तो हो?"


तरुण ने अपनी आटे से भरी हुई आँखों को मूंदे हुए रखते हुए अपना दायां हाथ आगे करते हुए कहा, "देखो ना दीपा, यह हाथ मूड़ गया है। मुझे वहाँ दर्द हो रहा है।"


दीपा ने जब तरुण का मुडा हुआ हाथ देखा तो उसकी जान हथेली में आ गयी। दीपा ने हड़बड़ाहट में मेरी और देख कर कहा, "दीपक चलो तरुण को कोई डॉक्टर के पास ले चलते हैं।"


डॉक्टर का नाम सुनकर तरुण एकदम चौकन्ना हो गया और बोला, "नहीं मैं ठीक हो जाऊँगा। थोड़ी चोट आयी है। बस दिक्कत यही है की मैं अपने हाथ अभी यूज़ नहीं कर पा रहा हूँ, इस लिए मैं खुद अपने कपडे और आँखें साफ़ नहीं कर सकता।"


मैंने देखा की मेरी बीबी की शकल रोने जैसी हो गयी। उसकी आँखें भर आयीं। मैंने फिर भी दीपा को अपना नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा, "ऐसा तुमने क्यों किया? सिर्फ इस लिए क्यूंकि मैं आ नहीं सका और मैंने मेरे बदले में तरुण को भेज दिया? अपनी गलती का ठीकरा किसी और के सर पर फोड़ना ठीक नहीं।"


मेरी प्यारी बीबी की आँखों में आँसूं भर आये। वह रोनी सी सूरत में बोली, "दीपक तुम ठीक कह रहे हो। यह मेरी ही जिद थी। मेरी जिद के कारण तरुण को चोट भी आयी और उसका ड्रेस भी खराब हो गया।"


फिर दीपा तरुण की और घूम कर बोली, "तरुण आई ऍम सॉरी। लाओ मैं तुम्हे साफ कर देती हूँ।" यह कह कर दीपा ने अपनी साडी का एक छोर ऊपर उठाया और तरुण के चेहरे पर लगा आटा साफ़ करने को तैयार हुई।


मैं मेरे मन के अंदर हँस पड़ा। अचानक मेरे मन में एक बात आयी। मैंने सोचा की अगर मैं चाहूँ तो तरुण को मेरी बीबी को छेड़ने का एक बढ़िया मौक़ा मिल सकता है। मैंने तरुण और दीपा को करीब लाने का एक सुनहरा अवसर देखा। मैंने दीपा को रोका और कहा, "तुम तरुण के कपड़ों को साफ़ करो, पर यहां नहीं। देखो तुमने तरुण के कपड़ों का क्या हाल किया है? वह ऑफिस जाने के लिए आया था। उसकी आँखें और मुंह आटे से ढका हुआ है। यहां तुम उसे साफ़ करोगी तो सारा आटा यहीं फ़ैल जाएगा। वह कुछ भी देख नहीं सकता है। तरुण का हाथ पकड़ कर उसे बाथरूम में ले जाओ और और वहाँ उसकी आँखें और कपडे साफ़ कर दो। उसके बाद उसके कपडे और आटे फैले हुए बाथरूम को धो देना। अब जो हो गया सो हो गया। तुम यह समझो की यही तुम्हारी सजा है। अब अगर तुम लोग मुझे इजाजत दो तो मैं वापस जा कर टीवी पर मैच देखूं। कितना बढ़िया मैच चल रहा था। तुम्हारे आटे के डिब्बे ने मेरे मैच की ऐसी की तैसी कर दी।"


सजा का नाम सुनते ही मेरी प्यारी बीबी ने अपना सर झुकाया और लाचार हो कर चुपचाप तरुण का हाथ पकड़ कर उसे बाथरूम की और ले जाने लगी। मैं ड्राइंग रूम की और चल पड़ा। पर उनके वहाँ से हटते ही मैं दरवाजे के पीछे छुप कर छुपता छुपाता उनके पीछे बाथरूम की और चला। तरुण अपना किरदार बखूबी निभा रहा था। शायद तरुण मेरी चाल भाँप गया था। जैसे उसे कुछ दिख ही नहीं रहा था ऐसे वह मेरी बीबी के हाथ को टटोल रहा था।


चलते हुए तरुण ने लड़खड़ाते हुए पीछे से मेरी बीबी की कमर पर अपने हाथ डाले और उसे पीछेसे खींच कर उसकी गाँड़ को अपने लण्ड से सटाते हुए बोला, "अरे भाभीजी, धीरे चलो ना। मुझे कुछ भी दिख नहीं रहा है।"


दीपा ने थम कर पीछे मुड़कर तरुण की और कुछ सख्ती से देखा। पर तरुण तो आँखें बंद कर जैसे कुछ देख ही नहीं पा रहा था वैसे खड़ा रहा।


दीपा ने असहायता दिखाते हुए अपने कंधे हिलाये और फिर चुपचाप तरुण का हाथ अपनी कमर पर ही रखे रहने देते हुए बाथरूम का दरवाजा खोल कर अंदर तरुण के साथ दाखिल हुई।


मैं फुर्ती से बढ़ा और थोड़े से खुले हुए दरवाजे के दो पल्ले के बिच की तिराड़ में से अंदर का सिन देखने लगा। बाथरूम की लाइट दीपा ने जला दी थी जिस कारण मैं उनको देख सकता था। बाथरूम के बाहर जहां मैं खड़ा था वहाँ ज्यादा प्रकाश नहीं था। दीपा हाथ में एक तौलिया लिए हुए बाथरूम के एक कोने में खड़ी हुई थी। छोटे से बाथरूम में खुद को तरुण के साथ खड़े हुए वह अपने आपको कम जगह में सम्हालने की कोशिश कर रही थी। दीपा की सुडौल गाँड़ साड़ी में छिपे हुए मेरी और थी। मैं उनको अच्छी तरह देख पा रहा था और क्यों की मैं अँधेरे में खड़ा था और वह दोनों एक दूसरे में इतने उलझे हुए थे की वह मुझे देख नहीं पा रहे थे।


तरुण मेरी बीबी दीपा के सामने सीधा खड़ा था। उसने अपनी आटे से भरी हुई आँखें बंद कर रखी थीं। उसने दीपा की कमर पर अपने हाथ रखे हुए थे जैसे की वह छोटी सी जगह में लड़खड़ाकर निचे गिरने से डर रहा हो। दोनों के बदन एक दूसरे से काफी सटे हुए थे।


चंद ही मिनटों पहले जब तरुण और दीपा फर्श पर गिर पड़े थे तब तरुण ने साडी के ऊपर से मेरी बीबी की चूत पर अपना लण्ड सटाया हुआ था और वह मेरी बीबी की चूँचियों से उच्छृंखलता ब्लाउज के ऊपर से उन्हें दबा कर मसल कर उनसे खेल रहा था। इस उत्तेजना के कारण उसके पतलून में उसका मोटा और लंबा लण्ड खड़ा हो कर फुंफकार रहा था।


मैंने बाथरूम के बाहर से ही तरुण के पतलून में उसका खड़ा लण्ड देखा जिसको वह मेरी बीबी की दो टांगों के बिच में घुसाने की कोशिश में जैसे लगा हुआ था। शायद मेरी बीबी ने भी उसे महसूस किया होगा। पर उस समय दीपा इतनी घबराई और बौखलाई हुई थी की शायद उसने उस पर ध्यान नहीं दिया।


तरुण के कपाल से थोड़ा खून निकल रहा था। दीपा ने तरुण से कहा, "आओ पहले मैं तुम्हारे वह घाव पर एन्टी सेप्टिक लगा देती हूँ।"


दीपा ने बाथरूम में रखे प्राथमिक दवाई के डिब्बे में से थोड़ी रुई निकाली और खुद चप्पल निकाल कर नहाने के लिए रखे छोटे से स्टूल पर चढ़ गयी ताकि तरुण के सर में लगे घाव को ठीक तरह से देख कर साफ़ कर उस पर दवाई लगा सके। दीपा रुई में एंटी सेप्टिक डालकर तरुण के सर पर लगाने लगी।


दीपा के स्टूल पर खड़े रह कर ऊपर उठने से और तरुण के थोड़े झुकने से दीपा के ब्लाउज में दो टीलों से मदमस्त स्तन बिलकुल तरुण के मुंह के सामने प्रस्तुत हो गए। दीपा के अल्लड स्तनों को उसके ब्लाउज में निकले हुए देख कर तरुण के लिए अपने आप पर नियत्रण रखना काफी कठिन साबित हो रहा होगा। हालांकि तरुण कुछ कुछ देख सकता था पर ऐसे ढोंग कर रहा था जैसे उसे कुछ भी दिखाई नहीं देता हो। दीपा जब तरुण के कपाल पर दवाई लगा रही थी तब तरुण दीपा की मस्त चूँचियाँ जो उसके मुंह के सामने थी उन्हें बड़ी लालच से घूर रहा था।


मौक़ा मिलते ही जैसे वह लड़खड़ा गया हो वैसे तरुण अचानक आगे झुका और निचे की और गिरने का बहाना कर वह दीपा की छाती पर अल्लड खड़े हुए स्तनों पर उसने अपने मुंह चिपका दिया। छोटे से स्टूल पर खड़ी दीपा तरुणके धक्के से लड़खड़ा गयी। दीपा सम्हले और कुछ विरोध करे उसके पहले उसने चूँचि को अपने मुंह में ले कर उसे चूसना शुरू किया। दीपा ने दीवार का सहारा लिया और उसके सपोर्ट से खड़ी रही। तरुण का मुंह दीपा की छाती पर चिपका हुआ था और तरुण दीपा की चूँचियों को ब्रा और ब्लाउज के ऊपर से बड़े प्यार और इत्मीनान के साथ चूस रहा था। तरुण के मुंह की लार दीपा के ब्लाउज को गीला कर रही थी।


कुछ पलों के लिए असावध दीपा भौंचक्की सी रह गयी। तरुण को दीपा की असावधानी और भौंचक्का रहने के कारण कुछ वक्त मिल गया उसमें उसने दीपा की एक चूँचि को ब्लाउज के ऊपर से अपने मुंह में लिया हुआ था जिसे वह प्यार से चबा रहा था।


दीपा जब तक अपने आपको सम्हाल पाए और यह समझ पाए की तरुण क्या कर रहा था तब तक तरुण मजे से दीपा की चूँचियों को चूसता रहा। जब दीपा सम्हली तो दीपा ने तरुण को धक्का मार कर पीछे हटाया और कहा, "तरुण, तुम क्या कर रहे हो? तुम पागल हो गए हो क्या?"


तरुण ने जैसे तैसे अपने आपको सम्हाला और जैसे उसे कुछ समझ ही ना आया हो वैसे बड़ा भोला भाला अनजान बनता हुआ बोला, "माफ़ करना भाभी, मैं ज़रा लड़खड़ा गया। अचानक मेरे मुंह में कुछ नरम नरम सा महसूस हुआ। शायद तुम्हारी साड़ी का एक छोर मेरे मुंह में चला गया। क्या हुआ?"


तरुण ने इतने भोले और सीधे सादे अंदाज में दीपा से यह कहा की मेरी बुद्धू बीबी दीपा ने राहत की साँस ली और सोचा की तरुण को यह पता नहीं चला की जो नरम नरम कपड़ा तरुण के मुंह में था वह दीपा का स्तन था। तरुण को पीछे धक्का मार कर दीपा ने कहा, "नहीं कुछ नहीं। चलो हटो और सीधे खड़े रहो।"


तरुण ने कहा, "सॉरी भाभी।"


दीपा ने तरुण की आँखों से गीले कपडे से आटा पोंछा और पूछा, "खैर कोई बात नहीं। तरुण, क्या अब तुम्हें दिख रहा है?"


तरुण ने अपनी आँखों को पोछते हुए बड़े ही भोले बनते हुए कहा, "मेरी आँखों में काफी आटा चला गया है और आँखें जल रहीं हैं। शायद देखने में थोड़ा वक्त लग सकता है। भाभी आप क्यों तकलीफ कर रहे हो? हालांकि मैं देख नहीं सकता पर फिर भी कोशिश करता हूँ की अपनी कमीज और पतलून को झुक कर साफ़ कर देता हूँ।"


ऐसा कह कर तरुण आगे झुकने का ढोंग करने लगा। दीपा ने तरुण का हाथ थाम कर कहा, "कैसे करोगे? तुम्हारा हाथ भी तो मुड़ गया है। मैं साफ़ कर देती हूँ।" यह कह कर दीपा ने अपने हाथ ऊपर उठा कर तरुण के कॉलर, गले और कमीज पर लगा आटा साफ़ किया। जब यह हो गया तो दीपा ने तरुण को कमीज उतारने को कहा। तरुण ने फ़ौरन अपनी आँखें बंद रखते हुए अपने हाथ ऊपर कर अपनी कमीज उतार दी और बनियान में हाथ ऊपर उठाये वह खड़ा हुआ था।


तरुण का चौड़ा सीना और उसके बाजुओं के शशक्त स्नायु दीपा को दिख रहे थे। दीपा ने तरुण की बाँहों में से आटा साफ़ किया। दीपा उस वक्त पहले से काफी रिलैक्स्ड लग रही थी। जाने अनजाने में ही दीपा ने तरुण के बाजुओं के शशक्त स्नायु पर हाथ फिरा कर उन्हें महसूस किया। तरुण के कसरती फुले हुए बाइसेप्स महसूस कर मेरी बीबी के चेहरे पर प्रशंसात्मक भाव को मैंने छुपकर देखा।


दीपा ने मुस्कराते हुए तरुण के बाजुओं के मसल्स को दबाते हुए कहा, "तरुण, लगता है तुम जिम जाकर अच्छी खासी कसरत करते हो। तुम्हारे बाजू काफी सख्त और फुले हुए हैं।"


तरुण ने मौक़ा देखते ही बोला, "हाँ भाभी कसरत तो करता हूँ। भाभी, एक प्राइवेट बात कहता हूँ। सिर्फ मेरी बाजू ही नहीं, मेरा और भी सब कुछ सख्त, फौलादी, लंबा और फुला हुआ मोटा है।"


दीपा तरुण की बात सुनकर बौखला गयी। वह समझ गयी की तरुण क्या कहना चाहता था। दीपा ने तरुण के बदन से हाथ हटा लिया तब तरुण ने सोचा कहीं दीपा नाराज हो कर वहाँ से चली ना जाए। उसने कहा, "भाभी, मेरा मतलब है, मेरी छाती, पेट, जांघें, सब सख्त और करारे हैं भाभीजी। मेरा कोई और मतलब नहीं था।"


दीपा समझ तो गयी थी की तरुण उसका लण्ड कितना बड़ा है यह दीपा को कहना चाहता था। पर शायद उस समय दिपा ज्यादा खिचखिच करने के मूड में नहीं थी सो उसने सेहमी आवाज में कहा, "ठीक है, अब ज्यादा बक बक मत करो और चुपचाप खड़े रहो।"


तरुण ने मन ही मन मुस्कराते हुए कहा, "सॉरी भाभी"


कंधा, बाजू और सीना साफ़ करने के बाद दीपा ने तरुण के बनियान को थोड़ा सा उठा कर उसकी कमर को तौलिये से साफ़ किया। मेरे मन में यह सोच कर कुछ अजीब से रोमांच के भाव उठे की उस समय दीपा के मन में क्या चल रहा होगा। जब तरुण ने महसूस किया की दीपा ने उसके बनियान के ऊपर से सफाई कर चुकी थी तब उसने फुर्ती से अपनी बाजुओं को उठा कर एक झटके में दीपा कुछ समझ पाए उसके पहले अपनी बनियान निकाल कर बाथरूम के एक कोने में फेंक दी।



तरुण उस समय ऊपर से नंगा हो चुका था। उसका चौड़ा सीना शायद वह दीपा को दिखाना चाहता था। तरुण की यह हरकत से दीपा थोड़ी चौंक गयी फिर अपने आपको सम्हालते हुए तरुण के चौड़े और घने काले बालों से भरे हुए सीने को देखने लगी। तरुण के सीने पर भी आटा चिपका हुआ था। दीपा ने तौलिया उठा कर तरुण का सीना साफ़ किया। जब दीपा तरुण के सीने पर उसकी निप्पलोँ के ऊपर पोंछ रही थी तब तरुण ने दीपा का हाथ पकड़ा।


जब तरुण ने उसका हाथ पकड़ा तो दीपा ने घबराहट में नजरें उठा कर तरुण की और देखा। तरुण अपनी आँखें बंद किये मंद मंद मुस्करा रहा था। दीपा को समझ नहीं आया की वह क्या करे। दीपा ने अपना हाथ पीछे खींचते हुए कुछ गभराहट वाले स्वर में धीमी आवाज में पूछा, "तरुण तुम क्या कर रहे हो?"


तरुण ने दीपा का हाथ और सख्ती से पकड़ कर दीपा को अपना हाथ वहाँ से हटा ने नहीं दिया और अपने सीने में अपनी छाती की निप्पलोँ पर दबाये हुए रखते हुए उतने ही धीमे स्वर में कहा, "भाभी मैं आपके कोमल हाथों को मेरे सीने पर महसूस करना चाहता हूँ। प्लीज उन्हें थोड़ी देर के लिए यहां रहने दो ना? मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।"


तरुण की हरकत से दीपा झल्ला उठी और हलके स्वर में बोली, "तुम्हें तो बहुत कुछ अच्छा लगता है।" फिर बिना अपना हाथ हटाए जैसे तरुण ने कहा था वैसे और कुछ नहीं बोलते हुए वहाँ बूत की तरह तरुण ने के नंगे सीने पर अपना हाथ रखते हुए वहीं खड़ी रही। कुछ देर ऐसे ही खड़े रहते हुए मुझे ऐसा लगा की बरबस ही दीपा की उंगलियां तरुण की छाती की निप्पलोँ को सहलाने लगीं। अचानक तरुण ने लपक कर दीपा की कमर में हाथ डाला और उसे एक झटके में अपनी और खींचा। तरुण ने झुक कर अपना पेंडू आगे धकेला और दीपा की कमर के निचे दीपा की दो टाँगों के बिच उसकी चूत के ऊपर अपना पतलून के अंदर खड़ा हुआ लण्ड घुसाने लगा।


तरुण की उस नयी हरकत से दीपा और परेशान हो गयी। वह तरुण को दूर धक्का मार कर उससे अलग होने की कोशिश करने लगी। साथ में धीमी आवाज में तरुण से कहने लगी, "बस करो, तरुण यह तुम क्या कर रहे हो?"


तरुण ने फिर ढोंग करते हुए कहा, "माफ़ करना भाभी, मैं फिसल रहा था। आप ने मुझे बचा लिया। आई ऍम रियली सॉरी भाभी।"


दीपा ने कहा, "हर बार कुछ ना कुछ हरकत करते हो और कह देते हो सॉरी। चलो, ठीक है तरुण, अब सीधे खड़े हो जाओ, मैं तुम्हारी पतलून पोंछ देती हूँ।"


तरुण ने पूछा, "पतलून पर भी आटा लगा हुआ है? कहाँ लगा है?"


दीपा ने हिचकिचाते हुए कहा, "हाँ, है थोड़ा आटा लगा हुआ है। वह.... क्या कहते हैं..... उन्ह..... यह.... तुम्हारे...... ओह..... टाँगों के...... बिच में.... "


तरुण ने आँखें बंद रखे हुए मुस्करा कर कहा, "अच्छा! ओह..... मेरे लण्ड के ऊपर?" फिर एकदम झुक कर, अपनी जीभ बाहर निकाल कर, अपने कान पकड़ कर और अपनेही गाल पर एक हलकी सी थप्पड़ मारते हुए दीपा को दो हाथ जोड़कर बोला, "सॉरी भाभी। गलत शब्द मुंह से निकल गए। मुझे माफ़ कर दीजिये। मेरा मतलब है मेरी दो टांगों के बिच में ना?"


दीपा झुंझलाती हुई बोली, "तरुण अब बस करो। तुम बहुत बक बक कर रहे हो। ठीक है, रुको मैं उसे भी पोंछ कर साफ़ कर देती हूँ।"


मैंने देखा की दीपा की झुंझलाहट देख तरुण मंद मंद मुस्कुरा रहा था। दीपा अपने काम में लगी हुई थी। मेरी बीबी तरुण से थोड़ा पीछे हटी और अपनी साड़ी और घाघरा को अपने घुटनोँ के ऊपर तक उठा कर अपनी दोनों टांगों को फैला कर दीपा वह छोटे स्टूल पर अपने सुडौल कूल्हे टिकाकर बैठ गयी। जाहिर था की तरुण का मोटा और लंबा लण्ड जो दीपा के इतने करीब आने से छड़ की तरह खड़ा हो गया था वह तरुण के पतलून में एक तम्बू की तरह बाहर की और निकला हुआ मुझे साफ़ दिखाई देता था तो दीपा को तो अपने बिलकुल करीब दिखाई पड़ना ही था। तरुण के छड़ की तरह खड़े हुए लण्ड को तरुण के पतलून में तम्बू बनाते हुए देख कर दीपा भौंचक्की सी देखती ही रही।


दीपा के बैठ जाने पर तरुण ने अपने पतलून का बेल्ट खोल दिया जिससे दीपा ऊपर के हिस्से की ठीक सफाई कर सके। दीपा ने एक हाथ से तरुण के पिछवाड़ा वाला हिस्सा तो जैसे तैसे साफ कर दिया।


दीपा का मुंह तरुण के पतलून में खड़े लण्ड के तम्बू के बिलकुल सामने था। तरुण की कमर के निचे से तौलिये से पोंछते हुए जब दीपा के हाथ की उंगलियां तरुण के खड़े हुए लण्ड के पास पहुंचीं तो दीपा रुक गयी। तरुण के खड़े हुए लंड के तम्बू के ऊपर भी काफी आटा लगा हुआ था। उसे दीपा को साफ़ करना था। मैं समझ सकता था की मेरी असमंजस में पड़ी हुई बीबी के जहन में कितना उथलपुथल चल रहा होगा। वह तरुण के खड़े हुए लण्ड से बने हुए तम्बू के ऊपर से अपनी उँगलियों से छुए बगैर उस को कैसे साफ़ करे।


तरुण के खड़े लंड से बने हुए तम्बू देख कर यह भली भाँती अंदाजा लगाया जा सकता था की तरुण का लण्ड काफी लंबा और मोटा होगा। दीपा कुछ देर तक भौंचक्की सी तरुण के पतलून में लम्बे लण्ड से बने हुए तम्बू को देखती रही। मैं अपनी साँसे रोक कर यह इंतजार करता रहा की मेरी भोली बीबी क्या करती है। दीपा तरुण के लण्ड को छूती है या नहीं?


कुछ देर सोचने के बाद दीपा ने शायद यह फैसला किया की जो काम उसे दिया गया है उसे पूरा तो करना ही पडेगा। मेरी बीबी ने कुछ सहमे हुए कुछ झिझकते हुए जहां तरुण के मोटे और लम्बे लण्ड ने तम्बू बनाया हुआ था वहाँ अपनी उंगलियां रखीं और काफी झिझक के साथ घबड़ाते हुए, दीपा ने तरुण के मोटे, लम्बे और छड़ के समान खड़े हुए लण्ड को सफाई का कपड़ा बिच में रखते हुए उसे अपनी हथेली में पकड़ा।


दीपा की उँगलियों को जैसे ही तरुण ने अपने लण्ड पर महसूस किया की एकदम तरुण के पुरे बदन में एक तेज सिहरन फ़ैल गयी और वह खड़े खड़े मचलने लगा। मैं यह देख कर हैरान रह गया की दीपा कुछ देर तक स्तब्ध सी बैठी हुए अपने हाथोंमें तरुण का तगड़ा लण्ड पकड़ कर खोयी सी कुछ सोचते हुए उसे अपनी हथेली में सहलाती रही। फिर जब अचानक उसे यह समझ आया की उसे तरुण का लण्ड पकडे हुए सहलाते हुए कुछ देर हो चुकी थी तब चौंक कर दीपा ने ऊपर देखा तो पाया की तरुण आँखें मूंदे खड़ा था। धीरे से दीपा ने तरुण के लण्ड को पकड़ रख कर उस के कारण बने हुए तम्बू के आसपास कपडे से सफाई की।

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