07-12-2019, 06:52 PM
तन्वी
Hi! मैं तन्वी(३५), मैं मुंबई के अंधेरी में मेरे बेटे नकुल(१८) के साथ एक फ्लैट में रहती हूं. मेरे पति सिंगापूर एयरलाइन्स में पायलट थे. जिनका २००२ में कार एक्सीडेंट से देहांत हो गया. हमनें लव मैंरिज किया था. और नकुल मेरे उस प्यार की निशानी है. जिसे मैं जान से भी ज्यादा चाहती हूँ. मैं उसे प्यार से स्वीटू बुलाती हूँ. उसकी फेवरिट एक्ट्रेस कटरीना कैफ है और हर बेटें की तरह उसे मैं कटरीना कैफ जैसी लगती हु! (हाहा)
नाम: तन्वी
उम्र: ३५ रंग: गोरा हाईट: ५'७" ; ३५"B २८" ३६"
बाल: ब्लैक (कंधो के थोड़े नीचें तक) आँखें: ब्राऊन
फिलहाल पेशे से मैं एक फिल्म प्रोड्युसर की पर्सनल सेक्रेटरी हूं. मुझे सजना-सवरना, घुमना, बातें करना, लोगोंकी मदद करना, नाचना, फिल्मेंदेखना, गाने सुनना, खुश रहना, कविता बनाना बहुत पसंद है.
२०१५ मई का आखरी हप्ता था, मुंबई में जबरदस्त गर्मी थी. मेरी बचपन की दोस्त लतिका की कुछ दिनों पहले शादी हुईं थी, उस समय मैं न्यूयार्क के 'फैशन वीक' में होने के कारण शादी में नहीं जा पाई. उसका पति झारखंड में काम करता है तो उन्होंने वहीं --पिठौरिया(पतरातू) के एक फार्महाऊस पर रिसेप्शन रखा था शादी में न जाने के कारण मुझे रिसेप्शन में तो जाना ही था. मैं मेरे बेटे नकुल के साथ जा रही थी. रात १२ बजे की ट्रेन थी. हम १० बजे हम दादर जंक्शन पहुँच गए. ट्रेन खड़ीं थी, हम हमारें एसी फर्स्ट क्लास कूपे कोच में बैठ गए. ११ बजे तक नकुल सो गया. थोड़ी देर बाद मैंने भी ड्रेस चेंज कर ली और मेरे बर्थ पर लेट गई.
मुझे सोते समय किताब पढनें की आदत है.
रात के ११:३० बजे होंगें.
मुझे २-३ बार लगा कि कोई हमारे कम्पार्टमेंट के बाहर खड़ा है. थोड़ी देर बाद मैंने दरवाजा खोला तो वहां एक ४०-४५ साल का एक आदमी खड़ा था. मैं उन्हें पहचानती थी.
"Excuse me...आप..? आपको मैं शायद जानती हूँ..? लेकिन आप यहाँ क्या कर रहे हों?"
"मेमसाब नमस्ते. मैं भोलानाथ. आपके अपार्टमेन्ट के सामने मेरा सब्जी का स्टाल है, आप हमेशा मेरी स्टाल पर सब्जी लेने आती हों." भोलानाथ हमारे घर के नजदीक सब्जी बेचनेवाला था.
"हां...याद आया!"
"माफ़ कीजिएगा मेमसाब अगर मेरी वजह से आपको कुछ परेशानी हुईं हो तो."
मैं: "अरे नहीँ, भोलानाथ. लेकिन आप यहाँ क्या कर रहें हों?"
भोलानाथ: "बरसात का मौसम शुरू होनेवाला हैं इसीलिए वापिस गाँव जा रहा हूँ. लेकिन मेरा पर्स चोरी हो गया जिसमें मेरा टिकट था अब मेरे पास टिकट नहीं है और टीटीई बाहर घूम रहा है इसीलिए मैं यहाँ चला आया, मेमसाब"
मैं: "इसका मतलब आप हमेशा के लिए मुंबई से जा रहें हैं? यानीं ये हमारी आखरी मुलाकात है..?"
"जी, मेमसाब"
"ओह..हमें आपकी याद आएगीं, भोलानाथ" J
तभी टीटीई और अटेंडेंट वहां आए. टीटीई ने भोलानाथ को अगले स्टेशन पर उतरने को कहा. वो भोलानाथ की बात बिल्कुल भी नहीं मान रहा थे. मुझें भोलानाथ पर तरस आ गया. वे एक शालीन और अच्छे इन्सान लगे. मैंने हमारें कम्पार्टमेंट में भोलानाथ को जगह देने की सोची. फिर मैंने टीटीई से बात की. मैं भोलानाथ जी के टिकट के पैसे दे रहीं थी. टीटीई ने मेरी बात मान ली.
टीटीई: "अगर आपकों कोई ऐतराज नहीँ है तो आप उन्हें अपनें कम्पार्टमेंट में जगह दे सकते है."
भोलानाथ: "बहोत, बहोत शुक्रिया मेमसाब..."
"अरे नहीँ शुक्रिया किस बात का. अब आप पतरातू तक हमारें साथ ही रहिए J."
रातभर मैं और नकुल अपनेअपने बर्थ पर और भोलानाथ नीचें चद्दर डालकर सो गए.
दुसरे दिन:
शाम ४ बजे: ट्रेन रांची से आगे निकल चुकीं थी. २-३ घंटो में पतरातू स्टेशन भी आनेवाला था तो मैं नहाने चली गई. जब वापिस कम्पार्टमेंट में आई तो वहां कोई नहीँ था. नकुल और भोलानाथ दोनों कम्पार्टमेंट के बाहर फ्रेश होने गए थे. तो मैं अपनें कपडें बदलने लगीं.
मैंने मेरी नाईटी उतारी ही थी कि भोलानाथने दरवाजा खोल दिया! मैं सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी!
उन्होंने ५-७ सेकंड्स मेरी पैंटी की तरफ देखा. मुझें इस अवस्था में देखकर हम दोनों थोडा वो हडबडा गए थे. तभी नकुल भी आ गया.
भोलानाथ: "माफ़ कीजिए, मेमसाब" भोलानाथने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया और नकुल को भी बाहर रुकने के लिए कहा. १-२ मिनट बाद मैंने नकुल को अंदर बुलाया.
"स्वीटू, २ मिनट अंदर आओगे?"
बाहर से भोलानाथ की आवाज आयी, "मेमसाब, वो अटेंडेंट के पास गया है"
मैंने लाल रंग की 'ऑफ़ शोल्डर एम्ब्रोयडेड ड्राप्ड' साड़ी और उसके साथ 'रैप अराउंड टाई' ब्रा पहननी थी लेकिन उसे पीछें से मुझें बांधना नहीं आ रहा था.
"ओह..अच्छा...भोलानाथ जी आप मेरी छोटी सी मदद करोगे, प्लीज?"
"जी बिल्कुल करेंगें"
"आप अंदर आ जाओ ना, प्लीज़. ये मेरी लेस बांध दो ना. मैं नकुल को बुला रहीं थी लेकिन वो यहाँ नहीँ है. आपको कोई दिक्कत तो नहीँ?"
"अरे, नहीं दिक्कत किस बात की? आप तो हमारी बेटी जैसी हों" उन्होंने मेरे सिर पर प्यार से हाथ रखकर कहा.
"ओ.. थैंक यु भोलानाथ जी..J")
"कोई बात नहीँ" उन्होंने मेरी ब्रा बांध दी. तभी बाहर नकुल आ गया. भोलानाथ जी वापिस बाहर चले गए.
नकुल: "मॉम, जल्दी करो! मुझे भी तैयार होना है."
अब हम रिसेप्शन में जाने के लिए तैयार थे. मैंने लाल रंग की 'ऑफ़ शोल्डर एम्ब्रोयडेड ड्राप्ड' साड़ी, 'रैप अराउंड टाई' ब्रा, लाल बैंगल्स, कानों में झुमके, पाव में पायल पहनीं हुईं थी. मैंट रेड लिपस्टिक, ब्लैक नेलपॉलिश और शनेल का चोकलेट फ्लेवर्ड सेंट लगाया था.
शाम ५:३० बजे हम पतरातू स्टेशन पर उतरे. यहाँ से भोलानाथ और हम अलग होनेवाले थे. मुझें थोडा बुरा लग रहा था.
"चलिए भोलानाथ जी, हमारा सफर यहीं खत्म होता है. थैंक यु पुरे सफर में हमारें साथ रहने के लिए. अगली बार मुंबई आओगे तो हमारें घर जरुर आना. J"
मुझें लोगोंसे जल्द लगाव हो जाता है. भोलानाथ भी शायद वैसे ही थे. वे हमें अपने घर ले जाने की जिद करने लगे.
भोलानाथ: "मेमसाब, आप फिर कब आओगी पतरातू? आज मौका है मैंने गाड़ी का भी इंतजाम कर रखा है. कृपया थोड़ी देर मेरे घर चलिए. बाद में मैं आपको पिठौरीयावाले फार्महाउस पर छोड़ दूंगा." हम मान गए.
प्लेटफार्मपर से हम गाड़ी की तरफ चल रहे थे. सभी लोग मेरी खूबसूरती को निहार रहे थे. हवा के झोंकेंसे कभी मेरी साड़ी से मेरी जांघे खुलीं हो रहीं थी. जिसे वहांके लोग घूरघुर कर देख रहें थे. लेकिन भोलानाथ की वजह से मुझे एकदम सेफ फील हो रहा था.
थोड़ी देर बाद एक विंगर आयी. उसमें पहले ही कुछ पसेंजर बैठे हुए थे. हम उसमें बैठकर निकल पड़े. वहांसे फार्महाउस तकरीबन २४ किमी दूर था.
शाम: ७ बजे: पतरातू शहर से दूर गाड़ी पिठौरिया घाटीमें थी तभी गाडी ब्रेकडाउन हुईं.
मैं: "क्या हुआ, ड्राइवर?"
ड्राइवर (अशोक): "मेमसाब, इसका चार्जिंग बेल्ट टूट गया शायद. आप घबराईये नहीं पीछें एक गैरेज है हम जाकर इसका बेल्ट ले आतें हैं. तबतक आप भोलानाथ जी के घर रूकिए"
भोलानाथ: "ठीक है. लेकिन जल्दी करो और गाड़ी सीधा मेरे घर ले आना" भोलानाथ का घर वहां से नजदीक था.
ड्राइवर (अशोक): "ठीक है भाईसाहब"
ड्राइवर (अशोक) नकुल को भी अपनें साथ ले गया.
साढ़े सात बज रहें थे, अंधेरा हो गया था इसीलिए मुझें थोड़ी चिंता हो रहीं थी.
भोलानाथ: "मेमसाब, आप चिंता मत कीजिए. मै आपको सहीसलामत और वक्त पर फार्महाउस पर पहुँचा दूंगा." भोलानाथ मुझे दिलासा देते हुए बोले.
भोलानाथ का घर मुख्य रास्तें से करीब २५० मीटर अंदर जंगल में था. वहां आसपास और कोई घर या पक्का रास्ता नहीं था और दोपहर की बारिश की वजह से कीचड़ जम भी गया था. इसीलिए भोलानाथ बोले "आप मेरा हाथ पकड़ लीजिए, आपका पैर गलत जगह पडकर कहीं आपकों मोच ना आ जाए."
मैंने अपना हाथ उनकें हाथ में थमा दिया.
भोलानाथ: "आपका हाथ बहुत ही कोमल है" हंसकर बोले. मैं शर्माकर नीचें देखतें हुए चल रहीं थी.
मैं: "आप का घर इतनी सुनसान जगह पर क्यों है?
भोलानाथ: "दरअसल, ये जमीन मुझें विरासत में मिली है."
हम उनकी हवेलीपर पहुंच गए. जैसे ही मैं अंदर गई भोलानाथ ने पीछें से मेरी ब्रा की गांठ खोल दी.
मैं चौक कर अपनी ब्रा सँभालने लगीं. "ये क्या कर रहें है आप?"
"देखो हमारे पास समय कम है जल्दी कपडें उतारों!" (मुझे लगा ट्रेन में मैंने इन्हें ब्रा की गांठ लगाने को कहा था, शायद वो इसे गलत समझ बैठें होंगें)
"क्या? देखो भोलानाथ तुम्हारीं कोई गलतफहमी हुईं है."
"गलतफहमी? अच्छा समझ गया, शर्मा रहीं हों."
भोलानाथने मुझे सामने से जकड़कर अपना लंड मेरी चूत से रगड़ने लगा. मैंने उसे दूर धकेल दिया.
मैं: "दूर हटो मुझसे!!! तुम जैसों को मैं मुंह क्या मेरी जूती भी न लगाऊ! अब जाने दो मुझे! ब्लडी इडियट!"
तभी वहां ड्राइवर (अशोक) और बाकी पसेंजर (जो कि असल में भोलानाथ के दोस्त थे!) भी आ गए. उन्होंने नकुल को सिर पर बंदुक रख दी और कहने लगे
ड्राइवर (अशोक): "जानेमन, उतार कपडें!"
मैं: "क्या? छोड़ो हमें, जाने दो.." अब मैं समझ गई थी कि हम इनकें जाल में फंस गए है.
भोलानाथ: "ये डायलोगबाजी बंद करो मेमसाब और काम पर लग जाओ जो आप मुंबई में करतीं हों." बाकि लोग: (हाहाहा)
मैं: "झूटे, मक्कार...शर्म नहीं आती तुम्हेँ ऐसी हरकतें करते समय? मुझें बेटी कहा था ना तुमनें?"
ड्राइवर (अशोक): "हां तो अपनें बाप की मान और अपनीं चूत चटवा दे बस्स!"
भोलानाथ: "एक बात याद रखना इसकी चूत में कोई नहीं झड़ेगा."
सभी एक स्वर में : "समझ गए"
ड्राइवर (अशोक)ने मेरे पैरों को खींचा और मुझे नीचें फर्श पर सुला दिया. एक आदमीने ने मेरे दोनों हाथ दबा दिए और बाकि दोनोँने मेरे पैर फैला दिए. फिर उसने मेरे कोमल चेहरे को अपनें सख्त हथेलीमें पकडकर कहा कि, "सुन विरोध करने से कुछ नहीं होगा, तेरी आवाज यहाँ किसीको सुनाई नहीँ देगी. इससे अच्छा मज़े कर और निकल लें! और अगर ज्यादा नाटक करेंगी तो तेरे साथ तेरे बेटे का काम यहीं तमाम!"
मैंने अपनी छटपटाहट कम कर दी. तभी भोलानाथ ने मेरी साड़ीनुमा ड्रेस जांघों तक ऊपर सरका कर हाथ फिराते हुए बोला- "वाह भोले, तेरी आज तो हमारी किस्मत चमक गई, कई बार तुम अपने बाथरुमसे बेडरुममें अधनंगी-टावल लपेटकर आती तो मैं नीचें से खुलीं खिड़की से वो सब देखता था. जब भी तुम लेग्गिंज, योगा पैंट, स्टोकिंग्ज पहनकर सब्जी लेने आती तब तेरी चूत मसलने की बहुत तमन्ना होतीं थी."
भोलानाथ ने मेरी पैंटी उतार फेकी. मेरी चिकनी चूत देखकर सभी के मुँहमें पानी आ गया.
ड्राइवर (अशोक): "वाह क्या कोमल और गुलाबी चूत है!"
भोलानाथ: "हां, लेकिन उसे बस मैं ही हाथ लगाऊंगा तुम में से कोई नहीं."
भोलानाथ का दोस्त (१): "वाह भैयाजी ये रांड तो दूध जैसी सफ़ेद है, एक बाल भी नहीं है मानो २०-२२ साल की बच्ची हों!"
भोलानाथ का दोस्त (२): मेरी गांड पर थप्पड़ मारते हुए "हा रे.. और गांड भी तो देख कितनी मुलायम और बड़ी है! शहर में टाईट चड्डीयां पहनकर लोगों को गांड दिखाकर तरसाती होंगीं. लगता है बहुत ऊँचे खानदान से है!"
भोलानाथ: "हां बहुत सुना था इसके बारे में वहां के बनियोंसे से! वाकई में तू बहुत खूबसूरत औरत है, एकड़म अप्सरा!" तुम लोग क्या देख रहे हों, जल्दी करों!"
दो मिनट में वो सब भी नंगे हो गए. मैं तो उन्हें असहायता देख रहीं थी. अशोकने मेरे बेटे नकुल को गन पॉइंट पे बिठा रखा था.
"सॉरी, माँ.." नकुल रोने लगा. उसे लगा कि वो मेरे बचावमें कुछ भी नहीं कर पा रहा है. उसने अपनी आंखें बंद करके गर्दन घुमा ली. बंदूक पकड़ें अशोकने उसे कहा कि, "ऐसी मेरी मां होती तो मैं हर दिन उसे चोदता! साले, आंखें खोलकर देख नहीं तो तेरी मम्मी गई समझले!" मैं कुछ नहीं कह पाई. मेरी आँखों में आँसू थे। नकुल देख पा रहा था कि उसकीं मम्मी ५ लोगोंमें अधनंगी लेटी हुईं है, उसकी चूत मस्त गुलाब की तरह खिली हुईं है जिसकें उपर टैटू बना हुआ है, नीचें एक भी बाल नहीं है,. उसके बारे में सोचकर मैं शर्म से पानी पानी हो रही थी.
भोलानाथ का दोस्त (१) मेरी जांघों के बीच हाथ फेर रहा था. मेरी मक्खन सी मुलायम त्वचा से वो बावला सा हो गया और बोला- "वाह मेरी रानी, क्या माल छुपा रखा है. हरदिन चूत के बाल साफ करती है क्या? आज तो तेरी चूत फाड़ डालेंगे!"
वो मेरी जांघे सहला रहा था, चाट रहा था. एक ने मेरी ब्रा उतार दी, फिर अशोक ने मेरा साडीनुमा ड्रेस टी शर्ट की तरह उतारकर फेंक दी. अब मैं ५ अनजान आदमियोंके बीच 'पूरी तरह से नंगी' हो चुकी थी!
उनके लन्ड देख कर मैं हैरान हो गयी क्योंकि इतने सारे लन्ड हकीकत में मैंने पहली बार एकसाथ देखें थे, उन्होंने अपनी झांटे भी साफ नहीं करवाए थें.
तभी भोलानाथ ने मुझे कहा, "चल कुतिया बन!"
मैंने रीएक्ट नहीँ किया.
मेरे बाल खींचकर "अरे मेरी रांड अब इसे देखती ही रहेगी क्या? बैठ जल्दी!" मैं घुटनों पर बैठकर कुतिया बन गई. "देख बेटा, तेरी 'मम्मा' को पता है कि कुतिया कैसे बनते है" (हाहाहा)
भोलानाथ: "अपने घुटनों पर बैठ. और इसे अपने मुँह में डाल और अच्छी तरह से चूस इसको!"
भोलानाथने मेरे बाल पकडकर मेरा मासुम चेहरा अपनीं दोनों जांघो के बीच फंसाया अपनीं गांड और लंड के बीच के बालों के जंगल में मेरा चेहरा रगड़ने लगा. "इसे सूंघ और चाट."
अब मैंने भोलानाथ के झांटो से भरे अकरोड़ और लन्ड चूसना चालू कर दिया।
भोलानाथ: "कैसी है मेरी गंध?"
मै: "ठीक है." मै गर्दन झुकाकर बोली.
भोलानाथ: "ठीक है? देख नकुल तेरी मम्मा क्या बोल रहीं है!) (हाहाहा)
"मेरी आँखों में देख"