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जमींदार का अत्याचार
#16
आज उतना अंधेरा तो ना हुआ था, पर ऊंचे गन्नों के बीच बहुत कम रौशनी आ रही थी। लेकिन ना तो सुमन का बदन मेरे हाथों के लिए अन्जान था, ना उसके हाथों के लिए मेरा बदन। मैं उसकी कुर्ती के पीछे के बटन खोल रहा था और सुमन मेरे शर्ट के बटन खोल चुकी थी। कुर्ती को उसके बदन से हटाने के बाद मैने सुमन के सलवार का नाड़ा खींचकर उसकी सलवार नीचे सरका दी, इतनी देर में वह मेरी पैंट को भी उतार चुकी थी और मेरे कच्छे को भी। मेरा लंड उसके हाथ में था और वह उसे जोर जोर से रगड़ कर खड़ा कर रही थी। सुमन ने एक टाइट पैंटी पहन रखी थी, मैने कोशिश की उसे उतारने की पर उसने इस तरह मेरी कमर पर अपने पैर बांध रखे थे की उसकी पैंटी ऐसे नहीं उतारी जा सकती थी।

मैने उसकी पैंटी बस इतनी सी खिसका भर दी की उसकी चूत में लंड डाल सकूं. ना मैं इंतजार करना चाहता था, ना सुमन।
उसने खुद ही मेरा आधा खड़ा लंड अपनी गीली चूत पर टिकाया और मेरी आखों में देखते हुए कहा, 'डाल'

मैंने वही किया जो करने का आदी था। अपनी पूरी ताकत से लंड सुमन की चूत में पेल दिया। गीली चूत में लंड बिना रोकटोक अंदर तक सरकता चला गया।
'आह्ह… हा हा हा' ये सुमन की दर्द और चुदास भरी हंसी थी। उसे मेरा लंड बहुत पसंद था, पर हम दोनो को मिलने का मौका इतना कम मिलता था की सुमन की चूत मेरे लंड के हिसाब से फैल ना सकी थी। महीनों में कभी एक बार हमारा नसीब, सलवार और पैंट साथ खुल पाते थे। इस पूरे साल भर के दौरान मैने सुमन को कुल मिलाकर नौ बार ही चोदा था। पिछली बार लगभग बीस दिन पहले किया था, तो हम दोनो ही भरे पड़े थे।

कुछ पल रुककर जब लगा की सुमन की चूत अब तैयार है, तो मैने धक्का मारना शुरु किया। हमेशा की तरह, पहले पांच छह धक्के सुमन के लिए तकलीफदेह थे, पर तुरंत ही उसने अपने दर्द पर काबू कर लिया और उसे मजा आने लगा। अब वह अपनी कमर उचक उचका कर मेरा साथ देने लगी। उसकी चूत की गर्मी और कसावट से मेरा लंड और ज्यादा कड़ा होने लगा।

इस बीच धक्के मारने की वजह से मेरा बैलेंस बिगड़ने लगा तो मैने उसे नीचे पटक दिया और उसके ऊपर लेट गया। मैं धक्के और जारी रखना चाहता था पर उसकी नंगी पीठ में कंकड़ गड़ रहे थे।

'रुक जरा' उसने कहा। मैं हटा तो वह बैठ गई> पीठ को मोड़कर हाथ से झारने की कोशिश करने लगी पर अपनी ही पीठ तक हाथ कैसे पहुंचते। मैने अपने हाथ उसकी नंगी पीठ पर फिराए और उसमें चिपके कंकड़ और सुखे तिनके साफ कर दिये। पर यहां ऐसे नहीं कर सकते थे, इसलिए मैने कहा, 'तेरा दुपट्टा बिछा दे' तो उसने कहा, 'मां ने कल ही धोकर सुखाया था, गंदा हुआ तो उन्हे शक हो जाएग। तेरी शर्ट बिछा दे।'

पहले हमेशा मैं गमछा या धोती बिछा दिया करता था पर आज सीधा खेत से आ रहा था तो मेरे पास सिवाय मेरी गंदी शर्ट के कुछ ना था। मैने वही जमीन पर बिछा दी, पर वो इतनी बड़ी ना थी की सुमन के पूरे बदन को उन कंकड़ तिनकों से बचा सके।

'एक काम कर' उसने कहा, 'आज तू नीचे लेट जा, मैं ऊपर से आती हूं"

"ठीक है, पर दर्द तो नहीं होगा तुझे?' मैने पूछा तो उसने कहा, 'इतना तो झेल लुंगी।'

क्रमशः
पढ़िये मेरी कहानी जमींदार का अत्याचार सिर्फ xossipy पर Namaskar  
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RE: जमींदार का अत्याचार - by haraami_aadmi - 05-12-2019, 05:23 PM



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