05-12-2019, 05:20 PM
मेड़ से होकर जाते हुए हमें गन्ने की क्यारियों के बीच एक पगडंडी मिल गई। सुमन आगे चलती रही और मैं पीछे पीछे। जब तक हम वहां पहुंचे, सूरज ढलने को गया था। लंबे हो चुके गन्नों के परछांई से अब खेत में अंधेरा सा होने लगा था। वैसे देखा जाए तो ये जगह बबूल की उन झाड़ियों से बेहतर थी जहां हम मिला करते थे।
जब हम उस जगह पर पहुंचे तो लगा की शायद खेत में काम करने वाले किसी लड़के ने ये जगह खास तौर पर चुदाई करने के लिए बनाई थी। रास्ता ऐसे घूम घूम कर था की हाथ भर की दूरी से भी यह जगह बिल्कुल नजर नहीं आती। वहां पहुंचते ही सुमन अपने उसी रंग में आ गई जिसकी मुझे आदत थी।
वह लपक कर मेरे ऊपर चढ़ गई और अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिये। मैंने उसे पकड़ पर गोद में उठा लिया। उसने अपने पैर मेरी कमर पर बांध लिये। हम दोनो पूरे कपड़ो में थे पर मेरा लंड उसकी चूत से टकरा कर फूलने लगा था। मैं जानता था की कपड़ों के भीतर उसकी चूत गीली हो चुकी होगी।
होंठ हम दोनो के जुड़े हुए थे। सुमन मुझे हमेशा इतनी जोर से चूमती की मानों मेरे होठों को निगल लेना चाहती हो। उसे मेरे साथ थोड़ी भी नरमी करना पसंद ना था, और वह चाहती थी की मैं उसके नाजुक बदन को भी मसलने में जरा भी नरमी ना करुं पर मैं ऐसा नहीं करता था। मुझे हमेशा यही डर लगा रहता था की अगर हम दोनो का ब्याह ना हो पाया और सुमन का पति उसे संतुष्ट ना कर पाया तो वह किसी से गलत संबंध के दलदल में गिरने से जरा भी नहीं हिचकेगी।
सुमन से पहली बार उसके खेत पर ही किया था, लगभग एक बरस पहले। खेत का पंप बिगड़ गया था, शहर से मैकेनिक बुलाना पड़ा था। मैं और बिल्लू उस मैकेनिक की मदद कर रहे थे, क्योंकि उस बूढ़े मैकेनिक के लिए भारी पंप को उठाना मुश्किल था। जब पंप बन गया तो बिल्लू और मैने उसे उसकी जगह पर रखकर जैसे ही आन किया, पंप की पाइप का पानी फव्वारे की तरह निकल पड़ा। पंप को खोलने लगाने में कहीं पाइप ढीला हो गया था। और पंप का पानी पड़ा किसके ऊपर? चाय लेकर आई सुमन के ऊपर। जबतक हम समझते, सुमन पानी से तर हो चुकी थी, और उस पाइप को ठीक से जोड़ने में मैं और बिल्लू भी पूरी तरह भीग गये थे। पर खेत पर एक भी ऐसा कपड़ा ना था जिससे अपना बदन पोंछ सकें इसलिए पैदल चलकर घर तक आना पड़ा। सुमन और बिल्लू आगे चल रहे थे, मैं पीछे। भीगे कपड़ों में सुमन के जिस्म का हर उभार, हर गहराई बिल्कुल साफ पता चल रही थी। पीछे चलते हुए मेरी नजर उसकी गोलाइयों पर टिक सी गई थी, जो हर कदम के साथ और दिलकश हुई जा रही थीं। मेरा शर्ट भी बिल्कुल मेरे जिस्म से चिपक गया था और सुमन को भी वह सब दिख रहा था जिसे वह देखना चाहती थी।
मठ के मोड़ तक आते आते हम दोनो के जिस्म एक दूसरे के लिए प्यासे हो चुके थे। हम दोनो की नजरें एक नहीं कई बार मिलीं और जिस जगह से मेरे और सुमन के घर के रास्ते अलग होते हैं, वहां तक आते आते जैसे एक मौन निमंत्रण भेजा और स्वीकार किया जा चुका था।
अगली सुबह सुमन मेरे घर खुद पैसे लेकर आई थी। उसके बाबा ने कल के काम का मेहनताना भेजा था। नोटों के बीच एक कागज भी था - जैसे आज मिला था रोटियों के बीच। तब रात के अंधेरे में सुमन अपने घर से चुपके से निकल कर बगेदू मामा के खेत से सटे तालाब के पास आई थी, जहां मैं पहले ही पहुंच चुका था। उस रात सुमन के आगोश में मैने जाना की क्यों बचपन में हमें डराया जाता था की रात में तालाब के पास चुड़ैल घूमती है। इस तरह गांव के जवान लड़के लड़कियां खुलकर मजे कर सकते थे, किसी के अचानक चले आने की फिक्र के बिना। खासकर बच्चों के, जो जानते कुछ नहीं पर बताते सबको हैं।
जब हम उस जगह पर पहुंचे तो लगा की शायद खेत में काम करने वाले किसी लड़के ने ये जगह खास तौर पर चुदाई करने के लिए बनाई थी। रास्ता ऐसे घूम घूम कर था की हाथ भर की दूरी से भी यह जगह बिल्कुल नजर नहीं आती। वहां पहुंचते ही सुमन अपने उसी रंग में आ गई जिसकी मुझे आदत थी।
वह लपक कर मेरे ऊपर चढ़ गई और अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिये। मैंने उसे पकड़ पर गोद में उठा लिया। उसने अपने पैर मेरी कमर पर बांध लिये। हम दोनो पूरे कपड़ो में थे पर मेरा लंड उसकी चूत से टकरा कर फूलने लगा था। मैं जानता था की कपड़ों के भीतर उसकी चूत गीली हो चुकी होगी।
होंठ हम दोनो के जुड़े हुए थे। सुमन मुझे हमेशा इतनी जोर से चूमती की मानों मेरे होठों को निगल लेना चाहती हो। उसे मेरे साथ थोड़ी भी नरमी करना पसंद ना था, और वह चाहती थी की मैं उसके नाजुक बदन को भी मसलने में जरा भी नरमी ना करुं पर मैं ऐसा नहीं करता था। मुझे हमेशा यही डर लगा रहता था की अगर हम दोनो का ब्याह ना हो पाया और सुमन का पति उसे संतुष्ट ना कर पाया तो वह किसी से गलत संबंध के दलदल में गिरने से जरा भी नहीं हिचकेगी।
सुमन से पहली बार उसके खेत पर ही किया था, लगभग एक बरस पहले। खेत का पंप बिगड़ गया था, शहर से मैकेनिक बुलाना पड़ा था। मैं और बिल्लू उस मैकेनिक की मदद कर रहे थे, क्योंकि उस बूढ़े मैकेनिक के लिए भारी पंप को उठाना मुश्किल था। जब पंप बन गया तो बिल्लू और मैने उसे उसकी जगह पर रखकर जैसे ही आन किया, पंप की पाइप का पानी फव्वारे की तरह निकल पड़ा। पंप को खोलने लगाने में कहीं पाइप ढीला हो गया था। और पंप का पानी पड़ा किसके ऊपर? चाय लेकर आई सुमन के ऊपर। जबतक हम समझते, सुमन पानी से तर हो चुकी थी, और उस पाइप को ठीक से जोड़ने में मैं और बिल्लू भी पूरी तरह भीग गये थे। पर खेत पर एक भी ऐसा कपड़ा ना था जिससे अपना बदन पोंछ सकें इसलिए पैदल चलकर घर तक आना पड़ा। सुमन और बिल्लू आगे चल रहे थे, मैं पीछे। भीगे कपड़ों में सुमन के जिस्म का हर उभार, हर गहराई बिल्कुल साफ पता चल रही थी। पीछे चलते हुए मेरी नजर उसकी गोलाइयों पर टिक सी गई थी, जो हर कदम के साथ और दिलकश हुई जा रही थीं। मेरा शर्ट भी बिल्कुल मेरे जिस्म से चिपक गया था और सुमन को भी वह सब दिख रहा था जिसे वह देखना चाहती थी।
मठ के मोड़ तक आते आते हम दोनो के जिस्म एक दूसरे के लिए प्यासे हो चुके थे। हम दोनो की नजरें एक नहीं कई बार मिलीं और जिस जगह से मेरे और सुमन के घर के रास्ते अलग होते हैं, वहां तक आते आते जैसे एक मौन निमंत्रण भेजा और स्वीकार किया जा चुका था।
अगली सुबह सुमन मेरे घर खुद पैसे लेकर आई थी। उसके बाबा ने कल के काम का मेहनताना भेजा था। नोटों के बीच एक कागज भी था - जैसे आज मिला था रोटियों के बीच। तब रात के अंधेरे में सुमन अपने घर से चुपके से निकल कर बगेदू मामा के खेत से सटे तालाब के पास आई थी, जहां मैं पहले ही पहुंच चुका था। उस रात सुमन के आगोश में मैने जाना की क्यों बचपन में हमें डराया जाता था की रात में तालाब के पास चुड़ैल घूमती है। इस तरह गांव के जवान लड़के लड़कियां खुलकर मजे कर सकते थे, किसी के अचानक चले आने की फिक्र के बिना। खासकर बच्चों के, जो जानते कुछ नहीं पर बताते सबको हैं।
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