05-12-2019, 05:13 PM
वही तो बात है यार' मैने उसे अपनी बाहों में भरते हुए कहा, 'जितना दहेज तुम्हारे बाबा ने तुम्हारे लिए रखा है, उतने में तो कोई अच्छा खासा खानदानी परिवार मिल जाएगा, शहरी लड़का मिल जाएगा। तेरा बाबा मुझे क्यों पसंद करेगा?'
'क्योंकि मैं तुमसे प्यार करती हूं" सुमन ने कहा, 'और मैं किसी और के पास नहीं जाने वाली, तुम खुद भी मारपीट के भगाओगे, तब भी नहीं" सुमन ने अब मुझे अपनी बाहों में भर लिया।
कितना अच्छा लगता है जब दिन भर की मेहनत के बाद ये नाजुक बाहें मिलती हैं, जैसे मखमल की चादर पर बिछे रजनीगंधा के फूल हों। काश की जिंदगी की हर धूप भरे दिन के बाद यही नाजुक बाहें मिलें शाम बिताने को… पर मुझे रुकना होगा… शायद किस्मत में ये ख्वाब ख्वाब रह जाना ही लिखा हो।
पर सुमन रुकना नहीं चाहती थी। वह मेरे सिर को अपनी गद्देदार छातियों पर दबा रही थी। मेरी सांसों में उसके बदन की खुश्बू भर रही थी। मै मदहोश हो रहा था और सुमन भी होश खोने को बेकरार थी। पर यहां नहीं... मठ में कभी भी, कोई भी आ सकता था, और बरगद की तरफ उसकी नजरें पड़ सकती थीं। अभी इतना अंधेरा ना हुआ था की किसी को कुछ नज़र ना आए और दो जवान लड़के लड़की की हरकतों पर तो हर किसी की नजर खुदब खुद पहुंच जाती है।
'यहां नही सुमन' मैने खुद को उससे परे हटाते हुए कहा। उसकी आखों में वह गुलाबीपन नजर आने लगा था जो मुझसे मिलने पर उसकी आखों में आता था।
"ठाकुरसाब के गन्ने के खेतों में चलें?' सुमन ने कहा। मठ से सबसे पास वही ऐसी जगह थी जहां हम आराम से सबकुछ कर सकते थे, बिना दिखे जाने के डर से। पर वो ठाकुरसाब की जमीन थी और मैं उस तरफ जाने से थोड़ा कतराता था।
'दो दिन पहले मोनी कलुआ के साथ वहीं करके आई। कह रही थी की एकदम मजेदार जगह है।' सुमन ने कहा। उसे उसकी सहेलियों से पता चल जाता है की कौन सी जगह ठीक है। मेरी मौन स्वीकृति पाकर सुमन आगे चल पड़ी। मैं भी उससे थोड़ी दूरी बनाकर आस पास देखते हुए चलने लगा। रास्ता लंबा ना था पर मै कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता था। कोई भी हमे साथ देख लेता तो बदनामी हो जाती।
'क्योंकि मैं तुमसे प्यार करती हूं" सुमन ने कहा, 'और मैं किसी और के पास नहीं जाने वाली, तुम खुद भी मारपीट के भगाओगे, तब भी नहीं" सुमन ने अब मुझे अपनी बाहों में भर लिया।
कितना अच्छा लगता है जब दिन भर की मेहनत के बाद ये नाजुक बाहें मिलती हैं, जैसे मखमल की चादर पर बिछे रजनीगंधा के फूल हों। काश की जिंदगी की हर धूप भरे दिन के बाद यही नाजुक बाहें मिलें शाम बिताने को… पर मुझे रुकना होगा… शायद किस्मत में ये ख्वाब ख्वाब रह जाना ही लिखा हो।
पर सुमन रुकना नहीं चाहती थी। वह मेरे सिर को अपनी गद्देदार छातियों पर दबा रही थी। मेरी सांसों में उसके बदन की खुश्बू भर रही थी। मै मदहोश हो रहा था और सुमन भी होश खोने को बेकरार थी। पर यहां नहीं... मठ में कभी भी, कोई भी आ सकता था, और बरगद की तरफ उसकी नजरें पड़ सकती थीं। अभी इतना अंधेरा ना हुआ था की किसी को कुछ नज़र ना आए और दो जवान लड़के लड़की की हरकतों पर तो हर किसी की नजर खुदब खुद पहुंच जाती है।
'यहां नही सुमन' मैने खुद को उससे परे हटाते हुए कहा। उसकी आखों में वह गुलाबीपन नजर आने लगा था जो मुझसे मिलने पर उसकी आखों में आता था।
"ठाकुरसाब के गन्ने के खेतों में चलें?' सुमन ने कहा। मठ से सबसे पास वही ऐसी जगह थी जहां हम आराम से सबकुछ कर सकते थे, बिना दिखे जाने के डर से। पर वो ठाकुरसाब की जमीन थी और मैं उस तरफ जाने से थोड़ा कतराता था।
'दो दिन पहले मोनी कलुआ के साथ वहीं करके आई। कह रही थी की एकदम मजेदार जगह है।' सुमन ने कहा। उसे उसकी सहेलियों से पता चल जाता है की कौन सी जगह ठीक है। मेरी मौन स्वीकृति पाकर सुमन आगे चल पड़ी। मैं भी उससे थोड़ी दूरी बनाकर आस पास देखते हुए चलने लगा। रास्ता लंबा ना था पर मै कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता था। कोई भी हमे साथ देख लेता तो बदनामी हो जाती।
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