23-01-2019, 11:01 PM
मेले में खोयी गुजरिया
![[Image: Teej-Y-anushkalaksh4.jpg]](https://i.ibb.co/TcwMrfF/Teej-Y-anushkalaksh4.jpg)
तब तक मैंने एक किताबों की दुकान देखी और रुक गयी ,
जमीन पर बिछा के , ढेर सारी ,
किस्सा तोता मैना , सारंगा सदाब्रिज , आल्हा , बेताल पच्चीसी ,सिंहासन बत्तीसी , शादी के गाने ,
मैं झुक के पन्ने पलट रही थी, पता ही नहीं चला कैसे टाइम गुजर रहा था , तब तक जोर से नितम्बो पे किसी ने चिकोटी काटी , और बोला तुम दोनों मिल के ये कौन सी किताब पढ़ रहे हो।
और मेरी निगाह बगल की ओर मुड़ गयी।
अजय हलके हलके मुस्कराता हुआ ,
और फिर मेरी निगाह उस किताब की ओर पड़ गयी, जिसकी ओर चंदा इशारा कर रही थी।
असली कोकशास्त्र , बड़ी साइज ,८४ आसन ,सचित्र।
![[Image: Kamsutra-images.jpg]](https://i.ibb.co/0CKhCGp/Kamsutra-images.jpg)
मैं गुलाल हो गयी , और अजय बदमाशी से मुस्करा रहा था।
" सही तो कह रही हूँ , साथ साथ पढ़ लो तो साथ साथ प्रैक्टिस करने में भी आसानी होगी। "
![[Image: armp-27.jpg]](https://i.ibb.co/3pBVTjt/armp-27.jpg)
मैं उसे मारने दौड़ी तो वो एक दो तीन , और मेले की भीड़ में गायब।
लेकिन मेरी पकड़ से कहाँ बाहर आती
आखिर पकड़ लिया , लेकिन उसी समय कामिनी भाभी और दो चार भाभियाँ मिल गयीं , और वो बच गयी।
बात बातें करते हम लोग मेले के दूसरी ओर पहुँच गए थे।
वहां एक बहुत संकरी गली सी थी , दुकानों के बीच में से। और मेला करीब करीब खत्म सा हो गया था वहां , पीछे उसके खूब घनी बाग़,
तभी मैंने देखा दो लड़कियां निकलीं , उसी संकरी गली में से , खिलखिलाती , खूब खुश और उसके पीछे थोड़ी देर बाद दो लड़के।
मैंने शक की निगाह से चंदा की ओर देखा तो उसने मुस्कराते हुए सर हिलाके हामी भरी।
फिर इधर उधर देख के फुसफुसाते हुए मेरे कान में कहा ,
" यही तो मेले का मजा है। अरे गन्ने के खेत के अलावा भी बहुत जगहें होती हैं ,उस के पीछे कुछ पुराने खँडहर है , जिधर कोई आता जाता नहीं है , सरपत और ऊँची ऊँची मेंडे फिर पीछे बाग़ और सीवान है। "
पूरबी चूड़ी की एक दूकान से इशारे कर के मुझे बुला रही थी , और मैं उसके पास चली गयी।
वहां कजरी भी थी और दोनों उस दूकान दार से खूब लसी थीं ,
मैं भी उन की छेड़छाड़ में शामिल हो गयी। वहां से फिर मैं चंदा को ढूंढने निकली , तो उस ओर पहुँच गयी जहां दुकानो के बीच की वो संकरी सी गली , एक एक करके कोई उसमें जा सकता था ,
तभी अचानक भगदड़ मची , खूब जोर की , कोई कहता लड़ाई हो गयी , कोई कहता सांप निकला।
सब लोगों की तरह मैं भी भागी , और भीड़ के एक रेले के धक्के के साथ मैं भी ,
कुछ देर में जब मैं रुकी तो मैंने देखा की मैं उसी संकरी गली के अंदर हूँ.
,
मैं आगे बढती रही , वह आगे इतनी संकरी होगयी थी की तिरछे हो के ही निकला जा सकता था ,रगड़ते दरेरते।
मैं अंदर घुस गयी , और थोड़ी देर बाद एक दम खुली जगह , ज्यादा नहीं , १००- २०० फीट।
उसमें कुछ पुराने अध टूटे कमरे , और खूब ऊँची मेड जिस पे सरपत लगी थी और उस के पार वो घनी बाग़।
बाहर से एक बार फिर मेले का शोर सुनाई देने लगा था।
मैं एकदम अकेली थी वहां।
आसमान में काले बादल भी घिर आये थे , काफी अँधेरा हो गया था।
और जब मैं वापस निकलने लगी तो , रास्ता बंद।
दो मोटे तगड़े मुस्टंडे , उस संकरे रास्ते को रोक के खड़े थे।
मेरी तो घिघ्घी बंध गयी।
अगर मैं चिल्लाऊं तो भी वहां कोई सुनने वाला नहीं थी।
उन में से एक आगे बढ़ने लगा , और मैं पीछे हटने लगी।
दूसरा रास्ता घेरे खड़ा था।
मैं आलमोस्ट उस खँडहर के पास पहुँच गयी।
वह कुछ बोल नहीं रहे थे पर उनका इरादा साफ था और मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी।
" तेरी सोन चिरैया तो आज लूटी , कोई चाहने वाला लूटता पहली फुहार का मजा लेकिन यहाँ ये दो ,"
कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
तबतक एकदम फिल्मी हीरो की तरह , अजय
और पहली बार मैंने नोटिस किया , उसकी चौड़ी छाती , खूब बनी हुयी मसल्स ,कसरती देह , ताकत छलक रही थी।
और अब उसके आगे तो दोनों जमूरे एकदम पिद्दी लग रहे थे।
उसने उन दोनों को नोटिस ही नहीं किया , और सीधे आके मेरा हाथ पकड़ के बोला ,
" अरे हम सब लोग तुमको ढूंढ रहे हैं , चलो न "
मैंने अपना सर उसके सीने पे रख दिया।
![[Image: Teej-Y-anushkalaksh4.jpg]](https://i.ibb.co/TcwMrfF/Teej-Y-anushkalaksh4.jpg)
तब तक मैंने एक किताबों की दुकान देखी और रुक गयी ,
जमीन पर बिछा के , ढेर सारी ,
किस्सा तोता मैना , सारंगा सदाब्रिज , आल्हा , बेताल पच्चीसी ,सिंहासन बत्तीसी , शादी के गाने ,
मैं झुक के पन्ने पलट रही थी, पता ही नहीं चला कैसे टाइम गुजर रहा था , तब तक जोर से नितम्बो पे किसी ने चिकोटी काटी , और बोला तुम दोनों मिल के ये कौन सी किताब पढ़ रहे हो।
और मेरी निगाह बगल की ओर मुड़ गयी।
अजय हलके हलके मुस्कराता हुआ ,
और फिर मेरी निगाह उस किताब की ओर पड़ गयी, जिसकी ओर चंदा इशारा कर रही थी।
असली कोकशास्त्र , बड़ी साइज ,८४ आसन ,सचित्र।
![[Image: Kamsutra-images.jpg]](https://i.ibb.co/0CKhCGp/Kamsutra-images.jpg)
मैं गुलाल हो गयी , और अजय बदमाशी से मुस्करा रहा था।
" सही तो कह रही हूँ , साथ साथ पढ़ लो तो साथ साथ प्रैक्टिस करने में भी आसानी होगी। "
![[Image: armp-27.jpg]](https://i.ibb.co/3pBVTjt/armp-27.jpg)
मैं उसे मारने दौड़ी तो वो एक दो तीन , और मेले की भीड़ में गायब।
लेकिन मेरी पकड़ से कहाँ बाहर आती
आखिर पकड़ लिया , लेकिन उसी समय कामिनी भाभी और दो चार भाभियाँ मिल गयीं , और वो बच गयी।
बात बातें करते हम लोग मेले के दूसरी ओर पहुँच गए थे।
वहां एक बहुत संकरी गली सी थी , दुकानों के बीच में से। और मेला करीब करीब खत्म सा हो गया था वहां , पीछे उसके खूब घनी बाग़,
तभी मैंने देखा दो लड़कियां निकलीं , उसी संकरी गली में से , खिलखिलाती , खूब खुश और उसके पीछे थोड़ी देर बाद दो लड़के।
मैंने शक की निगाह से चंदा की ओर देखा तो उसने मुस्कराते हुए सर हिलाके हामी भरी।
फिर इधर उधर देख के फुसफुसाते हुए मेरे कान में कहा ,
" यही तो मेले का मजा है। अरे गन्ने के खेत के अलावा भी बहुत जगहें होती हैं ,उस के पीछे कुछ पुराने खँडहर है , जिधर कोई आता जाता नहीं है , सरपत और ऊँची ऊँची मेंडे फिर पीछे बाग़ और सीवान है। "
पूरबी चूड़ी की एक दूकान से इशारे कर के मुझे बुला रही थी , और मैं उसके पास चली गयी।
वहां कजरी भी थी और दोनों उस दूकान दार से खूब लसी थीं ,
मैं भी उन की छेड़छाड़ में शामिल हो गयी। वहां से फिर मैं चंदा को ढूंढने निकली , तो उस ओर पहुँच गयी जहां दुकानो के बीच की वो संकरी सी गली , एक एक करके कोई उसमें जा सकता था ,
तभी अचानक भगदड़ मची , खूब जोर की , कोई कहता लड़ाई हो गयी , कोई कहता सांप निकला।
सब लोगों की तरह मैं भी भागी , और भीड़ के एक रेले के धक्के के साथ मैं भी ,
कुछ देर में जब मैं रुकी तो मैंने देखा की मैं उसी संकरी गली के अंदर हूँ.
,
मैं आगे बढती रही , वह आगे इतनी संकरी होगयी थी की तिरछे हो के ही निकला जा सकता था ,रगड़ते दरेरते।
मैं अंदर घुस गयी , और थोड़ी देर बाद एक दम खुली जगह , ज्यादा नहीं , १००- २०० फीट।
उसमें कुछ पुराने अध टूटे कमरे , और खूब ऊँची मेड जिस पे सरपत लगी थी और उस के पार वो घनी बाग़।
बाहर से एक बार फिर मेले का शोर सुनाई देने लगा था।
मैं एकदम अकेली थी वहां।
आसमान में काले बादल भी घिर आये थे , काफी अँधेरा हो गया था।
और जब मैं वापस निकलने लगी तो , रास्ता बंद।
दो मोटे तगड़े मुस्टंडे , उस संकरे रास्ते को रोक के खड़े थे।
मेरी तो घिघ्घी बंध गयी।
अगर मैं चिल्लाऊं तो भी वहां कोई सुनने वाला नहीं थी।
उन में से एक आगे बढ़ने लगा , और मैं पीछे हटने लगी।
दूसरा रास्ता घेरे खड़ा था।
मैं आलमोस्ट उस खँडहर के पास पहुँच गयी।
वह कुछ बोल नहीं रहे थे पर उनका इरादा साफ था और मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी।
" तेरी सोन चिरैया तो आज लूटी , कोई चाहने वाला लूटता पहली फुहार का मजा लेकिन यहाँ ये दो ,"
कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
तबतक एकदम फिल्मी हीरो की तरह , अजय
और पहली बार मैंने नोटिस किया , उसकी चौड़ी छाती , खूब बनी हुयी मसल्स ,कसरती देह , ताकत छलक रही थी।
और अब उसके आगे तो दोनों जमूरे एकदम पिद्दी लग रहे थे।
उसने उन दोनों को नोटिस ही नहीं किया , और सीधे आके मेरा हाथ पकड़ के बोला ,
" अरे हम सब लोग तुमको ढूंढ रहे हैं , चलो न "
मैंने अपना सर उसके सीने पे रख दिया।