23-01-2019, 10:14 PM
अध्याय ८
छाया मौसी सो चुकी थी| उनके बदन पर सिर्फ उनके जंघीए के सिवाय एक भी कपड़ा नहीं था... बाल भी खुले और अस्त व्यस्त थे... पर उनको ऐसे चैन की नींद सोते हुए देख कर न जाने क्यों मेरे मन को भी थोड़ी शांति से मिल रही थी...
लेकिन इधर शायद मेरा अपना शरीर मेरे काबू से बाहर हो रहा था मैं एक अजीब से आवेश में आकर के अब थोड़ा-थोड़ा कांपने लगी थी मेरा पूरा बदन पसीने से तर हो चुका था... मेरी आंखों की पुतलियां बड़ी बड़ी सी हो चुकी थी…
माँठाकुराइन मुझे देखते हुए शराब पी रही थी... फिर उन्होंने मुझसे कहा, “ले माया... जो बची खुची शराब है, इसको गटक जा...”, यह कहकर उन्होंने अपना जूठा गिलास मेरी तरफ बताया बढ़ाया...
मैंने तुरंत उनके हाथ से गिलास लिया और एक ही घूंट में बचा खुचा शराब पी गई... शायद मैं यह सोच रही थी की उनका दिया हुआ शराब पीने से शायद मेरे मन और मेरे बदन को थोड़ी शांति मिलेगी... लेकिन नही... मैं उठकर बाहर जाने लगी…
“कहां जा रही है?”, माँठाकुराइन ने मुझ से पूछा|
मैंने कहा, “थोड़ा बाहर जा रही थी...”
“क्यों?”
“मुझे बहुत जोर की पिशाब लगी है...”
“ठीक है, चल मैं तेरे साथ चलती हूं, तू नंगी है... तेरे बाल भी खुले हुए हैं; ऐसी हालत में तेरा अकेले बाहर जाना ठीक नहीं|”
यह कहकर माँठाकुराइन ने मेरे बालों को समेट कर मेरी गर्दन के पास अपने बाँये हाथ की मुठ्ठी मे एक पोनी टेल जैसे गुच्छे में करके पकड़ कर बड़े जतन के साथ मुझे कमरे से बाहर ले गई|
पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे बालों को इस तरह से पकड़कर माँठाकुराइन यह जताना चाहती है कि अब उसका मेरे ऊपर पूरा पूरा अधिकार है, वह जो चाहे मेरे साथ कर सकती है.... तबतक बारिश रुक चुकी थी ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी और उन हवाओं ने मानो मेरे बदन में कामना की इच्छा की आग को और भी भड़का दिया|
गुसलखाने में जब मैं पेशाब करने बैठी तब माँठाकुराइन ने मेरे बालों को सिरों के पास से अपने हाथों से उठाकर पकड़ के रखा था ताकि वह जमीन पर ना लगे| फिर वह बोली, “शर्मा मत लड़की, मूत दे… मैं तुझे मूतते हुए देखना चाहती हूं”
माँठाकुराइन जो कहा मैंने वही किया| उसके बाद मैंने अपने गुप्तांग को धोया और फिर खुटे से टाँगे गमछे से उसको पोछा फिर माँठाकुराइन ने वैसे ही मेरे बालों को मेरे बालों को गर्दन के पास पोनी टेल जैसे गुच्छे में पकड़कर मुझे दूसरे कमरे में ले गई|
मैं बहुत बेचैनी सी महसूस कर रही थी| इसलिए मैंने खुद ने उनसे पूछा, “माँठाकुराइन, आप मुझसे अपना मालिश नहीं करवाएँगी?”
कम से कम इसी बहाने मैं किसी गैर औरत के बदन को तो छू तो पाऊंगी... नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि उन को छूने से मेरे अंदर जो एक यौन कामना की आग भड़क रही है, वह शायद थोड़ी सी शांत होगी…
“हाँ री… नंगी लड़की मैं जरूर करवाउंगी... जरा मेरे पास तो आ मेरे”, यह कहकर माँठाकुराइन ने मेरे चेहरे को अपनी हथेली में लेकर मेरे होंटो को चूमा...मेरे पूरे बदन में मानो बिजली से तो दौड गई... एक पल के लिए मुझे बड़ा अजीब सा लगा... लेकिन मेरा मन मेरा बदन दोनों को ही जरूरत थी प्यार की बारिश की...
माँठाकुराइन ने मुझसे कहा “जा लड़की उस कमरे से मेरा लोटा लेकर आ| उसमें मेरा बनाया हुआ तेल है... आज अच्छी तरह से मालिश करवाऊंगी मैं तेरे से... बड़े दिन हो गए अपने आप को थोड़ा खुश किए हुए, अच्छा हुआ मुझे आज तुझ जैसी सुंदर सी जवान लड़की मिल गई…”
जब मैं तेल का लोटा लेने उस कमरे में जहां छाया मौसी सो रही थी... मैंने देखा कि वह आराम से चैन की नींद सो रही है और हर जब मैं लोटा लेकर वापस माँठाकुराइन के कमरे में आआी तो मैने देखा उन्होने अपनी साड़ी उतार दी थी और खुद ब खुद एक चटाई बिछा कर उस पर बिल्कुल नंगी बैठी हुई थी, बस उन्होंने अपनी यौनंग को कपड़े से ढक रखा था|
मुझे लोटा लेकर आती देखकर वह चटाई के लिए गई मैं भी जाकर उनके पास बैठकर फिर मैंने धीरे-धीरे उनके पैरों की उंगलियों पर मालिश करना शुरू किया न जाने क्यों मेरे मन में बार-बार यह बात घूम रही थी कि उनके शरीर की अच्छी तारह से मालिश करूँ| यह उनके किए ह जादू टोने कस असर था या फिर मेरी उत्सुकता... मालूम नही.. पे मैंने उनकी पैरों की उंगलियों से शुरू करके उनके तलवे, पैर, घुटने जांघों, कमर, छाती और फिर हाथों की मालिश करने लग गई...
और जब मैं उनके स्तानो पर हाथ फेरने लगी तब मैंने फिर से महसूस किया कि मेरे अंदर यौन उत्तेजना बढ़ती जा रही है...
इतने में माँठाकुराइन मेरे पर स्तनों को दबा दबा कर देख रही थी… मेरे खुले बालों को सहला रही थी… कभी कबार वह मेरे कुल्हों पर भी हाथ फेर रही थी… मानो मुझे प्यार कर रही हो… मुझे बहुत अच्छा लग रहा था|
फिर उन्होंने मुझसे कहा “चल लड़की मेरे ऊपर लेट जा अपने दुद्दयों से मेरे दुद्दयों को रगड़...”
मैं वैसा ही करने लगी... मैं उनके ऊपर लेट कर अपने स्तनों से उनके स्तनों को रगड़ने लगी दाएं बाएं दाएं बाएं… लेकिन अब माँठाकुराइन बेलगाम मुझे चूमने चाटने लगी…
मुझे इस तरह से प्यार करने के कुछ देर बाद उन्हें मुझसे से कहा, “मालिश करवाना तो एक बहाना था... जब से मैंने तुझे देखा है, मेरे अंदर एक प्यास सी भड़क रही है… अब मुझसे रहा नहीं जा रहा मुझे प्यास बुझा लेने दे...”, यह कहकर माँठाकुराइन ने मेरे चेहरे को अपनी हथेली में लेकर मेरे होंटो को चूमा... एक पल के लिए मुझे बड़ा अजीब सा लगा... लेकिन मेरा बदन को प्यार की बारिश की जरूरत थी...
मेरे मन में फिर ख्याल आया इस बार मैनें बोल ही दिया, “माँठाकुराइन काश इस वक्त आप औरत नहीं होती….”
“हा… हा… हा…”, यह सुनकर माँठाकुराइन हंस पड़ी और अपने सूखे होंठ उन्होंने अपनी जीभ से चाटा मानो वह मुझे चूमने के बाद उनके होठों पर लगा हुआ मेरा स्वाद चख रही थी... पता नहीं; लेकिन अब, इतनी देर बाद मैंने गौर किया कि उनकी जीभ बीच में से कटी हुई थी और दो भागों में बटी हुई थी बिल्कुल साँप के जीभ की तरह…
क्रमश:
छाया मौसी सो चुकी थी| उनके बदन पर सिर्फ उनके जंघीए के सिवाय एक भी कपड़ा नहीं था... बाल भी खुले और अस्त व्यस्त थे... पर उनको ऐसे चैन की नींद सोते हुए देख कर न जाने क्यों मेरे मन को भी थोड़ी शांति से मिल रही थी...
लेकिन इधर शायद मेरा अपना शरीर मेरे काबू से बाहर हो रहा था मैं एक अजीब से आवेश में आकर के अब थोड़ा-थोड़ा कांपने लगी थी मेरा पूरा बदन पसीने से तर हो चुका था... मेरी आंखों की पुतलियां बड़ी बड़ी सी हो चुकी थी…
माँठाकुराइन मुझे देखते हुए शराब पी रही थी... फिर उन्होंने मुझसे कहा, “ले माया... जो बची खुची शराब है, इसको गटक जा...”, यह कहकर उन्होंने अपना जूठा गिलास मेरी तरफ बताया बढ़ाया...
मैंने तुरंत उनके हाथ से गिलास लिया और एक ही घूंट में बचा खुचा शराब पी गई... शायद मैं यह सोच रही थी की उनका दिया हुआ शराब पीने से शायद मेरे मन और मेरे बदन को थोड़ी शांति मिलेगी... लेकिन नही... मैं उठकर बाहर जाने लगी…
“कहां जा रही है?”, माँठाकुराइन ने मुझ से पूछा|
मैंने कहा, “थोड़ा बाहर जा रही थी...”
“क्यों?”
“मुझे बहुत जोर की पिशाब लगी है...”
“ठीक है, चल मैं तेरे साथ चलती हूं, तू नंगी है... तेरे बाल भी खुले हुए हैं; ऐसी हालत में तेरा अकेले बाहर जाना ठीक नहीं|”
यह कहकर माँठाकुराइन ने मेरे बालों को समेट कर मेरी गर्दन के पास अपने बाँये हाथ की मुठ्ठी मे एक पोनी टेल जैसे गुच्छे में करके पकड़ कर बड़े जतन के साथ मुझे कमरे से बाहर ले गई|
पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे बालों को इस तरह से पकड़कर माँठाकुराइन यह जताना चाहती है कि अब उसका मेरे ऊपर पूरा पूरा अधिकार है, वह जो चाहे मेरे साथ कर सकती है.... तबतक बारिश रुक चुकी थी ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी और उन हवाओं ने मानो मेरे बदन में कामना की इच्छा की आग को और भी भड़का दिया|
गुसलखाने में जब मैं पेशाब करने बैठी तब माँठाकुराइन ने मेरे बालों को सिरों के पास से अपने हाथों से उठाकर पकड़ के रखा था ताकि वह जमीन पर ना लगे| फिर वह बोली, “शर्मा मत लड़की, मूत दे… मैं तुझे मूतते हुए देखना चाहती हूं”
माँठाकुराइन जो कहा मैंने वही किया| उसके बाद मैंने अपने गुप्तांग को धोया और फिर खुटे से टाँगे गमछे से उसको पोछा फिर माँठाकुराइन ने वैसे ही मेरे बालों को मेरे बालों को गर्दन के पास पोनी टेल जैसे गुच्छे में पकड़कर मुझे दूसरे कमरे में ले गई|
मैं बहुत बेचैनी सी महसूस कर रही थी| इसलिए मैंने खुद ने उनसे पूछा, “माँठाकुराइन, आप मुझसे अपना मालिश नहीं करवाएँगी?”
कम से कम इसी बहाने मैं किसी गैर औरत के बदन को तो छू तो पाऊंगी... नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि उन को छूने से मेरे अंदर जो एक यौन कामना की आग भड़क रही है, वह शायद थोड़ी सी शांत होगी…
“हाँ री… नंगी लड़की मैं जरूर करवाउंगी... जरा मेरे पास तो आ मेरे”, यह कहकर माँठाकुराइन ने मेरे चेहरे को अपनी हथेली में लेकर मेरे होंटो को चूमा...मेरे पूरे बदन में मानो बिजली से तो दौड गई... एक पल के लिए मुझे बड़ा अजीब सा लगा... लेकिन मेरा मन मेरा बदन दोनों को ही जरूरत थी प्यार की बारिश की...
माँठाकुराइन ने मुझसे कहा “जा लड़की उस कमरे से मेरा लोटा लेकर आ| उसमें मेरा बनाया हुआ तेल है... आज अच्छी तरह से मालिश करवाऊंगी मैं तेरे से... बड़े दिन हो गए अपने आप को थोड़ा खुश किए हुए, अच्छा हुआ मुझे आज तुझ जैसी सुंदर सी जवान लड़की मिल गई…”
जब मैं तेल का लोटा लेने उस कमरे में जहां छाया मौसी सो रही थी... मैंने देखा कि वह आराम से चैन की नींद सो रही है और हर जब मैं लोटा लेकर वापस माँठाकुराइन के कमरे में आआी तो मैने देखा उन्होने अपनी साड़ी उतार दी थी और खुद ब खुद एक चटाई बिछा कर उस पर बिल्कुल नंगी बैठी हुई थी, बस उन्होंने अपनी यौनंग को कपड़े से ढक रखा था|
मुझे लोटा लेकर आती देखकर वह चटाई के लिए गई मैं भी जाकर उनके पास बैठकर फिर मैंने धीरे-धीरे उनके पैरों की उंगलियों पर मालिश करना शुरू किया न जाने क्यों मेरे मन में बार-बार यह बात घूम रही थी कि उनके शरीर की अच्छी तारह से मालिश करूँ| यह उनके किए ह जादू टोने कस असर था या फिर मेरी उत्सुकता... मालूम नही.. पे मैंने उनकी पैरों की उंगलियों से शुरू करके उनके तलवे, पैर, घुटने जांघों, कमर, छाती और फिर हाथों की मालिश करने लग गई...
और जब मैं उनके स्तानो पर हाथ फेरने लगी तब मैंने फिर से महसूस किया कि मेरे अंदर यौन उत्तेजना बढ़ती जा रही है...
इतने में माँठाकुराइन मेरे पर स्तनों को दबा दबा कर देख रही थी… मेरे खुले बालों को सहला रही थी… कभी कबार वह मेरे कुल्हों पर भी हाथ फेर रही थी… मानो मुझे प्यार कर रही हो… मुझे बहुत अच्छा लग रहा था|
फिर उन्होंने मुझसे कहा “चल लड़की मेरे ऊपर लेट जा अपने दुद्दयों से मेरे दुद्दयों को रगड़...”
मैं वैसा ही करने लगी... मैं उनके ऊपर लेट कर अपने स्तनों से उनके स्तनों को रगड़ने लगी दाएं बाएं दाएं बाएं… लेकिन अब माँठाकुराइन बेलगाम मुझे चूमने चाटने लगी…
मुझे इस तरह से प्यार करने के कुछ देर बाद उन्हें मुझसे से कहा, “मालिश करवाना तो एक बहाना था... जब से मैंने तुझे देखा है, मेरे अंदर एक प्यास सी भड़क रही है… अब मुझसे रहा नहीं जा रहा मुझे प्यास बुझा लेने दे...”, यह कहकर माँठाकुराइन ने मेरे चेहरे को अपनी हथेली में लेकर मेरे होंटो को चूमा... एक पल के लिए मुझे बड़ा अजीब सा लगा... लेकिन मेरा बदन को प्यार की बारिश की जरूरत थी...
मेरे मन में फिर ख्याल आया इस बार मैनें बोल ही दिया, “माँठाकुराइन काश इस वक्त आप औरत नहीं होती….”
“हा… हा… हा…”, यह सुनकर माँठाकुराइन हंस पड़ी और अपने सूखे होंठ उन्होंने अपनी जीभ से चाटा मानो वह मुझे चूमने के बाद उनके होठों पर लगा हुआ मेरा स्वाद चख रही थी... पता नहीं; लेकिन अब, इतनी देर बाद मैंने गौर किया कि उनकी जीभ बीच में से कटी हुई थी और दो भागों में बटी हुई थी बिल्कुल साँप के जीभ की तरह…
क्रमश:
*Stories-Index* New Story: উওমণ্ডলীর লৌন্ডিয়া