23-01-2019, 08:35 PM
टूटी सील छुटकी ननदिया की
इसी बीच मैं अपने भाई के कमरे की ओर भी एक चक्कर लगा आई थी. उसकी और मेरी छोटी ननद के बीच होली जबर्दस्त चल रही थी.
मेरी छुटकी ननदिया , वही जो अभी दसवें में गयी थी , झांटे भी बस आयी ही थीं , ... नीचे और मेरा ममेरा भाई ऊपर ,
असली वाली होली चल रही थी ,
मेरी उस कच्ची कली ननदिया की दोनों टाँगे मेरे ममेरे भाई के कंधे पर , मेरे भइया के दोनों हाथ मेरी ननद के जस्ट आ रही छोटी छोटी चूँचियों पर ,
और कस के हचक के धक्का मारा मेरे भइया ने ,
उईईईईई ननदिया बेचारी जोर से चीखी , लेकिन इस होली के हंगामें में कुछ सुनाई पड़ता क्या ,
दूसरे मेरे भाई ने अपने होंठों के बीच उसके होंठों को कस के , अगला धक्का और कस के मारा ,
दो बूँद खून की ननद की कुँवारी कच्ची चूत के ऊपर चुहचूहा आयी , सील मेरे सैंया की बहन की मेरे भइया ने फाड़ दी थी।
वो सिसक रही थी , सुबक रही थी और मेरा भाई धक्के पर धक्का , कुछ ही देर तक जड़ तक
और अब ननद रानी को भी मजा आ रहा था , और वो भी छोटे लौंडा छाप चूतड़ उठा उठा कर
उसकी पिचकारी मेरी ननद ने पूरी घोंट ली थी. चींख भी रही थी, सिसक भी रही थी, लेकिन उसे छोड़ भी नहीं रही थी.
तब तक गाँव की औरतों के आने की आहट पाकर मैं चली आई.
जब बाकी औरतें चली गई तो भी एक-दो मेरे जो रिश्ते की जेठानी लगती थीं, रुक गईं.
हम सब बातें कर रहे थे तभी छोटी ननद की किस्मत...
वो कमरे से निकल के सीधे हमीं लोगों की ओर आ गई. गाल पे रंग के साथ-साथ हल्के-हल्के दांत के निशान, टांगे फैली-फैली...
चेहरे पर मस्ती, लग रहा था पहली चुदाई के बाद कोई कुंवारी आ रही है| जैसे कोई हिरनी शिकारियों के बीच आ जाए वही हालत उसकी थी.
वो बिदकी और मुड़ी तो मेरी दोनों जेठानियों ने उसे खदेड़ा और जब वो सामने की ओर आई तो वहाँ मैं थी.
मैंने उसे एक झटके में दबोच लिया. वो मेरी बाहों में छटपटाने लगी, तब तक पीछे से दोनों जेठानियों ने पकड़ लिया और बोलीं,
"हे, कहाँ से चुदा के आ रही है?"
दूसरी ने गाल पे रंग मलते हुए कहा,
“चल, अब भौजाईयों से चुदा| एक-एक पे तीन-तीन...”
और एक झटके में उसकी ब्लाउज फाड़ के खींच दी. जो जोबन झटके से बाहर निकले वो अब मेरी मुट्ठी में कैद थे.
“अरे तीन-तीन नहीं चार-चार...”
तब तक मेरी जेठानी भी आ गई| हँस के वो बोली और उसको पूरी नंगी करके कहा,
“अरे होली ननद से खेलनी है, उसके कपड़ों से थोड़े हीं|”
फिर क्या था, थोड़ी हीं देर में वो नीचे और मैं ऊपर| रंग, पेंट, वार्निश और कीचड़ कोई चीज़ हम लोगों ने नही छोड़ी| लेकिन ये तो शुरुआत थी.
मैं अब सीधे उसके ऊपर चढ़ गई और अपनी प्यासी चूत उसके किशोर, गुलाबी, रसीले होंठों पे रगड़ने लगी.
वो भी कम चुदक्कड़ नहीं थी, चाटने और चूसने में उसे भी मज़ा आ रहा था. उसके जीभ की नोंक
मेरे क्लिट को छेड़ती हुई मेरे पेशाब के छेद को छू गई और मेरे पूरे बदन में सुरसुरी मच गई.
मुझे वैसे भी बहुत कस के 'लगी' थी, सुबह से पांच छः ग्लास शरबत पी के और फिर सुबह से की भी नहीं थी.