03-12-2019, 04:00 PM
लगभग पूरा चाँद पीछे निकल आया था। सलेटी बादलों के कतरे सामने टँगे थे और दृष्टि की राह में एक लंबा पेड़ था, पने कभी थिरकते, कभी काँपते। एक रजामंद उम्मीद का भाव तैरता सा लगा। मैंने ढेर गहरी साँस ली, पंजों को बरबस खींचा और पेशियों को कसा। ऐसा लालच कि मैं शरीर के हर तंतु, हर स्नायु को महसूस करना चाह रहा था।
तभी, एक आभा प्रेत की तरह, अज्ञात सीढ़ियों से एक छाया छत पर प्रकट हुई।
तभी, एक आभा प्रेत की तरह, अज्ञात सीढ़ियों से एक छाया छत पर प्रकट हुई।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.