02-12-2019, 04:21 PM
(This post was last modified: 09-02-2021, 05:36 PM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
अपने ही पुत्र के इस तरह के देखने से उसके भी बदन में झुनझुनी उठने लगती थी ,पर वह स्वयं को भी सयंत करने का भरसक प्रयास करती थी। साथ में पुरुष के होने का अहसास उसके तन बदन में रोमांच और सनसनाहट से अभिसिक्त कर देता थायद्यपि वह उसका ही जाया था।
वह अपने पुत्र के भरपूर शरीर की छवि निहार कर प्रायःमन में उठने वाले वर्जित विचारो से संघर्षरत रहती थी और इस तरह के वर्जित विचार न उठे इसका भपूर प्रयास करती थी विशेषकर जब वह नहाकर आता था। तब उसका दमकता हुआ बदन उसे अपने पति की जवानी के छवि को आमूर्त कर देता था और तब उसके मन के मचलते अरमान उसे अन्दर तक झंकृत कर ही देते थे और तब उसको अपने मन के विचलित होने पर विषाद होता था और वह किसी तरह से अपनी इस मनःस्थिति से किसी तरह निकल पाती थी।
स्थिति तब और कठिन हो जाती थी जब नहाने तैरने या मछली मारते समय उसका अंग दिख जाता था तब उसकी चूत में चींटिया घूमती हुई मालूम पड़ती थी और इससे छुटकारा पाने के लिये उसे रात के अँधेरे का ही एकमात्र सहारा होता था और तब उसका मन उसे धिक्कारता था माँ होके भी वह इस तरह कैसे विचलित हो जाती है।
किन्तु अब यह वर्जित इच्छाए दिन पर दिन छुप कर चुपचाप अपना आकार बढ़ा रही थी। और उसके पुत्र का उसके प्रति आकर्षण सामने आ गया जब वह नहा रही थी और उसका वक्षस्थल सूरज की किरणों से दैदीप्यमान था ।
वह अपने पुत्र के भरपूर शरीर की छवि निहार कर प्रायःमन में उठने वाले वर्जित विचारो से संघर्षरत रहती थी और इस तरह के वर्जित विचार न उठे इसका भपूर प्रयास करती थी विशेषकर जब वह नहाकर आता था। तब उसका दमकता हुआ बदन उसे अपने पति की जवानी के छवि को आमूर्त कर देता था और तब उसके मन के मचलते अरमान उसे अन्दर तक झंकृत कर ही देते थे और तब उसको अपने मन के विचलित होने पर विषाद होता था और वह किसी तरह से अपनी इस मनःस्थिति से किसी तरह निकल पाती थी।
स्थिति तब और कठिन हो जाती थी जब नहाने तैरने या मछली मारते समय उसका अंग दिख जाता था तब उसकी चूत में चींटिया घूमती हुई मालूम पड़ती थी और इससे छुटकारा पाने के लिये उसे रात के अँधेरे का ही एकमात्र सहारा होता था और तब उसका मन उसे धिक्कारता था माँ होके भी वह इस तरह कैसे विचलित हो जाती है।
किन्तु अब यह वर्जित इच्छाए दिन पर दिन छुप कर चुपचाप अपना आकार बढ़ा रही थी। और उसके पुत्र का उसके प्रति आकर्षण सामने आ गया जब वह नहा रही थी और उसका वक्षस्थल सूरज की किरणों से दैदीप्यमान था ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.