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चारु की चड्डी और अन्य कहानियाँ
#26
चारु से मेरी मुलाक़ात इंजीन्यरिंग कॉलेज के पहले ही दिन हो गयी थी. हुमारे बक्थ के सही स्टूडेंट्स को registration करना था, ID कार्ड इत्यादि लेना था. मैं उसी लिने मे खड़ा था. मेरे आगे 3-4 लड़कियों का ग्रुप खड़ा था. बातों से लग रहा था किसी दूसरे ब्रांच की थी. बीच बीच मे धक्का आ रहा था लेकिन मैं किसी तरह दीवार का सहारा ले रहा था जिससे कि सामने की लड़की पर न गिर जाऊन. उस समय तक मैं आज जितना हारामी नहीं हुआ था ! काफी शरीफ ही था.

उस ग्रुप मे से 3 लड़कियों ने रजिस्ट्रेशन करवा लिया, बस एक ही बच गयी थी जिसके पास पेन नहीं था. मैंने सोचा फर्जी मे लेट करने से अच्छहा है अपना पेन इसको दे दूँ जिससे कि इसका काम भी हो जाये और मेरा नंबर भी जल्दी से आए.
छोटे हाएट कि बंदी थी. उसकी शक्ल से ही लग रहा था कि ये और लड़कियों से थोड़ी अलग है. उसमे कॉलेज के फले दिन वाली झिझक या लड़कियों वाली बिना मतलब वाली शरम नहीं थी. पेन लेकर उसने फटाफट अपना काम निपटाया और मेरा नंबर आ गया.
मुझे बाद मे realise हुआ कि वो मेरा पेन लौटना भूल गयी है. मेरे पास और पेन था इसलिए मैंने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया. सब कुछ निपटा कर मैं कैंटीन मे बैठा हुआ था. चाय पी रहा था और जीवन के इस नए अध्याय के बारे मे सोच रहा था. तभी कानों मे एक खनकदार आवाज़ आई – तेरा पेन लौटाना भूल गयी थी.
देखा मुड़कर देखा तो वही लड़की पेन मेरी तरफ बढ़ाकर हल्का मुस्कुरा रही थी.
मैंने पेन लिया.
“थैंक यू” उसने कहा और बगल मे ही कुर्सी पर बैठ गयी.
मैं ठहरा छोटे शहर का लड़का मैं थोड़ा संकुचित हो गया.
“क्यू भई, तेरी भी लड़कियों से बात करने मे फटती है क्या?”
मैं हंसा. मेरी वास्तव मे फट तो रही थी लेकिन मैं दिखाना नहीं चाहता था.
“जी, नहीं. वो बात नहीं है...”
वो ज़ोर से हंस दी. “अबे जी बोलना अपनी बीवी को, मुझे तो बस चारु बुला.”
तभी कैंटीन मे दुर्गेश आता हुआ दिखाई दिया. दुर्गेश लोकल बंदा था और मुझे पहले से जानता था. इस कॉलेज मे एड्मिशन लेने का एक reason इस कॉलेज मे दुर्गेश का होना भी था. दुर्गेश मेरा बचपन का दोस्त था। मुँहफट गुंडा किस्म का था लेकिन दिल का बड़ा ही साफ था. इसी शहर मे उसके परिवार का बड़ा रसूख था, बहुत बड़े industrialist फॅमिली से था वो.
वो शायद चारु से पहले ही मिल चुका था.
“अब, तू यहाँ क्या कर रही है. ये बहुत शरीफ लड़का है, तेरी टाइप का नहीं है” वो कुर्सी लेकर बैठता हुआ चारु को बोला.
“हाँ भोंसडीके सबसे बड़ा शरीफ तो तू ही है ना जो पहले ही दिन लकड़ी कि चूत मे घुसना चाह रहा था.” चारु ने बड़े अनायास बोला.
मैं बुरी तरह चौंका. जहां से मैं था वहाँ लड़कियों को बात करते ही कम सुना था, गाली देना तो सपने मे भी नहीं सोच सकता था. चारु ने शायद मेराव रिएक्शन देख लिया था.
फिर हंस पड़ी – देख इसकी तो सुन के ही फट रही है.
दुर्गेश बोला “अबे टेरेको ये कहाँ से मिल गयी.?”
“अरे लाइन मे आगे खड़ी थी पेन नहीं था तो मैंने दे दिया, लौटाने आई थी.” मैंने कहा.
“क्यूँ दे दिया यार” दुर्गेश ने मज़ाक मे कहा “साली नहीं आती कॉलेज मे तो ही ठीक था. इसकी रूममेट कि जगह इसी को चोदना चाहिए था. क्यूँ है न ?” दुर्गेश ने चारु से कहा.
“अबे रीतू को तू नहीं जानता, चुदवाना भी है फिर सबको बताना भी है” चारु ने कहा.
मुझे समझ मे आया कि दुर्गेश ने चारु कि roomamte के साथ कर लिया है. इन मामलों मे वो काफी तेज़ था !
“चल आज तेरे साथ कर लेता हूँ” दुर्गेश ने मज़ाक मे कहा. “बता ?? चलेगी कार मे?”
मैं उठ गया. “तुम लोग continue करो मैं लाइब्ररी जा रहा हूँ”
दोनों हंस दिये.

***

चारु कि बात सोचते सोचते मैं रूम के बाल्कनी मे आ गया था. नीचे से अभी भी नंगा ही था. ढलते शाम कि हवा लण्ड को हल्के हल्के सहला रही थी. 17वीं मंज़िल मे मुझे देखे जाने का डर नहीं था. मैंने लण्ड को हल्के से सहलाया. और ऊंचे बिल्डिंग की छत पर मैंने क्या क्या किया था उन सबको याद करने लगा. लाल कलर की panty, सूडोल गांड, छोटे छोटे बूब्स मेरी आँखों के सामने कौंध गए. अनायास ही लण्ड सख्त होने लगा.
 
 
 
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RE: चारु की चड्डी और अन्य कहानियाँ - by savitasharma - 02-12-2019, 03:26 PM



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