29-11-2019, 10:13 AM
मैंने उसका सर पकड़ा और अपनी ओर झुकाकर धीरे धीरे जांघें बंद कर लीं। वह कुछ कहना चाहता था मगर सामने आते चित्र को देखकर चुप रहा। एक क्षण के लिए मेरे भगों पर उसके मुँह का दबाव महसूस हुआ और मैंने जांघें अलग कर लीं। उसने जरूर समझा होगा कि मैं उसे चाटने को बोल रही हूँ लेकिन मैंने उसका चेहरा हटा दिया तो वह मुझे सवालिया निगाह से देखने लगा।
मैंने आइना उठाकर उसके सामने कर दिया, देखकर वह मुस्कुरा पड़ा, कच्चे गीले रंग से उसके दोनों गालों पर उभर आए थे स्वस्तिक और कलश के निशान।
“शुभ दीपावली” मैंने कलाकार को कहा।
“वेरी वेरी हैपी दीपावली!” उसने खुश होते हुए कहा। वह घुमा घुमाकर अपने चेहरे को आइने में देख रहा था- तुम भी किसी कलाकार से कम नहीं हो!
“मैं भी इसे दो एक दिन तक ऐसे ही रखूँगा.”
“अजीब नहीं लगेगा? लोग क्या कहेंगे?”
उसने मेरी आँखों में देखा और ना में सर हिलाया।
मैं उसके गाल पकड़कर उसकी आँखों में देखने लगी। मुझे कैसा तो महसूस हुआ। उसे देखते देखते ही मैंने आँखें मूंद लीं। पीछे लद गयी और पुनः सिर पीछे टिका लिया। सिर पीछे करते ही योनिस्थल कुछ और आगे बढ़ गया।
कुछ ही क्षणों में मुझे वहाँ पर गर्म साँस का स्पर्श महसूस हुआ।
आश्चर्य! उसका सिर तो बहुत पहले से मेरी पुसी के करीब था। लेकिन सांस पर मेरा ध्यान अब गया था।
और अगले क्षण ही ठीक होंठों की फाँक में एक छुअन। बेहद हल्की, बेहद सरसरी तौर पर। लेकिन उतने में ही मेरी जाँघें थरथरा सी गईं। मुझे लगा, मेरी योनि की ‘पलकें’ खुल गई हैं जबकि आँखों की पलकें बंद हैं।
खुली पलकों के भीतरी किनारों पर वह छुअन एक साथ आई थी। यह क्या थी? होंठ या जीभ?
“मैं तुम्हारा शोषण तो नहीं कर रहा हूँ?” उसका प्रश्न मेरे कानों में पड़ा।
“तुम बहुत अच्छे मनुष्य हो…”
“वेरी केयरिंग एंड…”
“एंड…?”
“खूबसूरत जवाँ भी” हिम्मत करके मैंने कह दिया।
कुछ देर तक कुछ नहीं हुआ, मैं प्रत्याशा में सांस लेती छोड़ती रही।
उसने मुझे मोबाइल पकड़ाया, थरथरा रहा था, मैंने अनिच्छा से देखा, उसी का फोन था।
इच्छा हुई काट दूँ, पर हेल्लो कर दिया.
“तुम कहाँ हो? तुम्हारे पीजी में गया, तुम वहाँ नहीं थी।”
मैं कुछ नहीं बोली।
“प्लीज, बोलो ना… मैं सॉरी बोलता हूँ, बोलो ना?”
मुझे गुस्सा आया, मैंने फिर काट दिया।
“तुम करो” मैंने कलाकार को कहा।
वह हिचकता रहा- आर यू श्योर?
“तुम्हें बुरा लगता है तो छोड़ दो।”
“आई लव इट…” उसने अपने होठों पे जीभ फिरायी।
“तो करो ना…”
फोन फिर थरथराया- ओफ्फ! क्या है?
“प्लीज फोन बंद मत करना। सॉरी सॉरी सॉरी, तुम कहाँ हो?”
एक चुम्बन मेरे (भग) होठों पर पड़ा; आ…ह।
“मैंने तुम्हें बता दिया था.” मैंने फोन में कहा।
“उसी टैटू वाले के यहाँ?”
दूसरा चुम्बन – होठों के मध्य से ऊपर।
“क्या करोगे जानकर?” मैंने अपने गुस्से पर काबू पाने की कोशिश की।
“प्लीज, बोलो ना।”
“हाँ… और कुछ कहना है?”
“क्या कर रही हो वहाँ?”
उस वक़्त मैं तीसरा चुम्बन प्राप्त कर रही थी, उसकी घबराहट पर हंसी आई।
तभी उसने कहा- आई लव यू!
और मेरा गुस्सा फिर भड़क गया- जानना चाहते हो क्या कर रही हूँ? फोन मत बंद करना, चालू रखो।
मैंने सर उठाकर देखा, कलाकार का सर झुका हुआ था।
चौथा चुम्बन होठों के मध्य से नीचे आया, वहाँ जरा और खुली हुई फाँक में घुसकर… और यह मीठा था। मैंने फोन में सुनाने के लिए जरा जोर से आह भरी- आ….ह…!
“क्या कर रही हो?” उसने फोन में पूछा।
जवाब में पुनः मैंने आह भरी।
चुम्बन की चोट खाली नहीं जा सकती थी।
अगली बार और अन्दर की कोमल सतहों पर चाट… मेरी और बड़ी कराह!
“क्या कर रही हो, बोल ना?”
“मैंने बताया था।”
“नहीं मालूम, बोलो ना?”
“मुझे परेशां मत करो… बस सुनते रहो!” कहते कहते मेरे मुँह से सिसकारी निकल गयी, मेरी भगनासा पर उसने जीभ फिरा दी थी।
मेरी आहों और सिसकारियों का सिलसिला बढ़ता जा रहा था। उसे स्त्री केंद्र को चूमना चाटना आता था।
“कहाँ पर हो? कौन सी जगह है?”
उत्तर मैंने अपनी आहों और कराहों से दिया।
“बताओ ना कौन जगह है?”
“फोन बंद कर रही हूँ।”
“प्लीज… सिर्फ जगह बता दो… प्लीज।”
मैंने कलाकर से कहा- वह जगह पूछ रहा है।
कलाकार ने पूछा- कोई प्रॉब्लम तो नहीं करेगा?
उसके मुँह के आसपास मेरा गीलापन चमक रहा था।
“पता नहीं!” मैंने कहा।
“मेरा एड्रेस फॉरवर्ड कर दो। मैं नहीं डरता.”
वह फिर चाटने लगा।
मैंने उसे रोका और एड्रेस फॉरवर्ड कर दिया; मैं उसे जलाना और दण्डित करना चाहती थी।
मैंने आइना उठाकर उसके सामने कर दिया, देखकर वह मुस्कुरा पड़ा, कच्चे गीले रंग से उसके दोनों गालों पर उभर आए थे स्वस्तिक और कलश के निशान।
“शुभ दीपावली” मैंने कलाकार को कहा।
“वेरी वेरी हैपी दीपावली!” उसने खुश होते हुए कहा। वह घुमा घुमाकर अपने चेहरे को आइने में देख रहा था- तुम भी किसी कलाकार से कम नहीं हो!
“मैं भी इसे दो एक दिन तक ऐसे ही रखूँगा.”
“अजीब नहीं लगेगा? लोग क्या कहेंगे?”
उसने मेरी आँखों में देखा और ना में सर हिलाया।
मैं उसके गाल पकड़कर उसकी आँखों में देखने लगी। मुझे कैसा तो महसूस हुआ। उसे देखते देखते ही मैंने आँखें मूंद लीं। पीछे लद गयी और पुनः सिर पीछे टिका लिया। सिर पीछे करते ही योनिस्थल कुछ और आगे बढ़ गया।
कुछ ही क्षणों में मुझे वहाँ पर गर्म साँस का स्पर्श महसूस हुआ।
आश्चर्य! उसका सिर तो बहुत पहले से मेरी पुसी के करीब था। लेकिन सांस पर मेरा ध्यान अब गया था।
और अगले क्षण ही ठीक होंठों की फाँक में एक छुअन। बेहद हल्की, बेहद सरसरी तौर पर। लेकिन उतने में ही मेरी जाँघें थरथरा सी गईं। मुझे लगा, मेरी योनि की ‘पलकें’ खुल गई हैं जबकि आँखों की पलकें बंद हैं।
खुली पलकों के भीतरी किनारों पर वह छुअन एक साथ आई थी। यह क्या थी? होंठ या जीभ?
“मैं तुम्हारा शोषण तो नहीं कर रहा हूँ?” उसका प्रश्न मेरे कानों में पड़ा।
“तुम बहुत अच्छे मनुष्य हो…”
“वेरी केयरिंग एंड…”
“एंड…?”
“खूबसूरत जवाँ भी” हिम्मत करके मैंने कह दिया।
कुछ देर तक कुछ नहीं हुआ, मैं प्रत्याशा में सांस लेती छोड़ती रही।
उसने मुझे मोबाइल पकड़ाया, थरथरा रहा था, मैंने अनिच्छा से देखा, उसी का फोन था।
इच्छा हुई काट दूँ, पर हेल्लो कर दिया.
“तुम कहाँ हो? तुम्हारे पीजी में गया, तुम वहाँ नहीं थी।”
मैं कुछ नहीं बोली।
“प्लीज, बोलो ना… मैं सॉरी बोलता हूँ, बोलो ना?”
मुझे गुस्सा आया, मैंने फिर काट दिया।
“तुम करो” मैंने कलाकार को कहा।
वह हिचकता रहा- आर यू श्योर?
“तुम्हें बुरा लगता है तो छोड़ दो।”
“आई लव इट…” उसने अपने होठों पे जीभ फिरायी।
“तो करो ना…”
फोन फिर थरथराया- ओफ्फ! क्या है?
“प्लीज फोन बंद मत करना। सॉरी सॉरी सॉरी, तुम कहाँ हो?”
एक चुम्बन मेरे (भग) होठों पर पड़ा; आ…ह।
“मैंने तुम्हें बता दिया था.” मैंने फोन में कहा।
“उसी टैटू वाले के यहाँ?”
दूसरा चुम्बन – होठों के मध्य से ऊपर।
“क्या करोगे जानकर?” मैंने अपने गुस्से पर काबू पाने की कोशिश की।
“प्लीज, बोलो ना।”
“हाँ… और कुछ कहना है?”
“क्या कर रही हो वहाँ?”
उस वक़्त मैं तीसरा चुम्बन प्राप्त कर रही थी, उसकी घबराहट पर हंसी आई।
तभी उसने कहा- आई लव यू!
और मेरा गुस्सा फिर भड़क गया- जानना चाहते हो क्या कर रही हूँ? फोन मत बंद करना, चालू रखो।
मैंने सर उठाकर देखा, कलाकार का सर झुका हुआ था।
चौथा चुम्बन होठों के मध्य से नीचे आया, वहाँ जरा और खुली हुई फाँक में घुसकर… और यह मीठा था। मैंने फोन में सुनाने के लिए जरा जोर से आह भरी- आ….ह…!
“क्या कर रही हो?” उसने फोन में पूछा।
जवाब में पुनः मैंने आह भरी।
चुम्बन की चोट खाली नहीं जा सकती थी।
अगली बार और अन्दर की कोमल सतहों पर चाट… मेरी और बड़ी कराह!
“क्या कर रही हो, बोल ना?”
“मैंने बताया था।”
“नहीं मालूम, बोलो ना?”
“मुझे परेशां मत करो… बस सुनते रहो!” कहते कहते मेरे मुँह से सिसकारी निकल गयी, मेरी भगनासा पर उसने जीभ फिरा दी थी।
मेरी आहों और सिसकारियों का सिलसिला बढ़ता जा रहा था। उसे स्त्री केंद्र को चूमना चाटना आता था।
“कहाँ पर हो? कौन सी जगह है?”
उत्तर मैंने अपनी आहों और कराहों से दिया।
“बताओ ना कौन जगह है?”
“फोन बंद कर रही हूँ।”
“प्लीज… सिर्फ जगह बता दो… प्लीज।”
मैंने कलाकर से कहा- वह जगह पूछ रहा है।
कलाकार ने पूछा- कोई प्रॉब्लम तो नहीं करेगा?
उसके मुँह के आसपास मेरा गीलापन चमक रहा था।
“पता नहीं!” मैंने कहा।
“मेरा एड्रेस फॉरवर्ड कर दो। मैं नहीं डरता.”
वह फिर चाटने लगा।
मैंने उसे रोका और एड्रेस फॉरवर्ड कर दिया; मैं उसे जलाना और दण्डित करना चाहती थी।