29-11-2019, 04:01 AM
पहली पोस्ट डाले लगभग 24 घंटे हो गये हैं और किसी एडमिन का कोई जवाब नहीं आया, तो इसे मैं उनकी स्वीकृति समझते हुए कहानी शुरु कर रहा हूं --->
जमींदार का अत्याचार
एपिसोड 1
आज मैं बिल्लू के चाचा के खेत पर काम कर रहा था। बिल्लू का परिवार हमेशा से मेरे परिवार का सुखदुख का साथी रहा था, तो उसके चाचा के खेत में कम पैसे में भी काम कर सकता था। ऊपर से सुमन के बाबा का खेत। उन्ही की फसल की कटाई करनी थी। मेरे खेत का काम तो दो दिन में ही हो गया, खेत कितना बड़ा है ही? बिल्लू के चाचा के खेत में कई दिन से काम चल रहा था और अभी मेरे आने के बाद भी तीन दिन और चलना था।
'बिल्लू भैया, खाना लाई हूं। तुम और तुम्हारे दोस्त खा लो इसे।' कानों में सुमन की खनकती आवाज पड़ी। 'तुम्हारे दोस्त' का लहजा इस तरह से था की मैं साफ साफ सुन सकूं। 'हां, आता हूं' बिल्लू ने बोला, और फिर अपनी दराती किनारे रखकर फसल से उठ गया। उसने मुझे पीछे से कंधे पर छूकर कहा, 'चल मुन्ना'। मैने भी अपनी दराती वहीं रख दी और उठकर बिल्लू के साथ खेत में लगे पंप पर आ गये, जो बंद था पर उसकी टंकी में पानी भरा हुआ था। उसी पानी से हमने हाथ पैर धोए और नीम के पेड़ के पास आ गये जहां सुमन चारपाई बिछा कर खाना रखे बैठी थी।
दो डिब्बे थे। एक उसने बिल्लू को दिया, दूसरा मेरी ओर बढ़ाया। मुझे पहले से कुछ अंदाजा हो गया की सुमन खाना लेकर इतनी देर तक शायद इसलिए खड़ी रही की हम दोनो के डिब्बे हम दोनो को दे सके… यानि एक डिब्बे में कुछ खास था, जो मुझे तभी मिल सकता था जब मेरे पास वही डिब्बा आये जो मेरे लिए था।
सुमन बिल्लू की चचेरी बहन थी, और हम दोनो एक दूसरे को प्यार करते थे। बिल्लू का परिवार जान पहचान का भी है, सु्मन सुंदर है, इंटर तक पढ़ी भी है, जवान है, मेरी बहन कविता की सबसे खास सहेली भी है। आड़े बस मेरी गरीबी आ जाती है, वरना उससे कबका ब्याह कर चुका होता। बापू के अचानक चले जाने से आगे पढ़ने की चाहत तो अधूरी रह गई, पर अब मैं फौज में भर्ती होना चाहता हूं ताकि कविता का गौना धूम धाम से कर सकूं और फिर सुमन से ब्याह कर सकूं। अगले महीने ही भर्ती की दौड़ है, उसी की तैयारी कर रहा हूं।
मेरा डिब्बा मेरे हाथ में देकर सुमन चुपचाप लौट गई, पर मैं उस जैसी तेजतर्रार लड़की के चुपचाप लौट जाने के इशारे को समझ गया। मैने बिल्लू से नजर बचाते हुए डिब्बा संभालकर खोला। जैसा उम्मीद थी, रोटियों के ऊपर एक कागज रखा था। मैने चुपके से कागज निकाल कर अपनी जांघ के नीचे दबा लिया और फिर बिल्लू से आगे की कटाई की बातें करते हुए खाना खाने लगा। खाने के बाद जब बिल्लू सुस्ताने के लिए चारपाई पर लेटा तो मैं हाथ मुंह धोने के बहाने उससे दूर आया और कागज को खोलकर देखा।
'मठ के पीछे वाला बरगद' इतना ही लिखा था, काफी था। वहीं के वहीं उस कागज के छोटे छोटे टुकड़े करके नाली में बहा दिये। सुमन मेरा इंतजार मठ के पीछे वाले बरगद पर करेगी, शाम के समय जब मैं खेत के काम से खाली हो चुका हुंगा। कुछ जरूरी ही होगा, क्योंकी आज सुमन के बर्ताव में वह बेतकल्लुफी नहीं थी जो हमेशा से रहती है। आज वह गुमसुम सी थी।
कुछ देर तक बगल की चारपाई पर नीम की छांव में सुस्ताने के बाद मैं और बिल्लू फिर से कटाई में जुट गये।
जब दिन का काम खत्म हुआ तो अगले दिन की रूपरेखा तैयार करने के बाद बिल्लू और मैं अपने घरों की ओर बढ़ चले। मठ के पास आकर मैने बिल्लू को बोला की वो घर चला जाए, मुझे मठ के पुरोहित से कुछ बात करनी है है। बिल्लू घर चला गया और मैं उसके आगे बढ़ने के बाद मठ के पीछे की तरफ चला गया। बरगद के पेड़ के पास सुमन खड़ी थी। वैसे वह छुपी रहती है और मेरे आने पर अचानक सामने कूद पड़ती है और लिपट जाती है, और हमारे बीच जो खेल शुरु होता है वो बबूल की झाड़ियों के पीछे जाकर खत्म होता है, पर आज वह बरगद के नीचे चबूतरे पर गुमसुम सी बैठी मेरा इंतजार कर रही थी। आज वह पक्का दुखी थी।
'क्या हुआ?' मैने चारों ओर एक बार ध्यान से देखते हुए उससे पूछा, तो उसने कहा, 'कल नेनाई से मुझे देखने लड़के वाले आ रहे हैं"
"हां तो आने दे ना उन्हे, तू कौन सा उन्हे पसंद आएगी?' मैने माहौल को मजाकिया बनाने की कोशिश की, पर आज सुमन बिल्कुल मजाक के मूड में नहीं थी।
'तुम तो मुंह में दही जमाकर रखे रहोगे?' उसने कहा, 'कबसे कह रही हूं एक बार बाबा से बात कर लो।'
'फिर से वही बात...' मैने कहा। सुमन पिछली कई मुलाकातों में मुझसे अपने घर आकर शादी की बात चलाने की बात कह चुकी है। मैने ही टाला है उसे '...तू जानती है ना मेरे घर की हालत? पिछली बरसात में बरामदे की छत गिर गई थी, उसे ठीक करने के भी पैसे नहीं हैं मेरे पास।' मैने उसके कंधे पर प्यार से पकड़ बनाते हुए कहा, 'जब तक फौज में नौकरी नहीं लग जाती तब तक मेरी शादी क्या, कविता के गौने की बात भी नहीं कर सकता।'
'मैं भी तो तुमसे यही कह रही हूं, मेरे घर बात कर लो, सगाई कर लो, फिर बाबा से पैसे लेकर घर बनवा लेना, कविता का गौना करा देना।' वह धीरे धीरे मेरी बाहों में समा रही थी, 'तुम तो जानते हो मेरे बाबा के पास पैसे की कोई कमी नहीं है, मेरे लिए दहेज भी तो अच्छा खासा रखा होगा ना।'
'वही तो बात है यार' मैने उसे अपनी बाहों में भरते हुए कहा, 'जितना दहेज तुम्हारे बाबा ने तुम्हारे लिए रखा है, उतने में तो कोई अच्छा खासा खानदानी परिवार मिल जाएगा, पढ़ा - लिखा शहरी लड़का मिल जाएगा। तेरा बाबा मुझे क्यों पसंद करेगा।'
अगला अपडेट जल्दी ही आएगा। तब तक कृपया comments देते रहें और इस नये लेखक का उत्साह बढ़ाते रहें
जमींदार का अत्याचार
एपिसोड 1
आज मैं बिल्लू के चाचा के खेत पर काम कर रहा था। बिल्लू का परिवार हमेशा से मेरे परिवार का सुखदुख का साथी रहा था, तो उसके चाचा के खेत में कम पैसे में भी काम कर सकता था। ऊपर से सुमन के बाबा का खेत। उन्ही की फसल की कटाई करनी थी। मेरे खेत का काम तो दो दिन में ही हो गया, खेत कितना बड़ा है ही? बिल्लू के चाचा के खेत में कई दिन से काम चल रहा था और अभी मेरे आने के बाद भी तीन दिन और चलना था।
'बिल्लू भैया, खाना लाई हूं। तुम और तुम्हारे दोस्त खा लो इसे।' कानों में सुमन की खनकती आवाज पड़ी। 'तुम्हारे दोस्त' का लहजा इस तरह से था की मैं साफ साफ सुन सकूं। 'हां, आता हूं' बिल्लू ने बोला, और फिर अपनी दराती किनारे रखकर फसल से उठ गया। उसने मुझे पीछे से कंधे पर छूकर कहा, 'चल मुन्ना'। मैने भी अपनी दराती वहीं रख दी और उठकर बिल्लू के साथ खेत में लगे पंप पर आ गये, जो बंद था पर उसकी टंकी में पानी भरा हुआ था। उसी पानी से हमने हाथ पैर धोए और नीम के पेड़ के पास आ गये जहां सुमन चारपाई बिछा कर खाना रखे बैठी थी।
दो डिब्बे थे। एक उसने बिल्लू को दिया, दूसरा मेरी ओर बढ़ाया। मुझे पहले से कुछ अंदाजा हो गया की सुमन खाना लेकर इतनी देर तक शायद इसलिए खड़ी रही की हम दोनो के डिब्बे हम दोनो को दे सके… यानि एक डिब्बे में कुछ खास था, जो मुझे तभी मिल सकता था जब मेरे पास वही डिब्बा आये जो मेरे लिए था।
सुमन बिल्लू की चचेरी बहन थी, और हम दोनो एक दूसरे को प्यार करते थे। बिल्लू का परिवार जान पहचान का भी है, सु्मन सुंदर है, इंटर तक पढ़ी भी है, जवान है, मेरी बहन कविता की सबसे खास सहेली भी है। आड़े बस मेरी गरीबी आ जाती है, वरना उससे कबका ब्याह कर चुका होता। बापू के अचानक चले जाने से आगे पढ़ने की चाहत तो अधूरी रह गई, पर अब मैं फौज में भर्ती होना चाहता हूं ताकि कविता का गौना धूम धाम से कर सकूं और फिर सुमन से ब्याह कर सकूं। अगले महीने ही भर्ती की दौड़ है, उसी की तैयारी कर रहा हूं।
मेरा डिब्बा मेरे हाथ में देकर सुमन चुपचाप लौट गई, पर मैं उस जैसी तेजतर्रार लड़की के चुपचाप लौट जाने के इशारे को समझ गया। मैने बिल्लू से नजर बचाते हुए डिब्बा संभालकर खोला। जैसा उम्मीद थी, रोटियों के ऊपर एक कागज रखा था। मैने चुपके से कागज निकाल कर अपनी जांघ के नीचे दबा लिया और फिर बिल्लू से आगे की कटाई की बातें करते हुए खाना खाने लगा। खाने के बाद जब बिल्लू सुस्ताने के लिए चारपाई पर लेटा तो मैं हाथ मुंह धोने के बहाने उससे दूर आया और कागज को खोलकर देखा।
'मठ के पीछे वाला बरगद' इतना ही लिखा था, काफी था। वहीं के वहीं उस कागज के छोटे छोटे टुकड़े करके नाली में बहा दिये। सुमन मेरा इंतजार मठ के पीछे वाले बरगद पर करेगी, शाम के समय जब मैं खेत के काम से खाली हो चुका हुंगा। कुछ जरूरी ही होगा, क्योंकी आज सुमन के बर्ताव में वह बेतकल्लुफी नहीं थी जो हमेशा से रहती है। आज वह गुमसुम सी थी।
कुछ देर तक बगल की चारपाई पर नीम की छांव में सुस्ताने के बाद मैं और बिल्लू फिर से कटाई में जुट गये।
जब दिन का काम खत्म हुआ तो अगले दिन की रूपरेखा तैयार करने के बाद बिल्लू और मैं अपने घरों की ओर बढ़ चले। मठ के पास आकर मैने बिल्लू को बोला की वो घर चला जाए, मुझे मठ के पुरोहित से कुछ बात करनी है है। बिल्लू घर चला गया और मैं उसके आगे बढ़ने के बाद मठ के पीछे की तरफ चला गया। बरगद के पेड़ के पास सुमन खड़ी थी। वैसे वह छुपी रहती है और मेरे आने पर अचानक सामने कूद पड़ती है और लिपट जाती है, और हमारे बीच जो खेल शुरु होता है वो बबूल की झाड़ियों के पीछे जाकर खत्म होता है, पर आज वह बरगद के नीचे चबूतरे पर गुमसुम सी बैठी मेरा इंतजार कर रही थी। आज वह पक्का दुखी थी।
'क्या हुआ?' मैने चारों ओर एक बार ध्यान से देखते हुए उससे पूछा, तो उसने कहा, 'कल नेनाई से मुझे देखने लड़के वाले आ रहे हैं"
"हां तो आने दे ना उन्हे, तू कौन सा उन्हे पसंद आएगी?' मैने माहौल को मजाकिया बनाने की कोशिश की, पर आज सुमन बिल्कुल मजाक के मूड में नहीं थी।
'तुम तो मुंह में दही जमाकर रखे रहोगे?' उसने कहा, 'कबसे कह रही हूं एक बार बाबा से बात कर लो।'
'फिर से वही बात...' मैने कहा। सुमन पिछली कई मुलाकातों में मुझसे अपने घर आकर शादी की बात चलाने की बात कह चुकी है। मैने ही टाला है उसे '...तू जानती है ना मेरे घर की हालत? पिछली बरसात में बरामदे की छत गिर गई थी, उसे ठीक करने के भी पैसे नहीं हैं मेरे पास।' मैने उसके कंधे पर प्यार से पकड़ बनाते हुए कहा, 'जब तक फौज में नौकरी नहीं लग जाती तब तक मेरी शादी क्या, कविता के गौने की बात भी नहीं कर सकता।'
'मैं भी तो तुमसे यही कह रही हूं, मेरे घर बात कर लो, सगाई कर लो, फिर बाबा से पैसे लेकर घर बनवा लेना, कविता का गौना करा देना।' वह धीरे धीरे मेरी बाहों में समा रही थी, 'तुम तो जानते हो मेरे बाबा के पास पैसे की कोई कमी नहीं है, मेरे लिए दहेज भी तो अच्छा खासा रखा होगा ना।'
'वही तो बात है यार' मैने उसे अपनी बाहों में भरते हुए कहा, 'जितना दहेज तुम्हारे बाबा ने तुम्हारे लिए रखा है, उतने में तो कोई अच्छा खासा खानदानी परिवार मिल जाएगा, पढ़ा - लिखा शहरी लड़का मिल जाएगा। तेरा बाबा मुझे क्यों पसंद करेगा।'
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