28-11-2019, 08:13 PM
वह मेरी टॉप पेट पर से ऊपर खिसकाने लगा, मैंने उसे रोका, वह टॉप के अंदर हाथ घुसाकर मेरी छातियाँ सहलाने लगा।
मर्द का यह जोर और आवेग मुझे अच्छा लग रहा था लेकिन लगा कि ऐसे उसको बढ़ने दिया तो चुद ही जाऊंगी, मैंने रोका- देवी से ऐसे जबरदस्ती करते हैं क्या? रुको।
जवाब में वह मेरे पेड़ू पर अपना पेड़ू रगड़ने लगा। योनि होंठों पर उसके पजामे के नीचे सख्त लिंग का दबाव महसूस होने लगा।
“रुको” मैंने उसे जोर लगाकर ठेला- आज के दिन कोई जबरदस्ती नहीं! कहाँ तो मुझ पर फूल छिड़कना, और कहाँ यह जबरदस्ती?
वह रुक गया। मैंने हँसकर उसकी ठोड़ी पकड़ी और नाटकीय आवाज में कहा- वत्स, आज तो देवी तुम्हें स्वयं आशीर्वाद दे रही हैं। हड़बड़ी क्यों करते हो?
मैंने उसे बिस्तर से दूर कुर्सी पर बैठने को कहा।
वह बेमन से वह जाकर कुर्सी पर बैठ गया।
मैंने अपनी टॉप का किनारा पकड़ा और सिर के ऊपर खींच लिया; अंदर मैंने समीज पहनी थी। सुबह पैंटीहीन रहने की विवशता देखते हुए आज मैंने ब्रा भी नहीं पहनी थी। ऐसे में चुद जाने का खतरा जबरदस्त था, मैंने कमान अपने हाथ में ही रखने के लिए कहा- वहीं बैठे रहना, नहीं तो चली जाऊंगी।
वह बोला- खुशी की बात में भी धमकी क्यों देती हो?
मैंने अपनी समीज उतार दी, मेरे नंगे स्तन देखकर वह दीवाना हो गया और उठकर मेरे पास आ गया। मैंने किसी तरह उसे ठेला; सचमुच यहीं पर छोड़कर घर चले जाने की धमकी दी। अब इतना शरीफ तो वह था ही कि जोर आजमाइश नहीं करता; मिन्नतें करने लगा- एक बार, बस एक बार छूने दो।
मैंने दया दिखाई तो उसने न केवल छूआ बल्कि सहलाया भी।
इसके बाद स्वाभाविक था कि वह चूमने की भी जिद करता। मैंने “बस इससे ज्यादा नहीं…” करते करते उसे अच्छा खासा चूमने और चूस भी लेने दिया। मैं समझ रही थी थी कि उसे सीमा के अंदर रखकर खुद को सम्हाले रखना है नहीं तो अपनी उत्तेजना के आगे मैं खुद मजबूर हो जाऊंगी।
स्तनों को छोड़ा तो मेरे फिर से मेरे भगों पर लपक गया। एक बार वहाँ का स्वाद ले चुका था। मैं वहाँ पर उत्तेजित होने से बचना चाहती थी हालाँकि उत्सुक भी थी क्योंकि सारी तैयारी तो मैंने उसी में की थी। वह जांघों पर लिखी ‘शुभ’ और ‘दीपावली’ को छोड़कर बीच में दीपक को ही देखे जा रहा था। उसने भगोष्ठों के किनारे-किनारे बालों के तटबंध में उंगली फिराई और फिर बीच कुंड में उंगली डुबो दी। उसने उसमें उंगली चलाई और निकालकर मुँह में चूस लिया। देखकर ही मेरी योनि मेंढक की तरह फुदकने लगी।
अब अगर इसने फिर से उसमें मुँह लगाया तो मैं तो गई। वह चाटने के लिए झुका तो मैंने जांघें बंद कर लीं। मेरे अंदर से द्रव की लहर-सी उठकर होंठों के बीच छलछला गई। मैं आँखें मूंदकर बदन में हो रही आनंददायी सिहरन को महसूस करने लगी।
वह मंत्रमुग्ध मुझे देख रहा था, बोला- ये क्या था, तुम क्लाइमेक्स कर रही थी क्या?
मैं उठकर बैठ गई- अब चलती हूँ।
मुझे अपनी वैल्यू बनाए रखनी थी। वह मेरा प्रेमी था।
“लेकिन…” उसका सवाल फिर उपस्थित हो गया, चेहरे पर वही शिकन- ये दीया वहाँ आया कैसे? तुम तो खुद नहीं बना सकती।
“नहीं।”
“किसी से बनवाया है।”
“हाँ, एक टैटू कलाकार से!”
“तो तुमने उसे अपना सब कुछ दिखाया? बल्कि उसे…” उसके अंदर दबी अधिकार भावना अब उभर रही थी।
“ये तुम्हें अब याद आया?”
वह चुप रहा। कैसे बोलता कि उस समय मजा लेने की जल्दी थी।
“मुझे तो कभी छूने तक नहीं दिया और अचानक से एक बाहरी आदमी के सामने सब कुछ?”
“यह सब मैंने तुम्हारे लिए किया।”
“मगर ये तो गलत है।”
“मैं ऐसी ही हूँ। और शादी के बाद भी ऐसी ही रहूंगी।”
बोलते ही मुझे खुद पर बड़ा गुस्सा आया कि ये शादी की बात क्यों मुँह से निकली।
“आई थी यह सोचकर कि आज तुमको ग्रेट तोहफा दूंगी। यूनीक और डेयरिंग। लेकिन तुम भी दूसरे लड़कों की तरह ही निकले। इतनी मुश्किल से यह पेंटिंग बनवाई और तुम…” बोलते मेरी आँखें लरज गईं।
मैंने अपनी समीज पहनने के लिए उठा ली।
उसने मेरे हाथों में समीज पकड़ ली- तो वह ग्रेट तोहफा दे दो ना, मैं कब से इंतजार कर रहा हूँ।
“मेरा जो मन था वह मैंने अपनी मर्जी से दिया, कोई परवाह नहीं की; अब और नहीं; छोड़ो।” मैंने उसके हाथों से खींचकर समीज पहन ली।
उसने मेरा टॉप अपने कब्जे में ले लिया- प्लीज, मान जाओ, मैं सॉरी बोल रहा हूँ ना।
“मेरा टॉप दो।”
“प्लीज…”
“कोई फायदा नहीं।”
समीज में मेरे स्तन ढक चुके थे और मैं एक हद तक सुरक्षित थी।
उसने मुझे आलिंगन में लेने की कोशिश की।
“तुम मेरे साथ जबरदस्ती करोगे?”
“नो नो, आय लव यू… मुझे माफ कर दो!”
मैं गुस्से से खड़ी हो गई- तुमने मुझे क्या समझ रखा है? रण्डी? मेरे कपड़े मुझे दे दो!
वह डर गया। मैंने उसके हाथ से टॉप ले लिया, टॉप पहनी, घाघरा ठीक किया, जूते पहने और चलने को हुई।
“जस्ट एक मिनट रूक जाओ, मेरी बात सुनो।”
“बोलो?”
“कोई और तुम्हें अंदर के हिस्से तक देखे तो बुरा लगना स्वाभाविक है। तुम यूँ ही आतीं तो मुझे अच्छा लगता।”
“अभी तो हमारे बीच कुछ हुआ नहीं, और तुम इतना पजेसिव हो रहे हो? उधर उस कलाकार ने मुझे गलत इरादे से छुआ तक नहीं। तुम जो और और बातें सोच रहे हो, वह तो बहुत दूर की बात है। मुझे सफाई नहीं देनी पर तुम्हारा भ्रम दूर करने के लिए बोल रही हूँ।”
वह कुछ आश्वस्त सा हुआ, बोला- देखो मैं तुम्हें खो नहीं सकता! आय लव यू!
मेरे अंदर आग की तेज लपट-सी उठी, मैंने कहा- मैं जा रही हूँ। उसी कलाकार के पास। इस बार जो तुमसे नहीं कराया वह कराने। टु गेट प्रॉपर्ली फक्ड। उसके बाद भी तुम्हारा मन होगा तो बोलना आय लव यू।
वह आँखें फाड़े मुझे देखता रह गया, मैं बाय कहकर निकल पड़ी।
कहानी जारी रहेगी
मर्द का यह जोर और आवेग मुझे अच्छा लग रहा था लेकिन लगा कि ऐसे उसको बढ़ने दिया तो चुद ही जाऊंगी, मैंने रोका- देवी से ऐसे जबरदस्ती करते हैं क्या? रुको।
जवाब में वह मेरे पेड़ू पर अपना पेड़ू रगड़ने लगा। योनि होंठों पर उसके पजामे के नीचे सख्त लिंग का दबाव महसूस होने लगा।
“रुको” मैंने उसे जोर लगाकर ठेला- आज के दिन कोई जबरदस्ती नहीं! कहाँ तो मुझ पर फूल छिड़कना, और कहाँ यह जबरदस्ती?
वह रुक गया। मैंने हँसकर उसकी ठोड़ी पकड़ी और नाटकीय आवाज में कहा- वत्स, आज तो देवी तुम्हें स्वयं आशीर्वाद दे रही हैं। हड़बड़ी क्यों करते हो?
मैंने उसे बिस्तर से दूर कुर्सी पर बैठने को कहा।
वह बेमन से वह जाकर कुर्सी पर बैठ गया।
मैंने अपनी टॉप का किनारा पकड़ा और सिर के ऊपर खींच लिया; अंदर मैंने समीज पहनी थी। सुबह पैंटीहीन रहने की विवशता देखते हुए आज मैंने ब्रा भी नहीं पहनी थी। ऐसे में चुद जाने का खतरा जबरदस्त था, मैंने कमान अपने हाथ में ही रखने के लिए कहा- वहीं बैठे रहना, नहीं तो चली जाऊंगी।
वह बोला- खुशी की बात में भी धमकी क्यों देती हो?
मैंने अपनी समीज उतार दी, मेरे नंगे स्तन देखकर वह दीवाना हो गया और उठकर मेरे पास आ गया। मैंने किसी तरह उसे ठेला; सचमुच यहीं पर छोड़कर घर चले जाने की धमकी दी। अब इतना शरीफ तो वह था ही कि जोर आजमाइश नहीं करता; मिन्नतें करने लगा- एक बार, बस एक बार छूने दो।
मैंने दया दिखाई तो उसने न केवल छूआ बल्कि सहलाया भी।
इसके बाद स्वाभाविक था कि वह चूमने की भी जिद करता। मैंने “बस इससे ज्यादा नहीं…” करते करते उसे अच्छा खासा चूमने और चूस भी लेने दिया। मैं समझ रही थी थी कि उसे सीमा के अंदर रखकर खुद को सम्हाले रखना है नहीं तो अपनी उत्तेजना के आगे मैं खुद मजबूर हो जाऊंगी।
स्तनों को छोड़ा तो मेरे फिर से मेरे भगों पर लपक गया। एक बार वहाँ का स्वाद ले चुका था। मैं वहाँ पर उत्तेजित होने से बचना चाहती थी हालाँकि उत्सुक भी थी क्योंकि सारी तैयारी तो मैंने उसी में की थी। वह जांघों पर लिखी ‘शुभ’ और ‘दीपावली’ को छोड़कर बीच में दीपक को ही देखे जा रहा था। उसने भगोष्ठों के किनारे-किनारे बालों के तटबंध में उंगली फिराई और फिर बीच कुंड में उंगली डुबो दी। उसने उसमें उंगली चलाई और निकालकर मुँह में चूस लिया। देखकर ही मेरी योनि मेंढक की तरह फुदकने लगी।
अब अगर इसने फिर से उसमें मुँह लगाया तो मैं तो गई। वह चाटने के लिए झुका तो मैंने जांघें बंद कर लीं। मेरे अंदर से द्रव की लहर-सी उठकर होंठों के बीच छलछला गई। मैं आँखें मूंदकर बदन में हो रही आनंददायी सिहरन को महसूस करने लगी।
वह मंत्रमुग्ध मुझे देख रहा था, बोला- ये क्या था, तुम क्लाइमेक्स कर रही थी क्या?
मैं उठकर बैठ गई- अब चलती हूँ।
मुझे अपनी वैल्यू बनाए रखनी थी। वह मेरा प्रेमी था।
“लेकिन…” उसका सवाल फिर उपस्थित हो गया, चेहरे पर वही शिकन- ये दीया वहाँ आया कैसे? तुम तो खुद नहीं बना सकती।
“नहीं।”
“किसी से बनवाया है।”
“हाँ, एक टैटू कलाकार से!”
“तो तुमने उसे अपना सब कुछ दिखाया? बल्कि उसे…” उसके अंदर दबी अधिकार भावना अब उभर रही थी।
“ये तुम्हें अब याद आया?”
वह चुप रहा। कैसे बोलता कि उस समय मजा लेने की जल्दी थी।
“मुझे तो कभी छूने तक नहीं दिया और अचानक से एक बाहरी आदमी के सामने सब कुछ?”
“यह सब मैंने तुम्हारे लिए किया।”
“मगर ये तो गलत है।”
“मैं ऐसी ही हूँ। और शादी के बाद भी ऐसी ही रहूंगी।”
बोलते ही मुझे खुद पर बड़ा गुस्सा आया कि ये शादी की बात क्यों मुँह से निकली।
“आई थी यह सोचकर कि आज तुमको ग्रेट तोहफा दूंगी। यूनीक और डेयरिंग। लेकिन तुम भी दूसरे लड़कों की तरह ही निकले। इतनी मुश्किल से यह पेंटिंग बनवाई और तुम…” बोलते मेरी आँखें लरज गईं।
मैंने अपनी समीज पहनने के लिए उठा ली।
उसने मेरे हाथों में समीज पकड़ ली- तो वह ग्रेट तोहफा दे दो ना, मैं कब से इंतजार कर रहा हूँ।
“मेरा जो मन था वह मैंने अपनी मर्जी से दिया, कोई परवाह नहीं की; अब और नहीं; छोड़ो।” मैंने उसके हाथों से खींचकर समीज पहन ली।
उसने मेरा टॉप अपने कब्जे में ले लिया- प्लीज, मान जाओ, मैं सॉरी बोल रहा हूँ ना।
“मेरा टॉप दो।”
“प्लीज…”
“कोई फायदा नहीं।”
समीज में मेरे स्तन ढक चुके थे और मैं एक हद तक सुरक्षित थी।
उसने मुझे आलिंगन में लेने की कोशिश की।
“तुम मेरे साथ जबरदस्ती करोगे?”
“नो नो, आय लव यू… मुझे माफ कर दो!”
मैं गुस्से से खड़ी हो गई- तुमने मुझे क्या समझ रखा है? रण्डी? मेरे कपड़े मुझे दे दो!
वह डर गया। मैंने उसके हाथ से टॉप ले लिया, टॉप पहनी, घाघरा ठीक किया, जूते पहने और चलने को हुई।
“जस्ट एक मिनट रूक जाओ, मेरी बात सुनो।”
“बोलो?”
“कोई और तुम्हें अंदर के हिस्से तक देखे तो बुरा लगना स्वाभाविक है। तुम यूँ ही आतीं तो मुझे अच्छा लगता।”
“अभी तो हमारे बीच कुछ हुआ नहीं, और तुम इतना पजेसिव हो रहे हो? उधर उस कलाकार ने मुझे गलत इरादे से छुआ तक नहीं। तुम जो और और बातें सोच रहे हो, वह तो बहुत दूर की बात है। मुझे सफाई नहीं देनी पर तुम्हारा भ्रम दूर करने के लिए बोल रही हूँ।”
वह कुछ आश्वस्त सा हुआ, बोला- देखो मैं तुम्हें खो नहीं सकता! आय लव यू!
मेरे अंदर आग की तेज लपट-सी उठी, मैंने कहा- मैं जा रही हूँ। उसी कलाकार के पास। इस बार जो तुमसे नहीं कराया वह कराने। टु गेट प्रॉपर्ली फक्ड। उसके बाद भी तुम्हारा मन होगा तो बोलना आय लव यू।
वह आँखें फाड़े मुझे देखता रह गया, मैं बाय कहकर निकल पड़ी।
कहानी जारी रहेगी