28-11-2019, 08:10 PM
मैं गाड़ी में ठीक से बैठी भी नहीं कि रंग न उखड़ जाएँ हालाँकि उसने मुझे आश्वस्त किया था कि बैठने से या कपड़ों की रगड़ से या पानी लगने से चित्र नहीं छूटेगा। मिटाने के लिए खास द्रव से धोना पड़ेगा, उसके लिए मुझे उसके पास आना होगा।
मगर मन कहाँ मानता है; मैं कार सी सीट पर चूतड़ को आधा उठाए ही बैठी थी।
वह बाहर ही मेरा इंतजार कर रहा था। मैंने चलने से पहले फोन कर दिया था- आ रही हूँ। लेकिन मेरे पास वक्त बहुत कम है। तुरंत लौट जाऊंगी।
ऐसा मैंने अपना भाव बनाए रखने के लिए और अपनी सुरक्षा के लिहाज से भी किया था कि अगर सिचुएशन से बाहर निकलना पड़े तो आसानी हो।
मुझे देखते ही वह खिल पड़ा था; गाड़ी रुकते ही उसने मेरा दरवाजा खोला और तुरंत पूछकर ड्राइवर को पैसे दिए और बड़े मान से अपने कमरे में ले गया, बोला- आज दीवाली के दिन मेरे घर लक्ष्मी आई है।
वह एक पूजा की थाली लेकर आया और मेरे कपाल पर तिलक लगाकर मेरी आरती उतारने लगा।
“अरे ये क्या नाटक कर रहे हो?”
पर उसने मेरा मुँह बंद कर दिया- मुझे अच्छा लगता है। उसने थाली में से लेकर मुझ पर फूल की पंखुड़ियाँ बरसायी- मैं देवी लक्ष्मी की पूजा कर रहा हूँ।
मुझे बड़ी हँसी आ रही थी- तुम एकदम पागल हो। मालूम होता कि मुझे इतना बनाओगे तो नहीं आती।
पूजा समाप्त करके थाली रखी और मेरे दोनों कंधे पकड़कर बोला- देवी आज कुछ खास आशीर्वाद देने वाली हैं ना?
“हूँ…” मैंने गला खँखारा- देवी का आशीर्वाद पाने के लिए कंधे नहीं, चरण पकड़ने चाहिए, स्टुपिड!
वह झट मेरे सामने फर्श पर बैठ गया; मेरे पैर पकड़ने लगा तो मैंने रोक दिया, उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया- तुम्हारा कल्याण हो वत्स!
वह मेरा मुँह देखता रह गया। बस इतना ही?
मुझे उस पर दया आने लगी लेकिन कुछ देर तड़पाने का मजा लेना चाहती थी।
“और भी देवियों से आशीर्वाद लिया?”
“किसी से नहीं, तुम पहली हो।”
“और दूसरी?”
“कोई नहीं, तुम्हीं आखिरी भी रहोगी… अगर…”
“अगर?”
“पूरे मन से आशीर्वाद दोगी।”
“हूँ… देखती हूँ तुम उतने बुद्धू नहीं हो!” कहते हुए मैंने अपना एक पैर उठाकर उसके एक कंधे पर रख दिया। मेरा घाघरा जमीन पर पड़े दूसरे पैर से थोड़ा ऊपर उठ गया। वह पैर के उस नंगे हिस्से को देखने लगा।
“क्या आशीर्वाद चाहिए, बोलो?”
उसने सिर उठाकर मुझे देखा और बोला- तुम… तुम खुद एक पूरी की पूरी आशीर्वाद हो।
“बहुत चापलूस हो। कुछ ज्यादा नहीं मांग रहे हो?”
“तुमने वादा किया था।”
वह फिर मेरे उस घाघरे से बाहर निकले पैर को देखने लगा। मैंने पैर के बालों की वैक्सिंग करा रखी थी, उंगलियों में नई नाखूनपॉलिश लगाई थी।
“मैंने सिर्फ दीवाली विश करने का वादा किया था, और कुछ नहीं।” कहते हुए मैंने दूसरा पैर उठाकर उसके दूसरे कंधे पर रख दिया।
उसके चेहरे पर निराशा सी आई; मुझे क्रूरता में आनंद आ रहा था, मैंने घाघरा को थोड़ा ऊपर खींचा।
“ठीक है, तो वही विश कर दो।” वह मेरा खेल कुछ कुछ समझने लगा।
कोई लड़की यूँ ही उसके कंधों पर दोनों पाँव नहीं रख देगी। उस स्थिति में वैसा करने से मेरा पूरा पेड़ू उसके चेहरे के सामने आ गया था, भले ही वह अभी घाघरे के अंदर था।
मैंने कहा- अब समय हो गया, मुझे जाना है!
उसने मेरे दोनों पैर पकड़ लिए। बचने के लिए मैंने घाघरे को पकड़ा तो घाघरा खिसककर घुटनों तक उठ गया। उसे अंदर मेरी नंगी जांघों की निचली सतह दिखने लगी होगी। मैं सहारा पाने का अभिनय करते हुए पीछे झुक गई।
“कहाँ जाओगी?” मेरा पैर कन्धों पर लिए ही वह उठ गया। और जो होना था वही हुआ। मैं बिस्तर पर पीठ के बल गिर गई, घाघरा सरककर मेरे पेट पर आ गया। यह सब एक क्षण में हो गया। मेरे दोनों टखने उसकी हथेलियों में थे और वह उन्हें फैलाए कमरे की जगमगाती रोशनी में उनके बीच में देख रहा था।
“माय गॉड!” वह आँखें फाड़े देखता रह गया- ये क्या है?
मैंने हिम्मत करके बोल दिया- शुभ दीपावली, डार्लिंग!
“मगर…!”
“क्या?”
“कुछ नहीं!” कहकर उसने गोता लगाया और सीधे बीच में दीपक को लौ पर मुँह लगा दिया।
मैं उछल पड़ी।
इसके पहले कि मैं उसे ऊपर खींच पाती उसने दनादन वहाँ पर दो-तीन चुम्बन और दाग दिए- चुस… चुस… चुस…
मैंने कहा- अरे, मुझे भी विश करो।
“शुभ दीपावली!” उसने हड़बड़ाकर कहा और ऊपर आकर मेरे होंठों पर आकर वह चूमने लगा। रंग और योनि की मिली-जुली गंध जो नई और उत्तेजक थी।
मैंने उसके चुम्बनों का जवाब दिया।
“बहुत सुंदर है, बहुत ही सुंदर… लेकिन…”
“लेकिन क्या?”
“इसे बनाया कैसे?” लेकिन मेरे जवाब का इंतजार किए बिना फिर से मुझे चूमने लगा। चूमते चूमते वह ‘कमाल का है, ‘अद्भुत’, ‘फैन्टास्टिक’ वगैरह कर रहा था।
मैं भी उसके भार के नीचे दबी उसके चुम्बनों का जवाब दे रही थी।
मगर मन कहाँ मानता है; मैं कार सी सीट पर चूतड़ को आधा उठाए ही बैठी थी।
वह बाहर ही मेरा इंतजार कर रहा था। मैंने चलने से पहले फोन कर दिया था- आ रही हूँ। लेकिन मेरे पास वक्त बहुत कम है। तुरंत लौट जाऊंगी।
ऐसा मैंने अपना भाव बनाए रखने के लिए और अपनी सुरक्षा के लिहाज से भी किया था कि अगर सिचुएशन से बाहर निकलना पड़े तो आसानी हो।
मुझे देखते ही वह खिल पड़ा था; गाड़ी रुकते ही उसने मेरा दरवाजा खोला और तुरंत पूछकर ड्राइवर को पैसे दिए और बड़े मान से अपने कमरे में ले गया, बोला- आज दीवाली के दिन मेरे घर लक्ष्मी आई है।
वह एक पूजा की थाली लेकर आया और मेरे कपाल पर तिलक लगाकर मेरी आरती उतारने लगा।
“अरे ये क्या नाटक कर रहे हो?”
पर उसने मेरा मुँह बंद कर दिया- मुझे अच्छा लगता है। उसने थाली में से लेकर मुझ पर फूल की पंखुड़ियाँ बरसायी- मैं देवी लक्ष्मी की पूजा कर रहा हूँ।
मुझे बड़ी हँसी आ रही थी- तुम एकदम पागल हो। मालूम होता कि मुझे इतना बनाओगे तो नहीं आती।
पूजा समाप्त करके थाली रखी और मेरे दोनों कंधे पकड़कर बोला- देवी आज कुछ खास आशीर्वाद देने वाली हैं ना?
“हूँ…” मैंने गला खँखारा- देवी का आशीर्वाद पाने के लिए कंधे नहीं, चरण पकड़ने चाहिए, स्टुपिड!
वह झट मेरे सामने फर्श पर बैठ गया; मेरे पैर पकड़ने लगा तो मैंने रोक दिया, उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया- तुम्हारा कल्याण हो वत्स!
वह मेरा मुँह देखता रह गया। बस इतना ही?
मुझे उस पर दया आने लगी लेकिन कुछ देर तड़पाने का मजा लेना चाहती थी।
“और भी देवियों से आशीर्वाद लिया?”
“किसी से नहीं, तुम पहली हो।”
“और दूसरी?”
“कोई नहीं, तुम्हीं आखिरी भी रहोगी… अगर…”
“अगर?”
“पूरे मन से आशीर्वाद दोगी।”
“हूँ… देखती हूँ तुम उतने बुद्धू नहीं हो!” कहते हुए मैंने अपना एक पैर उठाकर उसके एक कंधे पर रख दिया। मेरा घाघरा जमीन पर पड़े दूसरे पैर से थोड़ा ऊपर उठ गया। वह पैर के उस नंगे हिस्से को देखने लगा।
“क्या आशीर्वाद चाहिए, बोलो?”
उसने सिर उठाकर मुझे देखा और बोला- तुम… तुम खुद एक पूरी की पूरी आशीर्वाद हो।
“बहुत चापलूस हो। कुछ ज्यादा नहीं मांग रहे हो?”
“तुमने वादा किया था।”
वह फिर मेरे उस घाघरे से बाहर निकले पैर को देखने लगा। मैंने पैर के बालों की वैक्सिंग करा रखी थी, उंगलियों में नई नाखूनपॉलिश लगाई थी।
“मैंने सिर्फ दीवाली विश करने का वादा किया था, और कुछ नहीं।” कहते हुए मैंने दूसरा पैर उठाकर उसके दूसरे कंधे पर रख दिया।
उसके चेहरे पर निराशा सी आई; मुझे क्रूरता में आनंद आ रहा था, मैंने घाघरा को थोड़ा ऊपर खींचा।
“ठीक है, तो वही विश कर दो।” वह मेरा खेल कुछ कुछ समझने लगा।
कोई लड़की यूँ ही उसके कंधों पर दोनों पाँव नहीं रख देगी। उस स्थिति में वैसा करने से मेरा पूरा पेड़ू उसके चेहरे के सामने आ गया था, भले ही वह अभी घाघरे के अंदर था।
मैंने कहा- अब समय हो गया, मुझे जाना है!
उसने मेरे दोनों पैर पकड़ लिए। बचने के लिए मैंने घाघरे को पकड़ा तो घाघरा खिसककर घुटनों तक उठ गया। उसे अंदर मेरी नंगी जांघों की निचली सतह दिखने लगी होगी। मैं सहारा पाने का अभिनय करते हुए पीछे झुक गई।
“कहाँ जाओगी?” मेरा पैर कन्धों पर लिए ही वह उठ गया। और जो होना था वही हुआ। मैं बिस्तर पर पीठ के बल गिर गई, घाघरा सरककर मेरे पेट पर आ गया। यह सब एक क्षण में हो गया। मेरे दोनों टखने उसकी हथेलियों में थे और वह उन्हें फैलाए कमरे की जगमगाती रोशनी में उनके बीच में देख रहा था।
“माय गॉड!” वह आँखें फाड़े देखता रह गया- ये क्या है?
मैंने हिम्मत करके बोल दिया- शुभ दीपावली, डार्लिंग!
“मगर…!”
“क्या?”
“कुछ नहीं!” कहकर उसने गोता लगाया और सीधे बीच में दीपक को लौ पर मुँह लगा दिया।
मैं उछल पड़ी।
इसके पहले कि मैं उसे ऊपर खींच पाती उसने दनादन वहाँ पर दो-तीन चुम्बन और दाग दिए- चुस… चुस… चुस…
मैंने कहा- अरे, मुझे भी विश करो।
“शुभ दीपावली!” उसने हड़बड़ाकर कहा और ऊपर आकर मेरे होंठों पर आकर वह चूमने लगा। रंग और योनि की मिली-जुली गंध जो नई और उत्तेजक थी।
मैंने उसके चुम्बनों का जवाब दिया।
“बहुत सुंदर है, बहुत ही सुंदर… लेकिन…”
“लेकिन क्या?”
“इसे बनाया कैसे?” लेकिन मेरे जवाब का इंतजार किए बिना फिर से मुझे चूमने लगा। चूमते चूमते वह ‘कमाल का है, ‘अद्भुत’, ‘फैन्टास्टिक’ वगैरह कर रहा था।
मैं भी उसके भार के नीचे दबी उसके चुम्बनों का जवाब दे रही थी।