28-11-2019, 08:07 PM
मैं मुस्कुरा रही थी। मुझे गुदगुदी के साथ-साथ उत्तेजना हो रही थी। योनि का गीलापन इतना बढ़ गया था कि होंठों के बीच लसलसा तार बन जा रहा था। उसने जब वहाँ तौलिया दबाकर सुखाया तो मेरे गीलेपन का खुला इकरार हो गया।
मैं सोच रही थी मेरे इतने दिन से प्रेम की प्यास में पड़ा हुआ बॉयफ्रेंड जिसे देख तक नहीं पाया है, उसे यह नामुराद खुलकर देख रहा है। देख ही नहीं, उसे छू और सहला भी रहा है। मन में ख्याल आया कि अगर यह उसे चूम ले, चाट भी ले तो कौन सी बड़ी बात हो जाएगी।
भगों में जिस तरह गुदगुदी और सनसनी हो रही थी उसमें कभी-कभी लगता था, काश यह हिम्मत करके ऐसा कर ही दे। मैं उसे हल्का-फुल्का डाँटकर छोड़ दूंगी और उसे करने दूंगी। लेकिन यह बंदा कुछ ज्यादा ही शरीफ था। शायद कलाकार का अपना मिजाज था कि जब वह रच रहा होता है तो हर लोभ-लालच से दूर होता है।
बालों को रंगने के बाद उसने उन्हें फूंक फूंक कर सुखाया। अब उसने ब्रश लेकर आउटलाइन के अंदर रंग भरना शुरू किया। उसकी कूची पुसी में ऊपर से नीचे घूमते हुए नीचे जाकर कभी कभी गुदा के छेद को भी छू जाती थी। बालों की उस छुअन से इतनी सुरसुरी होती थी कि मुझे उसे बीच-बीच में रुकने के लिए कहना पड़ता था।
आख़िरकार उसने योनि होठों की विभाजक रेखा के निचले हिस्से में दोनों चूतड़ों पर आधे-आधे दीपक बना दिए। जांघों को पूरी तरह फैलाए रखने में मेरी कमर और पांव बुरी तरह दुख गए थे।
चित्र पूरा करके उसने मुझे आइना पकड़ा दिया।
वाह… एक बहुत ही सुंदर कल्पना साकार हो रही थी। आइने में मैं देख रही थी कि एक एक जांघ पर ‘शुभ’ और ‘दीपावली’ लिखी थी और दोनों शब्दों के बीच जांघों के जोड़ में दीपक जल रहा था। योनि के हल्के खुले होठों के अंदर की लाली दिए की लौ के बीच की लाली बन गई थी और होंठों के किनारों पर के बाल लौ के बाहरी पीले-भूरे रंग। बालों में लगा सुनहरा रंग ऐसा लग रहा था मानो दिए की लौ से सुनहरी आभा बिखर रही हो।
उसने शुभ दीपावली की रेखाओं को रंगों से मोटा और गाढ़ा करके काम समाप्त कर दिया। कुछ देर यों ही बैठने के लिए कहा ताकि रंग अच्छे सूख जाएँ। उसने ब्लोअर से हवा भी लगा दी।
मैं उसे पैसे देने लगी तो उसने पैसे लेने से मना कर दिया। बोला कि पहले जिस काम के लिए टैटू बनवाया है वह काम कर लूँ। पसंद आया तभी पैसे लेगा।
“ऐसे ग्राहक रोज रोज नहीं मिलते इसलिए खास मन से काम किया है, आपके और ब्वायफ्रेंड को पसंद आएगा तो उसे अपनी कला की सफलता मानूंगा।”
मुझे अजीब लगा पर उसकी इच्छा देखते हुए बात मान ली।
शायद वह देखना चाहता था कि बॉयफ्रेंड को दिखाने के बाद मेरी क्या गत हुई… चुदी या नहीं। या शायद वह पैसे के अलावा मुझसे कुछ ‘एक्स्ट्रा’ पाना चहता था।
जो हो, बंदा भला था, काम के दौरान उसने किसी प्रकार की कोई गलत हरकत नहीं की थी, इसलिए मैं भी उसके प्रति कुछ उदार होने को तैयार हो गई। (वैसे इच्छा तो मेरी भी होने लगी थी।)
ब्वायफ्रेंड से मिलने जाते समय मन में शंकाओं-चिंताओं-रोमांचों के जितने पटाखे फूट रहे थे, वे इससे पहले की किसी भी दीवाली से ज्यादा थे। क्या होगा, कैसे दिखाऊंगी उसको, शुरुआत ही कैसे करूंगी। क्या सोचेगा वो? मुझे सस्ती या चालू तो नहीं समझ लेगा? हाय राम, क्या मैं सचमुच उसके सामने टांगें खोलूंगी? मगर अभी उस कलाकार के सामने अपने को मैं कैसे नंगी दिखा सकी? मैं सही दिमाग में तो हूँ न? पागल तो नहीं हूँ?
मैं गाड़ी में ठीक से बैठी भी नहीं कि रंग न उखड़ जाएँ हालाँकि उसने मुझे आश्वस्त किया था कि बैठने से या कपड़ों की रगड़ से या पानी लगने से चित्र नहीं छूटेगा। मिटाने के लिए खास द्रव से धोना पड़ेगा, उसके लिए मुझे उसके पास आना होगा।
मगर मन कहाँ मानता है; मैं कार सी सीट पर चूतड़ को आधा उठाए ही बैठी थी।
****
ब्वायफ्रेंड से मिलने जाते समय मन में शंकाओं-चिंताओं-रोमांचों के जितने पटाखे फूट रहे थे, वे इससे पहले की किसी भी दीवाली से ज्यादा थे। क्या होगा, कैसे दिखाऊंगी उसको, शुरुआत ही कैसे करूंगी। क्या सोचेगा वो? मुझे सस्ती या चालू तो नहीं समझ लेगा? हाय राम, क्या मैं सचमुच उसके सामने टांगें खोलूंगी? मगर अभी उस कलाकार के सामने अपने को मैं कैसे नंगी दिखा सकी? मैं सही दिमाग में तो हूँ न? पागल तो नहीं हूँ?
मैं सोच रही थी मेरे इतने दिन से प्रेम की प्यास में पड़ा हुआ बॉयफ्रेंड जिसे देख तक नहीं पाया है, उसे यह नामुराद खुलकर देख रहा है। देख ही नहीं, उसे छू और सहला भी रहा है। मन में ख्याल आया कि अगर यह उसे चूम ले, चाट भी ले तो कौन सी बड़ी बात हो जाएगी।
भगों में जिस तरह गुदगुदी और सनसनी हो रही थी उसमें कभी-कभी लगता था, काश यह हिम्मत करके ऐसा कर ही दे। मैं उसे हल्का-फुल्का डाँटकर छोड़ दूंगी और उसे करने दूंगी। लेकिन यह बंदा कुछ ज्यादा ही शरीफ था। शायद कलाकार का अपना मिजाज था कि जब वह रच रहा होता है तो हर लोभ-लालच से दूर होता है।
बालों को रंगने के बाद उसने उन्हें फूंक फूंक कर सुखाया। अब उसने ब्रश लेकर आउटलाइन के अंदर रंग भरना शुरू किया। उसकी कूची पुसी में ऊपर से नीचे घूमते हुए नीचे जाकर कभी कभी गुदा के छेद को भी छू जाती थी। बालों की उस छुअन से इतनी सुरसुरी होती थी कि मुझे उसे बीच-बीच में रुकने के लिए कहना पड़ता था।
आख़िरकार उसने योनि होठों की विभाजक रेखा के निचले हिस्से में दोनों चूतड़ों पर आधे-आधे दीपक बना दिए। जांघों को पूरी तरह फैलाए रखने में मेरी कमर और पांव बुरी तरह दुख गए थे।
चित्र पूरा करके उसने मुझे आइना पकड़ा दिया।
वाह… एक बहुत ही सुंदर कल्पना साकार हो रही थी। आइने में मैं देख रही थी कि एक एक जांघ पर ‘शुभ’ और ‘दीपावली’ लिखी थी और दोनों शब्दों के बीच जांघों के जोड़ में दीपक जल रहा था। योनि के हल्के खुले होठों के अंदर की लाली दिए की लौ के बीच की लाली बन गई थी और होंठों के किनारों पर के बाल लौ के बाहरी पीले-भूरे रंग। बालों में लगा सुनहरा रंग ऐसा लग रहा था मानो दिए की लौ से सुनहरी आभा बिखर रही हो।
उसने शुभ दीपावली की रेखाओं को रंगों से मोटा और गाढ़ा करके काम समाप्त कर दिया। कुछ देर यों ही बैठने के लिए कहा ताकि रंग अच्छे सूख जाएँ। उसने ब्लोअर से हवा भी लगा दी।
मैं उसे पैसे देने लगी तो उसने पैसे लेने से मना कर दिया। बोला कि पहले जिस काम के लिए टैटू बनवाया है वह काम कर लूँ। पसंद आया तभी पैसे लेगा।
“ऐसे ग्राहक रोज रोज नहीं मिलते इसलिए खास मन से काम किया है, आपके और ब्वायफ्रेंड को पसंद आएगा तो उसे अपनी कला की सफलता मानूंगा।”
मुझे अजीब लगा पर उसकी इच्छा देखते हुए बात मान ली।
शायद वह देखना चाहता था कि बॉयफ्रेंड को दिखाने के बाद मेरी क्या गत हुई… चुदी या नहीं। या शायद वह पैसे के अलावा मुझसे कुछ ‘एक्स्ट्रा’ पाना चहता था।
जो हो, बंदा भला था, काम के दौरान उसने किसी प्रकार की कोई गलत हरकत नहीं की थी, इसलिए मैं भी उसके प्रति कुछ उदार होने को तैयार हो गई। (वैसे इच्छा तो मेरी भी होने लगी थी।)
ब्वायफ्रेंड से मिलने जाते समय मन में शंकाओं-चिंताओं-रोमांचों के जितने पटाखे फूट रहे थे, वे इससे पहले की किसी भी दीवाली से ज्यादा थे। क्या होगा, कैसे दिखाऊंगी उसको, शुरुआत ही कैसे करूंगी। क्या सोचेगा वो? मुझे सस्ती या चालू तो नहीं समझ लेगा? हाय राम, क्या मैं सचमुच उसके सामने टांगें खोलूंगी? मगर अभी उस कलाकार के सामने अपने को मैं कैसे नंगी दिखा सकी? मैं सही दिमाग में तो हूँ न? पागल तो नहीं हूँ?
मैं गाड़ी में ठीक से बैठी भी नहीं कि रंग न उखड़ जाएँ हालाँकि उसने मुझे आश्वस्त किया था कि बैठने से या कपड़ों की रगड़ से या पानी लगने से चित्र नहीं छूटेगा। मिटाने के लिए खास द्रव से धोना पड़ेगा, उसके लिए मुझे उसके पास आना होगा।
मगर मन कहाँ मानता है; मैं कार सी सीट पर चूतड़ को आधा उठाए ही बैठी थी।
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ब्वायफ्रेंड से मिलने जाते समय मन में शंकाओं-चिंताओं-रोमांचों के जितने पटाखे फूट रहे थे, वे इससे पहले की किसी भी दीवाली से ज्यादा थे। क्या होगा, कैसे दिखाऊंगी उसको, शुरुआत ही कैसे करूंगी। क्या सोचेगा वो? मुझे सस्ती या चालू तो नहीं समझ लेगा? हाय राम, क्या मैं सचमुच उसके सामने टांगें खोलूंगी? मगर अभी उस कलाकार के सामने अपने को मैं कैसे नंगी दिखा सकी? मैं सही दिमाग में तो हूँ न? पागल तो नहीं हूँ?