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Misc. Erotica सेक्स, उत्तेजना और कामुकता -
#13
मुझे खुद पर ताज्जुब हो रहा था कि कहाँ तो इतनी रूढ़िवादी हूँ कि ब्वायफ्रेंड को अभी तक स्तन भी देखने नहीं दिए, कहाँ यह मैं इस अनजान के सामने पूरी तरह नंगी हो रही हूँ। लेकिन मैं बिंदास थी। करना है तो करना है, बस!


लेकिन पैंटी उतारने के बाद ऐसी शर्म आने लगी कि रोयें खड़े हो गए। लीलाधर जी ने शालू की इस स्थिति के बारे में कुछ बताया नहीं था। मैंने सोचा था की मुझे वह गद्देदार मजेदार कुर्सी पर बिठाएगा। पर उसने मुझे टेबल पर चढ़कर पंजों पर ‘चुक्को-मुक्को’ बैठने का निर्देश दिया। छी, कितना बुरा लग रहा था जैसे इन्डियन टॉयलेट पर पॉटी करने के लिए बैठी हूँ।

बैठने पर तौलिया इस तरह उठ गया था कि नीचे सबकुछ खुल गया था। सोच रही थी, मैं ये क्या कर रही हूँ।

वह मेरी खुली टांगों के बीच कुर्सी लगाकर बैठ गया। तौलिया यूँ भी नामभर को था, उसको भी हटाकर उसने मेरी पुसी का ठीक से मुआयना किया। पेंसिल लेकर उसने दोनों जांघों पर बीच से बराबर दूरी रखते हुए निशान लगाए। कुछ निशान उसने भग-होठों के दोनों तरफ भी उसने लगाए। फिर उसने एक दूसरी पैंसिल लेकर लिखना शुरू किया।

पैंसिल की नोक चलने पर जांघ में गुदगुदी होने लगी। कुछ देर तक उस गुदगुदी के मारे स्थिर नहीं रह पाई। कुछ देर की प्रैक्टिस के बाद ही उसके लिखने लायक स्थिर हो पाई। जब वह मेरी बाईं जांघ पर लिख रहा था उस वक्त मैंने यथासंभव योनि होठों को और दाईं जांघ को तौलिये से ढक लिया था।

बाईं जांघ पर लिखने के बाद उसने मेरी दाई जांघ पर एक दूसरा शब्द लिखा। लिखने के बाद उसने मुझे आइना थमाया। बड़े अक्षरों में एक जाँघ पर ‘शुभ’ और दूसरी पर ‘दीपावली’ लिखा था- ‘शुभ दीपावली’ बड़ी कलात्मक लिखाई थी।

मानना पड़ेगा कि स्त्री की खुली योनि को देखते हुए भी कोई कलाकार होशो-हवास सलामत रखकर सुंदर लिखाई को अंजाम दे सकता है। लेकिन दोनों शब्दों के बीच योनि होठों और बालों की गहरी कालिमा तो अच्छी नहीं लग रही थी। मैंने कहा, इतना तो पैंटी पहनकर भी दिखाया जा सकता है? पुसी दिखेगी तो संदेश गंदा लगेगा, दीपावली की शुभता और पवित्रता का एहसास चला जाएगा।

लेकिन अभी उसका काम समाप्त नहीं हुआ था। उसने मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं दिया। कई कलाकार एक बार तय कर लें तो टोका-टोकी पसंद नहीं करते। मैंने अभी तक अपनी पुसी पर तौलिये का कोना दबा रखा था। उसने उसे मेरे हाथों को हटा दिया और मेरी कमर से तौलिया खींच लिया। मैं ऊपर टी-शर्ट में लेकिन नीचे पूरी तरह नंगी थी और वह मेरी भगों में सीधे देख रहा था। गुदा का छिद्र भी उसे साफ दिख रहा होगा। मैं तो शरम से मर ही गई थी।

कुछ देर तक उसने उसका अच्छे से मुआयना किया। उसके बाद उसने उस्तरा उठाया और पेड़ू के बालों को धीरे-धीरे मूंड़ना शुरू किया। बाहर से अंदर होटों की ओर। रेजर से बालों के कटने की किर-किर आवाज अजीब और उत्तेजक लग रही थी। मूड़ते हुए क्रमशः होठों की ओर बढ़ते हुए उसने होठों के बाहर बाहर लगभग एक अंगुल चौड़ाई में बाल छोड़ दिए। होठों के किनारे-किनारे पौन इंच तक घने काले बालों का बॉर्डर और उसके बाद सफाचट गोरा मैदान। जैसे गेट के किनारों पर किसी ने घास की सजावट करके छोड़ दिया हो।

बैठे-बैठे मेरे पाँव थकने लगे थे और होठों व योनि में इन गतिविधियों से गीलापन आने लगा था। निश्चित ही उसे उसकी गंध मिलने लगी होगी। इसलिए मैं कुछ देर रुकने का समय चाहती थी।

वह उठा और बाथरुम चला गया, लगभग 5 मिनट बिताकर निकला। मुझे लग गया कि उतनी देर में वह बाथरूम में हाथ से अपनी उत्तेजना शांत करके आया है। उसके चेहरे पर लाली थी। फिर भी मुझे उस पर गुस्सा नहीं आया, बल्कि उल्टे मुझे अच्छा लगा।
उतनी देर में मेरी भी ‘गर्मी’ कम हो गई थी।

उसने फिर काम शुरु किया।

अब उसने कैंची से बालों को धीरे-धीरे कुतरना शुरु किया। उन्हें इच्छित लंबाई तक लाने के बाद ब्रश से कटे बालों को झाड़ दिया। अभी तक मुझे उसकी डिजाइन का कुछ खास आइडिया नहीं था। इतना जरूर मालूम था वहाँ कोई तस्वीर बनाने वाला है।

मुझे काफी गुदगुदी हो रही थी। उसने मुझे स्थिर रहने को कहा नहीं तो तस्वीर बिगड़ जाएगी। मैं जिस तरह बैठी थी, मेरे योनि के होठों की फांक उसकी नाक की सीध में खड़ी थी; ऊपर क्लिट से संकरे कोण से शुरू होकर होंठों के बीच कुछ दूर तक समान अंतर के बाद नीचे फैलते हुए चूतड़ों की फाँक।


उसने फाँक के दोनों तरफ जाँघों पर आधे-आधे दीपक की आउटलाइन खींची। अब मुझे समझ में आ गया वह क्या बना रहा है। सस्पेंस को बनाए रखते हुए उसने सुनहले रंग में कूची डुबोई और फाँक के किनारे किनारे बालों को रंगना शुरू किया। बालों पर हल्के हल्के ब्रश चलाते हुए उसने उन्हें इस तरह रंगा कि कुछ बाल काले रहें, कुछ सुनहरे।
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RE: सेक्स, उत्तेजना और कामुकता - - by usaiha2 - 28-11-2019, 08:05 PM



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