28-11-2019, 03:06 PM
उसके साथ यह घटना देहरादून में घटी, जहाँ उनका एक आलिशान बंगला है, उसके पापा वहाँ अपने काम के सिलसिले में जा रहे थे तो वो भी उनके साथ जिद करके वहाँ स्टडी करने के लिए चली गई। शालिनी के पापा काम के सिलसिले में बहुत व्यस्त रहा करते थे और वो अकेली बंगले में रह सकती थी क्योंकि वहाँ नौकर-चाकर, चौकीदार वगैरा सब रहते हैं।
उसका कमरा सबसे ऊपर था और उसके पीछे की तरफ एक बड़ी सी बालकनी थी जहाँ से दूर दूर तक उनके बंगले का घना और पेड़ों से घिरा हुआ बगीचा दिखाई देता था।
उस दिन सुबह दस बजे के करीब वो अपने सारे कपड़े उतार पूरी नंगी होकर नहाने के लिए बाथ रूम में घुसी, वहाँ लगे बड़े से शीशे में अपने निर्वस्त्र नग्न बदन को निहारा और फिर शावर चला कर उसके नीचे खड़ी हो गई। उसने अपने बालों में महंगा शैम्पू लगा कर खूब झाग बनाए, पूरे बदन पर खूब सारा बॉडी शैम्पू मल कर वो ऊपर से नीचे तक झाग ही झाग से सराबोर हो गई।
तभी उसे बाहर से जोर जोर से ठक-ठक, ठक-ठक की आवाजें लगातार आने लगी।
उसे समझ नहीं आया कि पीछे बगीचे में कौन है और ये ठक-ठक की आवाजें किस वजह से आ रही हैं, उसने बाथरूम की खिड़की से देखने का प्रयास किया तो वहाँ उसे कोई आदमी दिखाई दिया। वहाँ एक काला कलूटा सा आदमी या कहें कि लड़का था जो उघड़े बदन था। उसने नीचे की तरफ सिर्फ एक धोती लपेट रखी थी और वो पसीने से तरबतर था।
वो कुल्हाड़ी लेकर पीछे के बेतरतीब बढ़ चुके पेड़ों की शाखाओं को काट रहा था।
उसका बदन बहुत ही कसरती था, छाती पर बाल थे और जब वो पूरी तरह से कुल्हाड़ी ऊपर उठा कर पेड़ की डाल पर मार रहा था तो देखा कि उसके बाहों के नीचे बगलों में भी घने बालों का गुच्छा था।
और यही सब बातें शालिनी को बहुत ज्यादा उत्तेजित भी करती थी और वो इस समय बिल्कुल निर्वस्त्र और भीगी हुई खड़ी थी वो एक टक उसे निहारने लगी और उसके हाथ बरबस अपने वक्ष पर कसने लगे, उसे बहुत अच्छा लग रहा था, ऐसे ही रफ टफ, खुरदुरे और मजदूर जैसे लोग उसे ना जाने क्यों बहुत ही ज्यादा उत्तेजित करते थे, वो अपना नहाना भूल गई और एक टक उसे देखे जा रही थी और अब उसने बाथरूम की खिड़की बहुत अच्छे से खोल ली, अब वो उसे ज्यादा अच्छे से देख पा रही थी और वो इस बात से बिल्कुल निश्चिन्त थी कि वो मजदूर युवक उसे नहीं देख पा रहा था।
और तब उसने अपना दूसरा हाथ अपनी चूत की तरफ सरकाना शुरू किया, पूरा बदन वैसे ही साबुन की वजह से चिकना हो रहा था,
और अब तो चूत के अंदर तक भी उसे कुछ चिकना सा द्रव निकलता सा प्रतीत हुआ।
हम सब जानते हैं कि चूत के इस तरह से गीला होने का क्या मतलब होता है, उसका गीला बदन भी अब वासना की आग में जलने लगा था, अब वो और जोर जोर से और दबा कर अपनी चूत को सहलाने और मसलने लगी।
तभी उस मजदूर ने अपनी कुल्हाड़ी एक तरफ रखी और पास ही पड़े एक टूटे से जग को उठा कर पानी पिया। टूटे होने की वजह से जग का कुछ पानी उसके मुँह, गर्दन, छाती और पेट से होकर बहता हुआ नीचे आ रहा था, जो उसे और भी ज्यादा उत्तेजक बना रहा था।
पानी पीने के बाद उसने अपनी धोती खोलने का उपक्रम किया और बालकनी के नीचे वाले कोने की तरफ बढ़ने लगा।
शालिनी फट से समझ गई कि वह उस जगह पेशाब करने जा रहा है। और वो कोना उसे अपने बाथरूम से दिखाई नहीं देता था। शालिनी वासना की आग में बुरी तरह से तप चुकी थी और उसके लंड को देखने का मौका गंवाना नहीं चाहती थी, इसलिए बिना सोचे समझे, सारी लाज-शर्म भूल कर वैसे ही नग्नावस्था में बाथरूम से बाहर निकल कर बालकनी की ओर भागी। पूरे बदन पर, बालों पए साबुन के झाग थे, पर वो बेपरवाह भाग कर बालकनी में जा पहुँची उसकी उत्तेजना और उत्सुकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके पूरी तरह से धोती खोल कर चड्डी उतारने से पहले ही वो वहाँ पहुँच चुकी थी उसके लंड के दीदार करने के लिए ! बालकनी तक भी खूब घने घने पेड़ और शाखाएँ थी वो उनकी आड़ में जा छुपी और अब अपने एक पैर को फैला के अपनी एक उंगली को चूत के अन्दर तक घुसा कर उसके चड्डी से बहर आते हुए लंड को देखने लगी।
और जब लंड बाहर आया तो...
उसकी तो जैसे साँसें ही तूफ़ान बन गई, दिल जोर जोर से धड़कने लगा, वो खुद जितना काला था उससे भी कहीं ज्यादा काला उसका लंड था जो सामान्य सुप्त अवस्था में ही काफी बड़ा दिख रहा था, ना जाने उसने कब से अपना पेशाब रोका हुआ था, क्योंकि एकदम से तेज़ धार छूटी और उसने चैन की सांस ली। पेशाब करने के दौरान वो अपनी घनी, गंदी और उलझी झांटों के बाल नौचता रहा और टूटे हुए जो बाल उसके हाथ में आये, उन्हें फूंक मार के हवा में उड़ाता रहा।
और उधर ऊपर नंगी पुंगी खड़ी शालिनी उस गंदे इंसान के लंड को देख कर पगला ही गई और जब तक उसने मूतने के बाद लंड को वापिस कच्छे के अंदर नहीं घुसा लिया, वो देखती रही।
अब वो हस्तमैथुन करने लगी थी, वो वहीं बालकनी में फ़र्श पर पसर गई अपने पैरों को चौड़ा करके !
तभी तेज़ बादल गरजे, देहरादून में उन दिनों बारिश का मौसम था, और पानी की बौछारें उसके नंगे बदन पर गिरने लगी और उसके जिस्म से साबुन और झाग बह बह के जाने लगे और उसका दूधिया नंगा बदन खिलने लगा। उसके हाथ अब तेज़ी से उसकी योनि पर चल रहे थे और दिमाग यह सोच रहा था कि अब इस काले मजदूर को कैसे अपना गुलाम बनाया जाए, उससे अपना बदन मसलवाया जाए !
और फिर धीरे धीरे उसके दिमाग में एक योजना बनने लगी, उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई, और फिर उसने बालकनी के उस खुरदुरे फर्श पर अपने मांसल कूल्हे उछाल उछाल कर और एक पेड़ की शाखा को अपनी चूत से रगड़ रगड़ कर हस्तमैथुन संपन्न किया और देर तक यूहीं बालकनी में नंग धडंग पड़ी रही, भीगती रही।
नहाते समय उसने जो कुछ देखा, महसूस किया और उसके बाद खुले आसमान के नीचे गंदी सी पड़ी बालकनी के खुरदरे फर्श पर किये हस्त-मैथुन ने उसे असीम आनन्द प्रदान किया था।
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दोपहर के खाने के समय भी वो यही सब सोचती रही, फिर दिन में जब वो सोने गई, तो फिर उसे वही काला, मजदूर और उससे भी ज्यादा काला उसका लंड उसके मन मस्तिष्क पर छा गए और उसे सोने नहीं दिया, एक बार फिर से उसका हाथ सरकते हुए अपनी चूत पर चला गया, लेकिन उस बेफकूफ को पता नहीं था कि नारी शरीर में योनि वो स्थान है जिसे छूने से वासना की आग कम नहीं होती बल्कि और ज्यादा भड़कती है।
और वही उसके साथ भी हुआ, एक एक करके फिर सारे कपड़े उतरते गए उतरते गए और वो एक बार फिर से पूर्ण नग्न हो गई और अपने आप को खुद की चूत सहलाने से रोक नहीं पाई, पलंग पर उलट-पलट होने लगी, बुरी तरह से वासना की आग में तड़पने लगी और एक बार फिर हस्त-मैथुन करते हुए, मन ही मन कुछ निश्चय किया।
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उसने दोपहर के चाय के समय अपने रसोइये को बुलाया और फरमान किया- बंगले में इन दिनों जितने भी नौकर काम कर रहे हैं, सभी को मेरे सामने हाज़िर करो तुरंत !
रसोइया घबरा गया- क्या बात है मेम साब, सब ठीक तो है, किसी से कोई गुस्ताखी तो नहीं हुई न?
शालिनी बोली- जो कहा है, वो करो ! मुझे भी तो मालूम होना चाहिए कि घर में कौन कौन है और कैसे कैसे है।
"जी मेम साब !" बोल कर रसोइया चला गया और थोड़ी देर में ही घर के तीन नौकर वहाँ हाज़िर थे, पर उनमें वो उत्तेजक काला पुरुष नहीं था।
वो बोली- कौन नहीं आया?
रसोइया बोला- मेम साब सब आ गये हैं, यह दीनू है घर के अंदर की साफ़ सफाई करता है, यह रामू है माली का काम देखता है और ड्राईवर शंकर है जिसे आप जानती हैं, वो बड़े साब को लेकर बाहर गया है।
उसने कहा- तो कल पीछे के पेड़ और डालियाँ कौन काट रहा था, वो कहाँ गया, वो कौन है?
माली बोला- मैडम जी वो राजेश है, मेरा भांजा है, कुछ दिनों के लिए यहाँ आया है, दिन भर कमरे में फालतू बैठा रहता था, इसलिए उसे काम पर लगा दिया, वैसे भी उसे कसरत करने का शौक है, मैडम जी उसने कोई गुस्ताखी तो नहीं की ना आपके साथ? उसे ड्राइविंग बहुत अच्छी आती है, आप लोग आ रहे थे तो इसे काम में सहायता के लिए बुला लिया और साब की मेहरबानी होगी तो इसे कोई काम दिलाने को उनसे बोलूँगा।
शालिनी बोली- उसे बुलाओ !
"जो हुकुम मैडम जी !" कहते हुए माली गया और कुछ ही देर में वो काला शख्स जिसने उसके होश उड़ा दिए थे वो हाज़िर था, वो कसरती बदन वाला बन्दा इस समय सकपकाया सा आकर उसके सामने खड़ा हो गया।
उसने उसे ऊपर से नीचे तक तेज़ और तीखी नजर से बहुत गौर से देखा, और फिर उसकी धड़कने तेज़ हो गई, लेकिन अपने आप पर काबू पाते हुए उसने कहा- ओके ! जब तक मैं यहाँ हूँ, यह मेरे काम करेगा, वैसे भी पापा का ड्राईवर उनके साथ ही बिजी रहता है। अब तुम लोग जाओ, मैं इससे कुछ बात करती हूँ।
माली अपने भांजे को समझाते हुए बोला- देख राजू, जो जो मैडम जी कहें, वो सब बात अच्छे से सुनना और और इनका हुकुम बजाना ! समझा, कोई शिकायत का मौका मत देना !
शालिनी यह सब सुन कर मन ही मन मुस्कुराने लगी।
फिर वो सब लोग चले गए, और वो अकेला ही वहाँ रह गया।
सबके जाने के बाद शालिनी अपने बदन से लापरवाह होकर पास ही पड़े सोफे पर पसर कर बैठ गई। उसने इस समय छोटी और कसी केपरी पहन रखी थी और एक बिना बाहों वाला टॉप पहन रखा था, बाल खुले हुए थे, कपड़ों से बाहर निकलती उसकी गोरी गोरी बाहें और पिंडलियाँ बहुत सेक्सी लग रही थी और ऊपर से उसके बैठने का सेक्सी अंदाज़ अब उस काले नौकर राजेश को भी बेचैन करने लगा था।
यह बात शालिनी ने भी भांप ली थी, उसे और उकसाते हुए उसने अपने पैरों को एक दूसरे से रगड़ते हुए कहा- कल तुम पीछे क्या खट-खट कर रहे थे?
वो घबराते हुए बोला- मैडम जी, उधर बहुत पेड़ बढ़ गए थे और फ़ैल रहे थे इसलिए उनकी छंटाई कर रहा था।
शालिनी बोली- तो पूरी तरह से क्यों नहीं किये? वहाँ तो अभी भी काफी डालियाँ बेतरतीब बढ़ रही हैं?
वो तुरंत बोला- आप बताइये मैडम, कल सुबह वो भी कर दूँगा।
वो बोली- ओके, आओ मेरे साथ !
और अपनी लो वेस्ट केपरी को सोफे पर तेज़ दबाते हुए जानबूझ कर इस तरह से उठी कि वो उसकी कमर से काफी नीचे तक खिसक गई और उसके कूल्हों की गोलाइयाँ और उनकी गहरी विभाजन रेखा थोड़ी बहुत दिखाई देने लगी और वो उसके आगे कूल्हे मटकाते हुए चलने लगी, अब वो और ज्यादा उत्तेजक दिख रही थी।
अब शालिनी का चेहरा तो आगे था, राजेश की निगाहें उसके चूतड़ों पर ज़म कर रह गई और यही वो चाहती भी थी।
बंगले के पिछवाड़े पहुँच कर उसे अपने बाथरूम की खिड़की के बाहर का हिस्सा दिखाया, जहा शाखाओं और पत्तों का बहुत झुरमुट हो रहा था।
उसने कहा- मेडम मुझे इसके लिए वहाँ चढ़ कर ही काटना पडेगा, कल कर दूँगा।
इसके बाद वो चला गया और शालिनी अगली सुबह की योजना बनाने लगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
वो एक बहुत ऊँचे रसूख वाली और रईस लड़की थी, उस नौकर के साथ में वो खुद पहल करना नहीं चाहती थी, इसलिए उसने यह खेल रचा था।
उसका कमरा सबसे ऊपर था और उसके पीछे की तरफ एक बड़ी सी बालकनी थी जहाँ से दूर दूर तक उनके बंगले का घना और पेड़ों से घिरा हुआ बगीचा दिखाई देता था।
उस दिन सुबह दस बजे के करीब वो अपने सारे कपड़े उतार पूरी नंगी होकर नहाने के लिए बाथ रूम में घुसी, वहाँ लगे बड़े से शीशे में अपने निर्वस्त्र नग्न बदन को निहारा और फिर शावर चला कर उसके नीचे खड़ी हो गई। उसने अपने बालों में महंगा शैम्पू लगा कर खूब झाग बनाए, पूरे बदन पर खूब सारा बॉडी शैम्पू मल कर वो ऊपर से नीचे तक झाग ही झाग से सराबोर हो गई।
तभी उसे बाहर से जोर जोर से ठक-ठक, ठक-ठक की आवाजें लगातार आने लगी।
उसे समझ नहीं आया कि पीछे बगीचे में कौन है और ये ठक-ठक की आवाजें किस वजह से आ रही हैं, उसने बाथरूम की खिड़की से देखने का प्रयास किया तो वहाँ उसे कोई आदमी दिखाई दिया। वहाँ एक काला कलूटा सा आदमी या कहें कि लड़का था जो उघड़े बदन था। उसने नीचे की तरफ सिर्फ एक धोती लपेट रखी थी और वो पसीने से तरबतर था।
वो कुल्हाड़ी लेकर पीछे के बेतरतीब बढ़ चुके पेड़ों की शाखाओं को काट रहा था।
उसका बदन बहुत ही कसरती था, छाती पर बाल थे और जब वो पूरी तरह से कुल्हाड़ी ऊपर उठा कर पेड़ की डाल पर मार रहा था तो देखा कि उसके बाहों के नीचे बगलों में भी घने बालों का गुच्छा था।
और यही सब बातें शालिनी को बहुत ज्यादा उत्तेजित भी करती थी और वो इस समय बिल्कुल निर्वस्त्र और भीगी हुई खड़ी थी वो एक टक उसे निहारने लगी और उसके हाथ बरबस अपने वक्ष पर कसने लगे, उसे बहुत अच्छा लग रहा था, ऐसे ही रफ टफ, खुरदुरे और मजदूर जैसे लोग उसे ना जाने क्यों बहुत ही ज्यादा उत्तेजित करते थे, वो अपना नहाना भूल गई और एक टक उसे देखे जा रही थी और अब उसने बाथरूम की खिड़की बहुत अच्छे से खोल ली, अब वो उसे ज्यादा अच्छे से देख पा रही थी और वो इस बात से बिल्कुल निश्चिन्त थी कि वो मजदूर युवक उसे नहीं देख पा रहा था।
और तब उसने अपना दूसरा हाथ अपनी चूत की तरफ सरकाना शुरू किया, पूरा बदन वैसे ही साबुन की वजह से चिकना हो रहा था,
और अब तो चूत के अंदर तक भी उसे कुछ चिकना सा द्रव निकलता सा प्रतीत हुआ।
हम सब जानते हैं कि चूत के इस तरह से गीला होने का क्या मतलब होता है, उसका गीला बदन भी अब वासना की आग में जलने लगा था, अब वो और जोर जोर से और दबा कर अपनी चूत को सहलाने और मसलने लगी।
तभी उस मजदूर ने अपनी कुल्हाड़ी एक तरफ रखी और पास ही पड़े एक टूटे से जग को उठा कर पानी पिया। टूटे होने की वजह से जग का कुछ पानी उसके मुँह, गर्दन, छाती और पेट से होकर बहता हुआ नीचे आ रहा था, जो उसे और भी ज्यादा उत्तेजक बना रहा था।
पानी पीने के बाद उसने अपनी धोती खोलने का उपक्रम किया और बालकनी के नीचे वाले कोने की तरफ बढ़ने लगा।
शालिनी फट से समझ गई कि वह उस जगह पेशाब करने जा रहा है। और वो कोना उसे अपने बाथरूम से दिखाई नहीं देता था। शालिनी वासना की आग में बुरी तरह से तप चुकी थी और उसके लंड को देखने का मौका गंवाना नहीं चाहती थी, इसलिए बिना सोचे समझे, सारी लाज-शर्म भूल कर वैसे ही नग्नावस्था में बाथरूम से बाहर निकल कर बालकनी की ओर भागी। पूरे बदन पर, बालों पए साबुन के झाग थे, पर वो बेपरवाह भाग कर बालकनी में जा पहुँची उसकी उत्तेजना और उत्सुकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके पूरी तरह से धोती खोल कर चड्डी उतारने से पहले ही वो वहाँ पहुँच चुकी थी उसके लंड के दीदार करने के लिए ! बालकनी तक भी खूब घने घने पेड़ और शाखाएँ थी वो उनकी आड़ में जा छुपी और अब अपने एक पैर को फैला के अपनी एक उंगली को चूत के अन्दर तक घुसा कर उसके चड्डी से बहर आते हुए लंड को देखने लगी।
और जब लंड बाहर आया तो...
उसकी तो जैसे साँसें ही तूफ़ान बन गई, दिल जोर जोर से धड़कने लगा, वो खुद जितना काला था उससे भी कहीं ज्यादा काला उसका लंड था जो सामान्य सुप्त अवस्था में ही काफी बड़ा दिख रहा था, ना जाने उसने कब से अपना पेशाब रोका हुआ था, क्योंकि एकदम से तेज़ धार छूटी और उसने चैन की सांस ली। पेशाब करने के दौरान वो अपनी घनी, गंदी और उलझी झांटों के बाल नौचता रहा और टूटे हुए जो बाल उसके हाथ में आये, उन्हें फूंक मार के हवा में उड़ाता रहा।
और उधर ऊपर नंगी पुंगी खड़ी शालिनी उस गंदे इंसान के लंड को देख कर पगला ही गई और जब तक उसने मूतने के बाद लंड को वापिस कच्छे के अंदर नहीं घुसा लिया, वो देखती रही।
अब वो हस्तमैथुन करने लगी थी, वो वहीं बालकनी में फ़र्श पर पसर गई अपने पैरों को चौड़ा करके !
तभी तेज़ बादल गरजे, देहरादून में उन दिनों बारिश का मौसम था, और पानी की बौछारें उसके नंगे बदन पर गिरने लगी और उसके जिस्म से साबुन और झाग बह बह के जाने लगे और उसका दूधिया नंगा बदन खिलने लगा। उसके हाथ अब तेज़ी से उसकी योनि पर चल रहे थे और दिमाग यह सोच रहा था कि अब इस काले मजदूर को कैसे अपना गुलाम बनाया जाए, उससे अपना बदन मसलवाया जाए !
और फिर धीरे धीरे उसके दिमाग में एक योजना बनने लगी, उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई, और फिर उसने बालकनी के उस खुरदुरे फर्श पर अपने मांसल कूल्हे उछाल उछाल कर और एक पेड़ की शाखा को अपनी चूत से रगड़ रगड़ कर हस्तमैथुन संपन्न किया और देर तक यूहीं बालकनी में नंग धडंग पड़ी रही, भीगती रही।
नहाते समय उसने जो कुछ देखा, महसूस किया और उसके बाद खुले आसमान के नीचे गंदी सी पड़ी बालकनी के खुरदरे फर्श पर किये हस्त-मैथुन ने उसे असीम आनन्द प्रदान किया था।
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दोपहर के खाने के समय भी वो यही सब सोचती रही, फिर दिन में जब वो सोने गई, तो फिर उसे वही काला, मजदूर और उससे भी ज्यादा काला उसका लंड उसके मन मस्तिष्क पर छा गए और उसे सोने नहीं दिया, एक बार फिर से उसका हाथ सरकते हुए अपनी चूत पर चला गया, लेकिन उस बेफकूफ को पता नहीं था कि नारी शरीर में योनि वो स्थान है जिसे छूने से वासना की आग कम नहीं होती बल्कि और ज्यादा भड़कती है।
और वही उसके साथ भी हुआ, एक एक करके फिर सारे कपड़े उतरते गए उतरते गए और वो एक बार फिर से पूर्ण नग्न हो गई और अपने आप को खुद की चूत सहलाने से रोक नहीं पाई, पलंग पर उलट-पलट होने लगी, बुरी तरह से वासना की आग में तड़पने लगी और एक बार फिर हस्त-मैथुन करते हुए, मन ही मन कुछ निश्चय किया।
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उसने दोपहर के चाय के समय अपने रसोइये को बुलाया और फरमान किया- बंगले में इन दिनों जितने भी नौकर काम कर रहे हैं, सभी को मेरे सामने हाज़िर करो तुरंत !
रसोइया घबरा गया- क्या बात है मेम साब, सब ठीक तो है, किसी से कोई गुस्ताखी तो नहीं हुई न?
शालिनी बोली- जो कहा है, वो करो ! मुझे भी तो मालूम होना चाहिए कि घर में कौन कौन है और कैसे कैसे है।
"जी मेम साब !" बोल कर रसोइया चला गया और थोड़ी देर में ही घर के तीन नौकर वहाँ हाज़िर थे, पर उनमें वो उत्तेजक काला पुरुष नहीं था।
वो बोली- कौन नहीं आया?
रसोइया बोला- मेम साब सब आ गये हैं, यह दीनू है घर के अंदर की साफ़ सफाई करता है, यह रामू है माली का काम देखता है और ड्राईवर शंकर है जिसे आप जानती हैं, वो बड़े साब को लेकर बाहर गया है।
उसने कहा- तो कल पीछे के पेड़ और डालियाँ कौन काट रहा था, वो कहाँ गया, वो कौन है?
माली बोला- मैडम जी वो राजेश है, मेरा भांजा है, कुछ दिनों के लिए यहाँ आया है, दिन भर कमरे में फालतू बैठा रहता था, इसलिए उसे काम पर लगा दिया, वैसे भी उसे कसरत करने का शौक है, मैडम जी उसने कोई गुस्ताखी तो नहीं की ना आपके साथ? उसे ड्राइविंग बहुत अच्छी आती है, आप लोग आ रहे थे तो इसे काम में सहायता के लिए बुला लिया और साब की मेहरबानी होगी तो इसे कोई काम दिलाने को उनसे बोलूँगा।
शालिनी बोली- उसे बुलाओ !
"जो हुकुम मैडम जी !" कहते हुए माली गया और कुछ ही देर में वो काला शख्स जिसने उसके होश उड़ा दिए थे वो हाज़िर था, वो कसरती बदन वाला बन्दा इस समय सकपकाया सा आकर उसके सामने खड़ा हो गया।
उसने उसे ऊपर से नीचे तक तेज़ और तीखी नजर से बहुत गौर से देखा, और फिर उसकी धड़कने तेज़ हो गई, लेकिन अपने आप पर काबू पाते हुए उसने कहा- ओके ! जब तक मैं यहाँ हूँ, यह मेरे काम करेगा, वैसे भी पापा का ड्राईवर उनके साथ ही बिजी रहता है। अब तुम लोग जाओ, मैं इससे कुछ बात करती हूँ।
माली अपने भांजे को समझाते हुए बोला- देख राजू, जो जो मैडम जी कहें, वो सब बात अच्छे से सुनना और और इनका हुकुम बजाना ! समझा, कोई शिकायत का मौका मत देना !
शालिनी यह सब सुन कर मन ही मन मुस्कुराने लगी।
फिर वो सब लोग चले गए, और वो अकेला ही वहाँ रह गया।
सबके जाने के बाद शालिनी अपने बदन से लापरवाह होकर पास ही पड़े सोफे पर पसर कर बैठ गई। उसने इस समय छोटी और कसी केपरी पहन रखी थी और एक बिना बाहों वाला टॉप पहन रखा था, बाल खुले हुए थे, कपड़ों से बाहर निकलती उसकी गोरी गोरी बाहें और पिंडलियाँ बहुत सेक्सी लग रही थी और ऊपर से उसके बैठने का सेक्सी अंदाज़ अब उस काले नौकर राजेश को भी बेचैन करने लगा था।
यह बात शालिनी ने भी भांप ली थी, उसे और उकसाते हुए उसने अपने पैरों को एक दूसरे से रगड़ते हुए कहा- कल तुम पीछे क्या खट-खट कर रहे थे?
वो घबराते हुए बोला- मैडम जी, उधर बहुत पेड़ बढ़ गए थे और फ़ैल रहे थे इसलिए उनकी छंटाई कर रहा था।
शालिनी बोली- तो पूरी तरह से क्यों नहीं किये? वहाँ तो अभी भी काफी डालियाँ बेतरतीब बढ़ रही हैं?
वो तुरंत बोला- आप बताइये मैडम, कल सुबह वो भी कर दूँगा।
वो बोली- ओके, आओ मेरे साथ !
और अपनी लो वेस्ट केपरी को सोफे पर तेज़ दबाते हुए जानबूझ कर इस तरह से उठी कि वो उसकी कमर से काफी नीचे तक खिसक गई और उसके कूल्हों की गोलाइयाँ और उनकी गहरी विभाजन रेखा थोड़ी बहुत दिखाई देने लगी और वो उसके आगे कूल्हे मटकाते हुए चलने लगी, अब वो और ज्यादा उत्तेजक दिख रही थी।
अब शालिनी का चेहरा तो आगे था, राजेश की निगाहें उसके चूतड़ों पर ज़म कर रह गई और यही वो चाहती भी थी।
बंगले के पिछवाड़े पहुँच कर उसे अपने बाथरूम की खिड़की के बाहर का हिस्सा दिखाया, जहा शाखाओं और पत्तों का बहुत झुरमुट हो रहा था।
उसने कहा- मेडम मुझे इसके लिए वहाँ चढ़ कर ही काटना पडेगा, कल कर दूँगा।
इसके बाद वो चला गया और शालिनी अगली सुबह की योजना बनाने लगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
वो एक बहुत ऊँचे रसूख वाली और रईस लड़की थी, उस नौकर के साथ में वो खुद पहल करना नहीं चाहती थी, इसलिए उसने यह खेल रचा था।