25-11-2019, 07:58 PM
update 47
शाम से ले कर रात तक ऋतू मुझसे बात नहीं कर रही थी और मुँह फुला कर घूम रही थी| मैंने एक दो बार उससे बात करनी चाही तो वो बिदक कर चली गई| खाना परोस कर मुझे देने के टाइम भी वो अपनी आँखों से मुझे अपना गुस्सा दिखा रही थी| खाना खाने के बाद वो बर्तन धो रही थी, और उसके बर्तन धोना खत्म होगया था| वो उठने लगी तभी मैंने अपना जूठा गिलास उसे दिया तो वो बुदबुदाते हुए बोली; "अब घर में आपको सब नहीं दिख रहे जो मुझे गिलास दे रहे हो?" मैं बस मुस्कुराया और वापस आंगन में सबके साथ बैठ गया| रात को सब एक-एक कर अपने कमरों में चले गए बस मैं, भाभी और ऋतू ही रह गए थे| भाभी का कमरा नीचे था तो वो मेरे सामने से इठलाते हुए गईं जो की ऋतू ने देख लिया और गुस्से में तमतमाते हुए गिलास नीचे फेंका| भाभी ने उसे ऐसा करते हुए नहीं देखा बस आवाज सुन के उस पर चिल्लाईं; "हाथ में खून है की नहीं!" ऋतू कुछ नहीं बोली और मेरे सामने से होती हुई सीढ़ी चढ़ने लगी| मैं मिनट भर आंगन में टहलता रहा और फिर ऊपर अपने कमरे की तरफ चल दिया| मैं अपने कमरे में ना घुस कर ऋतू के कमरे के दरवाजे पर खड़ा हो कर उसे पलंग पर सर झुकाए बैठा देखने लगा| मैं दो कदम अंदर आया और बोला; "यार मैं सोच रहा हूँ की शादी के बाद अपने हाथ पर लिखवा लूँ: 'ऋतू का आदमी!'" ये सुन कर ऋतू हँस पड़ी फिर अगले ही पल कोशिश करने लगी की मुझे फिर से अपना गुस्सा दिखाए पर उस का चेहरा उसे ऐसा करने नहीं दे रहा था| वो हँसना चाह रही थी पर अपना गुस्सा भी दिखाना चाहती थी| वो उठी और आ कर मेरे सीने से लग गई; "आपको पता है मैं बार-बार आपके सीने से क्यों लगती हूँ?"
"हाँ...बहुत बार बताया है तुमने!" मैंने कहा|
"आपके सीने की आँच से मेरे दिल में हो रही उथल-पुथल शांत हो जाती है| जिस गर्मी के लिए मैं तड़पती हूँ वो बस यहीं मिलती है|" ऋतू ने फिर से दोहराते हुए कहा|
"चलो अब सो जाओ! सुबह से काम कर कर के तक गए होंगे!" मैंने ऋतू को खुद से दूर करते हुए कहा|
"ना..आपके सीने से लगते ही सारी थकावट दूर हो जाती है|" ऋतू फिर से मेरी छाती से चिपक गई| अब मुझे कैसे भी कर के उसे खुद से दूर करना था वरना अगर कोई आ जाता तो बखेड़ा खड़ा हो सकता था|
"माँ.. आप?!!!" मैंने झूठ बोला जिससे ऋतू मुझसे एक दम से छिटक कर दूर हो गई| पर जब उसने दरवाजे की तरफ देखा और वहाँ किसी को नहीं पाया तो वो गुस्सा हो गई| "सॉरी जान! पर कोई हमें देख लेगा तो बखेड़ा खड़ा हो जायेगा|" मैंने उसे मनाते हुए कहा पर वो दूसरी तरफ मुँह कर खड़ी हो गई| मैं पलट के जाने लगा तो वो बोली; "दरवाजा बंद कर के सोना! माँ प्यासी शेरनी की तरह आपका इंतजार कर रही है|" मैंने पलट कर देखा तो ऋतू की आँखों में जलन साफ़ झलक रही थी| मैं उसे गले लगाने को जैसे ही आगे बढ़ा की ऋतू एक दम से पलट गई| मुझे डर था की कहीं कोई आ ना जाये इसलिए मैं अपने कमरे में आ गया और दरवाजा बंद कर लिया और लेट गया| मुझे पता था की अगली सुबह मुझे क्या करना है?
सुबह फटाफट उठा और नाहा-धो के तैयार हो गया| सब आंगन में बैठे चाय पी रहे थे की मैंने बात शुरू की;
मैं: ताऊ जी शाम को सारे रावण दहन देखने चलें?
ताऊ जी: सारे क्यों? तुझे जाना है तो जा, यहाँ अपनी छत से सब नजर आता है|
मैं: पर राम-लीला भी तो देखनी है!
ताऊ जी: नहीं..कोई जर्रूरत नहीं! वहाँ भीड़-भाड़ में कौन जाएगा!
मैं: हमारे लिए भीड़-भाड़ कैसी? आपको बस मुखिया को एक फ़ोन करना है और राम-लीला की आगे वाली लाइन में सीट मिल जाएगी!
पिताजी: इतने से काम के लिए कौन एहसान ले?
मैं: ठीक है एक मुखिया थोड़े ही है?
मैंने अपना फ़ोन निकाला और संकेत को फ़ोन किया;
मैं: सुन यार वो राम-लीला की आगे वाली 8 सीटें चाहिए!
संकेत: अबे तू वहाँ आ कर मुझे कॉल कर डीओ सीटें मिल जाएँगी|
मैंने फ़ोन रखा और ताऊ जी और पिताजी मेरी तरफ हैरानी से देख रहे थे|
मैं: होगया जी सीटों का इंतजाम, अब तो सारे चलें?
ताऊ जी: बड़े जुगाड़ लगाने लगा है तू?
पिताजी: शहर में भी यही करता होगा?
मैं आगे कुछ नहीं बोला और चुप-चाप चाय पीने लगा| चूँकि हम अयोध्या वासी हैं तो दशहरे पर बहुत धूम-धाम होती है| हमारे गाँव के मुखिया हर साल इन दिनों में रामलीला का आयोजन जोर-शोर से करते हैं| रावण का एक बहुत बड़ा पुतला बना कर फूँका जाता है, पर हमारे घर का हाल ये था की कोई भी सम्मिलित नहीं होता था| मैं जब छोटा था तब ऋतू को अपने साथ ले जाया करता था और वो भी जैसे ही रावण के पुतले में आग लगती तो भाग कड़ी होती! बाकी बचीं घर की औरतें तो वो छत पर कड़ी हो जातीं और पटाखों का शोर सुन लिया करती| इस बार मैंने पहल की थी तो ताऊ जी मान ही गए, ताई जी. माँ और भाभी खुश थीं और मैं इसलिए खुश था की मेरा ऋतू को मनाने का प्लान कामयाब होने वाला था| शाम 4 बजे सारे मैदान में पहुँच गए जो की घर से करीब 10 मिनट ही दूर था| मैंने संकेत को इशारे से बुलाया तो उसने पिताजी, ताऊ जी और चन्दर को आगे की लाइन में बिठा दिया| मुझे, ऋतू, भाभी, माँ और ताई जी को उसने पीछे वाली लाइन में बिठा दिया अपनी बीवी और माँ के साथ| इस बार के दशहरे की तैयारी उसी के परिवार ने की थी इसलिए वहाँ सिर्फ उसी का हुक्म चल रहा था| रामलीला शुरू हुई और मैंने सब की नजर बचाते हुए ऋतू का हाथ पकड़ लिया| पहले तो ऋतू हैरान हुई पर जब उसे एहसास हुआ की ये मेरा हाथ है तो वो मुस्कुरा दी और फिर से रामलीला देखने लगी| मैं धीरे-धीरे उसके हाथ को दबाता रहा और उसे इसमें बहुत आनंद आ रहा था| हम दोनों रामलीला के खत्म होने के दौरान ऐसे ही चुप-चाप एक दूसरे के हाथ को बारी-बारी दबाते रहे| जब रामलीला खत्म हुई तो बारी है रावण दहन की तो सभी उठ के उस तरफ चल दिए| पर घरवाले सभी वहीँ खड़े हो गए जहाँ हम बैठे थे, इधर ऋतू को उसकी कुछ सहेलियाँ मिल गईं और वो उनके साथ थोड़ा नजदीक चली गई जहाँ बाकी सब गाँव वाले थे| मैं ऋतू के पीछे धीरे-धीरे उसी तरफ बढ़ने लगा, "रितिका तू तो शहर जा कर मोटी हो गई है!" ऋतू की एक दोस्त ने कहा| "चल हट!" रितिका ने उस लड़की को कंधा मरते हुए कहा| "सच कह रही हूँ, ये देख कितना बड़े हो गए हैं तेरे!" ये कहते हुए उसने ऋतू के कूल्हों को सहलाया| "तेरी चूचियाँ भी पहले से बढ़ गईं हैं...और तेरे होंठ! क्या करती है तू वहाँ शहर में? कोई यार ढूँढ लिया क्या?" ऋतू ने गुस्से से दोनों को कंधे पर घुसा मारा| "ज्यादा बकवास ना कर मुँह नोच लूँगी दोनों का!" तीनों खड़े-खड़े हँस रहे और उनकी बात सुन कर मैं भी मन ही मन हँस रहा था| जैसे ही दहन शुरू हुआ और पटाखों की आवाज तक हुई मैंने ऋतू का हाथ पीछे से पकड़ा और उसे खींच कर ले जाने लगा| ऋतू पहले तो थोड़ा हैरान थी की आखिर कौन उसे खींच रहा है पर जब उसने मुझे देखा तो मेरे साथ चल पड़ी| भीड़ में कुछ भगदड़ मची क्योंकि सब लोग बहुत नजदीक खड़े थे और ऐसे में जिस किसी ने भी हमें वहाँ से जाते देखा वो यही सोच रहा होगा की ये दोनों शोर सुन कर जा रहे हैं|
मैं ऋतू को घर की बजाये दूर संकेत के खेतों में ले गया, वहाँ संकेत के खेतों में एक कमरा बना था जहाँ वो अपना माल छुपा कर रखता था| उस कमरे में आते ही मैंने दरवाजा बंद कर दिया और कमरे में घुप अँधेरा छ गया| मैंने फ़ोन की टोर्च जला कर उसे चारपाई पर रख दिया और ऋतू के चेहरे को थाम कर उसके होठों को बेतहाशा चूमने लगा| समय कम था, इसलिए मैं जमीन पर घुटनों के बल बैठा गया और ऋतू को अभी भी दरवाजे के बगल में खड़ा रखा| उसके कुर्ते में हाथ डाल कर उसकी पजामी का नाडा खोला और उसे जल्दी से नीचे सरकाया फिर ऋतू की बुर पर अपने होंठ रखे| पर तभी उसकी कच्छी बीच में आ गई! मैंने जल्दी से उसे भी नीचे सरकाया और अपनी लपलपाती हुई जीभ से ऋतू की बुर को चाटा| मिनट भर में ही उसकी बुर पनिया गई और उसने मुझे ऊपर खींच कर खड़ा किया| मैंने उसे गोद में उठाया और चारपाई पर लिटा दिया| में ऋतू के ऊपर छा गया, दोनों की सांसें धोकनी की तरह चल रही थीं| मैंने और देर न करते हुए अपने लंड को ऋतू की बुर में ठेल दिया| लंड सरसराता हुआ आधा अंदर चला गया और इधर ऋतू ने जोश में आते हुए अपने दोनों हाथों से मुझे अपने जिस्म से चिपका लिया| मैंने नीचे से कमर को और ऊपर ठेला और पूरा का पूरा लंड जड़ समेत उसकी बुर में उतार दिया| ऋतू ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में थामा और मेरे होठों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगी| मैंने नीचे से तेज-तेज झटके मारने शुरू किये और 7-8 मिनट में ही दोनों का छूट गया! साँसों को दुरसुत कर दोनों खड़े हुए और अपने-अपने कपडे ठीक किये| ऋतू और मैं दोनों तृप्त हो चुके थे, उसके चेहरे पर वही ख़ुशी लौट आई थी| बाहर निकलने से पहले उसने फिर से मुझे अपनी बाहों में कैद किया और मेरे होंठों को अपने मुँह में भर के चूसने लगी| मुझे फिर से जोश आया और मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया और दिवार से तेल लगा कर उसके निचले होंठ को अपने मुँह में भर के चूसने लगा| मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी और ऋतू उसे चूसने लगी, तभी मेरा फ़ोन वाइब्रेट करने लगा तो हम दोनों अलग हुए पर दोनों की साँसे फिर से तेज हो चली थीं, प्यार की आग फिर भड़क गई थी| पर समय नहीं था इसलिए मैंने ऋतू से कहा; "आज रात!" इतना सुनते ही ऋतू खुश हो गई| मैंने दरवाजा खोला और बाहर आ कर देखा की कोई है तो नहीं, फिर ऋतू को बाहर आने का इशारा किया| ऋतू को घर की तरफ चल दी और मैं दूसरे रास्ते से घूमता हुआ घर पहुँचा| घर पर सब आ चुके थे और बाहर अभी भी थोड़ी आतिशबाजी जारी थी| 'कहाँ रह गया था तू?" माँ ने पुछा| "वो में संकेत के साथ था|" इतना कह कर मैं आंगन में मुँह-हाथ धोने लगा तो नजर ऋतू पर गई जो अब बहुत खुश थी! रात को खाना खाने के समय भी ऋतू के चेहरे से उसकी ख़ुशी टप-टप टपक रही थी जो वहाँ किसी से देखि ना गई;
भाभी: तू बड़ी खुश है आज?
ये सुनते ही ऋतू की ख़ुशी काफूर हो गई|
मैं: इतने दिनों बाद अपनी सहेलियों के साथ समय बिताया है, खुश तो होना ही है!
मैंने ऋतू का बचाव किया, पर भाभी को ये जरा भी नहीं जचा और इससे पहले की वो कुछ बोलती ताई जी बोल पड़ी;
ताई जी: इस बार का दशहेरा यादगार था! वैसे तुम दोनों कहाँ गायब हो गए थे?
भाभी: हाँ...मैंने फ़ोन भी किया पर तुमने उठाया ही नहीं?
ताई जी ने मुझसे और ऋतू से पुछा, अब बेचारी ऋतू सोच में पड़ गई की बोले तो बोले क्या? ऊपर से भाभी के कॉल वाली बात से तो ऋतू सुलगने लगी थी, इसलिए मुझे ही बचाव करना पड़ा;
मैं: ऋतू तो अपनी सहेलियों के साथ आगे चली गई थी और मैं संकेत के साथ था| भाभी का फ़ोन आया था पर शोर-शराबे में सुनाई ही नहीं दिया!
ताई जी: अच्छा... वैसे मुन्ना तूने आज बड़े सालों बाद रामलीला दिखाई|
अब ताई जी क्या जाने की मेरा असली प्लान क्या था इसलिए मैं बस मुस्कुरा दिया| खाना खाने के बाद मैं छत पर टहल रहा था, तभी ऋतू ऊपर आई और मुझसे कुछ दूरी पर खड़ी हो गई; "आज रात का वादा याद है ना?" ऋतू ने मुझे मेरा किया वादा याद दिलाया, मन तो कर रहा था की थोड़ा और मजाक करूँ ये कह के की कौन सा वादा पर जानता था की ये सुन कर ऋतू बिदक जाएगी! मैंने बस हाँ में सर हिलाया और फिर ऋतू मुस्कुराती हुई नीचे चली गई| अभी सब लोग आंगन में ही बैठे थे की पिताजी ने मुझे नीचे से आवाज दे कर बुलाया| मैं नीचे आया तो कुछ जर्रूरी बातें हुई जमीन को ले कर और फिर मुझसे पुछा गया की मैं वापस कब जा रहा हूँ? "कल सुबह" मैंने बस इतना कहा और फिर सब अपने-अपने कमरों में जाने को चल दिए| मैं भी अपने कमरे में आ गया और कुछ देर बाद ऋतू भी ऊपर आ गई| वो मेरे दरवाजे की चौखट पर हाथ रख खड़ी हो गई; "बारह बजे मैं आपका इंतजार करूँगी!" मैंने बस मुस्कुरा कर हाँ कहा और वो अपने कमरे में चली गई और मुझे उसके दरवाजा बंद करने की आवाज आई| रात बारह बजे तक मैं जागा रहा और फ़ोन में कुछ मैसेज देखने लगा| ठीक बारह बजे मैं उठा और ऋतू के कमरे का दरवाजा धीरे से खोला, ऋतू पलंग पर ऐसे बैठी थी:
ऋतू मुस्कुराती हुई मेरा ही इंतजार कर रही थी, उसके कमरे में एक लाल रंग का जीरो वाट का बल्ब जल रहा था| उसे ऐसे देखते ही मैं एक पल के लिए दरवाजे पर ही रूक गया और चौखट से सर लगा कर उसे निहारने लगा| मैं धीरे से उसके नजदीक पहुँचा पर नजरें उस पर से हट ही नहीं रही थी| ऋतू ने अपना दायाँ हाथ बढ़ा कर मुझे अपने पास बुलाना चाहा| मैंने उसका हाथ थाम लिया और फिर उसके पास पलंग पर बैठ गया| मैंने ऋतू के चेहरे को थामा और उसे kiss करने ही जा रहा था की नीचे से मुझे बड़ी जोर की खाँसने की आवाज आई| ये आवाज ताऊ जी की थी जिसे सुनते ही हम दोनों के तोते उड़ गए! मैं छिटक कर ऋतू के पलंग से खड़ा हुआ और ऋतू भी बहुत घबरा गई थी और मेरी तरफ डर के मारे देख रही थी| मैंने उसे ऊँगली से छुपा रहने का इशारा किया और धीरे से दरवाजे की तरफ बढ़ा, बाहर झाँका तो वहाँ कोई नहीं था| मैंने चैन की साँस ली, फिर थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए मैंने नीचे आंगन में झाँका तो पाया की ताऊ जी बाथरूम में घुस रहे थे| मैं वापस ऋतू के कमरे में आया और उसे बताया की ताऊ जी बाथरूम में घुसे हैं| अब ये तो साफ़ था की अब कुछ नहीं हो सकता इसलिए मैं दबे पाँव अपने कमरे में आ गया और लेट गया|
शाम से ले कर रात तक ऋतू मुझसे बात नहीं कर रही थी और मुँह फुला कर घूम रही थी| मैंने एक दो बार उससे बात करनी चाही तो वो बिदक कर चली गई| खाना परोस कर मुझे देने के टाइम भी वो अपनी आँखों से मुझे अपना गुस्सा दिखा रही थी| खाना खाने के बाद वो बर्तन धो रही थी, और उसके बर्तन धोना खत्म होगया था| वो उठने लगी तभी मैंने अपना जूठा गिलास उसे दिया तो वो बुदबुदाते हुए बोली; "अब घर में आपको सब नहीं दिख रहे जो मुझे गिलास दे रहे हो?" मैं बस मुस्कुराया और वापस आंगन में सबके साथ बैठ गया| रात को सब एक-एक कर अपने कमरों में चले गए बस मैं, भाभी और ऋतू ही रह गए थे| भाभी का कमरा नीचे था तो वो मेरे सामने से इठलाते हुए गईं जो की ऋतू ने देख लिया और गुस्से में तमतमाते हुए गिलास नीचे फेंका| भाभी ने उसे ऐसा करते हुए नहीं देखा बस आवाज सुन के उस पर चिल्लाईं; "हाथ में खून है की नहीं!" ऋतू कुछ नहीं बोली और मेरे सामने से होती हुई सीढ़ी चढ़ने लगी| मैं मिनट भर आंगन में टहलता रहा और फिर ऊपर अपने कमरे की तरफ चल दिया| मैं अपने कमरे में ना घुस कर ऋतू के कमरे के दरवाजे पर खड़ा हो कर उसे पलंग पर सर झुकाए बैठा देखने लगा| मैं दो कदम अंदर आया और बोला; "यार मैं सोच रहा हूँ की शादी के बाद अपने हाथ पर लिखवा लूँ: 'ऋतू का आदमी!'" ये सुन कर ऋतू हँस पड़ी फिर अगले ही पल कोशिश करने लगी की मुझे फिर से अपना गुस्सा दिखाए पर उस का चेहरा उसे ऐसा करने नहीं दे रहा था| वो हँसना चाह रही थी पर अपना गुस्सा भी दिखाना चाहती थी| वो उठी और आ कर मेरे सीने से लग गई; "आपको पता है मैं बार-बार आपके सीने से क्यों लगती हूँ?"
"हाँ...बहुत बार बताया है तुमने!" मैंने कहा|
"आपके सीने की आँच से मेरे दिल में हो रही उथल-पुथल शांत हो जाती है| जिस गर्मी के लिए मैं तड़पती हूँ वो बस यहीं मिलती है|" ऋतू ने फिर से दोहराते हुए कहा|
"चलो अब सो जाओ! सुबह से काम कर कर के तक गए होंगे!" मैंने ऋतू को खुद से दूर करते हुए कहा|
"ना..आपके सीने से लगते ही सारी थकावट दूर हो जाती है|" ऋतू फिर से मेरी छाती से चिपक गई| अब मुझे कैसे भी कर के उसे खुद से दूर करना था वरना अगर कोई आ जाता तो बखेड़ा खड़ा हो सकता था|
"माँ.. आप?!!!" मैंने झूठ बोला जिससे ऋतू मुझसे एक दम से छिटक कर दूर हो गई| पर जब उसने दरवाजे की तरफ देखा और वहाँ किसी को नहीं पाया तो वो गुस्सा हो गई| "सॉरी जान! पर कोई हमें देख लेगा तो बखेड़ा खड़ा हो जायेगा|" मैंने उसे मनाते हुए कहा पर वो दूसरी तरफ मुँह कर खड़ी हो गई| मैं पलट के जाने लगा तो वो बोली; "दरवाजा बंद कर के सोना! माँ प्यासी शेरनी की तरह आपका इंतजार कर रही है|" मैंने पलट कर देखा तो ऋतू की आँखों में जलन साफ़ झलक रही थी| मैं उसे गले लगाने को जैसे ही आगे बढ़ा की ऋतू एक दम से पलट गई| मुझे डर था की कहीं कोई आ ना जाये इसलिए मैं अपने कमरे में आ गया और दरवाजा बंद कर लिया और लेट गया| मुझे पता था की अगली सुबह मुझे क्या करना है?
सुबह फटाफट उठा और नाहा-धो के तैयार हो गया| सब आंगन में बैठे चाय पी रहे थे की मैंने बात शुरू की;
मैं: ताऊ जी शाम को सारे रावण दहन देखने चलें?
ताऊ जी: सारे क्यों? तुझे जाना है तो जा, यहाँ अपनी छत से सब नजर आता है|
मैं: पर राम-लीला भी तो देखनी है!
ताऊ जी: नहीं..कोई जर्रूरत नहीं! वहाँ भीड़-भाड़ में कौन जाएगा!
मैं: हमारे लिए भीड़-भाड़ कैसी? आपको बस मुखिया को एक फ़ोन करना है और राम-लीला की आगे वाली लाइन में सीट मिल जाएगी!
पिताजी: इतने से काम के लिए कौन एहसान ले?
मैं: ठीक है एक मुखिया थोड़े ही है?
मैंने अपना फ़ोन निकाला और संकेत को फ़ोन किया;
मैं: सुन यार वो राम-लीला की आगे वाली 8 सीटें चाहिए!
संकेत: अबे तू वहाँ आ कर मुझे कॉल कर डीओ सीटें मिल जाएँगी|
मैंने फ़ोन रखा और ताऊ जी और पिताजी मेरी तरफ हैरानी से देख रहे थे|
मैं: होगया जी सीटों का इंतजाम, अब तो सारे चलें?
ताऊ जी: बड़े जुगाड़ लगाने लगा है तू?
पिताजी: शहर में भी यही करता होगा?
मैं आगे कुछ नहीं बोला और चुप-चाप चाय पीने लगा| चूँकि हम अयोध्या वासी हैं तो दशहरे पर बहुत धूम-धाम होती है| हमारे गाँव के मुखिया हर साल इन दिनों में रामलीला का आयोजन जोर-शोर से करते हैं| रावण का एक बहुत बड़ा पुतला बना कर फूँका जाता है, पर हमारे घर का हाल ये था की कोई भी सम्मिलित नहीं होता था| मैं जब छोटा था तब ऋतू को अपने साथ ले जाया करता था और वो भी जैसे ही रावण के पुतले में आग लगती तो भाग कड़ी होती! बाकी बचीं घर की औरतें तो वो छत पर कड़ी हो जातीं और पटाखों का शोर सुन लिया करती| इस बार मैंने पहल की थी तो ताऊ जी मान ही गए, ताई जी. माँ और भाभी खुश थीं और मैं इसलिए खुश था की मेरा ऋतू को मनाने का प्लान कामयाब होने वाला था| शाम 4 बजे सारे मैदान में पहुँच गए जो की घर से करीब 10 मिनट ही दूर था| मैंने संकेत को इशारे से बुलाया तो उसने पिताजी, ताऊ जी और चन्दर को आगे की लाइन में बिठा दिया| मुझे, ऋतू, भाभी, माँ और ताई जी को उसने पीछे वाली लाइन में बिठा दिया अपनी बीवी और माँ के साथ| इस बार के दशहरे की तैयारी उसी के परिवार ने की थी इसलिए वहाँ सिर्फ उसी का हुक्म चल रहा था| रामलीला शुरू हुई और मैंने सब की नजर बचाते हुए ऋतू का हाथ पकड़ लिया| पहले तो ऋतू हैरान हुई पर जब उसे एहसास हुआ की ये मेरा हाथ है तो वो मुस्कुरा दी और फिर से रामलीला देखने लगी| मैं धीरे-धीरे उसके हाथ को दबाता रहा और उसे इसमें बहुत आनंद आ रहा था| हम दोनों रामलीला के खत्म होने के दौरान ऐसे ही चुप-चाप एक दूसरे के हाथ को बारी-बारी दबाते रहे| जब रामलीला खत्म हुई तो बारी है रावण दहन की तो सभी उठ के उस तरफ चल दिए| पर घरवाले सभी वहीँ खड़े हो गए जहाँ हम बैठे थे, इधर ऋतू को उसकी कुछ सहेलियाँ मिल गईं और वो उनके साथ थोड़ा नजदीक चली गई जहाँ बाकी सब गाँव वाले थे| मैं ऋतू के पीछे धीरे-धीरे उसी तरफ बढ़ने लगा, "रितिका तू तो शहर जा कर मोटी हो गई है!" ऋतू की एक दोस्त ने कहा| "चल हट!" रितिका ने उस लड़की को कंधा मरते हुए कहा| "सच कह रही हूँ, ये देख कितना बड़े हो गए हैं तेरे!" ये कहते हुए उसने ऋतू के कूल्हों को सहलाया| "तेरी चूचियाँ भी पहले से बढ़ गईं हैं...और तेरे होंठ! क्या करती है तू वहाँ शहर में? कोई यार ढूँढ लिया क्या?" ऋतू ने गुस्से से दोनों को कंधे पर घुसा मारा| "ज्यादा बकवास ना कर मुँह नोच लूँगी दोनों का!" तीनों खड़े-खड़े हँस रहे और उनकी बात सुन कर मैं भी मन ही मन हँस रहा था| जैसे ही दहन शुरू हुआ और पटाखों की आवाज तक हुई मैंने ऋतू का हाथ पीछे से पकड़ा और उसे खींच कर ले जाने लगा| ऋतू पहले तो थोड़ा हैरान थी की आखिर कौन उसे खींच रहा है पर जब उसने मुझे देखा तो मेरे साथ चल पड़ी| भीड़ में कुछ भगदड़ मची क्योंकि सब लोग बहुत नजदीक खड़े थे और ऐसे में जिस किसी ने भी हमें वहाँ से जाते देखा वो यही सोच रहा होगा की ये दोनों शोर सुन कर जा रहे हैं|
मैं ऋतू को घर की बजाये दूर संकेत के खेतों में ले गया, वहाँ संकेत के खेतों में एक कमरा बना था जहाँ वो अपना माल छुपा कर रखता था| उस कमरे में आते ही मैंने दरवाजा बंद कर दिया और कमरे में घुप अँधेरा छ गया| मैंने फ़ोन की टोर्च जला कर उसे चारपाई पर रख दिया और ऋतू के चेहरे को थाम कर उसके होठों को बेतहाशा चूमने लगा| समय कम था, इसलिए मैं जमीन पर घुटनों के बल बैठा गया और ऋतू को अभी भी दरवाजे के बगल में खड़ा रखा| उसके कुर्ते में हाथ डाल कर उसकी पजामी का नाडा खोला और उसे जल्दी से नीचे सरकाया फिर ऋतू की बुर पर अपने होंठ रखे| पर तभी उसकी कच्छी बीच में आ गई! मैंने जल्दी से उसे भी नीचे सरकाया और अपनी लपलपाती हुई जीभ से ऋतू की बुर को चाटा| मिनट भर में ही उसकी बुर पनिया गई और उसने मुझे ऊपर खींच कर खड़ा किया| मैंने उसे गोद में उठाया और चारपाई पर लिटा दिया| में ऋतू के ऊपर छा गया, दोनों की सांसें धोकनी की तरह चल रही थीं| मैंने और देर न करते हुए अपने लंड को ऋतू की बुर में ठेल दिया| लंड सरसराता हुआ आधा अंदर चला गया और इधर ऋतू ने जोश में आते हुए अपने दोनों हाथों से मुझे अपने जिस्म से चिपका लिया| मैंने नीचे से कमर को और ऊपर ठेला और पूरा का पूरा लंड जड़ समेत उसकी बुर में उतार दिया| ऋतू ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में थामा और मेरे होठों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगी| मैंने नीचे से तेज-तेज झटके मारने शुरू किये और 7-8 मिनट में ही दोनों का छूट गया! साँसों को दुरसुत कर दोनों खड़े हुए और अपने-अपने कपडे ठीक किये| ऋतू और मैं दोनों तृप्त हो चुके थे, उसके चेहरे पर वही ख़ुशी लौट आई थी| बाहर निकलने से पहले उसने फिर से मुझे अपनी बाहों में कैद किया और मेरे होंठों को अपने मुँह में भर के चूसने लगी| मुझे फिर से जोश आया और मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया और दिवार से तेल लगा कर उसके निचले होंठ को अपने मुँह में भर के चूसने लगा| मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी और ऋतू उसे चूसने लगी, तभी मेरा फ़ोन वाइब्रेट करने लगा तो हम दोनों अलग हुए पर दोनों की साँसे फिर से तेज हो चली थीं, प्यार की आग फिर भड़क गई थी| पर समय नहीं था इसलिए मैंने ऋतू से कहा; "आज रात!" इतना सुनते ही ऋतू खुश हो गई| मैंने दरवाजा खोला और बाहर आ कर देखा की कोई है तो नहीं, फिर ऋतू को बाहर आने का इशारा किया| ऋतू को घर की तरफ चल दी और मैं दूसरे रास्ते से घूमता हुआ घर पहुँचा| घर पर सब आ चुके थे और बाहर अभी भी थोड़ी आतिशबाजी जारी थी| 'कहाँ रह गया था तू?" माँ ने पुछा| "वो में संकेत के साथ था|" इतना कह कर मैं आंगन में मुँह-हाथ धोने लगा तो नजर ऋतू पर गई जो अब बहुत खुश थी! रात को खाना खाने के समय भी ऋतू के चेहरे से उसकी ख़ुशी टप-टप टपक रही थी जो वहाँ किसी से देखि ना गई;
भाभी: तू बड़ी खुश है आज?
ये सुनते ही ऋतू की ख़ुशी काफूर हो गई|
मैं: इतने दिनों बाद अपनी सहेलियों के साथ समय बिताया है, खुश तो होना ही है!
मैंने ऋतू का बचाव किया, पर भाभी को ये जरा भी नहीं जचा और इससे पहले की वो कुछ बोलती ताई जी बोल पड़ी;
ताई जी: इस बार का दशहेरा यादगार था! वैसे तुम दोनों कहाँ गायब हो गए थे?
भाभी: हाँ...मैंने फ़ोन भी किया पर तुमने उठाया ही नहीं?
ताई जी ने मुझसे और ऋतू से पुछा, अब बेचारी ऋतू सोच में पड़ गई की बोले तो बोले क्या? ऊपर से भाभी के कॉल वाली बात से तो ऋतू सुलगने लगी थी, इसलिए मुझे ही बचाव करना पड़ा;
मैं: ऋतू तो अपनी सहेलियों के साथ आगे चली गई थी और मैं संकेत के साथ था| भाभी का फ़ोन आया था पर शोर-शराबे में सुनाई ही नहीं दिया!
ताई जी: अच्छा... वैसे मुन्ना तूने आज बड़े सालों बाद रामलीला दिखाई|
अब ताई जी क्या जाने की मेरा असली प्लान क्या था इसलिए मैं बस मुस्कुरा दिया| खाना खाने के बाद मैं छत पर टहल रहा था, तभी ऋतू ऊपर आई और मुझसे कुछ दूरी पर खड़ी हो गई; "आज रात का वादा याद है ना?" ऋतू ने मुझे मेरा किया वादा याद दिलाया, मन तो कर रहा था की थोड़ा और मजाक करूँ ये कह के की कौन सा वादा पर जानता था की ये सुन कर ऋतू बिदक जाएगी! मैंने बस हाँ में सर हिलाया और फिर ऋतू मुस्कुराती हुई नीचे चली गई| अभी सब लोग आंगन में ही बैठे थे की पिताजी ने मुझे नीचे से आवाज दे कर बुलाया| मैं नीचे आया तो कुछ जर्रूरी बातें हुई जमीन को ले कर और फिर मुझसे पुछा गया की मैं वापस कब जा रहा हूँ? "कल सुबह" मैंने बस इतना कहा और फिर सब अपने-अपने कमरों में जाने को चल दिए| मैं भी अपने कमरे में आ गया और कुछ देर बाद ऋतू भी ऊपर आ गई| वो मेरे दरवाजे की चौखट पर हाथ रख खड़ी हो गई; "बारह बजे मैं आपका इंतजार करूँगी!" मैंने बस मुस्कुरा कर हाँ कहा और वो अपने कमरे में चली गई और मुझे उसके दरवाजा बंद करने की आवाज आई| रात बारह बजे तक मैं जागा रहा और फ़ोन में कुछ मैसेज देखने लगा| ठीक बारह बजे मैं उठा और ऋतू के कमरे का दरवाजा धीरे से खोला, ऋतू पलंग पर ऐसे बैठी थी:
ऋतू मुस्कुराती हुई मेरा ही इंतजार कर रही थी, उसके कमरे में एक लाल रंग का जीरो वाट का बल्ब जल रहा था| उसे ऐसे देखते ही मैं एक पल के लिए दरवाजे पर ही रूक गया और चौखट से सर लगा कर उसे निहारने लगा| मैं धीरे से उसके नजदीक पहुँचा पर नजरें उस पर से हट ही नहीं रही थी| ऋतू ने अपना दायाँ हाथ बढ़ा कर मुझे अपने पास बुलाना चाहा| मैंने उसका हाथ थाम लिया और फिर उसके पास पलंग पर बैठ गया| मैंने ऋतू के चेहरे को थामा और उसे kiss करने ही जा रहा था की नीचे से मुझे बड़ी जोर की खाँसने की आवाज आई| ये आवाज ताऊ जी की थी जिसे सुनते ही हम दोनों के तोते उड़ गए! मैं छिटक कर ऋतू के पलंग से खड़ा हुआ और ऋतू भी बहुत घबरा गई थी और मेरी तरफ डर के मारे देख रही थी| मैंने उसे ऊँगली से छुपा रहने का इशारा किया और धीरे से दरवाजे की तरफ बढ़ा, बाहर झाँका तो वहाँ कोई नहीं था| मैंने चैन की साँस ली, फिर थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए मैंने नीचे आंगन में झाँका तो पाया की ताऊ जी बाथरूम में घुस रहे थे| मैं वापस ऋतू के कमरे में आया और उसे बताया की ताऊ जी बाथरूम में घुसे हैं| अब ये तो साफ़ था की अब कुछ नहीं हो सकता इसलिए मैं दबे पाँव अपने कमरे में आ गया और लेट गया|