24-11-2019, 08:56 PM
छुटकी
रितू भाभी अब छुटकी की ओर देख रही थीं और मुश्कुरा रही थीं।
छुटकी भी समझ रही थी, वो अभी भी बची थी।
दो बज गए थे।
चलते समय, रितू भाभी ने उन्हें बाहों में भर के बोला-
“चलती हूँ नन्दोई जी, मिलते हैं ब्रेक के बाद, शाम को चार बजे …”
जिस तरह वो दोनों छुटकी की ओर देख रहे थे, नन्दोई सलहज के मन में तो साफ था ही,
छुटकी को भी साफ अंदाज हो गया था की चार बजे क्या होने वाला है।
मैं और वो अपने कमरे में चले गए और छुटकी छत पे अपने कमरे पे।
हम दोनों अपने कमरे में चले गए। मुझे बिस्तर पर उन्होंने खींच के, बाँहो में भींच लिया और कचकचा के गाल काट लिया।
उन्हें अपनी बाँहो लपेटती मैं जोर से चूम के, बोली-
“आया ससुराल में पहली होली का मजा?”
जिसमें पिया का सुख, उसमें मेरा सुख।
मायके से मेरी मम्मी ने यही सीखा के भेजा था।
जवाब में एक झटके में मेरे ब्लाउज के सारे बटन खोलते, तोड़ते वो बोले-
“एकदम… रात में सासु के साथ और दिन में सालियों के साथ…”
और जोर से मेरी बड़ी गदराई चूचियां उन्होंने मीज दी और फिर गाल काटते बोले-
“रात में भोंसड़े का मजा और दिन में टिकोरों का…”
मैं भी जोश में उनका शार्ट सरका के उनके मूसल चन्द को अपनी मुट्ठी में दबाती रगड़ती बोली-
“अरे अभी असली टिकोरे वाली तो बची ही है, उसका भी तो…”
और मेरी बात काट के मेरे साये को कमर तक सरका के, मेरी बुर अपनी मुट्ठी में दबोचते बोले-
“उसकी तो ऐसी रगड़-रगड़ के लूंगा की, साल्ली जिंदगी भर याद करेगी अपनी पहली चुदाई।
फाड़ के रख दूंगा तेरी बहन की…”
और हम दोनों वैसे ही सो गए।
पिछली रात भी मम्मी के साथ मस्ती में जागते बीती थी।
और जैसे ही हम सोते थे, इनके हाथ मेरे चूचियों पे, और मेरा इनके लण्ड पे, बस वैसे ही।
हम लोग सोते ही रहते अगर रितू भाभी आके नहीं जगातीं-
“जागो सोनेवालों जागो…”
और इनके कान में जीभ से सुरसुरी करती बोलीं-
“अरे नन्दोई जी एक कच्ची कली, मस्त टिकोरों वाली,
अपनी गुलाबी परी सम्हाले आपका इन्तजार कर रही है…”
और जब हम दोनों उठे, तो रितू भाभी ने न उन्हें अपना शार्ट ठीक करने दिया और न मुझे ब्लाउज।
नन्दोई सलहज में थोड़ी देर छेड़छाड़ चलती रही।
रितू भाभी उनके माँ बहनों का हाल लेती रही और वो रितू भाभी को गोद में खींचकर चोली के ऊपर से ही जोबन का रस कभी हाथों से कभी होंठों से।
और मौका पाकर मैंने ब्लाउज की बची खुची बटन बंद कर ली (चार में से दो तो उन्होंने तोड़ ही दी थीं),
साये का नाड़ा बाँध लिया और साड़ी बस लपेट ली।
(मुझे मालूम था, रितू भाभी हों तो ननद के देह पे कपड़े कितने देर टिकते थे, जैसे ये, उनके नन्दोई कपड़े के दुश्मन, वैसे ही उनकी सलहज)
तब तक रितू भाभी को उस मिशन की याद आई, जिसके लिए वो आई थीं, मिशन छुटकी। और उन्होंने अपने नन्दोई को ललकारा। शार्ट के ऊपर से ही उन्होंने नन्दोई के हथियार को जोर से दबाते मसलते कहा-
“अरे नन्दोई जी, अपनी नहीं तो इसकी फिकर करो, बिचारा कितना भूखा है…”
और भाभी के दबाने मसलने से वो आधा सोया आधा जागा, पूरी तरह जग के फुफकारने लगा।
लेकिन इतने पर अगर वो छोड़ दें तो रितू भाभी कैसी,
शार्ट में अंदर हाथ डाल के एक झटके में रितू भाभी ने सुपाड़ा खोल दिया और उनके पेशाब के छेद पे अंगूठा लगा के, रगड़ने मसलने लगी। और साथ में उनकी बातें-
“बोल चाहिये छोटी साल्ली की कच्ची चूत… बहुत चिल्लाएगी, चीखेगी वो… लेकिन छोड़ना मत…
रगड़-रगड़ के फाड़ना, चीखने, चिल्लाने देना साल्ली को…”
अब तो बिचारे उनका लण्ड एकदम पागल हो गया।
रितू भाभी मुठियाती रही, कभी पेल्हड़ भी सहला देती तो कभी उनके गाल पे हल्के से चुम्मी लेकर काट लेती।
सलहज हो तो रितू भाभी ऐसी।
थोड़ी देर में हम तीनों ऊपर छुटकी के कमरे में पहुँच गए।
वो लगता है बस इंतजार ही कर रही थी।
एक झीनी झीनी कम से कम दो साल पुरानी टाप और स्कर्ट में, उसके टिकोरे टाप फाड़ रहे थे,
और स्कर्ट भी छोटी-छोटी किशोर गोरी-गोरी जांघों को दिखाती ज्यादा, छुपाती कम।
उसकी और उसके जीजा की आँखें चार हुई और दोनों मुश्कुराये।
उसके जीजा भी बस बनयान शार्ट्स में और, खूंटा पूरा तना, शार्ट्स को फाड़ता।
छुटकी को देखकर बल्की छुटकी के कच्चे टिकोरों को देखकर वो और बौरा गया। वो छुटकी के बगलमें ही बैठ गए, उससे सट कर।
और रितू भाभी मेरे बगल में बैठ गईं।
रितू भाभी अब छुटकी की ओर देख रही थीं और मुश्कुरा रही थीं।
छुटकी भी समझ रही थी, वो अभी भी बची थी।
दो बज गए थे।
चलते समय, रितू भाभी ने उन्हें बाहों में भर के बोला-
“चलती हूँ नन्दोई जी, मिलते हैं ब्रेक के बाद, शाम को चार बजे …”
जिस तरह वो दोनों छुटकी की ओर देख रहे थे, नन्दोई सलहज के मन में तो साफ था ही,
छुटकी को भी साफ अंदाज हो गया था की चार बजे क्या होने वाला है।
मैं और वो अपने कमरे में चले गए और छुटकी छत पे अपने कमरे पे।
हम दोनों अपने कमरे में चले गए। मुझे बिस्तर पर उन्होंने खींच के, बाँहो में भींच लिया और कचकचा के गाल काट लिया।
उन्हें अपनी बाँहो लपेटती मैं जोर से चूम के, बोली-
“आया ससुराल में पहली होली का मजा?”
जिसमें पिया का सुख, उसमें मेरा सुख।
मायके से मेरी मम्मी ने यही सीखा के भेजा था।
जवाब में एक झटके में मेरे ब्लाउज के सारे बटन खोलते, तोड़ते वो बोले-
“एकदम… रात में सासु के साथ और दिन में सालियों के साथ…”
और जोर से मेरी बड़ी गदराई चूचियां उन्होंने मीज दी और फिर गाल काटते बोले-
“रात में भोंसड़े का मजा और दिन में टिकोरों का…”
मैं भी जोश में उनका शार्ट सरका के उनके मूसल चन्द को अपनी मुट्ठी में दबाती रगड़ती बोली-
“अरे अभी असली टिकोरे वाली तो बची ही है, उसका भी तो…”
और मेरी बात काट के मेरे साये को कमर तक सरका के, मेरी बुर अपनी मुट्ठी में दबोचते बोले-
“उसकी तो ऐसी रगड़-रगड़ के लूंगा की, साल्ली जिंदगी भर याद करेगी अपनी पहली चुदाई।
फाड़ के रख दूंगा तेरी बहन की…”
और हम दोनों वैसे ही सो गए।
पिछली रात भी मम्मी के साथ मस्ती में जागते बीती थी।
और जैसे ही हम सोते थे, इनके हाथ मेरे चूचियों पे, और मेरा इनके लण्ड पे, बस वैसे ही।
हम लोग सोते ही रहते अगर रितू भाभी आके नहीं जगातीं-
“जागो सोनेवालों जागो…”
और इनके कान में जीभ से सुरसुरी करती बोलीं-
“अरे नन्दोई जी एक कच्ची कली, मस्त टिकोरों वाली,
अपनी गुलाबी परी सम्हाले आपका इन्तजार कर रही है…”
और जब हम दोनों उठे, तो रितू भाभी ने न उन्हें अपना शार्ट ठीक करने दिया और न मुझे ब्लाउज।
नन्दोई सलहज में थोड़ी देर छेड़छाड़ चलती रही।
रितू भाभी उनके माँ बहनों का हाल लेती रही और वो रितू भाभी को गोद में खींचकर चोली के ऊपर से ही जोबन का रस कभी हाथों से कभी होंठों से।
और मौका पाकर मैंने ब्लाउज की बची खुची बटन बंद कर ली (चार में से दो तो उन्होंने तोड़ ही दी थीं),
साये का नाड़ा बाँध लिया और साड़ी बस लपेट ली।
(मुझे मालूम था, रितू भाभी हों तो ननद के देह पे कपड़े कितने देर टिकते थे, जैसे ये, उनके नन्दोई कपड़े के दुश्मन, वैसे ही उनकी सलहज)
तब तक रितू भाभी को उस मिशन की याद आई, जिसके लिए वो आई थीं, मिशन छुटकी। और उन्होंने अपने नन्दोई को ललकारा। शार्ट के ऊपर से ही उन्होंने नन्दोई के हथियार को जोर से दबाते मसलते कहा-
“अरे नन्दोई जी, अपनी नहीं तो इसकी फिकर करो, बिचारा कितना भूखा है…”
और भाभी के दबाने मसलने से वो आधा सोया आधा जागा, पूरी तरह जग के फुफकारने लगा।
लेकिन इतने पर अगर वो छोड़ दें तो रितू भाभी कैसी,
शार्ट में अंदर हाथ डाल के एक झटके में रितू भाभी ने सुपाड़ा खोल दिया और उनके पेशाब के छेद पे अंगूठा लगा के, रगड़ने मसलने लगी। और साथ में उनकी बातें-
“बोल चाहिये छोटी साल्ली की कच्ची चूत… बहुत चिल्लाएगी, चीखेगी वो… लेकिन छोड़ना मत…
रगड़-रगड़ के फाड़ना, चीखने, चिल्लाने देना साल्ली को…”
अब तो बिचारे उनका लण्ड एकदम पागल हो गया।
रितू भाभी मुठियाती रही, कभी पेल्हड़ भी सहला देती तो कभी उनके गाल पे हल्के से चुम्मी लेकर काट लेती।
सलहज हो तो रितू भाभी ऐसी।
थोड़ी देर में हम तीनों ऊपर छुटकी के कमरे में पहुँच गए।
वो लगता है बस इंतजार ही कर रही थी।
एक झीनी झीनी कम से कम दो साल पुरानी टाप और स्कर्ट में, उसके टिकोरे टाप फाड़ रहे थे,
और स्कर्ट भी छोटी-छोटी किशोर गोरी-गोरी जांघों को दिखाती ज्यादा, छुपाती कम।
उसकी और उसके जीजा की आँखें चार हुई और दोनों मुश्कुराये।
उसके जीजा भी बस बनयान शार्ट्स में और, खूंटा पूरा तना, शार्ट्स को फाड़ता।
छुटकी को देखकर बल्की छुटकी के कच्चे टिकोरों को देखकर वो और बौरा गया। वो छुटकी के बगलमें ही बैठ गए, उससे सट कर।
और रितू भाभी मेरे बगल में बैठ गईं।