24-11-2019, 06:14 PM
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अगली सुबह मैं उठ कर तैयार हुआ और सबसे पहले कैफ़े पहुँचा और वहां अनु पहले से ही मेरा इंतजार कर रही थी| हम बिलकुल कोने में बैठे थे ताकि प्रेजेंटेशन के दौरान कोई हमें डिस्टर्ब न दे| वीडियो कॉल पर प्रेजेंटेशन शुरू हुआ और जल्दी ही सारा काम निपट गया| अनु ने प्रेजेंटेशन के बाद थैंक यू कहा और साथ ही ये भी बताया की वो कल बैंगलोर जा रहीं हैं| मैंने उसने आगे और कुछ नहीं पुछा और जल्दी-जल्दी सीधा इंटरव्यू के लिए निकल गया| इंटरव्यू सक्सेसफुल नहीं था क्योंकि वहाँ कोई अपनी जान-पहचान निकला लाया था! मैं हारा हुआ घर आया और लेट गया, मन में यही बात आ रही थी की 5 दिन में तू ने हार मान ली तो इतनी बड़ी लड़ाई कैसे लड़ेगा? आँखें बंद किये हुए कुछ देर लेटा रहा और फिर अचानक से मुझे भगवान् का ख्याल आया| जब कोई रास्ता दिखाई नहीं देता तो एक भगवान् के घर का ही रास्ता दिखाई देने लगता है, में उठा और मंदिर जा पहुँचा| वहां बैठे-बैठे मन ही मन में मैंने अपने दिल की साड़ी बात भगवान् से कह दी, कोई जवाब तो नहीं मिला पर मन हल्का हो गया| ऐसा लगने लगा जैसे की कोई कह रहा हो की कोशिश करता रह कभी न कभी तो कामयाबी मिल जाएगी| मंदिर की शान्ति से मन काबू में आने लगा था इसलिए शाम तक मैं मंदिर में ही बैठा रहा| ठीक 4 बजे मैं ऋतू के कॉलेज के लिए निकला, जब ऋतू ने मेरे मस्तक पर टिका देखा तो वो असमंजस में पड़ गई और फिर एक दम से उदास हो गई| हम चलते-चलते एक पार्क में पहुँचे और तब मैंने बात शुरू की; "क्या हुआ? अभी तो तेरे मुँह खिला-खिला था, अचानक से उदास कैसे हो गई?" ऋतू ने गर्दन झुकाये हुए कहा; "आपने अनु से शादी कर ली ना?" ये सुन कर मैं बहुत तेज ठहाका मार के हँसने लगा| उसके इस बचपने पर मुझे बहुत हँसी आ रही थी और उधर ऋतू मुझे हँसता हुआ देख कर हैरान थी| ऋतू गुस्से में मुड़ के जाने लगी तो मैंने पहले बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी काबू में की और ऋतू के सामने जा के खड़ा हो गया| "तू पागल हो गई है क्या? मैं अनु से शादी क्यों करूँगा? प्यार तो मैं तुझसे करता हूँ! मैं मंदिर गया था..." इसके आगे मैंने ऋतू से कुछ नहीं कहा और उसके चेहरे को हाथों में थामे उसकी आँखों में देखने लगा| ऋतू भी मेरी आँखों में सच देख पा रही थी और उसे यक़ीन हो गया था की मैं झूठ नहीं बोल रहा| वो आके मेरे सीने से लग गई, और मैं उसके सर पर हाथ फेरता रहा|
कुछ देर में जब उसके जज्बात उसके काबू में आये तो उसने पुछा; "आप मंदिर क्यों गए थे?" अब मैं इस बात को उससे छुपाना चाहता था की मैं मंदिर इसलिए गया था क्योंकि मैं इंटरव्यू के बाद हारा हुआ महसूस कर रहा था| "बस ऐसे ही!" मैंने बात को वहीँ खत्म कर दिया| "आपका इंटरव्यू कैसा था?" ऋतू ने अपने बैग से टिफ़िन निकालते हुए कहा| "Not good! किसी का आलरेडी जुगाड़ फिट था!" मैंने ऋतू से नजर चुराते हुए कहा| ऋतू अब सब समझ गई थी की मैं क्यों मंदिर गया था| उसने मेरे ठुड्डी पकड़ी और अपनी तरफ घुमाई और मेरी आँखों में आँखें डालते हुए बोली; "मैं हूँ ना आपके पास, तो क्यों चिंता करते हो?" उसका ये कहना ही मेरे लिए बहुत था| मेरा आत्मविश्वास अब दुगना हो गया था और माहौल हल्का करने के लिए मैंने थोड़ा हँसी-मजाक शुरू कर दिया| वो पूरा हफ्ता मैं या तो इंटरव्यू देने के लिए ऑफिसेस के चक्कर काटा या फिर जॉब कंसल्टेंसी वालों के यहाँ जाता था| जहाँ कहीं जॉब मिली भी तो पाय इतनी नहीं थी जितनी मैं चाहता था| पर फिर मुझे कुछ-कुछ समझ आने लगा, दिवाली आने में 1 महीना रह गया था तो ऐसे मैं कौन सा मालिक एक एक्स्ट्रा आदमी को hire कर बोनस देना चाहेगा, इसीलिए vacancy कम निकल रहीं हैं| मैंने ये सोच कर संतोष कर लिया की दिवाली के बाद तो नौकरी मिल ही जाएगी| सहबीवार का दिन था और ऋतू सुबह-सुबह ही आ धमकी! मैं तो पहले से ही जानता था की वो आने वाली है इसलिए मैं खिड़की के सामने बैठा चाय पी रहा था| दरवाजा खुला था, इसलिए ऋतू चुपके से अंदर आई और मेरी आँखों पर अपने कोमल हाथ रख दिए ये सोच कर की मैं कहूँगा की कौन है? मैं तो पहले से ही जानता था की ये ऋतू है क्योंकि उसकी परफ्यूम की जानी-पहचानी महक मुझे पहले ही आ गई थी| अब समय था उसे जलाने का; "अरे रिंकी भाभी?!" मैंने जान बूझ कर ये नाम लिया, ये नाम किसी और का नहीं बल्कि मेरे मकान मालिक अंकल की बहु का नाम था| ये सुनते ही ऋतू गुस्से से तमतमा गई और उसने मेरी आँखों से हाथ हटाए और मेरे सामने गुस्से से खड़ी हो गई; "रिंकू भाभी के साथ आपका चक्कर है? वो आपके घर में कभी भी बिना बातये घुस आती है और आपको ऐसे छूती है? ये सारी औरतें आपके पीछे क्यों पड़ीं हैं? एक अनु मैडम कम थी जो ये रिंकू भाभी भी आपके पीछे पड़ गईं? और आप.... आप बोल नहीं सकते की आप किसी से प्यार करते हो? मैं....मैं....."
"अरे..अरे..अरे... यार मजाक कर रहा था, तू क्यों इतनी जल्दी भड़क जाती है?" मैंने ऋतू को मनाते हुए कहा|
"भड़कूं नहीं? आपके मुँह से किसी भी लड़की का नाम सुनते ही मेरे जिस्म में आग लग जाती है! आपको मजाक करने के लिए कोई और टॉपिक नहीं मिलता?" ऋतू ने गुस्से से कहा|
'अच्छा सॉरी! आज के बाद ऐसा कभी मजाक नहीं करूँगा!" मैंने कान पकड़ते हुए कहा| मेरे ऐसा करने से ऋतू का दिल एक दम से पिघल गया और वो आ कर मुझसे चिपक गई|
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, मैं और ऋतू अलग हुए और एक दूसरे को देखने लगे| मैं दरवाजे के पास आया और मैजिक ऑय से देखा तो बाहर मोहिनी खड़ी थी| मैंने इशारे से ऋतू को बाथरूम में छुपने को कहा| जैसे ही ऋतू अंदर घुसी और बाथरूम का दरवाजा सटाया मैंने मैन डोर खोला| "बड़ी देर लगा दी दरवाजा खोलने में? कोई लड़की-वड़की छुपा राखी है?" मोहिनीं ने हँसते हुए कहा|
"नंगा था ... कपड़े पहन रहा था|" मैंने भी उसी तरह से जवाब दिया|
"तो मुझसे कैसी शर्म?" मोहिनी ने फिर से मुझे छेड़ते हुए कहा|
"ओ मैडम जी! आपने कब देख लिया मुझे नंगा?" मैंने थोड़ा हैरानी से कहा|
''अरे मजाक कर रही थी! काहे सीरियस हो जाते हो आप?"
"यही मजाक करना आता है? कउनो और मजाक नहीं कर सकती?" मैं जानता था की ऋतू अंदर बाथरूम से हमारी सारी बात सुन रही है इसलिए अभी कुछ देर पहले कही उसकी बात उसे सुनाते हुए मैंने कहा| इधर मोहिनी खिलखिला कर हँस रही थी, कारन ये की हम दोनों कई बार एक दूसरे से इसी तरह देहाती भाषा में बात करते थे!
"चलो जल्दी से तैयार हो जाओ?"
"क्यों?" मैंने पुछा और यही सवाल ऋतू के मन में भी चल रहा था|
"माँ ने बुलाया है आपको, लंच पर|"
"क्यों आज कोई ख़ास दिन है?" मैंने पुछा|
"वो..आज ...मेरा बर्थडे है!" मोहिनी ने मुस्कुराते हुए कहा|
"अरे सॉरी यार! हैप्पी बर्थडे! सॉरी मैं भूल गया था!" मैंने माफ़ी माँगते हुए उसे wish किया|
"मेरा बर्थडे याद करके रखते हो?"
:यार कॉलेज के कुछ 'ख़ास' लोगों का जन्मदिन याद है|" मेरे ये कहने के बाद मुझे एहसास हुआ की ऋतू ये सब सुन रही होगी और अभी मुझसे फिर लड़ेगी इसलिए मैंने अपनी इस बात में आगे बात जोड़ दी; "जैसे मुन्ना, सोमू भैया और मेरे ऑफिस के colleagues के|"
"पर wish तो कभी किया नहीं?" मोहिनी ने सवाल किया|
"कैसे करता? मेरे पास नंबर तो था नहीं, बाकियों को व्हाटस ऍप पर wish कर दिया करता था|" मैंने अपनी सफाई दी, जबकि मेरा उसका बर्थडे याद रखने का कारन मेरा उसके लिए प्यार था जो मैं उससे फर्स्ट ईयर में किया करता था| पर जब मुझे संकेत ने ऋतू की माँ वाले काण्ड के बारे में बताया था तब से मैंने खुद को जैसे-तैसे समझा लिया था की मैं मोहिनी से प्यार नहीं कर सकता| फिर ऋतू मिल गई और मेरे मन में मोहिनी के प्यार की कब्र बन गई|
"चलो कोई बात नहीं, इस बार तो wish कर दिया आपने| चलो चलते हैं... (कुछ सोचते हुए) अच्छा एक बात बताओ रितिका सुबह बोल के गई थी की कॉलेज जा रही है पर मुझे तो वो वहाँ मिली नहीं! आपको पता है कहाँ गई है?" मोहनी ने पुछा| मैं जानता था की ऋतू मेरे ही बाथरूम में छुपी है पर ये मैं उसे कैसे बता सकता था|
"पता नहीं... कहीं दोस्तों के साथ बंक तो नहीं कर रही?" मैंने अनजान बनते हुए कहा|
"हो सकता है, उसके पास फ़ोन भी नहीं की उसे कॉल कर के बुला लूँ| आप अपने घर में कह दो ना की उसे एक फ़ोन दिलवा दें ताकि कभी जर्रूरत हो तो उसे कॉल कर लूँ|"
"आ जाएगी जहाँ भी होगी, लंच तक! आप ऐसा करो आप चलो मुझे एक जर्रूरी काम है वो निपटा कर मैं आता हूँ|" मैंने बहाना मारा ताकि मोहिनी निकले|
"ठीक है पर लेट मत होना|" इतना कह कर वो चली गई, मैंने दरवाजा बंद किया और ऋतू फिर से गुस्से में बाहर आई और अपनी कमर पर दोनों हाथ रख कर मुझे घूरने लगी|
"सॉरी बाबा ...सॉरी!!!' मैंने कान पकड़ते हुए कहा पर उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ, वो किचन में घुसी और चम्मच और गिलास उठा के फेंकने शुरू कर दिए| "अरे यार ...सॉरी! ...सॉरी!!!!" पर उसने बर्तन मेरी ओर फेकने जारी रखे, हैरानी की बात है की एक भी बर्तन मुझे लगा नहीं| मैं धीरे-धीरे उसके नजदीक पहुँचा तभी उसके हाथ में बेलन आ गया| मुझे मारने के लिए उसने बेलन उठाया की तभी कुछ सोचने लगी ओर वो वापस किचन काउंटर पर छोड़ दिया ओर मेरे पास आ कर प्यार से अपने मुक्के मेरे सीने में मारने शरू कर दिए|
अउ..अउ..अउ..आह!" मैंने झूठ-मूठ का करहाना शुरू किया पर वो रुकी नहीं| मैंने उसे गोद में उठाया ओर पलंग पर ले आया, पर उसने मेरी छाती पर अब भी मुक्के मारने चालु रखे| मैंने दोनों हाथों से उसके दोनों हाथों को पकड़ कर अलग-अलग किया ओर उसके ऊपर झुक कर उसके होठों को चूमा, तब जा कर उसका गुस्सा शांत हुआ| "बाबू! ये बहुत पुरानी बात है, कॉलेज फर्स्ट ईयर की! पर जब से तुमसे प्यार हुआ मैं सब कुछ भूल गया था, तुम्हारी कसम! अब प्लीज गुस्सा थूक दो!" मैंने बहुत प्यार से कहा ओर ऋतू के हाथ छोड़ दिए| मैं उसके ऊपर से उठने लगा तो ऋतू ने मेरे टी-शर्ट के कालर को पकड़ा ओर अपने ऊपर खींच लिया; "ज्यादा न पुरानी बातें याद ना किया कीजिये, नहीं सच कर रही हूँ जान दे दूंगी मैं!"
"अरे बाप रे बाप! ई व्यवस्था!" मैंने भोजपुरी में कहा तो ऋतू की हँसी छूट गई| "अच्छा जान! चलो उठो ओर चलें आपके हॉस्टल!"
हम दोनों उठे और मैंने कपडे बदले और दोनों बस से हॉस्टल पहुँचे| चौराहे पर पहुँच कर मैंने ऋतू से जाने को कहा और मैं मार्किट की तरफ निकल गया| जन्मदिन पर खाली हाथ जाना सही नहीं लगा, अब अगर तौह्फे के लिए फूल लिए तो ऋतू जान खा जाएगी इसलिए मैंने एक पेन खरीदा और उसे गिफ्ट-व्रैप करा कर हॉस्टल पहुँचा| ऋतू ने दरवाजा खोला और हँसते हुए 'नमस्ते' कहा| अब आखिर सब के समने ये भी तो जताना था की हम दोनों एक साथ नहीं थे! मैंने आंटी जी के पाँव छुए और उन्होंने मुझे बैठे को कहा| वो भी मेरे पास ही बैठ गईं और घर के हाल-चाल पूछने लगीं| "और बताओ जॉब कैसी चल रही है?" आंटी जी ने पुछा, मैंने बात को गोलमोल करना चाहा की तभी ऋतू बोल पड़ी; "आंटी जी जॉब तो छोड़ दी इन्होने!" अब ये सुनते ही आंटी जी मेरी तरफ देखने लगीं; "वो आंटी जी वर्क लोड बहुत बढ़ गया था ऊपर से सैलरी ढंग की देते नहीं थे!" मैंने झूठ बोला और आंटी ने मेरी बात मान भी ली| "सही किया बेटा, मेरे हिसाब से तो सरकारी नौकरी ही बढ़िया है| काम कम और सैलरी ज्यादा!" मैं ये सुन कर मुस्कुरा दिया क्योंकि मेरी ऐसी आदत थी नहीं, मुझे तो मेरी मेहनत की कमाई हुई रोटी ही भाति थी! कुछ देर बाद मोहिनी आ गई और मैंने उसे उसका तौहफा दिया तो उसने झट से तौहफा ले लिया| आंटी जी ने बड़ा कहा की बेटा क्या जर्रूरत थी तो मैंने बस इतना ही कहा की आंटी जी बस एक पेन ही तो है, वो बात अलग है की वो पेन पार्कर का था! ऋतू शांत रही और कुछ नहीं बोली, अब मैं चलने को हुआ तो मोहिनी कहने लगी की वो मुझे ड्राप कर देगी| मैंने बहुत मना किया पर आंटी जी ने भी कहा की कोई नहीं छोड़ आ| मैं उसकी स्कूटी पर पीछे बैठ गया और दोनों हाथों से पीछे के हैंडल को पकड़ लिया| हम रेड लाइट पर रुके तो मोहिनी पीछे मुड़ी और बोली; थैंक यू!" मैंने बस its alright कहा और तभी ग्रीन लाइट हो गई| फिर पूरे रस्ते वो कुछ न कुछ बोलती रही, उसे अब भी पता नहीं था की मैंने जॉब छोड़ दी है| जब घर आया तो मोहिनी बोली; "सॉरी इस बार आपको घर का खाना खिलाया! नेक्स्ट टाइम मैं पार्टी दूँगी!"
"कोई नहीं!" मैं बाय बोल कर जाने लगा तो वो खुद ही बोलने लगी; "माँ ना... सच्ची बहुत रोक-टोक रखती है मुझ पर! ऑफिस से घर और घर से ऑफिस, जरा सी लेट हो जाऊँ तो जान खा जाती है मेरी| मैंने कहा मैं बाहर ट्रीट दूँगी तो कहने लगी किसको ट्रीट देनी है? अब अगर ऑफिस वालों का नाम लेती तो वो मना कर देती इसलिए मैंने आपका नाम ले लिया| आपका नाम सुनते ही उन्होंने कहा की मानु को यहीं बुला ले बहुत दिनों से उससे मुलाक़ात नहीं हुई, इसलिए आप को आज के लंच का न्योता दिया| इतनी रोक-टोक तो वो रितिका पर भी नहीं रखती!"
"उनकी गलती नहीं है, ये जो आपका मुँहफट पना है न इसी के चलते वो ऐसा करती हैं| रही ऋतू की बात तो वो हमेशा ही शांत रहती है, कम बोलती है और अपने काम से काम रखती है और कुछ-कुछ मेरी वजह से भी आंटी जी उस पर lenient हैं, इसलिए उसे ज्यादा रोकती-टोकती नहीं!" मैंने आंटी की तरफदारी की|
"अच्छा तो मैं भी रितिका की तरह गाय बन जाऊँ?" मोहिनी ने हँसते हुए कहा|
"नहीं बन सकती! वो बानी ही अलग मिटटी के सांचे की है और फिर ऊपर वाले ने ही वो साँचा तोड़ दिया!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा| मैंने ऋतू की तारीफ कुछ इस ढंग से की ताकि मोहिनी उसे समझ ही न पाए की मैंने तारीफ की है या उसका मजाक उड़ाया है| मैं ऊपर आ गया और मोहनी अपनी स्कूटी मोड़ के चली गई| कुछ देर बाद ऋतू का मैसेज आया पर उसने गिफ्ट के बारे में कुछ नहीं कहा| वो समझ गई थी की मैंने वो गिफ्ट बस खानापूरी के लिए दिया था| थोड़ी इधर-उधर की बातें हुईं फिर मैं घर के कुछ काम करने लगा| वो दिन बस ऐसे ही निकल गया और फिर आया संडे और मैं नाहा-धो के पूजा कर के तैयार था| ऋतू भी समय से आ गई और आते ही मेरे सीने से चिपक गई| पर आज मैंने उसे नहीं छुआ और वो तुरंत ये बदलाव ताड़ गई| "क्या हुआ? नाराज हो?" उसने मेरी ठुड्डी पकड़ते हुए कहा| नहीं तो.... आज से व्रत हैं!" ये सुनते ही ऋतू मुझसे छिटक कर कड़ी हो गई और अपनी जीभ दाँतों तले दबा कर सॉरी बोली| दरअसल मैं हर साल नवरात्रों में व्रत रखता था और पूरे रखता था| "तब तो मैं आपको छू भी नहीं सकती?!" ऋतू ने पुछा| "दिल साफ़ हो तो छू सकती हो, पर वासना भरी हो तो नहीं!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो जवाब में ऋतू बोली; "आपको देखते ही मेरे जिस्म में आग लग जाती है| उसे बूझाने ही तो मैं आपके करीब आती हूँ, पर हाय रे मेरी किस्मत! आप तो विश्वामित्र बन गए पर कोई बात नहीं ये मेनका आपकी तपस्या भंग अवश्य कर देगी!"
"बड़ा ज्ञान है तुझे? पर मेरे साथ ऐसा कुछ करने की कोशिश भी मत करना| मार खायेगी मेरे से!" मैंने ऋतू को चेतावनी दी| उसने बस हाँ में गर्दन हिलाई, वो जानती थी की व्रत के दिनों में मैं बहुत सख्त नियमों का प्लान करता हूँ| हालाँकि मेरे लिए भी इस बार बहुत मुश्किल था ऋतू के सामने होते हुए उससे दूर रहना| अब उस दिन चूँकि मैं कुछ खाने वाला नहीं था तो ऋतू ने भी कुछ खाने से मना कर दिया| मैंने फिर भी उसके लिए फ्रूट चाट बना दी और दोनों बिस्तर पर बैठे मूवी देखते रहे| वो पूरा हफ्ता वही रूटीन चलता रहा, जॉब ढूँढना, शाम को ऋतू से मिलना और फिर घर आ कर सो जाना| बुधवार को ही घर से बालवा आ गया और गुरूवार की शाम मैं और ऋतू गाँव चले गए| घर में सब जानते थे की मेरा व्रत है तो माँ ने मेरे लिए दूध बनाया था जिसे पी कर मैं सो गया| शनिवार को घर में पूजा हुई और मेरा व्रत पूर्ण हुआ, फिर दबा के हलवा-पूरी खाई| शाम को मैं छत पर बैठा था की ऋतू आ गई; "अच्छा अब तो आपको छूने की इज्जाजत है मुझे?"
"घर में सब मौजूद हैं तो ज्यादा मेरे पास भटकना भी मत|" मैंने कहा तो ऋतू मुँह फुला कर चली गई| मैं जानता था की मुझे उसे कैसे मनाना है पर आज नहीं कल!
अगली सुबह मैं उठ कर तैयार हुआ और सबसे पहले कैफ़े पहुँचा और वहां अनु पहले से ही मेरा इंतजार कर रही थी| हम बिलकुल कोने में बैठे थे ताकि प्रेजेंटेशन के दौरान कोई हमें डिस्टर्ब न दे| वीडियो कॉल पर प्रेजेंटेशन शुरू हुआ और जल्दी ही सारा काम निपट गया| अनु ने प्रेजेंटेशन के बाद थैंक यू कहा और साथ ही ये भी बताया की वो कल बैंगलोर जा रहीं हैं| मैंने उसने आगे और कुछ नहीं पुछा और जल्दी-जल्दी सीधा इंटरव्यू के लिए निकल गया| इंटरव्यू सक्सेसफुल नहीं था क्योंकि वहाँ कोई अपनी जान-पहचान निकला लाया था! मैं हारा हुआ घर आया और लेट गया, मन में यही बात आ रही थी की 5 दिन में तू ने हार मान ली तो इतनी बड़ी लड़ाई कैसे लड़ेगा? आँखें बंद किये हुए कुछ देर लेटा रहा और फिर अचानक से मुझे भगवान् का ख्याल आया| जब कोई रास्ता दिखाई नहीं देता तो एक भगवान् के घर का ही रास्ता दिखाई देने लगता है, में उठा और मंदिर जा पहुँचा| वहां बैठे-बैठे मन ही मन में मैंने अपने दिल की साड़ी बात भगवान् से कह दी, कोई जवाब तो नहीं मिला पर मन हल्का हो गया| ऐसा लगने लगा जैसे की कोई कह रहा हो की कोशिश करता रह कभी न कभी तो कामयाबी मिल जाएगी| मंदिर की शान्ति से मन काबू में आने लगा था इसलिए शाम तक मैं मंदिर में ही बैठा रहा| ठीक 4 बजे मैं ऋतू के कॉलेज के लिए निकला, जब ऋतू ने मेरे मस्तक पर टिका देखा तो वो असमंजस में पड़ गई और फिर एक दम से उदास हो गई| हम चलते-चलते एक पार्क में पहुँचे और तब मैंने बात शुरू की; "क्या हुआ? अभी तो तेरे मुँह खिला-खिला था, अचानक से उदास कैसे हो गई?" ऋतू ने गर्दन झुकाये हुए कहा; "आपने अनु से शादी कर ली ना?" ये सुन कर मैं बहुत तेज ठहाका मार के हँसने लगा| उसके इस बचपने पर मुझे बहुत हँसी आ रही थी और उधर ऋतू मुझे हँसता हुआ देख कर हैरान थी| ऋतू गुस्से में मुड़ के जाने लगी तो मैंने पहले बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी काबू में की और ऋतू के सामने जा के खड़ा हो गया| "तू पागल हो गई है क्या? मैं अनु से शादी क्यों करूँगा? प्यार तो मैं तुझसे करता हूँ! मैं मंदिर गया था..." इसके आगे मैंने ऋतू से कुछ नहीं कहा और उसके चेहरे को हाथों में थामे उसकी आँखों में देखने लगा| ऋतू भी मेरी आँखों में सच देख पा रही थी और उसे यक़ीन हो गया था की मैं झूठ नहीं बोल रहा| वो आके मेरे सीने से लग गई, और मैं उसके सर पर हाथ फेरता रहा|
कुछ देर में जब उसके जज्बात उसके काबू में आये तो उसने पुछा; "आप मंदिर क्यों गए थे?" अब मैं इस बात को उससे छुपाना चाहता था की मैं मंदिर इसलिए गया था क्योंकि मैं इंटरव्यू के बाद हारा हुआ महसूस कर रहा था| "बस ऐसे ही!" मैंने बात को वहीँ खत्म कर दिया| "आपका इंटरव्यू कैसा था?" ऋतू ने अपने बैग से टिफ़िन निकालते हुए कहा| "Not good! किसी का आलरेडी जुगाड़ फिट था!" मैंने ऋतू से नजर चुराते हुए कहा| ऋतू अब सब समझ गई थी की मैं क्यों मंदिर गया था| उसने मेरे ठुड्डी पकड़ी और अपनी तरफ घुमाई और मेरी आँखों में आँखें डालते हुए बोली; "मैं हूँ ना आपके पास, तो क्यों चिंता करते हो?" उसका ये कहना ही मेरे लिए बहुत था| मेरा आत्मविश्वास अब दुगना हो गया था और माहौल हल्का करने के लिए मैंने थोड़ा हँसी-मजाक शुरू कर दिया| वो पूरा हफ्ता मैं या तो इंटरव्यू देने के लिए ऑफिसेस के चक्कर काटा या फिर जॉब कंसल्टेंसी वालों के यहाँ जाता था| जहाँ कहीं जॉब मिली भी तो पाय इतनी नहीं थी जितनी मैं चाहता था| पर फिर मुझे कुछ-कुछ समझ आने लगा, दिवाली आने में 1 महीना रह गया था तो ऐसे मैं कौन सा मालिक एक एक्स्ट्रा आदमी को hire कर बोनस देना चाहेगा, इसीलिए vacancy कम निकल रहीं हैं| मैंने ये सोच कर संतोष कर लिया की दिवाली के बाद तो नौकरी मिल ही जाएगी| सहबीवार का दिन था और ऋतू सुबह-सुबह ही आ धमकी! मैं तो पहले से ही जानता था की वो आने वाली है इसलिए मैं खिड़की के सामने बैठा चाय पी रहा था| दरवाजा खुला था, इसलिए ऋतू चुपके से अंदर आई और मेरी आँखों पर अपने कोमल हाथ रख दिए ये सोच कर की मैं कहूँगा की कौन है? मैं तो पहले से ही जानता था की ये ऋतू है क्योंकि उसकी परफ्यूम की जानी-पहचानी महक मुझे पहले ही आ गई थी| अब समय था उसे जलाने का; "अरे रिंकी भाभी?!" मैंने जान बूझ कर ये नाम लिया, ये नाम किसी और का नहीं बल्कि मेरे मकान मालिक अंकल की बहु का नाम था| ये सुनते ही ऋतू गुस्से से तमतमा गई और उसने मेरी आँखों से हाथ हटाए और मेरे सामने गुस्से से खड़ी हो गई; "रिंकू भाभी के साथ आपका चक्कर है? वो आपके घर में कभी भी बिना बातये घुस आती है और आपको ऐसे छूती है? ये सारी औरतें आपके पीछे क्यों पड़ीं हैं? एक अनु मैडम कम थी जो ये रिंकू भाभी भी आपके पीछे पड़ गईं? और आप.... आप बोल नहीं सकते की आप किसी से प्यार करते हो? मैं....मैं....."
"अरे..अरे..अरे... यार मजाक कर रहा था, तू क्यों इतनी जल्दी भड़क जाती है?" मैंने ऋतू को मनाते हुए कहा|
"भड़कूं नहीं? आपके मुँह से किसी भी लड़की का नाम सुनते ही मेरे जिस्म में आग लग जाती है! आपको मजाक करने के लिए कोई और टॉपिक नहीं मिलता?" ऋतू ने गुस्से से कहा|
'अच्छा सॉरी! आज के बाद ऐसा कभी मजाक नहीं करूँगा!" मैंने कान पकड़ते हुए कहा| मेरे ऐसा करने से ऋतू का दिल एक दम से पिघल गया और वो आ कर मुझसे चिपक गई|
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, मैं और ऋतू अलग हुए और एक दूसरे को देखने लगे| मैं दरवाजे के पास आया और मैजिक ऑय से देखा तो बाहर मोहिनी खड़ी थी| मैंने इशारे से ऋतू को बाथरूम में छुपने को कहा| जैसे ही ऋतू अंदर घुसी और बाथरूम का दरवाजा सटाया मैंने मैन डोर खोला| "बड़ी देर लगा दी दरवाजा खोलने में? कोई लड़की-वड़की छुपा राखी है?" मोहिनीं ने हँसते हुए कहा|
"नंगा था ... कपड़े पहन रहा था|" मैंने भी उसी तरह से जवाब दिया|
"तो मुझसे कैसी शर्म?" मोहिनी ने फिर से मुझे छेड़ते हुए कहा|
"ओ मैडम जी! आपने कब देख लिया मुझे नंगा?" मैंने थोड़ा हैरानी से कहा|
''अरे मजाक कर रही थी! काहे सीरियस हो जाते हो आप?"
"यही मजाक करना आता है? कउनो और मजाक नहीं कर सकती?" मैं जानता था की ऋतू अंदर बाथरूम से हमारी सारी बात सुन रही है इसलिए अभी कुछ देर पहले कही उसकी बात उसे सुनाते हुए मैंने कहा| इधर मोहिनी खिलखिला कर हँस रही थी, कारन ये की हम दोनों कई बार एक दूसरे से इसी तरह देहाती भाषा में बात करते थे!
"चलो जल्दी से तैयार हो जाओ?"
"क्यों?" मैंने पुछा और यही सवाल ऋतू के मन में भी चल रहा था|
"माँ ने बुलाया है आपको, लंच पर|"
"क्यों आज कोई ख़ास दिन है?" मैंने पुछा|
"वो..आज ...मेरा बर्थडे है!" मोहिनी ने मुस्कुराते हुए कहा|
"अरे सॉरी यार! हैप्पी बर्थडे! सॉरी मैं भूल गया था!" मैंने माफ़ी माँगते हुए उसे wish किया|
"मेरा बर्थडे याद करके रखते हो?"
:यार कॉलेज के कुछ 'ख़ास' लोगों का जन्मदिन याद है|" मेरे ये कहने के बाद मुझे एहसास हुआ की ऋतू ये सब सुन रही होगी और अभी मुझसे फिर लड़ेगी इसलिए मैंने अपनी इस बात में आगे बात जोड़ दी; "जैसे मुन्ना, सोमू भैया और मेरे ऑफिस के colleagues के|"
"पर wish तो कभी किया नहीं?" मोहिनी ने सवाल किया|
"कैसे करता? मेरे पास नंबर तो था नहीं, बाकियों को व्हाटस ऍप पर wish कर दिया करता था|" मैंने अपनी सफाई दी, जबकि मेरा उसका बर्थडे याद रखने का कारन मेरा उसके लिए प्यार था जो मैं उससे फर्स्ट ईयर में किया करता था| पर जब मुझे संकेत ने ऋतू की माँ वाले काण्ड के बारे में बताया था तब से मैंने खुद को जैसे-तैसे समझा लिया था की मैं मोहिनी से प्यार नहीं कर सकता| फिर ऋतू मिल गई और मेरे मन में मोहिनी के प्यार की कब्र बन गई|
"चलो कोई बात नहीं, इस बार तो wish कर दिया आपने| चलो चलते हैं... (कुछ सोचते हुए) अच्छा एक बात बताओ रितिका सुबह बोल के गई थी की कॉलेज जा रही है पर मुझे तो वो वहाँ मिली नहीं! आपको पता है कहाँ गई है?" मोहनी ने पुछा| मैं जानता था की ऋतू मेरे ही बाथरूम में छुपी है पर ये मैं उसे कैसे बता सकता था|
"पता नहीं... कहीं दोस्तों के साथ बंक तो नहीं कर रही?" मैंने अनजान बनते हुए कहा|
"हो सकता है, उसके पास फ़ोन भी नहीं की उसे कॉल कर के बुला लूँ| आप अपने घर में कह दो ना की उसे एक फ़ोन दिलवा दें ताकि कभी जर्रूरत हो तो उसे कॉल कर लूँ|"
"आ जाएगी जहाँ भी होगी, लंच तक! आप ऐसा करो आप चलो मुझे एक जर्रूरी काम है वो निपटा कर मैं आता हूँ|" मैंने बहाना मारा ताकि मोहिनी निकले|
"ठीक है पर लेट मत होना|" इतना कह कर वो चली गई, मैंने दरवाजा बंद किया और ऋतू फिर से गुस्से में बाहर आई और अपनी कमर पर दोनों हाथ रख कर मुझे घूरने लगी|
"सॉरी बाबा ...सॉरी!!!' मैंने कान पकड़ते हुए कहा पर उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ, वो किचन में घुसी और चम्मच और गिलास उठा के फेंकने शुरू कर दिए| "अरे यार ...सॉरी! ...सॉरी!!!!" पर उसने बर्तन मेरी ओर फेकने जारी रखे, हैरानी की बात है की एक भी बर्तन मुझे लगा नहीं| मैं धीरे-धीरे उसके नजदीक पहुँचा तभी उसके हाथ में बेलन आ गया| मुझे मारने के लिए उसने बेलन उठाया की तभी कुछ सोचने लगी ओर वो वापस किचन काउंटर पर छोड़ दिया ओर मेरे पास आ कर प्यार से अपने मुक्के मेरे सीने में मारने शरू कर दिए|
अउ..अउ..अउ..आह!" मैंने झूठ-मूठ का करहाना शुरू किया पर वो रुकी नहीं| मैंने उसे गोद में उठाया ओर पलंग पर ले आया, पर उसने मेरी छाती पर अब भी मुक्के मारने चालु रखे| मैंने दोनों हाथों से उसके दोनों हाथों को पकड़ कर अलग-अलग किया ओर उसके ऊपर झुक कर उसके होठों को चूमा, तब जा कर उसका गुस्सा शांत हुआ| "बाबू! ये बहुत पुरानी बात है, कॉलेज फर्स्ट ईयर की! पर जब से तुमसे प्यार हुआ मैं सब कुछ भूल गया था, तुम्हारी कसम! अब प्लीज गुस्सा थूक दो!" मैंने बहुत प्यार से कहा ओर ऋतू के हाथ छोड़ दिए| मैं उसके ऊपर से उठने लगा तो ऋतू ने मेरे टी-शर्ट के कालर को पकड़ा ओर अपने ऊपर खींच लिया; "ज्यादा न पुरानी बातें याद ना किया कीजिये, नहीं सच कर रही हूँ जान दे दूंगी मैं!"
"अरे बाप रे बाप! ई व्यवस्था!" मैंने भोजपुरी में कहा तो ऋतू की हँसी छूट गई| "अच्छा जान! चलो उठो ओर चलें आपके हॉस्टल!"
हम दोनों उठे और मैंने कपडे बदले और दोनों बस से हॉस्टल पहुँचे| चौराहे पर पहुँच कर मैंने ऋतू से जाने को कहा और मैं मार्किट की तरफ निकल गया| जन्मदिन पर खाली हाथ जाना सही नहीं लगा, अब अगर तौह्फे के लिए फूल लिए तो ऋतू जान खा जाएगी इसलिए मैंने एक पेन खरीदा और उसे गिफ्ट-व्रैप करा कर हॉस्टल पहुँचा| ऋतू ने दरवाजा खोला और हँसते हुए 'नमस्ते' कहा| अब आखिर सब के समने ये भी तो जताना था की हम दोनों एक साथ नहीं थे! मैंने आंटी जी के पाँव छुए और उन्होंने मुझे बैठे को कहा| वो भी मेरे पास ही बैठ गईं और घर के हाल-चाल पूछने लगीं| "और बताओ जॉब कैसी चल रही है?" आंटी जी ने पुछा, मैंने बात को गोलमोल करना चाहा की तभी ऋतू बोल पड़ी; "आंटी जी जॉब तो छोड़ दी इन्होने!" अब ये सुनते ही आंटी जी मेरी तरफ देखने लगीं; "वो आंटी जी वर्क लोड बहुत बढ़ गया था ऊपर से सैलरी ढंग की देते नहीं थे!" मैंने झूठ बोला और आंटी ने मेरी बात मान भी ली| "सही किया बेटा, मेरे हिसाब से तो सरकारी नौकरी ही बढ़िया है| काम कम और सैलरी ज्यादा!" मैं ये सुन कर मुस्कुरा दिया क्योंकि मेरी ऐसी आदत थी नहीं, मुझे तो मेरी मेहनत की कमाई हुई रोटी ही भाति थी! कुछ देर बाद मोहिनी आ गई और मैंने उसे उसका तौहफा दिया तो उसने झट से तौहफा ले लिया| आंटी जी ने बड़ा कहा की बेटा क्या जर्रूरत थी तो मैंने बस इतना ही कहा की आंटी जी बस एक पेन ही तो है, वो बात अलग है की वो पेन पार्कर का था! ऋतू शांत रही और कुछ नहीं बोली, अब मैं चलने को हुआ तो मोहिनी कहने लगी की वो मुझे ड्राप कर देगी| मैंने बहुत मना किया पर आंटी जी ने भी कहा की कोई नहीं छोड़ आ| मैं उसकी स्कूटी पर पीछे बैठ गया और दोनों हाथों से पीछे के हैंडल को पकड़ लिया| हम रेड लाइट पर रुके तो मोहिनी पीछे मुड़ी और बोली; थैंक यू!" मैंने बस its alright कहा और तभी ग्रीन लाइट हो गई| फिर पूरे रस्ते वो कुछ न कुछ बोलती रही, उसे अब भी पता नहीं था की मैंने जॉब छोड़ दी है| जब घर आया तो मोहिनी बोली; "सॉरी इस बार आपको घर का खाना खिलाया! नेक्स्ट टाइम मैं पार्टी दूँगी!"
"कोई नहीं!" मैं बाय बोल कर जाने लगा तो वो खुद ही बोलने लगी; "माँ ना... सच्ची बहुत रोक-टोक रखती है मुझ पर! ऑफिस से घर और घर से ऑफिस, जरा सी लेट हो जाऊँ तो जान खा जाती है मेरी| मैंने कहा मैं बाहर ट्रीट दूँगी तो कहने लगी किसको ट्रीट देनी है? अब अगर ऑफिस वालों का नाम लेती तो वो मना कर देती इसलिए मैंने आपका नाम ले लिया| आपका नाम सुनते ही उन्होंने कहा की मानु को यहीं बुला ले बहुत दिनों से उससे मुलाक़ात नहीं हुई, इसलिए आप को आज के लंच का न्योता दिया| इतनी रोक-टोक तो वो रितिका पर भी नहीं रखती!"
"उनकी गलती नहीं है, ये जो आपका मुँहफट पना है न इसी के चलते वो ऐसा करती हैं| रही ऋतू की बात तो वो हमेशा ही शांत रहती है, कम बोलती है और अपने काम से काम रखती है और कुछ-कुछ मेरी वजह से भी आंटी जी उस पर lenient हैं, इसलिए उसे ज्यादा रोकती-टोकती नहीं!" मैंने आंटी की तरफदारी की|
"अच्छा तो मैं भी रितिका की तरह गाय बन जाऊँ?" मोहिनी ने हँसते हुए कहा|
"नहीं बन सकती! वो बानी ही अलग मिटटी के सांचे की है और फिर ऊपर वाले ने ही वो साँचा तोड़ दिया!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा| मैंने ऋतू की तारीफ कुछ इस ढंग से की ताकि मोहिनी उसे समझ ही न पाए की मैंने तारीफ की है या उसका मजाक उड़ाया है| मैं ऊपर आ गया और मोहनी अपनी स्कूटी मोड़ के चली गई| कुछ देर बाद ऋतू का मैसेज आया पर उसने गिफ्ट के बारे में कुछ नहीं कहा| वो समझ गई थी की मैंने वो गिफ्ट बस खानापूरी के लिए दिया था| थोड़ी इधर-उधर की बातें हुईं फिर मैं घर के कुछ काम करने लगा| वो दिन बस ऐसे ही निकल गया और फिर आया संडे और मैं नाहा-धो के पूजा कर के तैयार था| ऋतू भी समय से आ गई और आते ही मेरे सीने से चिपक गई| पर आज मैंने उसे नहीं छुआ और वो तुरंत ये बदलाव ताड़ गई| "क्या हुआ? नाराज हो?" उसने मेरी ठुड्डी पकड़ते हुए कहा| नहीं तो.... आज से व्रत हैं!" ये सुनते ही ऋतू मुझसे छिटक कर कड़ी हो गई और अपनी जीभ दाँतों तले दबा कर सॉरी बोली| दरअसल मैं हर साल नवरात्रों में व्रत रखता था और पूरे रखता था| "तब तो मैं आपको छू भी नहीं सकती?!" ऋतू ने पुछा| "दिल साफ़ हो तो छू सकती हो, पर वासना भरी हो तो नहीं!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो जवाब में ऋतू बोली; "आपको देखते ही मेरे जिस्म में आग लग जाती है| उसे बूझाने ही तो मैं आपके करीब आती हूँ, पर हाय रे मेरी किस्मत! आप तो विश्वामित्र बन गए पर कोई बात नहीं ये मेनका आपकी तपस्या भंग अवश्य कर देगी!"
"बड़ा ज्ञान है तुझे? पर मेरे साथ ऐसा कुछ करने की कोशिश भी मत करना| मार खायेगी मेरे से!" मैंने ऋतू को चेतावनी दी| उसने बस हाँ में गर्दन हिलाई, वो जानती थी की व्रत के दिनों में मैं बहुत सख्त नियमों का प्लान करता हूँ| हालाँकि मेरे लिए भी इस बार बहुत मुश्किल था ऋतू के सामने होते हुए उससे दूर रहना| अब उस दिन चूँकि मैं कुछ खाने वाला नहीं था तो ऋतू ने भी कुछ खाने से मना कर दिया| मैंने फिर भी उसके लिए फ्रूट चाट बना दी और दोनों बिस्तर पर बैठे मूवी देखते रहे| वो पूरा हफ्ता वही रूटीन चलता रहा, जॉब ढूँढना, शाम को ऋतू से मिलना और फिर घर आ कर सो जाना| बुधवार को ही घर से बालवा आ गया और गुरूवार की शाम मैं और ऋतू गाँव चले गए| घर में सब जानते थे की मेरा व्रत है तो माँ ने मेरे लिए दूध बनाया था जिसे पी कर मैं सो गया| शनिवार को घर में पूजा हुई और मेरा व्रत पूर्ण हुआ, फिर दबा के हलवा-पूरी खाई| शाम को मैं छत पर बैठा था की ऋतू आ गई; "अच्छा अब तो आपको छूने की इज्जाजत है मुझे?"
"घर में सब मौजूद हैं तो ज्यादा मेरे पास भटकना भी मत|" मैंने कहा तो ऋतू मुँह फुला कर चली गई| मैं जानता था की मुझे उसे कैसे मनाना है पर आज नहीं कल!