12-11-2019, 08:27 AM
(This post was last modified: 31-01-2021, 08:05 PM by komaalrani. Edited 3 times in total. Edited 3 times in total.)
घर
हम लोग आ गए थे।
…………………………….
दरवाजा उन्होंने खोला , थोड़े थके लग रहे थे , थके तो हम लोग भी थे।
लेकिन मेरी निगाह सीधे 'नीचे वहीँ',
और मैं अपनी मुस्कान नहीं रोक पायी।
मॉम सीधे बैडरूम में ,साथ में मैं और पीछे पीछे वो ,
मम्मी फ्रेश होने गयी और नीचे हाथ डाल के मैंने 'उसे' पकड़ लिया ,
" लगता है अबकी सिग्नल डाउन हो गया , "
दबाते मसलते मैंने उन्हें चिढाया ,
वो भी न ,टिपिकल वो , लजाते ,शरमाते ,झिझकते
" चाय ला रहा हूँ अभी "
चाय ख़तम करने के साथ ही मम्मी ने अपना प्रोग्राम बता दिया ,
" मैं बहुत थकी हूँ , चार पांच घण्टे सोऊंगी , तू भी थोड़ा आराम कर ले ,ब्रेकफास्ट में कुछ बस सिम्पल सा। "
और पल भर में मम्मी खराटे लेने लगी ,साथ में मैं भी ,
वो अपने ,मेरे कमरे में
रात भर ज़रा भी नहीं सोये थे , लेडीज संगीत तो ढाई तीन बजे तक ख़तम हो गया था ,
मम्मी की सहेली का घर शहर से दस पंद्रह किलोमीटर बाहर , फ़ार्म हाउस क्या बड़ा सा रिसार्ट ,...
और असली खेल तमाशा तो उसके बाद शुरू हुआ ,
सिर्फ कुछ ख़ास एक्सक्लूसिव , मुझे जोड़ के पांच छह लोग ,
और साथ में हार्ड ड्रिंक
और अब मैं समझी की ये मामला एक्सक्लूसिव लेडीज क्यों था ,
चलते चलते मम्मी ने जिक्र कर दिया की हफ्ते दस दिन में हम लोग इनके मायके जाएंगे और लौट के साथ में इनकी ममेरी बहन को ,
और जैसे ही मम्मी की सहेली ने गुड्डी
के बारे में सुना उनकी आँखे एकदम कौंध गयी ,
" अकेले अकेले मजा लेगी रसमलाई का तू "
मुस्करा के मेरे गाल जोर से पिंच करके वो बोलीं
( एक रात में ही मौसी से हम लोग तू पर आ गए थे ,एकदम पक्की सहेली )
जवाब मेरी ओर से मम्मी ने दिया , एकदम नहीं , अरे भेज देगी तू भी उसे सिखा पढ़ा के पक्का कर देना।
मम्मी की सहेली को पुरुषों में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं थी ,सिर्फ कन्या रस ,और वो भी यंगर द बेटर।
….
रात भर चला वो खेल , मम्मी की सहेली ने ५-६ कच्ची कलियाँ इकट्ठी की थीं , सब की सब कच्ची अमिया वाली एकदम खटमिट्ठी
और हम सब ने मिलकर ,
लग रहा था , वो सब बस पहली या दूसरी बार ,...
कुछ के साथ तो मम्मी ने जबरदस्ती भी की अपनी सहेली के साथ मिलकर , ...
रात भर एक बूँद कोई सोया नहीं , ...
और कुछ भी बचा नहीं ,...
हर तरह की मस्ती
जब मैं सो के उठी , साढ़े दस बज रहे थे।
दो ढाई घण्टे की नींद ने मेरी थकान एकदम ख़तम कर दी थी। मम्मी अभी भी गाढ़ी नींद में सो रही थीं।
दबे पाँव मैं बाहर निकली , पूरे घर में सन्नाटा पसरा पड़ा था ,लेकिन घर एकदम चम् चम् चमक रहा था।
परफेक्ट डस्टिंग ,किचेन में मैंने झांका ,बरतन सारे धुले ,करीने से रखे यहाँ तक की जो हम लोगों ने चाय पी थी वो भी ,ब्रेकफास्ट की सारी तैयारी हो चुकी थी।
और उसी तरह दबेपांव मैं अपने कमरे में पहुंची।
हमारे डबल बेड पर वो अकेले ,गहरी नींद में ,
बदमाश , सोते हुए कितने सीधे लगते थे ,मुझसे कोई पूछे , सिर्फ बस रैप किये हुए ,लुंगी की तरह
और सोते में वो भी हल्का सा हट गया था ,
'वो 'दिख रहा था , सोया सोया
सच्ची मुझसे रहा नही गया , झुक कर मैंने हलके से गाँठ खोल के सरका दिया और अब ' वो ' पूरी तरह आजाद था।
झुक कर एकदम पास से मैं देखने लगी , और साथ में मेरी नाइटी भी सरक कर ,सर सर सर , जमीन पर
सोते हुए ' वो ' कितना सीधा लगता था ,एकदम भोला ,अच्छे बच्चे की तरह लेकिन जग जाय तो , कोई मुझसे पूछे क्या हाल कर देता था।
हलके से मैंने एक चुम्मी ले ली 'उसपर ' .और एक बार उनकी ओर नजर उठा के देखा ,वो सो रहे थे अभी भी।
सिर्फ अपने होंठों से पकड़ के ,वो मस्त मिठाई मैंने मुंह में ले ली और हलके हलके लॉलीपॉप चुभलाने लगी ,चूसने लगी।
क्या स्वाद था ,
कितने दिन हो गए थे इसे मुंह में लिए ,पूरे दो दिन।
मेरे मुंह का असर , वो फूल के ख़ुशी से कुप्पा होने लगा।
हम लोग आ गए थे।
…………………………….
दरवाजा उन्होंने खोला , थोड़े थके लग रहे थे , थके तो हम लोग भी थे।
लेकिन मेरी निगाह सीधे 'नीचे वहीँ',
और मैं अपनी मुस्कान नहीं रोक पायी।
मॉम सीधे बैडरूम में ,साथ में मैं और पीछे पीछे वो ,
मम्मी फ्रेश होने गयी और नीचे हाथ डाल के मैंने 'उसे' पकड़ लिया ,
" लगता है अबकी सिग्नल डाउन हो गया , "
दबाते मसलते मैंने उन्हें चिढाया ,
वो भी न ,टिपिकल वो , लजाते ,शरमाते ,झिझकते
" चाय ला रहा हूँ अभी "
चाय ख़तम करने के साथ ही मम्मी ने अपना प्रोग्राम बता दिया ,
" मैं बहुत थकी हूँ , चार पांच घण्टे सोऊंगी , तू भी थोड़ा आराम कर ले ,ब्रेकफास्ट में कुछ बस सिम्पल सा। "
और पल भर में मम्मी खराटे लेने लगी ,साथ में मैं भी ,
वो अपने ,मेरे कमरे में
रात भर ज़रा भी नहीं सोये थे , लेडीज संगीत तो ढाई तीन बजे तक ख़तम हो गया था ,
मम्मी की सहेली का घर शहर से दस पंद्रह किलोमीटर बाहर , फ़ार्म हाउस क्या बड़ा सा रिसार्ट ,...
और असली खेल तमाशा तो उसके बाद शुरू हुआ ,
सिर्फ कुछ ख़ास एक्सक्लूसिव , मुझे जोड़ के पांच छह लोग ,
और साथ में हार्ड ड्रिंक
और अब मैं समझी की ये मामला एक्सक्लूसिव लेडीज क्यों था ,
चलते चलते मम्मी ने जिक्र कर दिया की हफ्ते दस दिन में हम लोग इनके मायके जाएंगे और लौट के साथ में इनकी ममेरी बहन को ,
और जैसे ही मम्मी की सहेली ने गुड्डी
के बारे में सुना उनकी आँखे एकदम कौंध गयी ,
" अकेले अकेले मजा लेगी रसमलाई का तू "
मुस्करा के मेरे गाल जोर से पिंच करके वो बोलीं
( एक रात में ही मौसी से हम लोग तू पर आ गए थे ,एकदम पक्की सहेली )
जवाब मेरी ओर से मम्मी ने दिया , एकदम नहीं , अरे भेज देगी तू भी उसे सिखा पढ़ा के पक्का कर देना।
मम्मी की सहेली को पुरुषों में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं थी ,सिर्फ कन्या रस ,और वो भी यंगर द बेटर।
….
रात भर चला वो खेल , मम्मी की सहेली ने ५-६ कच्ची कलियाँ इकट्ठी की थीं , सब की सब कच्ची अमिया वाली एकदम खटमिट्ठी
और हम सब ने मिलकर ,
लग रहा था , वो सब बस पहली या दूसरी बार ,...
कुछ के साथ तो मम्मी ने जबरदस्ती भी की अपनी सहेली के साथ मिलकर , ...
रात भर एक बूँद कोई सोया नहीं , ...
और कुछ भी बचा नहीं ,...
हर तरह की मस्ती
जब मैं सो के उठी , साढ़े दस बज रहे थे।
दो ढाई घण्टे की नींद ने मेरी थकान एकदम ख़तम कर दी थी। मम्मी अभी भी गाढ़ी नींद में सो रही थीं।
दबे पाँव मैं बाहर निकली , पूरे घर में सन्नाटा पसरा पड़ा था ,लेकिन घर एकदम चम् चम् चमक रहा था।
परफेक्ट डस्टिंग ,किचेन में मैंने झांका ,बरतन सारे धुले ,करीने से रखे यहाँ तक की जो हम लोगों ने चाय पी थी वो भी ,ब्रेकफास्ट की सारी तैयारी हो चुकी थी।
और उसी तरह दबेपांव मैं अपने कमरे में पहुंची।
हमारे डबल बेड पर वो अकेले ,गहरी नींद में ,
बदमाश , सोते हुए कितने सीधे लगते थे ,मुझसे कोई पूछे , सिर्फ बस रैप किये हुए ,लुंगी की तरह
और सोते में वो भी हल्का सा हट गया था ,
'वो 'दिख रहा था , सोया सोया
सच्ची मुझसे रहा नही गया , झुक कर मैंने हलके से गाँठ खोल के सरका दिया और अब ' वो ' पूरी तरह आजाद था।
झुक कर एकदम पास से मैं देखने लगी , और साथ में मेरी नाइटी भी सरक कर ,सर सर सर , जमीन पर
सोते हुए ' वो ' कितना सीधा लगता था ,एकदम भोला ,अच्छे बच्चे की तरह लेकिन जग जाय तो , कोई मुझसे पूछे क्या हाल कर देता था।
हलके से मैंने एक चुम्मी ले ली 'उसपर ' .और एक बार उनकी ओर नजर उठा के देखा ,वो सो रहे थे अभी भी।
सिर्फ अपने होंठों से पकड़ के ,वो मस्त मिठाई मैंने मुंह में ले ली और हलके हलके लॉलीपॉप चुभलाने लगी ,चूसने लगी।
क्या स्वाद था ,
कितने दिन हो गए थे इसे मुंह में लिए ,पूरे दो दिन।
मेरे मुंह का असर , वो फूल के ख़ुशी से कुप्पा होने लगा।