11-11-2019, 10:27 PM
update 33
सुबह बहुत देर से उठा करीब आठ बजे होंगे, जल्दी-जल्दी तैयार हुआ और ऑफिस पहुँचा| जाहिर है ऑफिस पहुँचने में थोड़ी देर हो गई पर आज बॉस ने मुझे कुछ नहीं कहा| बाकी दिन जब मैं लेट हो जाता तो बॉस कुछ न कुछ सुना देता था पर आज चुप था| जब मैं केबिन में गुड मॉर्निंग करने घुसा तब भी बस गुड मॉर्निंग का जवाब दिया पर कोई भी फाइल उठा कर मुझे नहीं दी| मैं भी वापस आ कर अपनी डेस्क पर बैठ गया और अपना सिस्टम चालु किया, सोचा की मैडम वाले प्रोजेक्ट पर ही थोड़ा काम कर लेता हूँ| तभी मेरी नजर शुक्ल जी पर पड़ी, और दिन तो उनके टेबल पर एक-आधी ही फाइल होती थी पर आज तो ढेर सारी थी! मैं समझ गया की मेरी फाइल्स भी सर ने उन्हें दे दी है तो अब बारी मेरी थी उनके मज़े लेने की! मैं उठा और उनके टेबल पर पहुँच गया;
मैं: अरे सिद्धार्थ भाई, आपने शुक्ल जी को ब्लैक कॉफ़ी नहीं मँगवा के दी? उनका हैंगओवर कैसे उतरेगा?
ये सुनते ही अरुण और सिद्धार्थ हँसने लगे अब शुक्ल जी को भी ढोंग करते हुए झूठी हँसी हसनी पड़ी|
मैं: क्या शुक्ल जी आप मेरे जैसे बच्चे से हार गए? वो भी देसी पीने में? बॉस से हारे होते तो मैं फिर भी मान लेता!
शुक्ल: अरे भाई....वो ....दरअसल ...खाली पेट थे ना?
मैं: खाली पेट? वो भी शादी में? काहे?
अरुण: अरे शुक्ल जी काहे झूठ बोल रहे हो? सबसे ज्यादा खाना तो आप ही दबाये हो! (ये सुनते ही हम सारे हँसने लगे|)
सिद्धार्थ: शुक्ल जी ने पूरे शगुन के पैसे वसूल किये हैं|
मैं: शुक्ल जी महराज धन्य हो आप! मुझे लुढ़काने के चक्कर में खुद लुढ़क गए!
शुक्ल: बिटवा थोड़ा ज्यादा उड़ रहे हो!
उन्होंने मुझे टोंट मारना चाहा पर उनके आगे बोलने से पहले ही मैं बरस पड़ा;
मैं: मैं कहाँ उड़ रहा हूँ जी! मुझे उड़ाने का प्लान तो आप लोग बनाये थे, पर आप जानते नहीं हो मुझे ठीक से! जितनी आपकी उम्र है उतने घाटों का पानी पी चूका हूँ| अगली बार खुंदस निकालनी हो तो थोड़ा ढंग का प्लान बनाना|
मेरी आवाज ऊँची हो चली थी जो बॉस ने भी सुनी पर वो सिर्फ मुझे देख कर ही चुप हो गए| ठीक उसी समय मैडम एंटर हुईं और उन्होंने शायद मेरी बात सुन ली थी इसलिए अपने दाहिने हाथ की छोटी ऊँगली से मेरे हाथ को चलते हुए पकड़ा और मुझे अपने साथ अपने केबिन की तरफ ले आईं और बोलीं; "मानु जी क्यों अपना मुँह गन्दा करते हो? ये छोटे लोग हैं और इनकी सोच भी छोटी है, किसी की तरक्की इनसे देखि नहीं जाती|" मैंने मैडम की बात का जवाब नहीं दिया बल्कि मुड़ के अपने डेस्क की तरफ जा रहा था की उन्हें लगा जैसे मैं उनसे नाराज हूँ| मैडम मेरे टेबल के नजदीक आईं और मुझसे पूछने लगीं; "मुझसे नाराज हो?"
"नहीं तो mam! आपसे भला किस बात की नाराजगी?! मुझे बदनाम करने का पालन आपने थोड़े ही बनाया था|" मैंने तपाक से जवाब दिया|
"वैसे मानु जी! हीरे पर धुल गिराने से उस की चमक कम नहीं होती!" मैं मैडम के बात का मतलब समझ गया इसलिए मैंने आगे उनसे इस बारे में कुछ नहीं कहा| मैडम वापस अपने केबिन में चलीं गईं और मैं प्रोजेक्ट के काम में लग गया| कुछ देर बाद मैडम आईं और बोलीं; "मानु जी आप मुझे हज़रतगंज छोड़ दोगे? वहाँ GST ऑफिस में मुझे कुछ काम है|"
"Mam आप मुझे बोल दीजिये मैं चला जाता हूँ|" मैंने कहा|
"नहीं मैं ही जाऊँगी, यहाँ रहूँगी तो इनकी (बॉस की) शक्ल देखनी पड़ेगी|" मैडम ने मुँह बनाते हुए कहा| पर मुझे दिक्कत ये थी की बॉस का क्या सोचेंगे पर तभी मैडम बोलीं; "क्या सोच रहे हो?"
अब मैं क्या बोलता, मैं था और मैडम को चलने के लिए कहा| मैडम अपने केबिन में कुछ फाइल्स लेने गईं और मैं नीचे उतर आया, पार्किंग से बाइक निकाल के बाहर आया और इतने में मैडम भी नीचे आ गईं| मैडम ने पिट्ठू बैग टाँगा हुआ था, वो आज बाइक पर दोनों तरफ टांगें कर के बैठ गईं और उनके दोनों हाथ मेरे सीने से आ चिपके| आज तो उन्होंने ब्रा भी नहीं पहनी थी और नंगे स्तन बस एक कुर्ते के पीछे से मेरी कमीज में गड़े हुए थे| उनके इस स्पर्श से मेरे जिस्म में करंट दौड़ गया, मेरे लिए ये बहुत अनकम्फर्टेबले हो रहा था पर हिम्मत नहीं हो रही थी की मैडम को बोल सकूँ| मैं जानबूझ कर आगे को झुका ये ड्रामा करने को की मैं बुलेट के इंजन को छू कर कुछ ढूँढ रहा हूँ| इससे मैडम की पकड़ थोड़ी ढीली हो गई और हम दोनों के बीच थोड़ा सा गैप आ गया| मैडम भी समझ गईं की मैं नाटक कर रहा हूँ इसलिए उन्होंने खुद से "सॉरी!!!" बोला| मैं उन्हें ज्यादा ऑक्वर्ड फील नहीं करवाना चाहता था इसलिए मैंने बाइक स्टार्ट की और हम हज़रतगंज के लिए निकले| पूरे रास्ते मैडम ने मुझसे कोई बात नहीं की, आधे घंटे का रास्ता चुप-चाप निकला| GST ऑफिस पहुँच कर मैडम ने कहा की मैं ऑफिस वापस चला जाऊँ| पर वो आज बहुत उदास महसूस कर रहीं थीं, अब उनका दोस्त था तो उन्हें ऐसे अकेला छोड़ना सही नहीं लगा| "Mam आपकी टुंडे कबाब की ट्रीट बाकी है! आज खाएं?" मेरी बात सुनते ही मैडम की चेहरे पर ख़ुशी लौट आई| उन्होंने बताया की उन्हें कम से कम आधे घंटे का काम है और तब तक मैंने भी सोचा की अपना एक काम निपटा लूँ, इसलिए मैंने उनसे इज्जाजत मांगी और निकल आया| जेब से उन अंकल जी का कार्ड निकाला जिन्होंने कल मुझे वो रिंग दी थी| एड्रेस आस-पास का ही था तो मैं उनकी दूकान जा पहुँचा, दूकान क्या वो तो शोरूम था! अब मुझे लगा की बीटा जितनी सेविंग थी सब गई! एंकल जी कॅश काउंटर पर खड़े थे और मुझे देखते ही मेरे पास आये और मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे काउच पर बिठा दिया और आ के मेरे बगल में ही बैठ गए| मेरे बारे में पूछा की मैं कहाँ का रहने वाला हूँ, यहाँ कब से हूँ, क्या जॉब करता हूँ वगैरह-वगैरह| मैंने भी उन्हें सब बता दिया और फिर बात आई रिंग की कीमत की! "बेटा मैं अब भी कह रहा हूँ की तुम्हें पैसे देने की कोई जर्रूरत नहीं!" अंकल जी ने बड़े प्यार से कहा|
"अंकल जी मैं बड़ा गैरतमंद इंसान हूँ! आपसे इस तरह से इतनी महंगी चीज लेना ठीक नहीं! फिर मैं नहीं चाहता की आपको मेरी वजह से नुक्सान हो!" मैंने भी बड़े प्यार से उन्हें अपनी मजबूरी समझाई|
"ठीक है बेटा! वो रिंग ज्यादा महंगी नहीं थी, वाइट सिल्वर की थी, वो दरसल किसी और क्लाइंट के लिए बनाई थी पर उस रात को तुम-दोनों को देख कर मुझे मेरी जवानी के दिन याद आ गए| अब तुमसे पैसे लेने को दिल नहीं करता पर तुम बहुत गैरतमंद हो इसलिए तुम मुझे बस लगत दे दो: 7,000/-, चाहो तो बाद में दे देना इतनी भी कोई जल्दी नहीं है|"
"अंकल जी मैं कार्ड लाया था तो ....आपके पास मशीन हो तो?!" मैंने थोड़ा डरते हुए पूछा की खाएं वो कुछ गलत न समझें पर वो निहायती शरीफ थे उन्होंने तुरंत मशीन मंगवाई और पेमेंट होने के बाद मुझे बिल भी देने लगे तो मैंने मन कर दिया| उनसे बिल ले कर मैं उनकी बेज्जत्ती नहीं करना चाहता था| "तो बेटा शादी कब कर रहे हो?" अंकल ने पूछा|
"जल्द ही अंकल जी!" इतना कह कर मैंने उनसे विदा ली और वापस GST ऑफिस के बाहर पहुँचा| मैडम को बिठा कर सीधा अमीनाबाद पहुँचा और हमने टुंडे कबाब खाये| पर मैडम को अभी भी भूख लगी थी और वो कहने लगीं की किसी रेस्टुरेंट चलते हैं जहाँ बैठ कर खाना खा सकें| हम दोनों एक रेस्टुरेंट में आये और बैठ गए, मैडम का मुँह अब पहले की तरह खिला-खिला था इसलिए खाना भी उन्हीं ने आर्डर किया|
सुबह बहुत देर से उठा करीब आठ बजे होंगे, जल्दी-जल्दी तैयार हुआ और ऑफिस पहुँचा| जाहिर है ऑफिस पहुँचने में थोड़ी देर हो गई पर आज बॉस ने मुझे कुछ नहीं कहा| बाकी दिन जब मैं लेट हो जाता तो बॉस कुछ न कुछ सुना देता था पर आज चुप था| जब मैं केबिन में गुड मॉर्निंग करने घुसा तब भी बस गुड मॉर्निंग का जवाब दिया पर कोई भी फाइल उठा कर मुझे नहीं दी| मैं भी वापस आ कर अपनी डेस्क पर बैठ गया और अपना सिस्टम चालु किया, सोचा की मैडम वाले प्रोजेक्ट पर ही थोड़ा काम कर लेता हूँ| तभी मेरी नजर शुक्ल जी पर पड़ी, और दिन तो उनके टेबल पर एक-आधी ही फाइल होती थी पर आज तो ढेर सारी थी! मैं समझ गया की मेरी फाइल्स भी सर ने उन्हें दे दी है तो अब बारी मेरी थी उनके मज़े लेने की! मैं उठा और उनके टेबल पर पहुँच गया;
मैं: अरे सिद्धार्थ भाई, आपने शुक्ल जी को ब्लैक कॉफ़ी नहीं मँगवा के दी? उनका हैंगओवर कैसे उतरेगा?
ये सुनते ही अरुण और सिद्धार्थ हँसने लगे अब शुक्ल जी को भी ढोंग करते हुए झूठी हँसी हसनी पड़ी|
मैं: क्या शुक्ल जी आप मेरे जैसे बच्चे से हार गए? वो भी देसी पीने में? बॉस से हारे होते तो मैं फिर भी मान लेता!
शुक्ल: अरे भाई....वो ....दरअसल ...खाली पेट थे ना?
मैं: खाली पेट? वो भी शादी में? काहे?
अरुण: अरे शुक्ल जी काहे झूठ बोल रहे हो? सबसे ज्यादा खाना तो आप ही दबाये हो! (ये सुनते ही हम सारे हँसने लगे|)
सिद्धार्थ: शुक्ल जी ने पूरे शगुन के पैसे वसूल किये हैं|
मैं: शुक्ल जी महराज धन्य हो आप! मुझे लुढ़काने के चक्कर में खुद लुढ़क गए!
शुक्ल: बिटवा थोड़ा ज्यादा उड़ रहे हो!
उन्होंने मुझे टोंट मारना चाहा पर उनके आगे बोलने से पहले ही मैं बरस पड़ा;
मैं: मैं कहाँ उड़ रहा हूँ जी! मुझे उड़ाने का प्लान तो आप लोग बनाये थे, पर आप जानते नहीं हो मुझे ठीक से! जितनी आपकी उम्र है उतने घाटों का पानी पी चूका हूँ| अगली बार खुंदस निकालनी हो तो थोड़ा ढंग का प्लान बनाना|
मेरी आवाज ऊँची हो चली थी जो बॉस ने भी सुनी पर वो सिर्फ मुझे देख कर ही चुप हो गए| ठीक उसी समय मैडम एंटर हुईं और उन्होंने शायद मेरी बात सुन ली थी इसलिए अपने दाहिने हाथ की छोटी ऊँगली से मेरे हाथ को चलते हुए पकड़ा और मुझे अपने साथ अपने केबिन की तरफ ले आईं और बोलीं; "मानु जी क्यों अपना मुँह गन्दा करते हो? ये छोटे लोग हैं और इनकी सोच भी छोटी है, किसी की तरक्की इनसे देखि नहीं जाती|" मैंने मैडम की बात का जवाब नहीं दिया बल्कि मुड़ के अपने डेस्क की तरफ जा रहा था की उन्हें लगा जैसे मैं उनसे नाराज हूँ| मैडम मेरे टेबल के नजदीक आईं और मुझसे पूछने लगीं; "मुझसे नाराज हो?"
"नहीं तो mam! आपसे भला किस बात की नाराजगी?! मुझे बदनाम करने का पालन आपने थोड़े ही बनाया था|" मैंने तपाक से जवाब दिया|
"वैसे मानु जी! हीरे पर धुल गिराने से उस की चमक कम नहीं होती!" मैं मैडम के बात का मतलब समझ गया इसलिए मैंने आगे उनसे इस बारे में कुछ नहीं कहा| मैडम वापस अपने केबिन में चलीं गईं और मैं प्रोजेक्ट के काम में लग गया| कुछ देर बाद मैडम आईं और बोलीं; "मानु जी आप मुझे हज़रतगंज छोड़ दोगे? वहाँ GST ऑफिस में मुझे कुछ काम है|"
"Mam आप मुझे बोल दीजिये मैं चला जाता हूँ|" मैंने कहा|
"नहीं मैं ही जाऊँगी, यहाँ रहूँगी तो इनकी (बॉस की) शक्ल देखनी पड़ेगी|" मैडम ने मुँह बनाते हुए कहा| पर मुझे दिक्कत ये थी की बॉस का क्या सोचेंगे पर तभी मैडम बोलीं; "क्या सोच रहे हो?"
अब मैं क्या बोलता, मैं था और मैडम को चलने के लिए कहा| मैडम अपने केबिन में कुछ फाइल्स लेने गईं और मैं नीचे उतर आया, पार्किंग से बाइक निकाल के बाहर आया और इतने में मैडम भी नीचे आ गईं| मैडम ने पिट्ठू बैग टाँगा हुआ था, वो आज बाइक पर दोनों तरफ टांगें कर के बैठ गईं और उनके दोनों हाथ मेरे सीने से आ चिपके| आज तो उन्होंने ब्रा भी नहीं पहनी थी और नंगे स्तन बस एक कुर्ते के पीछे से मेरी कमीज में गड़े हुए थे| उनके इस स्पर्श से मेरे जिस्म में करंट दौड़ गया, मेरे लिए ये बहुत अनकम्फर्टेबले हो रहा था पर हिम्मत नहीं हो रही थी की मैडम को बोल सकूँ| मैं जानबूझ कर आगे को झुका ये ड्रामा करने को की मैं बुलेट के इंजन को छू कर कुछ ढूँढ रहा हूँ| इससे मैडम की पकड़ थोड़ी ढीली हो गई और हम दोनों के बीच थोड़ा सा गैप आ गया| मैडम भी समझ गईं की मैं नाटक कर रहा हूँ इसलिए उन्होंने खुद से "सॉरी!!!" बोला| मैं उन्हें ज्यादा ऑक्वर्ड फील नहीं करवाना चाहता था इसलिए मैंने बाइक स्टार्ट की और हम हज़रतगंज के लिए निकले| पूरे रास्ते मैडम ने मुझसे कोई बात नहीं की, आधे घंटे का रास्ता चुप-चाप निकला| GST ऑफिस पहुँच कर मैडम ने कहा की मैं ऑफिस वापस चला जाऊँ| पर वो आज बहुत उदास महसूस कर रहीं थीं, अब उनका दोस्त था तो उन्हें ऐसे अकेला छोड़ना सही नहीं लगा| "Mam आपकी टुंडे कबाब की ट्रीट बाकी है! आज खाएं?" मेरी बात सुनते ही मैडम की चेहरे पर ख़ुशी लौट आई| उन्होंने बताया की उन्हें कम से कम आधे घंटे का काम है और तब तक मैंने भी सोचा की अपना एक काम निपटा लूँ, इसलिए मैंने उनसे इज्जाजत मांगी और निकल आया| जेब से उन अंकल जी का कार्ड निकाला जिन्होंने कल मुझे वो रिंग दी थी| एड्रेस आस-पास का ही था तो मैं उनकी दूकान जा पहुँचा, दूकान क्या वो तो शोरूम था! अब मुझे लगा की बीटा जितनी सेविंग थी सब गई! एंकल जी कॅश काउंटर पर खड़े थे और मुझे देखते ही मेरे पास आये और मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे काउच पर बिठा दिया और आ के मेरे बगल में ही बैठ गए| मेरे बारे में पूछा की मैं कहाँ का रहने वाला हूँ, यहाँ कब से हूँ, क्या जॉब करता हूँ वगैरह-वगैरह| मैंने भी उन्हें सब बता दिया और फिर बात आई रिंग की कीमत की! "बेटा मैं अब भी कह रहा हूँ की तुम्हें पैसे देने की कोई जर्रूरत नहीं!" अंकल जी ने बड़े प्यार से कहा|
"अंकल जी मैं बड़ा गैरतमंद इंसान हूँ! आपसे इस तरह से इतनी महंगी चीज लेना ठीक नहीं! फिर मैं नहीं चाहता की आपको मेरी वजह से नुक्सान हो!" मैंने भी बड़े प्यार से उन्हें अपनी मजबूरी समझाई|
"ठीक है बेटा! वो रिंग ज्यादा महंगी नहीं थी, वाइट सिल्वर की थी, वो दरसल किसी और क्लाइंट के लिए बनाई थी पर उस रात को तुम-दोनों को देख कर मुझे मेरी जवानी के दिन याद आ गए| अब तुमसे पैसे लेने को दिल नहीं करता पर तुम बहुत गैरतमंद हो इसलिए तुम मुझे बस लगत दे दो: 7,000/-, चाहो तो बाद में दे देना इतनी भी कोई जल्दी नहीं है|"
"अंकल जी मैं कार्ड लाया था तो ....आपके पास मशीन हो तो?!" मैंने थोड़ा डरते हुए पूछा की खाएं वो कुछ गलत न समझें पर वो निहायती शरीफ थे उन्होंने तुरंत मशीन मंगवाई और पेमेंट होने के बाद मुझे बिल भी देने लगे तो मैंने मन कर दिया| उनसे बिल ले कर मैं उनकी बेज्जत्ती नहीं करना चाहता था| "तो बेटा शादी कब कर रहे हो?" अंकल ने पूछा|
"जल्द ही अंकल जी!" इतना कह कर मैंने उनसे विदा ली और वापस GST ऑफिस के बाहर पहुँचा| मैडम को बिठा कर सीधा अमीनाबाद पहुँचा और हमने टुंडे कबाब खाये| पर मैडम को अभी भी भूख लगी थी और वो कहने लगीं की किसी रेस्टुरेंट चलते हैं जहाँ बैठ कर खाना खा सकें| हम दोनों एक रेस्टुरेंट में आये और बैठ गए, मैडम का मुँह अब पहले की तरह खिला-खिला था इसलिए खाना भी उन्हीं ने आर्डर किया|