11-11-2019, 11:24 AM
अब आगे
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अब फिर से एक बार दोनो भाई बहन अकेले थे..जैसे ही काजल ने दरवाजा बंद किया , केशव ने पीछे से आकर उसको एक बार फिर से जकड़ लिया..और अपने हाथ आगे लेजाकर उसके मुम्मो पर टीका दिए और उसकी उभरी हुई गांड पर अपना लंड रगड़ने लगा.
काजल : "ओहो .....छोड़ो ना केशव....तुम तो हर समय तैयार रहते हो...अभी थोड़ी देर पहले अपनी जी एफ की मारी है...अब मेरे पीछे लगकर खड़े हो गये हो...''
केशव : "तुम्हारी कसम दीदी...उसकी जब भी मारता था तो मेरी आँखो के सामने उस वक़्त भी सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारी तस्वीर रहती थी...अब मुझसे सब्र नही होगा ...''
केशव ने उसके बिना ब्रा के बूब्स को अपनी मुट्ठी मे जकड़ते हुए कहा.
काजल : "ओके .... ओके ..... मुझे सीधा तो होने दो ना पहले...''
बड़ी मुश्किल से केशव ने उसके जिस्म को अपनी गिरफ़्त से आज़ाद किया..मन तो नही कर रहा था उसकी मखमली गांड को छोड़ने का..
और जैसे ही काजल उसकी गिरफ़्त से छूटी वो भागकर उपर की सीडिया चड़ती चली गयी और जीभ निकाल कर उसने केशव को चिढ़ाया और बोली : "कुछ काम रात के लिए भी छोड़ दो...''
और देखते ही देखते वो भागकर अपनी माँ के कमरे मे घुस गयी..शायद वो भी तडप-2 कर उसे अपनी चूत देना चाहती थी..क्योंकि तड़पाने के बाद जब चुदाई होती है तो उसका मज़ा ही निराला होता है... ये बात उसको अभी - २ सारिका समझा कर गयी थी
केशव शाम की तैयारी में जुट गया...खाने पीने की चीज़े लेकर आया..आज वैसे भी छोटी दीवाली थी..पूरे मोहल्ले में रोशनी फेली हुई थी...दोनो भाई बहन ने मिलकर घर के बाहर लाइट लगाई और अपने घर को भी सॉफ सुथरा करके चमका दिया..फिर काजल खाना बनाने मे जुट गयी.
शाम को ठीक 8 बजे बिल्लू और गणेश आ गये...और कुछ देर के बाद राणा और जीवन भी पहुँच गये..
कुछ देर की बातो के बाद खेल शुरू हुआ..
तब तक काजल उपर ही थी...माँ को खाना खिला रही थी वो..
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अब फिर से एक बार दोनो भाई बहन अकेले थे..जैसे ही काजल ने दरवाजा बंद किया , केशव ने पीछे से आकर उसको एक बार फिर से जकड़ लिया..और अपने हाथ आगे लेजाकर उसके मुम्मो पर टीका दिए और उसकी उभरी हुई गांड पर अपना लंड रगड़ने लगा.
काजल : "ओहो .....छोड़ो ना केशव....तुम तो हर समय तैयार रहते हो...अभी थोड़ी देर पहले अपनी जी एफ की मारी है...अब मेरे पीछे लगकर खड़े हो गये हो...''
केशव : "तुम्हारी कसम दीदी...उसकी जब भी मारता था तो मेरी आँखो के सामने उस वक़्त भी सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारी तस्वीर रहती थी...अब मुझसे सब्र नही होगा ...''
केशव ने उसके बिना ब्रा के बूब्स को अपनी मुट्ठी मे जकड़ते हुए कहा.
काजल : "ओके .... ओके ..... मुझे सीधा तो होने दो ना पहले...''
बड़ी मुश्किल से केशव ने उसके जिस्म को अपनी गिरफ़्त से आज़ाद किया..मन तो नही कर रहा था उसकी मखमली गांड को छोड़ने का..
और जैसे ही काजल उसकी गिरफ़्त से छूटी वो भागकर उपर की सीडिया चड़ती चली गयी और जीभ निकाल कर उसने केशव को चिढ़ाया और बोली : "कुछ काम रात के लिए भी छोड़ दो...''
और देखते ही देखते वो भागकर अपनी माँ के कमरे मे घुस गयी..शायद वो भी तडप-2 कर उसे अपनी चूत देना चाहती थी..क्योंकि तड़पाने के बाद जब चुदाई होती है तो उसका मज़ा ही निराला होता है... ये बात उसको अभी - २ सारिका समझा कर गयी थी
केशव शाम की तैयारी में जुट गया...खाने पीने की चीज़े लेकर आया..आज वैसे भी छोटी दीवाली थी..पूरे मोहल्ले में रोशनी फेली हुई थी...दोनो भाई बहन ने मिलकर घर के बाहर लाइट लगाई और अपने घर को भी सॉफ सुथरा करके चमका दिया..फिर काजल खाना बनाने मे जुट गयी.
शाम को ठीक 8 बजे बिल्लू और गणेश आ गये...और कुछ देर के बाद राणा और जीवन भी पहुँच गये..
कुछ देर की बातो के बाद खेल शुरू हुआ..
तब तक काजल उपर ही थी...माँ को खाना खिला रही थी वो..