10-11-2019, 09:57 PM
केशव ने अपना सिर उपर उठाया और बोला : "नही दीदी, आप ऐसा क्यो सोच रही है...ये दीवाली के दिन है, इन दिनों में जुए से जीते गये पैसे मेहनत किए हुए पैसों से कम थोड़े ही होते हैं...और आप कैसे कह सकती है की इसमे मेहनत नही है, इसमे बहुत दिमाग़ लगता है..और दिमाग़ लगाकर कमाई हुई रकम भी तो मेहनत से कमाए हुए पैसो के बराबर हुई ना..''
काजल के पास उसकी बात का कोई जवाब नही था..उसके दोनो हाथों मे केशव का चेहरा था..जो उसकी दोनो छातियों के बीच से झाँकता हुआ उसकी तरफ देख रहा था..इतने करीब से और इतने प्यार से तो उसने आज तक नही देखा था अपने भाई को...उसने नीचे झुककर उसके माथे को चूम लिया और बोली : "ठीक है...पर मुझसे वादा कर, दीवाली के बाद तू ये जुआ नही खेलेगा..सिर्फ़ इन्ही दिनों के लिए खेल ले बस...और अपनी लिमिट मे रहकर..और बाद मे कोई अच्छा सा काम करके मेरी घर चलाने मे मदद करेगा..''
केशव : "ठीक है दीदी...अब जल्दी से खाना लगाओ...बड़ी भूख लगी है मुझे..''
और फिर हंसते हुए काजल उसके लिए खाना परोसने लगी..
खाना खाते हुए अचानक काजल ने कहा : "तुम रम्मी खेलते हो या पत्ते पर पत्ता ..''
केशव खाना खाते-2 अचानक रुक गया और ज़ोर-2 से हँसने लगा , और बोला : "हा हा हा, दीदी आप भी ना, ये बच्चों वाले खेल तो घर पर खेले जाते हैं..''
काजल ने भी ये बात इसलिए कही थी क्योंकि वो खुद अपने भाई के साथ बचपन मे यही खेल खेलती थी..और कई बार क्या, हमेशा ही केशव को उसमें हरा देती थी..
केशव : "हम लोग खेलते हैं, तीन पत्ती ..यानी फ्लेश ''
काजल : "ये कैसे होता है....''
केशव : "उम्म्म.....आप ऐसा करो...खाना खाने के बाद में आपके रूम मे आता हू...वहीं दिखाता हूँ की ये कैसे होता है..''
काजल भी खुश हो गयी....वैसे भी खाना खाने के बाद वो रात को 12 बजे तक जागती रहती थी...ऐसे मे अपने भाई के साथ कुछ वक़्त गुजारने की बात सुनकर वो काफ़ी खुश हुई..और उसने खुशी-2 हाँ कर दी.
किचन समेटने के बाद वो अपने कमरे मे गयी, जहाँ पहले से ही केशव अपने हाथ मे ताश की गड्डी लेकर उसका इंतजार कर रहा था.
आने से पहले काजल अपना मुँह अच्छी तरह फेस वॉश से धोकर आई थी...ये काम वो रोज रात को करती थी...अपने चेहरे को चमका कर रखती थी वो हमेशा..इसलिए जब वो केशव के पास पहुँची तो उसका चेहरा ऐसे चमक रहा था जैसे वो अभी नहा धोकर आई है..
काजल के पास उसकी बात का कोई जवाब नही था..उसके दोनो हाथों मे केशव का चेहरा था..जो उसकी दोनो छातियों के बीच से झाँकता हुआ उसकी तरफ देख रहा था..इतने करीब से और इतने प्यार से तो उसने आज तक नही देखा था अपने भाई को...उसने नीचे झुककर उसके माथे को चूम लिया और बोली : "ठीक है...पर मुझसे वादा कर, दीवाली के बाद तू ये जुआ नही खेलेगा..सिर्फ़ इन्ही दिनों के लिए खेल ले बस...और अपनी लिमिट मे रहकर..और बाद मे कोई अच्छा सा काम करके मेरी घर चलाने मे मदद करेगा..''
केशव : "ठीक है दीदी...अब जल्दी से खाना लगाओ...बड़ी भूख लगी है मुझे..''
और फिर हंसते हुए काजल उसके लिए खाना परोसने लगी..
खाना खाते हुए अचानक काजल ने कहा : "तुम रम्मी खेलते हो या पत्ते पर पत्ता ..''
केशव खाना खाते-2 अचानक रुक गया और ज़ोर-2 से हँसने लगा , और बोला : "हा हा हा, दीदी आप भी ना, ये बच्चों वाले खेल तो घर पर खेले जाते हैं..''
काजल ने भी ये बात इसलिए कही थी क्योंकि वो खुद अपने भाई के साथ बचपन मे यही खेल खेलती थी..और कई बार क्या, हमेशा ही केशव को उसमें हरा देती थी..
केशव : "हम लोग खेलते हैं, तीन पत्ती ..यानी फ्लेश ''
काजल : "ये कैसे होता है....''
केशव : "उम्म्म.....आप ऐसा करो...खाना खाने के बाद में आपके रूम मे आता हू...वहीं दिखाता हूँ की ये कैसे होता है..''
काजल भी खुश हो गयी....वैसे भी खाना खाने के बाद वो रात को 12 बजे तक जागती रहती थी...ऐसे मे अपने भाई के साथ कुछ वक़्त गुजारने की बात सुनकर वो काफ़ी खुश हुई..और उसने खुशी-2 हाँ कर दी.
किचन समेटने के बाद वो अपने कमरे मे गयी, जहाँ पहले से ही केशव अपने हाथ मे ताश की गड्डी लेकर उसका इंतजार कर रहा था.
आने से पहले काजल अपना मुँह अच्छी तरह फेस वॉश से धोकर आई थी...ये काम वो रोज रात को करती थी...अपने चेहरे को चमका कर रखती थी वो हमेशा..इसलिए जब वो केशव के पास पहुँची तो उसका चेहरा ऐसे चमक रहा था जैसे वो अभी नहा धोकर आई है..