10-11-2019, 09:53 PM
उनके घर का खर्चा वैसे ही बड़ी तंगी मे चल रहा था.. उपर से माँ की बीमारी ने भी काफ़ी पैसे ख़त्म कर दिए..
और साथ ही साथ दीवाली भी आने वाली थी..सिर्फ़ दस दिन बाद..ऐसी हालत मे काजल बस यही सोच रही थी की कैसे चलेगी ये जिंदगी..
पर उसे नही पता था की आने वाली दीवाली उसके लिए क्या-2 सर्प्राइज़ लाने वाली है..
काजल के हॉस्पिटल पहुँचते ही केशव फ़ौरन वहाँ से निकल गया...इतनी जल्दी मचाते हुए काजल ने उसे पहली बार देखा था..
रात के समय हॉस्पिटल मे किसी के भी रहने की मनाही थी..वैसे भी देखभाल के लिए नर्सेस रहती ही थी..इसलिए काजल भी घर आ जाती थी..
घर पहुंचकर उसने अपना लोवर और एक हल्की सी टी शर्ट पहनी और खाना बनाने मे लग गयी..वो रात के समय अपने अंडरगार्मेंट्स भी उतार देती थी..यही नीयम था उसका रोज का..10 बजे तक केशव भी आ जाता था और दोनों मिलकर खाना खाते थे...सुबह वो ऑफीस निकल जाती और केशव नहा धोकर हॉस्पिटल के लिए...पिछले दो महीने से यही नीयम चल रहा था..
पर आज 11 बजने को हो रहे थे और केशव का कहीं पता नही था...काजल को भी काफ़ी भूख लगी थी..उसने उसका नंबर कई बार ट्राइ किया पर हर बार वो काट देता...आख़िर मे जाकर जब उसने फोन उठाया तो सिर्फ़ इतना कहकर फोन रख दिया की 'दीदी , दस मिनिट मे आया बस...'
दस मिनिट के बाद जब केशव आया तो वो काफ़ी खुश लग रहा था...पर काजल के गुस्से वाले चेहरे को देखकर वो सहम सा गया और चुपचाप अपने कमरे मे जाकर चेंज करने लगा..और कपड़े बदल कर नीचे आया.
काजल : "ये हो क्या रहा है आजकल...ये जानते हुए भी की माँ हॉस्पिटल में है, तुम इतनी रात को मुझे अकेला छोड़कर बाहर रहते हो..आख़िर गये कहाँ थे..और मेरा फोन क्यो काट रहे थे..''
केशव : "वो...मैं ...जुआ खेलने गया था...''
वैसे तो जुआ खेलना उसका हमेशा का काम था, पर माँ हॉस्पिटल में है, ऐसी हालत मे भी वो जुआ खेलने से बाज नही आ रहा, ये काजल से बर्दाश्त नही हुआ..उसके मुँह मे जो भी आया, वो उसे कहती चली गयी..काफ़ी भला-बुरा सुनने के बाद अचानक केशव ने अपनी जेब से 500 के लगभग 20-30 नोट निकाल कर उसके सामने रख दिए..
और उन्हे देखते ही काजल की ज़ुबान पर एकदम से ताला सा लग गया..
केशव (मुस्कुराते हुए) : "ये जीते है मैने..दीदी, आपको पता है ना दीवाली आने वाली है...और इसी टाइम ऐसी बड़ी-2 गेम्स चलती है...और जब आप फोन पर फोन कर रहे थे,मेरी एक बड़ी सी गेम फंसी हुई थी...इसलिए फोन काट रहा था..और जैसे ही ये पैसे जीता, मैं वहाँ से निकल आया..''
इतने पैसे एकसाथ देखकर काजल हैरान थी...वो महीना भागा-दौड़ी करके सिर्फ़ 15000 कमाती थी...और उसके भाई ने लगभग उससे दुगने पैसे कुछ ही घंटो मे लाकर उसके सामने रख दिए थे..
वो जुए को हमेशा से बुरा मानती थी...पर उनके जो हालात थे, उसमे पैसे अगर जुआ खेलकर भी आए, तो उसे उसमे कोई प्राब्लम नज़र नही आ रही थी..
और साथ ही साथ दीवाली भी आने वाली थी..सिर्फ़ दस दिन बाद..ऐसी हालत मे काजल बस यही सोच रही थी की कैसे चलेगी ये जिंदगी..
पर उसे नही पता था की आने वाली दीवाली उसके लिए क्या-2 सर्प्राइज़ लाने वाली है..
काजल के हॉस्पिटल पहुँचते ही केशव फ़ौरन वहाँ से निकल गया...इतनी जल्दी मचाते हुए काजल ने उसे पहली बार देखा था..
रात के समय हॉस्पिटल मे किसी के भी रहने की मनाही थी..वैसे भी देखभाल के लिए नर्सेस रहती ही थी..इसलिए काजल भी घर आ जाती थी..
घर पहुंचकर उसने अपना लोवर और एक हल्की सी टी शर्ट पहनी और खाना बनाने मे लग गयी..वो रात के समय अपने अंडरगार्मेंट्स भी उतार देती थी..यही नीयम था उसका रोज का..10 बजे तक केशव भी आ जाता था और दोनों मिलकर खाना खाते थे...सुबह वो ऑफीस निकल जाती और केशव नहा धोकर हॉस्पिटल के लिए...पिछले दो महीने से यही नीयम चल रहा था..
पर आज 11 बजने को हो रहे थे और केशव का कहीं पता नही था...काजल को भी काफ़ी भूख लगी थी..उसने उसका नंबर कई बार ट्राइ किया पर हर बार वो काट देता...आख़िर मे जाकर जब उसने फोन उठाया तो सिर्फ़ इतना कहकर फोन रख दिया की 'दीदी , दस मिनिट मे आया बस...'
दस मिनिट के बाद जब केशव आया तो वो काफ़ी खुश लग रहा था...पर काजल के गुस्से वाले चेहरे को देखकर वो सहम सा गया और चुपचाप अपने कमरे मे जाकर चेंज करने लगा..और कपड़े बदल कर नीचे आया.
काजल : "ये हो क्या रहा है आजकल...ये जानते हुए भी की माँ हॉस्पिटल में है, तुम इतनी रात को मुझे अकेला छोड़कर बाहर रहते हो..आख़िर गये कहाँ थे..और मेरा फोन क्यो काट रहे थे..''
केशव : "वो...मैं ...जुआ खेलने गया था...''
वैसे तो जुआ खेलना उसका हमेशा का काम था, पर माँ हॉस्पिटल में है, ऐसी हालत मे भी वो जुआ खेलने से बाज नही आ रहा, ये काजल से बर्दाश्त नही हुआ..उसके मुँह मे जो भी आया, वो उसे कहती चली गयी..काफ़ी भला-बुरा सुनने के बाद अचानक केशव ने अपनी जेब से 500 के लगभग 20-30 नोट निकाल कर उसके सामने रख दिए..
और उन्हे देखते ही काजल की ज़ुबान पर एकदम से ताला सा लग गया..
केशव (मुस्कुराते हुए) : "ये जीते है मैने..दीदी, आपको पता है ना दीवाली आने वाली है...और इसी टाइम ऐसी बड़ी-2 गेम्स चलती है...और जब आप फोन पर फोन कर रहे थे,मेरी एक बड़ी सी गेम फंसी हुई थी...इसलिए फोन काट रहा था..और जैसे ही ये पैसे जीता, मैं वहाँ से निकल आया..''
इतने पैसे एकसाथ देखकर काजल हैरान थी...वो महीना भागा-दौड़ी करके सिर्फ़ 15000 कमाती थी...और उसके भाई ने लगभग उससे दुगने पैसे कुछ ही घंटो मे लाकर उसके सामने रख दिए थे..
वो जुए को हमेशा से बुरा मानती थी...पर उनके जो हालात थे, उसमे पैसे अगर जुआ खेलकर भी आए, तो उसे उसमे कोई प्राब्लम नज़र नही आ रही थी..