10-11-2019, 05:59 PM
update 32
ड्रिंक्स का राउंड शुरू हुआ पर ना तो ऋतू ने पी और न ही मैडम ने| मैं भी नहीं पीना चाहता था पर हमारे ऑफिस के सारे male colleagues आ कर बैठ गए| शुक्ल जी बोले; "अरे भाई मानु ऑफिस में तो तुम्हारा ग्रुप दूसरा सही पर यहाँ तो हमारे साथ शामिल हो जाओ|" अब उनकी बात सुन कर मुझे मजबूरन उनके साथ बैठना पड़ा और इधर सर ने व्हिस्की आर्डर कर दी| वेटर 5 गिलास व्हिस्की के लार्ज वाले ले आया| लार्ज पेग देख कर ऋतू हैरान हो गई और मन ही मन डरने लगी की पता नहीं आज क्या होगा| पर वो लार्ज पेग पीने के बाद मेरा सिस्टम उतना नहीं हिला जितना की आमतौर पर लोगों का हिल जाता था| सिद्धार्थ (मेरा colleague) का तो एक पेग में ही बंटाधार हो गया और उसने साफ़ मना कर दिया|
शुक्ल जी, मैं, अरुण (मेरा colleague) और सर अब भी टिके हुए थे| हम चारों पर ही जैसे असर नहीं हुआ था, शुक्ल जी ने वेटर को बुलाया और उसे देसी लाने को कहा| वेटर ने साफ़ मना कर दिया की उनके पास देसी नहीं है| "बेटा हमें इन महंगी शराबों से नहीं चढ़ती, हमें तो देसी चाहिए| तू ये ले पैसे, एक बोतल ले आ और बाकी पैसे तू रख ले|" शुक्ल जी का ये बर्ताव देख कर मैडम और ऋतू का मुँह बन गया पर सर उनकी तारीफ करने लगे| "सॉरी! शुक्ल जी मैं अब और नहीं पीयूँगा|" मैंने कहा पर शुक्ल जी तो आज फुल मूड में थे| "अरे भाई! क्या तुम एक देसी से घबरा गए? मर्द बनो!" शुक्ल जी की बात सुन कर ऋतू और अनु मैडम मेरे बचाव में एक साथ कूद पड़े| "शराब पीने से कब से मर्दानगी आने लगी?" मैडम ने कहा| "रहने दीजिये न सर फिर घर भी तो जाना है|" ऋतू बोली पर तभी सर बोल पड़े; "अरे भाई! कौन सा रोज-रोज पीते हैं| आज इतना अच्छा दिन है और रही बात घर छोड़ने की तो मैं छोड़ दूँगा|" अब मैं अगर पीने से पीछे हट जाता तो शुक्ल जी और बाकी के सभी लोग मुझे जिंदगी भर मैडम और ऋतू के नाम से छेड़ते रहते इसलिए मैं भी कूद पड़ा; "चलो देखते है शुक्ल जी आपकी देसी कितनी दमदार है|" ये सुन कर तो शुक्ल जी हैरान हो गए, आखिर देसी आई और मैंने जान-बुझ कर लार्ज पेग बनाये| मैं समझ गया था की ये सब शुक्ल जी का ही प्लान है ताकि मैं पी कर लुढक़ जाऊँ और वो मुझे उम्र भर इस बात का ताना देते रहे| पर वो नहीं जानते थे की मानु का कोटा बहुत बड़ा है! देसी के पहले पेग के बाद ही अरुण और सर ने हाथ खड़े कर दिए और अब बस मैं और शुक्ल जी ही बचे थे| बाकी बची आधी बोतल को मैंने बराबर-बराबर दोनों के गिलास में डाल दिया| "ऋतू ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे रोकना चाहा पर मुझपर तो शराब का सुरूर छाने लगा था| मैंने ऋतू की तरफ देखा और ऐसे दिखाया जैसे मैं अभी भी पूरे होश में हूँ| इधर डी.जे. ने भी हमारा ये कॉम्पिटिशन होते हुए देख लिया और उसने गाना लगा दिया; दारु बदनाम कर दी! अब ये सुनते ही शुक्ल जी फुल जोश में आ गए और खड़े हो गए और बाकी बची पूरी दारु एक साँस में पी गए|
ये देख कर दूल्हा-दुल्हन और बाकी सब वहीँ आ गए की यहाँ कौन सी प्रतियोगिता हो रही है! सारे के सारे हमें घेर कर खड़े हो गए पर ये क्या शुक्ल जी तो 5 मिनट बाद ही ढेर हो गए! अब बचा सिर्फ मैं, मैंने भी जोश में आते हुए पूरी की पूरी दारु एक साँस में गटक ली! सब के सब ये सोचने लगे की मैं अब गिरा..अब गिरा...पर मैं टिका रहा| गाने की आवाज और तेज हो गई और डी.जे. माइक पर जोर से चिल्लाया; "Give a big hand for this gentleman!” सारे तालियाँ बजाने लगे और मैंने भी सर झुका कर सबका अभिवादन स्वीकार किया| उस समय मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मुझे कोई अवार्ड मिल रहा हो! पर ठीक तभी मेरे बॉस ने एक चाल चली, उन्होंने डी.जे. से माइक लिया और मेरे पास ले कर आ गए और बोले; "मानु आज तो इस मौके पर तुम्हारी शायरी बनती है|" शायरी का नाम सुनते ही सब ने शोर मचाना शुरू कर दिया| राखी ने भी बड़े प्यार से रिक्वेस्ट की और सर ने इसी का फायदा उठाते हुए मुझ पर और दबाव डाल दिया; "भाई अब तो दुल्हन ने भी रिक्वेस्ट कर डी| अब तो सुना दो, कम से कम उसका दिल तो मत तोड़ो|" अब मेरी हालत ऐसी थी की शराब दिमाग पर चढ़ चुकी थी, मैं ये तो जानता था की मैं कहाँ हूँ पर क्या शेर बोलना है उस पर मेरा काबू नहीं था| अब दिल और जुबान के तार एक साथ जुड़ गए और मैंने अपनी आँख बंद की और और बोला;
हमेशा देर कर देता हूँ मैं हर काम करने में,
ज़रूरी बात कहनी हो कोई वादा निभाना हो,
उसे आवाज़ देनी हो उसे वापस बुलाना हो,
हमेशा देर कर देता हूँ मैं,
मदद करनी हो उस की यार की ढांढस बंधाना हो,
बहुत देरीना रास्तों पर किसी से मिलने जाना हो,
हमेशा देर कर देता हूँ मैं,
बदलते मौसमों की सैर में दिल को लगाना हो,
किसी को याद रखना हो किसी को भूल जाना हो,
हमेशा देर कर देता हूँ मैं,
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो,
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो,
हमेशा देर कर देता हूँ मैं हर काम करने में.....
ये गजल किस के लिए थी वो सब समझ चुके थे और माहौल को हल्का करते हुए राखी का दूल्हा बोला; "मानु जी! वैसे अभी देर नहीं हुई है!" मैं बस मुस्कुरा दिया और मैं जा कर उसके गले लगा और उसे बोला; ‘You’re a lucky guy, she’s a keeper! Best wishes from me and wish you a very happy married life!” मैंने उसे दिल से बधाई दी और माहौल हल्का हो गया| दूल्हा-दुल्हन के माँ-बाप को ये बाद जर्रूर लगी होगी इसलिए मैंने बस हाथ जोड़कर माफ़ी मांगी और मैं निकल आया| मेरे पीछे-पीछे ही सर मैडम और ऋतू भी आ गए| मैंने कैब बुला ली थी और सर और मैडम तो अपनी कार से ही जाने वाले थे| मैंने उन्हें good night बोला और हम दोनों चल दिए| कैब में बैठ कर हम दोनों खामोश थे, अब मुझे अपनी सफाई देनी थी पर जब दिमाग और जुबान का कनेक्शन टूट चूका था तो अब सिर्फ सच ही बाहर आना था| "ऋतू...तुझे कुछ कहना नहीं है?" मैंने ऋतू से बात शुरू करते हुए पूछा| "कहना नहीं पूछना है|" ऋतू ने मेरी तरफ मुँह करते हुए कहा और फिर अपने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को थाम लिया| नशे के कारन मेरी आँखें थोड़ी बंद होने लगी थी पर ऋतू ने मुझे थोड़ा झिंझोड़ा और मैं कुछ होश में आया| "आप अब भी उससे प्यार करते हो?" ऋतू ने मुझसे पूछा पर आज जो भी जवाब आना था वो दिल से ही आना था| "नहीं! मैं....बस....तुमसे...प्यार करता हूँ|" मैंने जवाब दिया और मेरा जवाब सुन कर ऋतू कस कर मेरे सीने से लग गई| मैंने भी आँखें बंद कर लीं और दिल को इत्मीनान हो गया की ऋतू और मेरे बीच में अब कोई भी गलतफैमी नहीं बची| कुछ देर ऐसे ही मेरे सीने से लगे हुए रहने के बाद ऋतू ने पूछा; "सर को सब पता था ना?" पर मैं तो जैसे सो ने लगा था पर ऋतू ने फिर मुझे नींद से उठाते हुए झिंझोड़ा और तब मेरे मुँह से टूटे-फूटे शब्द निकलने लगे; "मैंने....कभी...उन्हें नहीं....बताया|" पर ऋतू को तो अब सारी बात सुननी थी| ऋतू ने अपने पर्स से एक सेंटर शॉक निकाली और मेरे मुँह में डाल दी| दाँतों तले जैसे ही मैंने उस च्युइंग गम का दबाया की खटास के झटके से मेरी आँख खुल गई| मैंने अजीब सा मुँह बनाते हुए ऋतू को देखा, ठीक वैसा ही मुँह जैसे की आप किसी नन्हे से बच्चे को नीम्बू चटा दो| ऋतू खिलखिला कर हँस दी और फिर बोली; "अब बताओ, सर को पता था की आप राखी से प्यार करते थे?"
मैंने कभी उन्हें इस बारे में नहीं बताया, बल्कि उन्हें क्या किसी को नहीं बताया| जब मैंने ऑफिस ज्वाइन किया था तो मेरे आने से कुछ महीने पहले ही राखी ने ज्वाइन किया था| हम दोनों के बीच में कभी कोई बात नहीं हुई, जो भी बात हुई वो काम से रिलेटेड थी| अब चूँकि मैं नया जोइनी था और थोड़ा नौसिखिया तो सर ने मुझे और राखी को एक साथ एक कंपनी का डाटा दे दिया| लंच ब्रेक में भी हम दोनों साथ ही बैठे होते पर बातें बहुत कम ही होती| चाय पीने के समय मैं अकेला ही जाता और एक दिन राखी ने मुझे सिगरेट पीते हुए देख लिया और तब से हमारी थोड़ी बहुत बात शुरू हुई| बातें बड़ी साधारण ही होती, थोड़ी बहुत कॉलेज की बातें बस! अब ऑफिस के सारे मेल एम्प्लाइज को तो तुम जानती हो उन हरामियों ने हम दोनों के बारे में बातें करना शुरू कर दिया| शायद सर ने सुन लिया और उन्हें ये लगा की हम दोनों का कोई चक्कर चल रहा है| इसीलिए उन्होंने हम दोनों को अलग-अलग डाटा दे कर दूर कर दिया| काम का लोड ज्यादा था तो अब हमारी बातें सिर्फ लंच टाइम में होती या कभी कभार वो मुझे चाय पीते हुए मिल जाती|" ऋतू मेरी बातें बड़े इत्मीनान से सुन रही थी, और जब मैंने बोलना बंद किया तो वो बोली; "ये सब शुक्ल जी और सर ने मिल के किया है! ये उन्हीं का प्लान था की कैसे आपको बदनाम करें! पहले शुक्ल जी ने आपको जबरदस्ती चढ़ा दिया की शराब पीनी है और लास्ट का दांव सर ने चला| छी! कितने गंदे लोग हैं!" ऋतू ने गुस्से से तिलमिलाते हुए कहा|
"Welcome to the corporate culture!!! यहाँ कोई भी किसी को तरक्की करता हुआ देख कर खुश नहीं होता| अब मुझे सैलरी में रेज मिला तो शुक्ल जी की किलस गई!" मैंने कहा| बातों-बातों में ऋतू का हॉस्टल आ गया और मैंने उसे गेट पर छोड़ा और वापस उसी कैब में अपने घर निकल गया| घर आया ही था की दो मैसेज फ़ोन में आये, पहला ऋतू का की वो हॉस्टल पहुँच गई और आंटी जी ने उसे कुछ नहीं कहा और दूसरा अनु मैडम का; "मानु जी! रियली सॉरी! आज जो कुछ हुआ उसके लिए मैं इनकी तरफ से माफ़ी माँगती हूँ| अभी इन्होने मुझे अपना सारा घटिया प्लान बताया!" एक पल को तो मन किया की कल ही जा कर अपना रेसिग्नेशन बॉस के मुँह पर मार आता हूँ पर फिर ये सोच कर चुप हो गया की अभी कुछ महीनों के लिए ऋतू के साथ इस प्रोजेक्ट पर और काम कर लेता हूँ बाद में छोड़ दूँगा| यही सोचते हुए मुझे कब नींद आई पता ही नहीं चला|
ड्रिंक्स का राउंड शुरू हुआ पर ना तो ऋतू ने पी और न ही मैडम ने| मैं भी नहीं पीना चाहता था पर हमारे ऑफिस के सारे male colleagues आ कर बैठ गए| शुक्ल जी बोले; "अरे भाई मानु ऑफिस में तो तुम्हारा ग्रुप दूसरा सही पर यहाँ तो हमारे साथ शामिल हो जाओ|" अब उनकी बात सुन कर मुझे मजबूरन उनके साथ बैठना पड़ा और इधर सर ने व्हिस्की आर्डर कर दी| वेटर 5 गिलास व्हिस्की के लार्ज वाले ले आया| लार्ज पेग देख कर ऋतू हैरान हो गई और मन ही मन डरने लगी की पता नहीं आज क्या होगा| पर वो लार्ज पेग पीने के बाद मेरा सिस्टम उतना नहीं हिला जितना की आमतौर पर लोगों का हिल जाता था| सिद्धार्थ (मेरा colleague) का तो एक पेग में ही बंटाधार हो गया और उसने साफ़ मना कर दिया|
शुक्ल जी, मैं, अरुण (मेरा colleague) और सर अब भी टिके हुए थे| हम चारों पर ही जैसे असर नहीं हुआ था, शुक्ल जी ने वेटर को बुलाया और उसे देसी लाने को कहा| वेटर ने साफ़ मना कर दिया की उनके पास देसी नहीं है| "बेटा हमें इन महंगी शराबों से नहीं चढ़ती, हमें तो देसी चाहिए| तू ये ले पैसे, एक बोतल ले आ और बाकी पैसे तू रख ले|" शुक्ल जी का ये बर्ताव देख कर मैडम और ऋतू का मुँह बन गया पर सर उनकी तारीफ करने लगे| "सॉरी! शुक्ल जी मैं अब और नहीं पीयूँगा|" मैंने कहा पर शुक्ल जी तो आज फुल मूड में थे| "अरे भाई! क्या तुम एक देसी से घबरा गए? मर्द बनो!" शुक्ल जी की बात सुन कर ऋतू और अनु मैडम मेरे बचाव में एक साथ कूद पड़े| "शराब पीने से कब से मर्दानगी आने लगी?" मैडम ने कहा| "रहने दीजिये न सर फिर घर भी तो जाना है|" ऋतू बोली पर तभी सर बोल पड़े; "अरे भाई! कौन सा रोज-रोज पीते हैं| आज इतना अच्छा दिन है और रही बात घर छोड़ने की तो मैं छोड़ दूँगा|" अब मैं अगर पीने से पीछे हट जाता तो शुक्ल जी और बाकी के सभी लोग मुझे जिंदगी भर मैडम और ऋतू के नाम से छेड़ते रहते इसलिए मैं भी कूद पड़ा; "चलो देखते है शुक्ल जी आपकी देसी कितनी दमदार है|" ये सुन कर तो शुक्ल जी हैरान हो गए, आखिर देसी आई और मैंने जान-बुझ कर लार्ज पेग बनाये| मैं समझ गया था की ये सब शुक्ल जी का ही प्लान है ताकि मैं पी कर लुढक़ जाऊँ और वो मुझे उम्र भर इस बात का ताना देते रहे| पर वो नहीं जानते थे की मानु का कोटा बहुत बड़ा है! देसी के पहले पेग के बाद ही अरुण और सर ने हाथ खड़े कर दिए और अब बस मैं और शुक्ल जी ही बचे थे| बाकी बची आधी बोतल को मैंने बराबर-बराबर दोनों के गिलास में डाल दिया| "ऋतू ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे रोकना चाहा पर मुझपर तो शराब का सुरूर छाने लगा था| मैंने ऋतू की तरफ देखा और ऐसे दिखाया जैसे मैं अभी भी पूरे होश में हूँ| इधर डी.जे. ने भी हमारा ये कॉम्पिटिशन होते हुए देख लिया और उसने गाना लगा दिया; दारु बदनाम कर दी! अब ये सुनते ही शुक्ल जी फुल जोश में आ गए और खड़े हो गए और बाकी बची पूरी दारु एक साँस में पी गए|
ये देख कर दूल्हा-दुल्हन और बाकी सब वहीँ आ गए की यहाँ कौन सी प्रतियोगिता हो रही है! सारे के सारे हमें घेर कर खड़े हो गए पर ये क्या शुक्ल जी तो 5 मिनट बाद ही ढेर हो गए! अब बचा सिर्फ मैं, मैंने भी जोश में आते हुए पूरी की पूरी दारु एक साँस में गटक ली! सब के सब ये सोचने लगे की मैं अब गिरा..अब गिरा...पर मैं टिका रहा| गाने की आवाज और तेज हो गई और डी.जे. माइक पर जोर से चिल्लाया; "Give a big hand for this gentleman!” सारे तालियाँ बजाने लगे और मैंने भी सर झुका कर सबका अभिवादन स्वीकार किया| उस समय मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मुझे कोई अवार्ड मिल रहा हो! पर ठीक तभी मेरे बॉस ने एक चाल चली, उन्होंने डी.जे. से माइक लिया और मेरे पास ले कर आ गए और बोले; "मानु आज तो इस मौके पर तुम्हारी शायरी बनती है|" शायरी का नाम सुनते ही सब ने शोर मचाना शुरू कर दिया| राखी ने भी बड़े प्यार से रिक्वेस्ट की और सर ने इसी का फायदा उठाते हुए मुझ पर और दबाव डाल दिया; "भाई अब तो दुल्हन ने भी रिक्वेस्ट कर डी| अब तो सुना दो, कम से कम उसका दिल तो मत तोड़ो|" अब मेरी हालत ऐसी थी की शराब दिमाग पर चढ़ चुकी थी, मैं ये तो जानता था की मैं कहाँ हूँ पर क्या शेर बोलना है उस पर मेरा काबू नहीं था| अब दिल और जुबान के तार एक साथ जुड़ गए और मैंने अपनी आँख बंद की और और बोला;
हमेशा देर कर देता हूँ मैं हर काम करने में,
ज़रूरी बात कहनी हो कोई वादा निभाना हो,
उसे आवाज़ देनी हो उसे वापस बुलाना हो,
हमेशा देर कर देता हूँ मैं,
मदद करनी हो उस की यार की ढांढस बंधाना हो,
बहुत देरीना रास्तों पर किसी से मिलने जाना हो,
हमेशा देर कर देता हूँ मैं,
बदलते मौसमों की सैर में दिल को लगाना हो,
किसी को याद रखना हो किसी को भूल जाना हो,
हमेशा देर कर देता हूँ मैं,
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो,
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो,
हमेशा देर कर देता हूँ मैं हर काम करने में.....
ये गजल किस के लिए थी वो सब समझ चुके थे और माहौल को हल्का करते हुए राखी का दूल्हा बोला; "मानु जी! वैसे अभी देर नहीं हुई है!" मैं बस मुस्कुरा दिया और मैं जा कर उसके गले लगा और उसे बोला; ‘You’re a lucky guy, she’s a keeper! Best wishes from me and wish you a very happy married life!” मैंने उसे दिल से बधाई दी और माहौल हल्का हो गया| दूल्हा-दुल्हन के माँ-बाप को ये बाद जर्रूर लगी होगी इसलिए मैंने बस हाथ जोड़कर माफ़ी मांगी और मैं निकल आया| मेरे पीछे-पीछे ही सर मैडम और ऋतू भी आ गए| मैंने कैब बुला ली थी और सर और मैडम तो अपनी कार से ही जाने वाले थे| मैंने उन्हें good night बोला और हम दोनों चल दिए| कैब में बैठ कर हम दोनों खामोश थे, अब मुझे अपनी सफाई देनी थी पर जब दिमाग और जुबान का कनेक्शन टूट चूका था तो अब सिर्फ सच ही बाहर आना था| "ऋतू...तुझे कुछ कहना नहीं है?" मैंने ऋतू से बात शुरू करते हुए पूछा| "कहना नहीं पूछना है|" ऋतू ने मेरी तरफ मुँह करते हुए कहा और फिर अपने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को थाम लिया| नशे के कारन मेरी आँखें थोड़ी बंद होने लगी थी पर ऋतू ने मुझे थोड़ा झिंझोड़ा और मैं कुछ होश में आया| "आप अब भी उससे प्यार करते हो?" ऋतू ने मुझसे पूछा पर आज जो भी जवाब आना था वो दिल से ही आना था| "नहीं! मैं....बस....तुमसे...प्यार करता हूँ|" मैंने जवाब दिया और मेरा जवाब सुन कर ऋतू कस कर मेरे सीने से लग गई| मैंने भी आँखें बंद कर लीं और दिल को इत्मीनान हो गया की ऋतू और मेरे बीच में अब कोई भी गलतफैमी नहीं बची| कुछ देर ऐसे ही मेरे सीने से लगे हुए रहने के बाद ऋतू ने पूछा; "सर को सब पता था ना?" पर मैं तो जैसे सो ने लगा था पर ऋतू ने फिर मुझे नींद से उठाते हुए झिंझोड़ा और तब मेरे मुँह से टूटे-फूटे शब्द निकलने लगे; "मैंने....कभी...उन्हें नहीं....बताया|" पर ऋतू को तो अब सारी बात सुननी थी| ऋतू ने अपने पर्स से एक सेंटर शॉक निकाली और मेरे मुँह में डाल दी| दाँतों तले जैसे ही मैंने उस च्युइंग गम का दबाया की खटास के झटके से मेरी आँख खुल गई| मैंने अजीब सा मुँह बनाते हुए ऋतू को देखा, ठीक वैसा ही मुँह जैसे की आप किसी नन्हे से बच्चे को नीम्बू चटा दो| ऋतू खिलखिला कर हँस दी और फिर बोली; "अब बताओ, सर को पता था की आप राखी से प्यार करते थे?"
मैंने कभी उन्हें इस बारे में नहीं बताया, बल्कि उन्हें क्या किसी को नहीं बताया| जब मैंने ऑफिस ज्वाइन किया था तो मेरे आने से कुछ महीने पहले ही राखी ने ज्वाइन किया था| हम दोनों के बीच में कभी कोई बात नहीं हुई, जो भी बात हुई वो काम से रिलेटेड थी| अब चूँकि मैं नया जोइनी था और थोड़ा नौसिखिया तो सर ने मुझे और राखी को एक साथ एक कंपनी का डाटा दे दिया| लंच ब्रेक में भी हम दोनों साथ ही बैठे होते पर बातें बहुत कम ही होती| चाय पीने के समय मैं अकेला ही जाता और एक दिन राखी ने मुझे सिगरेट पीते हुए देख लिया और तब से हमारी थोड़ी बहुत बात शुरू हुई| बातें बड़ी साधारण ही होती, थोड़ी बहुत कॉलेज की बातें बस! अब ऑफिस के सारे मेल एम्प्लाइज को तो तुम जानती हो उन हरामियों ने हम दोनों के बारे में बातें करना शुरू कर दिया| शायद सर ने सुन लिया और उन्हें ये लगा की हम दोनों का कोई चक्कर चल रहा है| इसीलिए उन्होंने हम दोनों को अलग-अलग डाटा दे कर दूर कर दिया| काम का लोड ज्यादा था तो अब हमारी बातें सिर्फ लंच टाइम में होती या कभी कभार वो मुझे चाय पीते हुए मिल जाती|" ऋतू मेरी बातें बड़े इत्मीनान से सुन रही थी, और जब मैंने बोलना बंद किया तो वो बोली; "ये सब शुक्ल जी और सर ने मिल के किया है! ये उन्हीं का प्लान था की कैसे आपको बदनाम करें! पहले शुक्ल जी ने आपको जबरदस्ती चढ़ा दिया की शराब पीनी है और लास्ट का दांव सर ने चला| छी! कितने गंदे लोग हैं!" ऋतू ने गुस्से से तिलमिलाते हुए कहा|
"Welcome to the corporate culture!!! यहाँ कोई भी किसी को तरक्की करता हुआ देख कर खुश नहीं होता| अब मुझे सैलरी में रेज मिला तो शुक्ल जी की किलस गई!" मैंने कहा| बातों-बातों में ऋतू का हॉस्टल आ गया और मैंने उसे गेट पर छोड़ा और वापस उसी कैब में अपने घर निकल गया| घर आया ही था की दो मैसेज फ़ोन में आये, पहला ऋतू का की वो हॉस्टल पहुँच गई और आंटी जी ने उसे कुछ नहीं कहा और दूसरा अनु मैडम का; "मानु जी! रियली सॉरी! आज जो कुछ हुआ उसके लिए मैं इनकी तरफ से माफ़ी माँगती हूँ| अभी इन्होने मुझे अपना सारा घटिया प्लान बताया!" एक पल को तो मन किया की कल ही जा कर अपना रेसिग्नेशन बॉस के मुँह पर मार आता हूँ पर फिर ये सोच कर चुप हो गया की अभी कुछ महीनों के लिए ऋतू के साथ इस प्रोजेक्ट पर और काम कर लेता हूँ बाद में छोड़ दूँगा| यही सोचते हुए मुझे कब नींद आई पता ही नहीं चला|