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Adultery रीमा की दबी वासना
इस बार जितेश ने भी रीमा से दूरी बनाने की कोशिश नहीं की वह रीमा से बिल्कुल सट कर खड़ा हुआ था और उसकी तौलिये के अंदर से उसका तना हुआ लंड रीमा के चूतड़ों पर लग रहा था रीमा को भी इसका एहसास हो रहा था और जितेश को भी पता था लेकिन इस बार जितेश ने किसी तरह की भी आनाकानी या हिचकिचाहट से दूर रहकर बस रीमा को शर्ट पहनाता रहा | उसे अच्छे से  पता था कि रीमा को भी इस बात का एहसास है कि उसके तौलिये में तने हुए मुसल लंड की उभार रीमा के चूतड़ों पर छू रही हैं पर अब तक जितेश भी समझ गया था यदि रीमा को भी इससे कोई विशेष आपत्ति नहीं है तो वो क्यों पीछे हटे |  वह रीमा से थोडा और सट गया ताकि रीमा अपने नरम गुदाज चुताड़ो पर उसके मोटे मुसल लंड का अहसास ठीक से कर सके | उसने रीमा की शर्अट के बटन लगाने के लिए उसे  पलटा नहीं बल्कि पीछे से ही बटन लगाने लगा | रीमा भी समझ गयी जितेश के दिमाग में क्या चल रहा है लेकिन रीमा अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करना चाहती थी | वह पीछे से ही सीमा के शर्ट के बटन बंद करता रहा |  असल में हकीकत का अहसास होते हुए भी दोनों उलझन में थे | रीमा हैरान थी अगर जितेश के उसको लेकर अगर वासना का ज्वार उमड़ रहा है और जिसकी निशानी उसका तना हुआ लंड है तो वो आगे क्यों नहीं बढ़ रहा | ऐसी हालत में कोई भी मर्द पीछे नहीं हटेगा, वो भी यह जानते हुए की सामने एक औरत पूरी तरह  नंगी है | ऐसे में तो मर्द औरतो की परवाह भी नहीं करते, सीधे उनकी जांघे हवा में उठा कर अपना लंड उनकी चूत में घुसा देते है  और उनको चोद डालते है बाकि जो भी रोना धोना नखरे नाराजगी होती है बाद में झेल लेते है लेकिन जितेश अपने में ही खुद को संयमित किये हुए था | रीमा हैरान थी आखिर उसने रीमा को बदन को जानबूझकर छूने की कोशिश भी नहीं की | जहाँ भी स्पर्श हुआ सहज था | कोई अलग से खास प्रतिक्रिया नहीं कोई खास चाहत या कोशिश जितेश ने नहीं की | जब वो रीमा के पीछे आया तो जिस सहज भाव से उसका स्पर्श रीमा के पीछे चुताड़ो पर हुआ उससे उसने कुछ अलग प्रतिक्रिया नहीं दी और न ही रीमा को महसूस होने दिया | इतना खुद पर नियंत्रण तो शायद रोहित का भी नहीं था | रीमा समझ नहीं पा रही थी आखिर कैसे रियेक्ट करे | उसके नरम चुताड़ो पर तौलिये का उभार रीमा की धड़कने बढाये हुए था | रीमा भी खुद को उसी के अनुसार भावहीन करने की कोशिश कर रही थी जैसे सब कुछ सहज हो | उसने भी जितेश को कोई अलग प्रतिक्रिया नहीं दी | जैसे ये उसके लिए कुछ मायने ही न रखता हो | जितेश के अन्दर भी वही भाव थे आखिर रीमा को अगर ऐतराज नहीं है तो खुलकर इशारा क्यों नहीं करती | जवानी में सबकी हसरत होती है और रीमा के अन्दर भी हसरत होगी लेकिन उसे वो छिपा क्यों रही है | जितेश रीमा के जिस्म का कोना कोना देख चूका था तो शर्म हया वाली तो कोई बात नहीं थी | अगर किसी तरह की झिझक थी तो उसे लगता था की अब उनके बीच इतनी कम दूरी है की झिझक के लिए कोई जगह ही नहीं बची है | आखिर रीमा जरा ससा पीछे की तरह जोर डालती तो जितेश के उभार रीमा के चुताड़ो पर पूरी तरह से छप जाता | जितेश को भी पता चल जाता की रीमा को आगे बढ़ने में कोई एतराज नहीं है | लेकिन रीमा ने ऐसा कोई इशारा नहीं दिया | जितेश हैरान था की अगर रीमा के अन्दर चुदने की ख्वाइश है तो रीमा जैसी बोल्ड औरत इसे कहने में झिझक क्यों रही है | इधर रीमा के मन ने था की अगर जितेश को कुछ करना है तो आगे क्यों नहीं बढ़ रहा | सब कुछ तो मेरा देख चूका है अब भला मै उसे क्यों रोकूंगी | जब आगे ही नहीं बढ़ेगा तो क्या अपने आप चूत खोलकर बैठ जाऊ की आवो मुझे चोदो | जितेश भी बिलकुल ऐसा ही सोच रहा था, अगर इसको मै पसंद हूँ तो बस एक इशारा दे की मै चुदने के लिए राजी हूँ | 


रीमा बस चुताड़ो पर हो रहे उस तौलिये के अन्दर के कठोर उभार को महसूस करती रही और अपनी मन की उलझनों में खोयी रही | जितेश भी अपनी हद में रहा | उसने भी आगे बढ़ने की कोशिश नहीं की |   उसके  बाद में रीमा जो  घूम गई और उसने जितेश की तरफ देखा और उसके तौलिये की उठान को लेकिन बिना कोई भाव लिए वह बिस्तर पर जा करके बैठ गई | नीचे अभी भी उसने कुछ नहीं पहना हुआ था और उसकी चिकनी गोरी सफाचट चूत अलग ही रंग दिखा रही थी | जितेश ने उसे एक नजर देखा वह भी कुछ नहीं बोला और चुपचाप जाकर के खाना गरम करने चला गया | रीमा बिस्तर में घुस गई और उसने अपने ऊपर सफेद चादर डाल दी हल्की आवाज में बोली - तो बताओ ना अपने बारे में फिर क्या कहानी है तुम्हारी | मै भी तुमारी खास कहानी सुनना चाहती हूँ | 
जितेश ने भी अपनी कहानी सुनानी शुरु की

जितेश चूल्हे के नजदीक बैठा अपनी कहानी सुनाने लगा  - मैडम बहुत पहले की बात है शायद कक्षा 9 में था | मेरी गली में पड़ोस में एक पादरी का परिवार रहता था | पादरी पति पत्नी दोनों  दिन भर चर्च में रहते थे उनकी दो बेटियां थी | छोटी बेटी तो मेरे उम्र की थी और बड़ी बेटी मुझे पांच साल बड़ी थी | छोटी बेटी से मेरी कभी नहीं पटती थी | हम सब साथ में ही मोहल्ले में खेलते थे | मेरा ज्यादा दिमाग पढने लिखने में लगता नहीं था | मेरे भाई बहन और पादरी की दोनों बेटियां हम सब एक ही कॉलेज में पढ़ते थे | जब मै मैथ में बार बार फ़ैल होने लगा तो पादरी की बड़ी बेटी जिनका नाम क्रिस्टीना था लेकिन मै पड़ोस की वजह से दीदी  कहता था उनके पास मुझे ट्यूशन पढ़ने भेजा जाने लगा | वो मोहल्ले की और लडको को भी ट्यूशन पढ़ाती थी |  शुरुआत में में से काफी शर्मीला था और दीदी के यहाँ जाकर  सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान देता था | उनसे बस जरुरी बाते ही करता था | लेकिन दीदी ने धीरे धीरे मुझे सहज कर दिया और मै उनसे खुलकर बाते करने लगा | दीदी पढने में तेज थी जल्दी ही, उन्होंने मुझे भी अच्छे से मैथ समझनी शुरू कर दी |   मेरी मैथ ठीक होने लगी | 9 मै आसानी से पास हो गया | 10 में और कठिन मैथ थी इसलिए मै एक घंटे ज्यादा उनसे कोचिंग लेने लगा | जब सारे बच्चे चले जाते तो दीदी एक घंटा मुझे और पढ़ाती थी | 


हम बच्चे सभी मिलकर शाम को छुपम छुपायी खेलते थे | अक्सर मेरा नंबर दीदी के साथ ही होता तो हम दोनों साथ साथ में छिप जाते | एक दिन दीदी के साथ साथ मै भी छिपने के लिए भागा लेकिन कोई जगह नहीं मिली तो दीदी ने मुझे अपनी फ्रांक में छिपा लिया |  मुझे तो कुछ पता नहीं था लेकिन दीदी को उस उम्र से बहुत कुछ मालूम था | उसके बाद से अक्सर दीदी मेरे साथ ही छिपती थी, जब भी जरुरत होती मुझे  अपनी लम्बी फ्रांक में घुसाकर छिपा  लेती | वो ऐसी उम्र थी की बस जवानी की पौ फटनी शुरू होती है | दीदी अपनी फ्रांक में घुसाकर मुझे जांघो के बीच दबा लेती | मै साँस बांधे उसमे छिपा रहता | एक दिन मेरा हाथ दीदी की जांघो के ऊपर चला गया मेरी बहन फ्रांक के नीचे चड्ढी पहनती थी लेकिन उनकी जांघो के बीच में मुझे कोई चड्ढी नहीं दिखी | मुझे लगा बड़े लोग नहीं पहनते होंगे | अगले  दिन मै भी बिना चड्ढी के सिर्फ हाफ पेंट पहने खेलने चला गया | जब दीदी के साथ मै छिपने को भागा तो पकड़ने वाला मुझे देख न ले इसलिए दीदी ने जल्दी से मेरी पेंट की ज़िप के सामने हाथ लगा कर मुझे जल्दी से अपने से सटा लिया और ऊपर से फ्रांक डाल दी | 

दीदी ने लेकिन हाथ नहीं हटाया बल्कि ऐसा लगा मुझे जैसे वो कुछ ढूंढ रही हो | उसके बाद उन्होंने दूसरा हाथ भी अपने पहले हाथ पर रख दिया और कसकर दबा दिया और मुझे किसी तरह की कोई आवाज न करने के लिए इशारा किया | मै उनकी अंधेरी फ्रांक में चुपचाप साँस बांधे छिपा रहा | जब खेल खतम हो गया तो उन्होंने मुझे इशारा करके एक कोने में बुलाया | 
दीदी - मुझे एक चीज देखनी है किसी को बताएगा तो नहीं | 
मैंने इनकार में सर हिला दिया | 
दीदी ने अपना हाथ मेरी पेंट में घुसेड दिया और कुछ टटोलने लगी | अच्छे से पेंट के अन्दर सब कुछ टटोलने के बाद पूछने लगी - आज चड्ढी क्यों नहीं पहनी | 
मैंने यू ही बोल दिया - बस यू ही, रोज तो पहनता हूँ | 
फिर कुछ सोचकर मैंने उनसे पुछा - मै तो रोज पहनता हूँ लेकिन आपको कभी पहने नहीं देखा | आप हमारी तरह चड्ढी क्यों नहीं पहनती | 
दीदी थोडा शर्मा गया - बदमाश मेरी फ्रांक में घुसकर यही सब देखता है | हमारे यहाँ इसका रिवाज नहीं है | 
मेरी हिम्मत थोड़ी और बढ़ी - दीदी नाराज न हो तो एक बात पूंछु |
दीदी को लगा मै उनसे ये पूछुंगा की वो मेरी पेंट में क्या टटोल रही थी इसलिए पहले ही सफाई देने लगी - अरे वो मै बस ये देख रही थी कि तू चड्ढी पहनकर आया है या नहीं | 
उनकी दोनों के बीच में जांघो के सबसे ऊपर कोने में ढेर सारे बाल थे | मुझे नहीं पता था वो क्या था लेकिन एक दिन मैंने देखा मेरे बहन के तो बाल नहीं है | बहुत दिन से मेरे दिमाग में ये सवाल घूम रहा था तो मैंने  हिम्मत करके पूँछ लिया  - दीदी ये आपकी दोनों जांघो के बीच में बाल है लेकिन मेरी बहन के तो नहीं है | 
दीदी कुछ नहीं बोली | कुछ देर तक हम यू ही चुपचाप बैठे रहे | फिर दीदी ये कहते हुए चली गयी - अब धीरे धीरे जवान हो रहे हो अन्दर कुछ न कुछ पहन लिया करो  | मुझे दीदी की बात का बिलकुल भी मतलब समझ नहीं आया | 
 जब अगले दिन मै छुपने के लिए उनकी फ्रांक में घुसा तो वहां सब सफाचट था | मैंने फ्रांक के अन्दर से ही पुछा - दीदी आपके बाल तो गायब हो गया | 
दीदी ने मेरा सर अपनी जांघो के बीच में कसकर दबा लिया | वहां से रोज ही एक मदहोश करने वाली गंध आती थी लेकिन आज तो वहां से ऐसी उस गंध के साथ खुसबू भी आ रही थी | मेरी नाक में घुसती उस खुसबू से मै मदहोश होने लगा | एमी आज दीदी की तरफ को छुपकर बैठा था | मेरा सर उनकी जांघो के बीच में फंसा था और मेरी नाक बिलकुल दीदी की जांघो के चीरे के सामने थी | उस समय मुझे पता नहीं था ये क्या है | लेकिन मैंने अपनी बहन को कई बार बिना कपड़ो के नहाते देखा था इसलिए दीदी की जांघो की बनावट भी बिलकुल वैसी थी | आज वहां बाल नहीं थे इसलिए  समझ गया की लडकियों की बनावट ही ऐसी होती है बस बाल जम आते है | दीदी ने मेरे सर के पीछे हाथ लगाकर कसकर मुझे अपनी जांघो और बाल वाले इलाके में रगड़ दिया | अगर मै सर बाहर नहीं निकलता तो मेरा दम घुट जाता | 

खाना गरम हो गया था और जितेश ने रीमा को खाना परोस दिया | रीमा को खाने से ज्यादा इस समय जितेश की कहानी में दिलचस्पी थी | रीमा ने खाने की थाली अपनी तरफ खिसका ली और खाने लगी | सामने आकर जितेश भी बैठ गया | जितेश ने अभी भी चड्ढी नहीं पहनी वो तौलिया बांधे ही बैठा रहा | रीमा उसके तौलिये के ऊपर से उसके लंड का उभार देखती रही | जितेश को ऊपर से उसका तौलिये से झांकता लंड भले ही  नजर नहीं आ रहा था लेकिन सामने बैठी रीमा को न केवल अब उसके तौलिये का उभार दिख रहा था बल्कि उसका मुसल लंड भी बाहर झाकता हुआ दिख रहा था | रीमा की तो जैसे मन्नत पूरी हो गयी | कब से वो जितेश के लंड को देखने की लालसा पाले बैठी थी | उसकी चूत में कुछ हलचल हुई लेकिन रीमा ने दूसरी तरफ नजरे फेर ली | उसका जितेश का मुसल लंड देखने का अरमान पूरा हो गया था | इन हालातों में भी रीमा की अपनी वासनाए तृप्त होने का कोई मौका नहीं छोडती | ऐसा लग रहा था जैसे रीमा को जितेश का लंड देखकर ओराग्स्म हो गया हो लेकिन उसने जल्दी ही खुद को संभाल लिया | रीमा जितेश की तरफ देख रही थी |  जितेश का ध्यान रीमा पर नहीं था वो तो अपनी अतीत के यादो में खोया हुआ था | जबकि उसका लंड ऐसा लग रहा जैसे तौलिये से झांक कर  रीमा की गुलाबी चूत के दर्शन करने को आतुर हो | रीमा ने कमर के नीचे खुद को चादर से ढक रखा था इसलिए वहां से कुछ नजर आने की उम्मीद नहीं थी | 

[Image: tumblr_maczxtEKGQ1qg3fzoo1_500.jpg]

रीमा कभी जितेश को देखती कभी उसके तौलिये से झांकते मुसल लंड को | 

इधर जितेश इस हकीकत से दूर अपने ही अतीत में खोया हुआ था उसने एक लम्बी साँस ली और आगे की कहानी सुनाने लगा | 

 धीरे-धीरे दीदी के साथ मेरा चिपकना लिपटना बढ़ने लगा | दीदी भी मेरे साथ अजीब अजीब हरकते करने लगी | कभी वो फ्रॉक  ऊपर जांघो तक खींच कर बैठ जाती और उनके काले काले बाल हलके हलके दिखने लगते,  तो कभी वो अपने कंधे के ऊपर से उसकी डोरी नीचे खींच दी थी हालांकि इन सब से मुझे कोई मतलब नहीं था और मैं अपनी गणित के सवालों में ही उलझा रहता था | अक्सर जब मै अकेला दीदी के साथ होता तो उन्हें जांघ के ऊपऋ सिरे पर कोई न कोई कीड़ा काट लेता और वो मुझे उस कीड़े को ढूँढने के लिए कहती | मै उनकी फ्रांक में घुस जाता और सब कही ढूंढता रहता | पहले दीदी की जांघो से आने वाली गंध मुझे कुछ खास नहीं लगती थी लेकिन अब उनकी गंध दिलो दिमाग में घुस जाती | मै अब अक्सर सिर्फ दीदी की उस गंध को सूघने के लिए बेताब रहता था | दीदी भी मुझे एक बार अपनी वो मादक गंध सुंघाकर ही घर वापस भेजती थी | कुछ दिन बाद ट्यूशन पढने के बाद अक्सर दीदी किसी न किसी बहाने मुझे रोक लेती और अपनी बहन को बाहर खेलने भेज देती | कोई न कोई घर का काम मेरे से करवाने लगती, ये उठकर यहाँ से वहां रख दो वो उठकर वहां से यहाँ रख दो  और ऐस करने के बीच बीच में मेरे ऊपर गिर पड़ती लिपट जाती या चिपक जाती | एक बार तो सीधे मेरी पेंट में हाथ घुसेड़ कर मेरे लंड को ही सहलाने लगी थी | मै कुछ कर भी नहीं पाता था आखिर मेरी टीचर थी और अच्छे से पढ़ाती थी | ऊपर से मुझे भी अब मजा आने लगा था | वो अलग बात है अभी मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की दीदी क्या कर रही है लेकिन मजा आ रहा था | 
एक दिन दीदी ने मुझे कुछ सवाल लगाने को दिए और फिर अन्दर चली गयी | काफी देर तक बाहर नहीं आई | कुछ देर बाद जब बाहर निकली तो ऐसा लग रहा था की नहाकर निकली हो | बाहर निकलते ही छोटी बहन को डाटने लगी जिससे वो झुंझलाकर बाहर खेलने भाग गयी | दीदी फिर से कमरे में घुस गयी | 

कुछ देर बाद जब दीदी वापस आई तो मै देखकर हैरान रह गया | जो कुछ पहन कर आई उसे देख कर के मेरे होश उड़ने लगे मैंने देखा दीदी ने फ्रॉक नहीं पहनी है दीदी ने आज चड्ढी पहनी है और  उसी सेम कपड़े की टॉप ऊपर पहनी है | 
मै हैरानी से दीदी को देख रहा था -  आज तो आपने चड्डी पहन ली | 
मै - आप तो कह रहा थी ना कि मैं चड्डी नहीं पहनती हूं | 
दीदी - इसीलिए आज मैंने चड्डी पहन ली अब बताना कैसी लग रही हूँ मै | 
मेरी कुछ समझ में नहीं आया मुझे लगा दीदी कपड़ों की बात कर रही थी | 
मै-  बहुत अच्छी लग रही हो गई | उसके बाद उन्होंने अपनी थोड़ी सी चड्ढी नीचे की तरफ खिसकाई | वहां कोई बाल नहीं थे |  उसके बाद वह मेरी पेंट के ऊपर अपना हाथ रखकर कुछ टटोलने लगी | ऐसा लग रहा था जैसे कुछ  ढूंढ रही हो | उसके बाद उन्होंने मेरी पेंट की जिप खोली और अपना हाथ अन्दर घुसेड दिया | मेरे लंड को पकड़कर सहलाने लगी | इतना तो पता था की जो मेरे पास है वो लडकियों के पास नहीं होता | 
मै हैरानी से - दीदी ये क्या कर रही है | 
दीदी - कुछ ढूंढ रही हूँ | 
मै - क्या | 
दीदी - वही जो मेरे पास नहीं है और अभी मेरी मुट्ठी में है  |
मै - जिसे आपने पकड़ रखा है दीदी मै इससे सुसु करता हूँ | 
दीदी खिलखिला पड़ी - तू बहुत भोला है इससे और भी कई काम होते है, जल्दी ही सीख जायेगा | इसके बाद दीदी ने अपना हाथ बाहर निकाल लिया | 
मेरी आँखों में आंखे डाल पूछने लगी-  एक चीज दिखाऊं किसी को बताएगा तो नहीं | 
मैंने पुछा -  क्या दीदी | 
दीदी बोली - पहले कसम खा की इस बारे में किसी से कोई बात नहीं करेगा किसी को कुछ बताएगा | ये सिर्फ  हमारे दोनों के बीच की भी बात है हमारे दोनों के बीच में ही रहेगी | 
मैंने हामी भर दी -  ठीक है दीदी | 
दीदी ने मेरा  मेरा हाथ अपने सर पे रखा - सोच ले अगर किसी को भी बताया तो दीदी तेरी मर जाएगी और फिर तुझे टूशन कौन पढ़ायेगा | मै थोडा सा डर गया - दीदी मुझे आपकी कसम कभी मुहँ नहीं खोलूँगा | 
मै हैरान था की ऐसी कौन सी चीज है जिसके लिए दीदी इतनी भयंकर खसम खिलवा रही है | 
 उसके बाद दीदी खड़ी हो गयी और  धीरे से अपनी चड्डी में दोनों छोर अंगूठे में फंसा कर के  अपनी चड्डी नीचे की तरफ खिसका दी | 

[Image: 1_151.jpg]

उसके बाद मैंने जो देखा मेरे होश उड़ गए, उस समय मुझे नहीं पता था की उसे ही चूत कहते है लेकिन दीदी की नंगी चिकनी सफाचट चूत मेरी आँखों के सामने थी |  हालांकि यह में पहले भी देख चुका था लेकिन कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ अक्सर बहन बिना कपड़ों के ही नहाती थी तो मैं यह चीजें देखता था लेकिन दीदी को देख करके कुछ अलग ही एहसास हुआ दीदी की चूत के इलाके में एक भी बाल नहीं था | मै तो बस दीदी का गोरापन देख रहा था |  दीदी के चड्डी के अंदर एक भी बाल नहीं है और जांघो के बीचो बीच एक तिकोना सा चिकना सफाचट इलाका नीचे की तरफ दो मोटे मोटे ओंठो की सटने से बनी दरार के साथ ख़तम हो रहा था |  दोनों जांघों के जोड़ों के बीच में  एक लंबी पतली सी दरार बनाते हुए दो बड़े-बड़े से ओठ आपस में चिपके हुए हैं | 
दीदी बड़ी हसरत से मेरी तरफ देख रही थी और मुस्कुरा रही थी | मै वो सब देखकर पसीने पसीने हो रहा था | 
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RE: रीमा की दबी वासना - by vijayveg - 09-11-2019, 08:11 PM



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