20-01-2019, 08:40 PM
होली : सुबह सबेरे
उधर ननद बार-बार दरवाजा खटखटा रही थी और इधर ‘ये’ मेरी गांड़ में झड़ते जा रहे थे.
मेरी गीली प्यासी चूत भी... बार-बार फुदक रही थी. जब उन्होंने गांड़ से लंड निकाला तो गाढ़े थक्केदार वीर्य की धार, मेरे चूतड़ों से होते हुए मेरे जांघ पर भी...
पर इसकी परवाह किये बिना मैंने जल्दी से सिर्फ ब्लाउज पहना, साड़ी लपेटी और दरवाजा खोल दिया.
बाहर सारे लोग मेरी जेठानी, सास और दोनों ननदें... होली की तैयारी के साथ.
आगे
बाहर सारे लोग मेरी जेठानी, सास और दोनों ननदें... होली की तैयारी के साथ.
“अरे भाभी, ये आप सुबह-सुबह क्या कर... मेरा मतलब करवा रही थी? देखिये आपकी सास तैयार हैं.”
बड़ी ननद बोली.
(मुझे कल हीं बता दिया गया था कि नई बहु की होली की शुरुआत सास के साथ होली खेल के होती है और इसमें शराफ़त की कोई जगह नहीं होती, दोनों खुल के खेलते हैं).
जेठानी ने मुझे रंग पकड़ाया. झुक के मैंने आदर से पहले उनके पैरों में रंग लगाने के लिये झुकी तो जेठानी जी बोलीं,
“अरे आज पैरों में नहीं, पैरों के बीच में रंग लगाने का दिन है.”
और यही नहीं उन्होंने सासू जी का साड़ी साया भी मेरी सहायता के लिये उठा दिया. मैं क्यों चूकती? मुझे मालूम था कि सासू जी को गुदगुदी लगती है. मैंने हल्के से गुदगुदी की तो उनके पैर पूरी तरह फ़ैल गए.
फिर क्या था? मेरे रंग लगे हाथ सीधे उनकी जांघ पे.
इस उम्र में भी (और उम्र भी क्या? 40 से कम की हीं रही होंगी), उनकी जांघें थोड़ी स्थूल तो थी लेकिन एकदम कड़ी और चिकनी. अब मेरा हाथ सीधे जांघों के बीच में...
मैं एक पल सहमी, लेकिन तब तक जेठानी जी ने चढ़ाया,
“अरे जरा अपने पति के जन्म-भूमि का तो स्पर्श कर लो.”
उंगलियां तब तक घुंघराली रेशमी झाँटों को छू चुकी थी. (ससुराल में कोई भी पैंटी नहीं पहनता था, यहाँ तक कि मैंने भी पहनना छोड़ दिया.). मुझे लगा कि कहीं मेरी सास बुरा ना मान जाये लेकिन वो तो और... खुद बोलीं,
“अरे स्पर्श क्या, दर्शन कर लो बहु.”
और पता नहीं उन्होंने कैसे खींचा कि मेरा सिर सीधे उनकी जांघों के बीच. मेरी नाक एक तेज तीखी गंध से भर गई. जैसे वो अभी-अभी ... कर के आयी हों और उन्होंने... जब तक मैं सिर निकालने का प्रयास करती कस के पहले तो हाथों से पकड़ के फिर अपनी भारी-भारी जांघों से कस के दबोच लिया.
उनकी पकड़ उनके लड़के की पकड़ से कम नही थी. मेरे नथुनों में एक तेज महक भर गई और अब वो उसे मेरी नाक और होंठों से हल्के से रगड़ रही थीं.
हल्के से झुक के वो बोलीं,
“दर्शन तो बाद में कराउंगी पर तब तक तुम स्वाद तो ले लो थोड़ा.”
जब मैं किसी तरह वहाँ से अपना सिर निकाल पाई तो वो तीखी गंध... अब एकदम मतवाली सी तेज, मेरा सिर घूम-सा रहा था. एक तो सारी रात जिस तरह उन्होंने तड़पाया था, बिना एक बार भी झड़ने दिये...
और ऊपर से ये. मेरा सिर बाहर निकलते हीं मेरी ननद ने मेरे होंठों पे एक चांदी का ग्लास लगा दिया... लबालब भरा, कुछ पीला-सा और होंठ लगते हीं एक तेज भभका सा मेरे नाक में भर गया.
“अरे पी ले, ये होली का खास शर्बत है तेरी सास का.... होली की सुबह का पहला प्रसाद...”
ननद ने उसे ढकेलते हुए कहा. सास ने भी उसे पकड़ रखा था.
मेरे दिमाग में कल गुझिया बनाते समय होने वाली बातें आ गईं.
ननद मुझे चिढ़ा रही थी कि
भाभी कल तो खारा शरबत पीना पड़ेगा, नमकीन तो आप है हीं, वो पी के आप और नमकीन हो जायेंगी.
सास ने चढ़ाया था,
“अरे तो पी लेगी मेरी बहु...तेरे भाई की हर चीज़ सहती है तो ये तो होली की रसम है.”
जेठानी बोलीं,
“ज्यादा मत बोलो, एक बार ये सीख लेगी तो तुम दोनों को भी नहीं छोड़ेगी.”
मेरे कुछ समझ में नही आ रहा था.
मैं बोली,
“मैंने सुना है कि गाँव में गोबर से होली खेलते हैं...”
बड़ी ननद बोली,
“अरे भाभी गोबर तो कुछ भी नहीं... हमारे गाँव में तो...”
सास ने इशारे से उसे चुप कराया और मुझसे बोलीं,
“अरे शादी में तुमने पंच गव्य तो पीया होगा. उसमें गोबर के साथ गो-मूत्र भी होता है.”
मैं बोली, “अरे गो-मूत्र तो कितनी आयुर्वेदिक दवाओ में पड़ता है, उसमें...”
तो मेरी बात काट के बड़ी ननद बोली कि
“अरे गो माता है तो सासू जी भी तो माता है और फिर इंसान तो जानवरों से ऊपर हीं...तो फिर उसका भी चखने में...”
मेरे ख्यालों में खो जाने से ये हुआ कि मेरा ध्यान हट गया और ननद ने जबरन ‘शरबत’ मेरे ओंठों से नीचे...
सासू जी ने भी जोर लगा रखा था और धीरे-धीरे कर के मैं पूरा डकार गई.
मैंने बहुत दम लगाया लेकिन उन दोनों की पकड़ बड़ी तगड़ी थी.
मेरे नथुनों में फिर से एक बार वही महक भर गई जो... जब मेरा सिर उनकी जांघों के बीच में था.
लेकिन पता नहीं क्या था... मैं मस्ती से चूर हो गई थी.
लेकिन फिर भी मेरे कान में... किसी ने कहा,
“अरे पहली बार है ना, धीरे-धीरे स्वाद की आदि हो जाओगी... जरा गुझिया खा ले, मुँह का स्वाद बदल जायेगा...”
मैंने भी जिस डिब्बे में कल बिना भाँग वाली गुझिया रखी थी, उसमें से निकाल के दो खा लीं... (वो तो मुझे बाद में पता चला, जब मैं तीन-चार गटक चुकी.....कि ननद ने रात में हीं डिब्बे बदल दिये थे और उसमें डबल डोज वाली भांग की गुझिया थी).
कुछ हीं देर में उसका असर शुरू हो गया.
जेठानी ने मुझे ललकारा,
“अरे रुक क्यों गई? अरे आज हीं मौका है सास के ऊपर चढ़ाई करने का...दिखा दे कि तूने भी अपनी माँ का दूध पीया है...”
और उन्होंने मेरे हाथ में गाढ़े लाल रंग का पेंट दे दिया सासू जी को लगाने को.
“अरे किसके दूध की बात कर रही है? इसकी पंच भतारी, छिनाल, रंडी, हरामचोदी माँ, मेरी समधन की... उसका दूध तो इसके मामा ने, इसके माँ के यारों ने चूस के सारा निकाल दिया. एक चूचि इसको चुसवाती थी, दूसरी इसके असली बाप, इसके मामा के मुँह में देती थी.”
सास ने गालियों के साथ मुझे चैलेंज किया. मैं क्यों रूकती.?
पहले तो लाल रंग मैंने उनके गालों पे और मुँह पे लगाया.
उनका आँचल ढलक गया था, ब्लाउज से छलकते बड़े-बड़े स्तन... मुझसे नहीं रहा गया, होली का मौका, कुछ भाँग और उस शरबत का असर, मैंने ब्लाउज के अंदर हाथ डाल दिया.
वो क्यों रूकतीं? उन्होंने जो मेरे ब्लाउज को पकड़ के कस के खींचा तो आधे हुक टूट गए. मैंने भी कस कस के उनके स्तनों पे रंग लगाना, मसलना शुरू कर दिया.
क्या जोबन थे? इस उम्र में भी एकदम कड़े-टनक, गोरे और खूब बड़े-बड़े... कम से कम 38डीडी रहे होंगे.
मेरी जेठानी बोली,
“अरे जरा कस के लगाओ, यही दूध पी के मेरा देवर इतना ताकतवर हो गया है... कि...”
रंग लगाते दबाते मैंने भी बोला,
“मेरी मम्मी के बारे में कह रही थीं ना, मुझे तो लगता है कि आप अभी भी दबवाती, चुसवाती हैं. मुझे तो लगता है सिर्फ बचपन में हीं नहीं जवानी में भी वो इस दूध को पीते, चूसते रहे हैं. क्यों है ना? मुझे ये शक तो पहले से था कि उन्होंने अपनी बहनों के साथ अच्छी ट्रेनिंग की है लेकिन आपके साथ भी...?”
मेरी बात काट के जेठानी बोलीं, “
तू क्या कहना चाहती है कि मेरा देवर....”
“जी...जो आपने समझा कि वो सिर्फ बहनचोद हीं नहीं... मादरचोद भी हैं.”
मैं अब पूरे मूड में आ गई थी.
“बताती हूँ तुझे...”
कह के मेरी सास ने एक झटके में मेरी ब्लाउज खींच के नीचे फेंक दिया. अब मेरे दोनों उरोज सीधे उनके हाथ में.
“बहोत रस है रे तेरी इन चूचियों में, तभी तो सिर्फ मेरा लड़का हीं नहीं गाँव भर के मरद बेचारों की निगाह इन पे टिकी रहती है. जरा आज मैं भी तो मज़ा ले के देखूं...”
और रंग लगाते-लगाते उन्होंने मेरा निप्पल पिंच कर दिया.
“अरे सासू माँ, लगता है आपके लड़के ने कस के चूचि मसलना आपसे हीं सीखा है. बेकार में मैं अपनी ननदों को दोष दे रही थी. इतना दबवाने, चुसवाने के बाद भी इतनी मस्त है आपकी चूचियां...” मैं भी उनकी चूचि कस के दबाते बोली.
मेरी ननद ने रंग भरी बाल्टी उठा के मेरे ऊपर फेंकी.
मैं झुकी तो वो मेरी चचेरी सास और छोटी ननद के ऊपर जा के पड़ी. फिर तो वो और आस-पास की दो-चार और औरतें जो रिश्ते में सास लगती थी, मैदान में आ गईं. सास का भी एक हाथ सीने से सीधे नीचे, उन्होंने मेरी साड़ी उठा दी तो मैं क्यों पीछे रहती? मैंने भी उनकी साड़ी आगे से उठा दी...
अब सीधे देह से देह, होली की मस्ती में चूर अब सास-बहु हम लोग भूल चुके थे. अब सिर्फ देह के रस में डूबे हम मस्ती में बेचैन. मैं लेकिन अकेले नहीं थी.