05-11-2019, 11:58 AM
अरुण भी जानता था इस वक़्त उसकी बीवी घर पर नही है, अंदर आने के बाद उसने चोकीदार से निमेश के बारे में भी पूछ लिया था, वो भी नही था, इसलिए उसका रास्ता सॉफ था..
अंदर आने के बाद जब उसने दरवाजा खड़काया तो वो अपने आप ही खुल गया…
सामने गीली साड़ी में नम्रता अपने कपड़े निकाल रही थी..
उसके गीले जिस्म से आ रही भीनी खुशबू ने उसे पागल सा बना दिया.. वो समझ गया की वो अभी नहा कर आई है, काश वो कुछ देर पहले आया होता वहां पर तो उसे सुबह की तरह नहाते हुए देख पाता…..
लेकिन अब उसे नम्रता को अपने जाल में फंसाना था, और एक प्लान उसके दिमाग में आलरेडी आ चुका था
नम्रता भी अपने मालिक को इस तरह अपने कमरे के बाहर खड़ा देखकर चोंक सी गयी..
नम्रता : “अरे …सरजी आप….. मुझे बुला लिया होता…. मैं आ जाती…”
अरुण तो उसके गीले बदन से झाँक रहे अंगो को देखने में बिजी था.. खासकर गीली साड़ी नीचे उभर रहे काले बेरों को
वो हड़बड़ाकार बोला : “वो दरअसल…मुझे…चाय पीनी थी…मैने आवाज़ भी दी..पर तुमने शायद सुनी नही…इसलिए देखने चला आया…”
नम्रता : “ओहो…. वो मैं नहा रही थी ना… इसलिए…”
अरुण उसके बदन को घूरता हुआ बोला : “नहा रही थी… इस वक़्त भी… सुबह ही तो नहाई थी…”
और कोई होता तो झट्ट से बोल देता की आपने कब देखा मुझे सुबह नहाते हुए… पर नम्रता थी एक नंबर की बोडम महिला…
वो बोली : “वो क्या है ना सरजी… मुझे दिन में दो बार नहाने की आदत है… एक बार तो सुबा 5 बजे उठकर नहाती हूँ … और दूसरी बार शाम को 4 बजे ” नम्रता ने बड़ी मासूमियत से अपने नहाने का टाइम टेबल अरुण को दे डाला..
अरुण फुसफुसाया : “और क्या -2 करती हो…”
नम्रता : “जी मालिक, कुछ कहा क्या आपने…?”
अरुण : “अर्रे नही…वो मैं कह रहा था की चाय पीने का मन था…सो”
नम्रता : “ओह्ह …मैं भूल ही गयी… आप चलिए अपने कमरे में …मैं कपड़े पहन कर, चाय बनाकर लाती हूँ बस…”
अरुण मन में बोला ‘हाय , कपड़े पहनने की क्या जरूरत है मेरी जान, नंगी ही आ जा ‘
अब अरुण का मन तो नही कर रहा था वहां से जाने का, पर फिर भी चल दिया वापिस.
नम्रता ने फटाफट अपने कपड़े पहने और अपने मालिक के लिए चाय बनाकर ले आई.. अरुण भी अपने कपड़े चेंज करके चेयर पर बैठा था..
हमेशा की तरह नम्रता ने एक कॉटन की साड़ी पहनी हुई थी इस वक़्त…
उसकी कमर का नंगा हिस्सा इस वक़्त अरुण को काफ़ी उत्तेजित कर रहा था…
चाय देकर जैसे ही वो जाने लगी तो अरुण बोला : “सुनो नम्रता…वो तुमसे एक ज़रूरी बात करनी थी…”
”जी मालिक”
अरुण : “बैठ जाओ..”
उसने कुर्सी की तरफ इशारा किया पर वो ज़मीन पर पालती मारकर बैठ गयी..
अरुण : “मैने सुना है की तुम्हारा पति कोई काम धंदा नही करता…”
अपने मालिक की बात सुनकर वो रुन्वासी सी हो गयी…
उसे लगा की शायद वो उन्हे घर से निकालने की बात करेंगे..
वो बोली : “नही मालिक…वो..उनकी समझ मे..कुछ आता ही नही…मैं तो समझाकर थक चुकी हूँ ”
अरुण : “और सुना है वो दारू भी पीता है…जुआ भी खेलता है..”
अब तो सच में उसे डर लगने लगा था…
वो थोड़ा आगे खिसक आई और अरुण के पैर पकड़ कर बोली : “मालिक…मैने आज ही उसे समझाया है…आप चिंता ना करो..वो अपनी आदतो को जल्दी ही बदल देगा..आप मेरा विश्वास कीजिए..”
अरुण ने उसकी बाहे पकड़कर उसे उपर उठा लिया… और खुद भी खड़ा हो गया.. और उसे लगभग अपने बदन से सटा कर बोला : “अरे नही नम्रता… मेरा वो मतलब नही था.. मैं तो चाह रहा था की वो कोई काम करे..इन्फेक्ट मैं तो सोच रहा था की उसे तुम्हारी संजना मेडम का ड्राइवर रख लूं … कुछ पैसे भी आएँगे तुम लोगो के पास और उसकी आदते भी सुधर जाएँगी…”
ये सुनते ही नम्रता की आँखो में आँसू आ गये…
पहले संजना मेडम ने उनपर ये उपकार किया था की उन्हे रहने की जगह दे दी और अब उनके पति निमेश को भी नौकरी दे रहे है… एक दम से दुगनी खुशी के एहसास जैसा था ये सब..
इसी बीच अरुण के हाथ उसकी कमर के उसी नंगे हिस्से पर थे जहां से उसके शरीर का कर्व शुरू होता था… यानी पेट से नीचे की फेलावट…
वो उसपर अपने हाथो को लगभग धँसाता हुआ सा बोला : “और उसकी सेलेरी होगी 15000”
इतने पैसे सुनकर तो उसकी आँखे और भी ज़्यादा फेल गयी…
उसे खुद 10 हज़ार मिलते थे.. जिसमें वो अभी तक दोनो का खर्चा चला रही थी..
उपर से ये 15 हज़ार और मिलने लगे तो उनकी जिंदगी कितनी सुधर सकती है, ये सोचकर वो खुशी से मरी जा रही थी.
उसे इस बात का एहसास तक नही हो रहा था की अरुण उसकी कमर के गुदाज हिस्से को मसल रहा है..
अरुण तो तभी समझ गया की वो कितनी झल्ली किस्म की औरत है, इसे चोदने में कितना मज़ा आने वाला है, ये उसने सोचना शुरू कर दिया.
पर वो ये काम बड़े आराम और इत्मीनान से करना चाहता था…
नम्रता अब उसके लिए उस मछली की तरह थी जो बाहर के समुंदर से निकलकर उसके स्वीमिंग पूल में आ चुकी थी, जिसे वो जब चाहे, काँटा डालकर पकड़ सकता था…
उसके साथ खेल सकता था…
उसका मज़ा ले सकता था.
इसलिए अभी के लिए उसने उसे जाने दिया…
वो नम्रता को पहले अपने एहसानो के नीचे दबा लेना चाहता था, उसके बाद ही अपनी चाल चलनी थी उसे ताकि नम्रता चाहकर भी उसकी बीवी से कुछ ना बोल सके.
दूसरी तरफ निमेश फिर से अपनी चॉल में पहुँच चुका था, उसके सारे अय्याश दोस्त वहीं जो रहते थे…
आज निमेश अपनी बीवी के पार्स में से 2000 रुपय लेकर आया था… और उसे किसी भी कीमत पर कल की हार का बदला लेना था गनेश से.
एक बार फिर से बाजी लगनी शुरू हो गयी…
निमेश ने ज़्यादा रिस्क नही लिया शुरू में, इसलिए बिना कोई ब्लाइंड चले ही वो पत्ते देख लेता, अच्छे आते तो चाल चलता वरना पैक कर देता..
और इसी समझदारी की वजह से उसने जल्द ही 2 के 10 हज़ार कर लिए…
और फिर वो मौका भी आ गया जिसके लिए वो आज वहां आया था, एक गेम फँस गयी, जिसमें दोनो चाल पे चाल चलते चले गये… अंत में आकर दोनो के पास 1-1 हज़ार रुपय बचे.. पर आज निमेश कल वाली भूल नही करना चाहता था, इसलिए आख़िरी के 1 हज़ार बीच में फेंककर उसने शो माँग लिया.. निमेश के पास आज कलर आया था, जबकि गनेश के पास इक्के का पेयर था.
निमेश ने जोरदार ठहाका लगाते हुए सारे पैसे अपनी तरफ कर लिए…
कल का बदला अच्छे से ले लिया था उसने.. निमेश की जेब में इस वक़्त 20 हज़ार रुपय थे…
उस खुशी में वो अपने चेले चपाटों को लेकर सीधा दारू के अड्डे पर गया और वहां सबने जी भरकर दारू पी.
ऑटो से जब वो वापिस कोठी पर पहुँचा तो उसे सुबह अपनी पत्नी की दी गयी नसीहात याद आ गयी…
इसलिए बिना कोई शोर शराबा और हरकत किए वो अंदर आ गया… अपनी बाल्कनी में बैठे अरुण ने उसे लड़खड़ाते हुए अंदर आते देखा और मुस्कुरा दिया… उसने सोचा की ऐसी हालत में आकर वो भला क्या कर पाता होगा अपनी पत्नी के साथ..इसलिए शायद नम्रता प्यासी रह जाती होगी… ऐसे में उसे चोदना कितना आसान होगा
उसने सोचा की चलकर देखना चाहिए की पीने के बाद निमेश अपनी बीवी के साथ कैसा व्यवहार करता है, संजना गहरी नींद में थी, वो चुपचाप कोठी के पिछले हिस्से में पहुँच गया, और उनके क्वाटर के पीछे की तरफ जाकर वहां की खिड़की से अंदर झाँकने लगा..उन्होने भी खिड़की खुली छोड़ रखी थी, वहां से भला कौन देख पाएगा, शायद यही सोच थी… अरुण एक बड़े से पौधे की आड़ में खड़ा होकर उन्हे देखने लगा.
निमेश अपने कपड़े उतार रहा था और नम्रता बड़बड़ाते हुए उसके लिए खाना गर्म कर रही थी.
वो बोले जा रही थी ‘पता नही कब समझोगे, मालिक और मालकिन कितने अच्छे है, हमे रहने को घर दिया, अच्छी तनख़्वा दे रहे है, तुम्हे भी साब ने ड्राइवर की नौकरी देने की बात की है, पर तुम अपनी इस शराब और जुए की आदत से सब डुबो दोगे…”
वो शराब के नशे में लड़खडाता हुआ पलटा, उसने सिर्फ़ एक कच्छा पहना हुआ था, उसके काले कलूटे शरीर को देखकर और उसकी निकली हुई तोंद को देखकर अरुण को घिन्न सी आ रही थी, नम्रता कैसे झेलती होगी इस गँवार को..
वो बोला : “चुप कर साली… तेरे साब मेमसाब् की माँ की चूत , मुझे क्या नौकरी देंगे वो दोनो, ये देख, 20 हज़ार रूपए जीते है आज, कितने पैसे देंगे तेरे ये साब-मेमसाब्, 10 हज़ार, 15 हज़ार या 20 हज़ार… पूरे महीने उनके सामने सलाम ठोंको फिर मिलेंगे… ये देख, एक ही रात में जीते है ये सारे पैसे…मुझसे नही होती किसी की गांड-गुलामी, बोल दियो अपने साहब को जाकर की कोई दूसरा ड्राइवर रख ले..”
और कोई मौका होता तो अरुण अपने बारे में गालियां सुनकर उसे जेल भिजवा देता, उसकी अच्छे से मरम्मत करवाता, पर इस वक़्त उसे नम्रता का लालच था, इसलिए खून का घूँट पीकर रह गया |
नम्रता भूनभूनाकर बोली : “हाँ हाँ , देखी है तेरी ये जुवे की कमाई, एक दिन जीतेगा तो दूसरे दिन दुगना हारकर आएगा, शराब और जुए ने तेरी मती भ्रष्ट कर रखी है…और वो नौकरी साब की गाड़ी चलाने की नही बल्कि मेमसाब् की गाड़ी चलाने की है”
”मेमसाब् यानी संजना…” उसने चोंकते हुए कहा.
अंदर आने के बाद जब उसने दरवाजा खड़काया तो वो अपने आप ही खुल गया…
सामने गीली साड़ी में नम्रता अपने कपड़े निकाल रही थी..
उसके गीले जिस्म से आ रही भीनी खुशबू ने उसे पागल सा बना दिया.. वो समझ गया की वो अभी नहा कर आई है, काश वो कुछ देर पहले आया होता वहां पर तो उसे सुबह की तरह नहाते हुए देख पाता…..
लेकिन अब उसे नम्रता को अपने जाल में फंसाना था, और एक प्लान उसके दिमाग में आलरेडी आ चुका था
नम्रता भी अपने मालिक को इस तरह अपने कमरे के बाहर खड़ा देखकर चोंक सी गयी..
नम्रता : “अरे …सरजी आप….. मुझे बुला लिया होता…. मैं आ जाती…”
अरुण तो उसके गीले बदन से झाँक रहे अंगो को देखने में बिजी था.. खासकर गीली साड़ी नीचे उभर रहे काले बेरों को
वो हड़बड़ाकार बोला : “वो दरअसल…मुझे…चाय पीनी थी…मैने आवाज़ भी दी..पर तुमने शायद सुनी नही…इसलिए देखने चला आया…”
नम्रता : “ओहो…. वो मैं नहा रही थी ना… इसलिए…”
अरुण उसके बदन को घूरता हुआ बोला : “नहा रही थी… इस वक़्त भी… सुबह ही तो नहाई थी…”
और कोई होता तो झट्ट से बोल देता की आपने कब देखा मुझे सुबह नहाते हुए… पर नम्रता थी एक नंबर की बोडम महिला…
वो बोली : “वो क्या है ना सरजी… मुझे दिन में दो बार नहाने की आदत है… एक बार तो सुबा 5 बजे उठकर नहाती हूँ … और दूसरी बार शाम को 4 बजे ” नम्रता ने बड़ी मासूमियत से अपने नहाने का टाइम टेबल अरुण को दे डाला..
अरुण फुसफुसाया : “और क्या -2 करती हो…”
नम्रता : “जी मालिक, कुछ कहा क्या आपने…?”
अरुण : “अर्रे नही…वो मैं कह रहा था की चाय पीने का मन था…सो”
नम्रता : “ओह्ह …मैं भूल ही गयी… आप चलिए अपने कमरे में …मैं कपड़े पहन कर, चाय बनाकर लाती हूँ बस…”
अरुण मन में बोला ‘हाय , कपड़े पहनने की क्या जरूरत है मेरी जान, नंगी ही आ जा ‘
अब अरुण का मन तो नही कर रहा था वहां से जाने का, पर फिर भी चल दिया वापिस.
नम्रता ने फटाफट अपने कपड़े पहने और अपने मालिक के लिए चाय बनाकर ले आई.. अरुण भी अपने कपड़े चेंज करके चेयर पर बैठा था..
हमेशा की तरह नम्रता ने एक कॉटन की साड़ी पहनी हुई थी इस वक़्त…
उसकी कमर का नंगा हिस्सा इस वक़्त अरुण को काफ़ी उत्तेजित कर रहा था…
चाय देकर जैसे ही वो जाने लगी तो अरुण बोला : “सुनो नम्रता…वो तुमसे एक ज़रूरी बात करनी थी…”
”जी मालिक”
अरुण : “बैठ जाओ..”
उसने कुर्सी की तरफ इशारा किया पर वो ज़मीन पर पालती मारकर बैठ गयी..
अरुण : “मैने सुना है की तुम्हारा पति कोई काम धंदा नही करता…”
अपने मालिक की बात सुनकर वो रुन्वासी सी हो गयी…
उसे लगा की शायद वो उन्हे घर से निकालने की बात करेंगे..
वो बोली : “नही मालिक…वो..उनकी समझ मे..कुछ आता ही नही…मैं तो समझाकर थक चुकी हूँ ”
अरुण : “और सुना है वो दारू भी पीता है…जुआ भी खेलता है..”
अब तो सच में उसे डर लगने लगा था…
वो थोड़ा आगे खिसक आई और अरुण के पैर पकड़ कर बोली : “मालिक…मैने आज ही उसे समझाया है…आप चिंता ना करो..वो अपनी आदतो को जल्दी ही बदल देगा..आप मेरा विश्वास कीजिए..”
अरुण ने उसकी बाहे पकड़कर उसे उपर उठा लिया… और खुद भी खड़ा हो गया.. और उसे लगभग अपने बदन से सटा कर बोला : “अरे नही नम्रता… मेरा वो मतलब नही था.. मैं तो चाह रहा था की वो कोई काम करे..इन्फेक्ट मैं तो सोच रहा था की उसे तुम्हारी संजना मेडम का ड्राइवर रख लूं … कुछ पैसे भी आएँगे तुम लोगो के पास और उसकी आदते भी सुधर जाएँगी…”
ये सुनते ही नम्रता की आँखो में आँसू आ गये…
पहले संजना मेडम ने उनपर ये उपकार किया था की उन्हे रहने की जगह दे दी और अब उनके पति निमेश को भी नौकरी दे रहे है… एक दम से दुगनी खुशी के एहसास जैसा था ये सब..
इसी बीच अरुण के हाथ उसकी कमर के उसी नंगे हिस्से पर थे जहां से उसके शरीर का कर्व शुरू होता था… यानी पेट से नीचे की फेलावट…
वो उसपर अपने हाथो को लगभग धँसाता हुआ सा बोला : “और उसकी सेलेरी होगी 15000”
इतने पैसे सुनकर तो उसकी आँखे और भी ज़्यादा फेल गयी…
उसे खुद 10 हज़ार मिलते थे.. जिसमें वो अभी तक दोनो का खर्चा चला रही थी..
उपर से ये 15 हज़ार और मिलने लगे तो उनकी जिंदगी कितनी सुधर सकती है, ये सोचकर वो खुशी से मरी जा रही थी.
उसे इस बात का एहसास तक नही हो रहा था की अरुण उसकी कमर के गुदाज हिस्से को मसल रहा है..
अरुण तो तभी समझ गया की वो कितनी झल्ली किस्म की औरत है, इसे चोदने में कितना मज़ा आने वाला है, ये उसने सोचना शुरू कर दिया.
पर वो ये काम बड़े आराम और इत्मीनान से करना चाहता था…
नम्रता अब उसके लिए उस मछली की तरह थी जो बाहर के समुंदर से निकलकर उसके स्वीमिंग पूल में आ चुकी थी, जिसे वो जब चाहे, काँटा डालकर पकड़ सकता था…
उसके साथ खेल सकता था…
उसका मज़ा ले सकता था.
इसलिए अभी के लिए उसने उसे जाने दिया…
वो नम्रता को पहले अपने एहसानो के नीचे दबा लेना चाहता था, उसके बाद ही अपनी चाल चलनी थी उसे ताकि नम्रता चाहकर भी उसकी बीवी से कुछ ना बोल सके.
दूसरी तरफ निमेश फिर से अपनी चॉल में पहुँच चुका था, उसके सारे अय्याश दोस्त वहीं जो रहते थे…
आज निमेश अपनी बीवी के पार्स में से 2000 रुपय लेकर आया था… और उसे किसी भी कीमत पर कल की हार का बदला लेना था गनेश से.
एक बार फिर से बाजी लगनी शुरू हो गयी…
निमेश ने ज़्यादा रिस्क नही लिया शुरू में, इसलिए बिना कोई ब्लाइंड चले ही वो पत्ते देख लेता, अच्छे आते तो चाल चलता वरना पैक कर देता..
और इसी समझदारी की वजह से उसने जल्द ही 2 के 10 हज़ार कर लिए…
और फिर वो मौका भी आ गया जिसके लिए वो आज वहां आया था, एक गेम फँस गयी, जिसमें दोनो चाल पे चाल चलते चले गये… अंत में आकर दोनो के पास 1-1 हज़ार रुपय बचे.. पर आज निमेश कल वाली भूल नही करना चाहता था, इसलिए आख़िरी के 1 हज़ार बीच में फेंककर उसने शो माँग लिया.. निमेश के पास आज कलर आया था, जबकि गनेश के पास इक्के का पेयर था.
निमेश ने जोरदार ठहाका लगाते हुए सारे पैसे अपनी तरफ कर लिए…
कल का बदला अच्छे से ले लिया था उसने.. निमेश की जेब में इस वक़्त 20 हज़ार रुपय थे…
उस खुशी में वो अपने चेले चपाटों को लेकर सीधा दारू के अड्डे पर गया और वहां सबने जी भरकर दारू पी.
ऑटो से जब वो वापिस कोठी पर पहुँचा तो उसे सुबह अपनी पत्नी की दी गयी नसीहात याद आ गयी…
इसलिए बिना कोई शोर शराबा और हरकत किए वो अंदर आ गया… अपनी बाल्कनी में बैठे अरुण ने उसे लड़खड़ाते हुए अंदर आते देखा और मुस्कुरा दिया… उसने सोचा की ऐसी हालत में आकर वो भला क्या कर पाता होगा अपनी पत्नी के साथ..इसलिए शायद नम्रता प्यासी रह जाती होगी… ऐसे में उसे चोदना कितना आसान होगा
उसने सोचा की चलकर देखना चाहिए की पीने के बाद निमेश अपनी बीवी के साथ कैसा व्यवहार करता है, संजना गहरी नींद में थी, वो चुपचाप कोठी के पिछले हिस्से में पहुँच गया, और उनके क्वाटर के पीछे की तरफ जाकर वहां की खिड़की से अंदर झाँकने लगा..उन्होने भी खिड़की खुली छोड़ रखी थी, वहां से भला कौन देख पाएगा, शायद यही सोच थी… अरुण एक बड़े से पौधे की आड़ में खड़ा होकर उन्हे देखने लगा.
निमेश अपने कपड़े उतार रहा था और नम्रता बड़बड़ाते हुए उसके लिए खाना गर्म कर रही थी.
वो बोले जा रही थी ‘पता नही कब समझोगे, मालिक और मालकिन कितने अच्छे है, हमे रहने को घर दिया, अच्छी तनख़्वा दे रहे है, तुम्हे भी साब ने ड्राइवर की नौकरी देने की बात की है, पर तुम अपनी इस शराब और जुए की आदत से सब डुबो दोगे…”
वो शराब के नशे में लड़खडाता हुआ पलटा, उसने सिर्फ़ एक कच्छा पहना हुआ था, उसके काले कलूटे शरीर को देखकर और उसकी निकली हुई तोंद को देखकर अरुण को घिन्न सी आ रही थी, नम्रता कैसे झेलती होगी इस गँवार को..
वो बोला : “चुप कर साली… तेरे साब मेमसाब् की माँ की चूत , मुझे क्या नौकरी देंगे वो दोनो, ये देख, 20 हज़ार रूपए जीते है आज, कितने पैसे देंगे तेरे ये साब-मेमसाब्, 10 हज़ार, 15 हज़ार या 20 हज़ार… पूरे महीने उनके सामने सलाम ठोंको फिर मिलेंगे… ये देख, एक ही रात में जीते है ये सारे पैसे…मुझसे नही होती किसी की गांड-गुलामी, बोल दियो अपने साहब को जाकर की कोई दूसरा ड्राइवर रख ले..”
और कोई मौका होता तो अरुण अपने बारे में गालियां सुनकर उसे जेल भिजवा देता, उसकी अच्छे से मरम्मत करवाता, पर इस वक़्त उसे नम्रता का लालच था, इसलिए खून का घूँट पीकर रह गया |
नम्रता भूनभूनाकर बोली : “हाँ हाँ , देखी है तेरी ये जुवे की कमाई, एक दिन जीतेगा तो दूसरे दिन दुगना हारकर आएगा, शराब और जुए ने तेरी मती भ्रष्ट कर रखी है…और वो नौकरी साब की गाड़ी चलाने की नही बल्कि मेमसाब् की गाड़ी चलाने की है”
”मेमसाब् यानी संजना…” उसने चोंकते हुए कहा.