05-11-2019, 11:40 AM
गनेश ने ये कहते हुए एक मटमेला सा 500 का नोट बीच में फेंक दिया…
सामने बैठे अरुण और जित्तू तो उसके कॉन्फिडेंस को देखते ही पेक कर गये…
पर निमेश डटा रहा.
उसने देसी शराब का भरा हुआ ग्लास एक ही बार में खाली किया और 500 का नोट बीच में फेंक कर चाल चल ही दी…
पर शराब नशे में वो ये भूल गया की उसे इस वक़्त शो माँगना चाहिए था..
इस वक़्त जो जुआ चल रहा था, उसमें करीब 8 हज़ार रुपय बीच में आ चुके थे.
और अपने आख़िरी 500 के नोट के बाद निमेश के पास लगाने के लिए कुछ भी नही था… | हालाँकि उसे अपने पत्तो पर पूरा भरोसा था…इसलिए वो किसी भी कीमत पर , सब कुछ लगाकर ये गेम जीतना चाहता था.
पर पत्तो और नशे के चक्कर में उसका दाँव उल्टा ही पड़ गया, अब उसके पास शो माँगने के भी पैसे नही थे….
इसलिए जैसे ही गनेश ने अगली चाल चली, निमेश के पसीने छूट गये….
अपनी बीवी से लाए सारे पैसे वो हार चुका था, और ये वो पैसे थे जो उसे आज किसी भी कीमत पर अपने मकान मलिक को देने थे…
पर अब कुछ नही हो सकता था, उसे पता था की वहां बैठा कोई भी शख्स उसे पैसे नही देगा, ये रूल था वहां का.
इसलिए झक्क मारकर उसे पेक करना पड़ा… वो सारे पैसे जुए मे हार चुका था…. गनेश ने जोरदार ठहाका लगाते हुए वो सारे पैसे अपनी तरफ कर लिए.
निमेश ने उसके पत्ते उठा कर देखे, उसके पास पान का कलर था, जबकि निमेश के पास सीक़वेंस आया था….
इतने अच्छे पत्ते होने के बावजूद उसे ये भी ध्यान नही रहा की कब शो माँगना था…
अपनी बेवकूफी से वो अपने साथ लाए सारे पैसे हार चुका था…. उसने कसम खायी बाद जुए और नशे को कभी मिक्स नही करेगा
मुँह लटका कर वो घर पहुचा, उसकी बीवी दरवाजे पर ही खड़ी थी…और साथ में था खोली का मालिक गजेन्द्र…
गजेन्द्र ने पैसे माँगे और निमेश ने मुँह लटका लिया… नम्रता ने अपना माथा पीट लिया.
फिर वही हुआ, जिसकी धमकी उन्हे पिछले 4 महीनो से मिल रही थी…
गजेन्द्र ने 2-4 भद्दी सी गाली देते हुए उन्हे कल ही कल खोली खाली करने को कहा…
गजेन्द्र के जाने के बाद नम्रता ने जब निमेश को बोलना शुरू किया तो उसने एक उल्टे हाथ का रख दिया उसके चेहरे पर…बेचारी वहीं सुबकती रह गयी… उसे रोता हुआ छोड़कर वो फिर से दारू के अड्डे की तरफ चल दिया.
अब नम्रता के पास सिर छुपाने के लिए छत्त भी नही थी… इसलिए उसने गाँव जाने में ही भलाई समझी… उसने अपना सारा सामान बाँध लिया..
हाथ के खर्चे के लिए उसे कुछ पैसे चाहिए थे, अभी संजना मेडम की तरफ 10 दिन का हिसाब निकलता था, जो रास्ते के लिए बहुत थे… वो उनके पास गयी और उन्हे सारी गाथा सुनाई…
संजना चुपचाप अंदर गयी और उसके 10 दिन के पैसे लाकर उसके हाथ में रख दिए…
जब वो चलने को हुई तो मेडम ने पीछे से उसे पुकारा और बोली : “अब जल्दी से जा और सारा समान लेकर यही आ जा…पीछे जो सुर्वेंट क्वाटर है, उसमे रह लेना तुम दोनो…”
ये सुनते ही वो एक झटके से पलटी…
संजना ने मुस्कुराते हुए सिर हिला कर उसे वो करने को कहा…
बेचारी रोते-2 उसके कदमों में गिर गयी….
उसे बड़ी मुश्किल से चुप करा कर संजना ने उसे घर भेजा…
शाम तक वो एक ऑटो में ज़रूरत का सारा समान लेकर निमेश के साथ वहां शिफ्ट हो गयी.
उनके आलीशान बंगले के ठीक पीछे एक छोटा सा लॉन था, और साइड में एक क्वाटर बना रखा था उन्होने, पहले वहां जित्तू काका रहा करते थे, पर उनके मरने के बाद वो करीब 1 साल से ऐसे ही पड़ा था…
पूरे दिन की सफाई के बाद नम्रता ने उस 2 कमरे के क्वाटर को चमका डाला…
बस एक परेशानी थी वहां , अंदर बाथरूम नही था…
क्वाटर के साइड में एक नलका था, जिसके आगे एक छोटी सी दीवार थी, बस उसी की आड़ में बैठकर नहाया जा सकता था… टाय्लेट ठीक उसके पीछे था.
सामने बैठे अरुण और जित्तू तो उसके कॉन्फिडेंस को देखते ही पेक कर गये…
पर निमेश डटा रहा.
उसने देसी शराब का भरा हुआ ग्लास एक ही बार में खाली किया और 500 का नोट बीच में फेंक कर चाल चल ही दी…
पर शराब नशे में वो ये भूल गया की उसे इस वक़्त शो माँगना चाहिए था..
इस वक़्त जो जुआ चल रहा था, उसमें करीब 8 हज़ार रुपय बीच में आ चुके थे.
और अपने आख़िरी 500 के नोट के बाद निमेश के पास लगाने के लिए कुछ भी नही था… | हालाँकि उसे अपने पत्तो पर पूरा भरोसा था…इसलिए वो किसी भी कीमत पर , सब कुछ लगाकर ये गेम जीतना चाहता था.
पर पत्तो और नशे के चक्कर में उसका दाँव उल्टा ही पड़ गया, अब उसके पास शो माँगने के भी पैसे नही थे….
इसलिए जैसे ही गनेश ने अगली चाल चली, निमेश के पसीने छूट गये….
अपनी बीवी से लाए सारे पैसे वो हार चुका था, और ये वो पैसे थे जो उसे आज किसी भी कीमत पर अपने मकान मलिक को देने थे…
पर अब कुछ नही हो सकता था, उसे पता था की वहां बैठा कोई भी शख्स उसे पैसे नही देगा, ये रूल था वहां का.
इसलिए झक्क मारकर उसे पेक करना पड़ा… वो सारे पैसे जुए मे हार चुका था…. गनेश ने जोरदार ठहाका लगाते हुए वो सारे पैसे अपनी तरफ कर लिए.
निमेश ने उसके पत्ते उठा कर देखे, उसके पास पान का कलर था, जबकि निमेश के पास सीक़वेंस आया था….
इतने अच्छे पत्ते होने के बावजूद उसे ये भी ध्यान नही रहा की कब शो माँगना था…
अपनी बेवकूफी से वो अपने साथ लाए सारे पैसे हार चुका था…. उसने कसम खायी बाद जुए और नशे को कभी मिक्स नही करेगा
मुँह लटका कर वो घर पहुचा, उसकी बीवी दरवाजे पर ही खड़ी थी…और साथ में था खोली का मालिक गजेन्द्र…
गजेन्द्र ने पैसे माँगे और निमेश ने मुँह लटका लिया… नम्रता ने अपना माथा पीट लिया.
फिर वही हुआ, जिसकी धमकी उन्हे पिछले 4 महीनो से मिल रही थी…
गजेन्द्र ने 2-4 भद्दी सी गाली देते हुए उन्हे कल ही कल खोली खाली करने को कहा…
गजेन्द्र के जाने के बाद नम्रता ने जब निमेश को बोलना शुरू किया तो उसने एक उल्टे हाथ का रख दिया उसके चेहरे पर…बेचारी वहीं सुबकती रह गयी… उसे रोता हुआ छोड़कर वो फिर से दारू के अड्डे की तरफ चल दिया.
अब नम्रता के पास सिर छुपाने के लिए छत्त भी नही थी… इसलिए उसने गाँव जाने में ही भलाई समझी… उसने अपना सारा सामान बाँध लिया..
हाथ के खर्चे के लिए उसे कुछ पैसे चाहिए थे, अभी संजना मेडम की तरफ 10 दिन का हिसाब निकलता था, जो रास्ते के लिए बहुत थे… वो उनके पास गयी और उन्हे सारी गाथा सुनाई…
संजना चुपचाप अंदर गयी और उसके 10 दिन के पैसे लाकर उसके हाथ में रख दिए…
जब वो चलने को हुई तो मेडम ने पीछे से उसे पुकारा और बोली : “अब जल्दी से जा और सारा समान लेकर यही आ जा…पीछे जो सुर्वेंट क्वाटर है, उसमे रह लेना तुम दोनो…”
ये सुनते ही वो एक झटके से पलटी…
संजना ने मुस्कुराते हुए सिर हिला कर उसे वो करने को कहा…
बेचारी रोते-2 उसके कदमों में गिर गयी….
उसे बड़ी मुश्किल से चुप करा कर संजना ने उसे घर भेजा…
शाम तक वो एक ऑटो में ज़रूरत का सारा समान लेकर निमेश के साथ वहां शिफ्ट हो गयी.
उनके आलीशान बंगले के ठीक पीछे एक छोटा सा लॉन था, और साइड में एक क्वाटर बना रखा था उन्होने, पहले वहां जित्तू काका रहा करते थे, पर उनके मरने के बाद वो करीब 1 साल से ऐसे ही पड़ा था…
पूरे दिन की सफाई के बाद नम्रता ने उस 2 कमरे के क्वाटर को चमका डाला…
बस एक परेशानी थी वहां , अंदर बाथरूम नही था…
क्वाटर के साइड में एक नलका था, जिसके आगे एक छोटी सी दीवार थी, बस उसी की आड़ में बैठकर नहाया जा सकता था… टाय्लेट ठीक उसके पीछे था.