04-11-2019, 09:33 AM
(This post was last modified: 04-11-2019, 03:53 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
नया नया स्वाद
सलहज ने बोला-
“जड़ तक लण्ड घुसेड़े-घुसेड़े, मथानी की तरह उसे मिनट तक गोल घुमाएं। लेकिन उनकी सलहज ने लण्ड निकालने नहीं दिया।
उनकी नयी नवेली कमसिन सालियां भले ही न समझ पायी हों, लेकिन मैं तो अपनी ससुराल में होली का पूरा मजा ले आई थी,
समझ गई की रितू भाभी के इरादे क्या हैं?
और उन्होंने अपनी छोटी ननद रीमा को काम पे लगा दिया की वो अपने जीजू का मस्त मोटा लण्ड पकड़कर, गोल-गोल, लीला की गाण्ड में घुमाए।
जबरदस्त गाण्ड मराई और तीन बार झड़ने के बाद लीला की हालत एकदम पस्त थी। इसलिए जब उन्होंने लण्ड निकाला और रितू भाभी और रीमा ने मिलकर लिटा दिया तो लीला चुपचाप लस्त पस्त लेट गई।
रितू भाभी ने कुछ उनके कान में कहा और फिर।
अबकी उनकी साली रीमा और सलहज दोनों थी, लीला का मुँह खुलवाने के लिए, एक ने नाक बंद की और दूसरे ने जबड़ा दबाया, सर सीधा किया, बिचारी ने मुंह खोल दिया।
लेकिन जब उसकी गाण्ड से निकला लण्ड, गाण्ड के रस में लिथड़ा, उसकी मक्खन मलाई से चुपड़ा, सुपाड़े से लेकर जड़ तक (इसीलिए उनकी सलहज ने मथानी चलवाई थी, जिससे लण्ड की मलाई और गाण्ड का…)
लीला लाख छटपटाती रही लेकिन रितू भाभी छोड़ने वाली नहीं थी। ऊपर से गालियां-
“साली, छिनार, मेरे नंदोई का लण्ड सटासट बुर में घोंट गई, गाण्ड में लील गई, वो भी जड़ तक, तो मुँह में लेने में क्यों छिनालपना कर रही है, चूत मरानो, भाईचोदी। ले चुपचाप, चाट चूस…”
वो लाख सर पटकती रही, लेकिन रितू भाभी की पकड़ सँड़सी से भी मजबूत। और वो भी, सुपाड़े पे ‘जो कुछ भी था’ पहले उन्होंने लीला के होंठों पे आराम से, बिना किसी जल्दी के, धीरे-धीरे लिपस्टिक की तरह लगाया।
वो बिचारी छटपटा रही थी, और कुछ नहीं हुआ तो उसने अपनी हिरनी जैसी बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें बंद कर ली।
तब तक वो सुपाड़ा अंदर ठेल चुके थे, लेकिन बाकी का 6” इंच, लिथड़ा चुपड़ा बाहर ही था।
उनकी सलहज इतनी आसानी से अपनी ननद को थोड़े ही छोड़ देतीं। उन्होंने उसकी कच्ची अमियां की घुंडियों को जोर से मरोड़ा और डांटा-
“आँख खोल छिनार, जरा मेरे नंदोई के लण्ड का रंग तो देख। अगर आँख झपकी तो मुझे बहुत तरीके आते हैं। चूस ठीक से मजे लेकर…”
बिचारी ने झट से आँख खोल दी, अपने जीजू के मक्खन मलाई लगे लण्ड को देखा और चूसना शुरू कर दिया।
थोड़ी देर में पूरा लण्ड लीला के मुँह में था और वो रस ले लेकर चूस रही थी, चाट रही थी।
और उसकी भौजी उसे प्यार से समझा रही थीं-
“अरे यार, तेरी गाण्ड का ही तो है, पहला जमाना होता न तो इसके साथ मैं भी तुझे अपना रस चखाती, चाट ले प्यार से…”
और मुझे अपने ससुराल की होली याद आ रही थी।
पहला जमाना क्या, अभी बीते परसों ही तो… पहले तो नन्दोई जी ने मेरी गाण्ड हचक के मार के, सीधे मेरे मुँह में… ननद के पिछवाड़े का…
अंत में ननद खुद चूतड़ फैलाकर मेरे मुँह पे…
और ऊपर से ये वार्निंग भी की भाभी अभी तो ट्रेलर है, असली रगड़ाई रंगपंचमी में।
और छुटकी भी अब मेरे साथ चल रही थी।
उसकी तो मुझसे भी दूनी दुर्गत, ननदें, नन्दोई और गाँव के सारे लड़के, आखिर छुटकी नइकी भौजी की बहन है।
मेरा ध्यान वापस लीला की आवाज ने खिंचा। वो अपने कपड़े ठीक कर रहे थे और लीला को भाभी और रीमा ने मिलकर खड़ा कर दिया था।
छुटकी उसके कपड़े दे रही थी।
लीला हँसते हुए बोल रही थी-
“अरी पगली तेरी जैसी साली होगी तो खुद दौड़ते आएंगे। और हाँ रही मेरी बात तो ससुराल में ये पूरी तरह साली, सलहज के हवाले रहेंगे। मैं पूरी तरह छुट्टी मनाऊँगी, आखिर मुझे भी तो आराम चाहिए…”
उसके गाल पे चुटकी काटते हुए मैंने प्यार से कहा।
वो और रीमा अपने जीजा से चलने के पहले गले मिलीं। लीला से चला नहीं जा रहा था।
रीमा सहारा देकर उसे ले गई।
रितू भाभी अब छुटकी की ओर देख रही थीं और मुश्कुरा रही थीं।
छुटकी भी समझ रही थी,
वो अभी भी बची थी।
सलहज ने बोला-
“जड़ तक लण्ड घुसेड़े-घुसेड़े, मथानी की तरह उसे मिनट तक गोल घुमाएं। लेकिन उनकी सलहज ने लण्ड निकालने नहीं दिया।
उनकी नयी नवेली कमसिन सालियां भले ही न समझ पायी हों, लेकिन मैं तो अपनी ससुराल में होली का पूरा मजा ले आई थी,
समझ गई की रितू भाभी के इरादे क्या हैं?
और उन्होंने अपनी छोटी ननद रीमा को काम पे लगा दिया की वो अपने जीजू का मस्त मोटा लण्ड पकड़कर, गोल-गोल, लीला की गाण्ड में घुमाए।
जबरदस्त गाण्ड मराई और तीन बार झड़ने के बाद लीला की हालत एकदम पस्त थी। इसलिए जब उन्होंने लण्ड निकाला और रितू भाभी और रीमा ने मिलकर लिटा दिया तो लीला चुपचाप लस्त पस्त लेट गई।
रितू भाभी ने कुछ उनके कान में कहा और फिर।
अबकी उनकी साली रीमा और सलहज दोनों थी, लीला का मुँह खुलवाने के लिए, एक ने नाक बंद की और दूसरे ने जबड़ा दबाया, सर सीधा किया, बिचारी ने मुंह खोल दिया।
लेकिन जब उसकी गाण्ड से निकला लण्ड, गाण्ड के रस में लिथड़ा, उसकी मक्खन मलाई से चुपड़ा, सुपाड़े से लेकर जड़ तक (इसीलिए उनकी सलहज ने मथानी चलवाई थी, जिससे लण्ड की मलाई और गाण्ड का…)
लीला लाख छटपटाती रही लेकिन रितू भाभी छोड़ने वाली नहीं थी। ऊपर से गालियां-
“साली, छिनार, मेरे नंदोई का लण्ड सटासट बुर में घोंट गई, गाण्ड में लील गई, वो भी जड़ तक, तो मुँह में लेने में क्यों छिनालपना कर रही है, चूत मरानो, भाईचोदी। ले चुपचाप, चाट चूस…”
वो लाख सर पटकती रही, लेकिन रितू भाभी की पकड़ सँड़सी से भी मजबूत। और वो भी, सुपाड़े पे ‘जो कुछ भी था’ पहले उन्होंने लीला के होंठों पे आराम से, बिना किसी जल्दी के, धीरे-धीरे लिपस्टिक की तरह लगाया।
वो बिचारी छटपटा रही थी, और कुछ नहीं हुआ तो उसने अपनी हिरनी जैसी बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें बंद कर ली।
तब तक वो सुपाड़ा अंदर ठेल चुके थे, लेकिन बाकी का 6” इंच, लिथड़ा चुपड़ा बाहर ही था।
उनकी सलहज इतनी आसानी से अपनी ननद को थोड़े ही छोड़ देतीं। उन्होंने उसकी कच्ची अमियां की घुंडियों को जोर से मरोड़ा और डांटा-
“आँख खोल छिनार, जरा मेरे नंदोई के लण्ड का रंग तो देख। अगर आँख झपकी तो मुझे बहुत तरीके आते हैं। चूस ठीक से मजे लेकर…”
बिचारी ने झट से आँख खोल दी, अपने जीजू के मक्खन मलाई लगे लण्ड को देखा और चूसना शुरू कर दिया।
थोड़ी देर में पूरा लण्ड लीला के मुँह में था और वो रस ले लेकर चूस रही थी, चाट रही थी।
और उसकी भौजी उसे प्यार से समझा रही थीं-
“अरे यार, तेरी गाण्ड का ही तो है, पहला जमाना होता न तो इसके साथ मैं भी तुझे अपना रस चखाती, चाट ले प्यार से…”
और मुझे अपने ससुराल की होली याद आ रही थी।
पहला जमाना क्या, अभी बीते परसों ही तो… पहले तो नन्दोई जी ने मेरी गाण्ड हचक के मार के, सीधे मेरे मुँह में… ननद के पिछवाड़े का…
अंत में ननद खुद चूतड़ फैलाकर मेरे मुँह पे…
और ऊपर से ये वार्निंग भी की भाभी अभी तो ट्रेलर है, असली रगड़ाई रंगपंचमी में।
और छुटकी भी अब मेरे साथ चल रही थी।
उसकी तो मुझसे भी दूनी दुर्गत, ननदें, नन्दोई और गाँव के सारे लड़के, आखिर छुटकी नइकी भौजी की बहन है।
मेरा ध्यान वापस लीला की आवाज ने खिंचा। वो अपने कपड़े ठीक कर रहे थे और लीला को भाभी और रीमा ने मिलकर खड़ा कर दिया था।
छुटकी उसके कपड़े दे रही थी।
लीला हँसते हुए बोल रही थी-
“अरी पगली तेरी जैसी साली होगी तो खुद दौड़ते आएंगे। और हाँ रही मेरी बात तो ससुराल में ये पूरी तरह साली, सलहज के हवाले रहेंगे। मैं पूरी तरह छुट्टी मनाऊँगी, आखिर मुझे भी तो आराम चाहिए…”
उसके गाल पे चुटकी काटते हुए मैंने प्यार से कहा।
वो और रीमा अपने जीजा से चलने के पहले गले मिलीं। लीला से चला नहीं जा रहा था।
रीमा सहारा देकर उसे ले गई।
रितू भाभी अब छुटकी की ओर देख रही थीं और मुश्कुरा रही थीं।
छुटकी भी समझ रही थी,
वो अभी भी बची थी।