04-11-2019, 09:29 AM
(This post was last modified: 04-11-2019, 03:39 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
फट्ट गईई
और लीला की भी खूब जोर से कभी चीख निकल जाती, तो कभी कराह, जब जोर से दरेरते, रगड़ते मोटा लण्ड उनका गाण्ड में अंदर-बाहर होता।
मैं भी उनके बगल में खड़ी, रितू भाभी से सटी कभी गाण्ड मराई का मजा देखती तो कभी उनकी मस्त गदराई सलहज की शरारतें।
रितू भाभी अपनी ब्रा विहीन, होली में गीले जोबन से चिपकी चोली का मजा अपने नन्दोई को पीठ पे रगड़ रही थीं, और मैंने भी, आखिर मेरी भाभी थी, उनके बचे हुए दो हुक खोल दिए।
अब सलहज की बड़ी गदराई चूचियां, सीधे नन्दोई की पीठ पे रगड़ घिस कर रही थी।
साथ-साथ उनके दोनों हाथ, एक झुकी हुई ननद की कच्ची अमियां पे और दूसरा अपने नन्दोई के चूतड़ के बीच की दरार पे, और कभी वो मीठी गालियां सीधे देतीं, तो कभी उनके इयर लोब्स की किस्सी ले लेतीं, या हलके से काट लेतीं।
तभी, भाभी की निगाह, अपने नन्दोई के लण्ड पे पड़ गई। वो जोर-जोर से हचक के धक्के मार रहे थे लेकिन, करीब 7” इंच अंदर रहा होगा और दो इंच अभी भी बाहर था।
बस, वो उबल पड़ीं। सीधे, नंदोई के पिछवाड़े के छेद पे उंगली दबाते हुए जोर से बोलीं-
“साल्ले, अपनी बहन के भँड़वे, बहनचोद, ये बाकी लण्ड किसके लिए बचा रखा है, अपनी रंडी बहनों के लिए। डाल पूरा…”
अब मैं मैदान में आ गई-
“नहीं भौजी, अरे इनकी छिनार बहनों को चोदने के लिए इनके साले और हमारे भाई हैं ना…”
“अरे नहीं दीदी… ये इन्होंने आपकी सास के लिए बचा रखा है, उनके…”
लीला मुड़ के बोली।
और उसकी बात हम सबकी जोरदार हँसी में दब गई।
“तो तू क्या कहती है की तेरे जीजू मादरचोद हैं…”
रितू भाभी ने लीला से आँख नचाकर पूछा।
लेकिन जवाब आया बाकी दोनों सालियों की ओर से-
“एकदम भाभी… वो भी पैदायशी, खानदानी…”
छुटकी और रीमा दोनों एक साथ बोली।
इतना पलीता लगाने के लिए काफी था।
और अबकी उन्होंने जब लण्ड बाहर निकाला तो पूरा बालिश्त भर का अंदर ठूंस दिया। एक सूत भी बाहर नहीं था।
लीला की गाण्ड अच्छी तरह फैली थी।
रितू भाभी ने छुटकी को पुश किया सीधे रिंग साइड सीट पे, एकदम आगे और चिढ़ाया-
“देख तेरी सहेली कितनी मस्त होकर गाण्ड मरवा रही है…”
“अरे भाभी, सहेली किसकी है…”
छोटे-छोटे जोबन उभार के छुटकी बोली।
लेकिन उसकी निगाहें अपने जीजू के गाण्ड से निकलते घुसते लण्ड चिपकी थी।
और मैं चाहती भी यही थी।
मेरी सबसे छोटी बहन, छुटकी की हालत तो लीला से भी ज्यादा,....
मैंने जो इनकी और नंदोई जी की बात सुनी थी तो आगे का मजा भले ये ले लें लेकिन उसके पिछवाड़े का उद्घाटन का काम नंदोई जी से ही होना था और उनका तो कम से कम मुटाई के मामले में, इनसे 20 ही था।
फिर इन्होंने और इनकी सलहज ने शर्त रखी थी की छुटकी की गाण्ड मारी जायेगी, तो एकदम सूखी।
एक बूँद थूक की भी नहीं, चाहे जितना परपराये, छरछराये।
और गाँव में, उसकी बंद कमरे में तो ली नहीं जायेगी, आम के बाग में, गन्ने खेत में, मिटटी ढेलों चूचियां, चूतड़ रगड़ खाएंगे, तो एक बार छुटकी गाण्ड मरौव्वल देख लेगी, तो कुछ उसकी हदस दूर जायेगी, कुछ उसके दिल से डर निकल जाएगा, और वो मजा भी लेने लगेगी और उसका भी मन करेगा।
लीला भी अब मजे ले रही थी, धक्के के साथ गाण्ड पीछे की ओर मटका रही थी, तो कभी गाण्ड सिकोड़ के,
अपने जीजू का लण्ड निचोड़ लेती।
वो और इनकी सलहज भी कभी चूत में उंगली करते, तो कभी क्लिट दबोच लेते।
लीला की बुर पानी पानी हो रही थी। दो बार पानी फेंक चुकी थी।
वो पूरे बित्ते भर हलब्बी लण्ड से दस-पंद्रह मिनट तक धकापेल चुदाई उसकी गाण्ड की करते रहे। और जब झड़े, तो लीला भी देर तक उनके साथ झड़ती रही।
लेकिन उनकी सलहज ने लण्ड निकालने नहीं दिया।
उनकी साली तो कुतिया वाले पोज में निहुरी थी, उन्होंने जिस तरह हचक-हचक के उसकी गाण्ड मारी थी।
सलहज ने बोला-
“जड़ तक लण्ड घुसेड़े-घुसेड़े, मथानी की तरह उसे मिनट तक गोल घुमाएं।"
और लीला की भी खूब जोर से कभी चीख निकल जाती, तो कभी कराह, जब जोर से दरेरते, रगड़ते मोटा लण्ड उनका गाण्ड में अंदर-बाहर होता।
मैं भी उनके बगल में खड़ी, रितू भाभी से सटी कभी गाण्ड मराई का मजा देखती तो कभी उनकी मस्त गदराई सलहज की शरारतें।
रितू भाभी अपनी ब्रा विहीन, होली में गीले जोबन से चिपकी चोली का मजा अपने नन्दोई को पीठ पे रगड़ रही थीं, और मैंने भी, आखिर मेरी भाभी थी, उनके बचे हुए दो हुक खोल दिए।
अब सलहज की बड़ी गदराई चूचियां, सीधे नन्दोई की पीठ पे रगड़ घिस कर रही थी।
साथ-साथ उनके दोनों हाथ, एक झुकी हुई ननद की कच्ची अमियां पे और दूसरा अपने नन्दोई के चूतड़ के बीच की दरार पे, और कभी वो मीठी गालियां सीधे देतीं, तो कभी उनके इयर लोब्स की किस्सी ले लेतीं, या हलके से काट लेतीं।
तभी, भाभी की निगाह, अपने नन्दोई के लण्ड पे पड़ गई। वो जोर-जोर से हचक के धक्के मार रहे थे लेकिन, करीब 7” इंच अंदर रहा होगा और दो इंच अभी भी बाहर था।
बस, वो उबल पड़ीं। सीधे, नंदोई के पिछवाड़े के छेद पे उंगली दबाते हुए जोर से बोलीं-
“साल्ले, अपनी बहन के भँड़वे, बहनचोद, ये बाकी लण्ड किसके लिए बचा रखा है, अपनी रंडी बहनों के लिए। डाल पूरा…”
अब मैं मैदान में आ गई-
“नहीं भौजी, अरे इनकी छिनार बहनों को चोदने के लिए इनके साले और हमारे भाई हैं ना…”
“अरे नहीं दीदी… ये इन्होंने आपकी सास के लिए बचा रखा है, उनके…”
लीला मुड़ के बोली।
और उसकी बात हम सबकी जोरदार हँसी में दब गई।
“तो तू क्या कहती है की तेरे जीजू मादरचोद हैं…”
रितू भाभी ने लीला से आँख नचाकर पूछा।
लेकिन जवाब आया बाकी दोनों सालियों की ओर से-
“एकदम भाभी… वो भी पैदायशी, खानदानी…”
छुटकी और रीमा दोनों एक साथ बोली।
इतना पलीता लगाने के लिए काफी था।
और अबकी उन्होंने जब लण्ड बाहर निकाला तो पूरा बालिश्त भर का अंदर ठूंस दिया। एक सूत भी बाहर नहीं था।
लीला की गाण्ड अच्छी तरह फैली थी।
रितू भाभी ने छुटकी को पुश किया सीधे रिंग साइड सीट पे, एकदम आगे और चिढ़ाया-
“देख तेरी सहेली कितनी मस्त होकर गाण्ड मरवा रही है…”
“अरे भाभी, सहेली किसकी है…”
छोटे-छोटे जोबन उभार के छुटकी बोली।
लेकिन उसकी निगाहें अपने जीजू के गाण्ड से निकलते घुसते लण्ड चिपकी थी।
और मैं चाहती भी यही थी।
मेरी सबसे छोटी बहन, छुटकी की हालत तो लीला से भी ज्यादा,....
मैंने जो इनकी और नंदोई जी की बात सुनी थी तो आगे का मजा भले ये ले लें लेकिन उसके पिछवाड़े का उद्घाटन का काम नंदोई जी से ही होना था और उनका तो कम से कम मुटाई के मामले में, इनसे 20 ही था।
फिर इन्होंने और इनकी सलहज ने शर्त रखी थी की छुटकी की गाण्ड मारी जायेगी, तो एकदम सूखी।
एक बूँद थूक की भी नहीं, चाहे जितना परपराये, छरछराये।
और गाँव में, उसकी बंद कमरे में तो ली नहीं जायेगी, आम के बाग में, गन्ने खेत में, मिटटी ढेलों चूचियां, चूतड़ रगड़ खाएंगे, तो एक बार छुटकी गाण्ड मरौव्वल देख लेगी, तो कुछ उसकी हदस दूर जायेगी, कुछ उसके दिल से डर निकल जाएगा, और वो मजा भी लेने लगेगी और उसका भी मन करेगा।
लीला भी अब मजे ले रही थी, धक्के के साथ गाण्ड पीछे की ओर मटका रही थी, तो कभी गाण्ड सिकोड़ के,
अपने जीजू का लण्ड निचोड़ लेती।
वो और इनकी सलहज भी कभी चूत में उंगली करते, तो कभी क्लिट दबोच लेते।
लीला की बुर पानी पानी हो रही थी। दो बार पानी फेंक चुकी थी।
वो पूरे बित्ते भर हलब्बी लण्ड से दस-पंद्रह मिनट तक धकापेल चुदाई उसकी गाण्ड की करते रहे। और जब झड़े, तो लीला भी देर तक उनके साथ झड़ती रही।
लेकिन उनकी सलहज ने लण्ड निकालने नहीं दिया।
उनकी साली तो कुतिया वाले पोज में निहुरी थी, उन्होंने जिस तरह हचक-हचक के उसकी गाण्ड मारी थी।
सलहज ने बोला-
“जड़ तक लण्ड घुसेड़े-घुसेड़े, मथानी की तरह उसे मिनट तक गोल घुमाएं।"