04-11-2019, 08:01 AM
(This post was last modified: 04-11-2019, 09:48 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
लीला
मम्मी ने आँगन में खाना लगा रखा था, खाना सबने साथ खाया और उनकी सलहज और सालियों ने जम के गालियां सुनायी।
लीला थी तो छुटकी और रीमा की समौरिया, उनकी सहेली, सगी बहन से भी बढ़कर, साथ में 9वें में पढ़ती थी।
लेकिन देह उसकी उन दोनों से ज्यादा गदराई थी, शायद एक कारण ये भी था की वो उन दोनों के मुकाबले खेली खायी थी।
कुछ महीने पहले उसके सगे बड़े भाई ने पकड़कर जबरदस्ती उसके ऊपर चढ़ाई कर दी थी,
और फिर बिना नागा रोज हर रात वो बिस्तर पे अपने भाई के साथ कबड्डी गचागच-गचागच, खेलती थी।
रीमा और छुटकी के तो टिकोरे थे जैसे 9वीं क्लास की लड़कियों के होते हैं, लेकिन लीला के कच्ची अमियों की तरह थे, बड़ी-बड़ी, खट्टी मीठी।
और उससे भी जानमारु थे उसके चूतड़।
एकदम लौंडा मार्का, बड़े-बड़े, गोल मटोल, खूब कसी और जब वो कसर-मसर करते हुए चलती, तो बस।
वो ऐसी गाण्ड थी, जो मरवाने के लिए ही बनी थी।
जबसे उन्होंने लीला के चूतड़ों को देखा था, मन तो उनका खूब ललच रहा था, लेकिन कैसे चोदें?
बस यही सोच रहे थे, और कुछ हिचक भी रहे थे।
थी तो कच्ची कली ही दर्जा नौ में पढ़ने वाली।
लेकिन उनके दिल की बात समझी उनकी सलहज, रितू भाभी ने। और उनके तो दोनों हाथों में चांदी थी।
एक तो नन्दोई खुश होते, और दूसरे ऐन होली के दिन छुटकी ननदिया की कच्ची कसी गाण्ड का बाजा बजता, वो भी मूसल ऐसे लण्ड से।
और उन्होंने और उकसाया-
“इत्ती मस्त कसी कसी गाण्ड, और बिना मरवाये चली जाय, वो भी होली के दिन, बड़ी सख्त नाइंसाफी है…”
रितू भाभी ने इनके कान में फुसफुसाया।
और नाइंसाफी के तो ये सख्त खिलाफ थे, और वो भी कुँवारी छोटी साली के साथ।
ऊपर से उनकी नयी बनी साली, रीमा, भी इस मिशन में उनका साथ देने को आतुर थी।
बस रीमा ने आगे से लीला को जबरन पकड़कर निहुरा दिया।
शायद लीला बहुत मुश्किल से जोर लगाकर रीमा की पकड़ से मुश्किल से छूट भी जाती, लेकिन पीछे से रितू भाभी मोर्चे पे आ गईं।
और रितू भाभी की पकड़ से तो एक से एक खेली खायी, घाट-घाट का पानी पी, मायके सासुर दोनों का मजा ली हुई, ब्याहता ननदें भी नहीं छूट पाती थीं।
लाली तो अभी नयी बछेड़ी थी।
रितू भाभी ने लाली की छोटी सी स्कर्ट पकड़कर उठा दी।
झुकी हुई लाली के दोनों चूतड़ हवा में उठे थे।
गोरे-गोरे, गदराये, मांसल रसीले।
पहले तो रितू भाभी के एक्सपर्ट हाथों ने छुटकी ननद के नंगे चूतड़ों को सहलाया, दबाया, रस लिया,
फिर नन्दोई को दिखाते ललचाते पूछा-
क्यों कैसे हैं मेरे ननदी के रसीले चूतड़? हैं न हचक के लेने लायक?
बिचारे ये।
इनके तो मुँह में पानी आ रहा था।
खूंटा तो पगला के पूरा बित्ता भर का हो गया था। ऐसे लड़कों जैसे चूतड़ों के तो वो रसिया थे।
और तभी रितू भाभी ने वो किया की… बस आग लगा दी।
लाली के दोनों किशोर नितम्बों को उन्होंने जोर से चियार दिया।
और दोनों मांसल गुदाज, चूतड़ों के बीच का कसा-कसा द्वार उन्होंने दिखा दिया।
एकदम कसा, चिपका, जहाँ उंगली घुसाना मुश्किल लग रहा हो, हलकी सी दरार भी बड़ी मुश्किल से दिख रही थी। और उसमें इनका, इनकी सालियों की मुट्ठी में भी न समाने वाला, फनफनाता, मोटा मूसल कैसे अंदर जाएगा।
लालच के मारे इनकी हालत खराब थी।
बिचारी लाली, रितू भाभी की पकड़ से निकलने के लिए छटपटा, कसमसा रही थी।
लेकिन रितू भाभी की पकड़ से आज तक कोई ननद बच पायी है, की वही बचती।
और मौके का फायदा उठाकर रीमा ने खींच के उसका टाप उतार दिया।
झुकी, निहरी लीला की उभरती, चूचियां उठान वाली छोटी-छोटी कच्ची अमियां साफ-साफ दिखने लगी।
रितू भाभी अपने नन्दोई को ललकारते बोलीं
“क्यों नंदोई जी क्या देख रहे हैं, बोलिए ना। मेरी छुटकी ननदिया के मस्त चूतड़ों के साथ ये रसीले टिकोरे फ्री… होली का जबरदस्त आफर…”
बिचारे बोलने की हालत में होते तो बोलते। उनकी आँखें तो लीला के मस्त छोटे-छोटे चूतड़ों से और खट-मिठ कच्ची अमियां से चिपके थे।
मम्मी ने आँगन में खाना लगा रखा था, खाना सबने साथ खाया और उनकी सलहज और सालियों ने जम के गालियां सुनायी।
लीला थी तो छुटकी और रीमा की समौरिया, उनकी सहेली, सगी बहन से भी बढ़कर, साथ में 9वें में पढ़ती थी।
लेकिन देह उसकी उन दोनों से ज्यादा गदराई थी, शायद एक कारण ये भी था की वो उन दोनों के मुकाबले खेली खायी थी।
कुछ महीने पहले उसके सगे बड़े भाई ने पकड़कर जबरदस्ती उसके ऊपर चढ़ाई कर दी थी,
और फिर बिना नागा रोज हर रात वो बिस्तर पे अपने भाई के साथ कबड्डी गचागच-गचागच, खेलती थी।
रीमा और छुटकी के तो टिकोरे थे जैसे 9वीं क्लास की लड़कियों के होते हैं, लेकिन लीला के कच्ची अमियों की तरह थे, बड़ी-बड़ी, खट्टी मीठी।
और उससे भी जानमारु थे उसके चूतड़।
एकदम लौंडा मार्का, बड़े-बड़े, गोल मटोल, खूब कसी और जब वो कसर-मसर करते हुए चलती, तो बस।
वो ऐसी गाण्ड थी, जो मरवाने के लिए ही बनी थी।
जबसे उन्होंने लीला के चूतड़ों को देखा था, मन तो उनका खूब ललच रहा था, लेकिन कैसे चोदें?
बस यही सोच रहे थे, और कुछ हिचक भी रहे थे।
थी तो कच्ची कली ही दर्जा नौ में पढ़ने वाली।
लेकिन उनके दिल की बात समझी उनकी सलहज, रितू भाभी ने। और उनके तो दोनों हाथों में चांदी थी।
एक तो नन्दोई खुश होते, और दूसरे ऐन होली के दिन छुटकी ननदिया की कच्ची कसी गाण्ड का बाजा बजता, वो भी मूसल ऐसे लण्ड से।
और उन्होंने और उकसाया-
“इत्ती मस्त कसी कसी गाण्ड, और बिना मरवाये चली जाय, वो भी होली के दिन, बड़ी सख्त नाइंसाफी है…”
रितू भाभी ने इनके कान में फुसफुसाया।
और नाइंसाफी के तो ये सख्त खिलाफ थे, और वो भी कुँवारी छोटी साली के साथ।
ऊपर से उनकी नयी बनी साली, रीमा, भी इस मिशन में उनका साथ देने को आतुर थी।
बस रीमा ने आगे से लीला को जबरन पकड़कर निहुरा दिया।
शायद लीला बहुत मुश्किल से जोर लगाकर रीमा की पकड़ से मुश्किल से छूट भी जाती, लेकिन पीछे से रितू भाभी मोर्चे पे आ गईं।
और रितू भाभी की पकड़ से तो एक से एक खेली खायी, घाट-घाट का पानी पी, मायके सासुर दोनों का मजा ली हुई, ब्याहता ननदें भी नहीं छूट पाती थीं।
लाली तो अभी नयी बछेड़ी थी।
रितू भाभी ने लाली की छोटी सी स्कर्ट पकड़कर उठा दी।
झुकी हुई लाली के दोनों चूतड़ हवा में उठे थे।
गोरे-गोरे, गदराये, मांसल रसीले।
पहले तो रितू भाभी के एक्सपर्ट हाथों ने छुटकी ननद के नंगे चूतड़ों को सहलाया, दबाया, रस लिया,
फिर नन्दोई को दिखाते ललचाते पूछा-
क्यों कैसे हैं मेरे ननदी के रसीले चूतड़? हैं न हचक के लेने लायक?
बिचारे ये।
इनके तो मुँह में पानी आ रहा था।
खूंटा तो पगला के पूरा बित्ता भर का हो गया था। ऐसे लड़कों जैसे चूतड़ों के तो वो रसिया थे।
और तभी रितू भाभी ने वो किया की… बस आग लगा दी।
लाली के दोनों किशोर नितम्बों को उन्होंने जोर से चियार दिया।
और दोनों मांसल गुदाज, चूतड़ों के बीच का कसा-कसा द्वार उन्होंने दिखा दिया।
एकदम कसा, चिपका, जहाँ उंगली घुसाना मुश्किल लग रहा हो, हलकी सी दरार भी बड़ी मुश्किल से दिख रही थी। और उसमें इनका, इनकी सालियों की मुट्ठी में भी न समाने वाला, फनफनाता, मोटा मूसल कैसे अंदर जाएगा।
लालच के मारे इनकी हालत खराब थी।
बिचारी लाली, रितू भाभी की पकड़ से निकलने के लिए छटपटा, कसमसा रही थी।
लेकिन रितू भाभी की पकड़ से आज तक कोई ननद बच पायी है, की वही बचती।
और मौके का फायदा उठाकर रीमा ने खींच के उसका टाप उतार दिया।
झुकी, निहरी लीला की उभरती, चूचियां उठान वाली छोटी-छोटी कच्ची अमियां साफ-साफ दिखने लगी।
रितू भाभी अपने नन्दोई को ललकारते बोलीं
“क्यों नंदोई जी क्या देख रहे हैं, बोलिए ना। मेरी छुटकी ननदिया के मस्त चूतड़ों के साथ ये रसीले टिकोरे फ्री… होली का जबरदस्त आफर…”
बिचारे बोलने की हालत में होते तो बोलते। उनकी आँखें तो लीला के मस्त छोटे-छोटे चूतड़ों से और खट-मिठ कच्ची अमियां से चिपके थे।