19-01-2019, 09:08 PM
छुटकी.
“अरे तो इसमें क्या? कल होली भी है और रिश्ता भी.”
बोतल अब उनके पास थी. मुझे भी कोई ऐतराज नहीं था. मेरा कोई सगा देवर था नही, फिर नंदोई जी भी बहुत रसीले थे.
“तेरे तो मज़े हैं यार....कल यहाँ होली और परसों ससुराल में...किस उम्र की है तेरी सालियाँ?”
नंदोई जी अब पूरे रंग में थे.
‘इन्होंने’ बोला
“बड़ी वाली दसवें में पढ़ती है है और दूसरी थोड़ी छोटी है...(मेरी छोटी ननद का नाम ले के बोले) ...उसके बराबर होगी.”
“अरे तब तो चोदने लायक वो भी हो गई है.” हँस के नंदोई जी बोले.
“अरे उससे भी 4-5 महीने छोटी है...छुटकी.”
मेरा भाई जल्दी से बोला.
अबतक ‘इन्होंने’ और नंदोई ने मिल के उसे ८-१० घूंट पिला हीं दिया था. वो भी अब शर्म-लिहाज खो चुका था.
“अरे हाँ...साले साहब से हीं पूछिये ना उनकी बहनों का हाल. इनसे अच्छा कौन बताएगा?” ‘ये’ बोले.
“बोल साल्ले... बड़ी वाली की चूचियाँ कितनी बड़ी हैं?”
“वो...वो उमर में मुझसे एक साल बड़ी है और उसकी...उसकी अच्छी है....थोड़ी..दीदी के इतनी तो नहीं... दीदी से थोड़ी छोटी....”
हाथ के इशारे से उसने बताया.
मैं शर्मा गई...लेकिन अच्छा भी लगा सुन के कि मेरा ममेरा भाई मेरे उभारों पे नज़र रखता है.
“अरे तब तो बड़ा मज़ा आयेगा तुझे उसके जोबन दबा-दबा के रंग लगाने में...”
नंदोई ‘इनसे’ बोले और फिर मेरे भाई से पूछा,
“और छुटकी की?”
“वो उसकी...उसकी अभी...”
नंदोई बेताब हो रहे थे. वो बोले,
“अरे साफ-साफ बता, उसकी चूचियाँ अभी आयी हैं कि नहीं?”
“आयीं तो है बस अभी..... लेकिन उभर रही हैं... छोटी है बहुत....”
वो बेचारा बोला.
“अरे उसी में तो असली मज़ा है...चूचियाँ उठान में...मींजने में, पकड़ के पेलने में... चूतड़ कैसे हैं?”
“चूतड़ तो दोनों सालियों के बड़े सेक्सी हैं... बड़ी के उभरे-उभरे और छुटकी के कमसिन लौण्डों जैसे... मैंने पहले तय कर लिया है कि होली में अगर दोनों साल्लियों की कच-कचा के गांड़ ना मारी.”
“हे तुम जब होली से लौट के आओगे तो अपनी एक साली को साथ ले आना...उसी छुटकी को...फिर यहाँ तो रंग पंचमी को और जबरदस्त होली होती है. उसमें जम के होली खेलेंगे साल्ली के साथ.”
आधी से ज्यादा बोतल खाली हो गई थी और दोनों नशे के सुरूर में थे. थोड़ा बहुत मेरे भाई को भी चढ़ चुकी थी.
“एकदम जीजा... ये अच्छा आइडिया दिया आपने. बड़ी वाली का तो बोर्ड का इम्तिहान है, लेकिन छुटकी तो अभी 9वीं में है. पंद्रह दिन के लिये ले आयेंगे उसको.”
“अभी वो छोटी है.”
वो फिर जैसे किसी रिकार्ड की सुई अटक गई हो बोला.
“अरे क्या छोटी-छोटी लगा रखी है? उस कच्ची कली की कसी फुद्दी को पूरा भोंसड़ा बना के पंद्रह दिन बाद भेजेंगे यहाँ से, चाहे तो तुम फ्रॉक उठा के खुद देख लेना.”
बोतल मेज पे रखते ‘ये’ बोले.
“और क्या... जो अभी शर्मा रही होगी ना...जब जायेगी तो मुँह से फूल की जगह गालियाँ झड़ेंगी, रंडी को भी मात कर देगी वो साल्ली....”
नंदोई बोले.
मैं समझ गई कि अब ज्यादा चढ़ गई है दोनों को, फिर उन लोगों की बातें सुन के मेरा भी मन करने लगा था. मैं अंदर गई और बोली, “चलिए खाने के लिये देर हो रही है!”
नंदोई उसके गाल पे हाथ फेर के बोले,
“अरे इतना मस्त भोजन तो हमार पास हीं है.”
वो तीनों खाना खा रहे थे लेकिन खाने के साथ-साथ... ननदों ने जम के मेरे भाई को गालियां सुनाई, खास कर छोटी ननद ने.
मैंने भी नंदोई को नहीं बख्शा और खाना परसने के साथ में जान-बूझ के उनके सामने आँचल ढुलका देती...कभी कस के झुक के दोनों जोबन लो कट चोली से... नंदोई की हालत खराब थी.
जब मैं हाथ धुलाने के लिये उन्हें ले गई तब मेरे चूतड़ कुछ ज्यादा हीं मटक रहे थे, मैं आगे-आगे और वो मेरे पीछे-पीछे... मुझे पता थी उनकी हालत. और जब वो झुके तो मैंने उनकी मांग में चुटकी से गुलाल सिंदूर की तरह डाल दिया और बोली,
“सदा सुहागन रहो, बुरा ना मानो होली है.”
उन्होंने मुझे कस के भींच लिया. उनके हाथ सीधे मेरे आँचल के ऊपर से मेरे गदराए जोबन पे और उनका पजामा सीधे मेरे पीछे दरारों के बीच... मैं समझ गई कि उनका ‘खूंटा’ भी उनके साले से कम नहीं है.
मैं किसी तरह छुड़ाते हुए बोली, “समझ गई मैं, जाइये ननद जी इंतज़ार कर रही होंगी. चलिए कल होली के दिन देख लूंगी आपकी ताकत भी, चाहे जैसे जितनी बार डालियेगा, पीछे नहीं भागूंगी.”
जब मैं किचेन में गई तो वहाँ मेरी ननद कड़ाही की कालिख निकाल रही थी और दूसरे हाथ में बिंदी और टिकुली थी.
मैंने पूछा तो बोली,
“आपके भाई के श्रृंगार के लिये, लेकिन भाभी... उसे बताइयेगा नहीं! ये मेरे-उसके बीच की बात है.”
हँस के मैं बोली,
“एकदम नहीं, लेकिन अगर कहीं पलट के उसने डाल दिया तो... ननद रानी बुरा मत मानना!”
वो हँस के बोली, “अरे भाभी, साल्ले की बात का क्या बुरा मानना? एकदम नहीं.. और फिर होली तो है हीं डालने-डलवाने का त्योहार. लेकिन आप भी समझ जाइये ये भी गाँव की होली है, वो भी हमारे गाँव की होली..यहाँ कोई भी ‘चीज़’ छोड़ी नहीं जाती होली में.”
उसकी बात पे मैं सोचती, मुस्कुराती कमरे में गई तो ‘ये’ तैयार बैठे थे.