28-10-2019, 03:59 PM
(28-10-2019, 11:25 AM)Black Horse Wrote: ूू
हमारी भूली हुई धरोहर को संजोकर रखने वाले के लिए यह तो बहुत कम है।
दिवाली पर एसी नज़्म मिल जाए तो दिवाली की शुभकामनाएं में चार चांद लग जाते हैं।
मिल के होती थी कभी ईद भी दीवाली भी
अब ये हालत है कि डर डर के गले मिलते हैं
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सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या
उजाला हर तरफ़ है इस किनारे उस किनारे क्या
हफ़ीज़ बनारसी
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यह नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़
तेरे ख़्याल की खुश्बू से बस रहे हैं दिमाग़..
फ़िराक़
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दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत
यह इक चिराग़ कई आँधियों पे भारी है..
वसंत बरेलवी