24-10-2019, 09:26 PM
update 22
"हाय! क्या शुरुवात हुई है सुबह की!" ऋतू ने मेरी छाती पर लेटे हुए ही अंगड़ाई लेते हुए कहा| फिर वो उठी और उसकी नजर अपनी पजामी पर पड़ी जो फर्श पर पड़ी थी| उसने वो उठा कर पहना और बाथरूम में नहाने चली गई| मोहिनी ने उसके कुछ कपडे ला दिए थे जिन्हें पहन कर ऋतू बाहर आई| आज तो मेरा भी मन नहाने का था पर ठन्डे पानी से नहाने के बजाये आज मुझे गर्म पानी मिला नहाने को| जब मैं नहा कर बाहर निकला तो ऋतू गुम-शूम दिखी, मैंने उसे हमेशा की तरह पीछे से पकड़ लिया और अपने हाथ को उसके पेट पर लॉक कर दिया|
मैं: क्या हुआ मेरी जानेमन को?
ऋतू: मैं बहुत सेल्फिश हूँ!
मैं: क्यों? ऐसा क्या किया तुमने?
ऋतू: कल रात को..... आपने तो मुझे सटिस्फाय कर दिया.... पर मैंने नहीं.... (ऋतू ने शर्माते हुए कहा|)
मैं: अरे तो क्या हुआ? दिन भर मेरा ख्याल रखती हो, तक गई थी इसलिए सो गई| इसमें मायूस होने की क्या बात है?
ऋतू: नहीं... मैं....
मैं: पागल मत बन! अभी मेरी तबियत पूरी तरह ठीक नहीं है, जब ठीक हो जाऊँगा ना तब जितना चाहे उतना सटिस्फाय कर लेना मुझे!
मैंने उसे छेड़ते हुए कहा और ऋतू भी हँस पड़ी|
मैं: तू इतने दिनों से कॉलेज नहीं जा रही है, तेरी पढ़ाई का नुक्सान हो रहा होगा इसलिए कल से कॉलेज जाना शुरू कर|
ऋतू: आप पढ़ाई की चिंता मत करो! मैं सारा कवर-अप कर लूँगी!
मैं: ऋतू... बात को समझा कर! तकरीबन एक हफ्ता होने को आया है, आंटी जी और मोहिनी क्या सोचते होंगे? मेरी बात मान और कल से कॉलेज जाना शुरू कर और मेरी चिंता मत कर मैं घर चला जाता हूँ| वैसे भी पिताजी को मेरी तबियत के बारे में कुछ मालूम नहीं है, ऐसे में कुछ दिन वहाँ रुकूँगा तो बात बिगड़ेगी नहीं|
ऋतू ने बहुत ना-नुकुर की पर मैंने उसे मना ही लिया| शाम को जब मोहिनी आई तो मैंने उसे ऋतू को साथ ले जाने को कहा;
मोहिनी: अरे ऋतू चली गई तो आपका ध्यान कौन रखेगा?
मैं: मैं कल सुबह घर जा रहा हूँ वहाँ सब लोग हैं मेरा ख्याल रखने को| मैं तो संडे ही निकल जाता पर तबियत बहुत ज्यादा ख़राब थी!
खेर ऋतू अपना मन मारकर चली गई और उसने जो खाना बनाया था वही खा कर मैं सो गया| पिताजी को फ़ोन कर दिया था और वो मुझे लेने बस स्टैंड आ रहे थे| 4 घंटों का थकावट भरा सफर क्र मैं गाँव के बस स्टैंड पहुँचा जहाँ पिताजी पहले से ही मौजूद थे| उन्हें नहीं पता था की मेरी तबियत इतनी खराब है की बस स्टैंड से घर तक का रास्ता जो की 15 मिनट का था उसे मैंने 5 बार रुक-रुक कर आधे घंटे में तय किया| घर जाते ही मैं बिस्तर पर जा गिरा|
कमजोरी इतनी थी की बयान करना मुश्किल था, ऋतू ने मुझे शाम को फ़ोन किया पर मैं दपहर को खाना खा कर सो रहा था| मेरे फ़ोन ना उठाने से वो बहुत परेशान हो गई और धड़ाधड़ मैसेज करने लगी, पर डाटा बंद था इसलिए मैसेज भी seen नहीं थे| वो बेचैन होने लगी और दुआ करने लगी की मैं ठीक-ठाक हूँ| रात को आठ बजे मैं उठा तब मैंने फ़ोन देखा और फटाफट ऋतू को फ़ोन किया| "मैंने कहा था न की मैं आपकी देखभाल करुँगी, पर आपने जबरदस्ती मुझे खुद से दूर कर दिया! देखो आपकी तबियत कितनी ख़राब हो गई! आपने फ़ोन नहीं उठाया तो मैंने मजबूरन घर फ़ोन किया और तब मुझे पता चला की आपकी कमजोरी और बढ़ गई है!" ऋतू ने रोते-रोते खुसफुसाते हुए कहा|
"जान! मैं ठीक हूँ! उस टाइम थकावट हो गई थी, पर अब खाना खा कर दवाई ले चूका हूँ| तुम मेरी चिंता मत करो!" मैंने उसे तसल्ली देते हुए कहा|
"आपने जान निकाल दी थी मेरी! जल्दी से ऑनलाइन आओ मुझे आपको देखना है!" इतना कह कर ऋतू ने फ़ोन रख दिया और मैंने अपने हेडफोन्स लगाए और ऑनलाइन आ गया| ऋतू हमेशा की तरह बाथरूम में हेडफोन्स लगाए हुए मुझसे वीडियो कॉल पर बात करने लगी| बहुत सारे kisses मुझे दे कर उसे चैन आया और फिर रात को चाट करने के लिए बोल कर चली गई| रात दस नाज़े से वो मेरे साथ चाट पर लग गई और 12 बजे मैंने ही उसे सोने को कहा ताकि उसकी नींद पूरी हो| इधर मैं फ़ोन रख कर सोने लगा की तभी मूत आ गया| मैंने सोचा बजाये नीचे जाने के क्यों न छत पर ही चला जाऊँ| जब मैं छोटा था तो कभी-कभी रात को छत की मुंडेर पर खड़ा हो जाता और अपने पेशाब की धार नीचे गिराता| यही बचपना मुझे याद आ गया तो मैं भी मुस्कुराते हुए छत पर आ गया और अपना लंड निकाल कर मुंडेर पर चढ़ गया और मूतने लगा| जब मूत लिया तो मैं पीछे घुमा और वहाँ जो खड़ा था उसे देखते ही मेरी सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई|
पीछे भाभी खड़ी थी और उनकी नजर मेरा लंड पर टिकी थी| जब मेरी नजरें उनकी नजरों का पीछा करते हुए मेरे ही लंड तक आई तो मैंने फट से लंड पाजामे में डाला और मुंडेर से नीचे आ गया| मैं बुरी तरह से झेंप गया था और वापस अपने कमरे की तरफ जा रहा था| इतने में पीछे से भाभी बोली; "मुझे तो लगा था की तुम आत्महत्या करने जा रहे हो, पर तुम तो मूत रहे थे! बचपना गया नहीं तुम्हारा देवर जी!" ये सुन कर मैं एक पल को रुका पर पलटा नहीं और सीधा आँगन में आ गया, हाथ-मुँह धोया और वापस कमरे में जाने लगा की तभी भाभी ऋतू वाले कमरे के बाहर अपनी कमर पर हाथ रखे मेरा इंतजार कर रही थी| "तन से तो जवान हो गए, पर मन से अब भी बच्चे हो!| उन्होंने हँसते हुए कहा| मैं अब भी शर्मा रहा था तो सर झुका कर अपने कमरे में घुस गया और वो ऋतू वाले कमरे में घुस गईं| लेटते ही मुझे ऋतू की वो बात याद आई जिसमें भाभी मेरे बारे में सोच के नींद में मेरा नाम बड़बड़ा रही थी| आज उन्होंने ने जिस तरह से मुझे 'देवर जी' कहा था वो भी बहुत कामुक था! मैं सचेत हो चूका था और मेरा मन भाभी के जिस्म की प्यास को महसूस करने लगा था, पर ऋतू का प्यार मुझे गलत रास्ते में भटकने नहीं दे रहा था| अगले कुछ दिन तक भाभी मेरे साथ यही आँख में चोली का खेल खेलती रही और सबकी नजरें बचा कर मुझे अपने जिस्म की नुमाइश आकृति रही| जब भी मैं अपने कमरे में अकेला होता तो वो झाड़ू लगाने के बहाने आती और अपने पल्लू को अपने स्तनों पर से हटा के अपनी कमर से लपेट लेती| उसके स्तनों की वो घाटी इतनी गहरी थी जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल था| भाभी की 44D साइज की छातियाँ दूध से भरी लगती थी, 37 की उम्र में भी उसकी छातियों में बहुत कसावट थी| झाड़ू लगाते हुए वो मेरे पलंग के नजदीक आ गई और इतना झुक गई की मुझे उनके निप्पल लग-भग दिख हो गए| मैं उठ के जाने को हुआ तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया; "कहाँ जा रहे हो देवर जी?!" मैंने कोई जवाब नहीं दिया और मुँह फेर लिया| "मेरा तो काम हो गया!" इतना कह कर उन्होंने मेरा हाथ छोड़ दिया और अपनी कातिल हंसी हँसते हुए चली गई| उनकी ये डबल मीनिंग वाली बात मैं समझ चूका था, वो तो बस मुझे अपने स्तन दिखाने आई थीं! कमरा तक ठीक से साफ़ नहीं किया था उन्होंने, पहले तो सोचा की उन्हें टोक दूँ पर फिर चुप रहा और वापस लेट गया| वो पूरा दिन भाभी मुझे देख-देख आकर हँसती रही और मेरे जिस्म में आग पैदा हो इसकी कोशिश करती रही| अगले दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ, मैं आँगन में लेटा हुआ था और वो हैंडपंप के पास उकडून हो कर बैठी कपडे धो रही थी| मैं जहाँ लेटा था वहाँ मेरे बाएं तरफ रसोई और दाएं तरफ गुसलखाना था जहाँ पर हैंडपंप लगा था| मैं पीठ के बल लेटा हुआ था और अपने फ़ोन में कुछ देख रहा था की मैंने 'गलती' से दायीं तरफ करवट ली| करवट लेते ही मेरी नजर अचानक से भाभी पर पड़ी जो मेरी तरफ देख रही थी और उनका निचला होंठ उनके दाँतों तले दबा हुआ था| उनकी दायीं टाँग सीधी थी और उन्होंने उसके ऊपर से अपने पेटीकोट ऊपर चढ़ा रखा था| भाभी मेरी तरफ प्यासी नजरों से देख रही थी और सोच रही थी की मैं उठ कर आऊँगा और उन्हें गोद में उठा कर ले जाऊँगा|
भाभी ने अपना पेटीकोट और ऊपर चढ़ा दिया और उनकी माँसल जाँघ मुझे दिखने लगी| ये देखते ही मुझे झटका लगा और मैंने तुरंत दूसरी तरफ करवट आकर ली और ये देख आकर भाभी खिलखिलाकर हँस पड़ी| रात खाने के बाद मैं छत पर थोड़ा टहल रहा था की तभी ऋतू का फ़ोन आ गया और मैं उससे बात करने लगा| बात करते-करते रात के 11 बज गए, मैंने ऋतू को बाय कहा और फ़ोन पर एक लम्बी सी Kiss दी और फ़ोन रखा| मौसम अच्छा था, ठंडी-ठंडी हवाएँ जिस्म को छू रही थी और मजा बहुत आ रहा था| मैंने सोचा की आज यहीं सो जाता हूँ, पास ही एक चारपाई खड़ी थी तो मैं ने वही बिछाई और मैं दोनों हाथ अपने सर के नीचे रख सो गया| रात के एक बजे मेरे कान में भाभी की मादक आवाज पड़ी; "देवर जी!!!" ये सुनते ही मैं चौंक कर उठ गया और सामने देखा तो भाभी दिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में मेरे सामने खड़ी हैं| पूनम के चाँद की रौशनी में उनका पूरा बदन जगमगा रहा था| 38 इंची की कमर और उनकी 44D की छातियाँ मेरे ऊपर कहर ढा रही थी! मेरी नजरें अपने आप ही उनकी ऊपर-नीचे होती छातियों पर गाड़ी हुई थी| भाभी जानती थी की मैं कहाँ देख रहा हूँ इसलिए वो और जोर से सांसें लेने लगीं| दिमाग में फिर से झटका लगा और मैं ने उनकी मन्त्र-मुग्ध करती छातियों से अपनी नजरें फेर ली| "यहाँ क्या कर रहे हो देवर जी?" भाभी ने फिर से उसी मादक आवाज में कहा|
"वो मौसम अच्छा था इसलिए ...." मैंने उनसे मुँह फेरे हुए ही कहा| "हाय!!!...सच कहा देवर जी! सससस...ठंडी-ठंडी हवा तो मेरे बदन पर जादू कर रही है| मैं भी यहीं सो जाऊँ?" भाभी की सिसकी सुन मैं उठ खड़ा हुआ और नीचे जाने लगा| "आप चले जाओगे तो मैं कहाँ सोऊँगी?" भाभी बोलती रही पर मैं रुका नहीं और अपने कमरे में आ कर दरवाजा बंद कर के लेट गया| भाभी का मुझे रिझाने का काम पूरे 5 दिन और चला और इन्हीं दिनों मैं इतना तंदुरुस्त हो गया की अपना ख्याल रख सकूँ! घर के असली दूध-दही-घी की ताक़त से जिस्म में जान आ गई थी| अब मुझे वहाँ से जल्दी से जल्दी निकलना था वरना भाभी मेरे लंड पर चढ़ ही जाती! एक हफ्ते बाद में वापस शहर पहुँचा तो मेरा प्यार मुझे लेने के लिए बस स्टैंड आया था| ऋतू मुझे देखते ही मेरे गले लग गई और उसकी पकड़ देखते ही देखते कसने लगी| "जानू! पूरे दस दिन आप मुझसे दूर रहे हो! आगे से कभी बीमार पड़े ना तो देख लेना! मैं भी आपके ही बगल में लेट जाऊँगी!" ये सुन कर मैं हँस पड़ा, हम घर पहुँचे और ऋतू के हाथ का खाना खा कर मन प्रसन्न हो गया| मैंने जान कर ऋतू को भाभी द्वारा की गई हरकतों के बारे में कुछ नहीं बताया वरना फिर वही काण्ड होता! इन पंद्रह दिनों में मैं बहुत कमजोर हो गया था इसीलिए उस दिन ऋतू ने मेरे ज्यादा करीब आने की कोशिश नहीं की| अगले दिन मैंने ऑफिस ज्वाइन किया तो मेरी कमजोरी अनु मैडम से छुपी नहीं और वो कहने लगी की मुझे कुछ और दिन आराम करना चाहिए, अब तो राखी ने भी ज्वाइन कर लिया था और भी मैडम की बात को ही दोहराने लगी| सिर्फ एक मेरा बॉस था जो मन ही मन गालियाँ दे रहा था|
"हाय! क्या शुरुवात हुई है सुबह की!" ऋतू ने मेरी छाती पर लेटे हुए ही अंगड़ाई लेते हुए कहा| फिर वो उठी और उसकी नजर अपनी पजामी पर पड़ी जो फर्श पर पड़ी थी| उसने वो उठा कर पहना और बाथरूम में नहाने चली गई| मोहिनी ने उसके कुछ कपडे ला दिए थे जिन्हें पहन कर ऋतू बाहर आई| आज तो मेरा भी मन नहाने का था पर ठन्डे पानी से नहाने के बजाये आज मुझे गर्म पानी मिला नहाने को| जब मैं नहा कर बाहर निकला तो ऋतू गुम-शूम दिखी, मैंने उसे हमेशा की तरह पीछे से पकड़ लिया और अपने हाथ को उसके पेट पर लॉक कर दिया|
मैं: क्या हुआ मेरी जानेमन को?
ऋतू: मैं बहुत सेल्फिश हूँ!
मैं: क्यों? ऐसा क्या किया तुमने?
ऋतू: कल रात को..... आपने तो मुझे सटिस्फाय कर दिया.... पर मैंने नहीं.... (ऋतू ने शर्माते हुए कहा|)
मैं: अरे तो क्या हुआ? दिन भर मेरा ख्याल रखती हो, तक गई थी इसलिए सो गई| इसमें मायूस होने की क्या बात है?
ऋतू: नहीं... मैं....
मैं: पागल मत बन! अभी मेरी तबियत पूरी तरह ठीक नहीं है, जब ठीक हो जाऊँगा ना तब जितना चाहे उतना सटिस्फाय कर लेना मुझे!
मैंने उसे छेड़ते हुए कहा और ऋतू भी हँस पड़ी|
मैं: तू इतने दिनों से कॉलेज नहीं जा रही है, तेरी पढ़ाई का नुक्सान हो रहा होगा इसलिए कल से कॉलेज जाना शुरू कर|
ऋतू: आप पढ़ाई की चिंता मत करो! मैं सारा कवर-अप कर लूँगी!
मैं: ऋतू... बात को समझा कर! तकरीबन एक हफ्ता होने को आया है, आंटी जी और मोहिनी क्या सोचते होंगे? मेरी बात मान और कल से कॉलेज जाना शुरू कर और मेरी चिंता मत कर मैं घर चला जाता हूँ| वैसे भी पिताजी को मेरी तबियत के बारे में कुछ मालूम नहीं है, ऐसे में कुछ दिन वहाँ रुकूँगा तो बात बिगड़ेगी नहीं|
ऋतू ने बहुत ना-नुकुर की पर मैंने उसे मना ही लिया| शाम को जब मोहिनी आई तो मैंने उसे ऋतू को साथ ले जाने को कहा;
मोहिनी: अरे ऋतू चली गई तो आपका ध्यान कौन रखेगा?
मैं: मैं कल सुबह घर जा रहा हूँ वहाँ सब लोग हैं मेरा ख्याल रखने को| मैं तो संडे ही निकल जाता पर तबियत बहुत ज्यादा ख़राब थी!
खेर ऋतू अपना मन मारकर चली गई और उसने जो खाना बनाया था वही खा कर मैं सो गया| पिताजी को फ़ोन कर दिया था और वो मुझे लेने बस स्टैंड आ रहे थे| 4 घंटों का थकावट भरा सफर क्र मैं गाँव के बस स्टैंड पहुँचा जहाँ पिताजी पहले से ही मौजूद थे| उन्हें नहीं पता था की मेरी तबियत इतनी खराब है की बस स्टैंड से घर तक का रास्ता जो की 15 मिनट का था उसे मैंने 5 बार रुक-रुक कर आधे घंटे में तय किया| घर जाते ही मैं बिस्तर पर जा गिरा|
कमजोरी इतनी थी की बयान करना मुश्किल था, ऋतू ने मुझे शाम को फ़ोन किया पर मैं दपहर को खाना खा कर सो रहा था| मेरे फ़ोन ना उठाने से वो बहुत परेशान हो गई और धड़ाधड़ मैसेज करने लगी, पर डाटा बंद था इसलिए मैसेज भी seen नहीं थे| वो बेचैन होने लगी और दुआ करने लगी की मैं ठीक-ठाक हूँ| रात को आठ बजे मैं उठा तब मैंने फ़ोन देखा और फटाफट ऋतू को फ़ोन किया| "मैंने कहा था न की मैं आपकी देखभाल करुँगी, पर आपने जबरदस्ती मुझे खुद से दूर कर दिया! देखो आपकी तबियत कितनी ख़राब हो गई! आपने फ़ोन नहीं उठाया तो मैंने मजबूरन घर फ़ोन किया और तब मुझे पता चला की आपकी कमजोरी और बढ़ गई है!" ऋतू ने रोते-रोते खुसफुसाते हुए कहा|
"जान! मैं ठीक हूँ! उस टाइम थकावट हो गई थी, पर अब खाना खा कर दवाई ले चूका हूँ| तुम मेरी चिंता मत करो!" मैंने उसे तसल्ली देते हुए कहा|
"आपने जान निकाल दी थी मेरी! जल्दी से ऑनलाइन आओ मुझे आपको देखना है!" इतना कह कर ऋतू ने फ़ोन रख दिया और मैंने अपने हेडफोन्स लगाए और ऑनलाइन आ गया| ऋतू हमेशा की तरह बाथरूम में हेडफोन्स लगाए हुए मुझसे वीडियो कॉल पर बात करने लगी| बहुत सारे kisses मुझे दे कर उसे चैन आया और फिर रात को चाट करने के लिए बोल कर चली गई| रात दस नाज़े से वो मेरे साथ चाट पर लग गई और 12 बजे मैंने ही उसे सोने को कहा ताकि उसकी नींद पूरी हो| इधर मैं फ़ोन रख कर सोने लगा की तभी मूत आ गया| मैंने सोचा बजाये नीचे जाने के क्यों न छत पर ही चला जाऊँ| जब मैं छोटा था तो कभी-कभी रात को छत की मुंडेर पर खड़ा हो जाता और अपने पेशाब की धार नीचे गिराता| यही बचपना मुझे याद आ गया तो मैं भी मुस्कुराते हुए छत पर आ गया और अपना लंड निकाल कर मुंडेर पर चढ़ गया और मूतने लगा| जब मूत लिया तो मैं पीछे घुमा और वहाँ जो खड़ा था उसे देखते ही मेरी सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई|
पीछे भाभी खड़ी थी और उनकी नजर मेरा लंड पर टिकी थी| जब मेरी नजरें उनकी नजरों का पीछा करते हुए मेरे ही लंड तक आई तो मैंने फट से लंड पाजामे में डाला और मुंडेर से नीचे आ गया| मैं बुरी तरह से झेंप गया था और वापस अपने कमरे की तरफ जा रहा था| इतने में पीछे से भाभी बोली; "मुझे तो लगा था की तुम आत्महत्या करने जा रहे हो, पर तुम तो मूत रहे थे! बचपना गया नहीं तुम्हारा देवर जी!" ये सुन कर मैं एक पल को रुका पर पलटा नहीं और सीधा आँगन में आ गया, हाथ-मुँह धोया और वापस कमरे में जाने लगा की तभी भाभी ऋतू वाले कमरे के बाहर अपनी कमर पर हाथ रखे मेरा इंतजार कर रही थी| "तन से तो जवान हो गए, पर मन से अब भी बच्चे हो!| उन्होंने हँसते हुए कहा| मैं अब भी शर्मा रहा था तो सर झुका कर अपने कमरे में घुस गया और वो ऋतू वाले कमरे में घुस गईं| लेटते ही मुझे ऋतू की वो बात याद आई जिसमें भाभी मेरे बारे में सोच के नींद में मेरा नाम बड़बड़ा रही थी| आज उन्होंने ने जिस तरह से मुझे 'देवर जी' कहा था वो भी बहुत कामुक था! मैं सचेत हो चूका था और मेरा मन भाभी के जिस्म की प्यास को महसूस करने लगा था, पर ऋतू का प्यार मुझे गलत रास्ते में भटकने नहीं दे रहा था| अगले कुछ दिन तक भाभी मेरे साथ यही आँख में चोली का खेल खेलती रही और सबकी नजरें बचा कर मुझे अपने जिस्म की नुमाइश आकृति रही| जब भी मैं अपने कमरे में अकेला होता तो वो झाड़ू लगाने के बहाने आती और अपने पल्लू को अपने स्तनों पर से हटा के अपनी कमर से लपेट लेती| उसके स्तनों की वो घाटी इतनी गहरी थी जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल था| भाभी की 44D साइज की छातियाँ दूध से भरी लगती थी, 37 की उम्र में भी उसकी छातियों में बहुत कसावट थी| झाड़ू लगाते हुए वो मेरे पलंग के नजदीक आ गई और इतना झुक गई की मुझे उनके निप्पल लग-भग दिख हो गए| मैं उठ के जाने को हुआ तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया; "कहाँ जा रहे हो देवर जी?!" मैंने कोई जवाब नहीं दिया और मुँह फेर लिया| "मेरा तो काम हो गया!" इतना कह कर उन्होंने मेरा हाथ छोड़ दिया और अपनी कातिल हंसी हँसते हुए चली गई| उनकी ये डबल मीनिंग वाली बात मैं समझ चूका था, वो तो बस मुझे अपने स्तन दिखाने आई थीं! कमरा तक ठीक से साफ़ नहीं किया था उन्होंने, पहले तो सोचा की उन्हें टोक दूँ पर फिर चुप रहा और वापस लेट गया| वो पूरा दिन भाभी मुझे देख-देख आकर हँसती रही और मेरे जिस्म में आग पैदा हो इसकी कोशिश करती रही| अगले दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ, मैं आँगन में लेटा हुआ था और वो हैंडपंप के पास उकडून हो कर बैठी कपडे धो रही थी| मैं जहाँ लेटा था वहाँ मेरे बाएं तरफ रसोई और दाएं तरफ गुसलखाना था जहाँ पर हैंडपंप लगा था| मैं पीठ के बल लेटा हुआ था और अपने फ़ोन में कुछ देख रहा था की मैंने 'गलती' से दायीं तरफ करवट ली| करवट लेते ही मेरी नजर अचानक से भाभी पर पड़ी जो मेरी तरफ देख रही थी और उनका निचला होंठ उनके दाँतों तले दबा हुआ था| उनकी दायीं टाँग सीधी थी और उन्होंने उसके ऊपर से अपने पेटीकोट ऊपर चढ़ा रखा था| भाभी मेरी तरफ प्यासी नजरों से देख रही थी और सोच रही थी की मैं उठ कर आऊँगा और उन्हें गोद में उठा कर ले जाऊँगा|
भाभी ने अपना पेटीकोट और ऊपर चढ़ा दिया और उनकी माँसल जाँघ मुझे दिखने लगी| ये देखते ही मुझे झटका लगा और मैंने तुरंत दूसरी तरफ करवट आकर ली और ये देख आकर भाभी खिलखिलाकर हँस पड़ी| रात खाने के बाद मैं छत पर थोड़ा टहल रहा था की तभी ऋतू का फ़ोन आ गया और मैं उससे बात करने लगा| बात करते-करते रात के 11 बज गए, मैंने ऋतू को बाय कहा और फ़ोन पर एक लम्बी सी Kiss दी और फ़ोन रखा| मौसम अच्छा था, ठंडी-ठंडी हवाएँ जिस्म को छू रही थी और मजा बहुत आ रहा था| मैंने सोचा की आज यहीं सो जाता हूँ, पास ही एक चारपाई खड़ी थी तो मैं ने वही बिछाई और मैं दोनों हाथ अपने सर के नीचे रख सो गया| रात के एक बजे मेरे कान में भाभी की मादक आवाज पड़ी; "देवर जी!!!" ये सुनते ही मैं चौंक कर उठ गया और सामने देखा तो भाभी दिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में मेरे सामने खड़ी हैं| पूनम के चाँद की रौशनी में उनका पूरा बदन जगमगा रहा था| 38 इंची की कमर और उनकी 44D की छातियाँ मेरे ऊपर कहर ढा रही थी! मेरी नजरें अपने आप ही उनकी ऊपर-नीचे होती छातियों पर गाड़ी हुई थी| भाभी जानती थी की मैं कहाँ देख रहा हूँ इसलिए वो और जोर से सांसें लेने लगीं| दिमाग में फिर से झटका लगा और मैं ने उनकी मन्त्र-मुग्ध करती छातियों से अपनी नजरें फेर ली| "यहाँ क्या कर रहे हो देवर जी?" भाभी ने फिर से उसी मादक आवाज में कहा|
"वो मौसम अच्छा था इसलिए ...." मैंने उनसे मुँह फेरे हुए ही कहा| "हाय!!!...सच कहा देवर जी! सससस...ठंडी-ठंडी हवा तो मेरे बदन पर जादू कर रही है| मैं भी यहीं सो जाऊँ?" भाभी की सिसकी सुन मैं उठ खड़ा हुआ और नीचे जाने लगा| "आप चले जाओगे तो मैं कहाँ सोऊँगी?" भाभी बोलती रही पर मैं रुका नहीं और अपने कमरे में आ कर दरवाजा बंद कर के लेट गया| भाभी का मुझे रिझाने का काम पूरे 5 दिन और चला और इन्हीं दिनों मैं इतना तंदुरुस्त हो गया की अपना ख्याल रख सकूँ! घर के असली दूध-दही-घी की ताक़त से जिस्म में जान आ गई थी| अब मुझे वहाँ से जल्दी से जल्दी निकलना था वरना भाभी मेरे लंड पर चढ़ ही जाती! एक हफ्ते बाद में वापस शहर पहुँचा तो मेरा प्यार मुझे लेने के लिए बस स्टैंड आया था| ऋतू मुझे देखते ही मेरे गले लग गई और उसकी पकड़ देखते ही देखते कसने लगी| "जानू! पूरे दस दिन आप मुझसे दूर रहे हो! आगे से कभी बीमार पड़े ना तो देख लेना! मैं भी आपके ही बगल में लेट जाऊँगी!" ये सुन कर मैं हँस पड़ा, हम घर पहुँचे और ऋतू के हाथ का खाना खा कर मन प्रसन्न हो गया| मैंने जान कर ऋतू को भाभी द्वारा की गई हरकतों के बारे में कुछ नहीं बताया वरना फिर वही काण्ड होता! इन पंद्रह दिनों में मैं बहुत कमजोर हो गया था इसीलिए उस दिन ऋतू ने मेरे ज्यादा करीब आने की कोशिश नहीं की| अगले दिन मैंने ऑफिस ज्वाइन किया तो मेरी कमजोरी अनु मैडम से छुपी नहीं और वो कहने लगी की मुझे कुछ और दिन आराम करना चाहिए, अब तो राखी ने भी ज्वाइन कर लिया था और भी मैडम की बात को ही दोहराने लगी| सिर्फ एक मेरा बॉस था जो मन ही मन गालियाँ दे रहा था|