24-10-2019, 10:58 AM
विपरीत रति
स्मर-समरोचित-विरचित-वेशा।
गलित-कुसुम-वर-विलुलित-केशा
शोभित है युवती री कोई।
हरि से विलस रही जो खोई॥
[Image: WOT-Lunge-Sex-Position-Illustration.png]
कोई सुन्दर रमणी काम-संग्राम के अनुकूल वेश धारण कर मधुरिपु के साथ विलास कर रही है। रतिक्रीड़ा में उसके केशपाश ढीले होकर इधर-उधर लहरा रहे हैं, उसमें से ग्रंथित पुष्प भी झर गये हैं।
स्मरसमर-रतिकेलि को स्मर-समर कहा गया है। रतिक्रीड़ा में रति-विमर्दन आदि क्रिया होती है, जिससे नायिका का कबरी बन्धन खुल जाता है, उसमें सन्निहित पुष्प झर जाते हैं, विशृंखलित हो जाते हैं।
........
समरति में स्त्री वीर्य धारण कर गर्भवती होती है। विपरीत रति में पुरुष उर्ध्वरेता हो ब्रह्मपद प्राप्त करता है। आसन के अर्थ में विपरीत रति कामशास्त्रियों की सूझ होगी। उसके सौंदर्य पक्ष को स्वीकार करते हुए भी कवियों ने विपरीत रति के आध्यात्मिक संकेत ही दिए हैं।
Quote:
उरसि मुरारे उपहितहारे धन इव तरल बलाके
तडिदिवपीते रतिविपरीते राजसि सुकृत विपाके।।
[Image: WOT-DZUY1-GZX4-AAdo-p.jpg]
बिनती रति बिपरीत को करो परसि पिय पाइ।
हँसि अनबोलैं ही दियौ ऊतरु दियौ बुताइ॥341॥
परसि = स्पर्श कर, छूकर। प्रिय = प्रीतम। पाइ = पैर। अनबोलैं ही = बिना कुछ कहे ही। ऊतरु दियो = जवाब दिया। दियौ बुताइ = दीपक बुझाकर।
प्रीतम ने (नायिका के) पैर छूकर विपरीत रति के लिए विनती की। (इस पर नायिका ने) बिना कुछ मुँह से बोले ही (केवल) हँसकर दीपक बुझाकर उत्तर दे दिया (कि मैं तैयार हूँ, लीजिए-चिराग भी गुल हुआ!)
मेरे बूझत बात तूँ कत बहरावति वाल।
जग जानी बिपरीत रति लखि बिंदुली पिय भाल॥342॥
कत = क्यों। बहरावति = बहलाती है, चकमा देती है। जग जानी = दुनिया जान गई। बिंदुली = टिकुली, चमकी या सितारा।
मेरे पूछने पर अरी बाला! तू क्यों चकमा देती है? प्रीतम के ललाट में (तेरी) टिकुली देखकर संसार जान गया कि (तुम दोनों ने) विपरीत रति की है।
नोट - विपरीत रति में ऊपर रहने के कारण नायिका की टिकुली गिरकर नीचे पड़े हुए नायक के ललाट पर सट गई।
परयो जोर विपरीत रति , सूरत करत रणधीर।
बाजत कटि की किन्कडि , मौन रहत मंजीर।
इस तरह की quote सिर्फ आप ही दे सकती है।
धन्यवाद आपका, हमारे ज्ञान वर्धन के लिए।
स्मर-समरोचित-विरचित-वेशा।
गलित-कुसुम-वर-विलुलित-केशा
शोभित है युवती री कोई।
हरि से विलस रही जो खोई॥
[Image: WOT-Lunge-Sex-Position-Illustration.png]
कोई सुन्दर रमणी काम-संग्राम के अनुकूल वेश धारण कर मधुरिपु के साथ विलास कर रही है। रतिक्रीड़ा में उसके केशपाश ढीले होकर इधर-उधर लहरा रहे हैं, उसमें से ग्रंथित पुष्प भी झर गये हैं।
स्मरसमर-रतिकेलि को स्मर-समर कहा गया है। रतिक्रीड़ा में रति-विमर्दन आदि क्रिया होती है, जिससे नायिका का कबरी बन्धन खुल जाता है, उसमें सन्निहित पुष्प झर जाते हैं, विशृंखलित हो जाते हैं।
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समरति में स्त्री वीर्य धारण कर गर्भवती होती है। विपरीत रति में पुरुष उर्ध्वरेता हो ब्रह्मपद प्राप्त करता है। आसन के अर्थ में विपरीत रति कामशास्त्रियों की सूझ होगी। उसके सौंदर्य पक्ष को स्वीकार करते हुए भी कवियों ने विपरीत रति के आध्यात्मिक संकेत ही दिए हैं।
Quote:
उरसि मुरारे उपहितहारे धन इव तरल बलाके
तडिदिवपीते रतिविपरीते राजसि सुकृत विपाके।।
[Image: WOT-DZUY1-GZX4-AAdo-p.jpg]
बिनती रति बिपरीत को करो परसि पिय पाइ।
हँसि अनबोलैं ही दियौ ऊतरु दियौ बुताइ॥341॥
परसि = स्पर्श कर, छूकर। प्रिय = प्रीतम। पाइ = पैर। अनबोलैं ही = बिना कुछ कहे ही। ऊतरु दियो = जवाब दिया। दियौ बुताइ = दीपक बुझाकर।
प्रीतम ने (नायिका के) पैर छूकर विपरीत रति के लिए विनती की। (इस पर नायिका ने) बिना कुछ मुँह से बोले ही (केवल) हँसकर दीपक बुझाकर उत्तर दे दिया (कि मैं तैयार हूँ, लीजिए-चिराग भी गुल हुआ!)
मेरे बूझत बात तूँ कत बहरावति वाल।
जग जानी बिपरीत रति लखि बिंदुली पिय भाल॥342॥
कत = क्यों। बहरावति = बहलाती है, चकमा देती है। जग जानी = दुनिया जान गई। बिंदुली = टिकुली, चमकी या सितारा।
मेरे पूछने पर अरी बाला! तू क्यों चकमा देती है? प्रीतम के ललाट में (तेरी) टिकुली देखकर संसार जान गया कि (तुम दोनों ने) विपरीत रति की है।
नोट - विपरीत रति में ऊपर रहने के कारण नायिका की टिकुली गिरकर नीचे पड़े हुए नायक के ललाट पर सट गई।
परयो जोर विपरीत रति , सूरत करत रणधीर।
बाजत कटि की किन्कडि , मौन रहत मंजीर।
इस तरह की quote सिर्फ आप ही दे सकती है।
धन्यवाद आपका, हमारे ज्ञान वर्धन के लिए।