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Adultery जेठ जी ने काण्ड कर दिया
#1
जेठ जी ने काण्ड कर दिया
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
मेरे पति अममून दौरे पर रहते हैं. मैं चुदाई को तरसती हूँ. एक रात मैं मूतने गयी तो अधनंगी बाहर आ गयी. जेठ जी ने मुझे देखा तो …
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
तीन साल पहले की बात है जब मेरी शादी एक देहात में हुई थी. मेरे पति एक सेल्स एक्सिक्यूटिव हैं तो वे ज्यादातर दूसरे शहरों में दौरे पर ही रहते हैं.
घर में हम तीन लोग रहते हैं, मेरी सास, मेरा कुंवारा जेठ और मैं.
मेरी शादी काफी धूमधाम से हुई थी. मैं अपने जेठ की पसंद हूँ. मेरे जेठ पहलवान रहे हैं तो उन्होंने शादी नहीं की थी.
मेरी शादी जब हुई मैं 24 साल की थी, मेरे पति अभिषेक 30 साल के थे. पर मेरे जेठ मेरे पति से करीब 4 साल बड़े हैं. यानि कि इस समय वो 34 साल के हैं.
हमारा घर गांव के एक कोने पर बना हुआ है और घर का सिर्फ एक मुख्य दरवाजा है. हमारा घर एल L शेप में बना हुआ है और हमारी करीब 30 बीघा खेती की जमीन हैं.
मेरे जेठ जी मेरी बहुत इज्जत करते हैं … क्योंकि मेरे संस्कार आजकल की लड़कियों की तरह नहीं हैं.
मेरे कमरे के बगल में एक स्टोर है. फिर सास का कमरा और फिर ड्राइंग रूम है, उसके बाद जेठ जी का कमरा है. उसके साथ ही लगता हुआ एक बाथरूम और टॉयलेट है.
करीब डेढ़ साल पहले की बात है. जुलाई का महीना था और दूसरा सप्ताह लग गया था.
मेरे पति अभिषेक 3 दिन पहले ही अपनी ड्यूटी पर गए थे और वो इस बार करीब 12 दिन के लिए इंदौर गए थे.
चूंकि जाती हुई गर्मी और आती हुई बारिश का महीना था. बाहर काफी बारिश हो रही थी. कमरों के बाहर एल शेप में बरामदे के ऊपर टीन की चादरें थीं, जिस पर बारिश की बूंदें गिर रही थीं और टीन के बजने की आवाजें आ रही थी.
मैं गर्मी के कारण सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में थी.
मैंने पहले सीरियल देखा और रात 11.30 बजे टीवी ऑफ कर दिया.
बाहर घना अंधेरा था, बस टॉयलेट में एक नाईट बल्ब रहा था. सास और जेठ जी करीब साढ़े दस बजे सो जाया करते थे.
हम तीनों रात को अपने कमरे में दरवाजा बंद नहीं किया करते थे, सिर्फ परदा खींच दिया करते थे.
टीवी देखने के बाद मैं पेशाब करने के लिए पहले सास के कमरे और फिर जेठ जी के कमरे के आगे से होती हुई टॉयलेट में चली गयी.
बाहर गहन अंधकार था इसलिए मैंने टॉयलेट का दरवाजा सिर्फ आधा बंद किया और पेटीकोट उठा कर खड़े खड़े दोनों पैर चौड़े करके मूतने लगी.
पेशाब की कुछ बूंदें मेरी झांटों के बालों को गीला कर चुकी थीं.
मैं अब झांटें कम ही साफ करती थी … क्योंकि अभिषेक मुझमें रूचि ही नहीं लेते थे.
मूतने के बाद जैसे ही मैं बाहर निकली, मेरे जेठ सामने सिर्फ लठ्ठे के कच्छे में खड़े थे.
उन्हें सामने देखकर मैं एकदम सकपका गयी. मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि बाहर वो खड़े होंगे.
मैं सर झुकाए उनकी बगल से जाने के लिए निकली, पर उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया. मैंने हाथ छुड़ाने की भरपूर कोशिश की, पर नाकाम रही.
उन्होंने कहा- बहू, आज तेरा गोरा सुन्दर जवान बदन देख कर मन काबू नहीं हो पा रहा है. चल कमरे में चल.
मेरे पति घर में नहीं थे और मेरे जिस्म में काम की अगन जल रही थी फिर भी मैंने लोक लाज और संस्कारों से प्रेरित होकर मद्धम आवाज में उन्हें समझाने की कोशिश की- जेठ जी, ये पाप है और मेरे पति घर पर नहीं हैं. प्लीज मुझे छोड़ दो.
उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर हुए कहा- तू ऐसे मत शर्मा … मुझे पता है कि तू मेरी बात मानेगी.
ये कह कर वो नीचे झुके और अपने दाएं हाथ से मेरी पिंडलियों का घेरा बना कर मुझे इस तरह से ऊपर उठा लिया.
मेरा पेटीकोट इस तरह ऊपर उठ गया कि मेरी जांघों के पीछे वाला हिस्सा उनकी भुजाओं की गर्मी को महसूस करने लगा.
मैं उनके कंधे पर थी और मेरे पैरों की पाजेबें आवाज करने लगी थीं.
उन्होंने मुझे कमरे में ले जाकर फर्श पर खड़ा कर दिया.
मैं अंधेरे में ही उनके सामने चुप खड़ी थी.
उन्होंने सबसे पहले कमरे की कुण्डी लगायी और मुझे अपनी बांहों में जकड़ लिया.
वो मेरे गाल चूमने लगे.
मैं पीछे की तरफ झुकी, तो जेठ जी भी मेरे ऊपर झुक गए. उनका लंड मेरे नंगे पेट पर मचल रहा था.
मैं उनकी बांहों के घेरे में थी.
मैंने फिर से उन्हें कहा- जेठ जी, सास जी जग रही होंगी तो बहुत अनर्थ हो जाएगा.
उन्होंने कहा- अम्मा गहरी नींद में हैं, मैंने चैक कर लिया था.
बस ये कह कर वो मेरे चूचे दबाने लगे.
मुझे अजीब नशा सा होने लगा. उनके मजबूत हाथ मेरी पीठ पर मचलने लगे … और फिर धीरे धीरे मेरे नितम्बों पर उनके हाथ मेरे दिल में खलबली मचाने लगे.
उन्होंने मुझे चूमते हुए कहा- बहू, तू डेढ़ साल में अब तक मां नहीं बन सकी, पर आज जरूर तेरी कोख में मेरा बीज पड़ जाएगा.
उनकी बात का मैं मतलब समझ गयी.
वो मेरे साथ हमबिस्तर होना चाह रहे थे.
उन्होंने मेरा चेहरा घुमाया और मुझे पीछे से अपनी बांहों में फिर से कस लिया.
वो मेरे होंठों का रसपान करने लगे और फिर अपने हाथों से मेरे ब्लाउज़ के तीनों बटन खोल दिए.
मैं चिल्ला भी नहीं सकती थी … क्योंकि सास यही समझती कि चुदने के बाद बहू नाटक कर रही है. मेरी स्थिति बहुत अजीब हो गयी थी.
उनकी हथेलियां मेरे चुच्चों पर फिसलने लगी थीं.
मेरे स्तन टाइट होने लगे थे.
फिर अपने बाएं हाथ से जेठ जी मेरे चुच्चे मसलने लगे और उनका दायां हाथ मेरे पेटीकोट के अन्दर घुस गया था.
मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा. लेकिन इससे पहले कि मैं उन्हें फिर से मना करती, मेरी भरपूर जवानी की उठान उनकी हथेली में कैद होकर रह गयी थी. और वो उसे स्पंज की तरह धीरे धीरे दबाने लगे.
मेरी हालत उस मेंढकी की तरह हो गयी थी जो हथेली से छूटने के बार बार फुदकती है.
मेरी चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया. जेठ जी की मोटी उंगली के चलने से मेरी चूत में मचलने लगी थी. मेरी चूचियां बार बार उठने और गिरने लगी थीं. सांसें धौंकनी सी चलने लगी थीं.
मुझ पर वासना सवार होने लगी थी. अब मुझे भी बहुत मजा आने लगा था.
ये देखकर जेठ जी ने मुझे गोद में उठाकर बिस्तर पर धकेल दिया और अगले ही उन्होंने एक हाथ से अपना कच्छा उतार दिया. वो नंगे होकर मेरे ऊपर चढ़ गए और अपने घुटनों से उन्होंने मेरी जांघें चौड़ी कर दीं.
फिर जेठ बहू सेक्स के लिए मेरी छोटी सी प्यासी चूत पर जैसे ही जेठ जी ने अपना मोटा गुल्ला रखा, मेरी चूत का मांस फैलता चला गया.
उन्होंने दाब दे दी और तभी मेरी हिचकी निकल गयी.
असल में उनका बड़ा सुपारा मेरी चूत में धंस चुका था.
मेरी चुत काफी दिन बाद चुद रही थी और इतना मोटा सुपारा मेरे पति का नहीं था तो मेरी सीत्कार निकल गई और मुझे हल्के से दर्द होने लगा.
मगर जेठ जी ने मेरी चुत का दर्द नजरअंदाज किया और वे अन्दर धंसाते चले गए.
उनका पूरा लौड़ा मेरी चुत को चीरता हुआ जड़ में समा गया था.
मेरी आंखें बंद हो गई थीं. मगर कुछ पल के बाद ही मेरी चुत ने लंड को सहन कर लिया था.
बस इसके बाद तो जेठ जी अपनी गांड आगे पीछे करते हुए धीरे धीरे धक्के मारने लगे. मैं भी उनके हर धक्के में असीम आनन्द प्राप्त करने लगी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
मेरी चूत का फैलना और सिकुड़ना मेरे शरीर को अत्यधिक आनन्द दे रहा था.
जब जब वो अपने मजबूत चूतड़ों के दबाव से मेरी चूत में धक्के मार रहे थे, तो मेरी बच्चेदानी सहम कर रह जाती थी.
मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि मेरे जेठ का लंड इतना मोटा और कड़क होगा.
कुछ ही पलों बाद मेरी टांगें हवा में उठ गईं और बहू सेक्स के लिए उन्हें अपने अन्दर आने के लिए खुद से कोशिश करने लगी.
अब मेरी चूत और उनके लंड के मिलन की फक फक फक की आवाजें आ रही थीं. मेरी चूत ने झाग उगलना शुरू कर दिया था. मेरी जांघें ऊपर उठ गयी थीं.
जेठ जी मस्ती में आकर मेरी हवा में उठी हुई मेरी टांगों के तलुवे चाटने लगे.
मेरे पति ने आज तक कभी भी मेरे तलुवे कभी नहीं चाटे थे क्योंकि वो दस बारह धक्के पेल कर झड़ जाते थे.
पर इधर तो जेठ जी ने मेरी हवा निकाल कर रख दी थी.
मैंने अपनी जांघ के नीचे से दायां हाथ निकाल कर उनका लंड पकड़ने की कोशिश की, पर वो मेरी मुट्ठी में नहीं आ सका.
तब उन्होंने मुझे चूमते हुए कहा- बहू, इसकी मोटाई नाप कर क्या करेगी, बस मजे लेती रह!
मैं शर्म के मारे पानी पानी हो गयी.
पर कमरे में घोर अंधेरा था तो मेरी हिम्मत बनी रही.
मेरी नन्ही सी चूत में जेठ जी का मोटा गुल्ला लगातार मार कर रहा था.
दस बारह मिनट से मेरी जम कर चुदाई हो रही थी. ऐसा मजा शादी के बाद मैंने पहली बार लिया था.
कमरे में मेरे पैरों की पायल की झनझनाहट गूंज रही थी, बस शुक्र यही था कि मेरी सास सो रही थीं. मेरा नीचे का सारा हिस्सा जेठ जी ने हिला कर रख दिया था.
तभी उनके चूतड़ों की रफ़्तार अचानक काफी बढ़ गयी.
मेरे हलक से मजे और मीठे दर्द के कारण हिचकियां निकलने लगीं और कुछ ही सेकंड बाद जेठ जी के गले से सांड की तरह आवाज निकलने लगी.
मेरी चूत में उनके लंड की गर्म गर्म धारें पड़ने लगीं.
आनन्द के मारे मेरा बुरा हाल था. मेरी बच्चेदानी में मुँह पर जेठ जी के लंड ने करीब 9-10 बार रह रह कर धारें मारीं और वो मेरी छाती के ऊपर फैलते चले गए.
दो तीन मिनट तक हम दोनों जेठ बहू ऐसे ही पड़े रहे.
अब मेरे कानों में टीन पर बारिश के गिरते पानी की आवाजें आने लगी थीं.
मैं जैसे ही सचेत हुई, मैंने उन्हें कहा- जेठ जी जल्दी उठो न … मां जी कभी भी आ सकती हैं.
उन्होंने तभी बेडस्विच दबा दिया और नाईट बल्ब जल उठा. फिर जैसे ही उन्होंने अपना मोटा, पर मुरझाया लंड मेरी चूत से बाहर निकाला, उनकी मर्दानगी देख कर मैं मस्त हो गयी. क्योंकि लंड भी उन्होंने लगभग खींच कर ही निकाला था.
वाह क्या गजब की मोटाई थी, करीब सवा दो इंच मोटा लंड मेरी चूत की सैर करके बाहर आ गया था.
अभी मुरझाई हालत में भी उनका लंड लगभग साढ़े छह इंच का था.
इसका मतलब जेठ जी का लंड करीब सात साढ़े सात इंच लम्बा था.
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- बहू, तू तो बहुत मस्त है री … तेरी चूत ने तो मेरे जैसे पहलवान का भी पानी सोख लिया.
जेठ जी ने कहा- बहू. आज पूर्णिमा की रात है … और तू जवान है. मैंने इससे पहले कभी किसी परायी स्त्री की तरफ नजर उठा कर नहीं देखा. अब तू समझ कि नौ महीने बाद सवा शर्तिया मां बन जाएगी. आगे मिलने की तेरी इच्छा पर है. तेरा पति अभिषेक शायद लायक नहीं है.
मैं चुप रही, वो शायद मेरे मन की बात समझ चुके थे.
मुझे दुबारा चुदने के लिए भी उन्होंने मेरे ऊपर ही छोड़ दिया था.
मैंने शर्म के मारे अपनी कुहनी से आंखें ढक ली.
पर उन्होंने कहा- तू शरमा क्यों रही है, हम दोनों तो इस बिस्तर पर आज की रात के साथी हैं.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#5
मैंने उनकी ये बात सुनकर आंखें खोल दीं.
उन्होंने कहा- बहू तू रुक, मुझे पेशाब लग रही है. मैं अभी आता हूँ.
ये कह कर वो बिस्तर से उठे. उन्होंने एक चादर अपने सिर पर डाल ली और कुण्डी खोल कर बाहर निकल गए.
वाह क्या चौड़ी छाती, चौड़े कंधे, छाती पर घने काले घुंघराले बाल … और मस्त साढ़े सात इंच लम्बा और सवा दो इंच मोटा कड़क लंड. उनकी मजबूत गांड देख कर मुझे उनसे प्यार होने लगा था. मैं अपने जेठ जी से चुद कर मस्ता गयी थी.
मेरे पति अभिषेक की तो छोटी सी 3 इंच की कमजोर सी लुल्ली थी, उसने बड़ी मुश्किल से सुहागरात को मेरी सील तोड़ सकी थी. पर मुझे वो न तो वो मजा दे पाया, जो मैंने उम्मीद की थी … और न ही मैं पिछले डेढ़ सालों में मां नहीं बन सकी थी.
अब जेठ जी के वापस आने का मुझे बेसब्री से इन्तजार था. मैं उनके लंड से दुबारा चुदने के लिए एकदम से मन बना चुकी थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#6
दस मिनट बाद जेठ जी पेशाब कर करके कमरे में आ गए थे. पेशाब करने के बाद भी उनका विशाल लंड नीचे की तरफ ऐसे लटक रहा था, जैसे किसी सवा दो इंची मोटाई के गोले का ऊपर का एक चौथाई भाग नीचे के तरफ को लटक रहा हो. ऐसा शानदार लंड मैंने आज ही अपनी जिंदगी में पहली बार देखा था. उनका लंड चादर के नीचे से साफ दिख रहा था, वो आकर सोफे पर बैठ गए.
उन्हें देख कर मुझे भी पेशाब की हाजत हुई. मैं तो पेटीकोट में ही थी, पर मेरे ब्लाउज़ के बटन खुले हुए थे और अब मैं अपने चुच्चों को ढकना भी नहीं चाह रही थी … क्योंकि वो मेरी छाती पर फिर से लगातार देखते जा रहे थे.
मैं वैसे ही अधनंगी बिस्तर से उठी और दरवाजा खोल कर टीन के नीचे से होती हुई टॉयलेट में चली गयी. उधर नीचे पेशाब करने बैठ गयी. जैसे ही मैंने पेशाब के लिए जोर लगाया, नीचे सीट पर करीब तीन चम्मच गाढ़ा सफ़ेद वीर्य गिर गया था और वो सीट पर ही चिपक गया था. मैंने पेशाब की और उस मलाई पर दो मग पानी डाल कर उसे बहा दिया.
मेरी फुद्दी यानि की चूत चुद चुद कर थोड़ी से भारी और बड़ी हो गयी थी क्योंकि जेठ जी ने मेरी फुद्दी बहुत दबा कर बजायी थी.
एक बार मैंने सोचा कि उन्हें बता कर सीधे अपने कमरे में चली जाऊं, पर मन नहीं माना. क्योंकि मैं उनके भरे हुए सुन्दर कड़क लंड का भरपूर मजा लेना चाहती थी.
मैं पहले उनके कमरे के आगे से होती हुई सास जी के कमरे तक गयी. बाहर बहुत जोर से तड़तड़ करके बारिश हो रही थी. मैंने धीरे से सास के कमरे के पर्दा हटा कर देखा, तो सासु मां खर्राटें ले रही थीं.
उस समय तक करीब साढ़े बारह बज चुके थे. मैं दुबारा जेठ जी के कमरे में आ गयी.
उन्होंने पूछ ही लिया कि बहू इतनी देर कहां लगायी तूने?
मैंने उन्हें बताया- मुझे डर लग रहा था कि कहीं मां जी न आ जाएं!
जेठ जी अपने मोटे लंड को धीरे धीरे सहला रहे थे. मैं जैसे ही उनके निकट पहुंची, उन्होंने बैठे बैठे ही मुझे अपनी गोदी में खींच लिया.
मैं उनकी नंगी जांघ पर बैठ गयी. इस बार मेरा मुँह उनकी तरफ था. वो फिर से मेरे होंठ चूसने लगे, मगर मैं उनका कड़क लंड चूसने के लिए मरी जा रही थी. मैं उनकी गोद से उतर गयी और फर्श पर उकडूं बैठ गयी. मैं उनके शांत चेहरे पर काम वासना के वशीभूत होकर देखने लगी, वो शायद मेरे मन की बात समझ गए.
उन्होंने मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरा और कहा- बहू आगे बढ़ और अपनी इच्छा पूरी कर ले.
बस अनायास ही मेरे होंठ उत्तेजना और शर्म के मारे कांपने लगे और इसी कशमकश में पता नहीं कब, मैंने उनके अंडे जैसे बड़े गुलाबी सुपारे को मुँह में ले लिया. मेरा हाल उस कामुक कुतिया की तरह हो गया था, जो सीजन आने पर अपने छोटे साइज की परवाह न करते हुए खुद ही कुत्तों के कमर पर चढ़ने लगती है.
जैसे जैसे मेरी जीभ मचलती गयी. उनका लंड फूल कर एक मोटे तंदरुस्त साढ़े सात इंच लम्बे लौड़े में तब्दील हो चुका था. मैं उनके चहरे के हाव-भाव देख रही थी और वो मेरी जुल्फों से खेल रहे थे.
उन्होंने कामातुर होकर अपने सिर को सोफे पर टिका लिया था. उन्होंने अपनी दोनों मोटी जांघें फैला ली थीं. मैंने उनका मांसल लौड़ा पकड़ कर उठाया और उनके सुन्दर आंड चूमने शुरू कर दिए. जेठ जी भी मेरी ही तरह सी सी करने लगे. उनकी बंद आंखों से लग रहा था कि वो बहुत आनंदित महसूस कर रहे हैं.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#7
हम दोनों बेफिक्र होकर सेक्स के मजे ले रहे थे. उनका सिर्फ एक तिहाई लौड़ा ही मेरे मुँह में समा पा रहा था.
अब मेरे से बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था. मेरी चूत सिकुड़ने और फैलने लगी थी. मैं खुद ही उन्हीं की बगल में सोफे पर चूतड़ उठा कर चुदने की पोजीशन में हो गयी.
मैंने उनकी जांघ थपथपाई और कहा- जेठ जी, आओ और अपनी भड़ास निकालो. मैं भी बहुत गर्म हो गई हूँ.
इतना सुनते ही वो उठे और उन्होंने प्यार से मेरे चूतड़ों पर हथेली से चार पांच बार थपथपाया और नीचे झुक कर मेरी गांड का छेद चाटने लगे. अपनी गांड के छेद पर जेठ जी की खुरदुरी जीभ के स्पर्श से मेरे तन बदन में काम वासना का सागर हिलोरें मारने लगा.
जब जब उनकी गर्म जीभ मेरी गांड के छेद पर घूम रही थी, एक अत्यंत आनन्ददायक लहर मेरे चूतड़ों से होती हुई मेरे दिमाग तक पहुंच रही थी. मेरी चूत ने फिर से पानी निकालना शुरू कर दिया.
जेठ जी के गर्म होंठ अब मेरी चूत पर मचलने लगे थे. मेरा भगांकुर उनके मुँह में फूल और पिचक रहा था. मेरी चूत में एक आग थी, जिसे अब उनका कड़क लौड़ा ही ठंडा कर सकता था. मैंने अपना दायां हाथ अपने चूतड़ों पर जोर से मारा ताकि उनका ध्यान चाटने से हट कर चोदने के लिए तत्पर हो जाए. मैं ये मौका किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ना चाहती थी.
मेरे चूतड़ों पर हुई आवाज सुनकर वो उठे और उन्होंने अपना गर्म सुपारा फिर से मेरे लम्बे कट पर घिसना शुरू कर दिया. उनकी इस हरकत से मेरा दिल बाग बाग होने लगा. मेरा मन हुआ की जेठ जी अपने बड़े लौड़े से मेरी चूत फाड़ दें.
तभी मेरे इतना सोचते ही फिर से सुपारा मेरी चूत में घुसता चला गया और मेरी मीठी कराह निकल गई. उन्होंने उसी वक्त मेरी गांड कस कर पकड़ ली और बेरहमी से मुझे चोदने लगे. मैं मीठे मीठे दर्द के कारण मजे में कुतिया की तरह मद्धिम स्वर में चीखने लगी.
मेरी फुद्दी की गहराई ज्यादा नहीं थी. मेरी तर्जनी उंगली मेरी बच्चेदानी को छू लेती थी. अब आप लोग खुद ही अंदाजा लगा लो कि बच्चेदानी करीब करीब हर धक्के में 4 -5 इंच पीछे धकेली जा रही थी. कभी कभी तो मुझे अपनी कमर बीच में से लौड़े को एडजस्ट करने के लिए गोलाकार करनी पड़ रही थी.
जेठ जी को मेरी चूत में धक्के मारते मारते करीब 10 मिनट हो गए थे. वो इस बार पता नहीं बाहर से क्या खा कर आए थे कि उनका वीर्य स्खलन ही नहीं हो रहा था.
फिर तो उस वक्त गजब ही हो गया, जब उन्होंने अपना दायां पैर सोफे पर रखा और बायां जमीन पर … और मेरी चूत के चिथड़े उड़ाने लगे.
पर मैं भी इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं थी. बस फिर हम दोनों मादरजात नंगे होकर उस काम में मशगूल हो गए, जो एक सभ्य समाज में किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं हो सकता. पर अब हमें दुनिया से कुछ लेना देना नहीं था.
उन्होंने अपने हाथ से कस कर मेरी चोटी पकड़ ली और एकदम बहशी बन गए. मेरी फुद्दी से फच्च फच्च फच्च की आवाजें आने लगीं. मुझे यही डर लग रहा था कि कहीं मेरी काम आसक्त आह आह की आवाजें सुन कर मेरी सास न आ जाएं. पर ये सिर्फ डर था.
खैर उन्होंने फिर अपना बायां पैर सोफे कर मुझे हचक कर चोदा. करीब पांच मिनट तक उनका पिस्टन मेरी चूत के इंजिन में सटासट चलता रहा. वो झड़ने का नाम नहीं ले रहे थे और मेरी सांसें रुकने लगी थीं.
फिर उन्हें पता नहीं क्या सूझा, मेरी छाती के नीचे अपनी बांह का घेरा बनाया और एक हाथ पेट नीचे लगा कर मुझे ऊपर उठा लिया. उनका लौड़ा अभी भी मेरी ही चूत में घुसा हुआ था. ये हरकत देख कर मैं कांप उठी, पर अब कुछ नहीं हो सकता था. मैंने खुद मुसीबत बुलाई थी.
फिर जेठ जी ने मुझसे कहा- बहू, आगे घुटनों पर झुक जा और अपनी गांड उठा दे पीछे से.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#8
मैं भी अच्छी तरह चुदना चाहती थी, फिर पता नहीं आज के बाद चांस मिले या न मिले, तो जैसा जेठ जी ने कहा. मैं हो गई.
बस फिर तो उन्होंने मुझे घोड़ी बना कर जो चुदाई शुरू की, तो लगभग पांच मिनट धकापेल गतिमान एक्सप्रेस की तरह लंड को चूत की पटरी पर दौड़ा दिया. मेरी हालत मरी सी कुतिया जैसी हो गई थी मगर मैं बता नहीं सकती कि वो आनन्द मुझे आज तक कभी नहीं मिला था. वो मेरे चूतड़ों पर लगभग आधे खड़े हुए थे और मेरी कमर उन्होंने कस कर पकड़ी हुई थी.
अब मैं भी झड़ने वाली थी. वो भी लगभग इसी हालत में थे. अचानक उनके पैर तेजी से कांपने लगे और फिर रह रह कर मेरी चूत में उनका गर्म गर्म वीर्य झटके ले लेकर गिरता रहा. जब वो रुक गए, तो मैं बिस्तर पर पेट के बल पसर गयी और वो भी धीरे धीरे झुकते हुए मेरी पीठ पर लेट गए. मेरे चूतड़ जो करीब 34 इंच चौड़े थे, उनकी मजबूत और जांघों के नीचे पिस गए.
आह … उनकी ऐसी मर्दानगी देख कर मैं उन्हें दिल दे बैठी. हम दोनों अपनी सांसें नियंत्रित करने में लगे थे.
लगभग 2 मिनट बाद उन्होंने मेरे गाल चूमे और फुसफुसा कर मेरे कान में ‘आई लव यू …’ कहा.
अब जाकर मेरे दिल को चैन पड़ा. ये शब्द मैं अपने पति अभिषेक से सुनने के लिए तरस गयी थी.
इसके बाद वो मेरी पीठ से उतर गए और मेरी साइड में सीधे लेट गए.
मैंने करवट ली और उनकी जांघ पर अपनी बायीं जांघ उठा कर रख दी. मैंने भी उनकी चौड़ी छाती पर तीन चार बार किस किया और उनका साढ़े सात इंची लम्बा लंड पकड़ लिया. लंड अब थोड़ा ढीला पड़ गया था और मोटाई थोड़ी सी कम हो गयी थी. उनके लौड़े का सुपारा खाल से आधा बाहर निकला हुआ था.
मैंने दीवार घड़ी की तरफ़ देखा तो रात के करीब पौने दो बज चुके थे. मेरी दूसरी चुदाई करीब 1.20 पर शुरू हुई थी, यानि कि मैं लगभग 25 मिनट नॉन स्टॉप चोदी गयी थी. मुझे खुद पर भरोसा नहीं हो रहा था कि जेठ जी का लौड़ा मेरी चूत की सैर करके थक चुका था.
मैं बिस्तर से उठी और मैं उनकी मर्दानगी देखने लालच नहीं रोक पायी. मैंने बड़ा वाला सीएफ़एल बल्ब जला दिया.
आह, उनकी सफ़ेद बेडशीट पर मेरी झांटों के और कुछ उनके काले घुंघराले बाल झड़े हुए थे, जो मेरी रगड़ाई के दौरान झड़े होंगे. जैसे ही मेरी नजर उनके चेहरे पड़ी, तो मैं शरमा गयी. पर उन्होंने तुरंत उठ कर मुझे अपने आलिंगन में ले लिया. अब मैं अपने को काफी संतुष्ट महसूस कर रही थी.
बाहर बारिश अब भी लगातार हो रही थी. बेडशीट पर मेरी फुद्दी से उनका वीर्य निकल कर फ़ैल गया था जो कि चिपचिपा सा था.
मैंने कहा- जेठ जी, मैं सुबह ये चादर धो दूंगी.
उन्होंने कहा- नहीं बहू, ये चादर मैं संदूक में ताला लगा कर रखूंगा, तू चिंता मत कर. ये चादर अब आम चादर नहीं रही क्योंकि इस पर हमारी कुलवधू सो चुकी है.
उनकी इस बात के बाद अब मेरे पास कहने को कुछ शब्द नहीं थे.
मैं जल्दी से बेड से उतरी और मैंने अपना पेटीकोट पहना और ब्लाउज़ के बटन लगाए.
उन्होंने मुझे अपनी बांहों में एक बार फिर से भर लिया और होंठों पर कुछ सेकंड अपने होंठ रख दिए. वो सीन मुझे आज भी याद है. वो शायद कुछ कहना चाह रहे थे, उनके होंठ लरजने लगे थे. शायद वो मुझसे बिछुड़ना नहीं चाह रहे थे या मुझसे माफ़ी मांग रहे थे.
खैर मैंने भी झुक कर उनके चरण छुए और उनकी छाती पर दो किस देकर बाहर जाने को हुई.
तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर कहा- बहू ठहरो.
फिर उन्होंने दोनों बल्ब ऑफ़ किए और कुण्डी खोल दी. मैं सधे क़दमों से अपने कमरे की ओर चल पड़ी.
मैं कमरे में आयी और अन्दर से कुण्डी लगा कर लाइट ऑन की. मैंने उत्सुकतावश छोटा शीशा उठाया. अपनी दायीं जांघ ड्रेसिंग टेबल पर रखी. शीशे को जैसे ही मैंने अपनी जांघों के बीच में लगाया, तो शॉक्ड हो गयी. मेरी चूत के होंठ बाहर निकल चुके थे. मेरी चूत थोड़ी सूजी हुई थी और भरी सी लग रही थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#9
मैं अपनी फटी चूत देख कर शरमा गयी, पर आज मेरा मन बहुत शांत हो गया था. मैंने कुण्डी खोली और परदे खींच कर लाइट बंद करके बिस्तर पर चली गयी. फिर पता नहीं कब मेरी आंख लग गयी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#10
badhhiya kahani thi
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#11
(20-06-2022, 05:52 PM)neerathemall Wrote: मैं अपनी फटी चूत देख कर शरमा गयी, पर आज मेरा मन बहुत शांत हो गया था. मैंने कुण्डी खोली और परदे खींच कर लाइट बंद करके बिस्तर पर चली गयी. फिर पता नहीं कब मेरी आंख लग गयी.

(27-06-2022, 06:12 PM)maitripatel Wrote: badhhiya kahani thi
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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