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मेरे पति को मेरी खुली चुनौती
Ch. 03 - योगराज
मैं अब अपने पति की और से निश्चिंत हो चुकी थी। बल्कि मुझे उनसे बदला लेना था। मेरे पति को मुझ में कोई रस नहीं रहा था। मेरी चूत में बड़ी मचलन हो रही थी। मुझे किसी मोटे लण्ड से चुदवाने की ललक बढ़ गयी थी। जाते आते और ऑफिस में भी मुझे कई वीर्य वान और सुन्दर बदन वाले पुरुष हर रोज ताड़ते रहते थे। शायद उनके मन में भी मुझे चोदने की इच्छा जरूर छिपी हुई होगी। यह सोच कर मेरी दबी हुई सम्भोग की इच्छा भड़क उठी। मैं रोज रात को किसी ना किसी पुरुष से सम्भोग के सपने देखने लगी। पर सपने भला सच्चाई की जगह थोड़े ही ले सकते हैं? जाते आते मैं अब पुरुषों को ज्यादा पैनी नजर से देखने लगी। पर मेरी नजर में मुझे मेरे काबिल कोई भी पुरुष नहीं लगा।
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हाँ एक योगराज थे जो मुझे मेर काबिल लगे। वह मुझसे थोड़ा सीनियर थे। एकदम आकर्षक व्यक्तित्व, लंबा, गठा हुआ सुडौल कसरती बदन, भरी हुई मांसल भुजाएं, घने बाल, चौड़ा सीना और न जाने क्यों पर चेहरे पर एक अजीब सा खोया खोया सा भाव मेरे मन को छू गया। उसे देखते ही जैसे मेरे पाँव के बीच में से कुछ कुछ होने लगता। शायद मेरे मन में एक गुप्त भाव हुआ की वह जरूर मेरे बदन की गर्मी और भूख को शांत करने की क्षमता रखते थे। वह पहले व्यक्ति थे जिसको मैंने ध्यान से देखा था जब मैंने पहली बार मेरी कंपनी ज्वाइन की थी। पर उस समय मैं अपने पति के रंग में रंगी हुई थी। फिर भी जब पहली बार उनसे मिलने उनके कमरे में गयी तब उन्हें देख कर मैं देखती ही रह गयी। और आश्चर्य मुझे तब हुआ जब वह भी मुझे कितने लम्बे समय तक ताकते ही रहे। साधारणतः आपकी महिला साथीदार कितनी ही सुन्दर क्यों ना हो, पर आप उसे ताक कर देख नहीं सकते। यह असभ्य माना जाता है। पर योगराज मुझे ना सिर्फ ताकते रहे बल्कि मुझे देखकर उनका मुंह खुला का खुला ही रह गया। यह तो एक बड़ी अजीब बात थी।
मैंने गला खूंखार कर जब उन्हें इशारा किया तब उन्होंने अचानक अपने आपको सम्हाला और बोलै, " प्रिया, प्लीज आप को इस तरह ताकने के लिये मुझे माफ़ करें। आपकी शक्ल देख कर मैं थोड़ी देर के लिए धोका सा खा गया। आप कितनी खूब सूरत हो।" फिर एक गहरी साँस लेकर वह वहाँ से हट गए। शर्म के मारे मैं पानी पानी हो रही थी। सामान्यतः ऐसे प्रशंशा से भरे हुए वचन सुनकर मैं खुश हो जाती। पर उस दिन मुझे उनका यह वर्तन कुछ अजीब सा लगा। खैर वह समा चला गया और योगराज ने मुझे अपना परिचय दिया और उनकी टीम से मिलाया l शुरुआत के वह अजीब लम्हें को नजर अंदाज करें तो वह मीटिंग यादगार रही। मैं योगराज के बरबस आकर्षित करने वाले व्यक्तित्व से काफी प्रभावित या कहूं की आकर्षित हुई तो वह गलत नहीं होगा। वह हमेशा छोटी सी कटी हुई दाढ़ी रखते थे जो उनके आकर्षक व्यक्तित्व को कामुकता प्रदान करती थी।
पहले ही दिन से मैं महसूस कर रही थी की जब भी मौक़ा मिलता, योगराज मुझे ताकते ही रहते थे। जब हमारी नजरें मिलतीं तो वह शर्मिन्दा होकर अपनी नजर हटा दिया करते। उनकी नज़रों में मैं एक गहरा अजीब भाव देख रही थी। उन्होंने कभी भी मुझसे किसी तरह की कोई गलत हरकत नहीं की। समय के बीतते योगराज नजरें भी मेरे पुरे बदन पर घूमने लगीं। अब वह पहले वाला अजीब सा भाव जाता रहा था। अब हम दोनों एक दूसरे से नजरे मिलने पर जैसे कोई गुप्त सन्देश दे रहे थे। उनकी नजर इतनी शुक्ष्म और गुह्य थी की हमारे पुरे ऑफिस में कोई भी हमारी नज़रों का आदान प्रदान के बारे में समझ ही नहीं सका। शुरू से ही मैं भी उनकी नजरों का मेरी पैनी नजर से जवाब देना चाहती थी, पर चूँकि मैं शादी शुदा थी और उस समय शादी के कस्मे वादे बगैरह में मेरा अंध विश्वास था, मैं उनके इशारों को उपेक्षित करती रही। पर अजित से नाता तोड़ने के कुछ हफ़्तों के बाद से मैंने योग (योगराज) की नज़रों का मीठी सी मुस्कान देकर जवाब देना शुरू किया। जैसे ही मैंने योग को मीठी नजर से जवाब देना शुरू किया, की हम दोनों के बीच की आँखों आँखों की मस्ती बढ़ती गयी।
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योग की कटार सी तीखी नजरें देखते ही मेरी हालत लड़खड़ा जाने लगी। उनकी कामुक नजर मेरे बदन पर पड़ते ही मेरे पुरे बदन में एक कम्पन सी होने लगती। अब मैं भी उनसे अकेले में मिलने के बेताब होने लगी थी। और मुझे ऐसे कुछ मौके अनायास मिल भी गए। ख़ास तौर से मैं उस सुबह को नहीं भूल सकती जब मुझे ऑफिस पहुँचने में थोड़ी देर हो गयी थी। भागते भागते मैं जब लिफ्ट में दाखिल हुई तो योगराज अकेले वहाँ पहले से ही खड़े थे। मैंने उन्हें "हेलो" कहा और उन्होंने भी थोड़ा सा मुस्का कर मुझे "हाई प्रिया!" कहा। मुझे साफ़ साफ़ याद है की उस दिन मैंने काला स्कर्ट और लूस सफ़ेद टॉप पहन रखा था। मेरे लिफ्ट में दाखिल होते ही लिफ्ट का दरवाजा बंद हुआ। लिफ्ट में मैं और योगराज ही थे। थोड़ा चलते ही अचानक बिजली गुल हो गयी और लिफ्ट में अन्धेरा हो गया। लिफ्ट बीच में ही रुक गयी। अँधेरा होते ही मेरी हालत खराब हो गयी। मेरी साँस घुटने लगी। मैं एकदम मारे डरके घबड़ा उठी और बिना सोचे समझे योगराज को अँधेरे में ढूंढने लगी और उनके बदन को छूते ही हाथ फैला कर उनको पकड़ कर अपने करीब लाने की कोशिश करने लगी। मेरी इस तरह की हरकतें देखकर योगराज भी बड़े अचम्भे में पड़े होंगे। पर मुझ में यह सब सोचने की क्षमता कहाँ थी? मैं तो अँधेरे के डर के मारे चिल्ला उठी, "योग, मुझे बचा लो। मुझे अपनी बाहों में लेलो। छोड़ना मत। मुझे अँधेरे से बहुत डर लगता है। मेरा दम घुट रहा है। तुम कहाँ हो?" यह कह कर मैं उनके बदन पर हाथ फिराने लगी, जिससे मुझे उनका हाथ मिले और उन हाथों के बंधन में मैं बँध जाऊं। उनके लिए तो यह एक सुनहरा मौक़ा था। उनके बदन पर घूम रहे मेरे हाथ को योग ने धीरे से पकड़ कर जैसे अनजाने में ही अपने दो पाँवों के बिच में रख दिया। उनकी पतलून में लटकता हुआ उनका आधा कड़क लण्ड मेरे हाथ में अनायास ही आ गया। मैंने अपने हाथ में योग का लण्ड लिया और उसे महसूस किया। बापरे! उनका आधा ही खड़ा लण्ड भी कितना लंबा और मोटा था यह मैंने बिच में कपड़ा होते हुए भी महसूस किया। मेरे पुरे बदन में एक सिहरन फ़ैल गयी।
मेरी गभराहट देख कर योगराज ने मुझे अपनी बाँहों में खिंच लिया और बोले, "बिलकुल चिंता मत करो प्रिया (मेरा नाम) डार्लिंग, मैं कहीं नहीं जाऊंगा। मैं यहीं हूँ।" उनका हाथ मैंने मेरी कमर के घिरावे पर रखा। उस समय मैं डर से कम और उन्माद भरी उत्तेजना से ज्यादा प्रभावित थी। मैं योग के लण्ड को अनजाने में अनायास ही कुछ देर तक सहलाती रही। मैं फिर यह सोच कर घबरा गयी की कहीं योग मेरे ऐसा करने को मेरी सम्मति ना मान ले। यदि उसे ज़रा सी भी भनक पड़ गयी की मैं भी योग से चुदवाने के लिए तैयार हूँ तो उसको मेरे स्कर्ट को ऊपर उठा कर और मेरी पैंटी को निचे खिसका कर अपनी पतलून की ज़िप खोल कर अपना मोटा लंड मेरी चूत में घुसेड़ने में कोई वक्त नहीं लगेगा। और अगर ऐसा हुआ तो वह मुझे वहीँ लिफ्ट में ही पकड़ कर चोदने लग जाएगा। फिर मैं भी उसे रोक भी नहीं पाउंगी। डर के मारे फ़ौरन मैंने अपना हाथ योग के लण्ड के ऊपर से हटा दिया। मुझे इतना करीब पाकर और ऐसी हरकतें करते हुए महसूस करने पर योग का लण्ड खड़ा हो जाना स्वाभाविक ही था। मेरे उन्नत उरोज उनकी चौड़ी छाती को रगड़ रहे थे। उनका लण्ड एकदम ना सिर्फ खड़ा हो गया बल्कि ऊँचा उठते हुए मेरे दो पॉंव के बिच में टक्कर मारने लगा। जैसे ही मैंने उनके खड़े लण्ड को मेरे पाँव के बिच में महसूस किया की मेरे बदन में डर की जगह उत्तेजना भरी काम की ज्वाला फ़ैल गयी।
मैं उनको जैसे कस कर दबा रही थी तो वह भी तो थोड़े टेढ़े हो कर उनके हाथ मेरी गाँड़ की गोलाई पर घुमाने और मेरे कूल्हों को बड़े प्यार से सेहला ने लगे। उनके टेढ़े होने से उनका लण्ड सीधा ही मेरी चूत में मेरे कपड़ों के बिच में से टोचने लगा। इस का अनुभव होते ही मेरी चूत में से जैसे मेरे स्त्री रस की धारा बहने लगी। तब शायद योगराज को ध्यान आया की उन्होंने अलार्म बटन तो दबाया ही नहीं था। वह मुझे थोड़ा बाजु में खिसकाते हुए बोले, "रुको, मैं ज़रा अलार्म बटन दबाता हूँ।" यह कह कर खिसक कर बटन दबाने के लिए उन्होंने हाथ बढ़ाया और वह अँधेरे में अलार्म का बटन ढूंढने लगे। उनके हटने से मैं एकदम डर गयी। पता नहीं, शायद मेरे मन की गहराईयों में मैं नहीं चाहती थी की वह अलार्म बटन दबाये जिससे की लिफ्ट के दरवाजे जल्दी से खुल जाए और हम बाहर निकल पाएं। मैं घूम गयी और उनका हाथ पकड़ कर अपने सीने से चिपका कर बोली, "नहीं, आप कहीं भी नहीं जाएंगे। मुझसे ज़रा भी दूर मत जाइये।" मैंने योगराज के बदन को मेरे पिछवाड़े से धक्का मार कर लिफ्ट की दिवार के साथ सटा दिया और उनके बदन को कस कर दबा कर खड़ी हो गयी।
तब मेरी गाँड़ उनके खड़े हुए लण्ड को दबा रही थी। उनके दोनों हाथ मेरी छाती पर मेरे उन्नत फुले हुए दो पके हुए आम के फल सामान मेरे स्तनों को जकड़े हुए थे।
इसी हफरा तफ़री में योग निचे फर्श पर फिसल पड़े। क्यूंकि हम दोनों ने एक दूसरे को अपनी बाहों में जकड रखा था तो मैं भी उनके साथ फर्श पर फिसल पड़ी। ।
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तब मैं उनकी गोद मैं ही बैठ गयी थी। मेरे कूल्हे के निचे उनका खड़ा लण्ड दब रहा था। योग को इससे शायद परेशानी हो रही थी। योग ने मुझे कमर से पकड़ कर थोड़ा ऊपर उठाया। मुझे पता नहीं चला पर अँधेरे में ही शायद योग ने मेरे स्कर्ट को ऊपर की और खिसकाया और फिर अपना लण्ड मेरी पैंटी में छिपी मेरी चूत को निशाना बनाते हुए मेर दोनों पॉंव को फैला कर बिच में रख दिया और मुझे अपने दोनों पॉंव के बीच में अपनी गोद में बिठा दिया। अगर बिच में पैंटी नहीं होती तो शायद योग का लण्ड मेरी चूत में घुस जाना तय था। बापरे! मैं तो डर और उत्तेजना के मारे काँप रही थी। ऐसा अजीबो गरीब अनुभव जिंदगी में मुझे पहले कभी नहीं हुआ था, जब डर और उन्माद का ऐसा अनूठा मिश्रण हुआ हो। एक और मैं अँधेरे में डर के मारे मरी जा रही थी, तो दूसरी और योग मुझे लिफ्ट में ही चोदने की जैसे पूरी तैयारी कर रहे थे। योग ने इस मौके का फायदा उठाते अपने दोनों हाथ मेरे स्तनों पर रखे और मेरे स्तनों को मेरे टॉप के ऊपर से ही मुझे आश्वासन देते हुए मसलने लगे
एक तरफ योग का लण्ड मेरी गीली चूत को कुरेद रहा था, तो दुसरी और उनके हाथ मेरे स्तनों को मसलने और दबाने में लगे हुए थे। मुझे उस समय अँधेरे से बिलकुल डर नहीं लग रहा था, क्यूंकि मैं जानती थी की योग मुझे इस पोजीशन में छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे। बस वह मुझे यही कह कर सांत्वना देते रहे की, "प्रिया डार्लिंग, डरना मत। अब जल्द ही बिजली आ जायेगी और हम जल्द ही बाहर निकल सकेंगे।" मैं सच कह रही हूँ की अगर योगने उस समय लिफ्टमें मेरी पैंटी खिसका कर अपना मोटा लंड मेरी गीली चूत में डाल दिया होता तो मैं उनका ज़रा भी विरोध नहीं करती। क्योकि शायद मैं इंतजार कर रही थी की योग ऐसा कुछ करे। मेरी साँसे धमनी की तरह फूली हुई तेज चल रही थीं। योग के हाथ मेरे स्तनों का पूरा आनंद ले रहे थे। मैं उस समय ऐसे दिखावा कर रही थी जैसे मैं एकदम डरी हुई थी और योग की हरकतों को नजर अंदाज कर रही थी और योग ऐसे दिखावा कर मेरे स्तनों को जोर से दबा रहे थे जैसे वह मुझे पकड़ रख कर मेरी सहायता कर रहे हों। शायद हम दोनों के मन में बात तो एक ही थी। पर वह दिखावा ऐसा कर रहे थे जैसे वह मुझे सांत्वना देते हुए मेरी छाती पर ढाढस देने के लिए ही अपना हाथ फैला रहे थे। योग ने अपना दुरा हाथ खीसका कर धीरे से मेरी स्कर्ट के निचे मेरी पैंटी पर रखा। वह प्यार से मेरी जाँघों को सहलाने लगे और साथ में सांत्वना के बोल, "बिलकुल डरना नहीं। मैं तुम्हारे साथ हूँ।" बोलना भूलते न थे। मैंने अँधेरे में महसूस किया की योग अपने फुले हुए कड़क लण्ड को अपने हाथमें पकड़ कर सहलाते हुए मेरी पैंटी से रगड़ रहे थे। मुझे ऐसा लगने लगा की योग अपने आप पर नियत्रण नहीं रख पा रहे थे। मेरी चूत के टीले पर मेरी पैंटी के ऊपर वह अपना हाथ सहलाते तो कभी वह अप्पने लण्ड को सहलाते हुए मेरी पैंटी पर रगड़ते। मैं भी अपना आपा खोने लगी थी, की अचानक लिफ्ट में आँखें चौंधियाने वाला उजाला फ़ैल गया।
इसके पहले की योग और मैं सम्हल पाएं, लिफ्ट अगले माले पर जा रुकी और जब दरवाजा खुला तो कुछ लोग लिफ्ट का इंतजार करते हुए मुझे मेरा स्कर्ट ऊपर की और उठा हुआ और मेरी गीली पैंटी में योग की जांघों के बिच में बैठे हुए उसके लण्ड को मेरी पैंटी को टोचते हुए और योग को मेरे स्तनों को दबाते और मलते हुए देख कर आधे शर्म से और आधे शरारत से मुस्कुराने लगे। तब मैंने अपना स्कर्ट ठीक कर के राज की गोद में से उठकर फ़टाफ़ट लिफ्ट के बाहर भाग कर निकलना ही ठीक समझा।
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उस दिन लिफ्ट से तो मैंने भाग निकली, परन्तु अगले कुछ दिनों में सारी कहानी अचानक पलट ही गयी। मुझे कई लोगों ने योगराज की बीमार मानसिकता के बारे में बताया। उन्होंने बताया की योगराज बड़ा ही घमंडी और अहंकारी था। वह सफल प्रोफेशनल काबिल महिलाओं से नफरत करता था। उसका मानना था की महिलाओं का स्थान या तो मर्दों की सेज सजाने के लिए है या फिर रसोई घर में। यदि कोई महिला को उसकी व्यावसायिक काबिलियत के लिए कोई सम्मान या प्रमोशन मिलता है तो उसका कारण उसकी काबिलियत नहीं बल्कि उस महिला की उच्च मैनेजमेंट को अपनी सुंदरता एवं सेक्स द्वारा खुश करने की क्षमता के कारण ही मिलता है। वह बार बार सबको यह कहते थे, की काबिल महिआएं रईस और पूंजी पति बॉस के लिए चुदाईके साधन मात्र थे। महिलायें बच्चों को पैदा करने के लिए और मर्दों के सेक्स की भूख को मिटाने के लिए ही होती हैं. उनमें बौद्धिक क्षमता की कमी होती है।
जब मैंने यह सूना तो पहले तो मैं विश्वास नहीं कर पायी, पर जब मैंने बार बार कई लोगों से सूना तो मैं हैरान रह गयी। आज के आधुनिक जमाने में भला एक पढ़ा लिखा इंसान ऐसा कैसे सोच सकता है? मैं भी तो एक सफल बुद्धि जीवी व्यावसायिक काबिल व्यक्ति थी। अगर मुझे कोई ऐसा कहे की मैं मंद बुद्धि औरत हूँ और मेरी सफलता का कारण यह था की मैं बॉस लोगों से सेक्स करने से परहेज नहीं रखती थी तो मुझे कैसा लगेगा? यदि कोई यह कहे की मैं मर्दों की चुदाई के लिए एक साधन मात्र हूँ तो मैं भला उसे कैसे बर्दाश्त करुँगी? मेरे मन में योगराज के प्रति जो कामुकता के भाव थे, उसकी जगह नफरत ने लेली। अगर योगराज का ऐसा सोचना था तो फिर मैंने तय किया की मैं उसे ऐसा पाठ पढ़ाऊंगी की जिंदगी भर वह औरतों को इतनी घटिया नजर से देखने की हिम्मत नहीं करेगा। मैं उन्हें यह बताउंगी की महिलायें सेक्स के खिलौने नहीं है। उनमें भी खूब क्षमता है और कई क्षेत्रों में तो वह मर्दों से भी आगे है। जैसे जैसे मैं योगराज के बारे में सोचती गयी उनके प्रति मेरी घृणा बढ़ती गयी। मैं मौक़ा ढूंढती थी की कब मुझे योगराज को खरी खोटी सुनाने का मौक़ा मिले और मैं उसे अच्छा पाठ पढ़ाऊँ। और मुझे वह मौका जल्द ही मिल भी गया।
मैं मेरी टीम की एक सदस्यके साथ हमारे ऑफिस के ही बगल के कॉफ़ी शॉप में कॉफ़ी पी रही थी। मुझे साथ वाली कैबिन में से योगराज की आवाज़ सुनाई पड़ी। योगराज भी अपने कुछ साथीदारों से कुछ बात कर रहे थे। हमें उनकी आवाजें स्पष्ट सुनाई पड़ रही थीं। योगराज की एक महिला साथीदार ने योगराज से हमारी ही ऑफिस की एक और टीम की बड़ी सफलता के बारे में कहा।उसने कहा की वह सफलता में एक महिला का बड़ा योगदान था और उसके योगदान के लिए वह महिला को कंपनी ने बड़ा सराहा और एक प्रमोशन और बढ़ावा भी दिया। यह सुनकर योगराज तिलमिला उठे और जोर से बोलने लगे, "बकवास है। उस महिला का क्या योगदान था? क्या उसे अपनी काबिलियत के लिए वह प्रशंशा, प्रमोशन और बढ़ावा मिला था या फिर उस महिला को अपनी खूब सूरत जाँघों को प्रदर्शित करने के लिए मिला था?" योगराज के जोर से बोले हुए यह वचन सुनकर कमरे में बैठे हुए सारे लोग सकते में आ गये। योगराज हमारी कंपनी का एक जिम्मेवार एवं सीनियर लीडर था। उसके वाक्य कंपनी के कर्मचारियों के लिए मायने रखते थे। मेरे लिए इतना सुनना ही काफी था। मैं मारे गुस्से के लाल हो गयी और अपने दोनों हाथों को मोड़ कर अपनी कमर पर दोनों हाथोंकी हथेलियों को टिकाकर आग बबूला हो कर योगराज के सामने आ खड़ी हुई।
मैं गुस्से भरी नजर से योगराज की और देखते हुए कहा, "अच्छा! तो आप कहते हो की उस महिला को अपनी काबिलियत के लिए नहीं बल्कि उसकी खूबसूरत जाँघों के लिए वह सब प्रशंशा, प्रमोशन और दूसरे पारितोषिक मिले ठीक है? क्या इसका मतलब यह हुआ की आप उन सब लोगों से ज्यादा अक्लमंद हो जिन्होंने उस महिला की कार्य क्षमता को परखा?" शायद मेरे शब्दों से कहीं ज्यादा मेरी धमकी भरी अंगभंगिमा देख कर योगराज कुछ देर तक मुझे स्तब्ध हो कर ताकते ही रहे। उन्हें पता नहीं था की मैं भी वहाँ उनकी बातें सुन रही थी। उन्होंने फिर मुझे ऊपर से निचे आँखे घुमाकर प्रशंशा भरी नजर से देखा और फिर थोड़ा मुस्कुराकर वही लोलुप नज़रों से देखते हुए बोले, "बापरे! माफ़ करना श्रीमती जी, मैं किसी को भी नीचा दिखाने की कोशिश नहीं कर रहा था। भाई अब मैं मानता हूँ की निर्णायकों का कोई भी दोष नहीं है। अगर मैं भी उनकी जगह होता और मुझे भी तुम्हारी जैसी सुन्दर फिगर वाली सेक्सी महिला की कार्यदक्षता का मूल्यांकन करना होता तो मैं भी वही करता जो उन्होंने किया।" योगराज की बातें सुनकर मुझे सारे कमरे के लोगो के चेहरे पर कटाक्ष भरी हंसी दिखाई दी। यह तो उलटा हो गया। मैं योग की बात काटने चली थी और इधर मेरी ही फिरकी उड़ गयी। मैं सब को हँसते देख कर खिसिया गयी और गुस्से में कॉफ़ी शॉप से उँफ की आवाज़ कर के बाहर निकल गयी।
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मैं मुश्कल से थोड़ा ही चली थी की योगराज मेरे पीछे भागते हुए आये और पीछे से मेरी कमर अपने दोनों हाथोँ में पकड़ कर मुझे अपनी तरफ घुमा कर बोले, " प्रिया, आई ऍम वैरी सॉरी। प्रिया डार्लिंग, मेरी बात तो सुनो। तुम गुस्से में इतनी सुन्दर लग रही थी की मैं अपने आप पर नियत्रण नहीं रख पाया। सच बोलता हूँ डार्लिंग तुम इतनी सेक्सी लग रही थी की उस वक्त मेरा मन किया की मैं तुम्हें वहीँ पर...... डालूं।" योगराज ने वह शब्द नहीं बोले जो शायद वह बोलना चाह रहे थे। फिर चारों और नजर घुमाके उन्होंने देखा की कोई नजदीक सुन नहीं सकता था तो वह अपने मुंह को मेरे कान के पास लाकर बड़ी ही धीमी और मीठी आवाज़ में बोले, "प्रिया डार्लिंग, तुम इस अंदाज में इतनी सेक्सी और चुदक्कड़ लग रही हो की वाकई मैं मेरा मन तुम्हें चोदने के लिए बाँवला हो रहा है। डार्लिंग मैं तुम्हें सचमुच चोदना चाहता हूँ।" यह तो योग के असभ्यता की हद ही हो गयी! हालांकि यह सही था की वह मुझे चोदने की बात मेरे कानों में बोले, पर जिन्होंने भी उसे देखा होगा उन्हें साफ़ अंदाज लग ही गया होगा की योग मेरे कानों में क्या कह रहे थे। मुझे समझ नहीं आया की इस आदमी के माफ़ी मांगने की विचित्र तरीके से मैं कैसे निपटूं? वह मुझसे माफ़ी मांग रहे थे या मेरा मजाक उड़ा रहे थे? क्या वह मुझे चुदवाने के लिए निमत्रण दे रहे थे? अगर योग ने मुझे अलग ही माहौल में और अलग ही संजोग में यही चीज़ कही होती तो मैं शायद उसके निमत्रण का सकारात्मक जवाब देती। योग से चुदवाने के बारे में सोचने भर से मेरा गला सूखने लगा और मेरी टाँगे कमजोर पड़ने लगी। मैंने महसूस किया की मेरी टाँगों के बिच में से मेरा स्त्री रस रिसना शुरू हो गया। मेरी निप्पलं फूलने लगीं। पर उसके शब्द याद आते ही मरे मन में गुस्से की ज्वाला भड़क उठी। योग ने मेरा हाल देखा। वह मेरे करीब आये और उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में जकड़ा। मैं थोड़ी लड़खड़ा गयी तो उन्होंने मुझे कमर से पकड़ा और मैं उनकी बाँहों में झूलती रह गयी। मेरा चेहरा उनके चेहरे के बराबर सामने था। उनकी आँखें मेरी आँखों में झांक रही थीं। हमारे होँठ लगभग चुम्बन की स्थिति में ही थे। शायद मेरी भाव भंगिमा से वह समझ गए थे की जब उन्हों ने मुझे चोदने की बात कही तो मैं नर्वस हो गयी थी। हम दोनों उसी पोज़ में कुछ देर तक खड़े रहे। मैं योग के कार्य कलाप से कुछ अचंभित थी।
तब अचानक ही योगने एक हाथ से मेरे एक स्तन को मेरे ब्लाउज के उपर से ही अपने हाथ में पकड़ा और उसे दबाने लगे। फिर उन्होंने अपना मुंह निचे किया और मेरे होठोँ से होँठ मिलाकर मुझे चुम्बन करना चाहा। मैं इस अशिष्ट पर आकर्षक मर्द के ऐसे बेधड़क दुस्साहस से हैरान रह गयी। मेरे दिमाग का एक हिस्सा मेरे बदन को योग की बाहों में लिपट कर उसे चुम्बन करना चाहता था, पर दुसरा हिंसा चिल्ला चिल्ला कर योग के चंगुल से भागना चाहता था। मैंने अपने आप को सम्हाला और एक झटके से मैंने उनके हाथ मेरे बदन से हटा दिए। मैं उनसे अलग होकर कुछ व्याकुल आवाज़में बोली, "योग आप यह क्या कर रहे हैं? आप कहीं पागल तो नहीं हो गए?" यह कह कर मैं वहाँ से दूसरी और तेजी से चल पड़ी। मेरी आवाज मेरा गुस्सा कम और नर्वस ज्यादा होने की चुगली खा रही थी। अपनी घबराहट छुपाने और अधिक शर्मिंदगी से बचने के लिए मैं भागकर महिला के वाशरूम की और भागी ताकि योग मेरा पीछा ना कर सके। जब मैं आयने के सामने खड़ी हुई तो मैंने आयने में अपने चेहरे पर साफ़ साफ़ घबराहट देखि। मैं चली थी योग को उलाहना देने और बात एकदम उलटी ही हो गयी। सब के सामने मुझेही शर्मिंदगी से भागना पड़ा। मैं यह साबित करना चाहती थी की मैं एक सफल और काबिल महिला हूँ जो अपना काम भली भाँती जानती है। पर मैं ऐसा कुछ कर नहीं पायी।
वाशरूममें मैंने कुछ मेकअप सा किया और अपने आपको सम्हालने की कोशिश की। पर जब मैं बाहर निकली तो योग को वहीँ खड़े हुए पाकर मैं कुछ लड़खड़ा सी गयी। वह मेरे बाहर आने का इंतजार कर रहे थे। उसे वहीँ देखकर मैं गुस्से से तिलमिला उठी। मैंने चिल्लाकर सब सुने ऐसी आवाज में कहा, "आप अपने आपको समझते क्या हो? क्या आप कामदेव हो या कोई सुपर हीरो हो जो आपके ज़रा से इशारे पर सारी महिलायें आप के कदम चूमकर आपको आपके साथ एक रात एक बिस्तर पर गुजारने के लिए मिन्नतें करेंगीं?" मैं हैरान तब रह गयी जब योग ने मेरे जवाब में बड़ी ही धीरज और शान्ति से मेरे करीब आकर मेरे कानों में कहा, "सारी औरतें नहीं, मैं मात्र एक ही औरत को अपने बिस्तर में अपने साथ सुला कर बड़े ही प्यार से चोदना चाहता हूँ। और वह तुम हो। मेरी बात मानो प्रिया, मैं सचमुच में ही तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और मैं तुमसे रात रात भर तुम्हारे साथ पलंग में चिपक कर प्यार से चोदना चाहता हूँ। मैं जानता हूँ की तुम भी वही चाहती हो। वह बात अलग है तुम इस बात को स्वीकार करना नहीं चाहती हो।" योग के इस तरह के वर्ताव से मेरी धीरज और शुशीलता अब मेरे नियत्रण से बाहर जा चुकी थी।
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मैंने जोर से चिल्लाते हुए योग को कहा, "योग अब बहुत हो चुका। आप मेरे सीनियर हो और मैं आपका लिहाज करती हूँ इस लिए मैंने अब तक आपसे ज्यादा झिक झिक नहीं की। पर अब हद हो चुकी है। मैं आपको साफ़ साफ़ बता देना चाहती हूँ की मैं आपको चाहना तो दूर, देखना भी नहीं चाहती। मैं आपसे नफ़रत करती हूँ। मैं आपका करियर बर्बाद करना नहीं चाहती इस लिए मैं आपको पहले से चेतावनी देती हूँ की अगर आपने आगे से कोई ऐसी वैसी हरकत की तो मैं आपके विरुद्ध मुझे छेड़ने की और परेशान करने की उच्च स्तर पर शिकायत करुँगी। और हाँ, आप इसे खोखली गीदड़ भभकी समझ ने की गलती मत करियेगा।" मैंने पहेली बार योग के चेहरे पर निराशा, गंभीरता और दुःख के स्पष्ट भाव देखे। शायद उन्हें मुझसे यह उम्मीद नहीं थी। उन्होंने शायद यह सोचा होगा की उन की करतूतों से प्रभावित होकर मैं उनसे कहूँगी, "ठीक है, चलो बोलो कहाँ चलें? आप के घर या मेरे?" शायद न का यह फार्मूला दूसरी लड़कियों के साथ चला होगा। उन्हें दूसरी लड़कियों या महिलाओं से सकारात्मक जवाब मिला होगा। पर मैं दूसरी काठी की औरत थी।
पर फिर मेरे मन ने मुझसे कहा, "अरे बेवकूफ, क्यों अपने आपको धोखा दे रही हो? वाकई मैं तो अंदर से तुम भी तो उनकी बाहों में जाने के लिए मचल रही हो।" मैंने योग के सामने देखा। उनके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे मैंने सब के सामने ही उसे एक थप्पड़ मारा हो। वह बहुत दुखी और निराश लग रहे थे। शायद मैंने उनका दिल तोड़ दिया था। मुझे भी बुरा लगा। मुझे लगा की मुझे ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था। योग को उस हाल में देख कर मैं भी बहुत दुखी हो गयी। मेरा मन किया की मैं दौड़कर उनकी बाँहों में चली जाऊं और उन्हें अपने बाहु पाश में जकड कर कहूं, "मेरे प्राण, मुझे पागल मत बनाओ। मुझे भी तुमसे चिपक कर पूरी रात भर प्यारसे चुदवाने का बहुत मन है।" यह सोचते ही मेरी जाँघों के बिच में से मेरे प्यार का रस रिसना शुरू हो गया। मेरी टाँगें कमजोर पड़ने लगीं। योग ने मेरी और देखा। उन्होंने मेर चेरे के भाव देखे। शायद योग मेरे मन के भाव पढ़ने में माहिर थे। वह उनकी वही लोलुपता भरी मुस्कान से मुस्करा दिया। पर उस बार मैंने महसूस कियाकी उनमें पहले जितना आत्मविश्वास नजर नहीं आ रहा था। मैं वहाँ से चुपचाप योग की और देखे बिना बाहर निकल गयी और योग वहीँ मेरे पीछे देखते रहे। मेरे योग के प्रति ऐसे आक्रामक वर्ताव से मैं अपने आप पर नाराज हो गयी। मैंने सोचा, अच्छा होता की मैं योग की मुझे उकसाने वाली बातों का कोई जवाब ना देती और चुप ही रहती।
योग तो ऐसे ही थे। मेरे कुछ कहने या करनेसे वह सुधरने वाले नहीं थे। आखिर वह मेरे सीनियर और बड़े ही काबिल साथीदार थे। क्या पता आज नहीं तो कल अगर मुझे उनसे कोई मदद चाहिए तो मुझे उनके पास जाना ही पडेगा। उनके साथ सम्बन्ध बिगाड़ने में मुझे कोई फायदा नज़र नहीं आया। पर तीर कमान से निकल चुका था। मैं मन ही मन प्रभु से प्राथना कर रही थी की ऐसा ना हो की मुझे उनके पास कोई मदद मांगने जाना पड़े। पर कहते हैं ना की आप जिससे डरते हो वह समस्या आपके सामने जरूर जल्द आ खड़ी होती ही है। हुआ कुछ ऐसा की मैं और मेरी टीम ने एक व्यावसायिक औद्योगिक सॉफ्टवेयर प्रोगैम डिज़ाइन किया हुआ था जो टेस्ट पास हो चुका था। हमारी कंपनी के मार्केटिंग डिपार्टमेंट ने उसे सफल होने योग्य करार भी दे दिया था। उनका मानना था की यह प्रोग्राम जब मार्किट में रिलीज़ होगा तो उसे जबरदस्त रिस्पांस मिलेगा और कंपनी को वह अच्छी खासी आमदन प्राप्त करा सकता था। उस प्रोगैम को मुझे तुरंत ही लॉंच करना था। पर एक समस्या थी। उस प्रोग्राम का कंप्यूटर के साथ कॉन्फ़िगर करने के लिए जो एप्प चाहिए था वह हमारी कंपनी में ही योग ने डेवेलोप किया था। तो मुझे योग के पास जाकर उसे वह एप्प मुझे मुहैया कराने के लिए बिनती करने के लिए जाना पडेगा ऐसी स्थिति आ गयी। चाहती तो वह एप्प मैं भी डेवेलोप कर सकती थी। पर मेरे पास समय नहीं था। कंपनी चाहती थी की मेरा प्रोग्राम उसी महीनेमें लॉन्च हो। इसके लिए उन्होंने विज्ञापन आदि की भी व्यवस्था कर रखी थी। जब हमारी ही कंपनी में वह एप्प तैयार था तो भला मैं उसे दुबारा बनाने की जहमत क्यों करूँ? उसमें समय भी लगेगा और कंपनी का पैसा भी खर्च होगा। चूँकि मैं योग पास सीधा जाने में झिझक रही थी, इसलिए मैंने हमारे ग्रुप वाइस प्रेजिडेंट से कहा की वह योग को कहे की जो एप्प मुझे चाहिए उसे मुझे मुहैय्या कराए।
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तब मुझे उन्होंने बड़ी विनम्रता से पर साफ़ साफ़ कह दिया की योग इस समय बहुत जरुरी और ख़ास प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। उन्हें डिस्टर्ब करना ठीक ना होगा। हाँ अगर योग अपने आप मेरी मदद करना चाहे तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी। उन्होंने सुझाव दिया की ऐसे मामले में मुझे सीधा योग से बातचीत करके योग की मदद लेनी चाहिए। भला योग क्यों हमारी मदद नहीं करेंगे? वाईस प्रेजिडेंट ने कहा वह इस बात में बिच में पड़ना नहीं चाहते। मैंने फिर सोच कर योग को एक आधिकारिक ईमेल भेजी जिस में योग को मदद के लिए मैंने रिक्वेस्ट की। मुझे तुरंत योग से आधिकारिक चिट्ठी का जवाब मिला की वह बहुत ही व्यस्त थे और अभी वह मेरे काम के लिए समय नहीं दे सकते। मैं जानती थी की अगर योग चाहे तो समय दे सकते थे। पर शायद उन्हें मुझसे उसक अपमान का बदला लेना था। मैंने दुबारा उन्हें ऑफिसियल चिट्ठी लिखी। मैंने उसमें बताया की हमारा प्रोजेक्ट कंपनी के लिए कितना फायदेमंद था और उस लिए उन्हें हमारी मदद करनी चाहिए। उसके जवाब में उन्होंने मुझे फ़ोन किया और दो ही मिनट में कह दिया की उनके पास समय नहीं और मुझे इस लिए वाईस प्रेजिडेंट से बात करनी चाहिए। वाईस प्रेजिडेंट से तो मैं बात कर ही चुकी थी। योग के ऐसे घमंडने मुझे परेशानी में डाल दिया। योग फालतू में ही अपना वर्चस्व दिखाना चाहते थे। हाँ यह बात सही की वह हमारी कंपनी के एक अग्रिम काबिल डिज़ाइनर थे और सफलता की बात करें तो उनके नाम कई मानक दर्ज थे। पर उतनी ही यह बात भी सही थी की वह मुझे एक काबिल प्रोग्राम डिज़ाइनर नहीं मानते थे। शायद उन्हें कोई भी महिला टीम लीडर बने यह गवारा न था।
वह शायद यह मानते थे की मैं (अथवा कोई भी महिला) ने उस दिन तक जो भी कामयाबी हासिल की थी वह मेरी (या उन सब महिलाओं की) टांगों के बिच में छुपी हमारी योनि के कारण थी। एक स्टाफ की लड़की ने मुझे मेरे कानों में बताया था की एक बार नशे की हालत में योग उसे कह रहे थे की योग की ख्वाहिश थी की मौक़ा मिलने पर वह एक ना एक दिन मेरी टांगों के बिच में अपनी जगह जरूर बना लेंगे। ऐसी नीच और घटिया मानसिकता वाले व्यक्ति से मैं कैसे समझौता करूँ? यह मेरी समस्या थी। जब उस लड़की से मैंने सूना की योग मुझे चोदने की प्रबल ख्वाहिश रखते थे तो मेरी पुरे बदन में एक जबरदस्त सिहरन फ़ैल उठी। मेरी टाँगों में रस रिसना शुरू हो गया। कहीं न कहीं मेरे जहन में भी तो यही इच्छा थी। कुछ समय पहले योग के पीछे कई लडकियां फ़िदा थी। मैंने सूना था की योग पहले उन लड़कियों को लिफ्ट देते थे और शायद कईयों को चोद भी चुके होंगे। कई लड़कियों ने मुझसे कुबूल भी किया की योग ने उन्हें चोदा था। हमारे दफ्तर में चोरी छुपके यह अफवाह चली थी की जब से मैंने उस कंपनी में ज्वाइन किया तब से योग ने वह सब लफंडर बाजी छोड़ दी थी। उनमें से कुछ लडकियां मुझे ताने मारती थी की "अब तुम आ गयी हो तो योग ने हमसे बात करना भी बंद कर दिया है।" मैं हैरान थी की ऐसे अभिमानी आदमी के साथ कैसे लडकियां सोना पसंद करती थीं। पर खैर मेरे पास तब यह सब कुछ सोचने का समय नहीं था। मुझे मेरे प्रोग्राम को सही समय पर लॉन्च करना ही था। उसमें शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी।
मैं अच्छी फँसी थी। इधर कुआं तो उधर खाई। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, तब योग की साथीदार एक लड़की मेरे ऑफिस में आयी। बातों बातों में मैंने उसे अपनी लाचारी बतायी की मुझे योग की मदद चाहिए पर वह है की मदद करने को राजी ही नहीं थे। तब वह लड़की मेरे पास आयी और उसने मेरे कानों में कहा, "प्रिया मुझे तुम्हारी समस्या का भली भाँती पता है। इसमें चिंता की कोई बात नहीं है। योग सर तुम्हारी मदद जरूर करेंगे।" जब मैंने उसे पूछा की उसे कैसे पता की योग मेरी मदद करेंगे? तो वह लड़की ने कहा, "मुझे खुद योग सर ने कहा की वह आपकी मदद जरूर करते। पर आपके अड़ियल और तीखे रवैय्ये से वह नाराज हैं। अगर आप प्यार और नरमी से पेश आएंगे और उनकी और थोड़ा रियायती रवैया दिखा कर उनसे रिक्वेस्ट करोगे तो वह जरूर आपकी मदद करेंगे। योग सर कुछ जिद्दी और बोलने में उद्दंड जरूर हैं, पर दिल के बहुत अच्छे हैं।" यह कह कर वह लड़की मेरी और देख कर शरारती तरीके से आँख मटक कर चली गयी। मुझे शक हुआ की कहीं योग सर ने खुद ही उस लड़की द्वारा यह सन्देश तो नहीं भेजा था? दूसरा मैं समझ गयी की रियायती रवैय्या से उस लड़की का इशारा था की यदि योग सर मुझे मदद करने के बदले में चोदने की शर्त रखे तो मुझे कोई आपत्ति नहीं जतानी चाहिए। वाह भाई वाह!! मदद करने का यह एक अच्छा तरिका था। पर मैं क्या करती? एक और मेरी मज़बूरी थी की मुझे हर हालत में मेरा प्रोग्राम ख़तम करना था जिसमें मुझे योग की मदद चाहिए थी, तो दूसरी और उस लड़की ने योग से चुदवाने का इशारा किया तो मेरी तो जैसे हालत ही खराब हो गयी। मेरे पुरे बदन में रोमांच से कम्पन फ़ैल गया। मेरी चूत गीली हो गयी और मेरी निप्पलेँ जैसे योग की उँगलियों से खेलने के लिए मचल कर फूल उठीं।
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तो मेरा दिमाग बोल उठा, "अरे लड़की, तू तो योग को सबक सिखाना चाहती थीं ना? तो अब क्या हो गया?" काफी कुछ गुथम गुत्थी के बाद मैंने तय किया की आखिर में साँढ़ को सींग से पकड़ना ही पडेगा। योग से आमने सामने हुए बगैर बात बनेगी नहीं। मैंने मन ही मन पक्का इरादा कर लिया की कुछ भी हो जाय मैं ऐसे इंसान को कभी भी अपना बदन सौंप नहीं सकती। पर मैं उसे मिलूंगी जरूर और उसे दिखाउंगी की मैं कोई ऐसी वैसी औरत नहीं हूँ। मैं अपने इरादे में सुद्रढ़ रहूंगी। यह तय कर मैंने योग से फ़ोन पर शाम को कॉफी शॉप में मिलने का प्रोग्राम बनाया। योग मुझ से मिलने को राजी हो गए। कॉफी आर्डर करने के बाद मैं योग से मेरे तीखे रवैय्ये के बारे में माफ़ी मांगने लगी l तो योग ने अपने हाथों को घुमा कर कहा, "यह सब फ़ालतू बात छोडो, बोलो तुम्हें क्या चाहिए?"
मैंने कहा मुझे इनकी मदद चाहिए और फिर मैंने उन्हें वह सब कहा जो उनको मैं पहले भी बता चुकी थी। बीच में ही मेरी बात को काटकर वह बोले, "पर मैं आपकी मदद क्यों करूँ?" मुझे पता था की उनका जवाब यही होगा। तब मैंने उन्हें कहा की कंपनीके लिए यह प्रोग्राम बड़ा ही जरुरी है, जिसमें मुझे उनका सहयोग चाहिए। योग ने बड़े ही रूखे अंदाज में कहा, "आपको वाईस प्रेजिडेंट के पास जाने के लिए मैं पहले ही कहा था। वह मेरे भी बॉस हैं। अगर वह कहेंगे तो मुझे आपका काम करना ही पडेगा। आखिर में आपने अभी अभी कहा की आपका काम कंपनी के फायदे में है। तो फिर आप उनके पास क्यों नहीं जाती?" हालांकि मैं जानती थी योग यह सब कहेंगे, पर फिर भी मेरी धीरज जवाब दे रही थी। मैं गुस्से हो रही थी। तब मुझे ख्याल आया की उस प्रोग्राम के पीछे ना सिर्फ मेरी परन्तु मेरे साथीदारों की करियर भी दाँव पर लगी थी। वह सब मुझ से यह उम्मीद कर रहे थे की जैसे तैसे मैं इस प्रोग्राम को लॉन्च करवा सकूँ, क्यूंकि उसकी सफलता पर उनकी नौकरियां और प्रमोशन इत्यादि निर्भर था। मैंने गुस्सा थूक देने में ही हम सबकी बलाई समझी। मैंने सोचा मेरे पास एक ऐसा शस्त्र था जो मैंने इस्तेमाल नहीं किया था। वह था करुणा शस्त्र। मैंने उसका प्रयोग करना उचित समझा। मेरी आँखों में आंसूं आ गये। मैंने कहा, "योग सर, आप क्यों नहीं समझते? इस प्रोग्राम के ऊपर मेरी और हमारी पूरी टीम की करियर निर्भर है। अगर यह प्रोग्राम सफल हो गया तो हमारे सबके करियर बन जायेगे।" यह कहते कहते वाकई में मैं रो पड़ी। उस टाइम मैं कोई ड्रामा नहीं कर रही थी।
मेरे रोते ही योग सर सकते में आ गये। उन्होंने तब मेरी और देखते हुए पूछा, "अच्छा तो यह बात है! चलो ठीक है। मैं तुम्हारी मदद करूंगा। पर बदले में मुझे क्या मिलेगा?" मैं समझ गयी, अब वह बदमाश इंसान अपने आपको बेनकाब कर रहा था। पर मैने सोचा चलो थोड़ा खेल खेल लेते हैं। मैंने अपनी पूरी मिठास और विनम्रता पूर्वक आग्रह दिखते हुए कहा, "सब जानते हैं की हमारी कंपनी में आप एक अग्रगण्य काबिल प्रोग्राम डिज़ाइनर हैं। आप हम से काफी सीनियर भी हैं। आपकी मदद के बिना इस प्रोग्राम का सफल होना मुश्किल है। मैं हमारी टीम की तरफ से आपसे बड़ी विनम्रता से बिनती करने आयी हूँ की आप हमारे लिए ही सही, हमारी प्लीज मदद कीजिये, प्लीज!" मैंने जान बुझ कर दो बार प्लीज कहा। फिर ना चाहते हुए भी मेरे मुंह से निकल ही गया, "योग सर आपकी मदद के लिए मैं और मेरी टीम सदा सर्वदा आपकी बहुत आभारी रहेंगी। अगर हम आपकी कोई भी मदद कर पाएं तो वह हमारा सौभाग्य होगा।"
तो योग सर ने मेरी और सहानुभूति से झुक कर कहा, "जब आपके जैसी बड़ी खूबसूरत और सैक्सी लड़की मुझे दो दो बार प्लीज कहे तो मेरा दिल भी तार तार हो जाता है। आखिर इस ठोस और वीर्यवान बदन में भी एक नरम दिल इंसान बसा हुआ है। पर फिर भी यह पूछना गलत नहीं होगा की आखिर यह सब करने के लिए मुझे क्या मिलेगा।" मुझे गुस्सा तो बड़ा ही आ रहा था पर मैंने अपने आप पर नियत्रण रखा l मैं जानती थी की गुस्सा दिखाने से काम बनेगा नहीं। जब हम करीब करीब अपने गंतव्य पर पहुँच रहे थे तो बात बिगाड़ने से काम नहीं चलेगा। मैंने एक और दाँव खेला। मैं कहा, "योग सर, अगर आपने हमारी मदद की तो मैं आपको वचन देती हूँ की मैं आपकी हमेशा के लिए आभारी रहूंगी और मौका मिला तो मैं आपको आपकी कोई भी तरह की व्यावसायिक मदद जरूर करुँगी। और आपकी मदद का उचित पारितोषिक जरूर दूंगी।" (मैंने सोचा देखते हैं, योग सर पारितोषिक का क्या मतलब निकालते हैं।) योग भी तैयार थे। उन्होंने कहा, "मैं नहीं समझता की मुझे आपकी व्यावसायिक मदद की कोई जरुरत होगी। मैं अपने आप में पूरा सक्षम हूँ। पर हाँ और कई तरीकोंसे तुम मेरी मदद कर सकती हो।" मैं समझ गयी यह चोदू, मुझे अपनी टांगों के बिच में हो रहे दर्द को मिटाने की और इशारा कर रहा था। फिर मैं एक बार और अपनी वासना पूर्ण काल्पनिक दुनिया में खोने लगी।
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मैंने सोचा की काश अगर ऐसा हुआ तो मेरी टाँगों के बिच का दर्द भी तो मिट जाएगा। पर दूसरी और मैं इस मुर्ख इंसान पर तरस भी आ रहा था। वह चाहते थे की उनकी टाँगों के बिच हो रहे दर्द का इलाज मैं करूँ ताकि वह ऑफिस के काम में बिना टेंशन के आराम से ज्यादा ध्यान दे सके। वाह! वाह! पर जैसे ही मैं उनकी टाँगों के बिच वाले उनके लण्ड के बारे में सोचने लगी की मेरी हालत खराब होने लगी। मेरा यह धोखे बाज बदन! मेरी यह बेईमान चूत!! मेरी यह बेबस निप्पलेँ!!! यह बैरन! योगराज से चुदाइ का ख़याल आते ही अपने गाने गाने लगीं! मेरी चूत में से पानी रिसने लगा और निप्पलेँ बरबस फूल गयीं। यह मेरा बदन मुझे चैन से सोचने ही नहीं देता था। मैं सोचने लगी यदि मैंने उन की टाँगों के बिच हो रहे दर्द को दूर किया, तो वास्तव में तो मेरी टाँगों के बिच हो रहा दर्द भी तो दूर होगा! मेरी चूत भी तो उनका तगड़ा लण्ड अपने अंदर लेने के लिए कबसे तड़प रही थी। योग अपने छद्म शब्दों से अपनी कामना जाहिर कर रहे थे। मैं उस से गुस्सा भी थी और साथ साथ में मेरे अंदर काम वासना भी भड़क रही थी। अगर दुसरा कोई व्यक्ति होता तो मैं उनकी इन लोलुपता भरी बातों का माकूल जवाब देती। पर उस समय मेरे पास उन सारी बातों को सोचने का समय नहीं था। मुझे बस उनसे अपना काम निकलवाना था। हाँ, मेरे ह्रदय के अंदर कहीं कोई कोने में जरूर यह प्रश्न बार बार उठ रहा था की "हे प्रिया, कहीं योग से काम करवाने के चक्कर में उसे खुश करने के लिए तू अपना स्वाभिमान खो कर अन्य लड़कियों की तरह योग के सामने अपने घुटने तो नहीं तक देगी और उन से चुदवाने के लिए राजी तो नहीं हो जायेगी?"
मुझे ऐसा लग रहा था की योग मेरे मन की बात पढ़ लेते थे। उन्होंने कहा, "डार्लिंग, मैं जानता हूँ तुम क्या सोच रही हो। तुम मुझे कहती कुछ हो और सोचती कुछ और हो। तुम सोच रही हो ना की कहीं मैं तुम्हें मदद करने के बहाने ललचा फुसला कर तुम पर जबर दस्ती करके तुम्हें अकेला पाकर तुम्हारा बलात्कार ना कर दूँ? हौसला रखो। मैं तुम्हें चोदना जरूर चाहता हूँ पर जबर दस्ती नहीं। मेरे सशक्त और वीर्यवान शरीर में एक प्यार और करुणा से भरा दिल भी छुपा हुआ है।" मैं योग की और विस्मय से देखती रही। बातें करते हुए भी यह अभिमानी पुरुष अपने वीर्यवान बदन का जिक्र करना नहीं चुकता था। वह शायद मुझे अपनी चोदने की क्षमता का जायजा देना चाहते थे। वह मुझे साफ़ साफ़ कह रहे थे की वह मुझे चोदना चाहते थे। कमाल है! योग की घृष्टता देख कर मैं मन ही मन दंग रह गयी। मुझे इस इंसान की बेशर्मी और ज़िद पर आश्चर्य हो रहा था; की इतनी नाकामियों के बावजूद वह मेरा पीछा नहीं छोड़ रहे थे। पर मैं करती तो क्या करती? मैं उसे उस समय योगराज को कोई सबक सिखाने के मूड में नहीं थी। मैं तो प्यार मोहब्बत से अपना काम निकलवाने के जुगाड़ में थी। मैं अपने इस अंतर्मंथन से परेशान हो गयी। मेरे चेहरे पर शायद यह परेशानी योगराज को साफ़ साफ़ नज़र आयी होगी, तो मुझ पर जैसे तरस खाकर योगराज बोले, "ठीक है, मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए, तुम जैसी एक सेक्सी और सुन्दर औरत के लिए, और यह ध्यान में रखते हुए की तुमने मुझे वचन दिया है की तुम मेरे इस अहसान का कर्ज जरूर चुकाओगी, मेरे अत्यंत व्यस्त होने के बावजूद, मैं निजी तौर पर तुम्हारा यह प्रोग्राम जरूर देखूगा।" जैसे ही योगराज ने यह शब्द कहे, मेरे पुरे मष्तिष्क ने एक चैन की साँस ली।
योग ने उस समय भी मेरा मन जैसे पढ़ लिया। वह मुस्कुरा कर बोले, "पर यह काम ऑफिस समय में नहीं हो सकता। क्यों की उसका मतलब होगा अपने काम की उपेक्षा करना और काम चोरी करना। यह काम या तो तुम्हारे या फिर मेरे घर ही हो सकता है। माहौल ऐसा हो की हम दोनों अकेले ही हों और पूर्णतयाः शान्ति हो l इसका कारण यह है की मैं जब मैं कोई काम हाथमें लेता हूँ तो मैं उस काम पर फोकस करता हूँ, उस पर पूरा ध्यान देता हूँ। मैं जानता हूँ की तुम्हरा प्रोग्राम अगर घटिया नहीं तो एकदम साधारण सा होगा। उसमें कई त्रुटियाँ होंगीं। मुझे उनको ठीक करना होगा। हालांकि यह तुम्हारा प्रोग्राम है, पर चूँकि अब मैं तुम्हें मदद करने के लिए राजी हो गया हूँ तो मैं तुन्हें बदनामी दिलवाना नहीं चाहता l तुम्हारा प्रोग्राम कैसा भी हो मैं उसे सुधारकर तुन्हें पर्याप्त यश दिलवाऊंगा। मेरे अंदाज से तुम्हारा प्रोग्राम देखने में और ठीक करने में मुझे काम से काम बारह या सोलह घंटे का समय तो जरूर चाहिए। तो बताओ फिर तुम्हारे घर में बैठे या मेरे?" मैं समझ तो गयी ही थी की योगराज मुझे अकेले में फाँसने के चक्कर में थे और कुछ न कुछ चाल तो चलेंगे ही। वह शायद मुझे अकेले में पाकर मेरा पूरा फायदा उठाना चाहते थे। शायद वह सोच रहे थे की मैं अकेली उनका विरोध नहिं कर पाउंगी और वह आसानी से पकड़ कर अगर मैं नहीं मानी तो मुझ पर जबरदस्ती करेंगे। पर वह जानते नहीं थे की मैं अलग मिटटी की बनी हुई थी। प्यार से कोई भी मुझसे कुछ भी करवाले। पर अगर किसी ने जबरदस्ती की तो फिर तो मैं महाकाली बन जाती थी और उस की शामत ही आ जाती। दूसरी बात यह भी थी की ज्यादा सोचने या घबराने से भी तो काम नहीं चलेगा। कुछ न कुछ रिस्क तो उठाना पडेगा ही।
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खैर मैं भी कोई कम हिम्मत वाली नहीं थी। अगर योगराज ने मुझ पर जबरदस्ती की तो फिर तो उन की मैं ऐसी बैंड बजाऊंगी की वह याद रखेंगे। मैं उन के विरुद्ध शिकायत कर सकती थी या फिर उन पर मुकद्दमा भी दायर कर सकती थी। पर मैं यह भी जानती थी की जो योग कह रहे थे वह एकदम सही था। योगराज वह काम ऑफिस में नहीं कर सकते थे। अगर वह अपने फ्री टाइम में मेरा काम कर देते हैं तो कंपनी को कोई आपत्ति नहीं थी। और दूसरे हमें अकेले में शान्ति से बैठना तो पडेगा ही। ऐसे काम में फोकस एकदम जरुरी था और उसके लिए एकदम शान्ति और एकांत होना अनिवार्य था। बस मैं उनकी यह बात से खूब गुस्सा थी की प्रोग्राम को देखे बगैर वह कैसे कह सकते हैं की वह घटिया होगा? खैर मुझे योगराज का आईडिया ठीक लगा। मैंने कुछ हिचकिचाहट के साथ कहा, "ठीक है। मैं समझ सकती हूँ की आप कह रहें वह सही है। मैं आपका जाती रूप से शुक्रिया अदा करती हूँ की आप मुझे और मेरी टीम को मदद करने के लिए तैयार हुए l हमने हमारे यह प्रोग्राम का काफी सख्ती से परिक्ष्ण किया है। फिर भी आप जैसे सीनियर प्रोग्रामर की राय हमारे लिए बहुत मायने रखती है। चूँकि आप ऑफिस के नजदीक रहते हैं इस लिए अगर आपको एतराज ना हो तो आपके घर में ही यह काम करें तो बेहतर है। तो फिर कब शुरू करें?"
योगराज मेरी बात सुनकर मुस्कराये। उनकी मुस्कान मुझे अच्छी लगी। उस मुस्कान में कोई कड़वाहट नहीं थी। मुझे योग से इतनी ज्यादा पूर्व ग्रह होते हुए भी ऐसा लगा की वह मुस्कान में कोई कटाक्ष या कटुता नहीं थी। पर फिर मेरे मन में शक उठा की एक माहिर अभिनेता की तरह उनकी मुस्कान कहीं उनकी लोलुपता और कपटता को छुपानी उनकी कोशिश तो नहीं थी? हालांकि मैं खुश थी की वह हमें मदद करने के लिए राजी हो गए थे, पर उस से योगराज के प्रति उन का महिलाओं की व्यावसायिक कार्यदक्षता के प्रति जो हीन भाव था, उसके कारण मेरे जहन में कूट कूट कर भरा जो द्वेष और घृणा का भाव था वह कम नहीं हुआ था। खैर योग और मैंने तय किया की हम शुक्रवार शाम से काम शुरू करेंगे। पहले वह ऑफिस में अपना काम ख़तम करके मुझे अपनी कार में उनके घर ले जाएंगे। हम दोनों वहाँ देर रात तक काम करेंगे और फिर योगराज मुझे मेरे घर छोड़ देंगे। दूसरे दिन शनिवार को सुबह फिर वह मुझे अपने घर से अपनी कार में लेने आएंगे और फिर हम दोनों उनके घर शनिवार पुरे दिन उनके घर काम करेंगे। इतवार को भी ऐसे ही चलता रहेगा। हमें उम्मीद थी की सारा काम इतवार रातको खतम हो जाएगा। यह सब तय करने के बाद मेरी और देखकर योगराज बोले, "प्रिया, मैं एक व्यावसायिक प्रोफेशनल हूँ। मेरे जहन में तुम्हें पाने की कितनी भी गहरी इच्छा क्यों ना हो, मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ की मैं तुम्हें मेंरे अपार्टमेंट में अकेला पाकर जबरदस्ती नहीं करूंगा। मैंने योग की और देखा और उतने ही आत्म-विश्वास और हिम्मत से जवाब दिया, "आप ऐसा कुछ करने के बारे में सोचना भी मत। मैं भी एक प्रोफेशनल हूँ और बलात्कारियों या छेड़नेवालों से कैसे निपटना यह मैं बहुत अच्छी तरह जानती हूँ। आप गलती से भी यह कोशिश करने के बारे में अपने ही भले के लिए मत सोचियेगा।" मैंने ऐसा कह तो दिया पर मेरे अंदर वास्तवमें इतना आत्म-विश्वास था नहीं जितना की मैं दिखावा कर रही थी।
मैं वास्तव में तो उनकी बात सुनकर डर गयी और सोचने लगी की जरूर योगराज के मन में मुझ पर जबरदस्ती करने का प्लान है। पर मैंने मेरे इस शक को फ़ौरन खारिज कर दिया यह सोच कर की अगर उनके मन में ऐसा प्लान होता तो भला मुझे वह इसके बारे में ऐसे कहते नहीं। योग ने मेरा प्रोग्राम अपने लैपटॉप में लोड कर लिया था और उनकी एप्प उन्होंने मुझे दी थी; ताकि मैं भी उसे देखलूं की वह मेरे प्रोग्राम के साथ कॉन्फ़िगर हो सकती थी या नहीं। मैंने जब मेरी टीम को योग के साथ हुई बातचीत के बारे में बताया सबमें राहत और ख़ुशी की लहर फ़ैल गयी। सब ने आकर मुझे बधाई दी और मेरा आभार व्यक्त किया।
जिस लड़की ने मुझे योग से मिलने की सलाह दी थी उसने जब सूना तो वह मेरे पास आयी और मुझे बधाई देते हुए मेरे कानों में फुसफुसा कर बोली, "योगराज सिर्फ काम के मामले में ही एक्सपर्ट नहीं है, वह बिस्तर में भी कमाल के लवर हैं। मैं गलत नहीं कह रही, जब वह सेक्स करते हैं तो वह उद्दंड और अभिमानी नहीं बल्कि एक अनुकम्पाशील प्रेमी की तरह व्यवहार करते हैं। एक बार उनसे सेक्स करने से उनकी लत लग जाती है।". फिर वो मेरी और देखकर एक गहरी साँस लेते हुए बोली, "काश मुझे यह अनुभव दुबारा होता। तुम तो बहुत भाग्य शाली हो। तुम्हारे आते ही वह एकदम बदल गए। अब वह हमारी और देखते भी नहीं है। योग सर तो तुम्हें जैसे चकोर चाँद को देखता है ऐसे देखते हैं। मेरी और से बेस्ट ऑफ़ लक।" यह कह कर वह लड़की मेरी और देख कर आँख मार कर चली गयी। मैं समझ गयी की लड़की का क्या इशारा था। वह सोच रही थी की अब तो मेरा योग सर से चुदवाना तय था। बस और क्या था? मेरी टाँगें, मेरी चूत और मेरी निप्पलेँ फिर जवाब देने लगीं। मेरी चूत में से पानी रिसना फिर शुरू हो गया, मेरी निप्पलेँ फूलगयीं और मेरी टाँगें ढीली पड़ने लगीं।
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मेरे पति को मेरी खुली चुनौती Ch. 04
मैं पलंग पर नंगी लेटी हुई थी और जोर से रो रही थी और उन का अगला कदम क्या होगा उसका इंतजार कर रही थी। योग ने मुझे नंगी लेटे हुए देखा तो उनके चेहरे पर एक ऐसा संतोष जनक भाव मैंने देखा जो एक शिकारी के चेहरे पर कोई तगड़ा शिकार करने पर होता है। शिकारी यह सोचता है की अब उसे कई दिनों तक कोई और शिकार करने की जरुरत नहीं होगी। मेरे जोर से सिसक कर रोने पर योग चिल्ला कर मुझे चुप रहने के लिए बोले। पर तब भी जब मैं चुप ना हुई तो योग ने अपना हाथ उठाकर मेरे गाल पर एक जोरदार थप्पड़ मारा। मेरे गाल उनके करारे थप्पड़ से लाल हो गए और मुझे गाल पर तीखी जलन का दर्द महसूस हुआ। मैं योग की और देख कर चिल्लाई और बोल पड़ी, "मुझे चोदना है तो चोदो पर मुझे डराओ मत और मारो मत प्लीज!" योग के चेहरे पर फिर वही बीभत्स हँसी मैंने देखि जिसमें फिर वही सुनेहरा दाँत भी दिखा। मैं पलंग पर बैठ गयी और योग का पजामा पकड़ कर चिल्लाई, "योग आओ और मुझे चोदो पर इस तरह जलील मत करो मुझे।"
योग ने बड़े ही रूखे अंदाज में जवाब दिया, "तुम्हें मैं चोदूँगा जरूर। ओ चोदू कुतिया। तू मुझे, इस योगराज को प्रभावित करने की कोशिश कर रही थी? मैं पहले से ही जानता था की यह सब सॉफ्टवेयर प्रोग्राम का तुम्हारा ड्रामा मेरे इस मोटे तगड़े लण्ड से चुदवाने का बहाना मात्र था। था की नहीं?" मैं योग की बातों का जवाब देने की स्थिति में नहीं थी। उसने मुझे नंगी कर दिया था और मैं उसके पलंग पर नंगी लेटी हुई उनसे चुदवाने का इंतजार करते हुए पड़ी थी। योग वास्तव में तो गलत नहीं थे। मेरे जहन में उनके मोटे लौड़े से चुदवाने की चाहत तो थी ही। मैं जानती थी की योग अच्छी तरह से चुदाई कर सकता था। उस लड़की ने भी मुझे यह बताया था। योग ने अपना पजामा मेरे सामने ही जल्दी से खोला और उसमें से उसका फनफनाता हुआ तगड़ा लौड़ा कूद के उछाल कर बाहर निकल पड़ा। मैं योग के खड़े मोटे कड़क लण्ड को देखे बगैर रह नहीं पायी। जिस तरह से वह खड़ा हुआ ऊपर की और मुड़ा हुआ काले बालों के बिच खड़ा सर उठाये ऐसे दिख रहा था, जैसे एक शेर घाँस के खेतमें आसपास चारा चरति हुई हिरणियों को देख रहा हो। उस समय मुझ में कुछ ज्यादा सोचने की क्षमता नहीं थी। योग का लण्ड जानता था की एक चूत उससे चुदवाने का बेबसी से इंतजार कर रही थी। योग के लण्ड का गुलाबी कुकुर मुत्ता सामान लौड़े का सर इतना मोटा और फुला हुआ था की मैं उसे बरबस अपने हाथों में लेने से अपने आपको रोक नहीं पायी। योग का लण्ड बिलकुल मेरे होंठों के सामने था। वह मरे मुंह के सामने ऐसे हिल रहा था, जैसे वह मेरे होँठों के बिच जाने के लिए बेताब हो रहा हो।
मैंने भय के मारे योग की और देखा। योग ने मेरी और भाव शून्य नजर से देखा। वह इसी उम्मीद में खड़े थे की मैं उनके लण्ड को अपने मुंह में लेकर उसे चूसूं। मैं बड़े ही अस्मजस में पड़ गयी। जो योग के लण्ड का साइज था उसे देखते हुए यह तय था की मेरे छोटे से मुंह में उसका इतना चौड़ा लण्ड पूरी तरह से घुस सकना नामुमकिन था। मैंने कभी सपने में भी यह नहीं सिचा था की कोई इंसान का इतना मोटा और लंबा लण्ड हो सकता है। ऐसा लगता था जैसे वह इंसान का नहीं घोड़े का लण्ड हो। मैंने कभी घोड़े का लण्ड देखा था। योग का लंड उससे बहुत ज्यादा कम नहीं होगा। मुझे उसे मुंह में लेना ही होगा वरना मेरे गाल पर एक और थप्पड़ खाने की हालात में मैं नहीं थी। पर मुझे कोशिश तो करने ही पड़ेगी। मैंने योग का लण्ड अपने हाथों में लिया और उसकी गोलाई के ऊपर मैं अपनी उंगलियां घुमाने लगी, जिससे की उसके छेड़ में रिस रहा उसका पूर्व रस पूरी गोलाई में अच्छी तरह फैले। उसके लण्ड के बड़े बिजली के बल्ब के समान उसके लण्ड के शिरोभाग से लण्ड की पूरी लम्बाई तक हलके नीले रंग वाली नसे फैली हुई नज़र आ रहीं थीं। उसके लण्ड का बल्ब जैसा अग्र भाग चमकते हुए गुलाबी रंग का था। मैंने हलके से उसके लण्ड को ढकती हुई ऊपरी चमड़ी को अपनी मुठी में रख कर दबाया और उसे धीरे धीरे सहलाने लगी। मेरी मुठी योग के लण्ड को ठीक तरह से पकड़ नहीं पा रही थी। जब मैं कुछ देर तक योग का लण्ड हाथ से सहलाती रही तो योग थोड़ा सा अधीर हो उठा। उसने अपना लण्ड मेरे मुंह के पास लाया जिससे मुझे बरबस अपना मुंह जितना हो सके उतना चौड़ा कर खोलना पड़ा और तुरन्त ही योग का मोटा और लम्बा लौड़ा मेरे मुंह में घुस गया।
मुझे मेरे मुंह में से मेरी जिह्वा को ऐसे गोल रखना पड़ा जिससे योग की लण्ड को गलती से भी कहीं दाँतों की खरोच ना आये। मुझे दुबारा योग का करारा थप्पड़ नहीं खाना था। मैंने अपना जबड़ा जितना हो सके इतना खोला। मेरा जबड़ा भी दर्द करने लगा था। मुझे कभी भी लण्ड चूसना अच्छा नहीं लगता था। पता नहीं मर्दों को इसमें क्या मजा आता होगा? मैं अपने होंठ और जीभ योग के लण्ड के इर्द गिर्द घुमाती रही।
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योग को मेरा यह कार्यकलाप या कारीगरी बहुत भाई क्यूंकि उसका पूरा बदन मचलने लगा। योग का पूर्व रस रिसने लगा और ना चाहते हुए भी मेरे गले में नीचे उतरने लगा। पहले तो मेरा मन किया की मैं उसे थूंक दूँ, पर कैसे? योग का इतना मोटा लण्ड मेरे मुंह में जो फँसा हुआ था। मुझे योग का रस निगलना ही पड़ा और मुझे बुरा नहीं लगा। पहले उसका स्वाद थोड़ा अजीब सा जरूर लगा पर निगलते हुए बाद में मुझे अच्छा लगने लगा। मैं सोचने लगी की जो कई पोर्न वीडियो में दिखाते हैं की लडकियां मर्दों के वीर्य को निगल कर खुश होती हैं शायद ठीक ही है। योग ने फिर मेरे मुंह को धीरे धीरे चोदना शुरू किया। साथ साथ में उसके दोनों हाथ मेरी फूली हुई निप्पलोँ को मसलने लगे। मेरे दोनों स्तन से योग के हाथ ऐसे खेलने लगे जैसे की वह रबर के बॉल हों। योग उत्तेजना में मेरे स्तनों को इतने जोर से दबाने लगे की मुझे इतना ज्यादा दर्द महसूस हुआ की मुंह में योग का लण्ड होते हुए भी मेरे मुंह से दबी हुई चीख़ निकल पड़ी। योग शायद समझा की मैं ज्यादा ही उत्तेजित हो रही थी। योग ने मुंह चोदने की रफ़्तार बढ़ाई तो मेरा जबड़ा दर्द करने लगा। मैने कभी मेरा मुंह इतना ज्यादा इतने अधिक समय के लिए नहीं खोला था। अगर मैं ज्यादा देर ऐसे ही रहती तो मुझे कुछ ना कुछ हो जाता।
मैंने धीरे से मेरा मुंह पीछे खींचा। योग का लण्ड बाहर निकल आया। मुझे योग के हाथोँ से और थप्पड़ नहीं खाने थे इस लिए मुझे कुछ न कुछ तो करना ही था। मैं एकदम बिस्तर पर लेट गयी और योग को पकड़ कर मेरे ऊपर सवार होने के लिए अपनी और खींचा और कहा, "अब मैं तुम्हारे लण्ड से चुदवाने के लिए और इंतजार नहीं कर सकती। प्लीज मुझे और मत तड़पाओ और अपना यह मोटा लण्ड जल्दी मेरी गीली चूत में डालो। मैं कितने समय से तुम्हारे लण्ड से चुदवाने के सपने देख रही हूँ।" योग मेरी बिनती सुनकर खुश नजर आये और मेरी और देख कर वही लोलुपता भरी हँसी मुझे उनके चेहरे पर दिखी। उनके पुरुषत्व पूर्ण अहम् को यह सुनकर शायद संतिष्टि हुई और मैं उस करारे थप्पड़ से बच गयी। पर अब मेरे लिए और समस्या थी। योग के घोड़े जैसे लण्ड को मुंह में लेना एक बात थी पर चूत में डलवाना कुछ और। मेरी चूत का छिद्र इस घोड़े के लण्ड को ले पायेगा या नहीं वह एक बड़ी ही विषम स्थिति थी। मेरा मुंह तो अभी उस दर्द से उभर नहीं पाया था और अब मेरी चूत पर वार होना था। मेर पुरे बदन में कम्पन फ़ैल रही थी। यह डर के मारे थी या फिर उत्तेजना के मारे यह कहना मुश्किल था। पर मुझे चुदवाना ना तो था ही। उस में कोई शक नहीं था। दर्द तो बर्दास्त करना ही पडेगा चाहे मेरी चूत फट क्यों नहीं जाय। मैं मानसिक रूप से तैयार हो रही थी। मुझे इससे भी बड़ा खतरा यह नज़र आ रहा था की कहीं योग मेरी गाँड़ मारने की कोशिश ना करे।
ऐसा हुआ तो तो मैं मर ही जाउंगी क्यूंकि मेरे पति ने एक बार कोशिश की थी जिसके कारण मेरी गाँड़ में से इतना खून निकला था की मेरे पति की तो जान हथेली में आ गयी थी। मैं सात दिन तक बीमार रही थी। तब से मेरे पति ने कभी भी मेरी गाँड़ मारने की बात सोची भी नहीं थी। योग मेरी टाँगें फैला कर बिच में आये और अपने लण्ड को मेरी पानी बहा रही चूत के छिद्र पर पोजीशन किया। मैंने चैन की साँस ली की चलो उस समय तो योग मेरी गाँड़ मरने की बात नहीं सोच रहे थे। योग ने मेरी जाँघें उठायी और अपने कंधे पर रखीं। उन्होंने मेरी और अपना वही बीभत्स हास्य करते हुए देखा। मेरी चूत में क्या हो रहा था उसका विवरण करना मेरे लिए बड़ा मुश्किल है।
आज के दिन भी जब मैं मेरे मन की उस समय की हालत के बारे में सोचती हूँ तो मेरे जहन में एक अजीब सी सिहरन दौड़ जाती है। पर मुझे योग को देर कर के नाराज भी तो नहीं करना था। मैंने योग का लण्ड अपनी उँगलियों में पकड़ा और प्यार से मेरी चूत की पंखुड़ियों पर हलके से रगड़ा। फिर मैंने अपनी चूत की पंखुड़ियों को थोड़ा सा फैलाया और मेरी उंगली उसमें डाली। मैं अपने स्त्री रस का रिसना महसूस कर रही थी। मेरी चूत में से जैसे रस की धारा बाह रही थी। मेरे योगराज के लण्ड को मेरी चूत की सतह पर योग का लण्ड रगड़ ने से मैंने महसूस किया की वह चिकनाहट से लदा लद लिपटा हुआ था। मुझे थोड़ा सा ढाढस हुआ की शुरुआत में तो मुझे उतनी तकलीफ नहीं होगी। योग भयानक आँखें निकालकर मुझे ताक रहे थे और अपना फनफनाता लण्ड मेरी चूत में घुसेड़ने की लिए मचल रहे थे। उन्होंने अपना लण्ड घुसेड़ते हुए मेरी और वही बीभत्स पूर्ण हास्य के साथ देखा और उनका वह सुनहरा दाँत एक बार फिर देख कर मैं डर के मारे काँप उठी। वह ऐसे देख रहे थे जैसे कोई विजेता जीती हुई ट्रॉफी के साथ पोज़ दे रहा हो। मैं योग का यह भयावह रूप और उसके ऊपर अपने इतने मोटे और लम्बे लंड को हवा में हिलते हुए देख कर मेरा क्या हाल हुआ होगा उसका अंदाज़ आप नहीं लगा सकते। पर फिर मुझे एक कहावत याद आयी की "अगर आपके साथ जबरदस्ती हो रही हो और आप इसके बारे में कुछ भी नहीं करने की स्थिति में हो तो उसे एजॉय कीजिये।
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जब मेरा योग से चुदना तय ही है तो फिर भला मैं हाय हाय क्यों करूँ? क्यों मैं उसे एन्जॉय ना करूँ? वैसे भी मेरी कई महीनों से इच्छा थी की मुझे योग से चुदवाना था। तो फिर मौक़ा मिला ही है तो मैं इस चुदाई का मजा क्यों ना उठाऊं? योग मेरी चूत में अपना लण्ड डालने के लिए उतावले हो रहे थे। मेरी जान हथेली में थी की मैं योग का लंड कैसे ले पाउंगी। इस लिए जरुरी था की योग मेरी चूत, में अपना लण्ड धीरे धीरे डाले। मुझे उसके लिए कुछ न कुछ तो करना ही था। मैंने योग की और देखकर बड़े प्यार से देखा और कहा, "योग ज़रा आराम से प्लीज?" योग ने मेरी और तेज तर्रार नज़र से देखा और पूछा, "आराम से क्या?" मैं समझ गयी की योग मुझसे खुल्लम खुल्ला बात बुलवाना चाहता था। मैंने झिझक ते हुए कहा, "योग मुझे आराम से चोदना प्लीज! प्लीज मुझे आहात मत करना प्लीज? क्या तुम मुझे बार बार चोदना नहीं चाहोगे?" योग उसी बीभत्स तरीके से ठहाका मारकर हंस कर बोला, "क्या बात है! मैं तुन्हें एक बार नहीं बार बार चोदना चाहता हूँ। जब तक तुम बूढीया ना बन जाओ और मैं तुम्हारी चूत का हुलिया बिगाड़ ना बना डालूं तब तक तुम्हें चोदता रहूंगा।" मैंने योग को बड़े प्यार से कहा, "योग डार्लिंग, मैं भी तुम से बार बार चुदवाना चाहती हूँ इसी लिए कहती हूँ की मेहरबानी करके लण्ड प्यार से और धीरे से डालो।"
मेरी बात सुनकर योग फिर एक ठहाका मार कर हँसे और बोले, "ठीक है, मेरी प्यारी राँड़ चलो मैं आपकी यह बात मान लेता हूँ। पर याद रहे, यह आखरी बार हम आपसे नरमी से पेश आएंगे। फिर हम नरमी से नहीं पेश आएंगे क्यूंकि वह हमारी स्टाइल नहीं है।" और फिर वही भयावह हँसी और वही सुनहरा दाँत। योग ने पहला धक्का धीरे से दिया। मुझे अच्छा लगा। योग का लण्ड थोड़ा सा ही घुसा था और काफी मोटा और कड़ा था। पहली बार मुझे ऐसा महसूस हुआ की मैंने वाकई में कोई मरदाना लण्ड को अपनी चूत में महसूस किया था। वह कोई भी मोटे से मोटे केले से भी मोटा था। मुझे मिली एक राहत खतम हो चुकी थी। अब मुझे भुगतना ही था। योग ने एक और धक्का दिया और उस समय मेरी चूत में से कटार की तेज धार से कट ऐसा शूल मझे महसूस हुआ। मेरी चूत योग के लण्ड ने ऐसी जकड राखी थी की उसका और अंदर जाना नामुमकिन था। और फिर भी योग थे की उसे और घुसेड़ने की कोशिश कर रहे थे। मैंने योग से कहा, "योग, प्लीज धीरे से डालो यार। तुम मुझे मार डालोगे क्या?" योग ने मेरे दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों में लकड़ रखा था और उन्हें इतनी जोर से दबा कर अपना मोटा लौड़ा वह मेरी चूत में घुसेड़ने के लिए अग्रसर हुआ। उसने एक जोर से कमर से अपने लण्ड को धक्का दिया। उस समय मेरे दिमाग में सिर्फ योग का लण्ड ही था। मैं उसे मेरी चूत को फाड़ते हुए महसूस कर रही थी।
मैं एकदम परेशान हो रही थी। मुझे लगा की मेरी चूत में से खून निकलना शुरू हो गया था। अगर योग ने और एक धक्का जोर से मारा तो वह मेरी चूत की चमड़ी को फाड़ डालेगा और मेरी चूत में से इतना खून बहेगा की खून की कमी के कारण ही मैं मर जाउंगी। मुझे इतनी जल्दी मरना नहीं था। मैं जानती थी योग आसानी से मेरी बात नहीं मानेगा। मैंने योगराज का सर मेरे दोनों हाथों में पकड़ा और उसका मुंह मेरे मुंह पर रख कर मैं उसे चुम्बन देने की लिये प्रेरित किया। मैं जानती थी की योग सीधे स्पष्ट खुल्लम खुल्ला चोदना, चूत, लण्ड ऐसा बोलने से ज्यादा खुश होता था। उसे सेक्स, लिंग, योनि जैसे गोल मोल शब्दों से नफरत थी। जैसे ही हमारे होंठ मिले की मैंने योग के कानों में कहा, "योग तुम्हारा लण्ड इतना मोटा मरदाना है और मेरी चूत छोटी सी जनाना है। थोड़ा रहम करना प्लीज! डार्लिंग, प्लीज थोड़ा सा धीरे से चोदो ना प्लीज?" मैंने फिर वही बार बार प्लीज कहने का फॉर्मूला अपनाया। मुझे लगा की मेरी बिनती का कुछ कुछ असर तो हुआ। योग रुक गया। पर फिर उसने एक और धक्का दिया और उसका मोटा और लंबा लण्ड मेरी चूत में आधा घुस गया। मैं तब सहनशीलता की मर्यादा पार चुकी थी। मैं योग का गला पकड़ा और उसे हिलाते हुए बोली, "तुम सुनते नहीं हो क्या? क्या तुम थोड़ी नरमी नहीं बरत सकते? कैसे प्रेमि हो? तुम्हे अपनी प्रेमिका से प्यार करना आता नहीं क्या?" योग मेरी बात सुनकर ठहाका मार कर हँस पड़ा और बोला, "प्रेम और तुमसे? मेरी जूती से! मैं तुम्हें प्रेम करना नहीं चोदना चाहता हूँ। ओ मेरी रंडी, मैं तुमसे जबरदस्ती करना चाहता हूँ। साली कुतिया। तुम क्या समझती थी? तुम योग से भी ज्यादा स्मार्ट हो? तुम सोचती थी की योग तुम्हारा काम भी करेगा और तुम्हें चोदेगा भी नहीं? तुमने कैसे सोचा की योग तुम्हारी चिकनी चुपड़ी बातों में आ जायेगा और खुद महेनत करके तुम्हें एक सफल महिला प्रोफेशनल का ताज पहनने देगा और खुद अपना अंगूठा चूसता रहेगा? अगर तुमने यह सोचा है तो तुम गलत फहमी में हो।"
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योग गंदे और आक्रामक शब्द प्रयोग के साथ अपना तगड़ा लण्ड मेरी नाजुक चूत में उतनी ही आक्रामकता से घुसेड़े जा रहा था। मुझे मेरी चूत में भयंकर शूल सा दर्द हो रहा था। मेरे कपाल पर पसीना बह रहा था। जैसे जैसे योग ने अपना लण्ड मेरी चूत में ज्यादा और ज्यादा घुसेड़ा मेरा दर्द बढ़ता ही गया। पर साथ में वह दर्द मुझे पता नहीं क्या पागलपन सा आनंद भी दे रहा था। ऐसा आनंद मुझे मेरे पति से चुदवाने में कभी नहीं मिला। पर फिर भी मुझे योग की रफ़्तार कम करवाना जरुरी था। मेरी चूत में से खून बह रहा था। अगर योग इसी तरह मुझे चोदते रहे तो खून के बहाव से पूरा बिस्तर गीला होजायेगा और मुझे डर था की दर्द और खून के बहाव से मैं कहीं मर ना जाऊं। दर्द के मारे मैं डर को भूल कर जोर से चिल्ला उठी, "योग, क्या कर रहे हो? तुम्हें थोड़ी सी भी तमीज़ नहीं है क्या? थोड़ा धीरे करो।" जैसे मेरे मुंह से यह शब्द निकले की जैसे मैं डर रही थी वैसा ही हुआ। योग ने अपना हाथ ऊपर किया और एक जबरदस्त तमाचा गाल पर पाने को मैं तैयार हुई। परन्तु मैंने महसूस किया की गाल पर करारा थप्पड़ के बजाय कोई मेरे गाल पर और कन्धों पर हलके फुल्के मुझे टपलियाँ मार रहा था और मुझे झकझोर रहा था। तब फिर मैंने योग की आवाज सुनी। पर उस समय उनकी आवाज बड़ी मधुर और नरम थी। वह कह रहे थे, "उठो डार्लिंग, उठो!" मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, की मेरे चारों और क्या हो रहा था। मेरा सर चक्कर खा रहा था। मैंने धीरे से अपनी आँखें पूरी खोलीं। मैं एकदम हड़बड़ा कर जाग गयी। योग मेरे सामने पुरे कपडे पहने हुए खड़े थे और मेरी आँखों में आँखें डालकर मुझे जगाने की कोशिश कर रहे थे।
जब मैंने अपने बदन को देखा। मैं भी पुरे कपडे पहने हुए साफ़ सुथरी सोफे पर लंबा हो कर लेटी हुई थी। ना कोई खून ना ही कोई फटे हुए कपडे। हाँ मेरे कपाल पर जरूर पसीना बह रहा था। मैं समझ गयी की मैं नींद में ही योग के साथ आक्रामक चुदाई का सपना देख रही थी। मैंने अपनी आँखें मली और धीरे धीरे लुढ़कती हुई खडी होने की कोशिश करने लगी। योग ने कड़ी होने में मेरी मदत करी!
योग कंप्यूटर पर इतनी देर तक गुथम गुत्थी करने के कारण थके हुए नजर आ रहे थे। वो बड़ी ही मीठी मुस्कान के साथ बोले, "क्या हुआ था प्रिया? तुम सपने में मुझे धीरे धीरे क्या करने को कह रही थी? क्या तुम मुझे तुम्हारा यह प्रोग्राम जल्दी से देख कर खतम करना नहीं चाहती? या फिर तुम कुछ और सपना देख रही थी?" मैं क्या जवाब देती? मेरी तो हालत ही खराब हो रही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था की मैं कहाँ हूँ और मेरे इर्दगिर्द क्या हो रहा है? मैंने योगराज को मुझ पर झुककर मुझे ध्यान से देखते हुए पाया। मेरे दिमाग में उस समय जैसे हज़ारों घंटियाँ बज रही थीं। मैं उस भयावह सपने से उभर नहीं पायी थी। कुछ पल के लिए तो मुझे ऐसा लगा की कहीं योग स तरह प्यार भरी मीठी आवाज बनाकर मुझे धोखा तो नहीं दे रहे? कहीं वह मेरी सहानुभूति पाने की कोशिश तो नहीं कर रहे? कहीं मुझे बहेला फुसला कर मुझे चोरी छुपी चोदने का प्लान तो नहीं कर रहे? कहीं अचानक ही वह मुझे पकड़ कर एक करारा थप्पड़ मेरे गाल पर जड़ कर कहीं मुझे विवश कर मेरी चूत के लिए अपनी भूख वह शांत करना तो नहीं चाहते? पर उनका चेहरा तो कुछ और ही कह रहा था। वह एकदम गंभीर और शांत लग रहे थे। यह तो सपने से उलटी ही बात हो रही थी। मैंने उनके सवाल का जवाब देना टाल ने में ही अपना भला समझा।
मैं उन्हें पूछा, "आपने मेरा प्रोग्राम देखा क्या?" योग जवाब देते हुए कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गए। मैंने उस रात के पहले योगराज जी को इतना गंभीर नहीं देखा था। गंभीर होने के उपरान्त वह थोड़ा जज्बाती हो रहे थे ऐसा मुझे लगा। योग के गला जैसे रुंध सा गया जब उन्होंने कहा, "मैंने तुम्हारा प्रोग्राम ना सिर्फ देखा, बल्कि मैंने तुम्हारे प्रोग्राम को इतनी बारीकी से जांचा है की क्या कहूं। मुझे इस बारे में तुमसे कुछ जरुरी बात करनी है।" मेरी जान हथेली में आगयी। एक भयंकर आशंका मेरे पुरे बदन में फ़ैल गयी। मैं समझ गयी की योग ने हमारा प्रोग्राम पूरा नकार दिया था, रिजेक्ट कर दिया था और वह अब बड़ा धमाका करने वाले थे की हमारा प्रोग्राम कूड़े दान में फेंकने के काबिल था। मेरे माथे पर पसीने की बुँदे आने लगीं। मेरी शकल रोनी सी हो गयी। मैं योग का फैसला सुनना नहीं चाहती थी। पर फिर सोचा की आखिर सच का सामना तो हिम्मत के साथ करना ही पडेगा।
योग ने मेरे कन्धों पर एक हाथ रखते हुए कुछ भावुकता भरे स्वर में कहा, "प्रिया डार्लिंग! यह तुम्हारा और तुम्हारी टीमम का डिज़ाइन किया हुआ प्रोग्राम मेरे देखे हुए प्रोग्रामों में से मेरी जिंदगी का सबसे सर्वोत्तम प्रोग्राम है। मेंरी समझ में यह नहीं आता की आप की टीम ने इतना सटीक, संक्षिप्त, सुगठित और फिर भी इतना विस्तृत प्रोग्राम कैसे बनाया? आपके छोटे से दिमाग में इतना प्रोफेशनल प्रोग्राम कैसे बना? प्रिया डार्लिंग, आज तुमने मुझे अपने इस प्रोफेशनलिजम से जित लिया। मैं तुम्हारे काम से मात खा गया।". मैंने देखा की योग सर की आँखों में भाविकता से भरे आंसू छलक रहे थे।
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यह सूना तो मैं बेहोश सी हो गयी। मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। मैंने योग सर की और आश्चर्य और अविश्वास भरी नज़रों से देखा। मुझे समझ में नहीं आया की उन्होंने वाकई में क्या कहा। मुझे लगा की वह मेरे साथ कोई भद्दा मज़ाक कर रहे थे। एक उच्च कक्षा के प्रोफेशनल प्रोग्रामर से ऐसी भूरी भूरी प्रशंशा की मैंने कोई उम्मीद नहीं राखी थी। जो उन्होंने कहा था वह मुझे हजम नहीं हो रहा था। मुझे लगा की शायद मैंने सही नहीं सूना।
मैंने कुछ आशंका भरे स्वर में योग से पूछा, "सर, आप ने क्या कहा?"
योग ने दुबारा वही कहा जो उन्होंने पहले कहा था। मुझे फिर भी मेरे कानों पर यकीन नहीं हो रहा था। हां यह सही है की मुझे अपने काम पर विश्वास था। और वास्तव में जो शब्द योग सर ने कहे थे वह सही थे। मैंने और मेरी टीम ने जो महेनत की थी यह उसका सफल परिणाम था। मैं जानती थी की प्रोग्राम वाकई में वाणिज्य के हिसाब से उच्च कक्षा का था उसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं थी l धीरे धीरे जो योग सर ने कहा वह दिमाग में घुसने लगा। वास्तव में तो वह एकदम सही कह रहे थे। मैं अत्याधिक भावावेश में सराबोर हुई थी। मेरी जिंदगी का और मेरी टीम एवं मेरे अपने प्रोफेशनलिजम का यह सबसे मूल्यवान प्रमाणपत्र था। मैं योग के पास गयी और मैं वही भावावेश में उनके सामने प्रस्तुत हुई। उन्होंने अपनी बाहें फैलायीं और मैं उनमें समा गयी। मैंने उनको बड़ा ही गाढ़ आलिंगन करते हुए कहा, "योग सर, आपकी यह मेरे काम की प्रशंशा मेरे लिए मेरी जिन्दगी की सर्व श्रेष्ठ और सबसे मूलयवान भेंट है।" योग सर मेरे भाव पूर्ण आलिंगन से कुछ ख़ास चलित नहीं हुए, बल्कि अपने ही प्रवाह में वह उसी भावावेश में बोले, "मैंने एक एक लिंक (जोड़ी), हर एक डेटा सेट को इतनी शूक्ष्मता और कठोरता से तराशा। कहीं कोई कमी, कोई गलती ढूंढने की बड़ी कोशिश की। पर यह प्रोग्राम इतना स्मूथ है की मुझे कुछ नहीं मिला। मैं अभी भी विश्वास नहीं कर पा रहा हूँ की यह प्रोग्राम तुमने बनाया...
मैं तुम्हारा और उन सब महिलाओं का गुनेहगार हूँ की जिनकी काबिलियत के बारे में मैंने आजतक उलटी पुलटि बातें की। मैंने आपकी और उन महिलाओं की काबिलियत के बारे में मेरे कटु वचनों द्वारा दिल दुखाया इस लिए मैं बहुत ही शर्मिन्दा हूँ और उन सब से माफ़ी माँगता हूँ।" तब तक मैं उस अजीबो गरीब उलझन से बाहर आ चुकी थी। मैं नार्मल हो चुकी थी। मैं योग सर की और आगे बढ़ी और उनका हाथ मेरे हाथों में लेकर बोली, "जिसका अंत सही हो वह सही है। मैंने भी आपका एप्प देखा है। आपका एप्प मेरे प्रोग्राम से कोई भी कंप्यूटर पर सहज रूप से ही लिंक हो जाएगा। क्या हम कोशिश करें?" पर तब मैंने योग सर की थकी हुई आँखों को देखा। वह थके हुए दीखते थे। मुझे लगा उनको कुछ सहज एवं तनाव मुक्त माहौल चाहिए।
मैंने कहा, "योग सर, काम को छोड़ते हैं। मैं समझती हूँ अब सफलता मनाने का, सेलिब्रेट करने का समय है। क्या आपके पास शैम्पेन है? मेरा मन करता है की सेलिब्रेट किया जाय।"
योग ने मुझे अपनी हाजरी में इतना आरामदायक स्थिति में पहली बार पाया। वह आश्चर्य से मुझे देखते रहे। योग हमेशा मेरा मन भांप लेते थे। उन्होंने मुझे पहले अपनी हाजरी में हमेशा बेचैन पाया था। अब मुझे तनाव मुक्त पाकर वह खुश नजर आ रहे थे। उन्हें मेरा यह परिवर्तन अच्छा लगा ऐसा मैंने महसूस किया।
उन्होंने जवाब में कहा, "क्यों नहीं डार्लिंग? शैम्पेन की कोई कमी नहीं है। चलिए"
हम चल कर उनके ड्राइंग रूम में पहुंचे। फिर उन्होंने कहा, "आप बैठिये। मैं बस थड़ी ही देर में नहा कर आता हूँ।"
मैंने अपने कंधे हिलाकर मुस्करा कर कहा, "जरूर शौक से जाइये। इसे आप अपना ही घर समझिये।"
योग जैसे ही बाथरूम गए तो मैं उठकर उनके घर की बालकॉनी में गयी जहां से सारा शहर रौशनी के गहनों में लदी हुई दुल्हन की तरह सजा हुआ नजर आ रहा था। निचे मुख्य रस्ते पर सरपट दौड़ती गाड़ियां अत्यंत आकर्षक लग रहीं थीं। वहां से इंसान छोटे से कीड़े मकोड़े की तरह दिख रहे थे। दूर समंदर की लहरें दिख रही थीं।
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थोड़ी देर ताज़ी हवा में सांस लेने के बाद मैं वापस ड्राइंग रूम में आयी। ड्राइंग रूम में कुछ किताबें अलमारी में राखी हुई थीं तो कुछ इधर उधर बिखरी हुई थीं। जब मैं उन किताबों को लेकर एक साथ रखने लगी तब मेरा ध्यान तस्वीरों पर गया। पहले मेरा ध्यान इन तस्वीरों पर नहीं गया था। वहाँ कुछ तस्वीरें थीं जिसमें योग कोई लड़की के साथ पहाड़ों की वादियों में नजर आ रहे थे। अचानक मैंने देखा की तस्वीरों में मैं योग के साथ नजर आ रही थी। मुझे अपने आप पर यकीन नहीं हुआ। भला मैं तो कभी भी योग सर के साथ कहीं भी नहीं गयी, फिर यह मेरी तस्वीर कैसे योग सर के साथ बनी? मैं बड़ी उलझन में पड़ गयी। मैंने उन तस्वीरों को जब और गौर से देखा तो पाया की एक औरत जिसकी शक्ल हूबहू मुझसे मिलती थी वह अलग अलग पोज़ में योग सर की बाहों में, सर से सर टकराये हुए, एक दूसरे का हाथ पकड़ कर टहलते हुए, किस करते हुए और कई दूसरे पोज़ में देखा।
उस औरत की शक्ल, बदन का आकार, लम्बाई, कद, कमर का घुमाव यहां तक की गाँड़ की गोलाई और स्तनोँ की साइज मुझ से इतनी हद तक मिलती थी की कोई भी धोखा खा जाए। योग सर जिस कदर उस औरत को देख रहे थे तो मुझे यकीन हो गया की योग उस औरत से बेतहाशा प्यार करते थे। यह औरत कौन थी जिसे योग सर चकोर जैसे चाँद को निहारता है ऐसे देख रहे थे? तब मुझे याद आया की योग सर के ऑफिस से आयी वह लड़की भी मुझे कह रही थी की योग सर भी मेरी और जैसे चाँद को चकोर देखता रहता है ऐसी नज़रोंसे देखते हैं। वह औरत जरूर वह योग सर की कोई ख़ास थी। जरूर उनकी प्रेमिका या पत्नी होगी। वह योग सर की क्या लगती थी? क्या योग सर के जीवन में भी कोई औरत थी जिसे वह इतना ज्यादा चाहते थे? यह सवाल मुझे खाने लगा। यह सब मेरे लिए योग सर के जीवन के एक नए पन्ने जैसा लग रहा था।
मैं योग सर की उन तविरों को देख कर जीसमे एक औरत बिलकुल मेरे जेसी दिख रही थी, खो गयी थी, मेरे दिमागमें कई सवाल घूम रहे थे। तभी मेरे पीछे से योग सर की आवाज आयी, " यह मेरी पत्नी कनिका थी।" उनकी अचानक पीछे की और से आकर मुझे तस्वीरों को देखते हुए पकड़ा इससे मैं थोड़ी सेहम गयी। तब मैं समझी की योग सर मुझे इतना घूर घूर कर क्यों देख रहे थे। पर "थी" शब्द सुन कर मैं थोड़ा असमंजस में पड़ गयी। मेरे शक्की दिमाग ने फिर काम करना चालु कर दिया। "अच्छा! तो साहब को कनिका ने तलाक दे दिया लगता है।" मैंने सोचा। पर योग ने जो कहा वह सुनकर मैं काँप उठी। योग ने मुझे शांति से सोफे पर बिठाया और बोले, "कनिका मेरी जिंदगी, मेरी सब कुछ थी। पर दुर्भाग्य ने उसको मुझसे समय से बहुत पहले छीन लिया। उसकी मौत एक कार दुर्घटना की वजह से हुई और एक राँड़, कुलटा, भ्रष्ट और अनैतिक पेशेवर स्त्री उसके लिए जिम्मेदार थी।" मैं योग की बात सुनकर दो कारणों से स्तब्ध थी। पहला यह की, मुझे अच्छा लगा (नहीं सॉरी, बुरा लगा) की योग अपनी पत्नी से तलाक के कारण नहीं पर कार दुर्घटना से मौत के कारण अलग हुए थे। दुसरा यह की मैंने इससे पहले योग को कभी किसी भी महिला के लिए इतने गंदे शब्दों का प्रयोग करते हुए नहीं सूना था। कई बार उनका वर्तन कुछ असभ्य और अशिष्ट होता था। वह कुछ सेक्सी शब्दों का इस्तमाल भी जरूर करते थे, पर इतनी भद्दी भाषा मैंने उनके मुंह से पहेली बार ही सुनी थी। योग के मन में उस महिला के लिए कितनी कड़वाहट और ज़हर भरा था वह उनके शब्दों द्वारा जाहिर होता था।
मैं उनकी और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा। योग एक गहरी साँस लेकर बोले, "मेरी पिछली कंपनी में मेरा प्रमोशन तय था। कंपनी के मालिक ने मुझे बुलाकर यह बात बता दि थी। उन्होंने कहा था की कंपनी के रजिस्ट्रेशन की सालगिराह पर मेरे प्रमोशन का ऐलान किया जाएगा l फिर अचानक एक दिन बहुत सेक्सी और खूबसूरत औरत पता नहीं कहाँ से टपक पड़ी। कहा जाता था की उसने पिछली कंपनी में गज़ब का प्रदर्शन किया था और बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की थीं l हमारी कंपनी का मालिक उस स्त्री से इतना प्रभावित हुआ था की जो पद मुझे मेरी काबिलियत के आधार पर प्रमोशन के बाद मिलना था उस पर उन्होंने उस स्त्री को बिठा दिया। मैं अपना अंगूठा ही चूसता रह गया।" यह बात कहते हुए योग ऐसे हताश लग रहे थे जैसे वाक्या कुछ सालों पहले नहीं, कल ही हुआ हो। योग ने आगे बताया, "मुझे जल्द ही पता लगा की वह औरत धोखेबाज थी। वह अलग अलग कंपनियों के मालिकों को अपने रूप और सेक्स के जाल में फाँस कर उच्च पद पर नौकरी करती थी, और जब बॉस ऊब जाते थे तो दुसरे किसी को फाँस कर वहाँ जॉब कर लेती थी। अपने रूप और बदन का सौदा करके वह औरत अच्छे प्रमाणपत्र लेती थी और खूब पैसे कमाती थी। उस औरत की वजह से मेरी जिंदगी छिन्न-भिन्न हो गयी। मैं अंदर ही अंदर टूट गया। मुझे सारी दुनिया की पेशेवर औरतों से नफरत सी हो गयी।
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कनिका और मैं मेरा प्रमोशन का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे और जब उस औरत ने हमारे सपनों को चकनाचूर कर दिया तो मैं टूट सा गया।" योग की आँखे यह कहते छलछला उठीं, "कनिका ने मुझे ढाढस देने की खूब कोशिश की पर मेरे जहन में जो नफरत और घृणा का ज़हर भरा था वह हट नहीं रहा था। मैं दिन रात बस यही विचारों के कारण कुढ़ता रहता था l मेरा ऐसा हाल देख कर एक शाम कनिका ने मुझे बाहर एक रोमांटिक शाम गुजारने के और रेस्टोरेंट में खाना खाने के लिए आग्रह किया। हम वहाँ ही एक अच्छे क्लब में गए। क्लब में मैंने शराब थोड़ी ज्यादा पी ली। मेरा दुर्भाग्य की मैंने क्लब में मेरे बॉस को उस औरत के साथ एक निजी कमरे से बाहर निकलते हुए देखा।
जाहिर था की मेरे बॉस, उस औरत को कमरे में चोद रहे थे, क्यूंकि वह जब बाहर आये तो उन दोनों के कपडे सही तरीके से पहने हुए नहीं थे। उनको साथ में देख कर मेरी छुपी हुई गुस्से की आग भड़क उठी। मैं अपने आप को गुस्से में रोक नहीं पाया, तो मैंने उस औरत को पकड़ा और जोर से हिलाया और उसे खूब गालीयाँ दी। मैंने मेरे बॉस को भी भला बुरा कहा। पहले तो मेरा बॉस मुझे इतना गुस्सैल देख कर हड़बड़ाया और फिर मुझे फ़ौरन नौकरी से बर्खाश्त कर दिया।"
योग के चेहरे पर गुस्सा और कूँठता का भाव था। पर अपनी बात जारी रखते हुए योग बोले, "मैंने कनिका का हाथ पकड़ा और ग़ुस्से में क्लब के बाहर निकला और कार में बैठा। कनिका ने मुझे शांत करने की बड़ी कोशिश की l मैं घर वापस जाने के लिए पहाड़ी रास्ते पर तेजीसे कार चलाने लगा। कनिका ने मुझे बार बार कार धीमी चलाने के लिए कहा। पर मुझ पर जनून सवार था। मैं उस औरत तो कोसता हुआ गुस्से में तेजी से कार चलाता था की अचानक सामने एक बड़ा ट्रक आने के कारण, मैं अपनी कार पर नियंत्रण नहीं रख पाया और मेरी कार गहरी खाई में जा गिरी। कनिका को गहरी चोटें आयीं और उसने वहीं दम तोड़ दिया। और मैं अकेला हो गया।" योग की आँखों में जैसे आंसुओं की बाढ़ उमड़ रही थी। मैं अनायास ही योग के पास पहुंची और मेरे रुमाल से उनके आंसू पोंछे, और वह भयावह एवं दुखद हादसे पर अपनी सहानुभूति जता ने के लिए उनके एकदम करीब जा बैठी।
मुझे तब समझ में आया की योग कार्यव्यस्त महिलाओं के खिलाफ इतनी नफरत और तिरस्कार की भावना क्यों रखते थे। मैंने योग का हाथ अपने हाथों में लिया और बोली, "कनिका की कमी की पूर्ति तो कोई नहीं कर सकता। परन्तु कनिका की आखरी इच्छा थी की आप खुश रहो और जो हो गया उसे भूल जाओ। तो आपको उस बात का तो सम्मान करना चाहिए l आपको अपने आप पर नियत्रण रखना होगा। आपको उस घटिया और चालु औरत को भूलना होगा और अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना होगा। अगर मैं इस में आपकी कुछ भी मदद कर पाऊं तो वह मेरा सद्भाग्य होगा और ऐसा करने पर मुझे बड़ी ख़ुशी होगी।"
योग थोड़ी देर के लिए कनिका का फोटो देखते रहे, फिर एक गहरी साँस लेकर बोले, "मैंने आपके साथ जो सलूक किया है उसके लिए मैं आप से माफ़ी माँगता हूँ। मैं उस घटिया औरत के प्रति मेरी नफरत को भुला नहीं पा रहा था l मुझे हमेशा लगता था की मैंने मेरी प्यारी कनिका को उस धोखे बाज, घटिया राँड़ के कारण ही गँवाया था। इस के कारण मैं हर एक प्रोफेशनल औरत को उस औरत जैसा ही मानने लगा था और उनसे नफरत करने लगा था, मेरे मन में प्रोफेशनल औरतों के लिए एक पूर्वग्रह पैदा हो गया था..
आपका यह प्रोग्राम का अध्यन करने के बाद जब मैंने देखा की आपने कितना कार्यदक्ष यह प्रोग्राम डिज़ाइन किया है तो मेरी समझ में आया की महिलाएं भी इतना बढ़िया प्रोग्राम डिज़ाइन कर सकती हैं l वह एक धोखे बाज औरत के कारण मैं सारी औरत जात को धोखेबाज समझने लगा था। मेरे कड़वे और घातक शब्दों के कारण आप का ह्रदय तोड़ने के लिए मुझे आप माफ़ करना।" फिर योग सर की आँखों में आंसू झलक पड़े।
मैंने योग का सर मेरी छाती पर रखा और मैं उनके बालों में बड़े प्यार से अपनी उँगलियाँ फिराने लगी। मेरे जहन में उस समय अनजानी अजीब सी उत्तेजनात्मक भावनाएँ उमड़ रहीं थीं। मुझे लगा की यह समय था की जब मैं योग सर का अपने स्त्री सुलभ मनोभाव से हौसला बढ़ाऊँ। मैंने उनसे कहा, "मुझे ख़ुशी है की आप उस घटिया स्त्री को पीछे छोड़ चुके हो।" फिर मैंने योग के होठोँ पर उंगली फिसलाते और उनकी आँखों में आँखें डालते हुए नटखट अंदाज में कहा, "पर सावधान। आपको उतनी ही चालाक और शायद उससे कहीं अधिक कष्ट दायक दूसरी औरत से भी निपटना है।" योग इतने गंभीर होते हुए भी बरबस मुस्करा उठे। उन्होंने उतने ही शरारत भरे अंदाज में कहा, " मैं उस उतनी ही चालाक और कष्टप्रद स्त्री को बड़ी अच्छी तरह जानता हूँ। मैं यह भी जानता हूँ की ऐसी औरतों से कैसे निपटा जा सकता है।"
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मैंने कहा, "अच्छा जनाब? तो फिर क्यूँ ना हम शैम्पैन की बोतल खोकर उस पुरानी औरत को अलविदा कहें और नयी औरत बनाम मुसीबत का स्वागत करें?"
योग मेरी इस अठखेली से हँस पड़े l अब वह काफी तनाव मुक्त लग रहे थे। वह उठकर एक अल्मिराह के पास गए और उसे खोल कर उसमें से शैम्पेन की एक बोतल निकाली। उसे एक बर्फ से भरी छोटी सी बाल्टी जैसे बर्तन में रख कर कुछ देर तक चुचाप इंतजार करते रहे। फिर उन्होंने बोतल का ढक्कन मेरे मुंह के सामने जोर से खोला। ढक्कन उछल कर दूर जा गिरा और शैम्पेन एक उफान की तरह उमड़ पड़ी और मेरे सर, मुंह, होंठ, गर्दन और छाती पर फ़ैल गयी। शैम्पेन मेरे ब्लूज़, ब्रा को गीला कर अंदर मेर स्तनों पर भी फ़ैल गयी।
योग ने उसी मश्कारे अंदाज में कहा, "ओ नयी औरत! आप भी सावधान रहना। योग तुम्हें पुरानी औरत की तरह आसानी से छोड़ने वाला नहीं है।"
मैंने मेरे होंठों पर लगी शैम्पेन चाटी और चखी।
योग ने पहले मेरा ग्लास भरा और फिर उफान में उठती हुई शैम्पेन से अपना गिलास भी भरा। मेरे प्रोग्राम के सम्मान में योग ने अपना गिलास उठाकर बड़ी गंभीरता और जिम्मेदारी भरे शब्दों में कहा, "यह बड़े ही उच्चतम प्रोग्राम राइटर ने डिज़ाइन किये हुए अत्यंत उमदा और व्यावसायिक तौर पर सफल होने वाले प्रोग्राम के लिए।", योग ने गिलास में से एक चुस्की ली और मेरी और मूड कर बड़े ही मनोहर शब्दों में फिर कहा, "प्रिया, मुझे आपके इस सॉफ्टवेयर प्रोग्राम की मुहीम में शामिल होने में बड़ा गर्व महसूस हो रहा है। मुझे इस में शामिल करने के लिए बहुत शुक्रिया।" ऐसा कह कर उन्होंने शम्पैन की एक और चुस्की ली। मुझे योग की तरह धीरज नहीं थी। मैं उस शाम कुछ ख़ास करने की फिराक में थी, वह करने के लिए मुझे काफी हिम्मत और हौसले की जरुरत थी।
मैं गटक से पूरा गिलास एक ही झटके में पी गयी। मैंने दूसरा गिलास भी शैम्पेन से भर दिया और उसे भी गटका गयी। योग के शब्दों ने मेरे अंदर भावनाओं की एक सुनामी जैसी ऊँची ऊँची लहरें पैदा कर दी थीं। मेरे लिए यह एक अद्भुत एवं अविश्वश्नीय बात थी की योग के जैसे कट्टर महिला विरोधी पुरुष अब उन्हीं महिलाओं के काम का कितना कायल हो गया था। मेरे मन में योग के लिए जो घृणा और वैमनस्य था, वह डैम फटने से जैसे डैम के परखच्चे उड़ जाते हैं, वैसे ही उड़ गए। योग के प्रति जो नफरत की दिवार थी वह रातो रात ढह गयी और अब उसकी जगह उनके लिए मेरे मन में एक अजीब सी रोमांचकारी रूमानी भावना ने जगह ले ली थी। मेरे काम के लिए उन्होंने जो प्रशंशा भरे शब्द बोले थे यह सुनकर मैं पागल सी हो रही थी।
मेरे पति को मेरी खुली चुनौती Ch. 05
योग की कहानी और उनकी मेरे काम के प्रति तारीफ सुन कर मैं फूली नहीं समां रही थी, इस चक्कर में मैंने शम्पेन के 3-4 गिलास एक साथ गटक लिए! मैं अब योग बिखरे हुए घर के बारे में, उनके अकेलेपन के बारे में, उनकी पत्नी (जिसकी शक्ल मुझसे हूबहू मिलती थी) के बारे में सोचने लगी। मुझे लगा योग को इस वक्त मेरी सख्त जरुरत थी। एक स्त्री के प्रेम के बगैर भला पुरुष कैसे जी सकता है? पत्नी के बगैर अकेले रह कर उनमें करुणा और नर्माहट का भाव सुख गया था। योग के रूखेपन का कारण मुझे यही लगा। मेरे उनके करीब आते ही जैसे उनके जीवन में फिरसे प्यार और करुणा वापस लौट आयी थी।
अचानक मेरी साँसों की रफ़्तार बढ़ गयी। मेरी निप्पलेँ फूलने लगीं, मेरी चूत में से पानी रिसने लगा। मेरे जहन में एक उत्तेजक उन्मादक सिहरन फ़ैल गयी। मेरी जाँघों के बिच वही पुरानी खुजली सी पैदा होने लगी। मेरी चूत मेंअजीब सी फड़कन होनेलगी। मेरी चूत में योग के लण्ड के लिए एक ललक सी होने लगी। दो गिलास शैम्पेन ने मेरी भावनाओं को और रोमांचक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मैं योग के करीब गयी और उनसे लिपटकर उनकी बाहों में चली गयी और उनसे बोली, "योग डार्लिंग, मैंने थोड़ी देर पहले आपसे कहा था की मेरे काम के बारे में आपकी तारीफ़ ही मुझे मिलने वाले कोई भी तोहफे से मेरे लिए सबसे उत्तम तोहफा होगा। पर मैं गलत थी। अगर आप मेरे काम से वाकई में इतने प्रसन्न हैं तो उससे भी ऊंचा और उससे भी उत्तम एक और तोहफा है जिसके में लायक हूँ और जो मैं आपसे चाहती हूँ l मैं चाहती हूँ योग की आज रात तुम मुझसे खूब गहरा और घनिष्ट अंतरंग प्यार करो। योग तुम मुझे आज रात अपना सर्वस्व समर्पण कर दो और मेरा सर्वस्व स्वीकार करो। मैं तुम्हें अपने आपको समर्पित करना चाहती हूँ। क्या आज रात तुम मुझसे एकाकी अंतरंग प्यार करोगे? क्या आज रात तुम मुझे चोदोगे? अगर आप मुझे कोई तोहफा देना चाहते हो तो यही मेरे लिए सर्वोत्तम तोहफा होगा।"
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योग मेरी बात सुनकर अचम्भे से मेरी और देखते ही रह गए। उनको मेरे शब्दों पर शायद विश्वास नहीं हो रहा था। उनको विश्वास नहीं हुआ की मैं वही औरत थी जो योग ने जब कहा की वह मुझे चोदना चाहता था तो आग बबूला हो गयी थी और उनसे नफ़रत करने लगी थी वही औरत आज सामने चल कर उनसे चुदवा ने के लिए आमंत्रित कर रही थी। योग के चेहरे पर अजीबोगरीब भाव दिखने लगे l मैंने योग का हाथ मेरे स्तनों पर रखा और कहा, "योग मैं मजाक नहीं कर रही। मैं वाकई में तुमसे तुम्हारे मोटे लण्ड से चुदना चाहती हूँ। मैं इस लिए नहीं कह रही हूँ की तुमने मेरे प्रोग्राम को स्वीकार किया है और मुझे पूरी सहायता करने का वादा किया है, पर इस लिए की मैं तुमसे चुदवाना चाहती हूँ। मैं हमेशा तुमसे चुदवाना चाहती थी। जब हम लिफ्ट में फँस गए थे तब मैं चाहती थी की तुम मुझे वहीँ चोद देते। पर वह हो नहीं पाया। बाद में मैं ग़लतफ़हमी के कारण तुम्हारे करीब आ नहीं पायी, और मेरी दिल की बात तुम्हें कह नहीं पायी l जब तुमने मुझे चोदने के लिए उस कैफे में कहा था तो तुम्हें पता नहीं था की मैं तुमसे चुदवाने के लिए कितनी तड़पी थी। पर वही ग़लतफ़हमी के कारण मैंने तुम्हें दुत्कार दिया था। अब मैं अपनी गलती सुधारना चाहती हूँ।" योग ने मेरी और प्यार और कुछ लोलुपता भरी नजर से देखा। मैं उनकी नजर देख कर शर्मा गयी। उन्होंने वही प्यार भरी नजर से मुझे देखा जो पहली बार मिलने पर देखा था। उनको मुझमें अपनी पत्नी नजर आ रही थी। मुझे इससे कोई शिकायत नहीं थी। मैं उस रात उनकी पत्नी ही बनना चाहती थी। मैं उनको उस रात एक पत्नी का सुख देना चाहती थी। मेरे घुटनों और पीठ के निचे अपने बाजू रखकर योग ने आगे बढ़कर मुझे बड़ी आसानी से ऊपर उठा लिया। उनकी उंगलियां मेरे स्तनों को छू रहीं थीं।
वह मुझे उठा कर अपने शयन कक्ष में ले आये और मुझे बड़े प्यारसे बिस्तरे पर हलकेसे लिटाया। जैसे ही योग ने मुझे अपनी बाँहों में ऊपर उठाया की मैंने योग के होठोँ पर अपने होंठ रख दिए। उनके सर को मेरे दोनों हाथों में पकड़ कर मैंने उनके मुंह को मेरे मुंह से जोड़ दिया। मेरे ऐसे आवेग पूर्ण वर्ताव से योग थोड़े से सकते में आ गये की अचानक मुझे यह क्या हुआ? पर फिर उन्होंने भी मेरे होंठों से अपने होँठ भींच दिए और हम दोनों प्रगाढ़ चुम्बन में जुड़ गए। योग इतने उत्तेजित होगये थे और मेरे होँठों से अपने होँठ इतनी सख्ती से भींच दिए और हम इतनी देर तक एक दूसरे से होँठ से होँठ मिलाकर चिपके रहे की मेरे लिए साँस लेना भी मुश्किल हो रहा था। योग मेरे मुंह में अपनी जीभ डाल कर उसे अंदर बाहर कर रहा था। मैं उनकी जीभ को चूस कर उसका स्वाद ले रही थी। उनके मुंहकी लार मेरे मुंह में आरही थी और मुझे बड़ी सुहानी लग रहीथी। मुझे ऐसे महसूस हो रहा था जैसे योग मुझे जीभ से ही चोद रहे हों और उनकी लार जैसे उनके लण्ड से रिस रहा पूर्व स्राव हो। जब मेरी साँस रुकने लगी तो हम अलग हुए। मैं ताजा हवा में साँस में लेने की कोशिश कर रही थी तो बोले, "श्रीमती जी, आपका तोहफा तैयार है। "
योग निचे झुके और मेरे गाल पर, मेरी गर्दन पर और मेरी छाती पर गिरी शैम्पेन को वह चाटने लगे। उनका एक हाथ मेरी त्वचा और मेरे ब्लाउज और ब्रा के बिच में से उन्होंने घुसाया और मेरे स्तनोँ को अपनी उँगलियों के बिच दबाने लगे। उनके हाथ में मेरी फूली हुई निप्पलेँ आयी और वह उन्हें चींटा भरने और दबाने लगे। मेरी इतनी फूली हुई निप्पलेँ महसूस कर वह हैरान रह गए और बोले, "बापरे! तुम्हारी निप्पलेँ तो देखो! कितनी फूली हुई हैं? तुमतो एकदम गरम हो रही हो!" मैंने उनकी और देखा और हँस कर कहा, "योग, तुम तो मुझे अपना तोहफा देने में बिलकुल समय गँवाना नहीं चाहते हो।" योग ने कहा, "मुझे मेरी माँ ने एक बड़ी अच्छी सलाह दी थी की बेटा अच्छे काम करने में देर नहीं करनी चाहिए।" योग ने मेरे ब्लाउज के ऊपर के बटनों को खोलने के लिए फंफोशना शुरू किया। और आखिर में एक के बाद एक ऊपर के बटन खोल ही डाले। मैंने अपना ब्लाउज पूरा खोल दिया और बाहर निकाल फेंका। योग ने तुरंत पीछे हाथ डाल कर मेरी ब्रा की पट्टियां खोल डाली। मैंने योग को अपने पास खींचा और मेरा हाथ उसके पाजामे में हाथ दाल कर उसका लण्ड मेरे हाथ में पकड़ा। बापरे! योग का लण्ड जो मैंने सपने में देखा था उससे कम नहीं था। योग की उत्तेजना और कामुकता का अंदाजा उसके लण्ड की सख्ताई और लम्बाई से साफ़ साफ़ लगाया जा सकता था।
मेरे कंपनी ज्वाइन करने के बाद योग ने किसी भी औरत को नहीं चोदा था यह बात मैं जान चुकी थी। इसका मतलब यह हुआ की योग ने करीब करीब छह महीने से किसी भी औरत को नहीं चोदा था। यह योग की उत्तेजना से साफ़ दिख रहा था। योग के लण्ड पर उसका पूर्व स्राव पूरी तरह फैला हुआ था। मेरे हाथ लगते ही योग के बदन काँप उठा। मेरी हथेली योग के पूर्व स्राव की चिकनाहट से भर गयी। मुझे बरबस ही अजित के लण्ड के आसपास फैली चिकनाहट की याद आयी। उस बेचारे ने भी तो कोई भी औरत को करीब छः महीने से नहीं चोदा था।
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योग का लण्ड मेरे पति के लण्ड से कहीं ज्यादा लम्बा और मोटा था। मेरे पति का लण्ड भी कोई छोटा नहीं था, पर योग के लण्ड के मुकाबले कुछ नहीं था। लिफ्ट में मैंने योग के लंड को महसूस जरूर किया था और उसकी साइज का मुझे भली भांति अंदाज भी हो गया था। पर उस रात मैंने पहेली बार योग के नंगे लण्ड को स्पर्श किया था। उसका इतना मोटा लण्ड पूरी तरह मेरी छोटी सी मुट्ठी में लेना तो संभव नहीं था पर फिर भी मैंने उनके लण्ड की ऊपरी सतह वाली त्वचा को मेरी उँगलियों का घेरा बनाके मुट्ठी में पकड़ा और धीरे धीरे प्यार से उसको उनके लण्ड के डण्डे की लम्बाई पर आगे पीछे करने लगी। मैं योग को बड़े ही प्यार भरी नज़रों से देख रही थी। उनका कई महीनों का या यूँ कहिये की सालों का सपना शायद साकार हो रहा था। वह आँखें मूँदे इस अनुभव का आनंद ले रहे थे। कभी वह अपनी पत्नी कनिका के हाथ के स्पर्श का ऐसा अनुभव लेते थे। उन्होंने शायद सोचा भी नहीं होगा की एक दूसरी औरत जिसकी शकल कनिका से हूबहू मिलती थी वह भी कभी उनके लण्ड को इस तरह सहलाएगी और उनसे चुदने के लिए तैयार होगी। लण्ड का सहलाना मर्दों का वीक स्पॉट होता है यह सब औरतें जानती है। उसको ऐसे हिलाते ही कई ढीले ढाले मर्द तो औरत की मुठी में ही अपना माल छोड़ देते हैं। मेरे लण्ड सहलाते ही योग का पूरा बदन सिहर उठा। उनका लण्ड फुल कर और बड़ा हो गया। उनकी उत्तेजना का अनुभव मैंने मेरे स्तनोँ को जोरसे दबाने के कारण भली भाँती महसूस किया।
उन्होंने झुक कर मेरी दोनों चूँचियों को बारी बारी चूसना शुरू किया। उनको मेरी फूली हुई निप्पलेँ बड़ी भायीं ऐसा मुझे लगा क्यों की वह बारी बारी उनको चूमते और काटते थे। ऐसा काफी देर करते रहने के बाद उन्होंने सर उठाया और मेरी और देखकर बोले, "प्रिया, जानूँ इनको चूसकर तो मजा आ गया। तुम्हारे स्तन कमाल के स्वादु हैं।" मैंने उनकी और देखकर कहा, "लगता है अभी भी तुम अपना शिशुपन भूले नहीं हो।" "अगर इतनी मस्त स्तनोँ और निप्पलोँ वाली माँ अपना दूध पिलाने वाली हो तो भला कौन शिशु बनना नहीं चाहेगा?" योग ने मुस्कराते हुए मेरे स्तनोँ को चूसते हुए जवाब दिया। योग ने अपनी मुट्ठी में मेरे एक स्तन को इतने जोर से दबाया की मेरी चीख निकल गयी। उन्होंने एक उंगली मेरी एक निप्पल पर फिराते हुए कहा, "प्रिया डार्लिंग, तुम्हारे स्तन जैसे स्तन मैंने आज तक नहीं देखे। भगवान ने तुहारे स्तनोँ को सुंदरता का नमूना के जैसे बनाया है। " "और आपके लण्ड के जितना बड़ा लण्ड मैंने कभी ना देखा है और ना ही हाथों में पकड़ा है।" मैंने जवाब में योग से कहा। अचानक मैं यह सोच कर उलझन में पड़ गयी और शर्मा गयी की यह मैंने क्या बोल दिया? अगर योग ने पूछ लिया की मैंने कितने लण्ड पकडे हैं तो मैं क्या जवाब दूंगी? पर योग ने जवाब दिया, "जानूँ, यह लण्ड अब आज से तुम्हारा है।" योग यह कह कर खड़े हुए और उन्होंने अपना पजामा निचे खिसका कर कोने में फेंक दिया। उनका लंबा, मोटा, लोहे के छड़ के सामान कड़क लण्ड मेरी नज़रों के सामने तन कर खड़ा उद्दंड, ऊपर की तरह अपनी नोक उठा कर इधर उधर ऐसे झूल रहा था जैसे गुरुत्वा-कर्षण का नियम उस पर लागू नहीं होता हो। मैंने योग का लण्ड फिर मेरी हथेली में पकड़ा और उसे बड़े प्यार से थोड़ा और फुर्ती से सहलाने लगी। मैंने योग की और देखा तो योग मुस्कराये और मेरे बालों में अपनी उंगलियां डाल कर उनसे खेलने लगे।
मैंने उनसे कहा, "जानूँ जानते हो जब आपने मुझे सपने में से जगाया तो मैं 'धीरे करो धीरे करो' क्यूँ बड़बड़ा रही थी?" योग ने मेरी और प्रश्नात्मक नजर से देखा। मैं शर्मा कर मुस्कुरायी और बोली, "मैं सपना देख रही थी की तुम मुझे बड़े जोर से और दबंगाई से चोद रहे थे और यह तुम्हारा मोटा और लंबा लण्ड मेरी छोटी सी चूत पर कहर ढा रहा था। मैं तुम्हें मेरी यह नाजुक चूत को तुम्हारा यह घोड़े के जैसा लण्ड फाड़ ना दे इस लिए धीरे धीरे चोदने के लिए कह रही थी। " योग ने फिर वही मीठी मुस्कान देकर बोले, "अच्छा मैडम! तो आप यहां मेरे घर में मुझे चोदने और मुझसे चुदवाने के इरादे से ही आयी थीं?" मैंने योग की कमर पकड़ी और बोली, "योग जानूँ, तुम सवाल बहुत ज्यादा पूछते हो। क्या तुम्हारी माँ ने कम बोलो और काम ज्यादा करो उसकी सिख नहीं दी थी?" मैंने योग का कुर्ता उसकी छाती के ऊपर से निकालना चाहा। तो योग ने तुरंत ही अपनी बाहें ऊपर करके निकाल फेंका। मैं योग की निप्पलोँ को चाटना और उसके छाती पर फैले घने बालों को चूमना चाहती थी। योग मुझे अपने और करीब खिंच कर बोले, "मेरी माँ की सिख मैं कैसे अमल करता हूँ यह देखना चाहोगी?" कुर्ता निकालने पर योग अब पूरी तरह नंगे हो चुके थे। उनकी पतली सुगठित कमर और उसके निचे का ढलाव जो उनके पाँवों के बिच उनके लण्ड की और जाता था वह इतना लुभावना और सेक्सी लग रहा था की मैं अपने आप को रोक नहीं पायी और उन के शेव कर के साफ़ किये हुए टीले पर मैंने अपने होँठ रखे और चुम लिया। फिर मैंने मेरा सर ऊपर की और उठाया और मैं योग के सीने पर उनकी दो निप्पलोँ को चूमने और काटने लगी। मेरा हाथ अपने आप ही सरक कर उनकी जाँघों के बिच चला गया और मैं उनके लण्ड के ऊपर के हिस्से का मुआइना करने लगी। उनका कसा हुआ बदन, उनकी सख्त जाँघें, उनकी कड़क गाँड़ और कसरत करने से सख्त हुए उनके स्नायु मेरे शरीर को अजीब सी सिहरन दे रहे थे।
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