ये लो दोस्तों मेरी कहानी एक थी डायन का पहला भाग.. उम्मीद है आपको अच्छी लगेगी.
सन 1980 .
बहुत से लोग जंगल में रात को मशाले ले केर एक और भागे जा रहे थे,, उनके चेहरे पैर कुज अनहोनी होनी का दर साफ़ झकल रहा था . भागते भागते वह गांव के बाहर एक छोटी सी टूटी सी झोपडी तक पहुंचे . इक बहादुर आदमी ने मशाल के के डरते डरते दरवाजा खोला,, दरवाजा खोलते ही बदबू का झोका आया और सब पीछे हट गए .वह आदमी मुँह पे कपड़ा लगा केर आगे बढ़ा . आगे इक औरत की लाश बड़ी गैर कुदरती तरिके के हाल में पड़ी थी, लाश पैर कीड़े रेंग रहे थे, वह आदमी बाहर आया . उसने बाहर खड़े लोग उस की और बड़ी उत्सुकता से देख रहे थे,, उसने सर हिलाया . फिर अपनी हाथ की मशाल से झोपडी को आग लगा दी . तभी दूर जंगल से जोर की आवाज गुंजी. जैसी कोई बड़ा हाथी चिलाय हो,, लेकिन ये आवाज हाथी की आवाज से बहुत ज्यादा भयंकर थी . उन लोगो के पेअर टेल जमीन खिसक गयी,, वह उस आवाज की और चल पड़े..
सरपंच साहिब मुझे लगता है जो नहीं होना चाहिए था हो चूका है." एक बंदा बोला.
सरपंच ने सर हिलाया . कुज लोग दर के मरे वही से वापिस गांव की और मुड़ गए.
अपनी मंजिल पे पहुंच केर सरपंच ने मायूसी के साथ कहा " जिस चीज़ का डर था वही हुई.. होनी को कौन टाल सकता है .. बहुत देर हो गयी. ...............................
सन 2010
पुरे कमरे में पचक पचक की आवाज बेड की चीकू चीकू की आवाज के साथ मिली हुई थी. मेरा कुरता मेरे मुँह में था और मेरा मोटा लंड मेरी बीवी की बुर में था,, लगभग 15 मिनटस से मैं उसे चोद रहा था,
कुज खास मजा नहीं आ रहा था, आखिर घर की मुर्गी दाल बराबर होती है. वैसे भी एक बचा होने के बाद उसकी फुद्दी में पहले वाली बात नहीं रही थी,, और वह कुज खास ध्यान भी नहीं देती थी सेक्स में,,
अजी और कितना वक़्त लगेगा, मुन्ना कॉलेज से आने वाला है.." वह रूखे मन से बोली.
बस होने वाला है." इतना कह मने गति तेज़ कर दी.
कुज पल बाद मेरा वीरज निकल गया उसकी बुर में.
वह उठी,, पल्लू नीचे किया , चली गयी .
मैं पीछे लंड हिलता रह गया,,
""साला कुज मजा नहीं आया,, "" मैंने सोचा.
भेनचोद साली मेरी सेक्स लाइफ ख़तम हो चुकी है.. जितना सेक्स का चस्का मुझे है शयद ही किसी को हो,, और मेडी बुरी किस्मत देखो कैसी बीवी मिली, न कभी लंड चुस्ती है..बोलती है जी बदबू आती है,,
न गांड मरवाती है, बोलती है जी दर्द होगा,,
बस घोड़ी बनकर दे केर चली जाती है.."
ऐसा नहीं के मैंने और बुर नहीं चोदी. अपने दफ्तर में, गली में पड़ोसन,, काम वाली ,,और कोई न सही तो रंडी ..लेकिन ये सब सुविधा हर वक़्त मजूद नहीं होती.. इनके लिए खास कोशिश करनी पड़ती है,, ज्यादा खर्चा करना पड़ता है. हर वक़्त मौजूद पत्नी होती है.. अगर वह ऐसा करे तो कैसे चलेगा"
मैं अपने विचारो में डूबा था के बहार दरवाजा किसे ने खड़काया .
देखा तो डाकिया था,,मेरे डिपार्टमेंट का जिसमे मैं काम करता था उसका तार था,,
मैं खोल के पड़ने लगा , मुझे पता था ये किया है,, साल में एक बार वह मेरी बदली कुज वक़्त के लिए दूर किसी गांव में करते है,, ये कई सालो से चला आ रहा है, काम तो कुज खास नहीं होता बस जमीन का मुयायना करना होता है,, इस वजह से मेरा घूमना हो जाता है ,, नयी नयी चुत के दर्शन हो जाते है,, वैसे भी गांव की चुत कसी हुई और मस्तानी होती है..
पत्र पढ़ के एक बार तो मुझे झटका लगा,, मेरी बदली अशोकनगर नाम के गांव में हुई थी,, ये गांव मुझ से लगभग ३०० कम दूर ता पश्चिम की और,, बहुत अकेला जंगलो में था,,
लेकिन बात ये नहीं थी.. बात थी अज्ज से 30 साल पहले मेरे पिता जी की मृत्यु इसी गांव में हुई थी,
उनकी भी इसी काम से बदली हुई थी,, मुझे ये नौकरी उनके कारण मिली थी, खंते है उन्हें किसी जंगली जानवर ने मर डाला था,, लाश की हालत बदतर थी तो गांव वालो ने वही अंतिम संस्कार कर दिया.
अजी कहाँ जा रहे हो इस बार, " मेरी बीवी ने पूछा.
अशोकनगर "
कौन सा वही ? वह हैरान हो के बोली.
हाँ वही."
वह बोली थो कुज नहीं लेकिन मैं जनता था वह क्या सोच रही रही है. उसे लग रहा होगा इतिहास खुद को दुहरा न दे,, वही उम्र, वही नौकरी,वही गांव और वही आदत .
सरे मोहल्ले वाले जानते है और बताते है के मेरे पिता जी मुझ से बड़े चुत के दीवाने थे, उस वक़्त मोहल्ले की कोई औरत उनसे बची होगी नहीं शहर की कोई रंडी. वह तो उनका सरकारी नौकरी और अफसरी के कारन रुतबा था तो कोई बोलता न था,, ये गुण मुझे उनसे मिला . सेक्स मेरी कमजोरी थी.
आज मेरे जाने का दिन था,, मैं सामान पैक केर रहा था,, मेरी बीवी उतने दिनों के लिए मुन्ने को लेकर मायके जा रही थी,
उसकी बस का समय पहले था,, वह त्यार थी.
मुन्ना कहाँ है?: मैंने पूछा .
वह सो रहा है , अभी आधा घंटा है बस में," वह बोली,
"ठीक है", मैं समान पैक करते बोला.
अजी सुनते हो,, काफी दिन लग जायेगे . अगर जाते जाते एक बार करना चाहो तो.....? वह बोली.
मेरी बीवी को मेरा कितना ख्याल था,, वाह्ह....
लेकिन मुझे तो गांव की कसी चुत लेनी थी,, इसके भोसड़े का क्या करुगा..ये सोच मैंने कहा" नहीं रहने दो वक़्त नहीं है. "
ये सुन वह जाने लगी .
फिर मुझे ख्याल आया के आज खुद मानी है,, फायदा उठाया जाये. ..
अच्छा सुनो,, अगर गांड मरने दो तो ठीक है...नहीं तो रहने दो ....." मैंने पासा फेका .
अरे पर अभी? पैर वह दर्द होगा...................?
ठीक आ,, रहने दो,, मर्जी है,, कोई जबरदस्ती नहीं ," मैं बेफिक्री में बोला,,
मछली आज फस गयी थी,,
कुछ सोच वह नज़दीक आयी,,
ठीक है,, पैर प्ल्ज़ जयादा दर्द न करना,, इतना कह उसने हाथ डाल पैंटी उतारी ओह अपनी साड़ी ऊपर कर घोड़ी बन गयी.
आज जाते जाते शिकार हाथ आ गया,, वैसे भी व्यापार का असूल है पहल करने वाला शक्श मोलभाव के हालत में नहीं होता.
खैर मेरे अज्ज वारे न्यारे थे.. मेरा बड़ा सा लंड तन चूका था ..मैं पेण्ट खोली,
मेरा औजार कोबरा सांप की तरह फुंकारा मर बाहर आ गया .
मैंने पत्नी की गांड देखी .. छेद बहुत छोटा था,, पहली बार था,, लेकिन मैं तो इसका पुराना खिलाडी था,, कॉलेज में छोटी क्लास के कई छोरो की गांड मारी थी,, छोरी तो नसीब होती न थी,
खैर मैं बाथरूम ते सरसो के तेल की शीशी उठा लाया .. ऊँगली से गांड पर लगाया .. ऊँगली अंदर दाल केर लगाया,, उसने अपनी गांड सिकुड़ ली...
अरे घबराओ मत,, कुज न होगा,, बस रिलेक्स रहो.
जी जी ,,,," वह बोली,,
फिर मैंने कुज तेल अपने औजार पे लगाया ,, लंड का टोपा मैंने गांड के छेद पे रखा,,
थोड़ा अंदर को किया,, नहीं गया ,
थोड़ा जोर से किया ,,थोड़ा सा अंदर गया,,
ा इ इ इ इ ...............................
वह थोड़ा चीखी,,
मैं थोड़ा और जोर लगाया ... थोड़ा अंदर घुसा ,,
अरे रुको रुको प्ल्ज़,, दर्द हो रहा है,, "
मैंने न सुनी,,
थोड़ा जोर से आगे किया,, आधा लंड अंदर घुस गया,,
वह रोने लगी,,
अजी, प्ल्ज़ निकाल लो,,, आयी आयी आयी,,, दर्द हो रहा है,," वह तरले निकलने लगीं.
आधा लंड घुस चूका था,, रुक कैसे जाता,,
बस जरा सब्र रखो मेरी जान,,एक झटका और सेह लो,, काम हो गया बस..
उसने आखे बंद करके बिस्तर को अपने नाखुनो से जकड लिया,,
मैंने शीशी से सीधा गांड पे तेल डाला,,
उसको बिना बताये मैंने जोर से धका मारा,,
मेरा लंड उसकी गांड को चीरता हुआ जड़ तक बैठ गया,,
उसकी आखे घूम गयी,, वह कांपने लगी,,वह जोर से न चिलायी .. मुन्ना उठ जाता..
लेकिन उसका दर्द ोुस्का चेहरा बयान कर रहा था,,
अब गांड खुल चुकी थी,, मैं धके मरने चालू किये ..
उसे अब थोड़ा आराम मिला,, लेकिन उसे ये एहसास था के ये उसकी सबसे बड़ी गलती थी,,
खैर मैं तो मजे में था,, मेरे औजार को इतना छोटा रास्ता बड़े वक़्त बाद नसीब हुआ था,, मैं आखे बंद कर सम्भोग का मजा ले रहा था,,
जब मेरा बदन उसगी बड़ी गांड से जब टकराता था तो थपक थपक की आवाज होती थी , जिससे कमरा गूंज रहा था,,
वह तकलीफ में थी,, बार बार अपनी गांड नीचे कर लेती थी,, मैं पकड़ के ऊंची करता था,,
लगभग १५ min हो चुके थे,, मेरा छूटने का वक़त था,, मैं स्पीड बढ़ा दी .. दो पल तक ऐसा लगा गरम लावा मेरे अंदर से आ रहा है,, २ पल में मेरे लंड ने उसकी गांड में कई पिचकारियां मारी .
मैं हफ गया,, लेकिन मजा आ गया,, मेरे लंड निकालते वह ऐसी ही एक तरफ ढेरी हो गयी,,
मैं पीछे कुर्सी पे बैठ गया, मेरा वीरज धार बनकर उसकी फटी गांड से नीचे चो रही था,, उसके मोती जंघे वीरज से भरी थी,,,
मैं इस नज़ारे को देख रहा था के सामने शीशे में लगा कोई काळा कपड़ो में एक औरत मेरे पीछे पर्दो में खड़ी है रही है,,
मैं इक्दम डरकर खड़ा हुआ,, पीछे कोई न था,,
मेरी बीवी खड़ी हुई,, क्या हुआ जी?
कुज नहीं मुझे लगा वहाँ कोई?"
कहाँ कोई?
नहीं कुज नहीं,," चलो जल्दी अपने को साफ करो,, बस का वक़्त हो गया,," मैं झुंजाहलते बोलै..
जी ठीक है,, वह जरा लंगड़ाती हुई बाथरूम की और चली गयी,,
मैं बार बार पर्दे पीछे देख रहा था,, ऐसा वहां कभी हुआ नहीं,, वाकई मुझे आज डर लगा,,.
खैर मैंने अनदेखा केर दिया.