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कि वह क्या सोच रहा है? 'यही कि...' कुशल ने रेजर को पानी में गीला करे हुए कहा, 'इस पहली को एक नयी खाट ले आऊँगा।' 'तृप्ता को सुझाव बड़ा फिजूल लगा, बोली, 'मैं तो बहुत कम जगह घेरती हूँ।' 'कई बातें अभी तुम्हारी समझ में नहीं आ सकतीं। तुम अभी बच्ची हो...।' कुशल ने आईने में से तृप्ता की ओर कनखियों से देखते हुए कहा, 'कई बार तो तुम्हारे मुँह से दूध की बू भी आती है।' तृप्ता कुछ देर अवाक-सी उसकी ओर ताकती रही, फिर बाथरूम में चली गयी। जब वह स्नान करके लौटी तो कुशल तब भी चेहरे पर झाग बना रहा था। तृप्ता को देख कर उसके दिमाग में किसी छायावादी कवि की पंक्तियाँ तैरने लगीं,
उन्हें पकड़ने की बजाय वह तृप्ता को चेतावनी देने के लहजे में कहने लगा कि वह भविष्य में उसे शेव बनाने और स्नान करने के लिए कभी न कहे। उसकी इच्छा होगी तो वह खुद स्नान कर लेगा।इतने में बाहर का दरवाजा खुला और किसी के आने की पदचाप सुनाई दी। तृप्ता ने उचक कर बाहर देखा और बोली, 'सुब्बी है।' सुब्बी नीली आँखों वाली स्लिम-सी तृप्ता की हमउमर लड़की है। उसने आँगन में आ कर कुशल को देखा तो जीभ निकाल कर भाग गयी। 'सुब्बी बहुत खराब लड़की है।' तृप्ता ने कहा। 'लड़कियाँ सभी खराब होती हैं।' कुशल ने कहा। वह जानता था, तृप्ता की नजरों में सुब्बी क्यों खराब है।
कुशल शेव बनाता रहा। तृप्ता कुछ क्षण रुक कर बोली, 'देखने में कितनी भोली लगती है, पर मुई के पास लड़कों के खत आते हैं।' आईने में कुशल का चेहरा मुस्कराने लगा, उसने ठुड्डी पर रेजर चलाते हुए कहा, 'देखने में तो तुम भी बहुत भोली लगती हो।' तृप्ता के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ते देख उसने बात का रुख पलटा, 'जवान लड़की को लोग ऐसे ही बदनाम कर देते हैं।' 'मैं भला उसकी बदनामी क्यों करूँगी।' तृप्ता ने बाँह में पहनी चूड़ियाँ अँगुलियों से घुमाते हुए कहा, 'मैंने खुद देखे हैं उसके पास दर्शन के खत। नास-पीटी उनके जवाब भी लिखती है।' 'तुम क्या खाक कहानियाँ लिखती होगी।' कुशल के मुँह में साबुन चला गया था,
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उसने तौलिए से होंठ साफ किए और बोला, 'खत लिखने में क्या बुराई है? कहानी लेखिका को कुछ तो उदार होना चाहिए।' कुशल ने अपनी टाँग से ट्रंक को थोड़ा सा सरका दिया और फिर वह ऐसे पैर हिलाने लगा, जैसे ट्रंक संयोग से छू गया हो। 'आप कोई और मकान देखिए।' तृप्ता ने कहा, 'चीजें रखने के लिए भी जगह नहीं है। सारी रात ट्रंक मेरी पीठ पर चुभता रहता है।' 'सोने से पहले ट्रंक को खाट के नीचे से निकाल दिया करो।' कुशल ने कहा। 'आप शेव क्यों नहीं बनाते?' 'शेव तो अब बन ही जायेगी।' कुशल रेजर को पानी के गिलास में घुमा रहा थ। जब साबुन उतर गया तो उसने कहा, 'सुब्बी तो अभी बिलकुल मासूम है।
मुझे समझ में नहीं आता कि तुम उसके बारे में उलटी-सीधी बातें क्यों सोचती रहती हो।' 'आपको बात का पता नहीं होता और...।' 'और क्या? खत लिखने में मुझे तो कोई बुराई नजर नहीं आती।' कुशल ने जान-बूझ कर तृप्ता से आँख नहीं मिलाई। तृप्ता को कुछ सोचते हुए पा उसने कहा, 'खत लिखने के अलावा भी कुछ करती हो, मैं सोच नहीं सकता। तुम इस बात को क्यों भूल जाती हो कि अक्सर लड़कियाँ डरपोक होती हैं।' 'आपको उसी दिन पता चलेगा, जब उसके भागने की खबर मिलेगी।' 'अगर सुब्बी ऐसी लड़की है, तो तुम उसके साथ सम्बन्ध क्यों रखे हो? 'मैं तो उसे समझाती रहती हूँ।'क्या समझाती रहती हो?'
कुशल के गाल पर एक कट आ गया। 'यही कि दर्शन खत लिखता है तो वह जवाब क्यों देती है?' कुशल ने तौलिए से गला साफ किया। दूसरे ही क्षण खून का एक और कतरा चमकने लगा। तृप्ता भाग कर डेटाल ले आई। रुई से उसके गाल पर लगाते हुए बोली, 'मैंने उसे यह भी समझाया है कि वह दर्शन से कहे कि जब तक वह उसके पिछले खत नहीं लौटाएगा, वह उससे बात नहीं करेगी।' कुशल ने कहकहा लगाया और बोला, 'तुम जरूर उसे फँसाओगी।' 'फँसाऊँगी कैसे?' 'उससे न तो खतों को नष्ट करते ही बनेगा और सँभाल कर रखेगी तो किसी वक्त भी राज खुल सकता है।' कुशल ने कहा। 'भाड़ में जाये सुब्बी और उसके खत।
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अगर आप आप पिक्चर नहीं जायेंगे, तो मैं आपके लिए कुछ खरीद कर लाऊँगी।' 'इतना प्यार न किया करो तिप्पो।' कुशल ने तृप्ता की कलाई पकड़ ली और उसी रुई को तृप्ता के गाल पर घिसते हुए बोला, 'पहले तो तुम इतनी...।' 'बस-बस...।' तृप्ता ने बात बीच में ही काट दी, 'बताइए आपके लिए क्या लाऊँ? 'मेरे लिए एक खाट लाओ।' कुशल की पिण्डलियों में फिर जोरों का दर्द होने लगा था। तृप्ता जैसे प्रेम के अतिरेक में मचल उठी, गिनाने लगी, 'नहीं, खाट नहीं। एक नयी बुश्शर्ट, एक आपकी प्रिय पुस्तक, नया टूथ ब्रश और...' उसने कुछ सोचते हुए कहा, 'और टॉफियाँ लॉलीपॉप!' 'तुम सि़र्फ टॉफियाँ लालीपॉप ले आओ।'
'नहीं, मैं सब चीजें लाऊँगी। तुम्हारे पास कितने पैसे हैं? 'पाँच रुपये।' तृप्ता ने थूक निगलते हुए कहा। 'पाँच रुपयों से तो ये सब नहीं आयेगा, तुम्हारे पास जरूर और पैसे होंगे।' 'कसम से, इतने ही हैं।' तृप्ता ने कहा, 'आप सोम से पूछ लें, वह पाँच रुपये ही दे कर गया था।' कुशल शेव बना चुका था, परन्तु तुरन्त नहाना नहीं चाहता था, बोला, 'भला तुमने सोम से पैसे क्यों लिए?' तृप्ता का चेहरा छिले आलू की तरह हो गया, बोली, 'आपने मना किया होता तो कभी न लेती।' 'पैसे लेने में तो कोई हर्ज नहीं था...।' कुशल ने कहा, 'क्यों नाहक उसका खर्च करवाया जाये। उस दिन दुकान पर आया तो बहुत से फल भी लेता आया था।'
झूठ बोल कर उसे खुशी हुई। 'आपने बताया क्यों नहीं?' 'भला इसमें बताने की क्या बात थी। और फिर तुमने भी तो नहीं बताया था कि वह पैसे भी दे गया है।' 'बता तो दिया है।' 'खैर!' कुशल ने बात समाप्त होते देख टहोका दिया, 'सोम तुम्हारा क्या लगता है?' 'बुआ का लड़का है। आपको कई बार तो बताया है।' उसने चिढ़ कर कहा। 'मैं हर बार भूल जाता हूँ।' कुशल ने हँसते हुए कहा, 'तुम्हारे ब्याह में सबसे अलग-थलग खड़ा जिस ढंग से रो रहा था, उससे तो मैंने अनुमान लगाया था कि जरूर मेरा रकीब होगा।' 'रकीब के मानी क्या होता है?' तृप्ता ने तुरन्त पूछा। 'अरबी में बुआ के लड़के को रकीब कहते हैं।'
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कुशल ने कहा और कंधे पर तौलिया रख कर बाथरूम में चला गया। कुशल ने बाथरूम का दरवाजा बन्द किया, तो उसे खाट घसीटने की आवाज आयी। उसने महसूस किया कि नहाने से पहले सिगरेट मजा दे सकती है। वह खुद सिगरेट उठा लाता, मगर जब उसे चोर हाथों से ताला लगाने की आवाज आयी तो उसने खुद जाना उचित नहीं समझा। उसने तृप्ता को आवाज दी कि वह एक सिगरेट दे जाये। तृप्ता ने दूसरे ही क्षण झरोखे से सिगरेट और माचिस पकड़ा दी। सिगरेट पकड़ते हुए उसके मन में तृप्ता के प्रति प्यार उमड़ने लगा। उसे लग रहा था कि वह अपने मनोरंजन के लिए तृप्ता को परेशान कर रहा है।
यह मनोरंजन का साधन भी अचानक उसके हाथ लग गया था। उस दिन एक पुस्तक ढूँढ़ते-ढूँढ़ते वह तृप्ता के ट्रंक की भी छानबीन न करता, तो शायद इससे वंचित ही रहता। पुस्तक न मिलने पर उसने महसूस किया था कि ट्रंक में वक्त काटने के लिए बहुत सी रोचक सामग्री भरी पड़ी है। ट्रंक में कपड़ों के नीचे एक साधारण-सा पर्स पड़ा था, पर्स में मैट्रीकुलेशन का सर्टिफिकेट, तुड़ी-मुड़ी सी दो एक तस्वीरें, जिनमें युवक भेस में तृप्ता का एक चित्र था, माला से बिखरे हुए कुछ मोती, एक मैला पिक्चर पोस्टकार्ड, एक सेंट की लगभग खाली शीशी बहुत हिफाजत से रखी हुई थी। मैट्रीकुलेशन का सर्टिफिकेट देख कर कुशल शिथिल हो गया था।
उसे लग रहा था जैसे अनजाने में उससे चूजा जिबह हो गया हो। सर्टिफिकेट के हिसाब से तृप्ता की उमर कुशल से नौ साल कम बैठती थी। उसने सर्टिफिकेट से तृप्ता के अंक भी न पढ़े थे कि वापिस पर्स में रख दिया। ट्रंक में सबसे नीचे अखबार का एक बड़ा कागज बिछा था, मगर साफ पता चलता था कि कागज के नीचे कुछ है, क्योंकि कागज एक जगह से ऐसे उठा हुआ था, जैसे उसके नीचे एक बड़ा मेढक पड़ा हो। कुशल ने बड़ी एहतियात से वह मेंढ़क निकाला। कागजों का एक खस्ता पुलिन्दा था, जिसमें दोनों के खत थे। सोम के भी और तृप्ता के भी, जो शायद तृप्ता ने चालाकी से वापिस ले लिये थे या सोम ने शराफत से लौटा दिये थे।
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खत पढ़ते पढ़ते कुशल, कितनी देर तक हँसता रहा था। तृप्ता ने वही बातें लिखीं थीं, जो कभी-कभी भावुक हो कर उससे भी किया करती है। सोम के खत पढ़ कर तो हँसी से लोटपोट हो गया था। सोम की शक्ल देख कर तो अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि वह इतना भावुक हो सकता है और हिज्जों की इतनी गलतियाँ कर सकता है। इस बार जब सोम आया था तो उसने थोड़ी-थोड़ी मूँछें भी बढ़ायी हुई थीं। कुशल को यह बात बड़ी अजीब लगी कि मूँछें बढ़ा कर भी आदमी भावुक हो सकता है। मूँछों वाला भावुक! शाम को जब तृप्ता बाजार से लौटी तो उसने कहा, 'तृप्ता, तुम तीस बरस की कब होगी?' 'क्यों आप मूझे बूढ़ी देखना चाहते हैं?'
'नहीं बूढ़ी नहीं, लेकिन बच्ची भी नहीं। काश! तुम तीस साल की होती।' कुशल हँस पड़ा था। कुशल गुसलखाने से लौटा तो कमरे का रूप एकदम बदला हुआ था। खाट, जो इससे पहले कमरे के ठीक बीच पड़ी थी, अब दूसरे कमरे में खुलने वाले दरवाजे़ के साथ टिका दी गयी था। और उस पर अंगूरी रंग की एक नयी शीट बिछी थी। खाट के साथ ही दीवार की बगल में तृप्ता का ट्रंक पड़ा था, जिस पर उसी द्वारा काढ़ा हुआ एक सुन्दर मेजपोश बिछा था और जिसके ऊपर बैठी तृप्ता क्रोशिए से कुछ बुन रही थी। उसने आँखों में काजल की गहरी लकीरें खींच ली थीं। होंठ लिपिस्टिक के हल्के-से स्पर्श से किरमिजी हो गये थे।
कुशल ने यह परिवर्तन देखा तो, मुस्करा दिया। उसे मुस्कराते देख कर तृप्ता ने पूछा, 'आप मुस्करा क्यों रहे हैं?' तृप्ता क्रोशिए से पीठ खुजलाने लगी, जिससे उसका ब्लाउज कंधे के नीचे से गुब्बारे सा फूल गया था। कुशल के मन में क्षण भर के लिए यह विचार आया कि वह बाहर का दरवाजा बन्द कर आये, परन्तु स्नान करने से उसकी पिण्डलियों को थोड़ा-सा सुकून मिला था, जिसे वह कुछ देर और कायम रखना चाहता था। उसने सर पर कंघी फेरते हुए कहा, 'तुम कहती हो तो नहीं मुस्कराता।' 'आप कुछ सोच रहे हैं।' तृप्ता क्रोशिए पर दृष्टि गड़ा कर बोली, 'क्या सोच रहे हैं?' कुशल ने कुछ सोचने की कोशिश की और
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कल्पित प्रेमिका का पुराना किस्सा ले बैठा, बोला 'दरअसल मुझे शीला याद आ रही थी। जब मैं हँसता था, तो वह भी तुम्हारी तरह टोक देती थी। जब मैं सिगरेट पीता था, वह मुझसे दूर जा बैठती थी। जब कभी उसके घर जाता तो नौकर को भेज कर सिगरेट मँगवा देती। अजीब लड़की थी शीला....।' कुशल ने सिगरेट सुलगाया और खाली पैकेट नाटकीय अंदाज में दूर फेंक दिया। तृप्ता ने क्रोशिए से आँखें नहीं उठायीं। कुशल ने तृप्ता को लक्षित करके धुएँ का एक गहरा बादल उसकी ओर फेंका। उसे आशा थी कि ताजी लिपिस्टिक पर थोड़ा-सा धुआँ जरूर जम जायेगा। अपनी बात का प्रभाव न होते देख उसने बात आगे
बढ़ायी कि कैसे वह शीला के साथ पिकनिक पर जाया करता था। और... 'बस... बस मैं और नहीं सुनूँगी।' तृप्ता ने क्रोशिये से आँखें उठा कर कुशल की ओर अविश्वासपूर्वक देखते हुए कहा, 'आप मेरा बेवकूफ बना रहे हैं।' कुशल ने एक लम्बा कश लिया और बोला, 'अच्छा, अब तुम मेरा बेवकूफ बनाओ।' इस बार उसने नाक से धुआँ छोड़ा। तृप्ता को चुप देख कर उसने कहा, 'बनाओ भी।' 'क्या?' 'यही बेवकूफ।' उसने तृप्ता की ओर सरकते हुए कहा, 'तुम शायद समझती हो कि मैं पहले ही बेवकूफ हूँ।' 'बेवकूफ तो आप मुझे बना रहे हैं।' तृप्ता का चेहरा सुर्ख हो गया था और कड़वाहट पी जाने से उसने रुआँसी-सी हो कर कहा, '
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रकीब के मानी क्या होता है?' 'बुआ का लड़का।' कुशल ने सिगरेट के टुकड़े को पैर से मसल दिया, 'कहानी लेखिका हो कर इसका भी अर्थ नहीं पता?' कुशल को मालूम था कि अब वह कहानी लेखिका का लबादा ओढ़ने के लिए विवश है। 'आपको मेरा कुछ पसन्द भी है?' तृप्ता की आँखों में पानी चमकने लगा था। वह चाहता तो आसानी से तृप्ता को रुला सकता था, परन्तु उसने ऐसा नहीं किया। इधर-उधर सिगरेट का कोई बड़ा टुकड़ा ढूँढ़ते हुए उसने निहायत सादगी से कहा, 'निश्चित ही मुझे तुम्हारी रचनाएँ पसन्द आ सकती हैं, लेकिन तुम सुनाओ, तब तो।' तृप्ता ने कुशल की ओर नहीं देखा, उसकी बात भी अनसुनी कर दी और
घुटनों में सर दे कर बैठ गयी। पहले तो कुशल के जी में आया कि तृप्ता को चुप करवाया जाये और उसी बहाने प्यार भी किया जाये, परन्तु उसने महसूस किया कि बिना सिगरेट के कश खींचे प्यार नहीं किया जा सकता, भावुक तो बिल्कुल नहीं हुआ जा सकता। कुशल जानता है कि तृप्ता भावुकता-रहित प्यार को स्वीकार नहीं करेगी। उसने घुटनों पर झुकी तृप्ता की ओर देखा और पाँव में चप्पल पहनने लगा। तृप्ता के झुक कर बैठने से उसकी पीठ भरी-पूरी और मांसल लग रही थी। सफेद वायल के ब्लाउज में से उसके ब्रेसियर की कसी हुई तनियाँ नजर आ रही थीं। तृप्ता ने कुशल को चप्पल घसीटते हुए बाहर जाते देखा तो सिसकियाँ भरने लगी।
कुशल के मन में तृप्ता के प्रति करुणा उमड़ रही थी। उसे दुकान से इस प्रकार उठ आने में कोई तुक नजर नहीं आ रही थी। उसे मालूम है कि अब वह तृप्ता को जितना भी मनाने का प्रयत्न करेगा, वह उसी मात्रा में रूठती चली जायेगी। मनाने के इस लम्बे सिलसिले से तो दुकान पर दिन भर टाइप करना कहीं आसान है, कुशल ने सोचा और पनवाड़ी से सिगरेट का पैकेट लिया। वह लौटा तो भरे टब में पानी गिरने की वही चिर-परिचित आवाज सुनायी दी। उसे लगा, जैसे सहसा किसी ने देर से उसके कानों में रखी रुई निकाल फेंकी हो या वह बरसों पुराने माहौल में लौट आया हो उसने देखा, तृप्ता खाट पर औंधी लेटी थी
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और उसने अपना मुँह तकिए में छिपा रखा था। स्टोव पर पानी उबल रहा था और जले हुए कागज स्टोव पर रखे पानी में तिर रहे थे। कुशल ने बड़ी एहतियात से एक स्याह कागज उठाया और तृप्ता की पीठ पर पापड़ की तरह चूर्ण करते हुए बोला, 'कहानी जला डाली क्या? उठो... ब्याहता स्त्रियाँ बच्चों की तरह नहीं रोया करती। तृप्ता, जो धीमे-धीमे सुबक रही थी, फफक कर रोने लगी और उसकी हिचकी बँध गयी। कुशल खाट के निकट पड़े ट्रंक पर बैठ गया और खुले ताले से खेलने लगा, जो मेजपोश पर पेपरवेट-सा पड़ा था। सिगरेट सुलगा कर भी वह तृप्ता को चुप कराने का साहस न बटोर सका, उसे लग रहा था,
तृप्ता का रोना बिलकुल जायज है।
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thanks
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