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Fantasy गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार
#41
भाग - 40

कुसुम- आह.. भर दे.. मेरीई चूत को अपने बीज़ से.. उइईए ओह.. मेरी कोख भर दे.. साले हरामी ओह..।

ये सुनते ही राजू ने अपने लण्ड को पूरी रफ़्तार से कुसुम की चूत की अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया, लता उसकी चूत के दाने को मसलते हुए राजू के मोटे लण्ड को अपनी बेटी की चूत में अन्दर-बाहर होता देख रही थी।

“हाँ.. चोद साले.. फाड़ दे.. इस छिनाल की चूत को ओह बड़ा मोटा केला है रे तेरा… मेरी बेटी कितनी खुशकिस्मत है…।”

कुसुम- हाँ.. माँ..आहह.. दिल करता है.. पूरी रात इसका लण्ड अपनी चूत में लेकर लेटी रहूँ… ओह्ह फाड़ दे रे मेरी चूत.. हरामी ओह आह्ह.. आह्ह… और ज़ोर से चोद.. लगा ठोकर.. ना… साले ओह्ह… बस मेरा पानी छूटने वाला है.. ओह और अन्दर तक डाल..ल्ल्ल्ल..।

कुसुम ने अपनी टाँगों को राजू के कंधों पर रख कर ऊपर उठा रखा था.. जिससे राजू का लौड़ा जड़ तक आसानी से उसकी चूत की गहराईयों में उतर कर उसकी बच्चेदानी से टकरा रहा था। कुसुम झड़ने के बेहद करीब थी, उसका पूरा बदन अकड़ने लगा और उसका बदन झटके खाते हुए झड़ने लगा।

चूत की दीवारों ने लण्ड को अपनी गिरफ्त में कसना शुरू कर दिया और राजू के लण्ड ने गरम खौलता हुआ लावा निकाल कर कुसुम की चूत की दीवारों को सराबोर करने लगा।

कुसुम की चूत का मुँह बिल्कुल ऊपर की तरफ था और वो अपनी चूत की दीवारों से राजू के लण्ड का पानी बह कर अपने बच्चेदानी की तरफ जाता हुआ महसूस कर रही थी। उसके होंठों पर संतुष्टि से भरी मुस्कान फ़ैल गई।

उसी स्थिति में तीनों थक कर सो गए।

अगली सुबह कुसुम और राजू अपने गाँव के लिए रवाना हो गई.. दोपहर तक दोनों घर पहुँच गए। जैसे ही दोनों घर के अन्दर आए.. राजू की नजरें दरवाजे की ओट से उसकी तरफ देख रही दीपा से जा टकराईं। जैसे ही दोनों की नज़रें आपस में मिल कर चार हुईं.. दीपा शर्मा कर पीछे हट गई और अन्दर चली गई।

ये देख कर राजू के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।

पीछे खड़ी कुसुम भी दोनों के बीच पक रही खिचड़ी को ताड़ गई और अगले ही पल उसे ध्यान आया कि कहाँ वो राजू को दीपा के लिए इस्तेमाल करना चाहती थी और कहाँ वो खुद उसके लण्ड की दीवानी हो गई है।

उसने अपने सामान को कमरे में रखा और राजू भी अपने सामान को लेकर पीछे कमरे में चला गया। आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी। ये जान कर कुसुम मन ही मन बहुत खुश थी। अब उसे राजू और दीपा के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करने पड़ेगी।

शाम का समय था.. जब राजू घर के कुछ काम निपटा कर नदी की तरफ जा रहा था। उसने नदी के किनारे चमेली को देखा.. राजू को देखते ही चमेली की आँखों में चमक आ गई.. पर उसने अपने चेहरे से जाहिर नहीं होने दिया कि वो उसको देख कर बहुत खुश है।

उसने अपने चेहरे पर बनावटी गुस्सा दिखाते हुए.. मुँह को दूसरी तरफ घुमा लिया।

राजू- क्या हाल काकी… मुझसे नाराज़ हो।

चमेली- ठीक हूँ.. तू मेरा क्या लगता है कि मैं तुझसे नाराज़ होंऊँ।

राजू- ना काकी.. ऐसी बातें करके मेरा दिल ना दुखा..।

चमेली- अच्छा, अगर तू मेरा कुछ लगता तो.. मेरी बेटी की शादी के लिए नहीं रुकता..? तू उस छिनाल की चूत की चक्कर में उसके साथ चला गया।

राजू- अच्छा तो ये बात है… ठीक.. अगर तुमको ऐसा लगता है.. तो इसमें मैं क्या कर सकता हूँ.. आख़िर नौकर हूँ और अगर सेठ की बात नहीं मानता तो क्या करता…? तुम ही बताओ.. क्या तुम उनका कहना टाल सकती हो…? चलो छोड़ो.. जाने दो, तुम्हें तो मुझे पर विश्वास ही नहीं है।

ये कह कर राजू आगे की तरफ़ बढ़ने लगा। चमेली के होंठों पर तेज मुस्कान फ़ैल गई। उसने राजू का हाथ पकड़ लिया।

“अरे वाह.. एक तो ग़लती और ऊपर से मुझ पर ही गुस्सा दिखा रहा है.. चल उधर जा.. झाड़ियों की तरफ.. मैं थोड़ी देर में आती हूँ।”

ये कह कर चमेली ने राजू का हाथ छोड़ दिया और राजू घनी झाड़ियों की तरफ चला गया।

वो झाड़ियों के बीच ऐसी जगह बैठ गया.. जहाँ पर किसी की नज़र ना पहुँचे।

थोड़ी देर बाद चमेली ने चारों तरफ नज़र दौड़ाईं.. कोई दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रहा था और फिर वो भी उसी तरफ बढ़ गई। जब चमेली राजू के पास पहुँची.. तो उसकी आँखों में चमक भर गई। राजू अपना पजामा सरका कर नीचे बैठा हुआ.. अपने लण्ड को सहला रहा था।

चमेली ने राजू के मोटे लण्ड की तरफ देखते हुए अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए बोली।

चमेली- अरे.. मेरे होते हुए इस हाथ से क्यों हिला रहा है.. देख अभी कैसे इसको खड़ा करती हूँ।

ये कह कर चमेली राजू के पास आकर बैठ गई और झुक कर उसके लण्ड को अपने हाथ में पकड़ लिया। फिर उसने अपने उँगलियों से उसके लण्ड के सुपारे को सहलाते हुए.. उसके सुपारे को अपने होंठों में दबा कर चूसना शुरू कर दिया।

चमेली पागलों की तरह उसके आधे से ज्यादा लण्ड को मुँह में लेकर चूस रही थी। उसके मुँह से थूक निकल कर राजू के अंडकोषों की तरफ जा रहा था।

राजू मस्ती में आँखें बंद किए हुए.. अपने दोनों हाथों से चमेली के सर को पकड़ कर अपनी कमर हिला कर उसके मुँह को चोद रहा था। चमेली उसके लण्ड को मुँह में लिए हुए अपनी जीभ को नोकदार बना कर उसके लण्ड के सुपारे को कुरेद रही थी।

राजू इस चुसाई से एकदम मस्त हो गया था। उसने चमेली के सर को पकड़ कर ऊपर खींचा.. जिससे राजू का लण्ड झटके ख़ाता हुआ.. उसके मुँह से बाहर आ गया।

चमेली समझ गई कि अब राजू चोदने के लिए बिल्कुल तैयार है।

वो जल्दी से राजू के पैरों के ऊपर दोनों तरफ पाँव करके उसके लण्ड के ठीक ऊपर आ गई। राजू ने अपने लण्ड के सुपारे को उसकी चूत के छेद पर लगा कर चमेली की आँखों में ताका.. राजू का इशारा समझते ही चमेली ने अपनी चूत को उसके लण्ड पर दबाना शुरू कर दिया।

लण्ड का सुपारा चमेली की चूत के छेद को फ़ैलाते हुए अपना रास्ता बनाने लगा।

चमेली की चूत की दीवारें राजू के लण्ड पर एकदम कसी हुई थीं और राजू का लण्ड चमेली की चूत से बुरी तरह रगड़ ख़ाता हुआ अन्दर-बाहर हो रहा था।

“ओह्ह मुझे तेरी और तेरे लौड़े की बहुत याद आई मेरे राजा.. ओह्ह तीन दिन से तेरे लण्ड के बारे में सोच-सोच कर ये अपना पानी बहा रही है.. आह.. आह.. चोद.. ना..आहह.. मुझे हरामी ओह.. तेरा लण्ड है ही मूसल.. ओह्ह आह्ह.. आह।”

राजू- हाँ काकी.. मुझे भी तेरी चूत की बहुत याद आईई… ऐसी कसी हुई चूत के लिए कौन दीवाना नहीं हो सकता.. आह्ह.. ले साली और ले पूरा अन्दर ले..आह्ह.. रांड..।

चमेली- आह साले रांड बोलता है मुझे आह्ह.. तो चल चोद ना मुझे रांड की तरह ओह्ह आह्ह.. आह्ह..।

दोनों की साँसें अब पूरी तेज़ी से चल रही थीं। चमेली अपने भारी-भरकम चूतड़ों को ऊपर की और उछाल कर फिर से राजू के लण्ड पर अपनी चूत पटक कर राजू का लण्ड जड़ तक पूरा चूत में ले लेती और चमेली की मस्त गाण्ड के साथ राजू के अन्डकोष चिपक जाते। गाँव से दूर झाड़ियों में छिपे हुए दोनों वासना का नंगा खेल रहे थे।

राजू नीचे से कमर हिलाते हुए बेरहमी से चमेली की दोनों बड़ी-बड़ी चूचियों को दबोच-दबोच कर मसल रहा था। चमेली के चेहरा कामवासना के कारण एकदम लाल सुर्ख होकर दहक रहा था।

राजू अपना एक हाथ पीछे ले गया.. उसने चमेली की गाण्ड की दरार में अपनी उँगलियों को घुमाना शुरू कर दिया। चमेली के बदन में सिहरन दौड़ गई और वो और तेज़ी से अपनी गाण्ड हिलाते हुए अपनी चूत को राजू के लण्ड पर पटकने लगी।

राजू भी पूरी मस्ती में आकर अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछालते हुए.. अपने लण्ड को जड़ तक चमेली की चूत की गहराईयों में पहुँचा रहा था। राजू के लण्ड के गरम सुपारे से चमेली को अपनी चूत में अजीब सा आनन्द महसूस हो रहा था और वो उसे आनन्द की चरम सीमा तक पहुँचा रहा था।

राजू ने चमेली की गाण्ड की दरार में अपनी उँगलियों को घुमाते हुए अपनी एक ऊँगली को उसके गाण्ड के छेद अन्दर डालना शुरू कर दिया।

जैसे ही राजू की थोड़ी सी ऊँगली चमेली की गाण्ड के अन्दर गई.. चमेली एकदम से सिसया उठी और पागलों की तरह राजू के लण्ड पर कूदने लगी।

“हाए हरामी.. गाण्ड तो मारने का इरादा नहीं है तेरा…।”

राजू- तू देगी अपनी गाण्ड में लौड़ा डालने..?

चमेली ने राजू के लण्ड पर अपनी चूत को ज़ोर-ज़ोर से पटकते हुए कहा- डाल लेना मेरे राजा.. ये गाण्ड मैं सिर्फ़ तुझको ही दूँगी.. ओह्ह ओह्ह अभी तो बस मेरी चूत की प्यास बुझा दे।

चमेली का बदन एकदम से अकड़ने लगा और चमेली की चूत ने अपना लावा उगलना शुरू कर दिया। राजू के लण्ड से वीर्य की बौछार होने लगी। दोनों तेज़ी से हाँफते हुए झड़ने लगे।

दोनों चुदाई के इस खेल में इतने मस्त थे कि उन्हें दुनिया जहान का कोई होश ही न था।

चुदाई के बाद दोनों ने एक-दूसरे को चूमा और कुछ देर बाद दोनों ही अलग हो कर उधर से चल पड़े।

जब चमेली घर पहुँची, तो घर पर सिर्फ़ रतन ही था, रज्जो अपनी पड़ोस के घर गई हुई थी। जैसे ही चमेली कमरे के अन्दर आई.. तो रतन ने रज्जो से पूछा।

“क्या बात है सासू जी.. आज बहुत खुश लग रही हो।”

रतन की बात सुन कर चमेली थोड़ा चौंक गई.. उसने अपने आप को संभालते हुए कहा- नहीं तो.. ऐसी तो कोई बात नहीं है दामाद जी..।

रतन- चलो अगर आप मुझे अपनी ख़ुशी का राज नहीं बताना चाहती तो मैं ही बता देता हूँ कि आप इतनी खुश क्यों हो..।

चमेली ने थोड़ा सा घबराते हुए कहा- आप किस बारे में बात कर रहे हैं… कौन सा राज़ ?
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#42
भाग - 41

रतन ने चमेली के तरफ देखते हुए अजीब से मुस्कान के साथ कहा- वही.. जो आप अभी-अभी नदी के किनारे वाली झाड़ियों के बीच करके आ रही हैं।

चमेली ने रतन की बात सुन कर घबराते हुए कहा- में.में. कुछ समझी नहीं.. आप क्या कह रहा हैं.. मैं तो वो बस..।

रतन ने चमेली को बीच में टोकते हुए कहा- हाँ.. मैंने सब देख लिया सासू जी… क्या चूत है आपकी.. एकदम गदराई हुई.. ऐसी चूत तो मैंने आज तक नहीं देखी.. बस एक बार चोदने के लिए मिल जाए तो मेरे जिंदगी बन जाएगी।

चमेली- ये.. ये.. क्या कह रहे हैं आप.. कैसी गंदी बातें कर रहे हैं आप… मैं आप की सास हूँ।

रतन- अच्छा.. मैं गंदा बोल रहा हूँ.. तो तुम भी तो वहाँ अपनी गाण्ड हिला-हिला कर अपनी बेटी की उम्र के छोरे का लण्ड सरेआम ले रही थीं… देखो सासू जी… अगर घर में जवान लण्ड मौजूद है, तो बाहर जाकर क्यों अपना मुँह काला करवा रही हो।

चमेली ने गुस्से से कहा- रतन अपनी मर्यादा में रहो… वरना मैं कहती हूँ ठीक नहीं होगा।

रतन ने गुस्से से आग-बबूला होते हुए कहा- अच्छा साली.. अब तू देख.. तेरी और तेरी बेटी की इज्जत के धज्जियाँ कैसे उड़ाता हूँ… बहनचोद गान्डू समझ रखा है क्या.. मुझे…? बेटी साली.. चिल्लाने लगती है और माँ तो साली ऐसे नखरे करती है.. जैसे बहुत शरीफ हो। आज तो तेरी चूत में अपना लण्ड डाल कर पेल कर ही रहूँगा।

चमेली- तुम होश में नहीं हो.. अभी तुम से बात करने का कोई फायदा नहीं।

रतन- मुझे बात करके लेना ही क्या है, मुझे तो बस तेरी चूत चाहिए.. और हाँ.. सुन आज रात को तैयार रहना और अगर कोई आनाकानी की.. तो याद रखना..मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

ये कहते हुए, रतन ने आगे बढ़ कर चमेली को अपनी बाँहों में भर लिया। चमेली रतन की इस हरकत से एकदम से घबरा गई और वो रतन की गिरफ़्त से छूटने के लिए हाथ-पैर मारने लगी। पर 22 साल के हट्टे-कट्टे रतन के सामने चमेली की एक ना चली।

रतन ने चमेली को चारपाई पर पटक दिया और किसी भूखे कुत्ते की तरह उस पर सवार हो गया। उसने चमेली के होंठों को अपने होंठों में भर लिया और ज़ोर से चूस डाला।

चमेली ने अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लिया। रतन पागलों की तरह चमेली के गालों और गर्दन को चूमने लगा।

“आह्ह.. दामाद जी.. ये क्या कर रहे हैं आप.. छोडिए मुझे.. ये ये सब ठीक नहीं है।”

रतन- क्यों साली.. उधर तो उस लौंडे का लण्ड अपनी चूत में उछल-उछल कर ले रही थी। मुझे में क्या खराबी है… बहनचोदी.. अगर ज्यादा नखरा किया.. तो तेरे पति को जाकर तेरी करतूतों के बारे में सब बता दूँगा।

रतन की बात सुन कर चमेली बुरी तरह से डर गई। रतन ने चमेली को कमजोर पड़ता देख कर फिर से उसके होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसना शुरू कर दिया। चमेली रतन के नीचे किसी मछली की तरह छटपटाने लगी। रतन ने एक हाथ नीचे ले जाकर चमेली के लहँगे को ऊपर उठाना चालू कर दिया। चमेली ने भी हाथ नीचे ले जाकर रतन का हाथ पकड़ कर उसे रोकने की नाकामयाब कोशिश की।

पर रतन के आगे उसकी एक ना चली और रतन ने चमेली के हाथ को झटकते हुए उसके लहँगे को ऊपर उठा दिया और चमेली के होंठों से अपने होंठों को हटाते हुए, चारपाई के किनारे खड़ा हो गया। चमेली के झांटों से भरी गदराई चूत देख कर रतन के लण्ड एकदम से तन गया।

उसने देखा कि चमेली की चूत से पानी बह कर अभी भी बाहर आ रहा था। ये राजू और चमेली का कामरस था। जिसकी वजह से अभी तक चमेली की चूत लबलबा रही थी।

रतन- धत साली.. देख अभी भी तेरे भोसड़ी उस बहनचोद के पानी से भरी हुई है..खैर आज तो तुम बच गईं, पर याद रखना.. अब तू कल मुझे अपनी चूत देगी, वरना तू जानती है ना… मैं क्या कर सकता हूँ…?

रतन ने चमेली की टांगों को फैला कर ऊपर उठा रखा था और चमेली शरम से मरी जा रही थी। उसका दामाद उसकी टांगों को फैला कर उसकी चूत को देख रहा था। रतन पीछे हट गया, चमेली के नजरें अपराध बोध और शरम से एकदम झुक गईं।


वो चारपाई से उतरी और बिना रतन की तरफ देखे बाहर चली गई। रतन का लण्ड अब उसके पजामे में फटने को था।

चमेली को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। वो तो एकदम से फँस गई थी, ये सोचते हुए चमेली सेठ के घर की तरफ चली गई। दूसरी तरफ रतन चारपाई पर बैठा हुआ आने वाले पलों के बारे में सोच रहा था, तभी बाहर से रज्जो अन्दर आ गई। उसने घर का मुख्य दरवाजा बंद किया और पीछे वाले कमरे में आ गई।

जैसे ही वो पीछे वाले कमरे में पहुँची, तो वो रतन को देख कर एकदम से सहम गई, रतन अपने लण्ड को पजामे के ऊपर से ही बुरी तरह मसल रहा था, अन्दर आते ही रज्जो के पाँव मानो उसी जगह थम गए हों। रतन ने रज्जो की तरफ देखा और कड़क आवाज़ में बोला।

रतन- तू क्या सारा दिन इधर-उधर घूमती रहती है। ज़रा मेरे पास भी बैठ लिया कर… चल इधर आ मेरे पास बैठ..।

रतन की आवाज़ सुन कर जैसे रज्जो के बदन से जान निकल गई हो। वो अपने सर को झुकाए हुए रतन के पास आकर बैठ गई, जैसे ही रज्जो रतन के पास बैठी, रतन ने उससे अपने ऊपर खींच लिया और उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा। रज्जो का बदन ऐसे काँप गया। जैसे उसे करेंट लग गया हो। मस्ती में उसकी आँखें बंद हो गईं।

रतन अपने दोनों हाथों से उसके बदन को सहलाने लगा, उसके हाथ रज्जो के बदन के हर अंग कर मर्दन कर रहे थे। रज्जो मस्त होकर पिछले दिनों में हुई बातें भूल कर रतन की बाँहों में सिमटने लगी। रतन ने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपने पजामे का नाड़ा खोल कर लण्ड बाहर निकाल लिया और रज्जो का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रख दिया।

रज्जो का दिल एकदम से धड़कना बंद हो गया, उसे ऐसा लगा मानो जैसे उसका हाथ किसी गरम लोहे के सलाख पर आ गया हो। उसने चौंकते हुए

अपने होंठों को रतन के होंठों से अलग किया और अपने हाथ की तरफ देखा। सामने रतन का फनफनाता हुआ लण्ड देख कर उसकी चूत की फाँकें कुलबुला उठीं।

“पकड़ ना साली… सोच क्या रही है।”

ये कहते हुए, रतन ने रज्जो के हाथ को पकड़ कर अपने लण्ड पर कस लिया और अपने हाथ से रज्जो के हाथ को हिलाते हुए अपने लण्ड पर मुठ्ठ मरवाने लगा।

“आह ऐसे ही हिला.. आह्ह.. बहुत मज़ा आ रहा है..।”

ये कहते हुए रतन ने अपना हाथ रज्जो के हाथ से हटा लिया। रज्जो अब गरम हो चुकी थी और उसका हाथ अपने आप ही रतन के लण्ड के ऊपर-नीचे होने लगा।

रतन ने एक बार फिर से रज्जो के होंठों को अपने होंठों में भर लिया और उसके होंठों को चूसते हुए, अपना एक हाथ ऊपर ले जाकर रज्जो की चूचियों पर रख दिया। रज्जो के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई। उसका हाथ और तेज़ी से रतन के लण्ड को हिलाने लगा। रतन पहले से ही बहुत गरम था, ऊपर से रज्जो के कोमल हाथ उस पर और कहर ढा रहे थे।

रज्जो अपनी हथेली में रतन के लण्ड की नसों को फूलता हुआ साफ़ महसूस कर रही थी और फिर रतन के लण्ड से वीर्य के पिचकारियाँ निकल पड़ीं, जिससे रज्जो का हाथ पूरी तरह से सन गया। रतन झड़ कर निढाल हो कर पसर गया, रज्जो रतन से अलग हुई। उसने एक बार रतन के सिकुड़ रहे लण्ड पर नज़र डाली। उसके चेहरे पर शरम और मुस्कान दोनों एक साथ उभर आए।

वो चारपाई से खड़ी हुई और शरमाते हुए बाहर की तरफ भाग गई। बाहर जाकर उसने अपने हाथ साफ़ किए और फिर से अन्दर आ गई, रतन अपने पजामा को ठीक करके पहन चुका था। जैसे ही रज्जो अन्दर आई, रतन उसकी तरफ देख मुस्कुरा दिया। रज्जो भी शरमा गई और सर झुका कर मुस्कुराने लगी।

रात हो चुकी थी। चमेली अपने घर से वापिस आ चुकी थी। पर आज रात वहाँ पर कुछ ख़ास नहीं होने वाला था। दूसरी तरफ सेठ के घर पर सब लोग खाना खा कर अपने-अपने कमरों में जा चुके थे, पर आज रात कुसुम की आँखों से नींद कोसों दूर थी। अपने मायके में जिस तरह उसने चुदाई का खुला आनन्द लिया था, वो अब यहाँ नहीं मिलने वाला था।

यही सोचते हुए कुसुम अपनी चूत में सुलग रही आग के बारे में सोच रही थी। दूसरी तरफ राजू घोड़े बेच कर सो रहा था। पिछले कुछ दिनों से वो रात को कम ही सो पाता था। रात के करीब एक बजे राजू पेशाब लगने से उठा और कमरे से बाहर आकर गुसलखाने की तरफ बढ़ा। यहाँ अक्सर घर की औरतें नहाती थीं।

जैसे ही राजू उस गुसलखाने के पास पहुँचा। उसे अन्दर से किसी के क़दमों की आवाज़ आई। उसने सोचा शायद अन्दर कोई है और वो वहीं रुक गया और इंतजार करने लगा।

थोड़ी देर बाद गुसलखाने से दीपा बाहर निकली और सामने खड़े राजू को देख कर एक बार तो वो घबरा गई, पर जब उसने अंधेरे में राजू के चेहरे को देखा, तो उसने शरमा कर अपनी नजरें झुका लीं और घर के आगे की तरफ जाने लगी।

राजू वहीं खड़ा दीपा को घर के आगे की तरफ़ जाता देखता रहा। जब वो अन्दर के तरफ मुड़ने लगी, तो उसने एक बार फिर पीछे पलट कर राजू की तरफ देखा। अंधेरा होने के कारण दोनों एक-दूसरे को दूर से ठीक से नहीं देख पा रहे थी, पर दोनों के जज़्बात आपस में ज़रूर टकरा रहे थे। दीपा फिर मुड़ कर चली गई।
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#43
भाग - 42

राजू पेशाब करने गुसलखाने में चला गया, पेशाब करने के बाद जब वो वापिस अपने कमरे की तरफ जा रहा था, तब उसे कुसुम के कमरे की खिड़की जो घर के पीछे की तरफ थी, उसमें से लालटेन की रोशनी अन्दर आती हुई नज़र आई। एक पल के लिए राजू वहीं रुक गया और फिर कुछ सोच कर उस खिड़की की तरफ बढ़ गया।

जब वो खिड़की के पास पहुँचा, तो उसने अन्दर झाँकने की कोशिश की।

लकड़ी की बनी खिड़की में झिरी होना आम बात है और वो राजू को आसानी से मिल भी गई। राजू उस झिरी से अन्दर झाँकने लगा। वो खिड़की कुसुम के बिस्तर के बिल्कुल पास थी, मतलब जिसस दीवार से कुसुम का बिस्तर सटा हुआ था, उसी में वो खिड़की थी। सबसे पहले उसे कुसुम रज़ाई ओढ़े दिखाई दी। उसके बाद उसने पूरे कमरे का मुआयना किया, उसके कमरे में कुसुम के अलावा और कोई नहीं था।

राजू ने चारों तरफ एक बार देखा और फिर धीरे से कुसुम को आवाज़ दी। एक-दो बार आवाज़ देने के बाद कुसुम के बिस्तर के हिलने की आवाज़ हुई। राजू चुप हो गया और दिल थामे खिड़की खुलने का इंतजार करने लगा। जैसे ही कुसुम ने खिड़की खोली, सामने राजू को देख उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।

कुसुम- तू यहाँ क्या कर रहा है.. अभी तक सोया नहीं..?

राजू- वो मैं पेशाब करने बाहर आया था… आप के कमरे के लालटेन जलती हुई नज़र आई, तो देखने चला आया और वैसे भी अब मुझे आपके बिना नींद नहीं आती।

कुसुम ने राजू की बात सुन कर मन ही मन खुश होते हुए कहा- क्यों.. नींद क्यों नहीं आती..?

राजू ने खिड़की की सलाखों पर हाथ रखते हुए कहा- अब क्या कहूँ मालकिन… जब तक मेरा लण्ड आपकी चूत का पानी चख नहीं लेता.. साला सोने नहीं देता और वैसे भी आपके बदन की गरमी में कुछ अलग सा नशा है।

कुसुम ने उदास होते हुए कहा- हाँ.. मेरे राजा, मुझे अब तुम्हारे बिना नींद नहीं आ रही थी… देख ना.. कब से मेरी चूत में खुजली मची हुई है।

राजू- तो फिर मालकिन आप कमरे का दरवाजा खोल कर रखो… मैं अभी आता हूँ।

कुसुम- अरे नहीं… आगे से नहीं.. अगर किसी ने देख लिया तो..?

राजू ने पजामे के ऊपर से अपने लण्ड को मसलते हुए कहा कहा- तो फिर क्या करूँ… मालकिन देखो ना मेरा लण्ड फूल कर तुम्हारी चूत में जाने को बेताब हो रहा है।

कुसुम ने राजू के बेताबी को देख कर मन ही मन मुस्कुराते हुए कहा- हाँ.. वो तो देख रही हूँ.. अच्छा रुक ज़रा…।

ये कह कर कुसुम ने खिड़की के बीच वाली

सलाख को ऊपर की और उठाना शुरू कर दिया।

राजू- ये आप क्या रही हैं मालकिन.. लोहे की सलाख ऐसे थोड़ा टूटेगी।

कुसुम- शी.. चुप.. एक पल रुक तो सही.. टूटेगी नहीं.. तो ना सही… इसमें से निकल तो सकती है ना…।

आख़िर कार कुसुम ने सलाख को आधा टेढ़ा करके घुन लगी लकड़ी से उसे निकाल दिया, जिससे दो सलाखों के बीच में इतनी जगह तो बन ही गई थी कि राजू चढ़ कर अन्दर आ सके। जैसे ही वो सलाख खिड़की से निकली.. कुसुम और राजू दोनों के होंठों पर वासना भरी मुस्कान फ़ैल गई और राजू झट से दोनों सलाखों के बीच से कुसुम के कमरे में आ गया।

राजू के अन्दर आने के बाद कुसुम ने उस सलाख को फिर से वहाँ पर हल्का सा अटका दिया। फिर उसने खिड़की बंद करके ऊपर से परदा गिरा दिया। इससे पहले की कुसुम पीछे हटती, राजू ने उसे पीछे से बाँहों में भरते हुए, कुसुम की दोनों चूचियों को अपने हाथों में भर कर मसलना शुरू कर दिया।

“आह्ह.. रुक तो सही.. मैं कहीं भागे थोड़ा जा रही हूँ…।”

राजू ने कुसुम की दोनों चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से मसलते हुए कहा- आह.. बस अब और रुका नहीं जाता मालकिन… और आप सबर रखने को कह रही हो.. राजू ने अपने दहकते हुए होंठों को कुसुम की गर्दन पर रख दिया और उसकी गर्दन और ब्लाउज के ऊपर पीठ के खुले हुए हिस्से.. कंधों और बाकी खुली जगह को पागलों की तरह चूमने और चाटने लगा।

कुसुम ने मदहोशी भरी आवाज़ में कहा- ओह्ह.. राजू तूने मुझ पर कौन सा जादू कर दिया है.. ओह्ह ह..इईईई आह्ह.. मैं अब एक पल भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकती।

राजू ने कुसुम की दोनों चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से अपने हाथों में भर कर मसलते हुए कहा- आह मालकिन.. मैं भी तो तुम्हारे बिना एक पल नहीं रह सकता।

ये कहते हुए उसने कुसुम को अपनी तरफ घुमा लिया। कुसुम के साँसें उखड़ी हुई थीं, उसकी आँखें मस्ती के कारण बंद होती मालूम हो रही थीं और गुलाबी रसीले होंठ कामवासना के कारण थरथरा रहे थे। राजू ने अपने हाथों को कुसुम की कमर में डाल कर उसे अपनी तरफ खींच लिया। कुसुम की गुंदाज.. कसी हुई चूचियां.. राजू की छाती से जा टकराईं।

अगले ही पल दोनों एक-दूसरे के होंठों में होंठों को डाल कर पागलों की तरह चूस रहे थे, कुसुम ने अपनी बाहें राजू की पीठ पर कस रखी थीं और वो राजू की पीठ को अपने कोमल हाथों से सहला रही थी।

राजू ने कुसुम के होंठों को चूमते हुए उसे बिस्तर पर लेटा दिया और खुद उसके ऊपर लेट गया। कुसुम की साँसें मस्ती में तेज हो गई थीं और वो अपने होंठों को ढीला छोड़ कर राजू से अपने होंठों को चुसवा कर मस्त हुई जा रही थी। राजू उसके होंठों को चूसते हुए, उसके ब्लाउज के बटनों को धीरे-धीरे खोल रहा था। जैसे ही कुसुम के ब्लाउज के सारे बटन खुले, उसकी बड़ी-बड़ी गुंदाज चूचियाँ ब्लाउज के क़ैद से बाहर उछल पड़ीं।

राजू ने अपने होंठों को कुसुम के होंठों से अलग किया और कुसुम की आँखों में देखा, उसकी आँखें बहुत मुश्किल से खुल पा रही थीं.. जिसमें वासना का नशा छाया हुआ था। कुसुम की चूचियां ऊपर-नीचे हो रही थीं.. जिसे देख कर राजू की आँखों की चमक भी बढ़ गई। वो किसी भूखे कुत्ते की तरह कुसुम की चूचियों पर टूट पड़ा और अपने दोनों हाथों में जितना भर सकता था..भर कर.. दोनों चूचियों को मसलते हुए, उसके चूचकों पर अपनी जीभ को फिराने लगा।

कुसुम मस्ती में एकदम से सिसक उठी और उसने राजू को बाँहों में भरते हुए अपने बदन से चिपका लिया। राजू का लण्ड उसके पजामे को फाड़ कर बाहर आने को बेकरार हुआ जा रहा था।

कुसुम ने मस्ती में सिसयाते हुए कहा- आह राजू से..हइई तूने मुझे क्या कर दिया है.. ओह्ह.. क्यों तेरे लण्ड अपनी फुद्दी में लिए बिना मुझे नींद नहीं आती.. मैं मर जाऊँगी.. तेरे बिना..।

राजू ने कुसुम की चूचियों पर अपने होंठों को रगड़ते हुए कहा- आह.. मालकिन.. मेरा भी तो आप जैसा ही हाल है.. साला ये लण्ड जब तक आपकी चूत का रस नहीं चख लेता… मुझे भी नींद नहीं आती।

कुसुम- हट साले.. फिर तड़फा क्यों रहा है.. डाल दे अपना मूसल सा लण्ड मेरी चूत में… और खूब रगड़ कर चोद अपनी मालकिन को..।

ये कहते हुए कुसुम बिस्तर पर पीठ के बल लेट गई। उसने अपने पेटीकोट को अपनी कमर तक ऊपर उठा दिया। लालटेन की रोशनी में कुसुम की चिकनी चूत कामरस से लबालबा कर चमक उठी। जिसे देखते ही राजू एकदम से पागल सा हो गया और कुसुम की जाँघों के बीच में आकर उस पर सवार हो गया।
ऊपर आते ही राजू ने कुसुम की एक चूची को जितना हो सकता था… मुँह में भर कर चूसना चालू कर दिया। कुसुम के पूरे बदन में मानो बिजली सी कौंध गई। उसने राजू के सर को अपनी बाँहों में जकड़ कर अपनी चूचियों पर दबाना चालू कर दिया।

“आह चूस्स्स.. साले.. चूस्स्स ले.. मेरा दूध सब तेरे लिए है… ओह और ज़ोर से चूस्स्स अह हाआंन्णाणन् काट ले.. ओह धीरेई..।”

राजू कुसुम के चूचुक को अपने होंठों में बीच में दबा कर अपनी जीभ से कुलबुलाने लगा। कुसुम का पूरा बदन मस्ती के कारण काँप रहा था। उसकी हल्की सिसकियां उसके कमरे की दीवारों से टकरा कर उसी कमरे में खो कर रहे जा रही थीं।

उसकी चूत में खुजली और बढ़ गई थी, राजू ने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपने पजामे का नाड़ा खोल कर उसे नीचे सरकाना शुरू कर दिया।

कुसुम ने अपनी टाँगों को मोड़ कर राजू के जाँघों पर पाँव रख कर उसके पजामे में अपने पैर फँसा दिए और फिर उसके पजामे को अपने पैरों से नीचे सरकाते हुए.. उसके पैरों से निकाल दिया। राजू का फनफनाता हुआ लण्ड.. जैसे ही पजामे की क़ैद से बाहर आया.. वो सीधा कुसुम की चूत की फांकों के बीच जा पहुँचा।

जैसे ही राजू के लण्ड के गरम सुपारे ने कुसुम की चूत की फांकों को छुआ.. कुसुम की चूत में सरसराहट और बढ़ गई। कुसुम मस्त होकर अपनी टाँगों को और फैला कर ऊपर की ओर उठा कर राजू की कमर पर कस लिया। राजू का लण्ड का सुपारा कुसुम की चूत की फांकों को फैला कर उसकी चूत के छेद पर जा लगा। कुसुम ने अपनी मदहोशी से भरी आँखों को खोल कर राजू की तरफ देखा। कुसुम ने मदहोशी और मस्ती भरी आवाज़ में राजू के आँखों में झाँकते हुए कहा- आह.. ओह्ह.. बहुत गरम है रे… तेरा ये लौड़ा..।

राजू- हाँ मालकिन.. आप की चूत भी भट्टी की तरह तप रही है..।

कुसुम- वो तो कब से फुदक रही है..तेरे लण्ड को अन्दर लेने के लिए..।
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#44
भाग - 43

ये कहते हुए कुसुम ने राजू की पीठ पर अपनी बाँहों को कस लिया और ऊपर की तरफ अपनी गाण्ड को उठाने लगी। लण्ड पर चूत का दबाव पड़ते ही कुसुम की चूत की फाँकें फ़ैलने लगीं और राजू के लण्ड का मोटा सुपारा कुसुम की कसी चूत के छेद को फ़ैलाते हुए.. अन्दर घुसने लगा। कुसुम अपनी सांसों को थामे हुए, तब तक अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उठाती रही… जब तक राजू का लण्ड धीरे-धीरे कुसुम की चूत में जड़ तक नहीं समा गया।

जैसे ही राजू के लण्ड का सुपारा कुसुम की बच्चेदानी से जाकर टकराया.. कुसुम के होंठों पर संतुष्टि भरी मुस्कान फ़ैल गई… मस्ती अपने चरम पर पहुँच गई। कुसुम एकदम कामविभोर हो गई… मानो जैसे वो जन्नत में पहुँच गई हो.. उसने अपने अधखुली और वासना से लिपटी हुई आँखों से राजू की तरफ देखा, तो उसे ऐसा लगा… मानो जैसे राजू ही उसकी जिंदगी हो।

उसने अपने दोनों हाथों में राजू के चेहरे को पकड़ कर कुछ देर के लिए उसकी तरफ़ देखा और फिर अपने थरथरा रहे होंठों को.. राजू के होंठों पर लगा दिया और उसके होंठों को चूसते हुए, अपना सारा प्यार राजू पर लुटाने लगी। राजू भी मस्ती में आकर कुसुम के होंठों को चूसते हुए.. धीरे-धीरे अपने लण्ड को कुसुम की चूत में अन्दर-बाहर करने लगा।

दोनों एक-दूसरे के होंठों को चूसते हुए अपने प्यार का इज़हार एक-दूसरे से कर रहे थे। जब राजू अपना लण्ड कुसुम की चूत से बाहर निकाल कर दोबारा अन्दर पेलता, तो कुसुम अपनी जाँघों को फैला कर अपनी गाण्ड को ऊपर उठा कर फिर से राजू के लण्ड को अपनी चूत में लेने के लिए आतुर हो उठती।

जब राजू का लण्ड फिर से कुसुम की चूत की गहराईयों में जाता, तो कुसुम अपने दोनों हाथों से राजू के चूतड़ों को दबा कर उसके लण्ड पर अपनी चूत को और दबा देती।

उसकी चूत की दीवारें राजू के लण्ड को अन्दर ही अन्दर कस कर चोद रही थीं.. मानो जैसे उसके लण्ड को मथ रही हों। कुसुम की चूत की गरमी को अपने लण्ड पर महसूस करके राजू भी मदहोश हुआ जा रहा था। हर धक्के के साथ राजू की रफ्तार बढ़ रही थी और कुसुम भी मस्ती में अपने होंठों को चुसवाते हुए उसकी लय में अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछाल कर राजू का लण्ड अपनी चूत की गहराईयों में लेने की कोशिश कर रही थी।

अब राजू पूरे जोश में आ चुका था, उसने अपने होंठों को कुसुम के होंठों से अलग किया और उसकी जाँघों के बीच बैठते हुए ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा। राजू के लण्ड के ताबड़तोड़ धक्कों ने कुसुम की चूत की दीवारों को बुरी तरह रगड़ कर रख दिया.. उसके पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।

कुसुम ने अपने चूचियों के चूचकों को अपने हाथों से मसलते हुए कहा- आहह.. आह.. राजू धीरे कर ओह्ह.. मर गइईए रे.. धीरे बेटा.. ओह आह्ह.. ओह्ह और बहुत मज़ा आ रहा है.. राजू ओह्ह धीरे बेटा आह्ह.. उह चोद मुझे आह्ह..।

राजू- आह.. चोद तो रहा हूँ..हुन्न्ञणणन् आह्ह.. उह..।

कुसुम ने अपनी सिसकारियों को दबाने के लिए अपने होंठों को दाँतों में बीच में दबा लिया और तेज़ी से अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछालते हुए झड़ने लगी। राजू के लण्ड ने भी उसकी चूत की दीवारों को भिगो कर रख दिया। झड़ने के बाद राजू कुसुम के ऊपर निढाल होकर गिर पड़ा।

अगली सुबह जब कुसुम उठी, तो उसने पाया कि उसके कमरे के दरवाजे पर कोई दस्तक कर रहा था.. बाहर से चमेली की आवाज़ आई। जैसे ही वो उठ कर बैठी तो उससे अपनी हालत का अंदाज़ा हुआ… उसका पेटीकोट अभी भी जाँघों के ऊपर चढ़ा हुआ था और ब्लाउज के सारे बटन खुले हुए थे। राजू रात को पता नहीं किस समय बाहर चला गया था।

उसका कमरा शामयाना सा लग रहा था, उसने अपने ब्लाउज के बटन बंद किए और चमेली को आवाज़ दी, “हाआँ.. आ रही हूँ..तू जा…” उसके बाद कुसुम ने साड़ी पहनी और बाहर आ गई। जब वो पीछे गुसलखाने में हाथ-पैर धोने गई तो चमेली उससे गुसलखाने के बाहर खड़ी हुई नज़र आई।

कुसुम- तू यहाँ क्या कर रही है ?

चमेली ने मुस्कुराते हुए धीमे स्वर में कहा- महारानी जी अन्दर नहा रही हैं।

कुसुम- क्यों आज कोई ख़ास बात है।

चमेली ने कुसुम की तरफ देख कर आँख दबाते हुए कहा- माहवारी आई है.. इस बार भी सेठ जी दु:खी हो जाएंगे।

कुसुम ने मुस्कुराते हुए कहा- तू अपने काम पर ध्यान दिया कर समझी..।

इतने में सेठ की दूसरी पत्नी सीमा गुसलखाने से बाहर आती है और कुसुम के पाँव छू कर अन्दर की तरफ चली जाती है। चमेली और कुसुम दोनों एक-दूसरे की आँखों में देख कर मुस्कुरा देते हैं। जैसे ही कुसुम गुसलखाने में घुसी.. तो उसका दिमाग़ एक पल के लिए घूम गया और वो कुछ हिसाब लगाने लगी। थोड़ी देर सोचने के बाद कुसुम के होंठों पर गहरी मुस्कान फ़ैल गई।

कुसुम को महीना आए हुए.. आज एक महीने से ज्यादा हो गया था और ये सोच कर कि वो पेट से है वो ख़ुशी से पागल हो गई.. पर अगले ही पल उसके माथे पर सिकन और परेशानी के भाव उभर आए… क्योंकि सेठ के साथ सोए हुए तो उसे एक महीने से भी ज्यादा समय हो गया था। वो जानती थी कि उसके पेट में राजू का अंश पल रहा है और वो किसी भी कीमत पर इसे इस दुनिया में लाना चाहती थी।

क्योंकि इसे बच्चे की वजह से वो अपना खोया हुआ रुतबा फिर से सेठ के घर में हासिल कर सकती थी, पर वो ये कैसे साबित करे कि ये सेठ का ही बच्चा है। ये सब सोचते हुए उसने कब नहा लिया उसे पता भी नहीं चला और जब वो तैयार होकर घर के आगे की तरफ आई, तो सेठ गेंदामल सीमा से कुछ बात कर रहा था।

सेठ के बातों से साफ़ झलक रहा था कि वो थोड़ा परेशान है। थोड़ी देर बात करने के बाद सीमा अपने कमरे में चली गई, सेठ बाहर आँगन में पलंग पर बैठा हुआ नास्ता कर रहा था। मौका देख कुसुम सेठ के पास जाकर बैठ गई।

कुसुम- क्या बात है जी.. आप थोड़ा परेशान हो। ?

सेठ- नहीं.. कुछ ख़ास बात नहीं है..।

कुसुम- चलो… हम भी आपसे बात नहीं करते, मैं देख रही हूँ.. जब से आप इससे ब्याह कर लिए है.. आप मुझसे सीधे मुँह बात भी नहीं करते..।

सेठ- नहीं नहीं.. ऐसी बात नहीं है.. दरअसल उसने कहा है कि उसकी माँ की तबियत बहुत खराब है और वो घर जाना चाहती है.. तुम तो जानती हो.. मैं पहले ही काफ़ी दिनों दुकान से दूर रहा हूँ.. अब फिर से वहाँ जाऊँगा तो चार-पाँच दिन तो लग ही जाएंगे।

कुसुम- जी… वो तो है… उसके मायके का घर भी तो दूर है।

सेठ- क्यों ना राजू और दीपा को उसके साथ भेज दूँ.. इसमें मेरा वक़्त भी बच जाएगा।

जैसे ही सेठ ने राजू और दीपा को उसके साथ भेजने की बात कही.. कुसुम को लगा मानो जैसे भगवान उस पर कुछ ज्यादा ही दयावान हो गया हो।

कुसुम- जी.. ये ठीक रहेगा..।

सेठ- तो ठीक है… मैं सीमा को बोल देता हूँ और जाते हुए.. तांगे वाले को भी बोल दूँगा कि वो तीनों को स्टेशन छोड़ आएगा। गाड़ी 11 बजे की है और मुझे भी अब दुकान के लिए निकलना है।

कुसुम से अपनी ख़ुशी छुपाए नहीं छुप रही थी। वो उठ कर अपने कमरे में आ गई और बिस्तर पर लेट गई। यही वो समय था, जब वो सेठ के साथ एक रात गुजार कर अपने पेट में पल रहे राजू के बच्चे को सेठ का नाम दे सकती थी और एक तीर से दो शिकार हो सकते थे। दूसरा ये कि राजू और दीपा इस दौरान और करीब आ सकते थे।

जिससे वो अपने साथ हुए अन्याय का बदला ले सकती थी। गेंदामल ने जबसे बात राजू को बताया कि उसे सीमा और दीपा के साथ जाना होगा, तो वो थोड़ा निराश हो गया.. पर वो गेंदामल की बात को टाल नहीं सकता था। इसलिए उसने भी सीमा के मायके जाने की तैयारी शुरू कर दी। जब दीपा को इस बात का पता चला कि राजू भी उन दोनों के साथ जा रहा है, तो उसके मन के अन्दर हलचल होने लगी।

जिस तरह से राजू ने पहले ही दिन उसके कुंवारे बदन को मसल कर जवानी का मज़ा चखा दिया था… उस हिसाब से राजू मौका मिलने पर कुछ भी कर सकता था… यही सोच-सोच कर दीपा के मन में तूफ़ान मचा हुआ था। दीपा भी अपना सामान पैक कर रही थी और दूसरी तरफ सीमा भी… थोड़ी देर बाद बाहर तांगे वाला भी आ गया और तीनों स्टेशन के लिए निकल पड़े। इस बार सेठ गेंदामल ने तीनों को ट्रेन में सीट दिलवा दी थी, ताकि तीनों को किसी तरह की दिक्कत नहीं हो। राजू दीपा और सीमा के बिल्कुल सामने वाले सीट पर बैठा था।

खैर.. सफ़र में कुछ ख़ास नहीं हो रहा है, तो हम अब चमेली के घर का रुख़ करते हैं। आज जब चमेली सेठ के घर से काम निपटा कर घर वापिस जा रही थी, तो उसके दिल के धड़कनें भी तेज चल रही थीं। वो मन ही मन यही मना रही थी कि उसकी बेटी रज्जो भी घर पर हो।
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#45
भाग - 44

क्योंकि रज्जो ज्यादातर बाहर अपनी सहेलियों से गप लड़ाती रहती थी और चमेली ये भी जानती थी कि आज यहाँ पर रतन और रज्जो का आख़िरी दिन था, कल दोनों वापिस जा रहे थे।

चमेली मन ही मन यही दुआ माँग रही थी किसी तरह ये दिन और रात भी बीत जाए। हालांकि चमेली जैसे चुड़ैल औरत रतन के जैसे मूसल लण्ड पर मर मिटी थी, पर वो रिश्तों की मर्योदाओं में बँधी हुई थी।

वो ये भी जानती थी कि अगर ऐसा कुछ हुआ और भूले से ही किसी को इस बारे में पता चला, तो उसकी और उसकी बेटी…. दोनों की जिंदगी नरक बन सकती है। वो अपने सनकी दामाद का क्या करे.. वो तो हर हाल में उसे चोदना चाहता है।

जैसे-जैसे चमेली अपने घर के करीब पहुँच रही थी, उसके दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं और उसके हाथ-पैर उसका साथ छोड़ रहे थे। उसके पास घर जाने के सिवाय और कोई चारा भी नहीं था… वो जाती भी कहाँ। थोड़ी ही देर में वो घर पहुँच गई और जब वो घर के अन्दर आई, तो उसकी जान में जान आई.. रज्जो घर पर ही थी।

रतन ने उसकी तरफ देखते हुए, एक मुस्कान भरी। चमेली ने अपना सर झुका लिया और घर के काम में लग गई।

चमेली घर पर आकर काम में इतनी मसरूफ़ हो गई कि उससे पता ही नहीं चला कब रज्जो पड़ोस के घर पर चली गई। रतन ने मौका देखते ही चमेली से आँख बचाते हुए.. बाहर का दरवाजा बंद कर दिया। जब रतन दरवाजा बंद करके वापिस आया तो चमेली भीतर वाले कमरे में झाड़ू लगा रही थी।

अन्दर आते ही रतन चमेली की तरफ बढ़ा। अपने पीछे से आते हुए क़दमों की आहट को सुन कर चमेली एकदम से चौंक गई.. पर अब तक बहुत देर हो चुकी थी।

जैसे ही चमेली ने पीछे मुड़ कर रतन की तरफ देखा.. वो एकदम से सन्न रह गई। रतन नीचे से बिल्कुल नंगा था और ऊपर सिर्फ़ उसने एक बनियान पहन रखी थी।

रतन का फनफनाता हुआ 8 इंच का काला और मोटा लण्ड उसके चलने के कारण इधर-उधर हिल रहा था.. जिसे देख चमेली की साँसें मानो उसके हलक में अटक गई हों.. उसके हाथ पैर जैसे वहीं जम गए।

चमेली को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर वो करे तो क्या.. उसने रतन की तरफ पीठ करके सर को झुका लिया.. अब बचने को उसको कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था।

रतन ने पलक झपकते ही चमेली को पीछे से बाँहों में भर लिया और अपने होंठों को चमेली की गर्दन पर लगा दिया। रतन का तना हुआ लण्ड सीधा चमेली के चूतड़ों की दरार में जा धंसा। चमेली के पूरे बदन में बिजली सी दौड़ गई और वो एकदम से सिसक उठी।

चमेली- आह्ह.. सी..इईईई ये ईए क्या कर रहे हैं दामाद जी… रज्जो….।

रतन ने चमेली की चूचियों को मसलते हुए कहा- हाँ.. मेरी रानी.. वो तो कब की चली गई.. उसे ना तो मेरी परवाह है और ना ही मेरे लण्ड की… अब मेरा और मेरे लौड़े का ध्यान रखना आपका फर्ज़ बनता है… क्यों सही कह रहा हूँ ना…?

चमेली रतन की बाँहों में मचली जा रही थी और वो रतन के हाथों को अपनी गुंदाज और मस्त चूचियों पर से हटाने के कोशिश कर रही थी… पर रतन ने उसकी चूचियों को बेदर्दी से मसलते हुए फिर से उसकी गरदन को चाटना शुरू कर दिया था। चमेली को ऐसा लग रहा था जैसे उसके बदन में जान ही ना बची हो।

रतन के मर्दाना हाथों के आगे उसकी एक नहीं चल रही थी और उसके पैर उसके बदन का साथ छोड़ने लगे। चमेली किसी मछली की तरह तड़पती हुई धीरे-धीरे नीचे बैठने लगी.. पर रतन उसकी चूचियों को नहीं छोड़ रहा था। वो लगातार चमेली के दोनों चूचियों को मसल रहा था और जैसे-जैसे चमेली नीचे को हो रही थी.. वो भी नीचे बैठते हुए उसकी गर्दन.. गालों और कानों के पास अपनी जीभ को घुमा रहा था।

चमेली के बदन में ना चाहते हुए भी मस्ती की लहरें उठने लगीं। उसके साँसें अब और तेजी से चल रही थीं। आख़िरकार चमेली एकदम से नीचे ज़मीन पर चूतड़ों के बल बैठ गई और रतन उसके पीछे अपने पैरों को बल बैठ गया और उसी तरह अपने तपते होंठों को चमेली की गर्दन पर घुमाते हुए, उसकी चूचियों को मसल रहा था।

मस्ती का आलम चमेली पर इस कदर हावी हो गया कि वो अपने टाँगों को आगे की और फैला कर अपनी हथेलियों को ज़मीन से रगड़ने लगी और उसकी मस्ती भरी सिसकारियाँ पूरे कमरे में गूंजने लगीं। अब बस चमेली सिर्फ़ मुँह से ही रतन को छोड़ देने के लिए कह रही थी। उसके उलट उसके बदन ने रतन का विरोध करना छोड़ दिया।

ये देखते हुए रतन ने एकदम से चमेली के लहँगे के ऊपर से उसकी चूत को अपनी मुठ्ठी में भर कर ज़ोर से मसल दिया। चमेली को एक जोरदार झटका लगा.. मानो उसके पूरे बदन में बिजली सी कौंध गई हो.. उसके आँखें मस्ती में एकदम से बंद हो गईं, “आह.. रतन ये.. तुम ठीक नहीं कर रहे आहह.. ओह्ह छोड़ दो मुझे..।”

रतन ने चमेली की चूत को लहँगे के ऊपर से सहलाते हुए कहा- आहह.. सासू जी.. कसम से आपके जैसा गदराया हुआ माल.. आज तक नहीं चोदा.. आज आपकी गदराई हुई चूत चोद कर मेरे लण्ड की किस्मत जाग जाएगी।

चमेली ने अपने दामाद के मुँह से अपनी चूत के बारे में ऐसी बातें सुन कर चौंकते हुए कहा- आहह.. छोड़िए ना.. आपको मेरे बेटी की कसम.. आहह.. में.. में. उसके साथ धोखा नहीं कर सकती..।

रतन- साली रांड.. तू उस नौकर के साथ खुले-आम चुदवा सकती है..और इधर तेरा दामाद कब से तरस रहा है तेरी चूत के लिए.. तुझे मेरे लवड़े की परवाह नहीं है..क्या..? आज तो तेरी चूत में अपना लण्ड घुसा कर ही दम लूँगा.. साली एक बार मेरा लण्ड अपनी चूत में ले लेगी तो सब भूल जाएगी।

ये कहते हुए रतन ने एक झटके में चमेली के लहँगे को उसकी कमर तक ऊपर उठा दिया। चमेली तो जैसे शरम के मारे ज़मीन में गढ़ गई। उसने अपनी इज़्ज़त यानी चूत को छुपाने के लिए अपने जाँघों को आपस में सटा लिया, पर रतन ने अपने ताकतवर हाथों से उसकी जाँघों को फैला दिया।

चमेली की चूत उसके कामरस से लबलबा रही थी.. जिसे देख कर पीछे बैठे रतन का लण्ड एकदम से फनफना उठा।

रतन- आह.. क्या कमाल की चूत है रे.. तेरी.. रांड आह.. देख ना साली कैसे पानी बहा रही है और ऊपर से तू नखरे चोद रही है.. चल आज देख.. तेरी चूत कैसे फाड़ता हूँ..।

ये कहते हुए पीछे बैठे रतन ने अपने एक हाथ नीचे ले जाकर अपनी एक ऊँगली को चमेली की चूत में घुसा दिया, चमेली एकदम से सिसया उठी.. उसकी आँखें मस्ती में बंद होने लगीं।

“आह नहीं छोड़ दो.. ओह्ह आह.. नहीं रतन में. आह्ह.. मुझे कुछ हो रहा है..।”

पर रतन के दिमाग़ पर तो जैसे वासना का भूत चढ़ा हुआ था।

वो तेज़ी से अपनी दो उँगलियों को चमेली की चूत की अन्दर-बाहर करने लगा, चमेली की चूत में सरसराहट एकदम से बढ़ गई। चमेली बुरी तरह छटपटा रही थी, उसे ऐसा लग रहा था…जैसे उसकी चूत से कुछ निकलने वाला है, पर वो झड़ने वाली नहीं थी। रतन अब पूरी रफ़्तार से अपनी उँगलियों को चमेली की चूत में अन्दर-बाहर करते हुए.. चमेली के गालों को चूस रहा था।

चमेली- आह्ह.. ओह नहींईईईई दमाआद्द्ड़ जीईए ओह आह्ह.. आह्ह.. आह्ह.. बसस्स्स्स उफफफफफफफफ्फ़ आह्ह.. से..इईईईईई ओह मार डाला…।

चमेली का बदन बुरी तरह से कंपकंपाने लगा, रतन की दोनों ऊँगलियाँ चमेली की चूत से निकल रहे रस से एकदम सन गई थीं और नीचे चूतड़ों के बल बैठी चमेली की चूत से मूत की धार निकल पड़ी और तेज ‘सुर्रसुउउ’ की आवाज़ से उसकी चूत से सुनहरे रंग का पानी पेशाब के रूप में निकलने लगा।

चमेली की चूत से निकल रहे मूत की धार इतनी तेज थी कि धार 3 फुट दूर तक जा रही थी।

चमेली के कमर मूतते हुए लगातार झटके खा रही थी और रतन ने अपनी उँगलियों को चूत से बाहर निकाल कर चमेली के चोली के ऊपर से उसकी चूचियों के चूचुकों को मसलना शुरू कर दिया। चमेली लगभग एक मिनट तक मूतती रही। वो बुरी तरह से निढाल हो चुकी थी, उसके आँखें मस्ती में पूरी तरह से बंद थीं।

पेशाब की कुछ आख़िरी बूंदे रिस कर उसकी गाण्ड के छेद की तरफ बह निकलीं।

ये सब देख कर रतन का लण्ड एकदम फूल गया। चमेली की चूत से निकल रही मूत की धार देख कर उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था।

“अर्ररे वाह.. रांड साली तेरी चूत तो बहुत पानी छोड़ती है.. अब तेरी चूत में लण्ड पेलने का और मज़ा आएगा।” ये कहते हुए उसने चमेली की चोली को पीछे से खोल कर उसके बदन से अलग कर दिया।

चमेली की बड़ी-बड़ी गुंदाज चूचियां उछल कर बाहर आ गईं… जिसे पलक झपकते ही.. रतन ने अपनी दोनों हथेलियों में भर लिया और उसके चूचकों को दबाते हुए.. अपने हथेलियों से रगड़ने लगा। चमेली एकदम से सिसक उठी, अब वो अपना आपा खोते जा रही थी.. उसके मुँह से मस्ती भरी सिसकियाँ निकल कर पूरे कमरे में गूँज रही थीं।

रतन ने एक हाथ नीचे ले जाकर फिर से उसकी चूत की फांकों को सहलाना शुरू कर दिया।

“आह रतन हट जाओ ओह.. मुझे कुछ हो रहा हायइ ओह रतन.. देखो ना.. आह्ह.. ओह्ह रज्जोआ आह्ह..।”

फिर रतन एकदम से खड़ा हो गया और घूम कर चमेली के सामने आकर खड़ा हो गया.. चमेली ने अपनी आँखें खोल कर देखा.. तो रतन को अपने सामने खड़ा पाया।

वो अपने हाथ से अपने लण्ड के सुपारे की चमड़ी को आगे-पीछे कर रहा था.. रतन का काला लण्ड एकदम चमचमा रहा था और उसके गुलाबी सुपारे को देख कर तो जैसे चमेली अपनी पलकें झपकाना भूल गई।
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#46
भाग - 45

रतन ने चमेली के तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए पूछा- क्यों अच्छा लगा रहा हैं ना अपने दामाद का लौड़ा… क्यों बोल ना रांड.. चल अब इससे चूस..।

ये कहते हुए रतन ने एक हाथ से चमेली के सर को पकड़ कर उसके होंठों को अपने लण्ड के करीब लाना शुरू कर दिया, चमेली का दिल जोरों से धड़क रहा था। अपने दामाद का लण्ड और उसका फूला हुआ लाल सुपारा देख कर उसकी चूत की फाँकें फड़फड़ाने लगीं और जैसे ही रतन का लण्ड का सुपारा उसके होंठों से टकराया.. तो चमेली के होंठ अपने आप खुल गए।

चमेली ने एक बार रतन के चेहरे की ओर देखा, जो उसकी ओर ही देख रहा था और फिर धीरे-धीरे चमेली के होंठ अलग हुए और उसके लण्ड के सुपारे के चारों तरफ किसी छल्ले की तरह कसते चले गए।

“आह चूस ना साली..” रतन ने अपनी कमर को मस्ती में एक झटका देते हुए कहा और फिर रतन का मोटा गुलाबी सुपारा चमेली के होंठों के भीतर कस कर उसके मुँह में चला गया।

कामविव्ह्ल हो चुकी चमेली अब सब कुछ भूल चुकी थी। रतन ने नीचे झुक कर चमेली का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रख दिया और चमेली ने भी अपने कांपते हुए हाथ से रतन के सख्त लण्ड को अपनी मुठ्ठी में भर लिया और उसके लण्ड के सुपारे को अपने होंठों में दबा-दबा कर चूसने लगी।
रतन की आँखें मस्ती में बंद होने लगीं और वो अपनी कमर को धीरे-धीरे हिलाने लगा। अब तक चमेली जान चुकी थी कि उसकी चूत भी रतन के लण्ड के जैसे लण्ड के लिए पानी ही बहा रही है। राजू तो अब पता नहीं कितने दिनों बाद वापिस लौटता.. चमेली एकदम मस्ती के साथ रतन के लण्ड के सुपारे को अपने होंठों के बीच में मस्ती में दबा-दबा कर चूस रही थी।

वो बीच-बीच में अपनी जीभ से लण्ड के पेशाब वाले छेद को कुरेद देती.. जिससे रतन मस्ती में सिसक उठता और चमेली के सर को दोनों हाथों से पकड़ कर तेज़ी से अपनी कमर हिलाते हुए, अपने लण्ड को उसके मुँह के अन्दर-बाहर करने लगता।

अब रतन भी पूरी मस्ती में आ चुका था और वो ये मौका नहीं गंवाना चाहता था.. क्योंकि रज्जो का कोई पता नहीं था कि वो कब आ धमके। उसने चमेली के सर को पकड़ कर पीछे खींचा, जिससे उसका लण्ड फनफनाता हुआ बाहर आ गया। फिर रतन ने चारों तरफ देखा.. कमरे में खाट भी नहीं बिछी हुई थी। उसने सामने पड़े बिस्तर के ढेर पर से एक तकिए को उठा कर पास पड़े संदूक के साथ नीचे ज़मीन पर रख दिया और चमेली को कंधों से पकड़ कर उठा कर उस तकिए पर बैठा दिया।

अब चमेली अपनी चूतड़ों के बल उस तकिए पर बैठी थी। उसकी पीठ संदूक के साथ सटी हुई थी। रतन ने नीचे बैठते हुए, उसकी जाँघों को फैला कर अपनी टाँगों को उसकी जाँघों के नीचे से डाल कर बिछा दिया। फिर रतन ने चमेली की टांगों को घुटनों से पकड़ा और मोड़ कर अपने कंधों पर रख दिया। चमेली पीछे की तरफ लुड़क गई.. पर पीछे संदूक से उसकी पीठ सटी हुई थी।

आज चमेली एक नई ही स्थिति में चुदने वाली थी। अपने दामाद के जोश और ठरक को देख कर चमेली की चूत की फाँकें और फड़फड़ाने लगीं। जैसे ही रतन ने चमेली की टाँगों को अपने कंधों पर रखा.. चमेली के मुँह से ‘आहह..’ निकल गई। “आहह.. रतन धीरे..”

रतन ने एक बार चमेली के तरफ मुस्कुराते हुए देखा.. फिर अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपने लण्ड को पकड़ लिया। फिर रतन ने अपने लण्ड को चमेली की चूत के छेद पर टिका दिया।

अपने दामाद के लण्ड का गरम सुपारे को अपनी चूत के छेद पर महसूस करके चमेली एकदम मस्ती में काँप उठी। उसकी गाण्ड तकिए से थोड़ी ऊपर उठ गई.. जैसे वो लण्ड को अपनी चूत में लेने के लिए मचल रही हो और फिर रतन के एक जोरदार धक्के ने चमेली की चूत की दीवारों को हिला कर रख दिया।

रतन के लण्ड का वार इतना तेज और जबरदस्त था कि रतन का लण्ड एक ही बार में चमेली की चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता हुआ.. पूरा का पूरा अन्दर जा घुसा। चमेली के मुँह से दर्द और मस्ती भरी ‘आहह..’ निकल पड़ी। उसने हाथों को अपने टाँगों के नीचे से ले जाकर रतन की कमर को कस कर पकड़ लिया।

रतन ने भी उसकी टाँगों के नीचे से हाथ ले जाकर उसके कंधों को कस कर पकड़ लिया। अब रतन अपनी गाण्ड को हिलाते हुए.. उसकी चूत में अपने लण्ड को अन्दर-बाहर करने लगा। चमेली की मस्ती भरी सिसकारियाँ फिर से पूरे कमरे में गूंजने लगीं। चमेली तो बस बैठी थी.. वो चाह कर भी हिल नहीं पा रही थी और रतन अपने मूसल लण्ड को पूरी ताक़त और बेरहमी के साथ चमेली की चूत की गहराईयों में पेल रहा था।

रतन- आह्ह.. साली क्या.. चूत है तेरी..एकदम कसी हुई.. आज कल की छोकरियों की भी इतनी कसी नहीं होती.. ओह साली भोसड़ी है या भट्टी.. ओह्ह कितनी गरम है…।

रतन के जबरदस्त धक्कों से चमेली का पूरा बदन मस्ती में थरथरा रहा था। उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां हर धक्के से हिल रही थीं।

“अह.. मादरचोद अब बातें..चोदना बंद कर.. आह.. साले अपने माँ को भी इसी. आसन में चोदता है क्या.. आह्ह.. हरामी कुत्ते.. ओह फाड़ दे रे.. मेरी..ई चूत ओह्ह धीरेए… धीरेए अह आह ओह्ह..।”

चमेली के होंठों की जकड़न लगातार बढ़ती जा रही थी। रतन के लण्ड का सुपारा बुरी तरह से उसकी चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता हुआ अन्दर-बाहर हो रहा था। चमेली भी जितना हो सकता था.. उतनी अपनी कमर को आगे की तरफ धकेल कर रतन के लण्ड को अपनी चूत की गहराइयों में लेने की कोशिश कर रही थी। “साली तू आज चाहे मुझे जितनी भी गाली दे…. देखना मैं तुझे अपनी रांड बना कर रखूँगा… आह क्या कसी हुई चूत है तेरी…।”

चमेली ने मस्ती में अपने होंठों को दाँतों से काटते हुए कहा- क्या.. क्या कहा.. तूने बहनचोद.. तू मुझे अपनी रांड बनाएगा..आआअ.. आह्ह.. साले वो तो मेरा..अह.. मर्द किसी काम का नहीं है.. वरना तेरी आह्ह.. धीरेए भोसड़ी के.. वरना तेरे जैसे कितने अपनीई चूत से निकाल देती अब तक…।

रतन- आहह.. चुप कर बहन की लौड़ी.. मैं हूँ ना अब निकाल लेना.. अपनी चूत से..उइई मेरे बच्चों को.. ।

रतन के ताबड़तोड़ धक्कों से चमेली की हालत खराब होने लगी। उसकी चूत में सरसराहट और बढ़ गई और उसका पूरा बदन ऐसे अकड़ने लगा जैसे उसको कोई दौरा पड़ रहा हो। रतन जान गया कि अब ये रांड अपनी चूत से कामरस की नदी बहाने वाली है। उसने चमेली के कंधों को और ज़ोर से पकड़ कर ‘धनाधन’ शॉट लगाने चालू कर दिए।

चमेली- आह्ह.. चोद साले.. भोसड़ी के.. और ज़ोर लगा..आ बहनचोद.. मुझे रांड बनाएगा..आह दिखाअ.. तो सही अपने लौड़े का दमम्म्म आह्ह.. ऊंघ ओह्ह ओह्ह.. मैं गइई आह्ह..।

चमेली की चूत से लावा के जैसी नदी बह निकली। वो बुरी तरह काँपते हुए झड़ने लगी। रतन के लण्ड ने भी चमेली की चूत में अपने वीर्य की बौछार कर दी और दोनों हाँफने लगे। थोड़ी देर बाद जब दोनों की साँसें दुरस्त हुईं, तो रतन ने चमेली के टाँगों को अपने कंधों से नीचे उतारा और उसके होंठों को एक बार चूस कर बोला।

रतन- क्यों सासू जी.. कैसा लगा अपने दामाद का लवड़ा.. अपनी चूत में लेकर…।

अब जब कामवसना का भूत चमेली के दिमाग़ से उतर गया.. तो रतन के मुँह से अपने लिए ऐसी बात सुन कर वो बुरी तरह झेंप गई। रतन उठ कर खड़ा हो गया और पास पड़ी चमेली की चोली को उठा कर अपने लण्ड पर लगे वीर्य और चमेली की चूत के कामरस को साफ़ करने लगा। चमेली चोर नज़रों से रतन को देख रही थी, जो अपने लण्ड को उसकी चोली से उसके सामने ही साफ़ कर रहा था।

चमेली ने नाराज़ होने का नाटक करते हुए कहा- क्या दामाद जी.. मेरी चोली खराब कर रहे हो..।

रतन- एक बार मेरी रांड बन जा.. हर महीने तुझे नया लहंगा-चोली दिलवाता रहूँगा।

चमेली रतन की बात सुन कर मुस्कराए बिना रह नहीं सकी। रतन अपना पजामा पहन कर बाहर चला गया और चमेली अपने दूसरे कपड़े पहने लगी।

जैसे ही चमेली ने अपने दूसरे कपड़े पहने.. बाहर दरवाजे पर दस्तक हुई। जब चमेली ने जाकर दरवाजा खोला तो रज्जो सामने खड़ी थी। रज्जो को देखते ही.. उसने अपने सर को झुका लिया। वो रज्जो से नज़रें नहीं मिला पा रही थी।

अब हम सीमा के मायके का रुख़ करते हैं। यहाँ पर सीमा दीपा और राजू के साथ अपने मायके के घर पहुँच चुकी है।

उसी शहर में राजू के माँ-बाबा का घर भी था। जैसे ही राजू उस शहर में पहुँचा तो वो सीमा से इजाज़त माँग कर अपने घर अपने माँ-बाबा को मिलने के लिए चला गया। दूसरी तरफ सेठ के घर में कुसुम आज रात का बेसब्री से इंतजार कर रही थी कि कब रात हो और सेठ घर पर आए और वो उसके साथ हम-बिस्तर हो।

जिससे उसके पेट में पल रहे राजू के अंश को वो सेठ का कह कर बेरोकटोक इस दुनिया में ला सके। आज कुसुम को फिर से सब कुछ अपनी मुट्ठी में आता नज़र आ रहा था।

आख़िर अब फिर से उसके वश में हो सकता था.. सेठ तो अपने घर के वारिस के लिए कहाँ-कहाँ नहीं भटका था। अगर कुसुम इस बात को साबित कर देती है कि उसके पेट में सेठ का वारिस पल रहा है, तो सेठ भी उसकी मुठ्ठी में आ जाएगा।
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#47
Good one. Nice story. Keep it up dear!?
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#48
(06-01-2019, 12:36 AM)bhavna Wrote: Good one. Nice story. Keep it up dear!?

Thanks Dear
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#49
भाग - 46

रात ढल चुकी थी, आज कुसुम कुछ ज्यादा ही सजी-संवरी थी… नीले रंग की साड़ी और मैचिंग के ब्लाउज में वो किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी और कुसुम ने जब से राजू के लण्ड का स्वाद चखा था, तब से उसका बदन और भर गया था और वो पहले से भी ज्यादा कयामत लगने लगी थी।

जब सेठ घर वापिस आया तो कुसुम का ये रूप देख कर सेठ भी हिल गया।

आज कई महीनों बाद उसने अपनी पत्नी कुसुम को ध्यान से देखा था और कुसुम आज खुद भी सेठ को अपने मस्त अदाएं दिखाते हुए अपने मखमली बदन के दर्शन करवा रही थी। कुसुम के मस्त कर देने वाली अदाओं का जादू सेठ के सर पर चढ़ कर बोलने लगा। कुसुम ने सेठ के लिए खाना लगाया और सेठ खाना खाने लगा।

खाना परोसते वक़्त वो सेठ को कुछ ज्यादा ही झुक कर अपने पहले से और ज्यादा और भर चुकी चूचियों के दर्शन करवा रही थी… जिससे देख कर सेठ की धोती के अन्दर हलचल होने लगी।

सेठ- क्या बात है कुसुम.. आज तो तुम कयामत ढा रही हो.. कहीं मेरा कत्ल करने का इरादा तो नहीं है..।

कुसुम- क्या आप भी ना… मैं भला ऐसा कर सकती हूँ..?

सेठ ने खाना खा कर उठते हुए कहा- मुझे आज लग तो कुछ ऐसा ही रहा है..।

कुसुम- तो फिर यही समझ लीजिए.. आप हाथ धो कर अपने कमरे में चलिए… आज आपका कत्ल वहीं करूँगी।

कुसुम ने एक बार सेठ की तरफ मुस्कुरा कर देखा और फिर बर्तन उठा कर रसोई की तरफ जाने लगी। कुसुम जानबूझ कर आज अपनी गाण्ड को कुछ ज्यादा ही मटका कर चल रही थी और कुसुम के भारी चूतड़ों को देख कर सेठ की हालत खराब होती जा रही थी। सेठ ने जल्दी से हाथ धोए और अपने कमरे में चला गया।

कुसुम ने घर का बाकी का काम निपटाया और सेठ के कमरे में चली गई।

जब कुसुम सेठ के कमरे में पहुँची, तो उसने अपनी साड़ी उतार दी.. सेठ कुसुम के बदन को सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में देख कर पागल हो उठा। उसका लण्ड उसकी धोती में एकदम से तन गया… उसने पलंग पर से उठते हुए.. कुसुम को अपनी बाँहों में भर लिया। उस रात ना चाहते हुए भी कुसुम को अपनी चूत में सेठ के लण्ड को लेना पड़ा.. जिससे वो सिर्फ़ तड़फ कर रह गई.. पर अपने पेट में पल रहे राजू के बीज को सेठ का नाम देने के लिए ये करना बहुत ज़रूरी था।

दूसरी तरफ चमेली रतन से चुदाने के बाद.. अपनी नजरें रतन से नहीं मिला पा रही थी, पर रतन जैसे जवान मर्द के लण्ड का स्वाद पाकर उसकी चूत में तब से खुजली मची हुई थी। रज्जो रतन के बगल में लेटी हुई थी और वो गहरी नींद में सो रही थी।

चमेली बार-बार अपना सर उठा कर रतन की तरफ देखती… पर रतन भी आँखें बंद किए हुए लेटा हुआ था और चमेली की चूत का बुरा हाल हो रहा था। आख़िर थक कर चमेली भी सोने की कोशिश करने लगी। सुबह जब चमेली की आँख खुली.. तो 6 बज रहे थे। गाँव में सभी लोग सुबह जल्दी उठ जाते हैं और रज्जो पड़ोस की भाभी के साथ शौच के लिए खेतों में जा चुकी थी।

जैसे ही चमेली नींद से जागी.. तो उसने कमरे में रतन को अकेला पाया। वो उठ कर बाहर गई और फिर ये सोच करके रज्जो खेतों में चली गई है.. उसने दरवाजा बन्द किया और फिर से कमरे में आ गई। जैसे ही वो कमरे में दाखिल हुई.. तो उसने देखा रतन भी उठ गया था।

उसका लण्ड सुबह-सुबह उसकी धोती के आगे से उठा हुआ था। ये देख कर चमेली ने अपनी नजरें झुका लीं और अपने बिस्तर की तरफ जाने लगी।

रतन- रज्जो कहाँ गई…?

चमेली- खेत में..।

रतन चमेली के बात सुन कर लपक कर खड़ा हो गया और चमेली के पास जाकर बिस्तर पर बैठ गया…। चमेली पर बिस्तर पर लेटी हुई.. रतन को सवालिया नज़रों से देख रही थी। रतन अपनी धोती के ऊपर से अपने लण्ड को मसलते हुए, अपने होंठों को चमेली के होंठों की तरफ बढ़ाने लगा। बदले में चमेली ने अपनी आँखें बंद करके.. अपनी मूक सहमति रतन को जता दी।

रतन चमेली के ऊपर झुक गया और उसकी दोनों चूचियों को उसके ब्लाउज के ऊपर से मसलते हुए.. उसके होंठों को चूसने लगा। चमेली ने भी मस्त होकर अपने बाँहों को रतन के गले में डाल दिया।

रतन चमेली के ऊपर आ गया, रतन के ऊपर आते ही.. चमेली ने अपने पेटीकोट को पकड़ कर अपनी कमर तक उठा लिया और अपनी टाँगों को फैला कर रतन के कमर के इर्द-गिर्द कस लिया।

रतन अभी भी उसके होंठों को चूसने में मस्त था.. चमेली जानती थी कि उनके पास समय बहुत कम है।

उसने अपने होंठों को रतन के होंठों से अलग किया और बोली- अभी समय बहुत कम है.. जल्दी से कर लो..।

चमेली की बात सुन कर रतन के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई। उसने अपनी धोती को उतार कर एक तरफ रख दिया और अपने लण्ड को पकड़ कर चमेली की चूत के छेद पर लण्ड का सुपारा टिका दिया।

सुबह-सुबह रतन के लण्ड के गरम सुपारे को अपनी चूत के छेद पर महसूस करके चमेली एकदम मस्त हो गई। उसके मुँह से मस्ती भरी ‘आहह’ निकल गई।

“अह.. रतन जल्दी से चोद डाल अपनी रांड को..।”

चमेली की बात सुनते ही.. रतन ने एक जोरदार धक्का मारा और रतन का लण्ड चमेली की चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता हुआ.. अन्दर जा घुसा। चमेली के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।

उसने जल्दी से अपने ब्लाउज के सारे बटनों को खोल कर.. अपनी बड़ी-बड़ी गुंदाज चूचियों को आज़ाद कर दिया। चमेली की चूचियां बाहर आते ही.. रतन ने किसी भूखे बच्चे की तरह उसकी चूचियों को बारी-बारी से चूसना चालू कर दिया। चमेली एकदम मस्त हो गई।

“आह.. चूस्स्स साले.. अपनी रांड को आह्ह.. चोद मुझे कुत्ते.. अह अह..मेरे चूत..।”

रतन पागलों की तरह चमेली की चूत में अपने मूसल लण्ड को अन्दर-बाहर करते हुए.. उसकी चूचियों को दबा-दबा कर चूस रहा था और चमेली भी अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछाल कर रतन के लण्ड को अपनी चूत में ले रही थी।

करीब दस मिनट की जबरदस्त चुदाई के बाद दोनों झड़ गए। थोड़ी देर बाद रतन चमेली के ऊपर से उठा और अपने कपड़े पहन कर बाहर चला गया।

चमेली ने भी रतन के जाने के बाद अपने कपड़े पहने और बाहर आकर हाथ-मुँह धोने के बाद घर के काम में लग गई।

दूसरी तरफ एक रात अपने माँ-बाप के पास रहने के बाद अगली सुबह नास्ता करने के बाद सीमा के मायके लौट आया। सीमा के मायके में उसके माँ और भाई और उसकी पत्नी भी थी। सब अपने-अपने काम में व्यस्त थी। जब सीमा ने राजू को देखा, तो उसने राजू को अपने पास बुलाया।

“तुम तो इसी शहर के हो ना… तुम्हें तो यहाँ का सब पता होगा..।”

राजू- जी मालकिन…।

सीमा- अच्छा… फिर एक काम करो… दीपा को अपने साथ बाजार ले जाओ… उसके अपने लिए कुछ सामान खरीदना है… तुम्हें तो पता है माँ की तबियत खराब है.. और मैं उसके साथ बाजार नहीं जा सकती।

राजू- जी मालकिन..।

सीमा- अच्छा तुम रूको.. मैं दीपा को बोल कर आती हूँ कि वो तैयार हो जाए… पर ध्यान रखना जल्दी वापिस आ जाना।

राजू- जी जैसा आप कहें…।

सीमा कमरे में चली गई.. यहाँ पर दीपा अभी नहा कर कपड़े पहन रही थी।

“जल्दी से तैयार हो जाओ.. बाजार जाना है ना..?”

दीपा ने सीमा की ओर देखते हुए कहा- पर आप तो कह रही थीं कि कल चलेंगे।

सीमा- हाँ.. पर मैं नहीं जा पाऊँगी, वो राजू आ गया है.. उसके साथ चली जाओ… मुझे पता नहीं समय मिले या ना मिले…।

दीपा ने थोड़ा सा घबराते हुए कहा- पर वो.. में. आप भी चलो ना साथ में…।

सीमा- अरे घबरा क्यों रही है… राजू भी इसी शहर का है.. उससे यहाँ के रास्ते मालूम हैं, तुम बेफिकर उसके साथ जाओ… चलो अब तैयार हो जाओ।

ये कह कर सीमा कमरे से बाहर आ गई। राजू भी बाहर बैठा इंतजार कर रहा था। जब थोड़ी देर बाद दीपा तैयार होकर बाहर आई। राजू उसे देखता ही रह गया, वो काले रंग की सलवार कमीज़ में कयामत ढा रही थी।

काला रंग उसके गोरे रंग पर बहुत अच्छा लग रहा था… राजू को यूँ अपनी तरफ देखता देख कर दीपा ने शर्मा कर नजरें झुका लीं।
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#50
भाग - 47

राजू बिना कुछ बोले.. बाहर की ओर चल पड़ा। दीपा भी उसके पीछे चलने लगी… जैसे ही दोनों घर के बाहर आए.. तो राजू ने दीपा से पूछा- कहाँ जाना है आपको..?

राजू ने आज पहली बार दीपा से बात की थी। राजू की आवाज़ सुन कर वो थोड़ा सा हड़बड़ा गई।

“वो.. बाजार जाना है.. कुछ सामान लेना है मुझे..।”

राजू- वैसे यहाँ से बाजार ज्यादा दूर नहीं है। पैदल चलें ?

दीपा ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा- ठीक है।

दोनों बाजार की तरफ पैदल चल पड़े। दोनों खामोशी से बाजार की तरफ बढ़ रहे थे। बाजार पहुँच कर दीपा ने अपने लिए कुछ खरीदारी की और फिर वो दोनों घर की तरफ चल पड़े।

राजू- मैं आपसे एक बात कहूँ…।

दीपा ने थोड़ा चौंकते हुए उसकी तरफ देखा।

“आज आप बहुत खूबसूरत लग रही हो..।”

दीपा राजू की बात सुनकर शर्मा गई और अपने सर को झुका कर मुस्कारने लगी। दोनों घर की तरफ चलते हुए.. एक बाग के सामने से गुजर रहे थे।

“चलिए कुछ देर यहाँ बाग के अन्दर घूम कर आते हैं.. बहुत अच्छी जगह है।”

राजू की बात सुन कर दीपा के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो राजू के साथ चले या नहीं..।

दीपा को यूँ सोचता देख कर राजू समझ गया कि वो शायद घबरा रही है।

“चलिए अगर आपका दिल नहीं है तो कोई बात नहीं… रहने दीजिए…।”

ये कह कर राजू आगे बढ़ने लगा।

“रूको मुझे देखना है ये बाग… छोटी माँ भी उसके बारे में बात कर रही थीं..।”

दीपा ने राजू के नाराज़ चेहरे की ओर देखते हुए कहा और दीपा की ये बात सुन कर तो जैसे राजू की बाँछें खिल गईं।

दोनों बाग़ के अन्दर चले गए.. दोपहर का समय था… ज्यादातर वहाँ के लोग उस बाग़ में सुबह या शाम को घूमने आते थे और दोपहर को बाग़ में बस कुछ गिने-चुने लोग ही देखे जा सकते थे। राजू तो पहले भी कई बार यहाँ आ चुका था और इस बाग के कोने-कोने से वाकिफ़ था।

दोनों खोमाशी से बाग़ के अन्दर बढ़ते जा रहे थे। बाग़ के काफ़ी अन्दर आने के बाद राजू एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया।

दीपा जो यहाँ पहली बार आई थी, वो बाग़ की सुंदरता को देख कर मन्त्र-मुग्ध हो रही थी। वो राजू के सामने इधर-उधर टहल रही थी और राजू दीपा के बदन से अपनी आँखें सेंक रहा था। टहलते हुए अचानक दीपा के कदम थम गए, वो कुछ पलों के लिए भूल गई कि उसके साथ राजू भी है, जो उसी की तरफ देख रहा है।

दीपा खड़ी हुई जो कुछ देख रही थी, वो नीचे बैठे राजू को शायद नहीं दिखाई दे रहा था… राजू तो बस वहीं बैठा हुआ दीपा के चेहरे के बदलते भावों को देख रहा था। दीपा की साँसें तेज चल रही थीं… उसकी कसी हुई चूचियां तेज़ी से ऊपर-नीचे हो रही थीं… जिसे देख राजू के लण्ड में हरकत होने लगी। दीपा उसी ओर टकटकी लगाए देखे जा रही थी। राजू एकदम से खड़ा हो गया और दीपा के पीछे आ गया।

इस बात से अंजान दीपा अभी भी उसी तरफ टकटकी लगाए देखे जा रही थी। राजू ने उसकी नज़रों का पीछा करते हुए.. उस तरफ देखा जिस तरफ दीपा देख रही थी और राजू ने जो देखा वो देख कर उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।

उनसे कुछ दूर एक पेड़ के नीचे एक लड़का और लड़की बैठे हुए थे। वे दोनों एक-दूसरे की बाँहों में समाए हुए.. एक-दूसरे के होंठों को चूस रहे थे।

लड़के का हाथ लड़की की सलवार के अन्दर था और वो उसकी चूत को सहला रहा था। लड़की मचल कर उससे लिपटे जा रही थी। अपने सामने ये नज़ारा देख कर कर दीपा कुछ पलों के लिए सब भूल गई थी। उसके पूरे बदन में अजीब सी झुरझुरी हो रही थी।

तभी उसे अपनी कमर पर किसी के हाथ का अहसास हुआ.. जिससे दीपा एकदम हड़बड़ा गई। उसने पीछे मुड़ कर देखा.. तो राजू उसके पीछे खड़ा मुस्कुरा रहा था।

दीपा एकदम से शरमा गई.. उसने अपने सर को झुका लिया… दीपा के गोरे गाल शरम के मारे लाल होकर दहकने लगे। वो एकदम पीछे की तरफ भाग कर उस पेड़ के पीछे चली गई, जिस पेड़ के नीचे राजू बैठा था। दीपा की साँसें अब भी तेज चल रही थीं।


उसके हाथ-पाँव बुरी तरह से काँप रहे थे। राजू को इससे अच्छा मौका नहीं मिलने वाला था और वो इस मौके को हाथ से नहीं देना चाहता था.. वो तेजी से उस पेड़ के पीछे गया.. यहाँ पर दीपा खड़ी हो कर तेज़ी से साँसें ले रही थी।

उसका पूरा बदन अनज़ान उत्सुकता और डर के मारे काँप रहा था। उसकी पीठ राजू की तरफ थी, तभी उसे अपनी कमर के दोनों तरफ फिर से राजू के हाथों को अहसास हुआ और उसके दिल की धड़कनें थम गईं। उसने अपने चेहरे को पीछे घुमा कर देखा.. राजू वासना भरी नज़रों से उसके बदन को घूर रहा था।

इससे पहले कि दीपा कुछ बोलती.. राजू के हाथ दीपा की कमर से उसके पतले पेट की ओर बढ़ने लगे।

दीपा के पूरे बदन में सनसनी दौड़ गई.. उसका पूरा बदन कँपने लगा। दीपा की आवाज़ उसके मुँह में ही बंद होकर रह गई। उसके पाँव तो मानो वहीं जम गए हों.. वो चाह कर भी ना तो हिल पा रही थी और ना ही राजू को रोक पा रही थी।

दीपा ने आज से पहले कभी ऐसी परिस्थिति का सामना नहीं किया था। जैसे ही राजू ने अपने हाथों को दीपा की नाभि के पास ले जाकर हल्का सा दबाया… तो दीपा के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।

राजू दीपा की हालत समझ चुका था.. उसने फिर से अपने हाथों को दीपा की कमर पर रखा और उसे अपनी तरफ घुमा दिया। दीपा किसी कट्पुतली की तरह उसकी तरफ घूम गई।

वो अपनी अधखुली आँखों से ज़मीन की तरफ देखते हुए.. तेज़ी से साँसें ले रही थी। उसके गाल और कान दोनों लाल होकर दहक रहे थे। राजू ने अपने हाथों को अब उसकी कमर से सरकाते हुए उसकी पीठ की तरफ ले जाना शुरू कर दिया।

हर पल दीपा मदहोश होती जा रही थी। उसे अपने आप पर काबू नहीं रहा और राजू की बाँहें अब दीपा की पीठ पर कसती जा रही थीं। जिससे दोनों के जिस्मों की दूरी कम होने लगी।

जैसे ही दीपा को अपने चेहरे पर राजू की गरम सांसों का अहसास हुआ.. दीपा के पूरे बदन में बिजली की लहर सी दौड़ गई। राजू ने दीपा को पीछे करते हुए पेड़ से सटा दिया, पर अगले ही पल जैसे ही दीपा को होश आया तो उसने अपने आप को राजू के बाँहों में क़ैद पाया।

“ये.. ये.. क्या कर रहे हो तुम..?” इससे पहले कि दीपा आगे कुछ बोल पाती.. राजू ने दीपा को बाँहों में कसते हुए.. उसके रसीले होंठों पर अपने होंठों को लगा दिया।

दीपा ने अपने दोनों हाथों को उसके कंधों पर रख कर उससे पीछे धकेलने की कोशिश की, पर राजू ने उसे मजबूती से अपनी बाँहों में जकड़ा हुआ था।

दीपा उसकी बाँहों में मछली की तरह छटपटा रही थी, पर उसे पीछे नहीं हटा पा रही थी। राजू के ऊपर तो जैसे वासना का भूत सवार हो गया था। वो पागलों की तरह दीपा के होंठों को चूस रहा था।

कभी वो दीपा के ऊपर वाले होंठों को चूसता.. तो कभी नीचे वाले होंठों को.. उसके हाथ दीपा की कमर पर थिरक रहे थे और अचानक उसने अपने हाथों को नीचे सरका कर दीपा की सलवार के ऊपर से उसके चूतड़ों पर रख कर धीरे-धीरे सहलाना शुरू कर दिया।

दीपा की गाण्ड को मसलते ही दीपा एकदम से पागल हो उठी। उसके हाथों ने उसका साथ छोड़ दिया.. अब दीपा के हाथ भले ही उसके कंधों पर थे, पर वो उसे पीछे नहीं धकेल रही थी।

राजू दीपा के होंठों को चूसते हुए.. धीरे-धीरे अपनी हथेलियों को उसकी गाण्ड के ऊपर घुमाते हुए सहला रहा था। दीपा अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी और वो राजू की बाँहों में पिघलने लगी थी।

मौके फायदा उठाते हुए.. राजू ने और ज़ोर से दीपा के रसीले होंठों को चूसना शुरू कर दिया। दीपा के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ जाती और वो राजू के कंधों को और ज़ोर से दबा देती।

राजू ने अपना एक हाथ आगे ले जाकर एक पल में उसकी सलवार के अन्दर घुसा दिया। दीपा के दिल ने धड़कना बंद कर दिया। राजू ने अपना हाथ सीधा उसकी चूत के ऊपर रख दिया।

दीपा की चूत पूरी पनियाई हुई थी। राजू का हाथ अपनी चूत पर महसूस करते ही दीपा के बदन ने एक जोरदार झटका खाया और वो एकदम से राजू से चिपक गई।

दीपा- आहह.. राजू छोड़ दो मुझे… कोई देख लेगा आह..।

दीपा ने काँपती हुई आवाज़ में कहा।

राजू ने दीपा की सलवार से हाथ बाहर निकाला और अपने चेहरे पास ले जाकर उससे देखने लगा…
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#51
भाग - 48

उसकी ऊँगलियाँ दीपा की चूत से निकले काम-रस से सनी हुई थीं। दीपा की आँखें अभी भी बंद थीं और वो तेज़ी से साँसें ले रही थी।

राजू ने दीपा का हाथ पकड़ा और पेड़ के नीचे बैठ गया और दीपा को भी खींचते हुए नीचे बैठाने की कोशिश करना लगा।

दीपा मदहोश सी उसके साथ बैठ गई.. राजू ने अपनी टाँगों को फैला कर दीपा को बीच में बैठा लिया।

“कोई देख लेगा यहाँ..।”

दीपा ने फिर से धड़कते हुए दिल के साथ एक बार फिर कहा।

“कोई नहीं आएगा यहाँ…” राजू ने दीपा को अपने बदन से चिपकते हुए कहा और अपने दोनों हाथों को आगे ले जाकर दीपा की चूचियों को कमीज़ से ऊपर पकड़ कर धीरे-धीरे मसलने लगा।

दीपा ने अपनी अधखुली आँखों से राजू के हाथों की हरकत देखते हुए कहा- उई..अह.. ईए.. ईए क्या कर रहे हो.. आह्ह.. दर्द हो रहा है।

राजू ने अपने दहकते हुए होंठों को दीपा की गर्दन पर लगा दिया और दीपा के मुँह से मस्ती भरी सिसकारी निकल गई..।

“यहाँ कोई नहीं देखेगा… मैं तुम्हें प्यार कर रहा हूँ…तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा क्या..?”

राजू की बात का दीपा ने कोई जवाब नहीं दिया, राजू उसकी दोनों चूचियों को धीरे-धीरे अपने हाथों में भर कर मसलते हुए.. उसके गर्दन पर अपने होंठों पर रगड़ रहा था।

दीपा की साँसें एक बार फिर से पूरी तेज़ी से चलने लगी थीं और वो घुटी सी आवाज़ में सिसिया रही थी। जिसे सुन कर राजू के हिम्मत और बढ़ती जा रही थी। उसने अपना एक हाथ उसकी चूची से हटा कर नीचे सलवार के जाबरान की तरफ ले जाना शुरू कर दिया।

जैसे ही दीपा को इस बात का अहसास हुआ, उसने अपने सलवार के नाड़े को कस कर पकड़ लिया.. ताकि राजू अपना हाथ अन्दर ना ले जा सके.. पर राजू के आगे दीपा की एक ना चली और राजू ने थोड़ी सी मशक्कत के बाद अपना हाथ दीपा की सलवार और चड्डी के अन्दर घुसा दिया।

आहह.. क्या अहसास था…उस कुँवारी चूत का.. एकदम गरम और गदराई हुई.. दीपा की चूत एकदम चिकनी थी। शायद उसने एक दिन पहले ही अपनी चूत की बालों को साफ़ किया था।

अपनी चूत पर राजू के हाथ का अहसास पाते ही.. दीपा एकदम से मचल उठी। उसने अपने दोनों हाथों से राजू की जाँघों को दबोच लिया और उसने अपनी पीठ को राजू की छाती से सटा लिया। जिससे राजू का हौसला हर पल बढ़ता जा रहा था।

राजू ने दूसरे हाथ को नीचे ले जाकर दीपा की कमीज़ और नीचे पहनी हुई समीज़ के नीचे से डालते हुए.. उसकी चूचियों पर पहुँचा दिया।

दीपा की नंगी चूचियों को महसूस करते ही.. राजू का लण्ड अपनी औकात पर आ गया और पीछे दीपा की कमर पर जा धंसा। राजू के लण्ड के गरमी को अपनी कमर महसूस करते ही दीपा एकदम से सिहर उठी, उसकी साँसें और तेज हो गईं.. उसके होंठ उत्तेजना के कारण काँप रहे थे।

राजू ने दीपा के बाईं चूची को अपने हाथ में लेकर धीरे से मसल दिया।

“आह.. उफ़.. बसस्स ओह्ह..” दीपा एकदम से सिसक उठी।

उसकी ये सिस्कारियां बयान कर रही थीं कि वो कितनी गरम हो चुकी है। फिर राजू ने दीपा की गर्दन पर अपने दहकते हुए होंठों को रख कर.. उसकी चूची के चूचुक को अपनी उँगलियों के बीच में लेकर मसलना शुरू कर दिया।

दीपा के चूचुक एकदम नुकीले होकर कड़क हो चुके थे। दीपा की मस्ती का कोई ठिकाना नहीं था।

दीपा की चूत में सरसराहट और तेज हो गई थी और उसकी कुँवारी चूत लगातार अपना कामरस बहा कर लण्ड को लेने के लिए तड़फ रही थी। मदहोश हो रही दीपा ने अपना सारा वजन राजू के ऊपर डाल दिया था.. उसका सर पीछे लुड़क कर राजू के कंधे पर टिका हुआ था,

जिसका फायदा उठाते हुए.. राजू ने एक बार फिर से अपने होंठों को दीपा के रसीले होंठों पर टिका दिया।

इस बार दीपा ने कोई विरोध नहीं किया और उसने अपने होंठों को ढीला छोड़ कर राजू के हवाले कर दिया। उसके पूरे बदन में मस्ती के लहरें दौड़ रही थीं और उसका बदन आग के तरह तप रहा था, पर राजू जानता था कि वो यहाँ कुछ ज्यादा नहीं कर सकता।

राजू अब आराम से दीपा के होंठों को रस चूस-चूस कर पी रहा था और दीपा भी अपने होंठों को ढीला को छोड़ कर राजू से चुसवाते हुए मदहोश होती जा रही थी।

तभी दोनों को किसी के क़दमों की आहट पास आते हुए महसूस हुई। दोनों एकदम से अलग हो गए..खड़े होकर अपने कपड़ों को दुरस्त करने लगे। तभी उनके पास से एक आदमी गुज़रा और वो आगे की तरफ चला गया। दोनों ने चैन की साँस ली।

“अब घर चलना चाहिए…” दीपा ने घबराए हुए हड़बड़ाते हुए राजू से कहा।

राजू- हाँ चलो.. घर पर सब इंतजार करते होंगे..।

फिर दोनों बाग़ से निकल कर घर की तरफ चल पड़े। रास्ते में दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई.. घर आते ही दीपा कमरे में घुस गई और अपनी सलवार उतारने के बाद अपनी चड्डी निकाल कर देखने लगी। उसकी पैन्टी नीचे से एकदम उसके कामरस से सनी हुई थी।

जब उसने अपनी चूत की फांकों को अपनी उँगलियों से छुआ, तो उसकी ऊँगलियाँ भी उसकी चूत से निकल रहे पानी से लसलसा गईं।

दूसरी तरफ चमेली के घर पर आज रतन और रज्जो के वापिस जाने का दिन था… रज्जो का दिल वहाँ से जाने को नहीं कर रहा था और वो बुझे हुए मन से जाने की तैयारी कर रही थी। चमेली अभी तक सेठ के घर से नहीं लौटी थी। रतन चारपाई पर बैठा हुआ रज्जो को देख रहा था।

“क्या हुआ इतनी उदास क्यों है?”

रतन ने रज्जो के उदास चेहरे को देख कर पूछा।

रज्जो- कुछ नहीं,

रतन- अरे बता ना।

“क्या हम कुछ और दिन नहीं रुक सकते..?”

रज्जो ने डरते हुए पूछा।

“अरे घर में माँ-बाबा नाराज़ हो जाएँगे कि इतने दिन सुसराल में बैठा रहा… चल फिर भी अगर तू कहती है.. तो कम से कम आज का दिन और रुक जाते हैं और हाँ.. जितनी भी बातें अपनी सहेलियों से करनी हैं.. आज खत्म कर ले.. वैसे भी तू मेरी तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं देती..।” रतन ने मुस्कुराते हुए कहा।

रज्जो ने अपना सर झुका लिया और बाहर की तरफ जाने लगी। तभी चमेली घर में दाखिल हुई.. रज्जो को बाहर जाता देख कर उसने पूछा- तैयारी हो गई तुम्हारी..?

रज्जो- हाँ माँ.. पर हम कल जा रहे हैं… वैसे भी आज वक्त बहुत हो गया है.. रात को देर से पहुँचेगे नहीं तो.. अभी मैं मीना के घर जा रही हूँ..।

ये कहते हुए.. रज्जो पड़ोस के घर में चली गई। बाहर के दरवाजे पर खड़ी चमेली ने एक बार रज्जो को पड़ोस के घर में घुसते देखा और फिर एक तरफ अन्दर वाले कमरे में वहाँ खड़े-खड़े नज़र डाली। रतन कमरे में चारपाई पर नीचे पैर लटका कर लेटा हुआ था। उसने दरवाजा बंद किया और कमरे में आ गई।

चमेली- क्या बात है दामाद जी.. आज अचानक से जाने के फैसला कैसे बदल लिया?

चमेली ने होंठों पर कामुक मुस्कान लाते हुए कहा।

“अरे सासू जी… आपका प्यार जाने नहीं दे रहा…।” रतन ने अपने लण्ड को धोती के ऊपर से मसलते हुए कहा।
रतन की इस हरकत से चमेली के चेहरा शरम से लाल हो गया।

“क्या सोच रही हो.. अब वहाँ ही खड़ी रहोगी..?” रतन ने अपनी धोती को बगल से हटाते हुए अपना लण्ड बाहर निकाल कर कहा।

रतन का लण्ड एकदम तना हुआ था और काले साँप की तरह फुंफकार रहा था।

“ये हरदम ऐसे ही खड़ा रहता है..?” चमेली ने रतन के लण्ड को देखते हुए, अपने होंठों को दाँतों में लेकर चबाते हुए कहा।

रतन ने अपने सुपारे की चमड़ी को पीछे करके लाल सुपारे चमेली को दिखाते हुए कहा- हरदम तो नहीं पर.. आपकी चूत की खुशबू इससे दूर से ही मिल गई थी.. इसलिए उसके सम्मान में खड़ा हो गया।

चमेली तिरछी नज़रों से रतन के लण्ड को लालसा भरी नज़रों से देख रही थी। रतन के लण्ड के लाल और मोटे सुपारे को देख कर चमेली की चूत की फाँकें फड़फड़ाने लगीं…. उसके बदन में वासना की लहर दौड़ रही थी।
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#52
भाग - 49

“क्यों चूत पानी छोड़ रही है न.. मेरे लण्ड को अन्दर लेने के लिए…?” रतन ने वैसे ही लेटे-लेटे अपने लण्ड को हिलाते हुए कहा।

चमेली- नहीं.. मेरी चूत क्यों टपकाए अपना पानी तेरे इस लण्ड के लिए।

चमेली ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा और दूसरी तरफ मुड़ कर जाने लगी।

रतन ने चारपाई पर उठ कर बैठते हुए.. चमेली का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया।

“आहह क्या कर रहे हो छोड़ मुझे..” रतन के खींचने से चमेली रतन के पैरों के बीच नीचे पैरों के बल जा बैठी।

“चल चूत में ना ले.. पर एक बार इसे पकड़ कर सहला तो दे… देख ना कब से अकड़ कर खड़ा है..।”

रतन ने चमेली के हाथ को अपने लण्ड पर रखते हुए कहा। अपनी हथेली में रतन के लण्ड की गरमी को महसूस करते ही.. चमेली की चूत ने पानी छोड़ना चालू कर दिया और चमेली ने रतन के लण्ड को अपनी मुठ्ठी में कस कर दबा दिया।
“आह्हह.. साली दबा क्यों रही है.. धीरे-धीरे हिला ना..” रतन ने चमेली की आँखों में देखते हुए कहा।

चमेली के होंठों पर कामुक मुस्कान फ़ैल गई, “साला हरामी”

चमेली ने मुस्कुराते हुए कहा।

उसकी आँखों में देखते हुए.. रतन के लण्ड को धीरे-धीरे ऊपर-नीचे करते हुए मुठ्ठ मारने लगी।

रतन मस्ती से एकदम सिसक उठा, “आह क्या मस्त हिलाती है तू… आह बस ऐसे ही हिलाती रह मेरा लौड़ा.. आह्ह..।”

रतन के आँखें मस्ती में बंद होती जा रही थीं। “हट साले.. भोसड़ी के.. मैं हिलाती ही रहूँ क्या.. और मेरी चूत को तेरा बाप आकर चोदेगा..।”

ये कहते हुए चमेली ने अपने लहँगे को अपनी कमर तक उठा लिया और फिर अपनी भारी गाण्ड को नीचे ज़मीन पर टिका कर बैठ गई। उसने एक हाथ से उसने रतन के लण्ड को हिलाना जारी रखा और दूसरी हाथ से रतन के पैर को पकड़ कर.. उसके अंगूठे को अपनी चूत के छेद पर लगा दिया और रतन की आँखों में देखते हुए मुस्कुराई।

रतन को समझते देर ना लगी कि उसकी चुदैल सास उससे क्या चाहती है और उसने अपने पैर के अंगूठे को उसकी चूत के छेद पर दबा दिया।

रतन के पैर का अँगूठा.. चमेली की लबलबा रही चूत के छेद में अन्दर जा घुसा।

“आह हरामी धीरे से..उइईइ…” चमेली एकदम से सिसक उठी और रतन के टांग को अपनी एक बाजू में कस कर जकड़ लिया।

रतन अपनी सास के इस चुदैलपने को देख कर मस्त हो गया.. उसने एक हाथ से चमेली के सर को बालों को पकड़ा और दूसरे हाथ से अपने लण्ड को.. और फिर उसने अपना लण्ड चमेली के होंठों के साथ भिड़ा दिया।

किसी बाजारू रांड की तरह चमेली ने झपाक से रतन के लण्ड को अपने होंठों के बीच में दबा लिया और उसके लण्ड के सुपारे पर अपने होंठों को रगड़ते हुए.. अपने मुँह के अन्दर लेने लगी।

“आह्ह.. चूस्स्स साली.. बहुत मस्त चूसती है तू.. तभी इधर से जाने को मन नहीं कर रहा मेरा…।”

चमेली अपनी गाण्ड को आगे की तरफ झटके देती हुई.. रतन के लण्ड को चूसने लगी। जब उसने रतन के लण्ड को मुँह से बाहर निकाला, तो रतन का लण्ड उसके थूक से सना हुआ चमक रहा था। उसने रतन के पैर के अंगूठे को अपनी चूत से बाहर निकाला और खड़ी हो गई।

फिर उसने अपनी चोली के बटन खोल कर… एक तरफ फेंक दिया। चमेली की बड़ी-बड़ी गुंदाज चूचियां उछल कर बाहर आ गईं।

चमेली ने रतन को कंधों से पकड़ कर पीछे की तरफ धकेल दिया.. अब वो चारपाई पर पेट के बल लेटा हुआ था.. पर उसके पैर अभी भी चारपाई से नीचे की तरफ लटक रहे थे। चमेली ने अपने लहंगे को ऊपर उठा कर कमर के पास पकड़ा हुआ था।

चमेली ने अपने दोनों पैरों को रतन की टाँगों के दोनों तरफ चारपाई के किनारे पर टिका कर अपने पैरों के बल बैठ गई।

जिससे उसकी चूत का छेद ठीक रतन के लण्ड के सीध में आ गया। रतन ने चमेली की आँखों में देखते हुए अपने लण्ड को पकड़ कर उसकी चूत के छेद पर टिका दिया।

चमेली की चूत का छेद किसी भट्टी के मुहाने के तरह दहक रहा था। चूत के छेद पर लण्ड का सुपारा लगते ही, चमेली एकदम से सिसक उठी और साथ ही उसने अपनी चूत को रतन के लण्ड पर दबाना चालू कर दिया।

“आह्ह.. शीए आह्ह..”

चमेली की मस्ती भरी सिसकारी निकल पड़ी। उसकी चूत का छेद अपना छल्ला फ़ैलाते हुए.. रतन के लण्ड के सुपारे पर दबाव बनाते हुए.. आगे की तरफ बढ़ने लगा और धीरे-धीरे रतन का लण्ड चूत के छेद में घुसता चला गया।

जोश में आकर रतन ने अपने हाथों को पीछे ले जाकर उसके चूतड़ों को अपने हाथों में भर कर कस कर दबा दिया।

चमेली ने मदहोशी भरी आवाज़ में कहा- आह्ह.. मादरचोद गाण्ड ही दबाएगा क्या.. भोसड़ी के पहले मेरी चूत में जो आग.. लगाइ है.. उसे.. बुझाआअ दे..।

चमेली की मस्ती भरी सिसकियाँ और गरम बातों को सुन कर रतन एकदम से जोश में भर गया और उसने चमेली के चूतड़ों को कस कर मसलते हुए.. अपनी गाण्ड को पूरा ज़ोर लगाकर ऊपर की तरफ उछाला।

“आह्ह.. धीरे.. भोसड़ी वाले.. आह्ह..” चमेली के पूरे बदन में मस्ती और दर्द भरी लहर दौड़ गई। उसने अपने हाथों को रतन की छाती पर टिका दिया और अपनी गाण्ड को पूरी रफ़्तार से ऊपर-नीचे उछालते हुए, रतन के लण्ड को अपनी चूत की अन्दर-बाहर करने लगी।

चमेली- आह्ह.. आह्ह.. ओह्ह ले साले चोददद मुझे.. आह्ह.. आह चोदद ना..अह ओह.. मर गई ओह.. मेरी फुद्दी.. ओह ओह्ह आह्ह.. आह।

रतन- अह.. साली और उछल.. तेरा ही लौड़ा है..ए लेए साली पूरा का पूरा ले ले..ए आह्ह. क्या चूत है तेरी.. साली मादरचोदी राण्ड.. एकदम कसी हुई चूत.. आह्ह..।

चमेली पागलों की तरह ऊपर-नीचे होते रतन के लण्ड को अपनी चूत की गहराईयों में ले कर चुद रही थी। चमेली की मस्ती का कोई ठिकाना नहीं था और रतन चमेली के धक्कों की रफ़्तार को ज्यादा देर तक नहीं झेल पाया और उसके लण्ड से पानी की बौछार होने लगी,

जिससे चमेली अपनी चूत के हर एक कोने में महसूस कर रही थी और वो भी काँपते हुए झड़ने लगी।

चमेली का पूरा बदन झड़ते हुए, काँप रहा था। थोड़ी देर बाद रतन का लण्ड सिकुड़ कर चमेली की चूत से बाहर आ गया। चमेली ने अपनी आँखें खोलीं.. जो कुछ देर पहले वासना के कारण बंद थीं। आँखें खुलते ही.. चमेली की नज़रें रतन से जा टकराईं.. जो उसकी तरफ देखते हुए मुस्कुरा रहा था..।

चमेली की बड़ी-बड़ी चूचियां ठीक रतन की आँखों के सामने तेज़ी से ऊपर-नीचे हो रही थीं।

चमेली अपनी हालत पर एकदम से शर्मा गई और रतन के ऊपर से उठने लगी, पर रतन ने अपने दोनों हाथों से चमेली के सर को पकड़ कर अपने ऊपर झुका लिया और उसके होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा।

चमेली अपने हाथों से रतन के छाती को सहलाने लगी। कुछ ही देर में चमेली को अपनी चूत की फांकों पर रतन के लण्ड की हरकत पुनः महसूस हुई।

चमेली जान गई कि रतन का लण्ड एक बार फिर से खड़ा होने लगा है। उसके लण्ड को फिर से खड़ा होता महसूस होते हुए.. चमेली ने अपने होंठों को रतन के होंठों से अलग किया और उसके हाथों को झटकते हुए.. रतन के ऊपर से उठ कर नीचे खड़ी हो गई।

उसने देखा रतन का लण्ड एक बार फिर अपना सर उठा रहा था और रह-रह कर झटके खा रहा था।

चमेली ने अपनी नजरें नीचे कर लीं और मुड़ कर अपने चोली को उठा कर टाँग दिया। फिर वो दूसरे कपड़े निकालने के लिए संदूक की तरफ गई और संदूक के पास जाकर झुक कर अपने दूसरे कपड़े निकालने लगी। तभी रतन ने चारपाई से उठते हुए.. पीछे से चमेली को अपनी बाँहों में जकड़ लिया।

“आह क्या कर रहे हो.. छोड़ो मुझे..”

रतन- आह्ह.. क्या मस्त चूत है तेरी.. रांड तुझे छोड़ने का तो दिल ही नहीं करता.. देख ना मेरा लौड़ा तेरी चूत में जाने के लिए फिर से खड़ा हो गया है।

ये कहते हुए रतन ने अपना हाथ चमेली के लहँगे के नाड़े पर ले जाकर उसके नाड़े को खींच कर खोल दिया। अगले ही पल चमेली का लहँगा भी ज़मीन पर आ गिरा। रतन ने पलक झपकते ही.. अपने तने हुए लण्ड को पीछे से चमेली की चूत के छेद पर लगा दिया।

“ओह्ह शईई..”

रतन के लण्ड को अपनी चूत के छेद पर महसूस करके चमेली की सिसकारी निकल गई।

“आह्ह.. ओह धीरे अई रतन..”

रतन ने चमेली की कमर को दोनों तरफ से पकड़ कर दो जोरदार धक्के मारे और अपने लण्ड को चमेली की चूत की गहराईयों में फिर से उतार दिया। चमेली की चूत पहली चुदाई से पूरी तरह पनियाई हुई थी,

इसलिए इस बार रतन का लण्ड दो धक्कों में ही पूरा का पूरा चमेली की चूत में समा गया।
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#53
भाग - 50

उसके लण्ड का सुपारा चमेली के बच्चेदानी के छेद पर रगड़ खा रहा था.. जिसे महसूस करते ही चमेली के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।

चूत की दीवारों ने रतन के लण्ड के ऊपर अपनी पकड़ बनाना शुरू कर दी और मस्ती में आकर चमेली ने अपनी गाण्ड को पीछे की ओर दबाते हुए.. गोल-गोल घुमाना शुरू कर दिया।

“आह उन्ह ओह्ह…उइईईईईई सी आह्ह.. रतनऊऊउउ चोद मुझे.. आह्ह.. मेरी चूत ओह्ह चोदद नाअ मुझे.. ओह आह्ह.. फाड़ दे मेरी चूत..।”

चमेली एकदम गरम हो चुकी थी और वो अपनी गाण्ड को गोल-गोल घुमाते हुए.. अपनी चूत में रतन के लण्ड को महसूस करके मस्त होती जा रही थी।

रतन पीछे से चमेली के चूतड़ों को अपने दोनों हाथों में भर कर बुरी तरह से मसल रहा था और अपनी चुदक्कड़ सास को लण्ड के लिए यूँ मरता देख कमीनी मुस्कान के साथ मुस्कुरा भी रहा था।

अब चमेली ने धीरे-धीरे अपनी गाण्ड को हिलाना शुरू कर दिया।

“आह साले.. ऐसे खड़ा रहेगा क्या.. मेरी भोसड़ी में अपना लौड़ा क्यों डाला था.. अह.. जब चोदना नहीं था.. हरामी.. अई चोद मुझे आज ..उहह बहनचोद.. चोद ना…।”

चमेली की चुदाई की बातें सुन कर रतन एकदम से जोश में आ गया। उसने चमेली के बालों को हाथ से पकड़ कर पीछे की तरफ खींचा, जिससे चमेली की गर्दन ऊपर की तरफ उठ गई और उसके बालों को खींचते हुए.. अपनी गाण्ड को हिलाते हुए तेज़ी से चमेली की चूत में लौड़े को अन्दर-बाहर करने लगा।

जब रतन अपना लण्ड चमेली की चूत की गहराइयों में उतारता… तो रतन की जाँघें चमेली के उठे हुए चूतड़ों से टकरा कर ‘थाप-थाप’ की आवाज़ करतीं, जो पूरे कमरे में गूँज जातीं।

चमेली ने रतन के हर जबरदस्त धक्कों से सिसयाते हुए कहा- आह चोद साले भढ़वे.. चोद.. मुझे कुतिया की तरह चोद कुत्ते.. अपने मोटे लौड़े से.. आह्ह.. आह्ह.. ओह फाड़ दे.. ओह्ह उफ्फ मेरी चूत.. ओह्ह ओह्ह आ तेरे लौड़े को लेकर मेरी चूत का उद्धार हो गया रे..।

रतन चमेली के बालों को पकड़ कर ऐसे धक्के लगा रहा था.. जैसे वो किसी घोड़ी पर सवार हो और रतन के हर धक्के के जवाब में चमेली अपनी गाण्ड को पीछे की ओर करके ऊपर उठा देती और अपनी चूत को फैला लेती।

रतन भी लगातार तेज धक्कों से चमेली की चूत की गहराईयों को अपने लण्ड से नाप रहा था। इस बार चमेली की चूत ने पहले मैदान छोड़ दिया और उसकी चूत से लावा बह निकाला।

रतन के लण्ड ने भी अपने वीर्य की बौछार चमेली की चूत में कर दी।

इधर तो सासू अम्मा ने अपने दामाद के लौड़े को खा लिया था.. आइए अब उधर दूसरी तरफ का नजारा देखते हैं।

रात के वक्त सीमा के मायके के घर.. सीमा अपनी माँ के कमरे में माँ से बातें कर रही थी।

उसकी माँ ने सीमा से कहा- वो आज रात उसके साथ सो जाए.. मेरा तुमसे बातें करने का बहुत मन हो रहा है। इसलिए सीमा ने माँ की बात मान ली। खाना खाने के बाद सीमा को राजू का ध्यान आया..

वो कहाँ पर सो गया.. वो उस कमरे में गई.. यहाँ दीपा सोने की तैयारी कर रही थी। सीमा ने बिना कुछ बोले.. एक बिस्तर को ज़मीन पर लगाना शुरू कर दिया।

जब दीपा ने सीमा से पूछा- आप ज़मीन पर बिस्तर क्यों लगा रही हो?

सीमा ने उसे बताया, “माँ उसे अपने साथ सोने के लिए कह रही हैं और राजू यहाँ नीचे सो जाएगा।

बिस्तर लगाने के बाद सीमा बाहर चली गई.. पर दीपा का बुरा हाल था ये सुन कर कि वो राजू के साथ अकेली इस कमरे में… वो तो कुछ भी कर देगा और मैं सुबह उसे रोक भी नहीं पाई थी..। यही सब सोचते हुए.. दीपा बिस्तर पर बैठ गई।

थोड़ी देर बाद राजू कमरे में दाखिल हुआ, घर के सभी लोग अपने-अपने कमरों में सोने के लिए जा चुके थे। उसने अन्दर आते ही एक बार दीपा की तरफ देखा।

दीपा का दिल जोरों से धड़क रहा था। राजू ने अन्दर आते ही दरवाजा बंद कर दिया और धीरे-धीरे दीपा की तरफ बढ़ने लगा।

दीपा राजू को अपने चोर नज़रों से देख रही थी। जैसे-जैसे राजू उसके करीब आ रहा था.. उसकी साँसें उत्तेजना और डर के मारे और तेज होती जा रही थीं।

कुछ ही पलों में राजू दीपा के एकदम सामने उसके पास खड़ा था… इतना पास कि अब वो दीपा के दिल की तेज धड़कनों को सुन पा रहा था।

दीपा ने घबराते हुए, अपने सर को उठा कर राजू की तरफ देखा। राजू अपने चेहरे पर वासना से भरी मुस्कान लिए.. उसकी तरफ ही देख रहा था और अगले ही पल दीपा की नजरें फिर से झुक गईं।

राजू ने अपने दोनों हाथों से दीपा को उसके कंधों से पकड़ा और उसे उठाने लगा।

राजू के हाथों को अपने कंधों पर महसूस करते ही.. दीपा का पूरा बदन काँप गया। उसने पीछे हटाने के कोशिश की, पर राजू ने उसके कंधों को मजबूती से पकड़ा हुआ था। दीपा किसी कठपुतली की तरह राजू के हाथों का आदेश मानते हुए खड़ी हो गई..।

उसके साँसें और तेज़ी से चलने लगीं.. अपने चेहरे पर दीपा के गरम और मस्त कर देने वाली सांसों को महसूस करते ही राजू एकदम से मस्त हो गया और वो अपने होंठों को दीपा के होंठों की तरफ बढ़ाने लगा। उन रसीले और कांपते हुए होंठों की तरफ.. जिसे आज दोपहर को राजू ने जी भर कर चूसा था।

जैसे ही दीपा को राजू के इरादों का अहसास हुआ… उसका पूरा बदन थर-थर कांपने लगा।

अब दीपा राजू से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी.. शरम और संकोचवश उसकी आँखें बंद हो गईं और अगले ही पल राजू ने दीपा के काँप रहे रसीले गुलाबी होंठों को अपने होंठों में भर लिया

राजू के होंठों का स्पर्श अपने होंठों पर महसूस करते ही.. दीपा के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई और वो ना चाहते हुए भी कामातुर होकर गरम होने लगी।
उसके हाथ-पैर उसका साथ छोड़ने लगे और राजू इस बात का फायदा उठाते हुए.. उसके होंठों को ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा।

जब राजू दीपा के नीचे वाले होंठ को अपने होंठों में दबा कर चूसता.. तो दीपा के होंठों में सनसनी दौड़ जाती।

दीपा अब अपने आप पर काबू रख नहीं पा रही थी। उसके हाथ अब राजू के कन्धों पर आ चुके थे उसके गाल और कान दोनों लाल सुर्ख होकर दहकने लगे। राजू ने अपनी बाँहों को दीपा के कमर के इर्द-गिर्द कस कर उसे अपने से चिपका लिया। दीपा के एड़ियाँ ऊपर को उठ गईं, जो कि दीपा की एक और बड़ी ग़लती थी।

भले ही दीपा पर वासना हावी होने लगी थी.. पर उसके मन का एक कोना अब भी उससे ये सब करने के लिए रोक रहा था, पर अगले ही पल नीचे राजू का तना हुआ लण्ड सीधा दीपा की चूत पर सलवार के ऊपर से जा लगा। दीपा का पूरा बदन ऐसे काँप गया, जैसे उसने बिजली के नंगे तारों को छू लिया हो…।

उसने राजू के कंधों को पीछे की ओर धकेला और अपने होंठों को राजू के होंठों से अलग कर दिया।

दीपा की साँसें उखड़ी हुई थीं और वो बहुत मुश्किल से अपने आँखों को खोल कर राजू की तरफ देख रही थी.. जैसे आँखों से कह रही हो कि उसे छोड़ दो। पर राजू का तना हुआ लण्ड जैसे अपने इरादे से पीछे हटने वाला नहीं था। उसे तो उस पतली सी सलवार के नीचे कुँवारी की चूत की सुगंध आ गई थी।

राजू का लण्ड बुरी तरह फुंफकारते हुए झटके खा रहा था.. जैसे ही राजू का लण्ड फनफनाते हुए झटका खा कर दीपा की चूत की ऊपर रगड़ ख़ाता.. दीपा बिन जल मछली के तरह तड़प उठती। राजू जानता था कि अब दीपा उसे नहीं रोक पाएगी। राजू ने झट से अपने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपने पजामे को खोल कर जाँघों तक सरका दिया।

दीपा शरम के मारे नीचे नहीं देख पा रही थी, पर अब उसकी हालत हर पल और खराब होती जा रही थी। राजू ने अब फिर से अपने लण्ड को पकड़ कर दीपा की चूत की फांकों पर सलवार के ऊपर से टिका दिया।

“आह राजूऊऊ..”

दीपा अपनी चूत पर राजू के मोटे सुपारे की गरमी को महसूस करते हुए.. सिसक उठी।
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#54
Wow!?
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#55
भाग - 51



जैसे दीपा को राजू के लण्ड के सुपारे की गरमी अपनी चूत के छेद पर महसूस हुई… दीपा की जाँघें अपने आप खुलने लगीं। दीपा को यूँ मदहोश होता देख कर राजू ने धीरे-धीरे से अपनी कमर को झटका दिया…।

राजू का लण्ड दीपा की चूत के छेद पर सलवार के ऊपर से रगड़ खा गया…।

“आह राजूऊऊ”

दीपा एकदम से सिसक उठी…।
उसने राजू की बाँहों को और कसके पकड़ लिया। दीपा के होंठ काँप रहे थे.. जिसे देख कर एक बार फिर से राजू के मुँह में पानी आ गया और उसने दीपा के होंठों को अपने होंठों में लेकर फिर से चूसना शुरू कर दिया।

उसने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर दीपा की सलवार के नाड़े को पकड़ कर खींचना शुरू कर दिया।

राजू की इस हरकत से दीपा एकदम से चौंक गई और उसने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर राजू के हाथों को पकड़ कर रोकना शुरू कर दिया… पर राजू के आगे दीपा की एक नहीं चल रही थी।

राजू ने दीपा के सलवार के नाड़े को खींच कर खोल दिया। दीपा को जैसे ही अपनी सलवार के नाड़े की पकड़, अपनी कमर पर ढीली होती महसूस हुई.. उसका दिल जोरों से धड़कनें लगा.. साँसें उखड़ने लगीं. और अगले ही पल उसकी साँसें मानो जैसे थम गई हों।

राजू ने अपना एक हाथ दीपा की सलवार के अन्दर डाल कर उसकी चूत की फांकों के बीच अपनी उँगलियों को चलाना शुरू कर दिया।

दीपा किसी बिन जल मछली के तरफ फड़फड़ाने लगी।

“उम्मह ओह्ह राजू नहीं ओह आह्ह.. से..इईईईईई राजूउऊउ छोड़ दो.. ये ठीक नहीं है कुछ हो जाएगा…ओह राजू..।”

पर दीपा की बातों और दलीलों का राजू पर कोई असर नहीं हो रहा था.. वो बुरी तरह से उसकी चूत को मसलते हुए.. अपनी उँगलियों को उसकी चूत की फांकों में घुमा रहा था। दीपा ने अब अपना बदन पूरा ढीला छोड़ दिया था।

जब राजू अपनी उँगलियों से दीपा की चूत के दाने को मसलता तो दीपा का पूरा बदन खड़े-खड़े झटके खाना लगता।

उसकी चूत से कामरस बह कर राजू की उँगलियों में सनने लगा…। दीपा की मदहोशी भरी ‘आहें’ राजू को और पागल बना रही थीं।

तभी अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई.. तो दोनों एकदम से हड़बड़ा गए और जल्दी से अलग हो गए। दीपा जल्दी से बिस्तर पर करवट के बल लेट गई… और उसने अपनी पीठ दरवाजे की और कर ली…।

राजू ने अपने कपड़े दुरुस्त किए और एक बार दीपा को देखा.. और फिर दरवाजा खोला.. तो सामने सीमा खड़ी थी।

“वो राजू ज़रा काम था मेरे साथ चलना.. ”

राजू ने ‘हाँ’ में सर हिला दिया.. और सीमा के साथ बाहर चला गया।

राजू सीमा के साथ कमरे से बाहर चला गया। वो मन ही मन सीमा को कोस रहा था, पर नौकर था.. कर भी क्या सकता था।

सीमा का बताया हुआ काम निपटाने के बाद राजू फिर से कमरे की ओर चला गया। राजू का मन कह रहा था कि अब दीपा उसे कुछ नहीं करने देगी।

जैसे ही राजू कमरे में दाखिल हुआ.. तो उसने देखा कि दीपा अभी भी वैसे ही करवट के बल लेती हुई थी।

राजू के क़दमों की आहट सुन कर दीपा ने वैसे ही लेटे-लेटे.. अपने चेहरे को घुमा कर दरवाजे की तरफ देखा और उसकी नज़रें राजू की नज़रों से जा टकराईं।

दीपा उससे आँख नहीं मिला पाई और उसने फिर से अपना चेहरा आगे की तरफ घुमा लिया। राजू के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई… उसने दरवाजे को अन्दर से बन्द किया और बिस्तर पर करवट के बल आकर लेट गया।

वो धीरे खिसक कर दीपा के साथ एकदम से सट गया। राजू के बदन को अपने पीठ पर महसूस करते ही.. दीपा की साँसें एक बार फिर से तेज हो गईं।

राजू का तना हुआ लण्ड दीपा के चूतड़ों की गोलाइयों पर रगड़ खा रहा था.. जिसे महसूस करते ही दीपा के पूरे बदन में बिजली सी कौंध गई। उसने अपने हाथों से चादर को दबोच लिया… और उसके मुँह से मस्ती भरी ‘आह’ निकल गई।

राजू ने अपना एक हाथ आगे ले जाकर दीपा के पेट पर रख कर धीरे-धीरे घुमाना शुरू कर दिया। राजू के हाथ की ताल पर दीपा का पूरा बदन थरथराने लगा और राजू उसके पेट को अपने हाथों से सहलाते हुए.. धीरे-धीरे फिर से सलवार के नाड़े की तरफ बढ़ने लगा… और साथ ही उसने अपने दहकते हुए होंठों को दीपा की गर्दन पर लगा दिए।

“आह्ह.. राजू सी”

दीपा एकदम से सिसक उठी.. जैसे ही राजू का हाथ दीपा की सलवार के इजारबन्द तक पहुँचा.. तो राजू एकदम से दंग रह गया। दीपा की सलवार का नाड़ा अभी भी खुला था और उसकी सलवार उसकी कमर पर एकदम से ढीली थी। ये महसूस करते ही.. राजू का लण्ड एकदम से फुंफकार उठा।

राजू ने दीपा की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी तरफ घुमाते हुए.. पीठ के बल लिटा दिया।

अब उसकी आँखों के सामने दीपा आँखें बंद किए हुए तेजी से साँसें लें रही थी। वासना के कारण उसका पूरा चेहरा लाल होकर दहक रहा था.. उसकी गुंदाज चूचियां उसके साँस लेने से ऊपर-नीचे हो रही थीं।

ये सब देख कर राजू मानो जैसे पागल हो गया। उसने दीपा की कमीज़ को नीचे से पकड़ क़र एक झटके से ऊपर उठा दिया।

दीपा की 32 साइज़ की चूचियाँ उछल कर बाहर आ गईं। दीपा अपनी साँसें थामे.. आने वाले पलों का इंतजार कर रही थी। उसने अपने दोनों हाथों से अपने सर के नीचे रखे तकिए को दबोच रखा था..।

उसके गुलाबी रंग के चूचुक जो एकदम तने हुए थे। उन्हें देखते ही राजू का लण्ड पजामे में झटके खाते हुए बाहर को आने को उतावला होने लगा।

राजू ने अपने पजामे के नाड़े को खोल कर पजामे को निकाल कर बिस्तर के नीचे फेंक दिया और खुद दीपा के ऊपर झुक कर उसकी चूची को मुँह में भर कर चूसने लगा। अपने चूचुकों पर राजू की जीभ को महसूस करते ही.. दीपा एकदम से सिहर उठी।

उसने अपने होंठों को दाँतों में भींचते हुए मादक आवाज़ें निकालना शुरू कर दिया और अपने सर के नीचे रखे तकिए को और ज़ोर से अपने हाथों में लेकर दाबना शुरू कर दिया।

“ओह्ह सी.. इईईई राजू आह्ह.. मुझे मुझे कुछ हो रहा है.. ओह बसस्स्स्सस्स करूँऊ.. आह्ह.. राजूऊ..”

राजू ने अपने मुँह को उसके चूचुक से हटाया और दीपा के चेहरे की ओर देखते हुए बोला। “क्या हो रहा है.. दीपा जी.. अच्छा नहीं लग रहा क्या.. बोलो मज़ा आ रहा है ना..?”

एक बार फिर से राजू ने दीपा के चूचुक को अपने होंठों में भर कर चूसना शुरू कर दिया। दीपा का बदन एक बार फिर से तरतरा उठा। पूरे बदन में मस्ती और वासना की लहरें दौड़ गई ..।

दीपा- सी.. राजूऊऊ बसस्स.. नहीं ओह.. राजूऊ बहुत अच्छा लग रहा हैई.. ओह मुझे क्या हो रहा है ओह अह..इईईईई ओह्ह..।

दीपा अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी.. नीचे राजू का तना हुआ लण्ड अब उसकी चूत के ऊपर और नाभि के नीचे पेट पर रगड़ खा रहा था। राजू ने दीपा के चूचुकों को चूसते हुए.. अपने दोनों हाथों को नीचे ले जाकर दीपा की सलवार को दोनों तरफ से पकड़ कर नीचे सरकाना शुरू कर दिया।

दीपा की सलवार उसके चूतड़ों से अटकती हुई, नीचे सरक गई और जैसे ही उसकी सलवार उसकी जाँघों तक आई.. राजू घुटनों के बल सीधा बैठ गया और उसकी सलवार को उसके पैरों से निकाल कर बिस्तर की तरफ रख दिया।

अब दीपा के बदन पर सिर्फ़ कमीज़ ही थी… जो उसकी चूचियों के ऊपर तक चढ़ी हुई थी।

जैसे ही दीपा के बदन से उसकी सलवार अलग हुई.. दीपा ने शर्मा कर अपनी जाँघों को भींच लिया।

उसके दोनों टाँगें घुटनों से मुड़ी हुई थीं और टाँगों के आपस में सटे होने के कारण दीपा की चूत की फांकों की पतली सी लकीर नीचे से साफ़ नज़र आ रही थी।

राजू ने दीपा के टाँगों को पकड़ कर अपने कंधे पर रख लिया.. जिससे दीपा की गोल गाण्ड बिस्तर से थोड़ा सा ऊपर उठ गई और अब दीपा की चूत की फांकों की लकीर राजू के सामने बहुत ही कामुक नज़ारा पेश कर रही थी।

राजू को अपने लण्ड के नसों में खून का बहाव और तेज होता महसूस हो रहा था। उसने दीपा की जाँघों के नीचे वाले हिस्सों को चूमते हुए। अपनी एक ऊँगली को दीपा की चूत की फांकों में आहिस्ता से घुमा दिया।

“आह.. राजूउऊउउ मुझे अब सहन नहीं हो रहा है..।” दीपा एकदम से सिसक उठी।

अब राजू एक पल के लिए भी देर नहीं करना चाहता था.. उसने धीरे-धीरे उसकी टाँगों को अपने कंधे से नीचे उतारा और उसके आपस में सटी हुई जाँघों को धीरे-धीरे खोलना शुरू कर दिया।

दीपा अपनी चूत को राजू से छुपाए रखने के लिए अपनी जाँघों को भींचने में ज़ोर लगा रही थी.. पर अब बहुत देर हो चुकी थी..।
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#56
भाग - 52

अब तो उसकी चूत की फाँकें भी राजू के लण्ड की गरमी का अहसास पाने के लिए फुदक रही थीं और राजू ने धीरे-धीरे दीपा की जाँघों को पूरा खोल दिया।

उफ्फ क्या नज़ारा था सामने.. एकदम कसी हुई कोरी चूत.. दोनों फाँकें आपस में सटी हुईं.. जो मुश्किल से थोड़ा सा खुल पा रही थीं। जो शायद दीपा की चूत में हो रहे संकुचन के कारण हो रहा था और उसकी चूत से काम-रस बह कर नीचे उसकी गाण्ड के छेद की तरफ जा रहा था।

दीपा इतनी मस्त हो चुकी थी…कि उसकी गाण्ड अपने आप ऊपर की ओर उठने लगी.. जिससे उसकी चूत राजू के लण्ड के मोटे के सुपारे पर दबाने लगी और राजू के लण्ड का सुपारा दीपा की चूत की फांकों को फ़ैलाता हुआ अन्दर की ओर घुसने लगा और जैसे ही राजू के गरम सुपारे ने दीपा की चूत की गुलाबी छेद को छुआ.. तो वो एकदम सिसक उठी।

दीपा- आह.. उइईईईई.. राजू ओह्ह.. बहुत मजा आ रहा है.. और करो ना.. आह.. आह राजू..।

राजू ने दीपा के होंठों से अपने होंठों को अलग करते हुए कहा- क्या करूँ दीपा जी..?

राजू की बात सुन कर दीपा एकदम शर्मा गई और एक हलकी से मुस्कराहट उसके होंठों पर फ़ैल गई।

उसने कहा- आह.. अब और बर्दास्त.. नहीं हो रहा है..।

राजू ने दीपा की दोनों चूचियों को मसलते हुए कहा- आह.. बोलो ना क्या करूँ..?

दीपा- आह्ह.. चोदो मुझे…

उधर नीचे राजू के लण्ड का दहकता हुआ सुपारा दीपा की चूत के छेद पर रगड़ खा रहा था और दीपा वासना के सागर में डूबती जा रही थी। अब वो और मस्त होकर सिसिया रही थी।

राजू ने अपने लण्ड को ठीक दीपा की चूत पर सैट किया और दीपा के कानों के पास अपने होंठों को ले जाकर कहा।

राजू- दीपा जी.. पहली बार चुदवा रही हो.. थोड़ा दर्द होगा..।

दीपा- आह.. मुझसे अब्ब्ब्ब और इंतजार नहीं हो रहा..आ..।

राजू ने घुटनों के बल बैठते हुए दीपा की टाँगों को खोल कर घुटनों से मोड़ कर ऊपर उठा दिया और एक जोरदार धक्का मारा…।

राजू का लण्ड दीपा की चूत के कसे छेद को फ़ैलाता हुआ अन्दर घुसते हुए.. उसके कुंवारेपन की सील को तोड़ कर आधे से ज्यादा अन्दर जा घुसा।

दीपा- आह्ह.. माआआआआअ …

दीपा के बदन में एकदम से दर्द की तेज लहर दौड़ गई.. उसे अपनी चूत का छेद एकदम फैला हुआ महसूस होने लगा था और उसे लग रहा था जैसे इस दर्द से उसकी जान ही निकल जाएगी।

पर किसी तरह से दीपा ने अपनी आवाज़ को दबा लिया था.. जिससे उसकी दर्द भरी आवाज़ उस कमरे में ही घुट कर रह गई।

दीपा- ऊ..ओह्ह माआआअ.. बहुत दर्द हो रहा है.. राजू बाहर निकालो इसे…।

राजू- सीईई..चुप करो.. कुछ नहीं होगा.. थोड़ी देर सबर करो… फिर सब ठीक हो जाएगा।

दीपा ने रुआंसी सी आवाज़ में कहा- आह.. नहीं मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.. इसे बाहर निकाल लो.. बहुत दर्द हो रहा है.. मेरी फटी जा रही है।

राजू ने दीपा के आवाज़ को दबाने के लिए उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और उसके दोनों चूचुकों को अपने हाथों की उँगलियों में धीरे-धीरे मसलने लगा।

हर पल दीपा का दर्द कम होता जा रहा था और उसे राजू के लण्ड की गरमी अपनी चूत में बहुत आनन्द-दायक लग रही थी।

जब राजू ने दीपा के होंठों से अपने होंठों को अलग किया.. तो उसने दीपा के चेहरे की तरफ देखा।

दीपा की आँखें बंद थीं और उसके चेहरे पर अब दर्द के भाव थे।

राजू- अभी भी बहुत दर्द हो रहा है क्या ?

दीपा- हाँ.. पर अब कम है।

ये सुन कर राजू के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई और उसने झुक कर दीपा की एक चूची को मुँह में भर लिया और उसके चूचुक के चारों और जीभ घुमाते हुए..

उसकी चूची को ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा। दीपा के पूरे बदन में सिहरन दौड़ गई.. उसका पूरा बदन एक बार फिर से मस्ती में कांपने लगा।

दीपा- ओह राजूउऊउ.. उइईईई आह्ह.. बहुत अच्छा लग रहा है.. ओह अब्ब्ब्ब्ब्बबब दर्द नहीं हो रहा.. ओह राजूउऊुउउ..।

दीपा की बातें और सिसकियाँ इस बात का इशारा था.. कि अब वो चुदवाने के लिए पूरी तरह से तैयार है।

उसकी चूत की दीवारें राजू के लण्ड को अन्दर ही अन्दर मसल रही थीं और दीपा अपनी चूत की दीवारों पर राजू के लण्ड को महसूस करके सिकोड़ और फ़ैला रही थी।

राजू के लण्ड का अहसास दीपा को अपनी चूत के अन्दर स्वर्ग का अहसास करा रहा था.. उसकी गाण्ड अपने आप ही ऊपर-नीचे होने लगी।


जैसे राजू को इस बात कर अहसास हुआ.. उसने धीरे-धीरे अपने आधे से ज्यादा लण्ड को दीपा की चूत से बाहर निकाल लिया। राजू के लण्ड का सुपारा दीपा की चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता हुआ बाहर आने लगा।

राजू के लण्ड के सुपारे की रगड़ को अपनी चूत की दीवारों पर महसूस करके, दीपा के पूरे बदन में मानो जैसे बिजली कौंध गई हो, उसने अपनी बाँहों को राजू की पीठ पर कस लिया और अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उठा कर राजू के लण्ड को एक बार फिर से अपनी चूत में लेने के लिए मचल उठी।

राजू दीपा के इस उतावले पर को देख कर मन ही मन बहुत खुश हो रहा था.. उसने भी दीपा को अपनी बाँहों में भर कर एक बार फिर से अपने लण्ड को धीरे-धीरे चूत के अन्दर सरकाना शुरू कर दिया।

राजू के लण्ड के सुपारे की रगड़ को एक बार फिर से महसूस करके.. दीपा मस्ती में सिसक उठी।

“आह्ह.. राजू बहुत अच्छा लग रहा है.. करो.. ना..”

दीपा पागलों की तरह सिसयाते हुए.. अपने होंठों को राजू के कंधों और छाती पर रगड़ने लगी। जिससे राजू भी और जोश में आ गया और अपने लण्ड को धीरे-धीरे अन्दर-बाहर करने लगा।

राजू के हर धक्के के साथ दीपा के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ जाती और वो मस्त हो कर अपनी दोनों जाँघों को फैला कर अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उठा कर राजू के लण्ड को अपनी चूत की गहराईयों में लेने के लिए तड़फ उठती।

राजू ने दीपा की चूत में अपना लण्ड अन्दर-बाहर करते हुए कहा- आह दीपा जी.. आपकी चूत बहुत कसी हुई है.. क्या गरम फुद्दी है आपकी.. आह्ह.. ।

दीपा राजू की ऐसी गंदी बातें सुन कर बुरी तरह झेंप गई.. उसके दिल की धड़कनें और तेज चलने लगीं।

राजू ने दीपा के होंठों को एक बार फिर से अपने होंठों में भर लिया और उसके होंठों को ज़ोर-ज़ोर से चूसते हुए.. दीपा की चूत में अपने लण्ड को अन्दर-बाहर करते हुए धक्के लगाने लगा।

राजू के हर धक्के के साथ दीपा और मस्त और गरम होती जा रही थी। उसकी कमर अपने आप ही लगातार हिल रही थी, जैसे राजू के लण्ड को अपनी चूत की गहराईयों में समा लेना चाहती हो, दीपा के हाथ राजू के पीठ को सहला रहे थे।

जिससे राजू का जोश हर पल बढ़ता जा रहा था और वो और तेज़ी से अपने लण्ड को चूत की अन्दर-बाहर करने लगा।

दीपा की चूत पूरी तरह से पनिया गई थी और राजू का लण्ड दीपा की चूत से निकल रहे काम-रस से भीग कर आसानी से चूत के अन्दर-बाहर हो रहा था और जब राजू के लण्ड का सुपारा दीपा की चूत गहराईयों में उतार कर उसकी बच्चेदानी पर लगता.. तो दीपा एकदम से मचल उठती और उसके पीठ पर अपने नाख़ून को गड़ा देती।

दीपा ने राजू के होंठों से अपने होंठों को अलग करते हुए कहा- अह राजू.. छोड़ो मुझे.. आह्ह.. मुझे कुछ हो रहा है.. उईइ आह्ह.. आह्ह.. स उम्मह बहुत मजाअ आ रहा हैईइ ओह.. धीरेए आह्ह.. आ ओह्ह राजू मैं तुममस्ीई बहुत प्यार करती हूँ..

राजू- आहाहाँ.. मेरी..ए.. रानी तुम्हें तो अब्ब्ब मैं दिन रात चोदूँगा आह.. आह्ह.. आईसे..इई चूतततत मज़ा आ गयाआ..।

दीपा अब झड़ने के बिल्कुल करीब पहुँच चुकी थी, अब वो भी पागलों की तरह राजू के यहाँ-वहाँ अपने होंठों को रगड़ रही थी और राजू लण्ड अब पूरी रफ़्तार से दीपा की चूत में अन्दर-बाहर हो रहा था। एकाएक दीपा का पूरा बदन अकड़ने लगा.. उसने अपनी टाँगों को राजू की कमर पर कस लिया।

“आह्ह.. राजूऊऊ धीरे.. ओह.. मुझे मेरा पेशाब निकलने वाला है..अईइ.. ओह्ह.. मैं पागल हो जाऊँगीइइ राजू ओह..।”

जैसे ही राजू को पता चला कि दीपा अब झड़ने वाली है.. उसने अपने धक्कों की रफ़्तार को और बढ़ा दिया और दीपा की चूत से लावे की नदी बह निकली।

उसका पूरा बदन ज़ोर-ज़ोर से काँपने लगा और कमर तेज़ी से झटके खाने लगी.. दीपा बुरी तरह झड़ी थी। अपने पूरे जीवन उसे ऐसे सुख की अनुभूति नहीं हुई थी।

उसने राजू के सर को अपने बाँहों में कस लिया और पागलों की तरह राजू के होंठों को चूसते हुए.. झड़ने लगी।
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#57
भाग - 53

राजू ने अपने धक्कों को जारी रखा और कुछ पलों बाद उसके लण्ड ने भी दीपा की चूत को अपने वीर्य से भर दिया।


राजू के गरम वीर्य की बौछार को दीपा अपनी चूत की दीवारों पर महसूस करके.. एकदम मस्त हो गई। उसे अपना पूरा बदन एकदम हल्का महसूस हो रहा था। झड़ने के बाद राजू दीपा के ऊपर ही लुढ़क गया।

आज दीपा पहली बार झड़ी थी और उससे इस चरम आनन्द की अनुभूति आज अपनी जन्दगी में पहली बार हुई थी। उसकी आँखें अभी भी बंद थीं।

राजू जो कि अपने सर को दीपा की चूची के ऊपर रखे हुए लेटा हुआ था.. उसने अपने सर को उठा कर दीपा की तरफ देखते हुए पूछा। “दीपा जी आपको अच्छा तो लगा ना ?”

राजू के इस सवाल से दीपा बुरी तरह झेंप गई। अब जब वासना का भूत दीपा के सर से उतर चुका था.. तो उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि अपनी आँखें खोल कर राजू की तरफ देखे।
राजू के सवाल के जबाव में उसने सिर्फ सहमति जताते हुए अपने चेहरे को एक तरफ घुमा कर मुस्कुरा दिया.. जिसे देख कर राजू के होंठों पर भी मुस्कान फ़ैल गई।

राजू धीरे से दीपा के ऊपर से उठा और बिस्तर के नीचे उतर गया।

दीपा अभी भी आँखें बंद किए हुए बिस्तर पर लेटी हुई थी.. उसे अपना पूरा बदन फूल सा हल्का महसूस हो रहा था।

उसे बिस्तर के पास से कुछ सरसराहट सी आ रही थी.. पता नहीं राजू क्या कर रहा था और वो अपने आँखें खोल कर देखना नहीं चाहती थी। थोड़ी देर बाद दीपा को फिर से अहसास हुआ कि राजू बिस्तर पर चढ़ गया है।

राजू ने बिस्तर पर आते ही दीपा की टाँगों को खोल कर फैला दिया.. जिससे दीपा एकदम शर्मसार हो गई… उसने झट से अपने दोनों हाथों को नीचे ले जाकर अपनी चूत के ऊपर रख लिया.. और काँपती हुई आवाज़ में बोली।

दीपा- नहीं राजू…

राजू- पर दीपा.. वो मैं तो बस.. साफ़ करने लगा था।

राजू की बात सुन कर दीपा ने अपनी आँखों को हिम्मत करके खोला और राजू की तरफ देखा।

राजू अपने हाथ मैं एक कपड़ा लिए हुए उसकी टाँगों के बीच में. चुदाई के काम-रस और उसकी चूत की सील टूटने से निकले खून को साफ़ करने के लिए बैठा था।

अगले ही पल उसकी नज़र राजू के टाँगों के बीच में झूल रहे लण्ड पर जा टिकी.. जो अब ढीला पड़ चुका था। राजू के लण्ड को देखते ही उसके चेहरे पर लाली छा गई और उसने फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं।

राजू ने अपने एक हाथ से दीपा के हाथों को पकड़ कर उसकी चूत की ऊपर से हटाना शुरू कर दिया.. दीपा भले ही शरम से गढ़ी जा रही थी.. पर उसने राजू का विरोध नहीं किया।

राजू ने दीपा के हाथों को चूत से हटा कर धीरे-धीरे उसकी चूत को उस कपड़े से साफ़ करना शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद राजू बिस्तर से नीचे से उतर गया। दीपा ने फिर से अपनी आँखों को खोल कर राजू की तरफ़ देखा।

राजू अपने कपड़े पहन रहा था। राजू ने नज़र घुमा कर बिस्तर पर लेटी दीपा की तरफ देखा.. जो उसे लेटे हुए देख रही थी।

राजू मुस्कुरा कर दीपा से बोला।

राजू- कपड़े पहन लीजिए दीपा जी.. मैं इस कपड़े को बाहर फेंकने जा रहा हूँ।

राजू उस कपड़े की बात कर रहा था.. जिससे उसने दीपा की चूत को साफ़ किया था। वो किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता था।

राजू की बात सुन कर दीपा बिस्तर पर उठ कर बैठ गई और अपने कपड़े पहनने लगी। जब राजू ने देखा कि दीपा कपड़े पहन चुकी है.. तो उसने धीरे से कमरे का दरवाजा खोला और कमरे से बाहर चला गया।

राजू के जाने के बाद दीपा बिस्तर पर लेट गई और पता नहीं कब उसे नींद आ गई। सुबह के 4 बजे दीपा की आँख प्यास की वजह से खुली.. तो उसने कमरे में अंधेरा पाया…।

वो किसी तरह से उठी और लालटेन जला कर मेज पर रख दी।

राजू नीचे ज़मीन पर पड़े बिस्तर पर लेटा हुआ था। राजू को देखते ही कुछ घंटे पहले हुई उसकी पहली चुदाई का मंज़र उसकी आँखों के सामने घूम गया।

उसे अपने जाँघों के बीच में अभी भी काफ़ी गीलापन महसूस हो रहा था। उसने जल्दी से पानी पिया और अपनी सलवार के नाड़े को खोल कर थोड़ा सा नीचे सरका कर अपने एक हाथ अन्दर डाल कर अपनी चूत को छूकर देखने लगी। चूत पर अपना हाथ लगाते ही.. दीपा का पूरा बदन झनझना उठा।

उफ्फ.. ऐसी खुमारी उसने आज तक नहीं महसूस की थी…।

उसके हाथ की ऊँगलियाँ खुद ब खुद ही उसकी चूत की फांकों पर धीरे-धीरे चलने लगीं… उसकी आँखों में एक बार फिर से वासना का सागर उमड़ता हुआ नज़र आने लगा और वो अपनी वासना से भरी आँखों से नीचे लेटे हुए राजू को देखते हुए.. अपनी चूत को धीरे-धीरे सहलाने लगी।

दीपा अपनी चूत को सहलाते हुए बिस्तर पर बैठी हुई.. राजू की तरफ वासना से भरी नज़रों से देख रही थी।

अभी सुबह के 3 बज रहे थे और कुछ ही देर में भोर होने वाली थी।

दीपा का पूरा बदन काँप रहा था.. उसके मन में अजीब से हलचल मची हुई थी।

उसने राजू की तरफ एक बार फिर से देखा.. जो अभी भी घोड़े बेच कर सो रहा था। उसकी चूत एक बार फिर से राजू के लण्ड के लिए फड़फड़ाने लगी.. पर वो चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही थी।

आख़िर कुछ घंटों पहले ही तो उसने चुदाई का पहला स्वाद चखा था.. जवान और गरम खून होने के कारण उसका दिल एक बार फिर से बहकने लगा था।

पर जब काफ़ी देर तक राजू की तरफ से कोई हरकत नहीं हुई तो उसने लालटेन बंद कर दी और बिस्तर पर लेट गई.. पर अब ना तो उसकी आँखों में नींद थी.. और ना ही वो सोना चाहती थी। चुदाई का वो दिलकश मंज़र बार-बार उसकी आँखों के सामने आ रहा था।

अगली सुबह चमेली के घर पर..

रतन और रज्जो घर जाने के तैयारी कर रहे थे। इस बात से चमेली उदास थी। राजू तो पहले से नहीं था और अब रतन भी जा रहा था.. पर वो चाह कर भी अब कुछ नहीं कर सकती थी। आख़िर बेटी और दामाद को कब तक घर में रोक कर रख सकती थी।

रतन और रज्जो दोनों तैयार होकर अपने घर के लिए निकल पड़े। रज्जो सारे रास्ते अपने आने वालों दिनों के बारे में सोच रही थी.. उसे अपना पूरा जीवन अंधेरे में डूबता हुआ महसूस हो रहा था।

दोपहर तक दोनों घर पहुँच गए। घर वालों ने रतन और अपनी बहू का खूब स्वागत किया.. दिन भर के सफ़र की थकान के कारण रज्जो अपने कमरे में जाते ही खाट पर लेट गई और सो गई।

शाम को उसकी सास ने रज्जो और रतन दोनों को उठाया और खाना खाने के लिए कहा।

रज्जो ने देखा उसकी सास और ससुर दोनों कहीं जाने के लिए तैयारी कर रहे थे.. जब रज्जो रसोईघर में पहुँची.. तो उसे पता चला कि उसकी सास और ससुर दोनों पास के ही गाँव में अपने किसी रिश्तेदार के घर पर जा रहे थे और कल सुबह ही घर वापिस आएँगे।

जैसे ही ये बात रतन की काकी शोभा को पता चली, उसका चेहरा एकदम से खिल गया और उसने बाहर आँगन में बैठे रतन की तरफ देखते हुए एक कामुक मुस्कान फेंकी.. बदले में रतन के होंठों पर भी वासना से भरी मुस्कान फ़ैल गई।

रज्जो दोनों की हरकतों को देख रही थी.. वो जानती थी कि दोनों के मन में क्या चल रहा है और अगले ही पल उसके दिल की धड़कनें एक बार फिर से बढ़ने लगीं।

थोड़ी देर बाद रतन के माँ-बाप अपने रिश्तेदार के घर जाने के लिए निकल पड़े। खाना खाने के बाद रतन टहलने के लिए बाहर निकल गया और रज्जो अपने कमरे में आकर चारपाई पर लेट गई।

अब अंधेरा ढलने लगा था और रज्जो अपने कमरे में अकेली बैठी थी.. उसे पास वाले कमरे से शोभा की आवाज़ आ रही थी.. वो अपने बच्चों को सुला रही थी।
रज्जो को लग रहा था, जैसे वो अपनी चूत को चुदवाने के तैयारी कर रही हो।

“रांड हरामजादी..” रज्जो बुदबुदाई और इससे ज्यादा वो कर भी क्या सकती थी।

रात काफ़ी ढल चुकी थी। रज्जो चारपाई पर लेटी हुई थी.. वो जानती थी कि आज रतन इस कमरे में नहीं आएगा और वो सोने की कोशिश करने लगी।

रतन घर वापिस आया और दरवाजा बंद करके वो सीधा अपनी काकी शोभा के कमरे में चला गया।

आज रतन दारू पीकर आया था.. शोभा रतन को देखते ही समझ गई कि.. रतन दारू पीकर आया है और जब रतन दारू पीकर आता है.. तो उसकी चूत को खूब चोदता है।

ये देखते ही, उसकी चूत की फाँकें फड़फड़ाने लगीं.. वो पलंग पर से उठी और रतन को अपनी बाँहों में भरते हुए.. अपने होंठों को रतन के होंठों से बिंधा दिया।
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#58
भाग = 54

रतन ने थोड़ी देर शोभा के होंठों को चूसे और फिर शोभा को पीछे कर दिया।

“क्या हुआ रतन..?” शोभा ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा।

“कुछ नहीं.. तू चल मेरे साथ..” ये कहते हुए, उसने शोभा काकी का हाथ पकड़ा और उसे कमरे से बाहर ले गया और फिर अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगा।

शोभा- ये.. ये.. क्या कर रहा है.. कहाँ ले जा रहा है..?

शोभा ने परेशान होते हुए कहा।

रतन- अपने कमरे मैं लेजा रहा हूँ.. आज देखना उस साली रांड के सामने मैं तुझे कितने प्यार से चोदता हूँ.. तुम्हें डर लग रहा है क्या..?

शोभा- अरे क्या कह रहा है.. तेरा दिमाग़ तो सही है ?

रतन- हाँ बिल्कुल सही है.. काकी तू बोल.. तुम मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती.. तू चल मेरे साथ..।

ये कहते हुए.. रतन शोभा का हाथ पकड़ कर खींचते हुए.. अपने कमरे में ले गया।

फिर जैसे ही दरवाजा खुला.. तो चारपाई पर लेटी.. रज्जो एकदम से हड़बड़ा गई और उठ कर बैठते हुए रतन की तरफ देखने लगी।

रतन शोभा काकी का हाथ पकड़े हुए.. दरवाजे पर खड़ा था।

“अए ऐसे क्या घूर कर देख रही है.. चल उठ.. और नीचे ज़मीन पर बिस्तर बिछा। ”

रज्जो को समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर अब रतन क्या चाहता है.. वो जस की तस चारपाई पर बैठी रही.. रतन ने शोभा का हाथ छोड़ा और कमरे का दरवाजा बंद करने लगा और जैसे ही कमरे का दरवाजा बंद करने के बाद मुड़ा तो इस बार लगभग चिल्लाते हुए बोला- ओए सुना नहीं क्या ?

मैं क्या कह रहा हूँ.. चल नीचे बिस्तर बिछा..।

शोभा अपने हाथों को आपस में मसलते हुए नीचे नजरें करे खड़ी थी। रज्जो ने एक बार परेशान से खड़ी अपनी काकी सास के तरफ देखा और फिर चारपाई से नीचे उतर कर नीचे ज़मीन पर बिस्तर बिछाने लगी।

रतन- ओए जल्दी-जल्दी हाथ चला.. बहुत ऐश कर ली तूने.. अपनी माँ के घर पर..

रतन की कड़क आवाज़ सुन कर रज्जो डर से काँप गई और वो जल्दी से बिस्तर बिछाने लगी। बिस्तर बिछाने के बाद रज्जो चारपाई के पास खड़ी हो गई और परेशान सी रतन की तरफ देखने लगी।

रतन ने एक बार रज्जो की तरफ देखा और फिर पास खड़ी शोभा की तरफ घूमते हुए उसको.. उसके कंधों से पकड़ कर.. अपने होंठों को शोभा के होंठों पर सटा दिया।

रज्जो का कलेजा मुँह को आ गया.. दिल की धड़कनें मानो जैसे बंद हो गई हों.. और अगले ही पल उसका सर नीचे झुकता चला गया।

शोभा रतन की बाँहों में कसमसा कर रह गई। वो जानती थी कि अब रतन उसकी एक नहीं सुनने वाला।

उसका दिल मारे डर और रोमांच के मारे तेज़ी से धड़क रहा था और ये सोच कर कि रतन अब खुल कर रज्जो के सामने उसको चोदने वाला है और कैसे वो अपना मूसल लण्ड रज्जो के सामने उसकी चूत में डालेगा।

ये सोचते हुए.. शोभा की चूत में सरसराहट बढ़ने लगी.. ये सोचने से उसको इतना मजा आ रहा था.. जितना उसे रतन से पहली बार चुदवाते हुए भी नहीं आया था।

कामवासना में जलती शोभा ने भी अपनी बाँहें रतन की कमर से कस लीं और अपने होंठों को हिलाते हुए रतन का साथ देने लगी।

जब दोनों के होंठ आपस मैं उलझते तो .. ‘ओह्ह.. पुच्छ’ की आवाज़ होती.. जिसे सुन कर रज्जो की हालत और भी खराब होने लगती।

वो चाह कर भी अपने नजरें उठा कर नहीं देख पा रही थी.. फिर मानो जैसे रज्जो का कलेजा मुँह को आ गया हो।

रतन ने शोभा के कपड़े खोलने शुरू कर दिए। साड़ी शोभा के बदन से अलग होकर नीचे बिछे बिस्तर पर आ गिरी.. ठीक नीचे देख रही रज्जो के आँखों के सामने।

फिर ब्लाउज साड़ी के ऊपर आ गिरा।

इसका मतलब अब शोभा ऊपर से पूरी नंगी हो चुकी थी और अगले ही पल मानो जैसे रज्जो के कानों में कोई खौफनाक आवाज़ गूँज उठी हो..

दरअसल वो कोई खौफनाक आवाज़ नहीं थी। वो तो शोभा की मस्ती से भरी सिसकारी थी.. जो अपने चूचकों पर रतन के होंठों को महसूस करते हुए.. उसके मुँह से निकली थी।

“अह रतन…”

और फिर क्या था.. शोभा की मदमस्त वासना से भरी ‘आहों’ से पूरा कमरा गूँज उठा.. रज्जो को लग रहा था.. जैसे उसके पैर अभी जवाब दे देंगे और वो वहीं ज़मीन गिर पड़ेगी।

उसके हाथ-पैर ऐसे काँप रहे थे.. मानो जैसे वो बर्फ की सिल्ली पर खड़ी हो।

शोभा- आह्ह.. रतनऊऊउ ओह.. चूस्स्स.. बेटा मेरे..ए.. चूचियों को.. आह.. और ज़ोर से चूस्स्स.. आह मेरे..ए..ए चूतततत्त कब से.. इईए तरस रही थी तेरे लण्ड के लिए आह्ह.. ओह्ह.. ।

रज्जो ऐसी बातें और कामुक ‘आहें’ सुनकर एकदम से पागल हुई जा रही थी और अगले ही पल रतन ने शोभा के पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया।

पेटीकोट अगले ही पल शोभा के पैरों के बीच में पड़ा था।

“चल लेट जा… ”

रतन ने अपनी काकी शोभा को कहा और जैसे ही शोभा नीचे बिस्तर पर लेटी.. तो उसकी नजरें रज्जो से जा टकराईं.. जो नीचे की तरफ सर झुकाए खड़ी थी।

शोभा ने बड़ी ही कामुक मुस्कान से रज्जो की तरफ देखा और अपनी पैरों को घुटनों से मोड़ कर अपनी दोनों जाँघें फैला दीं।

शोभा ने अपनी चूत के बाल एकदम साफ़ किए हुए थे.. जिससे उसकी चूत का गुलाबी छेद खुल कर रज्जो की आँखों के सामने आ गया।

रज्जो की साँसें अब इतनी तेज चलने लगीं.. जैसे वो मीलों दौड़ कर आई हो और अगले ही पल उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया।

अब रतन भी पूरा नंगा हो चुका था.. वो अपने एक हाथ से अपने लण्ड को हिलाते हुए बिस्तर पर आया और पास खड़ी.. रज्जो का हाथ पकड़ खींचते हुए शोभा की टाँगों के बीच में बैठ गया।

रज्जो लड़खड़ाते हुए.. रतन के पास लगभग गिरते हुए.. नीचे बैठ गई।

“ओए चल इधर.. देख.. आज मैं तुझे दिखाता हूँ कि चुदाई किसे कहते हैं।”

रतन ने रज्जो का हाथ छोड़ कर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए.. रज्जो को अपने साथ चिपका लिया.. रज्जो शरम के मारे मरी जा रही थी। वो अभी भी सर झुकाए हुए बैठी थी।

“देख.. अब चूत.. मेरे लण्ड को कैसे लेती है.. और जब लण्ड चूत में जाता है.. तो एक औरत को कितना मज़ा आता है।”

ये कहते हुए, रतन ने शोभा की तरफ देखा और शोभा ने अपने दोनों हाथ चूत की ऊपर ले जाते हुए.. चूत की फांकों को खोल कर फैला दिया.. जिससे शोभा की चूत का गुलाबी छेद खुल कर उन दोनों के आँखों के सामने आ गया।

शोभा की चूत का छेद कामरस से भीगा हुआ था.. जिसे देख कर रज्जो की साँसें और तेज चलने लगीं।

“देख साली की चूत कैसे पनिया रही है.. और तू साली चिल्लाने लगती है..।”

ये कहते हुए रतन ने अपने लण्ड के सुपारे को शोभा की चूत के छेद पर रखा और एक जोरदार धक्का मारा.. रतन का आधे से ज्यादा लण्ड शोभा की चूत में समा गया.. शोभा एकदम से सिसक उठी।

“आह्ह.. रतन.. चोद रेई मुझे.. रुक क्यों गया.. हरामी।”

रज्जो हैरान से रतन के मोटे और लम्बे लण्ड को शोभा की चूत के छेद में फँसा हुआ देख रही थी। उसने हिम्मत करके.. एक बार नज़र थोड़ा सा उठा कर शोभा के चेहरे की तरफ देखा..

शोभा की आँखें अधखुली हुई थीं और वो अपने होंठों को अपने दाँतों से काटते हुए.. बड़ी मादक अदा के साथ अपने हाथों से अपनी चूचियों को मसल रही थी।

शोभा- ओह्ह रतनऊऊउ तेरेई लण्ड के बिना मेरी चूत का बुरा हाल था.. आग लगी हुई थी मेरी चूत में..ओह्ह.. रतनऊऊउउ.. आहह हाँ.. चोद मुझे.. ठंडा कर दे मेरा भोसड़ा..।”

तभी रतन रज्जो के गालों पर अपने होंठों को रगड़ देता है.. जिससे रज्जो का पूरा बदन झनझना जाता है।

रतन ने कहा- देखा.. कैसे लौड़े के लिए भीख माँग रही है।

“ले रांड मेरा लण्ड..”

रतन ने रज्जो को घूरते हुए एक और जोरदार धक्का मारा और अपना पूरा लण्ड शोभा की चूत की गहराईयों में उतार दिया।

जैसे ही रतन के लण्ड का सुपारा शोभा की चूत की गहराईयों में उतर कर उसकी बच्चेदानी से टकराया। शोभा का बदन आनन्द से ऐंठ गया।
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#59
भाग - 55

शोभा- ओह रतनऊऊउ हाँ.. चोद मुझे… मात्त्तत्त रुक्ककक नाआ… चोद मुझे.. ओह्ह..।

रतन ने एक बार फिर से रज्जो की तरफ देखा.. जो शोभा की चूत में पूरे घुसे हुए लण्ड को देख रही थी.. उसने अपने लण्ड को धीरे-धीरे आधे से ज्यादा बाहर निकाला और फिर एक जोरदार धक्के के साथ शोभा की चूत में पेल दिया।

रतन की जाँघें शोभा के भारी-भारी चूतड़ों से जा टकराईं और कमरे मैं ‘ठप’ की जोरदार आवाज़ गूँज उठी।

शोभा- ओह्ह रतन मेरे..ए..ए जान.. ओह चोद.. अपनी काकी को.. आह.. आह.. हाँ और जोर्.. से चोद..।

रतन ने तेजी से धक्के लगाने शुरू कर दिए। रतन का लण्ड शोभा की चूत से निकल रहे पानी से एकदम सन गया था और तेज़ी से शोभा की चूत में अन्दर-बाहर हो रहा था।

अपने सामने हो रही इस जोरदार चुदाई से रज्जो की चूत भी पानी छोड़ने लगी.. अचानक से रतन ने रज्जो को उसके दोनों कंधों से पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया और उसे शोभा.. जो कि नीचे लेटी हुई थी.. उसके ऊपर ले आया..। अब रज्जो शोभा के पेट के ऊपर दोनों तरफ टाँगें किए हुए बैठी थी।

रतन की इस हरकत से रज्जो एकदम से हड़बड़ा गई और खड़ी हो गई। लेकिन अब भी उसकी टाँगें शोभा के कमर के दोनों तरफ थीं।

उसका चेहरा रतन की तरफ और पीठ शोभा के तरफ.. जैसे ही रज्जो खड़ी हुई।

रतन ने अपने दोनों हाथों को उसके लहँगे के अन्दर डाल दिया और उसके टाँगों को नीचे से मसलते हुए.. ऊपर की और ले जाने लगा।

रज्जो का पूरा बदन रतन के हाथों को अपनी टाँगों पर महसूस करके झनझना उठा।

उसकी हालत हर पल बिगड़ती जा रही थी.. उसके टाँगें बुरी तरह थरथरा रही थी.. रतन के हाथ उसके टाँगों पर ऊपर की ओर बढ़ते हुए.. उसके जाँघों पर आ चुके थे।

रतन ने उसकी चिकनी और गुंदाज जाँघों को धीरे-धीरे अपने हाथों में भर कर मसलना शुरू कर दिया।

रज्जो की चूत अब और गरम हो चुकी थी और फिर रतन ने वो किया.. जिससे रज्जो की साँसें मानो जैसे थम गई हों।

उसने रज्जो की चड्डी को दोनों हाथों से पकड़ कर नीचे खींच दिया और उसके दोनों पैरों को एक-एक करके ऊपर उठाते हुए उसकी टाँगों से निकाल कर एक तरफ फेंक दिया।

रतन नीचे से लगातार अपनी कमर हिलाते हुए.. शोभा की चूत में अपना लण्ड अन्दर-बाहर करता हुआ उससे चोदे जा रहा था और शोभा की मस्ती और मदहोशी भरी सिसकियों का रज्जो के ऊपर अजीब सा नशा छाने लगा था।

रतन ने फिर से रज्जो को पकड़ कर नीचे बैठा दिया। अब रज्जो अपने घुटनों के बल शोभा के पेट के ऊपर थी।

रतन ने शोभा की चूत में अपना लण्ड पेलते हुए.. रज्जो के चेहरे को अपने हाथों में भर कर अपनी तरफ खींचा और उसके गुलाबी होंठों को अपने होंठों में भर लिया।
अगले ही पल रज्जो की आँखें बंद हो गईं।

रतन ने एक हाथ रज्जो की कमर में डाल कर अपनी तरफ सरका रखा था और उसने अपने दूसरे हाथ को रज्जो के लहँगे के नीचे से अन्दर डाल दिया।

जैसे ही रतन का हाथ रज्जो की चूत की फांकों को लगा.. रज्जो एकदम से कसमसा गई और वो रतन से और चिपक गई।

पीछे से अपनी काकी सास की मादक सिसकारियाँ सुन कर उसका और बुरा हाल होता जा रहा था।

रतन ने अपने धक्कों की रफ्तार और बढ़ा दी थी और उसका लण्ड ‘फच्च’ की आवाज़ करता हुआ.. शोभा की पनियाई हुई चूत में अन्दर-बाहर होने लगा।

रतन ने अब रज्जो का निचला होंठ अपने होंठों में भर कर चूसना शुरू कर दिया और साथ ही उसने अपनी दोनों बाँहों को उसकी कमर में कसकर अपने से सटा रखा था।

नीचे लेटी शोभा को रतन ने आँखों से कुछ इशारा किया और शोभा ने पीछे से रज्जो का लहंगा उठा कर उसकी गाण्ड को अपने हाथों में भरते हुए मसलना शुरू कर दिया।

रज्जो एकदम से चौंक उठी.. पर रतन ने उसे अपनी बाँहों में ज़ोर से कस रखा था.. जिससे वो चाह कर भी हिल नहीं पा रही थी।

शोभा ने रज्जो के दोनों चूतड़ों को फैला कर अपनी एक ऊँगली उसके गाण्ड के छेद पर लगा दिया।

रज्जो का पूरा बदन ऐसे काँप गया.. जैसे उसे करेंट लग गया हो.. उसका पूरा बदन कामुकता के कारण थरथरा रहा था।

शोभा ने उसकी गाण्ड के छेद को अपनी ऊँगली से धीरे-धीरे कुरदेना शुरू कर दिया।

रज्जो अब पगलाती जा रही थी और मदहोशी की आलम में डूबती हुई रज्जो ने अपने हथियार डाल दिए।

रतन ने अपना एक हाथ उसकी कमर से हटा कर उसके लहँगे के नीचे से डाल कर उसकी चूत की क्लिट को अपनी उँगलियों से मसलना शुरू कर दिया और उसने अपने होंठों को रज्जो के होंठों से अलग कर लिया।

रतन ने देखा रज्जो का चेहरा लाल हो कर दहक रहा था.. पूरा चेहरे पसीने से तर हो चुका था.. होंठ काँप रहे थे और वो तेज़ी से साँसें ले रही थी।

उधर नीचे.. रतन के धक्कों की रफ़्तार पूरी तेज़ी पर थी.. रतन के हर धक्के के साथ रज्जो और शोभा दोनों का बदन बुरी तरह से हिल रहा था।

शोभा- आह्ह.. रतन चोद मुझे.. दिखा दे इस छिनाअलल्ल्ल को.. तू.. मुझे कितना प्यार करता है.. ओह मेरी चूत आह्ह.. रतन।

उधर रज्जो का भी बुरा हाल था.. पीछे से शोभा काकी उसके गाण्ड के छेद को कुरेद रही थी और आगे से रतन उसकी चूत को मसल रहा था।

“आह्ह.. आहह.. माआआ.. मुझे कुछ हो रहा है ओह्ह..”

रज्जो सिसकते हुए बोल उठी।

उधर शोभा की जांघें भी आपस में सटने लगीं.. उसकी चूत ने रतन के लण्ड पर कसाव और बढ़ा दिया था और वो काँपते हुए झड़ने लगी। “आह्ह.. रतनऊऊ.. निकल गया.. रे..ओह्ह.. मेरे..ए..ए चूततत.. भोसड़ीईईई हो गई रे..ए.. ओह रतन.. ऊऊउउह..”

रतन ने अब पूरी ताक़त के साथ शोभा को चोदना शुरू कर दिया और रज्जो को घूरते हुए शोभा की चूत में पानी छोड़ने लगा।

इधर रज्जो की चूत में जमा पानी भी पिघल कर बाहर आने लगा..।

रज्जो तो मानो जैसे किसी और ही दुनिया में पहुँच गई हो। उसका बदन रह-रह कर झटके खाने लगा और उसकी चूत से तो जैसे पानी का सैलाब बह निकाला।

रज्जो का पूरा बदन झड़ने के कारण थरथर काँप रहा था.. उसकी कमर रह-रह कर झटके खा रही थी। वो आँखें बंद किए हुए.. अपनी सांसों को सामान्य करने के कोशिश कर रही थी।

शोभा की चूत रतन के लण्ड से निकले पानी से पूरी तरह भर चुकी थी.. रतन का लण्ड जैसे ही.. सिकुड़ कर शोभा की चूत से बाहर आया.. रतन शोभा की जाँघों के बीच से हट कर उसके साथ लेट गया।

रज्जो अभी भी शोभा की कमर के दोनों तरफ पैर करे ऊपर बैठी हुई थी।

ये देख कर शोभा ने पीछे से उसका लहंगा उठा कर.. अपनी एक ऊँगली उसकी चूत की फांकों में फिरा दी।

रज्जो का बदन एक बार फिर से काँप गया। उसने पीछे मुड़ कर शोभा की तरफ देखा.. तो रतन और शोभा दोनों साथ लेटे हुए उसकी तरफ देख रहे थे।

रज्जो अपनी इस हालत पर बुरी तरह शर्मा गई और वो उठ कर जैसे ही खड़ी हुई.. रतन ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच कर उसको अपनी दूसरी तरफ लिटा लिया।

रतन आज अपनी किस्मत पर बड़ा इतरा रहा था और सच में ऐसे बहुत कम लोग होते हैं.. जो दो गठीले बदन वाली औरतों के बीच में सोते हों।

रज्जो अभी भी अपनी उखड़ी हुई सांसों को दुरुस्त करने की कोशिश कर रही थी।

अगली सुबह..

दूसरी तरफ सीमा के घर पर पिछली रात दीपा पर बहुत भरी गुज़री। क्यों कि रात को सीमा उसके साथ सोई थी.. सारी रात उसने अपनी और राजू की पहली चुदाई के बारे में सोचते हुए करवटें लेकर निकाली थी और सुबह उसका मूड थोड़ा अपसैट लग रहा था।

राजू को दीपा के चेहरे से अंदाज़ा हो गया था कि दीपा कल रात से उसे याद कर रही है और सुबह-सुबह ही सेठ गेंदामल दीपा और राजू को लेने के लिए सीमा के मायके पहुँच गया था।
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#60
कहानी को आगे बढ़ाओ दोस्त। इतना इंतजार क्यों करवाते हो यार।।
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