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Adultery नेहा का परिवार : लेखिका सीमा Completed!
#41
Update 37


"अब्बू चोदिये अपनी बेटी को ," मैं मस्ती के आलम में जल रही थी। 

अब्बू का दिल भी अब मेरी चूत की धज्जियाँ उड़ा देने वाली चुदाई का था। उन्होंने अपना लन्ड मेरी चूत पूरी रफ़्तार से अंदर बाहर 

करने लगे। मैं मज़े और दर्द के मिले जुले आलम में डूबने लगी। अब्बू का लन्ड अब फच फच की आवाज़ें निकलता मेरी चूत की तौबा 

बुला रहा था। 

" उन्न्नन्न अब्बू ऊ ऊ ऊ ऊ आनननगगगग मममममम," मेरी सिसकियाँ रुकने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं। 

अब्बू ने हचक हचक कर मेरी चूत मारनी शुरू कर दी। मैं थोड़े लम्हों की चुदाई से ज़ोरों से झड़ गयी। अब्बू ने मेरी पसीने से भीगी 

चूचियों को मसलते हुए मेरी चूत में अपना लन्ड रेल-इंजन के पिस्टन जैसे पेलने लगे थे। मेरी सिसकारियां और हलकी हलकीमज़े में 

डूबीं चीखें कमरे में गूँज उठीं। 

अब्बू का लन्ड मूसल की तरह मेरी चूत कूट रहा था। मेरी चूत फड़क फड़क कर अब्बू का बोतल जैसे मोटे लन्ड को कसने की 

नाकामयाब कोशिश करने लगी। पर अब्बू का लन्ड अब अपनी बेटी की चूत की तौबा बुलवाने के कामना से और भी मोटा लंबा लग 

रहा था। लेकिन अल्लाह गवाह है इस दिन का मेरी चूत ने छह साल से इन्तिज़ार किया था। इस लम्हे की मस्ती से मैं गहरे पानी के 

भंवर में डूबने लगी। 

अब्बू ने मेरी भारी जांघों को मोड़ अर मेरे घुटने मेरे सर के ऊपर तक पहुँच कर अब और भी ताकतवर धक्कों से मेरी चूत मारने लगे। 

मेरी चूत में से अब्बू के हर धक्के से फचक फचक के आवाज़ उठ रही थी। मैं अब लगातार एक लड़ी की तरह झड़ रही थी।

अब्बू ने ना जाने कितनी देर तक मेरी चूत मारी मैं तो झड़ झड़ के इतनी थक गयी की मेरी ऊंची सिसकारियां भी अब फुसफुसाहट बन 

गयी थीं। 

जब अब्बू का लन्ड मेरी चूत में खुला तो मैं उनके गरम उपजाऊ वीर्य की बारिश से बिलबिला उठी। इतना मज़े का अहसास था वो। 

अब्बू का लन्ड उनके वीर्य की हर फौवारे से पहले ऐंठ सा जाता था मेरी चूत में। 

फिर हम दोनों पसीने से भीगे एक दुसरे की बाँहों में गहरी गहरी सांस लेते बिस्तर पे ढलक गए।

जब मुझे होश आया तो अब्बू का पूरा वज़न अपने ऊपर पा कर मेरा दिल प्यार से भर गया। उनका लन्ड थोड़ ढीला हो गया था पर मेरी 

चूत फिर भी इतनी फैली हुई थी उसकी मोटाई के इर्द-गिर्द। 

"नूसी बेटा , मुझे अब पेशाब लगा है ," अब्बू ने मेरी नाक की नोक को चुभलाते हुए कहा। 

" और मुझे प्यास भी लगी है ," मैंने मौका देखा कर अब्बू के लन्ड को अपनी चूत से भींचते हुए कहा। 

गुसलखाने में अब्बू ने पहले अपनी प्यास बुझायी। मेरा सरारती सुनहरी शरबत की धार की एक एक बूँद अब्बू ने प्यार से सटक ली। 

फिर मैंने अब्बू का भारी लन्ड अपने खुले मुँह के आगे लगा कर अपनी प्यासी आँखे अब्बू की प्यार भरी आँखों में अटका दीं। जैसे ही 

मेरा मुँह अब्बू के खारे पेशाब से भर गया तो उसके मज़े से ही मेरी चूत फड़कने लगी। मैंने भी दिल खोल कर अब्बू के की हर बूँद 

को चटखारे लेते पी गयी। 

अब्बू ने मुझे गोद में उठा लिया। एक दुसरे के खुशबूदार पेशाब की महक से भरे हमारे खुले मुँह ज़ोर से चुपक गए। 

कमरे में पहुँच आकर अब्बू ने मुझे बिस्तर के पास उतार दिया। 

"अब्बू , नेहा ने आपकी जादुई चटाई के बारे में बताया था क्या अपनी बेटी को नहीं मज़ा देंगें उस जादुई चटाई का ? ,"मैंने इठलाते 

हुए अब्बू से पूछा। 

"अपनी बेटी के लिए तो जान भी दे देंगें नूसी ,"अब्बू ने मेरे फड़कते हुए उरोज़ों को मसलते हुए कहा। 

अब्बू ने बड़े बड़े दानेदार चटाई को बिस्तर पे फैला दिया। मुझे समझ आने लगा कि कैसे तुझे इतना मज़ा अय्या था उस चटाई के ऊपर 

लेट कर चुदवाने में। 

"मैंने अब्बू के भारी भरकम चौड़े मांसल बालों से ढके चूतड़ों को सहलाते हुए कहा ,"अब्बू अपनी बेटी की गांड की सील कब तोड़ेंगें 

आप ?" मैंने उनके दोनों चूतड़ों को प्यार से चूमते हुए पूछा। 

"बेटा गांड मरवाने में बहुत दर्द होगा आपको ,"अब्बू ने मुझे बाँहों में भर कर दिल भर चूमा, "आदिल बेटे ने आपकी गांड कैसे अकेली 

छोड़ दी अब तक ?" 

"दर्द हो या ना हो अब्बू गांड की सील तो बस आप ही तोड़ेंगें। आदिल ने मेरी गांड आपके लिए ही कुंवारी छोड़ी है ," मेरी बात सुन के 

अब्बू की आँखे खिल उठी। 

"यदि आपका बहुत दिल है तो ज़रूर गांड मारेंगें आपकी। बहुत ध्यान से मारेंगें नूसी जिस से आपको काम से काम दर्द हो ,"अब्बू ने 

मुझे चटाई पे पेट के बल लिटा दिया। 

मैंने अपना मुँह बायीं ओर मोड़ कर बेसब्री से छोटी बच्ची की तरह ज़िद करते हुए कहा ,"अब्बू आपको हमारी कसम है जो हमारी गांड 

को धीरे धीरे चोदा आपने। हमें पता है कि यदि लड़की की चीखें ना निकलें, और उसकी आँखें बरसात की तरह न बरसें तो मर्द को 

गांड मारने का मज़ा नहीं आता। आप हमारी गांड उसी तरह बेदर्दी से मारें जैसे आपने शन्नो मौसी की कुंवारी गांड मारी थी अम्मी की 

मदद से।"

अब्बू की मुस्कान और चेहरे पे फैली चमक से मुझे बता दिया कि मेरे अब्बू को अपनी बेटी के दिल की चाहत का पूरा इल्म हो चला 

था।
अब्बू कुछ और कहे बिना मेरे पट्ट बदन के ऊपर अपने पूरे वज़न से लेट गए। उनके भारी बदन से दब कर मेरे दोनों उरोज़ 

और सारा बदन चटाई के मोटे मोटे दानों के ऊपर कुचल गए। 

अब्बू को अब कुछ और कहने की ज़रुरत भी नहीं थी। उन्होंने मेरी गुदाज़ भारी भरकम जांघों को को फैला कर पीछे से मेरे 

कसी तंग चूत में अपना लन्ड ठूसने लगे। उस तरह लेते हुए मेरी चूत तंग हो गयी थी। अब्बू का घोड़े जैसा लन्ड अब और 

भी मोटा महसूस हो रहा था। 

अब्बू ने मेरे वासना से जलते लाल मुंह को चूमते हुए मेरी चूत लंबे धक्कों से मारते हुए मेरे कान के पास फुसफुसाए ,"नूसी 

बेटा जब हम आपकी गांड मारेंगें तो जितना दर्द भी हो आपको हम धीमे नहीं होंगें। "

मैं अब्बू के लन्ड के जादू से वैसे ही बेचैन हो चली थी और अब उनके आने वाले लम्हों के हुलिए से मेरी चूत में रस की बाढ़ 

बह चली। 

अब्बू ने मेरी चूत में एक और धक्का मारा और मस्ती और दर्द से मेरी हलकी सी चीख का मज़ा लेते हुए मेरे फड़कते 

नथुनों को चूमने चूसने लगे। 

"नूसी बेटा जब आपके अब्बू का लन्ड अपनी बेटी की गांड मारते हुए आपकी गांड के रस से लिस जाएगा तो कौन उसका 

स्वाद चखेगा ?"अब्बू ने मुझे और भी वासना के मज़े से चिढ़ाया। 

मैं अब झड़ने वाली थी , "अब्बू मुझे झाड़िए अब। आपकी बेटी अपने अब्बू का लन्ड चूस कर साफ़ कर देगी अपनी गांड 

मरवाने के बाद। "मैं मस्ती के आलम से जलती हुई बदमस्त हो गयी थी। 

अब्बू चूत को और भी ज़ोर से चोदने लगे। उनके हर धक्के से मेरे उरोज़ , मेरी चूत का मोटा लंबा सूजा दाना चटाई के 

दानों से मसल उठता। मेरे सारे बदन पे उन दानों की रगड़ अब्बू की चुदाई के मज़े में और भी इज़ाफ़ा कर रही थी। 

मैं कुछ लम्हों की चुदाई से भरभरा कर झाड़ उठी। अब्बू ने बिना रुके आधा घंटे और मेरी चूत मारी। मैं चार पांच बार झाड़ 

गयी थी। अब्बू ने अपना लन्ड मेरी चूत में से बाहर निकाल लिया। अब आ गया था वो लम्हा जिसका मुझे छह साल से 

इन्तिज़ार था। 

अब्बू ने मेरे मांसल भारी नितम्बों को अपने फावड़े जैसे बड़े हाथों से मसलते हुए उन्हें दूर तक फैला दिया। उनके सामने अब 

मेरी गांड का नन्हा छल्ला आने वाली गांड - चुदाई के मज़े और दर्द के सोच से फड़क रहा होगा। अब्बू ने झुक कर मेरी 

गांड के ऊपर अपने मीठे थूक की लार टपका दी। अब्बू का लन्ड मेरी चूत के रस से लिसा बिलकुल गीला था। 

अब्बू ने अपना मोटे सेब जैसा सूपड़ा मेरी गांड के छले पे टिकाया और बिना कोई इशारा दिए एक गांड-फाड़ू धक्का मारा। 

मैं दर्द से बिलबिलाते हुए चीख उठी। 

अब्बू का पूरा सूपड़ा एक धक्के में ही मेरी गांड में धंस गया था। मुझे लगा जैसे मेरी कुंवारी गांड में जैसे किसीने गरम मोटी 

सलाख ठूंस दी हो।

मेरी आँखे आंसुओं से भर गयीं। अब्बू अपना वायदा पूरी तरह से निभाने वाले थे। मेरी गांड की अब खैर नहीं थी। मैंने 

अपनी गांड को अल्लाह और अब्बू के भरोसे छोड़ दिया। और बस अब्बू के लन्ड को अपनी गांड में जड़ तक लेने के लिए 

बिलबिलाने लगी। चाहे जितना भी दर्द हो। मुझे अब अपनी गांड फटने का भी डर नहीं था। यदि खून भी निकले फटने से तो 

कुछ दिनों में ही दुरुस्त हो जाएगी। पर उस रात अब्बू के लन्ड से पहली बार गांड मरवाने का जन्नत जैसा मज़ा बार बार तो 

नहीं मिलने वाला था। 

अब्बू ने बिना मेरे सुबकने बिलबिलाने की परवाह किये अपने वायदे को निभाते हुए अपना पूरा वज़न ढीला छोड़ कर मेरे

बदन के ऊपर गिर पड़े। उनके भारी वज़न से ही उनका लन्ड तीन चार इंच और मेरी बिलखती गांड में ठूंस गया। मैं अब दर्द 

से बिलबिला रही थी। मेरी आँखें गंगा जमुना की तरह बह रहीं थीं। मैं जितना भी कोशिश करती पर मेरे सुड़कने के बावज़ूद 

मेरे आंसू मेरे नथुनों में बह चले। 

अब्बू ने मेरे हाथों की उँगलियों में अपनी उँगलियाँ फंस ली और मेरे हांथो को पूरा फैला कर अपने लन्ड की कई और इंचोन 

को मेरी कुंवारी गांड में ठूंसने लगे। 

मेरा सुबकना बिलबिलाना मेरे मज़े के दरवाज़े पे खटखटाहट दे रहा था। अब्बू के पहलवानी भरी बदन और चूतड़ों की 

ताकत के कमाल से उनके हर धक्के से उनके घोड़े जैस लन्ड की कुछ और इन्चें मेरी गांड में सरक रहीं थी। 

जब मैंने अब्बू की घुँघराली खुरदुरी झांटों की खुरच को अपने चिकने गुदगुदे नितम्बों पे महसूस किया तो मैं समझ गयी कि 

अब्बू ने किला फतह कर लिया था। उनका टेलीफोन के खम्बे जैसा मोटा लंबा लन्ड मेरी कुंवारी गांड में जड़ तक धंस गया 

था। 

मैं दर्द से बिलबिलाती हुई रो तो रही थी पर मेरे अंदर फिर भी एक अजीब से पथभ्रष्ट चाहत थी की अब्बू मेरी गांड खूब 

ज़ोर से मारें और मुझे दर्द से बेहोश कर दें। वासना में जलते हुए ना जाने मेरे दिमाग़ में कैसे कैसे ख्याल आने लगे थे। मैं 

बस अब्बू के लिए उस रात को यादगार बनाना चाह रही थी।

अब्बू ने अपना पूरा लन्ड बाहर निकाल कर दो धक्कों में फॉर से मेरी जलती गांड में ठूंस दिया। मैं सुबकते हुए चीख उठी। पर 

अब्बू ने बिना हिचके जैसे मैंने उनसे वायदा लिया था वैसे ही हचक हचक मेरी गांड को कूटने लगे। 

ना जाने कितनी देर तक मैं दर्द से बिलबिलाती रोती सुबकती रही पर एकाएक मेरी गांड में से एक मज़े की लहर उठ चली। 

अब्बू ने भी उसे महसूस कर लिया। उन्होंने मेरे आंसुओं और बहती नाक से सने मुँह को अपनी ओर मोड़कर उसे अपनी लंबी खुरदुरी 

जीभ से चूसने चाटने लगे। उन्होंने मेरे फड़कती नाक के दोनों नथुनों को भी अपनी जीभ से कुरेद कुरेद कर मुझे मस्ती के आलम में 

और भी गहरे डूबा दिया। 

"हाय अल्लाह ! अब्बू ना जाने कैसे अब मेरी गांड में से मज़ा उठने लगा है ," मैं वासना के बदहोशी में बुदबुदायी। 

"नूसी बेटा इसमें अल्लाह नहीं अब्बू के लन्ड का हाथ है ," अब्बू ने अपने दांतों से मेरे कानों के लोलकियों को चुभलाते हुए कहा। 

"अब्बू ………… ऊ…………. ऊ …………….ऊ ……………….. ओऊ ………….फिर मारिये ना मेरी गांड 

………….ऊन्नह्ह्ह्ह्ह………….. ," मैं बिलख उठी आने वाली मस्ती की चाहत से। 

अब्बू अब दनदना कर मेरी गांड मारने लगे। मेरी चूचियां चटाई की रगड़ से दर्दीले मज़े से कुचली हुईं थीं। मेरा दाना अब्बू के हर 

धक्के से चटाई के दानों से रगड़ कर मचल उठता था। 

मेरा सारा बदन ना जाने कितने मज़े के असर से जल रहा था। 

अब्बू ने तब तक मेरी गांड की चुदाई की जो तेज़ कड़कड़ी बनाई वो घण्टे तक नहीं ढीली हुई। मैं तब तक ना जाने कितनी बार 

झाड़ गयी थी। आखिर मैं चीख मार कर बेहोश हो गयी। 

जब मुझे होश आया तो अब्बू मेरे बदन के ऊपर वैसे ही लेते हुए थे। उनके तन्नाया हुआ लन्ड उसी तरह मेरी गांड में धंसा हुआ था। 

"नूसी अब आपकी गांड मुझे आपका खूबसूरत चेहरा देखते हुए मारनी है ," अब्बी ने मेरी नाक को चूसते हुए कहा। 

"अब्बू आपकी बेटी की गांड और चूत तो अब आदिल के साथ साथ आपकी भी है। जैसे मर्ज़ी हो वैसे ही मारिये आप ," मैंने प्यार 

से कहा। 

अब्बू ने अपना लन्ड एक झटके से मेरी तड़पती गांड से निकल तो मैं दर्द से चीखे बिना नहीं रह सकी। 

उनका लन्ड मेरी गांड के रास से पूरा लिसा हुआ था। तुरंत घुटनों के ऊपर झुक कर इठला कर बोली , "देखिये ना अब्बू ना जाने 

किस रंडी लड़की ने मेरे अब्बू का लन्ड गन्दा कर दिया है ?"

"यह गन्दा नहीं बेटा जन्नत के ख़ज़ाने से लिसा हुआ है ,"अब्बू ने मेरे घुंघराले बालों को सहलाते हुए कहा। 

" चलिये जो भी हो मैं ही साफ़ कर देतीं हूँ अपने प्यारे अब्बू के प्यारे लन्ड को ," मैं अब्बू के प्यार भरे इज़हार से ख़ुशी से दमक 

उठी।

मैंने अब्बू के फड़कते हर लन्ड को चूस चूम कर उसकी हर इंच को बिलकुल साफ़ कर दिया। अब उनका लन्ड मेरे थूक से 

लिस कर चमक रहा था। 

अब्बू ने थोड़े बेसबरेपन से मुझे चित्त लिटा कर मेरी भारी जांघों को पूरे मेरे कन्धों की ओर मोड़ कर मेरी गांड बिस्तर से ऊपर 

उठा दी। फिर बिना देर किये मेरी अभी भी खुली गांड के छेद में अपने लन्ड का मोटा सुपाड़ा जल्दी से फंसा दिया। मैं जब 

तक कुछ समझ सकती अब्बू ने एक बार फिर प्यार भरी बेदर्दी से अपना सारा का सारा हाथी का लन्ड मेरी गांड में दो तीन 

धक्को से ठूंस दिया। 

मैं अब उतने दर्द से नहीं चीखी जैसे पहली बार चीखी थी। अब्बू ने मेरी जांघों को अपनी बाँहों पे डाल कर अपने हाथों से मेरे 

पसीने से लतपथ उरोज़ों को कस कर अपने बड़े मज़बूत हाथों से मसलते हुए मेरी गांड की तौबा बुलवाने लगे। उनका लन्ड 

एक बार फिर से मेरी गांड के रस लिस कर चिकना हो गया। मेरी गांड के मक्खन की चिकनाहट से अब्बू का लन्ड अब फिर 

से सटासट मेरी गांड में इंजन के पिस्टन की राफ्टर और ताकत से अंदर बाहर आ जा रहा था। मैं अब वासना से सुबक रही

थी दर्द न जाने कहाँ चला गया। 

अब्बू जब गांड -चुदाई की ताल तोड़ दांत किसकिसा कर कई बार एक ही धक्के से मेरी गांड में अपना पूरा लन्ड उतार देते 

तो मेरी सिसकारियां कमरे में गूँज उठती।

"अब्बू ऊ ……. ऊ …….. ऊ ……… ऊ ………..ऊ ………..ऊवनन्ननन …………. उंन्नन्नन्न ," मैं सिसकते हुए बुदबुदाई। 

मेरे झड़ने की लड़ी एक बार फिर से लंबी पहाड़ी जैसी ऊंची हो चली। 

मैं अब अब्बू के महालण्ड से अपनी गांड के लतमर्दन के आगे घुटने टिक कर बस अपनी मज़े में लोट पोट होने लगी। 

अब्बू का लन्ड अब फचक फचक की आवाज़ें निकलता मेरी गांड को कूट रहा था। 

अब्बू के गले से कभी कभी 'उन्ह उन्ह ' की आवाज़ें उबाल पड़तीं। अब्बू अब और भी कोशिश कर रहे थे अपने धक्कों में और 

भी ताकत लगाने की। मेरी गांड की तो पहले से ही शामत आ चुकी थी। 

पर उस शामत मेरी गांड और चूत में वासना का तूफ़ान उठ रहा था। मेरी चूत कसमसा कर बार बार झड़ रही थी। मैं अब 

सिसकने के सिवाय कुछ भी बोलने ने नाकामयाब थी। मेरी मस्ती अब्बू के लन्ड से उपजी वासना की आग से और भी परवान 

चढ़ रही थी। 

अब्बू ने उसी ताकत और रफ़्तार से मेरी गांड की चुदाई ज़ारी रक्खी जब तक मैं इतनी बार झाड़ चुचोद की थी की मेरे होश 

हवास उड़ गए। 

अब्बू ने मेरी हालात पर तरस खा कर अपनी चुदाई की रफ़्तार बड़ाई। इस बार अब्बू सिर्फ अपने मज़े के लिए मेरी गांड रहे 

थे। 

जब अब्बू का लन्ड मेरी गांड की गहराइयों में अपने गरम उपजाऊ वीर्य की बारिश करने लगा तो मैं एक बार इतनी ज़ोर से 

झड़ गयी कि पूरी तरह गाफिल हो चली।

जब मैं थोड़े होशोहवास में वापस आयी तो अब्बू प्यार से मुझे चूम रहे थे। मैंने भी अपनी बाँहों को अब्बू के गले का हार बना 

दिया और उनके खुले मुँह में अपनी जीभ घुस कर उनके मीठे थूक का स्वाद चखने लगी। 

"अब्बू मेरी गांड का हलवा आपने पूरा मैथ दिया है। मुझे अब बाथरूम जाना है ,"मैं बेशर्मी से अब्बू को चिड़ा रही थी। 

"बेटा बाथरूम तो मुझे भी जाना है ," अब्बू मुझे गुड़िया की बाँहों में उठा कर खड़े हो गए। उनका लन्ड अभी भी मेरी गांड में 

ठुसा हुआ था। 

बाथरूम में जाते ही अब्बू ने कहा ,"नूसी बेटा अपनी गांड कस लो। पहली गांड की चुदाई का मीठा रस तो मैं नहीं छोड़ने

वाला। " अब्बू की चाहत से मुझे और भी मस्ती चढ़ गयी। अब्बू मेरी गांड की कुटाई के बाद अपना वीर्य मेरी गांड से पीना 

चाह रहे थे। 

"अब्बू पता नहीं और क्या क्या निकल जाये मेरी गांड में से ," मैंने हिचकते हुए कहा। 

"नूसी बेटा आपकी गांड में से जो निकले वो मेरे लिए नैमत जैसे होगा ,"अब्बू ने अपना लन्ड निकल और मैंने गांड कस ली। 

मैंने अपनी गांड के छेद को धीरे धीरे खोल और मेरी गांड जो अब्बू के वीर्य से लबालब भरी थी ढीली होने लगी। 

अब्बू ने बिना हिचक सब कुछ सटक गए।

फिर अब्बू ने मेरा सुनहरी शरबत पिया। अब मेरी बारी थी अब्बू के लन्ड को चूस चाट कर साफ़ करने की। 

जब मैंने अपनी गांड के रस और अब्बू के वीर्य से लिसे उनके लन्ड को बिलकुल साफ़ कर दिया तो मैंने उनके खारे सुनहरी 

शरबत की सौगात मांगी। 

बिना एक बून्द जाय किया मैंने अब्बू सारा शरबत गटागट पी गयी। 

"अब्बू मेरी गांड का रस मुझे भी बुरा नहीं लगा ,"मैंने अब्बू के मूँह को चूमते हुए कहा। 

"बुरा! नूसी बेटा मुझे तो किसिस मिठाई से भी ज़्यादा मीठा लगा इसीसलिए मुझे और भी चाहिए ,"अब्बू ने प्यार से मुझे 

चूमा । 

"तो फिर अब्बू आपको मेरी गांड फिर से मारनी पड़ेगी ," मैंने बेटी के प्यार से इठलाते हुए कहा। 

अब्बू ने जवाब में मुझसे जो माँगा तो मैं हैरत से भौचक्की रह गयी। पर अब्बू की आवाज़ में इतनी चाहत थी की मैं भी उनकी 

विकृत वासना की आग में जल उठी। 

अब्बू और मैंने जो किया वो मुझे बिलकुल बुरा नहीं लगा। उस से मैं और अब्बू और भी करीब आ गए एक मर्द और औरत की 

तरह ही नहीं पर अब्बू और बेटी की तरह भी। 

कमरे में वापस आ कर अब्बू ने रात देर तक मेरी चूत और गांड को इतनी बार चोदा की मैं तो गिनती ही भूल गयी। जब मैं 

एक बार फिर से बेहोश हो गयी तभी अब्बू ने मुझे छोड़ा।


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#42
Update 38

वापस मौजूदा वक़्त में 

नसीम आपा की अब्बू के साथ बितायी रात का ब्योरा सुन कर शानू और मैं बिलकुल गरम हो गए। हम दोनों ने नसीम आपा को दबा लिया 

और बारी बारी उनकी चूत और गांड को चाट चूस कर उनकी हालात और भी बिगाड़ दी। फिर हम तीनों नहाने के बाद दोपहर के खाने के 

बाद बाहर चल पड़े। बुआ जान की कार कड़ी देख आकर मुझे अपने आगे की योजना का ख्याल आया। मैंने नसीम आपा को समझाया। 

हम दोनों ने बड़ी मुश्किल से शानू को उसके कमरे में भेजा और बुआ के बंगले की और चल दिए। 

नूसी आपा और मैंने सिर्फ एक ढीला ढाला काफ्तान पहना हुआ था। शबनम बुआ ज़रूर रात में देर से वापस आयी होंगीं। 

उनके घर की बावरचन बाहर ही मिल गयी। पूछने पर बोली , "मालकिन सुबह वापस आयीं हैं। थकी हुईं थी सो तुरंत सोने चलीं गयीं। 

अभी भी अपने बैडरूम में हैं। "

यह तो और भी अच्छा था। नूसी और मैंने एक दुसरे को बिना बोले शाबासी दी और शब्बो बुआ के कमरे की ओर तेज़ी से चल पड़े। 

शब्बो बुआ पूर्णतया नग्न बिस्तर अपनी बाहें फैला कर सो रहीं थीं। शब्बो बुआ का स्त्रीत्व नैसर्गिक सौंदर्य से नूसी आपा और मैं इतनी 

प्रभावित हो गयीं कि दोनों हतप्रभ हो उनके हुस्न के नज़ारे को अपनी सोखने लगीं। 

शब्बो खाला अकबर चाचू से तीन साल छोटीं थीं। पर उनकी शादी उनसे पाँच बड़े ममेरे भाई से सिर्फ सोलह साक ई उम्र में हो गयी थी। 

शब्बो बुआ और उनके ममेरे भाई के बीच में प्यार का बीज बुआ की कमसिन उम्र में हो चला था। 

बुआ का गुदाज़ सुडौल बदन तब तक और भी भर गया था। बेटे के जन्म के बाद उनका बदन भरता चला गया था। 

शब्बो बुआ का साढ़े पांच फुट से थोड़ा , शायद एक इंच , कम ऊंचा शरीर। उनके चेहरे की सुंदरता और फिर उनकी नैसर्गिक सुंदर 

नासिका बस उतने से ही कई लोग उन्हें घूरते रह जातें है। फिर उनकी गोल गदरायी भारी बाहें। उनकी काँखों में घने घुंगराले बाल। नूसी 

आपा उन सुंदर बगलों से कभी भी जीत नहीं सकती थीं। 

उनका सीना ज़रूर गोल और भरा-पूरा ४४ इंच था। और उसके ऊपर उनकी स्थूल भारी गुदाज़ मुलायम भारी भरकम उनके स्तन एच एच 

जैसे थे। उनकी दो तह वाली उभरी कमर अड़तीस-चालीस [३८-४०] के लगभग थी। पर उसके नीचे थे उनके तूफानी चूतड़। दोनों ओर फैले 

पीछे और बगल में , लगभग पचास इंच के तो होंगे। फिर उनकी बगलों में घुंगराले घने बाल, बहुत गहरी नाभि , भारी केले के तने जैसी 

जांघें और उनके बीच घुंघराली झांटों का झुरमुट जो उनकी रंगों के ऊपर और निचले पेट की शोभा भी बड़ा रहा था।

शब्बो बुआ का बदन बिलकुल शास्त्रीय या क्लासिक रेतघड़ी [ हावरग्लास ] की तरह था।

उनका लगभग अस्सी किलो का वज़न उनके स्त्रीत्व के हर अंग को और भी सुंदर बना रहा था। उनका विपुल गदल शरीर और अविश्वसनीय 

सुंदर गोल भरा-भरा चेहरा किसी देवता के संयम को चुनौती दे सकता था। 

जैसे किसी माँ को बिना आँख खोले अपने बच्चों की मौजूदगी का अभ्यास हो जाता है उसी तरह शब्बो आपा को नूसी आपा और मेरी 

मौजूदगी का अभ्यास हो गया और उनकी लंबी पलकें खुल गयीं। 

"अरे लड़कियों इतनी दूर क्यों कड़ी हो। चलो कूद जाओं बिस्तर में अपनी खाला की बाँहों में ," शब्बो बुआ नम्रता चाची की तरह खुले 

व्यवहार और स्पष्ट विचारों की मालिक थीं। ठीक नम्रता चची की तरह बिंदास और समाज के पाखंड और ढोंग से अछूती। 

"और पहले यह सब काफ्तान उतारो। खाला के बिस्तर में खाला के जैसे बन कर आओ ,"जैसा मैंने अभी बताया शब्बो बुआ बिल्कुल खुली 

निष्कपट और स्पष्टवादी थीं। 

नूसी आपा और मैंने जल्दी से अपने काफ्तान उतार फैंके और बुआ की खुली बाहों में कूद कर लेट गयीं। 

बुआ ने हम दोनों को बारी बारी प्यार से कई बार चूमा , "चलो अब पूरा ब्यौरा दो कि मेरे पीछे क्या गुल खिलाये तुम दोनों ने?"

नूसी आपा जल्दी से हंस कर बोलीं,"लंबी कहानी है खाला। "

"लंबी है तो क्या हुआ। हम तीनो की कोई फ्लाइट तो निकल नहीं जाने वाली !"शब्बो आपा ने नूसी आपा के खुले हँसते गुलाबी होंठों को 

गहरे चुम्बन से ढक दिया।

नूसी आपा ने मुस्कुराते हुए की घर के रिश्तों की तरक्की की कहानी बतायी ,"शब्बो खाला,पहले तो नेहा ने अपनी भैया और जीजू से खूब चुदवाया। 

और यह मेरे पीठ के पीछे हुआ। "

मैंने कुछ कहने के बारे में सोचा पर शब्बो बुआ ने मुझे चूम कर चुप कर दिया। 

नूसी आपा ने आगे बात बढ़ायी , "और अब आपकी छोटी भांजी ने भी अपना कुंवारापन का तोहफा जीजू को दे दिया है। दोनों रंडियों ने दो दिन खूब 

चुदवाया अपने जीजू से। "

"अरे नूसी मैं तो सोच रही थी कि कितना सब्र करेगा मेरा आदिल अपनी साली के सही रास्ते पे आने का। चलो नेहा ने यह तो बहुत अच्छा काम किया 

है, " शब्बो बुआ ने मेरे सख्त खड़े चुचुकों को बेदर्दी से मसलते हुए मेरो बड़ाई की। 

"खाला अभी पूरी बात मैंने कहाँ बतायी है। नेहा ने एक और अच्छा काम किया है। उसने सुशी खाला के कहने पे अब्बू का बिस्तर भी गरम किया है। मैं 

तो अब नेहा और भी प्यार करतीं हूँ मेरे अब्बू का खाया रखने के लिए ,"नूसी आपा धीरे धीरे असली बात पे आ रहीं थी और मुझे जल्दीऔर बेसब्री से 

खुजली होने लगी। 

"नूसी आपा आप कछुए की चाल से बात बता रही हैं ," मैंने नूसी आपा से गेंद छीन ली , "शब्बो बुआ , नूसी आपा और अकबर चाचू का भी मिलान 

हो गया है। कल रात चाचू रात नूसी आपा को दिल भर कर कूटा है। "

शब्बो आपा धक् रह गयीं ," नूसी बेटा यह तो बहुत अच्छा हुआ। मेरा दिल अकबर भाईजान के अकेलेपन से दर्द स भरा हुआ था। पर अब मैं उनके 

लिए बहुत खुश हूँ। लेकिन नूसी यह बता की मेरे आदिल का लन्ड भाईजान के मुकाबले कैसा है ? उतना ही लंबा मोटा है या अलग है?"

"हाय अल्लाह क्या बताऊँ खालाजान दोनों का लन्ड जैसे एक दुसरे के जैसे हैं। जैसे एक ही सांचे में ढलें हों। बस अब्बू के लन्ड पे मोटी मोटी नसें हैं 

और उनके लन्ड का रंग थोड़ा गाड़ा है । पर आदिल का लन्ड बिलकुल चिकन और थोड़ा ज़्यादा गोरा है ,"नूसी आपा की आवाज़ में अपने खाविंद 

और अब्बू के घोड़े जैसे लण्डों के ऊपर फख्र साफ़ साफ़ ज़ाहिर हो रहा था। 

पर मुझे अचानक जैसे बिजली की कौंध जैसा ख्याल आया , "पहले आप यह बताइये शब्बो बुआ आपको कैसे पता की अकबर चाचू के लन्ड के 

बारे में। आपने कब देखा चाचू का लन्ड। सच बताइये बुआ ,"मैंने अब शब्बो बुआ के दोनों चुचुकों को बेदर्दी से मसल दिया।

"नेहा ठीक कह रही है। मैं तो अब्बू और आदिल के लन्ड ख्याल से बिलकुल गाफिल हो गयी थी। आपने कब देखा अब्बू का लन्ड बुआ। आपको अब्बू 

की कसम हकीकत ब्यान कीजिये बिना कुछ छोड़े," नूसी आपा की ट्यूब लाइट देर से जली पर जब जली तो चमचमा के। 

"अरे तुम दोनों प्यारी रंडियां मेरे बेटे और भाईजान से दिल खोल के चुदवा के अब कैसे वकीलों की तरह जिरह कर रहीं हैं ? "बुआ ने नूसी और मेरे 

स्तनों को ज़ोर से मसला और हँसते हुए कहा , "ठीक है। जैसे तुम दोनों ने सच सच बताया तो मुझे भी हकीकत बयान करनी पड़ेगी। "

"तुम दोनों को पता है कि मेरा निकाह जब की थी तो मेरे ममेरे भाई मुज्जफर से हो गया था। हम दोनों पहले महीने से ही बच्चे की तमन्ना से दिन 

रात मुझे पेट से करने की पूरी कोशिश करने लगे थे। जब तीन साल बाद अकबर भैया का निकाह की होने वाली थी। मैं और रज्जो भाभी पहले दिन 

से ही बहनों की तरह करीब आ गयीं थीं। और रज्जो भाभी खूब खुल कर पानी और भाईजान की चुदाई का खुला खुला ब्योरा देतीं थीं। मेरे खाविंद 

का लन्ड खूब मोटा और तगड़ा था करीब आठ इंच का पर रज्जो भाभी के प्यारे से मुझे पता चला की अकबर भाईजान का लन्ड तो छगोड जैसा लंबा 

और मोटा है। दो महीनों के बाद नूसी के नानाजान घोड़े से गिर गए थे और उनकी टांग टूट गयी थी। भाभी को अपने घर जाना पड़ा। अकबर भाईजान 

रज्जो भाभी को रात दिन चोदने आदत वो रज्जो के बिना भूखे सांड की तरह पागल थे। उन्होंने शाम होते ही खूब शराब पीनी शुरू कर दी। मुझसे 

यह देखा नहीं गया और मैंने रज्जो भाभी को फोन किया और भाईजान की हालात ब्यान की। "

बुआ ने गहरी सांस ली और फिर आगे बताने लगीं ," रज्जो भाभी ने कहा हाय अल्लाह शब्बो मैं क्या करूँ। अब्बू की टांग का आपरेशन होने वाला 

है। अब तो शब्बो तुम्हारी इमदाद से ही काम बनेगा। मैंने रज्जो भाभी से पूछा कि भाभी मैं कैसे मदद कर सकतीं हूँ। 

“ रज्जो भाभी ने मुझे समझाया देखो शब्बो मेरे नंदोई भी वतन से बहार है पिछले महीने से। भाभी ने ठीक कहा था तुम्हारे फूफा जान पिछले दो 

महीनो से यूरोप में थे। भाभी ने आगे कहा कि देखो शब्बो तुम्हारा बदन भी चुदाई के लिए जल रहा तुम्हारे भाईजान भी चुदाई के लिए पागल हैं। देखो 

शर्म लिहाज़ को ठोकर मारो और मेरे कपडे पहन कर कब अकबर तोड़े नशे में हो तब उनके पास चली जाना। कमरे की बिजली धीमी कर देना और 

देखना कितनी आसानी से अकबर तुम्हें मुझे समझ लेंगें। मैं थोड़ी देर तो शर्म से घबराई पर भाईजान के प्यार की फतह ने मेरी शर्म को मेरे दिमाग से 

बाहर धकेल दिया।”

" मैंने अकबर भाईजान को मौका दिया खाने के बाद अपने कमरे में जाने का और थोड़े नशे में होने का। मैंने रज्जो भाभी 

का लेहंगा और ब्लाउज़ और सर के ऊपर रेशमी गुलुबन्द से अपना मुँह ढक लिया। मैंने ब्लाउज़ के तीन बटन खोल लये 

जिससे मेरी भारी चूचियां बाहर झांक रहीं थीं। मेरी उम्मीद थी कि भाईजान का ख्याल मेरे उरोजों पर ज़्यादा और मेरे चेहरे 

पर कम पड़ेगा। मेरा ख्याल ठीक निकला। नशे में भाईजान भूल गए थे कि भाभी अपने अब्बू के घर गयीं हुईं थी। मेरा बदन 

काफी गुदाज़ था ठीक भाभी जैसे। भाईजान ने मुझे मेरे हाथ से पकड़ कर अपनी गोद में खींच लिया। बिना एक लम्हा 

बर्बाद किये भाईजान ने मेरे ब्लाउज़ के पल्ले खींच कर एक झटके में सारे बटन तोड़ दिए। फिर मेरे फड़कते उयरोजोन को 

मसलते हुए हंसे 'जानेमन आज शर्मा क्यों रही हो'। मैं सिसक उठी जैसे ही भाईजान के मज़बूत हाथों ने मेरे दोनों चूचियों 

को बेदर्दी से मसला। “

“भाईजान भी मस्त सांड की तरह बेचैन थे। कुछ ही लम्हों के चूमने और मेरे उरोजों को मसलने के बाद ना जाने कब उन्होंने 

मेरा लहँगा ऊपर उठा कर मेरी चूत में अपना लन्ड ठूसना शुरू कर दिया। उफ़ क्या बताऊँ लड़कियों तुम्हारे फुफजाँ का

लन्ड काफी मोटा मुस्टंड था पर बजाईजान का मूसल मुझे दुगना लंबा मोटा लग रहा था। मेरे सुबकने की परवाह किये 

बिना भाईजान ने हचक हचक कर मुझे चोदने लगे। मैं कुछ देर के बाद ही सिसकने लगी और मेरे झड़ने की कड़ी बढ़ 

गयी। ना जाने कितनी देर मेरी चूत कूटने के बाद भाईजान ने मेरी चूत अपने गरम उपजाऊ वीर्य से सींच दी। पर भाईजान 

इतने मस्त थे कि उनका लन्ड बिलकुल भी ढीला नहीं हुआ। भाईजान ने मुझे पेट के बल पलट दिया और मेरे चूतड़ चौड़ा 

कर अपने लन्ड का सूपड़ा मेरी कुंवारी गांड में फ़साने लगे। मेरी तो सांस ही रुक गयी। तुम्हारे फूफा जान ने मेरी गांड 

अकेले छोड़ दी थी तब तक। पर भैया को क्या पता कि वो अपनी बीवी रज्जो की खूब चुदी गांड को नहीं अपनी छोटी बहन 

की कुंवारी गांड की तौबा बुलवाने वाले थे। मैं खूब चीखी चिल्लाई दर्द से और मेरी आँखें रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी 

पर भाईजान की सांड जैसे चुदाई से मेरी निगौड़ी गांड में मस्ती फ़ैल गयी। भी खूब सिसक सिसक कर अपनी गांड मरवाई। 

कमरे की धीमी बिजली में भाईजान ने मुझे पहचाने बिना घंटे भर मेरी गांड कूटी और जब भाईजान मेरी गांड में वीर्य की 

बारिश कर रहे थे तो मैं मस्ती की ज़्यादती से बेहोश से हो गयी। “

जब मैं पूरे होश में आयी तो भाईजान मुझे अपनी बाँहों में भरकर बिस्तर पे लेते थे। 'शब्बो मुझे बता तो दिया होता कि 

मैं तुम्हारी रज्जो भाभी को नहीं अपनी नन्ही बहन को चोद रहा था ?'मैं भाईजान से लिपट गयी ,'भाईजान भाभी ने मुझसे 

वायदा लिया आपकी पूरी देखभाल करने के लिए तैयार थी। ऐसी चुदाई के लिए तो मैं बिना वायदे के भी तैयार हो 

जाती। भाईजान अब आप जब तक भाभी नहीं वापस आ जातीं भूल जाइये कि मैं आपकी छोटी बहन हूँ। मुझे आप रज्जो 

भाभी समझ लीजिये तब तक। '

मैं बेचैन थी भाईजान के साथ मस्त चुदाई जारी रखने के लिए। 

भाईजान बोले ,' शब्बो मैं भूल तो नहीं सकता कि तुम मेरी नन्ही बहन हो पर हाँ जब तक रज्जो या मुज्जफर वापस नहीं 

आते तब तक मैं तुम्हे रज्जो की तरह चोदने के लिए तैयार हूँ पर उसके बाद हम रुक जायेंगें। वायदा शब्बो?' मैंने भाईजान 

के साथ वायदा कर लिया। फिर जो मेरी चुदाई की सारी रात भाईजान ने मेरी तो मस्ती से हालात ख़राब हो गयी। भाईजान 

ने मेरी चूत और गांड मार मार कर मुझे इतनी बार झाड़ दिया कि मैं होशोहवास खो गयी। फिर उसके बाद भाईजान दिन में 

भी काम से घर आ जाते और मुझे किसी बहाने अपने कमरे में बुलवा कर चोदते। मैं अगले डेढ़ महीने खूब चुदी भाईजान 

से। अल्लाह ने भी मुझे अपने भाई और भाभी का ख्याल रखने का इनाम दिया। मैं जब रज्जो भाभी वापस आयीं डेढ़ महीने 

बाद में आदिल से पेट से थी। पर उसके बाद भाईजान और मेरा हमबिस्तर होना बिलकुल रुक गया। "

शब्बो बुआ की कहानी सुनते सुनते नूसी आपा और मैं इतनी गरम हो गयीं थी कि हम दोनों बिना आगाह हुए बुआ की 

चूचियां चूस मसल रहे थे। 

लेकिन मुझे अचानक बुआ की कहानी की सबसे ज़ोरदार बात समझ आ गयी। 

"शब्बो बुआ इसका मतलब है कि आदिल भैया अकबर चाचू के भांजे और दमाद नहीं बेटे भी हैं। " मैं असली बात उगल 

दी। 

नूसी आपा की आँखें चमक उठीं। 

"अरे जो भी समझो। तुम्हारे फूफा जान महीने भर से बाहर थे और तीन सालों से मेरी कोख सूखी थी। भाईजान के साथ 

एक हफ्ते के बाद ही मेरा आने वाला महीना नहीं आया।" बुआ ने थोड़ा शरमाते हुए कहा , "नूसी बेटा तुम्हे इस बात से 

कोई एतराज़ तो नहीं पैदा हो गया। "

नूसी आपा ने बुआ के होंठो को कस कर चूमा और बोलीं," शब्बो खाला तभी तो मैं और आदिल बिलकुल भाई बहन की 

तरह जुड़े हैं बचपन से। और खाला जान नेहा आज इसी प्यार भरे घराने को खुल्लमखुल्ला इकट्ठे करने का इरादा बना कर 

आयी है। "

"नेहा नूसी तुम्हारी तदबीर बाद में सुनूँगी। तुम दोनों को अपने भाईजान से चुदने और हमल से होने की कहानी सुनाते 

सुनाते मैं बहुत गरम हो चली हूँ। चलो रंडियो पहले अपनी खाला को ठंडी करो फिर बताना अपनी तदबीर ," शब्बो 

बुआ ने नूसी आपा और मुझे हुक्म दिया।

नूसी आपा ने शब्बो बुआ की दोनों हिमालय जैसे विशाल भारी ढलके उरोजों के ऊपर हमला बोल दिया और मैंने झट से 

अपना मूंह शब्बो बुआ की स्थूल गदरायी जांघों के बीच में घने घुंगराले झांटों से ढके यौनिद्धार के ऊपर दबा दिया। 

"अरे नूसी बेटा यह तुम्हारी नाज़ुक चूचियां नहीं हैं। यह तुम्हारी खाला की चूचियां हैं कस कर मसलो और ज़ोर से काटो 

मेरे चुचुकों को, "शब्बो बुआ ने सिसकते हुए नूसी आपा को धमकाया और फिर अपना आक्रमण मेरी ओर मोड़ा , "नेहा 

बिटिया ऐसे हलके हलके चाटेगी मेरी चूत तो कैसे अपनी बुआ को झाड़ेगी। चलो जैम कर चुसो काटो मेरे दाने को। और 

ज़ोर से उँगलियाँ करो मेरी चूत और गांड में। झाड़ो मुझे लड़कियों , झाड़ो अपनी शब्बो खाला जान को। "

हम दोनों जैम कर लग गए शब्बो बुआ को झाडने में। नूसी आपा ने अपने दांतों से कमल से शब्बो बुआ की चीखे 

निकलवा दीं। मैंने अपनी दो उँगलियाँ बुआ की चूत में और दो उनकी मखमली गांड में ठूंस कर कसके उनके दाने को चूसने 

काटने लगी। पांच मिनटों में शब्बो बुआ भरभरा के झड़ गयीं। 

पर हम दोनों नहीं रुके और शब्बो बुआ की चूत और चूचियों का समलैंगिक मर्दन करते रहे। आधे घंटे में शब्बो बुआ छह 

बार झाड़ गयीं और वासना की उत्तेजना के अतिरेक से बिलबिला उठीं। 

"उङनङ अरे अब छोड़ो मुझे। मार डाला तुम दोनों ने। कहाँ से सीखा ऐसा जादू ,"शब्बो बुआ निढाल हो चली थीं। 

हम दोनों ने उनसे लिपट कर उन्हें दिल खोल कर चूमा। 

जब शब्बो बुआ कुछ ठीक हुई तो बिस्तर से उठ कर अपने बिस्तर की पास मेज की दराज़ से एक विशाल मोटा कृत्रिम 

लिंग निकाल के ले आयीं। बिलकुल काले रंग का स्ट्राप-ऑन डिलडो था वो, लगभग अकबर चाचू और आदिल के लन्ड 

जितना लंबा मोटा पर उसके दूसरी ओर छह इंच का दानों से भरा लन्ड पहनने वाली लड़की की चूत में जाने के लिए जिसे 

दोनों को मज़ा आये। 

" चलो नेहा पहन ले इसे और छोड़ मेरी नूसी को मेरे सामने। मैं भी तो देखूं कैसे चौड़ गयी होगी इसकी चूत भाईजान के 

लन्ड के ऊपर," शब्बो बुआ ने हमें निर्देश दिया ," चलो नूसी बेटी अपनी चूत अपनी बुआ के मुँह के ऊपर ले आओ। "

मैंने छह इंच मोटा दानों से भरा डिलडो का हिस्सा जब अपनी गीली चूत में ठूंसा तो मैं सिसक उठी। लेकिन आगे का दुगुना 

लंबा पर उतना ही मोटा डिलडो को नूसी आपा की चूत में ठूसने के लिए मैं बेचैन हो गयी। 

मैंने इंच इंच करके पूरा डिलडो सिसकती नूसी आपा की चूत में ठूंस दिया। शब्बो बुआ नूसी आपा के दाने को चूसने 

लगीं। मैंने लंबे धक्कों से नूसी आपा की चूत मारने लगी। नूसी आपा की चूत से मीठा रस टपकने लगा शब्बो बुआ के मुँह 

के ऊपर जिसे वो प्यार से चाट गयी।

नूसी आपा जब दो बार जड़ गयी तो शब्बो बुआ ने अपना मुँह उनके भगनासे से हटा कर मुझे दूसरा निर्देश दिया ,"नेहा अब नूसी की गांड मारो मुझे अपनी भांजी और बहू की मीठी चूत चुसनी है। "
नूसी आपा बस अब सिसकने के अलावा कुछ भी बोलने में असक्षम थी। मैंने नूसी आपा के रतिरस से लिसे मोठे लंबे डिल्डो को नूसी आपा के गुलाबी छेद से के ऊपर टिक कर एक ज़ोर का धक्का मारा , ठीक जैसे अकबर चाचू और आदिल भैया इस्तेमाल करते थे हमारी गांड की बर्बादी करने के लिए। नूसी आपा की चीख उबली तो सही पर शब्बो बूआ ने उनके भगनासे को चूसा तो उनकी चीख सिसकी में बदल गयी। मैंने पांच धक्को में सारा डिल्डो नूसी आपा की गांड में ठूंस दिया। मेरी चूत में घुसा छह इंच दूसरा मोटा हिस्सा मेरी चूत को मस्ताने लगा। 

मैंने नूसी आपा की गांड हचक हचक कर मारनी शुरू कर दी। जल्दी ही मेरा पूरा डिल्डो नूसी आपा की गांड के सुगन्धित रस से लिस गया था। नूसी आपा सुबक सिसक कर लगातार झड़ रही थी। मैं भी उनके साथ बर्बर झाड़ जाती थी। यह शब्बो बुआ का दो-मुंहा डिल्डो बड़े कमाल का था। 

"नेहा और ज़ोर से मारो मेरी भांजी की गांड। नूसी की गांड की महक से मैं तो पागल सी हो रही हूँ। खूब ज़ोर से मठ दो मेरी नूसी की गांड के हलवे को ,"शब्बो बुआ ने अब दो उँगलियाँ नूसी आपा की चूत की गहराइयों में डुबाई हुईं थीं और उनके दांत, होंठ और जीभ नूसी आपा के भग-शिश्न ( क्लिटोरिस ) को ज़ोर से चूस, काट और चुभला रहे थे। 
नूसी आपा और मैं अब लगातारर झाड़ रहीं थीं। मुझे थोड़ा थकता देख कर शब्बो बुआ ने धमकी दी , "नेहा बेटी रुकना नहीं। ज़ोर से मारती रहो अपनी नूसी आपा की गांड को। तुम रुकी तो मैं खुद अपने पूरे हाथ से तुम्हारी गांड मार दूँगी। "


मैं शब्बो बुआ के निर्देश का पालन करने लगी। 
घंटे भर की गांड चुदाई और चूत चुसाई के प्रभाव से और बार बार झड़ने की उत्तेजना के अतिरेक से थकीं नूसी आपा चीख मार कर बिलकुल निढाल हो कर बिस्तर पे लुढ़क गयीं। मेरा नूसी आपा की गांड के रस से लिसा डिल्डो फचक की आवाज़ से उनकी गांड से बाहर निकल गया। 

शब्बो बुआ ने धीमे से कहा ,"देखा नेहा बेटी , चुदाई की मस्ती जब इतनी पुख्ता हो जाती है तभी औरत को गाफिल होने की मस्ती मिल पाती है। "
शब्बो बुआ ने प्यार से मेरा सारा डिल्डो चूस चूस कर साफ़ कर दिया। उन्होंने चटखारे लेते हुए कहा ,"मेरी नूसी बेटी की गांड का रस देखा कितना मीठा है। "
मैं भी मुस्कुराई और लपक कर अपने खुले मुँह से उनके मुँह को तलाशने लगी नूसी आपा की गांड के स्वाद के लिए। 
जब नूसी आपा को होश आया तब हमने रात की तदबीर का खुलासा तय किया।
फिर हम तीनो नहाने के लिए ग़ुसलख़ाने में चली गयीं। शब्बो बुआ की ख्वाहिशें अभी भी अधूरी थीं। पहले हमने अपना सुनहरी शरबत ईमानदारी से आधा आधा बाकी दोनों के बीच में बांटा। फिर शब्बो बुआ ने अपनी दिली ख्वाहिश ज़ाहिर की तो मैं और नूसी आपा उतनी नहीं चौंकी और शरमाईं जितना शब्बो बुआ सोच रहीं थीं। चाहे कोई इसे कितना भी विकृत क्रिया कहे पर जब प्यार हो और प्यार के बुखार से जो मन चाहे वो करने की पूरी स्वन्त्रता है पुरुषों और स्त्रियों को। 
"खाला कल रात मैंने और अब्बू ने भी ऐसा ही किया था। मुझे तो बहुत अच्छा लगा और खूब मज़ा आया।," नूसी आपा ने खिलखिला कर कहा। 
और फिर हम तीनो ने शब्बो बुआ की दिल की ख्वाहिश भी पूरी कर दी नहाने से पहले।खूब मन लगा कर शब्बो बुआ का मुँह कई बार भर दिया और शब्बो बुआ ने आनंद और ख़ुशी के साथ लालचीपन से हमारे तोहफे को पूरा चूस मसल एके निगल लिया।

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#43
Update 39

वापस घर आके हम दोनों ने पहले शानू को सब कुछ बताया। शानू आदिल भैया के जन्म पिता का रहस्य सुन कर ख़ुशी से समा नहीं पा रही थी। फिर हमने शाम की योजना का इंतिज़ाम कर लिया। खूब सारी शराब, वाइन और खाना, आखिर यदि दो मर्द महनत करेंगे तीन चार लड़कियों को चोदने की तो उनके लिए पुष्ट आहार का ध्यान तो रखना ही पड़ेगा। 
तब तक जीजू या आदिल भैया भी आ गए और उन्हें भी उनके जन्म की असलियत पता चली तो उन्हें ख़ुशी हुई और उन्होंने नूसी और शानू को अपनी बाँहों से भर लिया। 
जैसे ही आदिल भैया, नूसी आपा और शानू अपने और भी गहरे रिश्तों की ख़ुशी से थोड़ा शांत हुए तो उनको 'नेहा' की गहरी चाल के बारे में साफगोई से बताया गया। उन्होंने नाटक में अपना हिस्सा अच्छे से समझ लिया। 
अब बस अकबर चाचू को प्यार से अपने जाल में फ़साना बाकी था। लेकिन अब सबको कामयाबी का पूरा भरोसा था। 
आदिल भैया एक बार हम तीनो को चोदना चाहते थे पर नूसी ने याद दिलाया कि उनकी अम्मी की दिली ख्वाहिश का तो उन्होंने तुरंत अपनी ताकत शाम के लिए बचाने के लिए तैयार हो गए। 
फिर हम तीनो ने शाम के कपडे निकाल लिए। मकसद था कि चाचू को हमारे चूचियों और चूत की पहुँच आसान होनी चाहिये। बिना कच्छी के लहँगा और बिना ब्रा के चोली से बढ़िया क्या हो सकता था। 
अब अकबर चाचू के आने का इन्तिज़ार था। हमें शब्बो बुआ को फोन करके एक बार फिरसे शाम के नाटक का ब्यौरा अच्छे से एक दुसरे समझ लिया। मैंने अपने आई-फोन पे टेक्स्ट तैयार रख लिया सिर्फ बटन दबाने की ज़रुरत थी । 
नूसी आपा ने बावर्चियों से अच्छे अच्छे पकवान बनवा लिए थे। अकबर चाचू के पसंदीदा नर्गिद कबाब भी शामिल थे उनमे। नूसी आपा ने लाल और सफ़ेद मदिरा की कई बेहतरीन ख़ास सालों की बोतलें बाहर निकाल लीं। फिर नूसी आपा ने छह-सात ख़ास शैम्पेन की बोतलों को ठंडा होने रख दिया। नूसी आपा और शानू के दिल की धड़कने दूर तक सुनाई दे रहीं थीं। मैं भी अपने नाटक की सफलता के लिए बेचैन होने लगी। आखिर इस के बाद अकबर चाचू का परिवार हमेशा के लिए एक दूसरी राह पे चल पड़ेगा। वो रास्ता जो समाज के हिसाब से वर्जित, अनुचित और गैर कानूनी था। पर प्यार, पारिवारिक वफ़ादारी और आदमियत की स्वन्त्रता के दृष्टिकोण से समाजिक वर्जना यदि सामाजिक निगाहों से छुपी रहे तो चाहे आप उसे छल-कपट कहें पर प्यार की फतह तो हो जाएगी। 
अकबर चाचू के घर में घुसने से ठीक पहले ही नूसी आपा और शन्नो कमरे में चली गयीं। मैंने अकबर चाचू को प्यार से चूम के उनका स्वागत किया. फिर उनके हाथ पकड़ के उन्हें उनके कमरे में ले गयी। मैंने प्यार से उनके बाहर के कपड़े उतारे। अकबर चाचू ने कई बार मेरी चूचियां दबाई। मैंने अपनी चूचियां और भी उनके हाथों में दबा दीं। मैंने अकबर चाचू के घर के कपड़े निकाल दिए। बिना कच्छे के लुंगी और कुरता। चाचू वैसे रोज़ाना पठानी पजामा या साधारण पजामा और कुरता पहनते थे। पर आज तो लन्ड और चूत जितनी आसानी से बाहर निकल सकते उतना अच्छा था। 
जब अकबर चाचू और मैं नीचे पहुंचे तब तक हर मदिरा और शैम्पेन बाहर थी। सफ़ेद मदिरा और शैम्पेन बर्फ की बाल्टी या डोलची में थीं। स्टार्टर्स और एपेटाइज़र्स इतने स्वादिष्ट लग रहे थे की मेरी भी लार टपकने लगी। नूसी आपा ने शायद उस सिद्धान्त का पालन किया था कि यदि मर्द का पेट भरा हो और खुश हो तो पेट के नीचे वाला भी खुश रहेगा।
नूसी आपा का हुस्न खुले गले की पीली चोली और नीले लहंगे में कहर धा रहा था। मैं भी कम नहीं थी पर बाप ने बेटी के हुस्न के दस्तरखान से एक बार पेट भर लिया था और अब उनकी भूख फिर से जाग गयी। और वो ही तो मेरी योजना का मज़बूत हिस्सा था। आदिल भैया और अकबर चाचू को खास मेहमानों की तरह बैठाया गया। फिर उनके हाथों में शैम्पेन के गिलास थमाने के बाद शानू ने अपने भैया उर्फ़ जीजू का दामन थाम लिया। मैं और नूसी आपा अकबर चाचू के दोनों ओर बैठ गयीं। नूसी आपा ने शैम्पेन का गिलास अपने हाथों में थाम लिया और अपने अब्बू को घूँट घूँट पिला रहीं थीं। मैंने और नूसी आपा अकबर चाचू की बाहें अपने कंधो के ऊपर दाल कर उनके सीने चिपक गए। 
"आदिल बेटा क्या बात है आज तो तुम्हारी हमारी बहुत खैरतदारी हो रही है। " अकबर चाचू ने अपनी बाहें हमारे उरोज़ों के ऊपर तक आ रहीं थीं। उनके बड़े फावड़े जैसे हाथ नूसी आपा और मेरे स्तनों के ऊपर ढके थे। 
"मामूजान सोचिये मत जोप् यार मिल रहा है उसका दिल भर कर मज़ा लीजिये ,"आदिल भैया ने बिलकुल ठीक संवाद मारा। 
"अब्बू अब आपकी बेटी सिर्फ बेटी ही नहीं है। अब आपका ख्याल किसी घर की औरत को तो एक मर्द की तरह रखना पड़ेगा। नेहा थोड़े ही यहाँ रहेगी ज़िन्दगी भर ," नूसी आपा ने भी अपना संवाद सही सही कह डाला। 
" ठीक तो है चाचू , अब आपका ख्याल नूसी आपा नहीं रखेंगीं तो कौन रखेगी ?"मैंने अपना हाथ अकबर चाचू की लूंगी की तह के अंदर सरका दिया। 
"मैं भी तो हूँ। मैं भी जीजू और अब्बू का ख्याल रखूंगी। " शानू चहकी। उसने अपना असली डायलॉग बोल कर अपने दिल की बात कह दी। लेकिन उसका असर उसके असली डायलॉग से भी ज़्यादा हुआ। 
"मेरी नन्ही बेटी कैसी बड़ी हो गयी है ,"अकबर चाचू ने प्यार से कहा। 
मेरा हाथ चाचू से सोये अजगर से ऊपर पहुंच तो पहले से पहुंच नूसी आपा के हाथ से टकरा गया। यह तो बिलकुल ठीक संयोग था। 
उधर शानू से अपने अब्बू के प्यार भरी तारीफ़ से फूल कर जीजू की लुंगी के भीतर अपना हाथ डाल दिया। 
शैम्पेन के दो ग्लासों के बाद दोनों मर्द थोड़े और खुल गए। शानू के हाथों के कमाल ने आदिल भैया के लन्ड तो ठरका दिया। जीजू ने बिना सोचे पर योजना के अनुसार शानू की चोली के बटन खोल दिए। नन्ही शानू के उगते उरोज़ बाहर निकल आये। जीजू के विशाल हाथ ने शानू का एक उरोज़ अपनी हथेली में भर लिया। जैसे ही जीजू ने शानू का स्तन मसला शानू सिसक उठी। 
उधर मेरा और नूसी आपा के हाथ अकबर चाचू के हलके से सख्त होते लन्ड के ऊपर थे। हालाँकि अकबर चाचू का लन्ड अभी पूरा सख्त होने से कोसो दूर था फिर भी हम दोनों की मुट्ठियाँ उनके लन्ड की मोटाई का सिर्फ आधा घेरा ही नाप पा रहीं थीं। 
अकबर चाचू ने प्यार से अपनी बेटी के अल्पव्यस्क हुस्न को खुले खुल्लम देखा। उनकी आँखों ने आदिल जीजू के हांथो को शानू की चूचियों को मसलते देख उनके लंड कई बार फड़क उठा। 
नूसी आपा और मैंने खुद ही दुसरे हाथ से अपनी चोली के बटन खोल दिए। हमारे मोटे उरोज़ जग-ज़ाहिर हो गए। 
अकबर चाचू ने अपनी नन्ही बेटी को अपने जीजू के साथ मस्ती करते देख कर उनका लन्ड हिलकारे मारने लगा। उनके हाथ स्वतः उनकी बेटी और मेरे स्तनों के ऊपर कस गए। अब शुरू हो गया नेहा की योजना का खेल।
शानू भूल गयी कि कमरे में उसके अब्बू भी हैं। जब वासना की आग नन्ही कच्ची कली के भीतर जल उठे तो उसके दिलो-दिमाग पर चुदाई का भूत तरी हो जाता है। शानू ने अपने जीजू के लंड को बाहर निकल लिया। आदिल जीजू ने शानो की चोली उतार दूर फेंक दी। शानू ने जल्दी से अपना मुँह जीजू के लेंस के टोपे से लगा दिया। 
अकबर चाचू का लंड अब बेसब्री से तन्तनाने लगा। अपनी मुश्किल से किशोरवश्था के पहले वर्ष में पहुंची बेटी को अपने मौसेरे भाई और जीजू का लंड चूसते देख कर उनकी मर्दानी वासना का अजगर पूरा फनफना उठा। 
चाचू ने मेरी चोली उतार कर चूचियों को मसलने चूसने लगे। नसी आपा कर अपने अब्बू की लुंगी की गिरह खोल कर उनकी लुंगी फैला दी। अब चाचू का लंड और झांगे जग जाहिर थीं।
नसी आपा ने नूसी आपा ने अपने अब्बू का गरम गीले मुंह में ले कर उनके पेशाब के छेद को अपनी जीभ की नोक से चुभलाने लगीं। मैंने अकबर चाचू के चेहरे को सहलाते हुए उनके मुँह को अपनी फड़कती चूचियों के ऊपर दबा दिया। चाचू के मर्दाने तरीके से ज़ोर से चूसने और मसलने से मेरी चूचियां कराह उठीं थीं पर दर्द में वासना की चाभी भी थी। 
मैंने जोए से सिसकारी मारी , "है चाचू ज़ोर से मसल दीजिये मेरी चूची , और ज़ोर से चूसिये इन्हें। मैं तो ऐसे ही झड़ जाऊंगी ,"मैंने सिअकरते कहा। 
मेरी बुलंद वासना की गुहार ने बाकी बचीं दीवारों को भी गिरा दिया। आदिल जीजू ने शानू का लहंगा उतार फेंका और उसे चौड़े दिवान पर चित लेता कर उन्स्की चूत के ऊपर धावा बोल दिया। जीजू ने शानू की चूत चूसने की शुरुआत की तो मैंने भी अकबर चाचू के साथ बात आगे बड़ा दी। 
मैंने भी अपना लेहंगा उतार फेंका। नूसी आपा ने अपने अब्बू का कुरता उतार दिया। चाचू ने अपनी बड़ी बेटी को नंगा करने में न झिझक दिखाई न देर लगायी।
शानू ने सिसकते हुए कहा , "भैया हाय नहीं जीजू आप भी तो कपड़े उतार दीजिये। "
आदिल जीजू को अब तक यह खुद से कर देना चाहिए था। आदिल जीजू ने शानू के खुली चुत को दिल लगा जकर चूसा चाटा , उसकी घुंडी को न केवल जीभ से तरसाया पर जालिम अंदाज़ में दांतों से भी हलके हलके काटा। 
शानू चीख मार कर झड़ गयी। अकबर चाचू ने मुझे छोड़ कर नूसी आप के ऊपर हमला बोल दिया। उन्होंने अपनी बड़ी बेटी की टाँगे चौड़ा कर उसकी घनी घुंघराली झांटों से ढकी चूत को चूसना शुरू कर दिया। मैंने चाचू के मर्दाने विशाल बालों चूतड़ों को चूमते काटते हुए उनकी गान का छल्ला ढूँढ लिया। मेरी जीभ उनके गांड के छेड़ को चुभलाने लगी। 
यही मौका था और मैंने पास में पड़े आई फ़ोन में डाले पैगाम को भेज दिया। शब्बो बुआ सिर्फ बीस फुट दूर थीं। 
" अरे भाई इस महफ़िल में सिर्फ हमें ही नहीं शामिल किया गया। क्या बुआ ने कोई गुस्ताखी कर दी है ," बुआ ने थोड़ा ज़ोर से बोल कर हम सब को चौकाने का प्रयास किया। 
बेचारे चाचू थे जिन्हे इस तरतीब का कोई भी इल्म नहीं था। वो लपक कर अपनी छोटी बहन के पास गए और उन्हें गले से लगा लिया , "माफ़ करना शब्बो। मैं बच्चों के ख्याल में इतना डूब गया कि भूल गया कि तुम वापस आ गयी होंगीं। "
बेचारे चाचू को यह अहसास भी नहीं था कि वो पूरे नंगे थे, "भैया, यदि आप वायदा करें कि मुझे ऐसे ही मिला करेंगें तो मैं हमेशा तैयार हूँ कि इस स्वागत के लिए। "
चाचू को अहसास हुआ तो वो कपडे की ओर जाने लगे पर बुआ ने उनका हाथ पकड़ लिया , "हाय रब्बा। मेरा आना इतना बुरा लगा कि आप इस महफ़िल की ख़ुशी से बच्चों को रोक देगें। "
"शब्बो, तुम तो मेरी प्यारी बहन हो। मैं तो फिक्रमंद हूँ कि आप क्या सोचोगी मेरे बारे में। बच्चे चाहें क्या करें क्या न करें पर मुझे तो थोड़ा संयम बरतना चाहिए था। "
अब बुआ से नहीं रहा गया , "संयम बरतें मेरे भाई के दुश्मन। यदि मेरे भाई के घर की औरतें और बच्चे उनका और उनकी ख़ुशी का ख्याल नहीं रखेंगें तो काउ रखेगा। "
"तुम खुश हो इस ," अकबर चाचू ने अपनी बहन को चूम लिया। 
"खुश , मैं बेइंतिहा खुश हूँ। मैं तो अपने को कोस रहीं हूँ की अब तक मेरी अक्ल क्या चारा चरने गयी थी कि मुझे हम सबको इकट्ठे करने का ख्याल नहीं आया ,"शब्बो बुआ का प्यार अब पूरे निखार पे था।
हम सब एक दुसरे के साथ चपक गए. सारे परिवार का महा-आलिंगन था यह। नूसी आपा ने सबको मदिरा, शैम्पेन के गिलास थमा दिए, "चलिए अब जल्दी से खाना खा लेते हैं फिर सारी रात है एक दुसरे को प्यार करने के लिए। "
नूसी आपा ने किसी के दिमाग , खास तौर से चाचू के दिमाग , में यदि कोई झिझक बाकि हो तो उसको नाकाबिल कर दिया। 
खाने पर हम सब खुल आकर अपने दिल की बातें करने लगे। 
"भैया , सुना की शानू ने अपने जीजू से अपनी सील खुलवा ली है ,"बुआ ने खुल्लम-खुल्ला वार्तालाप ठीक दिशा में मोड़ दिया। 
"बुआ मैंने देर तो लगायी पर अब पीछे नहीं हटने वाली। अब जब जीजू का मन हो मैं तैयार हूँ उनकी ख़ुशी के लिए ,"शानू खुल कर बोली, "और बुआ नूसी आपा ने भी अपने ज़िंदगी की हसरत भी पूरी कर ली। अब्बू ने आखिर आपा के साथ नाता बना है। नहीं अब्बू अब आप हमेशा नूसी आपा के साथ हमबिस्तर होते रहेंगें ?'
शानू अब रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। 
" उन्ह उन्ह। .. ठीक है बेटा। एक बार अपनी जन्नत की परी जैसी सुंदर बेटी के साथ हमबिस्तर होने के बाद कौन बाप रुक पायेगा।"
सब लोग खाना भी खा रहे थे और मदिरापान करते हुए पारिवारिक सम्भोग के पुराने पन्ने भी पलट रहे थे। 
"नूसी बेटा तू तो नसीब वाली है। अब्बू के दोनों प्यार, यानि बाप और मर्द , किसी कसी नसीब वाली बेटी ही को मिलते हैं ," शब्बो बुआ ने नूसी आपा की बालाएं उतार लीं। 
"बुआ मैं भी तो नसीब वाली बेटी हूँ। मुझे भी तो अब्बू दोनों तरह का प्यार करेंगें। नहीं अब्बू ?"शानू ने तीर छोड़ा। 
"बेटी शानू तू जब कहेगी उसी दिन अब्बू तुझे भी हनबिस्तर बना लेंगें," शब्बो बुआ ने कोई कसर नहीं छोड़ी। 
अब हम सब गरम हो चले थे। 
"अब्बू आप भी तो एक बार बुआ के साथ हमबिस्तर हुए थे ?" नूसी ने अपने अब्बू के लंड को सहलाते हुए कहा। 
"नूसी वो महीन मेरी ज़िंदगी का बहुत हसीं महीना था ,"अब्बू ने प्यार से अपनी बहन को देखते हुए कहा। 
"भैया , उस हसीन महीने का मीठा इनाम मेरी ज़िंदगी का सबसे हसीं तोहफा है आपकी तरफ से," बुआ ने गीली आँखों से जज़्बाती आवाज़ में कहा। 
"शब्बो, मैं समझा नहीं,"चाचू ने मीठी आवाज़ में अपनी बहन से पूछा। 
"भैया , उस महीने में अप्पने अपनी बहन की खाली कोख भर थी। आदिल ही तो उस महीने का तोहफा है आपका ,"बुआ ने चाचू को रहस्य बता दिया।
अकबर चाचू ने आदिल भैया की ओर घमंड से देखा , "शब्बो, आदिल तो हमेशा से मेरे बेटे की तरह था। मेरा सब कुछ इन तीनो बच्चों का है। पर मैं शुक्रगुज़ार हूँ की आदिल मेरे बेटे की तरह नहीं मेरा बेटा ही है। मेरी बहन यह तो तुम्हे तोहफा है मेरे लिए। इस के लिए तो मैं तुम्हारे पैरो को हमेशा चुमता रहूंगा। "
चाचू और आदिल दोनों बाओ बेटे की तरह गले मिलने लगे। 
हम सब की आँखें थोड़ी गीली हो गयीं। 
बुआ ने माहौल ठीक करने के लिया अपना स्वाभाविक व्यवहार का सहारा लिया ,"भैया , आपका बेटा तो अब आपका ही है। लेकिन यहाँ चार चार चूतें हैं दो महालंडो के लिए। कौन बटवारा करेगा ?"
नूसी आपा ने भी माहौल संभाला ,"बुआ आदिल का दिल मचल रहा है आपके लिए। इस रात आप का हक़ पहला है अपने बेटे के लण्ड के ऊपर। मेरे प्यारे अब्बू का लंड आज रात पहले पहल छोटी रंडी बहन की चूत फाड़ कर उसकी गांड की सील तोड़ेगा। "
अब तो सब कुछ खुल्लम खुल्ला हो चला। आदिल भैया ने प्यार से अपनी अम्मी को बाँहों में उठा लिया। 
"हाय मेरे बेटे , आपकी अम्मी हलकी फुलकी नहीं है , चोट न लग जाये बेटा। "बुआ ने प्यार से आदिल को चूमा। 
"अम्मी, आपके बेटे की बाहें अपनी अम्मी को उठाने के लिए कभी भी कमज़ोर नहीं पड़ेंगीं ,"आदिल ने अपनी अम्मी की नाक को चूमते हुए कहा। 
चाचू ने शानू को बाँहों में उठाते हुए कहा , "शानू तुम्हे जो आपा ने कहा है वो सब करना है अब्बू के साथ ?"
"अब्बू एक बार नहीं हज़ारों बार।आज ही नहीं हमेशा हमेशा करना है आपके साथ, "शानू ने अपने अब्बू के गले पे अपनी नन्ही बाँहों का हार डाल दिया। 
हम सब पारिवारिक कक्ष में चल पड़े। आदिल ने बुआ को घोड़ी बना कर उनकी गांड और चूत चुसनी शुरू कर दी। 
"अब्बू, इस रंडी की चूत तो पूरी गरम है अब आप अपने लंड डाल दीजिये ,"नूसी आपा ने शानू की छोटी छोटी उगती चूचियां मसलते हुए कहा। 
अकबर चाचू ने अपनी छोटी बेटी को घोड़ी बना कर चोदने के लिए तैयार कर लिया। जैसे ही चाचू ने अपना लंड बढ़ाया शानू की चूत की ऒर मुझे एक ख्याल आ गया। 
मैंने लपक कर पास पड़े लहंगे से शानू की चूत सोख कर सूखा दिया , "चाचू, यदि शानू की चूत कसमसा न उठे , उसकी चीखें न निकलें और आपके लण्ड के ऊपर उसकी चूत से लाल रस न दिखे तो उसे यह रात कैसे मीठी यादें बनाएगी ?"
"अब्बू, वाकई। शानू कुंवारी तो नहीं है चूत से पर आप उसे आज भी कुंवारेपन की पहली चुदाई का अहसास दिला सकते है। कौन बेटी नहीं यद् करेगी अपने अब्बू के साथ पहली दर्दीली मीठी चुदाई को ? "नूसी आपा ने भी अपने अब्बू को भड़काया। 
उधर आदिल ने धीरे धीरे अपना लण्ड एक एक इंच कर अपनी अम्मी की चूत में घुसना शुरू कर दिया। 
"हाय आदिल बेटे, मैं तो जन्नत में चली गयी अपने बेटे के लंड को अपनी चूत में ले कर। मेरा बेटा एक बार फिर अपनी अम्मी के अंदर है ,"शब्बो बुआ अनुचित अगम्यगमनी वासना से जल रहीं थीं। 
"अम्मी, मेरा लंड पहली बार की आपकी चूत की गरमी को कभी भूलेगा।"आदिल ने अपनी अम्मी के भारी भारी मुलायम विशाल उरोजों को बेदर्दी से मसलते हुए कहा। 
"बेटा मसल दो अपनी अम्मी की चूचियों को। आज तो अपनी अम्मी की चूत की धज्जियाँ उदा दो। रुला दो अपनी अम्मी को चुदाई से। बीटा दस साल से तुम्हे देखते हुए दिल की भूख छुपा कर राखी है हमने,"बुआ वासना में जलती हुई बुड़बुड़ायीं 
आदिल भैया ने बेदर्दी से बुआ की चीचियों को मसलते हुए एक विधवंसिक धक्के में पूरा लंड उनकी चूत में दाल दिया। बुआ की चीख निकल गयी। 
"बेटा और दर्द करो अम्मी को। तुम्हारी अम्मी की चूत अनछुई है बीस साल से। तुम्हारे अब्बू की चुदाई और तुम्हारे मेरे पेट में आने के बाद तुम्हारा पहला लंड है मेरे बेटे ," बुआ की दिल के हालत सुन कर आदिल का प्यार परवान हो चला। 
उन्होंने अपनी अम्मी की चूत की चुदाई भीषण अंदाज़ में शुरू कर दी। पांच मिनट नहीं बुआ झड़ने लगीं। आदिल भैया मुझे नहीं लगता था की घंटों से पहले रुकेंगें अपनी अम्मी की चूत चोदने से। 
इधर चाचू ने अपना तनतनता हुस घोड़े जैसा लंड शानू की नन्ही सुखी चूत ले टिका कर उसे नन्ही बकरी की तारक जकड़ कर भयानक जान लेवा धक्का लगाया। नूसी आपा ने शानू के कंधे पीछे दबा दिए। शानू की दर्द भरी चीख उबाल उठी।
उसकी आँखों आंसूं भर गए। छोटी छोटी चूचियों को हुए बेदर्दी से मसलते दूसरा चूत फाड़ने वाला धक्का लगाया और उनका पूरा महालँड नन्ही शानू की चूत में ठुँस गया था। शानू बिबिला कर रो रही थी। पर अपने अब्बू से चुदाई के लिए तो वो और भी दर्द बर्दाश्त कर लेती।
चाचू ने बिना शानू को आराम करने का मौका दिए अपना लंड टोपे तक बाहर निकल लिया। उनके लंड पर लाल खून की गाढ़ी परत चढ़ गयी थी। चाचू के लंड के किसी कुंवारी की चूत फटने जितना खून तो नहीं निकला था शानू की चूत से पर बहुत कम भी नहीं था। 
शानू अब बिना रुके हिचकी मार मार थी। उसकी आँखे इतनी बाह रही थीं की बेचारी के सुड़कने के बावजूद भी उसके आंसू उसकी सूंड नासिका में से बह चले। 
"अब्बू देखिये तो आप अपनी नन्ही बेटी के हुस्न को, "नूसी आपा ने शानू का रोता हुआ आंसुओ और उसकी बहती नासिका के रस से मलिन मुँह को अपने अब्बू को दिखाया। 
वाकई का मलिन चेहरा अपने अब्बू के महालँड की चुदाई के दर्द और भी सूंड लग रहा था। 
"अब्बू, आपको कसम है हमारी, बिना रुके शानू की चूत मारें। इसकी चीखें नहीं रुकनी चाहियें ,"नूसी आपा ने अकबर चाचू को उकसाया। 
चाचू ने बिना रुके शानू की चूत को बेदर्दी से कूटना शुरू किया तो अगले आधे घंटे तक बेचारी सुबक सुबक कर रोती रही। उसकी आँखे और सुंदर नासिका जमुना की तरह बहतीं रहीं। 
नूसी आपा ने पहले तो अपने हाथ से उसके आंसू और बहती नासिका के रस को उसके मुँह पर रगड़ दिया पर जब आधे घंटे की चुदाई के बाद उसका दर्द कम हुआ और वो सिसकारियां मारने लगी तो नूसी आपा ने अपनी जीभ से अपनी नहीं बहन का मुँह चाट चाट कर साफ़ कर दिया। उन्होंने शानू के नथुनों में अपनी जीभ हुआ उन्हें भी अपनी लार से भर दिया। 
"अब्बू मुझे झाड़ दीजिये हाय रब्बा मेरी चूत मारिये अब्बू ,..... ूण ंन्न ......... ाआनंनं ाआँह्ह्ह ," शानू अब लगातार झाड़ रही थी और उसकी चूत उसके रतिरस से लबालब भर चली थी।
चाचू का लंड अब रेलगाड़ी के इंजन के पिस्टन जैसे पूरी रफ़्तार और ताकत से शानू की चूत 
चोद रहा था। उनका लंड उसकी चूत में फचक फचक की अश्लील आवाज़ें निकलते हुए बिजली की गति से अंदर बाहर आ जा रहा था। 
घंटे भर की चुदाई के बाद शानू न जाने कितनी बार झड़ गयी थी। उसके अब्बू ने भी अपना लंड अपनी नन्ही अल्पव्यस्क बेटी की कमसिन चूत में खोल दिया। उनका उर्वर वीर्य की बारिश के कच्चे गर्भाशय को नहला दिया।
उधर शब्बो बुआ भी मुँह के ऊपर ढलक गयीं थक कर।
आदिल भैया ने अपनी अम्मी के उर्वर गर्भाशय को अपने बराबर के उर्वर वीर्य से नहला दिया। अब यह तो प्रकृति के ऊपर था की उनका वीर्य और उनकी अम्मी का अंडा जुड़ने के लिए तैयार थे या नहीं। 
आदिल भैया का लंड एक सूत भी ढीला नहीं हुआ था। उन्हिओंने औंधी लेती अपनी अम्मी के तूफानी चूतड़ों को फैला कर उनकी गांड के नन्हे गुलाबी छेद के ऊपर अपना वृहत लंड तक कर अपने पूरे वज़न के साथ बेदर्दी से उनकी गांड में। 
" हाय बेटा अम्मी की गांड फाड़ोगे क्या। .. हाय मार डाला अपनी अम्मी को। " शब्बो बुआ अपनी चूत की चुदाई की थकन से निकल आयीं। यही तो आदिल भैया चाहते थे। 
उन्होंने अपनी अम्मी की गांड उसी निर्माता से मारनी शुरू कर दी। थोड़ी सी देर में ही बुआ की चूत भरभरा कर झाड़ गयी , "हाय खुदा मैं तो मर जाऊंगीं चुदाई से। बेटा फाड़ डालो अपनी अम्मी की निगोड़ी गांड। मेरे बेटे का गांड मेरी गांड नहीं फाड़ेगा तो किसका लंड फाड़ेगा। और ज़ोर से मारो अपनी अम्मी की गांड ,"बुआ ने वासना के ज्वर से ग्रस्त अनर्गल बोलना शुरू किया तो अपने रति-निष्पति की तरह रुकने का नाम ही नहीं लिया। 
"बेटी, मैंने आपको बहुत चोट तो नहीं लगायी? "अकबर चाचू ने शानू को चूमते हुए पूछा। 
"नहीं अब्बू। आपने तो मेरी पहली चुदाई यादगार बना दी। मैं इसे तो वैसे ही नहीं भूलती पर अब इस दर्द की मिठास तो मुझे मरने तक याद रहेगी ,"शानू ने अपनी उम्र से कहीं परिपक्व लड़कियों जैसे कहा। 
"पर अब्बू आप मेरी गांड का कुंवारापन लेते वक़्त कोई कस्र नहीं छोड़िएगा। मुझे खुद खूब दर्द होना चाहिए। खून भी निकले तो और भी नियामत होगी। अब्बू मेरी गांड की चुदाई जैसे नूसी पा की की थी वैसे की कीजियेगा ,"शानू ने के मुँह को प्यार से चूमते हुए गुजारिश की। 
"वायदा रहा मेरी बेटी। तुम्हारी गांड मारने में कोई कसर नहीं छोड़ूंगा। अल्लाह कसम जब तक मैं तुम्हारी गांड चुदाई खतम करूंगा तुम्हारी गांड फैट न जाये तो बताना ,"अकबर चाचू ने अपनी अश्लील और नरिममा की वसना की गरमा तो परवान चढ़ा दिया। 
"अब्बू अब नहीं बर्दाश्त होता। आपके लंड का अहसास चाहिए हमें अपनी गांड में। प्यारे अब्बू अब अपनी छोटी बेटी की गांड का कुंवारापन खत्म कर दीजिये ,"शानू ने अपने अब्बू से फरियाद लगायी।
अकबर चाचू ने बिना वक़्त बर्बाद किये शानू को दुबारा घोड़ी बना कर अपना लंड उसकी गांड पे लगा दिया। नूसी दोनों तैयार थे शानू को सँभालने के लिए। 
हम दोनों की आँखें फट गयीं देख कर कि अकबर चाचू ने अपने लंड के ऊपर कोई चिकनाई नहीं लगाई। तब तक शानू की चूत लंड के ऊपर सूख गया था। 
शानू की गांड वाकई फटने वाली थी। अब्बू उसकी गांड मरवाने की हर तमन्ना पूरी करने वाले थे।
शानू सिर्फ अपने अब्बू के लंड की अपनी गांड के ऊपर रगड़ से ही सिसकने लगी।
अब्बू ने अपनी नन्ही मुश्किल से किशोरावस्था में प्रविष्ट बेटी को निरुत्साहित नहीं किया। उन्होंने नूसी और मुझे इशारा कर शानू की कमर फावड़े जैसे हाथो से जकड़ कर वो भयानक धक्का लगाया की मेरी गांड अपने आप ज़ोरों से भींच गयी। 
यदि शानू की चूत मरवाते हुए निकली चीख इस बार की चीख से सामने फीकी पड़ गयी। शानू हलक फाड़ कर चिल्लाई। उसका सुंदर चेहरा असहनीय दर्द से निखार उठा। शानू कंपकपाती हुई बिलख उठी। 
नूसी आपा ने एक बार फिर से अपनी नन्ही बहन के कंधे को वापस अपने अब्बू के लंड के ऊपर धकेलने लगीं। 
मैंने ज़ोरों से शानू के दोनों चूचियों को उसी नर्ममता से मसलन मड़ोड़ना शुरू कर दिया। 
अकबर चाकू ने दूसरा और फिर तीसरा धक्का लगाया। कोई भी विश्वास नहीं करेगा कि उन्होंने अपना हाथ भर लम्बा बोतल से भी मोटा लंड अपनी नाबालिग बेटी की कुंवारी गांड में तीन धक्कों में जड़ तक ठूंस दिया। 
शानू की चीख बहुत ऊंचे पहुँच कर सन्नाटे में बदल गयी, इतना दर्द हुआ बेचारी को। 
चाचू ने तब तक अपना लंड बाहर निकाला तो बिना शक़ गाढ़े लाल खून से सना हुआ था। बेचारी शानू शायद अगले महीने तक पखाना करते हुए रोयेगी।

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#44
Update 40

नूसी आपा ने इस बार बहती आँखों और नासिका के रस को तुरंत चूसना और चेतना शुरू कर दिया। मैं भी उसके नीचे लेट कर उसकी एक चूची चूसने लगी और दूसरी को मसलने मड़ोड़ने लगी। 
"अब्बो,ठीक ऐसे ही। शानू की यह रात उसको ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी। अल्लाह कसम उसकी चीखें नहीं बंद होनी चाहिए अब्बू ,"नूसी आपा ने अब्बो को बढ़ावा देते हुए उकसाया। 
और अकबर चाचू ने अपना वायदा किया और उस से भी आगे निकल गए। 
उन्होंने शानू की कुंवारी गांड को उसी बेदर्दी से अगले घंटे तक मारा। शानू की चीखें ,सुबकियां , और हिचकियाँ अगले घंटे तक बंद नहीं हुई। उसकी अब्बू का लंड अब सटासट उसकी गांड में से माथे हलवे की चिकनाई से अंदर बाहर जा रहा था। अकबर चाचू ने शानू की दर्दीली गांड-चुदाई से उसके लिए झड़ना बिलकुल असंभव कर दिया था। शानू घंटे से भी ज़्यादा अपनी गांड चुदाई के दर्द से बिलबिलाने के अलावा कुछ और सोच भी नहीं पायी झड़ना तो कोसों दूर।
पर आखिर कर वासना की प्रज्जवलत अग्नि, चुदाई का जूनून और अपने अब्बू के साथ नाजायज़ सम्भोग की तमक से शानू दर्द के गड्ढे से भर निकल ही गयी। उसके अब्बू का लंड उसकी गांड के मक्खन से लिसा अब उसे आननद देने लगा। नूसी आपा और मई अब बेदर्दी उसकी छूछोयां मसलने लगे पर अब उसकी वासना फतह का झंडा लहरा था। शानू ने अगले दस मिनटों में तीन ब्रा झड़ने के बाद अपने अब्बू से और भी ज़ोर से गांड मारने की गुहार लगाना श्रुओ कर दिया। अकबर चाचू ने अपनी प्याररी नन्ही बेटी की गांड को एक और घंटा बिना थके और धीरे हुए चोदा।शानू की अविरत रत-निष्पति ने उसके अल्पव्यस्क कच्चे बदन को बिलकुल थका दिया। जब अकबर चाकू ने अपना लंड शानू की गांड में खोला तो वो चीख कर निश्चित हो गयी। अकबर चाचू ने बीस पच्चीस वीर्य की बौछारों के बाद विजय पताका फहराता हुआ लंड निकला तो नूसी उसके ऊपर भूखों की तारक जगपत पड़े। हम दोनों ने अकबर चाचू के शानू की गांड के मंथन के रास और उनके पाने वरीय के माखन को चूसने और चाटने लगे। 
उधर आदिल भैया ने भी अपनी अम्मी की गांड मार मार कर उन्हें इतनी बार झाड़ दिया कि वो भी शानू की तरह बेहोश हो गयीं। कमरे में दो ख़ूबसूरत गाण्डों की भयंकर चुदाई और मंथन की गहरी खुशबू फ़ैली हुई थी। नूसी आपा और मेरी चूतों में आग लगी हुई थी। अब हम दोनों को उस आग को दो मुस्टंड लंड चाहिए थे। 
नूसी ने अपने अब्बू का हुए मैंने आदिल भैया का ताज़ा ताज़ा गांड मंथन के बाद से उपजे माखन से सजे संवरे लंड को मुँह में ले कर चूसने चाटने लगीं। दोनों मर्दों के लंड तूफानी तेज़ी से तनतना रहे थे। 
अब्बू ने नूसी आपा को निहुरा कर उनकी चूत में अपना लंड तीन चूत - फाड़ू धक्कों में जड़ तक ठूंस दिया। नूसी आपा की चीख में आनंद ज़्यादा दर्द कम था। आदिल भैया भी अपने अब्बा से पीछे नहीं थे। उन्होंने भी बेदर्दी से मेरी चूत में अपना लंड ठूंसने में को धक्कों की कंजूसी बरती। पर उसके बाद की चुदाई में कोई कंजूसी नहीं दिखाई दोनों ने। अकबर अब्बू ने अपनी बेटी की भैया ने मेरी चूत को घण्टे भट रोंदने के बाद ही अपने लंड की उपजाऊ क्रीम से हमारी चूतों को सींच दिया।
हम सब जब चुदाई के थकन से थोड़ा उभरे तो मुझे याद आया ,"अच्छा तो अब हम तीन शादियों के लिए तैयार हो जातें हैं। "
मैंने फिर शानू की ओर देखा और अपनी गिनती बदली , "तीन नहीं चार। "
"चलो नेहा तुम ही लगाओ किसका नंबर पहला है ," शब्बो बुआ और नूसी आपा मेरी गयीं थीं। 
"बुआ जान आप अपने बड़े भाई का लंड थामिये ।चाचू आप अपनी बहन की चूचिया थामिये," अकबर चाचू और शब्बो बुआ ने बिना ना-नुकर किये जो कहा वैसा ही किया। 
"बुआ चलिए अब मेरे साथ दोहराइये - मैं अपने भाई का ख्याल छोटी बहन और बीवी की तरह रखूंगी। और उन्हें कभी भी बिना चुदाई के सोने नहीं दूँगी," मैंने बात आगे बढ़ायी , " और अब नूसी के साथ मिल कर इस घर में बच्चों की रौनक फ़ैल दूंगीं। "
बुआ ने इसे दोहराया। उनके हाथ अपने भाई के सख्त महा लंड को सहला रहे थे। 
"चाचू आप कहिये , "शब्बो को मैं अपनी छोटी बहन और बीवी की तरह प्यार करूँगा। इनकी चूत को कभी बिना चोदे रात नहीं बिताने दूंगा। मैं शब्बो के पेट में जितने हो सकते हैं उतने बच्चे डालने की पूरो पूरी कोशिश करूंगा। "
अकबर चाचू ना केवल दोहराया उन्होंने अपनी बहन को प्यार से चूमा भी। 
नूसी आपा ने एक और बात जोड़ दी ," बुआ अब आप अब्बू के कमरे अपनी जायज़ जगह ले लीजिये। यदि अम्मी जन्नत से बोल यही कहतीं।" हम सबने इस बात का पूरा समर्थन किया। 
दूसीर शादी बुआ और आदिल भैया के बीच। उन दोनों ने भी माँ और बेटे के साथ साथ हमबिस्तर शौहर और बीवी की तरह खूब चुदाई करने का और बच्चे पैदा करने का इकरार किया। 
तीसरी शादी अकबर चाचू और नूसी की थी. नूसी आपा अब्बू का लंड सहलाते हुए वही वायदा दोहराया। 
चौथी शादी के शानू तैयार थी। उसने अपने नन्हे हाथों से अपने अब्बू और भैया के लंड सहलाते हुए कहा ,"मैं अपने अब्बू और भैया की भूख का पूरा ख्याल रखूंगी। अब से मेरी चूत और गांड दोनों भैया और अब्बू के लिए दिन रात खुली रहेंगीं। "
आखिर में मैंने बुआ का नकली लंड बाँध कर अपनी और शानू की शादी भी कर दी। आखिर में मेरी गिनती दुबारा गलत हो गयी। 
उस बाकि रात के सुहागरात के लिए आदिल भैया ने अपनी अम्मी को अपनी नै नवेली बीवी की तरह बाँहों में उठा कर उन्हें अपने कमरे की ओर चल दिए। अकबर चाचू बड़ी बेटी को अपनी वधु की तरह प्यार से उठाया और अपने कमरे की तरफ चल पड़े। मैंने अपनी बीवी उर्फ़ शानू को पकड़ा और अपने में कमरे में खींच के ले गयी। 
उस रात तीनो कमरों में भीषण प्यार भरी चुदाई हुई। मैंने शानू की चूत और गांड मार मार कर उसे आखिर में आलम में ले जा कर ही सोई । 

अगले दिनों में खूब चुदाई हुई। शब्बो बुआ ने अपने बेटे और भाई के साथ इकठ्ठे चूत और गांड मरवाई। 
नूसी आपा ने भी ना नहीं किया। लेकिन दोनों महालण्डों को एक साथ लेने में उनका पसीना निकल गया। 
आखिरकर में मेरी वापस जाने का दिन भी आ गया। उसके पहली रात में तीनो 'लड़कियों' शौहरों की दोनों लंडो को मेरे लिए छोड़ दिया। अकबर चाचू और आदिल भयइया ने उस रात मेरी चूत और गांड की की बुरी रौंदा। सुबह तक न केवल उन्होंने मेरे दोनों छेदों को बेदर्दी से रौंदा पर इकठ्ठे भी। मैं अगली सुबह टांगें चौड़ा कर चल रही थी। 
हफ्ते बाद फ़ोन पे बात करते हुए शानू ने मुझे बताया की उस के बाद घर में दिन में तो सा जो हाथ पड़ता उसके साथ जोड़ा चुदाई करते पर रात में मैंने देखा की नूसी आपा और शब्बो बुआ अदला बदली से एक एक रात अपने 'नए 'शौहर ' के साथ बारी बारी से बितातीं। उस समय तो नहीं पता था पर कुछ महीनो बाद नूसी आपा और शब्बो बुआ दोनों पेट से होंगीं।
घर वापस आने में अपना ही आनंद है। नाना, दादा और दादीजी ने दिल भर कर चूमा जैसे मैं एक हफ्ता नहीं बाद मिल रही थी। दोनों मामा भी प्रेम दिखने से नहीं थके। 
घर वापस आने पर थोड़ी देर तक तो मम्मी और बुआ ने खूब प्यारा चूमा फिर सुशी बुआ ने टांग खींचनी शुरू कर दी, "क्या हुआ नेहा बिटिया। क्या अकबर भैया ने काफी काम करवाया ? इतनी चाल तो मेरी कभी भी ख़राब नहीं हुई। मुझे लगता है आदिल बेटे ने ज़रूर टेनिस के खेल खेल में ज़ोर के शॉट मार दिए होंगे? "
मैं शर्मा कर लाल हो गयी ,"बुआ आप भी ना क्या क्या बोल जाती हैं। आपने ही तो ज़रूरी काम की लिस्ट थमाई थी। टेनिस केहेलने का तो टाइम ही नहीं मिला। "
मैं अपनी बुद्धूपने पर और भी शर्मा गयी। मम्मीमन्ड मंद मुस्करा रहीं थीं। 
"चल तू आज मेरे साथ सोना। मुझे सब सुनना है की अकबर, शब्बो, नूसी आदिल, शानू कैसे हैं ," सुशी बुआ मुझसे आखें मटकाते हुए बोलीं। 
"भाई मुझे गोल्फ के बाद थकन हो रही है ,"दादीजी बोलीं पर उनकी आँखें प्यार से अपने बेटे को निहार रहीं थीं। 
"मम्मी चलिए मैं आपकी मालिश कर दूंगा ," पापाजी प्यार से बोले और अपनी मम्मी कके साथ अपने सुइट की ओर अग्रसर हो गए। 
अब मुझे सुशी बुआ की कहानी याद आयी। पापाजी और दादी जी के इकठ्ठे प्यार करने के ख्याल से ही माओं रोमांचित हो गयी। माँ बेटे के अनुचित अगम्यगमनी प्यार सबसे वर्जित होता है और इसी लिए उतना ही मीठा और आनंददायी होता है।
दादा जी ने नानाजी जी से कहा, "रूद्र चल यार कुछ गेम हो जाएँ चैस के ? सुनी सुबह से हराने का एलान कर रही है को। "दादा जी ने प्यार से अपनी बहु को निहारा। 
"सुनी बेटा हम दोनों थोड़े बूढ़े सही पर दोनों मिल गए तो जीतना मुश्किल है तुम्हारा ," नानाजी रूपवती बेटी की और देख कर मुस्कराते हुए कहा। 
"पापाजी कोशिश तो ज़रूर करूंगी। और यहाँ कौन बूढ़ा है। बूढ़े होंगे आपके और बाबूजी के दुश्मन। और फिर कुछ हार तो जीतने से भी मधुर होतीं हैं। " मम्मी ने अपने पिताजी और ससुर जी का हाथ थाम लिए उनके कमरे की ओर जाते हुए।

"चल अब नेहा मेरे साथ विस्तार से बता सारे हफ्ते की दास्तान ," सुशी बुआ ने मुझे उठाते हुए कहा , "और सुनिए जी आप और जेठजी जल्दी से आइये। आपको नहीं सुन्नी हमारी नेहा के अद्भुद कारनामे ?"
बड़े मां और छोटे मामा लपक कर खड़े हो गए। बड़े मामा ने मुझे बाँहों में उठा लिया ," भाई वाकई नेहा बिटिया , तुम्हारी चल तो वाकई दर्दीली से दिख रही है। "
"बड़े मामू , आदिल भैया और अकबर चाचू के मूसल साड़ी रात सहने पड़े तो किसी भी लड़की की चाल दर्दीली हो जाएगी," मैंने बड़े मां के कटाक्ष का जवाब बेहरमी से दे तो दिया पर जैसे ही छोटे मामा के ऊपर नाज़ा पड़ी तो शर्म से लाल हो गयी। 
"अरे शर्मा क्यों रही है। कमरे में पहुँचते ही अपने छोट मामा से भी दोस्ती कर लेना।," सुशी बुआ ने मेरा और भी मज़ाक बनाया। 
कमरे में बुआ हम सबको लाल मदिर के गिलास बनाये और एलान किया ,"चलिए आप दोनों अपनी भांजी के कपडे उतरिये। उसका किस्सा कपडे पहन कर नहीं ," शर्माती तो रही पर बड़े मामा और छोट मामा ने मेरा कुरता उतार दिया। मैंने ब्रा नहीं पहनी थी। बड़े मामा ने सलवार का नाड़ा खोल कर सलवार ही नहीं मेरा जांघिया भी उतर फेंका। 
"चल अब इन्तिज़ार किस बात का है। अपने छोटे मामा के कपडे उतार नेहा। जब तक मैं अपने प्यारे जेठजी का ख्याल करतीं हुँ। " सुशी बुआ ने बड़े मामा को वस्त्रहीन करने में बहुत देर नहीं लगायी। 
मैंने भी शर्म का आँचल छोड़ कर छोटे मामा का कुरता पजामा उतार दिया। छोटे मामा ने बड़े मामा की तरह पाजामे के नीचे कच्चा नहीं पहना था। उनका दानवीय लंड हाथी की सूंड की तरह उनकी विशाल बालों से भरी जांघों के बीच लहरा रहा था। 
"अरे नेहा क्या नाटक कर रही है। अब तक तेरे छोटे मामू का लंड तेरे मुंह में क्यों नहीं है। जल्दी से तैयार कर अपने छोटे मामू का लंड। मुझे अकबर भैया के घर में हुए तेरे कारनामों की कहानी सुननी है ," सुशी बुआ ने मुस्करा कर तना मारा और अगले क्षण उनका मुँह बड़े मामा के मोटे लंड से भर गया। 
मैंने भी थोड़ा सा , बस थोड़ा सा ही, शरमाते हुए छोटे मामू का भारी भरकम लंड के सेब जैसे मोटे सुपाड़े को मुश्किल से अपने मुंह में ले लिया। मुश्किल से जगह बची थी मेरे मुँह में अपनी जीभ को उनके सुपाड़ी को सहलाने के लिए। मैं अपने नन्हे हाथों से उनके मुस्टंड होते लंड के खम्बे को सहलाते हुए अपने छोटे मामू की लंड को अपनी आफत बुलवाने के लिए तैयार करने लगी। बड़े मामू और छोटे मामू के लंड कुछ ही क्षणों में प्रचंड हो चले थे। उनके भीमकाय पुरुषत्व विज्ञप्ति के हथियार अपनी छोटी बहु और नन्ही भांजी की निर्मम पर अगम्यागमनी वासनामयी चुदाई के लिए न केवल तैयार थे पर हिंसक ठर्राहट से चुनौती से दे रहे थे।
"चलो मेरे स्वामी अब अपनी नन्ही भांजी को घुड़ सवारी के लिए तैयार कर लो मैं अपने जेठ जी और आपके बड़े भैया के घोड़े पे चढ़ती हूँ। नेहा जब तू अच्छी और पूरी तरह अपने छोटे मामू के घोड़े पर चढ़ जाये तो शुरू कर अपनी कहानी । मेरी चूत कब से गीली है तेरी कहानी सुनने के लिए ," सुशी बुआ ने बड़े मामू को दीवान पर बिठा कर अपनी कमर उनके सीने की तरफ कर अपनी घने रेशमी रति रस से भीगी झांटों से ढकी चूत को बड़े मामू , अपने जेठ जी के महाकाय लंड के ऊपर टिका कर धीरे धीरे नीचे दबाने लगीं। इतने वर्षों से भीमकाय लंड अपनी चूत और गांड में लेने के बाद भी सुशी बुआ की चूत चरमरा उठी बड़े मामू की हर इंच के साथ। सुशी बुआ ने अपने निचला होंठ दांतों से दबा कर अपनी चूत में एक एक इंच कर बड़े मामू के लंड को पूरा निगल लिया। 
जब उनकी रेशमी झांटे बड़े मामू की खुरदुरी झांटों से संगम करने लगी तो सुशी बुआ का मुँह फिर से चल पड़ा ," सुनिए जी, पहली बार जा रहा आपका लंड अपनी नन्ही भांजी की चूत में। कोई हिचक मत कीजियेगा। नेहा की चूत कुलबुला न उठे तो मैं आपको नहीं दूँगी अपनी चूत एक हफ्ते तक , सिर्फ अपने जेठजी की सेवा करूंगी तब तक। "
सुशी बुआ ने मुश्किल से लिया था बड़े मामू का लंड पर अब इतरा रहीं थी और मेरी चूत की आफत बुलाने के लिए अपने पति, मेरे छोटे मामू, को चुनौती दे रहीं थीं। 
मुझे पता था की पुरुष का गर्व अपनी भ्याता के चुनौती से उग्र हो जायेगा। छोटे मामू ने मुझे घुमा कर मेरी गोल कमर को पकड़ कर हवा में उठा लिया। फिर मुझे खिलोने की तरह उछाल कर अपने हाथो से मेरी जांघों को पकड़ मुझे अपने लंड के ऊपर टिका लिया। कुछ कोशिशों के बाद और मेरे हाथों की अगुवाई से उनके लंड का सेब जैसा मोटा सुपाड़ा मेरी नहीं चूत के द्वार पर टिक गया। छोटे मामू ने अपने भारी चूतड़ों की एक लचक से अपना सुपाड़ा मेरी चूत में ठूंस दिया। मैं सिसक उठी और आगे आने वाले मीठे पर जानलेवा दर्द की तैयारी के लिए अपने होंठ को दांतों से दबा लिया। पर साड़ी तैयारियां निरर्थक हो गयीं जब छोटे मामू ने अपने हाथो को ढीला छोड़ दिया। मेरा अपना वज़न ही मेरी आफत का औज़ार बन गया। मेरी चूत छोटे मामू के लंड के ऊपर रोलर-कोस्टर की तरह भीषण रफ़्तार से नीचे फिसल पड़ी। 
मेरी चीख मेरे हलक से उबल कर कमरे को न भरती तो क्या करती ? " नहीईई ाआँह्ह्ह मा आ मू उउउ। "
पर जब तक में संभल पाती छोटे मामू की कर्कश घुंघराली झांटे मेरी रेशमी झांटो से उलझ गयीं थीं।
" हाय जी ,मैंने इतनी भी बेदर्दी दिखाने के लिए भी तो नहीं उकसाया था आपको ," वैसे तो सुशी बुआ मुझ पर तरस खा रहीं थी शब्दों से पर उनकी चमकीली भूरी आँखें ख़ुशी से उज्जवल हो गयीं थीं।
मामू भी मुझे गोद में ले कर दीवान पे बैठ गए अपने बड़े भैया के पास। अब सुशी बुआ और मैं दोनों भाइयों, बुआ अपने जेठजी और मैं अपने छोटे मामू , के महाकाय लंडो को अपनी चूतों में ले कर स्थिर होने लगीं। बड़े मामू और छोटे मामू के हाथों के आनंद के लिए चार चार गुदाज़, उरोज़ों का विकल्प था। सुशी बुआ की चूँचियाँ मेरी चूँचियों से कहीं ज़्यादा विशाल थीं और सुहागन परिपक्व स्त्रीत्व के सौंदर्य से भरी हुईं थीं। मेरी चूँचियों अभी भी कुंवारे - लड़कपन और अल्पव्यस्क अपरिपक्व तरुणा की तरह थीं। 
मैंने बड़ी सी सांस भर कर अकबर चाचू के घर में अपने हफ्ते भर की कारनामों की दास्तान शुरू कर दी। छोटे मामू के हाथों ने एक क्षण के लिए भी मेरे उरोजों को अकेला नहीं छोड़ा। जैसे जैसे कहानी के कामुक प्रसंग आते मेरी चूचियों की सहमत आ जाती। छोटे मामू का लंड मेरी तंग नन्ही चूत में मचलने थिरकने लगता। सुशी बुआ का भी हाल मुझसे अच्छा नहीं था। पर सुशी बुआ मुझे रोक कर उन कथांशों का और भी विस्तार भरा विवरण बताने के लिए डाँट देतीं । 
जब तक मैंने शादी की रात का पूरा विवरण दिया तो दोनों पुरुषों के लंड की थरथराहट महसूस करने वाली थी। 
जब मैं आखिरी रात पर आयी, जिस दिन और रात शब्बो बुआ , नूसी आपा और शन्नो ने आदिल भैया और अकबर चाचू सिर्फ मुझे चोदने के लिए छोड़ दिया था उसका विवरण सुन कर सुशी बुआ सिसकने लगीं। छोटे मामू ने मेरी छोचियों को और भी बेदर्दी से मसलते हुए मेरे चूचुकों को रेडियो की घुंडियों की तरह मरोड़ने मसलने लगे। 
मैं सिसक सिसक कर अच्छी भांजी की तरह कहानी को बिना रुके सुनती रही। आखिर कर मैं आदिल भैया और अकबर चाचू की इकट्ठे मेरी चूत और गांड की चुदाई की प्रसंग पर आ गयी।
अब मैं भी सुशी बुआ की तरह मामू के लंड के ऊपर अपनी चूत मसलने लगी। जैसे ही मेरी कहानी में आदिल भैया और अकबर चाचू के लंडों ने मेरी चूत और गांड में गरम वीर्य की बारिश की तो बुआ और मैं भी भरभरा कर झड़ गयीं। 
"अब नहीं रुका जाता , जेठजी अब चोद दीजिये अपनी बहू को। आप भी फाड़ दीजिये अपनी भांजी की चूत। आज रात आप दोनों मिल कर इसकी चूत और गांड की धज्जियाँ दीजियेगा ,"सुशी बुआ ने सिसक कर गुहार मारी। 
"छोटे मामू मुझे भी चुदना है अब," मैं भी मचल कर सिसकी। 
छोटे मामू ने मुझे पलट कर पेट के ऊपर दीवान पर लिटा पट्ट दिया। उनका भरी भरकम शरीर मेरे ऊपर विरजमान था। छोटे मामू का लंड उस मुद्रा में मेरी चूत को और भी दर्द कर रहा था। 
बड़े मामू ने सुशी बुआ को निहुरा कर घोड़े बना दिया और फिर शुरू हुआ भीषण चुदाई का प्रारम्भ सुशी बुआ के शयनकक्ष में।
मेरी चूत बिलबिला उठी जैसे ही छोटे मामू ने चुदाई की रफ़्तार बड़ाई। मेरे पट लेते हुए शरीर के ऊपर उनके भरी शक्तिशाली बदन का पूरा वज़न मेरे ऊपर था। मेरी नन्ही चूत और भी तंग हो गयी थी। मामू अपने हाथ मेरे सीने के नीचे खिसका कर मेरे पसीने से उरोजों को अपने विशाल हाथों में जकड़ कर मसलने लगे। उनका लंड मेरी चूत में दनादन अंदर बाहर आ जा रहा था। उनके लंड की भयंकर धक्कों से मेरी चूत चरमरा उठी। उधर बड़े मामू शुरुआत से ही सुशी बुआ की चूत की भीषण चुदाई कर रहे थे।
हम दोनों की चूतों से महाकाय लौंड़ों की चुदाई की गर्मी से पचक पचक की अश्लील आवाज़ें उबलने लगीं। 
सुशी बुआ वासना के ज़्वर से जल उठीं ," रवि भैया आ.... आ ... आ ..... आ.........हाय आप मेरी चूत फाड़ कर ही मानोगे। "
मेरी हालत भी ख़राब थी। मेरी तरुण चुदाई का अनुभव सुशी बुआ के परिपक्व तज़ुर्बे के सामने बचपन के समान था। 
मैं सिर्फ बिलबिलाती सिसकती रही और छोटे मामू ने घंटे भर रौंदी मेरी चूत निर्मम लंड के धक्कों से। मैं न जाने कितनी बार झड़ गयी थी। 
मैं छोटे मामू की मर्दानी चुदाई की थकन से शिथिल हो चली थी।
बड़े मामू ने अपना रतिरस से लिसा लंड सुशी बुआ की चूत में से निकाल कर दीवान पर चित्त कर दिया भीषण धक्के से और उनके विशाल गदराये नितम्बों को चौड़ा कर अपने महालँड के सुपाड़ी को बुआ की गांड के ऊपर टिका दिया। फिर जो बड़े ममौ ने किया उसे देख कर मेरी आँखें फट गयीं। बड़े मामू ने अपने पूरे वज़न को ढीला छोड़ दिया और उनका लंड एक भीषण जानलेवा धक्के से सुशी बुआ की कसी गांड में समा गया।
सुशी बुआ की चीख कमरे में गूँज उठी, " नहींईई ई उननननन मर गयी माँ मैं तो।" बिलबिला उठी दर्द से सुशी बुआ। 
बड़ी मामू ने अपनी बहु की हृदय हिला देने वाली गुहार को अनदेखा कर अपने लंड को बाहर निकाला और फिर उसी बेदर्दी से बुआ की गांड में ठूंस दिया। बुआ अपने जेठ के भारी भरकम शरीर के नीचे दबीं सिर्फ बिलबिलाने और चीखने और अपनी गांड को अपने जेठ के हवाले करने के अल्वा कोई और चारा नहीं था। 
छोटे मामू ने भी मौका देखा और मेरे कान में फुसफुसाए ,"नेहा बेटी अब तेरी गांड का नंबर है ?"
इस से पहले मैं कुछ बोल पाती छोटे मामू के लंड ने मेरी चूत में एक नया रतिनिष्पत्ति का तूफ़ान फैला दिया। जब तक मैं झड़ने की मीठी पीड़ा से निकल पाती छोटे मामू ने मेरे गोल गोल चूतड़ों को फैला कर मेरी चूत के रस से लिसे लंड को मेरी गांड के ऊपर दबाने लगे। भगवान् की दया से उन्होंने अपने बड़े भैया की तरह मेरी गांड में अपना वृहत लंड नहीं ठूंसा। पर धीरे धीरे इंच इंच करके दबाते रहे। मैं सिसकी और होंठ दबा कर दर्द को पीने लगी। छोटे मामू का लंड जड़ तक तक मेरी गांड में समा गया,तब तक मेरी साँसे अफरा तफरी में थीं। छोटे मामू ने मेरे सीने के नीचे हाथ डाल कर मेरे पसीने से गीले उरोज़ों को अपने फावड़े जैसे हाथों में जकड़ लिया।
मैं अब छोटे मामू के लंड की हर नस को अपनी गांड में महसूस करने लगी थी। छोटे मामू ने धीरे धीरे एक एक इंच करके अपने लंड का मोटा लम्बा तना मेरी गांड से बाहर निकाल लिया सिर्फ उनका बड़े सेब जैसा सुपाड़ा ही रह गया थे मेरी गांड के छल्ले के भीतर। मैं मन ही मन छोटे मामू को धन्यवाद दे रही थी, अपनी भांजी की प्यार और आराम से गांड मरने के लिए। फिर छोटे मामू ने जैसे मेरे विचारों को पढ़ लिया। ठीक अपने बड़े भैया जैसे पूरे वज़न से मेरी गांड लंड ठूंस दिया। मुझे लगा जैसे कोई गरम लौहे का खम्बा घुस गया हो मेरी गांड में। मेरी चीख निकली तो निकली पर मेरी आँखें बहने लगीं। दोनों मामा बेददृ से चोदने लगे सुशी बुआ और मेरी गाँडों को। बड़े मामू अपनी बिलबिलाती बहु की गांड का मंथन निर्मम धक्कों से कर रहे थे। छोटे मामू भी अपने बड़े भैया के पदचिन्हों के ऊपर चलते हुए अपनी छोटी बहन की षोडसी बेटी की गांड का मर्दन उसी बेदर्दी से कर रहे थे। 
दस पंद्रह मिनटों में बुआ और मैं चीखने बिलबिलाने की जगह सिसकने लगीं। कमरे में हम दोनों की गांड की मोहक सुगंध फ़ैल गयी। दोनों मामाओं के लंड बुआ और मेरी गांड के मक्खन को मथ रहे थे। हम दोनों की गांड के मक्खन चिकने हो गए उनके लंड तेज़ी से हम दोनों की गांड मरने सक्षम थे। दोनों बहियों में होड़ सी लग गयी की कौन बुआ और मेरी ऊंची सिसकारियां निकलवा सका था। बुआ और मैं तो लगातार झड़ रहीं थीं। घंटे भर बाद दोनों हलकी सी गुर्राहट मारी और हम दोनों की गांड भर दी अपने गाड़े गर्म वीर्य से।
जब हम दोनों को होश सा आया तो बड़े मामू सुशी बुआ के गोरे नितम्बों को चाट कर साफ़ कर रहे थे। छोटे मामू ने भी में मेरे चूतड़ों को अपने थूक से चमका दिया थे और अब मेरी सूजी लाल गांड के ढीले छल्ले के अंदर अपनी जीभ को डाल कर मेरी गांड के मथे मक्खन को तलाश रहे थे। 
सुशी बुआ ने अपने पति, मेरे छोटे मामू से कहा ,"अरे सुनिए तो। मुझे तो चखा दो मेरे प्यारी भांजी की गांड के रस को। "
छोटे मामू ने मेरी गांड के रस से लिसे लंड को सौंप दिया अपनी अर्धांगिनी के मुँह के ऊपर और मुझे मिल गया सुशी बुआ के मीठी गांड के मक्खन से लिसे बड़े मामू का लंड। हम दोनों तो स्वर्ग में थी। सुशी बुआ की गांड के रस ने मेरी लार टपका दी। हम दोनों ने दिल लगा कर दोनों लंडों को चूम चाट कर चमका दिया। 
लेकिन हम दोनों के प्यार ने दोनों लंडों को लौहे के तने जैसा तन्ना दिया ,दोनों मामा तैयार थे अपने फौलादी अमानवीय आकार के लंड हांथो में लिए। 
"छोटू चल अब जैसा अंजनी और सुन्नी के साथ किया था, कब तेरी भाभी अपने मायके गयी थी, वो पोजीशन बना दे इस बार," सुशी बुआ की आँखें चकने लगीं। मैं भी वासना की बिजली से मचल उठी। मेरी मम्मी और भाभी को मेरे दोनों मामाओं ने किसी ख़ास अंदाज़ में चोदा थे। 
छोटे मामू दिवान पे लेट गए और सुशी बुआ की विशाल गांड के चूतड़ उनके मुँह के ऊपर थे। बड़े मामू ने मेरी चूत को अपने छोटे भाई से लंड के ऊपर टिका दिया। जैसे तैसे मैंने छोटे मामू का पूरा लंड ले लिया अपनी चूत में। फिर मेरी तौबा बुलवाई बड़े मामू ने। मेरी गांड में उनका लंड मुश्किल से घुस पा रहा था। जैसे ही उनका सुपाड़ा अंदर घुस तो समझिये किला फतह हो गया। बड़े मामू ने मेरे गदराये चूतड़ों को कस के जकड़ कर पांच छह धक्कों में अपना लंड पुअर का पुअर जड़ तक ठूंस दिया मेरी नन्ही षोडसी गांड में। बड़े मामू ने मेरा मुँह दबा दिया थे बुआ की फैली गांड के ऊपर। मेरी चीखें ज़रूए बुआ की गांड के ऊपर गुदगुदी दे रहीं होंगी। 
फिर दौड़ने मामाओं ने पांच दस मिनटों में ले से बाँध ली मेरी दोहरी चुदाई की। अब आया वो मौका जिसको मैं हमेशा याद रखुंगीं। बड़े मामू ने मेरे हाथ को सुशी बुआ की घने झांटों से ढकी छूट के ऊपर टिका दिया बाकि काम मेरी कल्पना ने कर दिया। 
मैंने अपनी गांड और चूत की एक साथ दर्दीली चुदाई के दर्द को बुआ की चूत के साथ बांटने ने निश्चय कर लिया। हाथ की नोक बना कर मैंने सुशी बुआ की चूत चोदने लगी। धीरे धीरे उनकी सिसकियाँ निकलने लगीं। मैंने मौका देख कर कलाई तक ठूंस दिया अपना हाथ सुशी बुआ की चूत में। सुशी बुआ दर्द से बिबिला उठीं ,"मार देगी नेहा अपनी बुआ को। धीरे धीरे चोद तेरी माँ की तरह इस चूत में से तेरे तरह की रंडी भांजी नहीं निकली है अभी तक। "
छोटे मामू के मज़बूत फावड़े जैसे हाथों में बुआ को हिलने डुलने नहीं दिया। मैंने बुआ के कुंवारे गर्भाशय की ग्रीवा को महसूस किया। मैंने एक एक कर अपनी उँगलियों से बुआ के गर्भाशय के ग्रीवा उर्फ़ र्सर्विक्स के द्वार को खोलने लगी। जैसे ही मुझे लगा की मेरी पाँचों उँगलियों की नोक उनके गर्भाशय के नन्हे द्वार में फंस गयीं है। मैंने बेदर्दी से अपना हाथ पाँचों उँगलियों के पोरों तक ठूंस दिया। बुआ की चीख गूँज उठी कमरे में। दर्द से बिलबिलाती बुआ ने गुहार लगायी, "मर गयी बेटी धीरे धीरे मार अपनी बुआ की चूत मुट्ठी से। "
मैंने बुआ की गुहार को अनदेखा कर अपनी उंगलयों को घुमा घुमा कर बुआ के गर्भाशय के द्वार को चौड़ाने लगी।जब मुझे लगा की बुआ की चीखें सिसकारियों में बदल गयीं हैं। तभी मैंने पूरे ज़ोर से ठूंस दिया अपना पूरा हाथ बुआ के गर्भाशय में। बुआ तपड़ उठी दर्द से जैसे किसी ने उन्हें बिजली के जीवित तार से छु दिया हो। 
मेरा हाथ और कलाई अब बुआ की चूत में थे। मैंने धीरे धीरे बस के गर्भाशय की चुदाई शुरू कर दी। मेरे निर्मम मुट्ठ-चुदाई से बुआ की कोमल चूत और गर्भाशय के दीवारों से खून निकल गया था। पर अब अचानक बुआ कल्पने लगीं वासना के ज्वर से , "चोद दे अपनी बुआ की चूत नेहा बेटी। फाड़ दाल अपनी बुआ के बंजर गर्भ को। हाय मैं झड़ने लगीं हूँ। और जोर से नेहा आ आ आ आ आ। "
कमरे में अब भीषण चुदाई का माहौल बन गया। मैं अब पागलों की तरह निर्मम धक्कों से बुआ की चूत और गर्भाशय को कोहनी तक हाथ ठूंस कर चोद रही थी। मेरे दोनों मामा भी उतनी ही बेदर्दी से मेरी चूत और गांड चोद रहे थे। पता नहीं कब तक चला इस चुदाई सिलसिला। डेढ़ घंटे बाद बुआ और मैं बेहोशी के आलम में दोनों मामाओं के गरम वीर्य को सटक रहीं थीं। 
बुआ की चूत में से टपकते खून की बूंदो को चाट कर साफ़ कर दिया मैंने। 
फिर बुआ ने सुनहरी शर्बत माँगा अपने पति और जेठ से। दोनों ने बारी बारी से अपना सुनहरी गर्म शर्बत आधा आधा बाँटा हम दोनों के बीच में। हमारी संतुष्टि के बाद बुआ और मैंने भी दोनों मामाओं को अपन्ना सुनहरी शर्बत ईमानदारी से आधा आधा बाँट कर पिलाया। उस रात कितनी ही मुद्राओं में चोदा बड़े और छोटे मामू ने मुझे और बुआ को। सुबह जब मैं उठी तो बहुत देर हो गयी थी।

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#45
Update 41

नाश्ते की मेज़ पर नानाजी और बुआ थीं। बाकी सब अपने प्रोग्राम और योनाओं के मुताबिक कहीं न कहीं चले गए थे। 
मैं दौड़ कर नानाजी की गोद में बैठ गयी। उन्होंने अखबार बंद कर के मुझे अपनी मज़बूत बाँहों में भींच लिया। बुआ ने मुझे नाश्ता परोसा और फिर चिढ़ाया , "देख मेरे ससुरजी कितने बेचैन थे तुझे देखे बिना। रोज़ पूछते थे कि कब वापस आएगी नेहा अकबर भैया के घर से ?अब आराम से सुनाना अपने नानू को पूरे का पूरा किस्सा। "
मैं शर्म से लाल हो गयी और अपने मुँह ननु की घने बालों से ढके सीने में छुपा लिया। 
नानाजी और बुआ हंस पड़े , "बहु और मत छेड़ो हमारी नन्ही नातिन (धेवती) को। वैसे तेरा क्या प्लान है सुशी बेटी। "
सुशी बुआ इठला कर बोलीं ,"नन्ही नहीं है आपकी प्यारी धेवती बाबूजी। आपके दोनों बेटे अपनी बहन को ले गए है दिन भर खरीदारी करने को। आखिर खास दिन है आज आप चारों के लिए। पारो आज बहुत थकी थी तो मैंने उसे आराम करने को कह दिया है। इसीसलिए मैं अपने पापा की मालिश करने जाने वालीं हूँ।अक्कू भैया (यानि मेरे पापा ) मम्मी के साथ झील पर गए हुए है। "
पारो हमारे घर की मालिश की ज़िम्मेदार थी। पारो दीदी पांच फुट दो इंच की गठीली सुंदर स्त्री थी। उसकी शादी रिश्तेदारों के धोके से एक कुटिल व्यक्ति से हो गयी। जब उनके ऊपर होते अत्याचार के बारे में मामाओं को पता चला तो उन्होंने न सिर्फ उनके निकम्मे पति को सबक सिखाया पर उन्हें घर ले आये। अब पारो और उनके विधुर पिताजी प्रेम से पारो की बेटी पाल रहे थे । उसके पिता रामचंद उर्फ़ जग रामू काका हमारे घर के मुख्य बावर्ची थे। 
नानाजी ने मुस्कुरा कर मुझे पूछा ,"नेहा बेटी तेरा क्या प्लान है ?"
मैं कल रात की भयंकर चुदाई से थकी हुई थी पर ना जाने क्यों मुझे अब बुआ और नानाजी के अनकहे विचार साफ़ दिखने लगे। 
"नानू, यदि बुआ दादू की मालिश करेंगी तो मैं आपकी मालिश करूंगी आज।" मैंने नानू के होंठो को चूमा प्यार से। 
"याद है जब तू बोर कर देती थी नानू और दादू को "डंडी कहाँ छुपाई " खिलवा कर ? आज क्यों नहीं खेलती वो खेल पर नए तरीके से ? क्या मैंने गलत कहा बाबू जी?" सुशी बुआ अब पूरे प्रवाह में थीं। 
"बहु जैसा नेहा कहेगी उसके नानू और दादू वैसे ही खेलने को तैयार हैं ,"मुझे नानू के शब्दों में और कुछ ही सुनाई दिया और मैं रोमांचित हो गयी उन अनकहे शब्दों के विचारों से। 
सुशी बुआ ने हमारे घर की खासियत मालिश के तेल का सोने का डोंगा मुझे थमा दिया। मालिश का तेल गोले और सरसों के तेल के अलावा, ताज़े मक्ख़न का ख़ास मिश्रण था। 
सुशी बुआ वैसा ही सोने का दूसरा डोंगा लेकर अपनी विशाल गांड हिलती दादू के कमरे की ओर चल दीं। 
"नानू चलिए मैं भी आपकी मालिश करती हूँ ,"नानू ने मुझे बाहों में उठा लिया। जैसा घर का माहौल था। मैंने सिर्फ पापा की टी शर्ट पहनी थी। मुझे उसी समय याद आया कि नीचे मैंने पैंटी नहीं पहनी थी। पर नानू की बाहों में झूलते मुझे कोई शर्म नहीं आयी। शायद अब मुझे अपने घर मके सदस्यों के बीच अथाह प्रेम की कुंजी मिलने वाली थी। 
नानू ने मुझे कमरे में लेजा कर फर्श पर नीचे खड़ा कर दिया ,"नानू चलिए बिस्तर में। कपड़े उतारिये आज नेहा मालिश्ये की मालिश से आप सब मालिशें भूल जायेंगें। " मैंने छाती बाहर निकलते हुए नाटकीय अंदाज़ में कहा। 
नानू हँसते हुए शीघ्र अपना कुरता और पजामा निकाल कर बॉक्सर शॉर्ट्स में खड़े थे। उस उम्र में भी नानू का पहलवानों जैसा बालों से भरा शरीर ने मुझे पहली बार नानू को एक पुरुष की तरह देखने के लिए विवश कर दिया। मेरे विचारों में अकबर चाचू के पारिवारिक प्रेम की यांदें ताज़ा हो गयीं। नानू पेट के बल लेट गए थे बिस्तर पे। 
"नानू कहीं पूरे कपड़े बिना उतारे कोई अच्छी मालिश हो सकती है ?"मैंने नानू के बॉक्सर को पकड़ कर नीचे खींच कर उतर दिया, नानू ने अपने भारी भरकम बालों से भरे कूल्हों को उठा कर पेरी मदद की। 
नानू का विशाल शरीर अब मेरी आँखों के सामने था। विशाल पेड़ के तनो जैसे जाँघे , चौड़ी कमर और बहुत चौड़ा सीना , बहु बलशाली भुजाएं। मुझे अपनी चूत में जानी पहचानी कुलबुलाहट होती महसूस होने लगी।
"नेहा बेटी पारो अपने कपड़े तेल से ख़राब होने से बचाने के लिए सब उतार कर मालिश करती है ,"यदि नानू की आवाज़ में नटखटपन था तो मुझे अपने कानो में सांय-सांय जैसी आवाज़ों में नहीं समझा पड़ा। 
मैंने बिना एक क्षण सोचे अपनी लम्बी टी शर्त उतर दी। मैंने खूब तेल लगा कर ज़ोर से मालिश की नानू के कमर कन्धों, जांघों की। फिर मैं घोड़े की तरह उनकी जाँघों के ऊपर स्वर हो कर उनके विशाल चूतड़ों की मालिश करने लगी। नानू की साँसे बहुत मधुर मधुर लग रहीं थी मुझे। मैंने उनके चूतड़ों को फैला कर उनकी घने बालों से ढकी गांड के ऊपर मालिश का तेल गिरा कर अपनी ऊँगली से चूतड़ों की दरार की मालिश के बहाने उनकी गांड की छेद को सहलाने लगी। मेरी चूत में रस की बाढ़ आ गयी। 
मैंने सूखे गले से निकली आवाज़ में कहा ,"नानू अब पलट जाइये। आपके सामने की मालिश का नंबर है अब। "
नानू बिना कुछ बोले अपनी पीठ पर पलट गए। इन्होने कई सालों के बाद अपनी प्यारी षोडसी धेवती के विकसित होते नग्न शरीर को पुरुष की निगाहों से सराहा और मैं अपने नेत्र नानू के विशाल अजगर से नहीं हटा पायी। बड़े मामू जैसा विशाल मोटा मूसल झूल रहा था नानू की वृहत जाँघों के बीच में। 
मैंने हम दोनों का ध्यान हटाने के लिए ऐसे व्यवहार किया जैसे मैं हर रोज़ नग्न हो कर उनकी मालिश करती थी। नानू आँखें मूँद ली शायद आगे आने वाले मालिश के आनंद के लिए। 
मैंने उनकी विशाल सीने की तेल लगा लगा कर ज़ोर से मालिश की। 
फिर उनके काफी बाहर निकले पेट की मालिश। मेरी आँखें नानू के अजगर जैसे महा लंड से हट ही नहीं पा रहीं थीं। मैंने दिल मज़बूत करके अपना ध्यान नानू की जाँघों पर लगाया। मैंने उनके पैर की हर ऊँगली की मालिश करते हुए फिर से उनकी जाँघों को तेल से मसलते हुए उनकी जांघों के बीच दुबारा पहुँच गयी और मरी चीख निकलते निकलते रह गयी। 
नानू का लंड अब खम्बे जैसा तन्ना कर्व थरथरा रह था। मेरा गला सूख गया। मेरी साँसें भारी हो गयीं। अब मेरी आँखें नानू के लंड से हटने में पूर्णरूप से अशक्षम थीं। नानू का लंड ने मानो मुझे सम्मोहित (हिप्नोटाइज़) कर दिया था। 
"नानू अब मैं आपके ख्माबे की मालिश करने लगीं हूँ। पारो भी तो करती होगी इसकी मालिश," मेरा हलक सूख चूका था रोमांच से। मेरी आवाज़ मेढकों जैसे टर्र-टर्र की तरह भारी थी। 
"बेटा पारो कोई हिस्सा नहीं छोड़ती ,"नानू की आखें बंद थी और उनके होंठों पर मंद मंद मुस्कान खेल रही थी। 
मैंने खूब सारा तेल लगा कर कंपते हाथों से नानू के महालँड को पकड़ लिया। परे दोनों हाथों की उँगलियाँ नानू के लंड की परिधि को घेरने में पूरी तरह असफल थीं। नानू का लंड अपने बेटों जैसा लम्बा मोटा था। आखिर सेब पेड़ से ज़्यादा दूर तो नहीं टपकेगा। 
मैंने मन लगा कर तेल से चिकेन नानू के लंड को खूब ज़ोर से सहला सहला कर उसकी मालिश की। अब मुहसे रुका नहीं जा रहा था। मैं कुछ बोलना ही चाह रही थी कि नानू ने प्यार से कहा ,"नेहा बेटा पारो से मत कहना पर इतनी अच्छी मालिश तो मुझे हमेशा याद रहेगी। अब तू तक गयी होगी यदि तेरा मन करे तो हम "डंडी कहाँ छुपाई" खेल सकते है।"
मैं अब नानू के तेल से लिसे चकते महा लंड को अपने नहीं हाथों से सहला रही थी मुझे पता नहीं कहाँ से साहस आ गया , "नानू आप बुआ वाले नये खेल की बात कर रहें हैं या बचपन वाले खेल की। "
"नेहा बेटा अब तो तू बड़ी हो गयी है शायद बचपन वाले खेल से जल्दी ऊब जाएगी," नानू ने अचानक आँखें खोल दीं। मैं शर्म गयी पर मेरे हाथ नहीं हिले नानू के लंड के ऊपर से। 
"नानू मैं छुपाऊं डंडी को ?"मैंने थरथरती आवाज़ में पूछा।
"हाँ बेटा जहाँ मर्ज़ी हो छुपा लो डंडी को फिर मैं कोशिश करूंगा ढूँढ़ने की ,"नानू अब मुस्कुरा कर मुझे बेचैन कर रहे थे। 
उस खेल में एक खिलाड़ी डंडी को चुप देता था एक खांचे में और फिर दुसरे को अंदाज़ लगाना होता था की किस खांचे में थी डंडी। यदि सही अंदाज़ लग जाता तो दुसरे को उस खांचे के नंबर मिलते अन्यथा छुपाने वाले को नंबर मिल जाते।
मैंने अब सम्मोहित कन्या की तरह एक तक नानू के एक आँख वाले अजगर को स्थिर कर अपनी नन्ही चूत के द्वार को उनके बड़े सेब जैसे सुपाड़ी के ऊपर टिका दिया।
नानू ने मेरी कमर पकड़ ली अपने मज़बूत हांथो से। मैं भूल गया बुआ के मालिश वाले तेल की करामत। जैसे मैंने अपने हाथों को नानू के लंड से उठाया मेरी चूत बिजली के रफ्तार से उनके तेल से लिसे महालँड के ऊपर फिसल गयी। मैं चीखते हुए नानू की छाती के ऊपर गिर गयी। 
नानू ने मेरे कान में फुसफुसाया, "नेहा बेटा , हमें पता है आपने डंडी कहाँ छुपाई है."
मैं अब वासना से पागल हो चुकी थी ,"नानू मैंने डंडी नहीं खम्बा छुपा लिया है आपकी धेवती की चूत में। अब आप पानी धेवती की चूत का उद्धार कर दीजिये। "मैं बिलबिलाते हुए बोली। 
नानू ने मुझे कमर से पकड़ कर गुड़िया की तरह ऊपर नीचे करने लगे।तेल की माया से उनका महालँड मेरी चूत में जानलेवा ताकत से अंदर बाहर आ जा रहा था। 
मेरी चूत रस से तो भरी हुई थी और मैं इतनी देर से गर्म थी कि मैं पांच धक्कों के बा भरभरा कर झड़ गयी ,"नानू आह झाड़ गयी मैं नानू ऊ ऊऊऊ ऊंणंन्न," मेरी चूत में से अब अश्लील फचक फचक की आवाज़ें फूट पड़ीं। आधे घंटे तक नानू ने मुझे अपने ऊपर बैठ आकर चोदने के बाद निहुरा दिया बिस्तर पे और फिर तीन भीषण धक्कों में अपना पूरा लंड थोक दिया मेरी नन्ही चूत में। 
अब मेरी चूचियां नानू के खेलने के लिए लटक रहीं थीं। नानू ने मेरी चूत का मर्दन किया प्यार भरी निर्ममता से। मैं झड़ते झड़ते थकने लगी। 
नानू ने मुझे पीठ के ऊपर पटक कर पूरे अपने वज़न से दबा कर फिर से मेरी चूत में ठूंस दिया अपने महा विकराल लंड। 
मुझे छह बार और झाड़ कर नानू ने मेरे अल्पविकसित गर्भाशय को नहला दिया अपने गरम जननक्षम गड़े वीर्य से। उनके लंड से फूटती बौछार एक दो गुहारें नहीं थी पर मानसून जैसे सैलाब की बारिश थी। 
नानू ने मुझे प्यार से चूम कर मदहोश कर दिया। मैंने शर्मा कर अपना लाल मुँह नानू के सीने में छुपा लिया, "नानू आप जीत गए इस बार। आपका खम्बा आपकी नातिन की चूत में ही छुपा था। "
"नेहा बेटा , हम दोनों ही जीत गए है और अगली कई बार ,"नानू ने मेरे थिरकते होंठो को चूसते हुए कहा। 
"नानू अब कहाँ और छुपायेंगे अपने खम्बे को ?" मैंने अपनी सहमत खुद बुलवाने का इंतिज़ाम कर लिया था। 
"नेहा बेटा अभी एक और मीठी, घरी रेशमी सुरंग है हमरो नातिन के पास। इस बार खम्बा वहीँ छुपेगा ," नानू ने मुस्कुरा कर मुख्य फिर निहुरा दिया और घोड़ी बना दिया। 
नानू ने तेल से मेरी गांड भर दी और फिर खूब तेल लगाया अपने महा लंड के ऊपर, "नेहा बेटा फ़िक्र मत करना। धीरे धीरे डालेंगे तेरी गांड में। "
मैं बिलख उठी ,"नानू धीरे धीरे क्यों ? अपनी नातिन की गांड पहली बार मार रहें है आप। चीखें न निकलें तो आपकी नातिन को कैसे याद रहेगी पहली बार। "
फिर नानू ने जो किया उस से मेरी जान निकल गयी। नानू ने तेल मुझपे दया दिखने के लिए नहीं लगाया था पर उन्होंने मेरी गांड में अपना लंड भयंकर आसानी से ठूंसने के लिए लगाया था। मेरी चीख एक बार निकली तो मानो सौ बार निकली। नानू का सुपाड़ा मुश्किल से अंदर घुस था कि नानू ने अपने बलशाली शरीर की ताकत से अपना चिकना तेल लिसा विक्राल लंड तीन भीषण धक्को से जड़ तक मेरी गांड में ठूंस दिया। 
मेरी आँखे भर गयीं दर्दीले आंसुओं से, नानू ने बिना मुझे सांस भरने का मौका दिए मेरी गांड भीषण तेज़ी और तख्त से मारनी शुरू की तो न धीमे हुए और न रुके एक क्षण को भी। मेरी चीखें सिसकियों में बदल गयीं। मेरी गांड की महक से कमरा भर गया। नानू का लंड रेलगाड़ी के इंजन ले पिस्टन की तरह मेरी गांड का मर्दन कर रहा था। 
डेढ़ घंटे तक नानू ने बिना थके मारी मेरी गांड। मैं तो झड़ते झड़ते निहाल हो गयी। नानू ने अपनी नातिन की गांड उद्धार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मैं थक के चूर चूर हो गयी नांउं ने मुझे धक्के से पट्ट , मुँह के बल , बस्तर पे लिटा कर मेरी गांड को अपने गरम वीर्य से भरने लगे। मेरी गहरी गहरी साँसे मेरे कानों में गूँज रहीं थीं।
नानू ने मुझे बाहों में समेत कर होश में आने दिया। मैंने आज्ञाकारी नातिन की तरह नानू के अपनी गांड के रस से लिसे लंड को चाट चाट आकर बिलकुल थूक से चमका दिया। नानू ने भी मेरी गांड पे भयंकर चुदाई के मंथन से फैले गांड के रस को चूम चाट कर साफ़ किया। 
फिर नानू मुझे नहलाने ले गए स्नानग्रह में।
मुझे ज़ोर से पेशाब आ रहा था पर नानू ने मुझे रोक दिया और मैंने शरमाते हुए नानू का खुला मुँह भर दिया अपने छलछलाते सुनहरी शर्बत से। नानू ने प्रेम से उसे मकरंद की तरह सटक लिया ,पर पहले खूब मुँह में घुमा घुमा कर मुझे ज़ोर से पेशाब आ रहा था पर नानू ने मुझे रोक दिया और मैंने शरमाते हुए नानू का खुला मुँह भर दिया अपने छलछलाते सुनहरी शर्बत से। नानू ने प्रेम से उसे मकरंद की तरह सटक लिया ,पर पहले खूब मुँह में घुमा घुमा कर मेरे शर्बत को चखने के बाद ही सटका उसे। 
अब मेरी बारी थी नानू के अमृत को चखने की। नानू ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। मेरी तरह उनकी वस्ति भी भरी हुई थी और मुझे मन भर कर उनका अमृत स्वरुप सुनहरी शर्बत मिला पीने को।
मेरी गांड में ना केवल पिछले दिन का हलवा भरा हुआ था, उसके ऊपर कल रात की भयंकर चुदाई में दोनों मामाओं ने गांड भी दिल खोल कर मारिन थी। उसके ऊपर नानू ने गिलास भर वीर्य से लबालब भर दिया था। नानू मेरी हालत देख कर मुस्कुराये और मुझे सिंहासन पर बिठा कर मेरी टांगें अपने कन्धों पर दाल दीं। अब उन्हें मेरे विसर्जन का पूरा नज़ारा उनकी आँखों के सामने था। मैं पहले तो बहुत शर्मायी पर नानू के कहने से और मेरी खुद को रोकने की असफलता से मैंने अपनी गुदा को ढीला खोल दिया जैसे प्रकृति ने निश्चित किया था उसका प्रयोग। नानू ने उस मोहक दृश्य को सराहा जब तक मेरा विसर्जन पूरा खत्म नहीं हो गया। नानू की बारी थी अब पर उन्होंने मुझे खुद साफ़ नहीं करने दिया पर मुझे घुमा कर मेरे चूतड़ों की दरार को चाट चाट कर साफ़ ही नहीं किया बल्कि गुदाद्वार में जीभ घुसाकर अंदर तक साफ़ किया। 
अब मैंने नानू के विसर्जन का मनमोहक दृश्य अपने मस्तिष्क में भर लिया। मैं भी तो नानू की नातिन थी। मैंने भी उनके विशाल चूतड़ों को फैला कर बिलकुल साफ़ कर दिया उनकी दरार को और गुदाद्वार को। 
फिर नानू और मैंने उनके दांतों के ब्रशसुबह की सफाई की। नहाते समय नानू ने साबुन लगते लगते मुझे फिर से गरम कर दिया। इस बार नानू ने मुझे शॉवर की दीवार से लगा कर निहुराया और फिर बिना तरस खाये मेरी चूत में ठूंस दिया अपना विक्राल लंड तीन धक्कों में। पहले तो मैं चीखी हमेशा की तरह फिर सिसकारियां मरते हुए झड़ गयी। नानू ने आधा घंटा चोदा मुझे मैं ततड़प उठी अनेकों बार झाड़ कर। आखिरकार नानू ने एक बार फिर से मेरे किशोर गर्भाशय को अपने वीर्य से नहला दिया। 
हम दोनों को खूब भूख लगी थी। मैंने नानू की गोल्फ टी शर्ट पहन ली। मैं नानू की गोद में बैठी थी। खाने पर मैंने नानू से पूछा,"नानू आज क्या ख़ास दिन है मम्मी, आपके और मामाओं के लिए ?"
नानू ने मुझे चूमा ,"आज रजत सालगिरह (सिल्वर एनिवर्सरी) है हमारे और सुन्नी के संसर्ग की।"
मैं हतप्रभ रह गयी। मम्मी मुझसे भी चार साल छोटी थीं जब उन्होंने पहली बार नानू को अपना कौमार्य सौंपा था। उनके बड़े भाई कहाँ पीछे रहने वाले थे। 
"नेहा बेटा , हमारे सुईठे के साथ एक गलियारा है जिस से शयन कक्ष और स्नानगृह साफ़ साफ़ दिखता है। अगर तेरा दिलम चाहे तो वहां से अपनी मम्मी के कौमार्यभाग की पच्चीसवीं ( २५वीं ) वर्षगांठ का अनुष्ठान देख सकती है। "नानू ने मेरे स्तनों को टी शर्त के ऊपर से मसलते हुए मुझे आमंत्रित किया। मैं अपनी मम्मी इस ख़ास वर्षगांठ का समारोह किसी भी वजह से देखने से नहीं चूक सकती थी। 
नानू को मैंने अकेला छोड़ दिया क्योंकि उन्होंने शयन ग्रह को अपन बेटी के अनुष्ठान के लोए तैयार करना था। 
मैं नानू के खोले नए राज का प्रयोग करने का उत्साह मुश्किल से दबा पा रही थी।
मैं नानू को उनके सुइट की ओर जाता छोड़ कर सुशी बुआ को चोरी छुपे देखने चल पड़ी। दादू दादी का मेहमान सुइट भी नानू जैसा था। अब मैं छुपे गलियारे में घुस गयी और मुझे तुरंत अपनी शैतानी भरी जस्सोस्सि का इनाम मिल गया। कमरे में दादू बिलकुल नंगे थे। उनका नानू जैसा ऊंचा पहलवानी घने बालों से भरा शरीर उनकी तोंद से और भी बलशाली लग रहा था। 
सुशी बुआ नीचे बैठी अपने पिता के विकराल लंड को चूस रहीं थीं। दादू का शरीर तेल से लिसा हुआ था। वैसे ही सुशी बुआ का शरीर भी। लगता था की दादू ने भी अपनी बेटी की मालिश भी करी थी। 
"सुशी बेटा अब हमें अपनी बेटी की चूत दुबारा चाहिए," दादू ने कहते हुए बुआ को उठा कर बिस्तर पे निहुरा दिया और दानवीय आकार का अपना मोटा अत्यंत लम्बा लंड बिना दया दिखाए अपनी बेटी की चूत में ठूंस दिया। सुशी बुआ चीखीं पर दर्द के बावजूद अपने पापा को उसत्साहित करने लगीं, "पापा और ज़ोर से चोदिये अपनी बेटी की चूत। भर दीजिये अपनी बेटी का गर्भाशय अपने वीर्य से। "
कमरे में बुआ की सिसकारियां और दादू के लंड और बुआ की चूत के संसर्ग से उपजीं फचक फचक की अव्वाज़ें गूंज उठीं। 
दादू ने दिल भर कर अपनी बेटी की चूत मारी। आधे घंटे में बुआ का झड़ झड़ के बुरा हाल हो गया। दादू ने पानी बेटी को गुड़िया की तरह उठा कर चित बिस्तर पे लिटा कर बुआ की गदरायी जांघें हवा में उठा कर चौड़ी फैला दीं। 
अब बुआ की घने घुंगराले गीली झांटों से ढकी खुली छूट का पूरा नज़ारा मेरी आँखों के सामने था। दादू ने बिना देर लगाए अपनी बिलखती सिसकती बेटी की चूत एक बार फिर से भर दी अपने महा लंड से। बुआ सिसक सिसक कर गुहार लगा रहीं थी ,"पापा चोदिये अपनी बेटी को। आह और ज़ोर से उन्। .. उन्। .... मार डाला पापा आपने। झड़ गयी मैं फिर से। "
दादू बेदर्दी से अपनी बेटी की चूचियां मसल रहे थे। ऐसा लगता था कि जैसे दादू बुआ के विशाल भारी चूचियों को उनकी छाती से उखाड़ने का प्रयास कर रहे थे। बुआ की सिसकियाँ उनके पापा की बेदर्दी से और ऊँची हो गयीं। 
दादू ने तीस चालीस मिनटों के बाद हुंकार कर अपनी बेटी की चूत में अपने वीर्य की बारिश कर दी। बुआ हलकी चीख के साथ फिर से झड़ गयीं। मुझे लग रहा था कि यह चुदाई सुबह से चल रही थी और बुआ का थकान बहुत गहरी थी। मेरा अंदाज़ा ठीक निकला दादू ने अपनी इंद्रप्रस्थ की परी जैसी सुंदर बेटी की गदरायी काया को अपनी बाहों में भरकर बिस्तर पे कुछ देर आराम करने के लिए लेट गए।
मैं चुपचाप वहां से निकल गयी और अपने कमरे में जा आकर दौड़ने के कपड़े पहन कर बाहर निकल पड़ी। अब मैं दादू की टी शर्ट के नीचे सिर्फ ट्रैक -सूट के पैंट पहने थी। मैंने धीरे धीरे अपनी गति बड़ा दी। हालाँकि वसंत के आने की तैयारी में थी पर तब भी हवा में ठंडापन था। पर नुझे शीघ्र ही पसीना आने लगा। पांच किलोमीटर दौड़ कर मैं वापस मुड़ चली घर की ओर। 
अब मैं पसीने से तराबोर थी और पसीने की बूंदे मेरी नाक की नोक के ऊपर मोतियों की तरह रुक कर नीचे गिर पड़तीं। मुझे ज्ञात नहीं था पर दादू की पुरानी टी शर्त इतनी झीनी थी कि मेरे पसीने से भीग कर वह बिलकुल पारदर्शक हो गयी थी। 
मैं हाँफते हाँफते घर के बाहर टेनिस कोर्ट के पास पहुँच कर गोल रास्ते के ऊपर च पड़ी। इसे गोल रास्ता इसलिए कहते थे क्योंकि इस रास्ते पर घर में काम करने वालों के मकान थे। जिससे किसीको यह महसून न हो की उनका घर किसी और के घर से दूर था। 
मुझे एक घर से दर्द से सिसकने की आवाज़ें सुनाई पड़ी। मैं नादानी में उस तरफ मुड़ पड़ी। खुली खिड़की से मुझे तुरंत अपनी गलती का आभास हो गया। यह घर हमारे सुरक्षा-अधिकारी का था। राजमनोहर सिंह, जग राज चाचा, चालीस साल के अत्यंत बलिष्ठ फ़ौज से रिटायर्ड थे। उनकी एक साल छोटी पत्नी रत्ना थीं। मनोहर बहुत चौड़े बलशाली काळा भुजंग पुरुष थे। बहुत लम्बे तो नहीं फिर भी पांच फुट आठ नौ इंच लम्बे दानवीय आकार के मालिक थे ।उनका चेहरा सुंदर तो नहीं पर मर्दाने आकर्षण से परिपूर्ण था। रत्ना चाची पांच फुट की गठीली गहरे रंग के शरीर की मलिका थीं। 
कमरे में रत्ना बिलकुल नग्न थीं और उनके सामने एक और उनके जैसे ही काया की मालकिन पर बहुत युवा लगने वाली कन्या निहुरी हुई थी। राजू चाचा उस कन्या के गदराये चूतड़ों को फैला कर पीछे से उसकी चूत और गांड चाट रहे थे। 
उस कन्या की सिसकियाँ निकल रहीं थीं ,"पापा हाय कितनी याद आती है आपकी कैसे चूसते है प्यार से अपनी बेटी की चूत। "
मैं तुरंत समझ गयी की वह कन्या कोई और नहीं राजू चाचा और रत्ना चाची की लाड़ली सुकन्या थी। सुकन्या, जिसको सब प्यार से सुकि कहते थे , का विवाह एक सम्पन परिवार में करवाया था नानू ने दो साल पहले। सुकि दीदी मुझे समय तीन साल बड़ी थीं। 
"सुकि और पापा का लंड याद नहीं तुझे। कितने वर्षों से तेरी सेवा की है तेरे पापा के लंड ने। अब शादी के बाद क्या दामाद का लंड इतना भा गया है तुझे ,"रत्ना चाची ने प्यार मारा सुकि दीदी के ऊपर। 
"मम्मी तेरे दामाद का लंड बहुत लम्बा तगड़ा है पापा के जैसा पर किसी भी बेटी के लिए उसके पापा के लंड अच्छा भला कौनसा लंड हो सकता है। कैसे भूल जाऊंगीं सात साल पहले की रात जब पापा ने मेरा कौमार्य भंग किया था। उस प्यार भरी रात मुझे अब तक आतें हैं। आह पापा ऐसे ही घुसा दीजिये मेरी गांड जीभ। मम्मी भूरा कहाँ है , बेचारे का ध्यान भी तो रखिये ," सुकि दीदी सिसकते हुए बोलीं। 
भूरा राजू चाचू का वफादार ग्रेट डेन और सेंट बर्नार्ड का मिश्रण था। भूरे के कुदरती प्यारी प्रकृति और वफ़ादारी से वोह सबका चहेता था। 
जैसे ही उसका नाम लिया तो भूरा तुरंत कमरे में तूफ़ान की तरह आ गया। रत्ना चाची ने प्यार से उसे अपनी चूत सूंघने दी। भूरा का लंड बाहर निकल पड़ा। लाल रंग का लम्बा मोटा लंड। थरथरा रहा था आने वाले आनंद के विचार से। भूरे ने अपनी लम्बी जिव्हा से रत्ना चाची के मूंग को छाता और जब उसकी जीभ उनकी नासिका में घुस जाती तो रत्ना चाची खिलखिला कर हंस पड़ती। 
"सुकि बेटी तेरे जाने इन दोनों मर्दों मुझ अकेली जान ही पड़ गयी है। तुझे दोनों कभी भी नहीं भरता ," रत्ना चाची ने कोमल हाथों से भूरे के लंड को सहलाया।
"पापा माँ शिकायत कर रही या मुझे चिड़ा रही है ," सुकि ने सिसकते हुए कहा , "मम्मी अब मैं पापा के लंड अपनी चूत में लिए बिना नहीं रह सकती। पापा से चुदने के बाद भूरे की बारी है। तब तक तू इसको अपनी रसीली चूत दे दे। "
राजू चाचू ने बिना एक क्षण बर्बाद किये अपने लम्बे मोटे लंड को अपनी बेटी की चूत के ऊपर टिका दिया। उधर रत्ना चाची भी निहुर कर घोड़ी बन गयीं थीं ," आका भूरा बेटा।आ बेटा और भर दे अपनी मम्मी की चूत अपने लंड से। "
भूरा जैसे सारी बातें समझता था। उसने लपक आकर अपनी दोनों आगे की टांगें रत्ना चाची के सीने दोनों ओर बिस्तर पे टिका कर अपने पिछवाड़े को हिला हिला कर अपनी मम्मी की चूत ढूंढ़ने लगा। फिर एक क्षण में कमरे में दो चीखें गूँज उठीं। राजू चाचू का लंड और भूरे का लंड सुकि दीदी और रत्ना चाची की चूत में जड़ तक ठूंस गए।

भूरे ने शुरू से ही बिजली की तेज़ी से अपनी मम्मी की छूट मारनी शुरू की तो रुकने का नाम ही नहीं लिया। रत्ना चाची की चीखें और सिसकियाँ उबलने लगीं, "हाय मेरे लाल मेरे बेटे मार ऐसे ही अपनी माँ की चूत। "
"पापा धीरे धीरे दर्द होता है आपका मूसल लेने में ,"सुकि दीदी बिलबिलायीं। 
पर न तो राजू चाचू धीमे हुए और न ही भूरा। सुकि दीदी और रत्ना चाची की सिसकियाँ कमरे में संगीत से स्वर छेड़ने लगीं। दोनों निरंतर झड़ रहीं थीं।अहदे घंटे के बाद भूरे ने एक भीषण धक्का लगाया और रत्ना चाची की वास्तविक दर्दभरी चीख उबाल पड़ी, "हाय बेटा अपनी गाँठ मत दाल अपनी माँ के अंदर। " पर तब तक देर हो चुकी थी और भूरे ने अपनी मोती गाँठ रत्न चाची की चूत में ठूंस दी थी। अब चाचीअपने बेटे के साथ बांध चुकी थीं। 
उधर राजू चाचू ने अपनी थकती बेटी को पीठ के ऊपर पलट कर बिस्तर पे फैन दिया और फिर बौराये सांड की तरह उसके ऊपर फिर से चढ़ाई कर दी। चाचू का लंड की हर दस इन्चें अपनी बेटी की चूत का निर्मम प्यारा मर्दन कर रहीं थीं। चाचू का लंड मेरे घर के पुरुर्षों से भले ही कम लम्बा और मोटा था पर उनकी चुदाई की खासियत बिलकुल जानलेवा थी। उनकी बेटी का बार बार झड़ कर बुरा हाल होने लगा था। तीस मिनटों के बाद चाचू ने भरभरा कर अपनी बेटी की चूत को अपने वीर्य से सींच दिया। सुकि दीदी सिसकते अपने पापा के गरम वीर्य की बौछार को सँभालते हुए फिर से झाड़ गयी। राजू चाचू अपनी बेटी के ऊपर हफ्ते हुए निढाल हो गए।

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#46
Update 42

जब भूरे ने अपना लंड बाहर खींचा रत्ना चाची की तड़पती चूत में से तो उनकी चीख निकल पड़ी। मुझे समझ आया कि क्यों चाची बिलख रहीं थीं। भूरे का लंड के स्तम्भ के तले की गाँठ उसके लंड से दुगुनी या तीन गुना मोटी थी जो किसी भी चूत की धज्जियां उड़ाने में सक्षम थी। 
रत्ना चाची भी अनेकों बार झड़ कर निढाल अपनी बेटी के पास लेट गयीं। तब ही भूरे के आँखें मेरी आँखों से मिल गयी। उंसने ख़ुशी से कूदते हुए खिड़की पे आ कर मेरा मुँह चाटना शुरु कर दिया। मेरी तो शर्म से जान निकल गयी। अंदर रत्ना चाची, सुकि दीदी और राजू चाचू घबरा कर भौंचक्के हो गए। मैंने लड़कों की तरह खिड़की से अंदर कूद गयी और जल्दी जल्दी हड़बड़ा के मांफी मांगने लगी , "चाचू, चाची दीद मैं क्षमाप्रार्थी हूँ आपके प्रेम के संसर्ग को चोरी छिपे देखने के लिए। मुझसे रहा नहीं गया आपका प्यार देख कर। मैं इसको अपने परिवार के रहस्य की तरह सुरक्षित रखूंगी। पैन भी आज सारो सुबह अपने नानू के बिस्तर में थी। "
मेरे नानू के संसर्ग की बात सुन कर तीनों धीरे धीरे तनाव मुक्त होने लगे। 
आखिर सुकि दीदी ने मुझे कई गन्दी बातें सिखायीं थीं बचपने में ,"तो नेहा मेरी बहना तीरे कपड़े कौन उतारेगा। तू कोई मेहमान थोड़े ही है इस घर की। चल दौड़ के आजा मेरे पापा का लंड देख कैसा फड़फड़ा रहा है तुझे देख कर। "
मैंने एक क्षण लगाया नंगी होने में। राजू चाचू ने मेरे पसीने से लतपथ शरीर को ललचायी निगाहों से घूरा। मैं भी चाचू , रत्ना चाची और सुकि दीदी , के पसीने से दमकती काया को देख वासना से जलने लगी। 
चाचू ने मुझे बिस्तर पे फेंक दिया और फिर एक कांख पे लग गए चाचू और दूसरी कांख ले ली रत्ना चाची। मिलजुल कर लेरे पसीने से भीगी काँखें और सीने को चाट चाट कर मुझे लगभग झड़ने के कगार पे ले आये दोनों । उधर सुकि दीदी अब भूरे ले लंड से खेल रहीं थीं। मैंने पहले रत्ना चाची की बालों भरी कांखों को दिल खोल कर चूसा और फिर राजू चाचू की कांखों और सीने को। 
"पापा आप नेहा को चोदिये जब तक मैं भूरे के लंड को तैयार करतीं हूँ ,"सुकि दीदी ने आदेश दिया हम सबको और कौन टाल सकता था उनके आदेश को। 
मैं निहुर गयी रत्ना चाची की घने घुंघराली झांटों से ढकी भूरे के वीर्य से भरी चूत के ऊपर और पीछे से चाचू ने एक झटके में ठूंस दिया अपने लम्बा मोटा मेरी चूत में। चाची ने इस का अंदेशा लगते हुए दबा लिया था मेरा मुँह अपनी चूत के ऊपर। /
"चल नेहा बेटी चट्ट कर्जा मेरे बेटे की गाडी मलाई को मेरी चूत से। तब तक तेरे चाचू फाड़ेंगें तेरी चूत ,"रत्ना चाची ने अपनी टांगें फ़ैल दीं और मेरी जीभ घुस गयी उनकी चूत के अंदर। भूरे की मलाई का स्वाद नानू और मामाओं से बहुत अलग था। भूरे का वीर्य थोड़ा कम गाढ़ा और बहुत गरम और नमकीन था। 
राजू चाचू ने अब दमदार धक्कों से मेरी चूत की सहमत भुलवा दी। अगले आधे घंटे में मैं दस बार झड़ गयी और मैंने रत्ना चाची को भी पांच बार झाड़ दिया था।
मैं फिर से झड़ने वाली थी की सुकि दीदी ने नए आदेश निकाले ,"पापा अब रुकिए। भूरा तैयार है नेहा के लिए। आप मेरी गांड मारिये। पापा पर आप झड़ना अपनी बेटी की चूत में। इस बार मैं आपसे बिना गर्भित हुए बिना सुसराल वापस नहीं जाऊंगी। "
राजू चाचू ने अपना लंड एक झटके से मेरी चूत से निक्कल लिया। सुकि दीदी ने भूरे को मुझ पर चढ़ा दिया। और फिर उसका लंड पकड़ कर मेरी चूत के ऊपर लगा दिया। भूरे ने एक भयंकर झटके में अपना पूरा लम्बा मोटा लंड मेरी कोमल चूत में ठूंस दिया।
रत्ना चाची ने फिर से मेरा मुँह अपनी चूत में दबा लिया और मेरी चीखें उनकी झांटों को गुदगुदी करने लगीं। मैंने भी चाची के मोटे भगोष्ठों को दांतों से काट कर उनकी चीख निकलवा दी। और फिर मैं किसी भी काम की नहीं रही। भूरे ने जब चोदना शुरू किया तो मैं उसकी भीषणता सी बिलबिला उठी। मेरा सारा शरीर उसकी हर टक्कर से हिल उठता। और मैं भरभरा के झड़ने लगी निरंतर हर तीन चार धक्कों के बाद। ऐसे तेज़ निर्मम चुदाई सिर्फ भूरा ही कर सकता था। 
मेरा ध्यान सिर्फ अपनी चूत में बिजली की तेज़ी से चलते पिस्टन के ऊपर केंद्रित था। 
मुझे सुकि दीदी की दर्दभरी चीखें बहुत कम याद हैं। राजू चाचू ने अपनी बेटी की गांड में अपना मूसल तीन झटकों में जड़ तक ठूंस कर बेदर्दी से उसकी गांड का मंथन शुरू कर दिया , भूरे जैसी रफ़्तार से नहीं तो बहुत कम भी नहीं। आधे घंटे में मैं अनगिनत बार झड़ते हुए सिसक उठी। उधर चाची भी झड़ने लगीं थीं वैसे मेरा उनकी चूत का चूसना बहुत अच्छा नहीं था भूरे की अमंनवीय चुदाई की वजह से। 
सुकि दीदी भी भरभरा के झड़ रहीं थीं ,"पापा फिर से झाड़ दिया आपने अपनी बेटी को। पापा लेकिन आप झड़ना अपनी बेटी की चूत। " सुकि दीदी ने याद दिलाया अपने पापा को उन्हें गर्भित करने के वायदे को। 
"नेहा बेटी लेले भूरे की गाँठ अपनी नन्ही चूत में। दर्द तो होगा पर बहुत आनंद भी आयेगा ,"चाची ने मेरा मुँह कस के दबा लिया अपनी चूत में। और फिर मैं भीषण दर्द से बिलबिला उठी। भूरे के लंड की गाँठ अचानक बन गयी और उसने उसे जड़ तक मेरी चूत में ठूंस कर मुझे अपने अगली टांगों से जकड़ लिया। उसका मोटा लंड मेरी चूत में थरथरा रहा था। उसका बहुत गरम वीर्य मेरी चूत की कोमल दीवारों को जला रहा था। 
मैं उस दर्द और आनंद के मिश्रण के अतिरेक से अभिभूत हो गयी। मुझे पता नहीं चला कि भूरे का लंड आधे घंटे तक अटका रहा मेरी चूत में और मैं झड़ती रही हर दो तीन मिनटों के बाद। उधर पता नहीं कब चाचू ने थकी मांदी सुकि दीदी की गांड से अपना लंड निकाल कर उनके गर्भाशय को नहला दिया। चाचू ने अपनी बेटी की टांगें ऊपर उठा दीं और फिर लेट गए उसके ऊपर। 
जब हम को थोड़ा होश आया तो सुकि दीदी का दिमाग़ शैतान की तरह चलने लगा। उन्होंने मिल बाँट कर हम तीनो का सुनहरी शर्बत पिलाया अपने पापा को। फिर चाचू और भूरे का सुनहरी शर्बत मिला कर बांटा हम तीनो के बीच में। 
मैं उनके साथ तीन घंटे रही। भूरे ने चाची की गांड मारी और चाचू के ऊपर लेती चाची की चूत में ठुंसा हुआ था चाचू का लंड। पर चाचू झड़े अपनी बेटी की चूत में। 
फिर मेरी बारी थी चाचू के लंड के ऊपर घुड़सवारी की और भूरा तैयार था मेरी गांड की धज्जियाँ उड़ाने के लिए। मैं तो बेहोश सी हो गयी एक घंटे में। चाचू ने एक बार फिर अपनी बेटी की चूत भर दी अपने गाड़े वीर्य से। चाची ने मुझे अपने मुँह के ऊपर बिठा कर मेरी गांड में से फिसलते अपने भूरा बेटे का वीर्य सटक लिया। 
शाम हो चली थी। मैंने दीदी , चाचू, चाची और खासतौर पे भूरे को धन्यवाद दे कर घर की ओर चल पड़ी। जैसा मेरे घर में होने वाला था वैसे ही मुझे पता था कि रात के खाने के बाद चाचू, चाची और उनका बेटा भूरा और बेटी सुकि और मस्ती के लिए फिर से तैयार हो जायेंगें।

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#47
Update 43

मैं नहा धो कर तैयार हो गयी। मैंने खाकी निक्कर और टी शर्त पहन ली। मेरा सारा बदन दर्द कर रहा था। सुबह आधा दिन नानू ने रोंदा था। फिर दोपहर भर सुकि दीदी ,रत्ना चाची, राजू चाचू और उनके बेटे ने रगड़ रगड़ कर थका डाला था मुझे। पिच्छली रात से मैं न जाने कितनी बार चुद चुकी थी। 
सुशी बुआ ने मेरी चाल से समझ लिया कि मेरे नए अनुभव के बारे में। मुझे उन्हें विस्तार से बताना पड़ा। सुशी बुआ की आँखें फ़ैल गयीं भूरे की करामाती चुदाई के विवरण सुन कर। 
रात के खाने पर सारे परिवार में चुअल बाज़ी हो रही थी। मैंने देखा कि मम्मी थोड़ी बेचैन लग रहीं थीं। उनकी आँखें बिना संयम रखे बार बार अपने पापा और भाइयों के चेहरों को निहार रहीं थीं।
"सुन्नी , यदि तुझे नींद आ रही हो तो बाबूजी के कमरे में सो जाना। मैं तो आज देर तक बात करूँगीं अपने भैया, पापा मम्मी के साथ। " सुशी बुआ ने हमेशा की तरह मीठा संदश भेजा। अब मुझे समझ आने लगे यह सब ढके छुपे सांकेतिक इशारे। मम्मी की शर्माहट से मेरा हृदय खिल उठा। शरमाते हुए मेरी अप्सरा जैसी मम्मी और भी सुंदर लगतीं थीं। 
दादू ने टीका लगाया , "निरमु आज हमारी बेटी ने जो मालिश की है उसके लिए तो हमारे पास कोई शब्द ही नहीं है। "
दादी हंस दीं ," बेटी नहीं मालिश करेगी अपने पापा की तो और कौन करेगा ? आज मुझे तो अपने बेटे के साथ बिताये दिन की यादें ध्यान कर अंकु के प्यार अभिभूत हो गयीं हूँ। "
"मम्मी क्या ख़रीदा भैया ने आपके लिए। सुन्नी भाभी देख तो जरा। भैया तेरी सास को मॉल ले जा कर दौलत खर्चते हैं और तू कुछ नहीं शिकायत करती।," मेरी मम्मी भले ही सुशी बुआ जैसी तेज़ तर्रार नहीं थी पर बिलकुल निस्सहाय भी नहीं थी। 
"नन्द जी तेरे भैया जैसा हीरा तो मुझे मिला ही है अम्माजी की कोख से। इस हीरे के लिए तो दुनिया की साड़ी दौलत भी काम है अम्माजी के ऊपर खर्चने के लिए ," मम्मी ने इक्का मार दिया बुआ के बादशाह के ऊपर। मम्मी और बुआ का रिश्ता भी मजे का था। दोनों एक दुसरे की भाभी और ननंद दोनों थीं। 
सब हंस पड़े। फिर सब मीठा खाने के बाद कौनियाक के गिलास ले कर अपने सुइट्स की ओर चल पड़े। मैं अब सब समझती थी और मैंने भी लम्बी थकी जम्भाई ले कर सोने के लिए जाने का नाटक किया। 
शीघ्र ही मैंने पहले दादू के कमरे की ओर चल पड़ी। कमरे में सुशी बुआ, दादू और दादी थीं। बुआ आने अपनी मम्मी की साड़ी उतार दी और कुछ ही क्षणों में दादी बिलकुल नग्न थीं। दादी का परिपक्व प्रौढ़ सौंदर्य देखते ही बनता था। उनके प्रचंड चवालीस ( ४४ ") इंचों के ई ई (डबल ई ) भारी ढलके हुए स्तन , गोल भारी तीन सुंदर तहों से सजी अड़तीस ( ३८ ") इंच की कमर और फिर उनके तूफानी अड़तालीस (४८ ") इंची हाहाकारी विशाल स्थूल नितम्ब। उनके बगलों में घने घुंगराले बाल उनके सौंदर्य में और भी इज़ाफ़ा कर रहे थे। दादी के पांच फुट छह इंच का पिच्चासी किलो ( ८५ किलो ) का गदराया शरीर किसी भी संत का संयम भांग कर सकने में सक्षम था। फिर बुआ ने अपने पापा को आदर से वस्त्र विहीन आकर दिया। 
"सुशी बेटा मेरा अंकु कहाँ है ?" दादी ने बुआ का कुरता उतारते हुए पूछा। 
दादू ने तब तक अपनी बेटी की सलवार का नाड़ा खोल दिया था, "मम्मी आप तो सिर्फ अपने बेटे के प्यार में डूबी रहती हो। अपनी बेटी की तरफ भी तो देख लीजिये कभी कभी। " बुआ की नटखट आवाज़ को दादी भी गंभीरता लिया। 
बुआ ने नहीं पहनी थी सलवार उतारने साफ़ था की उन्होंने पैंटी भी नहीं पहनी थी, "मम्मी शालिये लेट जाइये आपकी बेटी ने कितने दिनों अपनी मम्मी की चूत पिया है। अंकु भाभी को तैयार होने में मदद कर रहा है।"
दादी का गदराया शरीर बिस्तर पर फैला था। बुआ ने अपनी मम्मी की झांटों को फैला कर उनकी गुलाबी चूत को खोल दिया। कितनी प्यारी थी दादी की चूत। दादू ने अपनी बेटी के चूतड़ फैला कर बुआ की चूत और गांड के ऊपर मुँह टिका दिया। 
दादी और बुआ सिसकारी निकल पड़ीं। और तभी पापा दाखिल हुए कमरे में , "अहा सब शुरू हो गए हमारे बिना। "पापा कमीज़ खोलते हुए कहा। 
न जाने क्यों मुझे पापा को देख आकर बुरी तरह शर्म से भर गयी और मैं वहां से दौड़ पड़ी।
मम्मी के कमरे में मम्मी आखिर तैयारी में थीं। मम्मी ने शादी वाली साड़ी पहनी थी। उनके सारे शादी के गहने उन पर चमक रहे थे। उनकी नाथ का हीरा उनके चेहरे के हिलने भर से चका-चौंध कर रहा था। मम्मी ने पूजा की थाली तैयार की हुई थी। कस्तूरी , चन्दन , हल्दी और सिंदूर सब थे थाली में। मैं मम्मी की सुंदरता देख कर रोने जैसी हो गयी , न जाने क्यों। ख़ुशी में भी आंसू उबलने लगते हैं। 
मम्मी की काया सुडौलता से भरी गदरायी हुई थीं। साड़ी में भी नहीं समा पा रहे थे मम्मी के लार टपका देने वाले नितम्ब। उनके ब्लाउज़ की बटन झगड़ा सा कर रहे थे उनके उन्नत हिमालय की चोटी जैसे मीठे उरोजों से।मम्मी ने हल्का सा घूँघट खींच लिया अपने माथे के ऊपर। मम्मी ने अपने पापा के सुइट की ओर कदम बड़ा दिए। 
मैं पहले ही पहुँच गयी नानू के सुइट में।
कमरे में सजावट देख कर मैं हैरान हो गयी। सारा कमरा फूलों से सजा हुआ था। बिस्तर पर गुलाब की पंखुड़ियां फैली हुईं थीं। बड़े, छोटे मामू सिल्क के जरीदार कुरता, पजामा और अचकन पहनी हुई थी। नानू भी उसी तरह तैयार थे। उनके सर पर शादी की पगड़ियां थीं। तीनों पुरुष कितने मोहक,और काम-आकर्षक लग रहे थे। 
मम्मी जैसे ही दाखिल हुईं तीनो खड़े हो गए। मम्मी ने अपनी कोल्हापुरी सोने से सजी जूतियां दरवाज़े पे उतार दीं अपने के साथ दोनों भाईयों और पिता की जूतियों के साथ। 
मम्मी शर्म से लाल लज्जा से भरी तीनों पुरुषों के सामने खड़ीं हो गयीं। 
उन्होंने पहले अपने पिता के फिर बड़े भैया के और फिर छोटे भैया के पैर छुए। तीनो ने उन्हें बारी बारी से आशीर्वाद दिया -सम्पनता, विपुलता और गर्भ धारण के आशीर्वाद। 
फिर तीनो पुरुष बैठ गए थाली के इर्द गिर्द। मम्मी ने कस्तूरी का दिया जला दिया। मम्मी ने पहले अपने पापा के माथे पर पहले हल्दी, फिर चन्दन का टिका लगाया। और फिर अपने दोनों भाइयों के माथे पर टिका लगाया। 
फिर मम्मी खड़ीं हो गयीं और नानू ने उनके घूँघट को हटा कर उनकी साड़ी का पल्लू उनके कन्धों पर गिरा दिया। 
"आप तीनों ने मुझे कुंवारी से स्त्री बनाया था पच्चीस साल पहले। आज भी आपकी बेटी और बहन उस दिने से आप तीनो की अर्धांगिनी भी है। इस बहन और बेटी की मांग भर कर उसे एक बार फिर से अपनी अर्धांगिनी होने का सौभाग्य दे दीजिये ,"मम्मी ने भावुक शब्दों से अपने पिता/भाइयों/पतियों से कहा। 
नानू ने अपनी बेटी की मांग में सिंदूर भर दिया और कहा ,"सुन्नी बेटा ,हमसे भाग्यशाली कोई भी पिता नहीं है जिसे तुझ जैसी बेटी और अर्धांगिनी मिली हो। सदा सुहाग शाली रहो मेरी बेटी। "
फिर बड़े मामू ने छोटे मामू ने अपनी बहन की मांग सिंदूर से भर कर पूजा का समापन किया। और फिर तीनों ने पहनाये साधारण पर पवित्र मंगलसूत्र मम्मी को।
"अब आप तीनों इस सुहागन के सुहाग को पूर्ण करने के लिए इसका शरीर सुहागरात के लिए स्वीकार कीजिये ," मम्मी बोलीं और नानू ने उनकी नथ उतार दी। हमेशा की वर्षगाँठ की तरह यह क्रिया सुहागरात शुरू होने का द्योतक थी। 
एक भाई ने मम्मी की साड़ी उतारी तो दुसरे भाई ने उनका ब्लाउज़ खोल कर उतार दिया। उनके विशाल उन्नत को उनकी ब्रा मुश्किल से संभाल पा रही थी। नानू ने अपनी बेटी के दोनों भारी गुदाज़ उरोजों को मुक्त कर दिया ब्रा के बंधन से। 
नानू ने नाड़ा खोल दिया मम्मी के पेटीकोट का और सिल्क का पेटीकोट सरसरा कर उनके तूफानी झांगों के ऊपर सरक कर फर्श पर गीत पड़ा। मम्मी की सिल्क की लाल सुहागवली कच्छी में से उनके घुंगराली झांटें उत्सुकता से दोनों ओर बाहर झाँकने लगीं।
मम्मी ने बारी बारी से नानू के और अपने भाइयों के वस्त्र उतार दिए। 
सबसे पहला हक़ तो पिता का ही होता है अपनी बेटी के ऊपर। मम्मी ने अपने पापा का हाथ पकड़ा और बिस्तर की तरफ चल पड़ीं ,"पापा सुशी भाभी ने दस दिनों से मेरी चूत और गांड में वि-टाइट और सो-टाइट लगा कर वायदा लिया है की हमारी सुहागरात की चादर पर यदि मेरे कौमार्यभंग होने वाले जितना खून न दिखे तो वो बहुत नाराज़ होंगीं अपने बाबूजी, पति और जेठ जी से। "मम्मी की इस बात से तीनों का दानवीय लंड मानों एक दो इंच और लम्बा मोटा हो गया। 
नानू ने मम्मी को चित्त लिटा कर उनके पहली रात की तरह उनके चूमते हुए उनकी घुंगराली झांटों ढकी चूत के सुहाने द्वार पे अपनी जीभ लगा कर उसके कसेपन का अहसास किया। मम्मी की सिसकारियां निकलीं बंद ही नहीं हुईं। आखिर कितनी भाग्यशाली वधुओं को तीन वृहत लण्डधारी पतियों से साथ सुहगरात मनाने का सौभाग्य प्राप्त होता है।
नानू ने अपनी बेटी की भारी जांघें फैला कर चौड़ा दीं। उनके दोनों भाइयों ने अपनी इंद्र की परियों से भी सुंदर बहन की एक एक जांघ अपने हांथों में संभाल ली। दोनों बही अपनी बहन का दुसरे कौमार्यभंग का जहर क्षण देखना कहते थे। 
नानू ने अपना बड़े सेब जैसा सुपाड़ा मम्मी की कसी चूत के द्वार में फंसा कर अपने दोनों बेटों की ओर इशारा किया। मम्मी के दोनों भाइयों ने अपने खाली हाथों से मम्मी के कंधे दबा कर उनके निस्सहाय कर दिया आगे आने वाले दर्द के सामने। नानू ने बेदरद निर्मम धक्का मारा और तीन इन्चें ठूंस दीं अपने चार इंच मोटे लंड की अपनी बेटी की 'कुंवारी ' चूत में। मम्मी की चीख में मर्मभेदी दर्द भरा था। नानू ने उतनी निर्ममता से अपनी बेटी के चुचकों को खींचते हुए डोर्स धक्का मारा और एक तिहाई मोटा लंड उन्स्की चूत में ठूंस दिया। दो और धक्के और नानू के लंड दो और तिहाई भाग मम्मी की चूत फाड़ते हुए जड़ तक फंस गए। 
मम्मी बिलबिलाते हुए चीखीं। उनके आंसू बहने लगे। जो भी दवाई बुआ ने लगायी थी वास्तव में जादू जैसी थी। मम्मी मर्मभेदी दर्द से न केवल रो रहीं थीं पर नानू से रुकने की गुहार भी कर रहीं थीं। पर यह तो उनकी सुहागरात थी। और उनके पहले नंबर के 'पति 'कहाँ रुकने वाले थे उनके आंसू बहाने से। शीघ्र ही नानू ने अपना लंड बाहर खींचा और उनके लंड के साथ मम्मी की से भरभरा के लाल गाड़ा खून बहने लगा जैसे उनकी पहले कौमार्यभंग की रात हुआ था पच्चीस साल पहले। 
नानू ने मम्मी की चूचियां मसलते जो छोड़ना शुरू किया उस निर्मम वासनामयी अगम्यगमनी प्रेम को देख मैं सिहर उठी। नानू ने आधे घंटे तक मम्मी की चूत को बिना रुके मारा। दस मिनटों के बाद मम्मी दर्दभरी हिचकियाँ बंद हो गयीं और ' नववधू ' की सिसकारियों से सुहागरात का कमरा गूँज उठा। नानू ने मम्मी को दस बारह बार झाड़ कर उनके दुसरे पति के लिए उनकी चूत निकाल लिया। बड़े मामू ने अपनी सिसकती 'सुहागन पत्नी 'की चूत के रस को उनके पेटीकोट से सूखा दिया और फिर नानू जैसे भीषण धक्के से अपना लंड ठूंस दिया चार धक्कों में, आखिर बेटे किसके थे बड़े मामू। मम्मी की चूत गाड़ा खून रिसने लगा। बड़े मामू ने भी आधे घंटे तक मम्मी की 'कुंवारी ' चूत का मर्दन कर उन्हें अनेकों बार झाड़ दिया। फिर बारी थी छोटे भैया की। वो सवा सेर नहीं तो पूरे सेर से कम भी नहीं थे। उन्होंने भी अपने बड़े भाई की देखा देखी अपनी बहन की चूत सूखा कर अपने लंड से उन्हें तिबारा 'कुंवारेपन ' दर्द से भर दिया।
उसके बाद मम्मी के तीनो ‘पतियों ‘ने उन्हें बारी बारी हर मुद्रा में चोदा। क्योकि तीनो रुक रुक कर चोद रहे थे । मम्मी की चुदाई कई घंटों तक चली। मम्मी न जाने कितनी बार झड़ चुकीं थीं। मम्मी अब थकने लगीं थीं। और उनके 'पतियों 'ने अपनी नव-वधु की थकान को देख कर इस बार दनादन चोदते हुए अपने वीर्य की गरम बारिश अपनी पत्नी के गर्भ के ऊपर न्यैछावर कर दी। 
मम्मी हफ्ते हुए बिस्तर पे ढलक कर गिर गयीं। ऐसी सुहागरात का सुख तो किसी सौभाग्यशाली नव-वधु के भाग्य में ही लिखा होता है। 
"बेटी अब तो इस सुहगरात की खास शैम्पेन बनाने का समय है ," नानू ने मम्मी को याद दिलाया। मम्मी जैसे ही उठने लगीं तो दर्द से कराह कर बिस्तर पे गिर गयीं। 
नानू अपनी बेटी को सहारा देकर चांदी के विशाल कटोरे के ऊपर ले आये। मम्मी ने अपने होंठों को दांतों से भींच कर अपनी 'कुंवारी ' चूत में से उबलते दर्द को सहने का निरर्थक प्रयास किया। जैसे ही उनके सुनहरी शर्बत ी धार निकली तो एक तेज़ दर्द की लहर ने मम्मी को बेचैन कर दिया। 

लेकिन आखिर सालों का नियमभंग थोड़े ही होने देतीं मेरी मम्मी। खास तौर पे पच्चीसवीं वर्षगाँठ की सुहगरात का। उनका सुनहरा अमृत छलछल करता चंडी के कटोरे को भरने लगा। मम्मी की धार बंद हुई तो उन्होंने सुबकते हुए अपनी दर्दीली चूत के भगोष्ठों को फैला कर आखिरी बूँद भी बाहर टपका दी। इस अमृत से भरे चांदी के कटोरे में मिलायी गयी पच्चीस साल पुरानी शैम्पेन, ठीक उसी दिन बनायीं गयी शैम्पेन। अब बारी थी मम्मी के 'पतियों 'की। दुसरे चांदी के कटोरे में उनके तीनो पतियों का सुनहरी शर्बत इकठ्ठा करके उसमे भी शैम्पेन मिलायी गयी। मम्मी ने भरा अपने गिलास अपने पतियों के अमृत से मिली शैम्पेन ने अपनी नव वधु के अमृत से रमणीय शैम्पेन को लालचीपन से पिया।जब चारों ने अपनी ख़ास शैम्पेन खत्म कर ली तो ना केवल मम्मी थोड़ी सी नशे में थीं पर उनके आगे आने वाले दर्द के लिया थोड़ा नशा शायद अच्छा था। 

फिर शुरू हुआ मम्मी की गाड़ के दूसरे कुंवारेपन का हरण। नानू ने उतनी बेदर्दी से ही मम्मी की गांड का दूसरा उद्घाटन किया जैसा पच्चीस साल पहले किया था। उसके बाद दोनों भाइयों ने भी। हर बार मम्मी के तीनो पतियों ने मम्मी की गांड से ताज़ा खून की धाराएं बह कर उनकी सुहगरात को पूरा परवान चढ़ा रहीं थीं। मम्मी की गांड आखिरकार उनके तीनो पतियों के वीर्य से भर गयी। 

हर वर्ष की तरह दोनों मामाओं ने मम्मी को उल्टा लटका दिया और नानू ने नयी शैम्पेन की बोतल के गर्दन को मम्मी की दर्दीली गांड में ठूंस कर शैम्पेन से उनकी गांड भर दी। मम्मी ने जितनी देर तक हो सकता था उतनी देर तक शैम्पेन को अपनी गांड में रोका फिर उनसे नहीं रहा गया। 

इस बार नए चांदनी के कटोरे में भर गयी मम्मी की गांड सी निकली शैम्पेन की नदी और मम्मी की मथी हुई गांड का मथा हुआ मक्खन। मम्मी के तीनो पतियों ने दिल खोल कर इस अमृत का गिलास भर भर के जलपान किया। मम्मी के कई बार कहने के बाद ही नानू ने उन्हें एक-दो घूँट दिए अपने गिलास से।

उसके बाद सब कुछ खुला खेल था। मम्मी की सुहगरात सुबह तक चली। उनकी दोहरी चुदाई हुई बारी बारी से। आखिर कार मम्मी आनंद के अतिरेक से बेहोश हो गयीं। उनके तीनों पतियों ने अपने लंड के वीर्य की बारिश से उनका सुंदर चेहरा नहला कर उनकी नासिका, दोनों आँखें भर दीं। सुबह जागने पर मम्मी को बहुत जलन होगी। 

फिर चारों सो गए सुहागरात मना कर। मैं अपनी मम्मी की सुहागरात के सफल समापन से ख़ुशी के आंसू बहतो अपने कमरे में जाकर बिस्तर पे ढलक कर गहरी नींद की बाँहों में समा गयी।
सुबह सब देर से आये नाश्ते के लिए। वास्तव में समय तो दोपहर के खाने का सा था। मम्मी के बबल बिखरे हुए थे। गले पे काटने के निशान मम्मी की छुपाने के बावजूद दिख रहे थे। और फिर मम्मी की बिगड़ी चाल। सुशी बुआ कहाँ छोड़ने वालीं थीं अपनी भाभी उर्फ़ ननंद को। 
"क्या हुआ सुन्नी भाभी। क्या किसी सांप ने काट लिया कल रात ?" सुशी ने खिलखिला कर पूछा। 
" मेरी आवारा ननंद रानी, तुम यदि अपने सांप को काबू में रखतीं तो यह हाल नहीं होता मेरा ,"मम्मी ने ताना मारा।
" अरे भाभी मेरी यह तो पच्चीस साल से लिखा था आपके भाग्य में। इसमें मेरा क्या कसूर। और कौन रोक पता तीनों सांपों को कर रात, भगवान् भी नहीं रोक पाते। "और फिर सुशी भाभी ने मम्मी के गले में हीरों की नाज़ुक लड़ियों का हार पहना दिया। फिर दादी उठीं और उन्होंने अपनी बहु को फुसफुसा कर आशीर्वाद दिया और फिर उनकी कलाइयों पर बाँध दीं बेशकीमती हीरों की चूड़ियाँ। 
लम्बे खाने के बाद नानू ने आराम करने का निश्चय किया। मम्मी की आँखें अपने भाइयों की ओर लगीं थीं। दादी ने पापा का हाथ पकड़ा और उन्हें गोल्फ के खेल के लिए ले गयीं। दादू ने बुआ की ओर हलके से इशारा किया। और दोपहर की जोड़ियां बन गयी कुछ की क्षणों में। मैंने नानू को कुछ देर सोने दिया फिर लपक के उनके बिस्तर में कूद आकर उन्हें जगा दिया। नानू को मैंने तैयार करके टेनिस के खेल के लिए मना लिया। नानू सफ़ेद निक्कर और टी-शर्ट में बहुत सुंदर लग रहे थे। मैं भी कम नहीं थी सफ़ेद गोल गले के टी-शर्ट और निक्कर में। 
मैं और नानू दोनों प्रतिस्पर्धात्मक खेल खेलते थे। लेकिन नानू की लम्बी पहुँच ने मेरे युवापन के सहन-शक्ति को हरा दिया। पांच सेट का खेल था मैं ३-२ से हार गयी। पर नानू ने मुझे बाहों में उठा कर गर्व से चूमा तो मैं झूम उठी। नानू मेरी तरह मेहनत के बाद कमोतेजित हो जाते थे। इसीलिए तो मैं उन्हें टेनिस के लिए खींच 
लायी थी। 
"नेहा बेटी घर तक चलना दूभर है। क्या ख्याल है पंडितजी के घर के पीछे के झुरमुट के बारे में ," मैं तो यही चाह रही थी। नेकी और पूछ पूछ। मैंने बेसब्री से सर हिला दिया। नानू से मैं छोटी बंदरिया जैसे चिपकी हुई थी। जिस झुरमुट की बात नानू कर रहे थे वो हमारे मुख्य बावर्ची रामप्रसाद के घर के पीछे था। 
जब नानू और मैं वहां पहुंचे तो वहां से साफ़ साफ़ आवाज़ें आ रहीं थीं। 
"हाय नानू कितना लम्बा मोटा है आपका लंड ," यह अव्वाज़ पारो की बेटी रज्जो की थी। 
"मेरी प्यारी नातिन तीन साल से ले रही अपने नाना के लंड को अभी भी इठला कर शिकायत करती है तू ," रामु काका की आवाज़ तो घर का हर सदस्य पहचानता था। 
मैंने नानू की आँखों में एक अजीभ चाहत देखी। रज्जो मुझसे तीन साल छोटी थी। उससे किशोरवस्था के पहले वर्ष में चार महीने ही हुए थे।मैंने फुसफुसा कर नानू अपनी योजना बताई। नानू ने लपक कर पहले मेरे और फिर अपने सारे कपडे उतार दिए। उनका महा लंड तनतना कर थरथरा रहा था।
जैसे मैंने कहा था वैसे ही नानू ने बेदर्दी से मेरी चूत को अपने लंड पे टिका कर मेरे वज़न से अपना सारा का सारा लंड ठूंस दिया। मैं चीखती नहीं तो क्या करती। नानू मुझे अपने लंड पे ठूंस कर झुरमुटे के अंदर चले गए। वहां पर चिकनी चट्टान के ऊपर कमसिन रज्जो झुकी हुई थी और उसके पीछे भरी भरकम उसके नाना उसकी चूत में अपना मोटा लम्बा लंड ठूंस कर उसे चोद रहे थे। 
"क्षमा करना हम दोनों को रामू रुका नहीं गया हम दोनों से। यदि बुरा न लगे तो मैं भी चोद लूँ अपनी नातिन को तुम्हारे साथ।" नानू ने साधारण तरीके से पूछा जैसे यह रोज़मर्रा की बात है एक नाना दुसरे नाना के सामने अपनी कमसिन नातिन को चोदे। 
पहले तो रामु काका चौंकें फिर उनकी स्वयं की वासना के सांप ने उनके हिचकने के ऊपर विजय प्राप्त कर ली। नानू ने मुझे खड़े खड़े और रामु काका ने रज्जो को निहुरा कर आधा घंटा भर चोदा। रामु काका का संयम भी बहुत असाधारण था।रज्जो और मैं अनेकों बार झड़ गए उस समय में। अब मैंने दूसरा तीर मारा ," रामु काका मेरा बहुत मन है आपके लंड से चुदने का यदि रज्जो को कोई समस्या नहीं मेरे नानू के लंड चुदने की। "
बेचारी रज्जो जो शुरू में शर्म से लाल हो गयी थी अब खुल गया ,"नहीं नेहा दीदी। मैं तैयार हुँ यदि नानू को आपत्ति न हो तो। "
रामू काका ने अपना लंड रज्जो की चूत में निकाल लिया और नानू ने मुझे भी चट्टान के ऊपर निहुरा दिया। फिर दोनों नानाओं ने नातिन बदल लीं। रामु काका का नौ इंच का तीन इंच मोटा लंड मेरी गरम चूत में घुस गया। रज्जो की चीख निकल गयी जब नानू का कम से कम तीन इंच ज़्यादा लम्बा और एक इंच और मोटा लंड उसकी अल्पव्यस्क चूत के घुसा तो। 
नानू ने रज्जो के नींबू जैसे चूचियों को देदर्दी से मसलते हुए दनादन धक्कों से चोदा। रामू काका भी मुझ पर कोई रहम नहीं खा रहे थे। आधे घंटे के बाद भी दोनों नानाओं के लंड भूखे थे। जैसे दोनों नाना एक दुसरे के विचार जानते हों वैसे ही दोनों ने अपने लंड रज्जो और मेरी चूत से निकाल कर हमारी गांड में ठूंस दिया। रज्जो की चीख मुझसे बहुत ऊंचीं थी। पर दस मिनटों में हम दोनों फिर से सिसकने लगीं। इस बार दोनों नानाओं ने एक दुसरे की नातिन की गांड अपने वीर्य से भर दी। रज्जो ने अपने नानू का मेरी गांड से निकला और मैंने अपने नानू का रज्जो की गांड से निकले लंड को प्यार से चूस चाट के साफ़ कर दिया। दोनों को बहुत देर नहीं लगी फिर से तैयार होने में और इस बार नानू ने रज्जो को घास पर लेट कर अपने लंड ले लिटा लिया और उसके नानू ने उसकी गांड में अपना लंड ठूंस दिया। रज्जो की दर्द से हालत ख़राब हो गयी पर मैंने सुशी बुआ से सीख याद कर अपनी चूची ठूंस दी उसके मुँह में। 
आधे घंटे में रज्जो अनेकों बार झड़ कर थक के ढलक गयी और अब मेरी बारी थी। इस बार रज्जो के नानू ने मेरी चूत मारी और मेरे नानू ने मेरी गांड। मेरे सबर का इनाम मुझे मिला जब दोनों ने मेरी चूत और गांड भर दी अपने गरम वीर्य से। 
चुदाई के बाद रामू काका ने सच बताया। रज्जो वास्तव में रामू काका की बेटी थी। नानू ने उसी समय रज्जो को अपनी छत्रछाया में ले लिया और उसकी लिखाई पढ़ाई की ज़िम्मेदारी अब हमारे परिवार की थी। 
उसके बाद रामू काका ने मेरी और नानू ने रज्जो के दोनों छेदों की घंटा भर चुदाई कर हम चारों की अकस्मत भोग-विलास का समापन किया। रज्जो को अब कम से कम दो नानाओं का ख्याल रखना पड़ेगा। वास्तव में वो बच्ची बड़ी भाग्यशाली थी।
उस रात के खाने के बाद मम्मी मुश्किल से चल पा रहीं थीं। उस रात उन्हें सिर्फ सोने की फ़िक्र थी। नानू को अपनी बेटी के सुनहरे शर्बत और हलवे की लालसा। मम्मी और नानू एक साथ सोये। नानू सुबह होते होते मम्मी के शरीर के हर मीठे द्रव्य और पदार्थ का भक्षण करने के लिए तत्पर थे। 
दादी ने पकड़ा अपने बेटे को। दादू ने अपनी बेटी को ठीक नानू की इच्छा के इरादे से। और मैं फंस गयी अपने दोनों मामाओं के साथ। 
बड़े और छोटे मामा ने पूरी रात मुझे रौंद कर रुला दिया फिर तरस खा कर एक शर्त पर सोने दिया। उन दोनों ने मुझसे वायदा लिया कि हफ्ते भर तक मेरे सुनहरे शर्बत और गांड के हलवे पर सिर्फ उनका हक़ था। और पहली किश्त उस रात ही लेली मेरे दोनों मामाओं ने। उन्होंने मुझे सिखाया कैसे गांड का हलवा खिलाया जाता है। मैं तेज़ी से सीख गयी और जब एक मामू का मुँह भर जाता तो तुरंत गुदा भींच कर दुसरे मामू का मुँह भर देती। 
आखिर में मुझे सोने को मिल गया। बुरा सौदा नहीं था। खूब चुदाई , मामाओं का सुनहरी शर्बत और हलवा और आराम करने का मौका। नेहा तू अब होशियार होने लगी है , मैंने अपनी बड़ाई की बेशर्मी से।

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#48
Update 44



सुबह नाश्ते पर है किसी को मेरी गर्दन पर काटने के निशान, मेरे होंठों पर सूखे भूरे पदार्थ के निशान और मेरे बालों में सूखे वीर्य के थक्के साफ़ दिख रहे होंगें। दोनों मामाओं को जब नानू , दादी और दादू ने घूर कर देखा तो दोनों ऐसे भोले बन गए जैसे मक्खन भी न पिघले उनके मुँह में। 
दादी ने मुझसे प्यार से पूछा , "नेहा बिटिया तुझे नहलाये हुए तो मुझे वर्ष बीत गए। चल आज तुझे बचपने जैसे नहला दूँ। "
मुझे चोरी चोरी दादी माँ के नंग्न सौंदर्य की याद बिलकुल ताज़ा थीं। उनके शरीर को पास से देखने और छूने का लालच से मैं बेचैन हो उठी। 
दादू दौड़ने के लिए चले गए और नानू मम्मी के साथ गोल्फ खेलने चल दिए। पापा ने बुआ को खरीदारी और बाहर खाना खिलाने के लिए शहर चल पड़े। मेरे दोनों मामाओं ने पारो को बुलवाया मालिश के लिए। मैंने मन ही मन छोटी से प्रार्थना की पारो चाची के लिए। आजकल मेरे दोनों मामा बौराये सांड की तरह थे। 
मैं दादी के साथ उनके सुइट की तरफ चल पड़ी। दादी ने मुझसे कोई भी सवाल नहीं पूछा। जैसे ही उन्होंने मेरी सोने वाली टी-शर्ट उतारी तो लाल नीले थक्के से मेरा बदन भरा हुआ था। दादी ने मुस्कुरा कर कहा ,"बेटी तेरे मामू तुझे देख कर सब्र खो देतें हैं। "
मैं शर्मा गयी, "दादी नानू भी। "
दादी ने अपना सोने वाला गाउन उतार फेंका। उनका उज्जवल सौंदर्य अब सिर्फ एक तंग सफ़ेद कच्छी में छुपा हुआ था। उनकी कांघें घने बालों से भरी थीं। और उनकी झांटें ना केवल उनकी कच्छी से बाहर झांक रहीं थीं बल्कि उनकी जांघों तक फैली थीं। 
"नेहा बेटी नहाने से पहले कुछ करना है ?" दादी ने मुस्करा के पूछा
मैंने फुसफुसा कर मन की बात बता दी दादी को।दादी ने मेरे मुँह के ऊपर अपनी चूत लगा कर भर दिया मेरा मुँह अपने सुनहरी शर्बत से। मैं गटक गयी दादी के अमृत को। दादी ने दस बार भरा मेरा नदीदा मुँह और मैं सटक गयी हर बून्द दादी के कीमती सुनहरी शर्बत की। दादी ने मेरे सुनहरी शर्बत को भी उतने चाव से पिया तो मैं मानों स्वर्ग में पहुँच गयी। 
फिर हुआ मेरे और दादी के बीच वोह आदान प्रदान जिसे काफी लोग विकृत कहें पर हम दोनों को तो वह बिलकुल प्राकृतिक और नैसगिक लगा। पर मैंने दक्षता से दादी को मन भर हलवा परोसा। दादी ने भी मुझे मेरा मन भर हलवा परोसा। फिर मुझे दांत साफ़ कर दादी ने टब भर के अपनी गोद में बिठा लिया। दादी ने पानी में सुगन्धित नमक और एलो-वीरा का तेल मिला दिया था। दादी के हाथ मेरे चूचियों के ऊपर मचल रहे थे। दादी के कहने पर मैंने शुरू से सारो अपनी संसर्ग की यात्रा सूना दी।बड़े मामू, सुरेश चाचू, अकबर चाचू, राजू काका और भूरा, रामू चाचू और रज्जो और बाकि सब कुछ। 
दादी के हाथ मेरी जांघों के बीच मचल रहे थे, "बेटी पहली बार वाकई बहुत खास होती है।तेरे बड़े मामू बहुत ही सौभाग्यशाली हैं। "
मैं शर्मा के सर हिलने लगी ,"दादी आपका पहली बार किसने किया था ?"
"क्या किया था मेरी बेटी खुल कर बोलै न ,"दादी ने मेरे भग-शिश्न को मसलते हुए कहा। 
"दादी माँ आपकी पहली चुदाई किसने की थी ,"मैंने खुल कर पूछा। 
"नेहा याद है तुझे मेरी बड़ी बहन के पति यजुवेंद्र सिंह की। शांति दीदी मुझसे छह साल बड़ी थीं। उनकी शादी तो पन्द्रह साल होते ही तय हो गयी थी पर उनका कॉलेज खत्म होने का इन्तिज़ार था,” दादी ने कहानी की शुरुआत की।


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#49
Update 45

दादी माँ ( निर्मला देवी ) की यादें

जब शांति दीदी ने बीऐ पास कर ली तो उनके उन्नीस साल होते होते शादी की तारिख तय हो गयी। जीजू हमारे परिवार के करीब के दसौत थे और उनका बेरोकटोक आना जाना था। जीजू दीदी से एक साल बड़े थे। उन्होंने शादी तय हॉट ही अपने हक़ जाताना शुरू कर दिया था पानी सा;ली के ऊपर। मेरे बचपने को अनदेखा कर जब मौका मिलता जीजू मेरे आपके शरीर को मसलते नौचते। मैं भी ना चाहते हुए उनकी बढ़तीं इच्छाओं का इन्तिज़ार करती। शादी के एक महीने पहले होली थी और जीजू अब बीस साल के लम्बे चौड़े ऊंचे सुंदर जवान थे। होली पर उन्होंने मेरी आफत मुला दी। खूब मसला मेरी उगती चूचियों को। जीजू ने मेरी मम्मी पापा और दीदी और और घरवालों के सामने ही ही मेरी कुँअरि चूत को कुरेदने लगे। मैं बिलबिला कर गुस्सा हो गयी और चीख कर उन्हें दूर कर दिया। उनका चेहरा दुःख से एकदम उदास हो गया। शायद मेरा बचपना था या जीजू का बेसबरापन पर होली के आनंद में पत्थर फिंक गए। मैं पैर पटकती अपने कमरे में चली गयी। मुझे पता भी नहीं चला जीजू के आँखों में आंसूं आ गए। उन्होंने तुरंत मम्मी से माफ़ी मांगीं पर मेरे पीछे मम्मी ने उन्हें गले लगा कर कहा , "नन्ही है पर तुमने कुछ गलत नहीं किया। एक गलती की तो उसे छोड़ दिया। एक बार दबा लिया था तो चाहे चीखे चिल्लाये छोड़ने का ता सवाल ही नहीं होता। "
पापा ने भी उन्हें उत्साहित किया , "बेटे छोटी साली तो नखरे दिखाएगी ही। उसके नखरों से डरना थोड़े ही चाहिए। यदि मैं डर जाता तो तीन तीन छोटी सालियाँ हैं मेरी। तीनो की सील कौन तोड़ता ? एक तो निरमु से एक साल छोटी थी जब मैंने उसकी सील तोड़ी। "
मम्मी ने मेरे कमरे आ कर मुझे डांटा। मैं अब तक अपनी गलती समझ चुकी थी। मैं रुआंसी हो गयी। आखिर माँ तो माँ ही होती है मम्मी ने मुझे गले लगा कर मांफ कर दिया और ऊंच-नीच समझायी जीजू-साली के रिश्तों की।
मैं अब नए ज्ञान से परिचित हो कर बेधड़क हो गयी। रात के खाने के समय मैंने सिर्फ एक टी-शर्ट पहनी मम्मी के कहने से। ना नीचे कच्छी।
जब जीजू ने मुझे देखा तो तुरंत सॉरी कहने लगे मैं भड़क कर उनकी गोद में बैठ गयी, "सॉरी किसे कह रहे हैं जीजू। सॉरी कहना अपनी अम्मा को। मैं तो आपकी साली हूँ। यहाँ सॉरी की कोई जगह नहीं है। "
जीजू का सुंदर चेहरा खिल उठा। दीदी का सुंदर मुँह ने मुझे दूर से चुंबन भेजा। मम्मी और पापा मुस्करा दिए। मैंने जीजू की गोद नहीं छोड़ी। पापा ने जीजू को ख़ास स्कॉच दी और दोनों थोड़े टुन्न होने लगे। मुझे लगा की जीजू ज़्यादा स्कॉच न पीलें। मैंने मटकते हुए कहा ," जीजू आप मेरे कंप्यूटर को ठीक करो प्लीज़। "
मेरा बहन इतना ढीला था की मम्मी और दीदी की हंसी फूट पड़ी। पर जीजू ने दोपहर की गलती को याद करके मेरा मज़ाक नहीं उड़ाया और सबसे माफ़ी मांगने के बाद मुझे उठा कर मेरे कमरे में ले गए।
पहुँच कर जैसे जीजू शैतान बन गए। उन्होंने मुझे मेरे बिस्तर पे फेंक दिया और मेरी टी-शर्ट के चिट्ठड़े कर दिए। अब मैं पूरी नंगी जीजू के सामने कांप रही थी। जीजू ने अपने सारे कपडे उतार दिए और उनका लम्बा मोटा लंड तन्नाया हुआ था।
जीजू ने प्यार से मेरे थिरकते होंठों को चूमा फिर उनके होंठ मेरे अविकसित चूचियों को चुसते मेरे उभरे बचपने के पेट के ऊपर थे। उन्होंने मेरी नाभि को जीभ से खूब कुरेदा। मैं अब वासना के रोमांच से मचलने लगी।
जब जीजू ने मेरी कोरी चूत को जीभ से खोला तो मैं बिस्तर से उछल पड़ी। जीजू ने मुझे बिस्तर पर दबा कर खूब मन लगा कर मेरी चूत को चूसा और अचानक मैं अपनी कमसिन उम्र के पहले रतिनिष्पत्ति के कवर में जल उठी।
"जीजू अब मुझे चोदिये ,"ना जाने कहाँ से ऐसे अश्लील शब्द मेरे मुँह से फूट पड़े।
जीजू ने अपना लंड अपनी किशोरावस्था के पहले चार महीनों में लडखती साली की कुंवारी चूत के द्वार के ऊपर टिका दिया।
"साली जी थोड़ा दर्द होगा ,"जीजू ने हौले से कहा।
"हाँ जीजू मम्मी ने सब बता दिया है। मैं चीखूँ तो आप मेरा मुँह दबा देना ,"मैंने जीजू को विश्वास दिलाया अपने निर्णय का।
फिर क्या था। जीजू बिफर गए कामोत्तेजित सांड की तरह। उन्होंने मुझे अपने नीचे दबा लिया। काफी आसान काम था उनके लिए। कहाँ मैं चार चार दस इंच की बालिका कहाँ जीजू छह फुट दो इंच के भारी भरकम मर्द। उनका लंड मेरी कुंवारी चूत के द्वार के ऊपर दस्तक देने लगा। जीजू ने मेरा मुँह दबा लिया अपने चौड़े हाथ से, और भयंकर धक्का लगाया। मेरी चीख सारे घर में गूँज उठती यदि मेरा मुँह नहीं बंद होता जीजू के हाथ के नीचे। जीजू न मेरे बिबिलाने की परवाह की और न ही मेरे बहते आंसुओं की। एक के बाद एक भयंकर धक्के लगा लगा कर जड़ तक ठूंस दिया अपने विकराल लंड मेरी कुंवारी चूत में। मैं रो रो कर तड़पती रही पर जीजू ने पिशाचों की तरह बिना तरस खाये मेरी चूत का मर्दन करते रहे। मैं अब शुक्रगुज़ार हूँ जीजू की। आधे घंटे में मेरा दर्द काफूर हो गया और मैं अब सिसक रही और ज़ोर से चुदने के लिए। एक घंटे बाद जब मैं कई बार झड़ गयी तो जीजू ने मेरी कुंवारी चूत को अपने वीर्य से सींच दिया।
फिर क्या था। जीजू बिफर गए कामोत्तेजित सांड की तरह। उन्होंने मुझे अपने नीचे दबा लिया। काफी आसान काम था उनके लिए। कहाँ मैं चार चार दस इंच की बालिका कहाँ जीजू छह फुट दो इंच के भारी भरकम मर्द। उनका लंड मेरी कुंवारी चूत के द्वार के ऊपर दस्तक देने लगा। जीजू ने मेरा मुँह दबा लिया अपने चौड़े हाथ से, और भयंकर धक्का लगाया। मेरी चीख सारे घर में गूँज उठती यदि मेरा मुँह नहीं बंद होता जीजू के हाथ के नीचे। जीजू न मेरे बिबिलाने की परवाह की और न ही मेरे बहते आंसुओं की। एक के बाद एक भयंकर धक्के लगा लगा कर जड़ तक ठूंस दिया अपने विकराल लंड मेरी कुंवारी चूत में। मैं रो रो कर तड़पती रही पर जीजू ने पिशाचों की तरह बिना तरस खाये मेरी चूत का मर्दन करते रहे। मैं अब शुक्रगुज़ार हूँ जीजू की। आधे घंटे में मेरा दर्द काफूर हो गया और मैं अब सिसक रही और ज़ोर से चुदने के लिए। एक घंटे बाद जब मैं कई बार झड़ गयी तो जीजू ने मेरी कुंवारी चूत को अपने वीर्य से सींच दिया।
जीजू ने अपना लंड मेरी चूत से बाहर नहीं निकाला और फिर तीन बार चोदा मुझे। फिर जीजू ने मुझे सुनहरी शर्बत का खेल सिखाया। मैं थकान से टूट चुकी थी पर जीजू का मन नहीं भरा था अपने खिलौने से। अब उन्होंने मेरी गांड का कौमार्यभंग किया। मैं इतना रोई की मेरी नाक भी बहने लगी पर जीजू ने बिना तरस खाये मुझे घंटों चोदा मेरी गांड में।उस रात की आखिरी बात जो मुझे हमेशा याद रहेगी- जीजू ने इस बार मुझे गांड के मक्खन का स्वाद चखाया और मैं अब उनकी दासी बन गयी। दीदी की शादी के बाद जीजू ने मुझे हज़ारों बार चोदा। और फिर जब मेरी शादी तेरे दादू के साथ हो गयी तो जीजू और तेरे दादू ने अदल बदल कर दीदी और मुझे खूब चोदा।



वर्तमान में 


मैंने दादी की होंठों को चूम कर पूछा ,"किसका लंड बड़ा है दादी आपके जीजू का या दादू का ?"
दादी ने मुस्कुरा कर कहा , "बेटा फ़िक्र मत कर इस घर के मर्दों से बड़े लंड कहीं नहीं हैं। मेरे जीजू का लण्ड खूब मोटा दस इंच का था पर तेरे दादू का लंड तो और भी मोटा और लम्बा है। "
मैं अब बहुत गरम हो चली थी, "दादी पापा का लंड कितना बड़ा है ?"मैं पूछते हुए शर्म से लाल हो गयी। 
" नेहा बेटा बेटी के लिए उसके पापा का लंड बहुत ख़ास होता है। जब मैंने अपने पापा के लंड को पहली बार लिया था तो मुझे उनके लंड के सामने किसी और लंड की कामना भी नहीं थी। पर तेरे पापा का लंड तेरे दादू से बाइस है।" दादी ने मेरे भग-शिश्न को मसलते हुए कहा। 
"क्या यह सिर्फ पोती और दादी के लिए है या दादू भी स्नान के लिए टब में आ सकतें हैं ," ना जाने कब दादू अपनी दौड़ के बाद पसीने से लथपथ घर आ गये थे।
"अरे इन्तिज़ार किसका कर रहें हैं कपड़े उतारिये और अंदर आ जाइये ," दाद ने दादू को उकसाया। 
दादू ने अपना ट्रैक-सूट एक झटके में उतार दिया। उनका भारी भरकम भालू जैसा बालों से भरा शरीर पसीने से भीगा था। मैं कूद कर दादू की गोद में बैठ गयी बिना शर्म के। दादू ने मुझे दिल भर कोर चूमा फिर मैंने उनकी बालों भरीं पसीने से लथपथ कांखों को मन भर चूसा। मैंने मन लगा कर के पसीने की हर बूँद चाट ली उनके बालों भरे सीने से। 
"नेहा बेटा तेरे दादू का लंड तैयार है अपनी पोती के लिए। चढ़ जा अपने दादू के घोड़े पर ," दादी के शब्दों के बची-कुची शर्म का पर्दा खींच कर फेंक दिया।
मैं बिना शर्म के दादू के विकराल लंड के ऊपर बैठ गयी ,"मुझसे नहीं डाला जायेगा आपका लंड अपनी चूत में। "
दादी ने मेरे कंधे दबाये दादू के लंड के ऊपर। मेरी चूत दादू ले लंड को निगलने लगी धीरे धीरे। दादू ने जड़ तक अपना लंड ठूंस कर मेरी चूत का मीठा मर्दन शुरू कर दिया। जब मैं दस बारह बार झड़ चुकी तो उन्होंने मुझे उठा कर टब में घोड़ी बना कर चोदा। मैं सिसक सिसक कर झड़ती रही। दादू का लंड फचक फचक की आवाज़ें पैदा करता मेरी चूत में पिस्टन की तरह अंदर बाहर आ जा रहा था। 
बिना मुझे आगाह किये दादू ने अपना लंड मेरी चूत में से निकाल कर मेरी गांड में ठूंस दिया। मेरी चीखों ने दादू को और भी उत्साहित किया मेरी गांड को बेदर्दी से चोदने के लिए। 
लम्बी चुदाई के बाद दादू ने मेरी गांड भर दी अपने गरम वीर्य से। फिर मुझे मिला दादू और दादी का सुनहरा शर्बत और दादू और दादी को मेरा। 
फिर हम तीनो बिस्तर को ओर चल पड़े, मेरे आगे दिन भर की चुदाई थी दादी और दादू के साथ। 
अब मेरा परिवार प्रेमग्रस्त था। शायद यह मेरी कल्पना है मेरे परिवार में तो प्रेम की बिमारी सालों से ही थी। बस मुझे ही ही देर से लगी यह जलन। लेकिन अब लग गयी तो बुझने का नाम ही नहीं लेती। सुशी बुआ मुझे चिढ़ातीं कि घर में एक लंड है जिसकी मैंने सेवा नहीं की है। मैं शर्म से लाल हो जाती। बुआ मेरे पापा की ओर इंगित कर रहीं थीं। 
फिर अचानक मम्मी ने एक रहस्य खोला तो मेरा जीवन ही बदल गया।


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#50
Update 46

पारिवारिक मिलन : एक भावुक पल

एक शुक्रवार की शाम को जैसे जादू से सारे मर्द इकट्ठे क्लब चले गए। मुझे उस दिन घर में काफी ख़ामोशी सी भी लग रही थी। जब मैं पारिवारिक-कक्ष में गयी तो मम्मी चिंतित लग रहीं थीं। सुशी बुआ उन्हें अपने से लिपटा कर जैसे उन्हें साहस सा दे रहीं लग रहीं थीं। दादी मम्मी के बालों सो सहला रहीं थीं। जैसे बेटी समझ जाती है वैसे मुझे एक क्षण लगा समझने में कि मम्मी की समय हैं यह। मुझे मेरे हँसते मुस्कराते घर में गंभीरता बिलकुल नहीं सुहाई। 
मुझे देख कर मम्मी के आँखें नुम हो गयीं। मेरा दिल ज़ोर से धड़कने लगा। "सुन्नी, हमारी नेहा लाखों में एक है। उसे बता को तो देख ,"सुशी बुआ ने मम्मी को उकसाया। 
दादी माँ ने सर हिला कर सम्मति दी। मैंने घबराते हुए पूछा ,"मम्मी क्या बात है? मुझे बतिये ना। मैंने क्या कोई गलती की है ?"
मैंने कालीन पे बैठ कर मम्मी की गोद में अपना मुंह छुपा लिया। 
बुआ ने अब गंभीरता से कहा , "सुन्नी तू नहीं बताएगी तो मैं बता दूंगीं। पर नेहा को तुझसे ही पता चलना चाहिए। "
मम्मी के सुंदर चहरे पे दर्द की छाया मेरे ह्रदय में भले खोंप रही थी। आखिर कार मम्मी ने गहरी सांस ले कर मेरे बालों को चूमा ,"बेटी यदि तेरी माँ की बात से तू अपनी माँ से नाराज़ हो गयी या उस से घृणा करने लगी तो मैं मर जाऊंगी। "
मुझे रोना आ गया ,"मम्मी आपकी बेटी कभी आपसे नाराज़ कैसे हो सकती है। और घृणा आपकी ओर उस से पहले अपनी जीभ न काट लूंगी मैं। "
मम्मी ने मुझे गले लगा लिया और हम दोनों रोने लगीं। बुआ और दादी ने भी मुश्किल से सुबकियां रोकीं। बुआ ने वातावरण को हकला करने के लिए झूटे गुस्से से कहा ,"अभी किसी ने कुछ कहा भी नहीं और देखो हम चारों टसुए बहाने लगीं। चल अब मुँह खोल सुन्नी। वरना मैं तेरी चूत में दाल दूँगी बेलन। " मम्मी और दादी न चाहते हुए भी मुस्कुरा दीं। बुआ की जानबूझ कर फूहड़ सी बात से वातावरण वाकई हल्का हो गया। 
"नेहा बेटा जब तू चार साल की थी तब मुझे लिंफोमा जिसमे ल्यूकीमिआ का मिश्रण था हो गया। "
मैं सन्न रह गयी। मेरी प्यारी मम्मी को कैंसर था और मुझे बताया भी नहीं किसीने। बुआ ने तुरंत मेरे चेहरे को देख कर कहा ," देख नेहा हत्थे से छूटने मत लग जाना। तेरी मम्मी का कैंसर बहुत ही जल्दी पकड़ लिया था डॉक्टरों ने। सुन्नी ने खून की जांच कराई थी दुबारा गर्भित होने से पहले। "
मम्मी ने बात संभाली , "सुशी बुआ सहीं कह रहीं हैं। इसीलिए हम सबने तुझ से यह बात छुपाई। मेरी स्टेज बहुत शुरुआत की थी और कीमो से सब ख़त्म हो गया। पर हमने घबराहट में एक गलती कर दी ," और मम्मी की हिचकियाँ बंध गयीं फिर से। 
दादी ने बात संभाली अब ,"नेहा बेटा हम सब सुन्नी के स्वास्थ्य के लिए इतने परेशां थे कि सुन्नी के अण्डाणु को बैंक में बचाना भूल गए। तेरी माँ की तबसे इच्छा थी कि तेरे जैसी प्यारी बेटी या वैसा ही प्यारा बेटा की। लेकिन सुन्नी को तेरा बहन या भाई तेरे जैसा ही चाहिए। अंकु का वीर्य तो है पर सुन्नी के अण्डाणु जैसे अंडे तो सिर्फ तेरे पास हैं। "
मैंने लपक चूमा , "मम्मी मैं तैयार हूँ सब करने को पर आप उदास मत हो। "
"नेहा बेटा हम तेरे बचपन को छोटा नहीं करना चाहते पर तुझे सत्य का आभास तो देना ही पड़ेगा हमें। सुन्नी तैयार थी की तेरे अण्डाणु को अंकु के वीर्य से गर्भादान करके सुन्नी के गर्भाशय में स्थापित करने के लिए। पर हार्मोन्स इतने सारे देने पड़ेंगें की सुन्नी की बिमारी वापस आने का खतरा है। सुन्नी तो तैयार है पर हम सब नहीं। अंकु के लिए तेरी मम्मी को एक बार खोने का डर के बाद अंकु सुन्नी को कोई खतरा नहीं लेने देगा ," बुआ ने विस्तार से बताया। 
मैंने सुबकते हुए कहा ,"बुआ मैं सब कुछ करूँगीं जो ज़रूरी है। पर मम्मी को खतरा नहीं लेने दूंगीं।आप मुझे बताइये मुझे क्या करना है ?"
बुआ बागडोर संभाली,"देक्झ मैं तेरी माँ को हरगिज़ नहीं उसकी ज़िन्दी खतरे में डालने दूँगी। चाहे मुझे उसे बांधना पड़े। सुन्नी मेरी ननद या भाभी ही नहीं मेरी छोटी बहन है।,"बुआ भावुक हो गयीं ,"देख नेहा तू हिसाब लगा कि क्या होना चाहिए। तेरे पापा के वीर्य के शुक्राणु तेरे अंडे जो सिर्फ तेरे गर्भ में पल सकते हैं। "
बुआ ने मुझे अध्यापिका की तरह देखा जैसे वो किसी मंदबुद्धि के छात्र का उत्साहन कर रहीं हों। मम्मी का चेहरा शर्म से लाल हो गया पर दादी मंद मंद मुस्कराने लगीं। 
बुआ ने झल्ला कर कहा ,"अरे मेरी मेधावी नेहा बिटिया सिर्फ एक रास्ता है। तेरी शादी अंकु के साथ और जितने तेरी मम्मी चाहे उतने बेटी-बेटे ,समझी !" मैं भी शर्म से लाल हो गयी पर बुआ कहाँ पीछा छोडने वालीं थीं , "बोल क्या कहती है। "
मैंने मम्मी को ओर देखा फिर शर्म सर झुका कर ज़ोर से हाँ कर दी। 
मम्मी ने मुझे गले लगा कर रो पड़ीं। दादी की आँखें भी बहने लगीं। बुआ अब वास्तव में सुबक रहीं थीं पर सुशी बुआ तो सुशी बुआ थीं ,"देख सुन्नी अभी भी सोच ले इस शैतान नेहा को अपनी सौतन बनाने से पहले।"
दादी माँ ने अपनी बेटी तो डांटा , "अरे सुशी सौतन होगी तेरी। मेरी नेहा बिटिया तो अब मेरी बहु की बेटी ही नहीं बहन भी हैं। "
बुआ ने कहा, "देखो सब लोग। यह शादी सिर्फ घर में ही रहेगी पर धूमधाम में कोई कस्र नहीं सहूंगीं मैं। मम्मी देखो नेहा के लिए सारे ज़ेवर नए होने चाहियें। "
मैंने शरमाते हुए कहा , "नहीं बुआ यदि मम्मी को कोई आपत्ति न हो तो मैं उनकी शादी का जोड़ा पहनूंगीं अपनी शादी पे। "
मेरी बात सुनकर तीनों फिर से सुबक उठीं एक दुसरे से लिपट कर । "स्त्रियां न समझी जाएँ, न संभाली जाएँ," मैंने सोचा और फिर मैं भी सुबकने लगी।



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#51
Update 47

दो दिन में सारे परिवार के लोग इकट्ठे हो गए। नरेश भैया और अंजू भाभी तो उसी शाम आ गए अपनी निजी हवाई-जहाज से। मनु भैया और नीलम भाभी ने अपना मधुमास को तोड़ कर दुसरे दिन आ गए। सुरेश चाचू और नमृता चाची तो जैसे इसी दिन का इन्तिज़ार कर रहे थे। उनके बेटी बेटा , मीनू, संजू, ऋतू मौसी और राजन मामू शाम तक आ गए। घर भरने लगा धीरे धीरे। गंगा बाबा और जमुना दीदी ने संभाला खाने पीने का इंतिज़ाम। नमृता चची के पिता जी साथ साथ आये। अकबर चाचू, शब्बो बुआ , शानू , नसीम आपा , आदिल भैया,, अरे नहीं नहीं, आदिल जीजू और फिर अकबर चाचू की दोनों सालिया शन्नो और ईशा। राजू चाचू , रत्ना चाची, सुकि दीदी , रामु काका, पारो चाची और उनकी नन्ही रज्जो तो घर में ही थे। भूरा को कौन भूल सकता था। 

नमृता चाची, शब्बो बुआ और सुशी बुआ ने संभाला मुझे। यानि की मेरी हर पल हर दिन हालत ख़राब करने की ज़िम्मेदारी ले ली इन दोनों आफत की पूड़ियाओं ने। सब के सब जोड़ियां बना कर रात भर ( दिन में भी) चुदाई करते पर मेरे और पापा के लिए सब बंद था। मम्मी भी ख़ुशी मिल गयीं थीं। हर दिन सुशी बुआ और नमृता चाची मेरी चूत और गांड में सो-टाइट और वी - टाइट खूब मात्रा में लगाती जिस से मैं दस दिनों में कुंवारी होने से भी ज़्यादा कास जाऊं , "देख नेहा अंकु ने यदि सुहागरात की चादर को तेरे गाड़े खून से लाल नहीं किया तो शर्म की बात होगी,"और फिर दोनों खिलखिला कर हंस देतीं। 
शादी का दिन तय था मेरे मासिक धर्म से। दस दिनों में मेरा पहला सबसे उर्वर दिन होगा और मेरे अंडे तरस रहे होंगे पापा के वीर्य से मिलने के लिए - यह मेरा नहीं नमृता चाची का विवरण है। 
और फिर हर दिन बिना वजह के हल्दी-चन्दन के उबटन और गँवारुं गाने -यह मेरा विवरण है। ज़ोर से नहीं बोलै मैंने। मार थोड़े ही कहानी थी मुझे सुशी बुआ, शब्बो बुआ और नमृता चाची से। 
शादी के दिन मुझे सजाया संवारा गया। मम्मी के शादी के जोड़े पहनते हुए साड़ी स्त्रियां रोने लगीं। मैने कहा नहीं था 'स्त्रियां समझ नहीं……. वगैरहा….. वगैरहा ।
मैं जेवरों के वज़न से झुकने लगी। एक नहीं चार नथें पहनाई गयीं मुझे , मम्मी की शादी , दादी की शादी की , नानी की शादी की और सुशी बुआ की शादी की। मैं अब सबकी बेटी भी तो बन गयी थी। फिर ऋतू मौसी, जमुना दीदी ,पारो चाची, रत्ना चाची, सुकि दीदी, शब्बो बुआ , नसीम दीदी, दादी माँ , सब रोने लगीं मुझे देख कर। सब सुबक सुबक कर मम्मी, दादी को गले लगा कर हँसते हुए रोने लगीं। मम्मी के आंसूं तो रुक ही नहीं रहे थे। ( "कितनी सुंदर है हमारी बेटी "-उन्ह इतने जेवरों में दबाओगे तो कोई भी सुंदर लगेगा नहीं ?- पर मैं बोली नहीं। पीटना थोड़े ही था मुझे शादी के दिन। )
सुशी बुआ ने ताना मारा "अरे रो क्यों रही हो रण्डियों। किस माओं को ऐसा सौभाग्य मिलता है की बेटी की शादी के बाद भी बेटी घर में रहे। "
नमृता चाची ने भी तीर छोड़ा ,"और क्या। मेरी रंडी बहन ऋतू किसी गधे से शादी करे तो मैं उस से पीछा छुड़ाऊं पर वो तो मेरे भैया के साथचिपकी रहेगी। "
शब्बो बुआ भी तो वहां थीं ,"सब रोना बंद करो खुदा के वास्ते। मेरी बेटी नेहा को आखों से दूर थोड़े की करूंगी मैं। "
और फिर तीनों औरों से भी ज़्यादा रोने लगीं। 
मैं शर्म से लाल घूँघट में से अपने पापा को देखा।सोने की जरदारी की अचकन लखनवी पजामी में इतने सुंदर लग रहे थे कि मेरी सांड रुक सी गयी। अग्नि के सात फेरे। सारी स्त्रियों के बहते आंसूं। मैंने अपने पति के पैर छुए। पापा ने मेरी मांग में सिंदूर भर दिया। 
फिर मुझे याद नहीं क्या हुआ। खाना कब खत्म हुआ। कब मुझे सुहागरात के बिस्तर पर बिठा दिया गया।मुझे याद रही तो बुआ की चेतावनी -"देख अंकु मैं दरवाज़े के बाहर ही हूँ। तेरी वधु की चीखें न सुनायीं दी तो दरवाज़ा तोड़ कर अंदर आ जाऊंगीं "शब्बो बुआ और नमृता चाची ने गंभीरता से समर्थन में सर हिलाया इस महत्वपूर्ण मसले के ऊपर। 
पापा ने प्यार से मेरी नथें उतारी और फिर भारी सारी और सारे वस्त्र। पहले मेरे फिर अपने। 
"मैंने पापा के चरण छू कर कहा ,"पापा मैं मम्मी जैसी पत्नी की छाया भी नहीं हूँ पर मैं पूरा प्रयास करूँगीं। "पापा ने मुझे अपने से चुपका लिया।
और फिर पापा ने ममेरे 'कौमार्य ' को फिर से तोड़ा उस रात। दादी सही थीं। पापा सबसे बीस नहीं टेइस थे। मेरी चीखें दरवाज़े के बाहर तो क्या सारे कसबे में सुनाई दी होंगीं। दरवाज़ा तो पास था बिस्तर के। किसी को भी शिकायत नहीं हुई सुहगरात की चादर से। 
बाकि की कहानी तो अभी भी ज़ारी है पर संक्षेप में :
मधुमास के लिए पापा और मैं चार महीनों के लिए यूरोप में थे। तीसरे हफ्ते में मैं गर्भ से थी। जब हम वापस आये तो शब्बो बुआ हुए नसीम आपा के पेट निकले हुए थे। ऋतू मौसी ने अपने भैया से गन्धर्व विवाह किया और जुड़वां बेटों से फूल गयीं। सुशी बुआ भी गर्भ से थीं सालों की असफलता के बाद। मैं तो इसे अपनी मुट्ठ चुदाई की करामात कहती हूँ पर सब इसे मेरे और मेरी मम्मी पापा के स्वर्गिक प्रेम का प्रभाव कहतें हैं। 
जमुना दीदी की कोख भर दी थी गंगा काका ने। 
मेरी पढ़ाई थोड़ी धीरी हुई पर मैंने मम्मी को तीन बच्चों से पूरा व्यस्त कर दिया अगले चार सालों में। लंदन कॉलेज ऑफ़ इक्नोमिक्स से बीऐ इकोनॉमिक्स करके पापा की तरह हार्वर्ड में एम बी ऐ में दाखिला मिल गया। पत्नी सही पर पापा की बेटी भी तो थी मैं। उनके पदचिन्हों पर भी तो चलना था मुझे यह अच्छे ‘बेटे’ की तरह । 
मेरे लम्बे बड़े फैले परिवार में कई कमियां हो शायद पर एक कमीं नहीं हैं और न होगी कभी - प्यार की।

                                                                                  समाप्त


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#52
Story Completed! announce

Thank you all to encouraging me 
Motivation is important.... thank you
Please rate my story and my update You can see there is option to rate for every update....rate to this story for the finest writer seema...at least we can do this for the original writer
So I will get increase in reputation on xossipy 

Thank you

Enjoy

नेहा का परिवार : लेखिका सीमा
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#53
I read this story about 2-3 years ago on Xossip....and like this story very much.... im not able find anywhere but I got it now  .....so I posting it  .... written by one of the finest writer Seema


and all credit for this amazing story goes to writer for this story - SEEMA
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#54
Thank you all  thanks



Now you can comment how's story ....if there is any mistake in updates ....then i will try to fixed it
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#55
Rainbow 
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The Emotional Housewife


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#56
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Emotional and kinky one 




The Emotional Housewife


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#57
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#58
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Emotional and kinky one ......check out




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#59
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#60
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