Thread Rating:
  • 0 Vote(s) - 0 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Incest bro-sister
इतना कह कर उसने अपने पूरे कपड़े उतार दिए।

क्या थी उसकी छोटी-छोटी चूची, बिल्कुल नींबू जैसी।
ऐसा लगा कि उसको पकड़ कर उसकी नीबू जैसी चूची को चूस लूँ… और मैं उसको पकड़ कर उसकी चूची को दबाने वाला ही था कि वो झटके से अलग हो गई और बोली- पहले अपने कपड़े उतारो, तुमने भी वादा किया है और तुम्हें भी नंगा होना पड़ेगा।

मैंने भी वादे के अनुसार अपने पूरे कपड़े उतार दिये और उसके सामने नंगा हो गया। उसके बाद नीलम मेरे पास आई और मेरे लण्ड को छूकर बोली- तुम इसको क्या कहते हो?

‘लण्ड…’ मैंने तुरंत ही बोला।
‘अच्छा तो यह तुम्हारा लण्ड है, और यह मेरा लण्ड है…’ उसने बड़ी मासूमियत से कहा।
‘अरे नहीं, इसको बुर कहते हैं।’ मैंने कहा।

‘और इसको क्या कहते हैं?’ मेरी गाण्ड पर थपकी देते हुई बोली।
‘गाण्ड…’
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
[+] 1 user Likes neerathemall's post
Like Reply
Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.
‘और इसको?’ अब उसने अपनी गाण्ड पर हाथ फिराते हुए बोली।
‘गाण्ड!!’
‘क्यों? इसको गाण्ड क्यों कहते हैं?’

मैंने पूछा- क्या मतलब?
तो वो बोली- कि जब तुम्हारा ये लण्ड और मेरी ये बुर है तो फिर हमारी और तुम्हारी गाण्ड का एक नाम क्यों?
मैंने कहा- अरे पगली, ये दोनों एक जैसी है और इन दोनों का आकार अलग-अलग है न इसलिए!!
‘इन दोनों का आकार अलग-अलग क्यों है?’

फिर मैंने उसे समझाया कि जिस प्रकार बिजली से बल्ब जलाने के लिये साकेट और टाप का आकार अलग-अलग होता है उसी प्रकार आदमी और औरत का यह अंग अलग-अलग होता है। और जानती हो, इसको क्या कहते हैं उसकी चूची की घुंडी को दबाते हुए मैंने कहा- इसको चूची कहते हैं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
[+] 1 user Likes neerathemall's post
Like Reply
तुरंत ही एक जोर का थप्पड़ मेरे गाल में लगा, मैंने गाल सहलाते हुए पूछा- मारा क्यों?
तो वो बोली- इसको दबा दिया तो मुझे दर्द हो रहा था।

‘अच्छा तो यह बात है…’ कहकर मैंने उसे अपने बदन से चिपका लिय और धीरे-धीरे से उसके बदन को सहलाने लगा।

अब वो धीरे-धीरे गरम होने लगी और जैसे-जैसे मैं उसके साथ करता वैसे ही वह मेरे साथ करती।
मैंने उसकी पीठ सहलाते-सहलाते उसकी गाण्ड में अपनी उँगली डाल दी। इधर मैंने उसकी गाण्ड में उँगली कि और उधर वि मेरी नकल करते हुए मेरी गाण्ड में उँगली गड़ाने लगी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
[+] 1 user Likes neerathemall's post
Like Reply
थोड़ी देर बात नीलम बोली- शरद, मुझे पेशाब लगा है।

मैंने उसे अपने से अलग करते हुए उससे कहा- जाओ, करके आओ।
‘अरे पागल… इस नंगी हालत में मैं बाहर कैसे जा सकती हूँ?’
‘अरे तो कपड़े पहन लो…’
‘अरे बहुत तेज से लगी है, जब तक़ मैं कपड़े पहनूँगी तब तक तो यहीं निकल जायेगा।
‘तो यहीं कर लो, फिर बाद में साफ कर लिया जायेगा।’

नीलम बैठ कर मूतने लगी, सीटी जैसी आवाज उसके मूत से आ रही थी, जिसकी वजह से मुझसे रहा नहीं गया और पता नहीं मुझे क्या हुआ मेरा हाथ उसकी बुर पर चला गया और मैं उसकी बुर सहलाने लगा, मेरा हाथ उसके पेशाब से गीला हो रहा था पर मेरा गीला हाथ उसकी बुर पर पड़ता तो एक छपाक की आवाज आती…

पता नहीं मुझे क्या हुआ, मैंने उसको खड़ा कर दिया क्योंकि मैं उसको खड़े होकर मूतते देखना चहता था।
जब वो खड़ी हुई तो मैंने अपनी मध्यिका उँगली उसके योनि द्वार पर रखकर अन्दर की तरफ़ धकेलने लगा, जिसके कारण उसकी पेशाब की बूँदें मेरे बदन पर आ रही थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
[+] 1 user Likes neerathemall's post
Like Reply
उत्तेजना ही तो थी यह कि मेरी जीभ लपलपा कर उसके बुर के मुहाने पर चली गई।कसैला सा स्वाद था…
मैंने उसकी एक टांग उठाकर पास पड़ी कुर्सी पर रख दिया और उसके बुर को चाटने लगा।
नंगी नीलम भी काबू से बाहर हो रही थी, मेरे सर को मजबूती से पकड़ कर अपने बुर को मेरे मुँह से रगड़ रही थी, आह… सी… सी… आह की आवाज उसके मुँह से आ रही थी और अचानक मेरे मुँह में कुछ शायद उसके रज की बूँद आ गिरी।
मैं मुँह हटाना चाह रहा था, पर वो मेरा सर इस प्रकार पकड़े थी कि मैं चाह करके भी अपना मुँह वहाँ से नहीं हटा पाया पर मेरी ये कोशिश भी बेकार गई और उसने अपने रज की एक-एक बूँद मेरे मुँह में भर दी।




[Image: 515556_15big.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
[+] 1 user Likes neerathemall's post
Like Reply
जैसे ही उसकी पकड़ ढीली पड़ी मैंने उसकी बुर कि पुत्ती को पकड़ कर जोर से मसल दिया, वो चीख पड़ी और बोली- यह क्या कर दिया? दर्द हो रहा है।
‘तुम भी तो अपने बुर से मेरा मुख से नहीं हटा रही थी! अपने रस की एक-एक बूँद पिला दी।’

‘अच्छा यह बताओ कि मेरे रस कैसा लगा?’
‘यह तो मैं नहीं बताऊँगा। तुम मेरा लौड़ा चूसो और इसके स्वाद को अपने आप जान नाओ।’
‘अरे इतनी सी बात… ये लो मेरे राजा!’ इतना कहकर नंगी नीलम घुटने के बल बैठ गई और मेरे लोड़े को पकड़ कर आगे की चमड़ी को हटा कर अपने जीभ से उस भाग को चाटने लगी।
वो इस प्रकार उस हिस्से को चाट रही थी जैसे छोटा बच्चा खाना खाने के बाद अपने जीभ से अपने हथेली को चाटता है, ठीक उसी प्रकार से वो मेरे लण्ड को चाट रही थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
[+] 1 user Likes neerathemall's post
Like Reply
[Image: 515556_04big.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
मेरे लौड़े से अपने मुख को चोद रही थी। उसके इस तरह के मुख चोदन से मुझे लग रहा था कि मैं अब झड़ा कि तब झड़ा।

करीब पंद्रह मिनट के बाद मैं उसके मुँह में झड़ गया। नीलम ने भी मेरे वीर्य की एक-एक बूँद ठीक उसी प्रकार चूस की जैसा कि मैंने उसके किया था।

जब उसने मेरे लौड़े को छोड़ा तो लौड़ा इस प्रकार दिखाई पड़ रहा था कि जैसे बच्चे की छुन्नी। मेरे लौड़े या यूँ कहें कि छुन्नी को देख कर हँसने लगी और कहने लगी- देख तो शरद मैंने तेरे लौड़े का क्या हाल कर दिया।
मैंने कहा- तू इतन अच्छा चूसती है, इसका तो ये हाल होना ही था। कहाँ से सीखा ये सब?

नंगी नीलम मुझसे बोली- यह बताओ कि तेरे को मजा आया या नहीं?
‘अरे बहुत मजा आया। पर तुम तो बड़ी पक्की खिलाड़ी हो और मुझसे तो कह रही थी कि आदमी का लण्ड देखने की तुम्हारी बहुत जिज्ञासा है?

‘अरे वो तो मैं मजाक कर रही थी। मैंने तो तुम्हारी जिज्ञासा को शान्त करने के लिये ये सब किया था।’
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
[+] 1 user Likes neerathemall's post
Like Reply
‘वो कैसे?’ मैंने पूछा, तो वो बोली- वैसे तो जब भी कभी मैं अपने सवाल तुमसे पूछती थी, तो तुम मेरी तरफ देखे बिना मेरे सवाल बता देते थे। पर जब मैं उस दिन फ्राक पहन कर आई थी, और गलती से मेरे टांगों की तरफ तुमने देखा और उसी वक्त मुझे तख्त पर बैठने को कहा, उस समय तो में नहीं समझ पाई पर जब मैं घर गई और कपड़े बदलने लगी तभी मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। मुझे लगा कि मुझे फ्राक पहन कर तुम्हारे पास नहीं आना चाहिये था और उस पर यह कि मैंने पैन्टी भी नहीं पहनी थी।
मैं तुम्हें देखना चाहती थी यदि मैं दूसरे दिन भी फ्राक पहन कर जाऊँ तो तुम्हारा रिएक्शन क्या होगा। लेकिन जब उस दिन भी तुमने मुझे पलंग पर बैठने के लिये कहा तो मैं समझ गई कि तुम क्या चाहते हो। इसलिये मैं उस दिन से इंतजार कर रही थी कि कब तुमको मैं घर में अकेला पाऊँ और तुम्हारी जिज्ञासा को शान्त करूँ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
[+] 1 user Likes neerathemall's post
Like Reply
नीलम ने मेरे होंठो को चूमना शुरू कर दिया। एक तरीके से वह मेरी जीभ का भी रसास्वादन कर रही थी।
रसास्वादन करते-करते नीलम बोली- शरद आज मैं तुमसे चुदने ही आई हूँ, आज मुझे जी भर के चोदो… मेरी जन्म-जन्म की प्यास बुझा दो।

मैं अगर अपनी बात कहूँ तो नीलम के अलावा उस तरह का सेक्स का मजा मुझे फिर कभी नहीं आया।

नीलम धीरे से मेरे निप्पल को चाट रही थी और बीच-बीच में वो दाँत गड़ा देती जिसका असर यह होता कि मैं भी उसके निप्पल को पकड़ कर मरोड़ देता, जिससे वो सिसकारने लग जाती।

‘शरद मेरी एक बात मानोगे?’
‘हाँ बोलो…’

‘जैसा-जैसा मैं कहूँ, वैसा-वैसा तुम करना, मैं तुम्हें स्वर्ग का आनन्द दूँगी। और यह मत बोलना यह गन्दा है, वो गन्दा है… बस करते जाना।’
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
[+] 1 user Likes neerathemall's post
Like Reply
‘ठीक है आज मैं तुम्हारी सब बात मानूगा। मैं साथ हि साथ उसकी बुर मैं उँगली करने लगा, वो गीली हो चुकी थी और उसका रस मेरे हाथो में था।

तभी उसने मेरा हाथ पकड़ा और अपने पूरे बदन को टच करते हुए उँगली को अपने मुँह में ले गई और रस को चूस लिया और अपनी जीभ मेरे में डाल दी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
[+] 1 user Likes neerathemall's post
Like Reply
नीलम मुझसे बिल्कुल सट कर लेटी थी और अपनी एक टांग मेरे जांघों के ऊपर रखे हुए थी।
कभी-कभी तो मेरे सुपाड़े के आवरण को बड़ी बेदर्दी से इस प्रकार नीचे की ओर करती थी कि मेरे मुँह से हल्की सी सीत्कार निकल जाती थी और फिर अपने नाखून से उस कटी हुई जगह को कुरेदती थी।
उसकी इस हरकत से जहाँ मीठा-मीठा दर्द होता था वहीं एक अजीब सी उत्तेजना बढ़ती जाती थी और इस कारण मेरा लण्ड फिर से खड़ा होकर के अकड़ने लगा।


लण्ड महराज को अकड़ता देख वो धीरे से मुस्कुराई और बोली- बड़ा अकड़ रहा है, रूक जा थोड़ी देर मैं तेरी अकड़ निकालती हूँ।
इतना कहते ही नीलम उठी और तेजी से रसोई की ओर गई और वहाँ से एक कटोरी में तेल ले आई, धार बनाकर मेरे लण्ड पर तेल उड़ेली और लण्ड को तेल से सरोबार कर दिया।
फिर खुद भी जमीन पर लेट कर अपनी टांगों को उठा कर अपने सर से मिलाते हुए बोली- मेरे राजा, अपनी उँगली से तेल ले-ले कर मेरे चूत के छेद में डालो ताकि यह भी चिकनी हो जाये।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
[+] 1 user Likes neerathemall's post
Like Reply
.





















[Image: 515556_06big.jpg]

मैंने भी घुटने के बल बैठ कर अपनी पोजीशन पकड़ी और अपने लण्ड को सेट करके धक्का मारा, लेकिन लण्ड अन्दर न जाकर ऊपर निकल गया।

फिर नीलम ने अपने हाथ से अपनी चूत को थोड़ा सा फैलाया और मैंने लण्ड को धीरे से सेट करके अन्दर झटके से डाला।
नीलम एक बारगी तो चिल्ला उठी और मुझे धक्के देकर हटाने लगी और बोली- कमीने हट… कमीने बहुत दर्द हो रहा है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
[+] 1 user Likes neerathemall's post
Like Reply
[Image: 515556_08big.jpg]


लेकिन मुझे लगा कि मैं अपना लण्ड निकाल नहीं सकता हूँ, इसलिए मैं थोड़ा रूक कर उसके दूध के निप्पल को चूसने लगा।
जब कुछ देर बाद उसका दर्द कम हुआ तो अपने चूतड़ को उठाकर मेरे लण्ड को अन्दर लेने की कोशिश करने लगी और मेरे कान में बोली- मेरे राजा, इसको फाड़ दो।


उसकी इस बात को सुनकर मैं भी लण्ड को अन्दर-बाहर करने लगा।
धीरे-धीरे वो बड़बड़ाने लगी- चोद मेरे को चोद, फाड़ दे मेरी बुर को। कब से तड़पा रही थी ये मादरचोद।
और पता नहीं क्या-क्या बोले जा रही थी।
[Image: 515556_08big.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
[+] 1 user Likes neerathemall's post
Like Reply
इतना कहकर उसने लपक कर के मेरे लौड़े को पकड़ा और अपनी चूत में डाल लिया- राजा तुम मेरे को आज चोद के मस्त कर दो।
फिर वो मेरे कानों को अपने होंठों से किटकिटाए जा रही थी।

मैंने थोड़ी देर के बाद नीलम को उसी तरह गोद में उठाया और टेबल पर पटक दिया और उसके दोनो पैरों को अपने कंधे पर रखकर जोर से धक्के पे धक्के देता गया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
[+] 1 user Likes neerathemall's post
Like Reply
[Image: 515556_11big.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
[Image: 515556_07big.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
[Image: 515556_10big.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
[Image: 515556_14big.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
उसने मुझसे कहा- तुमने इतनी बेरहमी से क्यों घुसाया अन्दर?
मैंने कहा- तुमने इतने ज़ोर से काटा था कि मुझे गुस्सा आ गया.. इसलिए मैंने इतनी जोर से किया था।

फिर वह बोली- अब कभी भी मैं दोबारा तुम्हारे साथ सेक्स नहीं करूँगी।
मैंने उसे बड़ी मुश्किल से मनाया। मैंने उससे कहा- अगर तुम्हें दर्द होगा तो मैं नहीं करूँगा।

बड़ी मुश्किल से वो मानी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
[+] 1 user Likes neerathemall's post
Like Reply




Users browsing this thread: 83 Guest(s)