Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
Update 17
"इसका मतलब है आपको गांड मरवाने की कामना थी ?"
जानकी दीदी सुरेश चाचा की बाहों में मचल गयी, "मैं तो सिर्फ आप का दिल रखने के लिए रवि भैया से अपनी गांड मरवा रहीं हूँ। क्या कोई भी समझदार लड़की आपके और रवि भैया के घोड़े जैसे लंड से इकट्ठे अपनी गांड और चूत फटवाना चाहेगी?"
बड़े मामा ने हंस कर अपने लंड को जानकी दीदी की गांड में और भी अंदर तक धकेल दिया। जानकी दीदी चिहुक उठी। सुरेश चाचा ने जानकी दीदी को अपने बहुशाली हाथों से जकड़ कर स्थिर कर रखा था। बड़े मामा ने जानकी दीदी की मुलायम गोल भरी कमर को कस कर तीन चार भयंकर धक्कों से अपना विशाल खम्बे जैसा लंड जड़ तक बिलखती जानकी दीदी की गांड में ठूंस दिया। बड़े मामा और सुरेश चाचा पहले धीरे धीरे बिलखती सिसकती जानकी दीदी की दोहरी चुदाई करनी प्रारंभ की। थोड़ी देर में ही जानकी दीदी की सिसकियाँ ने दूसरा रूप अंगीकृत कर लिया। उनकी सिस्कारियों में अब दर्द कम और कामवासना का अधिकाय हो उठा था। बड़े मामा और सुरेश चाचा ने जानकी दीदी की गांड और चूत इकट्ठे मारने की लय बना कर चुदाई की रफ़्तार बड़ा दी।
बड़े मामा के लंड की रगड़ जानकी दीदी की गांड को अब बहुत भा रही थे। उनकी गांड और चूत की भीषण चुदाई उन्हें शीघ्र एक बार फिर से चर्म-आनंद के द्वार पर ले आयी। जानकी दीदी जोर से सीत्कार कर चिल्लायी, "भैया मैं झड़ने वाली हूँ।" सुरेश चाचा ने उनकी चूत को को और भी निर्मम रफ़्तार से मारना शुरू कर दिया। बड़े मामा ने जानकी दीदी के दोनों उरोज़ों को बेदर्दी से मसल मसल कर अपने अमानवीय विकराल लंड से उनकी रेशमी मुलायम गांड का मर्दन और भी हिंसक धक्कों से करना शुरू कर दिया। जानकी दीदी दो भाइयों के वृहत लंडों के निर्मम धक्कों से सर से पैर तक हिल रहीं थीं। बड़े मामा और सुरेश चाचा को जानकी दीदी की चुदाई करने का पहले से बहुत अभ्यास था और दोनों जानकी दीदी के अस्थिपंजर हिला देने वाले धक्कों से चोदने लगे। जानकी दीदी दोनों भाइयों की बेदर्द चुदाई से पूरे तरह परिचित थीं। उनके रति-विसर्जन एक के बाद एक उनके शरीर में पटाकों की तरह विस्फोटित होने लगे।
जानकी दीदी हर नए चर्म -आनंद के अतिरेक से कपकपा उठीं। उन्होंने वासना से अभिभूत हो अनर्गल बोलना शुरू कर दिया, "अपनी की चूत फाड़ दो भैया। आः आह ...ऊँ .... ऊँ ...ऊँ ...आं ....आं ....उम्म्म ..... मर गयी माँ मैं तो। और ज़ोर से चोदिये मुझे भैया। रवि भैया आप मेरी मेरी गांड अपने मोटे लंड से फाड़ दीजिये। मेरी गांड में कितना दर्द कर रहे हैं आप। ऊई माँ .... चोदिये मुझे .... मुझे फिर से झाड़ दीजिये। जानकी दीदी अब लगातार कुछ ही मिनटों में बार बार झड़ रहीं थीं। सुरेश चाचा ने जानकी दीदी की चूत को और भी ज़ोरों से मारने लगे। गंगा बाबा अपनी प्यारी बेटी की निर्मम चुदाई कर उत्तेजित हो उठे। उनका बड़े मामा जैसा विकराल मोटा लंड मेरी चूत में लोहे के खम्बे से भी सख्त हो मेरी चूत को और भी चौड़ा कर दिया। नम्रता चाची अब अपनी चुदाई की थकान से जग गयीं थीं। गंगा बाबा ने उन्हें उनके हाथ से मेरे नीचे खींच लिया। नम्रता चाची ने शीघ्र ही गंगा बाबा की इच्छा समझ ली। उनका मूंह लालची से मेरी चूत से चुपक गया। गंगा बाबा ने अपना धड़कता हुआ लंड मेरी वीर्य और रति से भरी चूत से बाहर निकाल लिया। नम्रता चाची ने लपक कर सारा स्वादिष्ट मिश्रण नदीदेपन से सटक लिया। मैंने गंगा बाबा के लंड के मोटे सुपाड़े को अपनी छोटी सी गांड के ऊपर महसूस किया। जानकी दीदी अपने रतिनिश्पति की प्रबलता से अभिभूत हो कर अत्यंत शिथिल हो गयी। सुरेश चाचा के अगले भयंकर धक्के से उनकी चूत में अपना लंड जड़ तक फांस कर अपना गर्म जननक्षम वीर्य की बौछार उनके गर्भाशय के ऊपर खोल दी। । बड़े मामा ने बिना लय तोड़े अपने लंड से जानकी दीदी की गांड अविरत मारते रहे। अचानक सुरेश चाचा गले से गुर्राहट के अव्वाज़ उबली और उनके हाथों ने जानकी दीदी चूचुक और भग-शिश्न बेदर्दी से मसल दिया। उनके लंड की हर धड़कन और उसके पेशाब के छिद्र से उबलता गरम जननक्षम मरदाना शहद तेज़ फव्वारों के सामान उनकी चूत की कोमल दीवारों को नहलाने लगा। जानकी दीदी की आँखे वासना की संतुष्टी की थकान से बंद कर सुरेश चाचा के लंड के वीर्य की पिचकारियों का मीठा आनंद लेने लगी | सुरेश चाचा भी भारी भारी साँसें ले रहे थे। उनके सशक्त बाहों ने जानकी दीदी को अपने शरीर से कस कर जकड़ लिया। मेरे जैसे ही जानकी दीदी सम्भोग
के बाद बड़े मामा और सुरेश चाचा से लिपटना बहुत अच्छा लगता प्रतीत हो रहा था।बड़े मामा भी अचानक जानकी दीदी की गांड में झड़ उठे। सुरेश चाचा और जानकी दीदी बड़ी देर तक अपने चरमोत्कर्ष का आनंद में डूबे रहे। बड़े मामा ने जानकी दीदी पकड़ कर करवट पर लेट गए। जानकी
दीदी की चूत सुरेश चाचा के लंड से 'सपक' की आवाज़ कर मुक्त हो गयी।वो अभी भी बड़े मामा लंड के खूंटे के ऊपर अपनी गांड से अटकी हुई थी। आखिर में बड़े मामा ने उनके चूचुकों को मज़ाक में चुटकी से भींच कर पूछा, "जानकी, क्या गांड मरवाने की शुरूआत का दर्द बाद के मज़े से बुरा था?" जानकी दीदी शर्म से लाल हो गयी, "भैया, आपको मेरा जवाब पता है। आप मुझे बस चिड़ा रहे हैं" "जानकी , तुम्हारे मूंह से सुन कर हमें और भी प्रसन्नता होगी," बड़े मामा ने उनका मूंह अपनी तरफ मोड़ कर जानकी दीदी लाल होंठों को चूम लिया। "भैया , गांड मरवाने में मुझे बाद में बहुत ही आनंद आया। आपका लंड जब बहुत तेज़ी से मेरी गांड के अंदर बाहर जा रहा था तो वो बहुत ही विशाल और शक्तिशाली लग रहा था। मेरी तो सांस भी मुश्किल से आ रही थी," जानकी दीदी ने बड़े मामा के हांथों को प्यार से चूमा।
"भैया , क्या आप अभी भी नहीं थके? आपका लंड अभी भी पूरा शिथिल नहीं हुआ," जानकी दीदी अपनी करुण गांड की छल्ली को उनके लंड के ऊपर कसने की कोशिश की। "जानकी, यदि आप ऐसे ही करतीं रहीं तो मेरा लंड शीघ्र ही फिर से तैयार हो जाएगा," बड़े मामा ने जानकी दीदी के कान की लोलकी [इअर लोब] को मूंह में ले कर चूसने लगे। लगता था की जानकी दीदी के कान मेरी तरह अत्यंत कामोत्तेजक हैं। बड़े मामा के चूसने से उनकी सिसकारी निकल गयी, "रवि भैया, अपना लंड मेरी गांड के अंदर ही रखिये। कम से कम अंदर डालने का दरद तो नहीं होगा।" इधर जैसे ही नम्रता चाची के मूंह ने मेरी बेहत चुदी चूत के ऊपर कब्ज़ा कर लिया गंगा बाबा ने मेरे फूले हुए नितिम्बों को चौड़ा कट मेरी अत्यंत कसी हुई मलाशय के छोटे से द्वार के ऊपर अपना अविश्विस्नीय मोटा सुपाड़ा रख कर उसे मेरी गांड के छेद पर कस कर दबाने लगे।
मैं कसमसा उठी। गंगा बाबा ने बेदर्दी से अपने लंड की शक्ती से मेरी कोमल गांड के नन्हे से द्वार के प्रतिरोध को अभिभूत कर लिया। जैसे ही नम्रता चाची ने मेरी गांड के समर्पण का अहसास किया उन्होंने मेरी भग-शिश्न को अपने होंठों में कस कर जकड़ लिया। उसी समय गंगा बाबा का अमानवीय लंड ने मेरी गांड को चौड़ा कर उसके प्रतिरोध को विव्हल कर अपने विकराल लंड की विजय की पताका की घोषणा करते हुए मेरी कमसिन गांड में बिना विरोध के रेलगाड़ी के इंजन की तरह अंदर दाखिल हो गए। मेरी दर्द भरी चीख से शयनकक्ष गूँज उठा। बड़े मामा का लंड थोड़ी चुहल बाजी से थोड़े ही क्षणों में तनतना के लोहे के खम्बे की तरह जानकी दीदी की गांड में फड़कने लगा। बड़े मामा ने उन्हें अपनी और खींच कर अपना लंड फिर से उनकी गांड में फिसलाने लगे। इस बार उन्होंने जानकी दीदी की गांड धीमे, प्यार भरे रीति से मारी। बड़े मामा का लंड उनकी गांड में अब आसानी से अपना लंबा सफ़र तय करने लगा।
मेरी गांड में उपजे अविश्नायी दर्द से मैं तड़प उठी। पर गंगा बाबा ने एक बार अपने पूरे लंड को मेरी गांड में जड़ तक नहीं गाड़ दिया तक उन्होंने बेदर्दी से एक के बाद और भी ज़ोर से दूसरा धक्का लगाया। थोड़ी देर में ही उनका लंड मेरी गांड की गहराइयां नापने लगा। मैं कुछ ही देर में सिसकने लगी। गंगा बाबा अपने हांथों से मेरी चूचियों और नम्रता चाची ने मेरे भग-शिश्न को छेड़ मेरी गांड के चुदाई के आनंद को और भी आल्हादित कर दिया। उधर बड़े मामा ने जानकी दीदी की गांड तेज़ी से मारनी शुरू कर दी। उनकी सिस्कारियां मेरी सिस्कारियों से प्रतिस्पर्धा कर रहीं थीं। आधे घंटे में हम दोनों तीन बार झड़ गयीं । बड़े मामा ने भी अपना बच्चे पैदा करने में सक्षम वीर्य से जानकी दीदी की गांड में बारिश कर दी।
उसी समय गंगा बाबा ने मेरी गांड में अपने प्रचुर बच्चे पैदा करने में अत्यंत सक्षम वीर्य की फुव्व्हार मेरी गांड में खोल दी। हम दोनो आँखे बंद कर एक बार फिर कामानंद की संतुष्टि से भर गए। काम वासना भी अत्यंत चंचल आनंद है। कभी तो लगता है कि हम सब संतुष्टि से सराबोर हो गए पर थोड़ी से देर में अधीर कामोत्तेजना अपना सर फिर से उठा कर हम सब के शरीर में बिजली सी दौड़ा देती थी। एक घंटे के भीतर ही गंगा का लंड मेरी गांड के अंदर फिर से फड़कने लगा। इस बार बड़े मामा ने जानकी दीदी को पेट के बल पलट कर उनके ऊपर अपना सारा भार डाल कर उनकी गांड मारने लेगे। ठीक उसी तरह गंगा बाबा ने मुझे नम्रता चाची के ऊपर से खींच कर पलंग पर चित पटक कर मेरे नितिम्बों को फैला कर फिर से अपना लंड मेरी दर्द भरी गांड में तीन जान-लेवा धक्कों से जड़ तक डाल कर मेरी सांस बंद कर देने वाली तेज़ी से गांड मारने लगे। मुझे अपने शरीर के ऊपर उनके भारीभरकम शरीर के वज़न बहुत ही अच्छा लग रहा था। गंगा ने शुरू में लम्बे और धीरे धक्कों से मेरी गांड का मर्दन किया। जब मैं दो बार झड़ गयी तो उन्होंने अपने धक्कों की रफ़्तार बड़ा दी। जब मैं तीसरी बार झड़ रही थी तो उनके लंड ने भी अपनी गरम गाड़ा फलदायक उर्वर मर्दानी मलाई से मेरी गांड को निहाल कर दिया। मैंने गंगा बाबा से न हिलने का निवेदन किया। सम्भोग के बाद उनके लंड को अपने शरीर में रख कर उनके भरी बदन के भार के नीचे लेटने में भी मुझे एक विचित्र सा सुख मिल रहा था। हम दोनो की आँख न जाने कब लग गयी।
हम सब वासना की अग्नि के ही रति सम्भोग की मीठी थकान के आलिंगन में समा कर गए। मैं सुबह देर से उठी। मेरे सारे शरीर में फैला मीठा-मीठा दर्द मुझे रात की प्रचंड चुदाई की याद दिलाने लगा। मेरे होंठों पर स्वतः हल्की सी मुस्कान चमक उठी। ख़िड़की से देर सुबह की मंद हवा ने चमेली, रजनीगंधा और अनेक बनैले फूलों की महक से मेरा शयनकक्ष महका दिया। मैंने गहरी सांस भर कर ज़ोर से अंगड़ाई भरी। कमरे में पुष्पों की सुगंध के साथ रति रस और सम्भोग की महक भी मिल गयी। मेरा अविकसित कमसिन शरीर में उठी मदमस्त ऐंठन ने मेरे अपरिपक्व मस्तिष्क में एक बार फिर से सिवाए संसर्ग और काम-क्रिया के अलावा कोई और विचार के लिए कोइ अंश नहीं बचा था। नासमझ नेहा की जगह अब मैं स्त्रीपन की ओर लपक रही थी। मैं अपने ख्यालों में इतनी डूबी हुई थी कि कब मीनू कमरे में प्रविष्ट हो गयी। उसने मेरे बिस्तर में कूद कर मुझे सपनों से वापिस यथार्थ में खींच लिया। मीनू खिलखिला कर हंस रही थी, "क्या नेहा दीदी? अभी तक रात की चुदायी याद आ रही है? कोइ फ़िक्र की बात नहीं अब तो पापा, चाचा और गंगा बाबा गंगा बाबा के अलावा नानू, संजू और राजन भैया भी हैं। आपके लिए अब लंड की कोई कमी नहीं है। " मैंने भी हँसते हुए मीनू को अपनी बाँहों में जकड़ लिया, "मीनू की बच्ची तू कैसी गंदी बातें करने लगी है ? तू तो ऐसे कह रही है जैसे न जाने कितने सालों से चुद रही है ?" मीनू ने मेरे होंठों को चूम लिया, "नेहा दीदी, आपकी छोटी बहन का कौमार्य तो तीन साल पहले ही भंग हो गया था। आप आखिरी कुंवारी थीं सारे परिवार में।" मीनू नम्रता चाची की बड़ी बेटी है. मीनू मुझसे छोटी है. उसका छरहरा शरीर देख कर कोई सोच भी नहीं सकता था कि मीनू इतनी चुदक्कर है। उसके लड़कपन जैसे शरीर पे अभी स्तन भी अच्छी तरह नहीं विकसित हुए थे। लेकिन नम्रता चाची और ऋतु दीदी की तरह मीनू का शरीर अपनी मम्मी और मौसी के जैसे ही भरा गदराया हुआ हो जायेगा। उन दोनों का भी विकास देर किशोर अवस्था में हुआ था। "अच्छा मीनू की बच्ची यह बता कि अपने डैडी का लंड अभी तक नहीं मिस किया," मैंने मीनू को कस कर भींच ज़ोर से उसकी नाक की नोक को काट कर उसे छेड़ा। "नेहा दीदी डैडी के लंड का ख़याल तो रहीं थीं। मुझे और ऋतु दीदी को तीन लंडों की सेवा करनी पड़ी थी। अब तो संजू का लंड भी चला है। " मीनू मेरे दोनों उरोज़ों को मसल कर मेरे होठों को चूसने लगी। संजू मीनू से डेढ़ साल छोटा है। मुझे संजू शुरू से ही बहुत प्यारा लगता है। उसके अविकसित शरीर से जुड़े वृहत लंड के विचार से ही मैं रोमांचित हो गयी। मीनू ने मेरे सूजे खड़े चूचुकों को मसल कर कुछ बेसब्री से बोली, "अरे मैं तो सबसे ज़रूरी बात तो भूल गयी। दीदी संजू को जबसे आपके कौमार्यभंग के बारे में पता चला है तबसे मेरा प्यारा छोटा नन्हा भाई अपनी नेहा दीदी को चोदने के विचार से मानों पागल हो गया है। बेचारा सारे रास्ते आपको चोदने की आकांशा से मचल रहा था। उसने मुझे आपसे पूछने के लिए बहुत गुहार की है। " मेरी योनि जो पहले से ही मीनू से छेड़छाड़ कर के गीली हो गयी थी अब नन्हे संजू की मुझे चोदने की भावुक और तीव्र तृष्णा से मानों सैलाब से भर उठी। मीनू ने मेरे गालों को कस कर चूम कर फिर से कहा, "दीदी चुप क्यों हो। हाँ कर दो ना," मीनू ने धीरे से फुसफुसाई, "बेचारा संजू बाहर ही खड़ा है। " मैं अब तक कामोन्माद से मचल उठी थी। मैंने धीरे से मीनू को संजू को अंदर बुलाने को कहा. "संजूऊऊ," मीनू चहक कर ज़ोर से चिल्लायी," नेहा दीदी मान गयीं हैं। " संजू कमरे के अंदर प्रविष्ट हो गया। उसकी कोमल आयु के बावज़ूद उसका कद काफी लम्बा हो गया था। उसका देवदूत जैसा सुंदर चेहरा कुछ लज्जा और कुछ वासना से दमक रहा था। संजू शर्मा कर मुस्कराया और हलके से बोला, "हेलो नेहा दीदी। "
मीनू बेताबी से बोली, "संजू अब काठ के घोड़े की तरह निचल खड़े ना रहो। जल्दी से अपने उतारो और अपनी नेहा दीदी की चूत ले लो। कितने दिनों से इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हो।" मीनू बेताबी से बोली, "संजू अब काठ के घोड़े की तरह निष्चल खड़े ना रहो। जल्दी से अपने उतारो और अपनी नेहा दीदी की चूत ले लो। कितने दिनों से इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हो।" संजू ने शर्माते हुए पर लपक कर अपने कपड़े उतार कर फर्श पर दिए। उसका गोरा लम्बा शरीर उस समय बिलकुल बालहीन था। मेरी आँखे अपने आप ही संजू के खम्बे जैसे सख्त मोटे गोरे लंड पर टिक गयीं। उसके अंडकोष के ऊपर अभी झांटों का आगमन नहीं हुआ था। मेरा मुँह संजू के जैसे गोरे औए मक्खन जैसे चिकने लंड को देख कर लार से भर गया। "संजू, जल्दी से बिस्तर पर आ जाओ न अब, " मुझसे भी अब सब्र नहीं हो रहा था। संजू को हाथ से पकड़ कर मैंने उसे बिस्तर पर बैठ दिया। मैंने उसके दमकते सुंदर चेहरे को कोमल चुम्बनों से भर दिया। संजू अब अपने पहले झिझकपन से मुक्त हो चला। संजू ने मुझे अपनी बाँहों में कस कर पकड़ कर अपने खुले मुँह को मेरे भरी साँसों से भभकते मुँह के ऊपर कस कर चिपका दिया। संजू के मीठे थूक से लिसी जीभ मेरे लार से भरे मुँह में प्रविष्ट हो गयी। मीनू मेरी फड़कती चूचियों को मसलने लगी। मेरा एक हाथ संजू के मोटे लंड को सहलाने को उत्सुक था। मेरी तड़पती उंगलियां उसके धड़कते लंड की कोतलकश को नापने लंगी। मेरा नाज़ुक हाथ संजू के मोटे लंड के इर्दगिर्द पूरा नहीं जा पा रहा था। पर फिर भी मैं उसके लम्बे चिकने स्तम्भ को हौले-हौले सहलाने लगी। संजू ने मेरे मुँह में एक हल्की से सिसकारी भर दी। मैं संजू के लंड को चूसने के लिए बेताब थी। मैंने हलके से अपने को संजू के चुम्बन और आलिंगन से मुक्त कर उसके लंड के तरफ अपना लार से भरा मुँह ले कर उसे प्यार से चूम लिया। संजू का लंड इस कमसिन उम्र में इतना बड़ा था। इस परिवार के मर्दों की विकराल लंड के अनुवांशिक श्रेष्ठता के आधिक्य से वो सबको पीछे छोड़ देगा। मैंने संजू के गोरे लंड के लाल टोपे को अपने मुँह में भर लिया। मीनू मेरे उरोज़ों को छोड़ कर मेरे उठे हुए नीतिमबोन को चूमने और चूसने लगी। मीनू मेरे भरे भरे चूतड़ों को मसलने के साथ साथ मेरे गांड की दरार को अपने गरम गीली जीभ से चाटने भी लगी। मेरी लपकती उन्माद से भरी सिसकी ने दोनों भाई बहिन को और भी उत्तेजित कर दिया। संजू ने मेरे सर तो पकड़ कर अपने लंड के ऊपर दबा कर मापने मोटे लंड को मेरे हलक में ढूंस दिया। मेरे घुटी-घुटी कराहट को उनसुना कर संजू ने अपने लंड से मेरे मुँह को चोदने लगा। मीनू ने मेरी गुदा-छिद्र को अपनी जीभ की नोक से चाट कर ढीला कर दिया था और उसकी जीभ मेरी गांड के गरम अंधेरी गुफा में दाखिल हो गयी।
मीनू ने ज़ोर से सांस भर कर मेरी गांड की सुगंध से अपने नथुने भर लिए। "दीदी, अब मुझे आपको चोदना है," संजू धीरे से बोला। मैंने अनिच्छा से उसके मीठे चिकने पर लोहे के खम्बे जैसे सख्त लंड तो अपने लालची मुँह से मुक्त कर बिस्तर पे अपनी जांघें फैला कर लेट गयी। संजू घुटनो के बल खिसक कर मेरी टांगों के बीच में मानों पूजा करने की के लिए घुटनों पर बैठा था। मीनू घोड़ी बन कर मेरे होंठों को चूस थी। पर उसकी आँखे आँखें अपने भाई के मोटे लम्बे चिकने लंड पर टिकी थीं।
संजू का मोटा फड़कता सुपाड़ा मेरी गुलाबी चूत के द्वार पे खटखटा रहा था। मेरी चूत पे पिछले दो सालों में कुछ रेशम मुलायम घुंघराले उग गए थे। संजू ने सिसकी मार कर अपने मोटे लम्बे हल्लवी लंड के सुपाड़े को मेरी गीली योनि की तंग दरार पर रगड़ा। मेरी भगशिश्न सूज कर मोटी और लम्बी हो गयी थी। संजू के लंड ने उसे रगड़ कर और भी संवेदनशील कर दिया। मेरी हल्की सी सिसकारी और भी ऊंची हो चली। "संजू मेरी चूत में अपना लंड अंदर तक दाल दो, मेरे प्यारे छोटे भैया। अपनी बड़ी बहिन की चूत को अब और तरसाओ," मैं अपनी कामाग्नि से जल उठी थी। संजू ने मेरे दोनों थरकते चूचियों को अपने बड़े हाथों में भर कर अपने मोटे सुपाड़े को हौले हौले मेरी नाजुक चूत में धकेल दिया। मेरी तंग योनि की सुरंग संजू के मोटे लंड के स्वागत करने के लिए फैलने लगी। संजू ने एक एक इंच करके अपना लम्बा मोटा लंड मेरी चूत में जड़ तक ठूंस दिया। मैं संजू के कमसिन लंड को अपनी चूत में समा पा कर सिहर उठी। मेरा प्यारा छोटा सा भैया अब इतने बड़े लंड का स्वामी हो गया था। "संजू, तेरा लंड कितना बड़ा है। अब अपनी बहिन को इस लम्बे मोटे खम्बे जैसे लंड से चोद डाल," मैं वासना के अतिरेक से व्याकुल हो कर बिलबिला उठी। मीनू ने भी मेरी तरफदारी की, "संजू, कितने दिनों से नेहा दीदी की चूत के लिए तड़प रहे थे। अब वो खुद कह रहीं हैं की उनकी चूत को चोद कर फाड़ दो। संजू नेहा दीदी की चूत तुम्हारे लंडे के लिए तड़प रही है। " संजू ने हम दोनों को उनसुना कर अपने लंड को इंच इंच कर मेरी फड़कती तड़पती चूत के बाहर निकल उतनी ही बेदर्दी से आहिस्ता-आहिस्ता अंदर बाहर करने लगा।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
Update 18
मैंने अपनी बाहें में कस कर मीनू को जकड लिया। हम दोनों के होंठ मानों गोंद से चिपक गए थे। मैं अब तड़प गयी थी। अब तक बड़े मामा, सुरेश चाचा और
गंगा बाबा मेरी चूत की धज्जियां उड़ा रहे होते। संजू किसी जालिम की तरह मेरी चूत को अपने चिकने मोटे लंड से धीरे धीरे मेरी चूत को मार रहा था।
मेरी चूत झड़ने के लिए तैयार थी पर उसे संजू के मोटे लंड की मदद की ज़रुरत थी।
मैं कामाग्नि से जल रही थी। मुझे पता भी नहीं चला कि कब किसी ने मीनू को बिस्तर के किनारे पर खींच लिया।
मैंने मीनू की ऊंची कर उसकी तरफ देखा। सुरेश चाचा ने अपनी कमसिन अविकसित बेटी की चूत में अपना दैत्याकार लंड एक बेदर्द धक्के से जड़ तक ठूंस
दिया था।
"डैडी, आअह आप कितने बेदर्द हैं। अपनी छोटी बेटी की कोमल चूत में अपना दानवीय लंड कैसी निर्ममता से ठूंस दिया है आपने। मिझे इतना दर्द करने में
आपको क्या आनंद आता है?" मीनू दर्द से बिलबिला उठी थी।
"मेरी नाजुक बिटिया इस लंड को तो तुम तीन सालों से लपक कर ले रही हो। अब क्यों इतने नखरे करने का प्रयास कर रही हो। मेरी बेटी की चूत तो वैसे भी
मेरी है। मैं जैसे चाहूँ वैसे ही तुम्हारी चूत मारूंगा," सुरेश चाचा ने तीन चार बार बेदर्दी से अपना लंड सुपाड़े तक निकल कर मीनू की तंग संकरी कमसिन
अविकसित चूत में वहशीपने से ठूंस दिया।
"डैडी, आप सही हैं। आपकी छोटी बेटी की चूत तो आपके ही है। आप जैसे चाहें उसे चोद सकते हैं," मीनू दर्द सी बिलबिला उठी थी अपर अपने पिताजी के प्यार
को व्यक्त करने की उसकी इच्छा उसके दर्द से भी तीव्र थी।
"संजू, भैया, देखो चाचू कैसे मीनू की चूत मार रहें हैं। प्लीज़ अब मुझे ज़ोर से चोदो," मैंने मौके का फायदा उठा कर संजू को उकसाया।
शीघ्र दो मोटे लम्बे लंड दो नाजुक संकरी चूतों का मर्दन निर्मम धक्कों से करने लगे। कमरे में मेरी और मीनू की सिस्कारियां गूंजने लगीं।
संजू मेरे दोनों उरोज़ों का मर्दन उतनी ही बेदर्दी से करने लगा जितनी निर्ममता से उसका लंड मेरी चूत-मर्दन में व्यस्त था। सुरेश चाचा और संजू के लंड के
मर्दाने आक्रमण से मीनू और मेरी चूत चरमरा उठीं। उनके मूसल जैसे लंड बिजली की तीव्रता से हमारी चूतों के अंदर बाहर रेल के पिस्टन की तरह अविरत चल रहे
थे। सपक-सपक की आवाज़ें कमरे में गूँज उठीं।
मेरी सिस्कारियां मेरे कानों में गूँज रहीं थीं। मीनू की सिस्कारियों में वासनामय दर्द की चीखें भी शामिल थीं। सुरेश चाचा का दानवीय लंड न जाने कैसे कैसे मीनू
सम्भाल पा रही थी? सुरेश चाचा का दानवीय लंड न जाने कैसे कैसे मीनू सम्भाल पा रही थी? चाचू के विशाल भरी-भरकम शरीर के नीचे हाथों में फांसी नन्ही
बेटी किसी चिड़िया जैसी थी.
चाचू मीनू को दनादन जान लेवा धक्कों से चोदते हुए उसके सूजे चूचुकों को बेदर्दी से मसल रहे थे। अभी मीनू के उरोज़ों का विकास नहीं हुआ था।
"डैडी,चोदिये अपनी लाड़ली बेटी को। फाड़ डालिये अपनी नन्ही बेटी की चूत अपने हाथी जैसे लंड से," मीनू कामवासना के अतिरेक से अनाप-शनाप बोलने
लगी।
मेरी चूत को संजू का मोहक चिकना लंड रेल के इंजन के पिस्टन की तरह बिजली के तेजी से चोद रहा था, 'आअह्ह संजू ऊ.…… ऊ........ ऊ.……
उउन्न्न ....... मैं आने वाली हूँ ,भैया प्लीज़ और ज़ोर से मेरी चूत चोदो |"
संजू ने मेरे दोनों चूचियों भी निर्मम शुरू कर दिया।मेरी साँसे भरी हो चली। मेरी सिस्कारियां और भी उत्तेजक हो उठीं और उनमे मीनू की आनंदमय दर्द से
उपजी घुटी घुटी चीखें मिल कर कमरे में सम्भोग का संगीत बजा थीं।
हम चारों विलासमय अगम्यगमनी समाज के नियमों के विपरीत कामवासना में लिप्त बेसब्री से रति-निष्पति की और प्रगतिशील हो रहे थे।
अचानक मेरे शरीर में बिजली कौंध गयी। मेरा गरम कामाग्नि से जलता बदन धनुषाकार होने लगा। पर संजू ने मुझे अपने नीचे परिपक्व पुरुष की तरह अच्छे
से दबा रखा था। उसका लंड सपक-सपक की आवाज़ें पैदा करता हुआ मेरी फड़कती चूत का अविरत मर्दन में सलग्न था।
कुछ हे देर में मीनू और मैं हल्की सी कर झड़ने लगीं। पर हमारे दोनों सम्भोगी अभी कौटुम्बिक व्यभिचार से संतुष्ट नहीं हुए थे।
मीनू और मैं दोनों हांफ रहे थे। सुरेश चाचा ने अपनी अपरिपक्व बेटी को बेसब्री से पीठ पे लिटा कर बिस्तर के किनारे पे खींच लिया और खुद फर्श पर खड़े हो गए।
उन्होंने ने अपनी बेटी के रति रस से लबालब भरी गुलाबी अविकसित चूत में अपना अमानवीय विकराल लंड तीन अस्थी-पंजर हिला देने वाले
धक्कों से जड़ तक दाल दिया। और फिर पहली चुदाई की तरह मीनू को जानलेवा धक्कों से चोदने लगे।
संजू ने भी अपने पिता की तरह मुझे दुसरे आसान में चोदने के लिए उत्सुक था। उसने मुझे पलट कर पेट के बल लिटा दिया औए मेरी जांघें फैला
दीं। उसने अपना मूसल मेरी रस भरी चूट में जड़ तक दल कर फिर से मेरी चूट की दनादन धक्कों से चोदने लगा।
कमरे में एक बार फिर से सहवास की आग में जलती दो लड़कियों की सिस्कारियां और दो के मालिक पुरूषों की गुरगुराहटें गूँज उठीं।
संजू अपने पिता से मानो होड़ लगा रहा था। मेरे पट लेटने से और उसके पीछे से मेरी चूत के मर्दन से मेरी चूत और भी तंग और संकरी महसूस हो
रही थी। संजू का मोटा लंड अब मुझे और भी मोटा लगने लगा। संजू के गले से 'हूँ हूँ' की घुटी घुटी गुरगुराहट से उबलने लगीं।
संजू अब अपने धक्कों में और भी ज़ोर लगा रहा था। मेरी सिस्कारियों में हल्की से चीखें भी शामिल हो चलीं। मैंने मुलायम चादर को दाँतों के
बीच लिया। संजू के हर तक्कड़ मेरे सारे शरीर को हिला रहे थी। सुरेश चच ने भी मीनू की चुदाईकी रफ़्तार और आधिक्य को और भी परवान
चढ़ा दिया था।
मीनू मेरी तरह अब अनगिनत बार झड़ चुकी थी। उसका अपरिपक्व छोटा हल्का सा शरीर अपने विशाल पिता के नीचे दबा था पर फिर भी उनके
हर धक्के से बेचारी सर से पाँव तक हिल रही थी। पर अब मुझे पुरुषों की बेदर्दी से उपजे आनंद का अभ्यास हो गया था। मीनू हालांकि मुझसे तीन
साल छोटी थी पर उसका सम्भोग का अनुभव मुझसे तीन साल अधिक था।
"डैडी, आपका घोड़े जैसे लंड मेरी चूत फाड़ कर ही मानेगा। मुझे और भी ज़ोर से चोदिये, डैडी ई …………ई …………ई ………… मैं फिर से
झड़ने वाले हूँ। आह आआन्न चो ……… ओ …………ओ …………दिये मर गयी मैं तो ………… हाय मम्मी………… ई …………ई …………ई,"
अगम्यगमनात्मक आग में जलती मीनू ने अपने नविन चरम-आनंद की घोषणा कर दी।
मैं भी एक बार से कामोन्माद के पराकाष्ठा पे पहुँच कर कौटुम्बिक व्यभिचार की आनद की घाटी में लुड़क गयी।
संजू और चाचू ने मीनू और मुझे आधा घंटा और चोदा। तब तक हम दोनों रति-निष्पति के उन्माद के अतिरेक से अभिभूत हो कर शिथिल हो गयीं
थीं। हम दोनों की सिस्कारियां बहुत मंद हो चलीं थीं।
कुछ क्षणों में संजू ने गुर्रा कर ज़ोर से अपना लंड मेरी चूत में ढूंस कर मेरे बिखरे रेशमी केशों में अपना हांफता हुआ सुंदर मुखड़ा छुपा लिया।
उसके लंड ने मेरी योनि के भीतर जननक्षम वीर्य की बौछार कर दी। मैं, अपने गर्भाशय के ऊपर संजू के उबलते वीर्य की हर पिचकारी के संवेदन
से सुबक गयी। मैं निरंतर रति-निष्पति से थक कर निश्चेत हो गयी। उसके पिता ने उसकी अविकसित चूत और गर्भाशय को अपने उर्वर फलदायक
गरम वीर्य से नहला दिया। मीनू एक बार फिर से अपने डैडी के लिंग स्खलन के प्रभाव से चीखे बिना न रह सकी।
मैंने संजू को अपनी बाँहों में भरकर उसके गुलाबी मीठे होंठो को चूस चूम कर सुजा दिया। संजू के उसके लार से लिसी जीभ
गुलबजामुम से भी मीठी थी।
सुरेश चाचे भी अपनी बेटी को गोद में भर कर कामवासना के के अनुराग और वात्सल्य से भरे चुम्बनों से उसे पिता के अनुराग से
आन्दित कर रहे थे।
तभी नम्रता चाची और दीदी भरभरा कर कमरे में दाखिल हुईं।
"अरे, ये आप यहाँ व्यस्त हो गए। आप को तो पता है कि आज का क्या कार्यक्रम है?" नम्रता चाची ने प्यार भरा अपने पति को
उलहाना दिया।
"सॉरी मम्मी डैडी मेरी चूत मारने में व्यस्त हो गए थे," मीनू ने अपने पिता की तरफदारी में कोइ देर नहीं लगाई।
"मुझे पता है बिटिया रानी। तेरी चूत देख कर तेरे डैडी का लंड काबू में नहीं रहता। मैं शिकायत कहाँ ही कर रहीं हूँ ?" चाची ने अपनी
भीषण चुदाई से थकी-मांदी बेटी को प्यार से चूमा।
"बेगम, मीनू के हवा में उठी गांड और उसकी गुलाबी चूत को देख कर तो भगवान् भी बेकाबू हो जायेंगें," सुरेश चाचा ने भी प्यार से
अपनी बेटी तो चूमा।
मीनू शर्मा कर लाल हो गयी।
"संजू बेटा आखिर में अपनी नेहा दीदी को चोद ही लिया तूने। अब तो खुश है ? अपने माँ के लिए भी कुछ बचा रखा है कि नहीं? "
नम्रता चाची ने कमसिन संजू को भी उलहाना देने में कोई देर नहीं की।
"मम्मी क्या कोई बेटा अपने माँ की चूत के लिए दुनिया की दूसरी तरफ तक नहीं दौड़ जायेगा। मैं तो आप के लिए हमेशा तैयार
रहता हूँ ," संजू ने अपने प्यार का आश्वासन अपने मम्मे को जल्दी से दे दिया।
"मैं तो मज़ाक कर रहीं हूँ, मेरे लाल ,तू तो हीरा है. तेरे लंड के ऊपर तो मैं स्वर्ग भी न्यौछावर दूंगी," चाची ने संजू के मेरे थूक से
लिसे गुलाबी होंठो को कस कर चूम लिया, "पर अब आप लोगों को हम लड़कियों से अलग हो जाना है। चलिए बाहर के कुछ काम
वाम भी तो करने हैं।"
संजू और चाचू नाटकीय उदास मुंह बना कर बाहर चले गए।
"नेहा बेटी आज आपके कौमार्यभंग की पार्टी है," चाची का उत्साह उनसे समाये नहीं बन रहा था। मेरे चेहरे पे अज्ञानता के भाव को
देख कर दोनों चाची और जमुना दीदी खिलखिला कर हंस दी।
मैं और मीनू जल्दी से स्नानगृह की और चल दिए।
मैं मीनू के नाजुक छरहरे शरीर से मंत्रमुग्ध और उसकी छोटी जैसे सुंदर चेहरे से अभिभूत हो गयी थी।
"दीदी मुझे बहुत ज़ोर से मूत आया है," मीनू ने मचल कर कहा।
ना जाने कहाँ से मेरे शब्द मेरे मुंह से उबाल पड़े , " मीनू क्या तू मुझे अपना मीठा पेशाब पिलाएगी ?"
मीनू चहक कर बोली, "नेहा दीदी क्या आप अपनी छोटी बहिन को भी अपना सुनहरी प्रसाद दोगी? जब संजू को पता चलेगा कि मैंने
आप का मूत्र उससे पहले पी लिया है तो वो बहुत जलेगा। "
मैं मीनू को खींच कर विशाल खुले स्नानघर के फौवारे के नीचे गयी। मैंने उसकी एक टांग अपने कंधे पर रख अपना खुला मुंह उसकी
छोटी तंग गुलाबी झांटरहित चूत के निकट कर दिया। मीनू का मूत्राशय वाकई भरा हुआ था। उसकी सुनहरी गरम धार झरने की
आवाज़ करते हुए मेरे मुंह पर वर्षा की बौछार के तरह गिरने लगी। पहली मूत्र-वर्षा में सुरेश चाचा का सफ़ेद गाड़ा वीर्य मिला हुआ था
जिसे मैं प्यार से सतक गयी।
मैंने नदीदेपन से मीनू का तीखा पर फिर भी मीठा मूत जितना भी हो सकता था पीने लगी। मीनू के पेशाब की वर्षा बड़ी देर तक चली।
मैं तो उसके सुनहरे मीठे मूत से बिलकुल नहा गयी। फिर भी मैंने न जाने कितनई बार अपना मुंह उसके पेशाब से पूरा भर कर बेसब्री
से निगल लिया और फिर से मुंह खोल कर तैयार हो गयी।
आखिर में मीनू की वस्ति खाली हो गयी।
मैंने अपनी जीभ से उसके गुलाबी भगोष्ठों के ऊपर सुबह की ओस जैसे चमकती बूंदे चाट ली।
अब मीनू की बारी थी।
मैंने अपनी चूत के भगोष्ठों को फैला कर अपने मूत्राशय की संकोचक पेशी तो ढीला कर दिया और मेरे गरम मूत्र की बौछार मीनू के
सुंदर चेहरे पर गिर पड़ी।
मीनू ने लपक कर अपना मुंह भर लिया और जल्दी से मेरा सुनहरी द्रव्य सतक कर फिर से अपने मुंह को मेरी मूत्र-वर्षा के नीचे लगा
दिया।
मीनू ने भी अनेक बार अपना मुंह भरने में सफल हो गयी।
"नेहा दीदी, आपका मूत बहुत ही प्यारा और मीठा है। संजू को भी प्लीज़ पिलाना ,"मीनू ने मुझे प्यार से चूमा।
"मीनू मेरा तेरे पेशाब जितना मीठा नहीं हो सकता। यदि संजू को मेरा मूत अच्छा लगेगा तो मुझे बहुत खुशी होगी। क्या तुम दोद्नो
भी एक दुसरे का मूत्र-पान करते हो?" मैंने मीनू के मुस्कराते होंठो को चूसा और अपने पेशाब के स्वाद तो चखा।
मीनू खिलखिला कर हंसी , "बहुत बार दीदी न जाने कितनी बार। "
मैंने मीनू को छोटी बालिका की तरह नहलाया और खुद भी नहा कर पहले उसे फिर अपने को सुखाने लगी।
जब हम कमरे में आये तो कुछ क्षणों में ही बाद नम्रता चाची, जमुना दीदी और ऋतू मौसी हंसती हुई दाखिल हो गयीं।
उस समय ऋतू मौसी बाइस साल की थीं। मनोहर नानाजी के आखिरी बेटी, ऋतू , और उनसे तीन साल बड़े भाई ,राज , नम्रता
चाची के बीस साल बाद पैदा हुए थे।
ऋतू मौसी की सुंदर काया को देख कर कोइ भी मनुष्य मंत्रमुग्ध हो जाये। ऋतू मौसी पांच फुट लम्बी और गदराये शरीर की मलिका
हैं। उनके देवी सामान सुंदर चेहरे को देख कर सब लोग भगवान् में विश्वास करने लग जाए। उनकी भरे उन्नत भारी स्तन ढीले
कफ्तान में भी छुप नहीं पा रहे थे। उनके गोल सुडौल थोड़ी उभरी कमर उनके भरे-भरे गोल नितम्ब इतने गदराये हुए थे कि उन्हें
हिलते हुए देख कर देवताओं का भी मन बेहक जाए। ऋतू मौसी के देवी समान सौंदर्य उनकी प्रशांत सागर की तरह स्थिर शांत व्यवहार
से और भी उभर कर उन्हें अकिर्षक बना देता है। ऋतू मौसी के सौंदर्य को व्यक्त करने के लिए पर्याप्त शब्द नहीं बने। यथेष्ट कि उनके
सौंदर्य के लिए देवता इंद्रप्रस्थ छोड़ने के लिए तैयार हो जायेंगें।
मैं एकटक ऋतू मौसी के हलके मुस्कान से भरे सुंदर चेहरे को निहारने लगी। उनकी अत्यंत सुंदर नासिका उनके चेहरे की चरमोत्कर्ष
है। जब वो मुस्कुरातीं है तो मानों उनके होंठो की मुस्कान उनके नथुनों को भी शामिल कर लेती है।
ऋतू मौसी ने मुझे ऊपर से नीचे तक निहारा ,"दीदी देखो तो हमारी नन्ही नेहा कितनी सुंदर और बड़ी हो गयी है। "मीनू और मैं अभी
भी निवस्त्र थे।
मैं शर्मा गयी। जमुना दीदी ने कार्यक्रम बताया ,"पहले आप दोनों की शादी होगी।फिर आपके दुल्हे राजा सब परिवार के सामने
अधिकारिक रूप से आप दोनों के कौमार्यभंग फिर से करेंगें। उसके बाद हम सब देर से लंच खाएंगें। "
ऋतू मौसे बीच में कूद पड़ीं , "और फिर होगा रंडी-समारोह। "
मीनू और मैं भौंचक्के भाव से उन्हें घूर रहीं थीं।
"अरे नादान नन्ही बलिकायों हम सब मिल कर निस्चय करते हैं कि हम मैं से कौन रात भर को लिए रंडी बनने का सौभाग्य पायेगी।
उसका मतलब है कि सारे पुरुष उस भाग्यशाली स्त्री को मन भर कर चोदेंगे और उस स्त्री को उन सब पुरुषो के सारे वीर्य पर हक़
होगा ," नम्रता चाची ने मीनू और मुझे समझाया।
"दीदी आप देखो पहले की तरह गड़बड़ कर रही हो। आखिर बार हम सबने निश्चय किया था कि जो सौभागयशाली रंडी बनने का हक़
जीतेगी उसे सब पुरुषो के शरी के हर द्रव्य पर पहला हक़ होगा। याद है न डीड? यदि नहीं तो जमुना दीदी से पूछ लो ?" ऋतू मौसी ने
नम्रता चाची की अपनी गहरी सुंदर आँखें मटका कर चिढ़ाया।
नम्रता चाची ने गहरी सांस भर कर नाटकीय अंदाज़ में कहा , "मेरी बेटी जैसी मेरी छोटी बहन देखो कैसी रंडियों जैसी बोल रही है। "
चाची के निरर्थक मज़ाक पर हम सारे हंस दिये।
"और तू तो ऐसे कह रही है कि जैसे तू ही वो सौभाग्यशाली रंडी होगी ," नम्रता चाची के शिकायती शब्दों में और उनके सुंदर चेहरे पर
फ़ैली मुस्कान में उनकी बेटी समान छोटी बहन के लिए अपर प्यार भरा था। नम्रता चाची के लिए राज मामा और ऋतू मौसी भाई-
बहन कम और बेटा-बेटी ज़यादा थे। आखिर में उन्होंने ही तो नानी के निधन के बाद माँ की तरह दोनों का पालन-पोषण किया था।
आखिर में तीनों ने हंस कर ताश की गड्डी निकाली और नम्रता चाची ने तीन ताश बाटें । तीनों सुंदर स्त्रियां बड़ी देर तक एक दुसरे की
तरफ देख कर अपने ताशों के ऊपर कर हाथ रख कर एक दुसरे को घूरने लगीं।
आखिरकार नम्रता चाची ने अपना ताश सीधा कर दिया। उनके पास ग़ुलाम था। जमुना दीदी ने अपना ताश खोला और उदास चेहरे
बना कर अपना लिया , "धत तेरे की। "
जमुना दीदी का ताश सिर्फ दहला था।
ऋतू मौसी ने आँखे मटका कर ज़ोरों से मुस्कुरायीं , "न जाने क्यों मुझे शुरू से ही विजय का आभास हो रहा था ?"
नम्रता चाची ने बनावटी चिढ़ते हुए कहा ,"मेरी बेटी जैसी बहना अभी तो मेरा ताश ही सबसे बड़ा है। आज लगता है कि घर के छै
लंड मेरे होंगे। "
ऋतू मौसी ने मज़ाकिया चिड़ाने के लिए अपनी माँ जैसी बड़ी बहन को चूम कर कहा , " मेरी माँ सामान पूजनीय दीदी, आपका मन
क्या कह रहा है? वैसे तो मुझे पता है कि आप मेरा और जमुना दीदी का दिल रखने के लिए जीत कर भी हार मान लेंगीं।
"अच्छा चल औए बात नहीं बना औए अपना ताश दिखा दे , " नम्रता चाची बनावटी गुस्से से बोलीं पर उन्होंने प्यार से ऋतू मौसी
के सुंदर चेहरे को दुलारा।
ऋतू मौसी ने एक झटके से अपना ताश सीधा कर दिया और विजय की घोषणा करते हुए मज़ाकिया नृत्य करने लगीं। उनके पास
इक्का था।
इस हंसी मज़ाक के बाद तीनो का ध्यान मीनू और मेरी तरफ मुड़ गया।
जमुना दीदी ने अपने पिछले सालों के कपडे निकाले थे। मीनू को उनके छोटे ब्लाउज भी ढीला पड़ा। आखिर में मीनू के पास उस समय चूचियाँ ही नहीं थी
और जमुना दीदी के स्तन बहुत कम उम्र में विकसित हो गए थे। पर लहंगा तो ढीला हे होता है सो उसमे मीनू चमक उठी। दोनों वस्त्र बहुत ही महीन कोमल
रेशम से बने थे और उनपर अत्यंत जटिल और बारीक पेचीदा सोने के धागों से सजावट थी। मीनू उन बड़े माप के वस्त्रों में और भी अविकसित औरनन्ही पर
बाला की सुंदर लग रही थी।
मेरा ब्लाऊज़ भी उतना ही सुंदर और आकर्षक था। मेरे भरे भरी चूचियों ने उसे पूरा भर दिया। लहंगा भी उतना ही सुंदर और आकर्षक था।
मीनू और मुझे ब्रा और पैंटीज नहीं पहनने की आज्ञा दी गयी थी।
"अरे बुद्धू कुंवारी कन्याओं। क्या तुम अपने दूल्हों को ब्रा और पैंटीज उतरने में उलझना पसंद करोगी ?"
हमें हलके श्रृंगार से और भी सुंदर बनाया गया। नम्रता चाची ने सोने की नथनी हम दोनों को पहनायी।
"चलो दुल्हनें तो तैयार हो गयीं अब दूल्हों और बारात को तैयार करतें हैं। " नम्रता चाची ने प्यार से मीनू और मुझे चूमा। अचानक उनकी आँखों में आंसू भर
गये, "हाय, कितनी सुंदर लग रहीं हैं मेरी बेटियां ? कहीं इन्हें मेरी ही नज़र न लग जाये ?"
"आज तो ठीक है पर मैं वास्तव में तो इनका कन्यादान कभी भी नहीं कर पाऊॅंगी। इन्हें तो सारा जीवन अपने घर में हीं रखूँगी किसी को भी इन्हें अपने घर
से नहीं ले जाने दूंगी।" नम्रता चाची की आवाज़ में रोनापन आने लगा।
ऋतू मौसी और जमुना दीदी के नेत्र भी गरम आंसुओं से भर गए।
"दीदी, इनके दुल्हे तो हमारे घर के ही हैं। यह दोनों कहीं भी नहीं जा रहीं। " जमुना दीदी ने मज़ाक से बात सम्भाली।
तीनों अपनी आँखें पौंछते हुए कमरे कमरे से रवाना हो गयीं।
लगभग दो घंटों में नम्रता चाची, ऋतू मौसी और दीदी भी मीनू और मेरे जैसे चोली और लहंगे में सज- धज कर हमें लेने आयीं।
मीनू और मेरे धड़कनें अपने आप तेज़ हो गयीं। हम दोनों के चेहरे हो उठे।
समारोह की व्यवस्था तरणताल के घर में की थी।
बड़े मामा पूरे निवस्त्र थे सिर्फ एक दुल्हे की पगड़ी के सिवाय। उनकी तरह ही सुरेश चाचा भी नग्न थे लेकिन सर पर पगड़ी थी।
मीनू और मैंने हॉल में सब तरफ देखा। संजू भी निवस्त्र था। उसके पास वस्त्रविहीन विशाल बालों से भरे शरीर के मालिक गंगा बाबा थे। उनके अगले सोफे पर
नग्न मनोहर नानाजी बैठे थे। मनोहर नानू उस समय शायद छियासठ साल के थे। नानू लम्बे चौड़े मर्द हैं. वो भी सुरेश चाचा की तरह मोटे थे। उनकी तोंद
चाचू से भी बड़ी थी पर बालों से भरा पहलवानो जैसा शरीर बहुत ही आकर्षक और शक्तिशाली लग रहा था। उनके बाद के सोफे पर राज मौसा बैठे थे। राज
मौसा उस समय पच्चीस साल के थे और उनका बलवान हृष्ट-पुष्ट बड़ी बड़ी मांसपेशियों से भरा लम्बा शरीर उनके अत्यंत सुंदर चेहरे की तरह हर स्त्री के हृदय
की धड़कन बढ़ाने में सक्षम था। जब राज मौसाजी ऋतू मौसे के पास खड़े होते हैं तो कोइ भी देख कर कह सकता है कि दोनों एक दुसरे के लिए ही बने हैं
चाहे समाज कुछ भी कहे.
इसीलिए दोनों शहर में एक जगह ही काम करते हैं और एक घर में ही रहते हैं। दोनों का शादी का कोइ भी इरादा नहीं था।
मनोहर नाना और राज मौसा के विकराल लंड बड़े मामा उनकी बलशाली भारी जांघों के बीच में मोटे महा-अजगर की तरह विराजमान थे।
नम्रता चाची ने छोटी सी घोषणा की ,"डैडी, राज भैया, गंगा बाबा, संजू बेटा। हम सब आज अपनी दो बेटियों के कौमार्यभंग के उस्तव के लिए यहाँ हैं।
आज उनका विवाह उसी लंड के मालिक से होगा जिसने उनका कौमार्य-भंग किया है। उसके बाद उसी लंड से आज हम सबके आशीर्वाद और उत्साहन के
अधीन इन दोनों का अधिकारिक कौमार्यभंग एक बार फिर से होगा।"
नम्रता चाची ने एक गहरी सांस ली और फिर से शुरू हो गयीं, "अब मैं तो पुजारी बन चुकीं हूँ सो ऋतू तुम गंगा बाबा और संजू के लिए सम्पर्ण हो और जमुना
तुम डैडी और राज के लिए। अब तुम दोनों वस्त्रविहीन हो अपने पुरुषों के लिए समर्पित हो जाओ। "
"आखिर की घोषणा है कि आज रात के रंडी-समारोह की रंडी मेरी बेटी जैसे छोटी बहन ऋतू है। जमुना और मैं उसके सौभाग्य के लिए ऋतू को हार्दिक बढ़ाई
देते हैं। " नम्रता चाची के कहे शब्दों का पालन जमुना दीदी और ऋतू मौसे ने लपक कर किया। शीघ्र ही उनके विशाल गदराये गोल सख्त पर मुलायम उरोज़
चोली से मुक्त हो गए।
उनके लहंगे भी कुछ क्षणों में फर्श पर थे। उनकी मांसल गदराई जांघों के बीच में घने घुंघराले बालों से ढके अमूल्य कोष के लिए तो बड़े युद्ध शुरू हो सकते
थे। उनके लहंगे भी कुछ क्षणों में फर्श पर थे। उनकी मांसल गदराई जांघों के बीच में घने घुंघराले बालों से ढके अमूल्य कोष के लिए तो बड़े युद्ध शुरू हो
सकते थे। दोनों के रेशम जैसी झांटे उनके रति-रस गीली हो गयीं थी। उनकी योनि के रस की बूंदे उनकी झांटों पर कर रात के असमान में तारों की तरह
झलक और झिलमिला रहीं थीं।
ऋतू मौसी अभी संजू और गंगा बाबा के बीच में बैठ ही पायी थीं कि उन दोनों के हाथ उनके अलौकिक जम गये। ऋतू मौसी ने अपने नाजुक कोमल हाथों
से संजू और गंगा बाबा के धड़कते हुए लंडों को सहलाने लगीं।
जमुना दीदी को मनोहर नानाजी ने खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया और उनके विशाल चूचियों से खेलने लगे। राज मौसा ने जमुना दीदी के सुंदर कोमल पैरों को सहलाने लगे।
नम्रता चाची ने मीनू और मुझे हमारे दूल्हों के साथ खड़ा कर दिया। मीनू अपने डैडी के साथ लग कर खड़ी थी और मैंने बड़े मामा के चिपक कर खड़ी हो गयी।
नम्रता चाची कुछ गोलमोल संस्कृत जैसे श्लोकों को बुदबुदा कर ज़ोर से बोलीं ,"अब कुंवारी कन्या अपने दुल्हे का लंड पकड़ेगी। "
मैंने और मीनू शरमाते हुए अपने नन्हे हाथो से बड़े मामा और सुरेश चाचा के दानवीय तेजी से तंतानते हुए लिंगों को मुश्किल से पकड़ पाईं।
सोफे से राज मौसा की शैतानी भरी नाटकीय आयी ,"इस शादी के पण्डित जी ने बहुत कपडे पहन रखें हैं। "
सब लोगों ने तालियां बजा कर समर्थन किया।
नम्रता चाची ने धीरे धीरे अपनी तंग छोले को खोल कर दूर फैंक दिया। उनके पर्वत जैसे उन्नत और विशाल मादक स्तन उके सीने पे अपने वज़न के
भर से थोडा बहुत ही आकर्षक नम्रता चाचे के उरोज़। चाची ने हुए अपना लहंगा भी उतर फैंका। उनके भारी गदराई जांघें और फूले चूतड़ों से सब
पुरुषों के लंड में और भी तनाव आ गया।
उनकी घनी घुंघराली झांटे उनके योनि रस से पसीजी हुईं थीं। कमरे में मोहक रति रस की सुगंध वातावरण में व्याप्त होने लगी।
राज मौसा फिर से बोले, " इन पंडित से सेक्सी कोई पंडित इस दुनिया में नहीं है।" सबने फिर से तालियाँ बजा कर उनका समर्थन किया।
नम्रता चाची ने वापस हमारी 'शादी' के ऊपर अपना लगाया।
"अब तुम दोनों शादी के शपथें लो। मीनू पहले आप बोलो - 'मैं अपनी चूत अब दिल से अपने कौमार्यभंग लंड को समर्पित करतीं हूँ। डैडी जैसे
और जब चाहें मेरी छूट मर सकते हैं। "
मीनू ने शर्मा कर चाची के कहे शादी की शपथ को दुहराया। फिर मेरी बारी थी मैं भी शर्मा उठी ,"मैं अपनी चूत पूरे दिल से बड़े मामा के लंड को
समर्पित करती हूँ। बड़े मामा जब और जैसे चाहें मेरी चूत मार सकते हैं। "
नम्रता चाची ने इसके बाद हम चरों से पहला फेरा लगवाया। हम दोनों ने अपने दूल्हों का लंड पकड़ केर फेरा पूरा किया।
नम्रता चाची ने फिर से रंगमंच जैसी आवाज़ में कहा, " देखो इस लैंड से जब तक सातों फेरे न हो जाएँ हाथ नहीं हिलना चाहिये। " हम दोनों ने अपने
छोटे छोटे हाथों की पकड़ मूसल लंडों पैर और भी मजबूत कर ली।
नम्रता चाची ने दूसरी शपथ कही, " मेरी गांड, मुंह और दोनों चूचियाँ मेरे दुल्हे के आनंद के लिये हमेशा के लिए समर्पित हैं ।"
हमारे शपथ दोहराने के दूसरा फेरा पूर हुआ। बड़े मामा और सुरेश चाचा के लंड अब पूरे फनफना उठे थे।
ऋतू मौसी के हाथों में भी गंगा बाबा और संजू के लोहे जैसे सख्त लंड कुलबुला रहे थे। जमुना दीदी भी राज मौसा और नानू के भीमकाय लंडों को
काबू में करने का निर्थक प्रयास कर रहीं थीं।
चाची ने शपथ दी, " मैं अपने दुल्हे को अपने शरीर से उपजे हर द्रव्य, पदार्थ और कुछ और जो वो चाहे उसे समर्पित करूंगीं। "
हम ली और पूरा हो गया।
अब 'दूल्हों' की बारी थी।
"मैं अपनी दुल्हन के कुंवारेपन को अपने महाकाय लंड से ध्वस्त कर दूंगा। और उसके कौमार्यभंग चीखें निकलें और मेरे लंड पे उसके कौमार्य का
खून न लगे तो मैं मर्द नहीं हूँ। नम्रता चाची की मन घड़न्त शपथें को सुन कर हंसी आने लगी थी। पर सुरेश चाचा और बड़े मामा ने गम्भीरता से
शपथ ली और पूरा हो गया।
"मैं अपनी दुल्हन अपने शरीर से उपजे हर द्रव्य, पदार्थ और और कुछ जो वो चाहे उसे समर्पित करता हूँ। " नम्रता चाची ने दोनों नारी और पुरुषों को
बराबरी का उत्तरदायित्व दे दिया। इस शपथ के बाद पांचवां फेरा भी पूरा हो गया।
नम्रता चाची के चेहरे से साफ़ पता चल वो सातवीं शपथ के लिए अपना मस्तिष्क कुरेद रहीं थीं।
अचानक उन्हें कुछ विचार आया, "और जब मेरी दुल्हन चाहे और जितने भी वो चाहे मैं उसे उतने बच्चों से उसका गर्भ भर दूंगा। "
इस अनापशनाप शपथ के बाद सातवां फेरा भी पूरा हो गया। नम्रता चाची ने दुल्हनों से अपने स्वामियों के पैर छुबवाये।
"अब आप दोनों अपनी दुल्हनो के कौमार्य का विध्वंस कर दीजिये। यदि कुंवारे वधु की पहली चुदाई में चीखें न निकलें और वर के मोटे लंड पे उसके
कौमार्यभंग का लाल लहू न दिखे तो दुल्हे के लंड की ताकत पर हम सबका जायेगा। " नम्रता चाची अब पूरे प्रवाह में थीं।
हॉल में कई मोटे नरम गद्दे थे. दो पर गुलाब की पंखुड़ियाँ फ़ैली हुई थीं। यह हमारी 'सुहागरात' के गद्दे थे।
बड़े मामा ने मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया और मेरे गरम जलते हुए होंठों को कस कर लगे। सुरेश चाचा ने भी अपनी नव-वधु को अपनी बलशाली
बाँहों में उठा कर सुहागरात के गद्दे की और चल पड़े। सब दर्शकों को दोनों गद्दों पर होने वाले कार्यकलाप का अबाधित दृष्टिकोण था। नम्रता चाची ने
सारा रंगमंच सोचसमझ कर व्यस्थित किया था।
सुरेश चाचा ने अपनी अपरिपक्व 'दुल्हन' को गद्दे पर लिटा कर उसके होंठों के रसपान करने लगे। उँगलियाँ मीनू के जलते यौवन से खेलेने लगीं।
मीनू के भगोष्ठ वासना के अतिरेक से सूज से गए थे। मेरी चूत बड़े मामा के दानवीय विकराल लंड की प्यासी हो चली थी।
हम दोनों की चूतें हमारे रति रस से सराबोर थीं।
नम्रता चाची ने पुकार लगायी , "अरे दुल्हे राजाओं यह दुल्हने तो पूरी तैयार हैं। इन्हे और गरम करने की ज़रुरत नहीं है। आप तो यह सोचो कि चीखें
निकलवाओगे और कैसे इनकी छूट फाड़ कर अपने लंड पर विजय का प्रतीक लाल रंग दिखाओगे। "
मीनू और की तरफ देखा। वो बेचारी भी लंड लेने के लिए उत्सुक थी।
नम्रता चाची ने दोनों दूल्हों को हमारी फ़ैली टांगों के बीच में स्थापित करने के बाद उनके तनतनाते हुए लंडों को चूस कर और भी खूंटे जैसे सख्त कर
दिया।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
Update 19
"यदि इन कुंवारी कन्याओं की चीखों से हमारे कान न भरें और आप दोनों के लंडों पर इनके कौमार्यभंग का खून न दिखे तो
बहित शर्मिन्दगी की बात होगी चलिए मैं आप दोनों की थोड़ी सी मदद कर देतीं हूँ।" नम्रता चाची ने कोमल सूती चादर से मेरी
और मीनू की चूतों का सारा रस सुखा दिया।
"अब इस से पहली इन दोनों कामुक कुंवारियों की चूतें फिर से गीली हो जाएँ आप दोनों किला फतह कर लीजिये। " नम्रता चाची
ने बड़े मामा और अपने पति को सलाह दी।
बड़े मामा और सुरेश चाचा के चेहरों पर नम्रता चाची के शब्दों को वास्तविक रूप देने का ढृढ़ संकल्प साफ़ झलक रहा था।
बड़े मामा ने मेरी भरी भरी जांघों पूरा चौड़ा कर अपना दानवीय लंड मेरी सूखी छूट पर टिका दिया। मैं उनके अगले प्रयत्न के
अनुमान से रोमांचित हो उठी।
बड़े मामा का लंड मेरी सूखी चूत की धज्जियाँ उड़ा देगा।
बड़े मामा ने अपने बड़े सेब जैसे सुपाड़े को मेरी चूत में बेदर्दी से ठूंस दिया। यदि मैं इस दर्द से बिलबिला उठी तो आगे होने वाले
क्रिया से तो मर ही जाऊंगी।
बड़े मामा ने मुझे नन्ही बकरी के तरह अपने नीचे दबा कर अपने विशाल शरीर के पूूरी ताकत से अपना अमानवीय लंड मेरी
लगभग सूखी चूत में निर्ममता से ठूंस दिया।
मेरी चीख ने सरे हॉल को गूंजा दिया।
"हाय, बड़े मामा मेरी चूत फाड़ दी आपने। अऊऊ उउउन्न्नन्न नहीईईईइ ," मैं चीखी। मेरी चीख अभी भी उन्नत हो रही थी कि
मीनू के दर्द भरी चीख भी हॉल में गूँज उठी।
दोनों दूल्हों ने बेदर्दी से अपने विकराल लंड को अपनी शक्तिशाली शरीर के ज़ोर से हम दोनों कमसिन अविकसित दुलहनों की
'कुंवारी' चूत में जड़ तक ठूंसने के बाद ही सांस ली। मीनू औए मेरी चीखों से सबके कान दर्द कर उठे होंगें। जब बड़े मामा का
लंड मेरी दर्द से बिलबिलाती चूत से बाहर आया तो पूरा का पूरा लाल हो गया था। बड़े मामा ने मेरी चूत की कोमल दीवारों को
फाड़ कर मेरे कुंवारेपन को फिर से जीवन दे दिया।
नम्रता चाची ने हौसला बढ़ाया ,"शाबास दुल्हे राजाओं। इसी तरह इन दोनों की चूतों का लतमर्दन करते रहो। क्याचीखें
निकलवाई हैं आप दोनों ने। "
बड़े मामा और सुरेश चाचा ने मुझे और मीनू को निर्ममता से चोदना शुरू कर दिया। अगले पन्द्र्ह मिनटों तक हम दोनों ने चीख
चीख कर अपना गला बिठा लिया।
जान लेवा दर्द के बावज़ूद हम दोनों की चूतें मोटे लंडों के तड़प रहीं थीं।
बड़े मामा की निर्मम चुदाई से मैं सुबक सुबक कर और भी चुदने की दुहाई देने लगी।
वासना का पागलपन ने मेरे मस्तिष्क को अभिभूत कर लिया।
मुझे तो पता ही नहीं चला कि हॉल में क्या हो रहा था। नम्रता चाची ने पूरा हंगामा का अगले दिन मुझे और मीनू को विस्तार से
विवरण दिया था।
राज ने जमुना दीदी को अपने डैडी के लंड पर पटक दिया। जैसे ही नानाजी का लंड जमुना दीदी की चूत में समा गया राज ने
उनकी गांड में अपना वृहत लंड चार धक्कों से जड़ तक ठूंस दिया। दोनों पुरुषों ने जमुना दीदी के उरोज़ों को मसल कर लाल
कर दिया। जमुना दीदी की चीखें शीघ्र ही सीसकारियों में बदल गयीं।
ऋतू दीदी भी गरम हो गयीं थी। उन्होंने गंगा बाबा के लंड से अपनी चूत भर कर संजू को अपनी गांड मरने का आदेश दिया।
हाल में में सिस्कारियों और चीखों की बाड़ आ गयी।
मेरे जलती हुई चूत में रस की नदी बह उठी। मेरी चूत में बड़े मामा ने उतना हे दर्द उपजाया था जितना उन्होंने मेरे कौमार्यभंग
करते हुए किया था। उस एतहासिक घटना को सिर्फ तीन दिन हे तो हुए थे।
नम्रता चाची हम दोनों को चुदते हुए देख कर अपनी चूत को चार उंगलीओं से बेसब्री से चोद रहीं थीं।
मैं अचानक निर्मम चुदाई के प्रभाव से विचलित हॉट हुए भी चरम-आनंद के कगार पर जा पहुँची,"बड़े मामा मैं झड़ने वाले हूँ। मेरी
चूत और मारिये। "
बड़े मामा को किसी भी उत्साहन की आवश्यकता नहीं थी। उनका अमानवीय विकराल लंड अब रेल के इंजन के पिस्टन की
तरह मेरी फटी चूत में अंदर बाहर जा रहा था।
मीनू भी चीख मर कर झड़ गयी।
बड़े मामा और सुरेश चाचा ने अब लम्बी चुदाई की रफ़्तार पकड़ ली।
जमुना दीदी और ऋतू मौसी की सिस्कारियां और भी ऊंची और तेज हो चलीं थीं।
उनके रति-स्खलन के बारे में कोई भ्रम नहीं रहा।
अगले एक घंटे तक हॉल में घुटी घुटते और हलक फाड़ सिस्कारियां गूँज रहीं थीं।सारे वातावरण में सम्भोग के मादक सुगंध
व्याप्त हो गयी थी।
मेरे रति-निष्पति कि तो कोई गिनती ही नहीं थी। मैं न जाने कितनी बार झाड़ चुकी थी पर बड़े मामा तो मानो चुदाई के देवता
बन गए थे। न वो रुकेंगे और न वो थकेंगें ।
जब बड़े मामा के महाकाय लंड ने उनके गरम जननक्षम वीर्य की बौछार मेरे गर्भाशय पर की तो मैं कामोन्माद के अतिरेक से
थकी बेहोश सी हो गयी। उसके बाद के लम्बे क्षणों से मेरा सम्बन्ध टूट गया।
हम सब वासना की अग्नि के ही रति सम्भोग की मीठी थकान के आलिंगन में समा कर गए। मैं सुबह देर से उठी। मेरे सारे शरीर में फैला
मीठा-मीठा दर्द मुझे रात की प्रचंड चुदाई की याद दिलाने लगा। मेरे होंठों पर स्वतः हल्की सी मुस्कान चमक उठी। ख़िड़की से देर सुबह की
मंद हवा ने चमेली, रजनीगंधा और अनेक बनैले फूलों की महक से मेरा शयनकक्ष महका दिया। मैंने गहरी सांस भर कर ज़ोर से अंगड़ाई भरी।
कमरे में पुष्पों की सुगंध के साथ रति रस और सम्भोग की महक भी मिल गयी।
मेरा अविकसित कमसिन शरीर में उठी मदमस्त ऐंठन ने मेरे अपरिपक्व मस्तिष्क में एक बार फिर से सिवाए संसर्ग और काम-क्रिया के
अलावा कोई और विचार के लिए कोइ अंश नहीं बचा था। नासमझ नेहा की जगह अब मैं स्त्रीपन की ओर लपक रही थी।
मैं अपने ख्यालों में इतनी डूबी हुई थी कि कब मीनू कमरे में प्रविष्ट हो गयी। उसने मेरे बिस्तर में कूद कर मुझे सपनों से वापिस यथार्थ में
खींच लिया।
मीनू खिलखिला कर हंस रही थी, "क्या नेहा दीदी? अभी तक रात की चुदायी याद आ रही है? कोइ फ़िक्र की बात नहीं अब तो पापा,
चाचा और गंगा बाबा गंगा बाबा के अलावा नानू, संजू और राजन भैया भी हैं। आपके लिए अब लंड की कोई कमी नहीं है। "
मैंने भी हँसते हुए मीनू को अपनी बाँहों में जकड़ लिया, "मीनू की बच्ची तू कैसी गंदी बातें करने लगी है ? तू तो ऐसे कह रही है जैसे न
जाने कितने सालों से चुद रही है ?"
मीनू ने मेरे होंठों को चूम लिया, "नेहा दीदी, आपकी छोटी बहन का कौमार्य तो तीन साल पहले ही भंग हो गया था। आप आखिरी कुंवारी
थीं सारे परिवार में।"
मीनू नम्रता चाची की बड़ी बेटी है. मीनू मुझसे छोटी है. उसका छरहरा शरीर देख कर कोई सोच भी नहीं सकता था कि मीनू इतनी
चुदक्कर है। उसके लड़कपन जैसे शरीर पे अभी स्तन भी अच्छी तरह नहीं विकसित हुए थे। लेकिन नम्रता चाची और ऋतु दीदी की तरह
मीनू का शरीर अपनी मम्मी और मौसी के जैसे ही भरा गदराया हुआ हो जायेगा। उन दोनों का भी विकास देर किशोर अवस्था में हुआ था।
"अच्छा मीनू की बच्ची यह बता कि अपने डैडी का लंड अभी तक नहीं मिस किया," मैंने मीनू को कस कर भींच ज़ोर से उसकी नाक की
नोक को काट कर उसे छेड़ा।
"नेहा दीदी डैडी के लंड का ख़याल तो रहीं थीं। मुझे और ऋतु दीदी को तीन लंडों की सेवा करनी पड़ी थी। अब तो संजू का लंड भी
लम्बा मोटा हो चला है। " मीनू मेरे दोनों उरोज़ों को मसल कर मेरे होठों को चूसने लगी।
संजू मीनू से डेढ़ साल छोटा है। मुझे संजू शुरू से ही बहुत प्यारा लगता है। उसके अविकसित शरीर से जुड़े वृहत लंड के विचार से ही मैं रोमांचित हो गयी।
मीनू ने मेरे सूजे खड़े चूचुकों को मसल कर कुछ बेसब्री से बोली, "अरे मैं तो सबसे ज़रूरी बात तो भूल गयी। दीदी संजू को जबसे आपके कौमार्यभंग के बारे में पता चला है तबसे मेरा प्यारा छोटा नन्हा भाई अपनी नेहा दीदी को चोदने के विचार से मानों पागल हो गया है। बेचारा सारे रास्ते आपको चोदने की आकांशा से मचल रहा था। उसने मुझे आपसे पूछने के लिए बहुत गुहार की है। "
मेरी योनि जो पहले से ही मीनू से छेड़छाड़ कर के गीली हो गयी थी अब नन्हे संजू की मुझे चोदने की भावुक और तीव्र तृष्णा से मानों सैलाब से भर उठी।
मीनू ने मेरे गालों को कस कर चूम कर फिर से कहा, "दीदी चुप क्यों हो। हाँ कर दो ना," मीनू ने धीरे से फुसफुसाई,
"बेचारा संजू बाहर ही खड़ा है। "
मैं अब तक कामोन्माद से मचल उठी थी। मैंने धीरे से मीनू को संजू को अंदर बुलाने को कहा.
"संजूऊऊ," मीनू चहक कर ज़ोर से चिल्लायी," नेहा दीदी मान गयीं हैं। "
संजू कमरे के अंदर प्रविष्ट हो गया। उसकी कोमल आयु के बावज़ूद उसका कद काफी लम्बा हो गया था। उसका देवदूत जैसा सुंदर चेहरा कुछ लज्जा और कुछ वासना से दमक रहा था।
संजू शर्मा कर मुस्कराया और हलके से बोला, "हेलो नेहा दीदी। "
मीनू बेताबी से बोली, "संजू अब काठ के घोड़े की तरह निचल खड़े ना रहो। जल्दी से अपने उतारो और अपनी नेहा दीदी की चूत ले लो। कितने दिनों से इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हो।"
मीनू बेताबी से बोली, "संजू अब काठ के घोड़े की तरह निष्चल खड़े ना रहो। जल्दी से अपने उतारो और अपनी नेहा दीदी की चूत ले लो। कितने दिनों से इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हो।"
संजू ने शर्माते हुए पर लपक कर अपने कपड़े उतार कर फर्श पर दिए। उसका गोरा लम्बा शरीर उस समय बिलकुल बालहीन था।
मेरी आँखे अपने आप ही संजू के खम्बे जैसे सख्त मोटे गोरे लंड पर टिक गयीं। उसके अंडकोष के ऊपर अभी झांटों का आगमन नहीं हुआ था। मेरा मुँह संजू के जैसे गोरे औए मक्खन जैसे चिकने लंड को देख कर लार से भर गया।
"संजू, जल्दी से बिस्तर पर आ जाओ न अब, " मुझसे भी अब सब्र नहीं हो रहा था।
संजू को हाथ से पकड़ कर मैंने उसे बिस्तर पर बैठ दिया।
संजू मीनू से डेढ़ साल छोटा है। मुझे संजू शुरू से ही बहुत प्यारा लगता है। उसके अविकसित शरीर से जुड़े वृहत लंड के विचार
से ही मैं रोमांचित हो गयी।
मीनू ने मेरे सूजे खड़े चूचुकों को मसल कर कुछ बेसब्री से बोली, "अरे मैं तो सबसे ज़रूरी बात तो भूल गयी। दीदी संजू को
जबसे आपके कौमार्यभंग के बारे में पता चला है तबसे मेरा प्यारा छोटा नन्हा भाई अपनी नेहा दीदी को चोदने के विचार से
मानों पागल हो गया है। बेचारा सारे रास्ते आपको चोदने की आकांशा से मचल रहा था। उसने मुझे आपसे पूछने के लिए
बहुत गुहार की है। "
मेरी योनि जो पहले से ही मीनू से छेड़छाड़ कर के गीली हो गयी थी अब नन्हे संजू की मुझे चोदने की भावुक और तीव्र तृष्णा
से मानों सैलाब से भर उठी।
मीनू ने मेरे गालों को कस कर चूम कर फिर से कहा, "दीदी चुप क्यों हो। हाँ कर दो ना," मीनू ने धीरे से फुसफुसाई,
"बेचारा संजू बाहर ही खड़ा है। "
मैं अब तक कामोन्माद से मचल उठी थी। मैंने धीरे से मीनू को संजू को अंदर बुलाने को कहा.
"संजूऊऊ," मीनू चहक कर ज़ोर से चिल्लायी," नेहा दीदी मान गयीं हैं। "
संजू कमरे के अंदर प्रविष्ट हो गया। उसकी कोमल आयु के बावज़ूद उसका कद काफी लम्बा हो गया था। उसका देवदूत जैसा
सुंदर चेहरा कुछ लज्जा और कुछ वासना से दमक रहा था।
संजू शर्मा कर मुस्कराया और हलके से बोला, "हेलो नेहा दीदी। "
मीनू बेताबी से बोली, "संजू अब काठ के घोड़े की तरह निचल खड़े ना रहो। जल्दी से अपने उतारो और अपनी नेहा दीदी की
चूत ले लो। कितने दिनों से इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हो।"
मीनू बेताबी से बोली, "संजू अब काठ के घोड़े की तरह निष्चल खड़े ना रहो। जल्दी से अपने उतारो और अपनी नेहा दीदी
की चूत ले लो। कितने दिनों से इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हो।"
संजू ने शर्माते हुए पर लपक कर अपने कपड़े उतार कर फर्श पर दिए। उसका गोरा लम्बा शरीर उस समय बिलकुल बालहीन
था।
मेरी आँखे अपने आप ही संजू के खम्बे जैसे सख्त मोटे गोरे लंड पर टिक गयीं। उसके अंडकोष के ऊपर अभी झांटों का आगमन
नहीं हुआ था। मेरा मुँह संजू के जैसे गोरे औए मक्खन जैसे चिकने लंड को देख कर लार से भर गया।
"संजू, जल्दी से बिस्तर पर आ जाओ न अब, " मुझसे भी अब सब्र नहीं हो रहा था।
संजू को हाथ से पकड़ कर मैंने उसे बिस्तर पर बैठ दिया।
मैंने उसके दमकते सुंदर चेहरे को कोमल चुम्बनों से भर दिया।
संजू अब अपने पहले झिझकपन से मुक्त हो चला।
संजू ने मुझे अपनी बाँहों में कस कर पकड़ कर अपने खुले मुँह को मेरे भरी साँसों से भभकते मुँह के ऊपर कस कर
चिपका दिया।
संजू के मीठे थूक से लिसी जीभ मेरे लार से भरे मुँह में प्रविष्ट हो गयी। मीनू मेरी फड़कती चूचियों को मसलने लगी।
मेरा एक हाथ संजू के मोटे लंड को सहलाने को उत्सुक था। मेरी तड़पती उंगलियां उसके धड़कते लंड की कोतलकश
को नापने लंगी।
मेरा नाज़ुक हाथ संजू के मोटे लंड के इर्दगिर्द पूरा नहीं जा पा रहा था। पर फिर भी मैं उसके लम्बे चिकने स्तम्भ को
हौले-हौले सहलाने लगी।
संजू ने मेरे मुँह में एक हल्की से सिसकारी भर दी। मैं संजू के लंड को चूसने के लिए बेताब थी।
मैंने हलके से अपने को संजू के चुम्बन और आलिंगन से मुक्त कर उसके लंड के तरफ अपना लार से भरा
मुँह ले कर उसे प्यार से चूम लिया।
संजू का लंड इस कमसिन उम्र में इतना बड़ा था। इस परिवार के मर्दों की विकराल लंड के अनुवांशिक श्रेष्ठता के
आधिक्य से वो सबको पीछे छोड़ देगा।
मैंने संजू के गोरे लंड के लाल टोपे को अपने मुँह में भर लिया।
मीनू मेरे उरोज़ों को छोड़ कर मेरे उठे हुए नीतिमबोन को चूमने और चूसने लगी। मीनू मेरे भरे भरे चूतड़ों को
मसलने के साथ साथ मेरे गांड की दरार को अपने गरम गीली जीभ से चाटने भी लगी।
मेरी लपकती उन्माद से भरी सिसकी ने दोनों भाई बहिन को और भी उत्तेजित कर दिया।
संजू ने मेरे सर तो पकड़ कर अपने लंड के ऊपर दबा कर मापने मोटे लंड को मेरे हलक में ढूंस दिया। मेरे घुटी-घुटी
कराहट को उनसुना कर संजू ने अपने लंड से मेरे मुँह को चोदने लगा।
मीनू ने मेरी गुदा-छिद्र को अपनी जीभ की नोक से चाट कर ढीला कर दिया था और उसकी जीभ मेरी गांड के गरम
अंधेरी गुफा में दाखिल हो गयी।
मीनू ने ज़ोर से सांस भर कर मेरी गांड की सुगंध से अपने नथुने भर लिए।
"दीदी, अब मुझे आपको चोदना है," संजू धीरे से बोला।
मैंने अनिच्छा से उसके मीठे चिकने पर लोहे के खम्बे जैसे सख्त लंड तो अपने लालची मुँह से मुक्त कर बिस्तर पे अपनी
जांघें फैला कर लेट गयी।
संजू घुटनो के बल खिसक कर मेरी टांगों के बीच में मानों पूजा करने की के लिए घुटनों पर बैठा था। मीनू घोड़ी बन
कर मेरे होंठों को चूस थी। पर उसकी आँखे आँखें अपने भाई के मोटे लम्बे चिकने लंड पर टिकी थीं। संजू का मोटा
फड़कता सुपाड़ा मेरी गुलाबी चूत के द्वार पे खटखटा रहा था। मेरी चूत पे पिछले दो सालों में कुछ रेशम मुलायम जैसे
घुंघराले बाल उग गए थे। संजू ने सिसकी मार कर अपने मोटे लम्बे हल्लवी लंड के सुपाड़े को मेरी गीली योनि की
तंग दरार पर रगड़ा। मेरी भगशिश्न सूज कर मोटी और लम्बी हो गयी थी। संजू के लंड ने उसे रगड़ कर और भी
संवेदनशील कर दिया। मेरी हल्की सी सिसकारी और भी ऊंची हो चली।
"संजू मेरी चूत में अपना लंड अंदर तक दाल दो, मेरे प्यारे छोटे भैया। अपनी बड़ी बहिन की चूत को अब और
तरसाओ," मैं अपनी कामाग्नि से जल उठी थी।
संजू ने मेरे दोनों थरकते चूचियों को अपने बड़े हाथों में भर कर अपने मोटे सुपाड़े को हौले हौले मेरी नाजुक चूत में
धकेल दिया। मेरी तंग योनि की सुरंग संजू के मोटे लंड के स्वागत करने के लिए फैलने लगी। संजू ने एक एक इंच
करके अपना लम्बा मोटा लंड मेरी चूत में जड़ तक ठूंस दिया।
मैं संजू के कमसिन लंड को अपनी चूत में समा पा कर सिहर उठी। मेरा प्यारा छोटा सा भैया अब इतने बड़े लंड का
स्वामी हो गया था।
"संजू, तेरा लंड कितना बड़ा है। अब अपनी बहिन को इस लम्बे मोटे खम्बे जैसे लंड से चोद डाल," मैं वासना के
अतिरेक से व्याकुल हो कर बिलबिला उठी।
मीनू ने भी मेरी तरफदारी की, "संजू, कितने दिनों से नेहा दीदी की चूत के लिए तड़प रहे थे। अब वो खुद कह रहीं हैं
की उनकी चूत को चोद कर फाड़ दो। संजू नेहा दीदी की चूत तुम्हारे लंडे के लिए तड़प रही है। "
संजू ने हम दोनों को उनसुना कर अपने लंड को इंच इंच कर मेरी फड़कती तड़पती चूत के बाहर निकल उतनी ही
बेदर्दी से आहिस्ता-आहिस्ता अंदर बाहर करने लगा।
मैंने अपनी बाहें में कस कर मीनू को जकड लिया। हम दोनों के होंठ मानों गोंद से चिपक गए थे। मैं अब तड़प गयी
थी। अब तक बड़े मामा, सुरेश चाचा और गंगा बाबा मेरी चूत की धज्जियां उड़ा रहे होते। संजू किसी जालिम की तरह
मेरी चूत को अपने चिकने मोटे लंड से धीरे धीरे मेरी चूत को मार रहा था।
मेरी चूत झड़ने के लिए तैयार थी पर उसे संजू के मोटे लंड की मदद की ज़रुरत थी।
मैं कामाग्नि से जल रही थी। मुझे पता भी नहीं चला कि कब किसी ने मीनू को बिस्तर के किनारे पर खींच लिया।
मैंने मीनू की ऊंची कर उसकी तरफ देखा। सुरेश चाचा ने अपनी कमसिन अविकसित बेटी की चूत में अपना
दैत्याकार लंड एक बेदर्द धक्के से जड़ तक ठूंस दिया था।
"डैडी, आअह आप कितने बेदर्द हैं। अपनी छोटी बेटी की कोमल चूत में अपना दानवीय लंड कैसी निर्ममता से ठूंस दिया
है आपने। मिझे इतना दर्द करने में आपको क्या आनंद आता है?" मीनू दर्द से बिलबिला उठी थी।
"मेरी नाजुक बिटिया इस लंड को तो तुम तीन सालों से लपक कर ले रही हो। अब क्यों इतने नखरे करने का प्रयास
कर रही हो। मेरी बेटी की चूत तो वैसे भी मेरी है। मैं जैसे चाहूँ वैसे ही तुम्हारी चूत मारूंगा," सुरेश चाचा ने तीन
चार बार बेदर्दी से अपना लंड सुपाड़े तक निकल कर मीनू की तंग संकरी कमसिन अविकसित चूत में वहशीपने से ठूंस
दिया।
"डैडी, आप सही हैं। आपकी छोटी बेटी की चूत तो आपके ही है। आप जैसे चाहें उसे चोद सकते हैं," मीनू दर्द सी
बिलबिला उठी थी अपर अपने पिताजी के प्यार को व्यक्त करने की उसकी इच्छा उसके दर्द से भी तीव्र थी।
"संजू, भैया, देखो चाचू कैसे मीनू की चूत मार रहें हैं। प्लीज़ अब मुझे ज़ोर से चोदो," मैंने मौके का फायदा उठा कर
संजू को उकसाया।
शीघ्र दो मोटे लम्बे लंड दो नाजुक संकरी चूतों का मर्दन निर्मम धक्कों से करने लगे। कमरे में मेरी और मीनू की
सिस्कारियां गूंजने लगीं।
संजू मेरे दोनों उरोज़ों का मर्दन उतनी ही बेदर्दी से करने लगा जितनी निर्ममता से उसका लंड मेरी चूत-मर्दन में
व्यस्त था। सुरेश चाचा और संजू के लंड के मर्दाने आक्रमण से मीनू और मेरी चूत चरमरा उठीं। उनके मूसल जैसे लंड
बिजली की तीव्रता से हमारी चूतों के अंदर बाहर रेल के पिस्टन की तरह अविरत चल रहे थे। सपक-सपक की आवाज़ें
कमरे में गूँज उठीं।
मेरी सिस्कारियां मेरे कानों में गूँज रहीं थीं। मीनू की सिस्कारियों में वासनामय दर्द की चीखें भी शामिल थीं। सुरेश
चाचा का दानवीय लंड न जाने कैसे कैसे मीनू सम्भाल पा रही थी? सुरेश चाचा का दानवीय लंड न जाने कैसे कैसे
मीनू सम्भाल पा रही थी? चाचू के विशाल भरी-भरकम शरीर के नीचे हाथों में फांसी नन्ही बेटी किसी चिड़िया जैसी
थी.
चाचू मीनू को दनादन जान लेवा धक्कों से चोदते हुए उसके सूजे चूचुकों को बेदर्दी से मसल रहे थे। अभी मीनू के
उरोज़ों का विकास नहीं हुआ था।
"डैडी,चोदिये अपनी लाड़ली बेटी को। फाड़ डालिये अपनी नन्ही बेटी की चूत अपने हाथी जैसे लंड से," मीनू
कामवासना के अतिरेक से अनाप-शनाप बोलने लगी।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
Update 20
जब हम सब लोगों की कामाग्नि कम से कम कुछ क्षणों के लिए शांत हो गयी तब नम्रता चाची ने खाने की घोषणा कर दी।
"उब सारे पुरुषों के लंडों को थोडा भी है। आखिर इन विशाल हाथी जैसे लण्डों को मेरी बहिन के रन्डीपने की समस्या तो
भी सुलझानी है। " नम्रता चाची ने बड़े मामा और सुरेश चाचा के लंडों को मेरी और मीनू की चोलियों से पोंछ कर हमें इनाम की तरह पेश किया, "देखो तुम दोनों के कौमार्यहरण की साक्षीण हैं खून से सनी तुम्हारी चोलिया। इन्हें सम्भाल कर रखना। "
मीनू और मैं दर्द के मारे टांगें चौड़ा कर चल रहे थे।
भोजन वाकई स्वादिष्ट था। सब पुरुष बियर और वाइन पी रहे थे। स्त्रियों ने शैम्पेन का रसा स्वाद कर रहीं थीं।
मीनू और मैंने भी उस क्षणों की मादकता में तीन गिलास पी लिए और थोड़ी मतवाली हो उठीं।
नम्रता चाची अपनी अश्लील टिप्प्णियों से अविरत ऋतू मौसी को अविरत भोजन के बीच चिढ़ाती रही।
" अरे,देखते रहो। आज इस रंडी की चूत और गांड फट कर ही रहेगी। मैंने सब महाकाय लंडों को सेहला कर फुसला दिया है।
सारे लंडों ने मेरे कान में फुसफुसा कर घोषणा कर दी है कि आज शाम वो मेरी के भेष में चुद्दक्कड़ रंडी के हर चुदाई के छेदों को विदीर्ण कर भिन्न-भीं करने के लिए उत्सुक हैं। आज के बाद मेरी छोटी बहिन की चूत में रेल गाड़ी भी चली जाएंगीं और गांड में तो बस का गैराज बन जायेगा। " नम्रता चाची ने खिलखिला कर ऋतू को चिड़ाया।
हम सब पहले तो खूब हंसें फिर ऋतू मौसी तो नम्रता चाची को उचित उतना ही श्लील सरोत्कर के लिए उत्साहित करने लगे।
"थोड़ी देर में ऋतू मौसी ने मनमोहक मुस्कान के साथ जवाब दिया , "नम्मो दीदी, आप क्या बक-शक रहीं हैं। अरे जब क़ुतुब मीनार खो गयी थी तो दिल्ली की सिक्युरिटी ने उसे आपकी चूत से ही तो बरामद किया था। " मुश्किल से रुक पा रही थी।
लेकिन अभी ऋतू मौसी का सरोत्कर समाप्त नहीं हुआ था , "और पिताजी के लंड से सालों से चुद कर आपकी गांड और चूत इतनी फ़ैल गयीं हैं कि जब बस-चालक रास्ता भूल कर इन गहरायों में खों जाते है तो उन्हें महीनों लगते हैं वापस बहार आने में। "
हम सब ने तालियां बजा कर ऋतू मौसी के लाजवाब टिप्पिणि की कर प्रंशसा की।
नम्रता चाची भी अपने प्यारी बेटी जैसे छोटी बहिन के उत्तर से कुछ क्षणों के लिए लाजवाब हो गयीं पर फिर भी खूब ज़ोरों से हंसीं।
दोनों का इसी तरह का अश्लील आदान प्रदान चलता रहा। सारे पुरुष भी इसका आनंद उठाने लगी.
जब सब लोगों केई उदर-संतुष्टी हो गयी तो सबकी उदर के नीचे की भूख फिर से जाग उठी।
हम सब ऋतू मौसी को तैयार करने के लिए शयन-कक्ष में ले गए। जैसे जैसे उनके वस्त्र उतरे वैसे ही उनके दैव्य-सौंदर्य की
उज्जवल धुप से हम सब चका-चौंध हो गए। ऋतू मौसी के बालकपन लिए चेहरे का अवर्णनीय सौंदर्य उनके देवी जैसे गदराये सुडौल घुमावों से भरे शरीर के स्त्री जनन मादकता से इंद्र भी उन्मुक्त नहीं रह पाते।
ऋतू मौसी ने सिर्फ चोली और लहंगा पहनने का निश्चय किया। उन्होंने न तो कंचुकी पहनी और न कोई झाँगिया।
उनका प्राकृतिक रूप से दमकता माखन जैसा कोमल शरीर और चेहरे को किसी भी श्रृंगार की आवश्यकता नहीं थी।
हम सब कुछ क्षणों के लिए ऋतू मौसी के अकथ्य सौंदर्य से अभीभूत हो चुप हो गए।
"अरे मैं इतनी बुरी लग रहीं तो बोल दो। चुप होने से तो काम नहीं चलेगा ना ," ऋतू मौसी लज्जा से लाल हो गयीं और उनके सौंदर्य में और भी निखार आ गया।
नम्रता चाची ने जल्दी से अपनी छोटी बहिन को अपने आलिंगन में ले कर उनका माथा चूम लिया, "अरे मेरी बिटिया को किसी की नज़र न लग जाये।" नम्रता चाची के प्यार की कोई सीमा नहीं थी।
अगले घंटे में हम सब फिर 'रस-वभन' में एक बार फिर से इकट्ठे हो गए। इस बार सारे मर्द दूसरी तरफ थे। हमारा प्यारा
संजू लम्बे भारी भरकम पुरुषों के बीच में उसके बालकों जैसे चहरे से वो और भी नन्हा लग रहा था। पर उसके लोहे के
खम्बे जैसे खड़े लंड में कोई भी नन्हापन नहीं था।
नम्रता चाची ने सब पुरुषों के लिए गिलासों ओ फिर से भर दिया। संजू उस दिन व्यक्त मर्दों में शामिल हो गया था। सही
मात्र में मदिरा पान कामुकता को बड़ा सकता है। उसके प्रभाव से पुरुष यदि कोई अवरोधन हों भी तो मुक्त हो चलेंगें।
नम्रता चाची अपनी बहिन के लिए सारे पुरुषों की निर्दयी चुदाई के चाहत से विव्हल थीं।
नम्रता चाची ने सारे पुरुषों के बचे-कूचे न्यूनतम वस्त्रों को उत्तर दिया। छः महाकार के लंडों को देख कर हम सब नारियों
की योनियों में रति-रस का सैलाब आ गया।
नम्रता चाची ने नाटकीय अंदाज़ में घोषणा की ,"अब आपके उपभोग के लिए आज रात की रंडी को अर्पण करने का समय
आ गया है। आप सब मोटे, लम्बे, विकराल लंडों के स्वामियों से अनुरोध है कि इस रंडी की वासना की प्यास को पूरी
तरह से भुझा दें। इस रंडी के हर चुदाई के छिद्र को अपने घोड़े जैसे लंडों से फाड़ दें। इसकी गांड की अपने हाथी जैसे
वृहत्काय लंडों से धज्जियां उड़ा दें। उसकी गाड़ आज इतनी फट जानी चाहिये कि अगले तीन हफ़्तों तक इस रंडी को
मलोत्सर्ग में होते दर्द से यह बिलबिला उठे।"
हम सब नम्रता चाची के अश्लील उद्घोषण से हसने की बजाय कामोन्माद से गरम हो गए। छह पुरुषों के पहले से ही
थरकते लंडों में और भी उठान आ गया। मेरा तो छः महाकाय लंडों को इकठ्ठा देख कर हलक सूख गया। मुझे ऋतू मौसी
के फ़िक्र होने लगी।
हम सब नम्रता चाची के अश्लील उद्घोषण से हसने की बजाय कामोन्माद से गरम हो गए। छह पुरुषों के पहले से ही
थरकते लंडों में और भी उठान आ गया। मेरा तो छः महाकाय लंडों को इकठ्ठा देख कर हलक सूख गया। मुझे ऋतू मौसी
के फ़िक्र होने लगी।
नम्रता चाची अभी पूर्ण रूप से संतुष नहीं थीं, "जो भी स्त्री इस सामूहिक सम्भोग के लिए रंडी बनने का सौभाग्य प्राप्त
करती है वो इस लिए कि आप सब सब मर्यादा भूल कर अपने भीमकाय लंडों से उसकी हर वासनामयी क्षुदा की पूर्ण
संतुष्टि करेंगें। और उसकी हार्दिक अपेक्षा कि आप सब उसे निम्न कोटि की सस्ती रंडी से भी निकृष्टतर मान कर उसे उसी
तरह बर्ताव करें। "
नम्रता चाची ने अपने कोमल हाथों से बारी-बारी छः उन्नत विशाल लंडों को सहला कर अपनी छोटी सी घोषणा को
समापन की और मोड़ा ," अंत में इस रंडी की हार्दिक चाहत है कि आज रात इसे आप निम्न कोटी की रंडी की तरह
समझ कर इसे शौचालय की तरह इस्तेमाल करें। "
नम्रता चाची ने ऋतू मौसी का हाथ पकड़ कर एक बकरी की तरह खींच कर उन्हें छः निर्मम कठोर लंडों के हवाले कर
दिया।
मनोहर नानाजी ने अपनी छोटी बेटी की चोली के बटन खोल कर उनके विशाल पर गोल उन्नत स्तनों को मुक्त कर
दिया। ऋतू मौसी के भारी, कोमल, मलायी जैसे गोर उरोज़ अपने ही भार से थोड़े ढलक गए।
इनके होल होल हिलते मादक उरोज़ों ओ देख कर सारे लंड और भी थिरकने लगे। राज मौसा ने अपनी छोटी बहिन के
लहंगे का नाड़ा खोल दिया और ऋतू मौसी का लहंगा लहरा कर उनके फुले गदराये भरे-भरे गोल उन्नत नीतिम्बो के
मनमोहक घुमाव को और भी बड़ा-चढ़ा दिया।
ऋतू मौसी की गोल भरी-पूरी झाँगों के बीच में घघुंघराली झांटों से ढके ख़ज़ाने की ओर सब की नज़र टिक गयी। ऋतू
मौसी की झांटें उनके रतिरस से भीग गयीं थीं। और उनसे एक हल्की सी मादक सुगंध रजनीगंधा और चमेली के फूलों की
महक से मिल सारे पुरुषों की इंद्रियों पर धावा बोल दिया।
ऋतु मौसी के मोहक रति रस की सौंदाहटके प्रभाव से सब पुरुषों के नाममात्र के संयम के बाँध टूट गए।
छः अमानवीय विशाल लंडों के बीच में निरीह मृगनी की तरह घिरी ऋतु
मौसी को सब पुस्रुषों में मिल कर चूमना चाटना शुरू कर दिया। अनेक हाथ उनके थिरकते मादक विशाल उरोज़ों को मसलने मडोड़ने लगे। कई उंगलियां उनकी रेशमी घुंघराली झांटों को भाग कर उनकी कोमल योनि-पंखुण्डियों को खोल कर उनकी रति रस से भरे छूट की तंग गलियारे में घूंस गयीं।
ऋतू मौसी की ऊंची पहली सिकारी ने रात की रासलीला की माप-दंड को और भी उत्तर दिशा की और प्रगतिशील कर दिया।
"मम्मी, हमारे पास तो एक भे लंड नहीं है," मीनू कुनमुनाई। उसकी नन्ही गुलाबी चूत मादक रतिरस से भर उठी थी।
मीनू परेशान नहीं हो, हमने सारा इंतिज़ाम कर रखा है ," जमुना दीदी लपक कर भागीं और शीघ्र दो दो-मुहें बड़े मोटे ठोस नम्र रबड़ के बने लिंग के प्रतिरूप डिल्डो को विजय-पताका की तरह हिलाती हुईं वापस आयीं।
एक डिल्डो नम्रता चाची को दे कर उन्होंने दुसरे डिल्डो के बहुत मोटे पर थोड़े छोटे नकली लंड को सिसक कर अपनी योनि में घुसा कर डिल्डो की पत्तियां अपने झांघों और कमर पे बाँध कर एक मर्द की तरह लम्बे मोटे 'लंड' को अपने हाथ से सहलाती हुईं बोलीं ,"आजा मीनू रानी। तुम्हारे लिए लंड खड़ा है। यह लंड हमेश सख्त रहेगा। चाहे जितनी देर तक चाहो यह चोदने के
लिए तैयार है।
नम्रता चाची भी तैयार थीं। उन्होंने सोफे पर बैठ कर मुझे अपनी और। खींचा मैं उनकी तरफ कमर करके धीरे धीरे उनके लम्बे मोटे लंड पर अपनी मुलायम चूत को टिका कर नीचे लगी। मैंने अपना निचला होंठ दबा कर थोड़े दर्द को दबाने का निष्फल प्रयास किया। बड़े मामा के निर्मम 'कौमार्यभंग' से फटी मेरी चूत जैसे जैसे नम्रता चाची के 'लंड' को भीतर लेने लगी उसमे उपजे दर्द से मैं बिलबिला उठी।
"नेहा बेटी, बड़े मामा के लंड को तो बड़े लपक के अपनी चूत में निगल रहीं थीं। क्या चाची के लंड आया और इतना बिलबुला रही हो ?" नमृता चाची ने मेरे दोनों फड़कते स्तनों को कस कर मसल दिया।
चाची ने अपने भारी चूतड़ों को कास ऊपर धकेला और मेरे कमसिन चूचियों को को कस कर मसलते हुए मुझे नीच दबाते हुए अपना नकली लंड मेरी चूत में पूरा का पूरा जड़ तक ढूंस दिया। मेरी सिसकती चीख के बिना नम्रता चाची मर्दों की तरह बेदर्दी से मेरे उरोज़ों को मसल कर बोलीं, "नेहा बेटी आज आई है बकरी ऊँट के नीचे। अपनी चूत और गांड को घर के हर लंड से
चुदवा चुकी अब चाची की बारी है। मैं नहीं छोड़ने वाले अपने प्यारी बेटी को बिना चूत और गांड फाड़े। "
मैं भी वासना के ज्वार से भभक उठी , "चाची आप भी चोद लीजिये मेरी चूत। "
जमुना दीदी भी मीनू को भीच कर अपने लंड पे बिठा रहीं थी ,"ठीक है मीनू यदि तुम्हारी चूत अभी दर्दीली है तो गांड
मरवाओ। पर आज रात तुम्हारी मस्तानी चूत मारे बिना तुम्हे नहीं छोड़ने वाले तुम्हारी जमुना दीदी। "
जमुना दीदी अपने थूक और मीनू के चूत के रस से सने चिकने भरी रबड़ के लंड को इंच इंच करके मीनू की गांड में डालने
लंगी। मीनू ने होंठों को दबा कर गांड में उपजे दर्द को घूंट कर पी जाने का प्रयास किया। पर जमुना दीदी भी खेली-खाईं थीं।
उन्होंने डिल्डो की सात इंच मीनू की गांड में ठूंस उसकी गोल कमर को मज़बूती से पकड़ कर नीचे खींचते हुए अपने 'लंड' को पूरी ताकत से ऊपर धकेला।
"ऊईईईई दीदी मैं मर गयी। मेरी गांड फाड़ दी आपने तो।” मीनू बिलबिलायी।
"मीनू रानी अभी कहाँ फटी है आपकी गांड। आपकी गांड तो अभी मुझे फाड़नी है। वैसे भी अपने डैडी से गांड फड़वाने में आपको कोई तकलीफ नहीं होती ?" जमुना दीदी ने मीनू के सीने पे तने चूचुकों को कस कर निचोड़ कर उसे अपने 'लंड' पे बेदर्दी से दबा लिया।
छः मर्दों ने ऋतु मौसी को घुटनों पे बिठा कर उनके पुनः को बारी-बारी अपने विकराल लंड से चोदना शुरू कर दिया था। ऋतु
मौसी घूम कर घूम कर सबके लंड की बराबर आवभगत कर रहीं थीं। उनके गोरे मुलायम छोटे छोटे नाज़ुक हाथ मर्दों के बालों से
भरे भरी चूतड़ों को सहला रहे थे। जब संजू की बारी आते थी तो ऋतु मौसी उसके चिकने मखमली चूतड़ों को औए भी प्यार से
मसल देंतीं।
छहों अपने लंड को बेदारी से ऋतू मौसी के मुंह में धकेलने लगे। ऋतु मौसी की उबकाई की जैसी 'गों गों' की निसहाय गला घोंटू
आवाज़ें हॉल में गूंज उठीं। उनकी भूरी आँखें आंसुओं से भर उठीं।
उनकी लार उनकी थोड़ी से होती हुई उनके फड़कते नाचते उरोज़ों को नहलाने लगी। जितनी ज़ोर से ऋतु मौसी की 'गों गों' होती
जातीं उतनी ज़ोर से ही हर लंड उनका मुँह चोदने लगता। ऋतू मौसी का मनमोहक सीना उनके अपने थूक से सराबोर हो गया।
ऋतु मौसी जो लंड भी उनके मुँह को बेदर्दी से चोद रहा होता उसके चूतड़ों को कस कर दबा कर और भी उसके लंड को अपने
हलक में घोंटने की कोशिश करतीं।
लगातार गला घोंटू चुदाई की वजह से ऋतु मौसी की आँखे बरसने लगीं। उनके आँसूं उनकी सुंदर नासिका में बह चले।
बारी बारी से मुँह चोदने के प्रकिर्या से हर लंड झड़ने से मीलों दूर था।
जितना अधिक ऋतु मौसी सिसकती हुई गों गों करती उतनी और निर्ममता से हर एक लंड उनका गला चोदता।
उनका सुंदर चेहरा उनके आंसुओ, थूक और बहती नाक से मलीन हो गया। मुझे विश्वास था कि हर पुरुष उनके दैव्य सौंदर्य को
मलिन कर और भी सुंदर बना रहा था।
ऋतू मौसी बेदर्दी से होती अपने लिंग चूषण से इतनी उत्तेजित हो गयी कि हर दस मिनट पर वो झड़ने लगीं।
जब उनका रति-स्खलन होता तो उनका सारा शरीर उठता जैसे कि उन्हें तीव्र ज्वर ने जकड़ लिया हो।
उनके आखिरी चरम-आनंद ने उन्हें बहुत शिथिल कर दिया और वो फर्श पर ढलक गयीं।
नम्रता चाची ने मुझे अपने नकली लंड पर ऊपर नीचे होने में मदद कर पूरे घंटे से चोद रहीं थीं। मैं अनगिनत बार झड़ चुकी थी।
मेरी चूत बड़े मामा की बेदर्द और चाची की बेदर्द चुदाई से रिरयाने लगी। उनके छूट में फांसे लंड ने उन्हें भी मेरी तरह बार बार
झाड़ दिया था।
नम्रता चाची ने मेरे दोनों उरोज़ों का लतमर्दन कर उन्हें लाल कर दिया था। मेरे चूचुक तो उनके मसलने और खींचने से सूज गए
थे।
उनके पर्वत से विशाल भारी स्तन मेरे पीठ को रगड़ कर मेरे वासना के उन्माद को हर क्षण बढ़ावा दे रहे थे।
उधर जमुना दीदी ने थकी मांदी मीनू को घोड़ी बना कर उसे पीछे से मर्द की तरह लम्बे ज़ोरदार धक्कों से उसकी गांड की हालत
ख़राब कर रहीं थीं। मीनू ज़ोरों से सिसक रही थी। उसके हिलते शरीर के कम्पन से साफ़ प्रत्यक्ष था कि उसके रति-निष्पत्ति अब एक
लगातार लहर में हो रही थी।
"मीनू रानी तुम्हारी मखमली गांड की चुदाई करते हुए मैं तो न जाने कितनी बार आ चुकीं हूँ। हाय मेरे पास पापाजी जैसा
वास्तविक लंड होता। " जमुना दीदी सिसक कर फिर से झड़ते हुए मीनू की गांड में नकली लंड को लम्बी ज़ोरदार ठोकरों से रेल
के पिस्टन की तरह अंदर बाहर धकेल रहीं थीं।
मीनू की महकभरी की गांड की सुगंध से वातावरण की हवा सुगन्धित हो चली थी।
जमुना दीदी के रबड़ के लंड पर मीनू की गांड का महक भरा रस सन चूका था, "मीनू देख मेरे लंड पर तेरी गांड का रस कैसे
चमक रहा है। जब चुदाई से मैं संतुष हो जाऊंगीं तो मेरे लंड को चाट कर साफ़ करेगी। गांड की चुदाई का प्रशाद चाहिये ना ?"
जमुना दीदी कामोन्माद से जलती हुईं घुटी घुटी आवाज़ से सिसक कर बोल रहीं थीं।
"हाँ दीदी, मैं आपका लंड कर चमका दूंगी। मेरी गांड से निकले आपके लंड को मुझे ज़रूर चुस्वाना।" मीनू बिलबिलाते हुए
सिस्कारियां मार कर अपनी गांड जमुना दीदी के मोटे लंड के ऊपर पटक रही थी।
जमुना दीदी ने अपने रति-निष्पत्ति से सुलगते हुए मीनू के थरकते चूतड़ों पर ज़ोर से तीन चार थप्पड़ तड़ाक से जमा दिए। मीनू
की घुटी चीखों में दर्द थोड़ा कामोन्माद अधिक था।
जमुना दीदी की मीनू की गांड की चुदाई घर के किसी भी पुरुष की चुदाई तुलना में बीस से बहुत दूर नहीं थी।
नानाजी गुर्रा कर बोले, " इस रंडी की की मुंह-चुदाई से तो हम में से एक भी नहीं झड़ा। देखें इसकी चूत कुछ बेहतर हो
शायद ?"
उन्होंने अपनी सुंदर बेटी का गदराया लज्जत भरा शरीर को उठा कर घोड़ी बना सोफे पर टिका दिया। उस ऊंचाई से लम्बे मर्दों
को झुकने की कोई आवश्यकता नहीं थी।
उनका अपनी बेटी पर प्राकृतिक अधिकार था और उन्होंने अपने घोड़े जैसे वृहत ऋतु मौसी के थूक, आंसुओं से सने लंड को
उनकी रति-रस से भरी चूत में तीन षण -पंजर हिला धक्के से धक्कों से मोटी जड़ तक ठूंस दिया। सुरेश चाचा ने उनके मौंग
के आगे बैठ कर अपना लंड ऋतू मौसी के सिसकते हाँफते खुले मुँह में ठूंस दिया। दोनों ने ठीक शुरूआत से ही ऋतू की चुदाई
जानलेवा धक्कों से करनी शुरू कर दी। ऋतु मौसी के हलक से एक बार फिर से घुटने की गों गों आवाज़ें उबलने लगीं।
राज मौसा और बड़े मामा ने ऋतु मौसी के एक एक हिलते मनमोहक स्तनों को मसलना रगड़ना शुरू कर दिया। संजू और
गंगा बाबा ने ऋतु मौसी के नाजुक हाथों को अपने भूखे लंडों को सहलाने के लिए उनके ऊपर रख दिया। ऋतु मौसी का सर
सुरेश चाचा अपने लंड पर दबा रहे थे।
मनोहर नानू ऋतु मौसी के थिरकते चूतड़ों को जकड़ कर अपने लंड से उनकी चूत लतमर्दन निर्मम धक्कों से करने लगे। ऋतु
मौसी वासना की आग में जलती रिरिया रहीं थीं। उनकी सिस्कारियां उनके घुटते गले से और भी मादक हो गयीं।
जैसे ही ऋतू मौसी मचल कर झड़ने लगीं तो सुरेश चाचा और नानू ने अपने लंड निकाल कर बड़े मामा और गंगा बाबा को
चोदने का मौका दिया।
गंगा बाबा ने ऋतु मौसी की चूत हथिया ली। बड़े मामा ने ऋतू मौसी के सुंदर मलिन चेहरे को और भी बेदर्दी से छोड़ना
प्रारम्भ कर दिया।
गंगा बाबा ने अपना लंड जैसे ही ऋतू मौसी का शरीर उनकी रति -निष्पत्ति से कपकपाने लगा भर निकल लिया। राज मौसा ने
अपनी बहन की चूत में अपना लंड दो विध्वंसक धक्कों से ढूंस कर ऋतू मौसी की भीषण चुदाई की लहर को निरंतर कायम
रखा। संजू ने अपनी प्यारी देवी सामान मौसी के मलिन सुबकते चेहरे को उठा कर पहले प्यार से चाट कर साफ़ कर लिया।
ऋतू मौसी के सुंदर नथुने उनकी वासना के अतिरेक से हांफने से फड़क रहे थे। संजू ने अपनी जीभ की नोक से ऋतु मौसी के
दोनों फड़कते नथुनों को चोदने लगा।
ऋतु मौसी की सिस्कारियों में अनुनासिक ध्वनि मिल गयी।
संजू ने कुछ देर बाद अपने मुँह को अपने थूक से भर कर ऋतु मौसी के खुले हाँफते मुँह को भर दिया। मौसी ने सिसक कर
सटकने की कोशिश की पर संजू के बेसब्र लंड ने उनके मुँह एक बार फिर से चोदने के लिए ठूंस दिया।
ऋतु मौसी के कांपते शरीर ने उनके अगले चरम-आनंद की घोषणा कर दी। राज मौसा और संजू ने ऋतु मौसी को कुछ देर तक
और चोदा और फिर उन्हें अनगिनत रति-निष्पत्ति के अतिरेक से शिथिल हो गए मांसल गदराये देवियों जैसे घुमावदार कमनीय
शरीर को चौड़े सोफे पर लुड़कने दिया।
नम्रता चाची ने भी मुझे घोड़ी बना कर पीछे से मेरी चूत छोड़ कर मेरी हालत बहुत ख़राब करदी थी। इस अवस्था में हम चारों ऋतू दीदी का सामूहिक लतमर्दन साफ़-साफ़ देख सकते थे।
हम सब अनेकों बार झड़ कर हांफ रहीं थीं। आखिर कार जमुना दीदी ने लगभग दो घंटों तक मीनू की गांड रौंदने के बाद अपना रबड़ का नकली लंड उसके मुँह में ठूंस दिया। मीनू सुबकते हुए जमुना दीदी के डिल्डो को चूस चाट कर साफ़ करने लगी। उसके चूसने के प्रयास से जमुना दीदी की चूत में घुसा लंड उनकी भी अति-संवेदन योनि को जला देता था। जमुना दीदी सिसक कर मीनू के मुँह को अपने लंड पर और भी ज़ोर से खींच लेतीं।
नम्रता चाची ने अपना लंड निकाल कर मुझे अपने गोद में बिठा कर मेरे ज़ोर से भारी भारी अध्-खुले मुंह को चूम चाट कर गिला कर दिया।
हम सब एक टक आँखें टिका कर छः अतृप्य लंडों की आगे की प्रक्रिया के लिए उत्सुक हो उठे। गहन सम्भोग के परिश्रम और प्रभाव से हम सब पर पसीने से लतपथ थे।
कुछ एक फुसफुसाने के बाद एक बार फिर से पूर्णरूप से सचेत ऋतु मौसी को घेर कर सुरेश चाचा ने अपने छोटी साली को आदेश दिया, "चलिए साली साहिबा। अच्छी रंडी की तरह गांड चाटिये। आप की और आगे की चुदाई इस पर ही निर्भर करती है। "
सारे छहों पुरुष एक सोफे पर अपनी टांगें ऊपर कर तैयार हो गये। ऋतु मौसी ने सिसक कर पहले अपने नन्हे भांजे की गोरी गुलाबी गुदा के छल्ले को अपनी से चाटने लगीं। उन्होंने संजू के चिकने चूतड़ों को और भी खोल कर उसकी मलाशय के तंग संकरे द्वार को चूम कर अपने जीभ से उसे खोलने लगीं।
ऋतु मौसी ने प्यार से दिल लगा कर संजू की गांड के नन्हे संकरे छिद्र को आखिर कायल कर राजी कर लिया और संजू का मलाशय द्वार होले-होले खुल गया। ऋतु मौसी ने गहरी सांस ले कर संजू के गुदा के अंदर की सुगंध से अपनी घ्राण इंद्री को लिया।
उनकी जीभ की नोक सन्जू की गांड में प्रविष्ट हो गयी। संजू की सिसकी ने उसकी प्रसन्नता को उजागर कर दिया। ऋतु मौसी ने अपने प्यारे भांजे की गांड को अपने जीभ से चोदा और उसके गोरे चिकने अंडकोष को भी चूस कर उसे खुश कर दिया।
ऋतु मौसी ने अब गंगा बाबा के बालों से भरे चूतड़ों के बीच अपना मुंह दबा दिया। गंगा बाबा के चूतड़ों की दरार में उनके चोदने की मेहनत के पसीने की सुगंध ने वास्तव में ऋतु मौसी को पागल कर दिया। उन्होंने चटकारे ले कर ज़ोर से सुड़कने की आवाज़ों के साथ गंगा बाबा की गांड की दरार को चूम चाट कर अपने थूक से भिगो कर बिलकुल साफ़ कर दिया। उन्होंने पहली की तरह गंगा बाबा की गांड को प्यार से अपनी जीभ से कुरेद कुरेद कर दिया। उनकी विजयी जीभ की नोक गंगा बाबा के मलाशय की सुरंग में दाखिल हो गयी।
ऋतु मौसी ने गहरी सांस भर कर गंगा बाबा की गांड की मेहक का आनंद लेते हुए उनकी गुदा का अपनी गीली गरम जीभ से मंथन करना प्रारम्भ कर दिया। ऋतु मौसी के कोमल हाथ गंगा बाबा के भारी विशाल से ढके अंडकोषों को सेहला कर उनके गुदा-चूषण के आनंद को और भी परवान चढ़ा रहे थे।
ऋतु मौसी ने गंगा बाबा की गांड का रसास्वादन दिल भर कर किया और उन्हें गुदा-चूषण के आनंद से अभिभूत करने के बाद वो अपने पिता के विशाल चूतड़ों के बीच फड़कती गांड की और अपना ध्यान केंद्रित करने को उत्सुक हो गयीं।
ऋतु मौसी ने अपने पिताजी की आँख झपकाती मलाशय-छिद्र की आवभगत उतने ही प्यार और लगन के साथ की। उन्होंने नानू की गांड की गहराइयों को अपनी जिज्ञासु जिव्ह्या से कुरेद कर उनके मलाशय के तीखे, कसैले मीठे रस का आनंद अविरत अतिलोभी पिपासा से उठाया। ऋतु मौसी ने बारी-बारी से बाकी बची गांड भी लालच भरे प्यार और लालसा से कर सब मर्दों का मन हर लिया
राज भैया बोले, "डैडी इस सस्ती रंडी ने बड़ी लगन से। क्या विचार है आप सबका इसे और चोदे या नहीं ?"
ऋतु मौसी जो अब कामाग्नि से जल रहीं थीं उठीं, "मुझे आपके लंड चाहियें। मुझे अब और नहीं तड़पाइये। "
बड़े मामा ने नानू और गंगा बाबा को उकसाया ,"भाई मैं तो राजू से इत्तफ़ाक़ हूँ। इस रंडी ने और चुदाई का हक़ जीत लिया है। "
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
Update 21
नानू ने वासना के ज्वर से कांपती अपनी बेटी को गोद में उठा लिया। ऋतु मौसी ने अपनी गुदाज़ बाहें पिता के गले के इर्द-गिर्द फैंक कर अपनी जांघों से उनकी कमर जकड़ कर उनसे लिपट गयीं।
राज मौसा ने बिना कोई क्षण खोये, जैसे ही उनके पिता का लंड उनकी बहन की चूत में जड़ तक समा गया, उन्होंने अपने लंड के पिता समान मोटे सुपाड़े को अपनी बहन की गांड के नन्हे छेद पर दबा दिया। नानू ने राज मौसा को अपना सुपाड़ा ऋतु मौसी की गांड में डालने का मौका दिया। फिर दोनों लम्बे ऊंचे मर्दों ने ऋतू मौसी को निरीह चिड़िया की तरह मसल कर ऊंचा उठाया और फिर नीचे अपने वज़न से गिरने दिया।
दो वृहत मोटे लंड एक साथ एक लम्बे जानलेवा ठेल से ऋतू मौसी की और गांड में रेल के इंजन के पिस्टन की ताक़तभरी रफ़्तार से जड़ तक ठुंसगए। दो मोटे लंडों के निर्मम आक्रमण ने ऋतु मौसी को मीठी पीड़ा भरे आनंद से अभिभूत कर दिया।
ऋतु मौसी की ऊंची सिस्कारियां उनकी घुटी-घुटी चीखों में मिलकर वासना के संगीत का वाद यंत्र बजाने लगीं। राज मौसा और मनोहर नाना ने ऋतु मौसी को दो बार झड़ने में लम्बी देर नहीं लगाई। उन्होंने कांपती सिसकती ऋतु मौसी को बड़े मामा और गंगा बाबा के नादीदे उन्नत मोटे लंडों के प्रहार के लिए भेंट कर दिया।
ऋतू मौसी की सिस्कारियां जो उनके रति -निष्पति के आभार से मंद हो उठीं थीं बड़े मामा और गंगा बाबा के मोटे लंडों के उनकी चूत और गांड के ऊपर निर्दयी आक्रमण से फिर चलीं।
दोनों लंड बिजली की रफ़्तार से ऋतू मौसी की गांड और चूत का लतमर्दन करने लगे। ऋतू मौसी का देवी सामान सुंदर चेहरा वासना की अग्नि से लाल हो गया था। उनकी सांस अटक-अटक कर आ रही थी। उनके सिस्कारियां कभी-कभी वासना के अतिरेक से भद्र महिला की शोभा से भिन्न कामुकता की कराहटों से गूँज जाती।
हॉल में हज़ारों साल पुराना सम्भोग नग्न नृत्य के संगीत से गूँज उठा। वासना में लिप्त नारी की सिकारियां और उसके गुदाज़ शरीर के लतमर्दन में व्यस्त पुरुषों की आदिमानव सामान गुरगुराहट हम सबके कानों में मीठे संगीत के स्वर के सामान प्रतीत हो रहे थे।
हम चारों की कामाग्नि भी प्रज्ज्वलित हो गयी थी। नम्रता चाची ने इस बार मुझे घोड़ी की तरह निहार कर पीछे से मेरी तंग रेशमी गांड में अपना लम्बा मोटा नकली रबड़ का लंड दो भीषण धक्कों से ठूंस कर मेरी सिसकियों की अपेक्षा कर मेरी हिलते डोलते उरोज़ों को मसलने लगीं।
जमुना दीदी ने मीनू के नन्हे शरीर को मेरी तरह घोड़ी बना कर उसकी दर्दीली चूत में डिल्डो उसके बिलबिलाने के बावज़ूद पूरा का पूरा ठूंस कर उसे मर्दों की तरह चोदने लगीं।
हम चारों की सिस्कारियां ऋतु मौसी की सिस्कारियों से स्वर मिला कर हॉल में कामोन्माद के संगीत को बलवान चढ़ाने लगीं।
ऋतु मौसी की चुदाई तुकबंदी की रीति से हो रही थी। दो मर्द जब झड़ने के निकट पहुँचते तो उन्हें दो और लंडों को सौंप कर खुद को शांत कर लेते थे। पर ऋतु मौसी के चरम-आनंद अविरत उन्हें समुन्द्र में तैरते वनस्पति के सामान तट पर पटक रहे थे। दो घंटों तक ऋतू मौसी की दोनों सुरंगों की चुदाई की भीषणता देखते ही बनती थी।
नम्रता चाची और जमुना दीदी भी मेरी और मीनू की अविरत ताबड़तोड़ चुदाई करने की साथ-साथ बार-बार झड़ने की थकान से थोड़ी शिथिल हो चलीं थीं। मीनू और मैं तो थक कर फर्श पर ढलक गए।
ऋतु मौसी की साँसें वासना के अतिरेक से क्लांत और घर्षणी हो गयीं थीं। उनका पसीने से भीगा चेहरा और शरीर उनकी मादक सुंदरता को चार नहीं दस चाँद लगा रहा था।
छः 'पुरुषों' की छोटी सी सलाहमंडली के बाद ऋतु मौसी के लतमर्दन का आखिरी अध्याय शुरू हो गया।
राज मौसा ने थकी पर फिर भी वासना से जलती अतोषणीय अतृप्य ऋतु मौसी को पीठ पर लेते अपने पिता के उन्नत उद्दंड विशाल लंड के ऊपर स्थिर कर उनकी चूत को तब तक उनके लंड के ऊपर दबाया जब तक उनके भीतर नाना का पूरा लंड उनकी चूत में नहीं समा गया।
राज मौसा ने अपनी बहन के फूले-फूले गोल नीतिम्बों को उठा कर अपना लंड भी अपने पिता के लंड के साथ लगा कर अपनी बहन की चूत में ठूसने के लिए तैयार हो गए।
"नहीं, भैया नहीं। डैडी और आप दोनों इकट्ठे मेरी चूत में नहीं समा पायेंगें।/आप दोनों के मोटे लंड मेरी चूत फाड़ देंगें। "
ऋतू मौसी अपने भाई और पिता का उद्देश्य समझ कर बिलबिला उठीं। पर उनके पिता ने अपनी विशाल बलहाली बाँहों में अपनी बेटी को जकड कर उनको उनके भाई के लंड के लिए स्थिर कर दिया।
राज मौसा ने निर्मम झटके से अपने सेब जैसे मोटे सुपाड़े को अपनी बहन की पहले से ही मोटे लंड से भरी चूत में किसी न किसी तरह से घुसेड़ दिया।
"नहीं ई ई ई ई ई! हाय रे मैं तो मर गयी, भैया।" ऋतु मौसी दर्द से बिखल उठीं।
"चाहे चीखो और चिल्लाओ पर रंडी की तरह हर तरह से लंड तो तुम्हें लेना ही पड़ेगा," राज मौसा ने दांत कास कर और भी ज़ोर लगाया। उनका विशाल लंड इंच - इंच कर उनकी बहन की चूत में प्रवेश होने लगा। उनकी बहन की चूत पहले ही उनके पिता के विकराल लंड की मूसल जैसी मोटाई के ऊपर अश्लील तरीके से फ़ैली हुई थी।
ऋतु मौसी की सिस्कारियां और चीखें उनके भाई को और भी उत्साहित कर रहीं थीं। जैसे हही राज मौसा ने अपने अमानवियरूप से मोटे लम्बे लंड आखिरी तीन मोटी इंचे एक झटके से अपनी बहन की चूत में दाल दीं वैसे ही ऋतू मौसी पीड़ादायी आनंद और आनंददायी पीड़ा से बिलबिलाती हुई अनर्गल बोलने लगीं ,"डैडी! भैया फाड़ डालो मेरी चूत। मेरे दर्द के कोई परवाह मत करो। मेरे चूत में मेरे भाई और डैडी के लंड इकट्ठे लेने का तो सपना भी नहीं देखा था मैंने। मेरे तो खुल गए। अब चोद डालिये मेरी फटी चूत को। उउउउन्न्न्न आआन्नन्नन्न हहहआआ माँ मेरी ई ई ई ई। "
ऋतु मौसी अपनी चूत के दोहरे-भेदन के दर्द भरे आनन्द के अतिरेक से कसमसा उठीं। धीरे-धीरे नाना और राज मौसा के लंड एक साथ ऋतु मौसी की चूत में अंदर-बाहर होने लगे।
हमारी तो आँखे फट पड़ीं , इस आश्चर्यजनक दृश्य को देख कर। जब हमने दो वृहत लंडों को उनकी चूत को पूरे लम्बाई से चोदते हुए देखा तो हमारा अविश्विश्नीय आश्चर्य भौचक्केपन में बदल गया। स्त्री का लचीलापन,वात्सल्य
, प्रेम और सम्भोग-इच्छा अथाह है। ऋतु मौसी स्त्री की इस शक्ति को सजीवता से चरितार्थ कर रहीं थीं।
बड़े मामा ने अपना लंड सुबकती सिसकती ऋतु मौसी के खुले मुँह में ठूंस दिया। गंगा बाबा और बड़े मामा उनके विशाल थिरकते उरोज़ों को मसलने और मडोड़ने लगे।
संजू ने मौका देख कर निम्बलता दिखाते हुए राज मौसा के सामने ऋतु मौसी के ऊपर घुड़सवार की तरह चढ़ कर अपने गोरे चिकने पर मोटे लम्बे लंड को नीचे मड़ोड़ कर अपने सुपाड़े को ऋतु मौसी की गांड के ऊपर लगा दिया।
यदि बड़े मामा का लंड ऋतु मौसी के मुंह में नहीं ठूंसा होता तो वो ज़रूर चीख कर बिलबिलातीं। संजू ने ज़ोर लगा कर तीन चार धक्कों से अपना लंड अपनी प्यारी मौसी की गांड में धकेल दिया।
अब ऋतु मौसी तिहरे-भेदन के आनंद-दर्द से मचल गयीं।
तीन लंड उनकी चूत और गांड का मंथन तीव्र शक्तिशाली धक्कों से कर रहे थे। बड़े मामा और गंगा बाबा उनके मुंह को मिल जुल कर अपने लंड से भोग रहे थे।
ऋतू मौसी के चुदाई की चोटी और भी उन्नत हो चली।
ऋतु मौसी चरमानन्द की कोई सीमा नहीं थी। उनकी रति-निष्पति अविरत हो रही थी।
पहले की तरह इस बार भी ऋतु मौसी के शरीर का भोग तुक-बंदी [टैग] के अनुरूप ही हो रहा था।
संजू ने अपना मोहक अविकसित अपनी मौसी के मलाशय के रस से लिप्त लंड को उनके मुंह में ठूंस दिया। बड़े मामा और सुरेश चाचा ने ऋतु मौसी की चूत अपने लंडों से भर दी। गंगा बाबा ने अपना विकराल लंड उनकी गांड में ठूंस दिया।
एक बार फिर रस-रंग की महक और संगीत के लहर हाल के वातावरण में समा गयी।
ऋतू मौसी के तिहरे-भेदन की चुदाई के लय बन गयी। जो भी लंड को उनकी मादक मोहक महक से भरी गांड को चोदने का सौभाग्य पता था उसे उनके गरम लार से भरे मुंह का सौभाग्य भी प्राप्त होता। ऋतु मौसी सिसक सुबक रहीं थीं पर वो अपने गांड से निकले गांड के रस से चमकते लंड को नादिदेपन से चूस चाट कर अपने थूक से नहला देतीं।
इधर मीनू आखिर में जमुना दीदी के मर्द को भी शर्माने वाले सम्भोग से थक कर अनेकों बार झाड़ कर लगभग बेहोश हो गयी। जमुना दीदी ने चार पांच अस्थि-पंजर धक्कों से अपने को एक बार फिर झाड़ लिया और मीनू को मुक्त कर दिया। वो परमानन्द से अभिभूत अश्चेत हो गयी।
मैं भी अब बेसुधी के कगार पर थी। नम्रता चाची का नकली लंड मेरी गांड को बुरी तरह से मथने के बाद भी मेरी गांड मार रहा था। नम्रता चाची एक बार फिर से झाड़ गयीं और मैं भी सुबक कर नए ताज़े चरमानन्द के के मादक पर बेसुध करने में शक्षम प्रभाव से निसंकोच सिसकते हुए फ्रेश पर ढलक कर बेहोशी के आगोश में समा गयी। मुझे पता भी नहीं चला कि कब नम्रता चाची ने मेरी गांड में से अपना नकली रबड़ का मोटा लंड निकाल कर उसे प्यार से चाट कर साफ़ करले लगीं।
ऋतू मौसी अब थकी-मांदी फर्श पर अपने नीतिम्बों पर बैठीं थीं। छः मर्द अब अपने आनंद के लिए झड़ने को उत्सुक थे।
संजू ने अपने गरम वीर्य से अपने मौसी के खुले मुंह को नहला दिया। उसकी कमसिन वीर्य की धार ने ऋतु मौसी के मुंह को तो भर ही दिया पर उनके दोनों नथुनों में भी उसका गरम वीर्य भर गया। संजू के वीरू की फौवार उनके माथे पर और आँखों में भी चली गयी।
गंगा बाबा ने ऋतु मौसी का सर पकड़ कर स्थिर कर लिया। उनके बड़े मूत्र-छिद्र से लपक कर निकली वीर्य की बौछार ने ऋतू मौसी के मुंह को जननक्षम मीठे-नमकीन वीर्य से भरने के बाद उनके नथुनो में और भी वीर्य दाल दिया। गंगा बाबा ने ऋतु मौसी की दोनों आँखों को खोल कर उनमे अपना वीर्य का मरहम लगा दिया।
बड़े मामा भी पीछे नहीं रहे। हर बार ऋतु मौसी को मुंह भर गरम वीर्य पीने को मिलता और उनका सुंदर मुंह अब पूरा वीर्य के गाड़े रस से ढका हुआ था।
बड़े मामा की तरह नाना और राज मौसा ने ऋतु मौसी का मुंह, आँखे और नथुने अपने वीर्य से भर दिए।
सुरेश चाचा का गाड़ा वीर्य ने ऋतु मौसी को और भी निहाल कर दिया। उनके फड़कते उरोज़ भी वीर्य से ढक चले थे।
ऋतु मौसी वीर्य के स्नान के आनंद से एक बार फिर झाड़ गयीं।
उन्होंने उंगली से सारा वीर्य इकठ्ठा कर अपने मुंह में भर लिया। ऋतु मौसी ने बड़ी सावधानी से वीर्य की एक बूँद भी बर्बाद नहीं होने दी।
उनके दोनों नथुने वीर्य से भरे हुए थे और उनकी गहरी सांसों से उनके दोनों नथुनों में बुलबुले उठ जाते थे।
ऋतु मौसी अब छः पुरुषों के आखिरी उपहार के लिए मचल रहीं थीं ।
सब मर्दों ने अपने मूत्र की बारिश एक साथ शुरू कर दी। ऋतु मौसी सब तरफ घूम घूम कर गरम नमकीन मूत से अपना मुंह भर लेतीं और जल्दी से उसे सटक कर दुबारा तैयार हो जातीं।
ऋतु मौसी छः पुरुषों के पेशाब के स्नान से सराबोर हो गयीं। उन्होंने अनेकों बार अपना मुंह गरम पेशाब से भर कर उसे लालचीपन से निगल लिया।
ऋतु मौसी इतनी मादक हो गयीं थीं कि गरम मूत्र के स्नान मात्र से ही उनका रति-विसर्जन हो गया।
ऋतु मौसी एक हल्की चीख मर कर निश्चेत बेसुध अवस्था में फर्श पर लुड़क गयीं।
जैसी ही छः गर्व से भरे संतुष्ट पुरुष मदिरा पैन के लिए अगर्सर हुए वैसे ही नम्रता चाची और जमुना दीदी ने लपक कर ऋतु मौसी के शरीर को चाटना शुरू कर दिया।
दोनों बचे-कुचे वीर्य और उनके गरम मूत्र के लिए बेताब थीं।
धीरे धीरे नहा धो कर खाने और लिए इकट्ठे हो गए हो गए। ऋतु मौसी का चेहरा उन्मत्त मतवाली चुदाई और भी निखार आया था। कोइ भी स्त्री ऐसे दीवाने सम्भोग दमक उठेगी। ऋतु मौसी तो वैसे ही इंद्रप्रस्थ सुंदरता से समृद्ध थीं। रात का भोजन बहुत देर तक चला। उदर के नीचे की क्षुधा शांत हो तो उदर की क्षुदा उभर आती है। रात को नम्रता चाची ने संजू और बड़े मामा के साथ हमबिस्तर होने का दिया। जमुना दीदी को मनोहर नानाजी ने अपने लिए जब्त कर लिया। राज मौसा ने मेरे हमबिस्तर होने के लिए मेरा लिया। चाचा ने पहले से ही अपनी बेटी को रात के लिए हथिया लिया था। ऋतु मौसी चाहते हुए भी जानती थी कि उन्हें आराम की आवशयक्ता थी। रात को देर तक चलचित्र देख कर होले होले सब रवाना हो गए। रात की रानी की सुगंध आधे मुस्कराते चद्रमा की चांदनी से मिल कर अदबुध वातावरण बना रही थी। उसमे मिली हल्की धीमी कामक्षुधा की सिस्कारियां रात्रि की माया को परिपूर्ण कर रहीं थी। प्यार और वासना का इतना मोहक और निश्छल मिश्रण बिना किसी ईर्ष्या डाह और संदेह के शायद सिर्फ पारिवारिक प्रेम में ही सम्भव हो सकता है। मैंने इस विचार को थाम कर राज मौसा से कास कर लिपट गयी। उनका उन्नत अतृप्य वृहत लिंग मुझे भोगने के लिए तैयार था।
देर सुबह के बाद सब लोग अपने-अपने गंतव्य स्थान के लिए रवाना होने के लिए तैयार हो गए। "जमुना जब मैं तुमसे अगली बार मिलूं तो तुम्हारा पेट बाहर निलका होना चाहिए। गंगा बाबा आप सुन रहे हैं ना ?" ऋतु मौसी ने नम्रता चाची के बाद फिर से जमुना दीदी और गंगा बाबा को परिवार बढ़ाने के लिए उकसाया। "ऋतु मौसी आप को भी तो ऐसा ही निर्णय लेने की हिचक है। क्या मैं गलत हूँ ?" मैंने उनके सीमा-विहीन अपने भाई के प्यार को व्यस्त होते देख कर कहा। " अरे नेहा बेटी हम सब तो कह कह कर थक गए। आज के ज़माने में शादी शुदा होना कोई ज़रूरी थोड़े ही है। मुझे तो और नाती-पोते चाहियें। ऋतु और राज मान जाएँ तो मुझे दोनों मिल जायेंगें। " मनोहर नाना ने भी टांग लगा दी। सब लोग चारों को घेर कर उन्हें समझाने लगे। आखिरकार जमुना डीड एयर गंगा बाबा ने अपने अगम्यागमनात्मक प्रेम को और भी परवान चढाने के लिए राज़ी हो गए। ऋतु मौसी को राज मौसा ने प्यार से चूम कर उनके निर्णय की घोषणा कर दी। बड़े मामा और मैं भी सबको विदा कर घर के लिए रवाना हो गए।
रास्ते में बड़े मामा ने मुझे बीते दिनों की याद दिला कर चिड़ाया। उन्होंने मेरे कौमार्यभंग [दोनों बार यानी, चूत और गांड ] समय मेरे रोने चीखने के नक़ल उतार कर मेरे सिसकने और 'ज़ोर से चोदिये ' की पुकार की नाटकीय नक़ल कर मुझे शर्म से लाल कर दिया। बड़े मामा ने मेरे शर्म से लाल मुँह को देख कर प्यार से कहा, "शरमाते हुए तो नेहा बेटी आप और भी सुंदर लगते हो। मन करता है यहीं गाड़ी रोक कर आपको को रोंद कर चोद दूं। " मैं तो यही चाह रही थी, "बड़े मामा आप किस चीज़ का इंतज़ार कर रहें हैं? घर पहुँच कर हमें बहुत अवसर तो नहीं मिलेंगे। " मेरे दिल की बात मुंह से निकल ही गयी। बड़े मामा ने अवसर देख कर गाड़ी एक बड़े घने पेड़ों से घिरे घेत में मोड़ दी। हम दोनों बैटन से ही वासना के ज्वर से ग्रस्त हो चले थे।
बड़े मामा ने मुझे गाड़ी के ऊपर झुकस कर कर मेरी सलवार के नाड़े को खोल दिया। बड़े मामा ने ममेरे सफ़ेद मुलायम सूती झाँगिये को नीचे खींच कर मेरे गदराये चूतड़ों को नंगा कर के मेरी गीली चूत में दो उँगलियाँ घुसा दीं। मेरे मुंह से वासना भरी सिसकारी निकल उठी।
बड़े मामा ने बेसब्री से अपना वृहत लोहे के खम्बे जैसे सख्त लंड को मेरी चूत के द्वार के भीतर धकेल दिया।
मैं दर्द और आनंद के मिश्रण से बिलबिला उठी। बड़े मामा ने मेरी कमर को कास कर जकड लिया और तीन जानलेवा धक्कों से अपमा दानवीय लंड मेरी कमसिन चूत में जड़ तक ढूंस दिया।
"हाय बड़े मामा थोड़ा धीरे से चोदिये," पर मैं तब तक समझ चुकी थी कि पुरुष के बेसबरी से चोदने के दर्द में भी बहुत आनंद मिला हुआ था।
बड़े मामा खूंखार धक्कों से मेरी चूत का मरदन एक बार फिर से करने लगे। मेरी दर्द की सिस्कारियां वासना से लिप्त रति-निष्पति की घोषणा करते हुए कराहटों में बदल गयीं।
बड़े मामा का भीमकाय लंड पच-पच की आवाज़ें करता हुआ मेरी रति रस से भरी चूत इंजन के पिस्टन की तरह अंदर-बाहर आ जा रहा था।
मैं कुछ ही क्षणों में फिर से झड़ गयी। अगले घंटे तक न जाने कितनी बार मेरी चूत बड़े मामा के मूसल लंड से चुदते हुए झड़ी। जब बड़े मामा के लंड ने मेरी बिलबिलाती चूत में अपना गाढ़ा जननक्षम से भर दिया।
हम दोनों कुछ देर तक एक दुसरे से लिपटे रहे। मैंने बड़े मामा के लंड को छोस कर उनके वीर्य और अपने योनि के सत्व का रसास्वादन बड़े प्रेम से किया।
बड़े मामा ने मुझे आराम से गाड़ी में बिठा कर फिर से घर की ओर चल दिए।
दो घंटे बाद अगला पड़ाव उसी ढाबे पर था जिस पर हम पहली बार रुके थे।
मैंने फिर से अपना प्रिय खाना मांगा। ढाबे के मालिक ने मुझे पहचान कर खुद उठ कर हमें कहना परोसा , " बिटिया थोड़ी थकी सी लग रही है। यदि आप चाहें तो पीछे के कमरे में आराम कर सकते हैं। हम उन कमरों को थके दूर तक सफ़र करते लोगों के लिए ही इस्तेमाल करते हैं। "
बड़े मामा ने मुस्कराते हुआ कहा , 'बहुत धन्यवाद। आप सही कह रहें हैं। बिटिया को थोड़ा आराम चाहिए। "
ढाबे के मालिक के जाने के बाद बड़े मामा ने मुझे घूरते हुए कहा , "और हमें मालुम हैं कि बिटिया को कैसे आराम दिया जाता है। "
मैं शर्म से लाला हो फाई और फुसफुसा कर बोली , "आप बाहर शरारती हैं बड़े मामा। क्या पता उन कमरों में कितना एकांत और गोपनीयता होगी। "
"यदि ऐसा नहीं होगा तो आपको बिना चीखे चुदना पड़ेगा," बड़े मामा ने मुझे चिड़ाया।
कमरा ढाबे से कुछ दूर था और दालान से घिरा हुआ था। बड़े मामा को पूरे गोपनीयता मिल गयी और मेरी चूत और गांड की खैर नहीं थी. बड़े मामा ने दो घंटों तक मेरी छूट और गांड का बेदर्दी से मरदन किया। मेरी वासनऩयी घुटी चीखें और सिस्कारियों ने उस कमरे को सराबोर कर दिया।
बिचारे ढाबे के मालक को क्या पता कि बड़े मामा ने 'बिचारी बिटिया' को आराम करने के बजाय और भी थका दिया था। पर मुझे बड़े मामा के लंड के सिवाय कुछ और खय्याल भी दिमाग में नहीं आता था।
हम दोनों घर देर शाम से पहुंचे।
रात के खाने पे मेरी बहुत खींचाई हुई। कई बार मेरे दोषी ह्रदय को ऐसा लगा कि सब घर वाले मेरे और बड़े मामा के अगम्यागमन रति-विलास के बारे में जानते थे।
"तो बताइये रवि भैया," बुआ ने मुस्कराते हुए पूछा , "तो आपने मछली फाँस ली या नहीं?"
बड़े मामा ने अपनी अपनी बहु के ओर देखा ,"सुशी, क्या सोचतीं है आप। क्या आपको लगता है हमें अब मझली फांसने की निपुणता नहीं रही ?"
"हमें क्या पता। आप ने ने हमें तो बहुत दिनों से मझली फ़साने की दक्षता नहीं दिखाई। " सुशी बुआ ने हँसते हुए बड़े मामा को चिड़ाया।
मम्मी भी अपनी भाभी से मिल गयीं , "भाभी आपको तो क्या रवि भीआय ने अपनी छोटी बहिन को भी भुला दिया है। "
मैं एक चेहरे से दुसरे चेहरे को देख रही थी।
सुशी बुआ ने मुझे भी नहीं बख्शा , "अब नेहा के छोटे मामा की बारी है शिकार पर जाने की ? नहीं नेहा ? नहीं विक्कू ?"
छोटे मामा हंस दिए , "भाई हम तो तैयार हैं जब नेहा बेटी का मन हो हम शिक्कर की तैयारी कर देंगें। "
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं इस वार्तालाप में स्पर्श रूप से व्यवहार करूं या फिर सब लोगों को बड़े मामा और मेरे रति-विलास के बारे में पता चल गया था। यदि ऐसा भी था तो कम से कम कोई भी नाराज़ नहीं लग रहा था। मैंने निश्चय किया कि जितना कम बोलो उतना ही अच्छा है।
खाने के बाद मुझे बहुत नींद आ रही थी। आखिर के कुछ दिनों और उस दिन के सम्भोग की थकान अब मुझ पर भारी हो चली थी।
नानाजी ने मुझे प्यार से अपनी गोद में बिठा लिया।
ना जाने कब मुझे मेरे परिवार की नोक-झोंक सुनते हुए नींद आ गयी।
जब मैं उठी तो देर रात हो गयी थी और मैं अपने कमरे में थी। मेरे शरीर पर सलवार कुर्ते की जगह मेरा रेशम का की नाइटी थी। मैं सवतः शर्मा गयी। नाना जी ने मेरे वस्त्र भी बदल दिए थे।
मुझे बहुत ज़ोर से प्यास लगी थी। मेरे कमरे के फ्रिज में ठंडा पानी नहीं था। मुझे अखि रसोई के फ्रिज से पानी की बोतल लेने जाना पड़ा।
मैं बोतल लेके मुड़ने वाली ही थी कि पास के परिवार-भवन , जहाँ हम सब खाने के पहले और बाद बैठते थे।
मैं धीरे से दरवाज़े तक गयी। दरवाज़ा पूरा बंद नहीं था और इसी लिए मुझे अंदर की अव्वाजें सुनाई दे रहीं थीं। अंदर बड़े परदे पर अश्लील चलचित्र चल रहा था। दो बहुत जवान लड़कियों को दस पुरुष चोद रहे थे। मेरी आँखे अँधेरे में देखने के लायक हुईं
तो मेरे आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी। सुशी बुआ पूर्णतया नग्न थीं और बड़े मामा और छोटे मामा के वृहत लंडों को मसल रही थीं।
सुशी बुआ ने बड़े पूछा ," बेटी के चूत आराम से मारी न आपने ? मैं तो बेचारी के बारे में सोच सोच कर घबरा थी। "
बड़े मामा ने सुशी बुआ के हिलते विशाल दाहिने उरोज़ को मसल कर बोले, "सुशी, यदि कुंवारी लड़की की चूत सही तरीके से नहीं मारी जाय तो उसकी अपनी पहली चुदाई की खुशी अधूरी रह जाती है। नेहा की कस कर चुदाई हुई और उसने आगे बढ़ कर सबके लंड लिए। "
सुशी बुआ ने गहरी सांस भरी और छोटे चाचा ने पूछा ,"भैया नेहा की गांड की सील भी तोड़ दी है ना आपने ? मैं कई सालों से उसकी फैलती मटकती गांड देख उसे चोदने के सपने देख रहा हूँ। "
"विक्कू, भांजी का पीछे का द्वार पूरा खुल चूका है अब तुम जब चाहे उसे चोद लो," छोटे मामा ने सुशी बुआ की चूची मसल कर उनकी सिसकारी निकाल दी।
"विक्कू, नेहा को चोदते समय मुझे सुन्नी की याद आ रही थी। सुन्नी तो नेहा बेटी से तीन साल छोटी थी, याद है ?" बड़े मामा ने मीथीं यादों में गोते लगाते प्यार से कहा।
सुशी बुआ ने भी भावुक अवायज़ में कहा ,"आप दोनों की बातों ने तो मेरी यादें ताज़ा कर दीं। इस समय ऐसा लग रहा है जैसे बीस साल नहीं कल की बात हो जब मैंने अक्कू के लंड की पहली बार मुठ मारी थी। "
मैं मुश्किल से भौचक्केपन की सिसकारी दबा पायी। अक्कू माने मेरे डैडी अक्षय जो बुआ से छोटे हैं।
सुशी बुआ की बात सुन कर छोटा मामा बोले, "सुशी पूरे कहानी बताओ ना भई। तक बस संक्षिप्त विवरण ही दिया है। "
बड़े मामा ने भी हामीं भरी ,"सुशी देखो पूरी कहानी सम्पूर्ण विस्तृत प्रकार तो सुनाओगी तो विक्कू और हम तुम्हारे दोनों छेदों को तब तक चोदेगें तब तक तुम्हारी चूत या गांड ना फट जाए। "
"अच्छा जी भैया यह तो बहुत ही आकर्षक प्रलोभन है। " सुशी बुआ खिलखिला के हंस दीं।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
19-07-2019, 01:38 PM
(This post was last modified: 19-07-2019, 01:39 PM by thepirate18. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
Update 22
सुशी बुआ के संस्मरण
अक्कू और मैं हमेशा से बहुत करीब थे। मम्मे ने उसकी देखबाल मेरे ऊपर छोड़ दी थी। जबसे अक्कू पैदा हुआ मैं तब दो साल की थी पर मुझे नन्हा सा छोटे-छोटे हाथ-पाँव फैंकता हुआ गुड्डा बिलकुल भा गया। अक्कू तभी से मेरे दिल में हमेशा के के बस गया। मैंने उसे कभी भी अकेला नहीं छोड़ा। मम्मी ने भी मुझे प्रोत्साहित करने के लिए अक्कू की देखबाल मेरे ऊपर छोड़ दी ।
मम्मी मज़ाक में सबसे कहतीं थीं कि अक्कू भले ही मेरी कोख़ से जन्मा हो पर सुशी उसकी माँ है। मैं इस बात को मज़ाक नहीं वास्तविकता समझती थी , इतना प्यार था मुझे अपने छुटके भाई से।
अक्कू और मैं कॉलेज भी इकट्ठे जाते। मैं तब गोल मटोल थी [ "मैं आज भी सूखा कांटा नहीं हूँ," ] और अक्कू बिजली की तेज़ी से बढ़ रहा था।
वो कॉलेज में सबसे लम्बा और बड़ा था और कॉलेज के सब लड़के उससे डरते थे।
मेरी ज़िद पर मम्मी ने मुझे अक्कू को नहलाना सिखाया। अक्कू जब बड़ा हुआ तो उसे मुझसे शर्म आने लगी और उसने खुद नहाना शुरू कर दिया।
मुझे ना जाने क्यों ऐसा लगा कि मुझसे कुछ छिन गया है।
मैं भी और लड़कियों के मुकाबले जल्दी विकसित हो गयी। मुझे में किशोरावस्था के पहली ही शारीरिक इच्छाएं जागने लगीं जो मुझे समझ नहीं आतीं थी।
एक दिन मैं अक्कू के कॉलेज के काम में मदद करने के लिए उसके कमरे गयी।
अक्कू के कॉलेज के कपड़े बिस्तर पे बिखरे पड़े थे। कमरे से लगे हुए स्नानगृह से शॉवर की आवाज़ से मैं समझ गयी कि अक्कू नहा रहा था। मुझ से रुका नहीं गया। मैंने अपने सारे कपडे उतार दिए। तब तक मेरे उरोज़ों की जगह सिर्फ दो भारी चर्बी के उभार थे। मैं हल्के हलके पांवों से स्नानगृह में प्रविष्ट हो गयी।
खुले शॉवर के नीचे अक्कू नंग्न था। उसका कद मुझसे बहुत लम्बा हो चूका था। पर मेरी आँखे उसके गोरे लंड पर जा कर टिक गयीं। अक्कू का लंड मुझे बहुत बड़ा लगा। मैंने तब तक कोई लंड नहीं देखा था फिर भी।
मैं अक्कू से जा कर चिपक गयी ,"अक्कू, तुम मेरे साथ क्यों नहीं नहते हो। मुझे तुम्हारे बिना अच्छा नहीं लगता है। "
अक्कू ने मुझे भी बाँहों में भर लिया ,"दीदी , सॉरी। मुझे एक परेशानी होने लगी थी और उस वजह से आपसे मैं शर्माने लगा। "
"अक्कू, मेरे से शर्म आने का मतलब है कि तुम मुझसे प्यार नहीं करते ?" मैं कुछ रुआंसी हो गयी।
"नहीं दीदी, मैं तो आपके बिना रह नहीं सकता। जब आप मेरे साथ नहाते हो तो मेरा यह अजीब सा हो जाता है ," अक्कू ने अपनी निगाहें से अपने लंड की ओर मेरा ध्यान इंगित किया।
"अक्कू, मुझे पता नहीं कि इसको कैसे ठीक करें पर मैं पता लगाऊंगीं। पर तुम मुझे ऐसे नहीं तरसाया करो। " मैंने बिना सोचे समझे अपने दोनों हाथों से अक्कू के लंड को प्यार से सहलाना शुरू कर दिया।
अक्कू की सिसकारी निकल गयी, "दीदी ऊं दीदी। " वैसी ही जैसे कि जब मैं उसकी खरोंचों पर डेटोल लगती थी ।
मैं घबरा गयी कि मैंने अक्कू को दर्द कर दिया ," सॉरी अक्कू। बहुत दर्द हुआ क्या। मैं तो इसे …… यह मुझे इतना प्यारा लग रहा है मैंने सोचा ……… ओह! अक्कू सॉरी यदि मैंने दर्द ……। "
अक्कू ने घबरा कर मेरे मुंह को चूम लिया और जल्दी से मुझे प्यार से पकड़ते हुआ कहा, "नहीं दीदी मुझे तो बहुत अच्छा लग रहा था। प्लीज़ और करो न। "
अब मेरी हिम्मत खुल गयी मैंने झुक कर दोनों हाथों से अक्कू के लंड को सहलाना शुरू कर दिया। उस समय भी अक्कू का लंड मेरे दोनों नन्हें हाथों में मुश्किल से समा पा रहा था।
अब मैं अक्कू की सिस्कारियों से घबराने की जगह प्रोत्साहित हो रही थी ।
अक्कू ने अपने गोरे चिकने पर भारी और मज़बूत चूतड़ों से मेरे हाथों में अपने लंड को धकेलने लगा। मैं अब उसका लंड और भी तेज़ी से सहलाने लगी। उसका गुलाबी मोटा सा सुपाड़ा [ तब मुझे इस सबका नाम नहीं पता था ] बहुत प्यारा लगा और मैंने उसे दो तीन बार चूम लिया। अक्कू ने ज़ोर से सिसकारी मारी। अब तक मैं समझ गयी थी ऊंची सिसकारी का मतलब था कि अक्कू को और भी अच्छा लग रहा था।
मैंने दोनों हाथो से सहलाते हुए अक्कू के सुपाड़े को लगातार चूमती रही।
अक्कू के मुंह से वैसी की आवाज़ें निकल रहीं थी जैसी एक बार मम्मी के कमरे से मैंने सूनी थीं। जब मैंने मम्मी से डर कर पूछा कि, "डैडी आपको दर्द कर रहे थे," मम्मी ने मुझे प्यार से चूम कर कहा ," नहीं पगली वो तो मुझे प्यार कर रहे थे। "
फिर मम्मी ने मुझे समझाया, "सुशी बेटा जब बड़े लोग, यानी मम्मी डैडी जैसे दो बड़े लोग, प्यार करते हैं तो उन्हें जब बहुत अच्छा लगता है तो उनके मुंह से कई तरह की आवाज़ें निकलती हैं। इसी तरह के प्यार से तो डैडी ने तुम्हें और अक्कू को मेरे पेट में बनाया था। "
यह बात अचानक मुझे समझ आ गयी। मैंने अक्कू के सुपाड़े को औए भी ज़ोर से चूमना शुरू कर दिया। मेरे हाथ और मुंह थोड़ा थकना शुरू हो गये थे पर मैं अपने छोटे भईया के लिए कुछ भी कर सकती थी।
लम्बी देर के बाद अक्कू ने ज़ोर से कहा , "दीदी अब तो और भी अच्छा लग रहा है। दीदी प्लीज़ अब मत रुकियेगा। " मैं तो रुकने की सोच भी नहीं रही थी।
अचानक अक्कू के लंड ने हिचकी जैसे ठड़कने मारी और तीन चार ऐसे ठड़कने के बाद अचानक उसके सुपाड़े से एक सफ़ेद पानी की धार निकल कर मेरे मुंह पैर फ़ैल गयी। मैं चौंक कर थोडा पीछे हो गयी। मुझे लगा कि शायद अक्कू का पेशाब निकल पड़ा। पर मैंने अक्कू को कितनी बार पेशाब कराया था और मुझे उसके लंड से निकलते सफ़ेद धार बिलकुल पेशाब की तरह नहीं लगी। मुझे अक्कू के पेशाब की सुगंध तो बहुत अच्छे से याद थी पर इस धार की सुगंध तो बिलकुल अलग थी।
अक्कू ने लंड से ना जाने कितनी ऐसी धार उछल कर मेरे मुंह, हाथों और छाती पर फ़ैल गयीं।
अक्कू का चेहरा लाल हो गया था और मुहे और भी सुंदर लगने लगा। उसके चेहरे पर इतनी खुशी थी कि मैंने निश्चय कर लिया कि मैं उसे रोज़ नहलाऊंगीं और उसके लंड को इसी तरह सहला कर अक्कू के लंड से दूसरी तरह का पेशाब निकालूंगीं।
"दीदी, आपने कितना अच्छा लगवाया। थैंक यू दीदी ," अक्कू ने प्यार से मुझे चूम लिया।
"अक्कू अब कभी भी दीदी से कुछ नहीं छुपाना। तुम्हारे बिना मुझे बुरा लगता है ," मैंने अक्कू को प्यार से चूमा।
"प्रॉमिस दीदी," अक्कू ने मुझे कस कर भींच लिया। फिर मैंने एक बार फिर, अनेकों बार जैसे, अपने छोटे भाई को ध्यान से नहलाया।
जब मैं अक्कू को सुखा रही थी तो मैंने कहा ," अक्कू मम्मी ने मुझे आखिरी साल बताया था कि जब वो और डैडी एक दुसरे से प्यार करतें हैं तो उनकी भी तुम्हारी तरह आवाज़ निकलती है। आज रात को हम दोनों मम्मी डैडी को प्यार करते हुए देखेंगें। ठीक है ? फिर मैं तुम्हें और भी "अच्छा" लगा सकतीं हूँ। " अक्कू ने हमेशा की तरह दीदी का नेतृत्व स्वीकार कर लिया।
रात के खाने के बाद खाली थे। हम दोनों ने कॉलेज का काम पहले ही ख़त्म कर लिया था।
हम दोनों डैडी-मम्मी के शयन-कक्ष से लगे डैडी के अध्यन-कक्ष [स्टडी] में छुप गए। डैडी के अध्यन-कक्ष की खिड़की से उनका पलंग पूरा साफ दिखता था।
जब हमारी हिम्मत बंधी तो हमने सर उठा कर अंदर झांका।
डैडी और मम्मी पूरे नंगे थे। मम्मी बिस्तर पर खड़ीं थी और डैडी कालीन पर।
डैडी बहुत लम्बे और चौड़े तो हैं हीं पर मम्मी के सामने खड़े हुए और भी विशाल लग रहे थे। डैडी का सीना, पेट , चूतड़, विशाल टांगें और बाज़ू घने बालों से ढकीं थी। मुझे पहली बार डैडी को देख कर मेरे नन्हे नाबालिग शरीर में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गयी। मम्मी बिलकुल नंगी हो कर मुझे और भी सुंदर लग रहीं थीं।
उनके मोटी भारी चूचियाँ इतनी विशाल और भारी थीं कि अपने भार से वो उनके पेट की और ढलक रहीं थीं। पर उस ढलकान से मम्मी की चूचियों ने अक्कू की आँखों को मानों कैद कर लिया।
डैडी अपना मुंह मम्मी के खुले मुंह से लगा कर अपनी जीभ उनके मुंह में धकेल रहे थे। मम्मी के मुंह से हल्की हल्की सिस्कारियां निकल रहीं थीं। मम्मी भी डैडी से लिपट कर उनके मुंह में अपनी जीभ देने लगीं। डैडी ने अपने बड़े हाथों में मम्मी के दोनों चूचियों को भर कर ज़ोर से उन्हें दबाने, मसलने लगे। अक्कू और मुझे लगा कि डैडी, मम्मी को दर्द कर रहें हैं।
पर मम्मी की सिस्कारियां और भी ऊंची हो गयी ,"अंकित, और ज़ोर से दबाओ। मसल डालो इन निगोड़ी चूचियों को." डैडी ने मम्मी के दोनों निप्पल पकड़ कर बेदर्दी से मड़ोड़ दिए और फिर उन्हें खींचने लगे।
" हाय अंकित कितना अच्छा दर्द है। " मम्मी को बहुत अच्छा लग रहा था।
डैडी ने कुछ देर बाद मम्मी का एक निप्पल अपने मुंह में लेकर ज़ोर से चूसने लगे और दुसरे को मसलने और मडोड़ने लगे।
मम्मी ने ज़ोर से चीख कर डैडी का सर अपनी चूचियों पर दबा लिया, "अंकु, और ज़ोर से काटो मेरी चूचियों को , आः ….., माँ …….. कितना दर्द कर रहे हो …….. और दर्द करो आँह … आँह …. आँह …….. अंकु। "
मम्मी डैडी को अंकु सिर्फ प्यार से और घर में ही पुकारतीं थी।
डैडी ने बड़ी देर तक मम्मी के दोनों चूचियों को बारी बारी चूसा, चूमा और कभी सहलाया कभी बेदर्दी से मसला। पर मम्मी को जो भी उन्होंने किया वो बहुत अच्छा लगा।
अक्कू और मैं मंत्रमुग्ध हो कर डैडी मम्मी के प्यार के खेल को एकटक देख रहे थे। मुझे पता था कि मेरा मेधावी छोटा भैया भी हर बात को गौर से देख कर सीख रहा था।
मम्मी ने डैडी को प्यार से चूम कर अपने घुटनों पर पलंग पर बैठ गयीं। मम्मी ने डैडी का बहुत ही भयंकर डरावने रूप वाला लम्बा मोटा लंड अपने दोनों हाथो में सम्हाला। जैसे मैं अक्कू का मोटा लंड नहीं सभाल पाई थी, मेरी तरह मम्मी भी मुश्किल से डैडी के लंड को अपने दोनों हाथों से घेर पा रहीं थीं।
मम्मी ने प्रेम से अपनी जीभ बाहर निकाल कर डैडी के पूरे लंड को चाटने लगीं। डैडी के चेहरे पर हल्की से मुस्कान फ़ैल गयी। उनके चेहरे पर वैसे ही 'अच्छा लगने' लगने वाली अभिव्यक्ति थे जैसे अक्कू के चेहरे पर मैंने देखी थी।
मम्मी ने अपनी उँगलियों से डैडी के लंड की जड़ पर उगे घने घुंघराले बालों सहलाया और उन्हें हलके से खींचा। डैडी ने भी हल्की सी सिसकारी मारी।
"निर्मु मेरे लंड को चूसो अब ," डैडी ने, मुझे लगा कि सख्त आवाज़ में हुक्म दिया। पर मम्मी ने मुसकरा कर अपने मुंह को पूरा खोल लिया। मम्मी ने बड़ी मुश्किल से डैडी का सुपाड़ा अपने मुंह के भीतर छुपा लिया। डैडी की आँखें थोड़ी देर के लिए बंद हो गयीं। उन्हें वास्तव में बहुत अच्छा लग रहा था।
मम्मी ने और भी ज़ोर लगा कर डैडी का थोडा सा और लंड भी अपने मुंह में ले लिया। मम्मी के मुंह से उबकाई की आवाज़ निकल पड़ी। पर अपना मुंह दूर खींचने की जगह मम्मी ने अपने मुंह को डैडी के लंड के ऊपर दबाना शुरू कर दिया।
मम्मी के मुंह से कई बार गोंगों की उल्टी करने जैसी आवाज़ें निकल रहीं थीं। डैडी ने अपने बड़े हाथ से मम्मी के सर को पकड़ कर अपने लंड पे उनका मुंह दबाने लगे। डैडी ने अपने चूतड़ों को हिला कर अपने लंड को मम्मी के मुंह के और भी अंदर डालने की कोशिश करने लगे।
मम्मी का मुंह लाल हो गया था। उनकी आँखों में आंसूं भर गये , शायद उल्टी करने की आवाज़ों की वजह से।
मुझे जब एक बार उल्टी हुई थी तो मेरे भी आंसू निकल पड़े थे।
मम्मी ने अपने नाज़ुक हाथों डैडी के विशाल चूतड़ों पर रख उनके लंड को अपने गिगियाते मुंह के अंदर खींचने लगीं।
लगभग आधे घंटे बाद डैडी ने अपना, मम्मी के थूक और आंसुओं से चमकता, लंड मम्मी के मुंह से लिया। मम्मी गहरी गहरी साँसे लेने लगीं। उनके सुंदर नाक के नथुने उनके हांफने के कारण फड़क रहे थे। जैसे मेरे और अक्कू के हो जाते थे दौड़ने के बाद।
डैडी ने मम्मी को बिस्तर पर घुटनों और हाथों के ऊपर लिटा दिया। उन्होंने मम्मी की मोटी मुलायम झाँगेँ फैला दी थीं।
मम्मी के पेशाब करने वाली जगह पर घने घुंघराले बाल थे। डैडी ने मम्मे के चूतड़ों को अपने हाथों से फैला कर अपने मुंह से उनकी पेशाब करने की जगह को चूमने लगे। अब मम्मी की बारी थी ज़ोर से सिसकारने की।
डैडी ने अपनी अपने जीभ निकल कर मम्मी के पेशाब करने वाली दरार में उसे घुसा दिया। मम्मी तड़प कर चीख उठीं।
इस बार उनकी चीख बहुत ऊंची थी। मैंने कस कर अक्कू का हाथ दबा दिया। मुझे लगा कि डैडी ने मम्मी के पेशाब की जगह को काट लिया था।
"अंकु मेरी चूत ज़ोर से चूसो। आँ….. ओह! ……. अंकु बहुत….. आँ …….काट लो मेरी चूत को अंकु….. ज़ोर से, और ज़ोर से……. ," मम्मी की चीखें वास्तव में आनंद की थीं। उनके पेशाब करने वाली दरार का नाम भी हमें पता चल गया था।
डैडी ने अपनी लम्बी जीभ से ना केवल मम्मी की चूत चाटी पर उनकी टट्टी करने
वाले छेद को भी चाट रहे थे। डैडी को मम्मी का टट्टी करने वाला छेद बिलकुल बुरा नहीं लग रहा था।
"अंकु, ….ओह …. माँ ……। क्या कर रहे आँ………। मैं झड़ने वाली हूँ। मेरी गांड चाटो और चाटो……, प्लीज़…," मम्मी ने चीख कर डैडी से कहा।
डैडी ने अपनी जीभ की नोक मम्मी की गांड के छेद के अंदर दाल दी और उनकी उंगलिया मम्मी की चूत को रगड़ रहीं थी।
डैडी ने तड़पती कांपती मम्मी को कस कर दबोच लिया और उनकी गांड चाटना नहीं रोका , "अंकु…. अब रुक जाओ। मैं झड़ चुकी हूँ। "
पर डैडी नहीं रुके और हम दोनों को बहुत आश्चर्य हुआ जब कुछ ही क्षणों में मम्मी ने 'रुक जाओ' की रट के जगह 'और चाटो' की रट लगा दी। मम्मी ने चार बार चीख कर अपने झड़ने की गुहार लगाई। अब तक मैं और अक्कू समझ गए
जो अक्कू को स्नानगृह में हुआ था , उसे झड़ना कहते हैं।
डैडी ने आखिर कांपती मम्मी को मुक्त कर दिया। उनका डरावना लंड किसी खम्बे की तरह हिल-डुल रहा था। डैडी ने फुफुसा कर मम्मी से कुछ कहा। मम्मी कुछ थकी हुई सी लग रहीं थीं। हमें डैडी और मम्मी के बीच हुए वो वार्तालाप नहीं सुनाई पड़ा।
डैडी ने पास की मेज़ से एक ट्यूब निकाल कर उसमे से सफ़ेद जैली जैसी चीज़ अपने लंड के ऊपर लगा ली और फिर ट्यूब की नोज़ल को मम्मी की गांड के छेद में घुस कर उसे दबा दिया। अक्कू और मैं अब बिलकुल अनभिज्ञ थे कि अंदर क्या हो रहा था।
डैडी ने अपना डरावना लंड मम्मी की गांड के ऊपर रख एक ज़ोर से धक्का दिया। डैडी का बड़े सेब से भी मोटा सूपड़ा एक धक्के में मम्मी की गांड के अंदर घुस गया।
"नहीईईईईन…… अंकु……. धीईईईईईईरे…….। हाय माँ मेरी गांड फट जायेगी…….," मम्मी की दर्द भरी चीख से उनका शयन कक्ष गूँज उठा।
मेरे और अक्कू के पसीने छूट पड़े। डैडी मम्मी को कितना दर्द कर रहे थे पर उनके चीखने पर भी रुकने की जगह डैडी ने एक और धक्का मारा। अक्कू और मेरी फटी हुई आँखों के सामने डैडी का मोटा लंड कुछ और इंच मम्मी की गांड में घुस गया।
मम्मी दर्द से बिलबिला उठीं और फिर से चीखीं पर डैडी बिना रुके धक्के के बाद धक्का मार रहे थे। बहुत धक्कों के बाद डैडी का पूरा लंड मम्मी की गांड में समां गया। मम्मी अब बिलख रहीं थीं। उनकी आँखों में से आंसूं बह रहे थे। उनका पूरा भरा-भरा सुंदर शरीर कांप रहा था दर्द के मारे।
डैडी ने अपने लंड को मम्मी की गांड के और भी भीतर दबा कर मुसराये , "निर्मु, बहुत दर्द हो रहा हो तो बाहर निकाल लूँ अपना लंड आपकी गांड से। "
अक्कू और मेरी हल्की सी राहत की सांस निकल पड़ी। आखिर डैडी को मम्मी पर तरस आ गया।
"खबरदार अंकु जो एक इंच भी बाहर निकाला। तुम्हारा लंड बना ही है मेरी चूत और गांड मारने के लिए। कब मैंने दर्द की वजह से मैंने तुम्हे लंड बाहर निकालने के लिए बोला है ," मम्मे की दर्द भरी आवाज़ में थोडा गुस्सा और बहुत सा उल्लाहना था।
"मैं तो मज़ाक कर रहा था निर्मू। मैं तुम्हारी गांड का सारा माल मथने के बाद ही अपना लंड निकालूँगा ," डैडी ने ज़ोर से मम्मी के भरे पूरे चौड़े चूतड़ पर ज़ोर से अपनी पूरी ताकत से खुले हाथ का थप्पड़ जमा दिया। मम्मी फिर से चीख उठीं।
मम्मी के आंसुओं से भीगे चेहरे पर दर्द के शिकन तो थी पर फिर भी हल्की से मुस्कराहट भी फ़ैल गयी थी , "हाय अंकु तुम कितना दर्द करते हो मुझे। अंकु मेरी गाड़ मरना शुरू करो और मेरे चूतड़ों को मार मार कर लाल कर दो। अंकु आज मुझे चोद-चोद कर बेहोश कर दो। "
मम्मी की गुहार से हम दोनों चौंक गए।
डैडी ने अपना आधे से ज़यादा लंड बाहर निकाला और एक धक्के में बरदर्दी से मम्मी की गांड में पूरा का पूरा अंदर तक घुसा दिया।
मम्मी की चीख इस बार उतनी तेज़ नहीं थी। डैडी ने एक के बाद एक तीन थप्पड़ मम्मी के चूतड़ों पर टिका दिये। इस बार मम्मी ने बस सिसकारी मारी पर चीखीं नहीं।
डैडी ने मम्मी के गांड में अपना लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया।
डैडी कभी अपने पूरा लंड को, सिवाय सुपाड़े के बाहर निकाल कर, उसे निर्ममता से मम्मी के खुली गांड में बेदर्दी से ठूंस थे ।
कभी बस आधे लंड से मम्मी की गांड बहुत तेज़ी और ज़ोर से मारते थे। जब जब डैडी की जांघें मम्मी के चूतड़ों से टकराती थीं तो एक ज़ोर से थप्पड़ की आवाज़ कमरे में गूँज उठती थी। मम्मी का पूरा शरीर हिल उठता था।
मम्मी के विशाल भारी चूचियाँ आगे पीछे हिल रहीं थीं।
डैडी का लंड अब और भी तेज़ी से मम्मी की गांड के अंदर बाहर हो रहा था ,"अंकु और ज़ोर से मेरी गांड चोदो। ऑ…. ऑ…. अन्न…… मेरे गांड मारो अंकु……आन्ह……. और ज़ोर से……..माँ मैं मर गयी………. ," मम्मी की चीखें अब डैडी को प्रोत्साहित कर रहीं थीं।
डैडी के मोटे भारी चूतड़ बहुत तेज़ी से आगे पीछे हो रहे थे। उनके लड़ पर मम्मी की गांड के अंदर की चीज़ फ़ैल गयी थी।
"मैं आने वाली हूँ अंकु…… आंँह……. और ज़ोर से मारो मेरी गांड आँह….. आँह…..आँह…… आँह….. आँह….. ज़ोर से चोद डालो मेरी गांड अंकु…... फाड़ डालो मेरी गांड को…… ," मम्मी का सर पागलों की तरह से हिल रहा था। उनका चेहरा पसीने से नहा उठा। उनके सुंदर लम्बे घुंघराले केश उनके पसीने से लथपत चेहरे और कमर से चिपक गए।
अचानक मम्मी ने लम्बी चीख मारी और उनका सारा शरीर कुछ देर तक बिलकुल बर्फ की तरह जम गया और फिर पहले की तरह काम्पने लगा।
मम्मी एक बार फिर से झड़ रहीं थीं।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
Update 23
डैडी ने मम्मी के रेशमी केशों को इकठ्ठा करके उन्हें अपने बायीं हथेली पे रस्सी की तरह लपेट लिया। डैडी ने फिर बेदर्दी से मम्मी के सुंदर बालों को पीछे खींचा। मम्मी का सर एक चीख के साथ अप्राकृतिक रूप से कमर की तरफ उठ कर मुड़ गया।
मम्मी के चेहरे पर दर्द के रेखाएं बिखरी हुईं थीं।
मम्मी बिलबिला उठीं पर उन्होंने डैडी को पुकारा, "अंकु और मारो मेरी गांड। प्लीज़ चोदो मुझे….., ज़ोर से….. और ज़ोर से………। "
डैडी ने अब और भी ज़ोर से मम्मी की गांड मारनी शुरू कर दी। मम्मी तीन बार और झड़ गयी। डैडी रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
जब मम्मी चौथी बार आ रहीं थीं तब डैडी ने अपना लंड मम्मी की गांड से बाहर निकाल कर उन्हें खिलोने की तरह पूरा घुमा दिया। डैडी ने मम्मे के बालों को खींच कर उनके सुबकते मुंह में अपना लंड घुसा दिया। अक्कू और मैं सोच रहे थे कि मम्मी
डैडी का गन्दा लंड चूसने से मना कर देंगीं और डैडी मान जायेंगें।
पर मम्मी ने लपक कर डैडी का लंड अपने मुंह में ले लिया और उसे सुपाड़े से जड़ तक चूस चूस कर साफ़ कर दिया।
डैडी ने मम्मी के घने बालों को इस्तेमाल करके उन्हें एक झटके से कमर के ऊपर लिटा दिया। डैडी ने हांफती हुई मम्मी की मोटी, भारी सुंदर जांघों को उनके कन्धों तरफ दबा दिया।
मम्मी ने अपनी जांघों के ऊपर अपने हाथ रख कर डैडी की मदद की। डैडी ने अपने बड़े हाथों से मम्मी की गोल
पिण्डिलयों को जकड के उनकी जांघों को पूरा फैला कर चौड़ा कर दिया। डैडी ने अपना लंड एक बार फिर मम्मी की
गांड के छोटे से छेद पर टिका कर मम्मी से पूछा ," ज़ोर से या धीरे धीरे निर्मू ?"
"हाय कैसे तरसाते हो अंकु। घुसा दो न अपने लंड को मेरी तड़पती गांड में ," मम्मी की कांपती हुयी आवाज़ में अजीब सी
याचनाथी।
"फिर न कहना …… ," डैडी ने गुर्रा कर कहा और पूरी ताकत से मम्मी की गांड की तरफ धक्का लगाया। मम्मी की
लम्बी चीख कमरे में गूँज उठी। डैडी का आधा लंड मम्मी की गांड में गायब हो गया। डैडी ने मम्मी की पहली चीख के
रुकने का इंतज़ार किये बिना दूसरा धक्का मारा और उनका डरावना लंड पूरा का पूरा मम्मी की गांड में जड़ तक घुस
गया।
डैडी ने अब जितनी ज़ोरों और तेज़ी से मम्मी की गांड चोदी उसे देख कर अक्कू और मेरा मुंह खुला का खुला रह गया।
मम्मी की गांड से अजीब सी ' फच-फच ' की आवाज़ें निकल रहीं थीं। डैडी के हर धक्के से मम्मी का सारा शरीर सर से
पाँव तक हिल जाता था। उनकी चूचियां डैडी के धक्कों से उनकी छाती पर बड़े पानी भरी गुब्बारों की तरह ऊपर नीचे झूल
रहीं थीं।
डैडी की गुरगुराहट मम्मी की सिस्कारियों से मिल गयीं। डैडी जब गुराहट के साथ पूरे दम से अपना लंड मम्मी की गांड
में घुसाते थे तो मम्मी सिसकने से पहले सुबक उठती थीं।
मम्मी हर कुछ मिनटों बाद झड़ने लगीं, "अंकु चोद डालो मेरी गांड ……ज़ोर से…… अपने लंड से मेरी गांड फाड़ दो।
हाय माँ मैं फिर से झड़ने वाली हूँ। आज तो तुम मेरी जान ही ले लोगे। "
डैडी ने मम्मी की बातों की तरफ कोई भी ध्यान नहीं दिया और बिना थके उनकी गांड मारते रहे। मम्मी न जाने
कितनी बार चीख कर ,सुबक कर , सिसक कर झड़ गयीं थीं।
"अंकु अब मेरी गांड में अपना लंड खोल दो। अब अपने लंड से मेरी गंदी गांड को नहला दो। आँ…… आँ………आँ….
आँ……..आँह…….. ऊँह……….. अंकू… ऊ …ऊ…. ऊ…. ऊ…………. , मैं फिर से आ रही हूँ," मम्मी का मीठा खुशी
का विलाप कमरे में गूँज रहा था।
डैडी ने तीन चार बार पूरे के पूरा लंड सुपाड़े से जड़ तक मम्मी की गांड में ठूंस कर उनके ऊपर गिर पड़े। मम्मी ने अपनी
टांगें डैडी की कमर के ऊपर गिरा दीं। उनकी सुंदर गोल बाँहों ने हाँफते हुए डैडी को प्यार से कस कर जकड़ लिया।
डैडी मम्मी के शरीर पसीने से लथपत हो चुके थे।
मम्मी ने प्यार से डैडी के पसीने से भीगे माथे को चूम लिया जैसे मैं और मम्मी अक्कू के माथे को चूमती थीं।
मम्मी के मुलायम नाज़ुक हाथ हाँफते हुए डैडी के सर के ऊपर प्यार से उनके बालों को सेहला रहे थे। मम्मी भी हांफ रहीं
थीं।
अक्कू और मैंने डैडी और मम्मी को प्यार से लिपटे हुए काफी देर तक देखा और फिर हम दोनों एक दुसरे का हाथ कस
कर पकड़ कर मम्मी और डैडी के शयन-कक्ष से धीरे से बाहर निकले और फिर मेरे कमरे की तरफ हलके पैरों से भागने
लगे।
कमरे में पहुँचते ही अक्कू और मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। कुछ ही क्षणों में हम दोनों पूर्णतया नंग्न थे। मैंने
बिना एक क्षण व्यतीत किये अपने घुटनों पर बैठ कर अपने छोटे भैया का गोरा चिकना सुंदर अपने हाथों में भर कर उसका
सुपाड़ा अपने मुंह में ले लिया। अक्कू का लंड लगभग पूरा खड़ा हो चूका था और जो भी कमी बची थी वो उसके लंड के मेरे
मुंह में जाते ही सम्पूर्ण हो गयी।
अक्कू ने सिस्कारी मारी ," ओह दीदी। मेरा लंड चूसिये। " मुझे अक्कू से मुंह से नए अश्लील शब्द सुन बहुत अच्छा लगा।
मैंने मम्मी की तरह अक्कू का लंड और भी अपने मुंह में लेने का प्रयास किया। पर आधे से भी कम लम्बाई मुंह में लेते ही
अक्कू का लंड मेरे गले में फंसने लगा और मेरी मुंह से ज़ोर से 'गोंगों' की आवाज़ उबल पड़ी।
अक्कू ने अपना लंड मेरे मुंह से अपना लंड बाहर खींचने का प्रयास किया। मैंने उसके भारी चिकने चूतड़ों को हाथों से पकड़
कर रोक लिया।
"अक्कू तुमने देखा था मम्मी को डैडी का लंड मुंह में लेते हुए। तुम मेरे मुंह में वैसे ही अपना लंड डालो। घबराओ नहीं जैसे
मम्मी को डैडी का लंड अच्छा लगा था वैसे ही मुझे भी अच्छा लगेगा। जब तुम झड़ोगे तो पहले मेरे मुंह में झड़ना," मैंने
अक्कू को स्पष्ट कर दिया कि जो ही हमने उस रात सिखा था उसका अच्छे से अभ्यास करने से ही मैं उसके लंड की
देखबाल कर सकती हूँ।
अक्कू ने सर हिला कर अपनी सहमति दिखाई। उसके हाथों ने मेरे सर को कस कर पकड़ लिया जैसे डैडी ने मम्मी के साथ
किया था। फिर अक्कू ने मेरे मुंह को अपने लंड पर दबाया और अपने चूतड़ों के धक्के से अपना लंड मेरे मुंह में आधे से भी
ज़यादा मेरे हलक में ठूंस दिया। मेरे मुंह से ज़ोर से उबकाई जैसी आवाज़ मेरे न चाहते हुए भी निकल गयी मैंने अक्कू के
चूतड़ों पर अपने हाथों से दवाब दाल कर उन्हें और भी अपने समीप खींचने लगी। मेरा स्याना भाई मेरे बात समझ गया।
उसने अपने मोटे लम्बे लड़ से मेरे मुंह की चुदाई शुरू करदी। हमारे कमरे में मेरी 'गोंगों ' की दयनीय आवाज़ें गूंजने लगीं।
मेरा गला दर्द करने लगा पर मैं अक्कू की सिसकारी से और भी उत्तेजित हो रही थी। आंसू मेरी नाक में बहने लगे। मैंने बहुत
सुड़कने की बहुत कोशिस की पैर मेरे आंसू मेरी नासिका से बहने लगे। मेरी लार भी मी मुंह टपक कर मेरी छाती को भिगो
रही थी। इस सब होने के बावज़ूद मुझे मुंह चोदना इतना अच्छा लग रहा था कि मेरी चूत गीली होने लगी। पहले तो मुझे
लगा कि मेरा पेशाब निकलने वाला था ।
अक्कू अब तक अभ्यस्त हो गया और उसने भीषण तेज़ लय बना ली थी। उसका लंड मेरे गोंगों करते गले को निर्मम प्यार
से चोदता रहा। मुझे लगा कि अक्कू ने मेरा मुंह कई घंटों तक चोदा पर शायद एक घंटे की अवधी अधिक सम्भावित है।
अक्कू ने अजीब सी गुर्राहट की आवाज़ निकाली और उसका लंड मेरे मुंह में फट पड़ा। उसके लंड से उबली मीठी ने मेरे मुंह
को भर दिया और मेरे हलक के उबकने के साथ मेरे मुंह और नाक में से बह निकला।
पर उसके बाद मैंने एक बूँद भी बर्बाद होने दी और अक्कू के लंड से निकली अनेक धार को मैं प्यार से सटक गयी। मुझे
अक्कू के झड़ने का स्वाद उसकी महक जितना ही अच्छा लगा।
मैं और अक्कू हांफ थे। अक्कू का चेहरा ठीक डैडी के चेहरे जैसे संतुष्टी से दमक रहा था। हम दोनों पहले अभियान के सफलता
से कि पागलों की तरह एक दुसरे से लिपट कर लगे। अक्कू मुझे इतनी बार चूमा कि मैं और भी खिलखिला कर हंस दी।
अक्कू चेहरा चूम कर अपने थूक से लस दिया। फिर उसने मुझे पलंग पर कमर के बल लिटा कर मेरी टांगें चौड़ा दीं।
अक्कू ने मेरे होंठों को चूसा फिर मेरे खुले मुँह में अपनी जीभ घुसा दी। हमरा वो बड़ों जैसा चुम्बन बहुत ही बेढंगा था पर हमारे
लिए उसमे उतना ही प्यार और उत्तेजना थे जितनी आज है।
अक्कू ने मेरे छाती के उभारों को डैडी के नक़ल करके ज़ोरों से मसलना लगा। मेरी दर्द भरी सिसकारी तो निकली पर मैंने
अक्कू का हाथ अपने हाथ से अपनी छाती पर और भी कस कर दबा लिया।
अक्कू ने मेरे मटर के दानों जैसे छाती की घुन्डियाँ अपनी उंगली और अंगूठे में दबा कर स कर मसल दीं.
" आह अक्कू ऊ आंह ," मेरे मुंह से निकली लम्बी दर्द भरी सिसकारी ने अक्कू की प्रंशसा सी की।
अक्कू ने मेरा निचला होंठ दातों तले दबा कर कसके काट लिया। मेरी हल्की सी चीख निकल गयी पर मेरी मोटी गोल जांघों
के नीचे में मेरी चूत से बहता पानी इकठ्ठा होने लगा।
अक्कू ने मेरे एक घुंडी अपने मुंह में ले ली और दूसरी को बेदर्दी से मसलने लगा। मेरे मम्मी जैसे मुलायम विशाल चूचियाँ तो
नहीं थी पर अक्कू ने मेरी छाती के मोटे उभारों को उतनी हे निर्ममता से मसला जैसे डैडी ने मम्मी के पसुंदर चूचियों को किया
था।
मेरे दर्द भरी सिस्कारियों में एक नया आनंद था ज मैंने कभी भी नहीं महसूस किया था।
'अक्कू, हाय अक्कू और ज़ोर से मसलों अक्कू," मैं बिना सोचे बोल उठी।
अक्कू ने मेरी दोनों घुन्डियाँ और छाती के उभारों को मसलते हुए अपना मुंह मेरी जांघों के बीच में दबा दिया। जैसे ही मेरे छोटे
भाई का मुंह मेरे गुलाबी संकरी दरार पर लगा मैं चिहुंक गयी और मैंने ज़ोर से फुसफुसाया , "अक्कू मेरा अक्कू। "
अक्कू ने अपने जीभ से मेरे चूत की पूरी दरार को चूम कर चाटने लगा। पता नहीं कैसे प्राकर्तिक रूप से मेरी चूत की दरार के
दोनों छोटे से होंठ अलग हो गए और अक्कू की जीभ ने मेरे चूत के अंदर के द्वार को चाटते हुए मेरे पेशाब के छेड़ को ले कर
मेरे चूत के ठेक ऊपर एक और मेरे छाती की घुंडी से भी छोटी घुंडी को अपने जीभ से संवेदन शील कर दिया।
मेरे चूतड़ पलंग से ऊपर उठ गए ," अक्कू यह तो बहुत अच्छा था। एक बार फिर से करो अक्कू। "
अक्कू ने अब बिना रुके मेरे छातियों को मसलते हुए मेरी चूत चटनी शुरू की तो तभी रुका जब मैं अचानक झड़ने लगी।
मेरी सांस मनो मेरे गले में अटक गयी। मेरा गोल मटोल शरीर तन कर कमान हो गया। अक्कू ने मेरे चूतड़ों को बिस्तर में
दबा लिया पर फिर भी मैं हवा में थी।
फिर मेरे नीचे के पेट में तेज़ दर्द उठा जो जल्दी से मेरी चूत में पहुँच गया। उसके बाद तो मानों मेरा पूरा शरीर बुखार से जलने
लगा।
मैं घबरा के चीखी , "अक्कू, मुझे कुछ हो रहा है। अक्कू……. अक्कू…. मेरा अक्कू ऊ.. ऊ… ऊ…. हाआआय….. ," और मैं
पलंग पर वापस शिथिल हो कर ढलक गयी।
अक्कू एक क्षण के लिए भी बिना रुके मेरी चूत चाटता रहा। मेरी चूत में उसके चाटने से एक अजीब सा दर्द हो रहा था।
अक्कू ने मेरी उसे रुक जाने की विनतियां को उनसुना कर दिया। अक्कू ने डैडी से एक रात में बहुत कुछ सीख लिया था।
और वातव में मैं भी मम्मी की तरह कुछ देर में मैं अक्कू को उकसा रही थी ,"अक्कू और ज़ोर से मेरी चूत चूसो। अक्कू अपने
जीभ अंदर डाल दो। "
अक्कू तो मेरी निर्देशों से भी आगे बढ़ गया। अक्कू अब मेरी गांड के छेद से ले कर मेरी पूरी चूत चाट रहा था। अब तक
मैं समझ गयी थी कि अक्कू ने मुझे झाड़ दिया था। मैं खुशी से दूसरी बार झड़ने की प्रतीक्षा करने लगी।
अक्कू की जीभ अब मेरे पूरे शरीर में आग सी लगा रही थी। मैं कुछ मिनटों में ज़ोर से चीख कर फिर से झड़ गयी। अक्कू ने
मेरे हाँफते हुए शरीर को बाँहों में भर लिया।
मैंने अक्कू के होंठों पर अनगिनत प्यार से भरी पुच्चियाँ जमां दीं।
हम दोनों दस पंद्रह मिनट तक अपनी साँसे ठीक होने का इंतज़ार करते एक दुसरे को हलके हलके चूम रहे थे। मैंने अक्कू के उन्नत
खम्बे जैसे खड़े लंड को सहला कर और भे सख्त कर दिया। मुझे अक्कू की रेशम जैसी चिकनी त्वचा का स्पर्श बहुत अच्छा लग रहा
था।
फिर मैंने अक्कू से पूछा ,"अक्कू तुम अब मेरी गांड मारने के लिए तैयार हो ? तुम्हे याद है न कैसे डैडी ने मम्मी की गांड मारी थी ?"
अक्कू ने थोडा डरते हुए कहा ," मम्मी को तो बहुत दर्द हुआ था , सुशी दीदी। " अक्कू मुझे बहुत प्यार करता है और तब वो और मैं
भी प्यार भरे दर्द और दर्द भरे दर्द के बीच के अंतर से अनभिज्ञ थे।
"अक्कू यदि मम्मी डैडी को गांड मारने से मज़ा आता है तो शायद दर्द भी उसके लिए ज़रूरी है। " मैंने छद्म-विज्ञान से उपजी
परिकल्पना का सहारा लिया।
अक्कू ने फिर मुझे कायल कर दिया ,"पर दीदी हमारे पास डैडी वाली ट्यूब कहाँ है ?"
मैंने माथा सिकोड़ कर सोचा। डैडी ने उस ट्यूब को अपना लंड और मम्मी की गांड को गीला करने के लिए इस्तेमाल किया था।
मुझे याद आया कि कितनी बार मम्मी जब अपनी अंगूठी आसानी से उतार नहीं पाती थीं तो वो अपनी उंगली को मुंह में ले कर गीला
कर लेती थीं और फिर उनकी अंगूठी आसानी से निकल आती थी।
मैंने खुश खुश इस समस्या का हल अक्कू को बता दिया।
"अक्कू मैं तेरे लंड को मुंह से गीला कर दूंगी और तू मेरी गांड गीली कर देना बस उस से काम बन चाहिए ," मैं अपने प्यारे भैया के
साथ आज की इकट्ठी की सारी शिक्षा का अभ्यास करने के लिए उतावली थी।
अक्कू ने मुझे मम्मी की तरह घोड़ी की तरह कोहनियों और घुटनों पर पलट दिया। उसने मेरे मुंह में अपना लंड घुसा दिया ,"दीदी,
थूक लगा दीजिये। मैं आपको कम से कम दर्द करना चाहता हूँ। "
मुझे तो मेरा अक्कू ,उसके पैदा होने के बाद से ही, अपनी जान से भी प्यारा है और तब मैं कहाँ से और प्यार लेके आती उसके लिए?
मैंने अक्कू के लंड को अपने थूक से लिसलिसा कर पूरा गीला कर दिया।
अक्कू ने मेरी गांड के छेद को खूब अच्छे से चूसा और अपना थूक मेरी गांड के ऊपर उलेढ़ दिया।
अब मेरी गांड की चुदाई का समय आ गया था। मेरी तीव्र इच्छा के बावज़ूद भी मेरा दिल और भी तेज़ धड़कने लगा और मेरा गला
सूख गया। अक्कू का लंड बहुत ही मोटा है , मेरे दिमाग में से यह ख्याल निकल ही नहीं पाया।
मेरी गांड के नन्हे छेद के ऊपर अक्कू के गरम और गीले मुंह के प्रभाव ने मेरी अविकसित चूत में हलचल मचा दी। मुझे बिना किसी
पहले अनुभव के बिना भी अब अपनी गांड में कुछ अंदर लेने की इच्छा जागृत हो चली थी।
"अक्कू ,अब अपना लंड मेरी गांड में घुसा दो, प्लीज़। वह मुझे बहुत है अब ," मैं अब जल रही थी पर मुझे बाद में पता चलेगा कि वो
कामवासना का ज्वर था।
अक्कू ने हमेश के तरह अपनी दीदी की इच्छा का पालन किया। अक्कू ने अपने मोटे लंड के सुपाड़े को मेरी थूक से सनी गांड के छिद्र
पर कस कर दबाया। मुझे ऐसा लगा कि अक्कू ने अपनी मुट्ठी मेरी गांड पर लगा दी हो। अक्कू ने और भी ज़ोर लगाया। पर मुझे सिर्फ
दर्द होने के अलावा, कुछ और नहीं हुआ।
"अक्कू डैडी ने जैसे ज़ोर से अपना लंड मम्मी की चूत के घुसाया था उसी तरह से प्रयास करो।मेरे दर्द की बिलकुल परवाह नहीं
करना। तुम्हें मेरी कसम है अक्कू भैया," मैंने अपना निचला होंठ दातों से कस कर दबाते हुए कहा।
पर अक्कू का लंड मेरी नन्ही गांड में घुस ही नहीं पा रहा था। अक्कू ने विफलता से कुंठित से हो कर अपना लंड मेरी गांड से
हटा लिया और जब तक मैं कुछ बोल पाती अपने तर्जनी एक झटके में मेरी गांड के अंदर घुसा दी।
मैं बिलबिला कर चीख उठी अक्कू ने मेरे निर्देशानुसार मेरी चीख की उपेक्षा कर दी। मेरी आँखों में आंसू भर गए। मैं अभी अक्कू
के एक उँगली के दर्द से सम्भली भी नहीं कि अक्कू ने अपने मझली उँगली भी तरजनी के साथ मेरी गांड में एक झटके से घुसा दी।
मैं फिर से दर्द के आधिक्य से बिलबिला कर चीख उठी। अक्कू ने बिना मेरे दर्द की परवाह किये मेरी गांड को अपनी दो उँगलियों
से मारने लगा। मेरी गाड़ में दर्द के अलावा उसके छल्ले पर बेहद जलन भी हो रही थी। अक्कू ने अपनी पूरी उंगलियां गांड में ठूंस
दीं। मेरी गांड में दर्द के साथ साथ एक नया संवेदन भी जाग उठा। जब अक्कू की उँगलियाँ मेरी गांड के बहुत भीतर के भाग को
कुरेदती थीं तो मेरे पेट में अजीभ से कुलबुलाहट पैदा हो जाती थी।
मेरा दर्द अब कम होने लगा। मुझे दर्द के बीच में एक नये आनंद की अनुभूति भी होने लगी।
अक्कू ने दस पंद्रह मिनटों तक दो उंगलीओं से मेरी गांड मारी अब मुझे गांड में से अनोखा आनंद आने लगा जिसने दर्द के तूफ़ान
को मंद कर दिया।
"अक्कू अब मुझे समझ आया कि मम्मी गांड मारने का दर्द बर्दाश्त कर रहीं थीं। अक्कू मैं तुम्हारे लंड का अपनी गांड में घुसने
का इंतज़ार नहीं कर सकती ," मैं अब एक दूसरी ही की 'पीड़ा ' से कुलबुला रही थी।
अक्कू ने मेरे हृदय की पुकार सुन ली और अपनी उंगलियां बाहर निकाल कर उन्हें मुंह में भर कर चाट लीं ,"उफ़ अक्कू यह क्या
कर रहे हो ? गंदी उंगलियां क्यों मुंह में डालीं? " मैंने दिखावे के लिए अक्कू को झिड़की दी थी पर मेरा दिल अक्कू की क्रिया से
पुलकित हो गया था।
अक्कू ने मुस्करा कर कहा ," दीदी आपने स्वाद लिया होता तो मुझे नहीं डाँटतीं,"
अक्कू का लंड का वृहत सुपाड़ा एक बार फिर से मेरी गांड के छेद पर दस्तक देने लगा। इस बार अक्कू ने पूरी ताकत लगा कर
एक ज़ोर से झटके जैसा धक्का मारा और मेरी गांड का छेद यकायक खुल गया और मेरे छोटे भैया का सुपाड़ा मेरी गांड को
चीरता हुआ मेरे मलाशय में घुस गया।
"अक्कू मैं माआआअर गयीईईई। ....," मैं असहाय दर्द से बिलबिलाती हुई चीख उठी। मेरी आँखों से तुरंत आंसू बहने लगे। मैंने
फिर भी अक्कू के मज़बूत हाथों से छुड़ने का कोई प्रयास नहीं किया।
अक्कू ने बिना मेरी चीख पर ध्यान दिए एक और भयंकर धक्का मारा और उसका लंड कुछ और मेरी कुंवारी गांड के भीतर
घुस गया। अब मेरी चीखें हमारे कमरे में गूँज रहीं थीं। मैं सुबक सुबक कर रो रही थी पर अक्कू ने एक के बाद एक ताकत भरे
धक्कों से आखिरकार अपना पूरा लंड मेरी गांड में जड़ तक ठूंस दिया।
अक्कू ने मेरी कांपती पीठ को प्यार से सहलाया ," सॉरी दीदी, आपने ही मुझे कहा था पूरा लंड डालने को। "
मैं अक्कू को आश्वासन देना चाहती थी पर दर्द से सुबकते हुए मेरे से कोई शब्द ही नहीं बन पा रहे थे। अक्कू ने पूछा, "दीदी
मैं रुक जाऊं या गांड मारना शुरू कर दूं ?"
बेचारा अक्कू एक तरफ तो अपनी दीदी के रोने से दुखी था और दूसरी तरफ उसे मेरे हुए दिए निर्देश का पालन भी करना था।
मैंने बड़ी मुश्किल से अपना सर हिला कर उसे गांड मारने के लिए प्रोत्साहित किया। अक्कू ने अपना लंड बाहर निकाला और
उसकी घबराहट की सिसकी से मैं भी घबरा गयी। अक्कू को मेरी गांड में लंड घुसाते हुए लंड पर चोट तो नहीं लग गयी.
मैंने सुबकते हुए मुश्किल से फुसफुसा कर पूछा ," अक्कू, तुम्हारा लंड तो ठीक है ?"
"दीदी, आपकी गांड से खून निकल रहा है। मैं क्या करुँ ?" अक्कू की आवाज़ की घबराहट में मेरे लिए प्यार और मेरी
हिफाज़त की फ़िक्र थी।
"अक्कू मम्मी के भी गांड से खून निकला होगा पर डैडी ने तो उसका ज़िक्र भी नहीं किया। तुम मेरी गांड डैडी की तरह मारो।
मम्मी की तरह मेरी गांड भी कुछ देर में ठीक हो जायेगी, " मेरा अक्कू को दिया आश्वासन पर खुद मुझे उतना भरोसा नहीं
था।
अक्कू ने मेरे कांपते चूतड़ों को कस कर पकड़ कर अपना लंड डैडी की नकल करते हुए बेदर्दी से मेरी गांड में एक धक्के के
बाद दुसरे धक्का मारते हुए फिर से जड़ तक ठूंस दिया। मैं चीख उठी और मेरी सुबकियां और भी ज़ोर से कमरे में गूंजने लगीं।
पर इस बार मेरे छोटे भैया ने अच्छे बच्चे की तरह मेरे निर्देशों का पालन करते हुए अपना लंड जल्दी से बाहर निकाल कर पूरी
ताकत से मेरी गांड में वापस घुसा दिया।
अक्कू ने मेरी गांड मारनी शुरू की तो बिना रुके उसने अपने लंड को मेरी तड़पती फटी हुए गांड में अंदर बाहर करने लगा।
मेरी चीखें बहुत देर बाद मद्धिम हो गयी पर मेरे सुबकियां तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं।
अक्कू का लंड मेरी जलती दर्द भरी गांड में तूफ़ान की तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा था। मुझे दर्द से सुबकते हुए भी अपने नन्हे
भाई पर अभिमान आ रहा था कि कितनी जल्दी उसने डैडी की तरह मेरी गांड मारने की कला की दक्षता दिखाने में सफल हो
गया था।
दर्द और पीड़ा से मेरे माथे, ऊपर के होंठ पर पसीना आ गया था।
अक्कू ने मेरी गांड मारने की रफ़्तार को बिलकुल धीमा नहीं होने दिया। मैंने अब सुबकना बंद कर दिया था। मुझे अभी
तक गांड से उस आनंद का आभास नहीं हो रहा था जैसे अक्कू की उँगलियों से होने लगा था। फिर भी मेरी गांड में अब
दर्द बर्दाश्त होने लगा था। मुझे पहले दर्द और फिर अक्कू की आनंद भरी सिस्कारियों ने इतना तल्लीन कर लिया था कि
समय का कोई अंदाज़ ही नहीं रहा। पर मुझे थोडा अंदाज़ा था कि अक्कू मुझे एक घंटे से चोद रहा था।
"दीदी मेरे लंड से पहले की तरह का पानी निकलने वाला है ," अक्कू ने दांत किसकिसा कर कहा।
"अक्कू तुम झड़ने वाले हो। जैसे मम्मे और डैडी झड़े थे, और तुम स्नानगृह में झड़े थे ," मुझे गांड मरवाते हुए भी बड़ी
बहन के छोटे भाई की शिक्षा के उत्तरदायित्व का पूरा ख़याल था।
अक्कू के लंड ने गरम द्रव्य की फ़ुहार मेरी गांड में खोल दी। पहले तो मैंने हर बौछार को गिना पर अक्कू रुकने का नाम
ही नहीं ले रहा था और मैं गिनती भूल गयी।
अक्कू ने हाँफते हुए मुझे अपनी बाँहों में जकड लिया , " दीदी आप भी झड़ गयीं ?"
मैं शुरू के दर्द से आने की स्थिति में नहीं थी पर मुझे न जाने कैसे समझ आ गया था कि अक्कू को यह सुन कर दुख होगा
, "क्या तुम बहाने ढूंढ रहे हो और अपनी बहन की गाड़ न मारने के ? यदि मैं आ गयी तो तुम मेरी गांड मारना बंद कर
दोगे ?"
अक्कू ने मेरी पसीने से भीगी पीठ को प्यार से चूम कर कहा ," दीदी आपकी गांड मारना तो मुझे इतना अच्छा लगा कि
मैं बता ही नहीं सकता। देखए मेरा लंड अभी भी पूरा खड़ा है। यदि आप थकी नहीं हो तो मैं दुबारा गांड मारना शुरू कर दूं ?"
नेकी और पूछ पूछ। मैंने खुशी से लपक कर कहा ," अक्कू तुम मेरी गांड जितनी देर तक और जितनी बार मारना चाहो
मारो। मैं तो चाहूंगी कि तुम रोज़ मेरी गांड मारो और मैं तुम्हारा लंड भी चूसूंगी। "
"दीदी, आप मुझे अपनी चूत और गांड भी चूसने देंगीं ना ?" अक्कू ने जल्दी से आश्वासन मांगा।
"बिलकुल मेरे भोले भैया ," मेरी छोटी से हंसी निकल गयी और एक क्षण बाद ही मेरी चीख। बात करते हुए अक्कू ने अपने लंड निकाल कर मेरी गांड मारने की तैयारी कर ली थी और दो तीन खुन्कार धक्कों से
अपना लंड मेरी गांड में ठूंस दिया।
इस बार मेरी चीख में दर्द के साथ विचित्र सा आनंद भी शामिल था ,"हाय अक्कू तुम्हारा लंड मेरी गांड में जाते हुए बहुत
अच्छा लग रहा है। भैया ज़ोर से अपनी बड़ी बहन की गांड मारो।
अक्कू ने अपनी बहन के निर्देश और निवेदन का अपने पूर्ण शक्ती से प्रतुत्तर दिया। अक्कू ने मेरी गांड का मर्दन भीषण
धक्कों से करना शुरू कर दिया। दर्द और आनंद के मिश्रित लहर मेरे शरीर में बिजली की तरह कौंध गयी। मेरी
सिस्कारियां मध्यम से तीव्र हो गयीं।
"अक्कू मेरे प्यारे भैया मेरी गांड और ज़ोर से मारो। अक्कू अब तो बहुत ही अच्छा लग रहा है, " मैं मम्मी के तरह
कामाग्नि से जल रही थी। हमारे अविकसित शरीर अब शारीरिक प्रेम की भूख से परिचित हो चले थे। थोड़े से ही अनुभव से
हम दोनों बहन-भाई उस भूख को भुजाने की तरतीब भी समझ गए थे।
अक्कू का लंड मेरी गांड में सटासट अंदर बाहर हो रहा था। उसके लंड पर मेरे कुंवारी गांड की पहली चुदाई का खून,
उसका वीर्य और मेरे गांड के रस का मोटा सा लेप चढ़ चूका था। कमरे में मेरी गांड की मनोहर महक फ़ैल गयी थी।
हम दोनों उस सुगंध से और भी उत्तेजित हो गए।
"दीदी, दीदी, मुझे आपकी गांड मारना बहुत अच्छ .......... हुन ," अक्कू ने हचक कर अपना लंड निर्मम प्रहार से मेरी
गांड में जड़ तक डालते हुए कहा।
मेरी चेहरे पर पसीने की बूंदे छा गयी थीं, "मुझे भी तुम्हारा लंड अच्छा लग ….ओ……ओ……..ओ….. ओह …….. अक्कू मैं अब आने वाली हूँ ," अचानक मेरा शरीर मेरे रति निष्पति के द्वार पर खड़ा था।
मैं वासना के ज्वर से प्रताड़ित कांपते हुए चीखी ," अक्कू मेरी गांड फाड़ डालो पर मुझे झाड़ दो। अक्कू मेरे अक्कू मारो मेरी गांड …… आँ….. आँ…….. आँ………आँ……..आँ…….ओऊन्न्ग्ग्ग……..अाॅन्न्ह……..अक्कू ," मैं चीखते हुए झड़ने लगी।
मेरी छोटी से ज़िंदगी में वो सबसे प्रचंड रति-निष्पति थी। उसकी तीव्रता से मेरी सांस मेरे गले में अटक गयी। मेरे पेट में एक अजीब सा दर्द फ़ैल गया। मेरे सारा शरीर अकड़ गया और फिर मानों एक सैलाब मेरे शरीर में बाँध तोड़ कर बाढ़ की तरह सब तरफ फ़ैल गया।
मैं बेबस अपने चरम-आनंद के प्रचंड झोंकों से कांप-कांप कर अपने भाई को दुहाई दे रही थी ," अक्कू मेरे अक्कू मेरे प्यारे अक्कू मुझ और झाड़ो। "
अक्कू को उस कच्ची उम्र में भी मम्मी और डैडी की चुदाई देख कर समझ आ गया था कि अब उसकी बड़े बहन अनर्गल बक रही थी। उसने मेरे पसीने से लथपत कमर को सहला कर और भी ज़ोरों से मेरी गांड की बेदर्द निरंकुश चुदाई बिना थके और धीरे हुए अविरत जारी रखी।
मेरी गांड से अब 'फच-फच ' की आवाज़ें आ थीं। अक्कू का लंड अब बे रोक-टोक मेरी गांड में रेल के इंजन के पिस्टन की तरह सटासट दौड़ रहा था। मेरी साँसे अब हांफने में बदल गयीं थीं।
अक्कू को मेरी ज़ोर से गांड मारने की याचनाएं बेकार लग रहीं होगीं क्योंकी वो अब मेरी गांड उतनी हैवानियत से मार रहा था जितनी डैडी ने मम्मी की गाड़ मारते हुए दिखाई थी।
मैं फिर से आने वाली थी। मेरी सिस्कारियों में मेरे झड़ने की मीठी पीड़ा से सुबकने के मधुर स्वर भी शामिल हो गए ,"अक्कू …… अक्कू …….. अक्कू …….. अक्कू ………. आन्ह…… आन्ह……… अआह……… ओऊन्नन्न्न्न…….. उउउउन्न्न्न्न्न्म्म्म्म्म्म……. , “ मैं बिलबिला के झड़ने लगी।
अक्कू के मेधावी मस्तिष्क ने उसके सारे अनुभवों की विवेचना कर ली थी और अब उसे अपनी बड़ी बहन के निर्देशों की कोई भी आवश्यकता नहीं थी।
अक्कू ने मेरी पसीने से लथपत कमर कके ऊपर झुक कर ममेरी छाती के उभारों को अपनी बड़ी मुट्ठियों में जकड़ लिया। मेरी छाती से उपजे दर्द ने मेरी गांड से उबलते आनंद को और भी परवान चढ़ा दिया। अक्कू ने मेरी घुंडियों को बेदर्दी से मसला,खींचा और मड़ोड़ा। मैंने चीख कर, सुबक कर और सिसकारी मर कर बार बार झाड़ गयी।
इस बार अक्कू ने तो झड़ने का नाम ही नहीं लिया। मैं पांच के बात गिनती गिनना भूल गयी। अक्कू के एक भयंकर धक्के से मेरा रति-निष्पति से शिथिल शरीर पूरा हिल उठे और मैं मुंह के बल पलंग पर गिर गयी। अब मैं मुंह के बल पट लेती थी।
अक्कू ने एक पल के लिए भी अपना लंड मेरी फड़कती गांड में से नहीं निकलने दिया। पट लेटने से मेरी गांड और संकरी हो गयी। अक्कू का लंड मुझे और भी भीमकाय लगने लगा। उसके हाथ मेरी छाती के नीचे दबे हुए थे पर उनसे मेरी घुंडियों की प्रतारणा अविरत होती रही।
मैं बार बार झड़ने की मीठी यातना से थक कर चूर हो चुकी थी , " अक्कू अब तुम झड़ जाओ प्लीज़। मेरी गांड अब बहुत जल रही है। उसे अपने रस से ठंडा कर दो। "
अक्कू अब तलक मेरी गांड एक घंटे से भी ऊपर मार चूका था।
अक्कू ने कसमसा कर मेरी घुंडियों को कस कर निचोड़ दियस औऐर मेरी हल्की चीख और भी ऊंची हो गयी जैसे ही उसका गरम लंड का रस मेरी गांड में बौछारें मारने लगा। मैं बिलबिला उठी आनंद के अतिरेक से। अक्कू की आनंद भरी सिस्कारियों ने मेरे आनंद को को और भी उन्नत कर दिया। सिर्फ इस विचार से कि मेरे छोटे भैया को मेरी गांड मारने से इतना आनंद आ रहा है उससे मेरे आनंद के चरमसीमा अपरिमित असीमित सीमा में बदल गयी।
मैं एक बार फिर से झाड़ गयी पर इस बार मेरा रति-निष्पति ने मुझे लगभग बेहोश कर दिया। मैंने आनंद से अभिभूत हो आँखें बंद कर लीं और अक्कू का गरम लंड का रस मेरी जलती गांड को 'शीतल' करने का प्रयास कर रहा था।
न जाने कितनी देर बाद दोनों हाँफते भाई-बहन फिर दुबारा जीवित संसार के सदस्य बने।
"दीदी, आई लव यू ," अक्कू ने धीरे से फुसफुसा कर मेरे कान की लोलकी [इयर-लोब्यूल] को चूसते हुए फुसफुसाया।
मैं अक्कू के अपनी गांड की चुदाई से इतनी थक चुकी थी कि बस पलंग की चादर में दबे अपने होंठों की मुस्कान से ही अपने प्यार को दर्षा पाई।
दोनों बहन-भाई ना जाने कितनी देर तक एक दुसरे से उलझे ऐसे ही लेते रहे।
"दीदी, क्या अब मैं आपको सीधा लिटा कर आपकी गांड मारूं ?" अक्कू डैडी की सारी क्रियाओं का प्रदर्शन करना चाह रहा था।
मैंने खिलखिला कर हंस दी ," अक्कू , मेरे प्यारे भैया , तुम जब जैसे भी मेरी गांड मार सकते हो। अब यह गांड तो तुम्हारी है
, पर तुम्हारा लंड अब मेरा है। "
अक्कू भी अपनी उम्र के बच्चों की तरह खिलखिला उठा , "दीदी यह अदला बदली तो मुझे स्वीकार है। इस तरह तो मैं आपके गांड जब चाहे मार सकता हूँ। "
मैंने भी हँसते हुए कहा ," मेरे बुद्धू छोटे भैया , यह ही तो मैंने पहले कहा था। "
अक्कू ने मेरा मुंह मोड़ मैंने मेरी फड़कती नासिका को चूम लिया ," दीदी मुझे अब आपकी गांड आपका मुंह देखते हुए मारनी है। "
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
Update 24
अक्कू के शब्दों में एक विचित्र सी परिपक्वता थी और मैंने उस का प्रस्ताव आदर से स्वीकार कर लिया।
अक्कू ने जब अपना लंड मेरी गांड में से निकाला तो मेरी गांड में से ज़ोर का दर्द हुआ और मैं न चाहते हुए भी चीख उठी।
अक्कू ने मेरे हिलने से पहले मेरे चूतड़ों को फैला केर मेरी गांड और चूतड़ों को प्यार से चूम चाट कर साफ़ कर दिया।
मैंने मम्मी की देखा देखी जब मुड़ी तो अक्कू का लंड अपने मुंह में लेकर चूस चाट कर साफ़ करने लगी। अक्कू के लंड पर उसके लंड के रस और मेरी गांड के रस का मिश्रित लेप मेरे मुंह के स्वाद को बहुत भाया।
अब मैं अपने पीठ पर अपने गोल मटोल मोटी टांगें फैला कर अपने छोटे भाई का इंतज़ार करने लगी। अक्कू ने मेरी जांघों को मेरे कन्धों तक पीछे झुका कर मेरे चूतड़ों को पलंग से ऊपर उठा दिया। उसका लंड मानों थकने का नाम ही नहीं ले रहा था। अक्कू ने अपना लंड ने मेरी गांड बिना उसके हाथ की मदद से ढूंड ली। फिर उसने अपना लंड, एक बार अपने सुपाड़े को मेरी गांड में फंसा कर, दो जान लेवा धक्कों से मेरी गांड में ठूंस दिया।
मैं मीठे दर्द से चीख उठी। अक्कू ने मेरी गांड की चुदाई बेदर्दी से शुरू की और तब तक मेरी गांड चोदता रहा जब तक मैं अनगिनत बार झड़ कर बेहोश नहीं हो गयी।
उस रात अक्कू ने मेरी गांड पांच बार और मारी। हम दोनों भाई-बहन देर सुबह तक सोते रहे।
मेरा सारा शरीर दर्द कर रहा था। मेरी छाती के उभार सूज कर लाल हो गए थे। अक्कू ने मेरे मुंह को चूम कर कहा
,"दीदी, मैं आपका सारी ज़िंदगी ख्याल रखूंगा। आई लव यू दीदी,"
अक्कू सुबक कर बोला और मैंने उसके खुले मुंह पर अपने मुंह दबा दिया. हम दोनों एक दुसरे सुबह के बासी मुंह के स्वाद से परिचित होने लगे। मुझे अक्कू के मुंह का स्वाद बहुत ही अच्छा लगा और वो भी मेरे मुंह में अपनी जीभ दाल कर मेरे मुंह के हर कोने को चूस चाट रहा था।
हम दोनों स्नानघृह में तैयार होने के लिए चल दिए। अक्कू ने मुझे पेशाब और पाखाना करते हुए ध्यान से देखा। जब अक्कू पेशाब कर रहा था तो मैंने उसका लंड पानी में घूमाने लगी। अक्कू ने शैतानी से अपने लंड को मेरी ओर मोड़ कर मुझे अपने पेशाब से नहला दिया। कुछ मेरे खुले हँसते हुए मुंह में भर गया और मैंने उसे प्यार से सटक लिया।
"अक्कू तेरा पेशाब तो बहुत मीठा है," मैं हँसते हुए बोली।
"दीदी, आपका तो बहुत ही मीठा है। मुझे भी आपका पेशाब पीना है ," अक्कू ने आग्रह किया।
"पगले, अभी तो मैंने अपना पूरा पेशाब खाली किया है , अब अगली बार मुझे आयेग तो चख लेना " मैंने प्यार से अक्कू को चूमा।
हम दोनों जब तैयार हो कर नीचे नाश्ते के लिए पहुंचे तो तब हमें पता लगा कि हम कितनी देर से नीचे आये थे।
मम्मी डैडी बहुत देर से हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। हम दोनों सर झुका कर सॉरी बोले और नाश्ते पे जुट पड़े। डैडी और मम्मी हमारी भूख देख कर हंस पड़े।
हम दोनों ने रोज़ के हिसाब से बहुत ज़्यादा खाया। हम दोनों का पेट भर कर फ़ैल गया। अक्कू के मुंह से हल्की सी डकार निकल पड़ी। अक्कू ने शर्मा कर सबसे सॉरी कह कर माफी मांगीं। मम्मी ने हँसते हुए अपने लाडले बेटे को ममता भरे प्यार से चूम लिया।
"भाई तुम दोनों का क्या विचार है। बाहर लंच खाना है या फिल्म देखनी है या दोनों करने का ख्याल है ," डैडी ने स्नेह से हमारा शनिवार का प्लान के बारे में पूछा।
अक्कू ने मेरे पैर पर अपना पैर मारा। मैंने कुछ सोच आकर कहा ," डैडी, आज हम दोनों घर पर ही रहेंगें। अक्कू को मुझे बायोलॉजी के कुछ पाठ समझने है। "
मुझे जो जल्दी से समझ आया वो मेरे मुंह से निकल पड़ा। अक्कू मेरे द्विअर्थिय प्रस्ताव से बिना हँसे नहीं रह सका। मैंने ज़ोर से उसकी टांग पर थोकड़ मार दी। उसने सिसकारी मार कर हसना बंद कर दिया।
मम्मी ने मुझे एक नई निगाह से घूर कर देखा और मेरी जान सूख गयी। हम दोनों को डैडी से ज़्यादा मम्मी से डर लगता था।
डैडी ने हँसते हुए कहा ," चलो तो फिर मम्मी और हम भी आलसीपने से फिर से बिस्तर में घुस जाते हैं। "मम्मी की आँखे भी चमक उठीं।
अक्कू और मैं छुपके मम्मी-डैडी के शयन-कक्ष में चोरी से देखते रहे जब तक मम्मी ने नंगे हो कर डैडी के लंड को अपने मुंह में ले कर चूसना नहीं शुरू कर दिया। तब हमें पता था की अब दोनों घंटों के लिए चुदाई में व्यस्त हो जायेंगें।
अक्कू और मैं बिना एक क्षण खोये अपने कपडे उतार कर एक दुसरे से लिपट गए। इस बार कोई भी हिचक और संदेह नहीं था। अक्कू ने मेरे शरीर का नियंत्रण ले लिया। उसने मेरी चूत और गांड चूस कर मुझे चार बार झाड़ने ने के बाद मुझे पलट कर मेरी गांड में अपना लंड घुसा दिया। मेरी चीख ने उसके लंड का स्वागत किया। अक्कू ने घंटे से भी ऊपर मेरी गांड की धज्जियां उड़ाने के और मुझे अनगिनत बार झाड़ने के बाद मेरी गांड में अपने लंड के रस के पिचकारी खोल दी।
मैंने अक्कू के अपने गांड के रस से लिपे लंड को चूस कर दो बार झाड़ा। अक्कू ने भी मेरी चूत और गांड को चूस कर मुझे के बार झाड़ कर मेरी गांड में अपना अतृप्य लंड जड़ तक ठूंस कर विध्वंसक चुदाई प्रारम्भ कर दी। फिर अक्कू ने मेरी गांड की तौबा मचा दी। जब तक अक्कू ने मेरी बेदर्दी से चुदी गांड में अपना लंड खोला तब तक मैं अनगिनत बार झड़ चुकी थी। जब अक्कू मेरी गांड में आया तब तक में होश खो बैठी थी।
अक्कू और मैं भाग कर घुसलख़ाने घुस गए। अक्कू ने चिल्ला कर कहा ,"दीदी इस बार मुझे भी आपका पेशाब से नहाना है। मैं खिलखिला कर हंस दी। अक्कू मेरी टांगों के बेच में बैठ गया और मैंने अपने गरम सुनहरी मूत की धार अक्कू के सर के ऊपर खोल दी। फिर अक्कू ने जो किया उस से मैं चकित रह गयी। अचानक अक्कू ने अपना मुंह खोल कर मेरे मूत्र से भर लिया और उसे मुस्करा कर सटक गया।
मैंने उसे झिड़की सी दी ," अक्कू तू कितने गंदी बात करता है। भला पेशाब भी पीने की चीज़ होती है ," पर मैं वास्तव में अक्कू की क्रिया से रोमांचित हो गयी थी।
मैंने अपनी धार अक्कू के मुंह से दूर कर उसके सीने पर केंद्रित कर दी ," दीदी , आपने अपना पेशाब चखा तो हैं नहीं।
आपको क्या पता की यह कितना स्वादिष्ट है। " अक्कू ने मेरी झिड़की को धराशायी कर दिया।
उसने मेरे चूतड़ों को पकड़ कर मेरे मूत्र की धार को एक बार फिर से अपने खुले मुँह की तरफ मोड़ कर अपना मुंह भर लिया और उसे लाळीचेपन से निगल गया।
मेरे सारे शरीर में रोमांच की सिरहन कौंध गयी ,"अक्कू तुम भी मुझे अपना मूत्र पीने दोगे?" मैं फुसफुसा के बोली।
अक्कू ने अपने मेरे पेशाब से भरे मुंह को हिला कर सहमती दे दी।
अक्कू मेरे सुनहरे गरम पेशाब से पूरा भीग गया था और उसने न जाने कितने बार मुंह भर कर पेरा पेशाब भी पी लिया था। अब मेरी बारी थी। अक्कू के लंड का फायदा मुझे अपनी गांड मरवाने के आलावा उस स्थिति में और भी लाभदायक हुआ।
मैंने अक्कू का लंड का सुपाड़ा अपने खुले मुंह में रख लिया। अक्कू की गर्म सुनहरी मूत्र के धार ने मेरे मुँह को दो क्षणों में भर दिया। मैंने उसे अपने मुंह में हिला कर गटक लिया। अक्कू सही कह रहा था। मुझे अपने छोटे भैया का सुनहरी मूत्र बहुत स्वादिष्ट लगा।
जब तक मैं दुबारा मुंह खोलूं अक्कू ने मुझे मूत्र स्नान करवा दिया। पर मैंने उसके लंड को अपने मुंह में भर कर मन भर अक्कू का मूत्रपान किया।
अक्कू से गांड मरवाने के बाद मुझे अपनी गांड बहुत भरी-भरी लगती थी। मैं जल्दी से कमोड पर बैठ गयी।
अक्कू से गांड मरवाने के बाद मेरी गांड में खलबली मच उठी थी। मुझे अपने मलाशय को खोलते हुए उसमें बहुत जलन और दर्द हुआ और मेरी हल्की सी चीख निकल गयी। पर मैं अक्कू के गंभीर चेहरे की ओर एक तक निहार कर मुस्कुरा दी, उसे आश्वासन देने के लिए।
हम दोनों नहा कर अपने कॉलेज का कार्य खत्म कर टीवी देखने पारिवारिक-भवन में चल दिए। कुछ देर में मम्मी डैडी भी वहां आ गए। मम्मी के चेहरे पर अत्यंत प्यारी थकन झलक रही थी। उस थकन से मम्मी का देवियों जैसा सुंदर चेहरा और भी दमक रहा था। मुझे थोड़ा डर लगा कि अक्कू की चुदाई से क्या मेरा मुंह भी ऐसे ही दमक जाता है और क्या मम्मी को संदेह हो सकता है ?
लेकिन जब तक मैं और फ़िक्र कर पाऊँ डैडी ने मुझे अपनी गोद में खींच कर बिठा लिया और मैं सब कुछ भूल गयी। मम्मी ने प्यार से अक्कू को चूमा और अक्कू हमेशा की तरह मम्मी की गोद में सर रख कर सोफे पर लेट गया। मम्मी ने उसके घने घुंगराले बालों में अपनी कोमल उँगलियाँ से कंघी करने लगीं।
देश-विदेश के समाचार सुन कर डैडी चहक कर बोले ," कौन आज नयी स्टार-वार्स की मूवी देखना चाहता है। "
मैं लपक कर खुशी से चीख उठी ," मैं डैडी मैं और छोटू भैया भी." मुझे अक्कू के बिना तो कुछ भी करना अच्छा नहीं लगता था।
अक्कू ने भी खुश हो कर किलकारी मारी ," डैडी फिर खाना फ़ूड-हट में ?" फ़ूड-हट शहर का सबसे प्रथिष्ठिस्ट भोजनालय था।
मम्मी भी पुलक उठीं ," हम सब बहुत दिनों से फ़ूड-हट नहीं गयें हैं। "
डैडी ने मुझे प्यार से चूम कर कहा ,"चलिए मेरी राजकुमारी साहिबा अपने छोटे भाई को तैयार कर जल्दी से खुद तैयार हो जाइए। "
अक्कू छुटपन से ही मेरी ज़िम्मेदारी बन गया था। उस के बिना मैं तड़प उठती थी।
मम्मी ने हमारी भागती हुई पीठ से पूछा ," आप दोनों का कॉलेज का काम तो पूरा हो गया ना ?"
हम दोनों ने चिल्ला कर कहा , "हाँ मम्मी। " और हम दोनों अपने कमरे की ओर दौड़ पड़े।
हमें डैडी और मम्मी के साथ और बाहर खाना खाना बहुत ही प्रिय था। ड्राइवर के साथ नई फिल्म देखने में बहुत मज़ा नहीं आता जितना मम्मी-पापा के साथ आता था। हम घर देर से शाम पहुंचे। मम्मी डैडी के लिए स्कॉच लाने के लिए उठीं तो उन्हें रोक कर कर खुद डैडी का पसंदीदा स्कॉच का गिलास ले आयी, उसमे सिर्फ दो बर्फ के क्यूब्स थे जैसा डैडी को पसंद है ।
डैडी ने मुझे प्यार से अपनी गोद में बिठा कर मेरी इतनी प्रशंसा की मानो मुझे नोबेल प्राइज़ मिल गया हो। मम्मी ने मेरे गर्व के गुब्बारे को पिचका दिया ,"अजी अपनी प्यारे बेटी से पूछिए की मम्मी की ड्रिंक कहाँ है ?"
मेरे मुंह से "ओह ओ !", निकल गयी और मैंने हँसते हुए प्यार भरी माफी माँगी , " सॉरी मम्मी। "
पर तब तक अक्कू दौड़ कर मम्मी का ड्रिंक बना लाया। बेलीज़ एक बर्फ के क्यूब के साथ, मम्मी के एक हल्का का घूँट भर कर अक्कू की प्रशंसा के पुल बांध दिए।
हम परिवार के शाम के अलसाये सानिध्य में थोड़ा कटाक्ष,थोड़ा मज़ाक, पर बहुत प्यार संग्रहित होता है।
मम्मी ने रात के खाने के लिए तैयार होने को हमें कमरे में भेज दिया।
अक्कू ने मुझे लपक कर दबोच लिया और हमारे खुले मुंह एक दुसरे के मुंह से चिपक गए। अक्कू के हाथ मेरे गोल मटोल मुलायम चूतड़ों को मसल रहे थे।
मेरे कमसिन अविकसित चूत भीग गयी। मेरी गांड का छेद भी फड़कने लगा ," अक्कू हमें देर हो जाएगी। थोड़ा सब्र करो। " हालांकि मेरा मन भी अक्कू ले लंड को पहले चूस कर अपनी गांड में घुसाने का हो रहा था पर मैं उस से बड़ी थी और उसके उत्साह को नियंत्रित करने की ज़िम्मेदारी मेरे थी।
अक्कू ने मुझे और भी ज़ोर से जकड़ लिया ,"अक्कू देखो डैडी और मम्मी कितने संयम से बैठे थे। क्या उनका मन नहीं करता की एक दुसरे के कपडे फाड़ कर डैडी मम्मी की गांड मारने लगे। " मेरा ब्रह्म-बाण काम कर गया।
खाने के बाद सारे परिवार ने मम्मी के चहेते धारावाहिक कार्यक्रम देखे और फिर सोने का समय हो गया। हम दोनों ने डैडी और मम्मी को शुभ-रात्रि चूम कर कमरे की ओर दौड़ पड़े।
मम्मी का " अरे आराम से जाओ, गिर कर चोट लगा लोगे " चिल्लाना हमेशा की तरह हमारे बेहरे कानों के ऊपर विफल हो गया।
मैं अक्कू को बिलकुल रोकना नहीं चाह रही थी। अक्कू ने मेरी छाती के उभारों को निर्ममता से मसल कर दर्दीला और लाल कर दीया। मैंने उसका लंड चूस कर एक बार उसका मीठा रस पी गयी। अक्कू ने मेरी चूत और गांड चाट, चूस कर मुझे अनेकों बार झाड़ दिया और फिर अक्कू ने मेरी गांड फाड़ने वाली चुदाई शुरू की तो देर रात तक मुझे चोदता रहा जब तक में निढाल हो कर पलंग पर लुढक न गयी।
तब से अक्कू अरे मेरे कुछ नियम से बन गए। हम कॉलेज से आने के जल्दी से नाश्ता खा कर कमरे में जा कर पहले एक दुसरे को झाड़ कर कॉलेज का काम ख़त्म करते थे। फिर अक्कू मेरी गांड मारता था उसके बाद हम एक दुसरे के मूत्र से खेलते थे और हमें एक दुसरे का मूत्र और भी स्वादिष्ट लगने लगा। अक्कू को कॉलेज में भी मेरी आवशयक्ता पड़ने लगी। मैं मौका देख कर उसका लंड चूस कर उसे शांत कर देती थी।
मेरे किशोरावस्था में कदम रखने के कुछ महीनों में ही जैसे जादू से मेरे स्तनों का विकास रातोंरात हो गया। अब मेरी छाती पर उलटे बड़े कटोरों के समान , अक्कू को बहुत प्यारे लगने वाले, दो उरोज़ों का आगमन ने हमारी अगम्यागमन समागम को और भी रोमांचित बना दिया। अब अक्कू कई बार मेरे उरोज़ों को मसल, और चूस को सहला कर मुझे झाड़ने में सक्षम हो गया था।
अक्कू भी ताड़ के पेड़ की तरह लम्बा हो रहा था मुझे उसका लंड बड़ी तेज़ी से और भी लम्बा और मोटा होने का आभास निरंतर होने लगा था।
एक शुक्रवार के दिन अक्कू को सारा दिन कॉलेज में मेरी ज़रुरत थी पर हमें एकांत स्थल ही नहीं मिला। उस दिन हमनें अपना कॉलेज का काम उसी दिन ख़त्म करने की कोई आवशयकता नहीं थी। मुझे अपने छोटे भैया के भूखे सख्त वृहत लंड के ऊपर बहुत तरस आ रहा था।
अक्कू और मैं जब अपनी रोज़ की रति-क्रिया में सलंग्न हो गए तो उस दिन हम दोनों ने पागलों के तरह संतुष्ट न होने का मानो संकल्प कर लिया था। हमें समय का ध्यान ही नहीं रहा। अक्कू मेरी तीसरी बार गांड मार रहा था। उसके बड़े हाथ मेरे उरोज़ों को बेदर्दी से मसल रहे थे। उसका मोटा लम्बा लंड निर्मम प्रहारों मेरी गांड का लतमर्दन कर रहा था। मेरी हल्की चीखें, ऊंची सिस्कारियां कमरे में गूँज रहीं थीं।
हमें मम्मी की खाने के लिए आने की पुकारें सुनाई नहीं दीं।
मैं ज़ोरों से अक्कू से विनती कर रही थी , "अक्कू और ज़ोर से मेरी गांड मारो। अक्कू मेरी गांड फाड़ दो जैसे डैडी मम्मी की गांड फाड़ते हैं। "
अक्कू ने भी ज़ोर से घुरघुरा कर बोला, "दीदी मेरा लंड तो हमेशा आपकी गांड में घुसा रहना चाहता है। " अक्कू ने मेरे दोनों कंचों जैसे चूचुकों को उमेठ कर मेरी चीख को और भी परवान चढ़ा दिया।
उस समय यदि भूताल भी आ जाता तो भी अक्कू और मुझे पता नहीं चलता। पर एक शांत स्थिर आवाज़ हम दोनों के वासना से ग्रस्त मस्तिष्कों
की मोटी तह को छेद कर प्रविष्ट हो गयी , "अक्कू और सुशी, जब तुम दोनों फारिग हो जाओ तो डैडी और मुझे तुम दोनों से आवश्यक बात करनी है। "
मम्मी के शांत स्वरों को सुन कर अक्कू मुझे से इतनी जल्दी लपक कर दूर हुआ मानो की उसे किसी ने बिजली का झटका लगा दिया हो।
उसका मोटे सुपाड़े ने मेरी गांड के तंग छेद को रबड़ बैंड के तरह तरेड़ दिया और मेरे रोकते हुए भी मेरी चीख निकल गयी।
मम्मी डैडी शांति से हमें देख रहे थे। अक्कू और मेरे तो प्राण निकल गए।
डैडी ने शांत स्वाभाव से कहा ,"पहले तो मम्मी और मैं तुम दोनों से क्षमाप्रार्थी हैं की तुम दोनों के बंद कमरे में में हम बिना तुम्हारी आज्ञा के प्रवेश हो गए। पर मम्मी बहुत देर से तुम दोनों को पुकार रहीं थीं। जब हम दोनों दरवाज़ा खटखटा ही रहे थी की सुशी की उम …
कैसे कहूँ ....... सुशी के चीख सुन कर हमसे रुका नहीं गया … और … " डैडी का सुंदर मुंह शर्म से लाल हो चूका था और मुझे डैडी और भी सुंदर लगे। मैं किसी और समय लपक कर उनसे लिपट काट चूम लेती पर उस दिन तो मेरा हलक रेत की तरह सूखा हो गया था।
"हमें यह तो पता है की तुम क्या कर रहे थे। पर शायद तुम दोनों हमें कुछ समझा सको की यह सब कब से .... कैसे ," मम्मी भी डैडी की तरह अवाक अवस्था में शर्म से लाल और शब्द विहीन हो गयीं।
अक्कू ने उस दिन मुझे अपनी समझदारी से कायल कर दिया ,"मम्मी यह सब मेरे दीदी के प्यार के वजह से मेरे शरीर में हुए प्रभावों से शुरू हुआ। मैं गलती से दीदी को दूर करना शुरू कर दिया। दीदी के एरी तरफ प्यार इतना प्रबल था की उन्होंने मेरे लिए मेरे लं
…… सॉरी पीनिस को सहलाना…., " अक्कू भी घबरा और शर्मा रहा था।
"मम्मी मैं बड़ी हूँ और सारी ज़िम्मेदारीमेरी है। मैं अक्कू को अपना प्यार पूरी तरह से देना चाहती हूँ। और मुझसे उसके शरीर में मेरी वजह से होते बदलाव की वजह से अपने से दूर नहीं जाने दे सकती। और फिर मैंने सोचा की आपको और डैडी को देख कर मैं शायद अक्कू की देखभाल और भी अच्छे से कर सकूँ और फिर जो हम दोनों ने आपको देख कर सीखा उस से अक्कू और मैं बहुत खुश हैं।
क्या हमें यह नहीं करना चाहिए था ?" मेरा सूखा गला मुश्किल से इतना कुछ बोल पाया।
मम्मी और डैडी ने एक दुसरे को देर तक एक तक देखा। मम्मी ने हमेशा की तरह शीघ्र ही गलतियों के ऊपर फैसला अपने दिमाग में बैठा लिया था। मैं अब परेशान थी की मम्मी हमें क्यासज़ा देंगी?
"तो तुम दोनों चोरी से हमारी एकान्तता का उल्लंघन भी कर रहे हो ," मम्मी के शांत स्वर चिल्लाने और गुस्से से भी ज़्यादा डराते थे।
अक्कू ने जल्दी से कहा ,"मम्मी सिर्फ एक बार। उस रात के बाद हमने कभी भी वैसा नहीं ……बस उस दिन," अक्कू भी डर से बहुत विचलित था।
मम्मी ने धीरे से पूछा ,"सुशी क्या अक्कू तुम्हारी सिर्फ गांड मरता है ?"
मम्मी से मुंह से निकले उन शब्दों में से मानों मम्मी की शिष्टता से उनकी अश्लीलता गायब हो गयी।
"मम्मी उसके अलावा मैं उसके लं लं लंड को चूसती हूँ और अक्कू भी मेरी चू ….. चू ….चु ….. चूत चूसता है ," मैंने हकला कर जवाब दिया।
"इसका मतलब है की अक्कू ने तुम्हारी अब तक चूत नहीं मारी?" मम्मी ने बिना स्वर ऊंचा किये मुझसे पूछा।
अक्कू और मेरे चेहरे पर अनभिग्यता का भौंचक्कापन साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा होगा।
मैंने धीरे से हकलाते हुआ कहा ," मुझे पता ही था की अक्कू से अपनी चूत भी मरवा सकती थी। डैडी ने उस दिन सिर्फ आपकी गांड ही मारी थी। "
मम्मी ने अपना मुंह नीचे कर उसे अपने सुडौल हांथों में छुपा लिया। डैडी के शर्म से लाल चेहरे पर एक अजीब सी तिरछी मुस्कान का आभास सा होने लगा।
मम्मी का शरीर काम्पने लगा मानों वो रोने लगीं हों। मैं और अक्कू दौड़ कर मम्मी से लिपट गए ," सॉरी मम्मी। सॉरी। "
ममी ने अपने सुंदर हँसते मुंह से दोनों के सिरों को चूमा ,"अरे पागलो तुम दोनों ने डैडी और मुझसे क्यों नहीं बात की ?"
"सॉरी, हमें पता नहीं यह क्यों नहीं ध्यान आया ," वास्तव में डैडी और मम्मी हमारे किसी भी सवाल को नज़रअंदाज़ नहीं करते थे।
"अंकु, इन दोनों को तो अभी बहुत कुछ सीखना है ," मम्मी ने डैडी से हमें अपने से लिपटाते हुए कहा ,"क्या तुम दोनों डैडी और मुझसे सब कुछ सीखना चाहते हो। हम तुम दोनों को रोक तो नहीं सकते पर एक दुसरे के शरीर को और अच्छी तरह से उपभोग करने में सहायता ज़रूर दे सकतें हैं। "
अक्कू और मैं बच्चों की तरह खुशी से चीखने उछलने लगे।
डैडी ने नाटकीय अंदाज़ से अप्पने दोनों कानों को अपने हाथों से ढक लिया।
"अच्छा अब शांत हो जाओ। चलो पहले खाना खाने आ जाओ फिर हम सब इकट्ठे निर्णय लेंगें," डैडी ने हम दोनों के बालों को सहलाया।
अक्कू ने जल्दी से अपनी निक्कर ढूडनी शुरू कर दी। मम्मे ने उसे रोक कर कहा ,"अक्कू क्या तुम अपनी बड़ी बहन के आनंद को अधूरा ही छोड़ दोगे ? डैडी और मैं कुछ देर और प्रतीक्षा कर सकते हैं। तूम पहले अपनी दीदी को अच्छे से संतुष्ट करो," मम्मी के चेहरे पर एक रहस्मयी मुस्कान थी। मम्मी का दैव्य रूप किसी को भी चकाचौंध कर सकने में सक्षम था।
अक्कू और मैं जब अकेले हुए तो कई क्षण किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिर खड़े रहे फिर अचानक एक दुसरे से लिपट कर पागलों की तरह एक दुसरे को चूमने लगे।
मैंने अक्कू के तेज़ी से खड़े होते लंड को सहलाना शुरू कर दिया। अक्कू मुझे पलंग पर पेट के बल लिटा कर बेदर्दी से मेरे गांड में अपना लंड ठूंसने लगा। मेरी चीखें उसे और भी उकसाने लगीं। अक्कू ने उस शाम मेरी गांड की हालत ख़राब कर दी। डैडी और मम्मी को एक घंटे से भी ज़्यादा इंतज़ार करना पड़ा।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
19-07-2019, 02:21 PM
(This post was last modified: 19-07-2019, 02:24 PM by thepirate18. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
Update 25
हम दोनों नहा कर अपने कॉलेज का कार्य खत्म कर टीवी देखने पारिवारिक-भवन में चल दिए। कुछ देर में मम्मी डैडी भी वहां आ गए। मम्मी के चेहरे पर अत्यंत प्यारी थकन झलक रही थी। उस थकन से मम्मी का देवियों जैसा सुंदर चेहरा और भी दमक रहा था। मुझे थोड़ा डर लगा कि अक्कू की चुदाई से क्या मेरा मुंह भी ऐसे ही दमक जाता है और क्या मम्मी को संदेह हो सकता है ?
लेकिन जब तक मैं और फ़िक्र कर पाऊँ डैडी ने मुझे अपनी गोद में खींच कर बिठा लिया और मैं सब कुछ भूल गयी। मम्मी ने प्यार से अक्कू को चूमा और अक्कू हमेशा की तरह मम्मी की गोद में सर रख कर सोफे पर लेट गया। मम्मी ने उसके घने घुंगराले बालों में अपनी कोमल उँगलियाँ से कंघी करने लगीं।
देश-विदेश के समाचार सुन कर डैडी चहक कर बोले ," कौन आज नयी स्टार-वार्स की मूवी देखना चाहता है। "
मैं लपक कर खुशी से चीख उठी ," मैं डैडी मैं और छोटू भैया भी." मुझे अक्कू के बिना तो कुछ भी करना अच्छा नहीं लगता था।
अक्कू ने भी खुश हो कर किलकारी मारी ," डैडी फिर खाना फ़ूड-हट में ?" फ़ूड-हट शहर का सबसे प्रथिष्ठिस्ट भोजनालय था।
मम्मी भी पुलक उठीं ," हम सब बहुत दिनों से फ़ूड-हट नहीं गयें हैं। "
डैडी ने मुझे प्यार से चूम कर कहा ,"चलिए मेरी राजकुमारी साहिबा अपने छोटे भाई को तैयार कर जल्दी से खुद तैयार हो जाइए। "
अक्कू छुटपन से ही मेरी ज़िम्मेदारी बन गया था। उस के बिना मैं तड़प उठती थी।
मम्मी ने हमारी भागती हुई पीठ से पूछा ," आप दोनों का कॉलेज का काम तो पूरा हो गया ना ?"
हम दोनों ने चिल्ला कर कहा , "हाँ मम्मी। " और हम दोनों अपने कमरे की ओर दौड़ पड़े।
हमें डैडी और मम्मी के साथ और बाहर खाना खाना बहुत ही प्रिय था। ड्राइवर के साथ नई फिल्म देखने में बहुत मज़ा नहीं आता जितना मम्मी-पापा के साथ आता था। हम घर देर से शाम पहुंचे। मम्मी डैडी के लिए स्कॉच लाने के लिए उठीं तो उन्हें रोक कर कर खुद डैडी का पसंदीदा स्कॉच का गिलास ले आयी, उसमे सिर्फ दो बर्फ के क्यूब्स थे जैसा डैडी को पसंद है ।
डैडी ने मुझे प्यार से अपनी गोद में बिठा कर मेरी इतनी प्रशंसा की मानो मुझे नोबेल प्राइज़ मिल गया हो। मम्मी ने मेरे गर्व के गुब्बारे को पिचका दिया ,"अजी अपनी प्यारे बेटी से पूछिए की मम्मी की ड्रिंक कहाँ है ?"
मेरे मुंह से "ओह ओ !", निकल गयी और मैंने हँसते हुए प्यार भरी माफी माँगी , " सॉरी मम्मी। "
पर तब तक अक्कू दौड़ कर मम्मी का ड्रिंक बना लाया। बेलीज़ एक बर्फ के क्यूब के साथ, मम्मी के एक हल्का का घूँट भर कर अक्कू की प्रशंसा के पुल बांध दिए।
हम परिवार के शाम के अलसाये सानिध्य में थोड़ा कटाक्ष,थोड़ा मज़ाक, पर बहुत प्यार संग्रहित होता है।
मम्मी ने रात के खाने के लिए तैयार होने को हमें कमरे में भेज दिया।
अक्कू ने मुझे लपक कर दबोच लिया और हमारे खुले मुंह एक दुसरे के मुंह से चिपक गए। अक्कू के हाथ मेरे गोल मटोल मुलायम चूतड़ों को मसल रहे थे।
मेरे कमसिन अविकसित चूत भीग गयी। मेरी गांड का छेद भी फड़कने लगा ," अक्कू हमें देर हो जाएगी। थोड़ा सब्र करो। " हालांकि मेरा मन भी अक्कू ले लंड को पहले चूस कर अपनी गांड में घुसाने का हो रहा था पर मैं उस से बड़ी थी और उसके उत्साह को नियंत्रित करने की ज़िम्मेदारी मेरे थी।
अक्कू ने मुझे और भी ज़ोर से जकड़ लिया ,"अक्कू देखो डैडी और मम्मी कितने संयम से बैठे थे। क्या उनका मन नहीं करता की एक दुसरे के कपडे फाड़ कर डैडी मम्मी की गांड मारने लगे। " मेरा ब्रह्म-बाण काम कर गया।
खाने के बाद सारे परिवार ने मम्मी के चहेते धारावाहिक कार्यक्रम देखे और फिर सोने का समय हो गया। हम दोनों ने डैडी और मम्मी को शुभ-रात्रि चूम कर कमरे की ओर दौड़ पड़े।
मम्मी का " अरे आराम से जाओ, गिर कर चोट लगा लोगे " चिल्लाना हमेशा की तरह हमारे बेहरे कानों के ऊपर विफल हो गया।
मैं अक्कू को बिलकुल रोकना नहीं चाह रही थी। अक्कू ने मेरी छाती के उभारों को निर्ममता से मसल कर दर्दीला और लाल कर दीया। मैंने उसका लंड चूस कर एक बार उसका मीठा रस पी गयी। अक्कू ने मेरी चूत और गांड चाट, चूस कर मुझे अनेकों बार झाड़ दिया और फिर अक्कू ने मेरी गांड फाड़ने वाली चुदाई शुरू की तो देर रात तक मुझे चोदता रहा जब तक में निढाल हो कर पलंग पर लुढक न गयी।
तब से अक्कू अरे मेरे कुछ नियम से बन गए। हम कॉलेज से आने के जल्दी से नाश्ता खा कर कमरे में जा कर पहले एक दुसरे को झाड़ कर कॉलेज का काम ख़त्म करते थे। फिर अक्कू मेरी गांड मारता था उसके बाद हम एक दुसरे के मूत्र से खेलते थे और हमें एक दुसरे का मूत्र और भी स्वादिष्ट लगने लगा। अक्कू को कॉलेज में भी मेरी आवशयक्ता पड़ने लगी। मैं मौका देख कर उसका लंड चूस कर उसे शांत कर देती थी।
मेरे किशोरावस्था में कदम रखने के कुछ महीनों में ही जैसे जादू से मेरे स्तनों का विकास रातोंरात हो गया। अब मेरी छाती पर उलटे बड़े कटोरों के समान , अक्कू को बहुत प्यारे लगने वाले, दो उरोज़ों का आगमन ने हमारी अगम्यागमन समागम को और भी रोमांचित बना दिया। अब अक्कू कई बार मेरे उरोज़ों को मसल, और चूस को सहला कर मुझे झाड़ने में सक्षम हो गया था।
अक्कू भी ताड़ के पेड़ की तरह लम्बा हो रहा था मुझे उसका लंड बड़ी तेज़ी से और भी लम्बा और मोटा होने का आभास निरंतर होने लगा था।
एक शुक्रवार के दिन अक्कू को सारा दिन कॉलेज में मेरी ज़रुरत थी पर हमें एकांत स्थल ही नहीं मिला। उस दिन हमनें अपना कॉलेज का काम उसी दिन ख़त्म करने की कोई आवशयकता नहीं थी। मुझे अपने छोटे भैया के भूखे सख्त वृहत लंड के ऊपर बहुत तरस आ रहा था।
अक्कू और मैं जब अपनी रोज़ की रति-क्रिया में सलंग्न हो गए तो उस दिन हम दोनों ने पागलों के तरह संतुष्ट न होने का मानो संकल्प कर लिया था। हमें समय का ध्यान ही नहीं रहा। अक्कू मेरी तीसरी बार गांड मार रहा था। उसके बड़े हाथ मेरे उरोज़ों को बेदर्दी से मसल रहे थे। उसका मोटा लम्बा लंड निर्मम प्रहारों मेरी गांड का लतमर्दन कर रहा था। मेरी हल्की चीखें, ऊंची सिस्कारियां कमरे में गूँज रहीं थीं।
हमें मम्मी की खाने के लिए आने की पुकारें सुनाई नहीं दीं।
मैं ज़ोरों से अक्कू से विनती कर रही थी , "अक्कू और ज़ोर से मेरी गांड मारो। अक्कू मेरी गांड फाड़ दो जैसे डैडी मम्मी की गांड फाड़ते हैं। "
अक्कू ने भी ज़ोर से घुरघुरा कर बोला, "दीदी मेरा लंड तो हमेशा आपकी गांड में घुसा रहना चाहता है। " अक्कू ने मेरे दोनों कंचों जैसे चूचुकों को उमेठ कर मेरी चीख को और भी परवान चढ़ा दिया।
उस समय यदि भूताल भी आ जाता तो भी अक्कू और मुझे पता नहीं चलता। पर एक शांत स्थिर आवाज़ हम दोनों के वासना से ग्रस्त मस्तिष्कों की मोटी तह को छेद कर प्रविष्ट हो गयी , "अक्कू और सुशी, जब तुम दोनों फारिग हो जाओ तो डैडी और मुझे तुम दोनों से आवश्यक बात करनी है। "
मम्मी के शांत स्वरों को सुन कर अक्कू मुझे से इतनी जल्दी लपक कर दूर हुआ मानो की उसे किसी ने बिजली का झटका लगा दिया हो।
उसका मोटे सुपाड़े ने मेरी गांड के तंग छेद को रबड़ बैंड के तरह तरेड़ दिया और मेरे रोकते हुए भी मेरी चीख निकल गयी।
मम्मी डैडी शांति से हमें देख रहे थे। अक्कू और मेरे तो प्राण निकल गए।
डैडी ने शांत स्वाभाव से कहा ,"पहले तो मम्मी और मैं तुम दोनों से क्षमाप्रार्थी हैं की तुम दोनों के बंद कमरे में में हम बिना तुम्हारी आज्ञा के प्रवेश हो गए। पर मम्मी बहुत देर से तुम दोनों को पुकार रहीं थीं। जब हम दोनों दरवाज़ा खटखटा ही रहे थी की सुशी की उम … कैसे कहूँ ....... सुशी के चीख सुन कर हमसे रुका नहीं गया … और … " डैडी का सुंदर मुंह शर्म से लाल हो चूका था और मुझे डैडी और भी सुंदर लगे। मैं किसी और समय लपक कर उनसे लिपट काट चूम लेती पर उस दिन तो मेरा हलक रेत की तरह सूखा हो गया था।
"हमें यह तो पता है की तुम क्या कर रहे थे। पर शायद तुम दोनों हमें कुछ समझा सको की यह सब कब से .... कैसे ," मम्मी भी डैडी की तरह अवाक अवस्था में शर्म से लाल और शब्द विहीन हो गयीं।
अक्कू ने उस दिन मुझे अपनी समझदारी से कायल कर दिया ,"मम्मी यह सब मेरे दीदी के प्यार के वजह से मेरे शरीर में हुए प्रभावों से शुरू हुआ। मैं गलती से दीदी को दूर करना शुरू कर दिया। दीदी के एरी तरफ प्यार इतना प्रबल था की उन्होंने मेरे लिए मेरे लं …… सॉरी पीनिस को सहलाना…., " अक्कू भी घबरा और शर्मा रहा था।
"मम्मी मैं बड़ी हूँ और सारी ज़िम्मेदारीमेरी है। मैं अक्कू को अपना प्यार पूरी तरह से देना चाहती हूँ। और मुझसे उसके शरीर में मेरी वजह से होते बदलाव की वजह से अपने से दूर नहीं जाने दे सकती। और फिर मैंने सोचा की आपको और डैडी को देख कर मैं शायद अक्कू की देखभाल और भी अच्छे से कर सकूँ और फिर जो हम दोनों ने आपको देख कर सीखा उस से अक्कू और मैं बहुत खुश हैं।
क्या हमें यह नहीं करना चाहिए था ?" मेरा सूखा गला मुश्किल से इतना कुछ बोल पाया।
मम्मी और डैडी ने एक दुसरे को देर तक एक तक देखा। मम्मी ने हमेशा की तरह शीघ्र ही गलतियों के ऊपर फैसला अपने दिमाग में बैठा लिया था। मैं अब परेशान थी की मम्मी हमें क्यासज़ा देंगी?
"तो तुम दोनों चोरी से हमारी एकान्तता का उल्लंघन भी कर रहे हो ," मम्मी के शांत स्वर चिल्लाने और गुस्से से भी ज़्यादा डराते थे।
अक्कू ने जल्दी से कहा ,"मम्मी सिर्फ एक बार। उस रात के बाद हमने कभी भी वैसा नहीं ……बस उस दिन," अक्कू भी डर से बहुत विचलित था।
मम्मी ने धीरे से पूछा ,"सुशी क्या अक्कू तुम्हारी सिर्फ गांड मरता है ?"
मम्मी से मुंह से निकले उन शब्दों में से मानों मम्मी की शिष्टता से उनकी अश्लीलता गायब हो गयी।
"मम्मी उसके अलावा मैं उसके लं लं लंड को चूसती हूँ और अक्कू भी मेरी चू ….. चू ….चु ….. चूत चूसता है ," मैंने हकला कर जवाब दिया।
"इसका मतलब है की अक्कू ने तुम्हारी अब तक चूत नहीं मारी?" मम्मी ने बिना स्वर ऊंचा किये मुझसे पूछा।
अक्कू और मेरे चेहरे पर अनभिग्यता का भौंचक्कापन साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा होगा।
मैंने धीरे से हकलाते हुआ कहा ," मुझे पता ही था की अक्कू से अपनी चूत भी मरवा सकती थी। डैडी ने उस दिन सिर्फ आपकी गांड ही मारी थी। "
मम्मी ने अपना मुंह नीचे कर उसे अपने सुडौल हांथों में छुपा लिया। डैडी के शर्म से लाल चेहरे पर एक अजीब सी तिरछी मुस्कान का आभास सा होने लगा।
मम्मी का शरीर काम्पने लगा मानों वो रोने लगीं हों। मैं और अक्कू दौड़ कर मम्मी से लिपट गए ," सॉरी मम्मी। सॉरी। "
ममी ने अपने सुंदर हँसते मुंह से दोनों के सिरों को चूमा ,"अरे पागलो तुम दोनों ने डैडी और मुझसे क्यों नहीं बात की ?"
"सॉरी, हमें पता नहीं यह क्यों नहीं ध्यान आया ," वास्तव में डैडी और मम्मी हमारे किसी भी सवाल को नज़रअंदाज़ नहीं करते थे।
"अंकु, इन दोनों को तो अभी बहुत कुछ सीखना है ," मम्मी ने डैडी से हमें अपने से लिपटाते हुए कहा ,"क्या तुम दोनों डैडी और मुझसे सब कुछ सीखना चाहते हो। हम तुम दोनों को रोक तो नहीं सकते पर एक दुसरे के शरीर को और अच्छी तरह से उपभोग करने में सहायता ज़रूर दे सकतें हैं। "
अक्कू और मैं बच्चों की तरह खुशी से चीखने उछलने लगे।
डैडी ने नाटकीय अंदाज़ से अप्पने दोनों कानों को अपने हाथों से ढक लिया।
"अच्छा अब शांत हो जाओ। चलो पहले खाना खाने आ जाओ फिर हम सब इकट्ठे निर्णय लेंगें," डैडी ने हम दोनों के बालों को सहलाया।
अक्कू ने जल्दी से अपनी निक्कर ढूडनी शुरू कर दी। मम्मे ने उसे रोक कर कहा ,"अक्कू क्या तुम अपनी बड़ी बहन के आनंद को अधूरा ही छोड़ दोगे ? डैडी और मैं कुछ देर और प्रतीक्षा कर सकते हैं। तूम पहले अपनी दीदी को अच्छे से संतुष्ट करो," मम्मी के चेहरे पर एक रहस्मयी मुस्कान थी। मम्मी का दैव्य रूप किसी को भी चकाचौंध कर सकने में सक्षम था।
अक्कू और मैं जब अकेले हुए तो कई क्षण किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिर खड़े रहे फिर अचानक एक दुसरे से लिपट कर पागलों की तरह एक दुसरे को चूमने लगे।
मैंने अक्कू के तेज़ी से खड़े होते लंड को सहलाना शुरू कर दिया। अक्कू मुझे पलंग पर पेट के बल लिटा कर बेदर्दी से मेरे गांड में अपना लंड ठूंसने लगा। मेरी चीखें उसे और भी उकसाने लगीं। अक्कू ने उस शाम मेरी गांड की हालत ख़राब कर दी। डैडी और मम्मी को एक घंटे से भी ज़्यादा इंतज़ार करना पड़ा।
अक्कू और मैं थोड़ा घबराते हुए और धड़कते दिल से नीचे भोजन-कक्ष की दिशा में चल दिए। लेकिन कुछ ही क्षणों में हमारा घबराना बिलकुल गायब हो गया। मम्मी और डैडी ने अत्यंत साधारण और व्यवहारिक रूप में रोज़ की तरह हमारे आगमन स्वीकार किया। डैडी ने जिस कहानी से मम्मी हंस रहीं थी उसको हमें शुरू से सुनाना कर दिया। मम्मी ने खुद ही खाना पपरोसा। दोनों नौकर आदर से कुछ दूर खड़े रहे।
हम दोनों और मम्मी एक बार फिर से, पापा की मज़ेदार कहानी पर फिर से हंस दिए। अक्कू और मैंने खूब जम कर खाना खाया।
"अरे अक्कू बेटा थोड़ा और लो ना। मुझे क्या पता था की तुम इतनी महनत करते हो ?" मम्मी ने अक्कू को चिढ़ाया और स्वयं सबसे पहले हंस दीं।
"अरे निर्मू देवी, हम भी तो उतनी ही मेहनत करते हैं। आपने हमें तो कभी भी ऐसे दुलार नहीं दिया ?" डैडी ने बुरा सा मुंह बना कर कहा।
"आप को तो कई सालों का अभ्यास है मेरे बेटा तो अभी शुरूआत कर रहा है न।" मम्मी ने प्यार से अक्कू के बालों को सहलाया। अक्कू का सुंदर मुखड़ा शर्म से लाल हो गया था।
"मम्मी ," अक्कू ने शर्म से वज़न दे कर फुसफुसाया।
'मम्मी मैं भी तो मेहनत करती हूँ अक्कू के साथ, आपने मुझ पर तो कोई ध्यान नहीं दिया ?" मैंने हिम्मत दिखा कर मज़ाक में शामिल होने का प्रयास किया।
मम्मी ने मुझे कस कर चूमा ,"मेरी नन्ही बिटिया, तुम पर तो मेरी जान न्यौछावर पर तुम्हारा ख्याल रखने की तो तुम्हारे पापा की ज़िम्मेदारी है। "
मैं बिना सब समझे बच्चों की तरह खिल उठी।
अक्कू और मैं डैडी को कभी डैडी और कभी पापा कह कर सम्बोधित करते थे। पर मम्मी हमेशा उन्हें 'तुम्हारे पापा' कह कर सम्बोधित करती थीं। कुछ देर बाद में हमें पता चला कि मम्मी को 'पापा' का सम्बोधन अधिक पसंद था।
मम्मी ने हम सबको भोजन-उपरांत के मिष्ठान परोसते हुए मुस्करा कर दोनों नौकरों को छुट्टी दे दी। दोनों ने नमस्ते कर जल्दी छुट्टी मिलने की खुश में अपने निवास-स्थान की ओर चले गये। घर में काम करने वालों के निवास स्थान हमारे फ़ैली हुई जागीर पे हमारे मुख्य आवास से कुछ ही दूर थे।
मम्मी ने अक्कू की कटोरी कई बार भरी, "अक्कू बेटा थोड़ा और खालो सिरफ मेहनय कराती है पर तुम्हारे खाने का ख्याल तो सिर्फ मम्मी ही रखती है। "
मम्मी ने मेरी ओर मुस्करा कर मुझे किया कि वो सिर्फ अक्कू को चिड़ा रहीं है।
मुझे भी न जाने कहाँ से स्वतः साहस और आत्मविश्वास आ गया और मैं भी मम्मी की तरह बोलने लगी , " मम्मी अगर अक्कू ने मेहनत भी की तो उसे मज़ा भी तो आया। नहीं अक्कू?' बेचारा अक्कू को समझ नहीं आये कि वो कहाँ देखे , "ठीख है मम्मी आप अपने लाडले का ध्यान रखिये और मैं अपने पापा का ध्यान रखूँगी। मुझे पता है की आप उनसे कितना परिश्रम करवातीं हैं "
मम्मी का शर्म से लाल सुंदर मुखड़ा देख एके लीरा आत्मविश्वास और भी बढ़ गया।
मैंने मिष्ठान की कटोरी ले कर डैडी की गोद में बैठ गयी और उन्हें चमच्च से खिलने लगी।
डैडी ने मुझे अपनी बाँहों में भींच आकर हँसते हुए कहा , "सस्सहि. बिलकुल ठीक कह रही है निर्मू। कब आपने ने मुझे मेरी गॉड में बैठ कर आखिरी बार खिलाया था ?'
पापा ने मेरे लाल गालों को चुम कर उन्हें और भी लाल कर दिया।
मम्मी ने अक्कू की ओर देख कर गर्व से कहा, "अक्कू बेटा चलो, हम दोनों जोड़ी बना लेते हैं। वो दोनों पापा-बेटी को जो वो चाहें करें
!"
अक्कू का सीना फूल कर चौड़ा हो गया, जैसे ही मम्मी उसकी गोद में बैठ गयीं। उसने पुअर से अपनी मम्मी के कमर के चारों ओर दाल दीं।
मैं और मम्मी पापा और अक्कू मिष्ठान खिलाने लगे।
"अक्की बेटा देखो तो मुझे मैं कितनी बुद्धू मम्मी हूँ ? मेरे प्यारे बेटे को खाने की सारी मेहनत करनी पड़ रही है ," मम्मे ने नाटकीय अंदाज़ में माथे पर हाथ मार कर कहा।
मम्मी ने भरी चम्मच को अपने मुंह में डाल कर मिष्ठान को प्यार से चबाया और फिर अपना मुंह अक्कू के मुंह के ऊपर लगा दिया।
अक्कू की बाहें मम्मी की गुदाज़ गोल भरी-भरी गदराई कमर पर और भी कस गयीं। अक्कू का मुंह स्वतः ही खुल गया और मम्मी के मुंह से चबाया हुआ मिष्ठान अक्कू के मुंह में फिसल गया।
मुझे न जाने क्यों एक अचेतन, ज्ञानरहित ईर्ष्या होने लगी।
मैंने भी पापा की आँखों में देखा और उन्होंने मुस्करा कर मुझे बढ़ावा दिया।
"पापा आप फ़िक्र नहीं कीजिये। मम्मी मेहनत आपसे करातीं हैं और ख्याल छोटू भैया अक्कू का रखतीं हैं। आज से मैं आपकी सेहत का ख्याल रखूंगीं ," मैं ज़ोर से बोल कर मम्मी की तरह पपा को अपने मुंह में से चबाये मिष्ठान को डैडी के मुंह में भरने लगी।
डैडी ने मेरे सर को सहला कर मम्मी और अक्कू को चिढ़ाया , "भई निर्मू, सुशी के मुंह से तुम्हारे मिष्ठान और भी मीठे हो गयी। मेरा ख्याल है कि चीनी की बजाय मैं तो सुशी के मुंह की मिठास मेरी पसंद की है। "
अक्कू ने मम्मी की तरफदारी की , 'मम्मी आप उन दोनों की तरफ ध्यान नहीं दीजिये। आपके मुंह से तो नमक भी शहद से मीठा लगेगा। "
अक्कू की इतनी प्यार भरी बात से मम्मी की सुबकाई निकल गयी और उन्होंने अक्कू को अपने बाँहों में भर कर पागलों की तरह चूमने लगीं।
मेरी और डैडी की आँखे भी भीग उठीं।
डैडी ने ऊंची आवाज़ में कहा , "निर्मू, तुम बच्चों को बताओगी या मैं बताऊँ ?"
मम्मी ने गीली आखों को झुका कर उन्हें ही बोलने का संकेत दिया।
"मम्मी और मैंने यह निर्णय लिया है कि तुम दोनों की अम …… काम-शिक्षा की ज़िम्मेदारी हमारी है। यदि तुम दोनों को स्वीकार हो तो तुम दोनों हमारे शयन-कक्ष में आ जायो। "
अक्कू और मैं किलकारी मार कर मम्मी और डैडी को चूमने लगे।
"पापा, सारी रात के लिये ?" मैंने अपनी उत्साह और लगाव से पूरी फ़ैली बड़ी-बड़ी आँखों से डैडी को देख कर पूछा।
"न केवल सारी रात के लिए पर जब तक तुम दोनों का मन न भर जाए तब तक ," डैडी ने मुझे अपने से भींच कर चूमा।
"चलो, पापा और मैं तुम दोनों का शयन कक्ष में इंतज़ार कर रहे हैं," मम्मी ने अक्कू को गीली आँखों से चूमा , "कपड़े इच्छानुसार। पहनों या नहीं तुम दोनों की इच्छा पर निर्भर है। "
हम दोनों भाग लिए अपने कमरे की तरफ।
उस दिन मम्मी हमें धीमे जाने के नहीं चिल्लायीं।
अक्कू और मैं जल्दी से अपने कमरे में जाकर अपने कपड़े उतरने लगे। मैंने रोज़ की तरह अक्कू की टीशर्ट पहन ली जो मेरी जांघों तक जाती थी।
अक्कू ने अपने रोज़ की तरह नाड़े वाला शॉर्ट्स पहन लिए। अक्कू को मुझसे अपने निककर का नाड़ा खुलवाना बहुत अच्छा लगता था। उसी तरह मुझे अक्कू का मेरी टीशर्ट के नीचे हाथ डाल कर मेरी चूचियों को रगड़ना मेरी सिसकारी निकल देता था।
हम दोनों भागते हुए मम्मी और पापा के शयनकक्ष पहुँच गए ।
मम्मी और पापा बिस्तर पर पूर्णतया नग्न हो कर बिस्तर के सिरहाने से कमर लगा कर इंतज़ार कर रहे थे।
मम्मी ने अपनी बहन फैला कर बिना कुछ बोले अक्कू को न्यौता दिया। अक्कू भाग कर मम्मी के बाँहों में समा गया। मैं भी पापा की मुस्कुराहट से प्रोत्साहित हो कर उनकी गोद में उछल कर चढ़ गयी।
तब मेरा ध्यान पापा के विकराल लंड पर गया और मेरी तो जान ही निकल गयी। पापा का लंड अक्कू से दुगुना लम्बा और उतने से भी ज़्यादा मोटा था। मुझे क्या पता था की अक्कू जब पूरा विकसित हो जाएगा तो वो पापा से भी एक-दो इंच आगे बढ़ जाएगा।
पापा ने मुझे अपनी जांघों के ऊपर बिठा लिया। मेरी टीशर्ट मेरे चूतड़ों के ऊपर तक उठ गयी। मेरी चूत के कोमल भगोष्ठ पापा के घुंघराले झांटों से चुभ रहे थे। पर मुझे वो चुभन अत्यंत आनंदायी लगी।
मम्मी ने अक्कू के खुशी से मुस्कराते मुंह के ऊपर अपना मीठा मुंह रख दिया और उनकी गुदाज़ बाहें अक्कू के गले का हार बन गयीं।
दोनों की जीभ एक दुसरे के मुंह की मिठास को तलाशने और चखने लगीं।
पापा के हाथ हलके से मेरी टीशर्ट के नीचे सरक गए। पापा ने मेरे गोल पेट को सहलाते हुए मेरी नाभी को अपने तर्जनी से कुरेदा। इस बार मुझे गुलगुली होने की बजाय एक सिहरन मेरे शरीर में दौड़ गयी। मैंने बिना जाने अपना शरीर पापा की चौड़ी बालों से भरे सीने पर दबा दिया।
मम्मी ने प्यार से अक्कू को बिस्तर पर लिटा दिया। उन्होंने उसके पूरे मुंह को होल-होल चूम कर अपने मादक होंठों से उसकी गर्दन की त्वचा को सहलाया। अक्कू की तेज़-तेज़ चलने लगी।
मम्मी ने अपने कोमल मखमली हाथों की उँगलियों से अक्कू के सीने को गुलाब की पंखुड़ियों जैसे हलके स्पर्श से सहलाते हुए अपने होंठों से और भी महीन चुम्बनों से भर दिया। मम्मी ने अक्कू के छोटे छोटे चूचुकों को अपने होंठों में भर कर पहले धीरे धीरे और फिर कस कर चूसा।
अक्कू की ज़ोर से सिसकारी गयी।
मैं अब समझ रही थी की मैंने कितना कुछ और कर सकती थी अपने अक्कू को और भी आनंद देने के लिए।
मम्मी ने अक्कू के पेट को भी उसी तरह प्यार सहलाया और चूमा। मम्मी ने अपने जीभ की नोक से अक्कू की नाभी को तक कुरेदा और चाटा। अक्कू भी मेरी तरह हसने की बजाय सिसक उठा।
मम्मी ने बहुत ही धीरे धीरे अक्कू का नाड़ा खोल दिया। मम्मी ने उस से भी धीरे धीरे अक्कू के निक्कर को नीचे लगीं।
अक्कू ने अपने कूल्हे ऊपर उठा कर मम्मी के सहायता की।
मम्मी ने अक्कू का निक्कर इतने ध्यान और प्यार से उतारा मानो वो बहुत ही नाज़ुक और महत्वपूर्ण कार्य हो।
फिर मम्मी ने अक्कू के एक पैर अपने हाथों में लेकर उसे चूमा और उंसकी हर उंगली और अंगूठे को अपने मुंह में भर कर चूसा। अक्कू बेचारे की सिसकियाँ अब रुक ही नहीं पा रहीं थीं।
मम्मी ने अक्कू के दोनों पैरों का मानों अभिनन्दन किया था। मम्मी के हलके चुम्बन और हल्का स्पर्श अब अक्कू की जांघों पर पहुँच गया। अक्कू का गोरा झांट-विहीन लंड अक्कड कर खम्बे की तरह छत को छूने का प्रयास कर रहा था।
पापा के हाथ अब मेरी दोनों चूचियों के ऊपर थे। पर पापा ने अपनी विशाल हथेलियों से उन्हें धक कर होले होले सहलाने के सियाय कुछ और नहीं किया। मेरा दिल कर रहा था कि पापा मेरी फड़कती चूचियों को कस कर मसल डालें।
मम्मी ने अपने सुंदर सुहावने शुष्ठु करकमलों से अक्कू के मनोहर लंड के प्रचंड तने हो हलके से सहलाया मानों मम्मी अक्कू के लंड की आराधना कर रहीं हों।
अक्कू के चूतड़ उतावलेपन से बिस्तर से ऊपर उछल पड़े।
मम्मी अब अक्कू के लंड को श्रद्धालु भाव से सहलाते हुए अपने मीठे गुलाबी होंठो से उसके चिकने गोरे अंडकोष को चूमने लगीं। अक्कू की ऊंची सिसकारी कमरे में गूँज उठी ," अआह मम्मी। "
अक्कू के मुंह से निकले वो पहले शब्द थे जब से हम मम्मी और पापा के कमरे में आये थे।
मम्मी ने उतने ही अनुराग से अक्कू के लम्बे मोटे खम्बे को चूमा जब तक उनके होंठ अक्कू के सुपाड़े पर पहुँच गए। मम्मी ने बड़ी निष्ठा से अक्कू के सुपाड़े को ढकने वाली की गोरी त्वचा को नीचे खींच कर उसके मोटे गुलाबी सुपाड़े को अनेकों बार चुम लिया।
अक्कू का मुंह आनंद से लाल हो गया था।
मम्मी के होंठ एक बार फिर से अक्कू के लंड की जड़ पर पहुँच गए। इस बार मम्मी ने अपने जीभ से अक्कू के तन्नाये हुए लंड की रेशमी गोरी त्वचा को उसके लंड की पूरी लम्बाई तक चाटा। अक्कू की सिस्कारियां किसी अनजान को उसके दर्द का गलत आभास दे देतीं।
मम्मी ने अपने जीभ की नोक से अक्कू के सुपाड़े के नीचे के गहरे खांचे को पूरे तरह से माप लिया।
फिर मम्मी ने अपने जीभ और भी बाहर निकाल के अक्कू के खून से अतिपुरित लगभग जामनी रंग के सुपाड़े को प्यार चाटा। मम्मी ने कई बार अक्कू के सुपाड़े के ऊपर जीभ फैराई। अक्कू का सुपाड़ा अब मम्मी के मीठे थूक से नहा कर गिला गया था।
फिर मम्मी ने अक्कू की अनरोध करती आँखों में प्यार से झांक कर अपने सुंदर मुंह खोला और उसे अक्कू के सुपाड़े के ऊपर रख कर अपने जीभ से उसके पेशाब के छेद को कुरेदने लगीं।
अक्कू ने आनंद और रोमांच के अतिरेक से भरी गुहार लगायी ,"ऊऊं आन्न्ह मम्मी। "
मम्मी ने प्यार भरे पर कामोत्तेजक नेत्रों से अपने जान से भी प्यारे बेटे के तरसने को निहारा। फिर माँ का दिल पिघल गया। और मम्मी ने अक्कू के निवेदन और आग्रह को स्वीकार कर धीरे से उसके लंड के सुपाड़े को अपने मुंह में ले लिया।
अक्कू का सुंदर चेहरा कामना के आनंद से दमक उठा। अक्कू की सिसकारी ने मुझे भी रोमांचित कर दिया।
अब पापा के विशाल हाथ मेरी छोटे कटोरों जैसी चूचियों से भरे। थे पापा ने मेरी चूचियों को हौले हौले मसलना प्रारम्भ कर दिया। मैं स्वतः ही अपनी चिकनी झांट-रहित छूट को पापा के विकराल स्पात के खम्बे जैसे सख्त पर रेशम से भी चिकने लंड के ऊपर रगड़ने लगी। पापा ने मेरे दोनों चूचुकों को अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच में भींच कर मड़ोड़ते हुए कस कर मसल दिया। मैं हलके से चीख उठी पर और भी बेसब्री से अपनी चूचियों को पापा के हाथों की और दबा दिया।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
Update 26
मम्मी प्यार से अक्कू के सुपाड़े को चूस थीं। उन्होंने अक्कू की दोनों झांगो को मोड़ कर चौड़ा कर दिया। मम्मी एक हाथ से अक्कू के लंड मोटे डंडे को सहला रहीं थी और दुसरे हाथ से उन्होंने अक्कू के गोरे झांट-विहीन अंडकोषों को प्यार से अपने कोमल हाथ की ओख में लेकर झूला सा झूला रहीं थीं।
मम्मी के गुलाबी होंठ अक्कू के तन्नाये हुए लंड के तने के ऊपर लगे। मम्मी जब अक्कू ले लंड को बहुत ज़्याददा मुंह के भीतर ले लेने का प्रयास करती थीं तब उनके जैसी आवाज़ निकल पड़ती थी। अक्कू जब मेरे मुंह को बेदर्दी से चोदता था तो मेरी भी वैसे ही हालत हो जाती थी। अक्कू की घबराहट देख कर मम्मी ने उसको आँखों से प्यार भरा आश्वासन भेज दिया।
मेरी चूत अब रस से भर गयी थी। मैं अब झड़ने के बहुत निकट थी और मैंने अपनी चूत को पापा के लंड के ऊपर और भी ज़ोर से रगड़ना शुरू कर दिया। पापा मेरी स्थिति समझ गए। उन्होंने ने बहुत निर्मलता से मेरे अविकसित नन्हें भगोष्ठों को चौड़ा दिया जिससे मेरी मटर के दाने जैसी भग्नाशा अब सीधे पापा के लंड से रगड़ रही थी। मेरी चूत से निकला रस पापा के लंड को नहलाने लगा।
पापा ने मेरे दोनों चूचियों को मसलते हुए मेरी चूत को अपने लंड के ऊपर दबाने लगे। मैं अब आगे पीछे मटकते हुए अपनी चूत और भग्नासे को अत्यंत व्याकुलता से पापा के लंड के ऊपर रगड़ने लगी।
"पापा, मैं अब झड़ने वाली हूँ," मैं तड़पते हुए फुसफुसाई।
पापा ने मेरे दोनों चूचियों को ज़ोर से मसलते हुए अपने भारी भरकम कूल्हों को उठा कर अपने विशाल लंड के तने से मेरी चूत को रगड़ने लगे।
पापा की मदद से मैं कुछ ही क्षणों में एक हल्की सी झड़ने लगी।
मम्मी अक्कू के आधे लंड को मुंह में भर कर उसे चूस रही थी। अचानक मम्मी ने अक्कू के लंड के ऊपर से अपना मुंह उठा लिया और उसकी झांगों को उठा के उसके अंडकोषों के नीचे के भाग को चूमने, चाटने लगीं। अक्कू के सिसकारी ने उसे आनंद की व्याख्या कर दी।
मम्मी ने अक्कू के चूतड़ों को चौड़ा कर उसकी गांड के छेद को अपनी जीभ की नोक से कुरेदते हुए उसे अपने थूक से लिसलिसा कर दिया।
अक्कू अब बिस्तर पर आनंद के अतिरेक से। मुझे उस पर थोड़ा तरस आने लगा। कम से कम मैं तो झड़ चुकी थी। मम्मी अक्कू को झाड़ने के लिए बिलकुल भी उत्सुक नहीं लग रहीं थीं।
मम्मी ने एक बार फिर से अक्कू के लंड को अपने मुंह में भर लिया और धीरे धीरे अपने थूक से भीगी तर्जनी को अक्कू की गांड में घुसेड़ने लगीं। अक्कू की आनंद भरी सिसकारी कमरे में गूँज उठी , "मम्मी! उउउन्न्न मम्मी और ज़ोर से चूसिये। "
मम्मी ने हौले हुल्ले अपनी पूरी तर्जनी उंगली की गाँठ तक अक्कू की गांड के भीतर डाल दी।
अब मम्मी एक हाथ से अक्कू के लंड के तने को बेसब्री से सहला रहीं थीं, दुसरे हाथ की उंगली से वो अकु की गांड के अंदर कुछ कर रहीं थीं जिससे अक्कू के चूतड़ बिस्तर के ऊपर कूदने लगे। मम्मी अब सिर्फ अक्कू के सुपाड़े को ज़ोर ज़ोर से चूस रहीं थी।
अक्कू का पूरा शरीर अकड़ गया और वो बुदबुदाने लगा , "मम्मी, मैं आह मम्मी और ज़ोर से चूसिये आह मम्मी ई ई। "
मुझे पता था की अब अक्कू आने वाला है। मैं ठीक थी। मम्मी के गाल अचानक फूल गए। मैं समझ गयी की अक्कू ने मम्मी का मुंह अपने मीठे नमकीन गाड़े वीर्य से भर दिया था।
मम्मी ने जल्दी से उस मकरंद को निगल लिया। अक्कू ने न जाने कितनी बार मम्मी के मुंह को अपने अमृत पराग से भर दिया।
मम्मी मेरी तरह उसके अमृत को बिना एक बूँद किये निगल गयीं।
मेरी तरह मम्मी ने अक्कू के लंड को चूसना बंद नहीं किया। मुझे पता था की झड़ने के बाद अक्कू का सुपाड़ा बहुत संवेदन शील हो जाता था। पर मम्मी ने उसके कसमसाने के बावजूद भी उसके लंड को लगातार चूसते रहीं। थोड़ी देर में अक्कू एक बार फिर से सिसकने लगा। उसका तनतनाता हुआ लंड और भी बड़ा लम्बा और मोटा लग रहा था।
मैं अपनी खुली नन्ही चूत पापा के लंड के तने से रगड़ रही थी। पापा मेरी दोनों चूचियों को कस कर मसल। मेरी मटर के भगनासा लगातार पापा के लंड की रगड़ सूज गयी थी। पर मैं बार चरमानंद के द्वार पर झटपटा रही थी। पापा मेरी स्थिति को गए और वो भी अपने लंड को मेरी चूत पर रगड़ने लगे। मैं हलके से चीख मार कर गयी , "पापा आह पापा मैं उउन्न्न आअह अन्न्न्ग्ग्ग्गह आअह्ह्ह। "
पापा ने मेरा तपतपाया हुआ लाल चेहरा अपनी तरफ मोड़ कर मेरे खुले मुंह को चूमने लगे। मैंने भी अपनी झीभ पापा की झीभ से भिड़ा दी। पापा ने मेरे मुंह के हर कोने को अपनी जीभ से सहलाया और मैंने भी मादकता के ज्वर से जलते हुए अपनी जीभ से पापा के मीठे मुंह की और भी मीठी राल का रसास्वादन करने लगी।
पापा के हांथों ने एक क्षण के लिए भी मेरे स्तनों का मर्दन बंद नहीं किया । मेरी दोनों चूचियाँ एक मीठे दर्द से कुलबुलाने लगीं थीं।
मैं अपने रति-विसर्जन के बाद कुछ शिथिल हो गयी थी।
मम्मी ने अपना मुंह अक्कू के लोहे जैसे सख्त लंड के ऊपर से उठाया। अक्कू का पूरा लंड मम्मी के सुहाने थूक से लतपथ हो कर चमकने लगा था। मम्मे ने अपने गदराई जांघें अक्कू की दोनों जांघों के दोनों ओर दीं।
मम्मी ने नीचे झुक कर अपना मुंह अक्कू के अद्खुले मुंह के ऊपर कस कर दबा कर एक लम्बा लार का आदान-प्रदान करने वाला गीला रसीला चुम्बन जो शुरू किया तो बहुत देर तक उन दोनों की घुटी घुटी चूमने चटकारने के मीठे स्वर कमरे में गूंजते रहे।
मम्मी के भारी मुलायम गदराये चूतड़ अक्कू के थरथराते तन्नाये हुए लंड के ऊपर कांप रहे थे।
"अक्कू बेटा क्या तुम्हे मम्मी की चूत चाहिये ?" मम्मी ने अक्कू से कामुक छेड़छाड़ के स्वरुप में पूछा। अँधा क्या चाहे दो आँख!
अक्कू ने तड़प कर अपना सर बड़े तेज़ी से कई बार हिलाया।
मम्मी ने हल्की सी मेथी हंसी के साथ अपनी घने घुंघराले झांटों से ढकी चूत के द्वार को अक्कू के लंड के मोटे सुपाड़े के ऊपर टिका दिया।
उनके भारी विशाल कोमल उरोज़ अक्कू की छाती के ऊपर लटक रहे थे।
"अक्कू बेटा अपने मम्मी की चूचियों से नहीं खेलोगे ?" मम्मी ने अक्कू के सुपाड़े पर अपनी धधकती चूत के प्रवेश द्वार को कई बार रगड़ा। अक्कू सिसक कर मम्मी के दोनों उरोज़ों को अपने हांथो में भर कर मसलने लगा और एक मोटे लम्बे चूचुक को मुंह में भर कर चूसना प्रारम्भ कर दिया।
मानो उसके मुंह ने मम्मी के चूचुक के रास्ते उनके सारे शरीर में बिजली दौड़ा दी।
"हाय, अक्कू। मैं तो मर गयी थी जब तूने अपनी माँ की चूचियाँ चूसना छोड़ दिया था। मुझे तो कभी सपने में भी विचार नहीं आता की एक दिन एक बार फिर से मेरा नन्हा बेटा अपने माँ के स्तन को फिर से चूसेगा। और ज़ोर से चूसो अक्कू अपनी माँ की
चूचियों को। बेटा और ज़ोर से मसलो, " मम्मी की साँसे भारी हो चली थीं।
मम्मी धीरे धीरे अपनी गीली रसीली चूत को अक्कू के लंड के ऊपर दबाने लगीं। इंच इंच कर के अक्कू का मोटा लम्बा लंड मम्मी के चूत में गायब होने लगा। अक्कू उन भाग्यशाली बेटों में शामिल हो गया जिन्हे अपनी जननी के मातृत्व-मार्ग को एक बार फिर से पारगमन करने का सौभाग्य मिल पाया।
अक्कू ने मम्मी के चूचुक को दांतों में कस कर दबा लिया और उसके हांथों ने मम्मी के कोमल दैव्य स्तनों को मसलते हुए उन्हें मड़ोड़ना भी शुरू कर दिया। मम्मी के ऊंची सिसकारी कमरे में गूँज उठी। पता नहीं की वो अक्कू के उनके सुंदर चूचियों के निर्मम मर्दन की वजह से थीं या उनकी यौनी में समाते हुए अपने बेटे के लंड के आनंद के अतिरेक के कारण उत्पन्न हुई थी।
आखिरकार मम्मी की चूत ने अक्कू का पूरा लंड अपनी स्वगंधित कोमल चूत में छुपा लिया।
अक्कू ने सिसक कर अपने कूल्हों को बिस्तर के ऊपर उछाला। मम्मी ने अपने सुकोमल सुरुचिकर हाथों को अक्कू के सीने के दोनों तरफ बिस्तर पर टिका कर और भी अक्कू के मुंह की तरफ झुक गयीं। अकु को अब मम्मी के दोनों उरोज़ों के ऊपर पूरा अभिगम था।
अक्कू उस पहुँच का पूरा इस्तमाल करने लगा। मम्मी के दोद्नो उरोज़ अक्कू के निर्मम पर प्यार भरे मर्दन से लाल हो गए।
मम्मी अपने गोल भारी चूतड़ों को घुमा घुमा कर अक्कू के लंड को अपने चूत से मसल रहीं थीं। कुछ देर तक अक्कू को तरसा तड़पा कर मम्मी अपनी चूत को हौले हौले अक्कू के लंड के ऊपर से उठाने लगीं।
अक्कू का मम्मी के रति रस से लतपथ तन्नाया हुआ लंड मम्मी की चूत में से उजागर हो चला। मम्मी ने अक्कू के सिर्फ सुपाड़े को अपनी तंग चूत में जकड कर अपने चूतड़ों को गोल गोल हिलाने लगीं। अक्कू की सिस्कारियां मम्मी को आनंद दे रहीं थीं। आखिर कोई भी माँ अपने बेटे के साथ पहले रति-क्रिया को कैसे भूल सकती है? और हर माँ उस सम्भोग को जितना हो सके उतना अविस्वर्णीय बनाने का भरसक प्रयास करेगी। अक्कू तो मम्मी का लाडला है।
अक्कू को तरसता नहीं देख सकी मम्मी। उन्होंने एक तेज़ झटके से अक्कू का पूरा लंड अपने चूत में समां लिया। और बिना रुके उनके चूतड़ तेज़ और जोरदार झटकों से अक्कू के लंड से अपनी चूत को चोदने लगीं।
अक्कू ने मम्मी के लटकते गदराये उरोज़ों का मर्दन एक क्षण के लिए भी मन्दिम नहीं किया। मम्मी ने अपने नैसर्गिक भारी कोमल चूतड़ों को ऊपर नीचे पटक कर अक्कू के लंड से अपनी चूत के चुदाई निरंतर तीव्र करने लगीं।
मेरी चूत के भीतर एक नन्हा मीठा सा दर्द और जलन भर चली थी। मैंने पापा के हाथों को अपने अविकसित कमसिन चूचियों के ऊपर और भी कस कर दबा दिया। पापा समझ गए और उन्होंने जिस बेदर्दी से मेरी दोनों नाज़ुक चूचियों को मसला और मड़ोड़ा उस से मेरी चीखें उबाल गयी। मेरे चूतड़ अविरत मेरी सूजी चूत को पापा के लंड के तनतनाते तने के ऊपर रगड़ रहे थे।
मैं कुछ हे देर में चीख मर कर फिर से झड़ गयी। इस बार पापा ने मुझे रुकने नहीं दिया और मेरे चूचियों को जकड़ कर मुझे ऊपर नीचे कर कर मेरी चूत को अपने लंड पर रगड़ते रहे।
मम्मी अब सिस्कारियां मार रहीं थीं ," उउन्न्न्न अक्कू बेटा और ज़ोर से मेरी चूत मारो।"
अक्कू ने अब इस नयी चुदाई की मुद्रा को समझ लिया था और उसने नीचे से अपने कूल्हों को उठा कर मम्मी की चूत अपने लंड मारने लगा। मम्मी और अक्कू ने अब एक अत्यंत सुंदर और प्रभावशाली ले बना ली थी।
जब मम्मी नीचे की ओर झटका मारती थी तब अक्कू अपने कूल्हों को पूरे ताकत से ऊपर की और धकेल देता था। अब मम्मी की यौनी से 'चपक-चपक' की मधुर अवाज़ें निकल रहीं थीं।
मम्मी की सुबकाई अब और तेज़ हो गयीं, 'अक्कू, मैं अब आने वाली हूँ। उउन्न्नह अक्कू ऊ….. ऊ ……. ऊ ……ऊ ………। आन्न्न्न्न्ह्ह्ह अक्क ……. उउउउ …….. उउन्न्ग्ग्घ्ह्ह्ह्ह। "
मम्मी एक लम्बी चीख मर कर अक्कू के सीने के ऊपर ढलक गयीं। उनकी साँसे भारी और गहरी हो गयी थीं। अक्कू ने लपक कर मम्मी को अपने बाँहों में भर लिया और प्यार से उनके माथे पर से पसीने की बूंदों को चुम कर चाट लिया।
मम्मी ने कुछ क्षणों बाद अक्कू को प्यार से चूमा, "मेरा बेटा कितनी काम उम्र में कैसा मर्द जैसा बन गया है?"
मम्मी की इस अलंकारिक विवेचना में गर्व, स्नेह और वात्सल्य कूट-कूट कर भरा हुआ था।
"मम्मी प्लीज़ अभी और चोदिये प्लीज़ ," अक्कू ने बच्चों की तरह मम्मी से उलाहना किया।
मम्मी ने भी माँ की तरह अपने आनंद को पूर्ण रूप से अंगीकार किये बिना फिर से अक्कू की इच्छानुसार उसके के लंड के ऊपर अपनी मोहक नैसर्गिक रेशम सी मुलायम चूत को फिर से कूटने लगीं।
इस बार दोनों ने नादिदेपन तेज़ और भीषण चुदाई की।
मैं अब फिर से झड़ रही थी। मैं निढाल हो कर पापा के सीने के ऊपर ढलक गयी।
मम्मी और अक्कू ने हचक हचक कर उन्मत्त चुदाई करनी शुरू कर दी।
मम्मे के चूतड़ बिजली के तेज़ी से अक्कू क लंड के ऊपर नीचे हो रहे थे। अक्कू भी लय में ताल मिला कर अपने चूतड़ों को सही समय पे ऊपर पटक कर मम्मी के चूत में अपना लंड जड़ तक धूंस देता था। मम्मी की सिस्कारियों में हल्की सी आनंदमयी पीड़ा की चीत्कार भी शामिल हो गयी।
मम्मी कुछ मिनटों में ही फिर से चीख कर झड़ने लगीं ,"अक्कूऊऊऊ हाय मैं मर जाऊंगीं ऊऊह्ह्ह्ह अक्कूऊऊऊ उउउन्न्न्न्न आन्न्न्न्नग्ग्घ्ह्ह्ह्ह। "
मम्मी का सुहाना लाल चेहरा अब पसीने से नहा उठा था।
मम्मी सुबकती हुई अक्कू के सीने के ऊपर ढुलक गयीं अकक्कु ने उन्हें बाँहों में जकड कर नीचे अपने लंड को मम्मी की चूत में पटकने लगा।
"मम्मी मैं भी आने वाला हूँ आपकी चूत में। मम्मीईईईए मैं झड़ने ………," अक्कू ने ज़ोर की सिसकारी मार कर अपना लंड मम्मी की चूत में खोल दिया।
मम्मी ने अपनी उर्वर कोख के ऊपर जैसे ही अपने बेटे की गरम जननक्षम वीर्य की फ़ुहार को महसूस किया वो फिर से झड़ गयीं। अक्कू , मुझे पता था, जब झड़ता है तो रुकने का नाम ही नहीं लेता।
मम्मी और अक्कू एक दुसरे से लिपटे गहरी साँसों से भरे चुम्बनों की एक दुसरे के ऊपर बौछार कर रहे थे।
"पापा आप भी मुझे चोदेंगे न ?" मैंने सुबक कर पापा से पूछा।
"बिलकुल सुशी बेटा यदि तुमने अपना मन नहीं बदल दिया तो ," पापा ने मुझे चिढ़ाया।
मैं मुड़ कर पापा से लिपट गयी। मैंने पापा के सुंदर चेहरे को अपने चुंबनों से गीला कर दिया।
जब हमारा ध्यान मम्मी और अक्कू की तरफ गया तब तक अक्कू ने मम्मी को पलट कर बिस्तर पर लिटा दिया थे और उसका अतृप्य लंड पूर्ण तनतना कर मम्मी की चूत में धंसा हुआ था।
"मेरे बेटे का अपनी माँ की चूत से अभी मन नहीं भरा ?" मम्मी की प्यार भरी गुहार में आकाश से भी विस्तृत वात्सल्य भरा हुआ था।
"मम्मी पूरी ज़िंदगी में भी मन नहीं भरेगा," अक्कू ने मम्मी की सुंदर नासिका की नोक को काट कर कहा।
अक्कू के वचन बिलकुल सत्य थे। आज तक मम्मी और अक्कू को कुछ हफ़्तों तक भी अलग रहना पड़े तो दोनों विचलित हो जातें हैं।
"तो फिर अपनी माँ को भोगो न अक्कू। तेरी मम्मी अब सारी ज़िंदगी तू जब चाहे तेरे लिए समर्पित है ," मम्मी ने अपनी गुदाज़ भरी भरी बाँहों को अक्कू के गले का हार बना कर उसे अपने उरोज़ों के ऊपर जकड़ लिया।
अक्कू ने मम्मी के मुंह के ऊपर अपना खुला मुंह दबा कर अपने लंड को सुपाड़े तक निकाल कर एक भीषण धक्के से जड़ तक मम्मी की चूत में ठूंस दिया।
न चाहते हुए भी मम्मी की सुबकाई निकल गयी ," आह अक्कू कितनी बेदर्दी से अपनी माँ की चूत मरता है रे तू। "
मम्मी के शब्द उनके शरीर की प्रतिकिर्या को झुठला रहे थे। उन्होंने अपने चूतड़ों को बिस्तर से ऊपर उठा कर अपने बेटे के प्रचंड लंड का स्वागत सा किया।
अक्कू ने जैसे वो बवंडर तूफ़ान की तरह मुझे गांड में चोदता था उसने उसी प्रकार की जानलेवा चुदाई प्रारम्भ कर दी।
मम्मी के सिस्कारियां शुरू हुईं तो उन्होंने रुकने का नाम ही नहीं लिया। अक्कू के हर धक्के से मम्मी का सारा शरीर सर से पैर तक हिल उठा।
"आअह अक्क्कूऊऊ ज़ोर से चोदो अक्कूऊऊऊ आअन्न्न्ह्ह आआह्ह्ह बेटाआआआआ ज़ोओओओओररर से चोदो मुझे। "
मम्मी अक्कू के धक्कों से बिलबिला उठीं पर उनके कामोन्माद की पराकाष्ठा वायु मंडल के भी दूर तक चली गयी।
अक्कू ने अपने हाथो को बिस्तर पर टिका कर मम्मी की चूत का मर्दन स्नेह भरे निर्मम प्रचंड प्रहारों से जो प्रारम्भ किया उसके बाद उसने बिलकुल भी शिथिलता नहीं दिखाई।
मम्मी अब अपने लाडले के हाथों में मोम की तरह पिघल गयीं। अक्कू जैसे चाहे मम्मी को तराश सकता था।
अक्कू ने मम्मी को एक बार झाड़ा और फिर मम्मी की रति-निष्पति मानो एक लम्बी जंजीर बन गयी।
जब अक्कू दुबारा मम्मी की चूत में झड़ा तब तक मम्मी अनगिनत अविरत चरमानंद के अतिरेक से अभिभूत हो बिस्तर पर निष्चल ढलक गयीं।
मैं भी पापा के लंड के ऊपर अपनी चूत रगड़ते हुए अनेक बार चरम-आनंद की बौछारों से गीली हो गयी।
मैं अपने अनगिनत चरम-आनन्दों की बौछारों से विचलित हो कर पापा से लिपट गयी। पापा ने दोनों उभरते उरोज़ों को अपने विशाल हाथों में भर कर मसलते हुए मुझे प्यार से चूमा। मेरे दमकते चेहरे पर पसीने की बूँदें फ़ैल गयीं थीं। रात की रानी की सुगंध हौले से कमरे में समा कर हमारे अगम्यगमनी सम्भोग के रस के महक से मिल गयी।
अक्कू ने मम्मी के पसीने से चमकते सुंदर मुंह को चूम चूम कर और कर दिया।
मम्मी ने मुस्करा कर कहा ,"मेरे लाडले का मूसल लंड अभी भी अपनी माँ की चूत में तनतना रहा है। अब अक्कू तू मेरे कर मुझे और चोद। "
मम्मी ने पलट कर अपना मांसल गदराया दैव्य सैंदर्य से भरा शरीर अक्कू के लिए पूरा खोल दिया।
अक्कू ने मम्मी के गदराई जांघों को फैला कर अपना लंड मम्मी के मलाशय के छोटे से छेद पर लगा कर एक ज़ोर का धक्का मारा ।
"ह्ह्ह्य अक्कू कितने बेदर्दी से तुमने मेरी गांड में अपना मोटा लंड घुसा दिया ?" मम्मी के उल्हने में वात्सल्य, वासना की उमंग और अक्कू के सम्भोग-कौशल के लिए गर्व भी।
अक्कू ने मुस्करा कर मम्मी के अध-खुले मीठे मुंह के ऊपर अपना मुंह दबा लिया और भीषण धक्कों से अपना पूरा लंड मम्मी के में जड़ तक ठूंस दिया।
मम्मी बिलबिला उठीं पर उनकी चीखें अक्कू के मुंह में दब गयीं।
मैंने तड़प कर पापा से कहा ,"पापा, अब मुझसे नहीं रहा जाता। प्लीज़ मुझे अब चोदिये। "
पापा ने मुझे प्यार से पलंग पर लिटा दिया और पलंग के पास की मेज पर राखी शीशी से द्रव्य अपने महाकाय लंड के ऊपर बूँद बूँद टपका कर उसे गोले के तेल से नहला दिया। मेरे शरीर और मन में सन्निकट पापा के विकराल लंड के आक्रमण के विचार से सनसनी फ़ैल गयी। ना चाहते हुए भी मेरे होंठों से मेरे मस्तिष्क में मचलते शब्द निकल गए ," पापा क्या मैं आपका इतना अपने चूत में ले पाऊंगीं ?"
पापा ने मेरी गोल मांसल जांघों को पूरा फैला कर अपना लंड का अविश्विसनीय महाकाय सुपाड़ा मेरी कुंवारी अक्षतयोनी के तंग रति रस से लबलबाये संकरे द्वार के ऊपर टिका कर कोमलता से मुझे सान्तवना दी ," सुशी बेटा जितना लंड तुम आराम से ले पाओगी उतने से ही तुम्हे चोदूंगा। "
मेरे हृदय में हलचल मच उठी। मैंने अपने डर को दिखा कर पापा को मुझे मम्मी की तरह चोदने से संकुचित कर दिया। मैंने मन ही मन अपने को प्रतारणा दी और जल्दी से बोल उठी, "पापा मेरा वो मतलब नहीं था। मैं तो आपके आनंद के बारे में सोच रही थी। यदि आप मुझे मम्मी के समान नहीं चोद पाये तो मुझे बहुत बुरा लगेगा। आप मुझे अपने पूरे लंड से चोदियेगा पापा, प्लीज़। यदि आपने अपना पूरा लंड मेरी चूत में नहीं डाला तो मैं आपसे कभी भी बात नहीं करूंगीं।
पापा ने हलके से हंस कर मुझे कस कर चूमा , "मैं अपनी प्यारी बेटी को क्या कभी नाराज़ कर सकता हूँ। पर बेटा जब मैं लंड अंदर डालूँगा तो तुम्हे दर्द होगा। सुशी तुम अपने पापा को क्षमा कर दोगी न तुम्हे दर्द करने के लिए। "
"पापा, आप मुझे लड़की से स्त्री बना रहे हैं। पहली बार की चुदाई में दर्द तो होगा ही। उस दर्द में आपका मेरे लिए प्रेम भी तो मिश्रित होगा। आप मेरे दर्द की बिलकुल फ़िक्र न करें। " मैंने पापा के सुन्दर मुंह को चुम कर उन्हें उत्साहना दी।
पापा ने अपना भारी विशाल शरीर से मेरा नन्हा अविकसित मुश्किल से किशोरावस्था के पहले वर्ष के विकास से भरा शरीर को धक दिया।
पापा ने मेरे मुंह को अपने मुंह से दबा कर कर अपना महाकाय लंड का सुपाड़ा मेरी नन्ही कमसिन अविकसित चूत में दबाने लगे। मैं अपनी चूत को फैलता हुआ महसूस कर बिलबिला उठी।
पापा ने मुझे अपने नीचे दबा कर निस्सहाय कर दिया था। मेरी चूत का संकरा गलियारा पापा के विकराल लंड के सुपाड़े के प्रभाव से फैलने लगा। पापा ने एक बेदर्द धक्के से पूरा सुपाड़ा मेरी चूत में धकेल दिया। मेरी चीख मेरे रुआंसे मुंह से उबल पड़ी।
मेरे नाख़ून पापा के बलशाली बाज़ुओं की त्वचा में गढ़ गए। पापा ने मुझे नन्ही बकरी के तरह दबोच कर एक और भीषण धक्का मारा। उनका विशाल अमानुषिक लंड के कुछ इंच मेरी चूत में उस तरह प्रवेश हो गए जैसे मस्त हाथी गन्ने के खेत में घुस जाता है। मैं दर्द के अधिकाय से बिलबिला उठी। मेरी आँखों में गरम आंसू भर गए। मेरी चीख पापा ने मुंह में भर गयी।
पापा का भीमकाय सुपाड़ा मेरे कौमार्य के यौनिच्छिद के ऊपर ठोकर मार रहा था। पापा ने मुझे कस कर दबा कर एक और दानवीय धक्का मारा और मैं दर्द के आधिक्य से लगभग मूर्छित हो गयी। मुझे लगा मानो मेरी नन्ही चूत में किसी ने एक तपता हुआ लोहे का खम्बा घुसा दिया हो।
मेरे शरीर में दर्द से भरी अकड़न ने मेरे कौमार्य-भांग की पीड़ा को और भी उन्नत कर दिया।
मैं खुल कर दर्द से चीख भी नहीं पा रही थी। पापा ने मेरे कौमार्य की धज्जियां उड़ा दी। मैं दर्द से बिलबिला रही थी और मुझे पता भी नहीं चला और पापा ने निरंतर निर्दयी धक्कों से अपना आधे से भी ज़्यादा लंड मेरी नहीं चूत में ठूंस दिया था। पापा ने मुझे उतने लंड से ही चोदना शुरू कर दिया। मेरी आँखे दो नदियों की तरह बह रहीं थीं। मेरे सुबकाईयां पापा के मुंह में थिरक रहीं थीं। मुझे लगा की पापा का लंड मेरी जान ले लेगा।
पापा ने मुझे निर्ममता से अपने विशाल शरीर के नीचे दबा कर अपने अमानुषिक लंड के प्रहारों से बोझिल कर दिया। पापा का लंड मेरी तड़पती चूत को छोड़ने के लिए व्याकुल था। पापा ने अपने लंड को बाहर खींच कर फिर से मेरी चूत के ऊपर आक्रमण किया। मेरा सारा शरीर मेरे कौमार्य-भंग की पीड़ा से पसीने से नहा गया। मेरा मस्तिष्क मेरी योनि में से उपजे अविश्विसनीय पीड़ा से लस्त हो उठा। मेरे आँखों से अविरत गरम आंसूओं की धारायें बह रहीं थी।
पापा ने दृढ़ संकल्प से एक भीषण धक्के के बाद दुसरे निर्मम धक्कों से मेरी चूत में अपना सम्पूर्ण विकराल लंड जड़ तक ठूंस दिया। मेरे सुबकाईयां मेरे दर्द की गवाही दे रहीं थीं। मेरी उम्र की कई लडकियां तो लंड के मारे में सोच भी पातीं जबकि मैं अपने पापा के महाकाय लंड के ऊपर फसी तड़प रही थी।
पापा ने मेरे आंसुओं की उपेक्षा कर अपने विशाल लंड से मुझे चोदने लगे।
मेरी चूत में मानों आग जल उठी। मेरी नहीं चूत अभी भी पापा के महाकाय लंड को सँभालने में असमर्थ थी। पर पापा संकल्प से अपने लंड से मेरी चूत को खोलने के प्रयत्न में सलग्न हो गए। पापा ने मेरे तड़पने को अनदेखा कर अपने लंड को धीरे धीरे पर दृढ़ता से मेरी चूत में से बाहर निकाल कर उसे फिर से मेरी संतप्त योनि में जड़ तक घुसेड़ रहे थे।
न जाने कितने समय के बाद अचानक पापा का लंड मेरी चूत में बहुत आराम से आवागमन करने लगा। मेरी चूत में अब भीषण दर्द की जगह अब बर्दाश्त करने जैसा दर्द हो रहा था जिसमे एक मीठापन भी मिश्रित हो गया था।
पापा ने मेरे लाल वासना और दर्द से दमकते चेहरे को अपने विशाल हाथों में भर कर मेरे अधखुले सुबकते मुंह को अपने मुंह में भर लिया। उनके भारी मीठे होंठ मेरे फड़कते नाज़ुक होंठों को चूसने लगे। मैंने सुबकते हुए पापा को वापस चूमा।
पापा ने अपना वृहत लंड मेरी चूत से निकाला। उनका विशाल लंड मेरे कौमार्य-भांग के प्रमाण के रस से लाल हो गया था।
पापा ने एक लम्बे धक्के से अपना लंड एक बार फिर से मेरी संकरी कुछ क्षणों पहले कुंवारी योनि में जड़ तक ठूंस दिया। मैं बिलबिला कर फिर से सुबक उठी। मेरी नन्ही बाहें पापा के गले का हार बन गयीं।
पापा ने अब बिना रुके मेरी चूत का मर्दन प्रारम्भ कर दिया। उनका अमानुषिक विकराल लंड मेरी चूत को मथने लगा। पापा के भारी कूल्हे हर धक्के के बाद और भी प्रयत्न और तेज़ी से ऊपर नीचे होने लगे। उनके कूल्हों की ताकत उनके प्रचंड लंड को मेरी चूत में अविरल क्षमता से गूंद रही थी।
"पापा ……. हाय ……….. बहुत …….. आअन्न्न्न्ह्ह्ह्ह …….पाआआ ………. पाआआ उउउन्न्न्न ……… मर्र्र्र्र गयीईई ………….. पाआआ ………………पाआआ ," मैं वासना, पीड़ा और पापा की ओर आदर के मिश्रण से बिलखती चीख उठी।
पापा ने मेरी अपरिपक्व अभिभावों की उपेक्ष्ा कर मेरी चूत का मर्दन और भी भीषण धक्कों से करने लगे।
मेरी सुबकाईयां शीघ्र सिस्कारियों में बदल गयीं। मेरी चूत में अब अनोखा दर्द हो रहा था। ऐसे दर्द का अनुभव मुझे मेरी गांड में भी हुआ था जब अक्कू ने मेरी कुंवारी गांड का लतमर्दन किया था।
मेरी आँखे मम्मी और अक्कू की सिस्कारियों को सुन कर उनकी तरफ मुड़ गयीं। अक्कू मम्मी की मांसल भारी जांघों को उनके कन्धों की ओर मोड़ कर उनकी गांड भीषण निर्मम धक्कों से मर्दन कर रहा था। अक्कू के हर धक्के से मम्मी का सारा गदराया शरीर हिल उठता था। उनके भारी विशाल स्तन हर धक्के से हिल उठते थे। जब तक मम्मी के उरोज़ स्थिर हो पाते अक्कू का दूसरा धक्का उनको फिर से इतनी ज़ोर से हिला देता था मानों वो उड़ान के लिए तैयार थे।
मम्मी की सिस्कारियां संगीत के स्वरों की तरह रजनीगंधा की सुगंध की तरह कमरे में फ़ैल गयीं।
मम्मी सिसक कर चरम आनंद के प्रभाव से विहल हो कर चीखीं ,"अक्कू और ज़ोर से मेरी गांड चोदो। मैं फिर से झड़ने वालीं हूँ।
अक्कू ….ऊ…… ऊ…… ऊ। आआह……. बेटाआआ……..। "
मेरा ध्यान मेरे अपने रति-निष्पति के अतिरेक से अपनी चूत पर केंद्रित हो गया। मेरी बाहें पापा की गर्दन पे जकड़ गयीं,
"पापाआआआ ……... आआअह ………… उउउन्न्न्न्न्न ………. मैं आआअह ………. पापाआआ……….। "
पापा का लंड अब फचक फचक की आवाज़ें बनाता हुआ मेरे चूत को रेल के इंजिन के पिस्टन की तरह रौंद रहा था।
मम्मी पापा का कक्ष मेरी और मम्मी की सिाकारियों से गूँज उठा। हम दोनों की सिस्ज्कारियों में कभी कभी पापा और अक्कू की गुरगुराहट भी संगीत के सांगत की तरह शामिल हो जातीं थीं।
अगले घंटे तक तक मेरी सिस्कारियां और आनंद भरे दर्द के सुबकाइयों ने मेरे कानों को भर दिया। जब अक्कू ने मम्मी की गांड में अपना लंड खोला तो उनकी चीख निकल उठी और वो एक बात फिर से झड़ गयीं।
पापा ने मुझे झाड़ने के बाद अपने अमानवीय लंड के गाढ़े सफ़ेद जननक्षम वीर्य के बारिश से मेरी अविकसित चूत गर्भाशय को
सराबोर कर दिया।
मैं अचानक फिर से झड़ गयी और इस बार के रति-निष्पति के आधिक्य से मैं लगभग मूर्छित हो गयी।
उस रात पापा ने मेरी गांड बड़ी देदर्दी से मारी। मैं पहले दर्द सी बिलबिला गयी पर वो मीठी आग में बदल गया। मम्मी ने
अक्कू और पापा के लंड इकट्ठे लिए, एक गांड दूसरा चूत में। उनके उफ़्फ़नते आनंद को देख कर मुझे जूनून चढ़ गया। जब पापा
का वृहत लंड मेरी चूत में समां गया तो अक्कू ने अपना लंड निर्ममता से मेरी गांड में जड़ तक ठूंस दिया। मैं दर्द से चीख उठी
पर पहले की तरह कुछ देर में मेरे दर्द की लहर आनंद की बौछार में बदल गयी।
उस रात पापा और अक्कू ने मम्मी मुझे सारी रात चोदा ।
उस दिन के बाद से शाम को कॉलेज से आने के बाद जब हम दोनों कॉलेज का कार्य निबटा लेते थे तब पापा मुझे जम कर चोदते
और मम्मी अक्कू से चुदवातीं थीं। रात को भोजन के बाद हमेशा की तरह अक्कू और मैं रात सोने से पहले घनघोर चुदाई करते
थे।
कुछ सालों में कॉलेज हमारी दोस्ती इन महाशय से गयी, बुआ ने छोटे मामा को प्यार से चूम कहा , और फिर हमें पता चला कि
हमारी तरह एक और परिवार समाज के तंग प्रतिबंधों से मुक्त था। सुनी ( सुनीता, मेरी मम्मी), रवि भैया और आप अपने मम्मी
और डैडी के साथ पूर्ण रूप से हर आनंद में सलंग्न थे।
उसके बाद कहानी तो आप दोनों को खूब अच्छे से पता है।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
19-07-2019, 04:33 PM
(This post was last modified: 19-07-2019, 04:34 PM by thepirate18. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
Update 27
मैं दरवाज़े से लगी संस्मरण सुन कर न जाने कितनी बार झड़ चुकी थी। मेरी उँगलियों ने मानों अपने आप बिना मेरे निरणय के
मेरी चूत को सारे समय मठ दिया था। मैंने बिना सोचे अपने रति सराबोर लिसलिसी उँगलियों को अपने मुंह में डाल लिया और
मेरा मुंह मेरे रस की मिठास से भर गया। मैं मानसिक और शारीरिक शिथिलता से ग्रस्त हो चली थी। मैं व्यग्रता से अपने कमरे की
ओर भाग गयी। कमरे में पहुँचते ही मैंने अपने वस्त्र उत्तर कर बिस्तर में निढाल लुढ़क गयी। बिना एक क्षण बीते मैं निंद्रा देवी
गहन गोड में समा गयी।
सारी रात मुझे एक के बाद एक वासना में लिप्त सपनों ने घेरे रखा। सारे स्वप्नों में मैं परिवार के एक या दुसरे सदस्य के साथ
सम्भोग में सलंग्न थी। आखिर के सपने में सुशी बुआ ने मुझे अपनी बाँहों में जकड रखा था और वो भी निवस्त्र थीं।
"अरे प्यारी भतीजी जी अपनी बुआ के लिए अब तो ज़रा से अपने चक्षुओं को खोल दीजिये ," बुआ वास्तव में निवस्त्र
मुझे अपनी बाँहों में भरे हुए मुझे प्यार से चूम रहीं थीं।
मैंने शर्म से अपने लाल जलता हुआ मुंह बुआ के विशल मुलायम स्तनों के बीच छुपा लिया। बुआ ने मेरा मुंह ऊपर उठा
कर मेरे जलते होंठों पर अपने कोमल होंठ रख कर हौले से कहा , "अच्छा यह बताओ कल हमारे परिवारों की घनिष्ठता
की कहानी सुन कर तुम कितनी बार झड़ी थीं। "
मेरे आश्चर्य से खुले मुंह का लाभ बुआ ने उठाया और उनकी मीठी जीभ मेरे सुबह सवेरे के मुंह में प्रविष्ट हो गयी।
मेरी बाँहों ने भी स्वतः बुआ को घेर लिया। मैंने भी बुआ के जीभ से अपनी जीभ भिड़ा दी। बुआ की मीठी लार जैसे ही
मेरा मुंह भर देती मैं उसे सटक जाती। बुआ और मैं गहन भावुक चुम्बन में पूर्णतया सलंग्न हो कर हलके हलके 'उम' 'उम'
की आवाज़ें बनाते हुए एक दुसरे के सुबह के अनधुले मुंह के स्वाद के लिए
तड़प रहे थे।
आखिर बुआ ने मेरे पूरे मुंह को अपनी जीभ से तलाश कर संतुष्टि से मुझे हलके से चूमा।
"बुई आपको कैसे पता चला कि मैं दरवाज़े पर थी ?" मैंने बुआ पीठ हांथों से सहलाया।
"अपने बच्चों के लिए माँ की छठी इंद्री बहुत तीक्षण होती है ," बुआ ने मेरी नाक की नोक को चूमते हुए मुझे और भी
कास कर पकड़ लिया, "नेहा अब तो मुझे तुम्हारे सुबह के मीठे मुंह के स्वाद की आदत पड़ जाएगी। "
मैंने शरमाते हुए बुआ से कहा , "आप जब चाहें," फिर मुझे रात की एक बात याद आयी , "बुआ क्या दोनों मामा ने
आपको एक साथ उम.... चो.... चोदा ?" आखिर में 'च' शब्द मेरे मुंह से निकल ही गया।
"नेहा एक बार नहीं तीन बार। मेरी चूत और गांड दोनों के वीर्य से है। तुम्हारा मन हो तो मैं …… ," बुआ के अधूरे
प्रस्ताव से ही मेरी चमकती आँखे और अधखुले लालची मुंह ने मेरी तीव्र इच्छा का विवरण बुआ को दे दिया।
बुआ अंजू भाभी की तरह अपने दोनों घुटने मेरे दोनों ओर रख कर पहले रेशमी झांटों ढकी मेरे दोनों मामाओं सनी
चूत तो खोल कर मेरे खुले मुंह के ऊपर रख दिया। धीरे धीरे उनकी महकती चूत से लिसलिसी गाढ़ी धार मेरे खुले मुंह
में टपकने लगी। मैंने भी बुआ के चूत के कोमल सूजे भगोष्ठों को चूम कर उनके मोटे लम्बे भगशिश्न को जीभ से कुरेद
दिया। जब मैंने बुआ की चूत से सारा खज़ाना चाट लिया तो उन्होंने अपनी दूसरी गुफा के को मेरे मुंह के ऊपर। बुआ
के भारी विशाल गोरे नितिम्बों के बीच उनकी नन्ही सी गुदा का छिद्र उनके ज़ोर लगाने से खुल गया। उनकी अनोखी
मनमोहक सुगंध ने मुझे भावविभोर कर दिया। बुआ ज़ोर लगा कर अपनी मलाशय से गाढ़े वीर्य की लिसलिसी धार आखिर
में मेरे मुंह की ओर प्रवाहित करने में सफल हो गयीं। दोनों मामा के वीर्य का रंग और सुगंध बुआ की गांड के रंग और
सुगंध से मिल कर और भी मोहक हो गया था।
मैंने जितना भी खज़ाना बुआ की गांड से मिल सकता था उसे लपक कर चाट लिया और धन्यवाद के रूप में गांड को
अपनी जीभ लगी। बुआ की सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहित कर दिया कर दिया ।
बुआ जल्दी से मुड़ीं और शीघ्र वो मेरे ऊपर लेती हुईं थीं। अब उनका मुंह मेरी गीली चूत के ऊपर था। मैंने दोनों हाथों से
बुआ के प्रचुर नितिम्बों को जकड कर उनकी रसीली चूत ऊपर अपना मुंह दबा दिया। बुआ ने अपने होंठों में मेरे कोमल
छोटे भगोष्ठों को कस कर पकड़ कर चूसने लगीं। उनके मीठा दर्द हुआ और मैंने भी उनके बड़े मोटे भग-शिश्न को हौले
से दाँतों से चुभलाने लगी। हम दोनों की सिस्कारियां एक दुसरे को प्रोत्साहन सा दें रहीं थीं। मैंने अपने दोनों घुटने मोड़
कर फैला दिए जिस से बुआ को मेरी चूत और गांड और भी आमंत्रित कर रही थी। मैं अब बुआ के चूत की संकरी गुफा
को चोदने लगी। बुआ ने भी अपने एक गीली उंगली हलके से मेरी तंग गांड में सरका दी और ज़ोर से मेरे भग -शिश्न को
चूसने, चूमने और अपनी जीभ से चुभलाने लगीं।
उनकी देखा देखी अपनी तर्जनी बुआ की गांड में जोड़ तक डाल दी। अब हम दोनों एक दुसरे की गांड अपनी उंगली से
मार रहे थे और अपने मुंह से एक दुसरे मठ थे।
हम दोनों पहले से ही बहुत उत्तेजित थे। कुछ मिनटों में हम लगभग इक्कट्ठे हल्की से चीख मार झड़ने लगीं। बुआ कुछ
अपनी साँसे सँभालते हुए फिर से मुड़ कर मुझे बाँहों में ले कर लेट गयीं।
"नेहा बिटिया , अब तो तुम्हारा सारा परिवार तुम्हारे प्यारे सौंदर्य के प्रसाद के लिए उत्सुक है ," बुआ ने मेरे मुंह को
चूमते हुए कहा। हम दोनों का रति रस एक दुसरे के मुंह के ऊपर लिसड़ गया।
"बुआ , मुझे शर्म आती है ," मारी लज्जा अभी भी मुझे रोक रही थी।
"अरे बड़े मामा के हल्लवी लंड को तो कूद कूद के लेने से नहीं हिचकिचाई अब शर्म किस बात की ?" बुआ ने मेरी
सारी नाक अपने मुंह में ले कर उसे चूमने और काटने लगीं।
"बुआ मैं बड़े मामा के बाद किस के पास जाऊं ?" मैंने आखिर अपनी ईच्छाओं के लिए अपनी लज्जा को समर्पित
करने का निर्णय ले लिया।
"नेहा बेटी निर्णय तो तुम्हारा है पर जब तुमने पूछा है शायद नानाजी को तुम्हारा इंतज़ार बहुत दिनों से है ," बुआ ने
मेरे दोनों कस कर कहा।
मैं ने शरमाते हुए सर हिला दिया।
"पर अभी सिर्फ मेरी हो ," बुआ ने प्यार से दांत किचकिचाते हुए मुझे अपनी बाँहों में जकड़ लिया।
हम दोनों कुछ शयन कक्ष से लगे स्नानगृह में। गुसलखाने में बुआ ने फुसफुसा कर कहा , "नेहा बिटिया अपने बुआ को
अपना मीठा प्रसाद नहीं दोगी जिसके स्वाद के तुम्हारे बड़े मामा पुजारी बन गए हैं। "
मैं बुआ का तात्पर्य शर्मा गयी , "जरूर बुआ पर मुझे बिना रोके-टोके पूरा प्रसाद देंगीं। " मैं हल्की से मुस्कान शर्त रख
दी।
बुआ ने भी मुस्करा कर हामी भर दी। पहले मेरी बारी थी। बुआ ने बिना एक बूँद खोये मेरी पूरी सारा सुनहरी गर्म भेंट
सटक ली। उनके चेहरे पर एक अनोखी संतुष्टी थी। मैंने भी नदीदेपन से बुआ की गीली खुली चूत पर मुंह लगा कर
उनका मोहक सुनहरा प्रदार्थ बिना हिचके घूंट घूंट लिया।
फिर हम दोनों ने एक दुसरे को नहलाया। बुआ ने एक बार फिर से अपनी उँगलियों से मुझे झाड़ दिया।
नाश्ते की मेज पर हमेशा की तरह चुहल बाजी एक शुरू हुई तो धीमे होने का नाम ही नहीं लिया। सबकी बारी लगी।
नेहा नंबर आया तो बुआ ने मोर्चा संभाला, "भाई नेहा ने नानाजी का भरपूर ख्याल रखने का वायदा किया है। "
दादाजी ने हँसते हुए कहा ,"इसका मतलब है नेहा बेटी अपने दादा जी को बिलकुल भूल जाएगी ?"
बुआ जी ने हंस कर कहा , "पापाजी नेहा बहुत समझदार है। मुझे विश्वास है वो आपका ख्याल जितना रखेगी। नहीं
नेहा बेटी? "
मेरे शर्म से लाल मुंह को देख कर सब हंस दिए।
उसके बाद सबने टीम्स बना कर टेनिस का टूर्नामेंट खेलने का निर्णय बनाया। अंतिम चरण [फाइनल] में मैं और छोटे
मामा की टीम का मम्मी और नानाजी की टीम से मुकाबला था। मैं और छोटे मामा बड़ी मुश्किल से मम्मी और नानाजी
पाये।
हम सब पसीने से भीग गए थे। नानाजी ने मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया। जब मैं खिलखिला कर हंस दी और बोली
,"नानू अब मैं छोटी बच्ची तो नहीं हूँ। "
नानाजी ने मेरे पसीने से भीगे शरीर को अपने उतने ही गीले शरीर से कस कर बोले ," नेहा बेटी नानू और दादू के
लिए तो तुम हमेशा बच्ची हे रहोगी। पर हमें कब दिखाओगी की तुम कितनी बड़ी हो गयी हो ?"
नानाजी के मीठे छुपे तात्पर्य से न चाहते हुए भी शर्मा गयी। मैंने अपना मुंह नानू की गर्दन में से कहा , "जब आप चाहें
नानू। "
नानू ने मेरी पीठ सहलाते हुए कहा , "आज रात्रि के भजन के बाद हम दोनों तुम्हारा पूराना खेल क्यों नहीं खेलते ?"
मैं और शर्म से लाल हो गयी। नानाजी मेरे बचपन के जिस खेल का ज़िक्र कर रहे थे उसका नाम 'डंडी कहाँ छिपायी '
था। यह खेल गोल छोटी डंडी को बोर्ड के छेद में छिपा कर दुसरे खिलाड़ी के अनुमान के ऊपर आधारित था। जब सही
अनुमान होता तो उस छेद पर लिखे अंकों को उस खिलाड़ी खाते में जोड़ दिया जाता था। यह खेल बहुत छोटे बच्चों
के लिए बना था जिस से उन्हें गड़ना आ जाए। नानू और दादू जब मैं तीन चार साल थी तो हम वो खेल बहुत खेलते थे।
"जैसा आप चाहें नानाजी, " सांसें तेज हों गयीं। मैंने नानू को कस कर पकड़ लिया।
दोपहर के भोजन के ठीक उपरांत डैडी और दोनों मामा के गहरे दोस्त का फोन आया। कुछ मेरी सहेली शानू फोन पर
उलाहने दे रही थी। शानू, यानि शहनाज़, मुझसे एक साल छोटी थी। जो परिवर्तन मुझमे किशोरावस्था के सालों ने
किया था वो शानू में सिर्फ दो सालो में आ गया था।
"नेहा साली आप की शादी में नहीं आयी इम्तेहान के वजह से पर अब तो आ जा। आपा और भैया मधुमास [हनीमून] से
वापस आ गए हैं। नसीम दीदी तुझे कितना हैं। " शानू मेरी गिनी चुनी दोस्तों में से है जो खुल कर मुझे गालियां दे
सकती है।
"शानू, यार मेरा मन भी बहुत कर रहा है पर आज शाम को मुझे ज़रूरी काम है। मैं कल सुबह आ जाऊंगीं। " मैंने
बिना सोचे नानू के साथ हुए वायदे को अत्यंत महत्व दे दिया।
"अबे साली तू अब मेरे दिल और दीदी के दिल को तोड़ रही है। ज़रूरी काम है यह। मैं कुछ नहीं सुनने वाली,
तैयार हो जा और अंकल को बोल ड्राइवर को तैयार कर दें, " शानू अब पूरे प्रभाव में थी।
बुआ जो पास हीं थीं बोलीं ," नेहा शानू का दिल नहीं तोड़ो। तैयारी कर देंगें। "
मैंने फोन के ऊपर हाथ रख कर धीरे से कहा ," बुआ आज मुझे नानू का ख़याल रखना था। "
बुआ ज़ोर से हंस दी ," डैडी यदि मैं आपका ख्याल रखूँ तो आप नेहा को जाने देंगें न ?"
नानू भी हंस दिए , "नेहा बिटिया दोस्ती बहुत मत्वपूर्ण होती है। सुशी को मेरा ख्याल रखना अच्छे से आता है। "
मैं शर्मा गयी और हड़बड़ाहट में जल्दी से शानू से बोली , " ठीक है। मैं वहां पहुँच जाऊँगी। "
शानू ने अपने विशिष्ट अंदाज़ में कहा, "और सुन यदि तूने एक हफ्ते से पहले वापस जाने को बोला तो मुझसे कुट्टी ," मैं अब बेबस थी।
बुआ ने मेरी तैयारी में मदद की, "नेहा बेटी तुम्हें ज़रूरी काम करना पड़ेगा। अकबर भैया बहुत अकेले पड़ गएँ हैं। शब्बो
दीदी भी बहुत अकेली हैं। "
अकबर अंकल विधुर हैं और उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को अपनी बहिन शबनम आंटी की मदद से पाला पोसा। शबनम
आंटी भी विधवा हैं। उनके इकलौते बेटे आदिल की शादी नसीम दीदी से उन दोनों के प्यार को देख कर हुई थी।
"तुम्हारा जादू यदि उस परिवार पर चल गया तो उनकी खुशी कई गुना बड़ जाएगी। मैं अचानक बुआ की योजना को
समझ गयी।
"बुआ मैं अकबर अंकल से सीधे सीधे कैसे बात कर पाऊंगीं ?" मैं सीख रही थी पर अभी भी बुआ जितनी चतुर नहीं बन
पाई थी।
"अकबर भैया और तुम्हारे दोनों मामा और मैंने कई बार इकट्ठे सम्भोग किया है। अकबर भैय्या का किसी को तो ध्यान
रखना था ना ! पर शब्बो दीदी का प्यार उनके दिल में ही घुट कर रह जायेगा। जब तुम अकबर भैया को अकेला पाओ तो
पाओ तो उनको कहना कि तुम्हे मैंने उनका ख्याल रखने के लिए कहा है। यदि इस से उन्हें सब समझ नहीं आया तो मुझे
कहना," बुआ ने मुझे जादू की चाभी थमा दी - अकबर अंकल के लिए उनका निजी खत।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
20-07-2019, 04:34 PM
(This post was last modified: 20-07-2019, 06:21 PM by thepirate18. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
Update 28
अकबर चाचू का घर शहर से बाहर था। दो घंटों में ड्राइवर ने उनके विशाल भवन के सामने गाड़ी रोक दी। शानू बाहर
ही मेरा इंतज़ार कर रही थी।
शानू का शरीर पहले से भी और भर गया था। उसके गदराया शरीर मेरी तरह ही उस से कई साल बड़ी लड़कियों को
शोभा दे सकने दे सकने के लायक था। हम दोनों को देख कर कई लोग हमें हमारी वास्तविक उम्र से कई साल बड़ा
समझते थे। शानू मेरे से ग्यारह महीने छोटी थी। मैं तब किशोरावस्था के दो साल पूरे कर चुकी थी। शानू तब दुसरे साल के
प्रारम्भ में थी। मैंने दसवीं पूरी कर ली थी और शानू ने दसवीं में प्रवेश किया था।
हम दोनों दौड़ कर एक दुसरे से लिपट गए और बिना वजह के दोनों रूआँसे हो गए।
शानू और मैं जल्दी से शानू के कमरे की ओर दौड़ पड़े। घर के नौकरों और ड्राइवर ने सामान संभल लिया।
"शानू सब लोग कहाँ हैं ?" मैंने शानू को अपने से अभी तक जकड़ रखा था।
"अब्बु अभी काम पर हैं. मैंने उन्हें फोन नहीं किया। शाम को उन्हें सरप्राइज़ देंगें। नसीम आपा की दोस्त की मम्मी बीमार हैं
सो उनकों न चाहते हुए भी शहर जाना पड़ा। आदिल भैया टेनिस से वापस आने वालें हैं। "
"अरे अभी भी तू आदिल भैया को अभी भी भैया कहती है। अब तो वो जीजू हैं। मेरे भी और तेरे भी। अरे अब तो तू और मैं
उनकी आधी घरवाली हैं। उनका हम दोनों पर पहला हक़ है और वो जब चाहें उस हक़ से हमें अपना सकते हैं ," मैंने शानू
के गुलाबी होंठों को चुम कर उसे ताना दिया।
"नेहा मैं क्या करूँ ? मेरे मुंह से इतने सालों की आदत की वजह से भैया ही निकल पाता है, " शानू ने भी मुझे चूमा और
फिर खिलखिला के हँसते हुए बोली , "तुझे तो मैं बता सकतीं हूँ कि नसीम आपा भी जब भैया ….. मेरा मतलब है जीजू
जब उनकी जम कर चुदाई करतें हैं तो वो भी भूल जातीं हैं कि आदिल भैया उनके खाविंद हैं और 'भैया और ज़ोर से
चोदो, भैया चोदो मुझे ' चीख पड़ती हैं। "
"खैर अब मैं आ गयीं हूँ। तुझे जीजू का पूरा ख्याल कैसे रखतें हैं सीखा कर जाऊंगीं ," मैंने शानू ने भरी उभरे नितिम्बों
को कस कर दबाया।
"तू तो ऐसे कह रही है जैसे तुझे सब पता है ," शानू ने जवाब में मेरे भरे पूरे नितिम्बों को मसल दिया।
मैंने भेद भरी मुस्कान कायल कर दिया और उसे सारी कहानी विस्तार से सुना दी। मैंने उस से कुछ भी नहीं छुपाया।
शानू भौचक्की रह गयी और फिर मुझे लिपट गयी और हम दोनों खुशी से रो पड़े।
शानू सुबक कर बोली, " हाय रब्बा रवि और सुरेश चाचू ने तुझे बिलकुल भी नहीं बक्शा ? उनके मोटे लण्डों ने तेरी चूत
या गाड़ फाड़ दी होती तो क्या होता ?"
"मेरी प्यारी शानू यह ही तो सम्भोग का आनंद है । बड़े मामा और सुरेश चाचू के हाथी जैसे लंड लेने में मेरी तो जान ही
निकल गयी। पर जितना भी दर्द हुआ और मैं जितना भी बिबिलायी पर जितना आनंद उनके लंड को अपने भीतर लेने में
आता है उसके आगे वो दर्द कुछ भी नहीं है। नम्रता चाची जैसे कहतीं हैं कि जब तक लड़की के चूत या गांड मरवाते समय
चीख ने निकले तो लंड की इज़्ज़त खतरे में है। " मैंने शानू के फड़कते नथुनों को चूम कर उसे कस कर जकड लिया।
जब हम दोनों शांत हुए तो मैं बोली , "जीजू कब आने वाले हैं ?"
शानू ने लाल गीली आँखों से मुस्करा कर कहा , "शायद आने वालें ही होंगें। "
"तो फिर तैयार हो जा, " मैं उसके उभरते उरोज़ों को मसल कर कहा , " आज तेरी चूत का उद्घाटन होने वाला है जीजू के
लंड से। "
"हाय नेहा नसीन आपा ख़ूबसूरत हैं और भ........ आईय़ा …… जीजू इतने हैंडसम हैं मैं तो बच्ची जैसी दिखती होंगी
उनको । तू उनको तो बड़ी आसानी से फंसा सकती है ," शानू के दिल की पुकार उसके बेचैन आंदोलित मस्तिष्क के
ऊपर काबू पाना चाह रही थी।
"अच्छा अब बकवास बंद कर और जल्दी से कपडे बदल ले। आज तेरी चूत का उद्घाटन जीजू के लंड से ज़रूर होगा। तू
चाहे या न चाहे। ," मैंने शानू को खींच कर बिस्तर से उतारा।
शानू और मैंने तंग टी शर्ट और छोटे शॉर्ट्स पहन लिए। हालांकि शानू और मैं किशोरावस्था के द्वार से एक और दो साल
ही दूर थे पर उस समय किसी ऋषि का मन भी डाँवाँडोल हो जाता।
जब आदिल भैया मेरा मतलब जीजू दाखिल हुए तो मेरी भी सांस रुक गयी। जीजू उस समय बाईस साल के थे और छह
फुट से ऊंचे गोरे सुंदर और बहुत मांसल हो गए थे। भैया पसीने से नहाये हुए थे हुए थे। मुझे देख कर उनकी खुशी रुक
नहीं पा रही थी। मैं दौड़ कर उनकी बाँहों में समा गयी।
"आदिल भैया, आदिल भैया ," मैं खुद शानू को दी हुई सलाह को भूल गयी।
जीजू ने मुझे अपनी बाँहों में भर कर हवा में उठा लिया, "ऊफ़ मुझसे गलती हो गयी। अब तो आप मेरे जीजू हैं, " मैंने
इठला कर आदिल भैया को चुम लिया।
"नेहा अब तुम शानू को समझाओ ना ," आदिल भैया ने मुझे कस कर भींचा और खुद फिर से मेरे होंठों को चूम लिया।
जैसे ही आदिल भैया ने मुझे नीचे रखा मैंने शानू को उनकी तरफ धकेला , "जीजू अब चलिए अपनी दूसरी साली को भी
किस कीजिये। "
आदिल भैया ने शर्माती शानू को बाँहों कर और बोले, "एक बार तो जीजू बोल दो शानु। "
"जीजू ," शानू ने शरमाते हुए फुसफुसाया। और दुसरे ही क्षण आदिल भैया के होंठ शानू के होंठों से चिपक गए।
आदिल भैया ने हांफती हुई कमसिन शानू को नीचे उतारा और बोले , "मैं जल्दी से नहा कर तैयार होता हूँ फिर बाहर खाने
चलते हैं। "
"जीजू अब आपकी दो दो सालियां है। नहाने में मदद की ज़रुरत हो तो हमें बुला लीजियेगा ," मैंने इतराते हुए कहा।
आदिल भैया की आँखों ने सच बोल दिया और उन्होंने ने हम दोनों को घूर कर देखा, "सच में शायद मुझे मदद की
ज़रुरत पड़ ही जाये। "
शानू और मैं शर्म से लाल हो गए। मैंने भैया को अपने कमरे की ओर जाता देखा।
"शानू की बच्ची यह ही मौका है ," मैंने शानू को जगाया। वो बेचारी आदिल भैया को लाचार प्यार भरी निगाहों से दूर जाते
हुए घूर रही थी।
हम दोनों ने पांच मिनट इंतज़ार किया और फिर धीमे क़दमों से आदिल भैया के कमरे में घुस गए। भैया के कपड़े पलंग पर
बिखरे थे और कमरे से संलग्न स्नानगृह से स्नान के फौवारे आवाज़ साफ़ सुनाई पड़ रही थी। हम दोनों का ध्यान बिस्तर
पर पड़ी तौलिया की तरफ गया और दोनों ने मुस्करा कर विजय की पताका फेहरा दी।
मैंने बेसब्री से शानू को फुसफुसाई, " चल अब जल्दी से कपडे उतार। यही मौका है जीजू को फ़साने का। "
शानू की कुछ क्षणों की झिझक देख कर मैंने उसकी टी शर्ट खींच कर उतार दी। शानू अपने शॉर्ट्स खुद ही खोलने लगी, "हाय नेहा मेरा दिल
लग रहा है कि जैसे फट पड़ेगा।"
मैंने शानू के होंठों पे उंगली रख उसे शांत रहने का निर्देश दिया और जल्दी से सरे कपड़े उतार कर शानू की तरह निवस्त्र गयी।
"शानू जैसे मैं सुझाऊं वैसे ही करना ," शानू को निर्देश देते हुए मैं शांत क़दमों से स्नानगृह ओर अग्रसर हो गयी। शानू धीमे धीमे चल रही थी,
मैंने अधीरता से उसका हाथ पकड़ कर अपने पीछे खींचने लगी।
आदिल भैया का पुष्ट मांसल शरीर पानी से भीग और भी सुहाना लग रहा था। उनकी बड़ी बड़ी मांस-पेशियां उनकी हर गतिविधि मनमोहक रूप से
आंदोलित हो रहीं थी। उनका लम्बा मोटा वृहत लंड तब शिथिल था। पर उसके शिथिल अवस्था में भी इतना लम्बा,मोटा और भारीपन था कि
उसके तन्नाये होने पर भैया का लंड घोड़े जैसा महाकाय हो जाने का अहसास शीघ्र आसानी से दर्शित हो रहा था ।
"जीजू अरे आप इतनी मेहनत क्यों कर रहें हैं। आपकी दो दो सालियां क्या मर गयीं हैं ? " मैंने जल्दी से बोली क्योंकि मैं भैया के आश्चर्य को
छितराने के लिए उत्सुक थी। भैया मेरे उल्हाने को सुन कर अपनी दोनों छोटी बहनों को नंगा देख कर जिस अचम्भे में पड़ गए थे उस से शीघ्र ही
उभर गए।
"छोटी साली साहिबा, आपने हमें कोई इशारा तो किया था पर जब आप दोनों नहीं आये। इसीलिये हमें लगा की खुद ही अपनी मदद नहीं की तो
सारी ज़िंदगी इंतज़ार में निकल जाएगी। " भैया भी कम नहीं थे।
"क्या जीजू, क्या हम दोनों को नहीं पता की आपको अपनी नुन्नी धोने के लिए मदद की ज़रुरत पड़ती है। यहाँ ना तो शब्बो बूई हैं और ना ही
नसीम आपा हैं। फिर आपकी नन्ही सी चुन्मुनिया को कौन साफ़ करेगा ? " मैंने लपक कर भैया के हाथ से साबुन छीन कर उनके लुभावने
मांसल शरीर के ऊपर झाग बनाने लगी।
शानू की आँखे भैया के विकराल लंड को देख कर फटी की फटी ही रह गयीं। भैया का लंड अभी मुश्किल से खड़ा होना प्रारम्भ भी नहीं हुआ था।
भैया भी कम नहीं थे। उन्होंने मुझे तेज़ी से बहते फव्वारे के नीचे खींच कर पूरे तरह से गीला कर दिया। मेरे कंचन जैसे भरे पूरे अविकसित शरीर
पर पानी की लहरें मेरे गदराये घुमावों को उभारते हुए मेरी मांसल झांगों लहरती हुईं फर्श पर मचलने लगीं।
भैया ने लपक कर नसीम आपा का चन्दन महक से भरपूर सुगन्धित साबुन मेरे शरीर पर शरीर पर सहलाने लगे , "साली जी हमें भी तो आपकी
सेवा करने का मौका दीजिये। "
"अरे जीजू आपको कौन रोक रहा है। चाहे सेवा कीजिये या लूट लीजिये आपकी मर्ज़ी है ," मैंने इठला कर भैया को खुला निमंत्रण दिया , " नहीं
रे शानू ?" मैंने शानू को भी खींचने किया।
"हाँ ठीक है नेहा ," शानू ने कांपती आवाज़ में कहा।
"भाई हमें नहीं लगता हमारी दूसरी साली का मन आप से इत्तेफ़ाक़ कर रहा है ," आदिल भैया ने शानू को चिढ़ाया। बेचारी आँखे एकटक उनके
हिलते लंड को घूर रहीं थीं। भैया को शानू की तड़पन अच्छे से समझ आ रही थी।
मेरे हाथ भैया की भारी भरकम मांसल जांघों के बीच मस्त हाथी की मोटी सूंड जैसे हिलते डुलते लंड के ऊपर पहुँच गए। मैंने उनका मोटे सेब
जैसा विशाल सुपाड़ा अपने दोनों हाथों में भर कर उसे साबुन के झागों से ढकने लगी। आखिर भैया की 'मुनिया' को साफ़ करने ही तो हम दोनों
आये थे।
भैया के सुपाड़े के ऊपर बड़े मामा के लंड की तरह त्वचा नहीं थी।
भैया साबुन लगाने के उपक्रम के बहाने मेरे बड़े स्तनों को सहलाने लगे।
आदिल भैया का लंड बहुत तेज़ी से तनतनाने लगा। भैया ने मेरे स्तनों को साबुन के झागों से ढक दिया। शानू मेरे और जीजू बनाम भैया के बीच
होती मादक भौच्चकेपन से एकटक घूर रही थी। मैं यह ही तो चाहती थी।
आदिल भैया के हाथों ने मेरे दिन ब दिन बड़े होते गदराये मोटे उरोज़ों को कस मसलना प्रारम्भ दिया। मेरे अधखुले मुंह से सिसकारी उबल उठी।
मेरे नाज़ुक दोनों हाथ बड़ी मुश्किल बड़ी मुश्किल से आदिल भैया के तन्नाये हुए विकराल लंड के घेरे को नाप पा रहे थे। उनका हाथ भर लम्बा बोतल
जैसा मोटा लंड मेरे दोनों हाथों को और भी नन्हेपन का आभास दे रहा था। मैंने सारी शर्म ताक पर रख कर आगे झुक कर भैया को विशाल सुपाड़ा मुंह
में ले लिया। शानू पहले से ही फटी आँखें भी खुल गयीं।
आदिल ने मेरे दोनों चुचूकों को कर निर्दयता से मड़ोड़ कर खींचा और मेरी सिसकारी से उत्साहित हो कर मेरे स्तनों का मर्दन और भी ज़ोरों से करने
लगे।
"नेहा ऐसे ही ……… मेरा लंड चूसो ………," आदिल भैया भी सिसक उठे।
मैंने उनका सुपाड़ा और उनके भीमकाय लंड की एक और इंच मुंह में बड़ी मुश्किल से समाते हुए उनके गोरे मोटे लंड की उपासना में सलंग्न हो गयी।
घुसल खाने में मानव से भी पुरातन सम्भोग के पहले का नृत्य का शुभारम्भ हो गया।
ना जाने कितनी देर बाद मैंने आदिल भैया के मेरी लार से सने चमकते लंड को आज़ाद किया। मेरी जलती आँखें भैया के वासना के डोरों से लाल
आँखों से उलझ गयीं।
शानू आँखे फाड़ फाड़ कर अपने भैया और अब जीजू और मेरे बीच में सम्भोग की पूर्वक्रिया के अश्लील दृशय के प्रभाव में ज़ोर ज़ोर से सांसे भर रही थी।
आदिल भैया ने अपनी सम्मोहक बहिन और साली उसकी गहरी साँसों से के ऊपर नीचे होते उन्नत वक्षस्थल के मनमोहक दृश्य के प्रभाव में आ कर मेरे
घुंघराले बालों में उंगलियां डाल कर मेरे सर को जकड़ लिया और अपने विशाल मांसल कूल्हों को हचक हचक कर आगे पीछे कर अपने मूसल लंड से
मेरे मुंह की निर्मम चुदाई करने लगे. मेरी आँखों से आंसू बह चले। जीजू का लंड हर धक्के से मेरे हलक के पीछे की दीवार पर ठोकड़ मार रहा था। मेरी
घुटी घुटी उबकाई सामान 'गों-गों 'की आवाज़ें विशाल स्नानगृह में गूँज उठीं।
मेरा मुंह जीजू के भीमकाय लंड की विशाल परिधि के ऊपर पूरा खुला हुआ था। मेरे मुंह के दोनों कोने मानों चिरने वाले थे। आदिल भैया, …
नहीं..नहीं…, आदिल जीजू के महा लंड बड़े मामा और सुरेश चाचू लंड से तक्कड़ ले रहा था। मेरे मुंह के चिरते कोनों से मेरी लार बह चली। आदिल
जीजू ने बेदर्दी से मेरे मुंह की चुदाई करके मेरे चूत को रति-रस से भर दिया।
बड़े मामा ने मुझे अपरिपक्व उम्र में ही सीखा दिया था कि कोई भी लड़की या स्त्री अपने पुरुष के प्यार भरे हावीपन को सहर्ष स्वीकार कर लेती है।
आखिर प्रेम में एक दुसरे के ऊपर अपने को न्यौछावर करना ही तो प्रेम की घोषणा है।
पंद्रह मिनट जीजू के महाकाय लंड को अपने गीले रिस्ते मुंह-चोदन का आनंद दे कर मैंने अपना दुखता मुंह उनके थूक से सने गीले लंड से उठा लिया ,
"जीजू अब आप मुड़ जाइये। "
मेरे शब्दों का तात्पर्य आदिल भैया जल्दी से समझ गए। उन्होंने अपने दोनों बलशाली मांस पेशियों से भरी बाज़ुओं को स्नानगृह की संगमरमर से ढकीं
दीवारों पे रख कर अपने मतवाले मांसल विशाल नितिम्बों को पीछे उभार कर निहर गए।
"शानू चल अब भैया ….. मेरा मतलब है जीजू का लंड चूस," मैंने हाँफ़ती हुई आवाज़ में शानू को प्रोत्साहित किया। शानू की सांस भी मेरे निरंकुश
आदिल भैया के लंड -चूषण के प्रभाव से भारी हो चलीं थीं।
शानू ने झिझकते हुए घुटनों के बल बैठ कर अपने कांपते नन्हे हाथों से अपने आदिल भैया और जीजू का लंड संभाल लिया, जो अब तनतना कर और
भी बड़ा और मोटा लग रहा था। मैंने शानू के शर्म से लाल गालों को देख कर अपनी पहली सम्भोग-शिक्षा के स्म्रित्यों के मीठे संवेदन को याद कर अपने
गदराये शरीर में दौड़ती सनसनी को महसूस किया।
शानू तो मेरे से भी एक साल छोटी थी तब। मैं तो किशोरावस्था के पहले दो सालों में बिलकुल नासमझ थी। यह तो मामाजी का प्रताप था कि
किशोरावस्था के तीसरे साल में उन्होंने मुझे सम्भोग और रति क्रिया के अनेक आनन्दों से न केवल परिचित करवा दिया था बल्कि उस वर्जित और निषिद्ध रसों के कई सोपान भी चढ़ा दिए थे।
शानू ने कांपते और शरमाते हुए अपने जीजू के विकराल लंड के सुपाड़े को अपने मुंह में भर लिया। आदिल भैया के लंड का सुपाड़ा कोई ऐसे वैसे
सामान्य लंड का सुपाड़ा तो था नहीं। आदिल भैया के भीमकाय लंड का मोटा लाल सेब के सामान बड़ा सुपाड़ा बड़ी मुश्किल से कमसिन नाबालिग शानू
के मुंह में समां पाया।
मैंने आदिल भैया की सिसकारी सुन कर एक मीठी मुस्कान से सजे अपने मुंह को उनके बालिष्ठ नितिम्बों की और झुका दिया। अपने हाथों से उनके दोनों
मर्दाने मांसल विशाल चूतड़ों को चौड़ा कर उनकी गुदा के तंग सिलवटदार भूरे मानों पलक झपझपाते छिद्र के ऊपर टिका दिया। पहले मैंने उनके
बलशाली बालों से भरे नितिम्बों को प्यार से चूमा फिर उनके बीच की दरार में छुपे गुदा द्वार को अपने होंठो से चुम लिया।आदिल भैया के मुंह से निकली
सिसकारी ने मुझे और शानू को और भी उत्तेजित कर दिया।
अब आगे शानू अपने आदिल भैया उर्फ़ जीजू के फिर से लोहे के स्तम्भ जैसे तन्नाये लंड को नदीदेपन से चूस रही थी। और मैं पीछे बैठी आदिल भैया के
गुदा छिद्र को अपने जीभ की नोक से कुरेदने लग गयी थी। आदिल भैया के आनंद का अंदाज़ उनके मचलते चूतड़ों और उनकी अविरत सिस्कारियों से
लग रहा था।
मैंने दिल लगा कर आदिल भैया के तंग मांसल मलाशय के द्वार को अपनी झीभ से कुरेद और चाट कर अंत में पराजित कर दिया। आदिल भैया की
सुहानी गांड के छेद ने आखिर में हार मान ली और धीरे धीरे वो ढीला होते हुए खुल गया। मैंने चहक कर अपनी गोल घुमाई हुई जीभ की नोक को उनकी
गुदा में घुसा दिया।
शानू अब अपने जीजू के लंड को दिल लगा कर चूस रही थी और मैं अपनी जीभ से आदिल भैया की गांड मार रही थी। स्नानघर में दो
अपरिपक्व कन्याओं के प्यार के आलोक में दमकते आदिल भैया की सिस्कारियां गूँज उठी।
आखिर में मर्द ही जल्दी मचाते हैं। आदिल भैया ने सिसकते हुए पुकार लगाई , "अब मुझे अपना लंड चूत में डालना है। नेहा अब
रुका नहीं जा रहा। "
मैंने उनके भूरे गांड के द्वार को आखिरी चुम्बन से शोभित कर चिढ़ाया , " यह आपकी कुंवारी छोटी साली तो अपनी चूत आपके हाथी
जैसे लंड से अभी तो नहीं मरवाएगी। पर यदि आप वायदा करे कि आज के दिन के सूरज के डूबने से पहले आप शानू की चूत के
कौमार्य को विच्छेद कर उसकी चूत को फाड़ डालेंगे तो आपकी बड़ी साली की चूत और गांड आपकी सेवा में हाज़िर है। "
शानू ने अचक कर अपने जीजू बनाम आदिल भैया के थूक से लिसे लंड को मुक्त कर जल्दी से बगल में खड़ी हो गयी ," नेहा, पहले मैं
देखूंगी कि तुम कैसे आदिल भैया ओह सॉरी .... जीजू के मोटे लंड को कैसे झेलती हो फिर ही मैं मुत्मुइन हो पाऊँगी। हाय अल्लाह
जीजू का लंड तो मेरे हाथ से भी बड़ा और मोटा है। "
आदिल भैया ने अचम्भे से शानू की बात को अनसुना कर कहा ,"नेहा तुम अपनी गांड भी मरवाओगी ?"
"हाय मेरे राम आदिल भैया तो क्या आपने…… अभी तक नसीम आपा ने अपनी गांड नहीं सौंपी आपको ?" मैंने उनके थरथराते हुए
दानवीय लंड को सहलाया अपने दोनों हांथों से। मेरे जीवन में अभी तक कोई भी लंड मेरे एक हाथ में नहीं समा सकता था। मेरी नन्ही उम्र
में सारे लंड विकराल और दानवीय आकार के थे।
"नहीं, नेहा। नसीम ने अपनी गांड को एक खास मौके के लिए कुंवारी छोड़ रखा है। यदि तुम अपनी गांड मुझे मारने दो तो मैं वायदा
करता हूँ कि तुम्हारी छोटी बहिन और मेरी छोटी साली की चूत की आज तौबा मचा दूंगा। " आदिल भैया ने मेरे मोटे भारी पर अल्प-
विकसित उरोज़ों को कस कर मसल दिया।
मैंने सिसकारते हुए उलहाना दिया, "आदिल भैय.……… जीजू यह तो मेरा सौभाग्य होगा कि मेरी गांड आपके लंड के लिए पहली गांड
होगी। पर यदि आप मेरी छोटी बहिन के कुंवारेपन का मर्दन करने का वायदा करें तो मेरी गांड आपके लंड की गुलाम हो जाएगी। "
"नेहा हमारा वायदा आपके हाथ में है ," आदिल भैया ने अपने लंड को मेरे हाथों के बीच हचक कर हिलाया।
"देख शानू आज तेरी चूत की तौबा होने वाली है। गौर से देखना कैसे जीजू का हाथ भर का लंड तेरी चूत फाड़ेगा।" मैंने शानू के
फड़कती चूचियों को बेदर्दी से मसल दिया।
"इसका मतलब है कि मेरी चूत के मसले में मेरी कोई भी राय नहीं है ," शानू वैसे तो इतरा रही थी पर उसकी आँखों में आदिल भैया
के लंड की प्यास साफ़ ज़ाहिर हो रही थी।
मैंने आदिल भैया की तरह अपने हाथों को दीवार पर जमा कर अपनी दोनों टाँगें चौड़ा कर आगे घोड़ी की तरह झुक गयी।
आदिल भैया ने अपने विकराल तनतनाते लंड को बड़ी मुश्किल से आसमान की ओर से आगे की तरफ झुकाया, "छोटी साली साहिबा
गौर से देखिएगा। नेहा की चुदाई के बाद आपकी चूत की बारी है। "
शानू आदिल भैया के लंड की विशालता से मेरे बारे में शायद घबरा रही थी ," आदिल भैया मेरे प्यारे जीजू प्लीज़ आराम से नेहा की
चूत मारिएगा। प्लीज़ उसको दर्द नहीं कीजिएगा। "
मैं लगभग हंस दी थी पर हंसी दबा कर मैंने ज़ोर से कहा ," अरे शानू जब तक मर्द का लंड लड़की की चीख न निकल दे तो किस काम
का। आदिल भैया आपको कोई रोक टोक नहीं है। आज अपनी छोटी साली को दिखा दीजिये कैसे आपने हमारी नसीम आपा की चूत
को पहली बार मारते हुए उनकी हालत ख़राब कर दी होगी। "
आदिल भैया भी मेरे बात समझ गए ," शानू रानी अब आप देखना कैसे लड़की की चूत को खुदा ने ऐसा बनाया है कि वो कैसा भी
छोटा, मोटा पतला और लम्बा लंड हो उसे अपने अंदर ले लेती है।"
"जीजू अब आप अपने घोड़ी बनी साली की चूत का भी तो ख्याल रखिये। " मैंने अपने भरे हुए गुदराज़ चूतड़ मटकाये।
आदिल भैया ने अपने मोटे सेब सामान सुपाड़े को मेरी चूत की दरार पे रगड़ा। मेरे रेशम जैसी झांटे मेरे रति रस से भीगी चूत के भगोष्ठों
पे चुपक गयीं थीं।
आदिल भैया के विकराल लंड के सुपाड़े ने मेरी भाग-शिश्न को रगड़ कर मेरी कामांगनी को और भी प्रज्ज्वलित कर दिया। आदिल भैया के
महालंड के दानवीय आकार के सुपाड़े ने मेरी कमसिन योनिमार्ग के द्वार को ढूंढ लिया और उसे आने वाले आनंद के प्रलोभ से फुसला कर उसके
द्वार के पर्दों को चौड़ा कर खोल दिया। अब मेरी चूत आदिल भैया के विशाल भीमकाय लंड के रहमोकर्मों पर थी।
आदिल भैया ने मेरी नीची कमर को अपने बड़े मर्दाने हाथों से भींच कर मुझे जकड लिया और एक गहरी सांस भर कर अपनी चौड़ी मांसल
बलशाली कमर और नितिम्बों के बल से उपजी शक्ति से अपने लंड को मेरी चूत में एक झटके में ही जड़ तक डालने का इरादा बना लिया।
मेरी चीख न चाहते हुए भी स्नानघर में गूँज उठी। आदिल भैया अपनी छोटी साली शानू को अपने लंड की मर्दाग्नी से प्रभावित करने में कोई भी
कसर नहीं छोड़ने वाले थे।
जब तक मेरी पहली चीख शांत हो पाती आदिल भैया ने एक और जानलेवा प्रहार से अपने लंड की कुछ और इंचे मेरी चूत में घुसेड़ दीं। मेरी
उबलती चीखों और शानू की आखें-फाड़ फ़िक्र को नज़रअंदाज़ कर आदिल भैया ने तीन और चार चूत के चिथड़े उड़ाने में सक्षम धक्कों से अपना
विशाल लंड जड़ तक मेरी फड़कती चूत में दाखिल कर दिया।
"हाय जीजू, क्या आपने अपनी बड़ी साली की चूत को फाड़ डालने के इरादा बना लिया है? अपने हाथी जैसे लंड को थोड़ा काबू में कीजिये।
ये आपकी नन्ही साली की चूत है, नसीम आपा की चूत नहीं। " मैंने सुबकते हुए आदिल भैया को उलहाना दिया।
"साली साहिबा अभी तो आप अपने छोटी बहिन को चूत की सही तरीके से चुदाई के गुर समझा रहीं थीं अब आप अपने जीजू के लंड लेने में
इतना इतरा रहीं हैं। " आदिल भैया ने मेरे दोनों हिलते चूचियों को कस कर उमेठा और मसल दिया।
"हाय जीजू मैं इतरा नहीं रहीं हूँ। आखिर मैं आपको रोक थोड़े रहीं हूँ। मैं तो आपके हाथी जैसे लंड की ताकत का इज़हार कर रहीं हूँ ," जब
तक मैं पूरी बात बोल पाऊँ आदिल भैया ने अपना वृहत लंड सुपाड़े तक निकल कर एक विघ्वंसक धक्के से एक बार फिर मेरी कमसिन तंग रेशम
जैसी चिकनी चूत में जड़ तक घुसेड़ दिया।
मैं न चाहते हुए भी वासनामय दर्द से सुबक उठी, "हाय जीजू। …बड़ा मोटा लंड है आपका … आज तो आप मेरी चूत फाड़ कर ही मानेंगें। "
आदिल भैया ने शानू के लाल मुंह और भौचक्की आँखों से वासना की फुहार को भांप कर ज़ोर से बोले , " छोटी साली जी देख लो कैसे आपकी
चूत में मेरा लंड जाएगा। अपनी चूत को मेरे लंड के लिए तैयार कर लीजिये। "
"जीजू अब तो मैं क्या कर सकती हूँ ? यदि आप ने नेहा की गांड भी मार ली तो मुझे अपनी चूत को आपके लंड के ऊपर कुर्बान करना ही
पड़ेगा ," शानू ने कांपती हुई आवाज़ में फुसफुसाते हुए हुए अपने जीजू से टक्कड़ लेने की कोशिश की।
मेरे शरीर में बिजली सी कौंध रही थी। आदिल भैया का भीमकाय लंड मेरी चूत तो अविश्विसनाय आकार में फैला कर मुझे दर्द और आनंद के
मीठे मिश्रण से बेताब कर रहा था।
"जीजू अब आप इस साली की चूत का ख्याल कीजिये। इसकी चूत अब आपके लंड के ऊपर न्यौछावर है। पहले उसकी प्यास बुझा
दीजिये फिर दूसरी साली की बारी लगाइएगा। " मेरी पुकार सुन कर आदिल भैया ने मेरी गोल कमर को जकड़ के अपने मूसल लंड को
गोल-गोल मेरी चूत में घुमा कर सुपाड़े तक बाहर खींच कर दो अस्थि-पंजर हिला देने वाले धक्कों से मेरी पिघलती चूत को फिर से भर
दिया।
स्नानघर में बड़ी पुरातन सम्भोग के मीठे स्वरों का संगीत एक बार फिर से गूँज उठा। उस में मेरी वासना से लिप्त सुब्काइयां , कराहटें , और
हल्की चीखें उस संगीत के स्वरों को और भी रोचक और आनंदमय बना रहीं थी।
"जीजू …….. जीजू ….. मेरी चूत मारिये। अपना पूरा लंड मेरी चूत में दाल दीजिये। फाड़ डालिये इस निगोड़ी को ," मैं अब आदिल भैया
के लंड के हर प्रहार से सर से पैर तक कांप रही थी।
आदिल भैया का लंड मेरी चूत में अब इंजन के पिस्टन की तरह पूरे क्षमता और तेज़ी से अंदर बाहर आ जा रहा था। मेरे रति रस से लिसड़े
उनके विकराल लंड को अब मेरी चूत को बेदर्दी से मारने में और भी आसानी हो गयी थी।
आदिल भैया कभी पूरे लंड से लम्बे ताकतवर धक्कों से मेरी चूत मारते तो कभी सिर्फ कुछ इंचों से बिजली सामान रफ़्तार से मेरी चूत की
तौबा बुला देते थे।
"जीजू मुझे चोदिये उउन्न्न्न्न्न …… उम्म्म्म्म्म्म मैं अब आने वाली हूँ ....... आअन्न्न्ह्ह्ह चोदिये मुझे आआआआअ……..,” मैं सुबक उठी
अपने पहले रति-निष्पति से। मुझे पता था कि ये उस चुदाई का मेरा अकेला चार्म-आनंद नहीं होगा।
आदिल भैया के लंड ने अब और भी रफ़्तार पकड़ ली। स्नानघर में सम्भोग की अश्लील 'पचक पचक' के संगीत ने मेरी चूत के बिना
हिचक की चुदाई की घोषणा कर दी।
आदिल भैया के विशाल स्पॉत जैसे कठोड लंड का हर प्रहार मेरे शरीर को हिला कर रोमांचित कर रहा था। मेरे खुले मुंह से उबलती
सिस्कारियां उन्हें और भी उत्तेजित कर रहीं थीं। आदिल भैया ने कसमसा के अपने लंड के पीछे और भी ताकत लगनी शुरू कर दी। उनका
दैत्य-लंड मेरी चूत को फैलाते हुए जब बहुत अंदर तक जाता और मेरे गर्भाशय को बेदर्दी से धक्का मार के उसे और भी अंदर धकेल देता तो
मेरी कराहट में मीठा दर्द भी शामिल हो जाता। उस दर्द से मेरे शरीर में अजीब से विकृत इच्छा जग गयी और मैं आदिल भैया के लंड से उपजे
वासना भरे दर्द की प्रतीक्षा कर रही थी।
आदिल भैया ने मेरी चूत को हचक हचक भीमकाय लंड से बेदर्दी से मर्दन करते हुए मेरे दोनों उरोज़ों को इतनी ज़ोर से मसलते कि मैं आशय
अवस्था में कराह उठती ," आदिल भैया ……जीजू हाआआय उउन्न्न्न्न्ग्ग्ग्ग्ग आआअन्न्न्न्ह्ह्ह्ह चोदो मुझे। जी.……जूऊऊ मेरी चूत फिर से
झड़ने वाली है। "
आदिल भैया ने अपने लंड के रफ़्तार में और भी इजाफा कर मेरी चूत के लतमर्दन अपनी पूरी क्षमता से करने लगे।
मैं अब लगभग लगातार झड़ रही थी। आदिल भैया का लंड मेरी चूत को रेलगाड़ी के इंजन की रफ़्तार से चोद रहा था। न जाने कितनी देर
बाद आदिल भैया ने गुर्रा कर कहा ,"नेहा अब मैं आपकी चूत में आने वाला हूँ। "
कोई भी लड़की जब उसकी चूत चोदने वाले के मुंह से यह शब्द सुनती है तो उसकी वासना और भी प्रज्ज्वलित हो उठती है।
मैं भी कामानन्द के जवार से जलते हुए सुबकी, "हाँ आदिल भैया मेरे जीजू भर दीजिये मेरी चूत अपने वीर्य से। मैं फिर से झड़ रहीं हूँ।
आआआह्ह्ह्ह्ह हाय माआआं भैयाआआआ .......... उउन्न्न्न्न्न। "
मैं अपने चर्म-आनंद के अतिरेक से कपकपा रही थी। आदिल भैया ने अपना विकराल लंड कई बार बेदर्दी से मेरी चूत में धूंस से मेरी दोनों
चूचियों को वहशियों की तरह मड़ोड़ दिया। उन्होंने अपने लंड को जड़ तक मेरी चूत में डाल दिया। उनके लंड का विस्फोट मानों मेरी चूत
को जला रहा था। आदिल भैया के जनन-क्षम वीर्य की गरम बौछार ने मेरे अविकसित गर्भाशय को नहला दिया।
न जाने कितनी बार उनके लंड ने अपने उर्वर वीर्य की फुहार से मेरी चूत को भर दिया।
मैं अब हाँफते हुए अपनी साँसों को काबू में करने का प्रयास कर रही थी। आदिल भैया ने मेरी भीगे कमर को प्यार से चूमा। उनकी साँसें भी
भारी हो चली थीं।
उनका लंड अभी भी मेरी चूत फड़फड़ा रहा था। यदि उनका लंड थोड़ा सा भी ढीला हुआ तो मुझे अहसास नहीं हुआ।
हम दोनों कुछ देर तक एक दुसरे से लिपटे वैसे ही खड़े रहे।
तब हम शानू की भरी साँसों को सुन कर वापस ज़मीं पर आ गए।
"जीजू आपने तो नेहा की जान ही निकाल दी होती। कैसी बेदर्दी से आपने उसकी चूत मारी ," शानू ने मेरी फ़िक्र का इज़हार किया
अपने उल्हाने से।
"शानू ऐसी चुदाई तो बड़ी खुशनसीबी से मिलती है। तुझे तो खुश होना चाहिए कि तुझे जीजू जैसा मुस्टंड लंड घर में ही मिल गया।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
Update 29
कई लड़कियां इस लंड को अपनी चूत में लेने के लिए मरने मारने के लिए तैयार हो जायेंगीं ," मैंने आदिल भैया का साथ दिया।
"तो नेहा अब तू अपनी गांड भी मरवाएगी?" शानू ले खुले होंठ सूजे से लग रहे थे।मेरे और आदिल भैया के आनन्दायक प्रचंड सम्भोग
के वासनामयी प्रभाव से शानू की साँसे भरी हो थी। उसकी चूचियाँ अपने आप ही थिरक और फड़कने लगीं। उसके अविकसित चूचियों
के छोटे छोटे चुचूक सख्त हो गए।बेचारी शानू अभी मुश्किल से किशोरावस्था के दूसरे साल में अभी संभल भी नहीं पायी थी। मेरी
तरह उसे बड़े मामा और सुरेश चाचू के वृहत लण्डों से अपने कौमार्यभंग का सौभाग्य नहीं मिला था। पर आज उसके आदिल भैया
उर्फ़ जीजू उसका कौमार्यभंग करने वाले थे। शानू की नाबालिग जीवन में सम्भोग का अध्याय अगम्यागमन की रति - क्रिया से शुरू
होने वाला था।
" शानू यदि मैं जीजू से अपनी गांड नहीं चुदवाऊँगी तो मेरा जीजू को दिया वचन झूठा हो जायेगा। जीजू फिर तेरी चुदाई करने के
वायदे से मुकर सकने के लिए स्वंत्रत हो जायेंगे। तू बता यदि तू अपनी कुंवारी चूत को हमारे जीजू के लंड को नहीं सौंपना चाहती है
तो मैं क्यों अपनी नन्ही गांड की सहमत बुलवाऊं जीजू के घोड़े जैसे लंड से चुदवा कर ? बोल ना क्या कहती है ? तेरी कुंवारी चूत का
द्वार खोलने के लिए ही तो मैं अपनी गांड जीजू को भेंट कर रही हूँ। " मैंने जीजू की ओर मुस्करा कर शानू को और भी चुदाई की तरफ
धकेला।
शानू के वासना से लाल चेहरे पर विचित्र व्याकुलता की अभिव्यक्ति साफ़ साफ़ जाहिर होने लगी। शानू ने अपने होंठ को चुभलाते हुए
हलकी आवाज़ में कहा।, " नेहा मेरी वजह से तुम झूठी मत बनो। तूने जीजू से अपनी गांड मरवाने का वायदा मेरे सामने किया है।
अब तो तुझे उनसे गांड मरवानी ही पड़ेगी। वैसे भी जीजू आज पहली बार किसी लड़की की गांड मारेंगे। वायदा निभा और मेरी फ़िक्र
मत कर। मैं जीजू से अपनी कुंवारी चूत चुदवाने से पीछे नहीं हटूँगीं। "
मैंने हंस पड़ी , "चलिए जीजू अब आप अपनी बड़ी साली की गांड फाड़ने के लिए तैयार हो जाइये। आपकी छोटी साली की कुंवारी
चूत का उदघाट्न करने की ज़िम्मेदारी भी आपको मिल गयी है। "
आदिल भैया का जितना मोटा और हाथ भर लम्बा लंड मेरी चूत में फंसा फड़क रहा था, " अरे साली साहिबायों, जीजू का लंड तो
सालियों की मुलाज़मत करने के लिए ही तो अल्लाह मियां ने सारे जिजायों को नवाज़ा है। बस सालियों की रज़ामंदी की ज़रुरत है। "
" जीजू सालियां तो बचपन से ही तैयार होतीं है जीजू का लंड लेने के लिए। उनकी ना नुकर तो बस इठलाने जैसा है। जीजा को उस
के इठलाने की फ़िक्र नहीं करनी चाहिए। बस पकड़ कर साली के चूत और गांड फाड़ कर उसे सम्पूर्ण स्त्री बनने में मदद करनी
चाहिए। " मैंने अपने गदराये चूतड़ों को गोल गोल घुमा कर आदिल भैया के लंड के ऊपर अपनी चूत घुमाई, "जीजू अब आप अपनी
साली की गांड को अपने लंड के गांड-कौमार्य का तोहफा देंगे या बस हम बातें रहेंगे ? "
आदिल भैया ने अपना लंड सुपाड़े तक बाहर निकल और मेरी गुदाज़ कमर को कस कर पकड़ कर एक विध्वंसक झटके में जड़ तक
मेरी तंग चूत में ठूंस दिया। मेरी न चाहते हुए भी मेरी चीख निकल गयी , " देखा साली साहिबयों जीजू के लंड की ताकत। जब गांड
में धकेलूंगा तो बिलबिला कर रो पड़ोगी ? शानू रानी तुम्हारी कुंवारी चूत भी इसी लंड के ऊपर कुर्बान होने वाली है। "
"जीजू यदि साली की मरवाते हुए उसकी चीखें न निकलें , उसकी आँखों से आंसुओं की गंगा न बहने लगे, उसकी सुबकियों के संगीत से वातावरण न भर
उठे और उसकी गांड से लाल खून का टिका जीजू के लंड पर न लगे तो जीजू की ताकत की बस बेइज़्ज़ती ही तो होगी। इसी लिए जीजू आप दोनों सालियों
की चीखों का संगीत बजवा दीजिये आज।”
मैंने आदिल भैया को और भी चढ़ाया। आदिल भैया हमारे बड़े भाई हैं और हमेशा अपनी छोटी बहनों की हिफाज़त करने की उनकी स्वाभाविक आदत शानू
की बेहिचक चुदाई में बाधा बन सकती थी।
"शानू चल जीजू का लंड चूस और मेरी गांड के लिए तैयार कर ," मैंने भौचक्की शानू को जगाया।
आदिल भैया ने अपना मेरे रति रस से लिसा चमकता लंड मेरी फ़ैली चूत से निकाला और घुटनो पर जाती शानू की ओर बढ़ा दिया। शानू ने बेहिचक मेरे रति
रस से लिप्त जीजू को लंड को अपने नन्हे हाथों में संभल कर चूसने, चूमने और चाटने लगी। शानू और मेरे दोनों नन्हे हाथ आदिल भैया के मोटे लंड की
परिधि को पूरा मापने में असक्षम थे। हमारे परिवार की स्त्रियों के सौभाग्य में वृहत विकराल लण्डों अधिशेष और प्राचुर्य था।
शानू के थूक ने जीजू के लंड के ऊपर मेरे चूत के रस का स्थान ले लिया। शानू ने अपने आप ही मेरे गदराये गोल चौड़ा कर मेरी गुलाबी नन्ही गुदा को जीजू
के दीदार के लिए प्रस्तुत कर दिया। जीजू नीचे झुक कर मेरी गांड पूजा का निस्चय बना लिया। जीजू और शानू ने मेरे प्रभूत गदराये चुत्तडों को चूमना, काटना
शुरू कर दिया। फिर दोनों ने बरी बरी से मेरी गुदा को चूमे चाटने लगे।
जीजू की जिव्हा मेरे गुदा द्वार के ऊपर प्यार भरी टकटकाहट देने लगी। जीजू की जीभ बेशर्मी से मेरे मलाशय के द्वार को खोलने के लिए उत्सुक थी। मेरी
गांड का तंग छिद्र हर मान गया और मेरी गांड का छेड़ धीरे धीरे जीजू की जीभ के स्वागत के लिए ढीला हो कर फ़ैल गया। जीजू की जीभ की नोक मेरी गांड
में प्रविष्ट हो गयी।
"हाय जीजू कितना अच्छा लग रहा है। ऐसे ही गांड चाटिये। जीजू और भी अंदर तक डालिये अपनी जीभ ," मैं अपनी गांड से उपजे वासना के आनंद मसे
डोलने लगी।
शानू ने अपनी जगह बदल कर मेरी चूत के ऊपर अपना मुंह जमा दिया। उसकी जीभ मेरी चूत से मेरी चुदाई की मलाई को चाटने लगी।
जीजू ने मेरे दोनों नितिम्बों को मसलते हुए मेरी गांड को अपनी जिव्हा से चोदने लगे। आखिर इसी गांड को वो थोड़ी अपने हाथी जैसे लंड से फाड़ने वाले थे।
मेरी सिस्कारियां स्वतः मेरे हलक से उबाल कर स्नानगृह में गूंजने लगीं। तभी जीजू ने अपनी जीभ मेरी गांड कर अपनी तर्जनी झटके से जोड़ तक मेरी
मलाशय की गुफा में ठूंस दिया। उन्होंने मेरे चुत्तडों को काटने के साथ साथ मेरी गांड को अपनी ऊँगली से चोदने लगे। शानू अब मेरे भगशिश्न को चूस और
चुभला रही थी। दोनों ओर से वासनामय प्रेम का आक्रमण मेरे शरीर में सम्भोग की लालसा की आग लगाने लगा।
जीजू ने बिना हिचक अपनी मंझली ऊँगली को तर्जनी की मादा के लिए मेरी गांड में भेज दिया।
मैं अब बेहिचक सिसकने लगी। " जीजू चोदिये मेरी गांड। ……उउउउग्ग्ग्ग्ग्ग्ग्ग हाय शानू चूस ले , काट डाल मेरा क्लिट और ज़ोर से। .... उउउउन्न्न्न्न्न्न ……
आअरर्र्र्र्र्र्र ," मैं एक बार फिर से भरभरा के झड़ गयी।
आदिल भैया ने बेशक किसी लड़की की गांड भले ही ना मारी हो पर नसीम आपा की चुदाई तो हज़ारों बार की थी और उन्हें लड़कियों की चुदाई की बेसब्री
का पूरा इल्म था। उन्हें मॉल था की अब मेरी गांड उनके कुंवारे के लिए तैयार थी।
आदिल भैया ने मेरी फड़कती गांड को मेरे दोनों चूतड़ों फैला कर अपने लंड के आक्रमण के लिए तैयार पाया।
शानू जल्दी से उठ कर मेरे पीछे चली गयी अपने जीजू की मदद करले के लिए।
उसने मेरे गुदाज़ चूतड़ों को फैला कर जीजू के हाथ खाई कर दिए। जीजू ने अपना मोटा सेब जैसा सुपाड़ा मेरी गुदा के नन्हे तंग द्वार
के ऊपर टिका दिया। " जीजू बेहिचक अपना लंड डाल दीजिये। मेरी चीखों की परवाह कीजियेगा। बड़े मां ने जब मेरी गांड
कौमार्य भांग किया था तो मैं नहुत देर तक रोयी थी। पर बड़े मामा ने मेरी चीखों की मेरे रोने की बिलकुल उपेक्षा कर दी थी। "
मैंने आदिल भैया के रहे सहे संकोच का उन्मूलन करने का प्रयास किया।
आदिल भैया ने अपने वृहत लंड के खम्बे को थाम कर एक ज़ोर का झटका लगाया पर मेरी तंग गुदा द्वार नहीं खुला।
"जीजू क्या बात है ? क्या बड़े मां मदद के लिए बुलवाना पड़ेगा ?" मैंने जीजू के मर्दानगी को चुनौती दी।
आदिल भैया अब मर्दानगी के ऊपर आक्रमण से मचल उठे। उन्होंने अपना सुपाड़ा मेरी ऊपर जैम कर टिकाया और मुझे कस कर
पकड़ कर एक गांड-विध्वंसकारी धक्का लगाया।
" ओईईईई माआआआ आआअन्न्न्न्न्न ," मेरे हलक से चीख उबाल उठी। जीजू ने एक ही धक्के में अपना सेब जैसा मोटा सुपाड़ा मेरी
गांड के अंदर धकेल दिया। मेरी गुदा का नन्हा द्वार उनके विशाल सुपाड़े के ऊपर बेशर्मी से खुल कर फ़ैल गया।
आदिल भैया और गहरी सांस ली। मेरी कसी गांड के छेद ने उनके लंड को रेशमी ज़ंज़ीर में जकड़ लिया।
मेरी आँखों में दर्द के आंसू भर गए।
" साली साहिबा , अब बताइये मुझे किसी इमदाद या मदद की ज़रुरत है क्या ? " आदिल भैया ने मुझे चिढ़ाया।
"जीजू अभी तो बस लंड का सुपाड़ा अंदर गया है। अभी तो हाथ भर लम्बा लंड मेरी गांड के बाहर है। अभी से आप इतने क्यों इतरा
रहें हैं ? जब तक सारा लंड साली की गांड में ना समां जाये और फिर साली की गांड-चुदाई इतनी ज़ोरदार और इतनी लम्बी हो
की वोह झड़ झड़ कर बेहोश न हो जाय तब तक जीजू का काम पूरा नहीं होता। अब जब तक आप अपना मोटा लम्बा लंड अपनी
बड़ी साली की गांड में जड़ तक ना ठूंस दें और फिर और वो उसकी गांड की चुदाई से बिलबिला ना उठे तब तक आप को इतराने
का कोई हक़ नहीं है। "
मैं शायद मूर्खों की तरह आदिल भैया उर्फ़ जीजू को चुनौती दे कर अपनी गांड की शामत का न्यौता दे रही थी। आदिल भैया ने अपनी
साली की चुनौती को ख़ामोशी से स्वीकार कर लिया। जब मर्द के सौभाग्य में आदिल भैया जैसा लंड हो तो उसे अपनी मूर्ख साली
के वचनों के कंटक दंशों का जवाब शब्दों से देने की कोई ज़रुरत नहीं थी। जीजू का लंड मेरे शब्दों के कांटे को मेरे हलक में फंसा
देने के लिए पूरा काबिल था।
आदिल भैया ने बिना हिचक एक पूरी ताकत का धक्का लगाया और मेरी गांड चरमरा उठी। उनका मर्द की कलाई से भी मोटे लंड
की कुछ इंचे मेरी तंग गांड की गहरी रेशमी अंधकार में डूबी दाखिल हो गयीं।
मैं दर्द के मरे बिलबिला उठी। मेरी चीख ने शानू को भी हिला दिया। मेरी आँखों से गंगा जमुना बहने लगी। पर अब आदिल भैया के
ऊपर मेरी दयनीय हालत का कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला था।
आदिल भैया ने बिना रुके बिना किसी हिचक और चिंता से एक विध्वंसक धक्के के बाद दूसरे धक्के से अपने महालण्ड को और
भी मेरी गांड के भीतरजड़ तक ठूंसने लगे। मेरी सहमत तो मेरे निमंत्रण पर ही आई थी। मेरी दर्द भरी चीखे मेरी गांड से उपजे दर्द की
द्योतक थीं। ममेरे आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। जब मैं चीख नहीं रही ही थी तब मेरी सुबकिया मेरे दर्द का इज़हार कर रहीं
थी। न जाने कितने धक्के लगाने पड़े आदिल भैया को। आखिर में उनके घुंघराले खुरदुरे झांटों के बाल मेरे चूतड़ों की कोमल त्वचा को
रगड़ रहे थे। आदिल भैया जीजू ने अपना विकराल लंड जड़ तक मेरी गांड में ठूंस दिया था।
" साली साहिबा , क्या मैं आपके चीखने रोने के रुकने का इन्तिज़ार करूँ या आपकी गांड शुरू कर दूँ ? जैसा आपको ठीक लगे
हमें बता दें। आखिर मैं आप हैं और छोटी बहिन भी। आपकी गांड और चूत तो हमें आगे और भी मारनी है। हर मानने में कोई शरम
नहीं है। " आदिल भैया ने अपने मर्दाने हाथी जैसे लंड की विजय पताका लहराने में कोई देर नहीं लगाई।
मैं अभी भी दर्द से बिलबिला रही थी पर सारे संसार की सालियों का सम्मान हांथों में था, " जीजू, अभी तो यह पहला वार है।
अभी तो आपको अपनी साली की गांड की लम्बी प्रचंड चुदाई है। जब तक तब तक वो बेहोश नहीं तो कम से कम निश्चेत जैसी
हालत में ना जाये। फिर आपको अपनी दूसरी साली की कुंवारी चूत ठीक उसी तरह मारनी है। अभी तो फ़तह के बिगुल बजने में
देरी है। "
मैं सुबक रही थी फिर भी मैं हार नहीं मानने वाली थी। आखिर सालियों के सम्मान का सवाल भी तो था , उसके सामने मेरे दर्द की कुझे
फ़िक्र नहीं थी। आदिल भैया ने भी सारी दुनिया के जिजाओं का पक्ष और सम्मान का बीड़ा उठा लिया।
आदिल भैया ने अपना लंड मेरी दुखती गांड से इंच इंच कर सुपाड़े तक बाहर निकल लिया और फिर ज़ोरदार धक्कों से जड़ तक मेरी गांड में ठूंस दिया। मेरी
चीखें उनके हर धक्के के प्रभाव की घंटी बन गयीं। । मेरी गांड में दर्द की लहरें उपज गयीं। मुझे लगा की मेरी गांड फट कर चिथड़े चिथड़े गयी थी और
उससे खून के धाराएं बह रहीं होगीं।
अब आदिल भैया बिना रहम से मेरी गांडमारने लगे। उनका लंड मेरी बिलबिलाती गांड से निकलता और फिर जड़ तक मेरे गहरे अँधेरे रेशमी मलाशय में
समां जाता। मेरी चीखे सुबकियों में बदल गयीं। आदिल भैया का लंड, धीरे धीरे मेरी गांड में उनके महालण्ड के रगड़ाई से उपजे रस, से लिस कर कुछ आसानी से मेरी
गांड के अंदर बाहर आने जाने लगा। शानू की साँसे ऊँची और भारी हो गयीं थीं।
आदिल भैया मेरी गांड को बेरहमी से अपने महाकाय लंड से चोद नहीं बल्कि कूट रहे थे। अब उनके मेरी उसी बेरहमी से मसल रहे थे। मेरी सुबकियां
सिस्कारियों में रूपांतरित हो चलीं। मेरी प्रचंड गांड चुदाई के मंथन से मंथन से सौंधी सुगंध सब तरफ फ़ैल गयी।
" जीजू अब मर लीजिये अपनी साली की गांड। हाय कितना मोटा लंड आपका। अब मारिये और ज़ोर से। "मैं काम-आनंद के अतिरेक में अंट्शंट बोलने
लगी। जो दर्द थोड़ी देर पहले मेरी जान निकाल रहा था अब मेरे शरीर में उसी दर्द ने वासना से भरे कामसुख की बाढ़ पैदा कर दी।
"साली जी और ज़ोर से मारूँ आपकी गांड। अब तो आप रो भी नहीं रहीं हैं ? " आदिल भैया ने एक और प्रचंड धक्के से मेरी गांड महाकाय लंड से भर
दिया।
"जीजू और ज़ोर से मारिये। मैं अब झड़ने वाली हूँ। ह्हाअन्न्न्न्न्न उउउन्न्न्न्न्न्न्ग्ग्ग्ग्ग्ग ऊऊऊओ माआआं मर्र्र्र्र गयीईई मैईईईईइं आआऐईईईन्न्न्न्न्न ," मेरी
सिस्कारियां मेरे कामोन्माद के प्रभाव से और भी ऊँची हो गयीं।
अब जीजू उर्फ़ आदिल भैया विजय-पथ पर बेलगाम दौड़ रहे थे। उनका वृहत लंड मेरी गांड की भयंकर शक्तिशाली और बेहद तेज़ धक्कों से दनादन
चुदाई कर रहा था। फ़च -फ़च -फ़च -फ़च -फ़च की आवाज़ मेरी गांड के मंथन का संगीत थीं। मैं अब वासना के ज्वर से बिलबिला उठी। मैं अब लगभग लगातार झड़ रही
थी। आदिल भैया मेरे उरोज़ों को जितनी बेदर्दी से मड़ोड़ते मसलते उतना ही विचित्र आनंद मुझे एक नए चरम आनंद के द्वार पर ला पटकता।
आदिल भैया मेरे हर कामोन्माद को और भी परवान चढ़ाने के लिए दोनों चुचूकों को बेरहमी से खींच कर मड़ोड़ देते और मैं हलके से चीख उठती। मेरी चीखें
अब आनंद के आवेश से उपज रहीं थीं। मेरी गांड की चुदाई का दर्द बस मेरे आनंद को बढ़ावा दे रहा था दे रहा था।
आदिल भैया हचक हचक कर चोद रहे थे। उनके धुआँदार धक्के मेरे अस्थिपंजर तक हिला देते। अब वो मेरी गांड की चुदाई वहशी
अंदाज़ और रफ़्तार से करने लगे। जब उनके हाथ मेरे उरोज़ों को मुक्त कर मेरी चूत और भाग-शिश्न से खेलते तो उनके धक्कों से मेरे
गुदाज़ मोटी चूचियाँ आगे पीछे भरी गेंदों की तरह डोलतीं। मैं वासना और भीषण चुदाई के अतिरेक से हांफने लगी। पर जीजू की चुदाई
की भीषणता और उत्तेजना में कोई धीमापन आने की गुंजाईश नहीं होती दीखती थी।
" जीईईइ ....... जूऊऊऊ ……… हाआआन ………….. उउउन्न्न्न्ह्ह्ह्ह्ह्ह मैं फिर …….. झड़ रही हूँ……. आआन्न्न्न्न्न्न्न
………….. मर ……………. गईईईईई …………….. आआअन्न्न्न्न्न्न ,"मेरे हलक से सिस्कारियों की बौछार से स्नानगृह गूँज उठा। गांड
महक मेरी कामोत्तेजना को और भी परवान चढ़ा रही थी। जीजू ने दनादन धक्कों से मेरी गांड की तौबा बुला दी , "साली रानी क्या अब टैं बोली या नहीं ? मैं तुम्हारी गांड अपने लंड की
मलाई से भरने वाला हूँ। " जीजू के झड़ने की घोषणा से मेरी गांड चुदाई के आनंद चार चाँद लग गए, ," जीजू अपने मुझे झाड़-झाड़ कर मार ही डाला।
भर दीजिये अपनी छोटी बहन और साली की गांड अपने लंड की मलाई से। "
मैं वासना के अतिरेक में बेशर्मी से बुदबुदाई। आदिल भैया ने मेरे दोनों चूचियों को निर्ममता मड़ोड़ मसल कर मेरी गांड में बेरहमी से
अपना लंड और भी ताकत से ठोकने लगे। उनके हलक से गुरगुरहटों जैसी आवाज़ें निकलने लगीं। कोई नासमझ भीषण गांड चुदाई को
देखता तो इसे बलात्कार समझता। मैं तो जीजू की निर्मम चुदाई से उन्गिनत बार झड़ कर बिलकुल शिथिल हो रही थी।
अचानक जीजू का लंड मेरी गांड में और भी मोटा लगने लगा। उनके लंड ने मेरी गांड में मानों अंगड़ाइयां लेनी शुरू कर दी। उनके लंड से
मेरी गांड में गरम गरम उर्वर वीर्य बौछार होने लगी। मैं उस गरमाहट के आनंद से तड़प उठी और हलके से चीख झड़ने लगी।
जीजू का लंड बिना रुके गांड की तड़पती कोमल दीवारों को अपनी मलाई की बारिश कर रहा था। लगा की जीजू का लंड
से वीर्य की फुहारें कभी भी नहीं रुकेंगी।
जीजू भी अब हांफने लगे चार्म-आनंद के प्रभाव से। उन्होंने मुझे ना थामा होता तो मैं फिसल कर फर्श पर ढेर हो जाती।
घंटे भर की भीषण चुदाई से मेरे शरीर का हर एक अंग मीठे दर्द से भर उठा था।
जीजू और मैं उसी अंदाज़ में एक चुपके रहे और कामोन्माद के शिखर आने का इंतज़ार रहे थे। हूँ दोनों बिलकुल भूल गए की बेचारी
शानू इस बलात्कारी चुदाई के उत्तेजना की वजह से हांफ रही थी।
काफी देर बाद जीजू और मैं अपने वातावरण से फिर से सलंग्न हो गए।
"हाय जीजू आप कितने बेदर्द हैं। मैं आप और बुआ से आपकी शिकायत लगाऊंगी। कितनी बेरहमी से मारी है अपने हमारी नेहा की
गांड। मैं तो दर लगी थी। " शानू ने उलहना तो दिया पर उसकी आँखे कुछ और ही कह रहीं थी।
"साली जी जब आपकी चूत की कुटाई भी इसी बेरहमी से कर दूँ तब शिकायत लगन अपनी अपप और अम्मी से। "जीजू का लंड बड़ी
ढीला हो चला था उस से मरे गांड को थोड़ी रहत राहत महसूस हुई। पर अभी भी मुझे जीजू का लंड अपनी गांड में रखने में आनंद आ
रहा था।
"अरे शानू जब तुम्हारी चूत को जीजू के लंड से फ़ड़वाएंगे तब तुम साडी शिकायतों को भूल जाएगी। और नसीम आपा क्या नहीं
जानती की आदिल भैया जैसे सांड जीजू के होते तेरी चूत कैसे कुंवारी रह सकती है। अब तक तो तेरी चूत ही नहीं गांड के दरवाज़े भी
पूरे खुल जाने चाहिए थे। " मैंने भी जीजू के स्वर से स्वर मिलाया।
" शानू साली साहिबा तुम भूल गयीं दो हफ्ते पहले की बात। अम्मी और नसीम दोनों ने कितना तुम्हें समझाया था की अपने जीजू को
अपनी चुदाई के लिए राज़ी कर लो। भाई हमने तो तय कर रखा था की जब तक तुम रज़ामंद नहीं होगी हम तुम्हे चुम्मा भी नहीं देंगे।"
जीजू की बातों से साफ़ साफ़ ज़ाहिर था कि शब्बो बुआ और नसीम आपा शानू के केस पर थीं। बस शानू ही नासमझी कर रही थी।
" चलो देर आयद दुरुस्त आयद। आज तो तेरी चूत के उद्घाटन की हर शर्त पूरी हो गयी। लेकिन मेरी बात सुन। जीजू का लंड जब भी
चुदाई खतम करे तो उसे चूस चुम कर शुक्रिया अदा ज़रूर करना। वरना लंड महाराज नाराज़ हो जाते हैं। जीजू शानू की शुरुआत कर
दीजिये। शानू आपके लंड को बेहिचक प्यार से मेरी गांड की चुदाई के लिए शुक्रिया अदा करेगी। " मुझे शानू को मेरी गांड के बेरहम
मंथन से लसे जीजू के लंड को चूसने के ख्याल से ही रोमांच हो गया।
शानू के फटी फटी आँखें और भरी सांसों में वासना का बुखार साफ़ ज़ाहिर हो रहा था। अब वो जीजू चुदने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाती।
आदिल भैया ने धीरे धीरे अपना भरी से बाहर निकला। मैंने उन्हें मन ही मन धन्यवाद दिया। मेरी गांड की बेरहम चुदाई के दर्द की लहरें अभी भी पेंगें ले रहीं
थीं। जीजू का लंड ममेरी गांड के माथे रस और उनके गाढ़े मलाई जैसे सफ़ेद वीर्य के मिश्रण से सजा था। शानू ने थोड़ा हिचकते हुए जीजू का लंड सुपाड़ा अपने
मुंह में ले लिया। बेचारी को अपना मुंह जितना खुल सकता था खोलने पड़ा। जीजू के लंड का सुपाड़ा बड़े मामा जैसे ही विशाल था। शानू ने पहले धीरे धीरे
फिर बेताबी से जीजू के लंड से मेरी गांड और उनके वीर्य की मलाई के मिश्रण को चूसने चाटने लगी।
मुझे बड़े मामा और सुरेश चाचू से गांड उनके लंड को साफ़ करने का आनंद फिर ताज़ा हो गया, "शानू जीजू के लंड की मलाई मेरी गांड में भरी हुई है। चल
नीचे बैठ जा। तू भी क्या याद करेगी की मैं कितनी दरियादिल हूँ। वरना मैं खुद साडी मलाई चाट कर जाती। "
शानू ने चटकारे लेते हुए कहा , "नेहा, त्तेरी गांड और जीजू की मलाई तो बहुत स्वाद है। "
मैंने शानू खुले मुंह के ऊपर अपनी दुखती गांड के छेद को रख दिया जो अभी भी जीजू के महाकाय लंड से चुदने के बाद मुंह बाये हुए था। जीजू के लंड की
मलाई और मेरी गांड के रस की घुट्टी शानू के मुंह में धार की तरह बह चली।
मैंने शानू को अपनी गांड के रस से लिसे जीजू की मलाई सटकने के बाद उसको उनके मेरी गांड से निकले ताज़े लंड की ओर झुका दिया। शानू ने बिना
हिचक आदिल भैया के लंड को चूस चाट कर अपने थूक से चमका दिया। जीजू बोले, " मेरा लंड थोड़ी देर के लिए वापस कर दीजिये साली साहिबा मुझे बहुत
ज़ोर से मूतना है।”
मैं झट से शानू के पास घुटनों पर बैठ गयी, "वाह जीजू दो दो सालियों के होते कहाँ मूतने जायेंगे आप। कर दीजिये यहीं पर। आखिर में आपकी कुंवारी
साली को कभी तो अपने जीजू का नमकीन शरबत पीने का मौका मिलना ही है।"
आदिल भैया ने अपने मूत्र की बौछार हमारे चेहरों के ऊपर खोल दी। मैंने शानू के गाल दबा कर उसका मुंह खुलवा दिया दिया। जीजू के मूत्र स्नान साथ साथ
दोनों सालियों ने मूत्र पान भी कर लिया।
शानू अब बिना शर्म के जीजू का नमकीन मूट मुंह भर कर सतक रही थी। कुछ देर तो तो दोनों मानो होड़ लगा रहीं थी कि कौन जीजू के गरम गरम नमकीन
शरबत का बड़ा हिस्सा हिस्सा सतक लेगी लेगी।
उसके बाद हम तीनों अच्छे नहाये। जीजू के साथ छेड़-खानी से उनका लंड फिर से खम्बे की तरह प्रचंड हो गया। शानू भी चूचियाँ मसलवा कर और चूत
सहलवा कर उत्तेजित हो चली थी। हम तीनों ने सुखाने के बाद कोई कपडे पहनने का झंझट का ख्याल ही छोड़ दिया। मेरे हलके इशारे पर जीजू ने शानू अपनी बालिष्ठ
भुजाओं में जकड़ कर बिस्तर पर दिया। जब तक शानू कुछ कर पाती जीजू उसकी मांसल झांगों को खींच कर उसके चूतड़ों को बिस्तर के
किनारे तक खींच कर उसकी झांगों की पकड़ से स्थिर कर उंसकी कमसिन अल्पव्यस्क चूत ऊपर वहशियों की तरह टूट पड़े। जैसे ही
जीजू का मुंह शानू की चूत पर पहुंचा उसकी सिसकारी निकली तब सबको ज़ाहिर हो गया की आज शानू की कुंवारी चूत पर जीजू के लंड
की विजय का झंडा लहरा कर ही रहेगा।
जीजू ने मुश्किल से नवीं कक्षा में दाखिल हुई नाज़ुक अधपकी अपनी बहन और साली की चूत में तूफ़ान उठा दिया। जीजू ने अपनी जीभ
शानू -शिश्न को लपलपा कर चाटने के साथ साथ उसकी चूत के उनखुले द्वार में धकेल कर उसे वासना के आनंद से उद्वेलित कर दिया।
बेचारी कामवासना के खेल में पूरी अनाड़ी थी। जीजू की अनुभवी जीभ में उसकी कुंवारी चूत में आग लगा दी।
" हाय जीजू आप क्या कर रहे हो मेरे साथ। मेरी चूत जल रही है जीजू। मुझे झड़ दीजिये। " शानू की गुहार सुन कर जीजू ने उसकी चूत
को कस कर चाटने लगे। शानू भरभरा कर झड़ गयी। उसकी सिस्कारियां कमरे में गूँज उठीं।
जीजू ने उसके दोनों उरोज़ो को कास कर मसलते हुए उसकी चूत से लेकर गांड तक लम्बी जीभ निकल कर चूसने लगे। शानू अपने चूतड़
बिस्तर से उठा उठा कर अपनई चूत और गांड जीजू के मुंह में ठूंसने लगी।
मैंने उसके खुले हफ्ते मुंह को अपने होंठों से धक लिया और अपनी जीभ से उसके मीठे मुंह में मीठे तलाशने लगी।
उधर जीजू ने उसकी गुदा द्वार में अपनी जीभ की नोक घुसा कर उसे गोल गोल घूमने लगे। शानू बेचारी के ऊपर हर तरफ से वासनामयी
हमला हो रहा था। उसकी चूचियाँ जीजी मसल रहे थे। मैं उसके मीठे होंठों को चूस रही थी। जीजी उसकी गांड और चूत चूस चूस कर उसके
अल्पव्यस्क शरीर में कामाग्नि प्रज्जवलित कर रहे थे।
शानू अनेकों बार कपकपा के झड़ चुकी थी। जीजू ने एक बार फिर से उसकी चूत पर अपने मुंह और जीभ से मीठा हमला बोल दिया। जीजू
ने उसके भग-शिश्न को चुभलाते, चूसते ,और हलके से अपने होंठो में भीचते हुए जैसे ही शानू एक बार फिर से झड़ी तो उसकी गांड में
अपनी तर्जनी दाल दी. शानू थोड़ी से चहकी पर उसके चरमानंद ने जीजू की ऊँगली से पैदा अपनी गांड के दर्द को भुला दिया।
" आअन्न्न्न्न्न्न जईईई जूऊऊऊ मैं फिर से झड़ रहीं हुँ। हाय अम्मी मुझे बचाओ। कितनी बार झड़ दिया है आपने मुझे। अब बस कीजिये।
मेरी चूत अब और नहीं सह सकती। " शानू कमसिन नासमझी में बड़बड़ाई।
बेचारी को अब पता चलेगा की कितनी सौभगयशाली थी जीजू उसकी चूत का लंड से मंथन करले से पहले उसे भाग-चूषण का परम आनंद
दे रहे थे। जीजू ने उसे बिस्तर पर दबा कर उसकी चूत को चूस कर उसकी गांड को उंगली से मारते हुए फिर से झड़ दिया। अब बेचारी की सहनशक्ति
जवाब दे गयी। शनय मचल कर पलट कर पेट के बल हो गयी। उसके पैर कालीन पर जमे थे।
जीजू ने इस मौके का पूरा िसयतेमल कियस। मैं समझ गयी जीजू अपने छोटी साली की कुंवारी चूत पीछे से मारने की सोच रहे थे। नन्ही
कुंवारी लड़की के लिए पीठ पर लेट के पूरी चौड़ा करने के बाद भी जीजू के भीमकाय लंड से चुदवाने में हालत ख़राब हो जाती। पर शानू
जिसने मुश्किल से किशोरावस्था के दो साल पूरे किये थे उसकी तो चूत फटने का पुअर इंतिज़ाम था। मैं तो ऐसे कह रहीं हूँ जैसेमैं बहुत
सालों से चुदाई के खेल की खिलाडन हुँ। शानू मुझसे सिर्फ एक साल छोटी थी। मैं भी कुछ हफ़्तों पहले शानू की तरह नासमझ कुंवारी थी।
मैंने शानू का मुंह अपनी चूत के ऊपर दबा लिया। जीजू ने अपने दानवीय लंड के मोटे सेब जैसे सुपाड़े को शानू की कुंवारी चूत टिका कर
आंसू निकालने वाला धक्का मारा।
जैसा जीजू ने मुझसे वायदा किया था वो अपनी साली के कौमार्य भंग की घोषणा उसकी चीखों से करने का पूरा प्रयास करने वाले थे। शानू
दर्द से बिलबिला उठी। जीजू का अत्यंत मोटा सुपाड़ा उसकी चूत में प्रविष्ट हो गया। उसके कौमार्य के अल्पजीवन की कहानी बदलने वाली थी।
जीजू ने उसकी कमल बिस्तर पे दबा कर एक और दर्दीला ढाका मारा। शानू की चीख ने मेरी चूत के ऊपर बंसरी बजा दी।
"नहीईईईए जीजूऊऊऊ मर गयी मैं हाय रब्बा आअन्न्न्न्न्ह्ह्ह्ह्ह ," शानू चीख कर कसमसाई पर जीजू ने उसे अपने नीचे नन्ही हिरणी
की तरह जकड़ रखा था। अब उसके पास बस एक रास्ता था। जीजू के महाकाय लंड से चुदवाना।
" जीजू, यह क्या? इसको कोई चीख निकलवाना कहतें है? जब बड़े मामा ने मेरी कुंवारी चूत मारी थी तो मैंने तो घर की छत उड़ा दी
थी अपनी र्दद भरी चीखों से," मैंने जीजू को और बढ़ावा दिया।
जीजू ने दांत भींच कर एक और भयंकर धक्का लगाया और उनका लंड की काम से काम तीन इंचे शानू की चरमराती चूत में घूंस गयी।
शानू बिलबिला कर रोई और चीखी पर जीजू ने बिना तरस खाए एक के बाद एक तूफानी धक्कों से अपना लंड जड़ तक शानू की चूत
में ठूंस दिया।
मेरी चूत सौभाग्यशाली बेचारी शानू के आंसुओं से भीग गयी। जीजू ने अपना लंड जब बाहर खींचा तो शानू के कौमार्यभंग के घोषणा
करता उसका लाल खून बिस्तर पर फ़ैल गया। जीजू का लंड मानों विजय के तिलक से शोभित हो गया था।
जीजू ने इस बार सिर्फ तीन धक्कों से अपना पूरा वृहत लंड फिर से शानू की चूत में जड़ तक डाल दिया।
अब जीजू के लंड के ऊपर शानू के कुंवारी चूत के विध्वंस की लाल निशानी की चिकनाहट थी। जीजू ने बिना रहम किये दनादन शानू
की चूत में अपना लंड अंदर बाहर करने लगे।
ना जाने कितनी देर तक शानू बिलबिलाई, चीखी चिल्लायी। उसके चीखों और सुबकने के स्पंदन से मेरी चूत भरभरा कर झड़ गयी।
जीजू ने शानू की चूत के द्वार पूरे खोल दिए थे और उनका लंड विजय की पताका फहराता हुआ उसकी चूत का लतमर्दन करने लगा।
" हाआंन्नणणन् जेजूऊऊऊ ऊओईईए अब दर्द नहीं हो रहा। जीजूऊऊ चोदिये अब। ऊन्न्न्न्न्न कितना लम्बा मोटा लंड है आपका। अल्लाह
मेरी चूत फैट गयी पर मुझे चोदिये और," शानू अब और चुदने की गुहार लगा रही थी।
उसके प्यारे जीजू ने अपने लंड के शॉट्स और भी ताकत से लगाने लगे। उनके मोटे लम्बे लंड के प्रहार से शानू हिल उठती पर उसकी
सिस्कारियां ऊंची ऊंची उड़न भर रहीं थीं।
" अम्मीई झड़ गयी मैं फिर से, " शानू सुबक उठे इस बार कामोन्माद के।
शानू की चूत उसके रति रस से भर गयी। जीजू का लंड अब तूफ़ान मेल जैसी रफ़्तार से शानू की चुदाई करने लगा।
उसकी चूत से 'पचक पचक पचक' के संगीत की लहरें गूंजने लगीं।
मेरी चूत फिर से भरभरा कर झड़ गयी। जीजू ने बिना धीरे और होल हुए शानू की चूत उसी बेरहमी से कर रहे थे। पर अब वो
अल्पव्यस्क कमसिन कुंवारी उनके लंड की पुजारिन बन गए और गुहार लगाने लगी, " जीजू और चोदिये मुझे। पहले क्यों नहीं चोदा
आपने मुझे। आपका लंड अमिन अब अपनी चूत से कभी भी नहीं निकलने दूंगीं। चोदिये जीजू आअन्न्न्न्न … …… आर्र्र्र्र्र
ऊओन्नन्नह्हह्हह मर गयी राबाआआआ," शानू के वासना भरी गुहारें मीठे संगीत के स्वरों की तरह कमरे में फ़ैल गयीं।
जीजू के लंड की रफ़्तार तेज़ और भी तेज़ होती जा रही थी। घंटे भर की चुदाई में शानू ना जाने कितनी बार झड़ गयी थी।
अचानक जीजू ने गुर्रा कर धक्का मारा , " साली साहिबा मैं अब आपकी चूत में झड़ने वाला हूँ। "
शानू की कच्ची चूत में जीजू के लंड ने जननक्षम वीर्य की बारिश शुरू की तो रुकने का नाम ही नहीं लिया। शानू जीजू के ग्र्रम वीर्य
की बौछार से फिर से झड़ कर लगभग निश्चेत सी हो गयी।
मैंने जीजू के माथे से पसीने की बुँदे अपने होंठों से उठा ली, " जीजू मान गए आपको। शानू की चुदाई वाकई मेरी चुदाई के मुकाबले के
थी। " " बड़ी साली साहिबा तो आपकी गांड मरने की कीमत चूका दी हमने?"जीजू ने मेरे मीठे होंठों को चूसा।
"जीजू बिलकुल। अब मेरी लिए हमेश खुली है। अब शानू की चूत का दूसरा दौरा हो जाये। आखिर उसकी चूत पूरे खुलनी चाहिए। " मैंने
जीजू की जीभ से अपनी जीभ भिड़ा कर उत्साहित किया।
जीजू ने अपना वीर्य, शानू के रतिरस और कुंवारी चूत के खून से लेस लंड को उसकी चूत से निकल कर मेरे मुंह में ठूंस दिया। मैंने भी
भिन्न भिन्न रसों के मिश्रण को चूस चाट कर उनके लंड को चकाचक साफ़ कर दिया. जीजू का लंड फिर से तनतना उठा।
" जीजू यह क्या ! हाय रब्बा आपका मूसल तो फिर से खड़ा हो गया !," शानू अब पलट कर पीठ पर लेती हुई थी।
जीजू ने उसके पसीने से भीगे कमसिन शरीर के ऊपर लेट कर अपने लंड को फिर उसकी ताज़ी ताज़ी चुदी कुंवारी चूत के द्वार पे टिक्का
दिया, " साली जी एक बार की चुदाई से थोड़े ही तस्सली होने वाले है हमें। "
कहते कहते जीजू ने शानू की चूत में लंड को तीन चार धक्कों से जड़ तक ठूंस दिया। इस बार भी शानू चीख उठी पर इस बार की चीख
में कामना भरे दर्द की मिठास थी। इस बार फिर से शानू की चुदाई शुरू हुई तो जीजू ने रुकने का नाम ही नहीं लिया. मैंने जीजू के हिलते चितादों को चूमा और उनकी गांड
में अपनी उंगली डाल दी। जीजू के नितिम्बों ने जुम्बिश ई और उन्होंने हचक हचक कर शानू की चूत का मर्दन करना शुरू कर दिया।
" जीजूऊऊ …………. चोदिये ………..ज़ोर से ……… आअन्नन्नन्नन्नन्न ………. ऊओन्नन्नन्नन ,"शानू लगातार झड़ रही थी।
जीजू ने शानू को कई बार झाड़ कर उसकी चूत को अपने उर्वर वीर्य से सींच दिया।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
Update 30
जीजू मेरी चुदाई का नंबर लगाने वाले थे पर मैंने उन्हें समय का तकाज़ा दे कर ठंडा कर दिया। अकबर चाचू के आने का समय भी करीब आ रहा था। दुसरे मुझे सुशी
बुआ का दिया काम भी तो करना था। मुझे उसक काम के लिए भी थोड़ी नहीं बहुत ऊर्जा की ज़रुरत थी।
"जीजू, आज रात को आप का सिर्फ एक काम है। शानू की चूत की इतनी चुदाई और कुटाई कि उसकी चूत किसी भी लंड के लिए पूरी खुल जाये। आखिर गली के
बेचारे कुत्तों और गधों के लिए भी तो कोई ताज़ी चूत होनी चाहिए। "
शानू का सुंदर चेहरा जीजू की दमदार चुदाई के प्रभाव से सूरज की तरह दमक रहा था ,"नेहा अब तू आ गयी है कुत्ते और गधे को चूत की कमी नहीं खलेगी। "
और फिर हम दोनों खुद ही बेतुकी बातों से हंस दिए जीजू ने भी साथ दिया हंसी में।
हम सब नीचे चल दिए और रत के खाने का इंतिज़ाम करने लगे।
मैंने मौका देख कर जीजू और शानू को अपना मददगार बनाने के लिए उन्हें अपने गुप्त काम का हमराज़ बनाने का निस्चय कर लिया। फिर थोड़ी गंभीरता से उन्हें हुए
कहा, "जीजू, शानू आप दोनों को मेरी मदद करनी होगी। सुशी बुआ यदि आतीं तो वो अकबर चाचू का ध्यान रखतीं, " मेरा इशारा दोनों बड़ी जल्दी समझ गए, "पर
उन्होंने मुझे यह ज़िम्मेदारी सौंप दी है। इसिलए मैं आज रात को अकबर चाचू को रिझाने की कोशिश करूंगी। इसीलिये जीजू मैंने अपनी चूत को आपके मूसल को दुबारा
नहीं कूटने दी।"
"नेहा यह तो बहुत ही शानदार ख्याल है। मामू मामीजान के इन्तिकाल के बाद बहुत अकेला महसूस करते होंगे। तुम यदि आज कामयाब हो जाओ तो मैं भी कुछ ततबीर
सोचूंगा शानू और नसीम के साथ। " जीजू की रज़ामंदी सुन कर शानू जो थोड़ी सी चकित थी खुल गयी।
"नेहा, आपा कई बार मुझसे इस बात का ज़िक्र कर चुकीं हैं। आपा भी अब्बु के अकेलेपन से बहुत परेशान जातीं हैं।" शानू की बात सुन कर मुझे लगा की मेरा काम
शायद उतना मुश्किल मुझे लग रहा था। बस समय की ताल या टाइमिंग ठीक होनी चाइये।
"तो नसीम आपा ने कुछ किया क्यों नहीं ? आदिल भैया तो कभी उन्हें नहीं रोकते। "
जीजू ने तुरंत कहा , " अब्बु के इन्तिकाल के बाद फूफा ने ही तो हमारा और अम्मी का पूरा खाया रखा है। वो तो हमेशा से मेरी अब्बु के जैसे हैं। मैं यदि मुझे थोड़ा सा
भी इशारा मिल जाता नसीम की तरफ से तो मैं उसे पूरा सहारा और मदद देता इस नेक काम में। "
मैं यह सुन कर बहुत खुश हुई।
"नहीं नेहा जीजू ने नसीम आपा को नहीं रोका उन्हें ही बहुत शर्म और डर है अब्बु से इस बात का इल्म करने से। " शानू ने प्यार से अपने जीजू की जांघों को सहलाया।
"अच्छा तो ठीक है मैं ही कुछ करतीं हूँ इस घर में सबकी खुशी और पनपने के लये ," मुझे पता थे कि मेरी सफलता से सुशी बस बहुत खुश होंगी।
"तो फिर देखो आज शाम को हम तीनों अनौपचारिक सादे कपड़े पहनेंगें। मैं जब चाचू के कमरे में जाऊं तो मुझे थोड़ा समय देना आप दोनों। और फिर खाने पर बहुत
कामुक उत्तेजित बातों का सिलसिला बनाये रखना। मैं पूरी कोशिश करूंगी चाचू से उनकी सुशी बुआ के साथ किसी और के साथ चुदाई की कहानी निकलवाने के
लये।" मैंने अपनी तरफ से चालाकी की पर वास्तविकता में बचकानी चाल जीजू और शानू को समझाई।
जीजू ने सिर्फ जिम वाले शॉर्ट्स पहन लिए। मैंने शानू को बिना बाज़ू की ढीली टी शर्ट और छोटे से शॉर्ट्स पहनाये। शानू के बाज़ू हिलाने पर उसके कमसिन चूचियाँ
झलक मर देतीं। मैंने भी छोटे से शॉर्ट्स और कसरत वाली ब्रा पहन ली। आज अकबर चाचू के संयम की पूरी परीक्षा होने वाली थी। पर हम तीनों मन ही मन दुआ मांग
रहे थे की उनका संयम बहुत सख्त न हो और जल्दी ही हार मान ले।
शानू नीचे अपने अब्बू के स्वागत के लिए तैयार होगी और मैं जीजू के साथ जिम पसीने भीगी चाचू गले लग चिपक जाऊँगी।
शुक्र है जैसे सोचा था काम से काम शुरू में वैसा।
अकबर चाचू जैसे ही घर में कदम रखा उनकी कमसिन बेटी, जो उसी दोपहर को ताज़ी ताज़ी अपनी कुंवारी चूत का उद्घाटन जीजू से करवा चुकी थी, लपक कर अपने
अब्बू की ओर बहन फैला कर लपक ली।
"हाय अब्बू कितना इन्तिज़ार करवाया आपने। नेहा बेचारी कितनी देर से आपके नाम को दोहरा दोहरा कर थक गयी है। उसे अपने चाचू का इन्तिज़ार कितना मुश्किल
लगा है उसका आपको मैं पूरा बयान भी नहीं कर सकती। " चाचू ने अपनी नन्ही लाड़ली को बाँहों में भर लिया। अकबर चाचू को बिना मेहनत अपनी नन्ही कमसिन बेटी
के उगते उरोज़ों का दर्शन हो रहा था।
शानू ने अपनी बाहें अपने अब्बू की गर्दन के इर्द गिर्द दाल दीं।
शानू तो एक कदम और भी आगे बड़ गयी। उसने रोज़ की तरह अपने अब्बु के गाल को चूमने की बजाय अपने होंठ इनके होंठों पर
रख कर एक ज़ोर का चुम्बन दे दिया।
अकबर चाचू ने मुश्किल से लम्बे चुम्बन नन्ही बेटी को नीचे रखा ही था कि तभी मैं पसीने से भीगी चाचू चाचू पुकारती हुई अकबर
चाचू के से चिपकने उनकी ओर दौड़ पड़ी।
"नेहा मेरी बिटिया, कितने दिनों बाद दिखी है तू," कहते हुए चाचू ने मेरा पसीने से लथपथ शरीर अपनी बाँहों में भर कर उठा
लिया। मेरी गुदाज़ बाहें चाचू के गले का हर बन गयीं। चाचू को बिना शक मेरी गीली काँखों से पसीने की सुगंध आ रही होगी।
"चाचू हम भी आप को कितने दिनों के बाद मिल रहे हैं। आपने अपनी भतीजी को मिस नहीं किया ?" मैंने इठला कर चाचू के होंठो
लिया।
"अरे नेहा बेटा हमने कितनी बार रवि, सुशी और अक्कू को बोला की नेहा बेटी को इस तरफ भेजो लिए पर आपके कॉलेज की
पढ़ाई रस्ते में आ जाती थी। पर अब आपको देख कर बहुत सुकून मिला है। "अकबर चाचू देख कर मुझे अपनी योजना की
सफलता के लिए और भी दृढ़ निश्चय कर लिया।
"चलिए तो अब जब मैं आ ही गयीं हूँ तो अब आप तैयार हो जाइये अपनी भतीजी के लिए। यह अब आपसे चिपकी रहेगी। " मैंने
अपनी गदराई झांगें चाचू की कमर के दोनों ओर डाल कर उनकी चौड़ी कमर को जकड़ने का प्रयास किया। अकबर चाचू छह फुट
से कुछ इंच ऊँचे बहुत भारी भरकम शरीर के मालिक हैं। उनकी तोंद भी चाचू से काम नहीं है पर वो उनके मर्दानगी में और भी
इजाफा कर देती है।
मेरे शरीर को सँभालने के लिए चाचू को अपने हांथों को मेरी झांगों के नीचे करना पड़ गया। मेरे उरोज़ इस हलचल में उनके सीने
और चेहरे पर रगड़ मार गए। आखिर में चाचू के हाथ मेरे गोल गोल फुले चुत्तडों पर पहुँच गए।
" नेहा बेटा जब अपने बच्चे हमसे चिपकना चाहे तो हम अल्लाह का शुक्र अदा करते थकेंगे नहीं। किसी के लिए इस से बड़ी क्या
चीज़ नसीब हो सकती है। " इस बार चाचू ने मेरे मुस्कराते चूमा तो मैंने जम कर अपने होंठ उनके होंठों से लगा दिए। मैंने कुछ देर
बाद हलके जीभ की नोक चाचू के होंठो दी। ऐसे की जैसे गलती से जीभ लग गयी हो।
चाचू के मर्दाने मज़बूत हांथो की पकड़ मेरी नितिम्बों सख्त लगी। मैंने उनके होंठो को और भी कस कर चूमा और फिर शरमाते हुए
अलग गयी।
"मैं भी कितनी बुद्धू हूँ चाचू। आप अभी अभी काम से आएं हैं और थके भी होंगे। और यह आपकी पागल भतीजी आसे लिपट
चिपक गयी। चलिए आप नहा कर तैयार हो जाइए। खाना करीबन तैयार ही है। " मैंने एक बार फिर चाचू के होंठ चुम कर उनकी
गोड से उतर गयी।
"नेहा बिटिया आपके आने से घर में रौनक और भी बढ़ गयी। मैं जल्दी से कर कपडे बदल कर आता हूँ। " चाचू के विशाल शरीर
करतीं रहीम जब तक वो अपने गलियारे में नहीं पहुँच गए।
जीजू ने आँख मार कर शानू और मुझे बधाई दी, "भाई आप दोनों कर दिया। मैं तो कायल आपकी तरतीब का। " मैं मुस्कराई और धीमे
बोलने इशारा करते हुए मुड़ गयी।
मैंने हलके क़दमों से चाचू के कमरे की ओर चल दी। मैंने खुले दरवाज़े से चाचू को कपडे उतारते हुए देखा। जैसे ही सिर्फ कच्छा पहने
चाचू बिस्तर पे बैठे अपने मौजे उतरने के लिए मैं धड़धड़ाती कमरे में दाखिल हो गयी। मैंने ऐसा ज़ाहिर किया जैसे चाचू को सिर्फ कच्छे में
देखना रोज़मर्रा की बात हो।
मैं दोनों टाँगे चाचू की झांगों के ऊपर डाल कर उनकी गॉड में बैठ गयी। उनके झांगों के बीच में सोये अजगर का गांड नीचे मचलने लगा।
मैंने दोनों बाहें चाचू की गर्दन डाल कर कहा, "चाचू, हमें आपको सुशी बुआ का बहुत ज़रूरी पैगाम देना है आपको। उन्होंने हमें जगह किया
है की हम ना नहीं सुनेंगें। "
चाचू मुस्करा कर बोले, "भाई ऐसा क्या पैगाम भेजा है सुशी भाभी ने। हम क्या कभी अपनी बीतय को ना कहेंगे ? "
"चाचू सुशी बुआ तैयार कर के भेजा ही की हम आपका ख्याल उसी तरह रखें जैसा यदि वो यहाँ होतीं तो रखतीं। " मैंने चाचू के गाल पर
अपना गाल रगड़ते हुए कहा।
चाचू हक्केबक्के रह गए। वो कुछ देर हकलाते हुए कुछ भी नहीं बोल पाये।
"अरे नेहा बेटी सुशी भाभी का दिमाग हिल गया है। क्या भला ऐसी बातें बच्चों से कभी की जाती है। " चाचू शर्म से लाल हो गए और मुझे
वो प्यारे लगने लगे।
"कछु आप वायदा कर चुके है ना नहीं कहने का। और बच्ची नहीं रही। बड़े मामा, सुरेश चाचू ने मुझे बहुत कुछ सीखा दिया है। फिर
आपकी भी तो ज़िम्मेदारी है की आप अपने बच्चियों को सब तरह से सीखा कर दुनिया के लिए तैयार कर दें। " मैंने चाचू के होंठों को छुम
लिया।
"नेहा बेटी क्या वाकई रवि और सुरेश ने तुम्हारी ….. आरर ……… मेरा मतलब है तुम्हारे साथ मर्द-औरत वाले काम किये हैं?" चाचू अभी
भी शर्मा रहे थे ।
चाचू ने सुशी बुआ का लम्बा बहुत विस्तार से स्पष्ट और बयानी खत पड़ा तो उनकी मर्दानगी उठाने लगी। मैंने भी अपनी गांड हिला हिला
कर उनके लंड को मसलने लगी। खत खत्म करते करते चाचू जुम्बिश मारने लगा।
"नेहा बिटिया आपके साथ तो सम्भोग करने का मौका तो खुदाई तोहफे जैसा होगा। पर क्या आप खुद चाहतीं है या सिर्फ सुशी भाभी के
कहने पर .... " चाचू ने खत बिस्तर पर रखते धीरे से पूछा। मैंने उनके लफ़्ज़ों को बीच में ही टोक कर अपने होंठों से इनके होंठ बंद कर
दिए। कुछ देर में ही मेरी जीभ उनके होंठों को लिए खोलने के लिए बेचैन हो गयी, "चाचू क्या हमारे होंठ आपके सवाल का जवाब नहीं दे
रहें हैं?" मैंने अपने होंठों को चाचू सटा कर फुसफुआया।
अचानक जैसे चाचू के सारे संशय, हिचक दूर हो गये. उन्होंने मुझे बाँहों में कर मेरे होंठों को चूसने लगे। उनकी जीभ लपक मेरे मुंह में में
घुस गयी।
अकबर चाचू के जीभ मेरे मुंह के हर कोने और मोड़ का स्वाद चखने लगी। चाचू के गीले चुम्बन में इतना कामुकता का भावावेश था कि मेरी
साँसे तेज़ हो गयी। मैंने भी चाचू की जीभ से अपनी जीभ बीड़ा दी। चाचू के हाथ मेरे गुदाज़ लगे। मेरे मुंह में उनका मीठा थूक भर गया
और मैंने उसे सटक कर अपनी मीठी लार से उनका मुंह भर दिया। मेरी चूत में खुलबुली मचलने लगी। मुझे लगा कि यदि मैंने चाचू थीम
किया तो मेरा खुद का सयंत्रण ख़त्म हो जायेगा।
अचानक चाचू ने लपक कर मेरी ब्रा को ऊपर कर मेरे गड्कते उरोज़ों को मुक्त कर दिया। जब तक मैं कुछ बोल पति उन्होंने एक को अपने
बड़े मज़बूत हाथ से मसलने के साथ साथ दुसरे के चुचूक को अपने गीले गर्म मुंह में ले कर चूसने लगे। मेरी हालत बाद से बदतर हो चली।
मेरी चूत में रति रास की गंगा बहने लगी।
"चाचू अभी नहीं। नीचे जीजू और शानू कहने पर हमारा इन्तिज़ार कर रहें होंगें। कहने के बाद मैं आपके कमरे में आ जाऊँगी। साडी रात
मसलना आप मुझे। बिलकुल उफ़ नहीं करूंगी। जो मन चाहे आप वो कीजियेगा मेरे साथ। देखिएगा मैं एक कदम भी पीछे हटूँ तो।" मैंने
चाचू के बालों में उँगलियाँ फिराते हुए उन्हें मनाया।
"नेहा बेटा तुम और शानू तो जुड़वां बहनों की तरह हो। शानू तुम्हे अकेला नहीं छोड़ेगी। यही थोड़ा सा मौका है।" आकबर चाचू की आदिम
भूख देख कर मेरा मन भी हुआ की सब भूल कर उनकी क्षुदा मिटा दूँ। पर मुझे पूरे तरतीब का ख्याल भी तो रखना था।
कुछ सोच कर मैं बोली ,"चाचू , अब नहीं, शानू मेरे से चिपकी रहेगी। जीजू ने उसकी सील तोड़ दी है। आज रात को उसे जीजू से सारी
रात चुदवाने के ख्याल के अलावा कोई और ख्याल नहीं आयेगा दिमाग में।"
चाचू थोड़ा सा झिझके फिर खुल कर हंस दिए , "आखिर नन्ही साली आ ही गयी अपने जीजू के नीचे। "
" चाचू आप नहाइयेगा नहीं, मुझे सुगंध बहुत अच्छी लग रही है। रात में जब आप मुझे चोद कर पस्त कर देंगे तब इकट्ठे नहाएंगे।
मैंने शानू और जीजू को चाचू के साथ हुए वार्तालाप का ब्यौरा खुलासे रूप में दे दिया। शानू पहले तो शर्म से लाल हो गयी पर फिर
कहीं से हिम्मत जुटा कर चौड़ी हो कर बोली ,"अब्बू की खुशी के लिए मैं शर्म और लिहाज को थोकड़ मार सकती हूँ। "
खाने की मेज़ पर मैं चाचू के नज़दीक बैठी और जीजू और शानू दूसरी दुसरे के साथ बैठे थे। मेरा एक हाथ मेज़पोश के नीचे चाचू की
जांघ को सहला रहा था।
जैसा हमने सोचा था उसी तरह बातचीत धीरे धीरे थोड़ी सी अश्लीलता की ओर बाद चली। मैंने मौका देख कर चाचू से पूछा ,"चाचू
आप बताइये क्या जीजू साली को कुछ छिपाने की ज़रुरत होती है? "
"अरे नहीं नेहा बिटिया। जीजू यदि साली को अकेला छोड़ दे तो बड़े शर्म के बात है। आदिल बेटा क्या तुम्हारी सालियां तुम्हारे काबू में
नहीं हैं? " चाचू ने हंस कर आदिल को छेड़ा।
"मामू, अब तो काबू में हैं। नेहा का कमल है यह सब। "आदिल भैया ने भी हंस कर तीर फेंका।
"चाचू आज शानू जीजू ने टांका भिड़ा ही लिया। पता नहीं इस नादाँ लड़की ने जीजू को इतना इन्तिज़ार क्यों करवाया?"मैंने चहक कर
कहा।
"चलो देर आयद दुरुस्त आयद। साली को यदि जीजू नहीं पकड़ेगा तो और कौन पकड़ेगा ?" अपनी बेटी के शर्म से लाल मुंह को
चिड़ा कर और भी लाल कर दिया।
"शानू तूने जीजू से आज रात का इंतिज़ाम तय कर लिया। " मैंने मौका देख कर वार्तालाप को और भी सम्भोग संसर्ग के नज़दीक ले
आयी।
"नेहा आप हमारे और जीजू के बीच में जो भी इंतिज़ाम है उसे हमारे ऊपर छोड़ दें ," शानू शर्म से लाल हुई पड़ी थी।
चाचू खुल कर हँसे ,"भाई शानू बेटा की बात सुन कर हमें अपनी साली के याद आ गयी। छोटी साली शहाना भी शानू के जैसी थी। बड़ी
मुश्किल और देर से हाथ आयी।"
"अब्बू पूरी बात बताइये न। "शानू ने भी मौका को दोनों हाथों में लपक लिया।
"अरे बेटा पुरानी बातें हैं। तुम्हे ऊबना नहीं चाहता। यदि तुम्हे ऊबने से नींद आ गयी तो आदिल मुझे माफ़ नहीं करेगा। " चाचू अब बिना
झिझक शानू को चिड़ा रहे थे।
"अब्बू आप जीजू को नहीं जानते। वो जागने की कोई परवाह नहीं करेंगे। उनके पास जगाने के लिए बड़ा भारी औज़ार है। "शानू ने झट
से कह तो दिया फिर शर्म से लाल हो गयी।
"चाचू बताइएं ना आपने पहले पहल कब शहाना मौसी को फंसाया ?" मैंने भी शानू के साथ कांटा फेंका।
"चलो बता ही देंते हैं।" चाचू ने कहा।
"मामू खुल कर पूरा ब्यौरा दीजियगा। कोई सम्पादित या सेंसर्ड कहानी नहीं सुननी हमें। क्यों शानू, नेहा ?" मैं तो जीजू की कला पर
निहाल हो गयी।
"अब्बू मैं बच्ची नहीं हूँ। आप खुल कहानी सुनाएँ। मुझे अब सब समझ में आता है। " शानू ने भी चाचू को उकसाया।
"अरे भाई अब बच्चे सब जानते हैं तो क्या छुपाना ? " चाचू ने बिलकुल ज़ाहिर नहीं होने दिया कि मेरा लंड को उनके पजामे के ऊपर से
सहला रहा था।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
23-07-2019, 05:49 PM
(This post was last modified: 23-07-2019, 06:14 PM by thepirate18. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
Update 31
अकबर चाचू और शन्नो मौसी
सासु माँ के जाते ही मैंने ईशा को फिर से दबा लिया। उसके दोनों चुचों को मसलते हुए शन्नो को चिढ़ाया, "देखो छोटी साली साहिबा
अपनी मझली आपा को, कितना मज़ा आ रहा है इन्हे । "
"तो आप दीजिये न उसे और मज़ा। मेरे पीछे क्यों पड़े है फिर। "शन्नो ने मटक कर कहा।
मैंने ईशा के कुर्ते के अंदर हाथ डाल दिए। उसने हमेशा कि तरह अंगिया या चोली नहीं पहनी थी।
"जीजू उस खाली कमरे में चलिए, उसमे पलंग भी है । यहाँ भरोसा नहीं कब कोई ना कोई आ जाये ," मैंने ईशा के दोनों उरोज़ों को
मसलते हुए शन्नो को नज़रअंदाज़ कर दिया। ईशा को धकेलते हुए मैं उसे कमरे में ले गया। देखा तो शन्नो भी धीरे धीरे अंदर आ रही थी।
"मैं सिर्फ अम्मी की वजह से यहाँ हुँ. उन्होंने हम दोनों को जीजू का साथ देने के लिए बोला था। लेकिन मुझसे कोई और उम्मीद नहीं
रखियेगा ?" शन्नो ने लचक कर हाथ मटकाए।
तब तक ईशा के हाथ मेरे सिल्क के पजामे के ऊपर से मेरे लंड को सहला रहे थे।
मैंने बेसब्री से ईशा का कुरता खींच कर उतार दिया। उसका सलवार के ऊपर का नंगा गोरा बदन बिजली में चमक रहा था।
"जीजू अभी तो मुझ से ही काम चला लीजिये। जब आप रज्जो अप्पा को देंखेंगे तो बेहोश हो जायेंगें।" ईशा ने सिसकारते हुए कहा, "अरे
नासमझ निगोड़ी कम से कम थोड़ा दिमाग से काम ले और दरवाज़ा तो अच्छे बंद कर दे। " ईशा ने छोटी बहन को लताड़ा।
शन्नो ने जल्दी से दरवाज़ा बंद दिया।
मैंने ईशा को पलंग पर खींच अपनी गोद में बिठा कर उसके मीठे होंठों को चूसते हुए उसके कुंवारे उरोज़ों को मसल मसल कर लाल
करने लगा। मैंने ईशा कई बार कपड़ों के ऊपर से मसला और रगड़ा था **** पर उसे पूरा नंगा करने का कभी मौका नहीं मिला था।
उसके गोल गोल गदराये नितिम्ब मेरे लंड को रगड़ रहे थे।
शन्नो एक टक इस सम्भोग को देख रही थी।
अब मुझसे इन्तिज़ार नहीं हो पा रहा था। मैंने ईशा की सलवार खोल कर अपना हाथ उसकी जांघों के बीच में घुसा दिया। उसकी नन्ही
से जाँघिया पूरी भीगी हुई थी , "हाय अल्लाह ! जीजू देखो न मेरी चूत कितनी गीली है। यह सारा दिन आपके बारे में सोच सोच कर
कितना पानी छोड़ चुकी है। "
ईशा ने होंठ मेरे होंठो से चिपका कर मेरी जीभ से अपनी जीभ भिड़ा दी। उसने अपने आप अपनी जांघे चौड़ा कर मेरे हाथ को पूरी
इजाज़त दे दी अपनी चूत को सहलाने की।
ईशा के चूत पर उस वक्त सिर्फ कुछ रेशमी रोयें ही उग पाये थे। मैंने उसके गुलाब के कलियों जैसे फांकों को खोल कर उसकी कुंवारी
चूत के दरवाज़े को सहलाते हुए उसकी चूत की घुंडी को रगड़ते हुए मैंने ईशा के होंठो को दांतों से काटने लगा।
"जीजू , अब नहीं रहा जाता। जीजू अब चोद दीजिये हमें। " ईशा कुनमुना कर सिसकारते हुए बोली।
मैंने जल्दी से अपने कपड़े उतार कर दूर किये।
"अल्लाह, जीजू आपका घोड़े जैसा है। यह तो हमारी चूत फाड़ देगा ," ईशा बुदबुदाई।
"दर्द तो होना ही है ईशा रानी। बताइये चुदवाना है की नहीं? "
मैंने बोलते ईशा की सलवार को एक झटके से उतार कर दूर फैंक दी। उसकी नहीं सी जाँघिया उसके चूत के रस से लबालब गीली थी।
मैंने ईशा की जांघो को फैला कर उनके बीच में घुटनों पर बैठ गया।
मैंने अपने लंड के मोटे सुपाड़े को उसकी कुंवारी चूत ले रगड़ते हुए ईशा से पूछते हुए कहा, "सासु माँ ने कुछ समझाया या नहीं?"
"जीजू हाँ मम्मी ने जब रज्जो आपा को समझाया की पहली चुदाई कैसे दर्दीली होती है तो मैं भी वहां थी। मुझे पता है की पहली चुदाई में
दर्द तो होना ही है। पर उन्होंने औसतन लंड का नाप बताया था उस नाप से से तो आपका लंड मोटा है। लगभग दढाई गुना या तिगना
लम्बा और मोटा है। ऐसा लंड तो मैंने सिर्फ घोड़े के नीचे देखा है। " ईशा कसमसा रही थी। उसके चूतड़ खुदबखुद ऊपर मेरे लंड की
तरफ हिल रहे थे।
"तो साली साहिबा मैं आपको चोदूँ या नहीं, " मैंने बेददृ से नन्ही कमसिन ईशा को चिढ़ाया। मुझे मालूम था की उस तक ईशा का बदन
वासना से गरम हो गया था। उसका मेरे लंड के लम्बे मोटे होने के डर की झिझक उसके गर्मी से हार मान लेगी।
"जीजू आप चोदिये। अल्लाह रहमत करेगा। चूत फटनी है तो फटेगी ही ," ईशा की चूत से एक रस की धार बह रही थी।
मैंने सुपाड़े को ईशा की कुंवारी कमसिन चूत की तंग सुरंग के मुहाने में फंसा कर अपने पूरे वज़न से उसके ऊपर लेट गया। मैंने होंठों को
अपने होंठों से दबा कर एक ज़बरदस्त धक्का लगाया। मेरा लंड सरसरा कर उसकी चूत में घुस गया। ईशा का बदन कांप उठा।
ईशा की चीख़ यदि मैंने अपने मुंह से नहीं दबाई होती तो सारे दालान में गूँज जाती। मैंने ईशा के बिलबिलाने की परवाह नहीं करते हुए
एक के बाद एक तूफानी धक्के लगाते हुए अपना सारा लंड उसकी कुंवारी चूत में जड़ तक ठूंस दिया।
मैंने ईशा के चूचियाँ मसली और उसके सुबकते मुंह को अपने मुंह से दबाये रखा। थोड़ी देर उसे आराम देने के बाद मैंने अपना लंड आधा
बाहर निकला और फिर से ईशा की चूत में ठूंस दिया।। ईशा की चूत से उसकी कुंवारी चूत के पहली बार लंड से खुलने की वजह से
फट गयी । ईशा के कुंवारेपन के खात्मे की फतह लगा उसकी चूत से बहती लाल धार बिस्तर पर फ़ैल कर सफ़ेद चादर को लाल कर
उसके औरत बनने का रंग फैला रही थी ।
ईशा के कंवारी चूत से निकले खून ने मेरे लंड को चिकना कर दिया । मैंने सुपाड़े तक लंड को बाहर निकाल दो तूफानी धक्कों से जड़
तक उसकी चूत में फिर से डाल दिया।
ईशा का पूरा बदन कांप रहा था। उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। उसकी सुब्काइयां मेरे मुंह के अंदर ताल बजा रहीं थीं। मैंने अब
उसकी चूत मारनी शुरू कर दी।
एक धक्के के बाद एक मैं आधा या पूरा लंड निकला कर ईशा की चूत में पूरी ताकत से ठूंस रहा था। करीब दस बारह मिनटों के बाद
ईशा की सुब्काइयां और घुटी घुटी चीखें सिस्कारियों में बदल गयीं। अब उसकी आँखों में आंसुओं के अलावा एक औरताना चमक थी।
उसने अपनी बाहें मेरी गर्दन पे डाल कर मुझसे कस कर लिपट गयी।
"जीजू ……………….. आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह …………… उउउन्न्न्न्न्न्न्न्ह्ह्ह्ह्ह आअरर्र्र्र्र …………. ज्ज्जीईई जूऊऊऊऊओ ………,” ईशा की
सिस्कारियां मेरे लंड को और भी सख्त और बेताब बना रहीं थी।
मेरा लंड अब सटासट ईशा की चूत मार रहा था। ईशा ने अचानक हल्की सी चीख मार कर मुझसे और भी ताकत से लिपट गयी,
"जीजूऊऊ मैं झड़ गयी। अल्लाह कितना लम्बा मोटा है आपका लंड। चोदिये मुझे जीजूऊऊओ ……………….. उउन्न्न्न्ह्ह्ह्ह्ह
………………. आअन्न्न्न्ग्घ्ह्ह्ह ………… ,"ईशा की सिस्कारियां शुरू हुईं तो बंद ही नहीं हुई।
मैंने उसकी चूत के चूडी के रफ़्तार और भी तेज़ कर दी। मेरा लंड अब उसकी कुंवारी चूत में रेलगाड़ी के इंजिन तरह पूरे बाहर आ जा
रहा था। मैंने लगभग घंटे भर ईशा की कुंवारी चूत बेदर्दी और हचक कर मारी । ईशा न जाने कितनी बार झड़ चुकी थी। उसकी उम्र ही
क्या थी। जब ईशा आखिरी बार भरभरा के झड़ी तो कामुकता की त्तेजना से बेहोश हो गयी । मेरा लंड उस की चूत में उबल उठा। मैंने
ईशा की कमसिन चूत को अपने गर्म वीर्य से भर दिया।
जब मैंने ईशा की चूत से अपना लंड बाहर निकला तो मेरे वीर्य, ईशा की चूत के रस उसकी कुंवारी चूत के फटने का खून भी बहने
लगा। शन्नो की आँखे फटी हुई थी। उसने हिचकिचाते हुए पूछा , "जीजू ईशा, आप ठीक तो हैं ना ?"
"शन्नो घबराओ नहीं। जब कुंवारी लड़की की हचक के लम्बी चुदाई हो और वो कई बार झड़ जाये तो कभी कभी उस बेहोशी तारी हो
जाती है ।
जैसे मुझे सही साबित करने के लिए जैसे ईशा ने सही वक्त चुना। उसने अपनी आँखे फड़फड़ाईं और मुझसे लिपट गयी।
"मेरे जीजू। मेरे अच्छे जीजू। कितना मज़ा दिया आपने। अम्मी ने बताया था की दर्द के बाद कितना मज़ा आता है पर मुझे नहीं पता
था की इतना मज़ा आएगा। जीजू जब मैं रज्जो आपा को आपके लंड के बारे में बताऊँगी तो वो बेसब्री से आपसे चुदने का इन्तिज़ार
करेंगी।" ईशा की ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं था।
" जीजू आप मुझे और चोदेंगे ?" ईशा ने बचपन के भोलेपन से पूछा।
'साली जी इस लंड को देखिये और फिर पूछिए यह सवाल ,"मैंने उसका हाथ अपने फिर से तन्नाये लंड के ऊपर रख दिया।
मैंने ईशा को बिस्तर पर धकेल कर एक बार फिर से उसकी चूत में अपना लंड जड़ तक ठूंस कर उसकी चूत लगा।
इस बार चीखें सिर्फ कुछ धक्कों के बाद ही सिस्कारियों में बदल गयीं।
मैंने उसे एक और लम्बी चुदाई से कई बार झाड़ा। जब मैं दूसरी बार उसके चूत में झड़ा तो उसने मुझे चूम चूम कर मेरा सारा से गीला
कर दिया।
उस रात मैंने ईशा की चूत दो बार और मारी। जब उसने लड़खड़ाते हुए कपड़े पहने तो मैंने उसे चूम कर कहा, "ईशा रानी अगली बार
आपकी गांड का ताला खोलेंगे। "
"अल्लाह आपके फौलादी घोड़े के लंड ने मेरी चूत का यह हाल कर दिया है तो मेरी गांड की तो तौबा ही बोल जाएगी।" ईशा ने ऊपर
से तो ना नुकर की पर उसकी आँखे कुछ और ही कह रहीं थीं।
अगले दिन जब ईशा टाँगे फैला कर अजीब से चल रही थी तो सासु और रज्जो दोनों मेरी ओर देख कर मुस्कुरायीं।
"दामाद बेटा कैसी रही ईशा के साथ बातचीत ? " सासु माँ बड़ी ही हसमुख थीं।
"अम्मी ईशा के साथ बातचीत बहुत हे रसीली थी। आखिर बेटियां किसकी हैं ?"मैंने सासु को चूम लिया। उन्होंने मेरी बालाएं
उतारीं।
"मैंने रज्जो को समझा दिया है। वो शन्नो को या तो मना लेगी नहीं तो पकड़ के दबा देना अपने नीचे। एक बार खाने के बाद
कभी भी मना नहीं करेगी। " मैंने सासु अम्मी का हाथ दबा कर उनके अहसान के लिए शुक्रिया अदा किया।
वापसी में लिमोज़ीन में रज्जो, शन्नो और मैं थे। बीच में काला शीशा था। मैंने रज्जो के चूचियों को मसलना शुरू कर दिया।
"हाय अल्लाह, कुछ तो सबर कीजिये। घर पहुँच कर आप मुझे छोड़ थोड़े ही देंगे। वैसे भी कल रात ईशा के साथ सारी रात
चुदाई की थी आपने। " रज्जो ने मुझे चूमते हुए कहा। उसका एक हाथ मेरे लंड को निकाह के चूड़ीदार पजामी के ऊपर से
सहला रहा था।
"रज्जो रानी तुम्हरी मझली बहन का तो जवाब ही नहीं है। उसकी रसीली कुंवारी चूत मारके के लगा की जन्नत में पहुँच गया ।
अब तो मेरा दिमाग तुम्हारी चूत की चाहत से बेचैन है। " मैंने बेगम के बड़े बड़े बड़े भारी उरोज़ों को उसके सिल्क के निकाह
के कुर्ते के ऊपर से मसला।
"आखिर बेटी तो अम्मी की है।"रज्जो ने शन्नो की तरफ देख कर कहा , "सुना शन्नो तूने जीजू को बिलकुल मना कर दिया
मस्ती करने से ?"रज्जो ने सिसकारते हुए कहा। मेरी उँगलियाँ उसकी चूत को कपड़ों की कई परतों के ऊपर से रगड़ रहीं थीं।
"आपा मुझे नहीं मस्ती करवानी अभी। मैं तो इन्तिज़ार करूंगी और। आप और ईशा करिये मस्ती जीजू के साथ," नन्ही शन्नो
बिलकुल भी मान के नहीं दे रही थी।
"आप फ़िक्र ना करें यदि शन्नो खुद नहीं मानी तो उसे पकड़ के ज़बरदस्ती रगड़ दीजियेगा। आपको अम्मी के खुली छूट है
,"रज्जो ने सिसकते हुए अपनी सबसे छोटी बहन को घूर कर देखा। शन्नो ने जीभ निकल कर चिढ़ाया।
*****
घर पर हमारा सुहागरात का कमरा फूलों से सजा हुआ था। रज्जो के साथ पहली चुदाई मुझे कभी भी नहीं भूलेगी। उस रात हम
दोनों ने सारी रात दनादन चुदाई की।
दुसरे दिन हम हनीमून के लिए गोवा गये। जैसा तय था शन्नो हमारे साथ चली। हमारे ' हनीमून सुइट' के साथ शन्नो का कमरा
था। पर रज्जो ने ईशा को अपने सुइट में हे रखा। आखिर उस सुईट में तीन कमरे थे।
पहली रात रज्जो ने मेरा लंड चूसते हुए शन्नो दिखाया कि लंड कैसे चूसा जाता है।
शन्नो ने आखिर में झिझकते हुए मेरा लंड अपने नन्हे हाथों में थाम लिया। रज्जो ने उसे बहला फुसला कर मना लिया और
शन्नो ने मेरा लंड अपने हाथो से अपनी आपा की चूत में डालने को तैयार हो गयी।
रज्जो ने धीरे धीरे उसके कपड़े उतरवा दिए। फिर जब मैं घोड़ी बना कर शानू की अम्मी को चोद रहा को खींच कर रज्जो ने
अपनी नाबालिग अल्पव्यस्क कमसिन नन्ही बहन शन्नो अपने सामने लिटा लिया और उसकी अविकसित नन्ही चूत को चूसने
चाटने लगी। अब कमरे में दो लड़कियों की सिस्कारियां गूंजने लगीं।
शन्नो को पहली बार झड़ने के मज़े का अहसास हुआ।
शन्नो एक ही रात में बिना शर्म के मेरे लंड से खेलने लगी। मैंने जब रज्जो की गांड का उद्घाटन किया तो शन्नो ने मेरे साथ
अपनी बड़ी बहन की गांड मन लगा कर चूसी।
जब रज्जो कुंवारी गांड मरवाते हुए चीखी चिल्लाई और बिलबिला कर लंड निकलने की गुहार मचा रही थी तो शन्नो इस बार
ईशा की चुदाई के जैसे घबराई नहीं। बल्कि वो रज्जो को चूमने लगी और उसके चूचियों को मसलने लगी।
आखिर रज्जो भी गांड के दर्द कम होने के बाद हचक कर अपनी गांड चुदवाने लगी।
मैंने रज्जो की गांड मारने के बाद अपने लंड को शन्नो के मुंह में ठूंस दिया। मुझे एतबार ही नहीं हुआ शन्नो में कितना बदलाव आ गया
बिना ज़ोर ज़बरदस्ती किये। उस दिन रज्जो ने उसे मेरे लंड को चूसने के लिए मना लिया। अब हम दोनों को पता था कि किला फतह
होने में देर नहीं है।
हमने उस दिन शन्नो को खूब खरीदारी कराई। हमने खाने के जगह भी उसकी पसंद पर छोड़ दी थी।
उस रात शन्नो खुद ही अपने कपडे उतार कर हमारे बिस्तर में चली आयी।
मैंने और रज्जो ने उसकी चूचियों और चूत को चूस कर उसे बहुत गरम किया पर झड़ने नहीं दिया। बेचारी तड़प तड़प कर झड़ने के
लिए बेताब हो गयी।
"शन्नो यदि झड़ना है तो जीजू के लंड चुदवा ले ,"रज्जो ने उसकी उगती चूचियों की घुंडियों को मसलते हुए कहा।
मैं उसकी चूत की घुंडी को मसल रहा था।
आखिर में शन्नो ने वासना की आग में जलते हुए हामी भर ली। मैंने इशारा किया और रज्जो ने अपने भारी जांघे शन्नो के सर के दोनों
ओर रख केर उसके मुंह को अपनी चूत से दबा लिया , "मेरी छुटकी बहन यदि मेरे खाविंद के लंड से चुदवाओगी तो कम से कम मेरी
चूत तो चाट लो। "
मैंने सही मौका देख कर शन्नो की चूत के ऊपर धावा बोल दिया। बेचारी के किशोरावस्था लगने में अभी कुछ महीनों के देरी थी। पर
उसके कमसिन गरम चूत के गर्माहट मेरे लंड को जला रही थी।
मेरा लंड का मोटा सुपाड़ा जैसे ही उसकी कुंवारी चूत में दाखिल हुआ तो बिलबिला उठी शन्नो दर्द से। पर रज्जो ने उसे दबा कर
मुझसे कहा ," रुक क्यों गए आप। बिना रुके ठोक दीजिये पूरा लंड इसकी चूत में। दर्द तो होना ही है। जितनी जल्दी सारे दर्द का
अहसास इसे हो जाये उतना अच्छा। "
मैंने बेदर्दी से बिल्बलाती शन्नो की चूत में चार पांच धक्कों से अपना हाथ भर लम्बा बोतल जैसा मोटा लंड जड़ तक ठूंस दिया। शन्नो
बेचारी की चीखें उसकी बड़ी बहन की चूत में डूब गयीं। उसका तड़पता बदन मैंने बिस्तर पे दबा दिया और दनादन उसकी चूत में
अपना लंड पेलने लगा। मेरा लंड अब शन्नो की कुंवारी चूत के खून से लस कर चिकना हो गया। मैंने उसकी जांघों को अपनी बाजुओं
पर टिका कर उसकी चूत को तूफानी अंदाज़ में चोदने लगा।
आधे घंटे के बाद शन्नो ने सुबकना बंद कर दिया और उसके कूल्हे मेरे लंड को लेने के लिए ऊपर होने लगे। रज्जो ने आँख मार कर
मुझे और बढ़ावा दिया। मैंने शन्नो को अब बेहिचक सटासट धक्कों से चोदने लगा। शन्नो भी अब सिसकने लगी और रज्जो की चूत
चाटने लगी।
मेरे लंड के अंदर बाहर आने जाने से शन्नो की चूत में से फचक फचक की आवाज़ें उसकी और रज्जो की सिसकारियों के साथ मिल
कर एक नया गाना गुनगुनाने लगीं।
घंटे भर की चुदाई से शन्नो कई बार झड़ी और मैंने भी उसकी चूत को अपने वीर्य से भर दिया। उस रात रज्जो ने मुझे शन्नो की चूत
पांच बार मरवाई।
"एक बार इसकी चूत आपने पूरी तरह से खोल दी तो यह आपके लंड के बिना नहीं रह सकेगी ," मैं अपनी नई बेगम के तर्क से
लाजवाब था।
अगले दिन शन्नो दर्द के मारे बड़ी मुश्किल से चल पा रही थी। पर रज्जो के कहने पर मैंने उसे उस हचक हचक कर कई बार चोदा।
अगली रात शन्नो की गांड की बारी थी।
उस रात मैंने तीन बार शन्नो की चूत मारी। रज्जो ने जब मौका देखा तो मुझे इशारा दिया , " अब यह थक कर चूर-क्जूर हो गयी है। यही मौका इसकी कुंवारी गांड फाड़ने का। चूं भी नहीं
कर पाएगी। चलिए इसे अपने नीचे दबा कर इसकी गांड भी खोल दीजिये ," रज्जो ने मुझे उकसाया।
मैंने पट्ट लेती नन्ही शन्नो को अपने नीचे दबा कर उसके चुत्तडों को फैला दिया। अपने मोटे लंड के सुपाड़े को एक ही धक्के से उसकी गांड के कुंवारे छेद में घुसेड़ दिया।
शन्नो बिलबिला उठी पर उसकी बड़ी बेहेन ने उसके चेहरे को अपने हाथों में भर कर चूमने लगी। उसकी चीखें कुछ हद तक रज्जो के मुंह से दब गयीं।
मैंने एक धक्के के बाद दूसरा धक्का लगाते हुए अपना पूरा लंड शन्नो की गांड में ठूंस दिया। बेचारी की आँखों से आंसू बह रहे थे। उसकी सुब्काइयां रज्जो के मुंह से दबे हुए भी कमरे में
गूँज रहीं थीं।
मैंने दनादन शन्नो की कुंवारी गांड को वहशियों की तरह चोदने लगा। बड़ी देर बाद न जाने की सुबकने की अव्वाज़ें सिस्कारियों में बदल गयीं।
एक घण्टे तक शन्नो की गांड का मलीदा बनाया मैंने उस रात। शन्नो आखिर में सिसकते हुए झड़ने लगी। जब लंड शन्नो की गांड से निकला तो रज्जो ने उसे अपने मुंह में ले कर प्यार से
चूस कर साफ़ कर दिया।
"देख शन्नो अगले बार जब जीजू तेरी गांड मारेंगें तो तुझे उनका लंड साफ़ करना पड़ेगा। आज तो चलो मैं कर देतीं हूँ। "
बेचारी शन्नो हांफने के अलावा कुछ नहीं बोल पाई।
अगले दिन शन्नो की चाल और भी ख़राब हो गयी।
शन्नो को इस बात का फख्र था कि मैंने उसकी गांड ईशा की गांड से पहले मार ली थी।
"जीजू , शुक्रिया। मैं ईशा को कभी भी भूलने दूंगी कि मेरी गांड ने आपका लंड उससे पहले ले लिया है। "
बाकि का वक्त रज्जो और शन्नो को हर अंदाज़ में चोद चोद कर बड़े मज़े से गुजरा।
उसके बाद शन्नो और ईशा दोनों जब भी मौका मिलता चुदवाने के लिए हमारे घर आ जातीं। उनकी शादी के बाद भी सिलसिला रहा।
मज़े की बात तो यह है कि शादी के बाद भी शन्नो ज़्यादा बार चुदवाने आयी। जब रज्जो शानू और नसीम से पेट थी तो शन्नो तीन
तीन महीने रूकती और जितनी बार मौका मिलता उतनी बार वो चुदवाने के लिए मचलती।
जब से रज्जो का इंतिक़ाल हुआ है तब से ईशा और शन्नो से मुलाकात नहीं हुई है पर उन दोनों से प्यार में कोई कमी नहीं हुई है।
अकबर चाचू की उनकी नन्ही साली की चुदाई की कहानी से हम सब गरम हो गए।
"अब्बू आप कितने बेरहम हैं। बेचारी शन्नो मौसी को आपने कैसे बेदर्दी से रगड़ा। मुझे तो उन पर बहुत तरस आ रहा है ,"शानू ने अकबर चाचू को उलहना
दिया पर उसकी आँखों में एक अजीब से चमक थी। शानू की आँखों में अपने अब्बू के लिए फख्र साफ साफ ज़ाहिर हो रहा था।
" अरे शानू रानी यह तो तुम्हारा अपनी तरह नाटक करने वाली साली के तरफ बेवज़ह का तरस है। मुझे तो शन्नो मौसी के जीजू के ऊपर बहुत फख्र है। उन्होंने
कितनी समझदारी से इन्तिज़ार किया। चाचू यदि चाहते तो रज्जो चाची की मदद से शन्नो मौसी को ज़बरदस्ती पकड़ कर रगड़ देते पहले ही दिन ," मैंने
मुस्करा कर चाचू की तरफ देखा। मेजपोश के नीचे मेरा हाथ उनके फड़कते लंड को सहला रहा था।
" भाई साली साहिबा मैं भी नेहा की बात से राज़ी हूँ। मामूजान ने बहुत ही सबर से काम लिया था। " आदिल भैया ने कहते हुए कुछ न कुछ ज़रूर किया थे
मेज़पोश के नीचे। शानू का लाल मुंह कुछ कहने के लिए खुला पर कोई शब्द नहीं निकला उसके खुले गुलाबी होंठों से।
तब तक खाने का वक्त हो चला। खाने के साथ लाल और सफ़ेद मदिरा थीं। शानू को किसी ने भी नहीं रोका पीने से।
हम सबने खाने के साथ शब्बो बुआ के हांथों की बनी रसमलाई भी चट कर गए।
अकबर चाचू का अपनी अनिच्छुक या नाटक वाली छोटी साली को पटाने और चोदने के गरम गरम किस्से से हम दोनों लड़कियां चुदवाने के लिए तड़पने
लगीं। मैंने लगातार चाचू उनके पजामे के ऊपर से सहला कर आधा खड़ा कर दिया था। उन्होंने, मुझे पूरा भरोसा था कि, कच्छा नहीं पहना था अपने पजामे
के नीचे । मैं बिना देखे जानती थी कि शानू भी आदिल भैया का लंड अपने हाथ के काबू में रखे होगी।
"मामू वल्लाह मज़ा आ गया. साली की ज़िद तोड़ कर ही माने आप।" जीजू ने शानू की और टेड़े टेड़े देख कर चाचू को बधाई दी।
"आदिल बेटा साली कितनी भी नखरे करे या हाथ भी मुश्किल से रखने दे लेकिन उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। कभी कभी सुन्दर और कमसिन सालियां
बहुत मेहनत करवातीं हैं। आखिर जब बीबी मर्द का पूरा ख्याल नहीं रख सकती साली ही तो ख्याल रखती है। " चाचू भी शानू की ओर देख कर मुस्कराये।
"आप दोनों पीछे गलत सलत पड़े है। मैंने कब जीजू को इतना सताया जितना शन्नो मौसी ने अब्बू को। और अब मैंने मना किया है जीजू को। और मैं आज
रात भी जीजू ख्याल आपा जैसे ही रखूंगीं। " शानू ने जोश में जो भी मुंह में आया बोल तो दिया पर जब उसके दिमाग ने ख्याल किया तो वो शर्म लाल हो
गयी। उसने जीजू के बाज़ू में मुंह छुपा लिया।
हम सब बेचारी के ऊपर ज़ोरों से हंस पड़े।
"चाचू मैं थोड़ा थक गयीं हूँ. पानी पी कर मैं सोने चलती हूँ ," मुझे अकबर चाचू के ऊपर बहुत प्यार आ रहा। था. मैं उनके लम्बे सम्भोग-उपवास को जल्दी
से तोड़ना चाह रही थी।
" नेहा बेटा मैं भी पानी पियूँगा ," मैं अपने लिए ताज़ा ठंडा पानी लेने फ्रिज की ओर चल दी।
"मामू मैं भी सोने चलता हूँ," जीजू ने भी विदा ली।
"अब्बू मैं भी सोने चलती हूँ," शानू जल्दी से मुझे चुम्म कर आदिल, भैया के पीछे दौड़ गयी। मेरी छोटी सहेली नासमझ थी की सोचे समझे जीजू की तरफ
दौड़ रही थी। शानू अभी भी लंगड़ा थी।
चाचू और मैं यह देख कर फिर से हंस दिए।
"जीजू आज रात शानू चूत की तौबा बुलवा देंगे," मैंने चाचू के लंड को सहलाते हुए कहा।
"भाई आदिल की साली है हमारी बेटी शानू। जीजू की मर्ज़ी जितना वो चाहे उतना हक़ है जीजू को साली की चूत कूटने का। हमारे दिमाग पर तो तो सिर्फ
एक चूत का ख्याल तारी है। हम तो नेहा की चूत को ख़राब करने के लिए आमादा हैं ," चाचू ने मेरी चूची कपड़े के ऊपर से मसलते हुए कहा।
" नेकी और बूझ बूझ" मैंने चूतड़ हिलाते हुए चाचू को अपनी चूत का बजा बजवाने का न्यौता दिया।
चाचू ने मुझे बिना सांस लिए बाज़ुओं में उठा लिया मानों मैं फूलों के गुच्छे से भी हलकी थी।
कमरे पहुँचते चाचू ने मुझे उछाल के बिस्तर पर पटक दिया। अकबर चाचू ने अपना कुरता-पजामा बिजली फुर्ती उतार फेंका। अब इनका हाथ भर का
घोड़े जैसा मुस्टंड लंड कर चूत को धमकी देने जैसी सलामी दे रहा था।
मैं पहले तो आश्चर्य और डर से चीख उठी पर जब गुदगुदी बिस्तर पर खिलखिला कर हंस पड़ी। चाचू एक छोटी सी छलांग से बिस्तर पर चढ़ गए। उनका
लम्बा खेला खाया भारी बालों से ढका शरीर मुझे नीचे लेते हुए दानवीय आकार का लग रहा था।
चाचू ने अपना पूरा वज़न मेरे कंचन गदराये शरीर पर डाल के मेरे हँसते मुंह के ऊपर अपना मुंह चिपका दिया। उनकी ज़ुबान मेरे खुले मुंह के हर कोने किनारे
की तलाशी लेने लगी। मैंने भी अपनी बाँहों का हार चाचू को पहना दिया। हम दोनों का खुले मुंह का चुम्बन बड़ा गीला और थूक की अदला बदली वाला था।
। चाचू ने बड़ी से बेसब्री मेरे कपड़े लगभग चीड़ फाड़ कर अलग फेंक दिए ।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
23-07-2019, 06:34 PM
Update 32
अकबर चाचू ने गुर्राहट की आवाज़ में कहा , "नेहा बेटी मुझे आपकी चूत तुरंत चाहिए। "
मैं चाचू की हवस की नादीदी और बेसब्री से बहुत उत्तेजित हो गयी।
"चाचू मेरी चूत आपकी है। चोदिये इस निगोड़ी को। फाड़ डालिये अपने घोड़े जैसे लंड से। चाचू मेरी चूत मारिये। बहुत तरसा लिया आपने। "
मैं वासना के ज्वर में बिलख कर गुहार मारने लगी।
चाचू ने अपना भीमकाय लंड का सेब जैसा मोटा सुपाड़ा मेरी चूत के द्वार में फंसा कर एक दमदार धक्के से लगभग एक तिहाई लंड मेरी
चूत में ठूंस दिया। मैंने अपने निचले होंठ को दांतों तले दबा लिया था। पर फिर भी मेरी चीख निकल गयी।
अकबर चाचू की की चार पांच इंचे भी मेरी चूत फाड़ने के लिए काफी थीं।
चाचू ने मेरे होंठों को अपने मुंह में फंसा कर एक और तूफानी धक्का लगाया और अपने महाकाय लंड को मेरी चूत में ठूंस दिया। मैं सुबक
उठी। मेरा प्यार चाचू की हवस की बेसब्री से और भी प्रबल हो उठा।
"चाआआआ चूऊऊऊऊ मार डाला आपने मुझे धीरे चाचूऊऊऊ ," मैं चीखे बिना ना रह पायी।
चाचू ने अपना आखिरी एक तिहाई लंड मेरी चूत में वहशी अंदाज़ में ठूंस कर मेरी चूत को बेसबरी से चोदने लगे।
शुक्र है की चाचू की कहानी और उनके लंड की मालिश के प्रभाव से मेरी चूर बहुत गीली थी। अन्यथा चाचू के विशाल दानवीय लंड से
मेरी कमसिन चूत के चीथड़े उड़ जाते। अकबर चाचू अपने, हाथ भर से भी लम्बे और मेरी हाथ कोहनी [अग्रबाहु/फोरआर्म ] से भी मोटे लंड
से मेरी कमसिन चूत को लम्बे सशक्त धक्कों से चोदने लगे।
मेरी सिस्कारियां चाचू के मुंह में दफ़न हो गयीं। मेरे नितिम्ब दर्द के बावजूद चाचू के लंड के स्वागत के लिए ऊपर नीचे होने लगे। चाचू का
लंड मेरी गीली चूत में सटासट अंदर बाहर हो रहा था।
"नेहा बेटी बहुत दिनों की भूख है। शायद मैं जल्दी झड़ जाऊं। पर फ़िक्र मत करना दूसरी बार तुम्हे झाड़ झाड़ के बेहोश कर दूंगा ," मुझे
अकबर चाकू के ऊपर स्त्री और मातृत्व का मिला जुला प्यार आ रहा था।
"चाचू मैं तो आयी ही हूँ आपके लिए। जब मर्ज़ी हों झड़ जाइये। मेरी चूत अब आपकी है। " मैं चाचू के मुंह में फुसफुसाई। चाचू ने अब
घुरघुरा के मेरी चूत पर अपने महाकाय लंड का आक्रमण और भी तीव्र कर दिया। मैं भरभरा कर झड़ गयी। चाचू ने बिना धीमे हुए आधे घंटे
से भी ज़्यादा मेरी चूत मारी और मैं हर कुछ मिनटों के बाद झड़ रही थी।
अचानक चाचू ने अपना लंड मेरी गीली लबालब रति रस से भरी चूत में निकाल लिया। जब तक मैं कुनमुना कर शिकायत करती अकबर
चाचू ने मुझे गुड़िया की तरह उठा कर मेरी गांड को आसमान की तरफ उठा कर घुटनों और मुंह के बल पट लिटा दिया। चाचू अब मुझे
घोड़ी या कुतिया के अंदाज़ में चोदने के इच्छुक थे।
मैंने अपने गाल मुड़ी बाँहों पे टिका कर गांड को चाचू के लिए हिलाने लगी।
चाचू ने बिना देर लगाये मेरी रति रस से लबालब गीली चूत में अपना लंड फंसा कर तीन ज़बरदस्त धक्कों से जड़ तक अपना विशाल लंड
ठूंस दिया। मैं हलके से करही पर चाचू ने बिना हिचक मेरी चूत का मर्दन भीषण धक्कों से जो शुरू किया तो मैं आनंद के सागर में गोते खाने
लगी।
"चाआआआ……..चूऊऊऊऊऊ …………. आआन्न्न्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह …………..ह्हूऊऊन्न्न्न्न्न्न्न ……………आअन्न्न्न्न्न्न्न्न ," मैं आनंद के अतिरेक
से बिलबिला उठी। मेरे चरम-आनंद की तो मानों एक लम्बी कड़ी बन चली।
चाचू के बलशाली धक्कों से मैं सर से चूतड़ों तक हिल जाती। चाचू के हर धक्के का अंत चाचू की जांघों के मेरे कोमल गुदाज़ नितिम्बों के
ऊपर थप्पड़ के शोर के साथ होता। उनका लंड फचक फचक फचक की अश्लील अव्वाज़ें पैदा करता हुआ मेरी चूत की रेशमी गहराइयों को
ना केवल नाप रहा था पर उनके लंड की विकराल लम्बाई उन गहराइयों को और भी अंदर तक धकेल रहीं थी।
मैं सुबक सुबक कर झड़ रही थी। चाचू के हांथो ने मेरे उरोज़ों को मसल मसल कर लाल कर दिया। मेरे चूचियों के ऊपर सम्भोग की गर्मी से
उपजे पसीने की एक हलकी सी परत की फिसलन उनके हाथों को बहुत रास आ रही थी।
चाचू ने मेरे उरोज़ों को नृममता से मसलने कुचलने के बाद अपने हांथों को मेरे हिलते कांपते चूतड़ों के ऊपर जकड दिया। चाचू ने बेदर्दी से
अपना एक अंगूठा मेरी गांड में ठूंस दिया। मैं चहक उठी। चाचू ने मेरी चूत मारते मारते मेरे गांड में उसी लय से अपना अगूंठा भी धकेलने
लगे। कुछ देर बाद उन्होंने अपना दूसरा अंगूठा भी मेरी गांड में घुसा दिया। उन्होंने उस पकड़ को इस्तेमाल कर मेरी चूत का मर्दन जारी रखा।
उनके अंगूठे मेरी गांड के तंग छेड़ को चौड़ा कर रहे थे। मुझे लगा कि चूत की कुटाई के बाद मेरी गांड की तौबा बुलवाने के लिए तटपर थे
चाचू। मैं मीठे दर्द से सुबक उठी। मेरी सिस्कारियां हल्की घुटी घुटी चीखों के सिंगार से चाचू के कानों में संगीत का रस भर रहीं थीं।
"चाआआ चूऊऊऊऊऊ ……चोदिये मुझे ……आआह्ह्ह्ह चो …..ओओओओओओओओ दीईईईईई ये एएएएएएए और ज़ोओओओओ रर से
उउन्न्न्ह्ह्ह्ह्ह," मैं कामोन्माद की आग में जलते हुए चिल्लायी। चाचू ने मेरी चूत के कूटने की रफ़्तार को और भी उन्नत चढ़ा दिया।
मेरे चूत में रति रस के मानों फव्वारा फुट उठा। मैं अब गनगना उठी। चाचू मुझे बिना थके उसी रफ़्तार से चोदते रहे और मैं निरंतर झड़ रही
थी। वासना के आनंद के उन्माद ने मुझे थका सा दिया। चाचू ने गुर्रा कर मेरे चूत में अपना लंड और भी ताकत से धकेला, "नेहा मैं तुम्हारी
चूत में पानी छोड़ने वाला हूँ। "
"हाँ चाचू भर दीजिये मेरी चूत अपने गरम से। नहा दीजिये मेरे गर्भ को अपने उर्वर मलाई से ," मैं भी वासना के अतिरेक से अनर्गल बोलने
लगी।
चाचू ने एक घंटे से भी ऊपर लम्बी चुदाई के बाद मेरी फड़कती चूत में अपने वीय का फव्वारा खोल दिया। चाचू का लंड थिरक थिरक कर
मेरे गर्भाशय के ऊपर उपजाऊ वीर्य की पिचकारी बार बार मार रहा था।
चाचू ने हचक कर तीन चार धक्के और मारे और मैं चरमानंद की कमज़ोरी में पेट के बल ढुलक गयी और चाचू भी अपने पूरे वज़न से मेरे
ऊपर ढुलक गए।
चाचू ने मेरी चूत से लंड निकल के मुझे बाँहों में भर लिया ," खुदा की रहमत हो आप तो नेहा बेटी। उसकी नियामत ही ले कर आयी है
आपको मेरे पास जीते जी जन्नत में पहुँचाने के लिए। "
मैंने भी प्यार से चाचू को खुले गीले मुंह से चूमा ," पर चाचू यदि आप एक घंटे से भी ज़्यादा चुदाई को जल्दी झड़ना कहतें है तो लम्बी
चुदाई में तो मेरी हालत ही ख़राब कर देंगे। "
"नेहा बेटी चुदाई में बिगड़ी हालत में जितना मज़ा है उस से बेहतर मज़ा और कहाँ से मिल पायेगा। "
चाचू ने मेरे मुंह को कस कर अपने हांथो में पकड़ कर मेरे होंठो को जम कर चूसा। फिर उन्होंने मेरे फड़कती नासिका को अपने मुंह में भर
लिया। उनकी जीभ की नोक ने मेरी नासिका के आकार को मापा। चाचू ने जीभ को पैना कर एक एक करके मेरी दोनों नथुनों को चोदने
लगे। मैं पहले तो खिखिला कर हंस दी। फिर न जाने कैसे चाचू की इस विचित्र क्रिया से भी मेरी चूत में हलचल मचने लगी। मुझे याद
आया कि बड़े मामा ने भी मुझे ऐसे के आनंद दिया था। वासना के खेल में ना जाने कितने नए आनंदायी मोड़ मिलेंगे।
अकबर चाचू ने मेरे नथुनों को जी भर कर अपनी जीभ से चोदा। मेरी चूत में चाचू की इस प्रत्यक्षता में विचित्र इच्छा का प्रभाव
शीघ्र मेरी चूत में दर्शित होने लगा। मेरी चूत में आनंद की हलचल फिर से लहर उठने लगी। चाचू का जब मेरे नथुनो के
जिव्हा-चोदन से मन भर गया तो उन्होंने मुझे चूम कर कहा ," क्या हमारी बिटिया की गांड अपने चाचू का लंड खाने के लिए
तैयार है ?"
चाचू ने मेरी चूचियाँ कस कर मसल दीं। " चाचू, मेरी गांड तो शामत आने वाली है चाहे वो तैयार हो या ना हो, " मेरे नहें हाथों
में चाचू का बलशाली दानवीय लंड जुम्बिश मर रहा था।
"चाचू मुझे घोड़ी बना कर मेरी गांड मारेंगे या चिट लिटा कर ?” मैंने चाचू को और भी उकसाने का प्रयास किया। चाचू ने मेरी
नाक को दांतों से चुभलाये और मेरे दोनों चुचूकों को मसल कर मड़ोड़ा ," नेहा बिटिया तुम्हारी गांड तो एक खास तरिके से
मारूंगा आज। "
चाचू लपक कर बिस्तर से अलमारी से एक अजीब सी चटाई निकाल लाये।
उन्होंने चटाई बिस्तर के ऊपर बिछा दी। उस चटाई की अजीब से बनावट थी। कोई तीन-चार फुट लम्बी और बहुत बिस्तर जैसी
चौड़ी थी। चाचू ने जब उसे बिस्तर पर तकियों के नीचे से फैला दिया तो मैं उसे चकित हो कर देखने लगी। उस पर मिले जुले
आकार की घुन्डियाँ भरी हुईं थी। वो किसी खास रबड़ की बनी होती मालूम पड़ती थी। ऊपर के हिस्से में थोड़े छोटे और घने
घुन्डियाँ थीं। नीचे के हिस्से में बड़ी घुन्डियाँ थीं। इस विचित्रता का मतलब मुझे शीघ्र प्राप्त हो गया।
चाचू ने मुझे उसके ऊपर पेट के बल पट्ट लिटा दिया। चटाई मेरी गर्दन के नीचे से मेरी आधी जांघों तक फ़ैली थी। चाचू ने मेरी
टांगें पूरी फैला दीं। फिर उन्होंने मेरी सारी कमर को चुम्बनों से गीला कर दिया। मेरे शरीर के हर जुम्बिश पर मेरी चुचिया, पेट
और मेरी चूत की रगड़ उन घुंडियों के ऊपर और भी स्थापित हो जाती। पहले पहल तो उससे जलन और हलके दर्द का आभास
हुआ फिर मेरे चुचूक सख्त हो गए और मेरे भग-शिश्न का दाना उन घुंडियों पर रगड़ खा कर कर मचलने लगा। चाचू ने में
मुलायम गोश्त को चुम, काट कर लाल करने के बाद मेरे नितिम्बों को चौड़ा फैला कर मेरी फड़कती गांड के छेड़ के ऊपर अपना
मुंह दबा दिया।
चाचू ने मेरे दोनों चूतड़ कस के अपने हाथों से मसल दबा कर चौड़ा दिए और उनका भूखा मूंग मेरी गुदा-छिद्र के ऊपर चिपक
गया। उहोनेमेरी गांड के छेड़ को जीभ से कुरेदने के साथ साथ मुझे ऊपरनीचे भी हिलाने लगे। अब मुझे उस चटाई के जादू समझ
आ गया। मेरे चुचूक चूचियाँ औए मेरी चूत और उसकी घुंडी चटाई की गोल गोल गांठों के उपर रगड़ खा रहीं थी। पट लेटने से
एक थोड़ी सी असहाय महसूस करने के साथ साथ शरीर के सारे कामोद्दीपक क्षेत्रों को रगड़ रगड़ कर, चटाई चार हांथों का काम
कर रही थी।
मैं सिसक उठी ,"चाचू मेरी गांड को ज़ोर से चाटिये। उउउम्म्म्म्म्म्म्म। "
मेरी चूत रगड़ने से गनगना उठी। मेरा भाग-शिश्न तनतना तो पहले ही गया था अब लगातार रगड़ के हस्तमैथुन के प्रभाव से
कामोन्माद के कगार पर मेरी चूत को ले आया। मैं अचानक हलकी से चीख के साथ झड़ गयी।
चाचू का लंड तन्नाया हुआ था। उनके लंड के खम्बे पर मोटी सर्पों जैसे घिमावदार नसें फूल गयीं थीं। उनका सुपाड़ा लाल से जामुनी रंग का हो चला था।
उन्होंने आने विशाल भरी शरीर को मेरे नितिम्बों के दोनों ओर घुटनों के ऊपर रख कर मेरे दुदाज़ चूतड़ों के बीच छुपे गुदा-द्वार को अपने तड़कते लंड से ढूंढ कर अपने महाकाय सेब जैसे सुपाड़े को मेरी नन्ही गांड के छेद पर रख दिया।
फिर चाचू अपने भारी भरकम शरीर के पूरे वज़न के साथ मेरे ऊपर लेट गये। उन्होंने मेरी उँगलियों में अपनी उँगलियाँ फंसा लीं। अब ममेरी दोनों
टांगें और बाज़ू पूरे शरीर से दूर फ़ैल गए थे। उनके विशाल बालों से ढके भारी शक्तिशाली नितिम्बों ने एक जुम्बिश सी ली और उनके सुपाड़ा मेरे
गांड के छेद पर दस्तक देने के बाद उसे खोलने के लिए बेताब हो गया।
मेरा छोटी हिरणी जैसा शरीर चाचू के विशाल शरीर के नीचे दबा हुआ था , उस दबाव से मेरी चूचियाँ और चूत खुल कर चटाई के बड़े बड़े गांठों
के ऊपर और भी रगड़ खा रहे थे।
चाचू ने मुझे बिलकुल निसहाय कर के एक ज़ोरदार धक्का लगे। मैं चीख उठी दर्द के मारे , " चाचू नहीईईइ……… धीईईईई …..रेए…ए….ए……
ए……ए…….ए……..। " बिलबिला कर चाचू से तरस खाने के लिए गुहार की।
चाचू ने मुझे अब नन्ही हिरणी की तरह अपने विशाल शरीर के नीचे दबा रखा था। मैं कितना भी बिलबिला कर तड़पती पर कुछ भी नहीं कर
सकती थी।
चाचू ने दूसरा भयंकर धक्का मारा। उनका लंड मेरी गांड के तंग द्वार को फैला कर अंदर धसने लगा। मेरी सुबकाई के साथ साथ मेरी आँखों में आंसू
भर गये दर्द के प्रभाव से।
चाचू ने निर्मम खूंखार धक्कों से मेरी गांड के भीतर अपना महाकाय लंड ठूंसते रहे। आखिर में उनके घुंगराले झांटे मेरे चूतड़ों की कोमल त्वचा को
रगड़ रही थी। मैं दर्द से बोझिल बिलबिलाने के बावजूद भी समझ गयी कि चाचू का विकराल गांड-फाड़ू जड़ तक मेरी गांड में विजय-पताका
फहराते हुए स्थापित हो चूका था।
" नेहा बेटा तुम्हें नमृता चाची ने समझाया होगा की यदि लड़की की चीख ना उठे दर्द से बिलबिला कर और उसकी आँखें आंसुओं से न भरे तो मर्द
के लंड पे बड़ी तोहमत लग जाती है।”
मैं दर्द से बिलख उठी थी और कुछ नहीं बोल पाई। चाचू की बात बिलकुल सही थी।
चाचू में मुझे अपने नीचे कस कर दबा कर मेरी गाड़-हरण शुरू कर दिया। उनके भरी चूतड़ ऊपर उठते और उनका लंड मेरी तड़पती गांड से बाहर
निकलता और फिर चाचू अपना पूरे भरी वज़न का फायदा उठा कर मेरे ऊपर अपने को पटक देते और उनका वृहत मोटा लम्बा लंड एक धक्के ऐसे
मेरी गांड में जड़ तक समां जाता।
अब मेरी गांड की चुदाई की एक लय सी बन गयी। चाचू के वज़न से मेरी चूचियों चटाई की गांठों से मसल रहीं थी। चाचू के लंड का हर धक्का
मेरा शरीर को कई इंचों तक ऊपर धकेल देता। उस से मेरी चूत चूचियाँ और भग-शिश्न रगड़ खा रहे थे रहे थे।
चाचू की जादुई चटाई उनके साथ मिल कर मेरी चुदाई में उनका पूरा साथ दे रही थी।
चाचू ने मेरी गांड ज़ोरदार धक्कों से मारनी शुरू की। मेरी दर्द भरी सुब्काइयां शीघ्र वासना की सिस्कारियों में बदल गयीं। मैं चाचू की पांच मिनटों
की भीषण गांड चुदाई से भरभरा कर झड़ उठी।
"आअन्न्न्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह चाआआ………… चूऊऊऊऊऊऊऊऊऊ…… ," मैं चरमानंद के अतिरेक से सिसक कर चाचू के लंड के गुण गाने लगी |
चाचू ने मेरी गाड़ मारने का अब लम्बा इंतिज़ाम बना सा लिया था। उन्होंने मुझे चटाई पर बरकार दबाते हुए अपने लंड के धक्कों की रफ़्तार और
लम्बाई बदलने लगे। चाचू कभी लम्बे सुपाड़े से जड़ तक लम्बे धक्कों से मेरी गांड मारते । कभी छोटे लेकिन भयंकर तेज़ धक्कों से गाड़ की चुदाई
करते। इन धक्कों से मेरा पूरा शरीर हिल उठता। लेकिन उनके लंड का हर धक्का मेरे संवेदनशील चूचियों, चुचूकों और चूत को चटाई पर
लगातार मसल रहा था।
अब मैं गनगना के लगातार झड़ रही थी ," चाचू …….. हाय मम्मी…. ई…ई… मर गयी। … चोदिये… मेरी…गांड चाचू …….ज़ोर से चोदिये मेरी
गांड ……. फाड़ डालिये मेरी गांड अपने मोटे लंड से …..पर मुझे फिर से झाड़ दीजिये। "
मेरी सिस्कारियों से मिलीजुली जोर से चुदने के गुहार चाचू को और भी उत्तेजित करने लगी। मुझे लगा की उनके धक्कों में और भी ताकत शुमार हो गयी थी।
चाचू ने बिना थके मेरी गांड की चुदाई बरक़रार रखी। कमरे मेरी सिस्कारियां गूँज रहीं थीं। चाचू अब जब ज़्यादा ताकत से अपना लंड ठूंसते तो
उनके हलक से गुरगुराहट उबल जाती। मैंने निरंतर रति-निष्पति से भड़क उठी। मेरा शरीर कामवासना के अतिरेक से काम्पने लगा।
चाचू के मोटे लम्बे लंड से मेरी गांड की चुदाई की आवांजें कमरे में संगीत सा बजाने लगीं। चाचू लंड अब मेरे गांड रस से सन लस और भी
चिकना गीला हो गया होगा और उनका लंड अब और भी आसानी से मेरी गांड का मर्दन कर रहा था। मेरी गांड में से अब फचफच फच फच की
आवाज़ें निकलने लगीं।
न जाने कितनी देर तक मैं सिसक सिसक अनर्गल बोल बोल कर चाचू से चुदी। मेरी गांड में जब चाचू ने अपने गरम गरम वीर्य की पिचकारियाँ
मारनी शुरू की तो एक घंटे से भी बहुत ऊपर तक वो मुझे चोद रहे थे। मेरी गांड उनके गरम गरम वीर्य की फुंहारों से चिहक गयी। मेरी चूत ने भी
एक बार फिर से भरभरा के पानी छोड़ दिया।
चाचू ने मुझे अपने नीचे दबा के रखा और मेरे शिथिल निस्तेज शरीर के ऊपर पड़े रहे।
कुछ देर साँसों पर कुछ काबू पाने के बाद अकबर चाचू ने मेरे एक तरफ मुड़े मुंह को कस कर पकड़ कर मेरे गाल को चूसने लगे। उनके होंठों ने
मेरी फड़कती नासिका को चूम चाट कर अपने प्यार का इज़हार सा किया।
बड़ी देर बाद चाचू ने अपना भारी भरकम बदन मेरे ऊपर से उठाया। उनका विकराल लंड ढीला शिथिल होने के बाद भी मेरी गांड के दरवाज़े को
चौड़ा रहा था।
उनका मोटा सुपाड़ा जैसे ही मेरी मलाशय के द्वार की तंग मांसल संकोचक पेशी से बहार निकला मेरी बुरी तरह पैशाचिक अंदाज़ में चुदी गांड
बिलबिला उठी। न चाहते हुए भी मेरी हलकी सी चीख निकल गयी।
" चाचू आज तो आपने मेरी गांड की तौबा बुला दी। " मैंने चाचू को मुहब्बत भरा उलहना मारा।
"नेहा बेटी सालों की प्यास है। थोड़ी वहशियत तो मर्द में आ ही जाती है। पर हमें पूरा भरोसा है की हमारी नेहा बेटी हमें माफ़ कर देगी। " चाचू
ने मेरा मुंह मोड़ कर मेरे मुस्कराते होंठों को चूम कर कहा।
अकबर चाचू जैसे आपने हमें चोदा है उस चुदाई के बाद सात खून भी माफ़ हैं। यह तो मेरी खुशनसीबी है की आप जैसे मर्द चाचू से चुदने का
सौभाग्य मिला ," मैंने खुल कर मर्दाने चाचू की भीषण चुदाई की सराहना की।
अकबर चाचू ने मेरी पीठ चूमते हुए मेरे गुदाज़ नितिम्बों पर पहुँच गए। उन्होंने दोनों चुत्तडों को मसल कर फैला दिया और मेरी ताज़ी ताज़ी चुदी
गांड के छिद्र के ऊपर अपने होंठो को चिपका दिया। चाचू ने मेरी भयंकर गांड-चुदाई से उपजे रस को चूसना शुरू कर दिया। मैं कुनमुना उठी।
चाचू ने न केवल मेरे गान के इर्द-गिर्द चूमा चाटा बल्कि अपनी जीभ को मेरी अभी भी ढीली सी खुली गांड में खुसा कर उसके स्वाद को पूरा
चाहत से सटक लिया।
अब चाचू अपनी पीठ पैर लेते थे मैं उनके विशाल बालों से भरे भारी शरीर पर चढ़ गयी। मैंने उनके मुस्कुराते मुंह को चूमा और फिर उनके मर्दाने
घने बालों से ढके सीने को चूमते हुए उनके दोनों चुचूकों को भी चूसा।
फिर उनके बड़ी तोंद के ऊपर चुम्बन भरते हुए उनकी गहरी नाभि को जीभ से कुरेदते हुए उनके शिथिल पर विकराल मोटे लंड के ऊपर पहुँच गयी।
चाचू का लंड उनके मलाई जाइए वीर्य और मेरी गांड से उपजे रस से लिसा हुआ था। मुझे उनके लंड पर बहुत प्यार और ग़रूर आ रहा था। मैंने
हौले हौले उनका सारा लंड चाट कर साफ़ कर दिया। उनके लंड के ऊपर से मिला जुला स्वाद ने मुझे उत्तेजित सा कर दिया। अपने थूक से लिसे
चाचू के लंड को मैंने प्यार से सहलाते हुए कहा , " अच्छे से आराम करो थोड़ी देर मेरे प्यारे मूसल अभी तुम्हें बहुत मेहनत करनी है। "
चाचू को मेरी बचकानी बात से बहुत हंसी आयी।
" अभी तो नेहा बेटी अब इस मूसल को बहुत ज़ोरों से पेशाब आया है, " चाचू ने हँसते हुए कहा।
" चाचू पेशाब तो मुझे भी लगा है। कसके चुदाई के बाद न जाने क्यों पेशाब की इच्छा होने लगती है ," मैंने चाचू के ऊपर चढ़ कर उनको चूमते
हुए कहा ।
चाचू ने मुझे बाँहों में उठा कर शयनघर से लगे स्नानघर में चल पड़े।
" मैं नेहा बेटी आपसे कुछ मांगू तो इंकार तो नहीं करोगी? "चाचू ने मेरी नाक की नोक को चूमते हुए पूछा।
"आप मांग कर तो देंखे चाचू," मैंने भी चाचू की मर्दानी नासिका को चूम लिया।
"मुझे आज रात आपके साथ पहली चुदाई की ख़ुशी में आपके सुनहरे शरबत के शराब पीनी है ," चाचू ने मुझे कई बार चूमा।
मैं बिलकुल भी नहीं झिझकी। बड़े मामा ने मुझे इस क्रिया से बहुत वाकिफ करा दिया था , " चाचू मुझे तो बहुत अच्छा लगेगा पर आपको भी
मुझे अपना सुनहरी शरबत देना होगा। "
चाचू की आँखों की चमक को देख कर मुझे उनके जुबानी जवाब की ज़रुरत की ज़रुरत नहीं थी।
स्नानघर में पेरी बारी पहले थे। मैंने चाचू के खुले मुंह के ऊपर अपनी अच्छे से चुदी चूत को सटा अपने सुनहरी शरबत की धार खोल दी। चाचू ने
खूब दिल खोल कर बार बार मुंह भर कर मेरा खारा सुनहरा शरबत पिया। मैंने अपनी मूत्रधार धीमी नहीं की और उनको सुनहरा स्नान भी करवा
दिया।
जब मेरी चूत से एक और बून्द भी नहीं निकल पाई तो मैंने चाचू की तरफ देख कर उनको अपने वायदे का तकाज़ा दिया।
मैंने नीचे बैठ कर चाचू के मोटे लंड को अपने मखुले मुंह में भर लिया। चाचू ने बड़ी दक्षता से अपनी धार खोल दी। जब मेरा मुंह अच्छे से भर
गया तो चाचू ने अपने धार को रोक लिया। मैं चाचू का सुनहरा खारा तीखा शरबत सटक गयी। और फिर से अपना मुंह भरने का इन्तिज़ार करने
लगी। चाचू ने कई बार मेरा मुंह भर दिया। फिर उन्होंने भी मुझे अपने गरम सुनहरे मूत्र से नहला दिया।
मैंने उनके मूत्र की आखिरी बूँदें लेने के लिए उनके लंड के मोटे सुपाड़े को अपने मुंह में भर लिया।
चाचू का लंड मेरे चूसने और उनके मूत्र-पान की उत्तेजना से लोहे के खम्बे की तरह सख्त होने लगा।
चाचू ने मुझे गुड़िया की तरह हवा में उठा लिया। मैंने उनकी इच्छा को समझ कर अपनी गोल गुदाज़ जांघें उनकी चौड़ी कमर के ऊपर फैला दीं।
चाचू ने मेरी चूत के फैले कोमल तंग द्वार को अपने दानवीय लंड के सेब जैसे मोटे सुपाड़े के ऊपर टिका कर एक गहरी सी सांस ली।
फिर अचानक उन्होंने, मेरे सारा वज़न, जो उनके हाथों पर टिका हुआ था, अपने हाथो को नीचे गिरा कर गुरुत्वाकर्षण के ऊपर छोड़ दिया।
उनका मोटा लम्बा खम्बे जैसा लंड मेरी चूत ने गरम सलाख की तरह धंसता चला गया।
स्नानघर में में मेरी दर्द से भरी चीख गूँज उठी , " चाआआ चूऊऊऊऊ ऊ ऊ ऊ ऊ.......... उउउन्न्न्न्न्न्न्न्न। "
मैंने चाचू की मोटी गर्दन को अपनी बाँहों का हार पहना दिया और अपने चीखते मुंह को उनके सीने में छुपा दिया।
चाचू ने एक ही धक्के में अपना एक तिहाई लंड मेरी कमसिन चूत में धूंस दिया था। बाकि का लंड उनके दुसरे धक्के से मेरी बिलखती पर भूखी
चूत में समा गया।
चाचू ने खड़े खड़े स्नानघर में मेरी चूत की दनादन चुदाई प्रारम्भ कर दी। मेरी शुरू के दर्द की चीखें शीघ्र सिस्कारियों में बदल गयीं। चाचू ने अपने
बलशालिबाहों की ताकत से मुझे अपने लंड के ऊपर गुड़िया की तरह ऊपर उठा कर सिरह नीचे गिरने देते और मेरी चूत उनके लंड के ऊपर निहार
हो चली।
मैं सिसक सिसक कर चुदने लगी।
" आअह्हह्हह राआअम्म्म्म्म्म्म चचोओओओओओओओओ उउउन्न्न्न्न्न्न चोदिये ये ऐ ऐ ऐ ऐ उउउन्न्न्न्न्न ," मैं कामोन्माद के ज्वर से एक बार फिर से
उबाल पडी।
चाचू ने लुझे तीन चार बार झाड़ कर बिस्तर के ऊपर पटक दिया। जब तक मैं संभल पति उन्होंने मुझे निरीह हिरणी की तरह अपने भारी भरकम
शरीर के नीचे दबा कर अपना लंड फिर से मेरी चूत में ठूंस दिया। चाचू ने फिर से मेरी चूत की प्यार भरी निर्मम चुदाई शुरू कर दी।
मैं वासना के मीठे दर्द सिसकती और ज़ोर से चोदने की गुहार करती। मर्दाने लंड की चुदाई से कोई भी लड़की का दिमाग पागल हो जाता मेरी
चुदाई तो चाचू के भीमकाय लंड से हो रही थी।
चाचू का लंड फचक फचक की आवाज़ें पैदा करता हुआ पिस्टन की तरह मेरी चूत में अंदर बाहिर आ जा रहा था। मेरी रस-निष्पति निरंतर हो
रही थी। चाचू ने न जाने कितनी देर तक मेरी चूत का लतमर्दन किया। मैं तो अनगिनत चरम-आनंद के प्रभाव से अनर्गल बकने लगी थी। जब
चाचू ने मेरी फड़कती चूत को अपने गरम जननक्षम वीर्य से नहलाया तो मेरी जान ही निकल गयी।
हम दोनों एक दुसरे से लिपटे कुछ देर तक ज़ोर ज़ोर से साँसें भरते रहे।
जब मुझे कुछ काम-आनंद के अतिरेक से कुछ होश आया तो मैं अकबर चाचू के ऊपर लेती थी और उनका थोड़ा सा शिथिल लंड अभी भी मेरी
चूत में फंसा हुआ था। । हम दोनों के कद में इतना फर्क था कि मैं उनके सीने तक ही पहुँच पाई। उनकी तोंद के ऊपर लेटने से मेरे चूतड़ उठे
हुए थे और चाचू उनकों हौले हौले सहला रहे थे। मैंने अपने हांथों से चाचू के सीने के घुंघराले बालों को अपनी उँगलियों से कंघी सी करते हुए
मुस्करा कर पूछा , " चाचू सच बताइयेगा हमारी चूत मारने में उतना ही मज़ा आया जितना सुशी बुआ की चूत में आता है। "
अकबर चाचू ने मेरी नितिम्बों को मसलते हुए मुझे प्यार से डांटा , " नेहा सुशी तो हमारी भाभिजान हैं। उनकी चूत पर तो हमें पूरा हक़ है देवर
होने की वजह से। पर तुम तो हमारी सुंदर बेटी हो। तुम्हारे प्यार और चूत पर हमें कोई भी हक़ नहीं है। तुमने तो हमें खुद ही अपनी चूत को दे
कर जन्नत का नज़ारा करवा दिया। बहुत ही खुशनसीब बाप और चाचाओं को अपनी बेटी या भतीजी की चूत का प्यार नसीब होता है। "
मैंने चाचू के मर्दाने चुचूक को सहलाते हुए कहा ," चाचू अब से आप मुझे कहीं भी और कभी भी बुला सकते हैं ठीक सुशी बुआ की तरह।
सुशी बुआ को आपके अकेलेपन की बहुत फ़िक्र लगी रहती है। "
मैं धीरे धीरे अपने कमसिन दिमाग़ की तरतीब के तार प्यार भरे जाल में पिरोने लगी।
"नेहा बेटी अल्लाह के सामने किस का बस चलता है। उसे जो मंज़ूर हो वो ही इंसान को मंज़ूर हो जाता है। तुम्हारी चाची का प्यार हमारी
किस्मत में सिर्फ इतने सालों के ही लिए लिखा था। " चाचू ने प्यार से मेरे गलों को सहला कर अपने हाथों को फिर से मेरे फड़कते चुत्तड़ों पर
टिका दिया।
" चाचू भगवान की जो इच्छा हो वो ठीक है। पर हमें तो जैसे अब है उसी में आपका ख्याल रखने का सोच-विषर करना है ना ! "
मैंने दादी की तरह चाचू को समझाया।
"तो फिर तुम यहीं कॉलेज में दाखिला ले लो फिर हमारी नेहा बेटी हमारे घर की रौनक बन जाएगी रोज़ रोज़। "चाचू ने हँसते हुए कहा।
" चाचू हम मज़ाक नहीं कर रहे। अच्छा बताइये कि नसीम आपा को आपके अकेलेपन की फ़िक्र नहीं है क्या ?
" हमें पूरा आगाह है अपनी बड़ी बेटी के प्यार का और उसकी फ़िक्र का नेहा बिटिया। पर वो भी क्या कर सकती है अल्लाह की मर्ज़ी के
सामने। बस अब शानू बड़ी हो जाये और उसे भी आदिल जैसा अच्छा शौहर मिल जाये तो हमें लगेगा कि रज्जो की रूह को सुकून मिल जायेगा।
" चाचू का प्यार अथाह था।
"चाचू हम एक बात बोलें आप बुरा तो नहीं मानेंगें ?," चाचू ने मुस्कुरा कर मेरे नासमझ डर का मज़ाक सा उड़ाया।
" चाचू जब हम चले जाएंगें तो नसीम आपा तो हैं ना। अब तो उनकी शादी भी हो गयी है। आपको शायद नहीं पता कि जो सुशी बुआ ने हमें
काम सौंपा था वो ख्याल नसीम आपा के दिमाग़ में कई सालों से दौड़ रहा है। " मैंने सांस रोक ली। चाचू के अगले लफ्ज़ मेरी योजना को
सफल या विफल कर देंगे।
चाचू कुछ देर तक चुप रहे पर उनके हाथों की पकड़ मेरे चूतड़ों पर सख्त हो गयी , " नेहा क्या नसीम बेटी ने आपसे कुछ बोला है क्या ?"
" चाचू अभी नसीम आपा तो सीधे सीधे बात नहीं हुई है पर उन्होंने शानू से कई बार इस का ज़िक्र किया है। शानू ने मुझे बताया कि उन्हें
आपसे इसका ज़िक्र करने में शर्म और डर लगता है। " मुझे अब लगने लगा कि अकबर चाचू के दिल में भी यह ख्याल शायद खुद ही आ चूका
था।
आता कैसे नहीं नसीम आपा का शबाब सुंदरता तो भगवान का वरदान सामान है। उनका गदराया भरा भरा शरीर को कोई भी बिना सराहे नहीं
रह सकता।
" नेहा अब जब हम दोनों खुल कर सच बोल रहें है तो मैं भी बता दूँ कि नसीम जब दस ग्यारह साल की भी नहीं थी तभी से उसके बदन का
बढ़ाव तेरह चौदह साल की लड़की की तरह का था। जब हम और रज्जो अपनी बेटी की खूबसूरती की बात करते थकते नहीं थे। कई बार रज्जो
ने हमें चिढ़ाया की ऐसी बातों के बाद की चुदाई में हम बहुत वहशीपन दिखाते थे। "
चाचू ने एक गहरी सांस ले कर बात आगे बढ़ायी , "एक दो साल बाद नसीम का बदन पूरा भर गया। हमें भी उसकी जन्नती खूबसूरती का पूरा
अहसास होने लगा। माँ की आखें बहुत तेज़ होतीं हैं। रज्जो ने एक रात हमें बिलकुल पकड़ लिया।
उसने कहा , 'अक्कू आप सच बतायें आपको हमारी बेटी की गुदाज़ खूबसूरती से मरदाना असर होने लगा हैं ना ? '
हमने रज्जो और किसी से भी कभी झूठ नहीं बोला है। हमने मान लिया , 'रज्जो हम क्या करें हमें अपनी बेटी के हुस्न से बाप का फख्र और मर्द
के ख्याल दोनों दिमाग़ पर तारी हो जातें हैं। '
रज्जो ने हमें प्यार से चूम कर कहा, ' इस में शर्म की क्या बात है। अरे हमारे बाग़ का फल है उसके मिठास का पता हमें नहीं होगा तो किसको
होगा?'
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
Update 33
'रज्जो तुम्हें बुरा नहीं लगा कि एक बाप अपनी बेटी की खूबसूरती ने असर से मर्दों के हजैसे सोचने लगता है ?'
'अक्कू बुरा तो तब लगता जब आप और नसीम में इतना प्यार नहीं होता। नसीम अब तेरह साल की हो चली है और मुझसे मर्दों और औरतों
के मेलजोल की बातें पूछने लगी है। जानतें हैं उसने कल क्या कहा ? उसने कहा की - 'अम्मी आप कितने खुसनसीब है की आपका निकाह
अब्बु जैसे मर्द के साथ हुआ है। मैं तो खुदा से माँगूगीं की मुझे अब्बु तो नहीं मिल सकते पर अब्बु जैसा शौहर मिले। अम्मी क्या बताऊँ अब्बु
को ले कर कई बार मेरे दिल और दिमाग में कितने ख़राब ख्याल आतें हैं।'
अक्कू मैंने अपनी बेटी को पूरा भरोसा दे दिया कि बेटी और अब्बु के बीच जब बहुत प्यार होता है तो कोई भी ख्याल गन्दा नहीं होता । देखिये
अक्कू एक दो साल और बड़ा होने दीजिये हमें पूरा भरोसा है आपकी बिटिया खुद आपसे मर्दाने मेलजोल की ख्वाहिश करेगी। बस आप
पीछे नहीं हटना नहीं तो उसका दिल टूट जायेगा। ‘”
अकबर चाचू ने विस्तार से अपने और रज्जी चाची के बीच में हुए निजी बातचीत का खुला ब्यौरा दिया।
"हाय चाचू आग तो दोंनो तरफ लगी है तो फिर देर किस बात की ? " मेरी चूत में चाचू का लंड अब डरावनी रफ़्तार से सख्त होने लगा था।
" नेहा बेटी रज्जो होती तो नसीम और मैं पांच साल से नज़दीक आ गए होते। पर उस रात के कुछ महीनो के बाद ही रज्जो को अल्लाह की
मर्ज़ी ने जानत की और रवाना कर दिया। अब हमारे और नसीम के बीच में बहुत झिझक, शर्म की दीवार बुलंद हो गयी है। और उसके ऊपर से
हमारी बेटी हमारे बेटे जैसे भतीजे आदिल की दुल्हन बन चुकी है। हम अब इस ख्याल को दबा देतें हैं इस डर से कि हमारी मर्दाने प्यार भरी
नज़रों की सोच आदिल न समझ जाये। " अकबर चाचू के दिल में दबे मर्दाने प्यार को ऊपर लेन का सही वक़्त आ गया था।
" चाचू, जीजू ने तो सुबह सुबह ही कहा था की आप तो उनके अब्बु जैसे हैं। और यदि नसीम आपा राज़ी हों तो वो खुद उनकों आपका ख्याल
रखने के लिए उकसायेंगे। आदिल भैया तो ठीक आपकी तरह ही सोच रहें हैं। " मैंने प्यार से चाचू की बालों भरे सीने को चूम कर कहा।
"नेहा हमारा दिमाग़ तो काम नहीं कर रहा। तुम जो कहो वो हम करेंगें। " यह सुन कर तो किला फतह होने के बिगुल बजने शुरू हो गए मेरे मन
में।
"अच्छा तो सुनिये चाचू मैं नसीम आपा पहले बढ़ावा दूँगी इस बिनाह पे कि आप उनकी तमन्ना कई सालों से पहले से ही करते रहें हैं। अब
वो भी आपके करीब चाहतीं हैं। बस शर्म और डर का सवाल है। मैं उनको मन लूँगी की जब वो आपके कमरे में आयेंगीं तो आप उन्हें मेरे नाम
से पुकारेँगेँ। इस से उनके अंदर जो भी शर्म है या डर है उसके ऊपर मेरे नाम का पर्दा ढक जायेगा। एक बार आप दोनों के बीच में चुदाई हो
जाएगी तो उसके बाद कैसी शर्म और किसका डर ?"
मैंने कौटुम्भिक सम्भोग में विशेषज्ञ की तरह सर हिलाते हुए कहा। अकबर चाचू का महा मूसल लंड अब तनतना कर मेरी चूत चौड़ा रहा था।
" नेहा बिटिया अब तो हमने अपने आपको तुम्हारे हाथों में सौप दिया है। आप जो कहोगे वो हम करने के लिए तैयार हैं ," अकबर चाचू ने मेरे
दोनों चुत्तड़ों को मसलते हुए प्यार से कहा।
" चाचू अभी बता देतीं हूँ शानू का दिल अपने अब्बु ऊपर बहुत ज़ोर से आ गया है। अब तो उसकी सील जीजू के तोड़ कर उसे आपके लिए
तैयार भी कर दिया है। " मैंने चाचू के मर्दाने चुचूकों को होले होले चुभलाते हुए चूसने लगी।
" नेहा बेटी पहले नसीम के प्यार का इज़हार हो जाने दो। हमें अब आपकी और शुशी भाभी की बातें समझ आ गयीं हैं। अब से हम इस हजार
ने फिर से प्यार की खिलखिलाहट भरने की पूरी कोशिश करेंगें " चाचू ने हलके से अपनी तर्जनी को मेरी सूखी गाड़ के छेड़ पर पहले रगड़ा फिर
धीरे से ऊके अंदर ठूंसने लगे।
मैं चिहक उठी , " हाय चाचू तो मेरी सूखी गांड को क्यों फाड़ने की कोशिश कर रहें हैं ? "
" नेहा पहले तो आपकी चूत की बारी है। उसके बाद आपकी गांड का नंबर लगायेंगें। " चाचू ने मुझे खिलोने की तरह उठा कर मेरी चूत को
अपने घोड़े जैसे महालण्ड के ऊपर टिका दिया। उनका लंड बिना किसी मदद के मानों प्राकर्तिक सूझ-बूझ दिखाते हुए मेरी चूत के दरवाज़े से
भिड़ गया। एक बार चूत के कोमल पट्टे लंड के सुपाड़े को अंदर ले लें तो लंड को और क्या चाहिए। अब चूत की शामत है। और इस शामत में
मिली है सम्भोग की मस्ती।
चाचू ने पहले मेरी चूत मुझे अपने ऊपर लिटा कर मारी। जब मैं तीन चार झड़ गयी तो मुझे जादुई चाट पर लिटा कर घंटे भर रौंदा। देर रात
तक चाचू ने मेरी चूत और गांड को रगड़ रगड़ कर चोदा और मेरी सिस्कारियां एक बार शुरू हुईं तो रुकने का नाम ही नहीं लिया। जब तरस खा
कर चाचू ने मेरे शिथिल निस्तेज शरीर को सोने के लिए छोड़ा तो मैं लगभग बेहोशी के आलम में जा चुकी थी
सुबह जब मैं उठी तो कगभग बारह बज रहे थे। चाचू का कोई भी चिन्ह नहीं था शयनघर में। चाचू तैयार हो कर ऑफिस चले गए थे।
जब मैं उठी तो पूरा शरीर टूट रहा था। चाचू ने कस कर रगड़ कर चोदा था अपने घोड़े जैसे महालण्ड से मुझे लगभग सारी रात। शरीर नहीं टूटेगा तो और
क्या होगा।
शरीर में ऐसा लगा कि कईं नयी मांस-पेशियां जिनका मुझे पहले हल्का सा आभास भी नहीं था। मैं टांगें चौड़ा कर चल रही थी। गांड में ज़्यादा जलन हो
रही थी। मैंने रसोई में जा कर चॉकलेट मिल्क-शेक बना शुरू किया ही था की शानू के पैरों की रगड़ की आवाज़ सुन कर मैं पीछे मुड़ी। शानू बड़ी मुश्किल
से टाँगे फैला कर चल पा रही थी।
मुझे न चाहते हुए भी हंसी आ गयी , " लगता है जीजू ने खूब रगड़ रगड़ कर कोडा है तुझे सारी रात। "
" हाँ कुछ भी ना कह नेहा। जीजू ने सारी रात नहीं सोने दिया। सुबह सुबह ही मैं सो पाई। जीजू ने जाने कितने आसनों में चोदा है मुझे। कभी लिटा कर,
कभी घोड़ी बना कर , कभी खड़ा करके दीवार से लगा कर। फिर पट्ट लिटा कर पीछे से चोदा तो मेरी तो जान ही निकल गयी। मुझे उनका गधे जैसा लंड
और भी बड़ा और मोटा लग रहा था। " बेचारी शानू अभी किशोरावस्था का एक साल ही पूरा किया था और दुसरे साल में थी । मुझ से पूरे दो साल से भी
छोटी थी।
" नेहा तू बता। अब्बु ने कैसी चुदाई की तेरी ?" शानू की आँखों में एक नयी चमक थी अपने अब्बु के साथ मेरी चुदाई के ख्याल से।
"अरे शानू रानी, तेरे अब्बु ने मेरी भी हालत ख़राब कर दी। रात भर रगड़ा है मुझे उन्होंने। न जाने कितनी बार मेरे गांड और चूत की कुटाई की चाचू ने। मैं दो
तीन बार तो थक कर बेहोश सी हो। फिर भी चाचू रुकने वाले थोड़े ही थे। चोदते रहे मुझे लगातार बिना थके। " मैंने शानू को अपनी रति-क्रिया की छोटी
सा विवरण दिया।
" नेहा अब्बु का लंड जीजू के लंड के मुकाबले कैसा है ? बड़ा है या नहीं ?" शानू को अपने अब्बु के लंड के बारे में जानने की बड़ी जिज्ञासा थी।
"शानू, चाचू का लंड जीजू के लंड थोड़ा ही सही पर बीस ही होगा उन्नीस नहीं। लेकिन जब मर्दों के लंड घोड़े गधे जितने बड़े हों तो एक आध इंच का
फर्क तो दीखता ही नहीं है। " मैंने शानू को बाँहों में भर कर उसके नींबुओं को मसल दिया।
"हाय रब्बा , क्यों मसल रही है नेहा। जीजू ने इन्हें रात भर वहशियों की मसला नोंचा है। दर्द के मरे मेरी छाती फट पड़ी थी। " शानू ने सिसक कर कहा।
हम दोनों ने दो बड़े गिलास चॉकलेट मिल्क-शेक पी कर थोड़ी से ऊर्जा बड़ाई।
" शानू, चाचू नसीम आपा के लिए बेताब हैं। नसीम आपा कब वापस आ रहीं हैं।" मैंने वापस शानू की चूचियों को मसला शुरू कर दिया।
" दो एक घंटे में आतीं ही होंगी आपा ," शानू अपनी आँखें फैला के फुसफुसाई , " नेहा , आपा को नहीं बता पर रात में जीजू ने मुझसे एक बहुत गन्दी
बात करने को कहा। "
" ऐसा क्या गन्दा काम करने को बोला जीजू ने तुझे ? " मैंने शानू की शमीज़ उतार कर फर्श पर फैंक दी। जैसे मुझे लगा था शानू ने कोई कच्छी नहीं
पहनी थी।
"तू भी तो उतार अपनी शमीज़ ," शानू ने भी मेरा इकलौता वस्त्र उतार फेंका।
"अब बोल न कुतिया मेरी जान निकली जा रही जानने के लिये ," मैंने शानू के सूजे चुचूकों को बेदर्दी से मड़ोड़ दिया।
शानू की चीख निकल गयी , "साली, जान तो तू मेरी निकल रही है। " फिर फुसफुसा कर बच्चों के तरह बोली , " जीजू ने जब मुझे तीन चार बार चोद
लिया था तो मुझे बहुत ज़ोर से मूत लगने लगा था। जीजू बड़े प्यार से मुझे उठा कर बाथरूम में तो ले गए फिर उन्होंने हाय रब्बा कैसे कहूँ ?" लाल हो
गयी। " यदि नसीम आपा को पता चल गया तो वो मुझे जान से मार डालेंगीं।
" अरे कुतिया बता तो पहले। जो नसीम आपा करेंगी वो बाद में सोचना, " मैंने शानू के चूचियों को मुट्ठी में भींच कर मसल दिया।
"नेहा, जीजू मेरा मूत पीने चाहते थे। मैं शर्म से मर गयी। पर जीजू नहीं माने। मैं बहुत गिड़गिड़ायी जीजू से ऐसा नहीं करने को। "
" अरे तो बता तो सही की तूने आखिर में अपना खारा सुनहरी शर्बत जीजू को पिलाया या नहीं? " मुझे शानू के बचपने पर हंसी भी आ रही थी और प्यार
भी।
" आखिर मैं कितना मना करती ? शानू शर्म से लाल हो कर धीरे से बोली।
"अरे पागल , जब जीजू अपनी साली को बहुत प्यार करतें हैं तभी ही तो उससे उसके सुनहरे शर्बत पीने की गुहार लगतें हैं। तू तो बहुत प्यारी भोली बच्ची
है। अब बता तूने कितना पिलाया जीजू को। "मैंने शानू की च्चियों को कास कर मसल रही थी।
" अरे नेहा मैं कौन होती थी नाप-जोख करने वाली। जीजू ने एक बूँद भी नहीं ज़ाया होने दी। सारा का सारा सटक गए," शानू की आवाज़ में अचानक अपने
जीजू के ऊपर थोड़ा सा फख्र का अहसास होने लगा।
" और तूने अपने जीजू का शर्बत पिया या नहीं ? "मैंने एक हाथ को खाली कर शानू की सूजी चूत के ऊपर रख कर उसकी चूत को सहलाना शुरू कर
दिया।
" यदि जीजू चाहते तो मैं मना थोड़े ही करने। पर तब तक जीजू का लंड तनतना कर खूंटे की तरह खड़ा हो गया। जीजू ने ना आव देखा न ताव और मुझे
वहीँ गोद में उठा कर मेरी चूत की कुटाई करने लगे। " शानू अपनी चुदाई के ख्याल से दमक उठी।
" शानू , मैंने भी कल रात चाचू का खारा सुनहरा शर्बत दिल और पेट भर कर पिया। चाचू ने भी मेरा शर्बत आखिरी बूँद तक पी कर मुझे छोड़ा। " मैंने
अपनी तर्जनी को धीरे से शानू की चूत में सरका दिया। शानू सिसक उठी।
" हाय रब्बा। अब्बू और तूने और क्या-क्या किया ?" शानू अपने अब्बू के साथ मेरी चुदाई के किस्से सुनना चाहती थी।
" अच्छा छोड़ पहले चल नहा धो कर तैयार हो जातें हैं, नसीम आपा के आने से पहले।" मैं शानू को हाथ से पकड़ कर अपने कमरे के
स्नानगृह में ले चली।
मैंने और उसने एल दुसरे को खूब सहला सहला कर नहलाया। फौवारे की बौछार के नीचे हम दोनों कमसिन लड़कियां एक दुसरे के शरीर
से खेलते खेलते वासना ग्रस्त हो गयीं।
" शानू, तूने तो मुझे पूरा गरम कर दिया। अब चल मेरी आग बुझा। " मैंने शानू के साबुन के झागों से ढकी चिकनी चूचियों को मसलते
हुए सिसकी मारी।
"नेहा मेरी चूत भी पानी मार रही है। कुछ कर ना ," शानू भी पीछे नहीं रही और मेरे गदराये उरोज़ों को कास कर मसल रही थी।
मैं समझ गयी कि मुझे ही पहल करनी पड़ेगी।
मैंने पानी की बौछार में दोनों के बदन के साबुन को साफ़ करके शानू को धीरे से फर्श पर लिटा दिया। फिर मैंने विपरीत दिशा में मुड़ कर
अपनी धधकती चूत को उसके खुले मुंह के ऊपर टिका दिया। जब तक शानू कुछ कहती मेरा मुंह उसकी चिकनी चूत के ऊपर चिपक
गया।
मेरी जीभ शानू के गुलाबी नन्हे पपोटों के बीच छुपे उसकी कमसिन चूत की गुफा में में दाखिल हो गयी।
शानू सिसक उठी और उसकी ज़ुबान और होंठ भी मेरी चूत के सेवा में लग गए। मैंने शानू की चूत में एक उंगली डाल उसे चोदते हुए
उसके भग-शिश्न [क्लाइटोरिस] को चूसने, चुब्लाने लगी। उसके चूत से बहते काम-रस की मीठी सुगंध मेरे नथुनो में भर गयी। मेरी चूत में
से भी पानी बहने लगा।
मैं शानू की चूत को उसके भगांकुर को चूस रही थी। शानू भी काम नहीं थी। उसने मेरे भाग-शिश्न को दांतों से हलके से दबा कर मेरी
गांड में एक उंगली डाल दी थी। दूसरी उंगली मेरी चूत को खोद रही थी।
स्नानगृह की दीवारें हम दोनों की सिस्कारियों से गूँज उठीं।
अचानक शानू का बदन ज़ोर से अकड़ उठा और वो कस कर सिसकते हुए बोली , " काट मेरे भग्नासे को नेहा। चोद मेरे चूत। मुझे झाड़
दे जल्दी से। "
मैं भी कगार पर थी। मैंने शानू की चूत का तर्जनी मंथन तज़कर दिया और उसके भाग-शिश्न को दांतों से चुभलाते हुए जीभ से झटके देने
लगी।
शानू ने मेरे मलाशय का उंगली-चोदन की रफ़्तार बड़ा दी और मेरी चूत में धंसी उंगली से मेरी चूत की अगली दीवार को कुरेदते हुए मेरे
भग्नासे को कस कर चूसने लगी।
हम दोनों एक हल्की सी चीख मार कर एक साथ झड़ने लगीं। हम दोनों बड़ी देर तक वैसे हीचिपके लेती रहीं।
आखिर में मैं शानू के ऊपर से उठी और उसके पास फर्श पर बैठ गयी। मैंने अपनी उँगलियाँ चाट कर उसके रति-रस का स्वाद चटखारे
लेते हुए कहा, " कैसा लगा मेरी चूत का स्वाद। तेरी चूत का रस तो बहुत मीठा है शानू। "
"तेरी चूत भी बहुत मीठी है। अब तेरी गांड का स्वाद भी चख लूंगीं ," शानू ने मुस्करा कए मेरी गांड में से ताज़ी-ताज़ी निकली उंगली
को कस कर चूस कर साफ़ कर दिया, " ऊम्म्म्म नेहा तेरी गांड का स्वाद भी बहुत अच्छा है। "
शानू की इस हरकत से मैं गनगना उठी।
मैंने फुसफुसा कर कहा , "शानू मुझे भी अपना सुनहरी शर्बत पिला ना री। "
इस बार शानू शरमाई नहीं , " ज़रूर नेहा। तू भी मुझे अपना शर्बत पिलाएगी ना ?"
नेकी और बूझ-बूझ ? मैंने पहल की। शानू अब जीजू को पिलाने के तजुर्बे से सीख गयी थी। उसने अपनी धार को काबू में रख कर मेरा
मुंह कई बार अपने सुनहरी मीठे-खारे शर्बत से भर दिया। मैंने भी चटखारे लेते हुए कितना हो सकता था पी गयी। फिर भी मैं शानू की
मूत्रधार के स्नान से गीली हो गयी।
शानू ने बिना झिझक मेरी झरने की सुनहरी धार को खुले मुंह में ले लिया। कई बार मुंह भरा और शानू ने बेहिचक गटक लिया। मैंने भी
उसे अपने सुनहरे फव्वारे से नहला दिया।
हम दोनों खिलखिला कर हंस दी और फिर एक दुसरे को बाँहों में भींच कर खुले हँसते मुंह से बहुत गीला ,लार से लिसा चुम्बन देना शुरू
किया तो रुके ही नहीं।
आखिर में फिर से नहा कर मैंने थकी-थकी सी शानू को पौंछ कर सुखाया और उसे बाँहों में भर कर बिस्तर पर पलट लिया। हम दोनों
समलैंगिक सम्भोग के अतिरेक से मीठी थकान से उनींदे हो गए। फिर पता नहीं कब वाकई सो गए।
" अरे ये दोनों छिनालें कहाँ छुप गयीं हैं ? मैं पांच मिंटो से घर में हूँ और दोनों का कोई पता नहीं है ?" हम दोनों नसीम आपा की सुरीली
आवाज़ से जग गए। हम दोनों जब तक संभल या समझ पातीं की दोनों पूरे नगें है तब तक नसीम आपा का नैसर्गिक सौंदर्य हमारी आँखों को
उज्जवल कर रहा था।
" आपा आप कब आयीं ? "शानू से शर्मा कर सपने ऊपर चादर खींचने की कोशिश की।
"अरे ढकने की क्या ज़रुरत है अब। दोनों ने पूरा तमाशा तो पहले ही दिखा दिया है। अब ढकने को रह ही क्या गया है ? "नसीम आपा ने लपक
कर बिस्तर पे चढ़ गयी और हम दोनों की बीच लेट गयीं।
"मेरी प्यारी छोटी बहन तुझे कितने दिनों बाद देखा है ," नसीम आपा ने मुझे बाँहों में भर कर मेरे खुले मुस्कराते मुंह को ज़ोर से चूम कर कहा।
मैं भी नसीम आपा की बाँहों में इत्मीनान से शिथिल हो गयी, " देख तो तेरी चूचियाँ कितनी मोटी और बड़ी हो गयीं है री। किस से मसलवाते हुए
चुदवा रही है तू ?" नसीम आपा ने मेरी दोनों चूचियों को अपने हांथों में भरते हुए पूछा।
"आपा आपकी चट्टानों जैसी चूचियों से तो बहुत पीछे हैं मेरी दोनों। जीजू ने खूब मसल मसल कर कितना बड़ा और उन्नत कर दिया है दोनों को
"मैंने भी नसीम आपा की दोनों महा-चूचियों को सहलाते हुए कहा।
नसीम आपा मुझे तीन साल बड़ी थीं। उनकों उन्नीसवां लगने वाला था एक महीने में। उनका गदराया बदन पहले से ही पूरा भरा-भरा था पर शादी
के छह महीनो में तो और भी गदरा गया था। उनके उन्नत उरोज़ कुर्ते से फट कर बहार आने के लिए मचल रहे थे।
"नसीम आपा अब आपकी बारी है जीजू के हाथों के कमाल को दिखने की ," मैंने पलट कर आपा को अपनी बाँहों में भर लिया ,"चल शानू देख
क्या रही है। चल आपा को नंगा कर। "
नसीम आपा ने थोड़ा बहुत मुकाबिला किया पर उनका मन भी अपनी छोटी बहनों को नंगा देख कर मचल उठा था, " देखो, चुड़ैलों, खुद नगें हो
कर लिपट कर बिस्तर में लोट पोट करती हो और ऊपर से अपनी आपा को भी खींचने की कोश्सिश कर रही हो अपने नंगेपन में। ?
पर जल्दी ही उनका कुरता फर्श था। उनकी से उनके विशाल उरोज़ मुश्किल से संभल पा रहे थे। शानू ने उनकी ब्रा उतार फेंकी और मैंने उनकी
सलवार का नाड़ा खोल कर उसे उतार कर अलग कर दिया।
जब तक नसीम आपा नाटकीय विरोध करतीं मैंने उनकी सफ़ेद कच्छी भी खींच कर उन्हें सम्पूर्ण नग्न कर दिया।
नसीम आपा का यौवन भगवान ने समय लगा कर खूब मन लगा कर बहाया होगा।
पांच फुट पांच इंच लम्बी , पूरे भरे कमनीय सुडौल शरीर की मलिका , देवी सामान सुन्दर गोरा चेहरा, घुंघराले लम्बे काले बाल -यदि नैसर्गिक
सौंदर्य का कोई नाम देना होता तो मैं उसे " नसीम आपा ' का ख़िताब दे देती।
नसीम आपा के उरोज़ों को उठान उनकी गोल भरे-बाहरी थोड़े से उभरे उदर के नीचे घने घुंघराले झांटों से भरी ढंकी उनकी योनि और फिर केले के
तने जैसे गोल मटोल जांघें। क़यामत ढाने वाला सौंदर्य था नसीम आपा का।
नसीम आपा ने मौका देख कर मुझे और शानू एक एक बाज़ू में दबा कर चिट बिस्तर पर लेट गयीं।
"अच्छा अब बता किस लंड से चुदवा कर तू इतनी गदरा गयी है मेरी नेहा ," नसीम आपा ने मेरी नाक की नोक को चूमते हुए कहा।
" आपा नेहा की कुंवारी चूत बड़े मामा ने चोदी है। उसके बाद सुरेश चाचू ने भी इसकी खूब चुदाई की है। " शानू ने जल्दी से मेरे चुदाई-अभियान
की शुरुआत का ब्यौरा कर दिया।
"शानू आपा को पहले ये बता कि तेरी कुंवारी चूत को कल किसने चोदा है ?" मैंने झट से नसीम आपा का ध्यान बेचारी शानू की तरफ कर दिया।
" क्या वाकई नेहा ? शानू तूने आखिर में अक्ल का इस्तेमाल कर ही लिया। सच बता तूने अपने जीजू को अपनी चूत वाकई सौंप दी या नहीं ?"
नसीम आपा ने चहकते हुए ज़ोर से पूछा।
"हाँ आपा , कल नेहा ने जीजू को मेरे लिए मना लिया ," शानू ने शरमाते हुए कहा।
" अरे फिर शर्मा क्यों रही है। आखिर तेरे जीजू ने कितना इंतज़ार किया है तेरे लिए। चल बता खूब चोदा क्या नहीं आदिल ने ?" नसीम आपा ने
शानू के दोनों नीम्बुओं को मसलते हुए चिढ़ाया।
"हाय आपा , आदिल भैया ने.... नहीं नहीं मेरा मतलब जीजू ने ना जाने कितनी बार मुझे पहले दिन चोदा। बहुत बेदर्दी से चोदते हैं जीजू ,"
शानू का सुंदर दमकते हुए चेहरे की मुस्कान कुछ और ही कह रही थी।
" अरे आदिल ने दूसरी साली को क्यों छोड़ दिया ? " नसीम आपा ने मेरी और देखते हुए पूछा।
"छोड़ा कहाँ आपा। पहले पहल तो मेरी चूत की ही कुटाई हुई। चूत की ही नहीं मेरी गांड का भी भरकस बना दिया जीजू ने, " मैंने नसीम आपा
के भरी मुलायम उरोज़ों को सहलाते हुए बताया।
" हाय नेहा तूने गांड भी मरवा ली अपने जीजू से !" नसीम आपा ने मेरी बायीं चूची ज़ोर से मसलते हुए मुझे चूम लिया।
"हाँ आपा , आपकी इस नालायक छोटी बहन ने ये ही शर्त रखी थी। कि यदि मैं जीजू से गांड मरवा लूंगी तो ये महारानी अपने जीजू को अपनी
चूत मारने देगी ," अब हाथ फैला कर नसीम आपा के केले के तने जैसे चिकनी गदराई रान को सहलाते हुए कहा।
" तो रात में तुम दोनों की खूब कुटाई की मेरे आदिल ने?" नसीम आपा ने हल्की सी सिसकारी मारी। मेरे हाथ अब उनके प्रचुर यथेष्ठ नितिम्बों पर
थे।
" नहीं जीजू को मुझे अकेले ही सम्भालना पड़ा। तभी तो मेरी हालत बिलकुल इतनी ढेली कर दी जीजू ने ," शानू ने जल्दी से सफाई दी।
" तो तू फिर कहाँ थी ?" नसीम आपा ने स्वतः ही असली मुद्दा उठा दिया।
" आपा कल मेरी कुटाई चाचू कर रहे थे ," मैंने बम फोड़ दिया।
इस बात के धमाके से नसीम आपा की बोलती कुछ देर तक बंद हो गयी।
कुछ देर बाद ही नसीम आपा बोल पाईं , "हाय रब्बा, नेहा तूने वाकई अब्बू के साथ चुदाई की कल रात ?"
"नसीम आपा क्या बताऊँ चाचू बेचारे इतने महीनों से भूखे थे की उन्होंने मेरी चूत और गांड की तौबा बुला दी अपने घोड़े जैसे लंड से ठोक
ठोक कर। " मैंने नसीम आपा की भारी हो चलीं साँसों को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा।
" नेहा मुझे कितना रश्क हो रहा है इस वक्त। मैं थोड़ी सी भी बहादुर होती तेरी तरह तो कब की अब्बू के कमरे में जा चुकी होती। काश मैं
अपने प्यारे अब्बू के अकेलेपन को अपनी जवानी से दूर कर पाने की हिम्मत जुटा पाती। इस बेटी की जवानी का क्या फायदा जब जिस
अब्बू ने इसे जनम दिया उसी अब्बू के काम ना आये तो ? " नसीम आपा बहुत भावुक हो गयीं।
" नसीम आपा ज़रा मेरी बात सुने पहले। मैंने कल चाचू के साथ बहुत खुल कर बात की और........ " और फिर मैंने नसीम आपा को
पूरा किस्सा सुना दिया।
नसीम आपा खिलखिला उठीं , "हाय अल्लाह की नेमत है तू नेहा। वाकई अब्बू की मेरे लिए चाहत इतने सालों से दबी हुई थी। मैं जैसे
तूने मंसूबा बनाया है वैसे ही चलूंगी। "
अचानक हम तीनों एक दुसरे से लिपट कर रोने लगे। लड़कियों की इस क़ाबलियत का कोई मुकाबिला नहीं कर सकता। जब दुखी हों तो
रों पड़ें और जब बहुत खुश हो तो भी रों पड़ें।
जब हम तीनो का दिल कुछ हल्का हुआ तो हम तीनों पागलों की तरह खिलखिला कर हंस पड़ीं। और बड़ी देर तक हंसती रहीं।
काफी देर बाद नसीन आपा ने कहा ,"नेहा तू मुझे सारी रात का ब्यौरा बिना एक लफ्ज़ काम किये दे दे। मुझे खुल कर बता कि कैसे
कैसे अब्बू ने तुझे चोदा और क्या क्या कहा। उन्हें क्या ज़्यादा अच्छा लगता है और कैसे तुखसे उन्होंने करवाया। कुछ भी नहीं छुपाना।
पूरा खुलासा दे दे नेहा। मेरा सब्र अब टूटने वाला है। "
मुझे नसीम आपा के अपने अब्बू के लिए इतना प्यार देख कर रहा नहीं गया। मैंने चाचू और अपने बीच हुए घनघोर लम्बी चुदाई का पूरा
खुलासा देना शुरू कर दिया।
नसीम आपा पीठ पर लेते दोनों हाथों और टांगों को फैलाये गहरी गहरी साँसे ले रहीं थीं। समलैंगिक प्यार की उत्तेजना किसी
और सम्भोग की उत्तेजना का मुकाबिला कर सकती है। मैंने एक बार फिर से नसीन आपा के गदराये लुभावने शरीर के रस का
नेत्रपान किया। साढ़े पांच फुट का कद। सत्तर किलो का गुदाज़ बदन। चौड़े गोल कंधे। गोल सुडौल बाहें। केले के तने जैसी
गोरी गोल भरी-भरी जांघें। भरी-भरी पिंडलीं। सुडोल टखने। नसीम आपा के वज़न का हर किलो हुस्न में इज़ाफ़ा कर रहा था।
तब मैंने पहली बार गौर किया कि उनकी फ़ैली बाँहों की बगलें रेशमी बालों से ढकीं थीं। शानू और मैं आपा के दोनों तरफ
उनकी बाँहों में मुंह छुपा कर लेट गयीं।
" आपा अपने अपनी बगलों में रेशमी जंगल कब से उगने दिया ?" मैंने उनकी फड़कते उरोज को सहलाते हुए पूछा।
आपा हंस दीं , मंदिर की घंटियों जैसी मधुर संगीत भरी हंसी , " नेहा मैंने गलती से शब्बो बुआ से शर्त लगा ली। तुझे तो
पता है हमारी बुआ की बगलों में उनके घुंघराले रोमों से भरी हैं। उन्होंने मुझे उकसा दिया। और मैंने बुद्धुओं के जैसे गलत
शर्त लगा ली कि मैं भी अपनी बगलों में उनके घने बगलों जैसे रोएं ऊगा सकती हूँ। पर अब मुझे पता लग रहा है कि पहले तो
मेरे रोएं सीधे है जब कि बुआ के सूंदर घुंघराले हैं। और मेरी बगले बड़ी मुश्किल से भर रहीं हैं। लगता है मैं बुरी तरह हारने
वालीं हूँ। "
" आदिल भैया यानि जीजू को मेरी बड़ी बहन की भरी बगलें कैसे लगीं ?" मैंने अपना मुंह आपा की बगल में दबा दिया।
हमारे लम्बे समलैंगिक सम्भोग और प्यार की गर्मी और मेहनत से हम तीनो के बदन पसीनों की बूंदों से चमक रहे थे। मेरे
नथुनों में आपा की मोहक सुगंध समां गयी।
" अरे नेहा बुआ मुझे पक्का वायदा दिया था कि आदिल तो होश गवां देंगें मेरी बगलों को देख कर। और वही हुआ।
आदिल मुझे चोदते हुए मेरी बगलों को बिना थके चूस चूस कर गिला कर देतें हैं। " नसीम आपा ने मेरे चुचूक को मसलते हुए
बताया।
शानू ने भी अपनी बड़ी बहन के दुसरे उरोज को मसलते हुए रोती से आवाज़ में कहा , " मेरी बगलों में रेशा भी नहीं है। "
" मेरी रांड कमसिन नन्ही बहन तेरी तो अभी झाँटें उगना भी नहीं शुरू हुईं है। इन्तिज़ार कर। जब तेरे जीजू तेरी झांटों को
देखेंगें तो पागल हो जाएंगें। तेरी चूत को चोद - चोद कर फाड़ देंगें। "
शानू ने नसीम आपा के बगलों के रेशों को चूसते हुए बड़ी बहन का ताना बेशर्मी से हँसते हुए सहा ," आपा मेरी चूत फाड़ने
का तो अब पूरा हक़ है जीजू को। "
मेरे हाथ बहकते हुए आपा के घनी घुंघराली झांटों से ढकी कोमल चूत की फांकों को सहला रहे थे। नसीम आपा सिसक उठी
, " आह नेहा धीरे ," मैंने उनके उन्नत भाग-शिश्न को मसल दिया था।
शानू ने मेरा साथ देते हुए आपा के उरोज के ऊपर आक्रमण बोल दिया। शानू ने अपनी बड़ी बहन के चुचूक को कस कर
चूसना शुरू कर दिया। और शानू अपने नन्हें दोनों हाथों से उनके भरी विशाल स्तन को कस कर मसले भी लगी।
आपा सिसक उठीं , " हाय तुम दोनों छिनालों को सब्र नहीं है क्या? अभी कुछ लम्हों पहले ही तो मुझे घंटे भर रगड़ा है तुम
दोनों ने। "
आपा ने शिकायत तो की पर उन्होंने एक हाथ से अपनी छोटी बहन का मुंह अपने फड़कते उरोज के ऊपर और दुसरे से मेरे
हाथ को अपने चूत के ऊपर दबा दिया।
मैंने अपनी दो उँगलियाँ आपा की गुलाबी चूत के सुरंग में घुसाते हुए अपने अंगूठे से उनके मोठे सूजे भग-शिश्न [ क्लिटोरिस
] को लगी।
आपा की सिसकारी कमरे में गूँज उठी।
नसीम आपा के होंठ खुल गए। उनके अध-खुले लम्बी-लम्बी भरी साँसें उबलने लगीं। मेरी उत्सुक उँगलियों ने नसीम आपा
नसीम आपा की रेशमी चिकनी योनि की सुरंग के आगे की दीवार पे छोटा खुरदुरा स्थल ढूंढ लिया और उसे तेज़ी से सहलाने
लगीं। नसीम आपा के बड़े गुदाज़ चूतड़ बिस्तर से उठ कर चहक गए।
" हाँ हाय रब्बा ऐसे ही.... नेहा ,,...... उन्न्नन्नन हाँ ज़ोर से ....... उन्न्नन्नन्न ," नसीम आपा सिसकारियों ने हम दोनों को
और भी उत्साहित कर दिया।
थोड़ी देर में ही नसीम आपा की हल्की से चीख निकल गयी और उनका गुदाज़ बदन ऐंठ गया। नसीम आपा भरभरा कर झड़
रहीं थीं।
मुझे अचानक बहुत ही उत्तेजक विचार आया।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
Update 34
मैंने नसीम आपा को उनकी बायीं तरफ पलट दिया। शानू को मैंने नसीम आपा के अगले भाग को सौंप पिछवाड़ा खुद सम्भाल लिया।
जब तक नसीम आपा अपने लम्बे चरम - आनंद के आक्रमण से सभलतीं शानू का मुंह उनकी चूत के ऊपर था। मैंने उनके भारी चूतड़ों को फैला दिया। उनके
नितम्ब किसी मर्द की भी लार टपकाने में सक्षम थे।
शानू ने अपनी बड़ी बहन के सूजे भग-शिश्न को कस कर चूसते हुए तीन उँगलियाँ उनकी योनि की सुरंग में घुसा कर उनकी चूत का ऊँगली-चोदन दिया। मैंने
आपा के चौड़े भारी मुलायम नितिम्बों और उनकी गुलाबी संकरी गुदा के सिकुड़े छेद को अपनी आँखों से सहलाया और मेरा सब्र टूट गया। मैंने नसीम आपा
के चूतड़ों को चूमते हुए कई बार अपने दांतों से काटा।
" अरे चुड़ैल क्या मुझे जाएगी ? हआांंंंन ......... नेहा आआआ। .... और ज़ोर से काट चुड़ैल हाय। ... शानू तू भी मेरी चूत कट खायेगी क्या ?
उन्न्नन्नन्नन ......... रब्बा मेरा जिस्म जल रहा है ........ और ज़ोर से आआआआआण्ण्ण्ण्ण्ण्ण ," नसीम आपा वासना की उत्तेजना से कराहीं।
मैंने अपने जीभ से उनकी गुदा-द्वार को कुरेदना शुरू कर दिया। उनकी आनंद भरी कराहटें कमरे में गूंजने लगीं। शानू और मैं उनकी चूत और गांड और भी ज़ोरों
से चूसने , चाटने और चोदने लगे।
मेरी जीभ आखिर कार नसीम आपा के तंग सिकुड़ी गांड के ऊपर हावी हो गयी। मेरी जीभ की नोक उनकी ढीली होती गुदा के छेद के अंदर दाखिल हो गयी।
नसीम आपा की गांड के सुगन्धित गांड को मैं अपनी जीभ से चोदते हुए उनके गदराए चूतड़ों को मसलने लगी।
शानू के तीन उँगलियाँ अब तेज़ी से नसीम आपा की चूत चोद रहीं थी। उसने अपनी बड़ी बहन के सूजे मोठे लम्बे भग-शिश्न को एक क्षण के लिए भी अपने मुंह
से नहीं निकलने दिया। शानू नसीम आपा की चूत के दाने को लगातार ज़ोर से चूस रही थी।
नसीम आपा सिस्कारते हुए कई बार झड़ चुकीं थीं।
अचानक उनका बदन फिर से धनुष की तरह तन गया, " हआआआ …….. उन्न्नन्नन्नन ………..हम्म्म्म्म्म्म ……. मर गयी रब्बा मेरे ………उन्न्नन्नन। "
हमें लगा कि नसीम आपा के अगले चरम - आनंद बहुत ही तीव्र और ज़ोरदार होगा और वो ज़रूर थक जाएंगी।
मैंने उनकी थूक से सनी गांड में एक और फिर उँगलियाँ जोड़ तक बेदर्दी से ठूंस दीं। शानू और मैं नसीम आपा की चूत और गांड बेदर्दी से और तेज़ी से अपनी
उँगलियों से चोद रहे थे।
नसीम आपा ने एक घुटी - घुटी चीख मारी। उनका बदन तन गया और उनकी सिसकारियाँ बिलकुल बंद हो गयीं। कुछ देर बाद के मुंह से एक लम्बी सीकरी
निकली और उनका बदन बिलकुल शिथिल हो कर बिस्तर पर पस्त हो गया।
शानू और मैंने एक दुसरे को ख़ामोशी से शानदार चुदाई के लिए बधाई दी।
हम दोनों ने नसीम आपा के थके निश्चेत बदन को बाँहों में भर कर उनके दोनों ओर लेट गए।
शानू ने मेरी नसीम आपा की गांड से ताज़ी-ताज़ी निकली रास से लिसी उँगलियाँ अपने मुंह में भर ली। बदले में मुझे उसकी नसीम आप के चूत - रस से लिसी
उँगलियों का स्वाद मिल गया।
नसीम आपा काफी देर बाद होश में आयीं और फिर उनके आनंद भरी थकी मुस्कराहट से दमके चेहरे को देख कर हम दोनों ने उन्हें चूम-चूम कर गीला कर
दिया।
" नेहा अब आज रात के बारे में भी सोचो ? " शानू दादी-अम्मा की तरह बोली।
" आज रात के बारे में क्या सोचना है शानू ? " मैंने शानू को कुरेदा , " आज रात नसीम आपा की चूत और गांड की तौबा बोलने वाली है चाचू के लण्ड से। "
" अरे उसके लिए तो आपा वैसे ही बेचैन हैं सालों से अब्बू के लण्ड खाने के लिए। मैं तो पूछ रही थी कि आपा क्या पहनेंगीं ?" शानू ने अपना सवाल साफ़
किया।
" अरे वो तो मैंने पहले ही सोच रखा है। अकबर चाचू ने मुझे बताया था और सुशी बुआ ने भी कहा था। चाचू की पसंदीदा पोषल लहंगा और चोली है। नसीम
आपा बहुत खूबसूरत लगेंगी रज्जो चाची की चोली लहंगे में। " मैंने खुलासा दिया।
"लगता है तुम दोनों ने मेरे लये कुछ भी नहीं छोड़ा ," नसीम आपा ने प्यार से हम दोनों को चूमा।
" अरे आपा सबसे ज़िम्मेदारी का काम तो आपके लिए ही छोड़ा है। ज़ोर से चाचू से चुदने का काम," मैंने खिलखिलाते हुए कहा।
शानू और नसीम आपा भी खिलखिला कर हंस दीं। नसीम आपा की आँखों में प्यार और वासना का मिलाजुला खुमार छा गया।
हम तीनों नहाने चल दीं। स्नानघर में भी हम तीनों की चुहल बजी बंद नहीं हुई। नसीम आपा को ज़ोर से पेशाब आया था। शानू और मैंने हंस कर
कहा " अरे आपा कमोड पर बैठने की क्या ज़रुरत है यहीं शावर में कर लीजिए। "
नसीम आपा ने अपनी नन्ही छोटी बहिन से पूछा , " यह तो बता मुझे कि तूने अपने जीजू का सुनहरा शरबत का स्वाद लिया या नहीं ?"
" आपा अवाद ही नहीं लिया बल्कि पिया है मैंने। आपको तो जीजू रोज़ शर्बत पिलतए होंगे? ," शानू की बात सुन कर नसीम आपा की आँखें चमक
उठी।
" तेरे जीजू का शर्बत तो दिल चाहे मिल जाता है। मुझे तो नेहा से रश्क हो रहा है कि उसने हंस सबसे पहले अब्बू का का सुनहरी शर्बत गटक लिया
," नसीम आपा ने मेरे साबुन के झांगों ढके चूचियों को मसलते हुए ताना मारा।
" अब आपको मौका है जितना मन उतना पी लेना आज रात ," मैंने नसीम आपा के चूचुकों को मसलते हुआ जवाब दिया।
" आपा नेहा और मैंने भी एक दुसरे का सुनहरी शर्बत खूब पेट और दिल भर पिया था कल ," शानू ने अपनी बड़ी बहन के गुदाज़ गोल उभरे पेट को
सहलाते हुए कहा।
" किसी को अपनी आपा का शर्बत पीना है या उसे बर्बाद कर दूँ फर्श पर मूत के ? " नसीम आपा ने भारी सी आवाज़ में पूछा।
" नेकी और पूछ पूछ। चल शानू अब आपा का शर्बत घोटने का मौका है ," मैं और शानू नीचे बैठ गए।
नसीम आपा के हाथों ने अपनी घुंघराले झाटों से ढके योनि की फाकों को चौड़ा कर अपनी गुलाबी चूत को खोल दिया। जल्दी ही सरसराती सुनहरी
शर्बत की धार हम दोनों के चेहरों के ऊपर बरसात करने लगी। शानू और मैंने दिल लगा कर नसीम आपा के खारे / मीठे शर्बत से नहाने के अलावा
कई बार मुंह भर कर उनके सुनहरे शर्बत को गटक लिया।
जब नसीम आपा की बुँदे भी निकालना बंद हो गयीं तभी हम दोनों रुके।
अब नसीम आपा की बारी थी अपनी छोटी बहनों के शरबत का स्वाद लेने की। थोड़ी देर में शानू और मेरी झरने की आवाज़ निकालती दो धारें
नसीम आपा को नहलाने लगीं। नसीम आपा नादीदेपन से कई बार अपना मुंह भर हमारा शर्बत गतक लिया।
फिर हम तीनों खिलखिला कर संतुष्टि भरी हंसी से स्नानघर गूंजते हुए नहाने का कार्यक्रम लगीं।
नसीम आपा ने मेरे उरोजों को साबुन से झागों से सहलाते हुए पूछा , " नेहा , यह तो बता कि अब्बू से गांड मरवाते हुए यदि मैं उनका लण्ड गन्दा कर
दूँ तो उन्हें बहुत बुरा लगेगा ?"
शानू लपक कर बोली , " आपा आप अब्बू से एक ही रात में गांड भी चुदवा लगी ?"
"छोटी रंडी मैंने इसी दिन के लिए तो अपनी गांड कुंवारी बचा रक्खी है। वर्ना तो तेरे जीजू मेरे गांड फाड़ने में एक लम्हा देर नहीं लगाते। " नसीम आपा
ने शानू को चुप कर दिया , " तो बता ना नेहा अब्बू का लण्ड गंदा होने से बचने के करूँ ?"
मैंने अपनी छोटी सी ज़िंदगी में भयंकर चुदाइयों को याद करके कहा, " नसीम आपा भरोसा रखिये चाचू के ऊपर अपना आपकी गांड से निकला लिसा
लिप्त गन्दा लण्ड आपसे चुसवाने के ख्याल से ही आपको चोदने का नशा तारी हो जायेगा। नम्रता चाची कह रहीं थीं कि मर्दों को हलवे से भरी गांड
मारने से गांड-चुदाई का मज़ा दुगना-तिगना हो जाता है। जीजू ने मेरी भरी गांड कितने चाव से मारी थी कल। नहीं शानू ?"
"हाँ आपा जीजू का लण्ड जब नेहा की गांड के रस से लिस गया तो उनके धक्कों में और भी ज़ोर आ गया था," शानू ने मेरा समर्थन किया और फिर
शरमाते हुए बोली , " जीजू ने अपना नेहा की गांड से निकला लिस फूटा लण्ड मेरे मुंह में ठूंस दिया था। मैंने तो लपक कर उनके लण्ड को चूस चाट
कर साफ़ कर दिया। "
शानू ने फख्र से आपा को मेरी गांड-चुदाई के रस का स्वाद का खुला ब्यौरा दिया।
" ठीक है तुम दोनों के ऊपर भरोसा कर रहीं हूँ मैं। लेकिन ख्याल रखना यदि अब्बू को मेरी गांड से निकले लण्ड को देख कर उनका दिल खट्टा हो
गया तो मैं तुम दोनों की गांड में अपना कोहनी तक हाथ ठूंस कर तुम दोनों की गांड फाड़ दूंगीं ," नसीम आपा ने धमकी दी।
" उस की नौबत नहीं आएगी आपा। पर यदि मौका मिले तो अपनी गांड में अब्बू का मक्खन बचा कर ले आईयेगा। शानू बेचारी को उस प्रसाद का
स्वाद तो मिल जायेगा। मेरी अंजू भाभी ने मुझे एक सुबह नरेश भैया से गांड चुदवाने के बाद अपनी गांड का रस मुझे पिलाया था। सच में आपा
उनकी गांड के रस में नरेश भैया की मलाई का मिश्रण बहुत ही मीठा था। शानू की तो लाटरी निकल जाएगी। " मैंने नसीम आपा के दिल में यदि
कोई शक बचा हुआ था तो मेरी अंजू भाभी के किस्से से ज़रूर दूर हो गया होगा।
हम तीनों तैयार हो कर फिल्म देखने और बहार लंच करने के लिए निकल पड़े। शानू और मैं नसीम आपा को मशगूल रखना छह रहे थे। जिस से
उनका ध्यान अब्बू के साथ पहली रात बिताने के ख्याल से उपजे डर से दूर ही रहे। हम तीनों वाकई तीसरे दर्ज़ की मसाला फिल्म देख और फिर
पसंदीदा रेस्तौरांत में खाने खाते सब कुछ भूल गए या हमारे दिमाग ने उन ख्यालों को जागरूक दिमाग के पीछे धकेल दिया। जो भी हो नसीम आपा ने
हमारे साथ मिल कर फिल्म के हर सस्ते दृश्य के ऊपर सीटी मार कर ज़ोर ज़ोर के कटाक्ष मारे।
हँसते हँसते हम तीनों के पेट में दर्द हो गया
शाम होते ही हमने तैयार होना शुरू कर दिया। मैंने और शानू ने रज्जो चाची के सावधानी से बचा कर संजोये कपड़ों में से हल्की सरसों
के रंग की बसंती चोली और हलके नीले लहंगे को चुना। नसीम आपा के बहुत ना ना करते हुए उनको जबरन मना लिया। चोली के नीचे
कोई भी ब्रा या शमीज नहीं थी। ना ही लहंगे के नीचे कोइ कच्छी पहनने दी हमने नसीम आपा को। नसीम आपा के बड़े-बड़े भारी उरोज
चोली को फाड़ते से लग रहे थे। उनकी हर सांस और हर क्रिया से उनके विशाल उरोज मादक मनमोहक अंदाज़ से हिल पड़ते। शानू और
मैं नसीम आपा के अप्सरा जैसे रूप को देख कर खुद भी उत्तेजित हो गए। नसीम आपा के बदन से चन्दन से साबुन मोहक सुगंध आ रही
थी। अब्बू और जीजू के ऊपर हमें तरस आने लगा। अब्बू जब अपनी बड़ी बेटी का रूप उसकी अम्मी के वस्त्रों में देखेंगे तो उनकी हर
झिझक और हिचक एक लम्हे में मिट जाएंगीं।
शानू को मैंने उसकी बचपने की फूलों वाली फ्रॉक पहनायी बिना कच्छी के। उसकी फ्रॉक जरा सी भी ऊँची उठेगी तो उसके गोल गोल
चूतड़ों हो जायेंगे। और जब वो थोड़ी सी भी टाँगे चौड़ा कर बैठेगी तो उसकी गोल गोल जांघों के बीच छुपे गुलाबी ख़ज़ाने की गुफा की
कमसिन द्वार के दरवाज़ों का दर्शन जो भी उसकी तरफ देख रहा होगा उसे बहुत आसानी से हो जायेगा।
मैंने भी नसीम आपा की पुरानी कॉलेज की हलके आसमानी रंग की फ्रॉक पहन ली। मैंने भी कोइ कच्छी पहनने की कोशिश नहीं की।
आदिल भैया अकबर चाचू से आधा घंटे पहले ही आ गए। उनकी आँखे नसीम आपा के नैसर्गिक सौंदर्य को देख कर खुली की खुली रह
गयीं।
" जीजू, आज रात तो नसीम आपा अब्बू की दुल्हन हैं। आपको आज रात तो अपनी सलियों से ही संतुष्टि करनी होगी ," मैंने मटक
कर आदिल भैया को झंझोड़ा।
" हाँ जीजू नेहा सही कह रही है ," शानू ने भी मेरी ताल में ताल मिला दी।
" अरे हम सिर्फ अपनी जोरू के हुस्न से अपनी आँखें ही तो सेक रहे थे। हमें अपनी दोनों सालियों को एक साथ रोंदने का मौका मिले तो
भला हम क्यों सवाल-जवाब करेंगें ," आदिल भैया वाकई राजनैतिक चातुर्य से भरे थे।
आदिल भैया ने अपनी बात को साबित करते हुए शानू को दबोच लिया अपने शक्तिशाली भजन में। उनके फावड़े जैसे विशाल हाथों ने
बेचारी कमसिन शानू के उगते उरोजों को कास क्र मसलते हुए उसके सिसकारी मारते अधखुले मुंह के ऊपर अपने होंठों को दबा दिया।
" अरे जीजू जरा शानू की फ्रॉक के नीचे की तो जांच-पड़ताल कर लीजिए। पता नहीं इस पुरानी फ्रॉक के अंदर कोइ चींटी या कीड़ा ना
छुपा हो ?" मैंने आदिल भैया को बढ़ावा दिया।
आदिल भैया ने तुरंत एक हाथ खली कर शानू के झांगों के बीच में फांस दिया। शानू चिहुंक कर अपने पंजों पर उचक गयी। उसके
खुले पर जीजू के मुंह में दबे, मुंह से एक लम्बी सिसकारी उबल गयी। जीजू की उँगलियों ने ज़रूर शानू के किशोर ख़ज़ाने की
पंखुड़ियों के बीच में छुपी सुरंग के दरवाज़े को ढूँढ लिया था।
शानू ज़ोर से बुदबुदाई , " जीजू इतनी ज़ोर से क्यों दबा रहे हैं। " आदिल भैया का दूसरा हाथ बेदर्दी से शानू के कच्चे उरोज को मसल
रहा था।
" अरे रांड कहीं की। किसी बाहर वाले से दबवा रही होती अपनी चूचियाँ तो कुछ नहीं बोलती। पर अपने जीजू से कितनी शिकायत
कर रही है ?" नसीम आपा ने भी जीजू-साली के मज़े में टांग अड़ा दी, " देख नेहा आज रात इस साली के चुदाई खूब हचक कर
करवाना इसके जीजा से। चाहो तो इसकी गांड भी खलवा देना आज रात। "
सिसकारी मारती हुई शानू से चुप ना रहा गया , "नहीं आपा गांड तो मैं अब्बू के लिए बचा कर रखूंगीं। जीजू ने मेरी कुंवारी चूत तो
खोल दी है। जीजू को मैंने नेहा की गांड तो पहले से ही सौंप रखी है। "
यह सुन कर नसीम आपा को आने वाली रात के ख्याल से दिमाग गरम हो गया। उनके पहले से ही लाज की लालिमा से सजे सुंदर चेहरा
और भी लाल हो गया।
शुक्र है कि तभी अकबर चाचू हाल में दाखिल हो गए।
जीजू ने शानू की चूत को एक बार ज़ोर से कुरेदा और उसकी चूची को बेदर्दी से मसला और फिर अपने ससुर मामू का लिहाज़ दिखते
हुए अपनी मर्दानी गिरफ्त से आज़ाद कर दिया।
अकबर चाचू जीजा-साली के उन्मुक्त कामुक प्रदर्शनी के ऊपर मुस्कराए। फिर उनकी निगाहें अपनी बड़ी बेटी के हुस्न से उलझ गयीं।
चाचू भी युरन्त आने वाली रात के ख्याल से थोड़े हिचकते हुए लगने लगे।
चालाक शानू ने तुरंत पैंतरा फेंका , " अब्बू देखिये ना जीजू कितने बेदर्द हैं? कितनी बेदर्दी से पेश आते हैं मेरी तरफ? और आपा भी
उनको बढ़ावा देती हैं। "
चाचू ने अपनी छोटे नन्ही बेटी को गॉड में उठा लिया छोटे बच्चे की तरह और शानू की दोनों बाहें अपने अब्बू के गले का हार बन गयीं।
" शानू बीटा जीजा -साली के बीच में मैं नहीं आने वाला। वैसे भी बड़ी बहन को तुम्हारे जीजू का पूरा ख्याल रखने की ज़िम्मेदारी भी तो
संभालनी है। याद है कल रात की कहानी। तुम्हारी अम्मी ने भी तो तुम्हारी शन्नो मौसी को जीजू के लिए तैयार किया था। " अकबर
चाचू की बात सुन कर शानू जो से मुस्करायी।
"आप सही कह रह हैं अब्बू, " और फिर ज़ोर से उसने अब्बू के होंठों के ऊपर अपने कमल की पंखुड़ियों जैसे गुलाबी होंठ रख दिए।
मैं शानू के ऊपर फ़िदा हो गयी। एक ही बाण से उसने एक नहीं तीन-तीन चिड़िया गिरा दीं।
नसीम आपा ने तुरंत उत्सुक हो कर पूछा , " अब्बू यह शन्नो मौसी की कौनसी कहानी है ?"
" अब्बू इस बार मैं सुनाऊंगी यह कहानी। पर पहले आप कपडे बदल कर ताज़े हो जाइये ," कौन सा बाप उस ख़ूबसूरत मुश्किल से
किशोरावस्था के पहले साल को फांदती बेटी को नज़रअंदाज़ कर सकता है।
" बिलकुल ठीक अब्बू , आप तरोताज़ा हो जाइए फिर इस शैतान से वो कहानी सुनते है। पर आप इसकी कहानी पर नज़र रखिएगा।
हमारी नन्ही शानू की मनघरन्त बातें बनाने की क़ाबलियत से आप पूरे वाकिफ हैं ," नसीम आपा ने किसी बीवी की तरक अब्बू के
पास जा कर उनका हाथ थाम कर शानू को नीचे उतरने में मदद की।
अकबर चाचू पहले तो झिझके फिर हिम्मत जोड़ कर अपने बड़ी बेटी को बाँहों में भर कर उसके शर्म से लाल गाल को चूम लिया , "
मैं जल्दी ही नीचे वापस आता हूँ। "
" चलिए आदिल आप भी ताज़ा हो जाइए। हम सब तब तक ड्रिंक्स तैयार कर देंगें," आदिल भैया से ऑंखें मिला नहीं पा रहीं थीं।
" नसीम मेरी जान, आज रात तो फ़रिश्ते भी तुम्हारे ऊपर फ़िदा हो जाएंगें। मामू की आँखें तुम्हारे ऊपर से हट ही नहीं पा रहीं थीं।
मुझे तुम पर बहुत फख्र है नूसी। " आदिल भैया ने आपा के होंठों को प्यार से चुम कर कहा।
हम सब प्यार से नसीम आपा को नूसी बुलाते थे बचपन में। लगता है कि वो नाम अब उन पर पूरा टिक गया था।
"हाय रब्बा मेरे। आदिल मेरा दिल देखो कैसे धड़क रहा है। मेरी तो जान निकली जा रही सिर्फ सोच सोच के। कैसे मैं हिम्मत
जुटाऊँगी ?" नसीम आपा ने अपने दिल का डर ज़ाहिर किया।
" जानम सब ऊपरवाले के ऊपर छोड़ दो। सिर्फ जैसा सोचा है वैसा करो सब ठीक हो जायेगा ," आदिल भैया ने अपनी ममेरी बहिन
और बीवी को प्यार से जकड कर तस्सली दी।
आदिल भैया और चाचू के जाते ही हम सब शाम के ड्रिंक्स तैयार करने में मशगूल हो गए।
चाचू की पसंदीदा स्कॉच , तीस साल पुरानी ग्लेनमोरांजी। आदिल भैया के लिए लाल मदिरा , इटली की बरोलो। हम लड़कियों के
लिए सफ़ेद फ़्रांस की सौविंयों - ब्लाँक।
एक घंटे में हम सब पारिवारिक हॉल में अपने गिलासों को ससम्भाले फिर से इकट्ठे हो गए। मैं होशियारी से चाचू के दोनों ओर अपने
आप और नसीम आपा को बैठा कर घेर लिया।
अकबर चाचू ने सफ़ेद कुरता और पायजामा पहना था। आदिल भैया ने शॉर्ट्स और टी शर्ट। नसीम आपा और मैं एक नज़र में समझ
गए किादिल भैया के शॉर्ट्स ने नीचे कच्छा नहीं पहना था। दोनों छह फुट से ऊँचे चौड़े बलशाली मर्द बहुत ही कामकरषक और हैंडसम
लग रहे थे।
शानू ने मटकते हुए बच्चों जैसे ज़िद का नाटक करते हुए अपने जीजू की गॉड में बैठ गयी। हम तीनों को शानू की ऊपर उठी फ्रॉक के
भीतर का उत्तेजक नज़ारा साफ़ साफ़ दिख रहा था। उस कामुक नज़ारे को और भी परवान चढ़ाते हुए आदिल भैया ने शानू को अपनी
गॉड में सँभालने की ओट में उसके दोनों चूचियों को अपने हाथों से ढक दिया।
" चल शानू अब कहानी सुना ना नूसी को ," मैंने चाचू की भारी मज़बूत बाज़ू उठा कर अपने कन्धों पर रख उनके सीने पर सर रख कर
अपनी मदिरा [ वाइन ] का घूँट भरा। मेरी आँख का इशारा समझ कर नूसी आपा ने भी अपने अब्बू के मज़बूत मर्दाने बाज़ू के अंदर आ
कर उनके कंधे पर सर टिका दिया।
शानू ने चाचू की सालियों की कहानी और भी उत्तेजक बना दी थी। नूसी आपा के शर्म से लाल गाल हज़ारो वाट के बल्बों जैसे दमक रहे थे।
मेरा एक हाथ धीरे धीरे फिसलता हुआ चाचू की उभरती तोंद के ऊपर टिक गया। नसीम आपा का ध्यान मेरे हाथ की तरफ था।
शानू अब अपनी दादी अम्मा, अब्बू और ईशा मौसी का वार्तालाप खूब खुलासे से दोहरा रही थी। हालाँकि आदिल भैया और मैंने यह
किस्सा पहले सुन रखा था पर शानू की बच्चों जैसे मधुर आवाज़ और दो दो सालियों और जीजू के बीच में बढ़ते सम्भोग के विचारों से मैं
और नसीम आपा बहुत जल्दी वासना के आनंद में गोते लगने लगीं।
जैसे जैसे शानू ईशा मौसी के पहले सम्भोग का खुला बहुत विस्तार ब्यौरा देने लगी मैंने चाचू, नसीम आपा और आदिल भैया के गिलास
भरने में कोइ देर नहीं लगाई। मेरा हाथ अब चुपके से चाचू के ढीले कुर्ते के नीचे चला गया। जैसा मैंने सोचा था चाचू पिछली रात की तरह
पायजामे के नीचे कच्छा नहीं पहने थे। मैंने होले से अपने नन्हे कोमल हाथ को उनके भारी-भरकम लण्ड के ऊपर पायजामे के ऊपर से रख
दिया। चाचू ने मर्द की तरह कोइ निशान अपने चेहरे पर नहीं आने दिया कि मेरा हाथ उनके लण्ड के ऊपर तैनात था।
मैंने दूसरे हाथ से उनकी हथेली कसमसाने का नाटक करते हुए अपनी बाईं चूची के ऊपर टिका दी।
कहानी, स्कॉच और मेरे हाथ की गर्मी से चाचू थोड़ा बहक गए और उनका दूसरा हाथ बिना सोचे उनकी बड़ी बेटी के दाएं ुरोक्स के ऊपर
फिसल गया।
हम सब थोड़े से नशे की खुमारी में थे। शानू की कहानी लम्बी होती जा रही थी। उसने खाने के ऊपर भी किस्सा जारी रखा। अब वो शन्नो
मौसी के कुंवारेपन के भांग वाले हिस्से पर थी। नसीम आपा मेरे खाने की मेज़ के नीचे वाले हाथ के बारे में पूरी वाकिफ थीं। मैं अब खुल
कर अकबर चाचू का लण्ड सहला रही थी।
नूसी आपा ने भी मेरी तरह अपने अब्बू का गिलास भरने में बहुत दिलचस्पी दिखाई।
मीठे का वक़्त आते आते चाचू और नूसी आपा खुले खुले हलके से नशे में मस्त थे। हम सब के ऊपर नशा तारी होता जा रहा था।
मीठा ख़त्म होते होते शानू ने अपनी शन्नो मौसी की गांड का मर्दन का किस्सा के खात्मे पर थी।
जैसी ही शानू के किस्सा खत्म किया चाचू ने ज़ोर से उबासी भर कर माफ़ी माँगी , " भाई अब आप मुझे तो माफ़ करों। लगता है शानू की
कहानी और नूसी के लाज़वाब खाने से इतना पेट भर गया की आँख खुल ही नहीं पा रहीं।
शानू तुरंत चहक कर बोली ," हाँ अब्बू आप बिस्तर जा कर आराम कीजिये। "
चाचू ने गहरी नज़रों से अपनी बड़ी बेटी की और देखा और नसीम आपा शर्म से लाल हो गयीं। अकबर चाचू सबको चुम कर भारी भारी
क़दमों अपने शयन कक्ष की ओर बाद चले।
जैसे ही उन्होंने अपने कमरे में दाखिल हो गए होंगे वैसे ही शानू और मैं जल्दी से का हाथ पकड़ कर उन्हें उनके अब्बू के कमरे की तरफ
खींचने लगे , "आपा किस बात का इन्तिज़ार कर रहीं अब आप। जाइए अपने अब्बू के कमरे में। उन्हें कितना इन्तिज़ार करवाएंगी आप। "
"मुझे बहुत डर लग रहा है नेहा ," नसीम आपा के हिचकिचाहट ने शानू को पागल सा कर दिया।
" अरे आप तो इतनी डरपोक है आपा। यदि आप को नहीं जाना तो मैं चली जातीं हूँ हमारे अब्बू का ख्याल रखने के लिए," शानू ने छाती
फैला कर बड़ी बहन को ताना मारा।
इस तरकीब ने जादू का असर किया नूसी आपा के ऊपर , "अरे चुड़ैल मैंने तुझे तेरे जीजू को सौंप दिया और अब तू अब हमारे अब्बू को
मुझसे पहले घूँटना चाहती है। तुझे मेरी कब्र के ऊपर चलना पड़ेगा मुझसे पहले अब्बू को पाने के लिए। नेहा चल इस रंडी को इसके जीजू
से तब तक छुड़वाना जब तक इसकी चूत न फैट जाये। " नसीम आपा ने वैसे तो गुस्सा दिखाया पर तुरंत माँ के प्यार से भरे चुम्बन से शानू
का मुंह गीला कर दिया।
हम सब सांस रोक कर नसीम आपा के हलके क़दमों से उनके अब्बू के कमरे के और के सफर को आँखे फाड़ कर देख रहे थे।
रास्ता सिर्फ कुछ क़दमों का था पर प्यार और सामाजिक रुकावटों का ख्याल आते ही इस सफर की लम्बी मुश्किल और परेशानियां समझ
आने लगतीं हैं। जैसे ही हमने पक्का भरोसा कर लिया कि नसीम आपा अपने अब्बू के कमरे में दाखिल हो कर उन्होंने हलके से दरवाज़ा
बंद कर लिया वैसे ही आदिल भैया ने शानू और मुझे अपनी एक एक बाज़ुओं में हमारी कमर से उठा कर दानव जैसे गुर्राते हुए अपने कमरे
की ओर दौड़ पड़े।
हमारी किलकारियां मोतियों की तरह हमारे पद-चिन्हों जैसे हमारे पीछे कालीन पर फ़ैल गयीं।
कमरे में पहुँचते ही आदिल भैया ने मुझे पलंग पर पटक दिया। और उन्होंने शानू के कपड़े बेसबरी से नोच कर उतार फैंकें.
आदिल भैया का उतावलापन देख कर मैं ही नहीं शानू भी गरम हो गयी। आखिर मर्द की काम-इच्छा यदि लड़की को देख कर लावे की तरह
भड़क उठे तो लड़की के कामवासना का ज्वर भी तीव्र हो जायेगा।
जीजू ने शानू को गुड़िया की तरह उठा कर उसे बिस्तर पर घोड़ी जैसे बना कर उसके गोल गोल कमसिन नाबालिग चूतड़ों को चूमने चाटने लगे।
मैंने उनकी बड़े पीपल के पेड़ के तने जैसी जांघों के बीच कालीन पर घुटने तक कर उनके महालंड को सहलाने लगी। जीजू ने जैसे ही अपनी
लम्बी जीभ से शानू की योनि आ तांग संकरी फांक को चाटते हुए असली गांड के और भी तंग नन्हे छेड़ को चाटा तो शानू आनंद से पगा हो
गयी ," हाय जीजू। उन्न्नन्नन्न और चाटिये अन्न्न्न्न्न्न। "
शानू की ऊंची सिसकारी ने जीजू और मुझे और भी उत्तेजित और उत्साहित कर दिया।
मैंने जीजू के विकराल दूरभाष के खम्बे जैसे स्पात जैसे तनतनाये लण्ड के सब जैसे मोटे सुपाड़े के ऊपर अपनी जीभ को फिर फिर कर अपने
थूक से गीला कर दिया। जीजू के बड़े भारी कूल्हे अपने लण्ड को मेरे मुंह में डालने के लिए तत्पर और उत्सुक हो चले और आगे पीछे हिलने
लगे।
मैंने धीरज रखा। मेरा दिल तो जीजू के तन्नाए बैंगनी सुपाड़े को मुंह में ले कर चूसने के लिए तड़प रहा था पर मैंने जीजू को थोड़ा चिढ़ाने और
रिझाने का इरादा बना लिया था।
मैंने अपनी जीभ की नोक से जीजू के पेशाब के छेद को कुरेदा और फिर उसे जीभ से चोदने लगी। जीजू ने शानू की चूत की संकरी दरार को
जीभ से फैला कर उसकी गुलाबी योनि के द्वार को चूमने चाटने लगे। बेचारी शानू जिसे अभी किशोरावस्था के पहले साल को पूरा करने में दो
तीन महीने थे और जो एक दिन पहले तक कुंवारी थी अभी सम्भोग के खेल के कई रंगों से नावाकिफ थी।
जीजू ने अपने अंगूठे से उसकी गांड के छेद को रगड़ते रगड़ते शानू की चूत को अपनी जीभ से चोदने लगे। मैंने अब अपने लालच के आगे
समर्पण कर दिया और जीजू का मोटे सब जैसा सूपड़ा अपने लार से भरे मुंह में भर लिया। जीजू ने अपने शक्तिशाली कूल्हों को की ओर
धकेला। उनका महा लण्ड का सूपड़ा मेरे हलक के पीछे की दिवार से टकराया और मेरे मुंह से गों- गों की आवाज़ें उबल उठीं।
शानू सिसकते हुए सबकी , "हाय भैया। ......... जीजू मुझे झाड़ दो। "
मैंने जीजू के लण्ड को दोनों हाथों से सम्भाला और उनके मोटे सुपाड़े और दो इंचों को चूसने लगी। मेरी जीभ की नोक उनके पेशाब के छेद को
कुरेद रही थी।
" नेहा तुम अब शानू के नीचे लेट जाओ। अब शानू की चूत मारने का नंबर लगते हैं," जीजू ने मुझे आदेश दिया। मैं उनका इशारा समझ गयी।
वो चाहते थे कि मैं शानू का मुंह अपनी चूत में दबा लूँ जिससे जीजू उसकी चूत की कुटाई बेदर्दी से कर सकें।
" जीजू अपनी छोटी साली की चीख और आंसू न निकाले तो मैं आपसे नाराज़ हो जाऊंगीं ," मैंने प्यार से जीजू के सीने को चूमते हुए
फुसफुसाया।
"जानेमन नेहा , देख लेना कितनी ज़ोर से चीखें निकलवाऊंगा तुम्हारी सहेली के हलक से। उसके टेसुओं से तुम्हारी चूत नहा जाएगी ," जीजू ने
मुझे आँख मारते हुए धीरे से वापस फुसफुसाया।
"हाय जीजू अब मेरी चूत में अपना लण्ड दाल दीजिये ,"शानू झड़ने के बहुत निकट थी और अब अपने काम-आनंद की चोटी के ऊपर पहुंचना
चाह रही थी, " नेहा तू जा कर रसोई से लम्बा वाला खीरा ले आ। जब तक जीजू मुझे चोदेंगे तब तक तू खीरे से चुदवा लेना। "
शानू ने सिसकते हुए सलाह दी।
"अरे रंडी , तुझे हमारे जीजू का लण्ड खुद चाहिए इसीलिए मुझे खीरे से चुदने के लिए कह रही है ," मैंने शानू के सूजे चुचूक को मसलते हुए
ताना दिया।
" शानू रानी अपनी बड़ी साली की चूत नहीं गांड मरवाएंगें हम ," जीजू ने मेरी ओर मुस्कान फैंकते हुए कहा।
"हाय जीजू पहले तो आप इस चुड़ैल को पहले चोद रहे हैं फिर निगोड़े खीरे से मेरी गांड फाड़ने के ख्याल से मचलने लगे हैं। क्या पिछले जनम
की दुश्मनी निकल रहें हैं ," मैंने वैसे तो नखड़ा मारते हुए कहा शानू के निर्मम चुदाई देखने के ख्याल से गनगना रही थी।
"अरे जल्दी कर ले कर आ ना खीरा ," शानू ने बेसब्री से डाँटा , " तू मेरी चुदाई को क्यों ख़राब कर रही है ?"
मैंने नाटकीय अंदाज़ में झुक कर कहा , " ठीक हे महारानी जी सबसे मोटा खीरा आऊंगी उससे तेरी गांड मारूंगी मैं ,"मैंने शानू को धमकी
दी। पर हमें पता था कि शानू की कुंवारी गांड तप उसके अब्बू के लण्ड के लिए हिफाज़त से रखी है।
मैंने सात आठ इंच लम्बा और सबसे मोटा खीरा चुना। पर उसकी मोटाई कहाँ जीजू से भीमकाय लण्ड सामने ठहर पाती। जीजू का
महालण्ड खीरे से कम से कम दुगुना मोटा था।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
Update 35
जब मैं खीरा लेकर शयनघर में पहुंची तो जीजू ने एक बार फिर से घोड़ी बनी शानू को पीछे से चूम , चाट कर फिर से चरम-
आनंद के करार पर पहुंचा कर उसे भूखा हो गए।
"जीजू हाय अम्मी कितना तड़पा रहें हैं आप आज ? एक बार तो झाड़ दीजिये मुझे रब के नाम पर," शानू कुलबिला रही। थी
उसकी अनबुझी प्यास को अनदेखा कर मुझे बाँहों में भर कर बिस्तर पर पटक दिया। पहले तो मैं चीखी फिर खिखिला कर हंस
दी। उन्होंने मेरे फ़ैली जांघों के बीच में वासना की आग में जल कर बिलखती शानू को गुड़िया की तरह उठा कर फिर से घोड़ी
की तरह टिका दिया। मेरे हाथ का खीरा ना जाने कब जीजू के हाथ में चला गया था।
उन्होंने एक ही झटके में सारा का सारा खीरा शानू की गीली कुलबुलाती चूत में ठूंस दिया।
शानू चिहुंक कर उठी ," हाय जीजू दर्द हुआ मुझे। क्या घुसा दिया आपने मेरी चूत में ?"
मैंने शानू के थिरकते चूतड़ पर ज़ोर से थप्पड़ मारा ," रांड मेरी नन्ही बहन जिस खीरे से मेरी गांड की बर्बादी करवाने वाली थी
उसका कम से कम चूत में तो ले कर स्वाद ले ले। "
"हाय नेहा चूत में जीजू का लण्ड चाहिए। पता नहीं क्यों तड़पा रहें आज ? "शानू की कमसिन आवाज़ में औरताना वासना की
गहरायी ना जाने कब और कहाँ से आ गयी।
" छोटी साली साहिबान यदि अपने लण्ड मैं आपकी चूत में डालूं तो रो धो तो नहीं करोगी ?" जीजू ने खीरा तीन चार बार शानू
की चूत में आगे पीछे किया और शानू की चूत के रस लिसे खीरे को उन्होंने मेरी के तंग छेद पर रख कर धीरे नोक को दबाते
गए और मेरी गांड का कसा छेद धीरे धीरे हार मान कर खुलने लगा।
जैसे ही खीरे नोक मेरी गुदा की मखमली दीवारों के भीतर घुसी जीजू ने एक झटके से पूरा खीरा मेरी गांड में ठूंस दिया।
" हाय जीजू धीरे धीरे। यह आपकी बड़ी साली और बहन की गांड है आपकी छोटी रंडी साली की चूत नहीं जो गधे का लण्ड
भी खा जाये ," मैं दर्द से बिलबिला उठी और जीजू को ताना मारने से पीछे नहीं हठी।
" साली चुप कर जल्दी से जीजू को खीरा गांड में डालने दे। फिर मेरी चूत मारने के लिए फारिग होंगें? वैसे भी जीजू का लण्ड
घोड़े के लण्ड को भी शर्मिंदा कर देने में काबिल है। किस गधे की नौबत है जो मेरे जीजू से मुकाबला करे लण्ड के मामले में ?"
शानू चुदने को बेताब जीजू को रिझाने लगी।
"जीजू ने मेरी ओर मुसकरा कर आँख मारी और मेरी टी शर्त से शानू की चूत रगड़ने लगे। मेरी आँखे फट गयीं। जीजू शानू की
कमसिन नाबालिग चूत सूखी मारने थे।
जब जीजू के दिल राज़ी हो गया तो उन्होंने अपना विकराल मोटा सूपड़ा शानू के तंग संकरे चूत कई दरार पर टिका दिया। मैंने
उनकी मंशा समझ कर अपनी टांगें शानू की कमर के ऊपर जकड कर उसका मुंह अपनी चूत दिया।
जीजू ने शानू के हिलते गोल मटोल चूतड़ों को कस कर पकड़ा और एक बेरहम जानलेवा धक्का लगाया। शानू जो अपनी चूत
को मरवाने के लिए तड़प रही थी हलक फाड़ चीखी , " नहीं …..ई ……. ई …….. ई …….. ई ……….. ई ………… ई
………. ई ………ई …….. ई ………ई ………ई ………ई ………….ई ,"
शानू के चेहरे पर एक ही लम्हे में बुँदे छ गईं। उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। दुसरे ही लम्हे में उसकी आँखों से समुंदर बह
चला। मैंने जीजू को पूरा मजा देने के लिए शानू का मुंह रखा था। आखिर अपनी कमसिन साली चीख सुन कर किस जीजू का
लण्ड और भी मोटा लम्बा नहीं हो जाता ?
जीजू ने बिना हिचकी दूसरा फिर तीसरा धक्का मारा। हर धक्के से उनका हाथ भर का महा लण्ड उनकी नहीं कमसिन दर्द से
बिलखती साली की चूत में समाता जा रहा था।
शानू की दर्दीली चीख़ से न केवल जीजू बल्कि मैं भी उत्तेजित हो गयी। शानू ने जितना भी तड़प तड़प कर छूटने की कोशिश की
उतनी ही बेदर्दी से जीजू ने उसकी कमर दबोच कर और मैंने उसके कन्धों और गर्दन को अपनी टांगों से और उसके हाथों को अपने
हाथों से कस कर और भी लाचार और निसहाय बना दिया।
जीजू का भारी भरकम छह फुट तीन इंच ऊंचा दानवीय शरीर बेचारी पांच फुट दो इंच की कमसिन शानू के नन्हे शरीर के ऊपर
हावी था। बेचारी नन्ही हिरणी बब्बर शेर के नीचे आ गयी थी। अब उसके बचने की कोई भी उम्मीद नहीं थी।
जीजू ने चौथा और फिर भयंकर पांचवां धक्का मारा और उनका विकराल लण्ड जड़ तक शानू की बिलखती चूत में थंस गया।
शानू के सूखी चूत के मर्दन से दर्द की बौछार से आंसू बहा रहा था। बड़ी मुश्किल से उसकी चीखों के बीच में से उसकी हिचकियाँ
से भरी पुकार निकली , " मर गयी जीजू ऊ.... ऊ …….. ऊ …….. ऊ ………. ऊ …….. ऊ ……… ऊ ………. ऊ ……….
ऊ ……. ऊ …………ऊ …… उन्न्नन्न । "
जीजू और मैंने उसकी निरीह पुकार को नज़र अंदाज़ कर दिया , " जीजू, मैं तो मान गयी आपको। कैसे आपने अपना महा लण्ड
शानू की चूत में ठूंस दिया। अब उसे आराम नहीं होने दीजिये। चूत फाड़ दीजिये इस साली की। " मैंने जीजू को ललकारा।
जीजू ने मेरी ललकार का जवाब अपने भीमकाय लण्ड से दिया। उन्होंने एक एक इंच करके अपना लण्ड सुपाड़े तक बाहर
निकला शानू की दर्द से मचलती चूत में से। मेरी भी आँखे फट गईं। जीजू के लण्ड पर लाल रंग के लकीरें उनके घोड़े जैसे लण्ड
को और भी भयानक बना रहीं थीं।
हम दोनों जानते थे की शानू की चूत तीन चार धक्कों के बाद उसके रस से लबालब भर जायेगी।
जीजू ने इस बार दो ही धक्कों में शानू की चूत की गहराइयों को और भी अंदर धकेलते हुए अपना वृहत लण्ड एक बार फिर जड़
तक ठूंस दिया। इस बार शानू की चीखें थोड़ी हलकी थीं। जीजू ने बिना देर किये दनादन अपने लण्ड की आधी लम्बाई से शानू
की चूत बिजली की रेलगाड़ी की रफ़्तार से चोदने लगे।
शानू के आंसूं बहने बंद हो गए। उसकी चीखें पहले तो धीमी हुईं फिर सिसकारियों में बदल गईं। और फिर जीजू के भीमकाय
लण्ड और उसकी चूत के बीच में अदि-काल से चलता रति-सम्भोग का खेल शुरू हो गया।
शानू की चूत में रति-रस का सैलाब आ गया। चुदाई के दर्द से शानू की काम-वासना और भी प्रज्ज्वलित हो गयी। शानू के
सिसकारियाँ कमरे में गूंजने लगीं। मैंने अब उसका सुबकता मुंह अपनी गीली चूत के ऊपर दबा लिया। शानू के चूतड़ खुद-ब-खुद
जीजू के लण्ड का स्वागत करने के लिए आके-पीछे होने लगे।
जीजू का लण्ड अब फचक फचक फचक की आवाज़ें पैदा करते हुए शानू की नन्ही चूत रौंद रहा था। मेरी चूत जीजू के लण्ड के
लिए तड़पने लगी।
पर मुझे शानू के फड़कते होठों से स्पंदन से उपजे आनंद से ही संतोष करना पड़ा। जीजू का पहले शानू की चूत का मर्दन करने के
बाद ही मेरा नंबर लगाएगा।
शानू की सुबकियां अब वासना के आनंद से भरी हुईं थीं। उसका बदन बार बार रति-निष्पत्ति के प्रभाव से कांप रहा था। जीजू ने
जब देखा कि शानू की चीखें न केवल धीमी हो गईं हैं बल्कि वो अब ज़ोर ज़ोर से सिसक रही थी तो उन्होंने उसकी गोल गोल
गुदाज़ कमर को छोड़ कर उसके अल्पव्यस्क कच्चे स्तनों को अपने विशाल निर्मम हाथों में भर कर बेदर्दी से मसलने लगे। शनु की
चीखें निकल पड़ीं फिर से। जीजू ने ना केवल शानू के उरोजों को मसला मरोड़ा बल्कि उनको खींच खींच उसकी छाती से जैसे
उखाड़ने कि कोशिश कर रहे थे। उन्होंने शानू की वासना के मसाले में में दर्द की मिर्ची मिला दी। शानू चाहे चीख रही हो या
सिसक रही हो पर वो भरभरा कर लगातार झड़ रही थी।
जीजू के भीमकाय लण्ड की भीषण चुदाई से शानू अनेकों बार झड़ गयी पर जीजू ने चुदाई की रफ़्तार को ज़रा सा भी धीमा नहीं
होने दिया। मैं भी शानू की चुदाई को देख और अपनी चूत के उसके सिसकते मुंह के आनंद से भरभरा कर झड़ गयी। जीजू ने जब
मेरी आँखों को कामोत्तेजना के आनंद से बंद होते देखा तो लगभग एक घंटे की चुदाई का खत्म करते हुए शानू की चूत को और भी
बेदरदी और तेज़ी से चोदने लगे। शानू सिसकते हुए बार बार झड़ रही थी। जीजू के भीषण धक्का लगाया और अपने उर्वर बच्चे
पैदा करले वाली मलाई की बरसात की बौछार से शानू के कच्चे गर्भाशय को नहला दिया।
शानू बिलकुल शिथिल और बेहोश से हो गयी। जैसे ही जीजू ने अपना बलशाली लण्ड उसकी चूत में से निकाला शानू की चूत से
जीजू के मर्दाने रस की लहरें उसकी टांगों के ऊपर दौड़ने लगीं।
मैंने एक लम्हा भी नहीं बर्बाद किया। शानू जैसे ही बिस्तर पर ढुलक गई मैंने जीजू का अभी भी तन्नाया हुआ लण्ड अपने दोनों
हाथों में सम्भाल कर उसके ऊपर लिसे रस को चाटने लगी।
जीजू ने मेरा सर कस कर दबोच लिया और अपना महा लण्ड मेरे मुंह में ठूसने लगे। मैं गौं - गौं करती उनके मोठे लण्ड को
मुश्किल से मुंह में भर पा रही थी। मेरे मुंह के कौनें इतने फ़ैल गए थे जीजू के मोटे लण्ड के ऊपर की मुझे डर लग रहा था की वो
फट जाएंगें। जीजू ने बिना मेरी परवाह किये मेरे मुंह का भरपूर चोदन किया। उनका सब जैसा सुपाड़ा मेरे हलक के पीछे की
दीवार से जब टकराता तो मैं 'गौं - गौं ' करतीं और मेरी आँखें गीली हो जातीं। पर जीजू के मर्दाने मुंह-चोदन से मेरी चूत और भी
गीली हो चली थी।
"बड़ी साली साहिबां अब आपकी बारी है।" जीजू ने अपना लण्ड मेरे मुंह से खींच लिया। मेरी लार मेरे फड़कते स्तनों के ऊपर
फ़ैल गयी।
" जीजू मेरी चूत तो एक घंटे से तड़प रही है आपके लण्ड के लिए ," मैं जल्दी से बिस्तर के किनारे की तरफ खिसकने लगी।
"नेहा रानी तुम्हारे जीजू के लण्ड को एक साली की चूत के बाद दूसरी साली की गांड चाहिए ," जीजू का लण्ड मानों दो तीन इंच
और लम्बा और मोटा लग रहा था।
मैं समझ गयी अब जीजू मेरी चीखें निकलवाने के लिए तैयार हो रहे थे।
जीजू ने मेरी गांड में से खीरा निकला और उसे मेरे मुंह में ठूंस दिया। मैंने अपने मुंह में ठूंसे आधे खीरे को चाटा और चूसा। मेरे मलाशय
के सौंधे स्वाद और महक से मेरा मुंह पानी से भर गया। जीजू ने फिर खीरे के दूसरा हिस्सा अपने मुंह में भर कर दिल खोल कर चाटा और
चूसा।
"साली जी जब मेरा लण्ड आपकी गांड से निकलेगा तो उस पर इस खीरे से बहुत ज़्यादा आपकी गांड का रस लगा होगा। अल्लाह
कसम इतना लज़ीज़ रस के लिए तो मैं आपकी गांड घंटों तक रगड़ सकता हूँ ," जीजू ने चटखारे लेते हुए मुझे आगाह किया। उनकी बात
भी सही थी। उनके विकराल लण्ड की लम्बाई मोटाई खीरे से दुगुनी से भी ज़्यादा थी। मेरी गांड की खैर नहीं थी।
"तो जीजू फिर इन्तिज़ार किस बात का कर रहे हैं। बातें ही बनाएंगें या फिर मर्दों की तरह अपने दानव जैसे लण्ड के कारनामे भी
दिखाएंगें ," मैंने बुद्धुओं की तरह पहले से ही बेअंकुश भड़के हुए सांड को लाल रुमाल दिखा दिया।
जीजू ने मेरे गदराये थिरकते दोनों चूतड़ों पर तीन चार थप्पड़ टिकट हुए मेरी गीली चूत में खीरा हद तक ठूंस दिया, "अरे साली साली जी
अभी आपको दिखता हूँ की मैं सिर्फ मुंह से ही बातें ही बनाता हूँ या मर्दों के तरह लण्ड से भी बोल सकता हूँ। "
मैं चीख उठी , "जीजू यह आपकी अम्मी के चूतड़ और चूत नहीं है। इनसे सभ्य इंसानों की तरह पेश आइये ," मेरी गांड का बाजा बजने
वाला था और मैं चुप ही नहीं हो के दे रही थी। इसे ही तो कहते हैं 'आ बैल मुझे मार 'और बैल भी बजरंगी लण्ड वाला।
" रंडी साली जी मेरी फरिश्तों जैसी अम्मी को क्यों अपनी रांडों जैसी गांड चुदाई के बीच में ला रही हैं। गांड तो फटनी ही है आपकी।
क्या ऐसी फड़वाने की तमन्ना है कि कोई शहर का मोची भी न सिल सके ?" जीजू ने मेरे पहले से ही लाल चूतड़ों पर तीन चार ठप्पड़
टिका दिए। मैं चीख उठी, बिलबिलाती हुई।
जब तक मैं कुछ वाचाल जवाब सोच पाती जीजू ने मेरे चूतड़ों को फैला कर अपना लण्ड मेरी गांड के छल्ले पर दबा दिया। मेरा हलक
सुख गया और मेरी साँसें तेज़ हो गईं। जीजू के लण्ड के ऊपर सिर्फ शानू की चूत के रस के सिवाय कोई तेल या लेप नहीं था। मेरी
सूखी गांड वास्तव में फटने वाली थी।
जीजू ने जैसा वायदा किया था उसको निभाते हुए एक बलशाली झटके वाले धक्के में अपना मोटे सब जैसा सुपाड़ा मेरी गांड दिया।
न चाहते हुए भी मैं दर्द से बिलबिला उठी। मेरी चीख कमरे उठी। मेरी आँखें गंगा के जल से भर गईं। मेरी सूखी गांड को मानों जैसे
जीजू ने तेज़ चाकू से काट कर उसमे मिर्चें भर दी हों। मेरी बोलती बंद हो गयी। जीजू के मर्दानगी ने मेरी रंडीबाजी वाले वाचाल
लच्छेबाजी की भी गांड फाड़ दी।
" अरे साली जी अभी से टसुये बहाओगी तो आगे क्या होगा। अभी तो साली की गांड में मेरा सुपाड़ा ही अंदर गया है बाकि का खम्बा
तो अभी भी बाहर है ," जीजू ने मेरे तड़पने, बिलखने को बिलकुल नज़रअंदाज़ करते हुए मेरे उनके थप्पड़ों से दुखते चूतड़ों को बेदर्दी से
मसल दिया।
दर्द से मेरा हलक भींच गया था और मेरी आवाज़ न जाने किस गड्ढे में गुम गई थी पर मुझे सारे संसार की सालियों की इज़्ज़त का भी
ख्याल था।
मेरी आवाज़ में पहले जैसी शोखी चाहे न हो पर रुआँसी आवाज़ में थोड़ा तीखापन भी भी शुमार था, " अरे जीजू तो खम्बा क्या अपनी
अम्मी की क़ुतुब मीनार से चुदी गांड में डालने को बाहर रख झोड़ा है?" मैंने कह तो दिया पर तुरंत अपनी आँखें मींच ली आने वाले आतंक
के ख्याल से।
जीजू ने इस बार एक भी लफ्ज़ ज़ाया नहीं किया। मेरी कमर को भींच कर एक भीषण धक्का मारा और कम से कम तीन चार, घोड़े के
लण्ड जैसी मोटी, इंचें मेरी गांड में शरमन टैंक की तरह दाखिल हो गईं। मेरी दर्द से नहायी चीखें अब रुकने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं।
मेरी आँखें बाह चली। मेरा सुबकता खुला मुंह लार टपका रहा था। जीजू ने पहले धक्के के बाद दूसरा, तीसरा धक्का लगाया। उनकी
घुंघराली झांटे अब मेरे लाल कोमल चूतड़ों को रगड़ रहीं थीं। उनका हाथ भर लम्बा बोतल जैसा मोटा लण्ड जड़ तक मेरी तड़पती फटी
गांड में समां गया था।
मैंने अब बेशर्मी से सुबकना शुरू कर दिया। जब गांड फट रही हो तो कम से कम खुल के रो तो लेना चाहिये। और वो ही किया मैंने
अगले दस पंद्रह मिनटों तक। जीजू ने निर्ममता से अपना घोड़े जैसे महा लण्ड से बिफरे सांड की तरह मेरी गांड-मर्दन करने लगे।
मैं सुबक सुबक सबक कर कराह रही थी पर एक क्षण के लए भी मेरी गांड जीजू के महाकाय लण्ड के आक्रमण से दूर नहीं
भागी। मेरे आंसुओं में शीघ्र आने वाले आनंद के बरसात की बूँदें भी तो शामिल थीं।
जीजू के भीषण धक्कों से मैं सिर से चूतड़ों तक हिल जाती। मेरी घुटी घुटी चीखों ने अपने चरम आनंद के मदहोशी से बाहर आती
शानू को और भी जगा दिया।
शानू के आंखें चमक गईं जब उसने मेरी गांड का शैतानी लत-मर्दन देखा। शानू अपने जीजू के भीमकाय लण्ड की मर्दानगी को तो
खुद भुगत चुकी थी पर अब वो मेरी गांड की तौबा बुलवाने के लिए तैयार ही गई।
शानू ने मेरे उछलते मचलते उरोजों को कस कर मसलते हुए जीजू को न्यौता दिया, "जीजू और ज़ोर से मारिये नेहा की गांड। बड़ी
खुजली मच रही थी इसकी गांड में। आपको कसम है मेरी की इसकी चीखे बिलुल बंद न हों। "
शानू ने मेरे फड़कती नासिका को मुंह में ले कर चुभलाते हुए मेरे दोनों चूचुकों को बेदर्दी से दबा कर मरोड़ दिया। में तो वैसे ही चीख
रही थी दर्द से।
जीजू ने गुर्राते हुए और भी हचक कर धक्का मारा। एक ही जानलेवा धक्के से पूरा का पूरा घोड़े जैसा लण्ड मेरी गांड के छल्ले से
जड़ तक समा गया।
मेरी गांड से रस से जीजू का लण्ड पूरा का पूरा नहा उठा था।मेरी गांड की मोहक सुगंध कमरे की हवा में मिल कर हम तीनो को
मदहोश कर रही थी। शानू ने अपनी जीभ की नोक बारी बारी से मेरे दोनों नथुनों में घुसा कर उनको चोदने लगी। अब मेरे खुले मुंह से
दर्द के साथ साथ वासनामयी सिसकारियाँ भी उबलने लगीं। शानू के हाथ मेरे दोनों उरोजों और चुचकों को कभी मसलते, कभी
मरोड़ते, कभी मेरी छाती से उन्हें दूर तक खींचते और कभी प्यार से सहला रहे थे। मेरी गांड में से अब दर्द की जलन के साथ एक
अनोखा आनंद भी उपज रहा था। जीजू का लण्ड अब मेरे गांड के रस से लिस कर चिकना हो चला था। जीजू का लण्ड अब रेल के
इंजन के पिस्टन की रफ़्तार और ताकत से मेरी गांड के अंदर बाहर आ जा रहा था। मेरी गांड में से लण्ड के आवागमन से अश्लील
फचक फचक की आवाज़ें निकल रहीं थीं।
"जी. .. ई … ई …… ई ……. ई ……. ई जू ….. ऊ ….. ऊ …… ऊ …… ऊ ……. ऊ ……. ऊ ….. आं ….. आँ ….. उन्न
….. ऊँनन …. ऊँ …. ऊँ …..ऊँ ……माँ ….. आ ….. आ …… आ …… ,"में वासना और गांड से उपजी पीड़ा से मिलीजुली आनंद
की बौछार से बिलबिला उठी।
चाहे कितनी बार भी सम्भोग का खेल ले लो पर जब नए खेल में वासना के ज्वर की आग बदन में जल उठती है तो उसके तपन का
आनंद उतना ही मीठा होता है। और षोडशी के कमसिन शरीर भी प्रज्जवलित होती है। मैं अब गान्ड-मर्दन के अतिरेक से अनर्गल
बुदबुदा रही थी। शानू मेरे गीले चेहरे को चूम चाट कर साफ करने लेगी थी। जीजू ने मेरी कमर जकड़ कर अपने लण्ड मेरी गांड में
दनादन पल रहे थे। मेरे सिसकारियाँ कमरे में गूंजने लगीं। मैं रतिरस से औरभर उठी। मेरी चूत से रति रस की बाद बह चली थी। में
अचानक भरभरा कर झड़ गई। वासनामयी आनंद के अतिरेक से मैं सबक उठती। शानू और जीजू मिल कर मेरे चरम-आनंद की कड़ी
को टूटने ही नहीं दे रहे थे। मैं यदि एक बार झड़ी तो सौ बार झड़ी। मेरा शरीर कमोंमंद के आवेश से सिहर उठ।मैं हर चरम आनंद की
पराकाष्ठा से कांप उठती। जीजू का लण्ड बिना थके रुके धीमे हुए निरंतर मेरी गांड में अंदर बाहर अनोखी रफ़्तार से आ जा रहा
था।
ना जाने कितनी देर तक जीजू ने मेरी गांड का अविरत मर्दन किया। ना जाने कितनी बार मैं वासना के आनंद से कांपती हांफती
झड़ गयी। पर जब घण्टे बाद जीजू ने मेरी जलती गांड को अपनी अपनी मर्दानी उर्वर मलाई से सींचआ तो मैं लगभग होश खो
बैठी थी।
जीजू ने मुझे बिस्तर पे ढुलक जाने दिया और अपना वीर्य और मेरी गांड के रस से लिसे लण्ड को इन्तिज़ार करती शानू के मुंह में
ठूंस दिया। शानू ने जी भर कर जीजू का लण्ड चूस चाट कर साफ़ कर दिया। लेकिन शानू रुकी नहीं और जीजू की भारी मोटी
उर्वर जननक्षम वीर्य पैदा करने वाले बड़े बड़े अण्डों को सहलाते हुए उनके मुश्किल लण्ड को फिर से तनतना दिया।
जीजू किसी किताबी कभी न संतुष्ट होने वाले आदिमानव की तरह शानू के ऊपर टूट पड़े। उन्होंने उसके होंठों को चूसा , उसके
उगते चूचियों को मसला और चूचुकों को चूस चूस कर लाल कर दिया। उसकी पहले से ही गीली चूत को चाट कर तैयार कर के
उसे मेरी खुली जांघों के बीच में झुका दिया।
शानू घोड़ी बनी मेरी चूत में अपना मुंह दबा कर जीजू के लण्ड के सगत के लिए तैयार थी।
जीजू ने उसके दोनों चूचियों को मुट्ठी में भर कर अपना घोड़े जैसा लण्ड के सुपाड़े को शानू की नन्ही चूत के द्वार पे टिकाया और
एक भीषण झटके से सुपाड़ा शानू की चूत में ठूंस दिया। मैंने शानू का मुंह अपनी चूत में दबा लिया। शानू बिलबिला तो उठी पर
थोड़ी देर पहले की लम्बी चुदाई से उसकी चूत खुल गयी थी। तीन चार धक्कों में जीजू का वृहत भीमकाय शानू की कमसिन
नाबालिग चूत में जड़ तक समा गया। शानू जीजू के पहले पांच छह धक्के सबक सिसक कर स्वीकार किये फिर चुदाई की मस्ती
में खो गयी।
उसने लपक कर मेरी चूत चाटनी शुरू कर दी। जीजू का लण्ड अब अश्लील फचक फचक फचक की आवाज़ करता शानू की
चूत में लपक हचक कर अंदर बाहर आ जा रहा था। कमरे में मेरी और शानू की सिसकारियाँ गूँज उठी। शानू ने अपने बढ़ते तजुर्बे
को दिखते हुए एक हाथ से मेरा डायन स्तन दबोच हाथ की दो उँगलियाँ मेरी ताज़ी ताज़ी चूड़ी गांड में घुसेड़ दीं।
उसके कभी होंठ और कभी दांत मेरे तन्नाए भग-शिश्न को चूमते खींचते तो मैं भी बिलबिला उठती।
जब मैं या शानू चरम-आनंद के पटाखों की तरह फुट जातीं तो हमारी हलकी सी सिसकी भरी चीख जीजू के लिए हमारे झड़ने
का बिगुल बजा देतीं।
जीजू की मांसल जांघें शानू के गोल मुलायम चूतड़ों पे थप्पड़ सा मार रहीं थीं। उनका लण्ड अब बीएस एक को चोद रहा था।
ज़ोरदार, धमकदर, सुपाड़े से जड़ तक भयंकर धक्कों से। शानू पूरी हिल जाती पर उसने मेरी चूत को एक क्षण भी अकेला नहीं
छोड़ा।
जीजू के दिल भर कर शानू की चूत को अपने विकराल लण्ड से रौंदा। और जब वो झड़ें तो हम दोनों इतनी बार झड़ चुकीं थीं
की थक कर चूर हो गईं। पर सम्भोग की थकन में भी मीठा आनंद होता है और शीघ्र ताज़ी उगने वाली कामवासना का पैगाम भी।
और वो ही हुआ।
थोड़ी देर बाद हम तीनों लेते हुए थे। जीजू हमारे बीच में और उनके हाथ मेरे और शानू के उरोजों को शाला मसला तरहे थे। शानू और
मेरे नन्हे हाथ उनके दानवीय आकार के आधे सोये लण्ड को जगाने में मशगूल थे। जीजू को और हमें दो घनघोर चुदाई के बाद कुदरत
की फ़ितरत की तरह पेशाब लगने लगा। जीजू ने शानू को कन्धों पर उठा लिया बच्चे की तरह।
बिना किसी के कुछ कहे जीजू ने पहल की और जल्दी ही वि मेरी खुली जांघों के बीच में बैठे मेरे सुनहरी शर्बत का मज़ा लूट रहे थे।
शानू ने भी उनकी भड़ास मिटाई। एक बून्द भी बर्बाद नहीं की जीजू ने हमारे बेशकीमती तोहफे की । जीजू ने अपना खारा सुनहरा
शर्बत ईमानदारी से आधा आधा शानू और मेरे बीच में बाँटा। फिर हम दोनों उनके लण्ड को चूसने सहलाने लगे। जीजू जैसे सांड को
क्या चाहिए साली की चुदाई करने के लिए - एक इशारा। और हम दोनों तो इशारों की पूरी दुकान खोल कर बैठे थे।
जीजू ने मुझे और शानू को कमोड के ऊपर झुका कर बारी बारी से हमने पीछे से चोदने लगे।
जब शानू या मैं एक बार झड़ जाती तो वो चूत बदल देते। हमें तीन बार झाड़ कर जीजू हमें बिस्तर पे ले गए। जीजू ने मुझे पीठ पर
लिटाया और शानू को मेरे ऊपर। हमारे चूतड़ बिस्तर के किनारे पे थे। अब जीजू बस थोड़ी सी मेहनत से हमारी चूत बदल सकते
थे। उन्होंने इस बार जो कड़कड़ी बनाई उससे शानू और मेरे तो अस्थिपंजर हिल उठे। आखिर कार जब झड़-झड़ के हमारी जान ही
निकल गयी जीजू ने हम दोनों को खींच कर अपने वीर्य की बारिश हमारे मुंह के ऊपर कर दी। उनके गरम वीर्य की बौछारें शानू और
मेरी आँखों में भी चली गईं। फिर जीजू ने शानू और मेरी नाक उठा कर हमारी नासिकाएँ भी भर दी वीर्य की बौछार से।
उस रात जीजू ने हमें तीन चार बार और चोदा उसमे मेरी गांड-चुदाई भी शामिल थी। फिर हम तीनों आखिर बार की चुदाई के बाद की
मीठी थकान से हार कर गहरी नींद में सो गए।
मेरी एक बार आँख खुली तो लगभग ग्यारह बज रहे थे सुबह के पर शानू अभी भी जीजू के सूखते वीर्य से लिसी गहरी नींद में सो रही
थी। मैं भी आँख बंद कर निंद्रा देवी की गॉड में ढुलक गयी। जीजू गायब थे बिस्तर से।
मैं जब दोबारा उठी तो लगभग दोपहर हो चुकी थी। शानू अभी भी बच्ची की तरह थकी हारी गहरी नींद में थी। मेरी वस्ति पेशाब से भरी
मचल रही थी। मैं लाचारी से उठ स्नानघर ले गयी जब तक मैं अपना मुत्र झरझर करती फ़ुहार से शनुभि आँखें रगड़ती आ गयी स्नानघर
से। मैंने उसे गोद में बिठा लिया एयर उसने मेरी फैली जांघों के बीच में अपना मूत्राशय खोल दिया। शानू के गरम मूत्र की फुव्वार मेरे
पेंडू को भिगोती कमोड में झरने की तरह गिरने लगी। मैंने उनींदी प्यारी शानू के गुलाबी सूजे होंठों को प्यार से चुमाँ।
"कुम्भकरण की भतीजी क्या चल कर नहीं देखना नसीम आपा की अब्बू के साथ पहली रात कैसी गुजरी? “ मैंने शानू की नासिका
को नोक काटते हुए पूछा।
मानों उसे जैसे बिजली का करंट लग गया हो ,"हाय रब्बा मैं तो भूल ही गयी। कैसे भूल गयी मैं ?"
हम दोनो जल्दी से तैयार हो कर अकबर चाचू के कमरे की ओर दौड़ पड़े। दोनों के नई कोई कपड़ा पहनने का प्रयास नहीं किया।
नसीम आपा चित्त बिस्तर में गाफिल बेहोश सी सो रहीं थीं। उनके उरोजों पर नीले लाल बेदर्दी से मरोड़ने मसलने के निशान थे। वैसे ही
निशान उनकी जाँघों और कमर पर थे।
उनके शरीर और चहरे पर भूरे, सफ़ेद सूखे शरीर के रसों के थक्के लगे हुए थे। उनकी सुंदर फड़कती नासिका के दोनों नथुने सूखे वीर्य
से भरे हुए थे। ठीक उसी तरह उनकी आँखें भी। नसीम आपा उस वक्त मोनालिसा, क्लियोपैट्रा , वीनस दी माईलो किसी भी
काल्पनिक दैविक सौंदर्य की माप के स्तर से सुंदर लग रहीं थीं। नसीम आपा अपने पुरुष के सानिध्य और सम्भोग से तृप्त और थकी
सुंदरता की मूरत बानी मुझे और शानू को उस समय भ्रमणद की सबसे सुंदर स्त्री लग रहीं थीं। मेरे लिए यह बहुत महत्वपूर्ण विचार थे
क्योंकि उस भ्रमांड में मेरे जन्मदात्री मम्मी भी थीं और मेरे लिए उनसे सुंदर कोई भी नहीं था।
हम दोनों नसीम आपा से दोनों ओर कूद कर बिस्तर पर लेट गए। मैंने उनका गहरी साँसे और हलके हलके मादक खर्राटे लेते चेहरे को
हांथो में भर कर चूमने लगी। नसीम आपा चौंक कर जग उठीं। उन्होंने ने मुझे अपनी बाहों में भर कर अपना मुंह चूमने चूसने दिया। मैंने
उनके चेहरे पर चिपके अकबर चाचू के सूखे वीर्य, नसीम आपा की गांड के रस के थक्के जीभ से चाट चाट कर साफ़ कर दिए। फिर
मैंने अपनी जीभ की नोक उनके नथुनों में घुसा कर चाचू का सूखा वीर्य चूसने लगी। मैंने अपनी लार नसीम आपा के नथुनो में बहने दी।
नसीम आपा ने अपनी सुंदर नासिका को सिकोड़ कर ज़ोर से झींक मारी। मैंने उनकी नासिका को तैयारी से अपने मुंह में भर लिया
था। जब मैं संतुष्ट हो गयी की नसीम आपा की नासिका उनके अब्बू के वीर्य से साफ़ हो गयी है तभी मैंने उसे अपने गीले मुंह से
आज़ाद किया।
"आपा कैसी रही कल की रात? ,"शानू जिसने उनका शरीर वैसे ही चूस चाट कर साफ़ किया था बेचैनी से बोली।
"हाय शानू हाय सीमा क्या बताऊँ। कल की रात तो ज़न्नत की सैर थी। काश खुदा इस रात को हमेशा मेरे दिमाग़ में चलती तस्वीर
की तरह गोद दे ," नसीम आपा के चेहरे पर छाये संतोष ,फख्र और प्यार को समझने के लिए , कोई शब्द भी नहीं थे , उसके
विवरण करने के लिए।
नसीम आपा ने बारी बारी से शानू और मुझे चूमा और फिर कहा ,"नेहा तुझे तो मैं पहले ही अपनी ज़िंदगी से भी ज़्यादा प्यार देने का
वायदा कर चुकीं हूँ। पर अब तो तू मेरी खून से भी करीब हो गयी है। तू और शानू अब मेरी नहीं बहनें हैं जिसके ऊपर मैं अपनी ज़िंदगी
बिखेर दूंगीं ," नसीम आपा की आवाज़ में भावुकपन था।
"आपकी ज़िंदगी तो हमें अपने से भी प्यारी है नसीम आपा। आपकी उम्र को हज़ारों साल और जुड़ जाएँ। ,"मैंने भी रुआंसी होते हुए
कहा।
"आपा आप ऐसी बात करके क्यों रुला रहीं हैं हमें ," शानू तो बिलकुल रोने जैसी हो गयी।
"माफ़ करो अपनी पागल बड़ी बहन को। मैं तो कल रात की सौगात का शुक्रिया अदा कर रही थी ," नसीम आपा ने हम दोनों को
प्यार से चूम कर कहा।
" नसीम आपा क्या चाचू ने चटाई इस्तेमाल की?" मैंने नसीम आपा के सूजे नीले धब्बों से सजे उरोज़ों को सहलाते हुए पूछा।
"हां नेहा। हाय रब्बा कैसे जादुई चटाई है वो। पता है अब्बू ने अम्मी के कहने से खरीदी थी। इस चटाई पर अब ने अम्मी को हज़ारों
बार चोदा है ," नसीम आपा किलक कर बताने लगीं।
" क्या आपने चाचू का सुनहरी शरबत पिया ?, " मैं उत्सुकता से मरी जा रही थी।
" हां नेहा खूब जी भर कर पिया और पिलाया भी। तो बात और भी आगे बढ़ा दी मैं तो शर्म से मर गयी उनकी चाहत सुन कर
....... ," नसीम आपा को बीच में टोक दिया शानू ने।
"आपा सब कुछ शुरू से बताओ ना। बिना कुछ भी छोड़े। नेहा तू बीच बीच पूछ ," मास्टरनी शानू ने हम दोनों को डाँटा।
हम दोनों मुस्कुरा कर चुप हो गए और नसीम आपा अपने अब्बू के साथ बितायी पहली रात की कहानी विस्तार से सुनाने लगीं ।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
Posts: 639
Threads: 9
Likes Received: 386 in 201 posts
Likes Given: 1
Joined: Dec 2018
Reputation:
293
Update 36
नसीम आपा और अब्बू
मैं जब तक अब्बू के कमरे के दरवाज़े पर पहुंची तब तक मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से शर्म और डर से धक् धक् कर रहा था। मेरे कदम
यकायक एक एक टन जैसे भारी भारी हो गए। पर जैसे वायदा किया था । उसे निभाते हुए मैं डरती डरती अब्बू के कमरे में
दाखिल हो गयी। अपने पीछे मैंने उनके कमरे का दरवाज़ा फिर से बन्द कर दिया। अब्बू ने कमरे की रौशनी बहुत फीकी धीमी कर
रखी थी।
जैसे जैसे मेरी आँखें बेहद हल्की रौशनी की आदी हुईं तो मैं शर्म से लाल हो गयी और रोमांच से मेरा बदन काँप उठा। अब्बू पूरे
नंगे खड़े थे और मेरी ओर देख रहे थे। शायद मेरी शर्म और मेरे डर को कम करने के लिए। उन्होंने अपनी बाहें मेरी ओर फैला दीं।
मैं हौले हौले उनकी अब्बू की ओर बढ़ रही थी। उनकी खुली बाहों को देखा कर मेरे कदम खुद-ब -खुद तेज़ हो चले। न जाने कब
मैं अपने अब्बू की बाहों में समां गयी। अब्बू ने ने अपनी मुड़ी तर्जनी से मेरी थोड़ी ऊपर उठाई और अपने तपते होँठ मेरे जलते होंठों
के ऊपर रख दिए। अब्बू मुझसे लगभग फुट भर लंबे हैं। मैंने पंजों पे खड़े हो अपने हाथ उनकी गर्दन के इर्द गिर्द पहना दिए।
जैसे ही अब्बू ने मेरे होंठों को अपने होंठों से दबाया मुझसे रुका नहीं गया। मैं ज़ोरों से फुसफुसाई ,"अब्बू , अब्बू अब्बू। "
माफ़ करना नेहा मैं भूल गयी कि मुझे कुछ देर तक नाटक करना था की मैं, तू थी।
( मैंने जल्दी से नूसी आपा को चुम कर बिना बोले कहा कि वो सब तो अकबर चाचू और उनके शर्म और हिचकिचाहट को ढकने
भर का नाटक था। दोनों को खूब अच्छे से पता था कि कौन कौन था। नसीम आपा ने मेरे चुम्बन को स्वीकार कर मुस्कुरा दीं और
आगे कहानी बढ़ाने लगीं ।)
मेरा मुंह खुद-ब -खुद खुल गया। जैसे ही अब्बू की जीभ मेरे मुंह में घुसी बदन में तहलका मच गया। मैंने भी विलास भरी मस्ती
में अपनी जीभ अब्बू की जीभ से भिड़ा दी। कभी मैं अब्बू के मुंह की तलाशी लेती तो कभी अब्बू मेरे मुंह को रालश रहे थ। अब्बू
मुझसे इतने ऊँचें है कि उनका मीठा गरम थूक हमारे खुले मूंह में ढलकने लगा। मैं बिना चुम्बन तोड़े उसे गटक कर पी गयी।
अब्बू के हाथ ना जाने कब मेरी चोली के बटनों के ऊपर पहुँच गए थे। और उन्होंने एक एक करके सारे बटन खोल दिए थे। अब्बू
ने प्यार से हौले हौले मेरी चोली मेरे कन्धों से खिसक दी मेरी बाहें उनकी चाहत और मर्ज़ी समझ कर खुद नीचें हो गयीं। मेरी
चोली मेरे और अब्बू के बीच में फर्श पर लहराती हुई गिर गयी।
जैसे ही अब्बू के फावड़े जैसे हाथों ने मेरे बड़े उरोज़ों को सहलाया मैं ज़ोर से सिसक उठी। अब्बू के हाथों से मेरी चूचियों को छूने
भर से मेरी चूत गनगना उठी। ऐसा असर किसी लड़की के ऊपर सिर्फ उसके अब्बा ही ढा सकतें हैं। इसीलिए तो बाप और बेटी
के बीच में विलासपन या संसर्ग वर्जित और नाजायज़ है , इसमें इतना मज़ा है सिर्फ सोचने भर में। जब असलियत में अब्बू ने मेरे
नंगें उरोज़ों को सहलाया तो उस विलासता का कोई ब्योरा सीधे लफ़्ज़ों में नहीं हो सकता।
मैं रोमांच से हिल उठी और सिवाय हलके से ' अब्बू अब्बू ' फुसफुसाने के कुछ और सोचने, करने में बिलकुल बेकार थी।
अब्बू ने फिर से अपना मुंह मेरे सिसकते मुंह के ऊपर डगक दिया और धीरे धीरे मेरे दोनों स्तनों को सहलाने लगे। मेरे घुटने जैसे
तेल से चिकने फर्श पर फिसलने जैसे हो गए।
अब्बू अपने हाथों से कभी मेरी चूचियों को सहलाते, कभी मेरी कमर को। कभी उनके हाथ मेरे सख्त तन्नाए मम्मों को अपनी
हथेली से सहलाया तो मैं इतने ज़ोर से काँप उठी कि यदि अब्बू ने मुझे नहीं पकड़ा होता तो मैं फर्श पर गिर जाती।
अब्बू ने मुझे गुड़िया की तरह बाहों में उठाया और बिस्तर पे इतने प्यार से लिटाया जैसे मैं कांच से बनी नाजुक गुड़िया थी। जैसे ही
उनके हाथ मेरे लहँगे के नाड़े पे पहुंचे तो मेरे बदन की कम्पन और भी तेज़ हो गयी। अब उस रात बाप-बेटी के बीच में बनायीं हर
दीवार के गिरने का वक़्त आ गया था। अब्बू ने धीरे धीरे मेरे लहँगे का नाड़ा खोल कर मेरे लहँगे को प्यार से हलके हलके खींच
कर उतार दिया।
अब्बू ने ना जाने कितनी बार मुझे कॉलेज के लिए या सोने करते हुए मेरे कपड़े उतरे थे। लेकिन उनका बचपन में मेरे कपडे उतारने
में और उस रात मेरी चोली और लहँगे को उतारने में ज़मीन आसमान का फर्क था। उस रात मैं उनकी बेटी और औरत दोनों थी।
और इस असलियत के अहसास भर से मेरे बदन में वासना की बिजली कौंध गयी।
वाकई नेहा तूने अपने बड़े मामा तो चुदाई तो की है पर देखना जब तू अक्कू चाचू हमबिस्तर होगी तो तू पागल हो जाएगी।
अब मैं अब को तेज़ रौशनी में देखना चाह रही थी। मैं उस रात का हर लम्हा अपने दिमाग पे सारी ज़िन्दगी के लिये छापना
चाहती थी।
"अब्बू कमरे की रौशनी बड़ा दीजिये। आपकी बेटी आज सारी रात को खुल के देखना चाहती है ,"मैंने हलके से शरमाते हुए अब्बू
से कहा।
"नूसी बेटा मैं भी यही चाह रहा था। पर तुम्हारी शर्म की वजह से हिचक रहा था ," अब्बू ने प्यार से मेरे खुले मुंह को चूमा ।
" अब्बू शर्म तो आ रही है पर अपने अब्बू के साथ हमबिस्तर होने का पहला मौका तो किसी भी बेटी के लिए सुहागरात की तरह
होता है। आज की रात को तो आप मेरी यादगार रात बनाने वाले हैं। आज रात मुझे अपने अब्बू का सुंदर चेहरा खूब तेज़ रौशनी
में देखना है। आज की रात के बारे में तो जबसे तेरह की थी तबसे सोच रही हूँ। छह साल की दबी चाह है अब्बू आपकी बेटी
की।" मैं अब यकायक खुलने लगी।
जब अब्बू ने भी खुल कर जवाब दिया तो मेरी सारी शरमोलिहाज़ और सारा डर अब्बू की चाहत में बदल गया, "नूसी बेटी मैं भी
छह साल से अपनी बड़ी बेटी की चाहत में जल रहा हूँ। यह रात ठीक तुम्हारी मम्मी के साथ पहली रात की तरह यादगार बन
जाएगी मेरे लिए भी। "
अब्बू ने कमरे की रौशनी पूरी तेज़ कर दी। मैंने अपने अब्बू का साढ़े छह फुट ऊँचा एकसौ तीस किलो भारी मांसल घने बालों से
भरा बदन देखा तो मेरी चूत में जैसे रस की बाढ़ आ गयी। अब्बू की तोड़ उनके मर्दाने बदन को और भी परवान चढ़ा रही थी। उनकी
पेड़ के मोटे तने जैसी जांघों के बीच में हाथी की तरह झूलता हाथ भर लंबा बोतल जैसा मोटा लन्ड। उफ़ रब्बा मेरी तो सांस मेरे
गले में ही अटक गयी। अब्बू भी मेरे नंगे बदन को एकटक घूर रहे थे।
अब्बू ने मेरे चहरे को अपने हांथों में बाहर कर कहा ," नूसी बेटी तुम तो जन्नत की अप्सरा जैसी खूबसूरत हो। "
"अब्बू , यह बदन ,यह शक्ल जैसी भी है आपकी और अम्मी की देन है ," मैं फुसफुसा कर बोली , "मैं तो अल्लाह की
शुक्रगुज़ार हूँ कि मुझे और शानू को आपके जैसा मरदाना प्यारा सुंदर अब्बू और हूर जैसी सुंदर अम्मी से पैदाइश मिली है। " मैंने
बिना हीचक अपने दिल का राज़ खोल दिया।
अब्बू ने धीरे धीरे मेरे बिस्तर पर फैले बदन के ऊपर अपना भारी बदन पूरे वज़न से डालते हुए मेरे चेहरे को चूम कर कहा , "तो
नूसी बेटी आज रात तुम अपने अब्बू की बेटी के अलावा उनकी औरत बनने का वायदा कर रही हो ,"अब्बू ने प्यार से मुझसे खुल
कर कहलवाने के लिए पूछा।
"अब्बू, यह तो आपका प्यार है कि आप जैसा मर्द अपनी इस बेटी को अपनी औरत का दराज़ देने को तैयार हैं। आपकी बेटी मरते
दम तक आपकी बेटी और औरत बन कर आपके प्यार और आपकी इज़्ज़त को अपनी जान से भी ज़्यादा ऊँचा दर्ज़ा देगी।
"मैंने अपनी बाहों को अब्बू की गर्दन का हार बना दिया।
अब्बू के होंठों में मेरे होंठों को कस कर चूमते हुए एक बार फिर से मेरा मुंह अपनी जीभ से खोल कर मेरा मुंह का हर कोना दिल खोल कर चूसने लगे। मैं भी पगला कर उनके दीवाने गीले चुम्बन
का जवाब उतने ही ज़ोर से देने लगी। मेरे मुंह में जैसी ही अब्बू की मीठी गरम लार इकट्ठे हो जाती मैं उसे स्टॉक लेती पर बिना चुम्बन तोड़े।
मेरी चूचियां अब्बू के मर्दाने बालों भरे सीने के नीचे कुचलीं हुईं थीं। उनके सीने की रगड़ से मेरे दोनों चुचुक गनगना रहे थे। मैं बिना सोचे अपनी चूत को अब्बू पेट से रगड़ रही थी।
अब्बू ने चुम्बन तोड़ कर मेरे माथे, पलकों को चूमा। फिर उनका गरम मुंह मेरे कानों के मुलायम लोंको को चूसने लगा तो मेरा दिल धकधक करने लगा। अब्बू जैसे मेरे बदन के सारे वासना को
उकसाने वाले हिस्सों को जानते थे। उनकी जीभ की नोक ने मेरे कान की सुरंग को भी नहीं छोड़ा। फिर उनकी जीभ ने मेरी गर्दन को कामुक चुम्बनों से ढक दिया। उनकी जीभ ने मेरी गर्दन को
सहलाया और होंठों से खाल को चूसा। मेरे चूत से रस की धार बह चली थी।
फिर उनकी जीभ की नोक ने मेरी फड़कती नाक की पूरे नक़्शे को धीरे धीरे सहलाया। फिर अब्बू ने मेरी पूरी नाक को अपने मुंह में भर कर अपनी जीभ की नोक को कभी एक नथुने में या फिर दुसरे
नथुने में घुसेड़ कर उसे चूत की तरह चोदने लगते। मैं अब वासना से जल रही थी। और हलके हलके सिसक रही थी।
अब्बू ने हलके हलके अपने चुम्बन मेरे बदन के नीचे हिसों की तरफ बड़ा दिए। अब्बू ने मेरे सीने को चूम और फिर एक हाथ से मेरे एक स्तन को सहलाते हुए दुसरे चूचुक को जीभ से हिलाते हुए उसे
अपने मुंह ने भर कर चूसने लगे। उनका दूसरा हाथ मेरे दूसरे चूचुक को सहलाते, कभी ऊँगली और अंगूठे के बीच में हलके हलके दबाते। मैं अब खुल कर सिसक रही थी। अब्बू अपनी बेटी को अपने
अब्बू और मर्दाने प्यार से पागल बना रहे थे। मेरे बदन में आग लग रही थी और उसे बुझाने की चाभी अब्बू के पास थी।
अब्बू ने मेरे दोनों चूचियों और चूचुकों को खूब क्षुमा, चूसा और सहलाया। मैं तो छह रही थी कि अब्बू अपने फावड़े जैसे बड़े हाथों से मेरे दोनों चूचियों को मसल मसल कर सूज दें। पर अब अपनी
बेटी के साथ पहला संसर्ग अपने ही तरीके से करने वाले थे। मैं तो जो अब्बू करते उस से इतनी ही पागल हो जाती।
अब अब्बू के चुम्बन मेरे उभरे गोल पेट के ऊपर छाने लगे। उन्होंने अपनी जीभ से मेरी गहरी नाभि को खूब कुरेदा चूमा। जब अब्बू के चुम्बन जाँघों के ऊपर पहुंचें तो मैं भरभरा कर झड़ने के लिए तैयार
थी। बस अब्बू को मेरी जलती चूत की ऊपर एक बार ही अपना मुंह लगाना भर था।
अपर अब्बू ने अपनी बेटी की वासना की आग को और परवान चढ़ाने के लिए मेरी चूत को अकेला छोड़ कर मेरे मांसल गुदाज़ जाघों को चूमते हुए नीचे जाने लगे। अब्बू ने मेरी सीधी जांघ और टांग
की एक एक इंच को चूमा। जब उनके चुम्बन मेरे घुटने के पीछे की नाज़ुक संवेदनशील खाल को चुम रहे थे तो मैं तो मस्ती से बौखला गयी।
मेरा सारा बदन गनगना उठा था। मैं अब बिलकुल तैयार थी। यदि उस वक़्त अब्बू ने एक धक्के में अपना घोड़े जैसा लन्ड मेरी चूत में ठूंस दिया होता तो मैं एक लम्हे में झड़ जाती। पर अब्बू मेरे
बदन को सारंगी के तारों की तरह बजा रहे थे।
आखिर में अब्बू ने मेरे दाएं पैर को गीले चुम्बनों से भर कर मेरे अंगूठे को अपने मुंह में भर लिया। उन्होंने मेरे दाएं पैर के अंगूठे को चूस चूस कर मुझे पागल। मुझे उस रात पता चला कि मेरे पैर की
उँगलियों और अंगूठे भी मेरे वासना के बटन हैं। अब्बू ने मेरे पैर की सारी उंगलीयों को उतने प्यार चूस चूस आकर मुझे दीवानी कर दिया। फिर अब्बू ने मेरे बाएं पैर को भी वैसे ही प्यार से चूम चूस।
उनके चुम्बन फिर मेरे बाएं टांग और जांघ के ऊपर कहर ढाते हुए मेरे पेंडू की ऊपर पहुँच गये।
इस बार अब्बू ने अपनी जीभ से मेरी घनी घुंघराली झांटों को फैला कर मेरे भगोष्ठों को गुलाब की पंखुड़ियों की तरह अलग अलग कर दिया। अब्बू के जीभ की नोक ने मेरी चूत की गुलाबी सुरंग के
मुहाने को सहलाया। मैं हलके से चीख उठी मस्ती में ," अब्बू अब्बू हाय रब्बा अब्बू । "
अब्बू ने मेरी गुदाज़ जांघों को मोड़ कर फैला दिया। अब मेरी रस से भरी चूत अब्बू के मुंह के लिए पुरी खुली थी। अब्बू ने मेरी जांघों को सहलाते हुए मेरी चूत को अपनी जीभ से कुरेद प्यार से
हलके से। उन्होंने मेरे दाने को बिलकुल अकेला चूड़ दिया था। मैं तड़प रही थी झड़ने के लिए। मैं झड़ने के कगार पे थी बस अब्बू की जीभ को एक बार मेरे भग-नासे को कुरेदने भर था। पर अब्बू ने
अपनी बेटी की वासना को ऐसी आसानी से नहीं खड़ने देने वाले थे उस रात।
अब्बू ने जब मेरी वासना की आग को बेकाबू होते देखा तो अपनी जीभ से मेरी जांघें चूमने लगे। मैं तपड़ रही थी। पर मेरे झड़ने की चाहत और अब्बू का प्यारा सितम मुझे और भी जला रहा था।
अब्बू ने एक बार फिर से मेरी चूत चूमने चाटने लगे। उन्होंने मेरी चूत की सुरंग को अपनी गोल गोल मोड़ी जीभ से चोदा। फिर उन्होंने मेरे तन्नाए दाने को चूसा चाटा। जैसे ही मैं झड़ने वाली थी ना
जाने कैसे अब्बू जान गए और उन्होंने मेरी चूत को अकेला छोड़ दिया।
मैं अब झड़ने की चाहत से जल रही थी। अब्बू ने कई बार मुझे झड़ने के कगार पे ले कर प्यासा छोड़ दिया।
"अब्बू मेरे अब्बू, अब नहीं रहा जाता अब्बू। अब अपनी बेटी के ऊपर इतना प्यारा सितम बन्द कीजिये और झाड़ दीजिये मुझे अब्बू ……….. ,” मैं बिलबिला उठी थी।
अब्बू ने एक बार फिर से अपना पूरा भारी भरकम बदन मेरे ऊपर डाल दिया। उन्होंने मेरे पसीने की बूंदों से सजे मुंह को जी भर कर चूमा। उन्होंने ममेरी बगलों को भी खूब चटखारे मारते हुए चूसा। मैं
अब्बू के चूमने से मस्त पड़ी थी और मुझे पता ही नहीं चला। ना जाने किस लम्हे में अब्बू मोटे सेब जैसे सुपाड़े को मेरी चूत के दरवाज़े के ऊपर टिका दिया।
मेरी वासना से भरी आँखें अब्बू की आँखों से अटक गयीं।
अब्बू ने प्यार से धीरे से अपना हाथी जैसा लन्ड अपनी बेटी की चूत में ऐसे घुसाया जैसे मेरी चूत इतनी नाज़ुक है की थोड़े से भी ज़ोर से फट
जाएगी।
वो लम्हा मुझे और अब्बू को हमेशा याद रहेगा। अब्बू बहुत धीरे धीरे एक एक इंच करके अपना लन्ड मेरी चूत के बहुत प्यार से डालने लगे। हम
दोनों बाप-बेटी की आँखें एक लम्हे के लिए भी जुदा नहीं हुईं। मेरी चूत अब्बू के बोतल जैसे मोटे लन्ड के ऊपर फैलने लगी। उनका मोटा सूपड़ा
अपनी बेटी की चूत में घुसने लगा। अब्बू के घोड़े जैसे हाथ भर लंबे लन्ड को बहुत देर लगी एक एक इंच करके जड़ तक मेरी चूत को भरने में।
अब्बू के सुपाड़े ने मेरे उपजाऊ गर्भाशय को अंदर धकेलते हुए उनके महालन्ड के लिए जगह बनायीं।
मेरा दिमाग़ वासना से तो जल ही रहा था। पर अब इस ख्याल से कि मेरी चूत को भरता फैलता हुआ लन्ड मेरे अब्बू का है। उस अब्बू का
जिसके लन्ड के लन्ड के बीज से मैं अपनी अम्मी के गर्भ में बनी थी। अब वोही लन्ड मेरे उपजाऊ गर्भाशय को अपने उसी बीज से सींचेगा। मैं इन
ख्यालों से और भी गरम हो गयी।
अब्बू का लन्ड आखिर जड़ तक मेरी चूत में थंस गया था। मैं इस ख्याल से ख़ुशी से पागल हो गयी।
"अब्बू मैं अब आपकी औरत बन गयी हूँ। आपका लन्ड आपकी बेटी की चूत में पूरा घुस गया है। हाय अब्बू क्यों हमने इतने साल बर्बाद किये ?"
मैं ख़ुशी और वासना के बुखार से जलते हुए बुदबुदाई।
"बेटी जो खुद की मर्ज़ी उसे हमें मानना पड़ेगा। अब मेरी बेटी वाकई मेरी बेटी और औरत बन गयी है ," अब्बू ने मेरे माथे के ऊपर चमकती
पसीनों की बूंदों को प्यार से चाट लिया।
"अब्बू अब अपनी बेटी और औरत को खूब चोदिये अपने लन्ड से। अब्बू क्या पता अल्लाह की मर्ज़ी से आपके वीर्य से मेरा गर्भ भर जाए ?" मैं
अब हर आने वाली मुमकिन घटना के ख्याल से ख़ुशी से भर उठी।
"बेटी क्या आदिल को यह अच्छा लगेगा ?"अब्बू भी इस ख्याल से खुश हो गए थे।
"अब्बू अब आप मुझे चोदिये। आदिल आपको अपने अब्बू की तरह प्यार करतें हैं। और फिर नेहा है ना अपना जादू चलाने के लिए," मैं अब
अब्बू से चुदने के लिए तड़प रही थी।
"बेटी आज रात तो मैं तुम्हें सारी रात चोदूंगां,"अब्बू ने उनका लन्ड एक एक इंच करके मेरी चूत से बाहर निकलने लगा। मेरी फट पड़ने जैसी
फ़ैली चूत खली खली महसूस करने लगी। मेरी चूत में जब सिर्फ अब्बू का सूपड़ा भर रह गया था तब उन्होंने पहले की तरह एक एक इंच करके
अपना लन्ड एक बार फिर से मेरी चूत में डालने लगे। जैसे ही उनकी झांटें मेरे दाने से रगड़ीं मैं भरभरा कर झड़ गयी।
"अब्बू …….. ऊ ………. ऊ ………. ऊ मैं झड़ गयी ……… ई ……… ई …………. ई ………ई अब्बू …….. ऊ ……… ऊ ……… ऊ ……….
ऊ ," मैं झड़ने की ख़ुशी और विलासता से चीख उठी।
"नूसी बेटी अभी तो तुम कई बार झड़ोगी ,"अब्बू ने मेरी फड़कती नाक को अपने मुंह में भर लिया और मेरी चूत को उसी धीमी लंबी चुदाई से
चोदने लगे। अब्बू का लन्ड मेरी चूत की हर नन्हे हिस्से को अपने लन्ड से रगड़ रहा था।
मैं वासना से पागल हो गयी। मेरे अब्बू का लन्ड आखिर चूत में था यह ख्याल ही दीवाना करने के लिए। पर अब्बू का लन्ड जिस तरीके से मुझे
चोद रहा था वो बहुत अनोखा था। धीमा पर ज़ोरदार। धीमा पर हर धक्के से मेरा गर्भाशय और भी पीछे धंस जाता।
मैं अब बिना रुके झाड़ रही थी। मेरे झड़ने की लड़ी बन चली थी। और अब्बू ने मेरी वासना की आग के ऊपर तेल डालने के कई तरीके ढूंड। जब
उनका मुंह और जीभ जब मेरी नथुनों को नहीं चोद रहा था तो मेरी पसीने से भीगी बगलों को चूस रहा था। जब मेरी बंगलें उनके थूक से गीली
हो जातीं तो अब्बू का मुंह मेरे दोनों चूचियों और चूचुकों को चुम और चूस रहा था।
सबसे ऊपर उनका लन्ड बिना रुके उसी दिमाग़ को पागल कर देने वाली धीमी रफ़्तार से मेरी चूत चोद रहा था। और मैं झरने की तरह लगातार
झड़ रही थी।
"अब्बू ……. अब्बू ………. अब्बू …….. आह ……. आनन्नन …….. आनह चो …… दी ……. ये ……. अब्बू ………. ऊ ,"मैं झड़ते हुए
चीखी।
आखिर मैं इतनी बार झड़ चुकी थी कि मैं गाफिल होने लगी। अब अब्बू ने यकायक चुदाई की रफ़्तार बदल दी। उन्होंने मेरी जांघें अपनी ताक़तवर
बाँहों के ऊपर डाल कर पीछे धकेल दीं। उन्होंने अपना लन्ड सुपाड़े तक निकाल कर एक डरावने धक्के से जड़ तक ठूंस दिया। यदि मैं अनेकों
बार झड़ने से पहले ही थकी नहीं होती तो मेरे चीख़ तुम लोगों के कमरे में भी गूँज उठती।
अब्बू ने इस बार जो बेदर्दी सी चोदना शुरू किया तो धीमे ही नहीं हुए। उनका मेरी रस से लबालब चूत को रेल के से इंजन के पिस्टन की
रफ़्तार से चोद रहा था। मेरी चूत से फच फच की आवाज़ें मेरे अब्बू की भयंकर चुदाई का गाना गया रहीं थीं।
मैं अब और भी ज़ोर से सिसकने लगी और मेरे झड़ने की लड़ी और भी तेज़ हो गयी।
अब अब्बू मेरी नथुनों को पागलों की तरह अपनी जीभ से चोद रहे थे और मेरी चूत बेरहमी से अपने घोड़े जैसे लन्ड से। और मैं हर कुछ लम्हों में
बार बार झड़ रही थी। मैं इतनी वासना के हमले से पगला रही थी। मेरा बदन अब्बू के बदन-तोड़ धक्कों से तूफ़ान में पत्तों की तरह हिल रहा था।
ना जाने कितनी देर तक अब्बू ने मुझे चोदा उसी बेरहम रफ़्तार से। जब अब्बू ने अपने लन्ड से अपने गरम उपजाऊ वीर्य की बारिश मेरे उपजाऊ
गर्भाशय के ऊपर शुरू की तो मैं इतनी थक चुकी थी कि अब्बू के वीर्य और मेरे अण्डों की शादी का ख्याल भर ने मुझे गाफिल कर दिया। ना
मालूम कितने फव्वारे मारे अब्बू के लन्ड ने मेरे गर्भाशय के ऊपर मैं लगभग बेहोश हो गयी थी।
जब मैं जगी तो अब्बू के भारी प्यारे बदन ने मुझे बिस्तर के ऊपर दबा रखा था। मैंने पागलों की तरह अब्बू के मुंह को चूम चूम कर
गीला कर दिया।
"अब्बू माफ़ कर दीजिये मैं तो आपकी चुदाई से गाफिल हो गयी ," मैंने अब्बू की मर्दानी नाक की नोक को चूमते हुए कहा।
"बेटी आज रात कौन सोने देगा मेरी बेटी को ," अब्बू ने प्यार से कहा।
मैं तो यह ही सुनना चाहती थी। आखिर यह मेरी और अब्बू की ' सुहागरात 'थी।
"अब्बू अब मेरी बारी है आपको प्यार करने की ,"मैंने अब्बू से दरख्वास्त की।
अब्बू ने जब अपना लन्ड मेरी मेरे रस और उनके वीर्य से भरी चूत से निकाला तो एक लंबी धार बिस्तर पर फ़ैल गयी।
मैंने अब्बू को चित्त लिटा दिया। मैं उनके भारी-भरकम शरीर के ऊपर चढ़ गयी। पहले मैंने उनके मर्दाने चेहरे को अपने नन्हें हाथों में भर
कर दिल भर कर चूमा। मैंने उनकी पलकें , उनका चौड़ा माथा , उनकी छोटी दाढ़ी से ढकी गर्दन को गीले मीठे चुम्बनों से इंच इंच गीला
कर दिया। फिर उनके कानों के लोलकियों [इअरलोब्स ] को दिल भर कर चूसा। उनके कान के अंदर मैंने जीभ दाल उन्हें अपने गरम
थूके से गीला कर दिया। अब्बू मेरे बेटी का अपने अब्बू की तरफ अपने प्यार का पागलपन से इज़हार करते देख आकर मर्दानी हल्की
हल्की मुस्कान फेंकतें मुझे प्यार से देखते रहे।
मैंने उनकी मर्दानी सुंदर नाक के शक्ल को अपनी जीभ की नोक नापने के बाद उसे अपने मूंह में भर लिया। फिर अपनी जीभ की नोक
से मन भर कर उनके एक नथुने के बाद दुसरे नथुने को खूब प्यार से चोदा। मेरे थूक से उनकी नाक गीली हो गयी।
मैं फिर उनकी मर्दानी चौड़ी बालों से भरी छाती को चुम्बनों से गीला करने के बाद उनकी बालों से भरी बगलों को भी चूस चूम कर खूब
प्यार किया। उनके बदन से मेरी चुदाई की महनत से पसीने की मंद मंद खुशबू मेरे नथुनों में भर गयी। फिर बारी थी मेरे अब्बो की तोंद
की। मैंने उनकी पूरी बालों से भरी तोंद को खूब चूमा और उनकी गहरी नाभि को जीभ से कुरेदने के साथ साथ उसे थूक से भर दिया।
मैंने अब्बू की मोटे के पेड़ के तने जैसी भारी भारी चौड़ी जाँघों को चूमते हुए उनके पैरों की हर ऊँगली को दिल खोल कर मूंह में भर कर
चूसा।
और फिर मैं अब्बू के जाँघों को चूमते चूमते उनकी जांघों के बीच लटके घोड़े जैसे लंबे मोटे मूसल के ऊपर पहुँच गयी। मैंने उसे प्यार से
थाम के हौले हौले मीठे चुम्बनों से उनके ख़ौफ़नाक पर प्यारे लन्ड के डंडे की पूरी लंबाई चूम ली। अब मैंने अब्बू के लन्ड का मोटा सेब
जैसा सुपाड़ा अपने मूंह में भर कर हलके हलके चूसने लगी। अब्बू का लन्ड सिर्फ आधा खड़ा था फिर भी मुश्किल से मेरे दोनों हाथ उसे
घेर पा रहे थे। जैसे जैसे उनका लन्ड तनतनाने लगा मेरा मूंह और भी खुल गया। मैंने अपनी जीभ की नोक से उनके पेशाब के छेद को
कुरेदने लगी। मेरे नन्हें हाथ अब्बू के घोड़े जैसे लन्ड के तने को सहला रहे थे।
मैंने एक हाथ से उनके बड़े अण्डों जैसे मोटे घने घुंगराले झांटों से ढके फोतों को सहलाने लगी। मैंने अब्बू के लन्ड को चूसना बन्द कर
उनके फोटों के नीचे की मुलायम खाल को चूमने लगी। उनके जांघों और चूतड़ों से उठती मर्दानी खुशबु मेरे नथुनों में भर गयी और मैं
उनके मर्दाने शरीर के नमकीन खारे स्वाद के लिए बैचैन हो गयी। मैंने अब्बू को पलटने के लिए दरख्वास्त की। अब्बू अब पेट के बल
लेते थे। मैंने उनके ऊपर लेट कर अपने फड़कते चूचियों से उनकी बालों भरी कमर की मालिश करने लगी। अब्बू के मुँह से निकली
हलकी सिसकारी ने मेरे दिल और दिमाग़ में ख़ुशी की बिजली सी कौंधा दी। मेरे बड़े भारो उरोज़ उनके कमर और चूतड़ों के ऊपर रगड़
रगड़ कर उन्हें अनोखा मज़ा दे रहे थे।
मैंने उनके मज़बूत भारी बालों से भरे चूतड़ों को फैला कर अपने तन्नाए हुए चुचुकों से उनकी गांड की दरार सहलाने लगी। मैंने अपने एक
चूचुक से उनकी गांड के फड़कते छेद को कुरेदा तो उनके दोनों मांसल चूतड़ फड़क उठे। अब मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उनके फैले हुए
चूतड़ों के बीच में अपना मूंह दबा दिया।
अब्बू की गांड की दरार से उठती खुशबु ने मुझे पागल सा कर दिया। मैंने उनके चूतड़ों के बीच की दरार को अपने जीभ से चूम
चाट कर अपनी लार से नहला दिया। फिर मैंने अब्बू की गांड के छेद को अपनी जीभ से कुरेदने लगी। अब्बू की गांड का मांसल
तंग छेद इतना कसा हुआ था की मैं जितनी भी कोशिश करती फिर भी मेरी जीभ की नोक उसमे नहीं घुस पायी।
लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मेरी जीभ बिना थके और निरुत्साहित हुए अब्बू की गांड के छल्ले को कुरेदती रही। आखिर कार बेटी
के प्यार ने अब्बू की गांड के छेद की बढ़ को निरुत्तर कर दिया।
अब्बू की गांड का छल्ला धीरे धीरे खुलने लगा और मेरी नदीदी जीभ की नोक उनकी गांड के अंदर घुस गयी। अब की गांड की
सुगंध ने मेरे दिमाग में तूफ़ान उठा दिया। मैंने उनकी गांड के कसैले पर मेरे लिए मीठे स्वाद को अपनी जीभ से खोदने लगी।
मेरी दीवानगी की कोई हद नहीं थी अब। हर हदें टूट कर चूर चूर हो गयीं थीं। अब्बू के हलक से उबलती हलकी हलकी
सिसकियाँ मेरे मगज़ में ठप्पे की तरह दागी हों गयीं।
मैंने दिल खोल कर अपने प्यारे अब्बू की गांड को जितनी मेरी जीभ अंदर सकती थी उतनी गहराई तक खूब कुरेदा चाटा।
अब्बू का लन्ड अब टनटना रहा था। मेरा नन्हा नाज़ुक हाथ उनके बोतल जैसे मोटे लन्ड को भी सहलाने लगा।
"नूसी बेटा अब तेरी चूत की खैर नहीं है। तूने आज मुझे पूरा दीवाना कर दिया है ,"अब्बू में भारी आवाज़ में कहा।
"अब्बू तक आपि दीवानगी के मैं आपको और भी दीवाना करना चाहूंगीं। और मेरी चूत तो अब आपकी और आदिल की है।
उसकी खैरखबर आप दोनों की ज़िम्मेदारी है ," मैंने अपनी लालची जीभ अब्बू की गांड से बाहर निकाल ली।
अब्बू ने लपक कर मुझे बिस्तर पर पटक दिया। उन्होंने मेरी भारी मांसल झांगे उठा कर मेरी फ़ैली टांगों के बीच में बैठ गए। मेरी
साँसें भारी हो गयीं। अब्बू ने अपने घोड़े जैसे मोटे लंबे लन्ड का सेब जैसा मोटा सूपड़ा मेरी घनी घुंघराली झांटों से ढकी चूत की
दरार कर गुर्रा कर कहा , "नूसी बेटी अब आप मेरी औरत बन गयी हो। अब आपकी चूत मैं अपने दिल की चाहत से चोदूंगा।
"
"अब्बू दिल खोल अपनी बेटी की चूत चोदिये। आपकी बेटी की चूत अब आपकी और आदिल की है जैसे आपका दिल चाहे
वैसे मेरी चूत मारीये अब्बू ,"मैं चीखी।
मैं वासना के तूफ़ान में उलझी हुई थी और अब्बू मेरी गीली और फड़कती चूत ऊपर अपना लन्ड दबा रहे थे ।
"अब्बू चोदिये अपनी बेटी की चूत। फाड़ डालिये अपनी बेटी चूत अपने घोड़े जैसे लन्ड से ," मैं वासना के बुखार से जलती
हुए चीखी।
अब्बू ने मुझे बिस्तर पर दबा कर अपने भारी भरकम चूतड़ों की ताकत से चूत फाड़ने वाला धक्का मारा। मैं बिलख कर चीख
उठी। अब्बू का लन्ड का सूपड़ा मेरी चूत में धंस गया। अब्बू ने बिना रुके तीसरा दर्दनाक धक्का मारा और मेरी चूत में तीन-
चौथाई ठुंस गया। मैं सुबक रही थी। अब्बू ने मेरे खुले सुबकते मुंह के ऊपर अपना मूंह दबा कर एक और धक्का मारा।उनका
आधा लन्ड अब मेरी चूत में घुस चूका था। मेरी चूत में मीठा दर्द हो रहा था अब्बू के लन्ड की मोटाई से। अब्बू ने अब बिना
रुके एक धक्के के बाद दूसरे धक्के से अपना लन्ड मेरी चूत में जड़ तक ठूंस दिया।
मैं सुबक उठी। अब्बू का लन्ड चाहे जितना भी दर्द कर रहा हो पर मेरी चूत उनके लन्ड को अंदर बेताब थी।
"उउनन्नन अब्बू ऊ ...... ऊ ......, "मैं सिसकने लगी चुदने की बेसब्री से।
अब्बू ने बेटी के दिल की चाहत बिना बोले समझ ली और अपने महाकाय लन्ड को सुपाड़े तक निकल कर पूरी ताकत से मेरी
चूत में ठूंस दिया।
*****************************************
*****************************************
*****************************************
|