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भाग - 21
राजू को देखते ही रज्जो के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
बदले में राजू ने भी उसकी तरफ मुस्करा कर देखा, तो रज्जो ने शर्मा कर अपने सर को झुका लिया और आगे बढ़ने लगी।
शौच के बाद जब राजू घर पहुँचा तो आज उसे ऐसा लग रहा था, जैसे वो इस आलीशान घर का नौकर ना होकर मालिक हो।
जब वो घर पहुँचा तो कुसुम रसोई में खाना बना रही थी।
कुसुम को खाना बनाते देख राजू ने कुसुम से पूछा।
राजू- मालकिन आज आप खाना क्यों बना रही हैं? चमेली काकी नहीं आई क्या?
कुसुम (खाना बनाते हुए)- आई थी.. पर आज उसकी लड़की को देखने वाले आए हुए थे.. इसलिए बोल कर चली गई, अब शाम को ही आएगी।
राजू (थोड़ा निराश होते हुए)- ओह्ह अच्छा।
कुसुम- जा मुँह-हाथ धो ले.. मैं खाना लगा देती हूँ।
राजू पीछे जाकर हाथ-मुँह धोने लगा। जब वो हाथ-मुँह धो कर आगे आया तो कुसुम रसोई में नहीं थी, राजू कुसुम के कमरे में गया, जहाँ पर कुसुम आईने के सामने खड़ी होकर अपने आप को संवार रही थी।
आईने में राजू के अक्स को देख कर कुसुम के होंठों पर कातिल मुस्कान फ़ैल गई- क्या देख रहे हो?
कुसुम ने मुस्कुराते हुए अपने बालों को संवारते हुए पूछा।
राजू- जी वो कुछ नहीं.. मैं तो खाना के लिए आया था।
कुसुम- उम्मह अच्छा रुक ज़रा मैं अपने बालों को बाँध लूँ।
राजू वहीं खड़ा होकर कुसुम को सँवरते हुए देखने लगा। कुसुम भी बार-बार आईने में से राजू की तरफ देख रही थी।
‘मालकिन एक बात बोलूँ.. अगर आप बुरा ना माने तो।’
कुसुम ने पीछे मुड़ कर राजू की तरफ देखा।
कुसुम- हाँ.. बोल ना मेरी जान।
राजू- मालकिन आज आप ये बाल खुले रहने दीजिए।
कुसुम (राजू की बात सुन कर कुसुम के होंठों पर मुस्कान और फ़ैल गई)- क्यों बँधे हुए बाल अच्छे नहीं लगते?
राजू- नहीं वो बात नहीं है.. बस आप इन खुले हुए बालों में बहुत खूबसूरत लग रही हो।
कुसुम उठ कर खड़ी हो गई और राजू के पास आकर उसके गले में अपनी बाँहें डालती हुई बोली- अब तुमने कहा है.. तो चल आज बाल खुले छोड़ देती हूँ।
कुसुम ने नीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी, नीले रंग की साड़ी और ब्लाउज उसके ऊपर बहुत जंच रहा था।
राजू को भी पता नहीं चला, कब उसके हाथ कुसुम की कमर पर आ गए।
दोनों की गरम साँसें एक-दूसरे के होंठों से टकराने लगीं। जिसे महसूस करके कुसुम के होंठ काँपने लगे, राजू ने अपने होंठों को कुसुम के रसीले होंठों पर रख दिया और उसके होंठों को ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा।
कुसुम भी अपना आपा खोते हुए उससे एकदम से चिपक गई, राजू अपने हाथों से उसकी कमर को सहलाते हुए उसके चूतड़ों पर पहुँच गया और साड़ी के ऊपर से उसके चूतड़ों को मसलने लगा।
दोनों एक-दूसरे से ऐसे चिपके हुए थे, मानो जैसे उन्हें कोई अलग नहीं कर सकता.. पर तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।
कुसुम ने अपने होंठों को राजू के होंठों से अलग किया और मुस्कुराते हुए बोली- चलो बाहर कोई आया है.. कुसुम ने बाहर दरवाजे के पास जाकर दरवाजा खोला तो बाहर कान्ति खड़ी थी।
उसे देखते ही कुसुम का पारा सातवें आसमान पर जा पहुँचा।
‘अरे चाची जी आप आईए ना..’ कुसुम ने अपने होंठों पर झूठी मुस्कान लाते हुए कहा।
कान्ति के अन्दर आने के बाद कुसुम ने दरवाजा बंद किया।
कान्ति (अन्दर आकर पलंग पर बैठते हुए)- और बहू क्या कर रही थी?
कुसुम- वो चाची.. खाना बनाया है अभी.. और इसको खाना देने वाली थी।
कुसुम ने राजू की तरफ इशारा करते हुए कहा जो कि कान्ति के सामने नीचे चटाई पर बैठा हुआ था।
कान्ति- क्यों आज वो मरी चमेली नहीं आई क्या?
कुसुम- नहीं चाची जी… आज उसके घर में कोई आया हुआ था।
कान्ति- अच्छा ठीक है।
कुसुम- चाची जी आप भी खाना खायेंगी?
कान्ति- हाँ.. बहू जा मेरे लिए भी ले आ।
कुसुम रसोई में गई और राजू और कान्ति के लिए खाना परोस कर ले आई।
खाना खाने के बाद राजू पीछे अपने कमरे में चला गया।
रात को ठीक से ना सोने के कारण राजू को लेटते ही नींद आ गई।
दोपहर को जब राजू उठ कर अपने कमरे से बाहर आया तो उसने देखा कि कुसुम और चमेली आपस में कुछ बात कर रही थीं और चमेली का चेहरा भी कुसुम की तरह से खिला हुआ था।
कुसुम थोड़ी देर बात करने के बाद आगे चली गई और राजू कुएं के पास आ गया, जहाँ पर चमेली पानी निकाल रही थी।
‘क्या बात है काकी.. आज बहुत खुश नज़र आ रही हो?’
राजू चमेली के पास जाकर कहा।
चमेली (राजू की तरफ मुस्करा कर देखते हुए)- अरे राजू आ ना.. आज एक खुशखबरी है।
राजू- अच्छा बताओ हमें भी तो पता चले।
चमेली- वो रज्जो का रिश्ता पक्का हो गया है।
राजू चमेली की बात सुन कर थोड़ा सा निराश हो गया।
‘अच्छा.. पर अचानक से कैसे?’
चमेली- अब क्या करते.. इतना अच्छा रिश्ता आया था कि मना ही ना कर सके और वैसे भी बेटी माँ-बाप के सर पर बोझ होती है.. जितनी जल्दी शादी हो जाए, हम गंगा नहा आएँ।
राजू- ओह्ह ठीक है.. वैसे बेटी की शादी कब करवा रही हो?
चमेली- 3 दिन में ही चमेली की शादी करवा देंगे।
राजू- अच्छा ठीक है, मैं आगे जाकर मालकिन से पूछ लेता हूँ कि कोई काम तो नहीं है।
चमेली (राजू को पीछे से आवाज़ लगाते हुए) हाँ.. सेठ जी भी आ गए हैं। तुम्हारे बारे में पूछ रहे थे कि कहीं नज़र नहीं आ रहा।
राजू घर के आगे की तरफ आ गया, पर गेंदामल दुकान पर जा चुका था, दीपा और सीमा अपने-अपने कमरों में आराम कर रही थीं और कुसुम रसोई में चाय बना रही थी।
राजू रसोई में जाकर कुसुम के पीछे खड़ा हो गया।
जब कुसुम को अपने पीछे से क़दमों की आहट हुई, तो कुसुम ने पीछे मुड़ कर राजू की तरफ देखा और कुसुम के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
‘उठ गए जनाब..’ कुसुम ने आगे की तरफ मुँह करते हुए कहा।
राजू- हाँ.. वो बाबू जी कब आए।
कुसुम- आए थे चले गए दुकान पर और बाकी अपने-अपने कमरों में आराम कर रहे हैं।
राजू ने आगे बढ़ कर कुसुम को पीछे से बाँहों में भर लिया और उसकी पीठ के खुले हुए हिस्से पर अपने होंठों को रख दिया।
‘आह क्या कर रहा है.. सभी घर में हैं।’
कुसुम ने कसमसाते हुए कहा। राजू ने अपने हाथों को ऊपर ले जाकर कुसुम की चूचियों को हाथों में भर कर मसल दिया।
‘आह छोड़ ना.. क्या कर रहा है.. किसी ने देख लिया तो।’
राजू- पर फिर कब करने दोगी?
कुसुम (राजू के पीछे हटाते हुए)- अरे दो दिन सबर रख.. फिर मुझे चाहे सारा दिन अपनी बाँहों में लेकर रहना.. ठीक..
राजू- दो दिन.. क्या सेठ जी और बाकी सब फिर से बाहर जाने वाले हैं?
कुसुम- नहीं.. वो नहीं.. हम दोनों जाने वाले हैं।
राजू- हम दोनों.. पर कहाँ?
कुसुम- मेरे मायके और तुम्हारे सेठ जी ने कहा कि मैं अकेली नहीं जाऊँगी… तुम भी साथ में चलोगे.. मेरा सामान उठाने के लिए।
कुसुम ने मुस्कुराते हुए राजू को देखने लगी।
राजू भी कुसुम को मस्त निगाहों से देखने लगा।
‘अच्छा अब बाहर जाओ.. मैं दीपा और सीमा को चाय देने जा रही हूँ। अब परसों तक मेरे पास भी ना फटकना.. नहीं तो किसी को शक हो जाएगा।’
राजू रसोई से बाहर आ गया और पीछे बने अपने कमरे में जाने लगा।
पीछे चमेली अभी भी कपड़े धो रही थी।
राजू बिना चमेली की ओर ध्यान दिए अपने कमरे में चला गया, चमेली को ये बात कुछ रास नहीं आई और वो भी उठ कर राजू के पीछे उसके कमरे में आ गई।
चमेली- अरे राजू क्या हुआ..? बड़े खोए हुए से हो?
राजू (एकदम से चौंकते हुए)- कुछ नहीं काकी वो बस थोड़ी तबियत ठीक नहीं है।
चमेली (राजू के माथे पर हाथ लगाकर देखते हुए)- बुखार तो नहीं है.. कहीं आज कल मालकिन तुमसे कुछ ज्यादा ‘काम’ तो नहीं करवा रही है ना?
चमेली ने आँख नचाते हुए कहा।
राजू- नहीं वो बात नहीं, वो कल रात जब बारिश हो रही थी। तब पेशाब करने के लिए बाहर गया तो भीग गया था।
चमेली- ओह्ह.. अच्छा, लो मैं अभी तुम्हारी तबियत रंगीन कर देती हूँ।
ये कह कर चमेली राजू के सामने पलंग पर बैठ गई और राजू के पजामे के नाड़े को खोल कर सरका दिया।
जैसे ही राजू का लण्ड पजामे के क़ैद से बाहर आया, चमेली ने उसे अपनी मुठ्ठी में भर लिया।
‘ये क्या कर रही है काकी? कहीं मालकिन आ गई तो?’
चमेली- अरे तो चुप रह कर मज़ा ले ना.. वो नहीं आएगी। वैसे भी तेरे इस मूसल लण्ड का स्वाद कब से नहीं चखा।
चमेली ने राजू के मोटे लण्ड को देखते हुए कहा और फिर एकदम से झुक कर उसके लण्ड के सुपारे को मुँह में भर लिया और अपनी जीभ की नोक से उसके लण्ड के सुपारे को कुरेदने लगी।
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भाग - 22
राजू का बदन बुरी तरह काँप गया.. मस्ती की लहर उसके पूरे बदन में दौड़ गई।
‘वाह मजा आ गया, तेरे लण्ड का स्वाद चख कर…’ चमेली के राजू लण्ड को मुँह से निकाल कर राजू की ओर देखते हुए कहा और फिर से उसके लण्ड को मुँह में भर कर चूसने लगी।
राजू अपनी अधखुली आँखों से चमेली की तरफ देख रहा था और उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि चमेली उसके मोटे और लंबे लण्ड को आधे से ज्यादा मुँह में भर कर चूस रही है।
चमेली तेज़ी से अपने सर को आगे-पीछे हिलाते हुए, राजू के लण्ड को मुँह के अन्दर-बाहर कर रही थी और राजू भी चमेली के सर को दोनों हाथों से पकड़े हुए… अपनी कमर को हिलाते हुए अपने लण्ड को चुसवा रहा था।
‘ओह्ह काकी मेरा पानी ओह्ह… निकलने वाला है.. ओह्ह और ज़ोर से चूस्स्स साली आह्ह.. अह.. और अन्दर ले..’
चमेली ने करीब 5 मिनट तक राजू के लण्ड को बिना रुके हुए चूसा और राजू के लण्ड ने उसके मुँह में अपने वीर्य की बौछार कर दी।
राजू के पानी की एक भी बूँद उसने बाहर नहीं गिरने दी।
थोड़ी देर बाद जब राजू की साँस सामान्य हुई, तो उसने चमेली की तरफ देखा।
राजू- अरे काकी… आप ‘वो’ पी गईं?
चमेली- हाँ.. और इसमें क्या बुराई है.. तेरे लण्ड का पानी तो मेरे लिए अमृत है।
ये कह कर उसने राजू के लण्ड को अपनी साड़ी के पल्लू से पौंछा और राजू ने अपने पजामा ऊपर करके बाँध लिया।
‘तू भी आएगा ना.. मेरी बेटी की शादी में?’
चमेली ने राजू की तरफ देखते हुए पूछा।
अब राजू उससे क्या कहता.. पर उसने चमेली का मन रखने के लिए उससे ‘हाँ’ कह दिया।
रात के वक़्त की बात थी, राजू खाना खाने के बाद अपने कमरे की तरफ जा रहा था कि गेंदामल ने उससे पीछे से आवाज़ लगा दी, ‘अरे ओ राजू ज़रा सुन तो।’
राजू- जी सेठ जी।
गेंदामल- बेटा.. तू कल अपनी बड़ी मालकिन के साथ उसके मायके जा रहा है, ठीक से तैयारी कर ले, वहाँ तुझे 7-8 दिन तक रहना पड़ सकता है।
राजू- जी सेठ जी।
गेंदामल- अच्छा ठीक है, अब तू जा.. तैयारी कर ले। कल सुबह तुझे निकालना होगा।
गेंदामल की बात सुनने के बाद राजू पीछे अपने कमरा में आ गया।
आज राजू के मन में ढेरों सवाल थे.. आख़िर कुसुम के मायके में भी तो लोग होंगे।
फिर मालकिन ने कैसे कह दिया कि वो सारा दिन मुझसे चुदवाएगी।
क्या ऐसा सच मैं हो सकता है?
अगली सुबह जब चमेली सेठ गेंदामल के घर पहुँचती है, तो सेठ के घर के बाहर तांगा खड़ा देख कुछ सोच में पड़ जाती है।
‘आज इतनी सुबह-सुबह कौन आ गया सेठ जी के घर…?’ ये बोलते हुए चमेली सेठ के घर के अन्दर दाखिल होती है।
जैसे ही वो घर के आँगन में पहुँचती है, तो कुसुम अपने बैगों के साथ तैयार खड़ी हुई दिखती है।
चमेली- आप कहीं जा रही है मालकिन?
कुसुम- हाँ.. वो मैं मायके जा रही हूँ।
चमेली- अचानक से कैसे और अकेली जा रही हैं क्या?
कुसुम (अपने होंठों पर घमंड से मुस्कान लाते हुए)- नहीं तो.. राजू भी साथ जा रहा है।
चमेली ने एकदम से चौंकते हुए पूछा- क्या.. राजू?
कुसुम- हाँ.. वो 7-8 दिन के लिए जा रही हूँ ना… तो सामान थोड़ा ज्यादा है। इसलिए राजू साथ में जा रही हूँ।
चमेली अपने मन में सोचती है कि साली छिनाल की चूत में ज़रूर खुजली हो रही होगी।
‘अच्छा वैसे राजू भी 8 दिन रहेगा?’
कुसुम- हाँ क्यों… तुम्हें कोई परेशानी है?
कुसुम चमेली को आँखें दिखाते हुए बोली।
चमेली घबराते हुए बोली- नहीं मालकिन.. आप ऐसा क्यों सोच रही हैं?
चमेली बिना कुछ बोले रसोई में चली गई।
उसके बाद राजू ने अपना और कुसुम का सारा सामान उठा कर तांगे में रख और खुद तांगे में आगे की तरफ बैठ गया और कुसुम तांगे के पीछे की तरफ बैठ गई।
कुसुम के मायके का गाँव उनके गाँव से कोई 3 घंटे के दूरी पर था.. उस जमाने में बस या और कोई साधन नहीं हुआ करता था क्योंकि एक गाँव से दूसरे गाँव तक लोग तांगे में ही सफ़र किया करते थे और जो लोग ग़रीब थे, वो तो इतना लंबा सफ़र भी पैदल चल कर ही करते थे।
दोपहर हो चुकी थी, तांगे वाला भी गेंदामल के गाँव से ही था।
इसलिए कुसुम और राजू के बीच में पूरे रास्ते कुछ ज्यादा बातचीत नहीं हुई थी।
जब वो कुसुम के मायके पहुँचे तो उनका स्वागत कुसुम की माँ, भाई और भाभी ने किया।
तीनों कुसुम को देख कर बहुत खुश थे, वो राजू और कुसुम को घर के अन्दर ले आए और कुसुम को उसकी माँ ने अपने साथ पलंग पर बैठा लिया और अपनी बहू रेशमा को राजू और कुसुम के लिए चाय नास्ता लाने के लिए कहा। सुरेश कुसुम का भाई भी उनके साथ बैठ गया।
लता (कुसुम की माँ)- और बेटी कैसी हो? आख़िर तुम्हें अपनी माँ की याद आ ही गई।
सुरेश- हाँ दीदी.. आज आप बहुत समय बाद आई हो, आप तो जैसे हमें भूल ही गईं।
कुसुम (मुस्कुराते हुए)- नहीं माँ.. ऐसी कोई बात नहीं है.. वो दरअसल इनको (गेंदामल) काम से फ़ुर्सत नहीं मिलती और आप तो जानती ही हो, वो मुझे अकेले कहीं नहीं भेजते।
लता- अच्छा ठीक है ये छोरा कौन है?
कुसुम- ये.. इसे सेठ जी ने घर के काम-काज के लिए रखा है। अच्छा सुरेश तुम दोनों शादी के लिए कब निकल रहे हो?
सुरेश- जी दीदी बस आपका इंतजार था.. बस अभी ही निकलने वाले हैं। इसलिए तांगे वाले को रोक लिया..
दरअसल सुरेश के साले की शादी थी और वो और उसकी पत्नी 7 दिनों के लिए जा रहे थे, इसलिए उन्होंने कुसुम को यहाँ पर बुलवाया था, क्योंकि उनके पीछे उनकी माँ अपने पति के साथ अकेली रह जाती।
लता के पति यानि कुसुं के पिता की टाँग की हड्डी टूटी हुई थी.. जिसकी वजह से वो चल-फिर नहीं पाता था, इसलिए कुसुम अपनी माँ का कुछ हाथ बटा सके, चाय और नास्ते के बाद सुरेश अपनी पत्नी के साथ अपनी ससुराल जाने के लिए निकल गया, उनके जाने के बाद कुसुम ने अपनी माँ से अपने पिता के बारे में पूछा।
लता- वो अपने कमरे में हैं, जा.. जाकर मिल आ।
कुसुम- अच्छा माँ मैं बाबा से मिलकर आती हूँ.. तुम मेरा सामान मेरे कमरे में रखवा दो।
लता- अच्छा सुन इसको कहाँ पर रखना है.. मेरा मतलब ये कहाँ सोएगा?
कुसुम- माँ पहले तुम मेरा सामान तो रखवाओ। इसके बारे में बाद में बताती हूँ।
ये कह कर कुसुम अपने पिता से मिलने के लिए उसके कमरे में चली गई और लता कुसुम का सामान राजू से उठवा कर दूसरी मंज़िल पर बने हुए उसके कमरे में रखवाने लगी।
कुसुम जब भी अपने मायके आती थी, वो उसी कमरे में रुकती थी, उस कमरे के पीछे वाली खिड़की खेतों की तरफ खुलती थी।
अब कुसुम की माँ और पिता के बारे में कुछ बता दूँ।
कुसुम का बाप राजेन्द्र अपने माँ-बाप की इकलौती औलाद था.. जवानी के दिनों में वो बहुत ही घुम्मकड़ और अय्याश किस्म का इंसान था और वो शादी को बंधन मानता था इसलिए उसने काफ़ी दिनों तक शादी नहीं की..
पर उम्र के बढ़ने के बाद उसे परिवार की ज़रूरत महसूस होने लगी और आख़िर 30 साल की उम्र में उसने लता से शादी कर ली।
लता उससे उम्र में दस साल कम थी और कुसुम उसकी अपनी बेटी नहीं थी।
कुसुम लता की बहन की बड़ी बेटी थी.. जो उसकी शादी से 8 साल पहले पैदा हुई थी, पर कुसुम के माँ-बाप चल बसे..
और लता ने कुसुम को गोद ले लिया था, वो भी शादी के महज एक साल बाद और दूसरे साल सुरेश पैदा हुआ था।
राजेन्द्र की शादी को अभी साल भी पूरा नहीं हुआ था।
जैसे ही सुरेश 18 साल को हुआ तो उसकी शादी करवा दे गई थी, इसलिए 18 साल की उम्र का बेटा होने के बावजूद भी लता सिर्फ़ 38 साल की थी और कुसुम की बड़ी बहन जैसी लगती थी।
भले ही कुसुम उम्र में उससे कुछ साल छोटी थी.. पर दोनों को देख कर दोनों में एक साल का फर्क लगता था।
अपने पिता से मिलने के बाद कुसुम बाहर आँगन में आकर अपनी माँ के साथ बैठ गई और इधर-उधर की बातें करने लगी।
राजू आँगन के एक कोने में बैठा हुआ धूप का आनन्द ले रहा था।
जब लता की शादी को 3 साल बीत चुके थे, तब कुसुम किशोर हो चुकी थी और लता का पति अपनी आदतों से निकल नहीं पाया था।
दिन भर दारू पीना, रण्डीबाजी करना और घूमते रहना यही उसका काम का था।
उन्हीं दिनों की बात है, एक दिन कुसुम जब छोटी थी.. अपने कमरे में सो रही थी.. दोपहर का समय था।
अचानक से उसकी नींद खुली और वो उठ कर लता को खोजते हुए उसके कमरे की तरफ जाने लगी..
पर जैसे ही वो कमरे के दरवाजे पर पहुँची.. तो जो उसने देखा उसे कुछ समझ में नहीं आया।
उनके खेतों में काम करने वाला एक मजदूर बिस्तर के किनारे पर खड़ा हुआ था।
उसकी धोती उसके पैरों में पड़ी हुई थी और वो लता को पीछे से कमर से पकड़े हुए तेज़ी से अपने लण्ड को उसकी चूत में अन्दर-बाहर कर रहा था और लता, ‘ओह्ह..धीरे ओह्ह..’ जैसे मादक सिसकियाँ भर रही थी।
नादान कुसुम समझ रही थी कि वो मजदूर उसकी माँ को मार रहा है और उसने वही खड़े-खड़े रोना शुरू कर दिया।
कुसुम के रोने की आवाज़ सुनते ही, दोनों हड़बड़ा गए।
लता ने अपनी साड़ी को नीचे किया और उस मजदूर को घूरते हुए लुँगी को बांधने के लिए कहा और खुद कुसुम को दूसरे कमरे में ले गई।
‘अरे मेरी प्यारी गुड़िया क्या हुआ तुझे..? रो क्यों रही है?’
कुसुम (सुबकते हुए)- माँ वो कल्लू आपको मार रहा था?
लता- नहीं तो तुमसे किसने कहा.. वो तो मुझे चोट लग गई थी.. इसलिए दवाई लगा रहा था।
कुसुम- माँ ऐसे भी कोई दवाई लगता है अपनी नूनी से।
लता- वो क्या है ना.. मेरे सूसू वाली जगह के अन्दर चोट लगी है ना.. अब चुप कर और ये बात अपने बाबा से मत कहना.. ठीक है, नहीं तो वो भी रोने लगेंगे।
कुसुम- सच माँ.. ज्यादा चोट है।
लता- नहीं.. अब ठीक है..पर ध्यान रखना अपने बाबा से मत कहना।
कुसुम- ठीक है माँ।
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भाग - 23
उस वक़्त नादान कुसुम ना समझ सकी कि लता और कल्लू के बीच क्या हो रहा है..
पर जैसे-जैसे कुसुम सयानी हुई तो उसे सब पता चलता गया।
कल्लू और लता की रंगरेलियाँ जारी थीं, पर कुसुम ने अपना मुँह नहीं खोला।
कई बार तो कल्लू और लता को कुसुम ने देखा और पकड़ा भी.. पर लता जान चुकी थी कि कुसुम उससे बहुत प्यार करती है और वो कुछ नहीं बोलेगी।
दोनों के बीच आम सहेलियों जैसी बातें होने लगी थीं और लता कुसुम को अपने और कल्लू के किस्से खूब सुनाया करती थी, पर कुसुम की शादी के बाद कल्लू को खेतों में काम करते हुए साँप ने डस लिया और उसकी मौत हो गई।
उसके बाद से उसका पति ही उसकी महीने में एक-दो बार चोदता था.. पर लता जैसी गरम औरत को संतुष्ट नहीं कर पाता था।
कुसुम- और सुनाओ माँ.. सब कैसा है? कोई नया शिकार किया कि नहीं…
लता- अरे कहाँ.. तुम तो जानती हो। अब बहू सारा दिन घर में होती है और वैसे भी कल्लू के जाने के बाद तेरे बाबा ने खेतों में कोई ढंग का मजदूर नहीं रखा। मेरी छोड़ तू बता.. दामाद जी तो खूब निचोड़ते होंगे तुम्हें.. कि नहीं?
कुसुम- कहाँ माँ.. क्यों मज़ाक कर रही हो। अब वो तो मरी उस रखैल के कमरे से बाहर ही नहीं निकलते और वैसे भी पहले भी कहाँ कुछ करते थे, दुकान से आकर सो जाते थे।
लता- ये सब छोड़.. ये बता इस लड़के को कौन से कमरे में ठहराऊँ?
कुसुम- वो मेरे कमरे में रहेगा माँ।
लता ने हैरान होते हुए पूछा- अरे तू ये क्या कह रही है.. तू नौकर के साथ एक कमरे में रहोगी?
कुसुम (शर्मा कर मुस्कुराते हुए)- हाँ माँ।
लता (कुसुम के चेहरे पर उभरी हुई ख़ुशी को पढ़ते हुए)- क्या सच कह रही है… तू उस नादान के साथ… मेरा मतलब अभी तो उसकी उम्र ही क्या है?
कुसुम- माँ.. जिसे तुम बच्चा समझ रही हो.. वो तो तुम्हारी चूत को भी सुजा देगा।
लता- धत.. कैसी बेशर्मों जैसी बातें कर रही है। उस लड़के को देख कर तो ऐसा नहीं लगता और वैसे भी अगर किसी को पता चला कि तू उस नौकर के साथ एक कमरे में रह रही है, वो भी मेरे मौजूदगी में… तो लोग क्या कहेंगे.. मैं तो कहीं की नहीं रहूंगी।
कुसुम (अपनी माँ लता के गले में बाहें डालते हुए)- ओह्ह.. माँ तुम भी ना बच्चों जैसी बात करती हो.. तुम्हारे सिवा और कौन जान सकता है.. इस घर में क्या हो रहा है? वैसे भी माँ तुम तो जानती हो अब मेरे जिंदगी में ये सुख के पल कभी-कभार ही आने वाले हैं।
लता (थोड़ी देर सोचने के बाद)- अच्छा.. चल ठीक है, पर जो तू उस छोरे के बारे में कह रही है.. क्या वो सच है?
कुसुम (मुस्करा कर लता की तरफ देखते हुए) अगर यकीन ना हो तो एक बार उसका लण्ड चूत में लेकर देख लो… अगर दो मिनट में झड़ ना जाओ, तो मेरा नाम कुसुम नहीं।
लता (सवालिया नज़रों से कुसुम की ओर देखते हुए)- और तू ये सब बर्दाश्त कर लेगी?
कुसुम- क्यों नहीं.. आख़िर तुमने मेरे माँ ना होने के बावजूद भी इतना प्यार दिया है। तो अगर मेरी किसी चीज़ से तुम्हें सुख मिलता है तो…मुझे क्या ऐतराज हो सकता है?
लता- पर वो क्या मानेगा?
कुसुम- बस माँ.. तुम आज रात का इंतजार करो.. अभी वो भी थका हुआ है, थोड़ी देर बेचारे को आराम करने दो, मैं उससे ऊपर कमरे में छोड़ कर आती हूँ।
कुसुम राजू को अपने कमरे में ले गई और राजू को ऊपर कमरे में आराम करने के लिए बोला और खुद नीचे अपनी माँ के कमरे में आकर लेट गई।
कुसुम तो सो गई, पर कुसुम की बातों ने लता की चूत में आग लगा दी थी।
आख़िर आज कई सालों बाद उसे एक लण्ड मिलने वाला था।
वो भी एक जवानी की दहलीज पर खड़े लड़के के लम्बे लंड का स्वाद मिलने वाला था।
दूसरी तरफ चमेली के घर पर रज्जो की शादी की तैयारी जोरों पर थी।
कल रज्जो की शादी का दिन तय हुआ था, अब आप ज़रा रज्जो की ससुराल के लोगों से मिल लीजिए।
जैसा कि आप जानते ही हैं कि रज्जो के होने वाले पति का नाम रतन है और उसके ससुर का नाम किसन है।
इसके अलावा उसकी ससुराल में उसकी सास कमला और रतन की चाची शोभा है।
शोभा के एक लड़का और एक लड़की है.. दोनों अभी कम उम्र के हैं।
शोभा के पति का देहांत आज से दस साल पहले हो चुका था।
इन सब किरदारों का रोल अपने वक्त आने पर सामने आएगा।
फिलहाल हम कुसुम के मायके का रुख़ करते हैं.. क्योंकि वहाँ आज की रात कुछ ज्यादा ही रंगीन होने वाली है।
उधर लता के घर पर रात के समय था।
सब खाना खा चुके थे और राजू और कुसुम ऊपर अपने कमरा में थे।
राजू कुसुम को बाँहों में भरे हुए उसकी मांसल चूचियों को मसल रहा था।
कुसुम (राजू के हाथों को कुसुम के चूचियों पर से हटाते हुए)- आज नहीं.. आज मैं बहुत थक गई हूँ.. तुम तो दोपहर को खूब सो लिए।
राजू (थोड़ा उदास होते हुए)- अच्छा ठीक है मालकिन.. जैसी आप की मर्ज़ी।
राजू पलट कर बिस्तर की तरफ जाने लगा।
कुसुम (पीछे से राजू को बाँहों में भरते हुए) ओह्ह.. नाराज़ हो गया मेरा बच्चा।
कुसुम की चूचियाँ राजू के पीठ पर धँस गई। कुसुम अपना हाथ आगे लाकर राजू के लण्ड पर ले आई और उसके पजामे के ऊपर से लण्ड को पकड़ कर मसलने लगी।
‘आहह.. मालकिन..’ राजू के मुँह से मस्ती भरी ‘आहह’ निकल गई और आँखें बंद हो गईं।
कुसुम ने दूसरे हाथ से राजू के पजामे के नाड़े को खोल कर उसके लण्ड को बाहर निकाल लिया और लण्ड पकड़ कर पीछे खड़े हुए तेज़ी मुठ्ठ मारने लगी।
कुछ ही पलों में राजू का लण्ड तन कर अपनी औकात पर आ गया।
इस बात से अंजान कि दरवाजे पर खड़ी लता ये सब देखते हुए अपने पेटीकोट के ऊपर से अपनी चूत को मसल रही थी।
लता को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था..राजू का 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लण्ड किसी मूसल के तरह खड़ा हुआ था।
जिसे देखते ही लता की चूत में नमी आने लगी।
अचानक से दरवाजा हिलने की आवाज़ से दोनों चौंक गए।
चौंका तो सिर्फ़ राजू था और कुसुम तो सब जानते हुए बनने का नाटक कर रही थी।
जैसे ही राजू की नज़र लता पर पड़ी.. मानो उसकी गाण्ड फट गई हो।
कुसुम तो कब से पीछे हट कर लता की तरफ पीठ करके सर झुकाए खड़ी थी।
राजू कभी लता की तरफ देखता.. कभी कुसुम की तरफ देखता.. तो कभी अपने झटके खाते हुए लण्ड की तरफ देखता।
‘आज तो मर गया तू..’ राजू ने मन ही मन सोचा, पर अगले ही पल लता के होंठों पर वासना से भारी मुस्कान फ़ैल गई।
जिससे देख राजू उलझन में पड़ गया।
‘वो अपना पजामा ठीक कर।’ लता ने राजू के लण्ड की तरफ इशारा करते हुए कहा।
‘और तुम कुसुम ज़रा बाहर आओ.. ये क्या गुल खिला रही थी?’
यह कह कर लता वापिस चली गई.. कुसुम अपनी हँसी को छुपाते हुए कमरे से बाहर चली गई और राजू वहीं ठगा सा खड़ा रह गया। कुछ पलों के लिए मानो उसके दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया हो।
जब उससे होश सा आया तो उसने लपक कर अपने पजामे को ऊपर किया.. उसका पूरा बदन डर से थरथर काँप रहा था.. अब क्या होगा?
सेठ को पता चला तो वो मुझे जान से मार देंगे… नहीं नहीं.. मैं यहाँ से भाग जाऊँगा।
राजू अपने सर को पकड़ कर बिस्तर पर बैठ गया।
कुसुम के जाने के बाद राजू उस कमरा में ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे वो किसी क़ैद खाने में बैठा हो और अभी बाहर से कुछ लोग आयेंगे और उसकी पिटाई शुरू हो जाएगी।
एक अजीब सा सन्नाटा उस कमरा में फैला हुआ था.. तभी कमरे के बाहर से कुछ क़दमों की आहट हुई।
जिससे सुन कर राजू के हाथ-पैर काँपने लगे.. लेकिन तभी कुसुम कमरे में दाखिल हुई, उसके चेहरे से ऐसा लग रहा था.. जैसे उसको कोई फर्क ना पड़ा हो।
राजू (हकलाते हुए)- क्या.. क्या हुआ मालकिन?
कुसुम (एकदम से सीरियस होकर बिस्तर पर बैठते हुए)- राजू अब सब तुम्हारे हाथ में है.. अगर तुम चाहो तो ये बात माँ किसी को नहीं कहेगी।
राजू- मैं.. पर कैसे मालकिन?
कुसुम- तू एक काम कर.. यहाँ पर बैठ… माँ थोड़ी देर में आ रही हैं। वो तुझ से जो भी कहें कर लेना.. मना मत करना अब सब तुम्हारे हाथ में ही है।
यह कह कर कुसुम बिना राजू से आँख मिलाए कमरे से बाहर निकल गई, एक बार फिर से वो जान निकाल देने वाला सन्नाटा कमरा में छा गया।
राजू को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे।
कुसुम जब सीड़ियाँ नीचे उतर रही थी, तब लता उसे सीड़ियों पर मिली।
दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा और फिर दोनों के होंठों पर वासना से भरी मुस्कान फ़ैल गई।
‘ध्यान से माँ.. छोरे का लण्ड बहुत तगड़ा है।’ कुसुम ने लता के पास से गुज़रते हुए कहा।
कुसुम की बात सुन कर लता सीड़ियों पर खड़ी हो गई।
‘तो मैं कौन सा पहला लण्ड चूत में लेने वाली हूँ।’
कुसुम ने पीछे मुड़ कर लता की तरफ देखा और एक बार फिर दोनों के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई, फिर कुसुम नीचे की ओर चली गई।
उधर कमरे में बैठा, राजू अपनी किस्मत को कोस रहा था कि आख़िर वो कुसुम के साथ यहाँ क्यों आया।
एक बार फिर से कमरे के बाहर से आ रही क़दमों की आहट सुन कर राजू के रोंगटे खड़े हो गए।
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भाग -24
वो जानता था कि अन्दर कौन आने वाला है और वो बिस्तर से खड़ा हो गया।
जैसे ही लता उसके कमरा में आई तो उसने अपने सर को झुका लिया।
लता ने एक बार सर झुकाए खड़े राजू की तरफ देखा, फिर पलट कर दरवाजे को बंद कर दिया।
लता ने अपने ऊपर शाल ओढ़ रखी थी।
दरवाजा बंद होने की आवाज़ सुन कर राजू एकदम से चौंक गया..
उसे समझ में नहीं आया कि आख़िर लता ने दरवाजा किस लिए बंद किया है..
दरवाजा बंद करने के बाद लता ने अपनी शाल उतार कर टाँग दी और राजू की तरफ देखते हुए, बिस्तर के पास जाकर खड़ी हो गई।
अब लता सिर्फ़ नीले रंग के ब्लाउज और पेटीकोट में थी, उसकी कमर पर चाँदी का कमरबंद बँधा हुआ था।
लता का पेट हल्का सा बाहर निकला हुआ था और उसका रंग कुसुम के गेहुँआ रंग के उलट एकदम गोरा था..
उसका पेटीकोट नाभि से 3 इंच नीचे बँधा हुआ था और पेटीकोट के इजारबन्द के ऊपर वो कमर बन्द तो मानो जैसे कहर ढा रहा हो।
राजू ने तिरछी नज़रों से लता की तरफ देखा, जो उसकी तरफ देख कर मंद-मंद मुस्करा रही थी।
अपने सामने खड़ी लता का ये रूप देख उससे यकीन नहीं हो रहा था।
उससे देखते ही, राजू का मन मचल उठा.. पर कुछ करने या कहने के हिम्मत कहाँ बाकी थी..वो तो किसी मुजरिम की तरह उसके सामने खड़ा था।
‘ओए छोरे इधर आ..’ लता ने बिस्तर पर बैठते हुए कहा।
राजू ने एकदम से चौंकते हुए कहा- जी क्या..?
लता- जी.. जी.. क्या लगा रखा है, इधर आकर खड़ा हो…ठीक मेरे सामने।
राजू बिना कुछ बोले लता के सामने बिस्तर के पास जाकर खड़ा हो गया। अब भले ही वो सर झुका कर खड़ा था, पर नीले रंग के ब्लाउज में से लता की झाँकती
चूचियों का दीदार उसे साफ़ हो रहा था, क्योंकि लता उसके सामने बिस्तर पर बैठी हुई थी।
‘क्या कर रहा था..तू मेरे बेटी के साथ?’ लता ने कड़क आवाज़ में राजू से पूछा, जिसे सुनते ही राजू की गाण्ड फटने को आ गई.. पर वो बिना कुछ बोले खड़ा रहा।
‘सुना नहीं.. क्या पूछा मैंने?’
इस बार राजू के लिए चुप रहना नामुनकिन था।
‘वो मैं नहीं.. मालकिन कर रही थीं..’ राजू ने लता की तरफ देखते हुए कहा।
‘अच्छा तो तेरे मतलब सब ग़लती मेरी छोरी की है.. इधर आ..’
लता ने राजू का हाथ पकड़ कर उसे और पास खींच लिया..
राजू अवाक सा उसकी ओर देख रहा था..
इससे पहले कि उसे कुछ समझ आता, लता ने उसके मुरझाए हुए लण्ड को पजामे के ऊपर से पकड़ लिया और ज़ोर से मसल दिया।
‘आह दर्द हो रहा.. मालकिन ओह्ह..’
राजू ने लता का हाथ हटाने की कोशिश करते हुए कहा।
लता ने राजू की तरफ वासना से भरी नज़रों से देखते हुए कहा- क्यों रे, अब तो ये ऐसे मुरझा गया है…जैसे इसमें जान ही ना हो…पहले कैसे इतना कड़क खड़ा था.. साले.. मेरी जवान बेटी पर ग़लत नज़र रखता है।
ये कहते हुए लता ने उसके लण्ड को थोड़ा और ज़ोर से मसल दिया।
राजू की तो जैसे जान ही निकल गई, उसके चेहरे से साफ़ पता चल रहा था कि वो कितने दर्द में है।
उसके चेहरे को देख कर लता को अंदाज़ा हुआ कि उसने कुछ ज्यादा ही ज़ोर से उसके लण्ड को मसल दिया।
लता ने उसके लण्ड को छोड़ दिया, फिर उसके लण्ड को हथेली से रगड़ने लगी..
राजू को जैसे लकवा मार गया हो। वो बुत की तरह लता को देख रहा था, जो उसकी तरफ देखते हुए, एक हाथ से अपनी चूची को ब्लाउज के ऊपर से मसल रही थी और दूसरे हाथ से राजू के लण्ड को सहला रही थी।
कुसुम- क्यों रे मेरे बेटी को खूब चोदता है.. एक बार मुझे भी चोद कर देख। साली उस छिनाल से ज्यादा मज़ा दूँगी।
ये कह कर उसने एक झटके से राजू के पजामे का नाड़ा खोल दिया।
इससे पहले कि घबराए हुए राजू को कुछ समझ आता.. उसका पजामा उसके घुटनों तक आ चुका था और उसका अधखड़ा लण्ड लता के हाथ की मुठ्ठी में था।
‘ये… ये आप क्या रही हैं मालकिन… ओह्ह नहीं मालकिन आ आहह..’
लता ने उसके लण्ड के सुपारे पर चमड़ी पीछे सरका दी और गुलाबी सुपारे जो कि किसी छोटे सेब जितना मोटा था, उसे देख लता कर आँखों में वासना छा गई..
उसकी चूत की फांकें फड़फने लगीं और चूत ने कामरस की बूंदे बहाना शुरू कर दिया।
क्योंकि अब राजू का लण्ड अपनी असली विकराल रूप में आना चालू हो गया था, लता ने अपने अंगूठे के नाख़ून से राजू के लण्ड के सुपारे के चारों तरफ कुरेदा..
तो राजू की मस्ती भरी ‘आहह’ निकल गई और अगले ही पल उसे अपने लण्ड का सुपारा किसी गरम और गीली जगह में जाता हुआ महसूस हुआ।
उससे ऐसा लगा जैसे किसी नरम और रसीली अंग ने उसके लण्ड के सुपारे को चारों तरफ से कस लिया हो..
जब राजू ने अपनी मस्ती से भरी आँखों को खोल कर नीचे देखा।
तो जो हो रहा था, उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ।
लता ने एक हाथ से उसके लण्ड को मुठ्ठी में पकड़ रखा था.. उसके लण्ड का सुपारा लता के होंठों के अन्दर था और दूसरे हाथ से लता अपनी चूची को मसल रही थी।
ये नज़ारा देख राजू एकदम से हैरान था, लता ने उसके लण्ड के सुपारे को चूसते हुए.. ऊपर राजू की तरफ देखा.. दोनों की नज़रें आपस में जा मिलीं।
जैसे कह रही हों, ‘मेरी बेटी को जैसे चोदता है.. आज मेरी चूत की प्यास भी बुझा दे।’
राजू का लण्ड अपनी पूरी औकात पर आ चुका था।
जिससे हाथ की मुठ्ठी में लता ने राजू के लण्ड को भर रखा था, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि इस उम्र के छोरे का लण्ड भी इतना बड़ा हो सकता है।
अचानक से लता ने राजू के फनफनाते हुए लण्ड को अपने मुँह से बाहर निकाला और बिस्तर पर लेट गई।
उसकी टाँगें बिस्तर के नीचे लटक रही थीं..उसने अपनी टाँगों को उठा कर घुटनों से मोड़ा और अपने पेटीकोट को टाँगों से ऊपर उठाते हुए, अपनी कमर तक चढ़ा लिया।
यह देख कर राजू की हालत और खराब हो गई।
लता की चूत की फाँकें फैली हुई थीं और उसमें से कामरस एक पतली सी धार के रूप में बह कर उसकी गाण्ड के छेद की तरफ जा रहा था।
उसकी चूत का छेद कभी सिकुड़ता और कभी फ़ैलता।
राजू बिना अपनी पलकों को झपकाए हुए, उसकी तरफ देख रहा था।
यह देख कर लता के होंठों पर कामुकता भरी मुस्कान फ़ैल गई।
‘देख.. तेरे लण्ड के लिए पानी छोड़ रही है।’ लता ने अपनी चूत की फांकों को फ़ैलाते हुए अपनी चूत के गुलाबी छेद को दिखाते हुए कहा।
यह सुन कर राजू की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। अब उससे समझ में आ रहा था कि कुसुम क्यों कह रही थी। उसके मायके के घर में कोई डर नहीं है और ये सच अब राजू के सामने आ चुका था।
राजू को यूँ खड़ा देख कर लता से रहा नहीं गया, उसने अपना हाथ आगे बढ़ा कर राजू के लण्ड को पकड़ा और उसके लण्ड के गुलाबी मोटे सुपारे को अपनी गीली चूत के छेद पर रगड़ने लगी।
राजू के लण्ड के गरम और मोटे सुपारे का स्पर्श अपनी चूत के छेद पर महसूस करते ही.. लता के बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।
लता की वासना से भरी हुई आँखें बंद हो गईं।
उसने बड़ी ही अदा के साथ एक बार अपने होंठों को अपने दाँतों से चबाया और काँपती हुई आवाज़ में राजू से भीख माँगने वाले लहजे से बोली- ओह्ह.. बेटा डाल दे.. मेरी चूत में भी अपना ये मोटा लण्ड पेल दे… चोद मुझे साले जैसी मेरी बेटी को चोदता है, ओह्ह..
राजू का लण्ड अब पूरी तरह से तन चुका था और अब राजू भी पूरे जोश में आ चुका था।
लता उसके लण्ड को अपनी दो उँगलियों और अंगूठे के मदद से पकड़े हुए, अपनी चूत के छेद पर उसका लण्ड का सुपारा टिकाए हुए थी।
राजू ने लता की टाँगों को घुटनों से पकड़ कर मोड़ कर ऊपर उठाया और अपनी पूरी ताक़त के साथ एक जोरदार झटका मारा।
राजू का लण्ड लता की चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता हुआ तेज़ी के साथ अन्दर घुसता चला गया।
लता जो इतने सालों बाद चुद रही थी.. इस प्रचण्ड प्रहार के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी, वो एकदम से कराह उठी.. पर तब तक राजू का 8 इंच लंबा पूरा का पूरा लण्ड लता की चूत की गहराईयों में उतर चुका था।
लता- हइई.. माआअ मार..गई.. ओह हरामी.. धीरे नहीं पेल सकता था.. ओह्ह ओह्ह निकाल साले.. अपने लण्ड ओह मर गइईई.. फाड़ के रख दी.. मादरचोद.. मेरी चूत ओह्ह..
लता ने अपने कंधों और गर्दन को बिस्तर से उठा कर अपनी चूत की तरफ देखने की कोशिश करते हुए कहा।
राजू भी लता के कराहने की आवाज़ सुन कर थोड़ा डर गया और अपना लण्ड लता की चूत से बाहर निकालने लगा।
अभी उसने अपना लण्ड आधा ही बाहर निकाला था कि लता ने उससे कंधों से पकड़ कर अपने ऊपर खींच लिया।
जिससे राजू का लण्ड एक बार फिर लता की चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता हुआ अन्दर घुस कर उसके बच्चेदानी के मुँह से जा टकराया।
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भाग - 25
लता ने सिसकते हुए राजू के चेहरे को अपनी चूचियों में ब्लाउज के ऊपर से दबा लिया।
भले ही लता की चूचियाँ बहुत बड़ी नहीं थीं.. पर एकदम कसी हुई थीं।
राजू अब जैसे पागल हो चुका था…
अपने आप ही उसके हाथ लता की चूचियों पर आ गए और ब्लाउज के ऊपर से उसकी चूचियों को मसलने लगे।
लता का रोम-रोम रोमांच से भर उठा। नीचे से उसके चूतड़ ऊपर की तरफ उछल पड़े.. यह सीधा संकेत था कि वो राजू का पहला जोरदार वार झेल कर अब चुदवाने के लिए तड़फ रही है।
राजू लता के ऊपर लेटा हुआ दोनों हाथों से लता की चूचियों को मसलते हुए.. अपने होंठों को लता के ब्लाउज के ऊपर से बाहर आ रही चूचियों पर रगड़ रहा था।
लता की आँखें फिर से मस्ती में बंद होने लगी थीं।
उसकी मादक सिसकियाँ पूरे कमरे में गूँज रही थीं।
लता ने अपने ब्लाउज के हुक्स खोल कर अपनी चूचियों को आज़ाद कर दिया और एक हाथ से अपनी बाएं चूची पकड़ कर उसका चूचुक राजू के मुँह पर लगा दिया।
लता- यहाँ.. ओह्ह ये ले.. चूस्स्स इसे.. ओह्ह ओह्ह ह आह्ह..
लता ने नीचे से अपनी कमर को हिलाते हुए कहा।
राजू ने भी झट से लता की चूची को आधे से ज्यादा मुँह में भर लिया और ज़ोर-ज़ोर से चूसना चालू कर दिया।
राजू ने अपने लण्ड को आधे से ज्यादा बाहर निकाला और फिर पूरी ताक़त से अन्दर पेल दिया। राजू का लण्ड पिछले आधे घंटे से खड़ा था..
अब राजू के बर्दाश्त से बाहर हुआ जा रहा था।
वो बिस्तर के किनारे खड़ा हो गया और लता की टाँगों को घुटनों से मोड़ कर ऊपर उठा कर पूरी तरह से फैला दिया।
जिससे उसकी चूत ठीक उसके लण्ड के लेवल पर आ गई और राजू तेज़ी से अपने लण्ड को लता की चूत की अन्दर-बाहर करने लगा।
बरसों बाद चुद रही चूत.. राजू का मोटा लण्ड पाकर मानो ख़ुशी के आँसू बाहर निकालने लगी।
लता की चूत एकदम गीली हो चुकी थी और राजू का लण्ड भी लता की चूत से निकल रहे गाढ़े पानी से एकदम सन गया था।
अब राजू का लण्ड ‘फच-फच’ की आवाज़ करता हुआ तेज़ी से लता की चूत के अन्दर-बाहर हो रहा था और लता भी अपनी गाण्ड को उछाल कर राजू का साथ देने की कोशिश कर रही थी।
पर राजू के मूसल लण्ड के सामने लता की चूत की नहीं चल रही थे।
उसका पूरा बदन राजू के लगाए हुए हर धक्के के साथ हिल रहा था और लता अपने सर को इधर-उधर पटकते हुए मछली के जैसे तड़फ रही थी।
लता कभी अपनी दोनों चूचियों को मसलती, कभी वो बिस्तर की चादर को अपने हाथों में दबोच लेती।
उसकी चूचियाँ हर धक्के के साथ हिल रही थीं, जिससे देख कर राजू का जोश और बढ़ता जा रहा था।
लता- ओह धीरेए ओह्ह ओह्ह ह आह्ह.. उँघह धीरेए ऊहह फाड़ डाली री मेरी भोसड़ी.. ओह्ह कुसुम तेरे नौकर ने मेराआ..भोसड़ा.. फाड़..दिया.. ओहह.. आह्ह.. धीरेए ओह्ह मर गइई ओह्ह ओह्ह..
लता की चूत ने पानी छोड़ना चालू कर दिया और वो अपनी गाण्ड को पागलों की तरह उछालते हुए झड़ने लगी।
उसने अपने बिखरे हुए बालों को नोचना शुरू कर दिया।
पर राजू अभी भी पूरी रफ़्तार के साथ लता की चूत में अपना लण्ड अन्दर-बाहर कर रहा था।
लता का पूरा बदन एकदम से ऐंठ चुका था, पर राजू के ताबड़तोड़ धक्कों ने एक बार फिर से उसकी चूत को ढीला कर दिया था।
लता झड़ने के बाद पूरी तरह शांत हो चुकी थी और अपनी टाँगों को फैलाए हुए राजू के लण्ड को अपनी चूत में मज़े से रही थी।
आज कई सालों बाद वो झड़ने के बाद भी मज़ा ले रही थी।
आख़िर 5 मिनट की और चुदाई के बाद लता दूसरी बार झड़ गई और इस बार राजू के लण्ड ने भी उसकी चूत में अपना वीर्य उड़ेल दिया।
जैसे ही राजू का लण्ड सिकुड़ कर बाहर आया.. लता जल्दी से उठ कर बाहर चली गई.. उसने अपने कपड़े तक ठीक नहीं किए।
राजू ने अपने मुरझाए हुए लण्ड की ओर देखा, वो लता की चूत की कामरस से एकदम भीगा हुआ था।
उसने कमरे में इधर-उधर नज़र दौड़ाई..
तो उसे लता की शाल दरवाजे के पास टंगी हुई नज़र आई.. वो शाल के पास गया और उसके एक छोर को पकड़ कर उससे अपना लण्ड साफ़ करने लगा.. तभी कुसुम अचानक से कमरे में आ गई।
उसने राजू के लण्ड की तरफ देखा।
जो शिकार करने के बाद लटक रहा था।
कुसुम- क्यों कैसी लगी मेरे माँ की चूत?
राजू कुसुम की बात सुन कर एकदम से हैरान रह गया.. उससे यकीन नहीं हो रहा था कि कुसुम उससे अपनी माँ की चूत की बारे में पूछ रही है।
‘आज रात वो तेरे पास ही लेटेगी.. साली की चूत सुजा दे चोद-चोद कर.. इतना चोद कि सुबह चल भी ना पाए।’
राजू कुसुम की ऐसे बातें सुन कर मुँह फाड़े बुत की तरह खड़ा था.. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कुसुम ये सब कह रही है।
‘जा देख कर साली नीचे मूतने गई है। अगर तुम मुझे अपनी मालकिन मानते हो तो जहाँ मिले वहीं पटक कर चोद देना..’
राजू कुसुम की बात का जवाब दिए बिना अपना पजामा पहने नंगा ही नीचे चला गया.. जब वो आँगन में पहुँचा तो उसे गुसलखाने से कुछ आवाज़ सुनाई दी।
वो धीरे-धीरे गुसलखाने के तरफ बढ़ा और लता के मूतने की सुरीली सी आवाज़ उसके कानों में पड़ी…
राजू गुसलखाने के दरवाजे के पास खड़ा होकर अन्दर झाँकने लगा।
अन्दर का नज़ारा देख कर एक बार फिर से राजू का लण्ड पूरे उफान पर आ चुका था।
लता मूतने के बाद झुक कर अपनी चूत को एक कपड़े से साफ़ कर रही थी.. पीछे खड़े राजू के सामने लता के बड़े-बड़े चूतड़ों के बीच लबलबा रही चूत का गुलाबी छेद उस पर कहर बरपा रहा था।
लता को इस बात का पता नहीं था कि राजू उसके पीछे खड़े होकर उसकी बड़ी गाण्ड को देख रहा है।
अगले ही पल राजू का 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लण्ड किसी सांप की तरह फुंफकार रहा था।
गुसलखाने के अन्दर एक बड़ा सा पुराना मेज रखा हुआ था.. जिस पर कुछ पानी के मटके और लालटेन रखी हुई थी।
लता अपनी चूत की फांकों को अपनी उँगलियों से सहला रही थी, उसके होंठों पर ख़ुशी से भरी हुई मुस्कान फैली हुई थी।
अचानक से उससे अपनी चूत पर एक बार फिर से राजू के लण्ड के मोटे और गरम सुपारे का अहसास हुआ.. जिसे महसूस करते ही.. उसके पूरे बदन में मस्ती की कंपकंपी दौड़ गई।
‘आह क्या कर रहा है ओह्ह..छोड़ मुझे!’
इसके पहले कि लता कुछ संभल पाती.. राजू का लण्ड उसकी चूत की फांकों को फैला कर चूत के छेद पर जा लगा।
‘ओह्ह आह सीईईई..’ लता के मुँह से मस्ती भरी ‘आह’ निकल गई।
लता ने एक बार अपनी गर्दन पीछे घुमा कर राजू की तरफ अपनी वासना से भरी मस्त आँखों से देखा और मुस्करा कर फिर से आगे देखते हुए.. अपने दोनों हाथों को उस पुराने मेज पर टिका कर झुक गई।
फिर बड़ी ही अदा के साथ अपने पैरों को फैला कर पीछे से अपनी गाण्ड ऊपर की तरफ उठा लिया।
अब राजू का लण्ड बिल्कुल लता की चूत के सामने था।
राजू ने लता के चूतड़ों को दोनों तरफ से पकड़ कर फैला दिया और अपने लण्ड को चूत के छेद पर टिका दिया।
इससे पहले कि राजू अपना लण्ड लता की चूत में पेलने के लिए धक्का मारता.. लता ने कामातुर होकर अपनी गाण्ड को पीछे की तरफ धकेलना शुरू कर दिया।
राजू के लण्ड का मोटा सुपारा लता की चूत के छेद को फ़ैलाता हुआ अन्दर घुस गया।
लता अपनी चूत के छेद के छल्ले को राजू के लण्ड के मोटे सुपारे पर कसा हुआ साफ़ महसूस कर पा रही थी।
कामवासना का आनन्द चरम पर पहुँच गया।
चूत ने एक बार फिर से अपने कामरस का खजाना खोल दिया।
लता की मस्ती का कोई ठिकाना नहीं था, उसकी चूत में सरसराहट बढ़ गई थी और वो राजू के लण्ड को जड़ तक अपनी चूत में लेने के लिए मचल रही थी।
‘ओह्ह आह.. घुसाआ.. दे रे.. छोरे ओह फाड़ दे.. मेरी चूत ओह्ह आह… और ज़ोर से मसल मेरे गाण्ड को ओह्ह हाँ.. ऐसे ही…’
राजू बुरी तरह से अपने दोनों हाथों से लता की गाण्ड को फैला कर मसल रहा था। उसके लण्ड का सुपारा लता की चूत में फँसा हुआ, लता को मदहोश किए जा रहा था।
राजू को भी अपने लण्ड के सुपारे पर लता की चूत की गरमी साफ़ महसूस हो रही थी।
उसने लता के चूतड़ों को दबोच कर दोनों तरफ फैला लिया और अपनी गाण्ड को तेज़ी से आगे की तरफ धकेला। राजू के लण्ड का सुपारा लता की चूत की दीवारों को चीरता हुआ आगे बढ़ गया, लता के मुँह से एक घुटी हुई चीख निकल गई।
जो गुसलखाने के दीवारों में ही दब कर रह गई।
राजू का आधे से अधिक लण्ड लता की चूत में समा चुका था।
‘ओह्ह आपकी चूत बहुत कसी हुई है.. बड़ी मालकिन… ओह्ह मेरा लण्ड फँस गया है.. ओह्ह..’
लता ने पीछे की तरफ अपनी गाण्ड को ठेल कर अपनी चूत में राजू का मोटा लण्ड लेते हुए कहा- आहह.. आह जालिम मेरी चूत.. ओह फाड़ दी… ओह्ह ओह तेरे इस मूसल लण्ड की तो मैं आह.. आह.. कायल हो गई उह्ह.. ओह्ह चोद दे.. मुझे.. और तेज धक्के मार..
राजू भी अब नौकर और मालिक की मर्यादाओं को भूल कर लता के चूतड़ों को फैला कर अपने लण्ड को उसकी चूत में अन्दर-बाहर कर रहा था।
लता का ब्लाउज अभी भी आगे से खुला हुआ था और राजू के हर जबरदस्त धक्के के साथ उसकी चूचियाँ तेज़ी से हिल रही थीं।
‘ओह रुक छोरे.. ज़रा ओह्ह ओह्ह.. मैं खड़ी-खड़ी थक गई हूँ..ओह्ह ओह्ह आह्ह..’
राजू ने अपने लण्ड को लता की चूत से बाहर निकाल लिया.. लता सीधी होकर उसकी तरफ पलटी और राजू के होंठों पर अपने रसीले होंठों को रखते हुए उसे से चिपक गई।
राजू ने उसकी कमर से अपनी बाँहों को पीछे ले जाकर उसके चूतड़ों को दबोच-दबोच कर मसलना शुरू कर दिया।
राजू का विकराल लण्ड लता के पेट के निचले हिस्से पर रगड़ खा रहा था।
‘चल छोरे दूसरे कमरे में चलते हैं।’ लता ने चुंबन तोड़ते हुए कहा और फिर अपने कपड़ों की परवाह किए बिना गुसलखाने से निकल कर एक कमरे में आ गई, यहाँ पर अब वो अकेली सोती थी।
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मस्त कहानी है। कृपया जारी रखिये।।
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भाग - 26
राजू उसके पीछे अपना पजामे को थामे कमरे में दाखिल हुआ और लता ने उसे पकड़ कर बिस्तर पर धक्का दे दिया।
फिर अपने ब्लाउज को अपने जिस्म अलग कर एक तरफ फेंक दिया और फिर पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया।
नाड़ा खुलते ही पेटीकोट सरक कर नीचे आ गया और फर्श की धूल चाटने लगा। लता ने अपनी हथेली में थूका और अपनी चूत के लबों पर लगाते हुए, किसी रंडी की तरह राजू के ऊपर सवार हो गई।
राजू लता का ये रूप देख कर भावविभोर हो रहा था। उसने अपनी जिंदगी में कभी कल्पना भी नहीं की थी, उसे इतने कम समय में तीन चूतें चोदने को मिल जायेंगी।
लता ने राजू के ऊपर आते ही उसका लण्ड पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर लगा कर.. उस पर अपनी चूत को दबाना चालू कर दिया।
लता की चूत पहले से राजू के लण्ड के आकार के बराबर खुल चुकी थी, चूत को लण्ड पर दबाते ही राजू का लण्ड लता की चूत की गहराईयों में उतरने लगा।
‘ऊहह माआ.. ओह्ह कुसुम सच कह रही थी.. तेरे लौड़े के बारे में.. ओह क्या कमाल का लण्ड पाया है तूने.. ओह्ह…’ लता ने अपने चूतड़ों को ऊपर-नीचे उछालते हुए कहा।
राजू- आह्ह.. बड़ी मालकिन.. आपकी चूत भी बहुत गरम है.. कितना पानी छोड़ रही है.. पर आपने थूक क्यों लगाया?
लता ने तेज़ी से सिस्याते हुए, राजू के लण्ड पर अपनी चूत पटकती है, ‘आह्ह.. आह्ह.. तेरे मूसल लण्ड के लिए तो जवान लड़की की चूत का पानी भी कम पड़ जाए.. हाय.. ओह सीई. मेरी तो फिर उमर हो गई है।’
राजू ने नीचे से अपनी कमर को उछाल कर लता की चूत में लण्ड अन्दर-बाहर करते हुए कहा- आ आह.. पर तुम्हारी चूत सच में बहुत पानी बहा रही है.. मालकिन ओह.. ओह्ह।
लता- हाँ मेरे राजा.. ओह आह्ह.. ओह्ह तेरे लण्ड का कमाल है रे.. बहुत गहरी टक्कर मार कर चूत को खोदता है रे..ईई तेरा लण्ड आह.. आह्ह.. ओह्ह देख ना एक बार फिर से झड़ने वाली हूँ…ओह्ह चोद मुझे.. और ज़ोर से चोद आह्ह.. ओह्ह सीईइ मैं गइई… ओह ओह।
लता का बदन एक बार फिर से अकड़ गया और उसकी चूत से पानी का सैलाब बह निकला.. राजू भी लता की चूत में झड़ गया।
उस रात राजू ने लता की दो और बार जम कर चुदाई करके उससे बेहाल कर दिया।
चलिए अब ज़रा चमेली के घर की तरफ रुख़ करते हैं।
यहाँ अगली सुबह बड़ी चहल-पहल से भरी हुई थी, गाँव भर की लड़कियाँ और औरतें चमेली के घर में हँसी ठिठोली कर रही थीं.. आज रज्जो की शादी है।
अब शादी के बारे में ज्यादा लिखना वक्त बर्बाद करने जैसा होगा.. रतन की शादी रज्जो से हुई और रतन रज्जो को साथ लेकर अपने गाँव आ गया।
वहाँ रज्जो की सास कमला ने उससे घर के बाकी सदस्यों से मिलवाया.. जैसे उसकी चाची सास, शोभा और उसके बच्चों से.. और घर आए हुए कुछ मेहमानों से भी मिलवाया।
दिन का समय तो यूँ ही गुजर गया।
रज्जो की ससुराल के माली हालत उसके मायके से कहीं बेहतर थे।
सभी के लिए अपने-अपने कमरे थे।
कुछ तो सिर्फ़ मेहमानों के लिए थे.. जैसे कि मैं पहले ही बता चुका हूँ कि रतन की चाची शोभा विधवा है और उसके दो बच्चे हैं, पर शोभा के चेहरे को देखने से ऐसा नहीं लगता कि वो एक विधवा है, उसके होंठों पर सदा मुस्कान फैली रहती है, जैसे उसने अपनी जिंदगी में सब कुछ पा लिया हो।
रात के वक़्त रतन के घर पर आए हुए मेहमान और बाकी घर के सभी लोग खाना खा कर सोने की तैयारी कर रहे थे।
उधर रज्जो थोड़ी घबराई हुई सी सेज पर दुल्हन के रूप में बैठी.. रतन के अन्दर आने का इंतजार कर रही थी।
इतने में रतन भी कमरे में दाखिल हुआ, अन्दर आते ही दरवाजे की कुण्डी लगा कर वो चारपाई पर रज्जो के पास आकर बैठ गया।
रज्जो सहमी सी सर झुका कर बैठी हुई थी।
‘अरे जान.. अब मुझसे क्या परदा..?’ रतन ने रज्जो की चुनरी उसके चेहरे से हटाते हुए कहा।
रज्जो ने शरमा कर अपने चेहरे को दोनों हाथों से ढक लिया।
फिर रतन ने उसे कंधों से पकड़ कर चारपाई पर लिटा दिया, रज्जो के दिल की धडकनें एकदम से बढ़ गईं.. उसके हाथ-पैर आने वाले पलों के बारे में सोच कर रोमांच से काँप रहे थे।
रतन अपने सामने लेटी उस कच्ची कली के हुश्न को देख कर तो जैसे पागल हो गया।
कमसिन रज्जो का जिस्म एकदम गदराया हुआ था, आप उसे मोटी तो नहीं कह सकते, पर उसका पूरा बदन भरा हुआ था।
एकदम मोटी-मोटी जाँघें.. मांसल और एकदम कड़क गुंदाज चूचियाँ… रतन के लिए इतना हुश्न देखना बर्दाश्त से बाहर था।
उसने एक ही झटके में आँखें बंद करके लेटी हुई रज्जो के लहँगे को उसकी कमर तक चढ़ा दिया।
रज्जो इस तरह के बरताव से एकदम सहम गई, सब कुछ उसके उलट हो रहा था.. जैसा कि उसने अपनी ब्याही हुई सहेलियों और पड़ोस के भाभियों से सुना था।
रतन ने ना कोई प्यार भरी बातें की और ना ही रतन ने उसके अंगों को सहलाया और ना ही चूमा और उसके दिल के धड़कनें और ज़ोर से बढ़ गईं।
ये सोच कर अब वो नीचे उसके जिस्म पर केवल एक चड्डी ही बची है जो उसकी चूत को ढके हुए थी।
पर रतन तो जैसे उस कामरूपी कच्ची कली को देख कर पागल हो गया था।
उसने दोनों तरफ से रज्जो की चड्डी को पकड़ कर खींचते हुए उसके पैरों से निकाल दिया।
रज्जो का पूरा बदन काँप गया.. उसकी साँसें मानो जैसे थम गई हों और उसका दिल, जो थोड़ी देर पहले जोरों से धड़क रहा था… मानो धड़कना ही भूल गया हो।
लाज और शरम के मारे, रज्जो ने अपना लहंगा नीचे करना चाहा, तो रतन ने उसके दोनों हाथों को पकड़ कर झटक दिया।
अब उसके सामने मांसल जाँघों के बीच कसी हुई कुँवारी चूत थी, जिसे देख कर रतन का लण्ड उसकी धोती के ऊपर उठाए हुए था।
वो चारपाई से खड़ा हुआ और अपनी धोती और बनियान उतार कर एक तरफ फेंकी।
अब उसका विकराल लण्ड हवा में झटके खा रहा था।
अपने पास रतन की कोई हरकत ना पाकर रज्जो ने अपनी आँखों को थोड़ा सा खोल कर देखा, तो उसके रोंगटे खड़े हो गए।
रतन अपने कपड़े उतार चुका था और उसकी चूत की तरफ देखते हुए.. अपने 7 इंच के लण्ड को तेज़ी से हिला रहा था।
ये देख कर रज्जो ने अपनी आँखें बंद कर लीं और रतन चारपाई के ऊपर घुटनों के बल बैठ गया।
उसने बेरहमी से रज्जो की टाँगों को फैला दिया और टांगों को घुटनों से मोड़ कर ऊपर उठा कर फैला दिया.. जिससे रज्जो की कुँवारी चूत का छेद खुल कर उसकी आँखों के सामने आ गया।
‘आह धीरे…’
रज्जो ने अपने साथ हुई उठापटक के कारण कराहते हुए कहा, पर रतन तो जैसे अपने होश गंवा बैठा था.. उसने अपने लण्ड को रज्जो की चूत के छेद पर लगा दिया और रज्जो की चोली के ऊपर से ही उसकी गुंदाज चूचियों को पकड़ते हुए.. एक ज़ोरदार झटका मारा।
कसी चूत के छोटे से छेद में लण्ड जाने की बजाए, रगड़ ख़ाता हुआ एक तरफ निकल गया।
भले ही पहले झटके में रज्जो की चूत की सील नहीं टूटी, पर सील पर दबाव ज़रूर पड़ा और रज्जो दर्द से तिलमिला उठी.. उसके मुँह से चीख निकल गई।
‘हाए माँ.. दर्द होता.. है…’
रतन- चुप कर बहन की लौड़ी.. चिल्ला कर सारे गाँव को इकठ्ठा करेगी क्या..? पहली बार तो दर्द होता ही है।
अपने पति रतन के मुँह से ऐसे अपमानजनक शब्द सुन कर रज्जो की आँखों में आँसू आ गए, जिसे देख कर रतन गुस्से से आग-बबूला हो गया।
उसने एक बार फिर से रज्जो की परवाह किए बिना अपने लण्ड के सुपारे पर ढेर सारा थूक लगाकर उसकी चूत के छेद पर लगाया और एक बार फिर से जोरदार धक्का मारा, पर लण्ड फिर रज्जो की चूत की सील नहीं तोड़ पाया और सरक कर बाहर आ गया।
रज्जो एक बार फिर से दर्द से चीख उठी।
रतन- चुप साली बहन की लौड़ी.. सारा गाँव इकठ्ठा करेगी क्या.. मादरचोदी.. तू किसी काम की नहीं..
नशे में धुत्त रतन खड़ा हुआ और खीजते हुए अपने कपड़े पहन कर बाहर निकाल गया।
रज्जो सहमी से वहीं उठ कर बैठ गई, उसने अपने लहँगे को ठीक किया।
अब रतन बाहर जा चुका था और ये उसके लिए और शरम की बात थी कि अगर किसी को पता चला कि दूल्हा सुहागरात को अपनी पत्नी के साथ नहीं है, तो वो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेगी।
अगर कोई इधर आ गया तो क्या जवाब देगी, रज्जो खड़ी होकर दरवाजे के पास आ गई और बाहर झाँकने लगी.. बाहर कोई नहीं था।
चारों तरफ घोर सन्नाटा फैला हुआ था और रतन भी कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। रज्जो की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे.. वो अपनी किस्मत और बेबसी पर रो रही थी।
जब काफ़ी देर तक रतन वापिस नहीं आया, तो वो कमरे से बाहर निकल आई और घर के आँगन में आगे बढ़ने लगी, पर रतन का कोई ठिकाना नहीं था।
आख़िर तक हार कर रज्जो अपने कमरे की तरफ जाने लगी, जब वो अपने कमरे की तरफ जा रही थी, उसे एक कमरे से किसी के खिलखिलाने की आवाज़ सुनाई दी।
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भाग - 27
‘इतनी रात को इस तरह खिलखिला कर कौन हँस रहा है?’
यह हँसी सुनते ही एक बार रज्जो का माथा ठनका पर रज्जो ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया और अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगी।
पर एक बार फिर से उस चहकती हुई आवाज़ ने रज्जो का ध्यान अपनी तरफ खींचा।
इस बार रज्जो से रहा नहीं गया और वो कमरे के दरवाजे पास आकर अन्दर हो रही बातों को सुनने की कोशिश करने लगी।
पर अन्दर जो भी था.. वो बहुत धीमी आवाज़ में बात कर रहा था।
इसलिए अन्दर हो रही वार्तालाप रज्जो की समझ में नहीं आ रही थी।
आख़िर जब कुछ हाथ ना लगा, तो रज्जो अपने कमरे में आ गई.. उसका कमरा ठीक उसी कमरे के बगल में था।
रतन का अब भी कोई ठिकाना नहीं था, रज्जो ने दरवाजा बंद किया और चारपाई पर बैठ गई।
जब इंसान के पास काम ना हो तो उसका इधर-उधर झाँकना स्वाभाविक हो जाता है.. सुहाग की सेज पर बैठी.. रज्जो तन्हाई के वो लम्हें गुजार रही थी, जिसके बारे में कोई भी नई ब्याही लड़की नहीं सोच सकती थी।
कमरे के अन्दर इधर-उधर झाँकते हुए.. अचानक उसका ध्यान कमरे के उस तरफ वाली दीवार पर गया..जिस तरफ वो कमरा था।
रज्जो ने गौर किया, उस दीवार में काफ़ी ऊपर दीवार में से एक ईंट निकली हुई थी।
ये देखते ही रज्जो से रहा नहीं गया और उसने कमरे में चारों तरफ नज़र दौड़ाई और उसे अपने काम आ सकने वाली एक चीज़ मिल ही गई।
कमरे के उसी तरफ दीवार के एक कोने में एक बड़ी सी मेज लगी हुई थी, जिस पर चढ़ कर दूसरे कमरे में उससे छेद से झाँका जा सकता था।
रज्जो तुरंत खड़ी हो गई और उस मेज को ठीक उस दीवार में बने छेद के नीचे सैट करके ऊपर चढ़ गई और दूसरे तरफ झाँकने लगी।
कुछ ही पलों में उस कमरे का पूरा नज़ारा उसकी आँखों के सामने था और जो उसने देखा, उसे देख कर रज्जो एकदम हक्की-बक्की रह गई, उससे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है।
एक पल के लिए रज्जो के हाथ-पाँव मानो जैसे सुन्न पड़ गए हों।
उसे ऐसा लग रहा था, मानो जैसे उसके पैरों में खड़े रहने की जान ही ना बची हो।
दूसरे कमरे के अन्दर ठीक उसकी आँखों के सामने शोभा का बेटी-बेटा बिस्तर पर एक किनारे पर सो रहे थे और दूसरी तरफ रतन बिस्तर पर नीचे पैर लटका कर बैठा हुआ था।
उसके तन से उसकी धोती गायब थी और उसका 7 इंच लम्बा काले रंग का लण्ड हवा में झटके खा रहा था, पर शोभा उसे दिखाई नहीं दे रही थी।
रतन कमरे के उस कोने की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए.. लगातार अपने लण्ड को मुठिया रहा था, जिससे उसके काले रंग के लण्ड की चमड़ी जब पीछे होती और उसका गुलाबी रंग का सुपारा रज्जो की आँखों के सामने आ जाता।
रज्जो ने उस छेद से उस तरफ देखने की कोशिश की जिस तरफ देखते हुए रतन मुठ्ठ मार रहा था, पर उसे छोटे से छेद से कमरे के उस कोने के तरफ की कोई भी चीज नज़र नहीं आ रही थी।
रज्जो अपनी साँसें थामे हुए.. उस शख्स को देखने का इंतजार कर रही थी, जो उस समय वहाँ मौजूद था और ऊपर से लालटेन की रोशनी भी कम थी।
तभी रज्जो को वो शख्स दिखाई दिया, जिसके बारे में उसके मन में आशंका थी।
शोभा रतन की काकी बड़ी ही मस्तानी चाल के साथ रतन की तरफ बिस्तर की ओर बढ़ रही थी।
उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।
शोभा के ब्लाउज के हुक खुले हुए थे और उसकी साड़ी उसके बदन पर नहीं थी, नीचे सिर्फ़ पेटीकोट ही था।
शोभा की 40 साइज़ की बड़ी-बड़ी चूचियाँ ब्लाउज के पल्लों को हटाए हुए बाहर की तरफ हिल रही थीं।
जैसे ही शोभा बिस्तर के पास पहुँची.. वो अपने पैरों पर मूतने वाले अंदाज़ में रतन के सामने नीचे बैठ गई और उसके हाथ को उसके लण्ड से हटा कर खुद उसके लण्ड को पकड़ लिया और उसकी और देखते हुए बोली- आज तो सच में सुबह से मेरी चूत में खुजली और बढ़ गई है.. ये सोच कर कि जिस लण्ड को मैं इतने बरसों से अपनी चूत में ले रही हूँ, वो अब मेरी उस सौत की चूत को चोदेगा.. जिससे तुम ब्याह कर लिया है मेरे लाला..
रतन- क्या काकी.. मैं तो सुहागरात भी तुम्हारे साथ ही मनाऊँगा.. वो साली तो ऐसे चिल्लाने लगी.. जैसे अभी चीख-चीख कर गाँव को इकठ्ठा कर लेगी।
शोभा ने रतन के लण्ड के गुलाबी सुपारे पर अपनी ऊँगलियाँ घुमाते हुए कहा- मैंने तो पहले ही तुझसे कहा था.. वो साली रांड तुझे वो सुख कभी नहीं दे पायगी… जो इतने सालों से मैं तुझे अपनी चूत में तेरा लण्ड डलवा कर देती आई हूँ।
रतन- हाँ काकी.. मैं तो शुरू से ही तुम्हारा गुलाम रहा हूँ, वो तो मेरा दिमाग़ खराब हो गया था, जो उससे शादी कर ली.. देख ना काकी तेरी मस्त चूचियों को देख कर मेरा लौड़ा कैसे तन गया है।
शोभा- हाँ देख रही हूँ मेरे लाला.. मेरी चूत भी तो तेरे लण्ड को देखते ही पानी छोड़ने लगती है। मैं कैसे बर्दाश्त करती.. इस लण्ड को किसी और की चूत में घुसता देख कर… जिससे मैंने रोज मालिश करके इतना तगड़ा बनाया है.. याद है जब तूने मुझे पहली बार चोदा था.. तब तू इतना छोटा था कि सारा दिन तेरी नाक बहती रहती थी।
रतन ने धीमे स्वर में हँसते हुए कहा- हाँ काकी.. खूब याद है, तुमने ही तो मुझे चोदना सिखाया था।
शोभा ने नखरे से मुसकराते हुए कहा- चल हट बदमाश.. तूने ही तो उस उम्र में भी मेरी चूत की आग बढ़ा दी थी।
रतन- वो काकी.. तब तो मैं नादान था। वो तो मुझे पता भी नहीं था कि मैं क्या कर रहा हूँ।
शोभा- अच्छा छोड़ ये सब.. आज कितने दिनों बाद मेरी चूत और जीभ तेरे लण्ड का स्वाद चखने वाली है… खाली गप्पें लगा कर वक्त बर्बाद ना कर मेरे लाल.. मेरे भोसड़ी में आग लगी हुई है, अब तो मुझे ये तेरा लौड़ा अपनी चूत में लेने दे।
यह कहते हुए शोभा ने झुक कर रतन के लण्ड के सुपारे पर अपनी जीभ बाहर निकाल कर उसकी ओर देखते हुए.. चारों तरफ से चाटने लगी।
रतन ने पलक झपकते ही.. शोभा के बालों को कस कर पकड़ लिया।
‘आह चूस साली रांड.. ओह बहुत अच्छा चूसती है तू.. ओह साली दिल करता है… दिन-रात तेरी चूत और मुँह में लौड़ा पेलता रहूँ।’
शोभा ने रतन की ओर बनावटी गुस्से से देखते हुए कहा- धीरे.. बच्चे सो रहे हैं.. कहीं देख लिया तो?
रतन ने शोभा के सर को पकड़ कर अपने लण्ड पर झुकाते हुए कहा- तू चूस ना साली… मुझे पता है, जब तक तू मेरे साथ है, कोई बहन का लौड़ा मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।
शोभा ने एक बार रतन की ओर देखा फिर अपने बच्चों की तरफ देखा और फिर अपने होंठों को खोल कर रतन के लण्ड के सुपारे को मुँह में ले लिया।
रतन की आँखें मस्ती में बंद हो गईं।
ये नज़ारा देख कर रज्जो एकदम से हैरान रह गई।
उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि आख़िर उसके साथ हो क्या रहा है।
उसकी आँखों से आँसू सूखने का नाम नहीं ले रहे थे, पर अब उसे भी अपनी चूत की बीच नमी महसूस होने लगी थी।
उधर शोभा रतन के लण्ड को मुँह के अन्दर-बाहर करते हुए चूस रही थी और रतन अपने एक हाथ से उसकी चूचियों को मसल रहा था। बीच-बीच में शोभा अपनी जीभ की नोक से उसके लण्ड के पेशाब वाले छेद को कुरेद देती और रतन एकदम से मचल उठता।
तभी उसने शोभा को उसके कंधों से पकड़ कर ऊपर उठा लिया।
जैसे ही शोभा सीधी खड़ी हुई.. रतन ने उसके पेटीकोट के नाड़े को पकड़ कर खींच दिया।
इससे पहले के शोभा का पेटीकोट सरक कर नीचे गिरता.. शोभा ने उससे लपक कर थाम लिया।
‘आह्ह.. क्या कर रहे हो..? इसे क्यों खोल रहे हो, अगर बच्चे उठ गए और मुझे इस हालत में देख लिया तो..?’ शोभा ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा।
रतन ने शोभा के हाथों से उसके पेटीकोट को छुड़ाते हुए कहा- काकी जब तक तुझे नंगा करके नहीं चोद लेता.. मेरा लण्ड नहीं झड़ता.. तुम्हें तो मालूम है।
ये कहते ही, रतन ने अपनी काकी शोभा का पेटीकोट को पकड़ कर नीचे सरका दिया..
अब शोभा के बदन सिर्फ़ एक ब्लाउज रह गया था, वो भी आगे से पूरा खुला हुआ था।
जैसे ही शोभा के बदन से पेटीकोट अलग हुआ.. रतन ने अपने हाथों को पीछे ले जाकर शोभा की मांसल गाण्ड को अपने हाथों में भर कर मसलना चालू कर दिया।
शोभा की आँखें मस्ती में बंद हो गईं, उसके पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई। रतन दोनों पैरों को लटका कर बिस्तर के किनारे बैठा हुआ था।
शोभा रतन से लिपटे हुए.. अपने दोनों पैरों को रतन के दोनों तरफ बिस्तर के किनारों पर रख कर उकड़ू होकर बैठ गई।
उसने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर रतन के लण्ड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर रखा और धीरे-धीरे अपनी चूत को रतन के लण्ड के सुपारे पर दबाने लगी।
तन का लण्ड फिसलता हुआ शोभा की चूत की गहराईयों में घुसने लगा। जैसे ही रतन का पूरा लण्ड शोभा की चूत की गहराईयों में समाया, शोभा ने अपनी बाँहों को रतन की पीठ पर कस लिया और अपनी गाण्ड को ऊपर-नीचे उछाल कर रतन के लण्ड से चुदवाने लगी।
शोभा ने पूरी रफ़्तार से अपनी चूत को रतन के लण्ड पर पटकते हुए सीत्कार भरी, ‘आह ह.. हाँ बेटा.. मसल मेरी गाण्ड को.. ओह तेरे लण्ड के बिना नहीं रह सकती.. ओह ओह्ह और ज़ोर से चोद अपनी काकी को.. ओह्ह माआआ मर गई ओह्ह आह्ह.. आह्ह..’
रतन के दोनों हाथ शोभा के मांसल चूतड़ों को ज़ोर-ज़ोर से मसल रहे थे। उधर दूसरे कमरे में खड़ी रज्जो की हालत ये नज़ारा देख कर खराब हुई जा रही थी और दूसरे कमरे में चुदाई का खेल अपने जोरों पर था।
आख़िर रज्जो कब तक ये सब सहन करती.. उसका पति उसके सामने ही अपनी काकी को चोद रहा है।
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भाग - 28
वो भी अपनी शादी की सुहागरात को अपनी नई ब्याही पत्नी को छोड़ कर….
अब रज्जो से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो मेज से नीचे उतरी और गुस्से से बौखलाई हुई.. अपने कमरे से बाहर आई और शोभा के कमरे के सामने पहुँच कर दरवाजे पर दस्तक दी, पर तब तक दोनों झड़ चुके थे।
अन्दर शोभा रतन के गोद में बैठी हुई हाँफ रही थी और उसकी चूत में रतन का लण्ड अभी भी घुसा हुआ था।
दरवाजे पर दस्तक सुन कर दोनों एकदम से हड़बड़ा गए, दोनों ने जल्दी से अपने कपड़े पहने और शोभा ने कमरे का दरवाजे खोला.. तो उसने रज्जो को सामने खड़ा पाया।
रज्जो को सामने देख कर शोभा के चेहरे का रंग उड़ गया.. इस बात की परवाह किए बिना कि शोभा उसकी काकी सास है.. रज्जो शोभा को पीछे धकेलती हुई कमरे के अन्दर आ गई।
रतन बिस्तर के पास बदहवास सा खड़ा रह गया।
शोभा- अरे.. ये क्या तरीका हुआ, किसी के कमरे में ऐसे घुस आने का? माँ-बाप ने तुझे कुछ अकल दी है कि नहीं?
रज्जो- अच्छा अगर मेरा तरीका ठीक नहीं है, तो आप इस वक़्त मेरे पति के साथ अन्दर क्या कर रही हैं?
शोभा एक झूठी मुस्कान चेहरे पर लाते हुए बोली- वो रतन तो इसलिए आ गया था कि उससे तेरा झगड़ा हो गया था.. बेचारा सर्दी में बाहर खड़ा था, इसलिए मैंने उसको अन्दर बुला लिया।
रज्जो- हाँ.. वो तो देख चुकी हूँ कि उसे आपने कैसे गरम किया.. आप ये सब ठीक नहीं कर रही हैं.. मैं पूरे घर वालों को बता दूँगी कि आप रतन के साथ क्या कर रही थीं।
रज्जो की बात सुनते ही शोभा के चेहरे का रंग एकदम से उड़ गया, वो कभी रज्जो की तरफ देखती तो कभी रतन की तरफ बेबस सी देखती।
रतन को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर हो क्या रहा है।
दूसरी तरफ शोभा के बच्चे शोर सुन कर उठ ना जाए, ये सोच कर रतन ने रज्जो का हाथ पकड़ा और उसे खींचता हुआ अपने कमरे में ले गया।
शोभा ने एक बार अपने सो रहे बच्चों की तरफ देखा और फिर कमरे से बाहर आकर दरवाजे बन्द करके, रतन के कमरे में आ गई।
कमरे में रज्जो चारपाई पर सहमी सी बैठी हुई थी, रतन बोला- साली.. अगर मुँह खोला तो कल ही तलाक़ दे दूँगा.. तेरी जिंदगी नरक बना दूँगा..
रतन की बात सुन कर बेचारी रज्जो और सहम गई।
उधर शोभा अपने होंठों पर तीखी मुस्कान लिए दोनों को देख रही थी।
रज्जो को शांत देख कर वो रतन से बोली- तू बाहर जा.. मैं इसे समझाती हूँ।
रतन गुस्से से भड़कता हुआ बाहर चला गया, रतन के जाते ही, शोभा ने दरवाजे बन्द किए और रज्जो के पास आकर चारपाई पर बैठ गई, ‘ए सुन छोरी.. देख अगर हंगामा करेगी तो हमारा कुछ नहीं जायगा, तुम्हारी बात कोई नहीं मानेगा.. उल्टा ये कह कर घर से निकाल दिया जाएगा कि तूने सुहागरात को अपने पति को कमरे से बाहर निकाल दिया.. और अपने ग़रीब माँ-बाप के बारे में तो सोच.. कैसे-तैसे करके उन्होंने मुश्किल से तेरा ब्याह किया है, वो तो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।
रज्जो बहुत डर गई थी उसने सुबकते हुए कहा- ठीक है.. नहीं कहूंगी, पर आप रतन को छोड़ दो।
शोभा ने मुस्कुराते हुए कहा- अरे ऐसे कैसे छोड़ दूँ.. तू तो आज आई है यहाँ पर… मैंने उससे तब से चुदवा रही हूँ, जब उसके दूध के दाँत भी नहीं टूटे थे। अब जब मज़ा लेने की बारी आई तो तू मेरी सौत बन कर आ गई.. देख रतन मेरा है और सिर्फ़ मेरा ही रहेगा.. हाँ.. अगर कभी उसका दिल कर आया तो मैं रतन को मना नहीं करूँगी।
रज्जो एकटक शोभा की तरफ देखते हुए उसकी बातों को सुन रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है।
रज्जो को चुप देख कर एक बार फिर शोभा ने कहा- देख ले मर्ज़ी तेरी है.. तेरी बात पर यहाँ कोई यकीन नहीं करेगा।
ये कह कर शोभा अपने कमरे में चली गई और अन्दर से दरवाजे बन्द करके.. बिस्तर पर लेट गई, लेटते ही बीते सालों की यादें उसके दिमाग़ में एक-एक करके ताज़ा होने लगीं…
फ़्लैशबैक-
यह उस समय की बात है, जब शोभा ने अपनी दूसरी संतान के रूप में अपने बेटे को जन्म दिया था और बेटे के जन्म के एक साल बाद ही शोभा का पति दुलारा चल बसा था, तब शोभा सिर्फ़ 24 साल की थी।
शादी के महज 3 साल में उसने दो संतानों को जन्म दिया था और पति की मौत ने उसे तोड़ कर रख दिया था, वो भरी जवानी में विधवा हो गई।
तब रतन की उम्र कम थी और तब रतन अक्सर शोभा के बच्चों के साथ खेला करता था और घर में सब का लाड़ला था।
वो अक्सर शोभा के कमरे में उसके बच्चों के साथ ही सोता था।
एक रात की बात है.. गर्मियों के दिन थे। रतन शोभा के कमरे में उसके बच्चों के साथ खेल रहा था।
शोभा के बच्चे खेलते-खेलते सो गए.. इतने में शोभा घर का काम निपटा कर कमरा में आ गई।
उसने देखा कि बच्चे सो गए हैं और रतन उनके पास बिस्तर पर लेटा हुआ है।
शोभा अपने साथ में रतन के लिए दूध से भरा गिलास लेकर आई थी।
उसने रतन को दूध पीने के लिए कहा। रतन बिस्तर से नीचे उतर कर खड़ा होकर दूध पीने लगा।
शोभा ने दरवाजे बन्द किए और अपने कपड़े बदलने लगी। गरमी के वजह से शोभा अक्सर रात को एक पतला सा पेटीकोट और ब्लाउज पहन कर सोती थी और वो अक्सर रतन के सामने अपने कपड़े बदल लेती थी।
क्योंकि रतन की उम्र उस समय बहुत ज्यादा नहीं थी, उस रात भी शोभा ने अपने कमरे में आने के बाद दरवाजे बन्द किए और अपने कपड़े बदलने लगी, रतन एक तरफ खड़ा होकर दूध पी रहा था…
शोभा ने सबसे पहले अपनी साड़ी को उतार कर टांगा और उसके बाद अपने ब्लाउज को खोल कर दूसरा ब्लाउज पहन लिया और फिर उसने अपना पेटीकोट को उतारा और टाँगने लगी.. इस दौरान रतन अपना दूध पीकर गिलास नीचे रख चुका था।
रतन ने गिलास नीचे रखा और बिस्तर पर जाकर बैठ गया।
उसने देखा कि शोभा काकी नीचे से पूरी नंगी हैं, उसके मोटी माँस से भारी पिछाड़ी देख कर रतन के लण्ड में पहली बार कुछ हरकत हुई, पर रतन सेक्स से एकदम अंजान था।
वो तो बस पूरा दिन इधर-उधर खेलता रहता था, पर आज मनुष्य की सहज प्रवत्ति के कारण उसके नजरें शोभा के मोटे-मोटे चूतड़ों पर जम गई।
शोभा ने अपना पेटीकोट उठाया, जो वो रात को सोने के समय पहनती थी और बिस्तर की तरफ बढ़ी। अब उसका मुँह रतन की तरफ था.. इस बात से अंजान थी कि रतन उसकी झाँटों भरी चूत को देख रहा है।
जैसे ही शोभा बिस्तर के पास पहुँची.. तो रतन के पैरों के नीचे से एक मोटा सा चूहा दौड़ता हुआ निकल गया। रतन एकदम से डर गया।
आख़िर उसकी उम्र ही क्या थी.. चूहे से डरते ही रतन एकदम से उछल पड़ा और पास खड़ी शोभा की कमर में अपनी बाहें डालते हुए उससे एकदम से चिपक गया।
अब नज़ारा यह था कि रतन बिस्तर पर बैठा हुआ था और शोभा उसके सामने खड़ी थी।
नीचे से एकदम नंगी और रतन उसके कमर में बाहें डाले डर के मारे उससे चिपका हुआ था।
रतन अपने चेहरे को डर के मारे शोभा की जाँघों के बीच में छुपाए हुए था।
शोभा का बदन एक पल के लिए अकड़ गया, जैसे उसके बदन में जान ही ना हो.. रतन की गरम साँसें उसे अपनी चूत पर साफ़ महसूस हो रही थी।
आज तकरबीन एक साल बाद शोभा की सोई हुई वासना एक बार फिर से अंगड़ाई लेने लगी.. शोभा ने काँपती हुई आवाज़ में रतन से पूछा- क्या हुआ बेटा..
रतन जो एकदम से घबरा गया था.. अपने चेहरे को उसकी जाँघों के बीच में छुपाए हुए बोला- काकी वो चूहा.. बहुत मोटा था।
जैसे ही रतन ने बोलने के लिए मुँह खोला तो उसके हिलते हुए गाल शोभा की चूत की फांकों पर रगड़ खा गए। शोभा एकदम से सिहर गई, उसके पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।
उसने रतन के बालों में प्यार से हाथ फेरा और उसके सर को पीछे हटाना चाहा..पर रतन बहुत ज्यादा डर गया था। वो अपना सर वहाँ से हटाना नहीं चाहता था।
‘बेटा वो चूहा चला गया है.. ओह्ह बेटा हट न..’ ये कहते हुए.. शोभा की चूत की फाँकें कुलबुलाने लगीं और उसकी चूत का कामरस चूत को नम करने लगा।
किसी तरह शोभा ने उससे अपने से अलग किया और इस बात की परवाह किए बिना कि उसने पेटीकोट नहीं पहना है… रतन को बिस्तर पर लेटने दिया और खुद पेटीकोट पहन कर रतन के बगल में लेट गई।
अब तक पति के मौत के बाद शोभा ने किसी पराए मर्द की तरफ देखा तक नहीं था.. भले ही गाँव के कुछ मनचले लड़के उसे आते-जाते खूब छेड़ते थे, पर वो अपने घर की इज़्ज़त को बचा कर रखना चाहती थी और आज भी शोभा के मन में ऐसा कोई भाव नहीं था।
शोभा- क्या रतन एक चूहे से डर गया.. अरे तू तो मेरा शेर है.. ऐसे थोड़ा डरते हैं।
‘काकी.. पर वो चूहा बहुत मोटा था।’ रतन ने भोलेपन से कहा।
ये देख कर शोभा के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
इससे पहले कि शोभा कुछ बोलती.. रतन शोभा से एकदम सट गया और एक बाजू को शोभा की कमर पर कस दिया।
रतन के चेहरा शोभा की गुंदाज चूचियों के बीच ब्लाउज के ऊपर से घुस गया।
शोभा को एक बार और झटका लगा.. जब रतन की साँसें उसकी चूचियों पर पड़ीं।
मदहोशी के आलम में शोभा की आँखें बंद होने लगीं।
शोभा ने रतन के चेहरे को पीछे हटाना चाहा, पर रतन ने ये बोल कर मना कर दिया कि उसे बहुत डर लग रहा है।
शोभा ने सब हालत पर छोड़ दिया, पता नहीं कब उसका एक हाथ रतन की पीठ पर आ गया और वो रतन को अपने से और सटाते हुए.. उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगी।
शोभा के द्वारा इस तरह सहलाए जाने पर रतन कुछ सामान्य सा हो गया और उसने बेफिक्री से अपनी एक टाँग उठा कर शोभा की जांघों पर रख दी, शोभा की चूत में पहले से ही आग लगी हुई थी।
रतन का लण्ड उस समय करीब 5 इंच लंबा था।
पेटीकोट के ऊपर से उठ रही चूत की गरमी से रतन के लण्ड मैं धीरे-धीरे तनाव आने लगा.. क्योंकि रतन का लण्ड ठीक शोभा की चूत के ऊपर रगड़ खा रहा था।
शोभा अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी और वो अपनी चूत के छेद पर रतन के लण्ड को साफ़ महसूस कर पा रही थी।
उसकी चूत के छेद से पानी बह कर उसकी जाँघों को गीला कर रहा था।
कई विचार उसके मन में उमड़ रहे थे, पर रिश्तों की मर्यादा उसे रोके हुए थी।
वो अभी इस उठा-पटक में थी कि उससे अहसास हुआ कि रतन नींद के आगोश में जा चुका है।
उसने रतन को अपने से अलग करके सीधा करके लेटा दिया और चैन की साँस लेते हुए मन ही मन बोली, शुक्र है भगवान का आज मैं कुछ ना कुछ पाप ज़रूर कर बैठती।
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भाग - 29
रतन उठ कर घर में बने हुए गुसलखाने की तरफ बढ़ा.. उसे बहुत तेज पेशाब लगी हुई थी, पर गुसलखाने के दरवाजे पर परदा टंगा हुआ था, जिसका मतलब था कि गुसलखाने के अन्दर घर की कोई ना कोई औरत नहा रही है।
हालांकि रतन की माँ और शोभा काकी रतन को बच्चा समझ कर अभी तक उससे परदा नहीं करती थे।
रतन ने गुसलखाने के बाहर से चिल्लाते हुए आवाज लगे- अन्दर कौन है…मुझे पेशाब करना है।
शोभा ने अन्दर से आवाज़ दी- मैं हूँ बेटा… थोड़ी देर रुक जा।
रतन- काकी मुझे बहुत ज़ोर से लगी है।
शोभा- तो फिर अन्दर आकर कर ले।
रतन एकदम से अन्दर घुस गया और अपना पजामे को नीचे करके मूतने लगा।
सुबह-सुबह पेशाब के कारण उसका साढ़े 5 इंच का लण्ड एकदम तना हुआ था।
रतन ने बैठ कर नहा रही शोभा की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया, जो एकदम मादरजात नंगी बैठी थी।
रतन एक तरफ दीवार के साइड में मूत रहा था और उसका लण्ड की चमड़ी आगे सुपारे पर से खिसकी हुई थी।
उसका गुलाबी सुपारा देख कर शोभा की आँखें एकदम से चौंधिया गईं।
ऐसा नहीं था कि शोभा ने कभी रतन के लण्ड को नहीं देखा था.. पर जब भी देखा था तब रतन का लण्ड मुरझाया हुआ होता था और छोटी से नूनी की तरह दिखता था, पर आज वो पहली बार वो रतन के काले 5 इंच के लण्ड को देख रही थी.. जो किसी सांप की तरह फुंफकारते हुए झटके खा रहा था।
मूतने के बाद रतन गुसलखाने से बाहर चला गया, पर शोभा का हाथ उसकी चूत पर कब आ गया था, उससे पता भी नहीं चला।
शोभा ‘आह’ भर कर रह गई, आज जब उसने रतन के खड़े लण्ड को देख लिया तो वो कल की बात पर पछताने लगी कि उसने कल इतना अच्छा मौका कैसे गंवा दिया।
दोपहर को रतन खाना खाने के बाद अपने दोस्तों के साथ खेलने के लिए घर से निकल गया।
दोस्तों के साथ खेलते-खेलते वो खेतों की तरफ निकल गया।
दोपहर की गरमी के कारण रतन भी जल्द ही थक गया और एक पेड़ के नीचे छाया में बैठ गया।
उसके दोस्त हरी घास पर लेट गइ और ऊंघने लगे, पर रतन बैठा हुआ इधर-उधर देख रहा था।
वो और उसके दोस्त अक्सर खेलने के बाद वहाँ पर आराम करते थे और उसके बाद अपने घरों को लौट जाते थे।
गरमी की वजह से रतन को बहुत प्यास लग रही थी.. उसने अपने साथ के एक दोस्त को साथ चलने के लिए कहा, पर उसने मना कर दिया।
थोड़ी दूर एक कुँआ था।
रतन उठ कर अकेला ही कुँए की तरफ चल पड़ा।
धूप की वजह से चारों तरफ सन्नाटा फैला हुआ था, जैसे ही वो कुँआ के पास पहुँचा.. उसे कुँए से कुछ दूर उगी हुई झाड़ियों में कुछ हरकत होती सी दिखाई दी।
जिज्ञासा-वश रतन उस तरफ को गया, झाड़ियों को हटाते हुए रतन आगे बढ़ ही रहा था कि अचानक से उसके कदम रुक गए, उसके सामने जो हो रहा था, वो उसकी समझ के परे था।
उसी के पड़ोस में रहने वाली, एक लड़की जिसका नाम गुंजा था.. ज़मीन पर एक पुराने से कपड़े पर लेटी हुई थी.. उसका लहंगा उसकी कमर तक चढ़ा हुआ था और उसी के गाँव का लड़का जिसकी उम्र कोई 22 साल के करीब थी.. वो उसके ऊपर लेटा हुआ तेज़ी से उसकी चूत में अपना लण्ड डाल कर धक्के लगा रहा था।
गुंजा दबी आवाज़ में सिसिया रही थी..
जहाँ पर रतन खड़ा था, वहाँ से गुंजा की चूत में अन्दर-बाहर हो रहा उस लड़के का लण्ड साफ दिखाई दे रहा था।
दोनों झड़ने के बेहद करीब थे।
गुंजा- जल्दी करो ना.. मेरे माँ मुझे ढूँढ़ रही होगी.. आह आह्ह.. ज़ोर से चोद मुझे.. आह..
लड़का- बस मेरी रानी.. मेरा पानी निकलने ही वाला है… ओह्ह ये ले.. हो गया.. ले पी अपनी चूत में.. आह्ह..
दोनों झड़ कर हाँफने लगे, पर उसके बाद जैसे ही दोनों मुड़े.. दोनों के चेहरे का रंग रतन को देख कर उड़ गया।
उस लड़के ने जल्दी से अपने कपड़े पहने और रतन के पास आकर बोला- दोस्त रतन.. जो तूने अभी देखा वो किसी मत बताना.. वरना गाँव वाले हमें गाँव से निकाल देंगे।
गुंजा- हाँ रतन.. देख तू जो बोलेगा.. मैं करूँगी.. तुम्हें जो चाहिए वो तुम्हें ये भैया लाकर देंगे.. पर किसी को बताना नहीं।
सब कुछ रतन की समझ से ऊपर जा रहा था, वो बोला- पर आप ये कर क्या रहे थे?
लड़का रतन की नादानी को ताड़ गया और उसको प्यार से पुचकारते हुए.. अपने साथ उस कपड़े पर बैठा लिया- हम चुदाई का खेल रहे थे..रतन यार, पता इसमें बहुत मज़ा आता है..
रतन ने एक बार दोनों की तरफ देखा- मज़ा आता है.. पर कैसे..?
लड़का- देख जब लड़का और लड़की बड़े हो जाते हैं, तो लड़का अपना लण्ड लड़की की चूत में डाल कर अन्दर-बाहर करता है…उसे चुदाई कहते हैं, सच में बहुत मज़ा आता है।
रतन- नहीं.. तुम जरूर कोई ग़लत काम कर रहे थे, इसमें क्या मज़ा आता है?
लड़का- अच्छा तो तू मज़ा लेकर देखना चाहता है।
एक बार लेकर देख फिर तुम्हें पता चलेगा कि चुदाई में कितना मज़ा आता है।
ये कहते हुए.. उस लड़के ने गुंजा को इशारा किया, गुंजा रतन के पास बैठ गई और एक हाथ धीरे-धीरे से उसकी जांघ के ऊपर रख कर सहलाने लगी।
गुंजा के नरम हाथों का स्पर्श रतन को अपनी जाँघों पर बहुत उत्तेजक लग रहा था, इसलिए रतन ने कुछ नहीं बोला।
रतन को चुप देख कर गुंजा ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर रतन के लण्ड को पजामे के ऊपर से पकड़ लिया..और धीरे-धीरे उसके लण्ड को सहलाने लगी।
रतन का बदन बुरी तरह से काँप गया, उसकी आँखें मस्ती में बंद हो गईं.. मौका देखते ही लड़के ने गुंजा को इशारा किया और वो उठ कर वहाँ से चला गया।
गुंजा ने रतन के पजामे का नाड़ा खोला तो रतन को जैसे होश आया, ‘ये क्या कर रही है दीदी..’ रतन ने सवाल किया।
‘तू बस अब मज़े ले.. देख कितना मज़ा आता है..’
ये कह कर उसने रतन के पजामे को नीचे कर दिया। उसका लण्ड पूरी तरह से तन चुका था।
‘अरे वाह रतन तेरा लण्ड भी बहुत बड़ा है।’ ये कहते हुए गुंजा ने झुक कर उसके लण्ड को मुँह में भर कर चूसना चालू कर दिया।
रतन को आज पहली बार वो मज़ा आ रहा था, जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
उसकी आँखें मस्ती में बंद होने लगीं।
गुंजा लगातार ज़ोर-ज़ोर से उसके लण्ड को अपने मुँह के अन्दर-बाहर करते हुए, उसके लण्ड को चूस रही थी और रतन जन्नत की सैर कर रहा था।
ये सब रतन देर तक नहीं झेल पाया और गुंजा के मुँह में पहली बार झड़ गया।
आनन्द अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका था, कुछ ही पलों में रतन का लण्ड मुरझा गया।
गुंजा ने अपने मुँह को साफ़ करते हुए कहा- क्यों रतन मज़ा आया?
रतन- हाँ दीदी.. बहुत मज़ा आया..
गुंजा- चल.. अब अपना पजामा पहन ले।
रतन- पर दीदी मुझे भी वैसे करना है… जैसे वो लड़का तुझे कर रहा था।
गुंजा- आज नहीं रतन.. मुझे बहुत देर हो गई है, आज के लिए इतना ही काफ़ी है।
यह कह कर गुंजा चली गई।
रतन भी अपने दोस्तों के साथ आकर बैठ गया। वो ये सब किसी से कहना चाहता था..पर किसे बताए.. ये वो तय नहीं कर पा रहा था।
फिर वो अपने दोस्तों के साथ घर वापिस आ गया।
शाम ढल चुकी थी और रतन की माँ अपने घर के पीछे खेतों में जा रही थी।
उनके खेतों के बीचों-बीच भैंसों को बाँधने के लिए दो कमरे बने हुए थे।
रतन की माँ कमला दूध दुहने के लिए खेतों में जा रही थी.. रतन भी अपनी माँ के साथ हो लिया।
जैसे वो भैसों के कमरे के पास पहुँचे, तो रतन को पीछे से गुंजा की आवाज़ आई।
गुंजा- अरे काकी कैसी हो.. दूध दुहने आई हो।
कमला- हाँ बेटी.. दूध दुहने ही आई थी, आज तुम्हारी माँ नहीं आई दूध दुहने?
‘नहीं काकी.. माँ की तबियत थोड़ी खराब है।’
गुंजा ने रतन की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए कहा और हल्की सी आँख भी दबा दी।
कमला- अच्छा.. अच्छा..
गुंजा अपने खेत में बने हुए कमरे के तरफ बढ़ गई, जहाँ वो अपनी भैंसों को बांधती थी।
रतन- माँ.. मैं गुंजा दीदी के साथ जाऊँ?
कमला- हाँ जाओ..पर ज्यादा शरारत मत करना।
रतन- ठीक है माँ।
रतन गुंजा के पीछे चल पड़ा.. गुंजा ने एक बार पीछे मुड़ कर रतन की तरफ देखा, उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई, फिर गुंजा और रतन दोनों उस कमरे के अन्दर चले गए.. जहाँ पर गुंजा के घर वाले भैंसें बांधते थे।
अन्दर आते ही गुंजा ने रतन को अपने पास खींच लिया और उसका एक हाथ पकड़ कर अपनी चूत पर लहँगे के ऊपर से रखा और रतन की तरफ नशीली आँखों से देखते हुए बोली- दोपहर को मज़ा आया था ना..
रतन का दिल जोरों से धड़क रहा था, हाथ-पैर अनजानी उत्सुकता के कारण काँप रहे थे। रतन ने गुंजा की तरफ देखते हुए ‘हाँ’ में सर हिला दिया।
गुंजा ने एक बार कमरे से बाहर झाँक कर देखा, बाहर दूर-दूर तक कोई नहीं था, फिर गुंजा एक दीवार से सट गई और अपने लहँगे को अपनी कमर तक ऊपर उठा दिया।
यह देख कर रतन के दिल की धड़कनें और तेज हो गईं।
उसके सामने गुंजा के एकदम साफ़.. बिना झांटों वाली चूत थी.. जिसकी फाँकें आपस में सटी हुई थीं।
गुंजा की चूत देखते ही, रतन के दिमाग़ में कल रात देखी.. अपनी काकी शोभा की चूत आँखों के सामने घूम गई।
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भाग - 30
गुंजा की चूत की उलट शोभा की चूत बहुत ही घनी झाँटों से भरी हुई थी।
अपनी चूत की तरफ रतन को यूँ घूरता देख कर गुंजा के चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गई.. उसने रतन को इशारे से पास आने के लिए कहा।
रतन काँपते हुए क़दमों के साथ गुंजा की तरफ बढ़ा।
जैसे ही रतन गुंजा के पास पहुँचा, गुंजा ने रतन के कंधे पर हाथ रख कर उसने नीचे की ओर दबाया।
रतन गुंजा का इशारा तुरंत समझ गया और नीचे पैरों के बल बैठ गया।
अब गुंजा की चूत ठीक रतन के मुँह के सामने थी, गुंजा उसकी गरम साँसों को अपनी चूत पर महसूस करके मदहोश हुए जा रही थी।
उसने रतन के सर को पकड़ कर उसके चेहरे को अपनी चूत पर लगा दिया, उसका पूरा बदन मस्ती में काँप गया।
‘आह रतन ओह्ह.. चूस्स्स ना.. मेरी चूत ओह्ह…’
गुंजा ने कसमसाते हुए कहा और फिर रतन के सर को छोड़ कर अपने दोनों हाथों से अपनी चूत की फांकों को फैला दिया।
अब रतन के सामने गुंजा की चूत का लपलपाता छेद आ गया.. उसकी चूत का दाना एकदम फूला हुआ था।
गुंजा ने उसने अपनी ऊँगली से रगड़ते हुआ कहा- ले रतन चूस इसे मेरे जान… कब से मरी जा रही हूँ।
गुंजा की कामुक सिसकारियाँ रतन के ऊपर अपना जादू सा कर रही थीं और रतन मन्त्र-मुग्ध होकर अपने होंठों को उसकी चूत की तरफ बढ़ाने लगा।
गुंजा ने अपनी आँखें बंद कर लीं और फिर एक ज़ोर से ‘सस्स्स्स्सिईई’ के आवाज़ के साथ उसका पूरा बदन अकड़ गया..
रतन ने उसकी चूत के दाने को मुँह में भर कर चूसना चालू कर दिया।
गुंजा दीवार से पीठ टिका कर अपनी जाँघें फैलाए खड़ी थी और अपने बालों को मस्ती में नोचने लगी।
गुंजा- ओह्ह हाँ.. रतन ओह चूस.. ज़ोर से..इई आह्ह.. आह्ह.. मर..गइईई.. बहुत मज़ा आ रहा है.. ओ माआ.. ओहुम्ह ओह्ह हा..आँ चूस्स्स मेरी चूत को ह ह…
गुंजा की चूत से निकल रहे कामरस का स्वाद रतन थोड़ी देर के लिए अटपटा सा लगा, पर गुंजा की मदहोशी और मस्ती से भरी सिसकारियाँ उस पर अलग सा नशा कर रही थीं।
गुंजा कभी रतन के सर को अपने दोनों हाथों से कस कर पकड़ लेती, तो कभी वो अपने बालों को नोचने लगती।
रतन उसकी चूत को ऐसे चूस रहा था मानो कोई बच्चा माँ का दूध पीता हो.. गुंजा की मस्ती का कोई ठिकाना नहीं था और रतन को तो मानो कोई नई चीज़ मिल गई हो।
वो बड़ी तन्मयता के साथ उसकी चूत की दाने को चूस रहा था।
गुंजा का पूरा बदन दोहरा हुआ जा रहा था, फिर एकदम से गुंजा का बदन ढीला पड़ गया और उसके चेहरे पर गहरी मुस्कान फ़ैल गई।
गुंजा को शांत देख कर रतन ने अपना चेहरा उसकी चूत से हटाया और खड़ा हो गया।
गुंजा ने अपनी वासना से भरी आँखों को खोल कर रतन की तरफ देखा।
उसके होंठों पर गुंजा की चूत से निकला हुआ कामरस लगा हुआ था। गुंजा ने अपने लहँगे को पकड़ कर उसके चेहरे को साफ़ किया।
इससे पहले कि गुंजा या रतन कुछ बोलती.. दूर खड़ी माँ ने रतन को चिल्लाते हुए आवाज़ लगाई।
वो रतन को घर चलने के लिए कह रही थी, उसकी माँ दूध दुह चुकी थी। बेचारा रतन मुँह लटका कर कमरे से निकल कर माँ की तरफ चल पड़ा।
चुदाई का जो मज़ा आज रतन को मिला था, वो उसी की याद में दिन भर इधर-उधर भटकता रहा।
रात ढल चुकी थी, सब लोग खाना खा कर अपने कमरों में जा चुके थे।
उधर रतन शोभा के कमरे में बिस्तर पर लेटा हुआ था और सोने की कोशिश कर रहा था।
इतने में शोभा कमरे में आ गई।
रतन बिस्तर पर लेटा हुआ था, उसके बदन पर सिर्फ़ एक चड्डी थी, शायद गरमी के वजह से उसने कपड़े नहीं पहने थे।
वो अभी भी सुबह के घटना-क्रम में खोया हुआ था और उसका 5 इंच का लण्ड उस चड्डी को ऊपर उठाए हुए तना हुआ था।
जैसे ही शोभा दरवाजे बंद करके उसकी तरफ मुड़ी, तो सबसे पहले उसकी नज़र बिस्तर पर लेते हुए रतन पर पड़ी।
जो अपने ही ख्यालों की दुनिया में खोया हुआ था, फिर अचानक से उसकी नज़र रतन की चड्डी के तरफ पड़ी, जो आगे से फूली हुई थी।
शोभा के दिमाग़ में उसी पल आज सुबह हुई घटना गूँज गई और उसके आँखों के सामने वो नज़ारा आ गया.. जब उसने रतन के काले लण्ड और उसके गुलाबी सुपारे को देखा था।
आज उसके भतीजे का लण्ड फिर से सर उठाए हुआ था, जैसे वो अपनी काकी को सलामी दे रहा हो।
पर रतन तो जैसे इस दुनिया में ही नहीं था, उससे ये भी नहीं पता था कि उसकी काकी कमरे में आ चुकी हैं।
अपने भतीजे का लण्ड यूँ चड्डी में खड़ा देख कर एक बार शोभा की आँखों में अजीब सी चमक आ गई और उसके होंठों पर लंबी मुस्कान फ़ैल गई।
शोभा- रतन बेटा.. कहाँ खोया हुआ है? दूध रखा है पी ले।
रतन शोभा की आवाज़ सुन कर एकदम से चौंकते हुए बोला- जी.. जी काकी जी।
जैसे ही रतन खड़ा होने को हुआ तो उसका ध्यान अपने लण्ड की तरफ गया जो एकदम तना हुआ था और उसकी चड्डी को फाड़ कर बाहर आने के लिए तैयार था।
रतन ने बिस्तर पर बैठते हुए, अपनी दोनों जाँघों को आपस में सटा लिया ताकि काकी की नज़र उस पर ना पड़ सके।
पर रतन नहीं जानता था कि उसकी काकी कब से उसके तने हुए लण्ड को देख कर ठंडी ‘आहें’ भर रही थी।
शोभा ने रतन को यूँ थोड़ा परेशान देख कर कहा- क्या हुआ रतन… परेशान क्यों है?
अब रतन बेचारा क्या कहे कि उसका लण्ड गुंजा की वजह से सुबह से खड़ा है, वो बोला- वो काकी मुझे पेशाब आ रही है।
शोभा ने हँसते हुए कहा- तो जा.. फिर पेशाब कर आ… कहीं बिस्तर मत गीला कर देना।
रतन ने थोड़ा खीजते हुए कहा- क्या काकी..
शोभा जानती थी कि रतन अंधेरे में अकेला बाहर नहीं जाता है, तो वो बोली- अच्छा चल आ.. मैं तेरे साथ चलती हूँ।
यह कहते हुए शोभा ने अपनी साड़ी उतार कर टाँग दी, अब उसके बदन पर सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट था।
एक बार तो रतन भी अपनी काकी के गदराए हुए बदन को देखे बिना नहीं रह सका।
एकदम साँचे में ढला हुआ बदन.. 38 नाप की चूचियाँ.. हल्का सा गदराया हुआ पेट.. कद साढ़े 5 फुट के करीब.. गोरा रंग.. चेहरा भी पूरी तरह से भरा हुआ ये सब आज दूसरी नजर से देखकर तो रतन की और बुरी हालत हो गई।
शोभा यह जान चुकी थी।
जब तक वो रतन की तरफ देख रही है.. वो खड़ा नहीं होगा.. इसलिए उसने पलट कर दरवाजे खोला और बाहर चली गई और बाहर से आवाज़ लगाई, ‘रतन जल्दी आ जा… मुझे बहुत नींद आ रही है..’
जैसे ही काकी बाहर गईं.. रतन भी उठ कर बाहर चला गया.. बाहर बहुत अंधेरा था इसलिए रतन का संकोच थोड़ा कम हो गया।
गुसलखाने के पास जाकर शोभा रतन की तरफ पलटी।
उसने देखा कि रतन उससे नजरें चुराने की कोशिश कर रहा है। यह देख कर उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई, उसने रतन को पेशाब करने के लिए कहा।
रतन जल्दी से गुसलखाने में घुस गया।
शोभा रतन में आए अचानक इस बदलाव से थोड़ी हैरान जरूर थी, पर कल रात से उसमें भी बदलाव आ चुका था।
रतन के चाचा की मौत के बाद से ही रतन उसके कमरे में सो रहा था, पर आज तक उसके मन में रतन के लिए कभी ऐसा विचार नहीं आया था।
पर कल रात से उसकी अन्दर की छुपी हुई वासना ने फिर से सर उठा लिया था।
रतन गुसलखाने के अन्दर ठीक उसके सामने खड़ा था। उसकी पीठ शोभा की तरफ थी और रतन की चड्डी उसकी जाँघों तक नीचे उतरी हुई थी।
ये सब देख और रतन में आए बदलाव के बारे में सोच कर शोभा के मन में पता नहीं क्या आया, वो एकदम से गुसलखाने में घुस गई।
रतन अन्दर आई हुई शोभा को देखकर एकदम से चौंक गया और उसकी तरफ घबराते हुए देखने लगा। शोभा उसकी घबराहट ताड़ गई और उसकी ओर देखते हुए बोली- मुझे भी बहुत तेज पेशाब लगी थी।
यह कहते हुए.. उसने अपने पेटीकोट को पकड़ कर कमर तक उठा लिया और पैरों के बल नीचे बैठ गई।
भले ही बाहर अंधेरा था.. पर शोभा की झाँटों भरी चूत रतन से छुपी ना रह सकी।
फिर मूतने की तेज आवाज़ के साथ उसकी चूत से मूत की धार निकलने लगी, मूतने की आवाज सुन कर रतन का लण्ड और झटके खाने लगा।
शोभा ने देखा कि रतन मूत नहीं रहा है.. बस अपना लण्ड पकड़ कर खड़े हुए.. उसकी ओर चोर नज़रों से देख रहा है।
‘क्या हुआ.. पेशाब नहीं आ रही..?’ शोभा ने यूँ बैठे-बैठे ही कहा।
जिससे सुन कर राजू एकदम से हड़बड़ा गया और अपनी चड्डी ऊपर करके बिना कुछ बोले कमरे में चला गया।
शोभा के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
जब शोभा अन्दर आई तो उसने देखा कि रतन बिस्तर पर बैठा हुआ दूध पी रहा था।
अन्दर आने के बाद उसने दरवाजे बन्द किया और रतन की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए बोली- दूध पी लिया?
रतन ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए खाली गिलास नीचे रख दिया।
शोभा अकसर कमरे में कपड़े बदलने के वक़्त लालटेन की रोशनी कम कर देती थी, पर आज उसने ऐसा नहीं किया और फिर अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी।
रतन उसके पीछे बैठा.. टेड़ी नज़रों से उसकी तरफ देख रहा था।
जैसे ही शोभा के बदन से उसका पेटीकोट अलग हुआ तो रतन का लण्ड फिर से उसकी चड्डी के अन्दर कुलाँचे भरने लगा।
सामने ऊपर से बिल्कुल नंगी शोभा उसकी तरफ पीठ किए खड़ी थी.. उसकी कमर जो सांप की तरह बल खा रही थी।
उस पर से रतन चाह कर भी अपनी नज़र हटा नहीं पा रहा था।
शोभा ने अपना ब्लाउज टाँग कर दूसरा पतला सा ब्लाउज पहन लिया, पर उसके हुक बंद नहीं किए और फिर रतन की तरफ मुड़ी।
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03-01-2019, 11:59 AM
(This post was last modified: 03-01-2019, 11:59 AM by Starocks.)
भाग - 31
रतन की साँस मानो जैसे रुक गई हो, उसकी काकी उसके सामने खुले ब्लाउज में खड़ी थी.. उसके एक इंच लम्बे और आधा इंच मोटे चूचुक उसके ब्लाउज में से साफ़ झलक रहे थे।
गोरे रंग की चूचियों पर गहरे भूरे रंग के चूचुक एकदम कयामत ढा रहे थे, जिन्हें बड़ी ही कामुक निगाहों से रतन देख रहा था।
यह देख कर शोभा मन ही मन खुश हो रही थी।
पर अचानक से उसके दिमाग़ में एक सवाल उमड़ा कि क्या जो वो कर रही है, वो ठीक है?
नहीं.. ये बिल्कुल ठीक नहीं है.. मैंने रतन को हमेशा अपने बेटे की तरह माना है। उसे अपने हाथों से पाला-पोसा है…
ये सब ग़लत बात है।
यही सब सोचते हुए, उसने अपना पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसे अपने बदन से अलग कर दिया। एक बार फिर से अंजाने में ही उसने अपनी झाँटों भरी फूली हुई चूत को रतन को दिखा दिया।
रतन के दिमाग़ में शाम की घटना घूम गई।
जब वो उसकी चूत चाट रहा था, तब गुंजा कैसे मस्त होकर तड़फ रही थी और वही तड़फ अपनी काकी के चेहरे पर देखने का ख्याल भोले रतन के मन में आ गया।
जैसे ही शोभा ने अपना पेटीकोट टांगा.. रतन दौड़ता हुआ शोभा के बदन से जा चिपका। उसने अपने घुटनों को ज़मीन पर टिका दिया।
शोभा ने एकदम से हड़बड़ाते हुए रतन को पीछे हटाने की कोशिश करते हुए कहा- क्या.. क्या.. कर रहा है रतन.. पीछे हट…
रतन ने अपने चेहरे को शोभा की जाँघों में छुपाते हुए कहा- काकी वो कल वाला चूहा..
यह कह कर उसने अपने चेहरे को शोभा की जाँघों के बीच.. ठीक चूत के सामने सटा दिया।
रतन के नथुनों से बाहर आ रही गरम सांसों को महसूस करके एक बार फिर से शोभा के बदन वासना की खुमारी छाने लगी।
शोभा- कहाँ है चूहा.? पीछे हट।
शोभा ने रतन को अपने से अलग करने के कोशिश की और कहा- जा नहीं है… चूहा.. जाकर बैठ..
रतन- नहीं.. पहले आप भी साथ चलो।
यह कहते हुए रतन ने अपने होंठों को शोभा की चूत की फांकों पर रगड़ दिया।
शोभा की तो मानो जैसे साँस ही अटक गई हो, पूरा बदन काँप गया, गला ऐसे सूख गया जैसे कई दिनों से पानी ना पिया हो, पूरा बदन झटके खाने लगा और मुँह से हल्की सी मस्ती भरी ‘आह’ निकल गई।
चूत की फांकों पर होंठ पड़ते ही चूत ने अपने कामरस के खजाने से दो बूँदें बाहर निकल कर बरसों से सूख रही चूत की दीवारों को नम कर दिया।
शोभा ने काँपती हुई मदहोशी से भरी आवाज़ में कहा- रतनऊऊ.. हट नाआ…ओह्ह।
शोभा की मस्ती से भरी सिसकी सुन कर नादान रतन को लगा कि जैसे गुंजा को मज़ा आ रहा था, वैसे ही काकी को भी मज़ा आ रहा है।
रतन शोभा की बातों की तरफ ध्यान नहीं दे रहा था।
‘अच्छा चल मैं साथ चलती हूँ..’ यह कह कर उसने रतन को पीछे के तरफ धकेला, पर रतन अपनी बाँहों को उसकी कमर में कस कर लपेटे हुए था।
जैसे ही रतन पीछे की ओर लुड़का.. पीछे बिस्तर होने के वजह से रतन गिरते हुए बिस्तर पर बैठ गया।
शोभा ने अपने आप को संभालने के लिए रतन को उसके कंधों से थाम लिया, पर अपने आप को संभालने की कोशिश में शोभा की गदराई हुए जाँघें खुल गईं और रतन के होंठ ठीक शोभा की जाँघों के बीच चूत पर आ गए।
रतन ने एकदम से उसकी चूत की फांकों को अपने होंठों में दबा कर खींच दिया।
शोभा के बदन में मानो करंट कौंध गया। आँखें ऐसे खुल गईं..जैसे कभी बंद ही ना हुई हों।
उसने एक बार अपने आप को संभालते हुए.. रतन को पीछे किया। शोभा अब भी वैसी ही हालत में थी।
उसके ब्लाउज के सारे हुक्स खुले हुए थे और नीचे से वो मादरजात नंगी थी।
शोभा ने अपने आपको संभालते हुए लड़खड़ाती हुई आवाज़ में कहा।
‘चल.. अब अब लेट जा.. बहुत रात हो गई है..’
रतन ने शोभा का हाथ पकड़ लिया।
‘काकी आप भी साथ में लेट जाओ ना…’ रतन ने मासूमियत भरे हुए चेहरे से कहा, मन्त्र-मुग्ध हो चुकी शोभा भी बिना कुछ बोले उसी हालत में लेट गई।
दोनों एक-दूसरे की तरफ करवट लिए हुए लेटे थे।
शोभा असमंजस में थी कि उससे क्या हो रहा है।
क्या रतन ये सब जानबूझ कर तो नहीं कर रहा, या फिर ये सब उससे नादानी में हो गया।
शोभा जैसे ही करवट के बल लेटी, उसके ब्लाउज का पल्लू जो खुला था.. नीचे से ढलक गया।
उसकी 38 साइज़ की चूचियां बड़े-बड़े गहरे भूरे रँग के चूचुक रतन की आँखों के सामने थे। रतन से रहा नहीं गया और उसने एक ओर नादानी कर दी.. जो शायद शोभा की जिंदगी को बदल कर रख देने वाली थी।
रतन ने शोभा के बड़े-बड़े भूरे रंग के चूचकों की ओर देखते हुए कहा- काकी क्या मुन्ना अभी भी यहाँ से दूध पीता है?
शोभा ने बड़े प्यार से रतन के बालों को सहलाते हुए कहा- नहीं क्यों.. अब वो दूध नहीं पीता।
रतन- तो क्या इसमें अभी भी दूध आता है?
शोभा रतन की बातों से हैरान थी कि रतन ने कभी पहले ऐसे सवाल नहीं किए थे।
‘मुझे नहीं पता.. पर तू क्यों पूछ रहा है?’
रतन- वैसे ही पूछ रहा था.. मैं पीकर देखूं?
शोभा ने हंसते हुए उसके माथे को चूमते हुए कहा- तू दूध पिएगा…. नहीं.. जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो वो ये दूध नहीं पीते।
रतन- नहीं.. मुझे पीना है।
यह कहते हुए रतन ने शोभा का बाएं चूचुक को मुँह में भर लिया। इससे पहले कि शोभा कुछ बोल पाती या करती।
रतन की गरम जीभ को अपने मोटे भूरे रंग के चूचुक पर महसूस करते ही उसके बदन में मस्ती की तेज लहर दौड़ गई।
उसने रतन हटाना चाहा.. पर उसके बदन में मानो जैसे जान ही ना बची हो।
‘आह्ह.. रतन हट जाअ.. ना… कर.. नहीं तो तुझे डांट दूंगी.. ओह्ह से..इईईई रतन बेटा क्या कर रहा है… ओह रुक जा छोरे, नहीं तो तेरी काकी से आज पाप हो जाएगा…आहह।’
पर रतन तो जैसे उसकी बात सुन ही नहीं रहा था, वो इतना उत्तेजित हो गया था कि उसने जितना हो सकता था.. अपना मुँह खोल कर उसकी चूची को मुँह में भर कर चूसना चालू कर दिया।
रतन कोई बच्चा नहीं था.. शोभा की चूचियों को आज तक उसके बच्चों के सिवाए किसी नहीं चूसा था, यहाँ तक कि उसके पति ने भी नहीं।
शोभा की हालत खराब होती जा रही थी, अब वो बदहवासी में बड़बड़ाते हुए रतन को अपने से अलग करने के नाकामयाब कोशिश कर रही थी।
रतन पूरे ज़ोर से उसकी चूची के चूचुक को चूस रहा था, बरसों से दबा कामवासना का ज्वालामुखी फिर से दहकने लगा था।
अपने आप को इस पाप से बचाने के लिए शोभा ने आख़िर कोशिश की.. उसने रतन को कंधों से पकड़ कर पीछे हटाना चाहा.. पर रतन पीछे हटता।
उसके उलट वो खुद पीछे के ओर होते हुए एकदम सीधी हो गई।
पर रतन तो उससे ऐसे चिपका हुआ था.. मानो उसे अपनी काकी से कोई अलग ना कर सकता हो।
नतीजा यह हुआ कि अब शोभा पीठ के बल सीधी लेटी हुई थी और रतन उसके ऊपर झुका हुआ उसकी चूची को चूस रहा था..
उसका धड़ का नीचे वाला हिस्सा बिस्तर पर था।
रतन ने शोभा की चूची चूसते हुए नीचे की तरफ देखा.. उसकी कमर रह-रह कर झटके खा रही थी।
नीचे घुंघराले बालों से भरी हुई चूत का नज़ारा कुछ और ही था।
रतन को याद आया कि वो लड़का कैसे गुंजा के ऊपर चढ़ कर उससे चोद रहा था.. ये सोचते ही रतन शोभा के ऊपर आ गया।
बदहवास हो चुकी शोभा को समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर हो क्या रहा है, इससे पहले के शोभा कुछ और कर पाती.. रतन शोभा के ऊपर आ चुका था।
उसका लण्ड उसकी चड्डी में एकदम तना हुआ था, जिससे वो ठीक शोभा काकी की चूत की फांकों के बीच आ टिका।
शोभा- आह.. रतन.. हट जाअ.. ओह ओह्ह तुम एई… सब्बब्ब सब्बब्ब क्यों ओह्ह..
शोभा इससे आगे नहीं बोल पाई, उसकी आँखें मस्ती में बंद हो गईं.. हाथ अपने भतीजे की पीठ पर आ गए और कामातुर होकर वो अपने भतीजे की पीठ को सहलाने लगी।
रतन समझ गया कि अब उसकी काकी को भी मजा आने लगा है।
अपनी चूत के मुहाने पर रतन के सख्त लण्ड को महसूस करके शोभा एकदम मदहोश हो गई।
उधर रतन अपनी जाँघों को शोभा की जाँघों के बीच में करने की कोशिश कर रहा था.. क्योंकि गुंजा ने भी चुदते वक़्त अपनी जाँघों को फैला कर उस लड़के की कमर पर लिपटाए रखा था और जब रतन का लण्ड झटका ख़ाता।
तो शोभा की चूत में सरसराहट दौड़ जाती और उसकी चूत लण्ड लेने के लिए मचलने लग जाती।
ऊपर तो रतन ने शोभा की चूची के चूचुक का चूस कर एकदम लाल कर दिया था।
शोभा के चूचक एकदम कड़क हो गए थे और नीचे रतन अपनी जाँघों को शोभा की जाँघों के बीच में सैट करने की कोशिश कर रहा था।
इसी धींगा-मस्ती में रतन का लण्ड चड्डी के ऊपर से शोभा की चूत की फांकों को फैला कर चूत के छेद पर जा लगा।
‘ओह्ह रतन..’ शोभा ने सिसयाते हुए अपनी जाँघों को ढीला छोड़ दिया।
रतन की जाँघें अब शोभा काकी की जाँघों के बीच में आ गईं।
रतन ने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपने चड्डी को नीचे सरकाना शुरू किया।
जब शोभा को इस बात का अहसास हुआ तो शोभा एकदम से हैरान रह गई और मन ही मन सोचने लगी- हे भगवान ये छोरा क्या करने जा रहा है। कहाँ से सीखा इसने ये सब.. मुझे इससे यहीं रोक देना चाहिए।
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भाग - 32
शोभा ने अपनी नशीली आँखों को बड़ी मुश्किल से खोला और रतन की तरफ देखा.. जो उसकी अब दूसरी चूची को चूसने में लगा हुआ था और फिर कहा- ये क्या कर रहा है… रतन ये.. ठीक नहीं है बेटा ओह्ह..’
रतन ने अपने दाँतों को हल्का सा शोभा के चूचुक पर गड़ा दिया.. शोभा के आँखें फिर से मस्ती और दर्द के कारण बंद हो गईं।
पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी.. रतन ने अपनी चड्डी को अपनी जाँघों तक सरका दिया था और अपने लण्ड को उसकी चूत की फांकों पर रख कर पागलों की तरह धक्के लगाने लगा।
नादान रतन को चूत का छेद नहीं मिला.. पर अपने लण्ड के सुपारे को शोभा की चूत की फांकों और इधर-उधर रगड़ते हुए रतन पागल हुआ जा रहा था।
वो लगातार अपने लण्ड को उसकी चूत की फांकों पर रगड़ने लगा।
शोभा कामवासना से बेहाल हो गई और वो रतन की पीठ को अपने हाथों से और तेज़ी से सहलाने लगी..
जब रतन का लण्ड शोभा की चूत की फांकों के बीच रगड़ ख़ाता हुआ.. उसकी चूत के दाने से घिसटता.. तो शोभा का पूरा बदन मस्ती की लहर में काँप जाता।
शोभा की चूत में से पानी निकल कर उसकी गाण्ड के छेद को भिगोने लगा और वो अपनी गाण्ड के छेद पर गीला पर महसूस करके और मदहोश हो गई।
शोभा- आह रुक जा बेटा… मैं ये पाप नहीं कर सकती… ओह रतन में पागल हो जाऊँगी.. रुक जा.. अह रुक जा..
शोभा अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी, उसकी चूत का छेद कभी सिकुड़ता और कभी फ़ैलता, उससे अब और रुक पाना बर्दाश्त के बाहर था।
कामातुर होकर शोभा ने अचानक से रतन के चेहरे को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर ऊपर उठा दिया।
उसका चूचुक खींचता हुआ रतन के मुँह से बाहर आ गया।
मस्ती की मीठी लहर उसके बदन में दौड़ गई।
दोनों एक-दूसरे की आँखों में देख रहे थे।
शोभा बुरी तरह हाँफ रही थी, उसकी चूचियां साँस लेने से ऊपर-नीचे हो रही थीं.. फिर अचानक से जैसे एक तूफान आ गया हो.. उसने पलक झपकते ही, रतन के होंठों को अपने होंठों में भर लिया और पागलों की तरह उसके होंठों को चूसने लगी।
रतन को चुदाई के खेल में मानो एक नई चीज़ मिल गई हो, वो भी अपनी काकी के क़दमों पर चलते हुए, उसके होंठों को चूसने की कोशिश करने लगा, पर कहाँ एक भरे-पूरे जवान मदमस्त गदराई हुई औरत और कहाँ वो रतन.. जो अभी जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था।
वो भला शोभा का क्या मुक़ाबला कर पाता, पर कामवासना में जलती हुई शोभा ने मानो जैसे अपने आप को उस लड़के के सामने समर्पित कर दिया हो।
शोभा ने अपने होंठों को हल्का सा खोल कर ढीला छोड़ दिया.. रतन तो जैसे सातवें आसामान में उड़ रहा था।
वो पागलों की तरह शोभा के होंठों पर टूट पड़ा और उसके होंठों को चूस-चूस कर लाल करने लगा।
अपने रसीले होंठों को एक नई उम्र के लौंडे से चुसवाते हुए, शोभा बहुत ज्यादा उतेज़ित हो रही थी।
नीचे रतन अभी भी अपनी कमर को चोदने वाले ढंग से हिला रहा था।
होंठों को चूसते हुए उसको ये भी नहीं पता था कि उसका लण्ड अब शोभा के गदराए हुए पेट पर रगड़ खा रहा है।
शोभा अब पूरी तरह बहक चुकी थी।
उसने अपनी जाँघों को पूरा खोल कर फैला लिया और अपना एक हाथ नीचे ले जाकर रतन के लण्ड को पकड़ लिया।
काकी के नरम हाथों का स्पर्श अपने लण्ड पर पाते ही रतन ने अपनी कमर हिलाना बंद कर दिया और अपने होंठों को काकी के होंठों से हटाते हुए.. उसकी तरफ देखने लगा।
शोभा ने बड़ी मुश्किल से अपनी आँखों को खोल कर रतन के तरफ देखा।
शोभा ने थरथराती आवाज में कहा- तुझे पता है… तू क्या करने जा रहा है?
रतन ने मासूमियत के साथ कहा- काकी मैं तुम्हें चोदने जा रहा हूँ।
शोभा को यकीन नहीं हो रहा था.. जो रतन कह रहा है, पर अब शोभा के पास सोचने का वक़्त नहीं था।
उसने रतन के लण्ड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर उसके सुपारे को लगा दिया।
गरम सुपारे को अपनी रिसती हुई चूत के छेद पर महसूस करते ही.. शोभा के बदन में बिजली सी कौंध गई।
रतन को लगा जैसे उसका लण्ड किसी जलती हुई चीज़ के साथ लगा दिया गया हो।
शोभा ने अपनी आँखें बंद किए हुए उखड़ी हुई आवाज़ में बोला- ले मेरे लाल चोद ले अपनी काकी को..
ये कहते हुए शोभा ने अपनी जाँघों को फैला कर घुटनों से मोड़ कर ऊपर उठा लिया और रतन के लण्ड को जड़ से पकड़ कर अपनी चूत को ऊपर की तरफ करने लगी।
रतन का लण्ड शोभा की गीली चूत की फांकों को फ़ैलाता हुआ अन्दर घुसने लगा।
शोभा रतन के लण्ड के सुपारे को अपनी चूत की दीवारों पर महसूस करके बेहाल होने लगी।
धीरे-धीरे रतन का आधा लण्ड शोभा की चूत में चला गया और रतन ने जोश में आकर जोरदार धक्का मारा, उसका लण्ड काकी की चूत में फिसलता हुआ चूत की गहराईयों में समा गया।
‘आह्ह.. रतन… चोदद्द डाल.. अपनी काकी को ओह्ह से..इईईईई…’ शोभा ने सिसयाते हुए कहा।
शोभा की चूत में लण्ड पेल कर रतन खुशी से फूला नहीं समा रहा था, पर वो ये सब पहली बार कर रहा था और उससे डर था कि वो कहीं कुछ ग़लत ना कर दे।
रतन ने शोभा की और देखते हुए कहा- काकी अब क्या करूँ?
शोभा ने मदहोशी भरी आवाज़ में कहा- अब अपने लण्ड को धीरे-धीरे अन्दर-बाहर कर.. पूरा बाहर मत निकालना.. आह्ह..
रतन ने धीरे-धीरे से अपने आधे लण्ड को बाहर निकाला और फिर से अन्दर करने लगा, पर जैसे ही उससे अपने लण्ड के सुपारे पर चूत की दीवारों से रगड़ खा कर पैदा हुई सनसनी महसूस हुई.. रतन अपना आपा खो बैठा और उसने पूरी रफ़्तार से अपने लण्ड को शोभा की चूत में ठूँस दिया।
शोभा तो मानो ऐसे लण्ड के धक्के के साथ स्वर्ग में पहुँच गई हो।
उसकी चूत की दीवारों ने उसके लण्ड को जकड़ लिया।
मानो अन्दर ही अन्दर उसके लण्ड को निचोड़ रही हो और चूम रही हो।
‘ओह रतन मैं पागल हो जाऊँगी… चोद ना.. मुझे चोद.. अपनी काकी की फुद्दी को… ओह बहुत सुकून मिला है.. आज्ज्जज्ज.. तेरी काकी की चूत…को..’
ये कहते हुए शोभा ने अपने पैरों को मोड़ कर रतन की कमर पर लपेट लिया।
रतन के चेहरे को अपने हाथों से भर कर उसके होंठों पर फिर से अपने होंठों को रख दिया।
रतन एक बार फिर से अपनी काकी के रसीले होंठों का रसपान करने लगा।
नीचे से उसकी काकी लगातार गाण्ड को ऊपर की ओर उछालते हुए, रतन के लण्ड को अपनी चूत के अन्दर ले रही थी।
चूत गीली होने के कारण रतन का लण्ड आसानी से उसकी चूत के अन्दर-बाहर हो रहा था और शोभा भी अपनी गाण्ड उछाल-उछाल कर रतन का साथ दे रही थी।
कामवासना की आग में जल रही शोभा पहले से ही बहुत ज्यादा गरम थी।
वो खुद ही अपने हाथों से अपनी चूचियों के चूचकों को मसल रही थी।
दरअसल वो जानती थी कि रतन उससे बीच रास्ते में छोड़ सकता है और इतने दिनों बाद चुदाने के बाद वो अगर नहीं झड़ती, तो शायद पागल हो जाती।
रतन का लगातार आत्मविश्वास बढ़ता जा रहा था और उसके धक्कों की रफ्तार तेज होती जा रही थी।
जो शोभा को उस चरम सुख की ओर ले जा रही थी… जो उसे कई सालों बाद मिलने वाला था।
फिर तो जैसे वासना का भूत शोभा पर सवार हो गया, उसने अपनी बाँहों को रतन के पीठ पर कस लिया और पूरी रफ़्तार से अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछालते हुए रतन के लण्ड पर अपनी चूत पटकने लगी।
शोभा- आह्ह.. रतन मेरे बच्चे.. उहह ओह्ह..इईईई आह्ह.. आह बस.. मेरे लाल.. थोड़ा औ..र ओह ओह..
रतन- काकी मेरा पानी निकलने वाला है।
शोभा- आह्ह.. ओह्ह चोद मुझे ओह मेरी.. चूत में निकाल दे…अई ओह ओह्ह..
शोभा का बदन एकदम से अकड़ गया।
झड़ते हुए उसका बदन बुरी तरह से काँप रहा था, रतन भी शोभा की चूत की गरमी को झेल ना पाया और उसकी चूत में अपने पानी की बौछार कर दी।
जब थोड़ी देर बाद शोभा को होश सा आया तो उसने अपने आप को रतन के नीचे एकदम नंगा पाया। उसका लण्ड झड़ने के बाद भी पूरी तरह से सिकुड़ा नहीं था।
शोभा अभी भी अपनी चूत में रतन के अधखड़े लण्ड को महसूस कर पा रही थी।
उसने रतन को अपने ऊपर से हटाया और बिस्तर पर उठ कर बैठ गई।
उसकी चूत से ढेर सारा पानी बाहर की तरफ बह रहा था, अपनी चूत से निकल रहे गरम पानी को देख एक बार तो शोभा के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई..पर फिर मन में विचार आया, ‘कहीं उसने कुछ ग़लत तो नहीं कर दिया… रतन का क्या…वो तो अभी बच्चा है…पर मुझे नहीं बहकना चाहिए था।’
शोभा बिस्तर से नीचे उतरी और अपना पेटीकोट पहन बाहर चली गई.. रतन ने भी अपनी चड्डी ऊपर की और लेट गया, दिन में दो बार झड़ने के कारण रतन को जल्द ही नींद आ गई।
उधर शोभा के मन में तूफान उठा हुआ था। वो इस सारी घटना का खुद को ज़िम्मेदार मान रही थी, उसने मन ही मन सोच लिया था कि आज जो हो गया। वो फिर दोबारा कभी नहीं होने देगी।
अपनी चूत साफ़ करने के बाद शोभा जब कमरे में आई, तब तक रतन सो चुका था।
शोभा ने दरवाजे बंद किए और रतन की तरफ पीठ करके सो गई।
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भाग - 33
करीब आधी रात के 2 बजे अचानक से शोभा की नींद टूटी.. उसे अपनी चूत पर कुछ रेंगता हुआ महसूस हुआ, जिसे महसूस करके शोभा की आँखें पूरी तरह खुल गईं।
कमरे में अभी भी लालटेन जल रही थी।
एक बार उसने उस तरफ देखा, जहाँ पर रतन लेटा हुआ था, पर रतन अपनी जगह पर नहीं था।
तभी उसके बदन में एकदम से सिहरन सी दौड़ गई।
उसे अपनी चूत के छेद पर कुछ गरम सा अहसास हुआ और शोभा को समझते देर ना लगी कि ये मखमली और गरम स्पर्श रतन की जीभ का है।
शोभा ने एकदम चौंकते हुए अपना सर उठा कर अपनी फैली हुई टाँगों के बीच में देखा.. काकी के बदन में हरकत महसूस करते ही, रतन ने भी अपने मुँह को चूत से हटा लिया और शोभा के चेहरे की ओर देखने लगा।
शोभा की आँखों में नींद और मस्ती की खुमारी भरी हुई थी।
शोभा ने कुछ बोलने के लिए अभी मुँह खोला ही था कि रतन ने फिर से काकी की चूत के छेद पर अपना मुँह लगा दिया।
‘आह रतन..’ शोभा के मुँह से मस्ती भरी हुई धीमी सी आवाज़ निकाली और उसकी आँखें फिर से बंद हो गईं।
रतन ने अपने दोनों हाथों से उसकी जाँघों के नीचे से घुटनों से पकड़ कर उसकी टाँगों को मोड़ कर ऊपर उठा दिया।
शोभा की गदराई हुई जाँघें एकदम फ़ैल गईं।
उसकी चूत का गुलाबी छेद अब रतन के आँखों के सामने नुमाया हो गया।
रतन अपनी चाहत भरी नज़रों से उसकी चूत की लबलबा रहे छेद को देख रहा था और अपनी जीभ को बाहर निकाल जीभ के नोक को उसकी चूत की फांकों को फैला कर चूत के गुलाबी हिस्से को चाट रहा था..
शोभा बिस्तर पर लेटी हुई मचल रही थी, उसको समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर वो रतन को कैसे रोके..
क्योंकि रतन से ज्यादा उसकी चूत लण्ड लेने के लिए मचल रही थी।
फिर अचानक से शोभा को अपनी चूत पर रतन की जीभ का महसूस होना बंद हो गया.. शोभा ने अपनी आँखें खोल कर देखा.. तो रतन उसके ऊपर झुका हुआ था।
शोभा की चूत का कामरस उसके होंठों पर लगा हुआ था और वो अपने होंठों को शोभा के होंठों की तरफ बढ़ा रहा था।
शोभा ने अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया।
जिससे रतन के होंठ शोभा के सेब जैसे लाल गालों से आ टकराए और वो अपनी काकी के लाल गालों को चूमने लगा..
नीचे उसका लण्ड काकी की चूत की फांकों से बार-बार टकरा रहा था।
जैसे वो काकी की चूत को अपने अन्दर लेने के गुज़ारिश कर रहा हो, जिससे महसूस करके शोभा ना चाहते हुए भी फिर से मदहोश हुए जा रही थी।
जब रतन ने देख कि उसके काकी अपने होंठों को उसके होंठों से बचाने की कोशिश कर रही है, तो उसने भी कोई ज्यादा ज़ोर नहीं दिया और झुक कर एक झटके में उसके ब्लाउज के हुक्स खोल दिए और काकी की एक चूची को मुँह में जितना हो सकता था, भर लिया।
रतन की गरम जीभ अपने एक इंच लंबे और मोटे चूचुक पर महसूस करते ही.. शोभा एकदम से मदहोश हो गई।
उसके पूरे बदन में बिजली की सरसाहरट कौंध गई।
शोभा के बदन के रोम-रोम में मस्ती की लहर दौड़ गई।
‘आह रतन हट ना..’ शोभा ने रतन से सिसयाते हुए कहा..पर रतन पूरी लगन के साथ उसके चूचुक को चूसने लगा।
उसका लण्ड पूरी तरह तना हुआ किसी लोहे की रॉड की तरह काकी की चूत की फांकों पर रगड़ ख़ाता हुआ अन्दर घुसने का रास्ता खोज रहा था।
जब बीच में उसका लण्ड शोभा की चूत की फांकों को रगड़ खा कर उसकी चूत के छेद से रगड़ ख़ाता।
तो शोभा के बदन में काम ज्वाला भड़क उठती।
इसी उथल-पुथल में रतन का तना हुआ लण्ड खुद ब खुद ही उसकी चूत के छेद पर आ टिका।
अपने भतीजे के लण्ड को अपनी चूत के छेद पर महसूस करके शोभा एकदम से मचल उठी और उसका अपनी कमर और गाण्ड पर काबू ना रहा।
काम-विभोर होकर शोभा की गाण्ड ऊपर की ओर उठने लगी और रतन के लण्ड का सुपारा शोभा की चूत के छेद के अन्दर सरकने लगा।
जैसे ही शोभा की चूत के छेद में रतन के लण्ड का सुपारा घुसा, शोभा का पूरा बदन मस्ती में काँप गया।
उसने अपने होंठों को अपने दाँतों से काटते हुए मस्ती भरी सिसकारियाँ भरना शुरू कर दीं।
शोभा ने रतन की पीठ पर तेज़ी से अपने दोनों हाथ घुमाते हुए कहा- आह्ह.. रतन ओह डाल दे..अपना लण्ड अपनी काकी की फुद्दी में आह्ह.. मेरी जान…
शोभा अभी भी लगातार अपनी गाण्ड को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठा रही थी और रतन का लण्ड अपनी काकी की चूत में धीरे-धीरे अन्दर बढ़ रहा था।
काकी की चूत ने एक बार फिर से अपने भतीजे के लण्ड का चूम कर स्वागत किया और चूत ने अपनी दीवारों के बीच लण्ड के सुपारे को जकड़ लिया।
रतन अपनी काकी को एक बार से चुदाई के लिए तैयार देख कर जोश में आ गया और अपनी पूरी ताक़त से जोरदार झटका मारा।
रतन का बाकी का लण्ड भी शोभा की चूत में समा गया।
अपने भतीजे के इस जोरदार धक्के से शोभा का पूरा बदन हिल गया।
उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई और बदन में कामवासना और भड़क उठी।
शोभा ने रतन के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए कहा- आहह.. रतन तू ऐसा क्यों कर रहा है, तुमने मुझसे आख़िर ये पाप करवा ही दिया।
रतन- नहीं काकी.. मैं तो आप को प्यार करता हूँ।
रतन की बात सुन कर शोभा ने उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और दोनों एक-दूसरे के होंठों को चूसने लगे।
नीचे रतन धीरे-धीरे अपने लण्ड को काकी की चूत में अन्दर-बाहर कर रहा था और लगातार उसके होंठों को चूसते हुए उसकी चूचियों को दबा रहा था।
शोभा भी अपनी जाँघें पूरे खोले हुए, अपनी गाण्ड को धीरे-धीरे ऊपर की और उछाल कर रतन का लण्ड ले रही थी।
कामवासना ने उन दोनों को रिश्ते को ताक पर रख दिया और शोभा को अपनी जवानी की आग को शांत करने के लिए एक जवान लण्ड मिल गया था।
रतन धीरे-धीरे इस खेल में अब माहिर होता जा रहा था.. अब कभी धक्का मारते वक़्त अगर उसका लण्ड अगर काकी की चूत से बाहर भी जाता, तो वो बिना पलक झपकाए अपने लण्ड को दोबारा काकी की चूत की गहराईयों में उतार देता।
तो दोस्तो, यह था.. रतन और शोभा की जिंदगी का इतिहास.. जो अब रज्जो के लिए नासूर बन गया था।
रज्जो अपनी माँ-बाप की ग़रीबी के चलते अपने आप को बेसहारा महसूस कर रही थी।
दूसरी तरफ राजू जैसे स्वर्ग में पहुँच गया था। ना किसी काम की चिंता, ना कोई फिकर..
सुबह-सुबह जब राजू उठा तो उसने देखा कि कुसुम बिस्तर पर एकदम नंगी उल्टी लेटी हुई थी, उसके और राजू के ऊपर रज़ाई पड़ी थी।
राजू कुसुम की तरफ पलटा और कुसुम की गाण्ड को सहलाने लगा, जिससे कुसुम भी जाग गई।
उसने राजू के हाथ को अपनी गाण्ड पर रेंगता हुआ महसूस किया, तो उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
उसने अपनी खुमारी भरी आँखों को खोल कर राजू की तरफ मुस्कुराते हुए देखा।
‘कब उठे तुम?’ कुसुम ने राजू से पूछा।
‘अभी थोड़ी देर पहले..’ ये कहते हुए राजू कुसुम के ऊपर आ गया।
कुसुम उल्टी लेती हुई थी.. जिसके कारण राजू का लण्ड कुसुम की गाण्ड की दरार में जा धंसा।
राजू के गरम लण्ड को अपनी गाण्ड के छेद पर महसूस करके कुसुम मदहोश हो गई।
‘आह.. क्या कर रहे हो.. सुबह-सुबह ये… तू भी ना राजू…’ कुसुम ने अपनी गाण्ड को धीरे-धीरे से इधर-उधर हिलाते हुए कहा।
जिसे राजू का लण्ड का सुपारा ठीक उसकी गाण्ड के छेद पर जा लगा।
‘आह्ह.. सी..इईईईईई राजू..’ कुसुम एकदम मस्तया गई।
यह देख कर राजू ने झुक कर कुसुम के होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसना चालू कर दिया।
राजू का लण्ड उसकी गाण्ड के छेद पर तना हुआ दस्तक दे रहा था।
कुसुम ने अपने होंठों को राजू के होंठों से अलग करते हुए कहा- ओह्ह.. क्या इरादा है तुम्हारा? कहीं.. अपनी मालकिन की गाण्ड तो नहीं मारनी?
राजू- मैं तो कब से आप से भीख माँग रहा हूँ.. पर आप करने ही नहीं देतीं।
कुसुम- नहीं राजू.. मुझे बहुत डर लगता है… मैंने कभी गाण्ड में किसी का लण्ड नहीं लिया..
तभी दरवाजे पर आहट हुई.. राजू कुसुम के ऊपर से उठ कर नीचे बगल में लेट गया और लता कमरे में दाखिल हुई।
अपनी बेटी और राजू को रज़ाई के अन्दर नंगे देख कर लता के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
‘तुम खुश हो ना यहाँ बेटी?’ लता ने कुसुम की तरफ देखते हुए कहा।
‘हाँ माँ.. मुझे भला यहाँ तुम्हारे रहते हुए क्या परेशानी हो सकती है..’ कुसुम ने भी अंगड़ाई लेते हुए कहा।
लता ने मेज पर चाय रखी और मुड़ कर चली गई।
लता के जाते ही, राजू ने एक बार फिर से कुसुम को अपनी बांहों में भर लिया.. पर कुसुम ने राजू को पीछे हटा दिया, ‘हटो ना रात भर सोने नहीं दिया.. अब तो बस करो।’
यह कह कर कुसुम उठ कर अपने साड़ी पहनने लगी।
राजू भी बेमन से उठा और अपने कपड़े पहन कर चाय पी कर बाहर चला गया।
दूसरी तरफ रतन को आज रज्जो को उसके मायके लेकर जाना था।
रतन के घर वाले इसकी तैयारी कर रहे थे और फिर रतन और रज्जो को तांगें में बैठा कर उसके घर के लिए रवाना कर दिया।
जब रज्जो अपने पति रतन के साथ अपने मायके पहुँची, तो चमेली अपनी बेटी और जमाई को देख कर बहुत खुश हुई.. उसने और उसके पति ने अपने जमाई के बहुत आवभगत की।
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भाग - 34
पड़ोस की कुछ भाभियाँ खबर सुनते ही चमेली के घर आ पहुँची और रज्जो को आगे वाले कमरे में ले जाकर उससे छेड़छाड़ करने लगीं। चमेली अपनी बेटी के उदास चेहरे को देख कर समझ गई थी, कुछ ना कुछ गड़बड़ है, कहीं लड़के में तो कोई कमी नहीं… ये सोच कर चमेली भी परेशान हो गई।
शाम को राजू ऊपर कमरे में बैठा हुआ था और बोर हो रहा था, क्योंकि नीचे कुसुम और लता पड़ोस की कुछ औरतों के साथ बातें कर रही थी.. राजू कुसुम को ये बोल कर घर से बाहर निकल गया कि वो थोड़ी देर घूमने के लिए जा रहा है।
आज तो सुबह से बहुत ठंड थी, सुबह से ही सूरज नहीं निकला था और शाम होते ही कोहरा छाने लगा था।
राजू घर से निकल कर खेतों की तरफ बढ़ने लगा, रास्ते में कुछ लोग खेतों से लौट रहे थे। राजू अपनी मस्ती में आगे बढ़ता जा रहा था। थोड़ी देर में ही राजू गाँव से निकल कर काफ़ी आगे आ चुका था, तभी उसे अपने आगे चलते हुए एक बंजारन नज़र आई.. उसने काले रंग का लहंगा पहना हुआ था और ऊपर एक सफ़ेद रंग का कुर्ता पहना हुआ था।
सर्दी की वजह से उसने अपने ऊपर एक कंबल सा ओढ़ रखा था। अपने पीछे से आती क़दमों की आहट सुन कर उस बंजारन ने पीछे मुड़ कर राजू की तरफ देखा और अपने ख्यालों में खोए हुए राजू ने जब उसकी तरफ देखा, तो दोनों की नजरें आपस में जा टकराईं।
एक पल के लिए उस बंजारन के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई और फिर से आगे देखते हुए चलने लगी। कोहरा और गहराता जा रहा था, तभी हल्की-हल्की बारिश भी शुरू हो गई।
राजू को ध्यान आया कि वो चलते हुए.. बहुत आगे निकल आया है और अगर बारिश तेज हो गई, तो वो इतनी ठंड में गीला हो जाएगा। उसके आगे चल रही बंजारन भी बारिश शुरू होते ही तेज़ी से चलने लगी और राजू भी तेज़ी से चलने लगा।
वो बंजारन एक पेड़ के नीचे जाकर रुक गई। सर छुपाने के लिए और कोई जगह ना देख कर राजू भी उसी पेड़ के नीचे जाकर खड़ा हो गया। बारिश अब तेज हो चुकी थी और वो घना पेड़ भी उनको बारिश के पानी से बचा नहीं पा रहा था। दोनों थोड़ा सा भीग गए थे। वो बंजारन कनखियों से बार-बार राजू की तरफ देख रही थी।
“तुम यहाँ के तो नहीं लगते.. किसी के घर पर मेहमान बन कर आए हो?” उस बंजारन ने राजू से पूछा।
राजू ने एकदम चौंकते हुए कहा- जी.. जी.. हाँ..।
फिर अचानक से उस बंजारन की नज़र थोड़ी दूरी पर बने एक कमरे की तरफ पड़ी। दूर से देखने पर ही वो ख़स्ता हालत में लग रहा था। बंजारन ने उस तरफ इशारा करते हुए कहा- वहाँ पर एक कमरा है, शायद वहाँ कोई हो..।”
ये कह कर वो बंजारन तेज़ी से चलते हुए, उस कमरे की तरफ जाने लगी। उसने अपने ऊपर ओढ़े हुए कंबल को उतार कर अपनी बाँहों में छुपा लिया, ताकि वो गीला ना हो। राजू भी उसके पीछे हो लिया।
जब दोनों उस कमरे के पास पहुँचे, तो उस कमरे पर एक बड़ा सा ताला लगा हुआ था.. जो कि जंग खाया हुआ था.. जिससे पता चलता था कि उस कमरे में बरसों से कोई नहीं रह रहा है। जिसे देख कर वो बंजारन थोड़ा परेशान हो गई.. बारिश तेज होती जा रही थी।
उस कमरे के पीछे बहुत से पेड़ लगे हुए थे। उसने सोचा यहाँ पर भीगने से अच्छा है कि वो पीछे पेड़ों के नीचे जाकर खड़ी हो जाए और वे दोनों कमरे के पीछे के तरफ पेड़ों की तरफ आ गए। सर्दी अब बहुत ज्यादा बढ़ गई थी। काले बादलों ने अंधेरा सा कर दिया था। जबकि अभी शाम के 5 ही बजे थे।
तभी राजू को कमरे के पीछे एक खिड़की दिखाई दी, जो टूटी हुई थी।
“ये देखो.. जहाँ से अन्दर जाया जा सकता है।” राजू ने खुश होते हुए कहा। खिड़की ज्यादा उँची नहीं थी, महज 3 फुट उँची खिड़की से आसानी से अन्दर घुसा जा सकता था।
राजू जल्दी से उस खिड़की को लाँघ कर कमरे में आ गया। उसके पीछे वो बंजारन भी आ गई। राजू ने उसका हाथ पकड़ कर नीचे उतरने में मदद की।
“क्या नाम है तुम्हारा..?” बंजारन ने राजू की तरफ देखते हुए पूछा।
राजू- मेरा नाम राजू है और तुम्हारा..?
बंजारन- मेरा नाम शब्बो है।
शब्बो की उम्र लगभग 32 साल की थी। उसका बदन एकदम मस्त था। दिन भर काम करने के कारण उसका बदन एकदम गठीला था। उसकी चूचियां ज्यादा बड़ी नहीं थीं, उसकी दोनों चूचियां आसानी से हाथों में समा सकती थीं.. पर एकदम कसी हुई और ठोस थीं।
सर्दी के कारण दोनों काँप रहे थे। कमरे में अन्दर आने के बाद शब्बो ने एक बार खिड़की से बाहर झाँका.. तो देखा, अब बारिश बहुत तेज हो चुकी थी।
आसमान में देखने से ऐसा लग रहा था कि बारिश जल्दी रुकने वाली नहीं है। उसने अपने ऊपर कंबल ओढ़ लिया.. कमरे में एक तरफ सूखी हुई घास का ढेर लगा हुआ था। राजू वहाँ पर जाकर बैठ गया, शब्बो भी उसके पास आकर बैठ गई।
“लगता है आज बहुत देर तक बारिश होगी..।” शब्बो ने बाहर की तरफ झाँकते हुए कहा।
राजू ने काँपते हुए कहा- हाँ.. लगता तो ऐसा ही है।
शब्बो- पर तुम इस समय यहाँ क्या कर रहे थे?
राजू- दरअसल मैं एक गाँव में सेठ के घर पर नौकर हूँ और उनकी पत्नी के साथ उनके मायके यहाँ पर आया था.. घर पर मन नहीं लग रहा था, तो सोचा थोड़ा घूम लेता हूँ..और आप क्या कर रही हैं इधर.. आपका घर कहाँ पर है?
शब्बो- अब क्या बताएं बाबू.. हम बंज़ारों का कहाँ कोई घर होता है… हम तो बस अपनी भैंसों के साथ एक गाँव से दूसरे गाँव भटकते रहते हैं। एक गाँव के बाहर 3-4 महीने तक ठहरते हैं और फिर किसी और जगह जाकर अपना डेरा डाल देते हैं। थोड़ी दूर जाने पर हमारा कबीला है..वहाँ पर हमने कुछ झोपड़ियाँ बनाई हुई हैं..फिलहाल तो वहीं रुके हुए हैं।
राजू- तो आपको आपके घर वाले ढूँढ़ रहे होंगे.. बहुत देर हो चुकी है ना..।
शब्बो- नहीं बाबू ऐसी बात नहीं है.. हमारा काम ही घूमना.. कई बार तो मुझे भी ऐसे बाहर रात काटनी पड़ी है.. कभी-कभी ऐसे जगह पर डेरा डालते हैं कि पानी ढूँढने के लिए दिन-दिन भर बाहर घूमना पड़ता है।
बातों-बातों में शब्बो का ध्यान राजू की तरफ गया। जो सर्दी के कारण बहुत काँप रहा था। शब्बो की शादी बहुत छोटी उम्र में हो गई थी और उसके दो बेटे राजू की उम्र के ही थे। शब्बो को उस पर दया आ गई।
शब्बो ने एक तरफ से कम्बल खोलते हुए कहा- अरे तुम तो बहुत काँप रहे हो बाबू.. मेरे पास इस कंबल में आ जाओ.. अगर तुम्हें ठीक लगे तो..।
राजू को बहुत ठंड लग रही थी, उसने एक बार शब्बो की तरफ देखा और फिर उस कंबल की ओर, जो थोड़ा सा मैला था.. पर ठंड से बचाने के लिए उसके पास और कोई चारा नहीं था। राजू खिसक कर शब्बो के पास आ गया।
अभी शब्बो की नज़र अचानक कमरे में पड़ी.. सूखी हुई लकड़ियों पर पड़ी और उसने उठ कर कंबल राजू को दे दिया और लकड़ियों को अपने पास कमरे के बीच में रख दिया.. फिर अपने कुर्ते की जेब से माचिस निकाल कर आग जलाने लगी।
आग जल गई.. शब्बो ने राहत की साँस ली। बाहर अब अंधेरा बढ़ रहा था और बारिश पूरे ज़ोर से हो रही थी। आग जलाने के बाद वो राजू के पास आकर बैठ गई और ऊपर कंबल ओढ़ लिया। कंबल ज्यादा बड़ा नहीं था.. दोनों के पीठ और कंधे तो ढक गए थे, पर सामने वाला हिस्सा खुला था.. जो सामने से उनको ढक नहीं पा रहा था।
बाहर से आती तेज और सर्द हवा से वो दोनों और काँप उठते, भले ही आग से थोड़ी गरमी मिल रही थी, पर सर्दी इतनी अधिक थी कि आग की तपिश ना के बराबर थी।
शब्बो ने सर्दी से ठिठुरते हुए कहा- ये कंबल थोड़ा छोटा है ना..।
राजू- ये ऐसे हम दोनों के ऊपर नहीं आएगा। आप इसे ओढ़ लो.. मैं ठीक हूँ।
शब्बो- ना बाबू.. सर्दी बहुत है। तबियत खराब हो जाएगी तुम्हारी..।
राजू खड़ा हो गया और खिड़की के से बाहर देखने लगा.. बाहर देख कर ऐसा लग रहा था कि आज तो मानो आसामान फट पड़ेगा.. वो निराश होकर वापिस आग के पास आकर बैठ गया।
“अरे बाबू कह रही हूँ ना… कंबल के अन्दर आ जाओ ठंड बहुत है.. बारिश बंद होने दो.. फिर चले जाना..।”
राजू- तुम मुझे बाबू क्यों कह रही हो..?मैं तो एक मामूली सा नौकर हूँ।
शब्बो ने हंसते हुए कहा- अरे.. वो हमारे घर में बाबू प्यार से बच्चों को कहते हैं.. चल इधर आ जा नहीं तो ठंड लग जाएगी।
राजू- पर ये बहुत छोटा है, हम दोनों को ठीक से ढक भी नहीं सकता।
शब्बो- अरे तो कौन सा सारी उम्र यहाँ पड़े रहना है… बारिश बंद होते चले तो जाना है।
राजू खड़ा हुआ.. शब्बो के ठीक पीछे जाकर बैठ गया। राजू शब्बो के पीछे जहाँ घास पर बैठा था.. वो ढेर शब्बो के बैठने वाली जगह से कुछ उँची थी। वो अपने टाँगों को घुटनों से मोड़ कर बैठ गया। उसके दोनों घुटने शब्बो के बगलों को छू रहे थे।
“लाओ कंबल दो..” राजू ने पीछे सैट होकर बैठते हुए कहा।
शब्बो कुछ समझ नहीं पाई और उसने कंबल राजू को दे दिया.. राजू ने अपने ऊपर कंबल ओढ़ कर आगे की तरफ बढ़ाया और शब्बो को पकड़ा दिया और फिर थोड़ा सा आगे खिसका। जिससे राजू का बदन शब्बो के पीठ से एकदम सट गया.. एक पल के लिए किसी अंज़ान और जवान लड़के के बदन का स्पर्श पाकर शब्बो का पूरा बदन सिहर गया।
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भाग - 35
वो थोड़ी हिचकी और आगे को सरकी, पर ठीक उसके आगे आग जल रही थी।
शब्बो ने सोचा अभी इस बच्चे से क्या शरमाना और कंबल को आगे से बंद कर दिया.. दोनों एकटक इसी हालत में बाहर खिड़की के ओर झाँक रहे थे कि कब बारिश बंद हो।
राजू एक मस्त और गदराए हुए बदन की औरत के इतने करीब होते हुए भी उसका ध्यान घर की तरफ था कि कुसुम चिंता कर रही होगी।
अनजाने में ही राजू का हाथ शब्बो की कमर पर जा लगा और उसने अपना हाथ वहीं रख दिया। राजू से अनजाने में हुई इस हरकत ने शब्बो के बदन को झिंझोड़ कर रख दिया। राजू के गरम हाथ के स्पर्श को अपनी कमर पर महसूस करके उसके पूरे बदन में मदहोशी छाने लगी और उसके बदन ने एक झटका खाया.. जिसे राजू ने भी महसूस किया।
राजू ने झट से अपना हाथ शब्बो की कमर से हटा लिया। इतने में बाहर जोरों से बदल गरजे। जिसकी आवाज़ सुन कर शब्बो एकदम सहम गई और पीछे को हो गई। उसकी पीठ अब पूरी तरह से राजू की छाती से चिपक गई थी।
इससे राजू का लण्ड अब उसके पजामे में फूलने लगा और वो तन कर शब्बो की कमर के नीचे चुभने लगा। जिससे महसूस करके शब्बो एकदम से चौंक गई। शब्बो के जिस्म की गरमी को महसूस करके राजू भी अपना आपा खोने लगा और शब्बो को जब उसका लण्ड अपनी कमर में चुभता सा महसूस हुआ.. तो उसने इस तरह बैठे रहना ठीक नहीं समझा और खड़ी होने लगी.. पर इससे पहले कि शब्बो खड़ी होती..
राजू ने अपना एक हाथ आगे ले जाकर शब्बो की मांसल जांघ पर रख दिया। शब्बो के पूरे बदन में करेंट सा दौड़ गया। उसने चौंकते हुए पीछे मुड़ कर राजू की तरफ देखा और दोनों की नजरें आपस में जा टकराईं।
वक़्त मानो कुछ पलों के लिए थम गया हो, राजू ने अपने हाथ से उसकी जांघ को मसलना चालू कर दिया, जिससे शब्बो का हाथ फ़ौरन राजू के हाथ के ऊपर आ गया और उसके हाथ को अपनी जांघ के ऊपर रेंगने से रोकने की कोशिश करने लगी। वो अब भी राजू की आँखों में देख रही थी.. जैसे कह रही हो… ना बाबू ऐसा मत करो…।
इससे पहले कि शब्बो कुछ और कर पाती.. राजू ने अपना दूसरा हाथ आगे ले जाकर शब्बो के बाईं चूची को दबोच लिया। शब्बो की चूचियां ज्यादा बड़ी नहीं थीं। उसकी चूची लगभग राजू के हाथ में समा गई थीं।
“अई.. ये.. क्या कर रहे हो बाबू हटो..।” शब्बो ने हड़बड़ाते हुए कहा।
पर राजू तो जैसे अपने होश में ही नहीं था.. वो एक हाथ से शब्बो की चूची दबाए हुए था और दूसरे हाथ से उसकी जांघ को सहला रहा था। शब्बो ना चाहते हुए भी मदहोश हुई जा रही थी।
वो, “बस ना करो बाबू..” बड़बड़ाए जा रही थी।
तभी शब्बो की मानो जैसे सांस हलक में अटक गई हो…उसकी चूत में तेज सरसराहट हुई और उसने अपनी दोनों जाँघों को भींच लिया।
क्योंकि राजू ने अपना हाथ सरका कर उसकी चूत पर रख कर सहलाना शुरू कर दिया था। शब्बो एकदम से हड़बड़ा गई और उठ कर खड़ी हो गई। उसने एक बार राजू की तरफ देखा। उसकी साँसें चढ़ी हुई थीं और उसकी चूचियां ऊपर-नीचे हो रही थीं। जिसे राजू अपनी खा जाने वाली नजरों से देख रहा था।
शब्बो ने नजरें नीचे झुका लीं और खिड़की पास जाकर खड़ी होकर बाहर देखने लगी। उसकी साँसें अभी भी तेज चल रही थीं। तभी उसको राजू के क़दमों की आहट अपने पास आती हुई महसूस हुई, शब्बो का दिल जोरों से धड़कने लगा। राजू शब्बो के पीछे जाकर खड़ा हो गया, शब्बो ने आगे सरकने की कोशिश की.. पर आगे जगह नहीं थी।
राजू ने आगे बढ़ कर शब्बो की गर्दन पर अपने दहकते होंठों को रख दिया। शब्बो के मुँह से मस्ती भरी ‘आह’ निकल गई।
उसकी आँखें मस्ती में धीरे-धीरे बंद होने लगीं। राजू के हाथ फिर से उसके खुली हुई जाँघों के ऊपर आ गए और वो उसके बदन को सहलाने लगा। शब्बो के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।
राजू का खड़ा लण्ड शब्बो के लहँगे के ऊपर उसकी गाण्ड के छेद पर दस्तक देने लगा। जिसे महसूस करके शब्बो का पूरा बदन मस्ती में कांपने लगा। उसकी चूत की फाँकें फड़फड़ाने लगीं।
शब्बो ने राजू को पीछे धकेला और तेजी से चलते हुए फिर उसी घास के ढेर के पास आ गई और झुक कर वहाँ पड़े कम्बल को बिछा दिया। राजू खिड़की पास खड़ा हैरान सा शब्बो की तरफ देख रहा था।
कंबल बिछाने के बाद शब्बो उस पर खड़ी हो गई। उसने एक बार राजू की ओर देखा और फिर अपने नज़रें नीचे कर लीं और अपने कुर्ते को पकड़ कर एक झटके से अपने बदन से अलग कर फेंक दिया, उसने नीचे कुछ नहीं पहना हुआ था।
आग की रोशनी में उसका नंगा जिस्म चमक उठा.. उसकी चूचियां एकदम कसी हुई और तनी हुई थीं। दो बच्चे पैदा करने के बाद भी उसकी चूचियां ज़रा भी ढीली नहीं पड़ी थीं।
फिर उसने एक बार राजू की तरफ देखा और कम्बल पर लेट गई। राजू ये सब देख कर एकदम से पागल हो गया.. उसने अपना पजामा उतार कर एक तरफ फेंक दिया और शब्बो की तरफ बढ़ा।
राजू का 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लण्ड देख शब्बो के दिल के धड़कनें बढ़ गईं.. उसने अपने लहँगे को अपनी कमर से ऊपर उठा लिया। उसकी झांटों से भरी चूत राजू की आँखों के सामने आ गई।
राजू सीधा जाकर शब्बो की टांगों के बीच में बैठ गया। लण्ड को अपनी चूत में लेने के चाहत के कारण शब्बो की टाँगें खुद ब खुद फ़ैल गईं।
राजू ने उसकी जाँघों को घुटनों से मोड़ कर अपने लण्ड के सुपारे को शब्बो की चूत के छेद पर टिका दिया। शब्बो की चूत ने राजू के गरम लण्ड के सुपारे को महसूस करते ही पानी बहाना शुरू कर दिया। राजू ने एक बार शब्बो की मदहोशी भरी आँखों में देखा। जैसे वो लौड़ा घुसेड़ने की उससे इजाज़त लेना चाह रहा हो।
शब्बो ने काँपती हुई आवाज़ में कहा- आह.. बाबू रुक क्यों गए.. चोदो ना मुझे.. चोद नाअ साले..।
राजू ने मुस्कुराते हुए एक ज़ोरदार धक्का मारा। राजू का आधे से ज्यादा लण्ड उसकी चूत में पेवस्त हो गया।
“आह्ह.. ओह्ह तू तो बड़ा चोदू है…रेई.. पहली चोट में ही हिला कर रख दिया..आह…।”
राजू ने एक और जोरदार ठाप मारी और उसका पूरा लण्ड शब्बो की चूत में समा गया। मस्ती में शब्बो की टाँगें और उँची हो गईं और वो राजू की पीठ पर अपनी बाँहों को कस कर अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछाल कर राजू का लण्ड लेने लगी। शब्बो की चूत पूरी पनिया गई थी.. जिससे राजू का लण्ड चिकना होकर तेज़ी से उसकी चूत में अन्दर-बाहर हो रहा था।
शब्बो ने मस्ती में अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछालते हुए कहा- आह ह.. छोड़ बाबू मुझे..अए आह.. बहुत मोटा लौड़ा है तेरा..अ ह.. पूरा अन्दर तक.. जा रहा है.. ओह हाआँ चोद मुझे ऐसे ही..ईए माआ मर..गइई..।
राजू ने हाँफते हुए कहा- आह्ह.. आह यकीन नहीं होता तूने इस चूत से दो बच्चों को बाहर निकाला है साली.. बहुत कसी है तेरी चूत ओह..।
शब्बो- हाआँ… तो फाड़ दे..ईए ना मेरी ..भोसड़ी को आह्ह..।
राजू झुक कर शब्बो की एक चूची को मुँह में भर लिया और उसकी चूची को ज़ोर-ज़ोर से चूसते हुए पूरी रफ़्तार के साथ धक्के लगाने लगा। शब्बो भी मस्ती में अपनी चूत को ऊपर की तरफ उछाल कर राजू का लण्ड अपनी चूत की गहराईयों में पूरा ले रही थी।
राजू तेज़ी से धक्के लगाते हुए झड़ने के करीब पहुँच गया था।
“आह.. साली देख अब मेरा लण्ड पानी छोड़ने वाला है..।”
“आ..ह.. तो निकाल ना साले.. मेरी चूत में निकाल दे.. बरसों से प्यासी है.. मेरी बुर आह.. निकाल साले..।”
राजू के लण्ड ने शब्बो की चूत की चूत में वीर्य की बौछार कर दी.. शब्बो भी आँखें बंद करके राजू के लण्ड से निकाल रहे गरम वीर्य को महसूस करके झड़ने लगी।
थोड़ी देर बाद राजू शब्बो के ऊपर से उठ गया और अपना पजामा पहनने लगा। शब्बो भी खड़ी हो गई और अपनी जाँघों को फैला कर अपनी चूत को देखने लगी। राजू का वीर्य उसकी चूत से निकल कर उसकी जाँघों को भिगो रहा था। शब्बो ने एक नज़र राजू की तरफ डाली और जैसे ही राजू ने उसकी तरफ देखा, उसने शरमा कर नजरें झुका लीं।
शब्बो ने शरमाते हुए कहा- छोरे.. तेरे लण्ड ने सच में मेरी चूत की तबियत खुश कर दी.. कितने दिन और है यहाँ पर…?
राजू- शायद 3-4 दिन..।
शब्बो- फिर मिलोगे मुझे….? मेरी चूत अब तेरा लण्ड खाए बिना नहीं मानेगी।
राजू- कोशिश करूँगा.. अगर वक्त निकाल पाया तो..।
शब्बो ने बाहर देखा.. बारिश अभी भी हो रही थी, पर अब सिर्फ़ बूँदा-बांदी थी।
शब्बो- अब तू घर जा सकता है.. बारिश भी धीमी पड़ गई है।
राजू- हाँ.. वो तो देख रहा हूँ।
उसके बाद दोनों अपने-अपने ठिकानों की तरफ चल पड़े। जब राजू घर पहुँचा तो कुसुम उसके लिए बहुत परेशान थी। राजू ने उससे बताया कि वो बारिश की वजह से रुक गया था। कुसुम ने उससे ऊपर जाने के लिए कहा और खुद चाय बना कर राजू के लिए ऊपर कमरे में ले आई। चाय पीते हुए दोनों आपस में बातें करने लगे।
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भाग - 36
दूसरी तरफ चमेली के घर पर आसपास की औरतें रज्जो से मिल कर अपने-अपने घर जा चुकी थीं। अब चमेली रात के खाने की तैयारी कर रही थी। उसका मन अपनी बेटी के उदास चेहरे को देख कर बहुत दु:खी था और वो अपनी बेटी के दु:ख का कारण जानना चाहती थी।
शाम को रतन अपने ससुर के साथ घूमने के लिए बाहर चला गया.. मौका देख कर चमेली अपनी बेटी रज्जो के पास जाकर बैठ गई और उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर ऊपर उठा कर उसकी आँखों में देखते हुए बोली।
चमेली- क्या बात है बेटी.. मैं देख रही हूँ… जब तू आई है.. तेरा चेहरा लटका हुआ है। जरूर कोई बात हुई है तेरे मायके में.. सच-सच बता।
रज्जो ने अपनी माँ की बात सुन कर घबराते हुए कहा- नहीं माँ.. ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, मैं बहुत खुश हूँ.. तुम बेकार ही परेशान हो रही हो।
चमेली- देख बेटा… मैं तेरी माँ हूँ और तुम मुझसे कुछ नहीं छुपा सकतीं… बता ना क्या बात है…?
रज्जो- वो माँ वो….।
रज्जो को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि जो उसके साथ हुआ.. वो अपनी माँ को बताए या नहीं कहे।
चमेली- हाँ.. बोल बेटा, मुझसे डर नहीं.. आख़िर मैं तेरी माँ हूँ.. तू अगर अपना दुख-सुख मुझसे नहीं कहेगी तो किससे कहेगी..?
रज्जो- वो माँ कल रात को….।
चमेली- हाँ.. बोल बेटा क्या हुआ कल रात को..?
रज्जो- वो माँ कल रात को कुछ नहीं हुआ.. वो नाराज़ होकर कमरे से बाहर चले गए।
चमेली ने परेशान होते हुए कहा- क्यों क्या हुआ.. कहीं दामाद जी में तो कोई कमी…।
रज्जो ने अपनी माँ को बीच में टोकते हुए कहा- नहीं माँ… दरअसल मैं कल रात दर्द सहन नहीं कर पाई और वो मुझसे नाराज़ होकर कमरे से बाहर चले गए।
चमेली- ओह्ह.. अच्छा देख बेटा, पहली बार हर औरत को ये दर्द तो सहना पड़ता है.. इसके सिवा और कोई चारा भी नहीं… बाद में तुम्हें ठीक लगने लगेगा।
रज्जो- माँ तुम समझ नहीं रही हो..।
चमेली- तो फिर खुल कर बता ना.. क्या हुआ।
रज्जो- वो माँ अब कैसे बोलूँ….।
चमेली- देख बेटा जब लड़की बड़ी हो जाती है। तो वो अपनी माँ की सहेली बन जाती है… तू मुझसे किसी भी तरह की बात कर सकती है.. बोल ना क्या बात है।
रज्जो- वो माँ उनका ‘वो’ बहुत बड़ा है।
चमेली रज्जो की बात सुन कर थोड़ा शर्मा गई और नीचे ज़मीन की ओर देखते हुए बोली- तू किस्मत वाली है बेटी.. ऐसा पति नसीब से मिलता है… थोड़ा सबर रख कर काम लेना, सब ठीक हो जाएगा।
ये कह कर चमेली बाहर आ गई और खाना तैयार करने लगी.. खाना बनाते हुए उसके दिमाग़ में अपनी बेटी की कही बातें घूम रही थीं।
“क्या जो रज्जो कह रही थी, वो सच है…? क्या रतन का सच मैं इतना बड़ा लण्ड है कि रज्जो सुहागरात को उसका लण्ड झेल नहीं पाई। फिर उसने अपने सर को झटक दिया कि ये मैं क्या सोच रही हूँ..वो मेरे सग़ी बेटी का सुहाग है.. मुझे उसके बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए।”
रात ढल चुकी थी और चमेली अपने पति और दामाद रतन को खाना परोस रही थी.. उसका ध्यान बार-बार रतन के पजामे की तरफ जा रहा था.. यहाँ से रतन का पजामा थोड़ा फूला हुआ था। वो चाह कर भी वहाँ देखने से अपने आप को रोक नहीं पा रही थी और ये बात रतन जान चुका था कि उसकी सास उसके लण्ड की तरफ चाहत भरी नज़रों से देख रही है।
चमेली का पति तो बाहर से शराब पी कर नशे में टुन्न होकर आया था और उसकी पत्नी की नजरें कहाँ पर है, वो इस बारे में सोच भी नहीं सकता था।
जब चमेली खाना परोसते हुए.. रतन के आगे झुकी, तो उसका आँचल उसके कंधों से खिसक गया और उसकी चूचियों की घाटी रतन की आँखों के सामने तैर गई।
चमेली ने शरमाते हुए अपना पल्लू ठीक किया और रतन की आँखों में देख कर मुस्कुराते हुए बाहर चली गई।
चमेली को थोड़ा सा अजीब सा भी लग रहा था कि उसका दामाद उसकी चूचियों को खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था.. ये सोच कर उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैलती जा रही थी।
खाना खाने के बाद चमेली का पति बाहर वाले कमरे में जाकर सो गया। चमेली ने अपनी बेटी-दामाद और अपने लिए अन्दर वाले कमरे में नीचे बिस्तर लगा दिया। तीनों नीचे बिछे बिस्तरों पर लेट गए।
रज्जो अपनी माँ और पति रतन दोनों के बीच मैं सो रही थी और काफ़ी देर तीनों ऐसे ही लेटे हुए थे। नींद तीनों की आँखों से कोसों दूर थी और सब के मन में अलग ही कसमकस थी।
रतन का लण्ड ये सोच कर तना हुआ था कि उसकी सास जैसे गदराई हुई औरत उसके लण्ड की तरफ कैसे हसरत भरी नज़रों से देख रही थी। दूसरी ओर रज्जो अपने साथ हुए इस अन्याय के बारे में सोच रही थी कि अब उसकी जिंदगी कैसे गुज़रेगी और तीसरी तरफ चमेली की चूत ये सोच-सोच कर पानी बहा रही थी कि उसकी बेटी की चूत कितनी किस्मत वाली है कि उसके पति का लण्ड इतना बड़ा है।
ये सोचते हुए उसके दिमाग़ में रतन के लण्ड के एक छवि सी बन गई थी और उसकी चूत कामरस छोड़ते हुए भट्टी सी दहक रही थी।
रतन का लण्ड उसके धोती में एकदम तना हुआ था, लालटेन के धीमी रोशनी कमरे में फैली हुई थी, रतन ने रज्जो की तरफ करवट बदली और उसकी कमर पर हाथ रख दिया।
रज्जो जो अभी तक जाग रही थी, रतन के हाथ को अपने ऊपर महसूस करके एकदम सिहर गई, दोनों एक ही रज़ाई के अन्दर लेते हुए थे और चमेली दूसरी रज़ाई में थी।
रतन ने अपने हाथ को रज्जो के चेहरे पेट पर घुमाना चालू कर दिया। रज्जो एकदम से काँप गई, उसने रतन के हाथ के ऊपर अपना हाथ रख दिया और रतन की तरफ चेहरे को घुमा कर देखने लगी। दोनों की नजरें आपस में जा टकराईं।
रज्जो पीठ के बल लेटी हुई थी, वो कभी चेहरे को अपनी माँ चमेली की तरफ घुमा कर देखती.. तो कभी रतन की तरफ..।
रज्जो को इस बात का भरोसा नहीं हो रहा था कि रतन जो कल तक उससे देखना पसंद नहीं करता था। आज उससे अपनी बांहों में भरे हुए है।
रतन ने उसके कंधों को पकड़ कर अपनी तरफ घुमा लिया.. अब दोनों एक-दूसरे की आँखों में झाँक रहे थे। इससे पहले कि रज्जो को कुछ समझ आता, रतन ने पीठ के बल लेटते हुए.. अपने दोनों के ऊपर से रज़ाई को कमर तक सरका दिया।
अब रज्जो करवट के बल लेटी हुई थी। उसकी पीठ अपनी माँ चमेली की तरफ थी और रतन पीठ के बल लेटा हुआ था।
अपने पास हो रही सरसराहट से चमेली का ध्यान उन दोनों की तरफ गया। जो अभी तक सोई हुई नहीं थी और वो अपने सर को थोड़ा सा उठा कर दोनों की तरफ देखने लगी.. क्योंकि रज्जो की पीठ उसकी तरफ थी, इसलिए चमेली ठीक से देख नहीं पा रही थी।
रज़ाई को कमर तक सरकाने के बाद.. रतन ने अपनी धोती को अपने ऊपर से हटा दिया। उसका 8 इंच का फनफनाता हुआ लण्ड बाहर उछल पड़ा। जिससे देख कर रज्जो के दिल की धड़कनें थम गईं। वो फटी हुई आँखों से कभी रतन की तरफ देखती और कभी रतन के मूसल जैसे काले लण्ड की तरफ।
“माँ उठ जाएगी..।” रज्जो ने घबराते हुए फुसफुसाया।
रतन ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और रज्जो का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड के ऊपर रख दिया। रज्जो का पूरा बदन एकदम से काँप गया, साँसें मानो जैसे थम गई हों। उसको ऐसा लग रहा था.. जैसे उसने कोई लोहे के गरम रॉड पकड़ ली हो। वो बुरी तरह सहम गई और उसने अपना हाथ पीछे को खींच लिया।
ये देख रतन करके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई, वो अपने होंठों को रज्जो के कानों के पास ले गया और धीमे स्वर में बोला- ओए डर क्यों रही है.. हिला ना इसे.. मेरी जान..।”
ये कहते हुए उसने फिर से रज्जो का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड के ऊपर रख दिया और उसका हाथ पकड़े हुए मुठ्ठ मारने वाले अंदाज में रज्जो के हाथ को धीरे-धीरे अपने लण्ड पर आगे-पीछे करने लगा।
रज्जो शरम से गढ़ी जा रही थी।
थोड़ी देर बाद रतन ने रज्जो के हाथ से अपना हाथ हटा लिया और थोड़ा सा रज्जो के तरफ झुकते हुए, उसके होंठों की तरफ अपने होंठों को बढ़ाने लगा। रज्जो की धड़कनें एकदम से तेज हो गईं और उसने अपने आँखों को बंद कर लिया।
जैसे ही रतन ने रज्जो के होंठों पर अपने होंठों को रखा.. रज्जो के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं।
रतन धीरे-धीरे उसके होंठों को चूसने लगा, रज्जो भी धीरे-धीरे गरम होने लगी। रतन ने एक हाथ रज्जो की बाईं चूची पर रख कर धीरे से उसे मसल दिया, रज्जो के पूरे बदन में मानो करेंट सा दौड़ गया।
उसका हाथ रतन के लण्ड पर खुद ब खुद आगे-पीछे होने लगा। पीछे लेटी हुई चमेली ये नज़रा आँखें फाड़े देख रही थी।
उसकी नज़र रतन के फुंफकार रहे काले चमड़ी वाले लण्ड और उसके गुलाबी सुपारे पर से हट ही नहीं रही थी और उसकी बेटी रतन के लण्ड को धीरे-धीरे हिला रही थी।
ये देख कर चमेली की चूत पूरी तरह पनिया गई, उसका हाथ लहँगे के ऊपर उसकी चूत पर आ गया और वो अपनी पनियाई हुए चूत को धीरे-धीरे लहँगे को ऊपर से मसलने लगी।
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भाग - 37
तन भी रज्जो के होंठों को चूसते हुए.. उसकी दोनों चूचियों को बारी-बारी मसल रहा था और रज्जो की चूत भी धीरे-धीरे पानी बहाने लगी।
रतन ने अपना दूसरा हाथ नीचे ले जाकर रज्जो के लहँगे को ऊपर खिसकाना चालू कर दिया.. रज्जो का जवान बदन रतन के दमदार हाथों से रगड़े जाने के कारण बेकाबू हो गया था।
वो इस कदर गरम हो गई थी कि वो ये भी भूल गई थी कि उसकी माँ भी उसी कमरे में है। लहंगा ऊपर सरकते ही.. रतन ने चड्डी के ऊपर से रज्जो की चूत पर हाथ रख कर धीरे-धीरे सहलाना शुरू कर दिया। अपनी चूत पर रतन के हाथ पड़ते ही.. रज्जो एकदम से मचल उठी।
उसकी चूत ने कामरस बहाना और तेज कर दिया.. उसकी साँसें और तेज हो गईं। गनीमत थी कि रतन ने उसके होंठों को अपने होंठों में भर रखा था।
ये सब देख कर पीछे लेटी चमेली का बुरा हाल हो रहा था, उसकी चूत पूरी पनिया गई थी। रज्जो का हाथ अब पूरी तेज़ी से रतन के लण्ड के ऊपर आगे-पीछे हो रहा थे। उसके हाथों में पहनी हुई चूड़ियाँ बजने लगी थीं। जो चमेली को और गरम बना रही थीं।
रज्जो की जवान चूत को पहली बार ऐसे किसी ने टटोला था। जवानी की आग और चूत पर रतन के हाथों ने रज्जो के सबर का बाँध तोड़ दिया और उसकी चूत ने कामरस बहाना शुरू कर दिया।
रज्जो का पूरा बदन झटके खाने लगा और काँपते हुए झड़ने लगी। इसके साथ ही रतन के लण्ड से वीर्य की बौछार होने लगी.. जिसे रज्जो के हाथ बुरी तरह सन गए.. दोनों झड़ गए थे।
थोड़ी देर बाद जब रतन ने अपने होंठों को रज्जो के होंठों से अलग किया.. तो रज्जो ने रतन की आँखों में देखा और फिर शर्मा कर उसने नजरें झुका लीं।
रज्जो अपने हाथ धोने उठ कर बाहर चली गई.. पर रतन वैसे ही लेटा रहा।
चमेली अपने दामाद के अधखड़े लण्ड की ओर बिना पलकें झपकाए देख रही थी। उसकी चूत की आग बुरी तरह भड़क उठी थी और वो राजू को कोस रही थी..
अगर राजू यहाँ होता तो वो कल अपनी चूत की आग बुझा लेती.. पर वो यहाँ पर नहीं था।
थोड़ी देर बाद रज्जो कमरे में वापिस आई तो रतन ने अपनी धोती ठीक करके.. अपने ऊपर रज़ाई ओढ़ ली और सोने के कोशिश करने लगा.. वो जानता था कि इस वक्त तो चूत मिलने से रही.. तो जाग कर क्या फायदा।
अगली सुबह जब रतन उठा तो उसने देखा कि कमरे में कोई नहीं था। वो जब उठ कर बाहर आया तो.. उसने देखा कि चमेली और रज्जो बाहर आँगन में बने छोटे से रसोई घर में चाय बना रही थी।
रतन का लण्ड सुबह-सुबह तना हुआ था और धोती को आगे से उठाए हुए था। चमेली की नज़र जैसे ही अपने दामाद की फूली हुई धोती पर पड़ी.. उसके होंठों पर कातिल मुस्कान फ़ैल गई। ये बात रतन को भी पता चल गई।
“आओ दामाद जी उठ गए.. नींद तो अच्छी आई होगी ना…।” चमेली ने मुस्कुराते हुए रतन से पूछा।
जवाब मैं रतन ने सिर्फ़ ‘हाँ’ में सर हिला दिया।
इतने में पड़ोस में रहने वाली एक भाभी चमेली के घर पर आ गई और वो रज्जो को शौच के लिए साथ लेकर चली गई।
अब दोनों रतन और चमेली घर पर अकेले थे। चमेली का पति तो सुबह जल्दी ही सेठ के दुकान पर चला गया था।
“हाँ तो दामाद जी.. मेरे बेटी ने आपको किसी किसिम की तकलीफ तो नहीं दी..।” चमेली ने रतन की तरफ देखते हुए कहा।
“नहीं ऐसी कोई बात नहीं है…।” रतन ने उदास सा चेहरा बनाते हुए कहा।
दोपहर हो चुकी थी, चमेली के मन में सुबह से उथल-पुथल मची हुई थी। बार-बार उसकी आँखों के सामने रतन का काला मोटा लण्ड घूम जाता। रज्जो अपनी सहेली के घर पर उससे बातें कर रही थी और चमेली सेठ के घर से कुछ काम निपटा कर लौटी तो उसने देखा कि रतन अन्दर अकेला लेटा हुआ था।
“अरे दामाद जी… रज्जो कहाँ है..?” चमेली ने रतन के पास चारपाई पर बैठते हुए कहा।
रतन- वो अपनी सहेली के घर पर है।
चमेली- इस लड़की को कब अकल आएगी.. अपने पति को यहाँ अकेला छोड़ कर खुद गप्पें लड़ा रही होगी… रूको मैं अभी उससे बुला कर लाती हूँ।
ये कह कर चमेली उठ कर जाने लगी तो रतन ने आगे बढ़ कर उसका हाथ पकड़ लिया, “अरे सासू जी… करने दो ना उसे अपनी सहेलियों से बातें.. अब वो रोज-रोज थोड़ा यहाँ आने वाली है।”
रतन के खींचने से चमेली लगभग उसके ऊपर गिरते हुए चारपाई पर आ बैठी। अपने आप को गिरने से बचाने के लिए चमेली ने अपने दोनों हाथ रतन की छाती पर रख दिए और उसका पल्लू उसकी चोली से सरक कर नीचे गिर गया।
चोली में कसी हुई चूचियों को ऊपर-नीचे होता देख कर रतन का लण्ड फुंफकारने लगा और अपने दामाद को इस तरह अपनी चूचियों को घूरता देख चमेली एकदम से शर्मा गई। उसने अपने चुनरी को अपने चूचियों से ढकना चाहा, पर रतन ने पहले ही चमेली की चुनरी को पकड़ लिया।
“क्या सासू जी.. आप तो ऐसे शर्मा रही हो.. जैसे मैं कोई बाहर वाला हूँ… मुझे भी तो अपने हुश्न का दीदार करने दीजिए।” ये कहते हुए रतन चारपाई पर उठ कर बैठ गया और चमेली के गले में अपनी एक बाजू को डाल कर उसे अपनी तरफ खींचा।
चमेली ने शरमाते हुए कहा- हटिए… क्या कर रहे हो दामाद जी, मुझ बूढ़ी के पास अब हुश्न बचा ही कहाँ है.. आप तो ऐसे ही झूटी तारीफ़ कर रहे हो।
रतन- नहीं झूठ नहीं बोल रहा.. यकीन ना हो तो ये देख लो।
ये कहते हुए रतन ने अपनी धोती को खोल कर चारपाई पर फेंक दिया और खुद चमेली के सामने खड़ा हो गया। उसका काला लण्ड किसी नाग के तरह फुंफकारते हुए हवा में झटके खा रहा था। जिसे देख चमेली कर आँखें झपकाना भूल गईं, उसकी साँसें तेज होने लगीं।
“ये.. ये.. क्या कर रहे हैं दामाद जी आप…?” चमेली ने लड़खड़ाती हुई आवाज़ में कहा।
रतन ने मुस्कुराते हुए कहा- आपको अपने दिल का हाल दिखा रहा हूँ सासू जी.. देखिए ना.. जब से आपको देखा है, ये बैठने का नाम ही नहीं ले रहा है।
चमेली ने घबरा कर बाहर की ओर देखते हुए कहा- ये आप ठीक नहीं कर रहे दामाद जी.. वो बाहर दरवाजा खुला है.. अगर रज्जो ने आकर आपको इस हालत में देख लिया तो वो मेरे बारे में क्या सोचेगी।
रतन- वो कुछ भी सोचे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.. आख़िर उसने अभी तक मुझे मेरे पति होने का हक़ तो दिया नहीं।
चमेली ने काँपती हुई आवाज़ में कहा- देखिए दामाद जी..आप ये धोती पहन लीजिए.. रज्जो अभी बच्ची है… मैं उससे बात करूँगी।
इतने में बाहर से रज्जो के हँसने की आवाज़ आई। रतन ने अपनी धोती फ़ौरन बाँध ली.. रज्जो की आवाज़ घर के बाहर से आ रही थी.. शायद वो अपनी किसी सहेली से बात करते हुए घर के बाहर खड़ी थी। उसकी आवाज़ सुन कर चमेली एक पल के लिए बुरी तरह घबरा गई।
चलिए दूसरी तरफ चलते हैं वहाँ अपना राजू अपनी मालकिन को आपके लिए बैठा है।
दूसरी तरफ कुसुम और राजू नास्ता करके बैठे ही थे कि बाहर दरवाजे पर दस्तक हुई, जब लता ने बाहर जाकर दरवाजे खोला तो सामने सेठ गेंदामल की दुकान का नौकर खड़ा था। उसने बताया कि सेठ की नई पत्नी.. सीमा की तबियत अचानक से खराब हो गई है और सेठ ने कुसुम मालकिन को जल्द ही वहाँ वापिस बुलाया है।
लता और कुसुम ने उस आदमी को ये कह कर वापस भेज दिया कि वो कल पहुँच जायेंगे।
दोपहर का वक़्त था। कुसुम के मायके का घर तो राजू के लिए मानो स्वर्ग ही था और वापिस जाने के खबर को सुन कर कुसुम, लता और राजू तीनों थोड़ा दुखी थे। आख़िर एक ना एक दिन तो उनको वापिस जाना ही था, कुसुम ऊपर आकर अपना सामान पैक करने लगी। उसकी माँ लता भी उसका हाथ बंटाने लगी।
“रहने दीजिए ना माँ.. मैं कर लूँगी..।” कुसुम ने लता की तरफ देखते हुए कहा।
“तो क्या हुआ बेटी.. मैं वैसे भी खाली ही बैठी थी।”
कुसुम- माँ अब कल वापिस जा रहे हैं, पता नहीं फिर कब यहा आना हो।
लता- कोई बात नहीं बेटी, जब चाहे आ जाना।
फिर कुसुम को राजू और अपने सामान को पैक करने में काफ़ी वक़्त लगा। राजू बाहर जाकर एक तांगे वाले को कल के लिए बोल आया था।
रात ढलते ही राजू और कुसुम दोनों ऊपर अपने कमरे में आ गए। राजू ने अन्दर आते ही.. कुसुम को अपनी बांहों में भर लिया और उसके होंठों को चूसने लगा.. पर कुसुम ने उसे पीछे हटा दिया।
कुसुम- देखो ना हम कल जा रहे हैं.. उसके बाद माँ यहाँ फिर से अकेली हो जाएगी..।
राजू कुसुम की बात सुन कर चुप हो गया।
“मैं पेशाब करके आती हूँ।” ये कह कर कुसुम कमरे से बाहर चली गई।
राजू बिस्तर पर बैठ गया.. उसका दिल यहाँ से जाने का बिल्कुल भी नहीं था, पर वो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था। राजू बिस्तर पर बैठा हुआ था, तभी लता कमरे में आ गई..उसके हाथों में दो गिलास थे।
“ये लो तुम दोनों दूध पी लो..।” ये कहते हुए लता ने दूध के गिलास मेज पर रख दिए।
राजू को यूँ उदास देख कर लता उसके पास जाकर बैठ गई।
“क्या हुआ इतना उदास क्यों है..?” लता ने राजू की तरफ देखते हुए कहा।
“वो हम कल जा रहे है ना इसलिए।”
लता राजू की बात सुन कर मुस्कुरा दी।
“तो तू क्यों उदास हो रहा है.. कुसुम तो तुम्हारे साथ ही है ना.. अकेली तो मैं रह जाऊँगी।” लता ने राजू की जांघ को सहलाते हुए कहा।
राजू ने लता की तरफ देखा.. लता की आँखों में वासना की खुमारी छाई हुई थी। दोनों एकटक एक-दूसरे की नजरों को देख रहे थे।
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भाग - 38
राजू ने अपने होंठों को लता के होंठों पर रख दिया, लता एकदम से पीछे हट गई और बिस्तर से खड़ी होकर बाहर को जाने लगी.. राजू ने उससे पकड़ने के लिए हाथ आगे बढ़ाया.. तो लता का शाल उसके हाथ में आ गया और वो उसके बदन से अलग हो गया।
अब लता सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में राजू के सामने खड़ी थी। उसके ब्लाउज में कसी हुई चूचियां ऊपर-नीचे हो रही थीं। ये देख कर राजू का लण्ड पजामे में एकदम तन कर खड़ा हो गया.. उसने आगे बढ़ कर लता को अपनी बाँहों में भर लिया और उसके होंठों को एक बार फिर से अपने होंठों में भर कर चूसने लगा।
राजू का लण्ड लता के पेटीकोट के ऊपर से उसकी चूत के ऊपर जा लगा।
लता के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई। उसका बदन ढीला पड़ने लगा.. मौका देख राजू ने लता को बिस्तर के पास ले जाकर उसको बिस्तर पर धकेल दिया और पागलों की तरह लता पर टूट पड़ा।
वो उसके होंठों गालों और गर्दन और चूचियों के ऊपर हिस्से को चूमने लगा… लता एकदम मदहोश सी हो गई।
लता- आह ओह्ह राजू बेटा.. कुसुम आ जाएगी ओह.. छोड़ मुझे क्या कर रहा है।
लता भले ही राजू को छोड़ने के लिए कह रही थी, पर वो उसका विरोध बिल्कुल भी नहीं कर रही थी। राजू बुरी तरह उसकी चूचियों को मसलते हुए.. उसके पूरे बदन को अपनी जीभ से चाट रहा था और लता अब कामविभोर होकर ‘आहह.. ओह्ह’ कर रही थी।
राजू ने दोनों हाथों से लता के ब्लाउज के हुक खोल दिए और उसके ब्लाउज को थोड़ी सी मेहनत के बाद लता के बदन से अलग कर दिया।
अब राजू के सामने लता के दोनों बड़ी-बड़ी चूचियां बेपर्दा हो चुकी थीं.. जिसे देख कर राजू की आँखों में वासना का भूत का सवार हो गया और वो अपने दोनों हाथों में लता के दोनों पपीतों को भर कर ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगा। जैसे वो उसका सारा दूध निचोड़ लेना चाहता हो, “आह्ह.. राजू कुसुम आ जाएगी बेटा आह.. मेरे बात सुन ले छोरे…।”
राजू ने लता की चूचियों को निचोड़ते हुए.. झुक कर उसके एक चूचुक को मुँह में भर लिया और ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा और एक हाथ नीचे ले जाकर लता का पेटीकोट ऊपर उठाने लगा।
लता ने अपना हाथ नीचे ले जाकर राजू को रोकने की नाकामयाब कोशिश की और आखिर राजू ने उसके पेटीकोट को ऊपर उठा ही दिया। फिर राजू ने अपने पजामे के नाड़े को खोल कर अपना पजामा बाहर निकाल दिया।
राजू ने ये सब इतनी फुर्ती से किया कि लता को संभलने का मौका भी नहीं मिला और अगले ही पल राजू के लण्ड का दहकता हुआ सुपारा लता की चूत की फांकों को फैला कर चूत के छेद पर जा लगा।
लता के पूरे बदन मैं बिजली सी कौंध गई.. उसकी आँखें मस्ती में बंद हो गईं और लता ने अपने दोनों हाथों को ऊपर ले जाकर अपने सर के नीचे रखे तकिए को कस कर पकड़ लिया।
लता राजू के लण्ड के गरमी को अपनी चूत के छेद पर महसूस करके बेहाल हो चुकी थी। उसने अपने हथियार राजू के सामने डाल दिए, ये देख कर राजू घुटनों के बल बैठ गया और पास पड़े लता के ब्लाउज को उठा कर बिस्तर की दूसरे तरफ फेंक दिया और फिर लता की टांगों को घुटनों से मोड़ कर ऊपर उठा कर फैला दिया। राजू ने देखा लता लेटी हुई तेज़ी से साँसें ले रही थी।
उसकी बड़ी-बड़ी गुंदाज चूचियां साँस लेने से ऊपर-नीचे हो रही थीं। जब राजू की तरफ से कोई हरकत नहीं हुई.. तो लता एकदम से मचल उठी और अपनी गाण्ड को धीरे-धीरे ऊपर उठाने लगी।
ये देख कर राजू के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई.. राजू के लण्ड का मोटा सुपारा लता की चूत के छेद फ़ैलाता हुआ अन्दर घुसने लगा।
ओह्ह चोद ना..आ राजू रुक्ककक.. क्यों गया ओह… मेरी चूत मैं आग लगा दी… आह्ह..।”
राजू ने भी ज्यादा देर नहीं की और एक जोरदार धक्का मार कर अपना पूरा लण्ड एक ही बार में लता की चूत की गहराईयों में उतार दिया।
लता- आह्ह.. राजू मेरी चूतततत्त.. फाड़ दी…ए ओह..।
राजू लता के ऊपर झुक गया और उसकी टांगों को अपने कंधों पर रख कर जोरदार धक्के लगाने लगा। हर धक्के के साथ राजू के लण्ड का सुपारा उसकी बच्चेदानी के मुँह से जा टकराता और लता की चूत में मस्ती की लहर दौड़ जाती। वो भी अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछाल कर अपनी चूत की गहराईयों में राजू के लण्ड को लेने के कोशिश करती और जब राजू की जाँघों की जड़ें.. लता के भारी और मोटे चूतड़ों से टकरातीं.. लता की गाण्ड वापिस बिस्तर से आ टकराती।
तभी अचानक से कमरे का दरवाजा खुला और कुसुम अन्दर आ गई। अन्दर का नज़ारा देख कुसुम एकदम से चौंक गई। दरवाजा खुलने की आवाज़ सुन कर दोनों दरवाजे की तरफ देखने लगे।
यहाँ पर कुसुम खड़ी थी। कुसुम बुरी तरह से झेंप गई और कमरे से बाहर जाने लगी.. लता ने भी अपने बेपर्दा हुई चूचियों को ढकने के लिए ब्लाउज को ढूँढना शुरू कर दिया.. पर जब राजू ने ब्लाउज को बिस्तर के दूसरी तरफ फेंका तो लता की आँखें बंद थीं।
राजू ने अपने लण्ड को लता की चूत से बाहर निकाला और बिजली की फुर्ती के साथ बिस्तर से नीचे उतर कर कुसुम को पीछे से पकड़ लिया और बिस्तर के पास ले आया।
“ये ये क्या कर रहा है राजू.. तू छोड़.. छोड़ मुझे….।” कुसुम ने शरमाते हुए कहा।
“नहीं मालकिन आज मैं तुम दोनों को एक साथ चोदूँगा… ये हमारी आख़िर रात है यहाँ पर…।”
कुसुम ने शर्मा कर नीचे की ओर देखते हुए कहा- नहीं राजू.. छोड़ मुझे मुझसे नहीं होगा ये सब माँ के सामने… जाने दे मुझे राजू, देख मुझे शर्मिंदा ना कर।
बिस्तर पर बैठी लता को कुछ समझ में नहीं आ रहा था.. वो अपने दोनों हाथों से अपनी बड़ी-बड़ी चूचियों को छुपाने की कोशिश कर रही थी। लता ने बिस्तर से नीचे उतरने की कोशिश की पर राजू ने उससे वापिस बिस्तर पर धकेल दिया।
लता को इससे पहले कि कुछ समझ आता.. राजू बिस्तर पर चढ़ गया.. उसने एक हाथ से कुसुम का हाथ पकड़ा हुआ था। जैसे ही राजू बिस्तर पर चढ़ा, उसने कुसुम को बिस्तर पर खींच लिया। कुसुम गिरते हुए बिस्तर पर आ लेटी।
अब लता और कुसुम दोनों एक-दूसरे के बगल में लेटी हुई थीं। कुसुम ने उठना चाहा तो राजू ने ये कह कर उससे रोक दिया कि अगर वो उससे प्यार करती है.. तो उसका साथ दे..।
कुसुम वहाँ आँखें बंद करके लेट गई।
राजू लता की जाँघों के बीच में बैठा हुआ था.. उसने लता के पेटीकोट को पकड़ कर ऊपर उठा दिया। लता ने एक बार कुसुम की तरफ देखा जो कि आँखें बंद किए हुए उसकी बगल में लेटी हुई थी।
राजू ने पलक झपकते ही अपने लण्ड के मोटे सुपारे को लता की चूत के छेद पर लगा दिया.. लता की चूत पहले से ही कामरस से सनी हुई थी।
अपनी चूत के छेद पर राजू के लण्ड के मोटे और गरम सुपारे को महसूस करते ही.. लता की आँखें मस्ती में बंद हो गईं.. उसने अपने होंठों को अपने दाँतों में दबा लिया, ताकि उसकी मस्ती भरी सिसकारियां उसकी बेटी कुसुम के कानों में ना पड़ें। उसका चेहरा शरम से लाल होकर दहक रहा था। राजू ने लता के पैरों को घुटनों से मोड़ कर टाँगों को ऊपर उठा कर एक जोरदार धक्का मारा।
राजू का लण्ड पूरी रफ्तार के साथ एक ही बार में लता की चूत की गहराईयों में जा घुसा.. लता के मुँह से घुटी हुई हल्की सी ‘आह’ निकल गई.. जिसे सुन कर कुसुम की चूत की फाँकें भी कुलबुलाने लगीं।
उसने अपनी आँखों को थोड़ा सा खोल कर राजू की तरफ देखा.. राजू लता की टांगों के बीच घुटनों के बल बैठा हुआ था और उसकी माँ लता के टाँगें हवा में झूल रही थीं।
राजू का लण्ड पूरा का पूरा लता की चूत की गहराईयों में समाया हुआ था।
राजू ने अपने हाथ को आगे बढ़ा कर कुसुम के हाथ को पकड़ कर उठा दिया.. जैसे कुसुम ठीक उसके बराबर में आकर बैठ गई। राजू ने अपना एक हाथ उसके पीछे से ले जाकर दूसरी तरफ वाले कंधे पर रख कर कुसुम को अपने से सटा लिया।
“आह मालिकन.. देखो ना बड़ी मालकिन की चूत कैसे पानी टपका रही है।”
ये बात सुनते ही दोनों को चेहरे शरम से लाल हो गईं।
राजू के धक्कों की रफ़्तार लगातार बढ़ती जा रही थी और वो पूरी ताक़त के साथ अपनी गाण्ड को हिला-हिला कर अपना लण्ड लता की चूत में पेल रहा था। राजू के ताबड़तोड़ धक्कों ने लता की चूत की दीवारों को हिला कर रख दिया। मस्ती में आकर लता अब अपनी मस्ती भरी सिसकारियों को चाह कर भी ना दबा पा रही थी।
“आहह.. ऊंहह आह धीरे ओह ओह्ह से..इई..”
अपनी माँ की मस्ती भरी सिसकियां सुन कर कुसुम की चूत भी पसीजने लगी। चूत में लण्ड लेने की खुजली और बढ़ गई। कुसुम ने अपनी आँखों को थोड़ा सा खोल कर लता की टाँगों के बीच में देखा, तो उसके दिल की धड़कनें और बढ़ गईं।
राजू का 3 इंच मोटा और 8 इंच लंबा लण्ड लता की चूत की फांकों को फैलाए हुए तेज़ी से अन्दर-बाहर हो रहा था, उसका लण्ड लता की चूत के रस से भीग कर चमक रहा था। लण्ड ‘फच-फच’ की आवाज़ करता हुआ तेज़ी से उसकी चूत के अन्दर-बाहर हो रहा था.. जिसे देख कुसुम की चूत भी पूरी तरह पनिया गई।
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भाग - 39
उसका हाथ एक खुद ब खुद अपने पेटीकोट के ऊपर से चूत पर पहुँच गया और वो अपनी चूत को मुठ्ठी में भर कर मसलते हुए अपनी माँ को राजू का लण्ड अपनी चूत में लेते हुए देखने लगी। कुसुम का दूसरा हाथ राजू की छाती पर आ गया और वो राजू की छाती को सहलाने लगी। राजू समझ गया कि अब कुसुम भी पूरी तरह गरम हो चुकी थी।
राजू ने कुसुम के कंधे से हाथ को सरका कर आगे ले जाकर ब्लाउज के ऊपर से उसकी चूची को दबोच लिया और ज़ोर से मसलने लगा.. तभी कुसुम का ध्यान लता की चूत से हटा और वो राजू की तरफ देखने लगी। जैसे ही उसके नजरें राजू से मिलीं, कुसुम बुरी तरह से झेंप गई.. उसके गाल किसी सेब के जैसे लाल होकर दिखने लगे।
राजू ने उसे अपने और पास खींच कर उसके होंठों पर अपने होंठों को रख दिया और उसके होंठों को चूसते हुए लता की चूत में लण्ड अन्दर-बाहर करने लगा।
लता भी अपनी मदहोशी भरी आँखों को खोल कर कुसुम और राजू को देख कर मस्त हुई जा रही थी। सामने का कामुक नजारा देख कर.. लता की चूत ने राजू के लण्ड को अपने अन्दर और कसना शुरू कर दिया।
राजू का लण्ड धक्के मारते हुए लता की चूत से बाहर निकाल गया और लता की चूत की क्लिट पर रगड़ खा गया। लता मस्ती में एकदम गनगना उठी।
राजू ने अपने होंठों को कुसुम के होंठों से हटाया और अपने लण्ड को हाथ में लेकर कुसुम को देखते हुए बोला- देखो मालकिन आपकी माँ की चूत कैसे पानी बहा रही है.. मेरा पूरा लण्ड सन गया…।
ये बात सुन कर लता और कुसुम दोनों शर्मा गईं।
“मालकिन एक बार इसे अपने हाथ से बड़ी मालकिन की चूत में डालिए ना…।”
ये सुन कर लता के दिल की धड़कनें बढ़ गईं, उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि अब उसकी बेटी राजू का लण्ड अपने हाथ से पकड़ कर उसकी ही चूत में डालने वाली है। राजू ने कुसुम का हाथ पकड़ कर अपने खड़े लण्ड पर रख दिया। कुसुम की साँसें अब उखड़ने लगी थीं। राजू ने अपने लण्ड से हाथ हटा लिया और लता की दोनों टांगों को ऊपर उठा कर फैला दिया।
अब कुसुम के आँखों के सामने लता की चूत का लबलबाता हुआ छेद नुमायाँ हो गया था। उसकी चूत का छेद कामवासना में कभी सिकुड़ता और कभी फ़ैल रहा था। कुसुम ने अपने कंपकंपाते हाथ से राजू के लण्ड को पकड़ कर लता की चूत के छेद पर टिका दिया.. लता की आँखें एक बार फिर से मस्ती में बंद हो गईं।
“थोड़ा सा चूत को खोलो तो सही मालकिन..” राजू ने कुसुम की चूची को दबाते हुए कहा।
अपने सामने राजू के लण्ड को लता की चूत में जाता देख कुसुम एकदम मस्तया गई.. उसने अपने दोनों हाथों से लता की चूत की फांकों को पकड़ कर फैला दिया। राजू ने बिना एक पल रुके एक जोरदार धक्का मारा.. राजू का लण्ड एक बार फिर से लता की चूत की गहराईयों में उतर गया। अब तक चुपचाप लेटी हुई लता भी मस्ती से सराबोर हो गई।
“ओह्ह आह्ह.. धीरेए से..इईईईई… कैसा मोटा लौड़ा है रेईए कुसुम तेरे इस नौकर का..अ आह्ह.. मेरे भोसड़ी को फाड़ दिया रे.. माँ..।”
अपनी माँ की मस्ती भरी सिसकियाँ सुन कर कुसुम और मस्त हुई जा रही थी। राजू ने उसे पकड़ कर लता के ऊपर कर दिया।
अब कुसुम लता के ऊपर दोनों तरफ पैरों को करके घुटनों को बिस्तर पर टिका कर बैठी थी और उसके पीछे राजू लता की टांगों के बीच में बैठा हुआ अपना लण्ड लता की चूत में अन्दर-बाहर करता हुआ, अपने दोनों हाथों को आगे ले गया और कुसुम की चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से दबाने लगा।
राजू के होंठ कुसुम की गर्दन के पीछे वाले हिस्से पर रगड़ रहे थे। कुसुम कामविभोर हो चुकी थी। राजू ने कुसुम की चूचियों को दाबते हुए धीरे-धीरे करके ब्लाउज के सारे हुक खोल दिए और उसके ब्लाउज को उतार कर एक तरफ फेंक दिया।
ब्लाउज उतारने के बाद उसने कुसुम को आगे की तरफ झुका दिया और उसके पेटीकोट को उठा कर कमर पर रख दिया। जैसे ही कुसुम लता के ऊपर झुकी.. कुसुम की बड़ी-बड़ी गुंदाज चूचियां.. लता के ठीक मुँह के सामने आ गईं।
लता अपनी अधखुली आँखों से कुसुम की बड़ी-बड़ी हिल रही चूचियों की तरफ देख रही थी और राजू लता के टाँगों के बीच में बैठा हुआ अपना लण्ड लता की चूत में अन्दर-बाहर करता हुआ.. अपने दोनों हाथों से कुसुम के गुंदाज चूतड़ों को फैला-फैला कर मसल रहा था। कुसुम भी राजू के हाथों से गाण्ड मसलवा कर मस्त हुए जा रही थी।
राजू ने कुसुम की गाण्ड मसलते हुए.. अपनी एक ऊँगली को कुसुम की चूत की दरार में फिराने लगा, कुसुम के पूरे बदन में बिजली सी कौंध गई.. वो आँखें बंद किए हुए लता पर झुकी हुई थी और राजू उसकी चूत की क्लिट को अपनी उँगलियों से मसल रहा था।
कुसुम की चूत तो पहले से अपना कामरस बहा रही थी। जिससे राजू के ऊँगलियाँ भी गीली होने लगी।
राजू- क्यों मालकिन मज़ा आ रहा है ना… बड़ी मालकिन के साथ करने में…।
कुसुम- आह्ह.. से..इईईई हाआआंरीई राजू बहुत मज़ाआ आ रहा..है..ईईइ..
राजू ने अपने लण्ड को लता की चूत से बाहर निकाल लिया। जिससे लता का बदन हिलना बंद हो गया.. कुसुम समझ गई कि राजू ने अपना लण्ड लता के चूत से बाहर निकाल लिया।
राजू ने कुसुम के दोनों चूतड़ों को पकड़ कर फैला दिया और अपने घुटनों के बल थोड़ा सा ऊपर उठ कर कुसुम की चूत के छेद पर टिका दिया और एक जोरदार धक्का मारा।
धक्का इतना जबरदस्त था कि कुसुम लता के ऊपर लुड़क गई और उसके चूचियां लता की चूचियों से रगड़ खा गईं। राजू ने दोनों चूतड़ों को दबोचते हुए तेजी से कुसुम की चूत में अपना लण्ड अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया।
कुसुम तो जैसे मस्ती में पागल हो गई..उसने अपने नीचे लेटी लता के दोनों चूचियों को अपने हाथों में भरते हुए पीछे की तरफ अपनी गाण्ड को हिलाते हुए अपनी चूत को राजू के लण्ड पर पटकना चालू कर दिया।
कुसुम का ये रूप देख कर राजू और जोश से भर गया और पूरे जोश के साथ अपनी गाण्ड हिलाते हुए, कुसुम की चूत को चोदने लगा।
“आह्ह. और लेए साली ओह्ह.. कमाल की चूत है तेरीईए ओह.. एकदम कसी हुई रे.. ओह आहह आह्ह.. आह्ह..।”
कुसुम ने अपने दोनों हाथों से लता की चूचियों को मसलते हुए कहा- ओझहह बेटा राजू ओह तेरे लण्ड बहुत बड़ा है.. चोद मुझे साले.. ओह्ह और ज़ोर से चोद..मादरचोद…फाड़ देईई मेरी चूत… भर दे मेरी चूत को अपने लौड़े से..इईए ओह भोसड़ी के..।
राजू ने तेज़ी से धक्के लगाते हुए कहा- आह्ह.. तू देख तो सही.. आज तुम दोनों की चूत को कैसे भरता हूँ अपने बीज़ से..अइई ओह कसम से दोनों माँ-बेटी की चूत बहुत कसी हुई है.. ओह चूस साली अपनी माँ का दूध.. निचोड़ ले आज्ज्जज्ज।
राजू की बात सुनते ही कुसुम ने झुक कर लता की एक चूची को मुँह में भर लिया और अपने होंठों में भर कर ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगी।
लता ये देख कर और मस्त हो गई कि उसकी बेटी खुद अपनी चूत में रांड की तरह लौड़ा लेते हुए, उसकी चूची को चूस रही है।
कुसुम ने लता की चूची को मुँह से बाहर निकालते हुए कहा- आह आह माँआअ बहुत मज़ा आ रहा है… ओह मेरीईए चूत की दीवारों से इसका लण्ड रगड़ रगड़ करररर आह्ह.. अन्दरर्ररर जा..आ रहा है…अई.. बहुत मोटा लौड़ा है.. नाआ माँ..आ इसस्स छोरे काआ.. ओह धीरेए धीरे..चोद..हरामी।
कुसुम ने फिर से झुक कर लता की दूसरी चूची को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया और राजू ने अपना लण्ड बाहर निकाल कर एक बार फिर से लता की चूत के छेद पर टिका दिया।
“हाँ बेटी बहुत मोटा लौड़ा है रे तेरे इसस्स्स्स्सस्स नौकर का… मेरी चूत का भी भोसड़ा बना दियाआ.. साला एक नंबर का चोदू है..बहन का लौड़ा.. ओह आह्ह.. धीरेए हरामखोर.. मुझ बुढ़िया पर तरस खा..।”
राजू ने लता की चूत में अपने मूसल जैसे लण्ड को अन्दर-बाहर करते हुए कहा- चुप साली इतनी कसी हुई चूत है तेरी.. और तू अपने आप को बुड्डी कह रही हाय.. आज तो सारी रात तेरी इस चूत में लण्ड पेल-पेल कर इसका भोसड़ा बनाऊँगा।
लता भी मस्ती में अपनी गाण्ड को ऊपर की तरफ उछाल रही थी और राजू पीछे से धक्के लगाते हुए अपने हाथ की दो उँगलियों को कुसुम की चूत में अन्दर-बाहर कर रहा था.. दोनों किसी रांड की तरह मस्ती में सिसया रही थीं।
पूरा कमरा उन तीनों के मादक और कामुक सिसकारियों से गूँज रहा था। लता ने अपनी दोनों बाँहों को कुसुम की पीठ पर कसा हुआ था।
राजू कभी कुसुम की चूत में लण्ड डाल कर पेलता और कभी लता की में पेलता। लता कुछ देर बाद झड़ कर ढेर हो गई। वो उठ कर कुसुम के बगल में लेट गई। राजू ने कुसुम को पीठ के बल लेटा कर उसकी टाँगों को उठा कर अपने कंधों पर रख लिया।
लता ने झुक कर कुसुम के होंठों पर अपने होंठों पर रख दिया और उसके होंठों को चूसते हुए.. एक हाथ नीचे ले जाकर उसकी चूत के भगनासे को मसलने लगी।
लता के इस तरह करने से कुसुम एकदम मस्त हो गई।
“आह.. डाल ना बहनचोद मेरी फुद्दी में लौड़ा आह…।”
राजू ने अपना लौड़ा कुसुम की चूत के छेद पर टिका कर अपनी गाण्ड को नीचे तरफ दाबना चालू कर दिया। राजू का लण्ड अगले ही पल कामरस बहा रही कुसुम की चूत की गहराईयों में समा गया।
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